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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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अध्याय -- 5 -----

उस आग को शांत करने के लिए मेरे पास घर में एक ऐसा कोना नही था कि लंड जैसे दिख रहे बैगन को अपनी कुंवारी प्यासी चूत में डालकर आत्म मंथन (हस्थमैथुन) करके प्यास बुझा सकूँ। इसी उधेड़बुन मे मेरी आँख लग गयी।

अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो बीते दिन की बात बीती हुई रात की तरह भूल गयी। दिल में अब सिर्फ अरुण से मुलाकात की हसरत है। अभी जवानी मुझ पर पूरे शबाब पर है.......मेरे दिल में भी आज वही अरमान है जो बाकी लड़कियों के होते है इस उमर में......अरुण......क्या वो मुझे प्यार करेगा.....कब मिलेगा मुझसे....... कुछ तो ख़ास है उसमे.......क्या वो मेरे जज्बातो को समझेगा........ ये सारे सवाल मुझे पल पल परेशान कर रहे थे। कब मिलेगा अरुण कब मेरा इंतेज़ार ख़तम होगा........मुझे यकीन था कि अरुण मुझे ज़रूर मिलेगा.....मगर कब मिलेगा इसकी ना तो कोई तारीख फिक्स थी और ना ही कोई जगह......

तभी मेरी मम्मी की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मैं एक बार फिर से अपने सपनों की उस हसीन दुनिया से बाहर निकल गयी.......ये मम्मी का रोज़ का काम था....ख्वमोखवाह वो मेरे सपनों की दुश्मन बनती थी....... और फिर उठकर मैं फ्रेश होने बाथरूम की ओर चल पड़ी. ( मिडिल क्लास फैमिली वाले बड़े जुगाड़ू होते है,अपने छोटे से घर के नीचे के छोटे से एरिया को बढा करने की जुगाड़ में अक्सर बाथरूम छत पर बनवा देते है)
.....उधेर मम्मी रोज़ की तरह अपना ज्ञान वर्धक बातें अंजू दीदी को सुना रही थी....रोज की उनकी बक बक....मगर वो कितना भी अंजू दीदी पर चिल्लाति दीदी को उनकी बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता.........

जैसे ही मैं छत पर पहुची तो अपने बाथरूम के दरवाज़े के पास सामने से मुझे सुनील भैया निकलते हुए नजर आये...... मैं उसे देखकर तुरंत बाथरूम में घुस गयी.......सुनील भैया का मूह देखने लायक था.....मुझे तो एक बार उनके चेहरे को देखकर उन पर बड़ी हँसी आई मगर मुझे और लेट नहीं होना था इस लिए मैं जल्दी से फ्रेश होने लगी... खैर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आई तो वो फ़ौरन बाथरूम में घुस गया.....शकल उनकी देखने लायक थी....... उनके चेहरे पर डर अब भी था......मैं उन्हे हल्की सी मुस्की देते हुए नीचे चल पड़ी..

कमरे में जाकर मैने एक नीले रंग का सूट पहना और नीचे वाइट कलर की लॅयागी......जो मेरे बदन से अब पूरी चिपकी हुई थी......उन कपड़ों में मेरी फिगर का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता था..ज़्यादातर मैं सूट में ही रहती थी....मैने अपने बाल सवरे जो इस वक़्त पूरे गीले थे नहाने की वजह से.......फिर आँखों पर हल्का सा काजल लगाया और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......थोड़ा मेकप और फाइनल टच देकर मैं कमरे से बाहर निकली और जाकर सीधे मम्मी और अंजू दी के पास बैठ गयी और नाश्ता आने का इंतेज़ार करने लगी.......

अंजू दीदी, मम्मी चाय की चुस्की लेते हुए बतिया रहे थे, मम्मी ने पोहा और हलवा का नास्ता देते हुए बोली तुम दोनों के जब तक स्कूल की छुट्टियां है, तब तक दुकान थोड़ी जल्दी खोल लिया करो सुबह सुबह ही हमारी किराने की दुकान पर ज्यादा ग्राहक आते हैं, सुनील तो अब sales man बन गया है, और आसपास के गाँव में सेल करने के लिए सुबह जल्दी जाया करेगा। तुम दोनों अपने अपने टाइम टेबल बना लो??? सुबह से दोपहर तक अंजू और दोपहर से शाम तक रेखा बैठ जायेगी।

सुबह दुकान खोलने की बात सुनकर अंजू दीदी एकदम से उठ पड़ी!! मम्मी बोली क्या हो गया छोरी ऐसे क्यो खड़ी हो गयी????
अंजू दीदी दुकान खोलने जा रही हू और सीधी छत पर लैट्रिन में घुस गयी।

मम्मी गुस्से में चिल्लाते हुए बोली अरे कर्मजली तेरे से बाहर वाली दुकान खोलने की बोली है ना की सलवार वाली......
मुझे ये सब देखकर बड़ी जोर से हसी आ गयी। हाहा हाहा हाहा हाहा

