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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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अरे भाई इस कहानी मे सुरु से हि अपडेट का अकाल है
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अपडेट के अभाव में ये कहानी डूबने वाली है, पहले अपडेट से कितनी उम्मीद जगाई थी इन भाई ने।

ना ही तो अपडेट है, और न कोई उम्मीद है।
 

Hemantstar111

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अपडेट 7

आज अभि का पहला दिन था उसके काम पर, जो काफी अच्छा गुजरा था। अब उसके साथ, पढ़ाई के साथ साथ काम भी था। वो मान ही मान काफी खुश था। जॉब मिलने पर उसे इस तरह का अहसास हो रहा थानों उसे उसकी दुनिया मिल गई हो। वो हंसी खुशी अपने स्कूल बैग को पीछे टांगे , घर की तरफ चल पड़ा। अभि अब 10वी कक्षा का छात्र था, और 15 साल का हो गया था। इस उम्र में ही अच्छी खासी लंबाई का माली बन गया था, शायद अपने दादा परम सिंह की कद - काठी मिली थी उसको।

उसके चेहरे पर हमेशा एक अजीब सी चमक रहती थी, एक आकर्षक चेहरा था उसका, जो भी देखता था उसे अभी के ऊपर ऐतबार होने में समय नहीं लगता था। अभि आज महलों से निकल कर अपने पैरो पर खड़ा हो गया था। 15 साल की उम्र में पढ़ाई के साथ साथ काम भी करने लगा था। अब तो वो सपने देखना भी शुरू कर दिया था। ना जाने क्या सोचते हुए वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बाजार की गलियों में आगे बढ़ा चला जा रहा था की तभी एक आवाज ने उसके पैर को थमने पर मजबूर कर दिया, और वो रुक गया , और उस तरफ देखने लगा, जिस तरफ से उसे वो आवाज आई थी।

उसने जब उस तरफ देखा, तो एक औरत टोकरी में चूड़ियां भर कर बेंच रही थीं। अभि इस औरत के नजदीक गया और टोकरी में झांकने लगा। उसे us टोकरी रंग बिरंगी चिड़िया दिखी।

"क्या हुआ बेटा? चूड़ियां चाहिए क्या?"

वो औरत अभि को इस तरह से चूड़ियों को देखते , देख बोल पड़ी। अभि उस औरत की बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा कर बोला --

अभि --"चाहिए तो था आंटी, पर मुझे लगता है की अभि वो समय नहीं आया है। जब समय आएगा , वादा करता हु , आप के इधर से ही ले जाऊंगा ये चूड़ियां।"

"ठीक है बेटा।"

वो औरत जवाब देते हुए , अपनी टोकरी उठाती है, अभि ने उसकी मदद की फिर वो औरत वहा से चली जाति है।

अभि काफी खुश हो जाता है, अब ये खुशी काम पाने की थी या किसी और चीज की , वो बताना थोड़ा मुश्किल था। वो जल्द ही घर पहुंच गया। वो गाना गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ और फिर अपने कमरे में चला गया। रेखा ने अभि को इस तरह , आज पहेली बार डेकिल रही थी, इस तरह से गुनगुनाते हुए उछल कर अपने रूम में जाते हुए। अभि को खुश देख, रेखा को भी काफी खुशी हुई, और वो भी मंद मंद मुस्कुराते हुए किचन की तरफ बढ़ चली।

अभि अपने कमरे में अपने कपड़े बदल रहा था। और वो अभी भी अपने होठों से गीत गुनगुना रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो अभि किसी के प्रेम में पड़ गया हो। यूं गुनगुनाते हुए मंद मंद मुस्कुराना , तो अक्सर वो ही लोग करते है , जिन्हे प्रेम के जाल ने कैद कर लिया हो। अभि अपने कपड़े बदल कर , बेड पर लेट जाता है। और ऊपर चाट की तरफ चल रहे पंखे को देखते हुए कुछ बोल पड़ा...

अभि --"जन्मदिन मुबारक हो मेरी रानी, घबराना मत, बहुत जल्दी आऊंगा, मेरा इंतजार करना। पता है नाराज़ होगी तुम, यूं बिना बताए, बिना तुमसे मिले जो चला आया। पर आकर तुम्हे अपनी सारी दास्तान सुनाऊंगा। बस थोड़े दिन और, फिर हम साथ होंगे..."

खुद से ही आशिकों की तरह बाते करते हुए , अभी ना जाने कहा खो सा गया...

_______&&&__________

एक तरफ जहां अभय हवेली के ऐसे आराम छोड़कर, दर दर की तोखरे खा रहा होगा। वही दूसरी तरफ , अब हवेली का एक ही राजकुमार था, वो था अमन जिसे काफी प्यार और दुलार मिल रहा था। और यही प्यार और दुलार के चलते वो एकदम बिगड़ गया था। गांव वालो से प्यार से तो कभी वो बात हो नही करता था, अपने ठाकुर होने का घमंड दिखाने में वो हमेशा आगे रहेता था। अमन भी 10 वी में पढ़ता था। स्कूल भी खुद की थी, इसलिए हमेशा रुवाब में रहता था। स्कूल के चपरासी से लेकर अध्यापक तक किसी का भी इज्जत नहीं करता था। आस पास के गांव से पड़ने आने वाले कुछ ठाकुरों के घर के बच्चो के साथ, वो अपनी दोस्ती बना कर रखा था, और गांव के आम लड़के , जो पढ़ने आते , उन पर वो लोग अपना शिकंजा कशते थे।

उस दिन भी अमन स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहा था। दो गोल बनी थीं। एक ठाकुरों की, और दूसरी गांव के आम लडको की। स्कूल का ग्राउंड खचखच दर्शको से भरा था। गांव के जवान , बुजुर्ग, महिला, और छोटे - छोटे बच्चे सब क्रिकेट का आनंद ले रहे थे।

