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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Rocky9i

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तेज हवाऐं चल रही थी। शायद तूफ़ान था क्यूंकि ऐसा लग रहा था मानो अभी इन हवाओं के झोके बड़े-बड़े पेंड़ों को उख़ाड़ फेकेगा। बरसात भी इतनी तेजी से हो रही थी की मानो पूरा संसार ना डूबा दे। बादल की गरज ऐसी थी की उसे सुनकर लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।

जहां एक तरफ इस तूफानी और डरावनी रात में लोग अपने घरों में बैठे थे। वहीं दूसरी तरफ एक बच्चा, इस तूफान से लड़ते हुए आगे भागते हुए चले जा रहा था।

बदन पर एक सफेद रंग का शर्ट और एक पैंट पहने हुए ये लड़का इस गति से आगे बढ़ रहा था, मानो उसे इस तूफान से कोई डर ही नही। तेज़ चल रही हवाऐं उसे रोकने की बेइंतहा कोशिश करती। वो लड़का बार-बार ज़मीन पर गीरता लेकिन फीर खड़े हो कर तूफान से लड़ते हुए आगे की तरफ बढ़ चलता।

ऐसे ही तूफान से लड़ कर वो एक बड़े बरगद के पेंड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। वो पूरी तरह से भीग चूका था। तेज तूफान की वज़ह से वो ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। शायद बहुत थक गया था। वो एक दफ़ा पीछे मुड़ कर गाँव की तरफ देखा। उसकी आंखे नम हो गयी, शायद आंशू भी छलके होंगे मगर बारीश की बूंदे उसके आशूं के बूंदो में मील रहे थे। वो लड़का कुछ देर तक काली अंधेरी रात में गाँव की तरफ देखता रहा, उसे दूर एक कमरे में हल्का उज़ाल दीख रहा था। उसे ही देखते हुए वो बोला...

"जा रहा हूं माँ!!"

और ये बोलकर वो लड़का अपने हांथ से आंशू पोछते हुए वापस पलटते हुए गाँव के आखिरी छोर के सड़क पर अपने कदम बढ़ा दीये....


तूफान शांत होने लगी थी। बरसात भी अब रीमझीम सी हो गयी थी, पर वो लड़का अभी भी उसी गति से उस कच्ची सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उस लड़के की कान में तेज आवाज़ पड़ी....

पलट कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिंया गयी। क्यूंकि एक तेज प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ी थी। उसने अपना हांथ उठाते हुए अपने चेहरे के सामने कीया और उस प्रकाश को अपनी आँखों पर पड़ने से रोका। वो आवाज़ सुनकर ये समझ गया था की ये ट्रेन की हॉर्न की आवाज़ है। कुछ देर बाद जब ट्रेन का इंजन उसे क्रॉस करते हुए आगे नीकला, तो उस लड़के ने अपना हांथ अपनी आँखों के सामने से हटाया। उसके सामने ट्रेन के डीब्बे थे, शायद ट्रेन सीग्नल ना होने की वजह से रुक गयी थी।

उसने देखा ट्रेन के डीब्बे के अंदर लाइट जल रही थीं॥ वो कुछ सोंचते हुए उस ट्रेन को देखते रहा। तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा। शायद अब ट्रेन सिग्नल दे रही थी की, ट्रेन चलने वाली है। ट्रेन जैसे ही अपने पहीये को चलायी, वो लड़का भी अपना पैर चलाया, और भागते हुए ट्रेन पर चढ़ जाता है। और चलती ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर एक बार फीर से वो उसी गाँव की तरफ देखने लगता है। और एक बार फीर उसकी आँखों के सामने वही कमरा दीखता है जीसमे से हल्का उज़ाला था। और देखते ही देखते ट्रेन ने रफ्तार बढ़ाई और हल्के उज़ाले वाला कमरा भी उसकी आँखों से ओझल हो गया.....


--------------

कमरे में हल्की रौशनी थी, एक लैम्प जल रहा था। बीस्तर पर दो ज़ीस्म एक दुसरे में समाने की कोशिश में जुटे थे। मादरजात नग्न अवस्था में दोनो उस बीस्तर पर गुत्थम-गुत्थी हुए काम क्रीडा में लीन थे। कमरे में फैली उज़ाले की हल्की रौशनी में भी उस औरत का बदन चांद की तरह चमक रहा था। उसके उपर लेटा वो सख्श उस औरत के ठोस उरोज़ो को अपने हांथों में पकड़ कर बारी बारी से चुसते हुए अपनी कमर के झटके दे रहा था।