मुझे हस्ती हुई देख मम्मी मुझ पर भड़क गयी.... तू क्या दांत दिखा रही है तू ही दुकान खोल ले......
मै बोली मै खोलुंगी और दीदी की भी कोई जरूरत नही है, मै पूरे दिन अकेली बैठ सकती हू।
( अरुण से मुलाकात की हसरत में मैने अपनी डबल ड्यूटी की बात उतावले पन में आकर बोली)
( मै मन ही मन सोच रही थी ऐसा क्या हो गया इसे रात में कल दिन में अरुण को फँसाने के चक्कर में मुझसे दुकान पर बैठने के लिए खुद ही बोल रही थी)


ठीक है रेखा तो जा फिर अब नास्ता हो गया तेरा, दुकान खोल ले, अंजू घर के काम करेगी मेरे साथ। मै दुकान खोल कर, बैठ गयी ग्राहक के इंतजार में!
नही अपने !!! अरुण !!! के इंतजार में।

((साल 2000 ये वो दौर चल रहा था, जिसमें 80 और 90 के दशक में जन्मे प्रेमी प्रेमिका की मोहब्बत करने का मजा खतम होने की कगार पर था। चिठिया, खत, प्रेम पत्र, लिखने वालो की कलम आखिरी साँसे भर रही थी। ग्रीटिंग कार्ड्स, जो त्योहारो के मौसम में अक्सर बधाई देने के लिए बाजारों में रंग बिरंगे रंगो में लटके हुए बिकने लिए बेचैन रहते थे। उनका आखिरी समय चल रहा था,!!मोबाइल फोन मार्केट में आने की खबर सुनायी देती, दूसरो का पता नही पर हमारे घर में मोबाइल फोन नही था। जब भी पापा से गुजरात बात करनी होती तो हम लोग पड़ोस की std दुकान पर जाकर बात कर लिया करते थे।))

मै अपनी दुकान पर सुबह से बैठी हुयी अपने अरुण को याद करते हुए गाना गुनगुनाते हुए
"" आखिर तुम्हे आना है, जरा देर लगेगी "" इंतजार कर रही थी।

दोपहर होने को आई पर अरुण नही आया।
आई तो मम्मी सिर्फ मम्मी की आवाज -- रेखा ओ रेखा चल आ छोरी खाना बन गया है, खाना खा ले। आती हू बस पांच मिनिट में ???

पांच मिनिट तक उदास मन से दुकान का शटर डाउन कर मै खाना खाने चली गई, खाना खाने का मन नही कर रहा था, पर मम्मी के डाइलोग खाने से अच्छा खाना, खाना है।

""लोगो को कहते सुना है, माँ के हाथ के बने खाने में जो स्वाद है, वो स्वाद कही नही मिलता। मुझे तो बस ये अनुभव हुआ है कि माँ के हाथ से बने खाने में स्वाद हो या ना हो पर मुझे खाते हुए माँ के डाइलोग सुनने में स्वाद हमेशा आता था "" हाहा हाहा हाहा

मै जल्दी जल्दी खाना खा कर वापस दुकान पर शटर ओपन कर फिर से अरुण का इंतजार करने लगी।
दस मिनिट बीत गये, अरुण तो नही आया पर मेरी हमदर्द, सखी, अर्चना देवी जी जरूर प्रकट हो गयी। रेखा कैसी है, क्यो उदास है, निराश है, आया नही अभी तक तेरा जो शक्स खास है??? शायरी मारते हुए अर्चना मुझसे हस्ती हुई बोली..... हाहा
नही आया यार, पता नही आयेगा भी कि नही, कही मुझसे झूठा वादा तो नही कर गया??? मै बड़े दुखी मन से अर्चना से बोली....

आयेगा, आयेगा जरूर आयेगा यार आस मत छोड़, उम्मीद मत छोड़, जब अपने सपनो के हीरो का इतनी सालों से इंतजार किया है और कुछ दिन सही, वैसे भी अब तो तुम उसे भरी भीड़ में पहचान सकती है।

हमें बातें करते हुए आधा घंटा बीत गया था, और अचानक से ऐसा लगा मुझे कोई आ रहा है, मेरे दिल की धड़कन की रफ्तार तेज होने लगी, और बीता हुआ कल आज फिर मेरे सामने खड़ा था, मेरा अरुण आ गया!!!!
पूरा दृश्य कल की तरह था, अरुण ने एक wills सिगरेट मांगी, तीन तीलियों को एक साथ जलाया, माचिस उछलकर दूसरे हाथ, उसके होंठों से निकलता हुआ धुँआ मेरे गालों को फिर से चूम रहा था। वो काउंटर के एक कोने खड़ा हो कर चोरी चोरी मुझे ही देख रहा था। मेरा हाल ही वैसा ही था, मै भी बार बार उसकी नजरो से अपनी नजरो के पेच लड़ा रही थी। उसकी एक सिगरेट खतम हो गयी थी, वो कुछ सोच रहा था, कुछ कहना चाहता था, हिम्मत नही कर पा रहा था,। फिर से उसने दूसरी सिगरेट मांगी;
फिर सिगरेट पीते हुए मेरी तरफ देखता और नजर फेर लेता।

एक सिगरेट खतम होती तो दूसरी पीने लगता, मै सोचने लगी साला इतनी सिगरेट पियेगा तो गांड में से धुँआ निकालने लगेगा, मुझे गुस्सा आने लगा था, कुछ तो बोल! !


