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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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MAD. MAX

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Sala mere to dimag kharab ho Raha hai ki readers yaha chudai ki stories padne aaye hai ki stories me galti nikalne aur agar kisi ko stories pasand nhi aa raha to na pade

Ye writer par hai ki apni stories ko jaise likhe Hume to sirf dhulai aur incest chudai se matlab hona chahiye

Writer apne hisab se har raz khole

bas ab Sandhya kisi pr yakin na kare aur sachchai pata lagane ki kosish kare ki abhay ko aakhir dono ke rishte ke baare me pata kaise chala tab Raman ki sachchai uske samne aayegi

Aur jab college me abhay Aman ki dhulai kare to ab use Aman ki koi parwah na ho

Bas writer mahoday abhay aur Sandhya ko ek kharoch tak na lagne de
Hum sb apni soch ko comments me jaahir krte hai ki aage ke update me esa ho waisa ho
.
Lekin upadate 22 ko read krke mujhe ehsaas ho gya hai ki apni soch mai Jeb me rakhoo ni to update 22 ki trh Hemantstar111 bro EK NIROADH SE band baja dega sbki 😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
 

Alex Xender

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अपडेट 22



संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

-------------------------------------------------

सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
Mr T Crying GIF
 

Tiger 786

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Bas writer mahoday abhay aur Sandhya ko ek kharoch tak na lagne de
Well Sayed bro👏👏👏👏👏
 

Hemantstar111

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अपडेट 23
वो तो है अलबेला

सुबह सुबह उठा कर अभय अपने बेड पर बैठा था। तभी एक आवाज उसके कानो में गूंजी...

"उठ गए बाबू साहेब ,गरमा गर्म चाय पी लो।"

अभय ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया, रमिया अपने हाथों में चाय लिए खड़ी थी...

अभय हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय --"अरे तुम!! तुम कब आई??"

रमिया --"मैं तो कब से आई हूं, बाबू साहेब। आप सो रहे थे तो, जगाना मुनासिब नहीं समझा। ठीक है आप चाय पियो मैं खाना बनाने जा रही हूं।"

ये कहकर रमिया जैसे ही जाने के लिए मुड़ी...अभय की नजरें उसकी गोरी पतली कमर पर अटक गई...


खैर रमिया तो नही रुकी, पर जाते हुए उसके कूल्हे इस कदर थिरक रहे थे की, अभय की नजरें कुछ पल के लिए उस पर थम सी गई। जैसे ही रमिया अभय की आंखो से ओझल होती है। अभय अपना चाय पीने में व्यस्त हो जाता है....

अभय चाय पी ही रहा होता है की, उसके फोन की घंटी बजी...

फोन की स्क्रीन पर नजर डालते हुए पाया की उसे रेखा आंटी कॉल कर रही थी। रेखा का कॉल देखते ही, अभि अपने सिर पे एक चपेत मारते हुऐ....फोन को रिसीव करते हुए...

अभि --"गुड ...मॉर्निंग आंटी!!"

"आंटी के बच्चे, जाते ही भूल गया। कल रात से इतना फोन कर रही हूं तुझे, कहा था तू ? मुझे पता था, की तू मुझसे प्यार नही करता, इसलिए तू फो...."

अभि --"आ...आराम से, सांस तो ले लो आंटी।"

अभि, रेखा की बातों को बीच में ही काटते हुए बोला...

रेखा --"तुझे सांस की पड़ी है, जो तू लाके दिया है। इतना टाइट है की उसकी वजह से सांस भी नही लिया जा रहा है।"

रेखा की बात सुनते ही अभि के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल जाती है।

अभि --"अंदाजे से लाया था, मुझे क्या पता छोटी पड़ जायेगी।"

रेखा --"तो पूछ लेता, की कौन सी साइज लगती है मुझे?"

अभय --"तो फिर सरप्राइज़ कैसे होता...आंटी? वैसे जब छोटी है तो क्यों पहेना आपने?"

रेखा --"क्यूंकि...तूने जो लाया था। मैं भला कैसे नही पहनती?"

अभय --"ओहो...क्या बात है, कसम से दिल खुश हो गया। अभि सुबह उठते ही मेरा मूड खराब था। मगर अब मस्त हो गया। एक काम करो ना आंटी, पिक सेंड करो ना। मैं भी तो देखूं कितना टाइट है??"

रेखा --"क्या...कितना टाइट है??"

अभय --"मेरा मतलब की, कितनी छोटी है?"

कहते अभय मन ही मन मस्त हुए जा रहा था।

रेखा --"o... हो, देखो तो जरा। थोड़ी भी शर्म नही है इन जनाब को। मुझे तो पता ही नही था की तू इतना भी मस्तीखोर हो सकता है??"

अभि --"तो अब पता चल गया ना आंटी, सेंड करो ना प्लीज़।"

रेखा --"तू बेशर्म होगा, मैं नही। मैं नही करने वाली।"

अभि --"अरे करो ना...आंटी। आज तक किसी औरत को ब्रा...पैंटी में नही देखा।"

रेखा --"है भगवान, कहा से सीखा तू ये सब? ऐसा तो नहीं था मेरा अभि, गांव जाते ही हवा लग गई क्या...तुझे भी?"

अभय --"वो कहते है ना...जैसा देश वैसा भेष। पर आप छोड़ो वो सब , सच में मेरा बहुत मन कर रहा है, इसके लिए तो लाया था। अब पाहेनी हो तो फोटो क्लिक करो और सेंड कर दो ना।"

रेखा --"धत्, मुझे शर्म आती है, और वो भी तुझे कैसे सेंड कर सकती हूं? तुझे मैने कभी उस नजर से देखा नही, हमेशा तुझे अपने बेटे की नजर से ही देखा मैने।"

ये सुनकर अभि कुछ सोचते हुए बोला.....