उस औरत की सीसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी। वो औरत अब अपनी गोरी टांगे उठाते हुए उस सख्श के कमर के इर्द-गीर्द रखते हुए शिकंजे में कस लेती है। और एक जोर की चींख के साथ वो उस सख्श को काफी तेजी से अपनी आगोश में जकड़ लेती है और वो सख्श भी चींघाड़ते हुए अपनी कमर उठा कर जोर-जोर के तीन से चार झटके मारता है। और हांफते हुए उस औरत के उपर ही नीढ़ाल हो कर गीर जाता है।

"हो गया तेरा, अब जा अपने कमरे में। मैं नही चाहती की कीसी को कुछ पता चले।"

उस औरत की बात सुनकर वो सख्श मुस्कुराते हुए उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए, उसके उपर से उठ जाता है और अपने कपड़े पहन कर जैसे ही जाने को होता है। वो बला की खुबसूरत औरत एक बार फीर बोली--

"जरा छुप-छुपा कर जाना, और हां अभय के कमरे की तरफ से मत जाना।"

उस औरत की बात सुनकर, वो सख्श एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला--

"वो अभी बच्चा है भाभी, देख भी लीया तो क्या करेगा? और वैसे भी वो तुमसे इतना डरता है, की कीसी से कुछ बोलने की हीम्मत भी नही करेगा।"

उस सख्श की आवाज़ सुनकर, वो औरत बेड पर उठ कर बैठ जाती है और अपनी अंगीयां (ब्रा) को पहनते हुए बोली...

"ना जाने क्यूँ...कुछ अज़ीब सी बेचैनी हो रही है। मैने अभय के सांथ बहुत गलत कीया।"

"ये सब छोड़ो भाभी, अब तूम सो जाओ।"

कहते हुए वो सख्श उस कमरे से बाहर नीकल जाता है। वो औरत अभी भी बीस्तर पर ब्रा पहने बैठी थी। और कुछ सोंच रही थी, तभी उसके कानो में ट्रेन की हॉर्न सुनायी पड़ती है। वो औरत भागते हुए कमरे की उस खीड़की पर पहुंच कर बाहर झाकती है। उसे दूर गाँव की आखिर छोर पर ट्रेन के डीब्बे में जल रही लाईटें दीखी, जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे चली। मानो उस औरत की धड़कने भी धिरे-धिरे बढ़ने लगी....
Bhai suruvaat toh bhot suspence se bhari hai. Nice update👍👍👍and congratulations🎉🎉🎉 for a nice story.
 
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A.A.G.

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हवेली को आज सुबह सुबह ही सजाया जा रहा था। संध्या,मालती,ललिता,अमन और निधि डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए नाश्ता कर रह थे। मालती बार बार संध्या को ही देखे जा रही थी। और ये बात संध्या को भली भाती पता थी।

संध्या --"ऐसे क्यूं देख रही है तू मालती? अब बोल भी दे, क्या बोलना चाहती है?"

संध्या की बात सुनकर, मालती मुस्कुराते हुऐ बोली...

मालती --"मैं... मैं ये बोलना चाहती थी दीदी, की अभय का जन्मदिन मनाने की क्या जरूरत है? इस तरह से तो हमे उसकी याद आती ही रहेगी। और पता नही , हम उसका जन्म दिन माना रहे है या उसके छोड़ के जाने वाला दिन।"

मालती की बात सुनकर संध्या कुछ पल के लिए शांत रही, फिर बोली...

संध्या --"अब मुझसे ये हक़ ना छीनना मालती, की उसके जाने के बाद मैं उसको याद नहीं कर सकती, या उसका जन्म दीन नही मना सकती। वो कहीं गया थोड़ी है, वो है मेरे दिल में, और हमेशा रहेगा।"

ये सुनकर मालती कुछ बोलती तो नही, पर मुस्कुरा जरूर पढ़ती है। मालती की मुस्कुराहट संध्या के दिल में किसी कांटे की तरह चुभ सी जाती है। वो मालती के मुंह नही लगना चाहती थीं, क्यूंकि संध्या को पता था, की अगर उसने मालती के मुस्कुराने का कारण पूछा तो जरूर मालती कुछ ऐसा बोलेगी की संध्या को खुद की नजरों में गिरना पड़ेगा। इस लिए संध्या अपनी नजरों में चोर बनी बस चुप रही।

अमन तो बस भुक्कड़ की तरह ठूंसे जा रहा था। पराठे पे पराठा खाए पड़ा था। ये देखकर मालती अमन को बोली...

