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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Sanju@

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अपडेट 7

आज अभि का पहला दिन था उसके काम पर, जो काफी अच्छा गुजरा था। अब उसके साथ, पढ़ाई के साथ साथ काम भी था। वो मान ही मान काफी खुश था। जॉब मिलने पर उसे इस तरह का अहसास हो रहा थानों उसे उसकी दुनिया मिल गई हो। वो हंसी खुशी अपने स्कूल बैग को पीछे टांगे , घर की तरफ चल पड़ा। अभि अब 10वी कक्षा का छात्र था, और 15 साल का हो गया था। इस उम्र में ही अच्छी खासी लंबाई का माली बन गया था, शायद अपने दादा परम सिंह की कद - काठी मिली थी उसको।

उसके चेहरे पर हमेशा एक अजीब सी चमक रहती थी, एक आकर्षक चेहरा था उसका, जो भी देखता था उसे अभी के ऊपर ऐतबार होने में समय नहीं लगता था। अभि आज महलों से निकल कर अपने पैरो पर खड़ा हो गया था। 15 साल की उम्र में पढ़ाई के साथ साथ काम भी करने लगा था। अब तो वो सपने देखना भी शुरू कर दिया था। ना जाने क्या सोचते हुए वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बाजार की गलियों में आगे बढ़ा चला जा रहा था की तभी एक आवाज ने उसके पैर को थमने पर मजबूर कर दिया, और वो रुक गया , और उस तरफ देखने लगा, जिस तरफ से उसे वो आवाज आई थी।

उसने जब उस तरफ देखा, तो एक औरत टोकरी में चूड़ियां भर कर बेंच रही थीं। अभि इस औरत के नजदीक गया और टोकरी में झांकने लगा। उसे us टोकरी रंग बिरंगी चिड़िया दिखी।

"क्या हुआ बेटा? चूड़ियां चाहिए क्या?"

वो औरत अभि को इस तरह से चूड़ियों को देखते , देख बोल पड़ी। अभि उस औरत की बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा कर बोला --

अभि --"चाहिए तो था आंटी, पर मुझे लगता है की अभि वो समय नहीं आया है। जब समय आएगा , वादा करता हु , आप के इधर से ही ले जाऊंगा ये चूड़ियां।"

"ठीक है बेटा।"

वो औरत जवाब देते हुए , अपनी टोकरी उठाती है, अभि ने उसकी मदद की फिर वो औरत वहा से चली जाति है।

अभि काफी खुश हो जाता है, अब ये खुशी काम पाने की थी या किसी और चीज की , वो बताना थोड़ा मुश्किल था। वो जल्द ही घर पहुंच गया। वो गाना गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ और फिर अपने कमरे में चला गया। रेखा ने अभि को इस तरह , आज पहेली बार डेकिल रही थी, इस तरह से गुनगुनाते हुए उछल कर अपने रूम में जाते हुए। अभि को खुश देख, रेखा को भी काफी खुशी हुई, और वो भी मंद मंद मुस्कुराते हुए किचन की तरफ बढ़ चली।

अभि अपने कमरे में अपने कपड़े बदल रहा था। और वो अभी भी अपने होठों से गीत गुनगुना रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो अभि किसी के प्रेम में पड़ गया हो। यूं गुनगुनाते हुए मंद मंद मुस्कुराना , तो अक्सर वो ही लोग करते है , जिन्हे प्रेम के जाल ने कैद कर लिया हो। अभि अपने कपड़े बदल कर , बेड पर लेट जाता है। और ऊपर चाट की तरफ चल रहे पंखे को देखते हुए कुछ बोल पड़ा...

अभि --"जन्मदिन मुबारक हो मेरी रानी, घबराना मत, बहुत जल्दी आऊंगा, मेरा इंतजार करना। पता है नाराज़ होगी तुम, यूं बिना बताए, बिना तुमसे मिले जो चला आया। पर आकर तुम्हे अपनी सारी दास्तान सुनाऊंगा। बस थोड़े दिन और, फिर हम साथ होंगे..."

खुद से ही आशिकों की तरह बाते करते हुए , अभी ना जाने कहा खो सा गया...