!!!! कोई भी लड़की दिल में कितना भी प्यार भी हो पर अपनी तरफ से पहल नही करेगी, इसी मोहब्बत ए इजहार ना होने की वजह से ना जाने कितनी प्रेम कहानिया शुरु नही हो पाई, ऐसा नहीं लड़की इजहार करने से डरती है, वो डरती नहीं है, वो कर सकती है, लेकिन लड़की अगर इजहार करेगी तो लड़के उसकी कदर नही करते उसके चरित्र पर शक करते है, इसे बड़ी खुजली है खुद ही सामने से लाइन दे रही है, ""छिनाल"" है जैसे -- शादी की सुहाग रात पर अगर लड़की पहल कर दे और पूरी तरह से खुल कर मजे लेने लगे तो लड़का तुरंत सोचने लगता है, ये चुदवा चुकी है, बड़ा अनुभव है!!!


मेरी भी मजबूरी थी जब वो लड़का होकर बात शुरु नही कर सकता तो मै तो लड़की हू। शर्म ही मेरी इज्जत है, मेरी खामोशी ही मेरी चरित्रवान होने का प्रमाण है।
आज फिर अर्चना ने एक सच्ची सहेली होने का रिश्ता निभाते हुए एक चाल चलते हुए मुझसे अरुण की तरफ इशारा करते हुए बोली रेखा इन्हे कुर्सी दे दो बैठने के लिए, काफी देर से खड़े हुए है। जब तक मै पानी लेकर आती हू।
अर्चना की ये चाल तो मेरे लिए संजीवनी बूटी की तरह थी, मैने अरुण से कहा ये कुर्सी ले लीजिये!!!


वो घबराते हुए नही नही इसकी कोई जरूरत नही है, और दुकान के पीछे वाले दरवाजे की तरफ देखते हुए बोला मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूं!!!
मुझे फिर से लगा मेरी मन की मुराद अब पूरी होने वाली है और मैने शर्माती हुए अपनी मुंडी हिलाते हुए बोलिये????


""मन्ने तैर ती जब से देखा हने, मैं खुद न भूल गया सु, के तू मारे बालका की माँ बनेगी"""


ये सुनकर तो मेरी हँसी छूट गयी और मै जोर से हँसी!!! हाहा हाहा हाहा!


((हमारे देश में सबसे कम प्रेम कहानिया हरियाणा में बनती है, उसकी दो वजह एक ओनर् किलिंग दूसरी यही!!!, जी बिल्कुल सच बोल रही हूँ मै हम लोग जब सीधा सवाल भी टेढ़ी अदा से पूछते है, तो इश्के इजहार करना ही सबसे टेढ़ा काम है, शायद ऐसे ही इश्के इजहार के किस्से सुना सुना कर हमारे हरियाणा के कवि बहुत वाह वाह लूट रहे है))


मेरी हंसी रुक नही रही थी, मै हस्ती हुई अरुण से बोली क्या??? फिर से बोलना मै समझी नही??? बेचारा इस बार तो वो पूरा डरा हुआ था और एक फिर से डरते डरते बोला.........
""मन्ने तैर ती जब से देखा हने, मैं खुद न भूल गया सु, के तू मारे बालका की माँ बनेगी"""


मै फिर से हँस पड़ी हाहाहा हाहाहा....
(मै आप सभी पढ़ने वालो को बता नही सकती मुझे अपना लाइफ का पहला किसी लड़के का प्यार भरा प्रोपोजल ऐसे लिखते हुए कितनी हंसी आ रही है)

अरुण मुझे हस्ता हुआ देख शर्म से पानी पानी हो रहा था। मै उसको थोड़ी हँसी रोकते हुए बोली......
""तू घना बावला से, हरियाणा में यू लव स्व मत कर कूट के जाओगे""


हमारे बीच के इस हँसी भरे इश्के इजहार के
खूबसूरत लम्हे को रोकने के लिए अर्चना देवी जी फिर से प्रकट हो गयी। अर्चना को देखकर अरुण सकपका गया और दुकान के काउंटर से थोड़ा दूर खड़ा हो गया, अर्चना मेरी तरफ आँखो से इशारे में बोली क्या हुआ???? मैने भी उसे आँखों ही आँखों में बोला कुछ नही!!!
करीब पांच मिनिट बाद अरुण ने अपनी जेब में से एक पचास का नोट निकाल कर मुझे बड़ी अजीब इशारे के साथ दिखाते हुए जैसे कुछ खास हो उस पचास के नोट में काउंटर पर रखकर बड़ी फुर्ती में काउंटर से अपनी बुलेट की चाबी उठा कर गाड़ी स्टार्ट कर चला गया।


मै बस उसे जाते हुए देखती रही, जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नही हो गया। मै एक बार फिर से बुत बनी खड़ी थी। तभी पीछे से अर्चना आई और उसने मुझे मेरे नितंबो पर एक चपत लगाते हुए बोली क्या हुआ रेखा रानी??? शुरू हुयी कहानी??? कुछ बात हुयी, क्या कहा उसने, क्या किया तुमने??? मेरे चेहरे पर एक जंग जीतने वाली खुशी थी, मैने कहा अर्चना बात तो कुछ नही हुयी। मुझे वो ये पचास का नोट देकर गया है।