मलती --"इंसानों के जैसा खा ना, शैतानी की तरह क्यूं खा रहा है? पेट है या कुंवा? भर ही नही रहा है।"

मालती की बात सुनकर, संध्या मलती को घूरते हुए देखने लगी। देख कर ही लग रहा था की मलती की बात संध्या को बुरी लगी। पर संध्या कुछ बोली नहीं, और गुस्से में वहां से चली गई। संध्या को जाते देख मालती धीरे से कुछ बुदबुदाई, और वो भी उठ कर अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर के बाद ललिता, संध्या के कमरे में जाति है तो पाती है की संध्या अपने बेड पर बैठी रो रही थी, उसके हाथो में अभय की तस्वीर थी। जिसे वो अपने सीने से लगा कर रोए जा रही थी।

ललिता, संध्या के kareeb pahunchate हुऐ उसके बगल में बैठ जाती है, और संध्या को प्यार से दिलासा देने लगती है।

संध्या रुवांसी आवाज़ में बोली...

संध्या --"मेरी तो क़िस्मत ही खराब है ललिता। क्या करूं कुछ समझ में ही नही आ रहा है। ये मलती हमेशा मुझे नीचा दिखाती रहती है, मैं भी कितनी पागल हूं, वो मुझे नीचा क्यूं दिखाएगी, वो तो मुझे सिर्फ आइना दिखाती है, मैं ही उस आईने में खुद को देख कर अपनी नजरों में गीर जाती हूं। भला कौन सी मां ऐसा करती है? जब तक वो मेरे पास था, हमेशा बेवजह मरती रही उसे, दुत्कर्त रही। और आज जब वो छोड़ कर चला गया तो मेरा सारा प्यार सबको दिखावा लग रहा है। लगना भी चाहिए, मैं इसी लायक हूं। जी तो चाहता है की मैं भी कही जा कर मर जाऊं।"

कहते हुए संध्या ललिता के कंधे पर सर रख कर रोने लगती है। ललिता भी संध्या को किसी तरह से शांत करती है।

ठाकुर रमन सिंह कहीं से मुनीम के साथ जब हवेली लौटता है, तो हवेली को दुल्हन की तरह सज़ा देख कर मुनीम की तरफ़ देख कर बोला...

रमन --"मुनीम जी, वैसे भाभी अपने बेटे के जन्मदिन की खुशी में हवेली सजवाई है या मरण दिन के खुशी में?"

ये सुनकर मुनीम हंसने लगता है और साथ ही साथ ठाकुर रमन सिंह भी, फिर दोनो हवेली के अंदर चले जाते है। ठाकुर रमन सिंह और मुनीम को हंसते हुए देख कर वहा काम कर रहे गांव के दो लोग आपस में बात करते हुए बोले...

"देख रहा है, बल्लू। कैसे ये दोनो अभय बाबा कन्माजक बना रहे है?"

उसी वक्त संध्या वहां से गुज़र रही थी, और उस गांव के आदमी के मुंह से अपने बेटे के बारे में सुनकर संध्या के पैर वहीं थम से जाते है। और वो हवेली के बने मोटे पिलर की आड़ में छुप कर उनकी बातें सुनने लगती हैं.....

बल्लू --"अरे छैलू अब हम क्या बोल सकते है? जिसका लड़का मरा उसी को फर्क नही पड़ा तो हमारे फर्क पड़ने या ना पड़ने से क्या पड़ता है?"

छैलू --"तो तेरे कहने का मतलब, ठाकुराइन को अभय बाबा के जाने का दुःख नहीं है ?"

बल्लू --"अरे काहे का दुःख, मैं ना तुझे एक राज़ की बात बताता हु, पर हां ध्यान रहे किसी को इस राज़ की बात को कानों कान ख़बर भी नही होनी चाहिए!"

बल्लू की बात सुनकर संध्या के कान खड़े हो गए, और वो पिलर से एकदम से चिपक जाती है और अपने कान तेज़ करके बल्लू की बातों को ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगती है।

छैलू --"अरे रुक बल्लू, इतनी राज़ की बात है तो बाद में बताना, क्यूंकि सुना है दीवारों के भी कान होते है, समझा।"

और कहते हुए छैलू, बल्लू को पिलर की तरफ़ इशारा करने लगा, बल्लू ने जैसे ही पिलर की तरफ़ देखा तो उसके तो होश ही उड़ गए, उसे पिलर की आट में साड़ी का हल्का सा पल्लू दिखा। बल्लू समझ गया की कोई औरत है जो उसकी बातों को छुप कर सुन रहा है। एक पल के लिऐ तो बल्लू के प्राण ही पखेरू हो गए थे। और इधर संध्या भी गुस्से में अपने दांत पीस कर रह गई, क्यूंकि वो जानना चाहती थीं कि, आखिर बल्लू किस राज की बात कर रहा था, की तभी उसके कानो में बल्लू की आवाज़ आई।

बल्लू --"अरे कोई सुनता है तो सुने, मैं थोड़ी ना झूठ बोल रहा हूं, जो अपनी आंखो से देखा है वहीं बता रहा हूं, और सच पूछो तो मैने ठाकुराइन का असली चेहरा उसी दीन देखा। मैं तो सोच भी नही सकता था कि ठकुराइन अपने सगे बेटे के साथ ऐसा भी कर सकती है!! तुझे पता है वो अमरूद वाला बाग, उसी बाग में ना जाने किस बात पर, ठाकुराइन ने अभय बाबा को भरी दोपहरी में पूरे 4 घंटे तक पेड़ में बांध कर रखा था। अब तू ही बता ऐसा कोई मां करती है क्या?? अच्छा हुआ, जो अभय बाबा को मुक्ति मिल गई नही तो वो अपनी मां की....."