_______&&&__________

एक तरफ जहां अभय हवेली के ऐसे आराम छोड़कर, दर दर की तोखरे खा रहा होगा। वही दूसरी तरफ , अब हवेली का एक ही राजकुमार था, वो था अमन जिसे काफी प्यार और दुलार मिल रहा था। और यही प्यार और दुलार के चलते वो एकदम बिगड़ गया था। गांव वालो से प्यार से तो कभी वो बात हो नही करता था, अपने ठाकुर होने का घमंड दिखाने में वो हमेशा आगे रहेता था। अमन भी 10 वी में पढ़ता था। स्कूल भी खुद की थी, इसलिए हमेशा रुवाब में रहता था। स्कूल के चपरासी से लेकर अध्यापक तक किसी का भी इज्जत नहीं करता था। आस पास के गांव से पड़ने आने वाले कुछ ठाकुरों के घर के बच्चो के साथ, वो अपनी दोस्ती बना कर रखा था, और गांव के आम लड़के , जो पढ़ने आते , उन पर वो लोग अपना शिकंजा कशते थे।

उस दिन भी अमन स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहा था। दो गोल बनी थीं। एक ठाकुरों की, और दूसरी गांव के आम लडको की। स्कूल का ग्राउंड खचखच दर्शको से भरा था। गांव के जवान , बुजुर्ग, महिला, और छोटे - छोटे बच्चे सब क्रिकेट का आनंद ले रहे थे।

अगर आप ये सोच रहे है की , ये स्कूल के तरफ से मैच हो रहा था, तो आप गलत सोच रहे हैं। दरअसल सिलसिला तब से शुरू हुआ था , जब ठाकुर परम सिंह अपनी जवानी के दिन में क्रिकेट खेलते थे। वो हर साल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच क्रिकेट का मैच करवाते थे , और जितने वालो को अच्छा खासा इनाम अर्जित किया जाता था। ठाकुर परम सिंह जाति - पाती में कभी भेदभाव नहीं देखते थे। और अगर कभी गांव वाले मैच जीतते थे तो दिल खोल कर दान करते थे। क्रिकेट का मैच भी उनके दान करने का एक अलग नजरिया था।

पूरा ग्राउंड शोर - शराबे में मस्त था। वही गांव के ठाकुरों के बैठने के लिए काफी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी। जहां, ठाकुर रमन सिंह, सन्ध्या सिंह, मालती सिंह, ललिता सिंह और उसकी बेटी खूबसूरत बेटी बैठी थीं। पास में ही गांव के सरपंच और उनका परिवार भी बैठा था।

सरपंच के परिवार में उसकी पत्नी , उर्मिला चौधरी,और बेटी पूनम चौधरी बैठी थी। पूनम और रमन की बेटी दोनों ही खूबसूरत थी। पर ये दोनो को एक लड़की टक्कर दे रही थी। और उस लड़की से इन दोनो की बहुत खुन्नस थी। वो लड़की ना ही किसी ठाकुरों के घराने से थी नही किसी चौधरी या उच्च जाति से। वो तो उसी गांव के एक मामूली किसान मंगलू की बेटी थीं। जो बचपन में अपने हीरो अभि के साथ खूब खेलती थीं।

पर आज वो 15 साल की हो गई थी। और उसी ग्राउंड में गांव की औरतों के बीच बैठी क्रिकेट के इस खेल का लुफ्त उठाने आई थीं। गहरे हरे रंग की सूट सलवार में वो किसी परी की तरह लग रही थी। उसके गुलाबी होठ किसी होठ लाली की मुस्ताद नही थी, वो अपने आप में ही प्राकृतिक लालिमा लिए चमक रही थी। उसके सुराही दार लंबी गोरी गर्दन तो उसके नीचे सुसोभित प्राकृतिक ठोस और मांसल खूबसूरत वक्ष स्थल जो लोगो और उसके कपड़े का आकर्षक केंद्र बनती थीं। परी कहो या कयामत, पर सच तो ये था की वो एक मूर्त थी मोहिनी और कामुकता की। 15 साल की उम्र में ही उसके शरीर के अंगो का विकास इस तरह से हुआ था की , लोगो का उसके प्रति देखने का नजरिया ही बदल गया था।