अर्चना चौकते हुए बोली पचास का नोट इसका क्या मतलब हुआ, उसने सिगरेट कितने रुपए की ली थी??? मैने कहा शायद चालीस मुझे याद नही और गिनी भी नही!! अर्चना बोली चल चालीस की थी तो दस तो वापस ले जाता??? मैने कहा जमा कर गया होगा कल आने के लिए बहाना मिल जायेगा उसे अगर मै दुकान पर नही मिली तो जो भी यहाँ बैठेगा उससे बोल देगा मुझे बुला दो मेरे पास उसके दस रुपए जमा है!!!
अर्चना बोली लोंडा स्मार्ट है..... Hmmm


पर जैसे ही मैने उस नोट को खोल कर देखा तो उसमे एक चिट्ठी थी....मेरी और अर्चना की ख़ुशी से एक साथ चीख निकली.....
ओ ओ ओ
मै और अर्चना खुशी से एक दूसरे से लिपट गई, हमारे स्तन एक दूसरे के जिस्म में समा रहे थे, हालांकि अर्चना के स्तन मेरे से छोटे से है पर मेरी तरह ही अभी टाइट और कसे हुए थे। राह चलते लोग मुझे और अर्चना को इस आलिंगन बद्ध अवस्था में खड़े हुए देख शायद हमें लेस्बियन समझे, जो सरासर गलत है। तभी अर्चना बोली रेखा अब हम खड़ी क्यो है वाबरी बैठ नीचे जल्दी खोल चिठी और पढ़!!!! मैने चिट्ठी खोली तो मेरे चेहरे पर एक सूरज की पहली किरण जैसी पानी चमकती है वैसी चमक आ गयी थी। ये मेरी जिंदिगी का पहला कुँवारा प्रेम पत्र था। अर्चना बोली ये तो हिंदी में है।

मुझे हँसी आ गयी हाहाहा हाहा......... ऐसे हंस क्यों रही है ऐसा क्या बोल दिया मैने अर्चना चिढ़ते हुए बोली!
मै कुछ नही यार ये अच्छा हुआ इसमें हिंदी में लिखा है उसने, क्योकि हरियाणावि मै लिखा कुछ होता और समझ कुछ आता... चल जल्दी कर पढ़ ना.......
उसमें लिखा था ... .... !

"सुनों ना मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ जो मैने किसी से नही कही। जब मैने तुम्हें पहली बार देखा तब मेरे दिल ने कहा की मै तुमको बार-बार देखूं, तुम से बहुत सारी बातें करूं, तुम से मुलाकात करूँ मगर तुमसे कहने की मुझमे कभी हिम्मत ही नही थी, की मै अपने दिल की बात तुम्हें पास आकर बता सकूं इसलिए अपने दिल की बात बताने के लिए यह चिठ्ठी लिखी हैं।
अब तुम ही बताओ मै क्या करूँ रात को नींद नही आती, दिन को यह दिल तुम्हारे सिवा कही लगता ही नही, रात-दिन बस एक ही काम है मेरा सिर्फ तुम और तुम्हारा ख्याल। यहाँ तक की मै जब भी किसी लड़की को देखता हूँ तो मुझे तुम ही तुम नजर आती हो। मुझे तुम्हारे सिवा और कोई नज़र ही नही आता। जब मुझसे रहा नही गया तो मैने अपने दिल के कागज पर मुहब्बत की कालम से अपने दिल का सारा हाल लिख डाला।"
(पेज पलटिये.....).

ये (पेज पलटिये.....). पढ़कर मेरी और अर्चना की जोर से हँसी निकल गयी....
हाहा हाहा हाहा हाहा हाहा
साला ऐसा लगा कोई exam पेपर पढ रहे थे हम..........

हमने पेज पलट कर पढ़ना शुरु किया.....
अब फिर से उसने अपनी जाट बुद्धि लगा दी थी!!
""" अगर तुम भी मुझे पसंद करती हो, चाहती हो, और हमारे होने वाले बच्चे तुम्हे मम्मी बोले तो आज शाम पांच से छे के बीच इस नंबर पर फोन कर बता देना..... मै तुम्हारे फोन का इंतजार करूँगा """"
तुम्हारा अरुण!!!!!

मै और अर्चना एक दूसरे की शकल देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थे.... हमारी आवाज बंद थी दुकान में चरमारते हुए चल रहे पंखे की आवाज, सड़क पर निकल रही गाड़ियों की आवाज माहौल को संगीत मय बना रही थी!
थोड़ी देर की खामोशी के बाद एक लंबी सांस खीचते हुए अर्चना बोली अब बोल रेखा रानी शुरु करना चाहेगी अपनी
प्रेम कहानी, देगी उसे प्यार की निशानी, बनेगी उसके होने वाले बच्चे की मम्मी, बोल ना अब इतना सोच क्यो रही है, साढ़े चार बजे है, अभी????