अभि --"हां...तो मैने भी आपको एक मां की तरह ही माना है हमेशा, अब बच्चे को कुछ चाहिए होता है तो अपनी मां के पास ही जाता है ना। तो वैसे मुझे भी जो चाहिए था वो मैने अपनी मां से मांगा। पर शायद आप नाम की ही मां हो, क्योंकि अगर आप सच में मुझे अपना बेटा समझती, तो अब तक जो मैने बोला है वो आप कर देती।"

रेखा --"हो गया तेरा, मुझे मत पढ़ा। मुझे पता है, की तुझे बातों में कोई नही जीत सकता। और वो तो तू दूर है, नही तो आज तेरा कान ऐठ देती, अपनी मां को ब्रा पैंटी में देखते हुए तुझे शर्म नही आयेगी...

अभि --"नही आयेगी, कसम से उल्टा बहुत मजा आएगा। सेंड कर ना मां..."

आज अचानक ही अभय के मुंह से रेखा के लिए मां शब्द निकल गए। और जब तक अभय को ये एहसास हुआ...एक बार अपने सिर पे हल्के से चपेट लगाते हुए दांतो तले जीभ दबा लेता है, और शांत हो कर बस मुस्कुराए जा रहा था। दूसरी तरफ से रेखा भी शांत हो गई थी, अभय समझ गया था की, रेखा इस समय अत्यधिक भाऊक हो चुकी है। ये जान कर वो एक बार फिर बोला...

अभय --"अब अगर इमोशनल ड्रामा करना है तुझे तो, मैं फोन कट कर देता हूं..."

कहकर अभि फिर से मुस्कुराने लगा...

रेखा --"नही.... रुक। फोन कट करने की हिम्मत भी की ना?"

अभय --"तो क्या...?"

रेखा --"तो..तो..?"

अभय --"अरे क्या तो...तो?"

रेखा --"तो क्या? फिर से कर लूंगी और क्या कर सकती हूं।"

इस बात पर दोनो हंस पड़ते है...हंसते हुए रेखा अचानक से रोने लग जाति है। अभय समझ गया की की आखिर क्यूं...?

अभि --"अब तू इस तरह से रोएगी ना, तो मैं सब पढ़ाई लिखाई छोड़ कर तेरे पास आ जाऊंगा।"

अभय की बात सुनकर रेखा कुछ देर तक रोटी रही, फिर आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

रेखा --"कान तरस गए थे, तेरे मुंह से मां सुनने के लिए। और उस मां शब्द में अपना पन तूने , मुझे तू बोल कर लगा दिया।"

अभि --"हो गया तेरा भी ड्रामा, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है, मुझे लगा अपनी का को ब्रा पैंटी में देख कर जाऊ, पर तू तो अपने आसू बहाब्रही हैं..."

ये सुनकर रेखा खिलखिला कर हस पड़ी....

रेखा --"शायद मैं तुझे भेज भी देती..., मगर अब जब तूने मुझे मां कह ही दिया है तो... सॉरी बेटा। मां से ऐसी गन्दी बात नही करते।

अभय --"ये तो वही बात हो गई की, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना। ठीक है मेरी मां, मैं भी देखता हूं की, मेरी मां कब तक अपना खज़ाना छुपाती है अपने बेटे से।"

रेखा --"मैं भी देखती हूं....।"

अभय --"अच्छा ठीक है अब, मैं नहाने जा रहा ही, आज पहला दिन है तो एक दम फ्रेश माइंड होना चाहिए।"

रेखा --"अच्छा ... सुन।"

अभय --"अब क्या हुआ...?"

रेखा --"I love you..."

ये सुन कर अभि एक बार फिर मुस्कुराया, और बोला...

अभि --"जरा धीरे मेरी प्यारी मां, कही गोबर ने सुन लिया तो। सब गुर गोबर हो जायेगा।"

रेखा --"ये मेरे सवाल का जवाब नही, चल अब जल्दी बोल,, मुझे भी काम करना है...।

अभि --"पहले फोटो फिर जवाब.... बाय मम्मी।"

इससे पहले की रेखा कुछ बोलती, अभि ने फोन कट कर दिया।

अभि मुस्कुराते हुए बेड पर से उठा, और बाथरूम की तरफ बढ़ चला.......

_____________________________

अमन डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। उसके सामने निधि, उसकी मां ललिता, चाची मालती और ताई मां संध्या भी बैठे नाश्ता कर रहे थे।

अमन नाश्ता करते हुए, मलती की तरफ देखते हुए बोला...

अमन --"क्या बात है चाची, आज कल चाचा नही दिखाई देते। कहा रहते है वो?"

अमन की बात सुनकर, मलती भी अमन को घूरते हुए बोली...

मलती --"खुद ही ढूंढ ले, मुझसे क्यूं पूछ रहा है??"

मलती का जवाब सुनकर, अमन चुप हो गया । और अपना नाश्ता करने लगता है...

इस बीच संध्या अमन की तरफ ही देख रही थी, थोड़ी देर बाद ही संध्या ने अपनी चुप्पी तोडी...

संध्या --"अमन बेटा...आज कल मुझे तेरी शिकायत बहुत आ रही है। तू बेवजह ही किसी ना किसी से झगड़ा कर लेता है। ये गलत बात है बेटा। मैं नही चाहती की तू आगे से किसी से भी झगड़ा करे।"

संध्या की बात सुनकर, अमन मुस्कुराते हुए बोला...

अमन --"क्या ताई मां, आप भी ना। मैं भला क्यूं झगड़ा करने लगा किसी से, मैं वैसे भी छोटे लोगो के मुंह नही लगता।"

अमन का इतना कहें था की, मलती झट से बोल पड़ी...

मलती --"दीदी के कहने का मतलब है की, तेरा ये झगड़ा कही तुझ पर मुसीबत ना बन जाए इस लिए वो तुझे झगड़े से दूर रहने के लिए बोल रही है। जो तुझे होगा नही। तू किसी भी लड़के को इस पायल से बात करते हुए देखेगा तो उससे झगड़ पड़ेगा।"

पायल का नाम सुनते ही संध्या खाते खाते रुक जाती है, एक तरह से चौंक ही पड़ी थी...

संध्या --"पायल, पायल से क्या है इसका......

संध्या की बात सुन कर वहा बैठी निधि बोली...