और ये चिंता मंगलू उसके बाप को कुछ ज्यादा ही हो रही थी। स्कूल में ठाकुरों के बच्चे अपनी किस्मत आजमाने में बाज नही आते थे, पर ठाकुर अमन सिंह से नजारे बचा कर। ठाकुर अमन सिंह उस लड़की के बहुत बड़े आशिक थे। इस लिए तो बचपन में उस लड़की को अभय के साथ खेलता देख इनकी गांड़ ताल के खेतो की मिट्टी की तरह काली हो जाया करती थी। और किसी न किसी बहाने से ये महाशय अभय को फंसा कर उसकी मां संध्या सिंह से पिटवा देते थे। और संध्या सिंह का भी अमन लाडला ही हुआ करता था तो वो बात भी आग में घी का काम कर जाता था।

पर कहते है ना, जिसके दिल मे जो बस गया फिर किसी और का आना पहाड़ को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह करने जैसा था। उसी तरह अभय उस परी के दिल में अपना एक खूबसूरत आशियाना बना चुका था। जो आज अभय के जाने के बाद भी , ये महाशय उस लड़की के दिल में अपना आशियाना तो छोड़ो एक घास-फूस की कुटिया भी नही बना पाए। पर छोरा है बड़ा जिद्दी, अभि भी प्रयास में लगा है। चलो देखते है, अभय की गैर मौजूदगी में क्या ये महाशय कामयाब होते है ? या फिर____? आप लोग ही बताइए अपने कॉमेंट ke माध्यम से।

कहना जारी रहेगी दोस्त, और वादा करता हु पूरी भी करूंगा। क्युकी इस तरह की कहानी लिखना मुझे खुद एक्साइट करता है। पर यारों थोड़ा सा बिजी शेड्यूल चल रहा है, बस कुछ दिनों के लिए ऑफिस में।

So please try to understand,kuchh dino tak update me problems hongi. But yep once everything is good will surely update as fast as you all guys demand.
शानदार अपडेट
अभि आज बहुत खुश था क्योंकि वह आज काम पर गया था और अपनी मेहनत से आगे बढ़ना चाहता है
चूड़ियों को देखकर उसे अपने प्यार की याद आ गई
 

Alex Xender

Member
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अपडेट 7

आज अभि का पहला दिन था उसके काम पर, जो काफी अच्छा गुजरा था। अब उसके साथ, पढ़ाई के साथ साथ काम भी था। वो मान ही मान काफी खुश था। जॉब मिलने पर उसे इस तरह का अहसास हो रहा थानों उसे उसकी दुनिया मिल गई हो। वो हंसी खुशी अपने स्कूल बैग को पीछे टांगे , घर की तरफ चल पड़ा। अभि अब 10वी कक्षा का छात्र था, और 15 साल का हो गया था। इस उम्र में ही अच्छी खासी लंबाई का माली बन गया था, शायद अपने दादा परम सिंह की कद - काठी मिली थी उसको।

उसके चेहरे पर हमेशा एक अजीब सी चमक रहती थी, एक आकर्षक चेहरा था उसका, जो भी देखता था उसे अभी के ऊपर ऐतबार होने में समय नहीं लगता था। अभि आज महलों से निकल कर अपने पैरो पर खड़ा हो गया था। 15 साल की उम्र में पढ़ाई के साथ साथ काम भी करने लगा था। अब तो वो सपने देखना भी शुरू कर दिया था। ना जाने क्या सोचते हुए वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बाजार की गलियों में आगे बढ़ा चला जा रहा था की तभी एक आवाज ने उसके पैर को थमने पर मजबूर कर दिया, और वो रुक गया , और उस तरफ देखने लगा, जिस तरफ से उसे वो आवाज आई थी।

उसने जब उस तरफ देखा, तो एक औरत टोकरी में चूड़ियां भर कर बेंच रही थीं। अभि इस औरत के नजदीक गया और टोकरी में झांकने लगा। उसे us टोकरी रंग बिरंगी चिड़िया दिखी।

"क्या हुआ बेटा? चूड़ियां चाहिए क्या?"

