Aditya01kh
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देर से ही सही संध्या को अपनी गलती का अहसास हो रहा है, अब जब अभय वापस आएगा तो क्या संध्या उसको इस नए रूप के साथ मिलेगी या फिर उसके आने के बाद फिर से वो पुराने रूप में आ जाएगी। रेखा ने जैसे कहा था क्या अभय अपनी मां को एक मौका और देगा।अपडेट 11
रात का समय था, पायल अपने कमरे में बैठी थी। उसकी पलके भीगी थी। वो बार बार अपने हाथो में लिए उस कंगन को देख कर रो रही थी, जिस कंगन को अभय ने उसे दिया था। आज का दिन पायल के लिए किसी घनी सुनी अंधेरी रात की तरह था। आज के ही दिन उसका सबसे चहेता और प्यारा दोस्त उसे छोड़ कर गया था। मगर न जाने क्यों पायल आज भी उसके इंतजार में बैठी रहती है।
पायल की मां शांति से पायल की हालत देखी नही जा रही थीं। वो इस समय पायल के बगल में ही बैठी थी। और ख़ामोश पायल के सिर पर अपनी ममता का हाथ फेर रही थी। पायल का सर उसकी मां के कंधो पर था। पायल ने करुण स्वर में सुर्ख हो चुकी आवाज़ में अपने मां से बोली...
पायल --"तुझे पता है मां,। ये कंगन मुझे उसने अपनी मां से चुरा कर दिया था। कहता था, की जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो तेरे लिऐ खूब रंग बिरंगी चिड़िया ले कर आऊंगा। मुझे बहुत परेशान करता था। घंटो तक मुझे नदी के इस पार वाले फूलों के बाग में , मेरा हाथ पकड़ कर चलता था। मुझे भी उसके साथ चलने की आदत हो गई थी। अगर एक दिन भी नही दिखता था वो तो ऐसा लगता था जैसे जिंदगी के सब रंग बेरंग हो गए हो। उसे पता था की मैं उसके बिना नहीं जी पाऊंगी, फिर क्यों वो मुझे छोड़ कर चला गया मां?"
पायल की इस तरह की बाते और सवाल का जवाब शांति के पास भी नहीं था। वो कैसे अपनी लाडली कोने बोल कर और दुखी कर सकती थी की अब उसका हमसफर जिंदगी के इस सफर पर उसके साथ नही चल सकता। शांति और मंगलू को अपनी बेटी की बहुत चिंता हो रही थी। क्यूंकि पायल का प्यार अभय के लिए दिन ब दीन बढ़ता जा रहा था। वो अभय की यादों में जीने लगी थी।
शांति --"बेटी , तेरा अभय तारों की दुनिया में चला गया है, उसे भगवान ने बहुत अच्छे से वहा रखा है। वो तुझे हर रात देखता है, और तुझे इतना दुखी देखकर वो भी बहुत रोता है। तू चाहती है की तेरा अभय हर रात रोए?"
पायल -"में जो रोटी ही, उसका कुछ नही क्या? वो कहता था की वो मुझे तारों पर ले चलेगा। और आज वो मुझे छोड़ कर अकेला चला गया। जब मिलूंगी ना उससे तो खबर लूंगी उसकी।"
इसी तरह मां बेटी आपस में घंटो तक बात करती रही। पायल का मासूम चेहरा उसके अश्रु से हर बार , बार बार भीग जाते। और अंत में रोते हुए थक कर अपनी का के कंधे पर ही सिर रखे सो जाती है।
उसी रात हवेली दुल्हन किंसाजी थी। चमक ऐसी थी मानो ढेरो खुशियां आई हो हवेली में।
आज संध्या किसी परी की तरह सजी थी। Resmi बालो का जुड़ा बंधे हुए, उसके खूबसूरत फूल जैसे चेहरे पर बालो का एक लट गिर रहा था। जो उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रही थी। विधवा होने के बावजूद उसने आज अपने माथे पर लाल रंग की बिंदी लगाई थी, कानो के झुमके और गले में एक हार। बदन पर लाल रंग की सारी में किसी कयामत की कहर लग रही थी।
हवेली के बाहर जाने माने अमीर घराने के ठाकुर और उच्च जाति के लोग भी आए थे। जब संध्या हॉवलिंस बाहर निकली तो, लोगो के दिलो पे हजार वॉट का करंट का झटका सा लग गया। सब उसकी खूबसूरती में खो गए। वो लोग ये भी भूल गए की वो सब संध्या के बेटे के जन्मदिन और मरण दिन , पर शोक व्यक्त करने आए है। पर वो लोग भी क्या कर सकते थे। जब मां ही इतनी सज धज कर आई है तो किसी और को क्या कहेना?