इससे आगे बल्लू कुछ बोल पाता, उसके गाल पर जोर का तमाचा पड़ा...

"कुत्ते..... हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई, मेरे बेटे के बारे में एक शब्द भी बोलने का।"

बल्लू के सर पर जूं नाचने लगी, उसे लगा था की शायद पिलर की आड़ में छुप कर उसकी बातो को सुनने वाली हवेली की कोई नौकरानी होगी, उसे जरा भी अंदाजा ना था कि ये ठाकुराइन भी हो सकती है। बल्लू ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली थीं। इधर ठाकुराइन गुस्से में लाल बल्लू के गाल अपने तमाचो से लाल करती हुई चिल्ला रहि थीं।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, रमन, मुनीम, मलती, ललिता ये सब हवेली के बहार आ जाते है, मलती ने संध्या को पकड़ते हुए बोला...

मलती --"अरे क्या हुआ दीदी? उस बेचारे को क्यूं मार रही हो?"

संध्या अभि भी गुस्से में चिल्लाती हुई खुद को मलती से छुड़ाते हुए उस बल्लू की तरफ़ ही लपक रही थी।

संध्या --"हरमजादा... बोल रहा है की, मैं अपने अभय को भरी दोपहरी में अमरूद के पेड़ो में बांध कर रखी थीं। इसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसी घिनौनी इल्जाम लगाने की मुझ पर। औकात में रह कमिने।"

अमरूद वाली बाग की बात सुनकर, रमन सिंह मुनीम की तरफ़ देखने लगा। उन दोनो के चेहरे फक्क पड़ गए थे। तभी मुनीम लपकते हुए बल्लू की तरफ़ बढ़ा, और बल्लू का गिरेबान पकड़ कर घसीटते हुए...

मुनीम --"साले, औकात भूल गया क्या तू अपना, अरे लट्ठहेरो देख क्या रहे हो? मारो इस हराम के जने को।"

फिर क्या था... लट्ठहेरो ने लाठी मार मार कर बल्लू की गांड़ ही तोड़ दी। जब संध्या अपने गुस्से में से होश में आई तो, उसे खुद पर बहुत पछतावा हुआ, छैलू बल्लू को सहारा देते हुए हवेली से ले कर चल दिया। संध्या का दिमाग पगला गया था, उसे चक्कर आ रहे थे। वो मुनीम की तरफ़ गुस्से में देखते हुए बोली...

संध्या --"उस पर लाठी बरसाने को किसने कहा तुमसे मुनीम?"

मुनीम अपने चस्मे को ठीक करते हुए बोला...

मुनीम --"वो ऐसी बकवास बातें आप के लिऐ करेगा तो क्या मै चुप रहूंगा मालकिन?"

मुनीम की बातों को काटते हुए मालती ने कहा...

मलती --"भला उस बेचारे को ऐसी बकवास बातें करके क्या मिलेगा? जरूर उसने कुछ देखा होगा, तो ही तो बोल रहा था।"

ये सुनकर संध्या एक नजर मालती की तरफ़ घूर कर देखती है, क्यूंकि संध्या समझ गई थीं कि, मलती का निशाना उसकी तरफ़ ही है, और जब तक संध्या कुछ बोल पाती मालती वहां से चली गई थीं।

संध्या भी हवेली के अंदर जाने के लिऐ कदम बढ़ाई ही थी कि...

संध्या --"एक मिनट, मुझे याद है वो दीन। उस दिन मै अभय को स्कूल ना जाने की वजह के लिऐ उस अमरूद के बाग में मैंने उसे मारा था, और मुनीम मैने तुमसे कहा था कि, उसे स्कूल छोड़ कर आ जाओ। तो क्या उस दीन तुमने उसे स्कूल छोड़ था?"

संध्या की बात सुनकर, मुनीम रमन की तरफ एक नजर देखा और बोला...

मुनीम --"वो...आपने ही तो कहा था ना ठाकुराइन, की इसे स्कूल ले जाओ और अगर नही गया तो, इसी कड़कती धूप में पेड़ से बांध दो फिर दिमाग ठिकाने पर आएगा।"

अब संध्या के पैरों तले ज़मीन और सर से आसमान दोनो खिसक गए। वो मुनीम के मुंह से ये बात सुनकर हंसने लगी... मानो कोई पागल हो। कुछ देर तक हंसी फिर बोली।

संध्या --"वो तो मैं गुस्से में बोली थीं। और तूने मुनीम, तूने मेरे बेटे को कड़कती धूप में पेड़ में बांध दिया। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुनीम...