वो औरत अभि को इस तरह से चूड़ियों को देखते , देख बोल पड़ी। अभि उस औरत की बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा कर बोला --

अभि --"चाहिए तो था आंटी, पर मुझे लगता है की अभि वो समय नहीं आया है। जब समय आएगा , वादा करता हु , आप के इधर से ही ले जाऊंगा ये चूड़ियां।"

"ठीक है बेटा।"

वो औरत जवाब देते हुए , अपनी टोकरी उठाती है, अभि ने उसकी मदद की फिर वो औरत वहा से चली जाति है।

अभि काफी खुश हो जाता है, अब ये खुशी काम पाने की थी या किसी और चीज की , वो बताना थोड़ा मुश्किल था। वो जल्द ही घर पहुंच गया। वो गाना गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ और फिर अपने कमरे में चला गया। रेखा ने अभि को इस तरह , आज पहेली बार डेकिल रही थी, इस तरह से गुनगुनाते हुए उछल कर अपने रूम में जाते हुए। अभि को खुश देख, रेखा को भी काफी खुशी हुई, और वो भी मंद मंद मुस्कुराते हुए किचन की तरफ बढ़ चली।

अभि अपने कमरे में अपने कपड़े बदल रहा था। और वो अभी भी अपने होठों से गीत गुनगुना रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो अभि किसी के प्रेम में पड़ गया हो। यूं गुनगुनाते हुए मंद मंद मुस्कुराना , तो अक्सर वो ही लोग करते है , जिन्हे प्रेम के जाल ने कैद कर लिया हो। अभि अपने कपड़े बदल कर , बेड पर लेट जाता है। और ऊपर चाट की तरफ चल रहे पंखे को देखते हुए कुछ बोल पड़ा...

अभि --"जन्मदिन मुबारक हो मेरी रानी, घबराना मत, बहुत जल्दी आऊंगा, मेरा इंतजार करना। पता है नाराज़ होगी तुम, यूं बिना बताए, बिना तुमसे मिले जो चला आया। पर आकर तुम्हे अपनी सारी दास्तान सुनाऊंगा। बस थोड़े दिन और, फिर हम साथ होंगे..."

खुद से ही आशिकों की तरह बाते करते हुए , अभी ना जाने कहा खो सा गया...

_______&&&__________

एक तरफ जहां अभय हवेली के ऐसे आराम छोड़कर, दर दर की तोखरे खा रहा होगा। वही दूसरी तरफ , अब हवेली का एक ही राजकुमार था, वो था अमन जिसे काफी प्यार और दुलार मिल रहा था। और यही प्यार और दुलार के चलते वो एकदम बिगड़ गया था। गांव वालो से प्यार से तो कभी वो बात हो नही करता था, अपने ठाकुर होने का घमंड दिखाने में वो हमेशा आगे रहेता था। अमन भी 10 वी में पढ़ता था। स्कूल भी खुद की थी, इसलिए हमेशा रुवाब में रहता था। स्कूल के चपरासी से लेकर अध्यापक तक किसी का भी इज्जत नहीं करता था। आस पास के गांव से पड़ने आने वाले कुछ ठाकुरों के घर के बच्चो के साथ, वो अपनी दोस्ती बना कर रखा था, और गांव के आम लड़के , जो पढ़ने आते , उन पर वो लोग अपना शिकंजा कशते थे।

उस दिन भी अमन स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहा था। दो गोल बनी थीं। एक ठाकुरों की, और दूसरी गांव के आम लडको की। स्कूल का ग्राउंड खचखच दर्शको से भरा था। गांव के जवान , बुजुर्ग, महिला, और छोटे - छोटे बच्चे सब क्रिकेट का आनंद ले रहे थे।

अगर आप ये सोच रहे है की , ये स्कूल के तरफ से मैच हो रहा था, तो आप गलत सोच रहे हैं। दरअसल सिलसिला तब से शुरू हुआ था , जब ठाकुर परम सिंह अपनी जवानी के दिन में क्रिकेट खेलते थे। वो हर साल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच क्रिकेट का मैच करवाते थे , और जितने वालो को अच्छा खासा इनाम अर्जित किया जाता था। ठाकुर परम सिंह जाति - पाती में कभी भेदभाव नहीं देखते थे। और अगर कभी गांव वाले मैच जीतते थे तो दिल खोल कर दान करते थे। क्रिकेट का मैच भी उनके दान करने का एक अलग नजरिया था।

पूरा ग्राउंड शोर - शराबे में मस्त था। वही गांव के ठाकुरों के बैठने के लिए काफी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी। जहां, ठाकुर रमन सिंह, सन्ध्या सिंह, मालती सिंह, ललिता सिंह और उसकी बेटी खूबसूरत बेटी बैठी थीं। पास में ही गांव के सरपंच और उनका परिवार भी बैठा था।