निधी --"अरे ताई मां, आपको नही पता क्या? ये पायल का बहुत बड़ा आशिक है।"

ये सुन कर संध्या को एक अलग ही झटका लगा, उसके चेहरा फक्क् पड़ गया था। हकलाते हुए अपनी आवाज में कुछ तो बोली...

संध्या --"क्या...कब से??"

निधि --"बचपन से, आपको नही पता क्या? अरे ये तो अभय भैया को उसके साथ देख कर पगला जाता था। और जान बूझ कर अभय भैया से झगड़ा कर लेता था। अभय भैया इससे झगड़ा नही करना चाहते थे वो इसे नजर अंदाज भी करते थे, मगर ये तो पायल का दीवाना था। जबरदस्ती अभय भैया से लड़ पड़ता था।"

अब धरती फटने की बारी थी, मगर शायद आसमान फटा जिससे संध्या के कानो के परदे एक पल के लिए सुन हो गए थे। संध्या के हाथ से चम्मच छूटने ही वाला था की मलती ने उस चम्मच को पकड़ लिया और संध्या को झिंझोड़ते हुए बोली...

मालती --"क्या हुआ दीदी? कहा खो गई...?"

संध्या होश में आते ही...

संध्या --"ये अमन झगड़ा करता....?"

"अरे दीदी जो बीत गया सो बीत छोड़ो...l"

मालती ने संध्या की बात पूरी नही होने दी, मगर इस बार संध्या बौखलाई एक बार फिर से कुछ बोलना चाही...

संध्या --"नही...एक मिनट, झगड़ा तो अभय करता था ना अमन के...?"

"क्यूं गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो दीदी, छोड़ो ना।"

मलती ने फिर संध्या की बात पूरी नही होने दी, इस बार संध्या को मलती के उपर बहुत गुस्सा आया, कह सकते हो की संध्या अपने दांत पीस कर रह गई...!

संध्या की हालत और गुस्से को देख कर ललिता माहौल को भांप लेती है, उसने अपनी बेटी निधि की तरफ देखते हुए गुस्से में कुछ बुदबुदाई। अपनी मां का गुस्सा देखकर निधि भी दर गई...

संध्या --"तू बीच में क्यूं टोक रही है मालती? तुझे दिखाता नही क्या? की मैं कुछ पूछ रही हूं?"

संध्या की बात सुनकर मालती इस बार खामोश हो गई...मलती को खामोश देख संध्या ने अपनी नज़रे एक बार फिर निधि पर घुमाई।

संध्या --"सच सच बता निधि। झगड़ा कौन करता था? अभय या अमन?"

संध्या की बात सुनकर निधि घबरा गई, वो कुछ बोलना तो चाहती थी मगर अपनी मां के दर से अपनी आवाज तक ना निकाल पाई।

"हां मैं ही करता था झगड़ा, तो क्या बचपन की बचकानी हरकत की सजा अब दोगी मुझे ताई मां?"

अमन वहा बैठा बेबाकी से बोल पड़ा..., इस बार धरती हिली थी शायद। इस लिए तो संध्या एक झटके में चेयर पर से उठते हुए...आश्चर्य के भाव अपने चेहरे पर ही नहीं बल्कि अपने शब्दो में भी उसी भाव को अर्जित करते हुए चिन्ह पड़ी...

संध्या--"क्या...? पर तू...तू तो काहेता था की, झगड़ा अभय करता था।"

अमन --"अब बचपन में हर बच्चा शरारत करने के बाद डांट ना पड़े पिटाई ना हो इसलिए क्या करता है, झूठ बोलता है, अपना किया दूसरे पे थोपता है। मैं भी बच्चा था तो मैं भी बचाने के लिए यही करता था। मना जो किया गलत किया, मगर अब इस समय अच्छा गलत का समझ कहा था मुझे ताई मां?"

संध्या को झटके पे झटके लग रहे थे, सवाल था की अगर इसी तरह से झटका उसे लगता रहा तो उसे हार्ट अटैक ना आ जाए। जिस तरह से वो सांसे लेते हुए अपने दिल पर हाथ रख कर चेयर पर बैठी थी, ऐसा लग रहा था मानो ये पहला हार्ट अटैक तो नही आ गया.....

संध्या के आंखो के सामने आज उजाले की किरणे पद रही थी मगर उसे इस उजाले की रौशनी में उसकी खुद की आंखे खुली तो चुंधिया सी गई...

शायद उसकी आंखो को इतने उजाले में देखने की आदत नही थी, पर कहते है ना, जब सच की रौशनी चमकती है तो अक्सर अंधेरे में रहने वाले की आंखे इसी तरह चौंधिया जाति है....
 

The angry man

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सुबह सुबह उठा कर अभय अपने बेड पर बैठा था। तभी एक आवाज उसके कानो में गूंजी...

"उठ गए बाबू साहेब ,गरमा गर्म चाय पी लो।"

अभय ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया, रमिया अपने हाथों में चाय लिए खड़ी थी...

अभय हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय --"अरे तुम!! तुम कब आई??"

रमिया --"मैं तो कब से आई हूं, बाबू साहेब। आप सो रहे थे तो, जगाना मुनासिब नहीं समझा। ठीक है आप चाय पियो मैं खाना बनाने जा रही हूं।"

ये कहकर रमिया जैसे ही जाने के लिए मुड़ी...अभय की नजरें उसकी गोरी पतली कमर पर अटक गई...


खैर रमिया तो नही रुकी, पर जाते हुए उसके कूल्हे इस कदर थिरक रहे थे की, अभय की नजरें कुछ पल के लिए उस पर थम सी गई। जैसे ही रमिया अभय की आंखो से ओझल होती है। अभय अपना चाय पीने में व्यस्त हो जाता है....

अभय चाय पी ही रहा होता है की, उसके फोन की घंटी बजी...

फोन की स्क्रीन पर नजर डालते हुए पाया की उसे रेखा आंटी कॉल कर रही थी। रेखा का कॉल देखते ही, अभि अपने सिर पे एक चपेत मारते हुऐ....फोन को रिसीव करते हुए...

अभि --"गुड ...मॉर्निंग आंटी!!"