वही एकतरफ संध्या के हाथों में अभय की तस्वीर थी , जो वो लेकर थोड़ी दूर चलते हुए एक us tasveer ko ek टेबल पर रख देती है। उसके बाद सब लोग एक एक करके संध्या से मिले और उसके बेटे के लिए शोक व्यक्त किया । लोगो का शोक व्यक्त करना तो मात्र एक बहाना था। असली मुद्दा तो संध्या से कुछ पल बात करने कां था। हालाकि संध्या को किसिंस बात करने में कोइ रुची नही थी।
धीरे धीरे लोग अब वहा से जाने लगे थे। भोज किं ब्यावस्था भी हुई थी, तो सब खाना पीना खा कर गए थे। अब रात के 12 बज रहे थे। सब जा चुके थे। हवेली के सब सदस्य एक साथ मिलकर खाना खाए। और फिर अपने अपने कमरे में सोने चले गए। संध्या की आंखो में नींद नहीं था। तो वही दूसरी तरफ रमन की नींद भी आज संध्या को देखकर उड़ चुकी थी। रमन अपनी पत्नी ललिता के सोने का इंतजार करने लगा।
करीब 2 बजे संध्यानके दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजे की खटखटाहट से संध्या का ध्यान उसके बेटे की यादों से हटा, वो अपने बेड पर से उठते हुए दरवाजे तक पहुंची और दरवाजा जैसे ही खोली। रमन कमरे में दाखिल हुआ और झट से संध्या को अपनी बाहों के भर लिया...
ये सब अचानक हुआ, संध्या कुछ समझ नहीं पाई। और जब तक कुछ समझती वो खुद को रमन की बाहों में पाई।
संध्या --"रमन , पागल हो गया है क्या तू? छोड़ मुझे, और जा यह से?"
संध्या की कठोर वाणी सुनकर, रमन ने संध्या को अपनी बाहों से आजाद कर दिया। और संध्या के गोरे गालों पर अपनी उंगली फिराते हुए बोला...
रमन --"क्या हुआ भाभी? मुझसे कुछ गलती हो गई क्या?"
संध्या ने रमन का हाथ अपने गालों पर से दूर झटकते हुए बोली...
संध्या --"नही, गलती तो मुझसे हो गई, देखो रमन हमारे बीच जो भी था , वो सब अनजाने हुआ , पर अब वो सब हमे यही खत्म कर देना चाहिए।"
ये सुनकर रमन का चेहरा फक्क्क पड़ गया। सारे भाव हवा के साथ उड़ से गए थे। वो संध्या को एक बार फिर से कस कर अपनी बाहों में भरते हुए बोला...
रमन --"ये तुम क्या बोल रही हो भाभी? तुम्हे पता है ना , की मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं? पागल हूं तुम्हारे लिए, तुम इस तरह से सब कुछ इतनी आसानी से नहीं खत्म कर सकती।"
संध्या ये सुनकर रमन को अपने आप से दूर धकेलती हुई बोली...
संध्या --"मैने कहा ना , सब कुछ खत्म। तो समझ सब कुछ खत्म, अब जा यह से। और हां दुबारा मेरे साथ ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना भी मत।"
रमन को झटके पे झटके लग रहे थे। वो समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या को क्या हो गया?
रमन --"पर भाभी....."
संध्या --"प्लीज़....मैने कहा ना , मुझे कोई बात नही करनी है इस पर। अब जाओ यह से..."