अभि संध्या कुछ बोल ही रही थीं की...

"कहा है वो हराम की जानि ठाकुराइन, छीनाल कहीं की, हरजाई। ठाकुराइन बनती फिरती है, बताओ मेरे बेटे को किसी कुत्ते की तरह मरवाया है हरामजादी ने,।"

संध्या के साथ साथ वहां खड़े सब की नजारे हवेली के गेट पर पड़ी तो एक मोटी सी औरत रोते हुए संध्या को गालियां बक रही थीं। इस तरह की भद्दी गाली सुनकर रमन गुस्से में अपने लट्ठेरी को इशारा करता है। वहां खड़े चार पांच लट्ठेरो ने उस औरत को पकड़ लिया और हवेली से बाहर करने लगे... मगर वो औरत अभि भी रोते हुए ठाकुराइन को गालियां बक रहि थीं...

"अच्छा हुआ करमजली, जो तेरा बेटा मर गया। तू उस लायक नही है छीनाल, कुटिया , घटिया औरत।"

धीरे धीरे उस औरत की आवाज संध्या के कानो से ओझल हो गई। संध्या किसी चोर की तरह अपनी नज़रे झुकाई, बेबस, लाचार वहीं खड़ी रही। तभी वहां ललिता आ कर संध्या को हवेली के अंदर ले जाती है। संध्या की आंखो से लगातार अश्रु की बूंदे टपक रही थीं। वो हवेली के अंदर जाते हुए एक बार रुकी और पीछे मुड़ते हुए रमन की तरफ देख कर बोली...

संध्या --"कल से मुझे, ये मुनीम इस हवेली के आस -पास भी नजर नहीं आना चाहिए।"

कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाती है....

_______________________

इधर अभि, अपना समान पैक कर के स्टेशन आ पहुंचा था। उसको छोड़ने रेखा और सेठ दोनो आए थे। रेखा और अभि दोनो बात कर रहे थे की तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा।

अभि --"अच्छा आंटी, मैं चलता हूं।"

रेखा -"अरे रुक जरा, ये ले, देख मना मत करना। आज तक तूने कभी कुछ नही लिया। पर आज मना मत करना।"

रेखा के हाथों में पैसों की गड्डी थी। ये देख कर अभि ने कहा।

अभि --" छोड़ो ना आंटी, पैसे है मेरे पास, अगर जरूरत पड़ेगी तो मांग लूंगा। अब फोर्स मत करना, वर्ण लौट कर नहीं आऊंगा।"

रेखा --"मुझे पता था, तू जरूर कुछ ऐसी बात बोलेगा जिससे में पिघल जाऊंगी, तेरी बात मानने के लिऐ। ठीक है जा, अपना खयाल रखना, और पहुंच कर फोन करना, हर रोज करना। अगर नही किया तो मै पहुंच जाऊंगी फिर तेरा कान और मेरा हाथ, मरोड़ दूंगी हां।"

ये सुनकर अभि हंसने लगा..... और रेखा को साइन से लगा लिया। रेखा की आंखे नम हो गई। मगर अभी रेखा से अलग होते हुए उसके माथे को चूमते हुए बोला।"

अभि --"वीडियो कॉलिंग करूंगा, कॉल क्या चीज है। और हां, वो ना उठने वाला समान मैं लेकर आया हूं आप के लिऐ, मेरे कपाट में है ले लेना।"

ये सुनकर रेखा शर्मा गई, और चौंकते हुए बोलि...

रेखा --" बदमाश कही का, एकदम बेशर्म है तू। समझ गया की कौन सी चीज के बारे में बात कर रही हूं l"

Abhi मुस्कुराते हुए....