"आंटी के बच्चे, जाते ही भूल गया। कल रात से इतना फोन कर रही हूं तुझे, कहा था तू ? मुझे पता था, की तू मुझसे प्यार नही करता, इसलिए तू फो...."

अभि --"आ...आराम से, सांस तो ले लो आंटी।"

अभि, रेखा की बातों को बीच में ही काटते हुए बोला...

रेखा --"तुझे सांस की पड़ी है, जो तू लाके दिया है। इतना टाइट है की उसकी वजह से सांस भी नही लिया जा रहा है।"

रेखा की बात सुनते ही अभि के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल जाती है।

अभि --"अंदाजे से लाया था, मुझे क्या पता छोटी पड़ जायेगी।"

रेखा --"तो पूछ लेता, की कौन सी साइज लगती है मुझे?"

अभय --"तो फिर सरप्राइज़ कैसे होता...आंटी? वैसे जब छोटी है तो क्यों पहेना आपने?"

रेखा --"क्यूंकि...तूने जो लाया था। मैं भला कैसे नही पहनती?"

अभय --"ओहो...क्या बात है, कसम से दिल खुश हो गया। अभि सुबह उठते ही मेरा मूड खराब था। मगर अब मस्त हो गया। एक काम करो ना आंटी, पिक सेंड करो ना। मैं भी तो देखूं कितना टाइट है??"

रेखा --"क्या...कितना टाइट है??"

अभय --"मेरा मतलब की, कितनी छोटी है?"

कहते अभय मन ही मन मस्त हुए जा रहा था।

रेखा --"o... हो, देखो तो जरा। थोड़ी भी शर्म नही है इन जनाब को। मुझे तो पता ही नही था की तू इतना भी मस्तीखोर हो सकता है??"

अभि --"तो अब पता चल गया ना आंटी, सेंड करो ना प्लीज़।"

रेखा --"तू बेशर्म होगा, मैं नही। मैं नही करने वाली।"

अभि --"अरे करो ना...आंटी। आज तक किसी औरत को ब्रा...पैंटी में नही देखा।"

रेखा --"है भगवान, कहा से सीखा तू ये सब? ऐसा तो नहीं था मेरा अभि, गांव जाते ही हवा लग गई क्या...तुझे भी?"

अभय --"वो कहते है ना...जैसा देश वैसा भेष। पर आप छोड़ो वो सब , सच में मेरा बहुत मन कर रहा है, इसके लिए तो लाया था। अब पाहेनी हो तो फोटो क्लिक करो और सेंड कर दो ना।"

रेखा --"धत्, मुझे शर्म आती है, और वो भी तुझे कैसे सेंड कर सकती हूं? तुझे मैने कभी उस नजर से देखा नही, हमेशा तुझे अपने बेटे की नजर से ही देखा मैने।"

ये सुनकर अभि कुछ सोचते हुए बोला.....

अभि --"हां...तो मैने भी आपको एक मां की तरह ही माना है हमेशा, अब बच्चे को कुछ चाहिए होता है तो अपनी मां के पास ही जाता है ना। तो वैसे मुझे भी जो चाहिए था वो मैने अपनी मां से मांगा। पर शायद आप नाम की ही मां हो, क्योंकि अगर आप सच में मुझे अपना बेटा समझती, तो अब तक जो मैने बोला है वो आप कर देती।"

रेखा --"हो गया तेरा, मुझे मत पढ़ा। मुझे पता है, की तुझे बातों में कोई नही जीत सकता। और वो तो तू दूर है, नही तो आज तेरा कान ऐठ देती, अपनी मां को ब्रा पैंटी में देखते हुए तुझे शर्म नही आयेगी...

अभि --"नही आयेगी, कसम से उल्टा बहुत मजा आएगा। सेंड कर ना मां..."

आज अचानक ही अभय के मुंह से रेखा के लिए मां शब्द निकल गए। और जब तक अभय को ये एहसास हुआ...एक बार अपने सिर पे हल्के से चपेट लगाते हुए दांतो तले जीभ दबा लेता है, और शांत हो कर बस मुस्कुराए जा रहा था। दूसरी तरफ से रेखा भी शांत हो गई थी, अभय समझ गया था की, रेखा इस समय अत्यधिक भाऊक हो चुकी है। ये जान कर वो एक बार फिर बोला...

अभय --"अब अगर इमोशनल ड्रामा करना है तुझे तो, मैं फोन कट कर देता हूं..."

कहकर अभि फिर से मुस्कुराने लगा...

रेखा --"नही.... रुक। फोन कट करने की हिम्मत भी की ना?"

अभय --"तो क्या...?"

रेखा --"तो..तो..?"

अभय --"अरे क्या तो...तो?"

रेखा --"तो क्या? फिर से कर लूंगी और क्या कर सकती हूं।"

इस बात पर दोनो हंस पड़ते है...हंसते हुए रेखा अचानक से रोने लग जाति है। अभय समझ गया की की आखिर क्यूं...?

अभि --"अब तू इस तरह से रोएगी ना, तो मैं सब पढ़ाई लिखाई छोड़ कर तेरे पास आ जाऊंगा।"

अभय की बात सुनकर रेखा कुछ देर तक रोटी रही, फिर आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

रेखा --"कान तरस गए थे, तेरे मुंह से मां सुनने के लिए। और उस मां शब्द में अपना पन तूने , मुझे तू बोल कर लगा दिया।"

अभि --"हो गया तेरा भी ड्रामा, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है, मुझे लगा अपनी का को ब्रा पैंटी में देख कर जाऊ, पर तू तो अपने आसू बहाब्रही हैं..."

ये सुनकर रेखा खिलखिला कर हस पड़ी....

रेखा --"शायद मैं तुझे भेज भी देती..., मगर अब जब तूने मुझे मां कह ही दिया है तो... सॉरी बेटा। मां से ऐसी गन्दी बात नही करते।

अभय --"ये तो वही बात हो गई की, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना। ठीक है मेरी मां, मैं भी देखता हूं की, मेरी मां कब तक अपना खज़ाना छुपाती है अपने बेटे से।"

रेखा --"मैं भी देखती हूं....।"

अभय --"अच्छा ठीक है अब, मैं नहाने जा रहा ही, आज पहला दिन है तो एक दम फ्रेश माइंड होना चाहिए।"

रेखा --"अच्छा ... सुन।"

अभय --"अब क्या हुआ...?"