बेचारा रमन, अपना सा मुंह बना कर संध्या के कमरे से दबे पांव बाहर निकल गया। संध्या भी चुप चाप अपना दरवाजा बंद करती है और अपने बिस्तर पर आकर लेट जाती है।
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ट्रेन में बैठा अभय , बार बार उस चूड़ी को निहारे जा रहा था, और मन ही मन खुश होते जा रहा था। अभय जा तो रहा था अपने गांव, पर उसने एक पल के लिए अपनी मां का ख्याल तक भी नही किया। उसकी ख्यालों में सिर्फ और सिर्फ पायल ही जिंदा थी। ट्रेन की खिड़की पर सिर रख कर बाहर देखते हुए वो अपनी आंखे बंद कर लेता है। तेज हवा के झोंके उसे उसकी प्यार के धड़कन से रूबरू करा रहे थे। अभय के दिल में हलचालब्स उठाने लगी थी। आज इतने साल बाद वो अपनी जान से मिलेगा। मन में हजारों सवाल थे उसके, कैसी होगी वो? क्या अब भी वो मुझे याद करती होगी? बड़ी हो है होगी कितनी? कैसी दिखती होगी? बचपन के तो बहुत नाक बहाती थी, क्या अब भी बहती होगी? सोचते हुए अभी के चेहरे पर एक मुस्कान सी फेल जाति है। अपनी आंखे खोलते हुए वो आसमान में टिमटिमाते तारों की तरफ देखते हुए फिर से पायल की यादों में खो जाता है,
यूं इस कदर टिमटिमाते तारों को देखता रहा , और कब उसकी आंखो से वो टिमटिमाते तारे ओझल हुए उसे पता ही नही चला। नजर आसमान से धरती पर दौड़ाई तो, भोर हो गया था। अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर दौड़ाई तो देखा सुबह के 6 बज रहे थे। अभय रात भर सोया नही था। अब गोबापनी मंजिल से 5 घंटे दूर था। और ये 5 घंटा उसे 5 जन्मोंके बराबर लग रहा था। जैसे जैसे ट्रेन मंजिल की तरफ रफ्तार बढ़ा रही थी, वैसे वैसे अभय के दिल की रफ्तार भी बढ़ रही थी। वो खुद को अब्बेकबजाह आराम से नहीबरख पा रहा था। कभी उठ कर बाथरूम में जाता और खुद को शीशे में देखता , तो कभी ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा हो कर गुजर रहे गांव के घरों को देखता । रास्ते में उसे जब कही भी बाग दिख जाता , तो उसे अपने दिल को सम्हालना मुश्किल सा हो जाता।
पल पल अभय के लिए कटना मुश्किल हो रहा था। वो अभी खुद से सवाल करता की, मिल कर क्या बोलेगा? बताए की ना बताए उसे, की वो ही अभय है, उसका अभय। वो अभी भिंकिसी फैसले पर नही पहुंच पा रहा था। दिल की धड़कने भले ही तेज थी, पर चेहरे पर अलग ही चमक थी।
जिस बचपन को वो भूल चुका था, वही बचपन आज उसे याद आ रहा था। अपने दोस्तों के साथ बिताए हुए वो खुशनुमा पल, उसे एकबजीब सा अहसास दे जाति। उसे ऐसा लग रहा था। जैसे उसे आज उसका बचपन बुला रहा है, और वो एक बार फिर से अपना बचपन जीने जा रहा है। कितना सुहाना और मनभावन होता है बचपन का वो एहसास। जहां से हम अपनी जिंदगी किं शुरुवात करते है, साथ खेलते हस्ते दोस्त बन जाते है। छोटी छोटी शरारते जिंदगी का अहम किस्सा बन जाते है। बचपन है यारों जो हर एक इंसान का पहला पन्ना होता है। जिसे जितनी बार पढ़ो सिर्फ खुशियाभी मिलती है।
ये सोचते सोचते कब 5 घंटो का सफर भी गुजर जाता है अभि को पता ही नही चलता, और पता तब चलता है, जब उसे हवेली का वही कमरा दिखता है, जो कमरा उसने तब देखा था जब वो गांव छोड़ कर जा रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की, वो समय उसके जिंदगी और रात के अंधेरे का था, पर आज का समय दिन दिन के उजाले और उसके जिंदगी के उजाले का है....
