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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Bahut jald...
Moksh to chalti hi rahegi sath me short stories bhi jo shuru ki thi unhein bhi complete karunga...
Moksh ke hero...vikramaditya/vikram ....Mere chhote bhai ki September me mrityu ho gayi... Man bahut vichalit ho gaya... Ab sab apne kandhe par bojh sa lagta hai... Bada hona bhi shrap ki tarah hai..
Kyu page bhar rahe ho bhai khud ke personal chats se
 

Ash Mishra

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bhai kahani bahut mast ja rahi abhay ki wapsi or badle ka besabri se intzar rahega or usse pehle ye dekhna hoga ki bo kya banta hai
 

Yasasvi1

❣bhootni💞
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अपडेट --- ६
_वो__तो__है__अल_बेला_


मालती के जाते ही, संध्या भी अपने कमरे में चली गई। संध्या गुम सूम सी अपने बेड पर बैठी थीं, उसे अजीब सी बेचैनी हो रही थीं। वो मालती की कही हुई बात पर गौर करने लगी। वो उस दीन को याद करने लगी जब उसने अभय की जम कर पिटाई कर रही थीं। उस दीन हवेली के नौकर भी अभय की पिटाई देख कर सहम गए थे। बात कुछ यूं थीं की, रमन हवेली में लहू लुहान हो कर अपना सर पकड़े पहुंचा। संध्या उस समय हवेली के हॉल में ही बैठी थीं। संध्या ने जब देखा की रमन के सर से खून बह रहा है, और रमन अपने सर को हाथों से पकड़ा है, तो संध्या घबरा गई। और सोफे पर से उठते हुऐ बोली...

संध्या --" ये...ये क्या हुआ तुम्हे? सर पर चोट कैसे लग गई?

बोलते हुऐ संध्या ने नौकर को आवाज लगाई और डॉक्टर को बुलाने के लिऐ बोली....

संध्या की बात सुनकर रमन कुछ नहीं बोला, बस अपने खून से सने हांथ को सर पर रखे कराह रहा था। रमन को यूं ख़ामोश दर्द में करहता देख, संध्या गुस्से में बोली....

संध्या --"मैं कुछ पूंछ रही हूं तुमसे? कैसे हुआ ये?

"अरे ये क्या बताएंगे बड़ी ठाकुराइन, मैं बताता हूं..."

इस अनजानी आवाज़ ने सांध्य का ध्यान खींचा, तो पाई सामने मुनीम खड़ा था। मुनीम को देख कर रमन गुस्से में चिल्लाया....

रमन --"मुनीम जी, आप जाओ यहां से, कुछ नहीं हुआ है भाभी। ये बस मेरी गलती की वजह से ही अनजाने में लग गया।"

"नहीं बड़ी ठाकुराइन, झूंठ बोल रहे है छोटे मालिक। ये तो आपके...."

रमन --"मुनीम जी... मैने कहा ना आप जाओ।

रमन ने मुनीम की बात बीच में ही काटते हुऐ बोला। मगर इस बार सांध्या ने जोर देते हुऐ कहा....


संध्या --"मुनीम जी, बात क्या है... साफ - साफ बताओ मुझे?"

संध्या की बात सुनकर, मुनीम बिना देरी के बोल पड़ा....



मुनीम --"वो... बड़ी ठाकुराइन, छोटे मालिक का सर अभय बाबा ने पत्थर मार कर फोड़ दीया।"

ये सुनकर संध्या गुस्से में लाल हो गई.…

संध्या --"अभय ने!! पर वो ऐसा क्यूं करेगा?"

मुनीम --"अब क्या बताऊं बड़ी ठाकुराइन, छोटे मालिक और मै बाग की तरफ़ जा रहे थे, तो देखा अभय बाबा गांव के नीच जाति के बच्चों के साथ खेल-कूद कर रहे थे। पता नहीं कौन थे चमार थे, केवट था या पता नहीं कौन से जाति के थे वो बच्चे। यही देख कर छोटे मालिक ने अभय को डाट दिया, ये कहते हुऐ की अपनी बराबरी के जाति वालों के बच्चों के साथ खेलो, हवेली का नाम मत खराब करो। ये सुन कर अभय बाबा, छोटे मालिक से जुबान लड़ाते हुए बोले,, ये सब मेरे दोस्त है, और दोस्ती जात पात नहीं देखती, अगर इनसे दोस्ती करके इनके साथ खेलने में हवेली का नाम खराब होता है तो हो जाए, मुझे कुछ फरक नहीं पड़ता।"

संध्या --"फिर क्या हुआ?"

मुनीम --"फिर क्या बड़ी मालकिन, छोटे मालिक ने अभय बाबा से कहा की, अगर भाभी को पता चला तो तेरी खैर नहीं, तो इस पर अभय बाबा ने कहा, अरे वो तो बकलोल है, दिमाग नाम का चीज़ तो है ही नहीं मेरी मां में, वो क्या बोलेगी, ज्यादा से ज्यादा दो चार थप्पड़ मरेगी और क्या, पर तेरा सर तो मै अभी फोडूंगा। और कहते हुऐ अभय बाबा ने जमीन पर पड़ा पत्थर उठा कर छोटे मालिक को दे मारा, और वहां से भाग गए।"

मुनीम की बात सुनकर तो मानो सांध्य का पारा चरम पर था, गुस्से मे आपने दांत की किटकिती बजाते हुऐ बोली...