रेखा --"I love you..."

ये सुन कर अभि एक बार फिर मुस्कुराया, और बोला...

अभि --"जरा धीरे मेरी प्यारी मां, कही गोबर ने सुन लिया तो। सब गुर गोबर हो जायेगा।"

रेखा --"ये मेरे सवाल का जवाब नही, चल अब जल्दी बोल,, मुझे भी काम करना है...।

अभि --"पहले फोटो फिर जवाब.... बाय मम्मी।"

इससे पहले की रेखा कुछ बोलती, अभि ने फोन कट कर दिया।

अभि मुस्कुराते हुए बेड पर से उठा, और बाथरूम की तरफ बढ़ चला.......

_____________________________

अमन डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। उसके सामने निधि, उसकी मां ललिता, चाची मालती और ताई मां संध्या भी बैठे नाश्ता कर रहे थे।

अमन नाश्ता करते हुए, मलती की तरफ देखते हुए बोला...

अमन --"क्या बात है चाची, आज कल चाचा नही दिखाई देते। कहा रहते है वो?"

अमन की बात सुनकर, मलती भी अमन को घूरते हुए बोली...

मलती --"खुद ही ढूंढ ले, मुझसे क्यूं पूछ रहा है??"

मलती का जवाब सुनकर, अमन चुप हो गया । और अपना नाश्ता करने लगता है...

इस बीच संध्या अमन की तरफ ही देख रही थी, थोड़ी देर बाद ही संध्या ने अपनी चुप्पी तोडी...

संध्या --"अमन बेटा...आज कल मुझे तेरी शिकायत बहुत आ रही है। तू बेवजह ही किसी ना किसी से झगड़ा कर लेता है। ये गलत बात है बेटा। मैं नही चाहती की तू आगे से किसी से भी झगड़ा करे।"

संध्या की बात सुनकर, अमन मुस्कुराते हुए बोला...

अमन --"क्या ताई मां, आप भी ना। मैं भला क्यूं झगड़ा करने लगा किसी से, मैं वैसे भी छोटे लोगो के मुंह नही लगता।"

अमन का इतना कहें था की, मलती झट से बोल पड़ी...

मलती --"दीदी के कहने का मतलब है की, तेरा ये झगड़ा कही तुझ पर मुसीबत ना बन जाए इस लिए वो तुझे झगड़े से दूर रहने के लिए बोल रही है। जो तुझे होगा नही। तू किसी भी लड़के को इस पायल से बात करते हुए देखेगा तो उससे झगड़ पड़ेगा।"

पायल का नाम सुनते ही संध्या खाते खाते रुक जाती है, एक तरह से चौंक ही पड़ी थी...

संध्या --"पायल, पायल से क्या है इसका......

संध्या की बात सुन कर वहा बैठी निधि बोली...

निधी --"अरे ताई मां, आपको नही पता क्या? ये पायल का बहुत बड़ा आशिक है।"

ये सुन कर संध्या को एक अलग ही झटका लगा, उसके चेहरा फक्क् पड़ गया था। हकलाते हुए अपनी आवाज में कुछ तो बोली...

संध्या --"क्या...कब से??"

निधि --"बचपन से, आपको नही पता क्या? अरे ये तो अभय भैया को उसके साथ देख कर पगला जाता था। और जान बूझ कर अभय भैया से झगड़ा कर लेता था। अभय भैया इससे झगड़ा नही करना चाहते थे वो इसे नजर अंदाज भी करते थे, मगर ये तो पायल का दीवाना था। जबरदस्ती अभय भैया से लड़ पड़ता था।"

अब धरती फटने की बारी थी, मगर शायद आसमान फटा जिससे संध्या के कानो के परदे एक पल के लिए सुन हो गए थे। संध्या के हाथ से चम्मच छूटने ही वाला था की मलती ने उस चम्मच को पकड़ लिया और संध्या को झिंझोड़ते हुए बोली...

मालती --"क्या हुआ दीदी? कहा खो गई...?"

संध्या होश में आते ही...

संध्या --"ये अमन झगड़ा करता....?"

"अरे दीदी जो बीत गया सो बीत छोड़ो...l"

मालती ने संध्या की बात पूरी नही होने दी, मगर इस बार संध्या बौखलाई एक बार फिर से कुछ बोलना चाही...

संध्या --"नही...एक मिनट, झगड़ा तो अभय करता था ना अमन के...?"

"क्यूं गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो दीदी, छोड़ो ना।"

मलती ने फिर संध्या की बात पूरी नही होने दी, इस बार संध्या को मलती के उपर बहुत गुस्सा आया, कह सकते हो की संध्या अपने दांत पीस कर रह गई...!

संध्या की हालत और गुस्से को देख कर ललिता माहौल को भांप लेती है, उसने अपनी बेटी निधि की तरफ देखते हुए गुस्से में कुछ बुदबुदाई। अपनी मां का गुस्सा देखकर निधि भी दर गई...

संध्या --"तू बीच में क्यूं टोक रही है मालती? तुझे दिखाता नही क्या? की मैं कुछ पूछ रही हूं?"

संध्या की बात सुनकर मालती इस बार खामोश हो गई...मलती को खामोश देख संध्या ने अपनी नज़रे एक बार फिर निधि पर घुमाई।

संध्या --"सच सच बता निधि। झगड़ा कौन करता था? अभय या अमन?"

संध्या की बात सुनकर निधि घबरा गई, वो कुछ बोलना तो चाहती थी मगर अपनी मां के दर से अपनी आवाज तक ना निकाल पाई।

"हां मैं ही करता था झगड़ा, तो क्या बचपन की बचकानी हरकत की सजा अब दोगी मुझे ताई मां?"

अमन वहा बैठा बेबाकी से बोल पड़ा..., इस बार धरती हिली थी शायद। इस लिए तो संध्या एक झटके में चेयर पर से उठते हुए...आश्चर्य के भाव अपने चेहरे पर ही नहीं बल्कि अपने शब्दो में भी उसी भाव को अर्जित करते हुए चिन्ह पड़ी...