Yr ye to bdi stisavitri bn rhe hai Sandhya shyad acha bnne ki practice kr rhe hai sbke samneअपडेट 11
रात का समय था, पायल अपने कमरे में बैठी थी। उसकी पलके भीगी थी। वो बार बार अपने हाथो में लिए उस कंगन को देख कर रो रही थी, जिस कंगन को अभय ने उसे दिया था। आज का दिन पायल के लिए किसी घनी सुनी अंधेरी रात की तरह था। आज के ही दिन उसका सबसे चहेता और प्यारा दोस्त उसे छोड़ कर गया था। मगर न जाने क्यों पायल आज भी उसके इंतजार में बैठी रहती है।
पायल की मां शांति से पायल की हालत देखी नही जा रही थीं। वो इस समय पायल के बगल में ही बैठी थी। और ख़ामोश पायल के सिर पर अपनी ममता का हाथ फेर रही थी। पायल का सर उसकी मां के कंधो पर था। पायल ने करुण स्वर में सुर्ख हो चुकी आवाज़ में अपने मां से बोली...
पायल --"तुझे पता है मां,। ये कंगन मुझे उसने अपनी मां से चुरा कर दिया था। कहता था, की जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो तेरे लिऐ खूब रंग बिरंगी चिड़िया ले कर आऊंगा। मुझे बहुत परेशान करता था। घंटो तक मुझे नदी के इस पार वाले फूलों के बाग में , मेरा हाथ पकड़ कर चलता था। मुझे भी उसके साथ चलने की आदत हो गई थी। अगर एक दिन भी नही दिखता था वो तो ऐसा लगता था जैसे जिंदगी के सब रंग बेरंग हो गए हो। उसे पता था की मैं उसके बिना नहीं जी पाऊंगी, फिर क्यों वो मुझे छोड़ कर चला गया मां?"
पायल की इस तरह की बाते और सवाल का जवाब शांति के पास भी नहीं था। वो कैसे अपनी लाडली कोने बोल कर और दुखी कर सकती थी की अब उसका हमसफर जिंदगी के इस सफर पर उसके साथ नही चल सकता। शांति और मंगलू को अपनी बेटी की बहुत चिंता हो रही थी। क्यूंकि पायल का प्यार अभय के लिए दिन ब दीन बढ़ता जा रहा था। वो अभय की यादों में जीने लगी थी।
शांति --"बेटी , तेरा अभय तारों की दुनिया में चला गया है, उसे भगवान ने बहुत अच्छे से वहा रखा है। वो तुझे हर रात देखता है, और तुझे इतना दुखी देखकर वो भी बहुत रोता है। तू चाहती है की तेरा अभय हर रात रोए?"
पायल -"में जो रोटी ही, उसका कुछ नही क्या? वो कहता था की वो मुझे तारों पर ले चलेगा। और आज वो मुझे छोड़ कर अकेला चला गया। जब मिलूंगी ना उससे तो खबर लूंगी उसकी।"
इसी तरह मां बेटी आपस में घंटो तक बात करती रही। पायल का मासूम चेहरा उसके अश्रु से हर बार , बार बार भीग जाते। और अंत में रोते हुए थक कर अपनी का के कंधे पर ही सिर रखे सो जाती है।
उसी रात हवेली दुल्हन किंसाजी थी। चमक ऐसी थी मानो ढेरो खुशियां आई हो हवेली में।
आज संध्या किसी परी की तरह सजी थी। Resmi बालो का जुड़ा बंधे हुए, उसके खूबसूरत फूल जैसे चेहरे पर बालो का एक लट गिर रहा था। जो उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रही थी। विधवा होने के बावजूद उसने आज अपने माथे पर लाल रंग की बिंदी लगाई थी, कानो के झुमके और गले में एक हार। बदन पर लाल रंग की सारी में किसी कयामत की कहर लग रही थी।
हवेली के बाहर जाने माने अमीर घराने के ठाकुर और उच्च जाति के लोग भी आए थे। जब संध्या हॉवलिंस बाहर निकली तो, लोगो के दिलो पे हजार वॉट का करंट का झटका सा लग गया। सब उसकी खूबसूरती में खो गए। वो लोग ये भी भूल गए की वो सब संध्या के बेटे के जन्मदिन और मरण दिन , पर शोक व्यक्त करने आए है। पर वो लोग भी क्या कर सकते थे। जब मां ही इतनी सज धज कर आई है तो किसी और को क्या कहेना?