मै खुश थी, और अच्छा भी लग रहा था, पता नही क्यो कुछ समझ नही आ रहा था??? अजीब सा लग रहा था!!! प्रेम कहानी शुरु तो करना थी, पर इतनी जल्दी फैसला लेने की हिम्मत नही हो रही थी!!!
वैसा वो पागल मुझे 5-6 का टाइम दे गया था.... ये दिल, प्यार, इकरार, इजहार का मामला था, कोई मेले का जादू वाला शो नही कि एक घण्टे बाद खतम!!

(शायद फिल्म में जैसे प्यार का इजहार होता है, वैसा नही था, हीरो के हाथ में गुलाब का फूल लेकर हीरोइन को अपने ईश्क का इजहार करना, हीरोइन का शर्मा जाना, )
मुझे ज्यादा सोचते हुए देख अर्चना बोली रेखा लगता तेरा मन बदल गया है क्या????
नही यार वो क्या है सब कुछ इतनी जल्दी और आसानी से हो रहा है ना इसलिए कुछ अजीब सा लग रहा मुझे!!!

अर्चना मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली रेखा फिल्म की दुनिया से बाहर निकल और
एक काम कर अंदर से मम्मी को बोल तू मेरे साथ जा रही है, वो अंजू दी दुकान पर बैठने के लिए बोल दे। मै बोली ठीक है और अंदर चली गयी।

मै--- मुझे अर्चना के साथ थोड़ा बाहर का काम है तुम या अंजू दीदी में से कोई एक दुकान पर बैठ जाओ!!!
मम्मी बोली रुक आधा घंटा बाद चली जाना अंजू अभी मेरे बालों में मेहंदी लगा रही है।

घडी में पांच में पांच कम थे, तभी एक ग्राहक आ गया और सिगरेट पीने लगा, वो गया दूसरा आया, ग्राहकों की तो लाइन लग गयी, समय निकलता जा रहा था, ग्राहक आते जा रहे थे, मम्मी और दीदी अब तक नही आई थी।
( मुझ जैसे छोटे दुकानदारो का यही प्रोबलम् है जब किसी जरूरी काम से बाहर जाना होता है तो ग्राहको की लाइन लग जाती है, ऊपर से सब सिगरेट वाले पहले पैसे नही देते है।)

देखते ही देखते 6 में 6 मिनिट कम रह गये, मै अर्चना से बोली बस चल अब गुल्लक में से बीस रुपए लिए और मम्मी को आवाज दी मै जा रही हू!!!!!

और पड़ोस वाली std वाले की दुकान पर पहुँच गयी, उसके पास एक ही फोन था, उस पर भी कोई चूतिया बात कर रहा था। और एक आदमी लाइन में लगा था मै उस std वाले से बोली मुझे urjent काल करनी है, वो std वाले मेरे पड़ोसी थे मुझे जानते थे तो उन्होंने उस आदमी से पहले मुझे काल करने को फोन दे दिया।

मैने डरते डरते अरुण का फोन नम्बर डायल किया सामने से आवाज आई हैलो......
मै भी पागल हरियाणा की जट्टी मुझे भी प्यार भरी बातें लिखना आती है बोलना नही....... Hmmmm

मेरे मुह से बस सीधी एक ही लाइन निकली मै तुम्हे पसंद करती हूँ, तुम्हारे होने वाले बच्चो की मम्मी बनने के लिए तैयार हू।
सामने से बड़ा विचित्र सा सवाल आया कौन बोल रहा है?????
मैं बोली तुम्हारी रेखा!!!!

हाहा हाहा हाहा सामने से हसी के साथ आवाज आई sorry भाभी मै अरुण नही उसका दोस्त हू वो अभी ही नीचे गया है, मै दस मिनिट बाद आपकी उसकी बात कराता हूँ। मै बोली मेरा नम्बर है आपके पास है??? वो बोला मेरे फोन में caller id लगा हुआ है, इसी नम्बर पर काल back करता हूँ। मै बोली ठीक है.......

मै अर्चना के पास जाकर खड़ी हो गयी, वो बोली क्या हुआ???? अरुण से बात हुयी???
मै बोली नही ना!! उसके दोस्त से हुयी है वो मुझे भाभी बोल रहा था......
अर्चना हँस पड़ी इन लड़को का यही प्रोबलम् है लड़की पटे या ना पटे पर अपने दोस्तो की भाभी पहले बना देते है.....
हाहा हाहा

फिर अब क्या करना है???? अर्चना ने फिर पूछा???
मै बोली दस मिनिट इंतजार करते है और क्या!!! मैने और अर्चना ने 15 मिनिट तक इंतजार किया..... शाम अपना रूप बदलकर रात बनने लगी थी घडी में सात बजने वाले थे....... अर्चना बोली मै तो अब जाती हूँ...... मै बोली मै भी चलती हू.....
हम दोनों अपने अपने घर चल दिये। रास्ते में मुझे पानी पूरी वाला तो दस रुपए की पानी पूरी थैलि में पैक करा कर घर पहुँच गयी।

दुकान पर मम्मी और अंजू दीदी बैठी थी, मै भी निराश, उदास होकर उनके साथ ही दुकान पर बैठ कर हम तीनो पानी पूरी खाने लगे। करीब सात आठ मिनिट बाद आखिरी पानी पूरी मै मुह में रखने वाली थी कि std वाले की दुकान से आठ दस साल का लड़का आया, वो मुझे जानता था। मुझसे मम्मी और अंजू दीदी के सामने ही बोला.......
"""रेखा दीदी तुम्हारे होने वाले बच्चे का पापा फोन आया है, urjent बुलाया है। """'
ये सुनकर मेरे हाथ की पानी पूरी झटके से फूट गयी। मेरा मुह खुला रह गया.......