संध्या--"क्या...? पर तू...तू तो काहेता था की, झगड़ा अभय करता था।"

अमन --"अब बचपन में हर बच्चा शरारत करने के बाद डांट ना पड़े पिटाई ना हो इसलिए क्या करता है, झूठ बोलता है, अपना किया दूसरे पे थोपता है। मैं भी बच्चा था तो मैं भी बचाने के लिए यही करता था। मना जो किया गलत किया, मगर अब इस समय अच्छा गलत का समझ कहा था मुझे ताई मां?"

संध्या को झटके पे झटके लग रहे थे, सवाल था की अगर इसी तरह से झटका उसे लगता रहा तो उसे हार्ट अटैक ना आ जाए। जिस तरह से वो सांसे लेते हुए अपने दिल पर हाथ रख कर चेयर पर बैठी थी, ऐसा लग रहा था मानो ये पहला हार्ट अटैक तो नही आ गया.....

संध्या के आंखो के सामने आज उजाले की किरणे पद रही थी मगर उसे इस उजाले की रौशनी में उसकी खुद की आंखे खुली तो चुंधिया सी गई...

शायद उसकी आंखो को इतने उजाले में देखने की आदत नही थी, पर कहते है ना, जब सच की रौशनी चमकती है तो अक्सर अंधेरे में रहने वाले की आंखे इसी तरह चौंधिया जाति है....
Nice update

Hero ki mom ha hi mandbudhi
 

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सुबह सुबह उठा कर अभय अपने बेड पर बैठा था। तभी एक आवाज उसके कानो में गूंजी...

"उठ गए बाबू साहेब ,गरमा गर्म चाय पी लो।"

अभय ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया, रमिया अपने हाथों में चाय लिए खड़ी थी...

अभय हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय --"अरे तुम!! तुम कब आई??"

रमिया --"मैं तो कब से आई हूं, बाबू साहेब। आप सो रहे थे तो, जगाना मुनासिब नहीं समझा। ठीक है आप चाय पियो मैं खाना बनाने जा रही हूं।"

ये कहकर रमिया जैसे ही जाने के लिए मुड़ी...अभय की नजरें उसकी गोरी पतली कमर पर अटक गई...


खैर रमिया तो नही रुकी, पर जाते हुए उसके कूल्हे इस कदर थिरक रहे थे की, अभय की नजरें कुछ पल के लिए उस पर थम सी गई। जैसे ही रमिया अभय की आंखो से ओझल होती है। अभय अपना चाय पीने में व्यस्त हो जाता है....

अभय चाय पी ही रहा होता है की, उसके फोन की घंटी बजी...

फोन की स्क्रीन पर नजर डालते हुए पाया की उसे रेखा आंटी कॉल कर रही थी। रेखा का कॉल देखते ही, अभि अपने सिर पे एक चपेत मारते हुऐ....फोन को रिसीव करते हुए...

अभि --"गुड ...मॉर्निंग आंटी!!"

"आंटी के बच्चे, जाते ही भूल गया। कल रात से इतना फोन कर रही हूं तुझे, कहा था तू ? मुझे पता था, की तू मुझसे प्यार नही करता, इसलिए तू फो...."

अभि --"आ...आराम से, सांस तो ले लो आंटी।"

अभि, रेखा की बातों को बीच में ही काटते हुए बोला...

रेखा --"तुझे सांस की पड़ी है, जो तू लाके दिया है। इतना टाइट है की उसकी वजह से सांस भी नही लिया जा रहा है।"

रेखा की बात सुनते ही अभि के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल जाती है।

अभि --"अंदाजे से लाया था, मुझे क्या पता छोटी पड़ जायेगी।"

रेखा --"तो पूछ लेता, की कौन सी साइज लगती है मुझे?"

अभय --"तो फिर सरप्राइज़ कैसे होता...आंटी? वैसे जब छोटी है तो क्यों पहेना आपने?"

रेखा --"क्यूंकि...तूने जो लाया था। मैं भला कैसे नही पहनती?"

अभय --"ओहो...क्या बात है, कसम से दिल खुश हो गया। अभि सुबह उठते ही मेरा मूड खराब था। मगर अब मस्त हो गया। एक काम करो ना आंटी, पिक सेंड करो ना। मैं भी तो देखूं कितना टाइट है??"

रेखा --"क्या...कितना टाइट है??"

अभय --"मेरा मतलब की, कितनी छोटी है?"

कहते अभय मन ही मन मस्त हुए जा रहा था।

रेखा --"o... हो, देखो तो जरा। थोड़ी भी शर्म नही है इन जनाब को। मुझे तो पता ही नही था की तू इतना भी मस्तीखोर हो सकता है??"

अभि --"तो अब पता चल गया ना आंटी, सेंड करो ना प्लीज़।"

रेखा --"तू बेशर्म होगा, मैं नही। मैं नही करने वाली।"

अभि --"अरे करो ना...आंटी। आज तक किसी औरत को ब्रा...पैंटी में नही देखा।"

रेखा --"है भगवान, कहा से सीखा तू ये सब? ऐसा तो नहीं था मेरा अभि, गांव जाते ही हवा लग गई क्या...तुझे भी?"

अभय --"वो कहते है ना...जैसा देश वैसा भेष। पर आप छोड़ो वो सब , सच में मेरा बहुत मन कर रहा है, इसके लिए तो लाया था। अब पाहेनी हो तो फोटो क्लिक करो और सेंड कर दो ना।"

रेखा --"धत्, मुझे शर्म आती है, और वो भी तुझे कैसे सेंड कर सकती हूं? तुझे मैने कभी उस नजर से देखा नही, हमेशा तुझे अपने बेटे की नजर से ही देखा मैने।"

ये सुनकर अभि कुछ सोचते हुए बोला.....