अभि --"हां, सोचा आपको बता दूं, की अब मेरी उम्र us चीज को उठाने की हो गई है।"।

तभी वहां सेठ भी आ गया, अभि ने पहेली बार रेखा और सेठ के पैर छुए, रेखा और सेठ इस पल को अपनी जिंदगी का सबसे कीमती पलों में गिन रहे थे। मानो आज उन्हे सच में उनका बेटा मिल गया हो। ट्रेन चली... तीनो के पलके भीग चुकी थीं, फिर भी मुस्कुराहट की छवि जबरन मुख पर लेट हुए सेठ और रेखा ने अभि को अलविदा कहा, और ट्रेन स्टेशन से जल्द ही ओझल हो चुकी थी.....
nice update..!!
yeh sandhya abhay ke janmdin par haveli sajati hai aur woh hi din abhay gayab bhi huva tha..malti aisa mouka kaise chhodati..malti ne achha tana mara ki abhay ko bhulna hai toh kyun uska janmdin manati hai sandhya..yeh sandhya rone ka drama karti hai lekin kab beta tha tab usko jalil kiya aur khud ke devar se chudati rahi aur ab yeh drama karti hai..!! achha huva sandhya chhaillu aur ballu ki baat sun li..ab usko samajh aayega ki uski kya aukat hai gaon walo ke samne..ballu ne toh bahot achha raaj bhi khol diya aur bata bhi diya ki kya julm huva tha abhay ke sath..iss munim ne markar jarur bhagaya uss ballu ko lekin malti ne sandhya ko firse aayna dikhaya aur munim ka chehra bhi sandhya ke samne aagaya..sandhya ko thodi akal hogi toh woh yeh jarur sochegi ki munim raman ka hi aadmi hai toh raman ka bhi isme hath hosakta hai..ab sandhya ko yeh baat toh samajh aani chahiye ki abhay ko kaise uske khilaf bhadkaya gaya hai munim ke jariye..sandhya uss ballu ki maa ne bhi uski haisiyat dikha di..sandhya ek baar bas gaon me jaye ghumane tab usko pata chalega gaon walo se ki abhay kitna achha tha aur woh jis aman par itna pyaar barsati hai woh kitna harami hai..!! abhay firse apne gaon ja raha hai..rekha aur seth dukhi hai lekin woh jante hai ki abhay ko apni manjil ki aur jana hi hoga..kash rekha ko abhay maa kehta..mai toh yahi chahunga ki sandhya ko kabhi abhay maa na kahe aur uske samne rekha aur malti ko apni maa kahe..yaar rekha abhay ke sath honi chahiye..!! ab dekhte hai abhay apne gaon me kaisa dhamaka karta hai..waise abhay ko fighting me bhi strong banao kyunki usko jarurat pad sakti hai ladne ki..!! waise abhay ko gaon wale jarur pehchan lenge aur sandhya pehchane ya nahi lekin malti toh jarur abhay ko pehchan legi..aur abhay apne doston se aur apni premika se bhi milega aur usko chudiya bhi dega..ab story me maja aanewala hai..!!
 

Hemantstar111

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वो तो है अलबेला

रात का समय था, पायल अपने कमरे में बैठी थी। उसकी पलके भीगी थी। वो बार बार अपने हाथो में लिए उस कंगन को देख कर रो रही थी, जिस कंगन को अभय ने उसे दिया था। आज का दिन पायल के लिए किसी घनी सुनी अंधेरी रात की तरह था। आज के ही दिन उसका सबसे चहेता और प्यारा दोस्त उसे छोड़ कर गया था। मगर न जाने क्यों पायल आज भी उसके इंतजार में बैठी रहती है।

पायल की मां शांति से पायल की हालत देखी नही जा रही थीं। वो इस समय पायल के बगल में ही बैठी थी। और ख़ामोश पायल के सिर पर अपनी ममता का हाथ फेर रही थी। पायल का सर उसकी मां के कंधो पर था। पायल ने करुण स्वर में सुर्ख हो चुकी आवाज़ में अपने मां से बोली...

पायल --"तुझे पता है मां,। ये कंगन मुझे उसने अपनी मां से चुरा कर दिया था। कहता था, की जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो तेरे लिऐ खूब रंग बिरंगी चिड़िया ले कर आऊंगा। मुझे बहुत परेशान करता था। घंटो तक मुझे नदी के इस पार वाले फूलों के बाग में , मेरा हाथ पकड़ कर चलता था। मुझे भी उसके साथ चलने की आदत हो गई थी। अगर एक दिन भी नही दिखता था वो तो ऐसा लगता था जैसे जिंदगी के सब रंग बेरंग हो गए हो। उसे पता था की मैं उसके बिना नहीं जी पाऊंगी, फिर क्यों वो मुझे छोड़ कर चला गया मां?"

पायल की इस तरह की बाते और सवाल का जवाब शांति के पास भी नहीं था। वो कैसे अपनी लाडली कोने बोल कर और दुखी कर सकती थी की अब उसका हमसफर जिंदगी के इस सफर पर उसके साथ नही चल सकता। शांति और मंगलू को अपनी बेटी की बहुत चिंता हो रही थी। क्यूंकि पायल का प्यार अभय के लिए दिन ब दीन बढ़ता जा रहा था। वो अभय की यादों में जीने लगी थी।

शांति --"बेटी , तेरा अभय तारों की दुनिया में चला गया है, उसे भगवान ने बहुत अच्छे से वहा रखा है। वो तुझे हर रात देखता है, और तुझे इतना दुखी देखकर वो भी बहुत रोता है। तू चाहती है की तेरा अभय हर रात रोए?"

