sharif banda
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भाई अगर ज्यादा परेशानी ना हो तो इंडेक्स बना दो। कहानी पढ़ने में आसानी हो जायेगी। वैसे 2 अपडेट पढ़ने के बाद कहानी अच्छी लग रही है।
घमंड तो रावण का भी नही टीका तो हवेली के नमूने क्या चीज है। ये संध्या, अमन और रमन आज भले ही अपने को तीस मार खा समझ रहे है मगर जिस दिन अभय आएगा उस दिन सब उसकी चमक के आगे अंधे हो जायेंगे। वैसे भी कोयले को हीरा बनने और उस हीरे को तराशने में समय तो लगता ही है और जब ये हीरा तैयार होगा तब हर कोई उसका कद्रदान होगा। शानदार अपडेट, बस अपडेट थोड़ा जल्दी जल्दी आ जाए तो कहानी की रोचकता बनी रहती है।अपडेट 8
ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।
खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।
अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।
अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।
"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"
पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...
"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"
शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"
गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...
अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"
अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...
अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"
अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?
लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।
मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।
पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।
परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।
मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...
संध्या --"शाबाश...
अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।
_______________________
शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...
रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"
रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...
अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"
रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"
अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"
रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"
रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"
रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...
रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"
अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"
ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....
रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"
ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।
रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"
अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।
रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"
कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
______&&_________&&_____
इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।
जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।
संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।
और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।
अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।
दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
Bhai vese aapne koi pahli baar slow aur chhota to diya nahi he baki kab tak thik ho jayega wo bhi dekh lenge. Nice update bhai par ab abhay ki padhai complete karwa kar kahani ko mukhyadhara me le kar aao kab tak yahi bhatkaoge.अपडेट 8
ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।
खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।
अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।
अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।
"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"
पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...
"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"
शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"
गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...
अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"
अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...
अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"
अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?
लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।
मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।
पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।
परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।
मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...
संध्या --"शाबाश...
अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।
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शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...
रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"
रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...
अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"
रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"
अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"
रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"
रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"
रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...
रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"
अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"
ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....
रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"
ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।
रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"
अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।
रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"
कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
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इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।
जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।
संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।
और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।
अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।
दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
Shi Jaa rhe ho bro thoda fast he sahi hero ki jawaan jldi krna he tha tbi to story ka main part suru hogaअपडेट 8
ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।
खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।
अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।
अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।
"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"
पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...
"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"
शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"
गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...
अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"
अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...
अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"
अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?
लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।
मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।
पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।
परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।
मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...
संध्या --"शाबाश...
अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।
_______________________
शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...
रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"
रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...
अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"
रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"
अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"
रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"
रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"
रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...
रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"
अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"
ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....
रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"
ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।
रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"
अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।
रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"
कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
______&&_________&&_____
इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।
जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।
संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।
और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।
अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।
दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
कहानी अच्छी है पर अपडेट बहुत लेट आते है।अपडेट 8
ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।
खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।
अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।
अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।
"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"
पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...
"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"
शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"
गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...
अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"
अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...
अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"
अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?
लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।
मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।
पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।
परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।
मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...
संध्या --"शाबाश...
अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।
_______________________
शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...
रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"
रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...
अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"
रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"
अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"
रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"
रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"
रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...
रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"
अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"
ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....
रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"
ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।
रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"
अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।
रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"
कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
______&&_________&&_____
इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।
जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।
संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।
और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।
अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।
दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
Bahut achaअपडेट 8
ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।
खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।
अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।
अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।
"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"
पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...
"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"
शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"
गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...
अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"
अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...
अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"
अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?
लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।
मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।
पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।
परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।
मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...
संध्या --"शाबाश...
अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।
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शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...
रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"
रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...
अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"
रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"
अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"
रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"
रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"
रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...
रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"
अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"
ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....
रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"
ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।
रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"
अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।
रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"
कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
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इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।
जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।
संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।
और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।
अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।
दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....