मेरी ओर मम्मी और अंजू दीदी मुझे खा जाने वाली नजरो से देख रहे थे.....

तभी किसी शेरनी की गर्जना या दहाड़ जैसी मम्मी की आवाज मेरे कानों में आई.......

"""हा ए भाई रोई रण्डी, रु के बरन की तन्ने भी यार भान लगे"""

"""ढंग से नाडा बाँधना आया कोनी खोलन न पहले तैयार होगी"""

"""इतनी आग लग री थी तेरे भोसड़े में तो मुह ने फूक देती"""
:applause: उफ्फ्फ रेखा जी, 90s का वो दौर, कसम से क्या ही लिखती है आप जलन होने लगी है आपसे. कैसे शुक्रिया करे आपका
 

Rekha rani

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:applause: उफ्फ्फ रेखा जी, 90s का वो दौर, कसम से क्या ही लिखती है आप जलन होने लगी है आपसे. कैसे शुक्रिया करे आपका
Thanks बस कोसिस जारी है
 

Studxyz

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हा हा बहुत खूब प्यार पहले का इज़हार ही बच्चे पैदा करने से हुआ है बहुत बढ़िया फिर तो आगे चल कर चुदायी भी बहुत घनघोर ही होगी :laugh::laugh:

एक ज़बरदस्त अलग ही पैमाने पर लिखी गई मनोरंजक कहानी है
 
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Rekha rani

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हा हा बहुत खूब प्यार पहले का इज़हार ही बच्चे पैदा करने से हुआ है बहुत बढ़िया फिर तो आगे चल कर चुदायी भी बहुत घनघोर ही होगी :laugh::laugh:

एक ज़बरदस्त अलग ही पैमाने पर लिखी गई मनोरंजक कहानी है
धन्यवाद
 

Lib am

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अध्याय -- 5 -----

उस आग को शांत करने के लिए मेरे पास घर में एक ऐसा कोना नही था कि लंड जैसे दिख रहे बैगन को अपनी कुंवारी प्यासी चूत में डालकर आत्म मंथन (हस्थमैथुन) करके प्यास बुझा सकूँ। इसी उधेड़बुन मे मेरी आँख लग गयी।

अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो बीते दिन की बात बीती हुई रात की तरह भूल गयी। दिल में अब सिर्फ अरुण से मुलाकात की हसरत है। अभी जवानी मुझ पर पूरे शबाब पर है.......मेरे दिल में भी आज वही अरमान है जो बाकी लड़कियों के होते है इस उमर में......अरुण......क्या वो मुझे प्यार करेगा.....कब मिलेगा मुझसे....... कुछ तो ख़ास है उसमे.......क्या वो मेरे जज्बातो को समझेगा........ ये सारे सवाल मुझे पल पल परेशान कर रहे थे। कब मिलेगा अरुण कब मेरा इंतेज़ार ख़तम होगा........मुझे यकीन था कि अरुण मुझे ज़रूर मिलेगा.....मगर कब मिलेगा इसकी ना तो कोई तारीख फिक्स थी और ना ही कोई जगह......

तभी मेरी मम्मी की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मैं एक बार फिर से अपने सपनों की उस हसीन दुनिया से बाहर निकल गयी.......ये मम्मी का रोज़ का काम था....ख्वमोखवाह वो मेरे सपनों की दुश्मन बनती थी....... और फिर उठकर मैं फ्रेश होने बाथरूम की ओर चल पड़ी. ( मिडिल क्लास फैमिली वाले बड़े जुगाड़ू होते है,अपने छोटे से घर के नीचे के छोटे से एरिया को बढा करने की जुगाड़ में अक्सर बाथरूम छत पर बनवा देते है)
.....उधेर मम्मी रोज़ की तरह अपना ज्ञान वर्धक बातें अंजू दीदी को सुना रही थी....रोज की उनकी बक बक....मगर वो कितना भी अंजू दीदी पर चिल्लाति दीदी को उनकी बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता.........

जैसे ही मैं छत पर पहुची तो अपने बाथरूम के दरवाज़े के पास सामने से मुझे सुनील भैया निकलते हुए नजर आये...... मैं उसे देखकर तुरंत बाथरूम में घुस गयी.......सुनील भैया का मूह देखने लायक था.....मुझे तो एक बार उनके चेहरे को देखकर उन पर बड़ी हँसी आई मगर मुझे और लेट नहीं होना था इस लिए मैं जल्दी से फ्रेश होने लगी... खैर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आई तो वो फ़ौरन बाथरूम में घुस गया.....शकल उनकी देखने लायक थी....... उनके चेहरे पर डर अब भी था......मैं उन्हे हल्की सी मुस्की देते हुए नीचे चल पड़ी..