सांध्य --"बच्चा समझ कर, मैं उसे हर बार नज़र अंदाज़ करते गई। पर अब तो उसके अंदर बड़े छोटे की कद्र भी खत्म होती जा रही है। आज रमन का सर फोड़ा है, और मेरे बारे में भी बुरा भला बोलने लगा है, हद से ज्यादा ही बिगड़ता जा रहा है, आने दो उसे आज बताती हूं की, मैं कितनी बड़ी बकलोल हूं..."


.... भाभी, भाभी... कहां हो तुम, अंदर हों क्या?

इस आवाज़ ने, सांध्य को भूत काल की यादों से वर्तमान की धरती पर ला पटका, अपनी नम हो चुकी आंखो के कोने से छलक पड़े आंसू के कतरों को अपनी गोरी हथेली से पोछते हुऐ, सुर्ख पड़ चुकी आवाज़ में बोली...

सांध्य --"हां, अंदर ही हूं।"

बोलते हुऐ वो दरवाज़े की तरफ़ देखने लगी... कमरे में रमन दाखिल हुआ, और संध्या के करीब आते हुऐ बेड पर उसके बगल में बैठते हुऐ बोला।


रमन --"भाभी, मैने सोचा है की, गांव में पिता जी के नाम से एक डिग्री कॉलेज बनवा जाए, अब देखो ना यहां से शहर काफी दूर है, आस - पास के कई गांव के विद्यार्थी को दूर शहरों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है। अगर हमने अपना डिग्री कॉलेज बनवा कर मान्यता हंसील कर ली, तो विद्यार्थियों को पढ़ाई में आसानी हो जाएंगी।"

रमन की बात सुनते हुऐ, सांध्य बोली.....

संध्या --"ये तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारे बड़े भैया की भी यही ख्वाहिश थीं, वो अभय के नाम पर डिग्री कॉलेज बनाना चाहते थे, पर अब तो अभय यहां रहा ही नहीं, बनवा दो अभय के नाम से ही... वो नहीं तो उसका नाम तो रहेगा।"

रमन --"ओ... हो भाभी, तो पहले ही बताना चाहिए था, मैने तो मान्यता लेने वाले फॉर्म पर पिता जी के नाम से भर कर अप्लाई कर दिया। ठीक हैं मैं मुनीम से कह कर चेंज करवाने की कोशिश करूंगा।"

रमन की बात सुनकर संध्या ने कहा...

संध्या --"नहीं ठीक है, रहने दो। पिता जी का नाम भी ठीक है।"

रमन --"ठीक है भाभी, जैसा तुम कहो।"

और ये कह कर रमन जाने लगा तभी... सन्ध्या ने रमन को रोकते हुऐ....

संध्या --"अ... रमन।"

रमन रुकते हुऐ, संध्या की तरफ़ पलटते हुऐ...

रमन --"हां भाभी।"

संध्या --"एक बात पूंछू??"

संध्या की ठहरी और गहरी आवाज़ में ये बात सुनकर रमन एक पल के लिऐ सोच की उलझन में उलझते 5हुऐ, उलझे हुऐ स्वर मे बोला...


रमन --"क्या अभय को मेरे और तुम्हारे रिश्ते के बारे में पता था, या फिर कुछ शक था?"

ये सुन कर रमन को ताजुब और हैरानी दोनो एक साथ हुई, ताजुब इस बात की, की इतने सालों बाद इस बारे में क्यूं? और हैरानी इस बात की, की अमन को उनके रिश्ते के बारे में पता था या नहीं इस सवाल पर।

रमन --"मुझे नहीं लगता भाभी, जब घर वालो और गांव वालो को पता नहीं चला तो, वो तो 9 साल का बच्चा था भाभी, उसे भला कैसे पता चलेगा? पर आज इतने सालों बाद क्यूं?"

संध्या अपनी गहरी और करुण्डता भरे लहज़े में बोली...

संध्या --" ना जाने क्यूं, हमेशा एक बेचैनी सी होती रहती है, ऐसा लगता है की मेरा दिल भटक रहा है किसी के लिऐ, मुझे पता है की किस के लिऐ भटकता है, मैं खुद से ही अंदर अंदर लड़ती रहती हूं, रात भर रोती रहती हूं, सोचती हूं की वो कहीं से तो आ जाए, ताकी मैं उसे बता सकूं की मैं उससे कितना प्यार करती हूं, माना की मैने बहुत गलतियां की हैं, मैंने उसे जानवरों की तरह पीटा, पर ये सब सिर्फ़ गुस्से में आकर। मुझसे गलती हो गई, मैं ये ख़ुद को नहीं समझा पा रही हूं, उसे कैसे समझाती। मैं थक गई हूं, जिंदगी बेरंग सी लगने लगी हैं। हर पल उसे भुलाने की कोशिश करती हूं, पर फिर दिल कहता है की, उसे भुला दी तो जिंदगी में तेरे क्या बचेगा? हे भगवान क्या करूं? कहां जाऊं? कोई तो राह दिखा दे?"