पायल -"में जो रोटी ही, उसका कुछ नही क्या? वो कहता था की वो मुझे तारों पर ले चलेगा। और आज वो मुझे छोड़ कर अकेला चला गया। जब मिलूंगी ना उससे तो खबर लूंगी उसकी।"

इसी तरह मां बेटी आपस में घंटो तक बात करती रही। पायल का मासूम चेहरा उसके अश्रु से हर बार , बार बार भीग जाते। और अंत में रोते हुए थक कर अपनी का के कंधे पर ही सिर रखे सो जाती है।

उसी रात हवेली दुल्हन किंसाजी थी। चमक ऐसी थी मानो ढेरो खुशियां आई हो हवेली में।

आज संध्या किसी परी की तरह सजी थी। Resmi बालो का जुड़ा बंधे हुए, उसके खूबसूरत फूल जैसे चेहरे पर बालो का एक लट गिर रहा था। जो उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रही थी। विधवा होने के बावजूद उसने आज अपने माथे पर लाल रंग की बिंदी लगाई थी, कानो के झुमके और गले में एक हार। बदन पर लाल रंग की सारी में किसी कयामत की कहर लग रही थी।

images-5

हवेली के बाहर जाने माने अमीर घराने के ठाकुर और उच्च जाति के लोग भी आए थे। जब संध्या हॉवलिंस बाहर निकली तो, लोगो के दिलो पे हजार वॉट का करंट का झटका सा लग गया। सब उसकी खूबसूरती में खो गए। वो लोग ये भी भूल गए की वो सब संध्या के बेटे के जन्मदिन और मरण दिन , पर शोक व्यक्त करने आए है। पर वो लोग भी क्या कर सकते थे। जब मां ही इतनी सज धज कर आई है तो किसी और को क्या कहेना?

वही एकतरफ संध्या के हाथों में अभय की तस्वीर थी , जो वो लेकर थोड़ी दूर चलते हुए एक us tasveer ko ek टेबल पर रख देती है। उसके बाद सब लोग एक एक करके संध्या से मिले और उसके बेटे के लिए शोक व्यक्त किया । लोगो का शोक व्यक्त करना तो मात्र एक बहाना था। असली मुद्दा तो संध्या से कुछ पल बात करने कां था। हालाकि संध्या को किसिंस बात करने में कोइ रुची नही थी।

धीरे धीरे लोग अब वहा से जाने लगे थे। भोज किं ब्यावस्था भी हुई थी, तो सब खाना पीना खा कर गए थे। अब रात के 12 बज रहे थे। सब जा चुके थे। हवेली के सब सदस्य एक साथ मिलकर खाना खाए। और फिर अपने अपने कमरे में सोने चले गए। संध्या की आंखो में नींद नहीं था। तो वही दूसरी तरफ रमन की नींद भी आज संध्या को देखकर उड़ चुकी थी। रमन अपनी पत्नी ललिता के सोने का इंतजार करने लगा।

करीब 2 बजे संध्यानके दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजे की खटखटाहट से संध्या का ध्यान उसके बेटे की यादों से हटा, वो अपने बेड पर से उठते हुए दरवाजे तक पहुंची और दरवाजा जैसे ही खोली। रमन कमरे में दाखिल हुआ और झट से संध्या को अपनी बाहों के भर लिया...

ये सब अचानक हुआ, संध्या कुछ समझ नहीं पाई। और जब तक कुछ समझती वो खुद को रमन की बाहों में पाई।

संध्या --"रमन , पागल हो गया है क्या तू? छोड़ मुझे, और जा यह से?"

संध्या की कठोर वाणी सुनकर, रमन ने संध्या को अपनी बाहों से आजाद कर दिया। और संध्या के गोरे गालों पर अपनी उंगली फिराते हुए बोला...

रमन --"क्या हुआ भाभी? मुझसे कुछ गलती हो गई क्या?"

संध्या ने रमन का हाथ अपने गालों पर से दूर झटकते हुए बोली...

संध्या --"नही, गलती तो मुझसे हो गई, देखो रमन हमारे बीच जो भी था , वो सब अनजाने हुआ , पर अब वो सब हमे यही खत्म कर देना चाहिए।"

ये सुनकर रमन का चेहरा फक्क्क पड़ गया। सारे भाव हवा के साथ उड़ से गए थे। वो संध्या को एक बार फिर से कस कर अपनी बाहों में भरते हुए बोला...

रमन --"ये तुम क्या बोल रही हो भाभी? तुम्हे पता है ना , की मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं? पागल हूं तुम्हारे लिए, तुम इस तरह से सब कुछ इतनी आसानी से नहीं खत्म कर सकती।"

संध्या ये सुनकर रमन को अपने आप से दूर धकेलती हुई बोली...