कमरे में जाकर मैने एक नीले रंग का सूट पहना और नीचे वाइट कलर की लॅयागी......जो मेरे बदन से अब पूरी चिपकी हुई थी......उन कपड़ों में मेरी फिगर का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता था..ज़्यादातर मैं सूट में ही रहती थी....मैने अपने बाल सवरे जो इस वक़्त पूरे गीले थे नहाने की वजह से.......फिर आँखों पर हल्का सा काजल लगाया और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......थोड़ा मेकप और फाइनल टच देकर मैं कमरे से बाहर निकली और जाकर सीधे मम्मी और अंजू दी के पास बैठ गयी और नाश्ता आने का इंतेज़ार करने लगी.......

अंजू दीदी, मम्मी चाय की चुस्की लेते हुए बतिया रहे थे, मम्मी ने पोहा और हलवा का नास्ता देते हुए बोली तुम दोनों के जब तक स्कूल की छुट्टियां है, तब तक दुकान थोड़ी जल्दी खोल लिया करो सुबह सुबह ही हमारी किराने की दुकान पर ज्यादा ग्राहक आते हैं, सुनील तो अब sales man बन गया है, और आसपास के गाँव में सेल करने के लिए सुबह जल्दी जाया करेगा। तुम दोनों अपने अपने टाइम टेबल बना लो??? सुबह से दोपहर तक अंजू और दोपहर से शाम तक रेखा बैठ जायेगी।

सुबह दुकान खोलने की बात सुनकर अंजू दीदी एकदम से उठ पड़ी!! मम्मी बोली क्या हो गया छोरी ऐसे क्यो खड़ी हो गयी????
अंजू दीदी दुकान खोलने जा रही हू और सीधी छत पर लैट्रिन में घुस गयी।

मम्मी गुस्से में चिल्लाते हुए बोली अरे कर्मजली तेरे से बाहर वाली दुकान खोलने की बोली है ना की सलवार वाली......
मुझे ये सब देखकर बड़ी जोर से हसी आ गयी। हाहा हाहा हाहा हाहा

मुझे हस्ती हुई देख मम्मी मुझ पर भड़क गयी.... तू क्या दांत दिखा रही है तू ही दुकान खोल ले......
मै बोली मै खोलुंगी और दीदी की भी कोई जरूरत नही है, मै पूरे दिन अकेली बैठ सकती हू।
( अरुण से मुलाकात की हसरत में मैने अपनी डबल ड्यूटी की बात उतावले पन में आकर बोली)
( मै मन ही मन सोच रही थी ऐसा क्या हो गया इसे रात में कल दिन में अरुण को फँसाने के चक्कर में मुझसे दुकान पर बैठने के लिए खुद ही बोल रही थी)


ठीक है रेखा तो जा फिर अब नास्ता हो गया तेरा, दुकान खोल ले, अंजू घर के काम करेगी मेरे साथ। मै दुकान खोल कर, बैठ गयी ग्राहक के इंतजार में!
नही अपने !!! अरुण !!! के इंतजार में।

((साल 2000 ये वो दौर चल रहा था, जिसमें 80 और 90 के दशक में जन्मे प्रेमी प्रेमिका की मोहब्बत करने का मजा खतम होने की कगार पर था। चिठिया, खत, प्रेम पत्र, लिखने वालो की कलम आखिरी साँसे भर रही थी। ग्रीटिंग कार्ड्स, जो त्योहारो के मौसम में अक्सर बधाई देने के लिए बाजारों में रंग बिरंगे रंगो में लटके हुए बिकने लिए बेचैन रहते थे। उनका आखिरी समय चल रहा था,!!मोबाइल फोन मार्केट में आने की खबर सुनायी देती, दूसरो का पता नही पर हमारे घर में मोबाइल फोन नही था। जब भी पापा से गुजरात बात करनी होती तो हम लोग पड़ोस की std दुकान पर जाकर बात कर लिया करते थे।))

मै अपनी दुकान पर सुबह से बैठी हुयी अपने अरुण को याद करते हुए गाना गुनगुनाते हुए
"" आखिर तुम्हे आना है, जरा देर लगेगी "" इंतजार कर रही थी।

दोपहर होने को आई पर अरुण नही आया।
आई तो मम्मी सिर्फ मम्मी की आवाज -- रेखा ओ रेखा चल आ छोरी खाना बन गया है, खाना खा ले। आती हू बस पांच मिनिट में ???

पांच मिनिट तक उदास मन से दुकान का शटर डाउन कर मै खाना खाने चली गई, खाना खाने का मन नही कर रहा था, पर मम्मी के डाइलोग खाने से अच्छा खाना, खाना है।

""लोगो को कहते सुना है, माँ के हाथ के बने खाने में जो स्वाद है, वो स्वाद कही नही मिलता। मुझे तो बस ये अनुभव हुआ है कि माँ के हाथ से बने खाने में स्वाद हो या ना हो पर मुझे खाते हुए माँ के डाइलोग सुनने में स्वाद हमेशा आता था "" हाहा हाहा हाहा

मै जल्दी जल्दी खाना खा कर वापस दुकान पर शटर ओपन कर फिर से अरुण का इंतजार करने लगी।
दस मिनिट बीत गये, अरुण तो नही आया पर मेरी हमदर्द, सखी, अर्चना देवी जी जरूर प्रकट हो गयी। रेखा कैसी है, क्यो उदास है, निराश है, आया नही अभी तक तेरा जो शक्स खास है??? शायरी मारते हुए अर्चना मुझसे हस्ती हुई बोली..... हाहा
नही आया यार, पता नही आयेगा भी कि नही, कही मुझसे झूठा वादा तो नही कर गया??? मै बड़े दुखी मन से अर्चना से बोली....