अगर आप ये सोच रहे है की , ये स्कूल के तरफ से मैच हो रहा था, तो आप गलत सोच रहे हैं। दरअसल सिलसिला तब से शुरू हुआ था , जब ठाकुर परम सिंह अपनी जवानी के दिन में क्रिकेट खेलते थे। वो हर साल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच क्रिकेट का मैच करवाते थे , और जितने वालो को अच्छा खासा इनाम अर्जित किया जाता था। ठाकुर परम सिंह जाति - पाती में कभी भेदभाव नहीं देखते थे। और अगर कभी गांव वाले मैच जीतते थे तो दिल खोल कर दान करते थे। क्रिकेट का मैच भी उनके दान करने का एक अलग नजरिया था।

पूरा ग्राउंड शोर - शराबे में मस्त था। वही गांव के ठाकुरों के बैठने के लिए काफी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी। जहां, ठाकुर रमन सिंह, सन्ध्या सिंह, मालती सिंह, ललिता सिंह और उसकी बेटी खूबसूरत बेटी बैठी थीं। पास में ही गांव के सरपंच और उनका परिवार भी बैठा था।

सरपंच के परिवार में उसकी पत्नी , उर्मिला चौधरी,और बेटी पूनम चौधरी बैठी थी। पूनम और रमन की बेटी दोनों ही खूबसूरत थी। पर ये दोनो को एक लड़की टक्कर दे रही थी। और उस लड़की से इन दोनो की बहुत खुन्नस थी। वो लड़की ना ही किसी ठाकुरों के घराने से थी नही किसी चौधरी या उच्च जाति से। वो तो उसी गांव के एक मामूली किसान मंगलू की बेटी थीं। जो बचपन में अपने हीरो अभि के साथ खूब खेलती थीं।

पर आज वो 15 साल की हो गई थी। और उसी ग्राउंड में गांव की औरतों के बीच बैठी क्रिकेट के इस खेल का लुफ्त उठाने आई थीं। गहरे हरे रंग की सूट सलवार में वो किसी परी की तरह लग रही थी। उसके गुलाबी होठ किसी होठ लाली की मुस्ताद नही थी, वो अपने आप में ही प्राकृतिक लालिमा लिए चमक रही थी। उसके सुराही दार लंबी गोरी गर्दन तो उसके नीचे सुसोभित प्राकृतिक ठोस और मांसल खूबसूरत वक्ष स्थल जो लोगो और उसके कपड़े का आकर्षक केंद्र बनती थीं। परी कहो या कयामत, पर सच तो ये था की वो एक मूर्त थी मोहिनी और कामुकता की। 15 साल की उम्र में ही उसके शरीर के अंगो का विकास इस तरह से हुआ था की , लोगो का उसके प्रति देखने का नजरिया ही बदल गया था।

और ये चिंता मंगलू उसके बाप को कुछ ज्यादा ही हो रही थी। स्कूल में ठाकुरों के बच्चे अपनी किस्मत आजमाने में बाज नही आते थे, पर ठाकुर अमन सिंह से नजारे बचा कर। ठाकुर अमन सिंह उस लड़की के बहुत बड़े आशिक थे। इस लिए तो बचपन में उस लड़की को अभय के साथ खेलता देख इनकी गांड़ ताल के खेतो की मिट्टी की तरह काली हो जाया करती थी। और किसी न किसी बहाने से ये महाशय अभय को फंसा कर उसकी मां संध्या सिंह से पिटवा देते थे। और संध्या सिंह का भी अमन लाडला ही हुआ करता था तो वो बात भी आग में घी का काम कर जाता था।

पर कहते है ना, जिसके दिल मे जो बस गया फिर किसी और का आना पहाड़ को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह करने जैसा था। उसी तरह अभय उस परी के दिल में अपना एक खूबसूरत आशियाना बना चुका था। जो आज अभय के जाने के बाद भी , ये महाशय उस लड़की के दिल में अपना आशियाना तो छोड़ो एक घास-फूस की कुटिया भी नही बना पाए। पर छोरा है बड़ा जिद्दी, अभि भी प्रयास में लगा है। चलो देखते है, अभय की गैर मौजूदगी में क्या ये महाशय कामयाब होते है ? या फिर____? आप लोग ही बताइए अपने कॉमेंट ke माध्यम से।

कहना जारी रहेगी दोस्त, और वादा करता हु पूरी भी करूंगा। क्युकी इस तरह की कहानी लिखना मुझे खुद एक्साइट करता है। पर यारों थोड़ा सा बिजी शेड्यूल चल रहा है, बस कुछ दिनों के लिए ऑफिस में।

So please try to understand,kuchh dino tak update me problems hongi. But yep once everything is good will surely update as fast as you all guys demand.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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हेमंत जी, अच्छी कहानी है आपकी, लेकिन अपडेट आते रहने चाहिए।

हमने यहां कई अच्छी कहानियां को दम तोड़ते देखा है, वजह बस अपडेट्स होती है।

और साथ साथ इस भाग में बहुत सी गलतियां भी हैं।

कहानी अभी उस मोड़ पर नही आई दिखती है की कोई कॉमेंट करूं इस पर, पर मेरी वही बात की अभय के परिवार में उसके जिंदा रहने की उम्मीद बची रहने देने से कहानी बहुत खुल कर आती, वरना अभी तो अपने हीरो को खुद को उस खानदान का बताने के लिए ही जद्दोजहद करनी पड़ेगी, और उसकी रानी को लेकर भी ऐसा ही सीन बनेगा।
 

Froog

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शानदार अपडेट भाई
बस अपडेट समय पर देते रहना
 
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