कहते हुऐ सन्ध्या एक बार फिर रोने लगती है...!

"अब रो कर कुछ हासिल नहीं होगा दीदी,"

नज़र उठा कर देखी तो सामने मालती खड़ी थीं, रुवांसी आंखो से मालती की तरफ़ देखते हुऐ थोड़ी चेहरे बेबसी की मुस्कान लाती हुई संध्या मालती से बोली...

संध्या --"एक मां को जब, उसके ही बेटे के लिऐ कोई ताना मारे तो उस मां पर क्या बीतती है, वो एक मां ही समझ सकती है।"

संध्या की बात मालती समझ गई थीं की सन्ध्या का इशारा आज सुबह नाश्ता करते हुऐ उसकी कही हुई बात की तरफ़ थीं।

मालती --"अच्छा! तो दीदी आप ताना मारने का बदला ताना मार कर ही ले रही है।"

संध्या को बात भी मालती की बात समझते देरी नहीं लगी, और झट से छटपटाते हुऐ बोली...

संध्या --"नहीं... नहीं, भगवान के लिऐ तू ऐसा ना समझ की, मैं तुझे कोई ताना मार रही हूं। तेरी बात एकदम ठीक थीं, मैने कभी तो अभय को ज्यादा खाना खाने पर ताना मारी थीं, मेरी मति मारी गई थीं, बुद्धि भ्रष्ट हो गई थीं, इस लिऐ ऐसे शब्द मुंह से निकल रहे थे।"

चुप चाप खड़ी संध्या की बात सुनते हुऐ मालती भावुक हो चली आवाज़ मे बोली...

मालती --"भगवान ने मुझे मां बनने का सौभाग्य तो नहीं दीया, पर हां इतना तो पता है दीदी की, बुद्धि हीन मां हो चाहे मति मारी गई मां हो, पागल मां हो चाहे शैतान की ही मां क्यूं ना हो... अपने बच्चे को हर स्थिति में सिर्फ प्यार ही करती है।"

कहते हुऐ मालती वापस उस कमरे से चली जाति है... और इधर मालती की सत्य बातें संध्या को अंदर ही अंदर एक बदचलन मां की उपाधि के तख्ते पर बिठा गई थीं, जो संध्या बर्दाश्त नहीं कर पाई।।

और जोर - जोर से उस कमरे में इस तरह चिल्लाने लगी जैसे पागल खाने में पागल व्यक्ति...


..... हां.... हां मैं एक गिरी हुई औरत हूं, यही सुनना चाहती है ना तू, लेकिन एक बात सुन ले तू भी, मेरे बेटे से मुझसे से ज्यादा कोई प्यार नहीं करता...


""अब क्या फ़ायदा दीदी, अब तो प्यार करने वाला रहा ही नहीं... फिर किसको सुना रही हो?"

चिल्लाती हुई संध्या की बात सुनकर , मालती भी चिल्लाकर कमरे से बाहर निकलते हुई बोली और फिर वो भी नम आंखों के साथ अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ती है.....

______________&&&________
Nice update....nas continue update deta rahiya.....yahi ummed karti hu...👉👈😅
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Nice update
 

Rekha rani

Well-Known Member
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Awesome update, sandhya ko apna purana atit yad aa rha hai, kaise raman aur abhay me nhi banti thi, ab kya vastav me abhay ne raman ka sir phoda tha apni ma ko galat bola tha ya raman ki sajish thi ye sab , ye jab flashback aayega tb sahi se samjh aayega, lekin abhi sandhya ko apni sab galati yad aa rhi hai,
Ye bhi sach sabit hua ki raman aur sandhya me galat sambandh the kyoki sandhya ko khud dout hai ki abhay sab jan gya tha
Ab raman sandhya ko emotional krke college ke nam pr gav walo ki jameen hadpe ga,
Malti sandhya pr saty ke ban chala kr use chhalni kr rhi hai, sandhya ko uska asli face dikha rhi hai, aur sandhya sab samjh bhi rhi hai lekin dava bhi kr rhi hai sabse jyada pyar abhay ko krti hai, hakikat kya hai wo samay btayega
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Bahut jald...
Moksh to chalti hi rahegi sath me short stories bhi jo shuru ki thi unhein bhi complete karunga...
Moksh ke hero...vikramaditya/vikram ....Mere chhote bhai ki September me mrityu ho gayi... Man bahut vichalit ho gaya... Ab sab apne kandhe par bojh sa lagta hai... Bada hona bhi shrap ki tarah hai..
दुखद

ॐ शांति

जीवन है भाई, ये सबके साथ होता है, बड़ा छोटा होना कोई मायने नहीं रखता।
 
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