संध्या --"मैने कहा ना , सब कुछ खत्म। तो समझ सब कुछ खत्म, अब जा यह से। और हां दुबारा मेरे साथ ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना भी मत।"

रमन को झटके पे झटके लग रहे थे। वो समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या को क्या हो गया?

रमन --"पर भाभी....."

संध्या --"प्लीज़....मैने कहा ना , मुझे कोई बात नही करनी है इस पर। अब जाओ यह से..."

बेचारा रमन, अपना सा मुंह बना कर संध्या के कमरे से दबे पांव बाहर निकल गया। संध्या भी चुप चाप अपना दरवाजा बंद करती है और अपने बिस्तर पर आकर लेट जाती है।

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ट्रेन में बैठा अभय , बार बार उस चूड़ी को निहारे जा रहा था, और मन ही मन खुश होते जा रहा था। अभय जा तो रहा था अपने गांव, पर उसने एक पल के लिए अपनी मां का ख्याल तक भी नही किया। उसकी ख्यालों में सिर्फ और सिर्फ पायल ही जिंदा थी। ट्रेन की खिड़की पर सिर रख कर बाहर देखते हुए वो अपनी आंखे बंद कर लेता है। तेज हवा के झोंके उसे उसकी प्यार के धड़कन से रूबरू करा रहे थे। अभय के दिल में हलचालब्स उठाने लगी थी। आज इतने साल बाद वो अपनी जान से मिलेगा। मन में हजारों सवाल थे उसके, कैसी होगी वो? क्या अब भी वो मुझे याद करती होगी? बड़ी हो है होगी कितनी? कैसी दिखती होगी? बचपन के तो बहुत नाक बहाती थी, क्या अब भी बहती होगी? सोचते हुए अभी के चेहरे पर एक मुस्कान सी फेल जाति है। अपनी आंखे खोलते हुए वो आसमान में टिमटिमाते तारों की तरफ देखते हुए फिर से पायल की यादों में खो जाता है,

यूं इस कदर टिमटिमाते तारों को देखता रहा , और कब उसकी आंखो से वो टिमटिमाते तारे ओझल हुए उसे पता ही नही चला। नजर आसमान से धरती पर दौड़ाई तो, भोर हो गया था। अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर दौड़ाई तो देखा सुबह के 6 बज रहे थे। अभय रात भर सोया नही था। अब गोबापनी मंजिल से 5 घंटे दूर था। और ये 5 घंटा उसे 5 जन्मोंके बराबर लग रहा था। जैसे जैसे ट्रेन मंजिल की तरफ रफ्तार बढ़ा रही थी, वैसे वैसे अभय के दिल की रफ्तार भी बढ़ रही थी। वो खुद को अब्बेकबजाह आराम से नहीबरख पा रहा था। कभी उठ कर बाथरूम में जाता और खुद को शीशे में देखता , तो कभी ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा हो कर गुजर रहे गांव के घरों को देखता । रास्ते में उसे जब कही भी बाग दिख जाता , तो उसे अपने दिल को सम्हालना मुश्किल सा हो जाता।

पल पल अभय के लिए कटना मुश्किल हो रहा था। वो अभी खुद से सवाल करता की, मिल कर क्या बोलेगा? बताए की ना बताए उसे, की वो ही अभय है, उसका अभय। वो अभी भिंकिसी फैसले पर नही पहुंच पा रहा था। दिल की धड़कने भले ही तेज थी, पर चेहरे पर अलग ही चमक थी।

जिस बचपन को वो भूल चुका था, वही बचपन आज उसे याद आ रहा था। अपने दोस्तों के साथ बिताए हुए वो खुशनुमा पल, उसे एकबजीब सा अहसास दे जाति। उसे ऐसा लग रहा था। जैसे उसे आज उसका बचपन बुला रहा है, और वो एक बार फिर से अपना बचपन जीने जा रहा है। कितना सुहाना और मनभावन होता है बचपन का वो एहसास। जहां से हम अपनी जिंदगी किं शुरुवात करते है, साथ खेलते हस्ते दोस्त बन जाते है। छोटी छोटी शरारते जिंदगी का अहम किस्सा बन जाते है। बचपन है यारों जो हर एक इंसान का पहला पन्ना होता है। जिसे जितनी बार पढ़ो सिर्फ खुशियाभी मिलती है।

ये सोचते सोचते कब 5 घंटो का सफर भी गुजर जाता है अभि को पता ही नही चलता, और पता तब चलता है, जब उसे हवेली का वही कमरा दिखता है, जो कमरा उसने तब देखा था जब वो गांव छोड़ कर जा रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की, वो समय उसके जिंदगी और रात के अंधेरे का था, पर आज का समय दिन दिन के उजाले और उसके जिंदगी के उजाले का है....
 
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