सरपंच के परिवार में उसकी पत्नी , उर्मिला चौधरी,और बेटी पूनम चौधरी बैठी थी। पूनम और रमन की बेटी दोनों ही खूबसूरत थी। पर ये दोनो को एक लड़की टक्कर दे रही थी। और उस लड़की से इन दोनो की बहुत खुन्नस थी। वो लड़की ना ही किसी ठाकुरों के घराने से थी नही किसी चौधरी या उच्च जाति से। वो तो उसी गांव के एक मामूली किसान मंगलू की बेटी थीं। जो बचपन में अपने हीरो अभि के साथ खूब खेलती थीं।

पर आज वो 15 साल की हो गई थी। और उसी ग्राउंड में गांव की औरतों के बीच बैठी क्रिकेट के इस खेल का लुफ्त उठाने आई थीं। गहरे हरे रंग की सूट सलवार में वो किसी परी की तरह लग रही थी। उसके गुलाबी होठ किसी होठ लाली की मुस्ताद नही थी, वो अपने आप में ही प्राकृतिक लालिमा लिए चमक रही थी। उसके सुराही दार लंबी गोरी गर्दन तो उसके नीचे सुसोभित प्राकृतिक ठोस और मांसल खूबसूरत वक्ष स्थल जो लोगो और उसके कपड़े का आकर्षक केंद्र बनती थीं। परी कहो या कयामत, पर सच तो ये था की वो एक मूर्त थी मोहिनी और कामुकता की। 15 साल की उम्र में ही उसके शरीर के अंगो का विकास इस तरह से हुआ था की , लोगो का उसके प्रति देखने का नजरिया ही बदल गया था।

और ये चिंता मंगलू उसके बाप को कुछ ज्यादा ही हो रही थी। स्कूल में ठाकुरों के बच्चे अपनी किस्मत आजमाने में बाज नही आते थे, पर ठाकुर अमन सिंह से नजारे बचा कर। ठाकुर अमन सिंह उस लड़की के बहुत बड़े आशिक थे। इस लिए तो बचपन में उस लड़की को अभय के साथ खेलता देख इनकी गांड़ ताल के खेतो की मिट्टी की तरह काली हो जाया करती थी। और किसी न किसी बहाने से ये महाशय अभय को फंसा कर उसकी मां संध्या सिंह से पिटवा देते थे। और संध्या सिंह का भी अमन लाडला ही हुआ करता था तो वो बात भी आग में घी का काम कर जाता था।

पर कहते है ना, जिसके दिल मे जो बस गया फिर किसी और का आना पहाड़ को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह करने जैसा था। उसी तरह अभय उस परी के दिल में अपना एक खूबसूरत आशियाना बना चुका था। जो आज अभय के जाने के बाद भी , ये महाशय उस लड़की के दिल में अपना आशियाना तो छोड़ो एक घास-फूस की कुटिया भी नही बना पाए। पर छोरा है बड़ा जिद्दी, अभि भी प्रयास में लगा है। चलो देखते है, अभय की गैर मौजूदगी में क्या ये महाशय कामयाब होते है ? या फिर____? आप लोग ही बताइए अपने कॉमेंट ke माध्यम से।

कहना जारी रहेगी दोस्त, और वादा करता हु पूरी भी करूंगा। क्युकी इस तरह की कहानी लिखना मुझे खुद एक्साइट करता है। पर यारों थोड़ा सा बिजी शेड्यूल चल रहा है, बस कुछ दिनों के लिए ऑफिस में।

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Hemantstar111

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अपडेट 8

ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।

मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।

"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"

अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।

मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।

परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।

कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।


_______________________

शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...

रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"

रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...

अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"

रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"

अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"

रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"

रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"

रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...

रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"


अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"

ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....

रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"

ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।

रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"

अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।

रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"

कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।

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इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।

जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।

और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।

अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।


दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
 

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अलग हूं, पर गलत नहीं..!!👈🏻
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ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।

मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।

"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"

अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।

मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।

परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।

कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।


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शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...

रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"

रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...

अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"

रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"

अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"

रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"

रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"

रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...

रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"


अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"

ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....

रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"

ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।

रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"

अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।

रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"

कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।

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इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।

जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।

और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।

अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।


दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
बहुत ही सुंदर लाजवाब और मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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