वही एकतरफ संध्या के हाथों में अभय की तस्वीर थी , जो वो लेकर थोड़ी दूर चलते हुए एक us tasveer ko ek टेबल पर रख देती है। उसके बाद सब लोग एक एक करके संध्या से मिले और उसके बेटे के लिए शोक व्यक्त किया । लोगो का शोक व्यक्त करना तो मात्र एक बहाना था। असली मुद्दा तो संध्या से कुछ पल बात करने कां था। हालाकि संध्या को किसिंस बात करने में कोइ रुची नही थी।
धीरे धीरे लोग अब वहा से जाने लगे थे। भोज किं ब्यावस्था भी हुई थी, तो सब खाना पीना खा कर गए थे। अब रात के 12 बज रहे थे। सब जा चुके थे। हवेली के सब सदस्य एक साथ मिलकर खाना खाए। और फिर अपने अपने कमरे में सोने चले गए। संध्या की आंखो में नींद नहीं था। तो वही दूसरी तरफ रमन की नींद भी आज संध्या को देखकर उड़ चुकी थी। रमन अपनी पत्नी ललिता के सोने का इंतजार करने लगा।
करीब 2 बजे संध्यानके दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजे की खटखटाहट से संध्या का ध्यान उसके बेटे की यादों से हटा, वो अपने बेड पर से उठते हुए दरवाजे तक पहुंची और दरवाजा जैसे ही खोली। रमन कमरे में दाखिल हुआ और झट से संध्या को अपनी बाहों के भर लिया...
ये सब अचानक हुआ, संध्या कुछ समझ नहीं पाई। और जब तक कुछ समझती वो खुद को रमन की बाहों में पाई।
संध्या --"रमन , पागल हो गया है क्या तू? छोड़ मुझे, और जा यह से?"
संध्या की कठोर वाणी सुनकर, रमन ने संध्या को अपनी बाहों से आजाद कर दिया। और संध्या के गोरे गालों पर अपनी उंगली फिराते हुए बोला...
रमन --"क्या हुआ भाभी? मुझसे कुछ गलती हो गई क्या?"
संध्या ने रमन का हाथ अपने गालों पर से दूर झटकते हुए बोली...
संध्या --"नही, गलती तो मुझसे हो गई, देखो रमन हमारे बीच जो भी था , वो सब अनजाने हुआ , पर अब वो सब हमे यही खत्म कर देना चाहिए।"
ये सुनकर रमन का चेहरा फक्क्क पड़ गया। सारे भाव हवा के साथ उड़ से गए थे। वो संध्या को एक बार फिर से कस कर अपनी बाहों में भरते हुए बोला...
रमन --"ये तुम क्या बोल रही हो भाभी? तुम्हे पता है ना , की मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं? पागल हूं तुम्हारे लिए, तुम इस तरह से सब कुछ इतनी आसानी से नहीं खत्म कर सकती।"
संध्या ये सुनकर रमन को अपने आप से दूर धकेलती हुई बोली...
संध्या --"मैने कहा ना , सब कुछ खत्म। तो समझ सब कुछ खत्म, अब जा यह से। और हां दुबारा मेरे साथ ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना भी मत।"
रमन को झटके पे झटके लग रहे थे। वो समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या को क्या हो गया?
रमन --"पर भाभी....."
संध्या --"प्लीज़....मैने कहा ना , मुझे कोई बात नही करनी है इस पर। अब जाओ यह से..."