अभि --"हां...तो मैने भी आपको एक मां की तरह ही माना है हमेशा, अब बच्चे को कुछ चाहिए होता है तो अपनी मां के पास ही जाता है ना। तो वैसे मुझे भी जो चाहिए था वो मैने अपनी मां से मांगा। पर शायद आप नाम की ही मां हो, क्योंकि अगर आप सच में मुझे अपना बेटा समझती, तो अब तक जो मैने बोला है वो आप कर देती।"

रेखा --"हो गया तेरा, मुझे मत पढ़ा। मुझे पता है, की तुझे बातों में कोई नही जीत सकता। और वो तो तू दूर है, नही तो आज तेरा कान ऐठ देती, अपनी मां को ब्रा पैंटी में देखते हुए तुझे शर्म नही आयेगी...

अभि --"नही आयेगी, कसम से उल्टा बहुत मजा आएगा। सेंड कर ना मां..."

आज अचानक ही अभय के मुंह से रेखा के लिए मां शब्द निकल गए। और जब तक अभय को ये एहसास हुआ...एक बार अपने सिर पे हल्के से चपेट लगाते हुए दांतो तले जीभ दबा लेता है, और शांत हो कर बस मुस्कुराए जा रहा था। दूसरी तरफ से रेखा भी शांत हो गई थी, अभय समझ गया था की, रेखा इस समय अत्यधिक भाऊक हो चुकी है। ये जान कर वो एक बार फिर बोला...

अभय --"अब अगर इमोशनल ड्रामा करना है तुझे तो, मैं फोन कट कर देता हूं..."

कहकर अभि फिर से मुस्कुराने लगा...

रेखा --"नही.... रुक। फोन कट करने की हिम्मत भी की ना?"

अभय --"तो क्या...?"

रेखा --"तो..तो..?"

अभय --"अरे क्या तो...तो?"

रेखा --"तो क्या? फिर से कर लूंगी और क्या कर सकती हूं।"

इस बात पर दोनो हंस पड़ते है...हंसते हुए रेखा अचानक से रोने लग जाति है। अभय समझ गया की की आखिर क्यूं...?

अभि --"अब तू इस तरह से रोएगी ना, तो मैं सब पढ़ाई लिखाई छोड़ कर तेरे पास आ जाऊंगा।"

अभय की बात सुनकर रेखा कुछ देर तक रोटी रही, फिर आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

रेखा --"कान तरस गए थे, तेरे मुंह से मां सुनने के लिए। और उस मां शब्द में अपना पन तूने , मुझे तू बोल कर लगा दिया।"

अभि --"हो गया तेरा भी ड्रामा, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है, मुझे लगा अपनी का को ब्रा पैंटी में देख कर जाऊ, पर तू तो अपने आसू बहाब्रही हैं..."

ये सुनकर रेखा खिलखिला कर हस पड़ी....

रेखा --"शायद मैं तुझे भेज भी देती..., मगर अब जब तूने मुझे मां कह ही दिया है तो... सॉरी बेटा। मां से ऐसी गन्दी बात नही करते।

अभय --"ये तो वही बात हो गई की, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना। ठीक है मेरी मां, मैं भी देखता हूं की, मेरी मां कब तक अपना खज़ाना छुपाती है अपने बेटे से।"

रेखा --"मैं भी देखती हूं....।"

अभय --"अच्छा ठीक है अब, मैं नहाने जा रहा ही, आज पहला दिन है तो एक दम फ्रेश माइंड होना चाहिए।"

रेखा --"अच्छा ... सुन।"

अभय --"अब क्या हुआ...?"

रेखा --"I love you..."

ये सुन कर अभि एक बार फिर मुस्कुराया, और बोला...

अभि --"जरा धीरे मेरी प्यारी मां, कही गोबर ने सुन लिया तो। सब गुर गोबर हो जायेगा।"

रेखा --"ये मेरे सवाल का जवाब नही, चल अब जल्दी बोल,, मुझे भी काम करना है...।

अभि --"पहले फोटो फिर जवाब.... बाय मम्मी।"

इससे पहले की रेखा कुछ बोलती, अभि ने फोन कट कर दिया।

अभि मुस्कुराते हुए बेड पर से उठा, और बाथरूम की तरफ बढ़ चला.......

_____________________________

अमन डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। उसके सामने निधि, उसकी मां ललिता, चाची मालती और ताई मां संध्या भी बैठे नाश्ता कर रहे थे।

अमन नाश्ता करते हुए, मलती की तरफ देखते हुए बोला...

अमन --"क्या बात है चाची, आज कल चाचा नही दिखाई देते। कहा रहते है वो?"

अमन की बात सुनकर, मलती भी अमन को घूरते हुए बोली...

मलती --"खुद ही ढूंढ ले, मुझसे क्यूं पूछ रहा है??"

मलती का जवाब सुनकर, अमन चुप हो गया । और अपना नाश्ता करने लगता है...

इस बीच संध्या अमन की तरफ ही देख रही थी, थोड़ी देर बाद ही संध्या ने अपनी चुप्पी तोडी...

संध्या --"अमन बेटा...आज कल मुझे तेरी शिकायत बहुत आ रही है। तू बेवजह ही किसी ना किसी से झगड़ा कर लेता है। ये गलत बात है बेटा। मैं नही चाहती की तू आगे से किसी से भी झगड़ा करे।"

संध्या की बात सुनकर, अमन मुस्कुराते हुए बोला...

अमन --"क्या ताई मां, आप भी ना। मैं भला क्यूं झगड़ा करने लगा किसी से, मैं वैसे भी छोटे लोगो के मुंह नही लगता।"

अमन का इतना कहें था की, मलती झट से बोल पड़ी...

मलती --"दीदी के कहने का मतलब है की, तेरा ये झगड़ा कही तुझ पर मुसीबत ना बन जाए इस लिए वो तुझे झगड़े से दूर रहने के लिए बोल रही है। जो तुझे होगा नही। तू किसी भी लड़के को इस पायल से बात करते हुए देखेगा तो उससे झगड़ पड़ेगा।"

पायल का नाम सुनते ही संध्या खाते खाते रुक जाती है, एक तरह से चौंक ही पड़ी थी...

संध्या --"पायल, पायल से क्या है इसका......

संध्या की बात सुन कर वहा बैठी निधि बोली...