बेचारा रमन, अपना सा मुंह बना कर संध्या के कमरे से दबे पांव बाहर निकल गया। संध्या भी चुप चाप अपना दरवाजा बंद करती है और अपने बिस्तर पर आकर लेट जाती है।
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ट्रेन में बैठा अभय , बार बार उस चूड़ी को निहारे जा रहा था, और मन ही मन खुश होते जा रहा था। अभय जा तो रहा था अपने गांव, पर उसने एक पल के लिए अपनी मां का ख्याल तक भी नही किया। उसकी ख्यालों में सिर्फ और सिर्फ पायल ही जिंदा थी। ट्रेन की खिड़की पर सिर रख कर बाहर देखते हुए वो अपनी आंखे बंद कर लेता है। तेज हवा के झोंके उसे उसकी प्यार के धड़कन से रूबरू करा रहे थे। अभय के दिल में हलचालब्स उठाने लगी थी। आज इतने साल बाद वो अपनी जान से मिलेगा। मन में हजारों सवाल थे उसके, कैसी होगी वो? क्या अब भी वो मुझे याद करती होगी? बड़ी हो है होगी कितनी? कैसी दिखती होगी? बचपन के तो बहुत नाक बहाती थी, क्या अब भी बहती होगी? सोचते हुए अभी के चेहरे पर एक मुस्कान सी फेल जाति है। अपनी आंखे खोलते हुए वो आसमान में टिमटिमाते तारों की तरफ देखते हुए फिर से पायल की यादों में खो जाता है,
यूं इस कदर टिमटिमाते तारों को देखता रहा , और कब उसकी आंखो से वो टिमटिमाते तारे ओझल हुए उसे पता ही नही चला। नजर आसमान से धरती पर दौड़ाई तो, भोर हो गया था। अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर दौड़ाई तो देखा सुबह के 6 बज रहे थे। अभय रात भर सोया नही था। अब गोबापनी मंजिल से 5 घंटे दूर था। और ये 5 घंटा उसे 5 जन्मोंके बराबर लग रहा था। जैसे जैसे ट्रेन मंजिल की तरफ रफ्तार बढ़ा रही थी, वैसे वैसे अभय के दिल की रफ्तार भी बढ़ रही थी। वो खुद को अब्बेकबजाह आराम से नहीबरख पा रहा था। कभी उठ कर बाथरूम में जाता और खुद को शीशे में देखता , तो कभी ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा हो कर गुजर रहे गांव के घरों को देखता । रास्ते में उसे जब कही भी बाग दिख जाता , तो उसे अपने दिल को सम्हालना मुश्किल सा हो जाता।
पल पल अभय के लिए कटना मुश्किल हो रहा था। वो अभी खुद से सवाल करता की, मिल कर क्या बोलेगा? बताए की ना बताए उसे, की वो ही अभय है, उसका अभय। वो अभी भिंकिसी फैसले पर नही पहुंच पा रहा था। दिल की धड़कने भले ही तेज थी, पर चेहरे पर अलग ही चमक थी।
जिस बचपन को वो भूल चुका था, वही बचपन आज उसे याद आ रहा था। अपने दोस्तों के साथ बिताए हुए वो खुशनुमा पल, उसे एकबजीब सा अहसास दे जाति। उसे ऐसा लग रहा था। जैसे उसे आज उसका बचपन बुला रहा है, और वो एक बार फिर से अपना बचपन जीने जा रहा है। कितना सुहाना और मनभावन होता है बचपन का वो एहसास। जहां से हम अपनी जिंदगी किं शुरुवात करते है, साथ खेलते हस्ते दोस्त बन जाते है। छोटी छोटी शरारते जिंदगी का अहम किस्सा बन जाते है। बचपन है यारों जो हर एक इंसान का पहला पन्ना होता है। जिसे जितनी बार पढ़ो सिर्फ खुशियाभी मिलती है।
ये सोचते सोचते कब 5 घंटो का सफर भी गुजर जाता है अभि को पता ही नही चलता, और पता तब चलता है, जब उसे हवेली का वही कमरा दिखता है, जो कमरा उसने तब देखा था जब वो गांव छोड़ कर जा रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की, वो समय उसके जिंदगी और रात के अंधेरे का था, पर आज का समय दिन दिन के उजाले और उसके जिंदगी के उजाले का है....