निधी --"अरे ताई मां, आपको नही पता क्या? ये पायल का बहुत बड़ा आशिक है।"

ये सुन कर संध्या को एक अलग ही झटका लगा, उसके चेहरा फक्क् पड़ गया था। हकलाते हुए अपनी आवाज में कुछ तो बोली...

संध्या --"क्या...कब से??"

निधि --"बचपन से, आपको नही पता क्या? अरे ये तो अभय भैया को उसके साथ देख कर पगला जाता था। और जान बूझ कर अभय भैया से झगड़ा कर लेता था। अभय भैया इससे झगड़ा नही करना चाहते थे वो इसे नजर अंदाज भी करते थे, मगर ये तो पायल का दीवाना था। जबरदस्ती अभय भैया से लड़ पड़ता था।"

अब धरती फटने की बारी थी, मगर शायद आसमान फटा जिससे संध्या के कानो के परदे एक पल के लिए सुन हो गए थे। संध्या के हाथ से चम्मच छूटने ही वाला था की मलती ने उस चम्मच को पकड़ लिया और संध्या को झिंझोड़ते हुए बोली...

मालती --"क्या हुआ दीदी? कहा खो गई...?"

संध्या होश में आते ही...

संध्या --"ये अमन झगड़ा करता....?"

"अरे दीदी जो बीत गया सो बीत छोड़ो...l"

मालती ने संध्या की बात पूरी नही होने दी, मगर इस बार संध्या बौखलाई एक बार फिर से कुछ बोलना चाही...

संध्या --"नही...एक मिनट, झगड़ा तो अभय करता था ना अमन के...?"

"क्यूं गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो दीदी, छोड़ो ना।"

मलती ने फिर संध्या की बात पूरी नही होने दी, इस बार संध्या को मलती के उपर बहुत गुस्सा आया, कह सकते हो की संध्या अपने दांत पीस कर रह गई...!

संध्या की हालत और गुस्से को देख कर ललिता माहौल को भांप लेती है, उसने अपनी बेटी निधि की तरफ देखते हुए गुस्से में कुछ बुदबुदाई। अपनी मां का गुस्सा देखकर निधि भी दर गई...

संध्या --"तू बीच में क्यूं टोक रही है मालती? तुझे दिखाता नही क्या? की मैं कुछ पूछ रही हूं?"

संध्या की बात सुनकर मालती इस बार खामोश हो गई...मलती को खामोश देख संध्या ने अपनी नज़रे एक बार फिर निधि पर घुमाई।

संध्या --"सच सच बता निधि। झगड़ा कौन करता था? अभय या अमन?"

संध्या की बात सुनकर निधि घबरा गई, वो कुछ बोलना तो चाहती थी मगर अपनी मां के दर से अपनी आवाज तक ना निकाल पाई।

"हां मैं ही करता था झगड़ा, तो क्या बचपन की बचकानी हरकत की सजा अब दोगी मुझे ताई मां?"

अमन वहा बैठा बेबाकी से बोल पड़ा..., इस बार धरती हिली थी शायद। इस लिए तो संध्या एक झटके में चेयर पर से उठते हुए...आश्चर्य के भाव अपने चेहरे पर ही नहीं बल्कि अपने शब्दो में भी उसी भाव को अर्जित करते हुए चिन्ह पड़ी...

संध्या--"क्या...? पर तू...तू तो काहेता था की, झगड़ा अभय करता था।"

अमन --"अब बचपन में हर बच्चा शरारत करने के बाद डांट ना पड़े पिटाई ना हो इसलिए क्या करता है, झूठ बोलता है, अपना किया दूसरे पे थोपता है। मैं भी बच्चा था तो मैं भी बचाने के लिए यही करता था। मना जो किया गलत किया, मगर अब इस समय अच्छा गलत का समझ कहा था मुझे ताई मां?"

संध्या को झटके पे झटके लग रहे थे, सवाल था की अगर इसी तरह से झटका उसे लगता रहा तो उसे हार्ट अटैक ना आ जाए। जिस तरह से वो सांसे लेते हुए अपने दिल पर हाथ रख कर चेयर पर बैठी थी, ऐसा लग रहा था मानो ये पहला हार्ट अटैक तो नही आ गया.....

संध्या के आंखो के सामने आज उजाले की किरणे पद रही थी मगर उसे इस उजाले की रौशनी में उसकी खुद की आंखे खुली तो चुंधिया सी गई...

शायद उसकी आंखो को इतने उजाले में देखने की आदत नही थी, पर कहते है ना, जब सच की रौशनी चमकती है तो अक्सर अंधेरे में रहने वाले की आंखे इसी तरह चौंधिया जाति है....
Nice update!!!
Subh subh ramiya ne abhay ke morning ko very good morning kr diya apni Gori kamar aur hilte nitamb dikha kr...Rekha ko maa abhay shyd isliye bol gya kyuki abhay kitna bhi khud ko strong krle akhir hai to insan hi emotions control ni hue Jo pichle raat yaad krke soya tha ya ek Karan ye bhi ho skta hai Rekha ko maa kehke Sandhya ki gand jlane ka plan ho.
Umid Kiran dikh ri hai Rekha shyd maa bnn jaye aur uski maa banne ki iccha bhi puri ho jaye...agar bra panty mai pic bhej di to kaam jldi start ho skta hai abhay Rekha ke khet ko jitni jldi ho sakega apne pani se sinch dega.
Dharti ke sath sath ab Sandhya ki gand bhi fatt gyi subh subh hi ek tej dosh le liya hai apne ladle Aman bete ke kartut ko jan kr...ab asman fate ya dharti hile Sandhya ko jaise jaise sachai pta chlegi uski zindagi utni battar banti jyegi...heart attack se kahi sach maar na jaye... Sandhya ka ab ye bolna chahiye ki chal koi baat ni bache to Aisa krte hi hai tu Aram se nasta kr aur ye 2 parathe aur le kitna dubla ho gya hai...aur jo nayi bike ki baat kr rha tha wo bhi college se aane ke baad lene chalenge MERA PYARA BACHA!!!:applause::evillaugh::gaylaugh:
 
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