आयेगा, आयेगा जरूर आयेगा यार आस मत छोड़, उम्मीद मत छोड़, जब अपने सपनो के हीरो का इतनी सालों से इंतजार किया है और कुछ दिन सही, वैसे भी अब तो तुम उसे भरी भीड़ में पहचान सकती है।

हमें बातें करते हुए आधा घंटा बीत गया था, और अचानक से ऐसा लगा मुझे कोई आ रहा है, मेरे दिल की धड़कन की रफ्तार तेज होने लगी, और बीता हुआ कल आज फिर मेरे सामने खड़ा था, मेरा अरुण आ गया!!!!
पूरा दृश्य कल की तरह था, अरुण ने एक wills सिगरेट मांगी, तीन तीलियों को एक साथ जलाया, माचिस उछलकर दूसरे हाथ, उसके होंठों से निकलता हुआ धुँआ मेरे गालों को फिर से चूम रहा था। वो काउंटर के एक कोने खड़ा हो कर चोरी चोरी मुझे ही देख रहा था। मेरा हाल ही वैसा ही था, मै भी बार बार उसकी नजरो से अपनी नजरो के पेच लड़ा रही थी। उसकी एक सिगरेट खतम हो गयी थी, वो कुछ सोच रहा था, कुछ कहना चाहता था, हिम्मत नही कर पा रहा था,। फिर से उसने दूसरी सिगरेट मांगी;
फिर सिगरेट पीते हुए मेरी तरफ देखता और नजर फेर लेता।

एक सिगरेट खतम होती तो दूसरी पीने लगता, मै सोचने लगी साला इतनी सिगरेट पियेगा तो गांड में से धुँआ निकालने लगेगा, मुझे गुस्सा आने लगा था, कुछ तो बोल! !


!!!! कोई भी लड़की दिल में कितना भी प्यार भी हो पर अपनी तरफ से पहल नही करेगी, इसी मोहब्बत ए इजहार ना होने की वजह से ना जाने कितनी प्रेम कहानिया शुरु नही हो पाई, ऐसा नहीं लड़की इजहार करने से डरती है, वो डरती नहीं है, वो कर सकती है, लेकिन लड़की अगर इजहार करेगी तो लड़के उसकी कदर नही करते उसके चरित्र पर शक करते है, इसे बड़ी खुजली है खुद ही सामने से लाइन दे रही है, ""छिनाल"" है जैसे -- शादी की सुहाग रात पर अगर लड़की पहल कर दे और पूरी तरह से खुल कर मजे लेने लगे तो लड़का तुरंत सोचने लगता है, ये चुदवा चुकी है, बड़ा अनुभव है!!!


मेरी भी मजबूरी थी जब वो लड़का होकर बात शुरु नही कर सकता तो मै तो लड़की हू। शर्म ही मेरी इज्जत है, मेरी खामोशी ही मेरी चरित्रवान होने का प्रमाण है।
आज फिर अर्चना ने एक सच्ची सहेली होने का रिश्ता निभाते हुए एक चाल चलते हुए मुझसे अरुण की तरफ इशारा करते हुए बोली रेखा इन्हे कुर्सी दे दो बैठने के लिए, काफी देर से खड़े हुए है। जब तक मै पानी लेकर आती हू।
अर्चना की ये चाल तो मेरे लिए संजीवनी बूटी की तरह थी, मैने अरुण से कहा ये कुर्सी ले लीजिये!!!


वो घबराते हुए नही नही इसकी कोई जरूरत नही है, और दुकान के पीछे वाले दरवाजे की तरफ देखते हुए बोला मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूं!!!
मुझे फिर से लगा मेरी मन की मुराद अब पूरी होने वाली है और मैने शर्माती हुए अपनी मुंडी हिलाते हुए बोलिये????


""मन्ने तैर ती जब से देखा हने, मैं खुद न भूल गया सु, के तू मारे बालका की माँ बनेगी"""


ये सुनकर तो मेरी हँसी छूट गयी और मै जोर से हँसी!!! हाहा हाहा हाहा!


((हमारे देश में सबसे कम प्रेम कहानिया हरियाणा में बनती है, उसकी दो वजह एक ओनर् किलिंग दूसरी यही!!!, जी बिल्कुल सच बोल रही हूँ मै हम लोग जब सीधा सवाल भी टेढ़ी अदा से पूछते है, तो इश्के इजहार करना ही सबसे टेढ़ा काम है, शायद ऐसे ही इश्के इजहार के किस्से सुना सुना कर हमारे हरियाणा के कवि बहुत वाह वाह लूट रहे है))


मेरी हंसी रुक नही रही थी, मै हस्ती हुई अरुण से बोली क्या??? फिर से बोलना मै समझी नही??? बेचारा इस बार तो वो पूरा डरा हुआ था और एक फिर से डरते डरते बोला.........
""मन्ने तैर ती जब से देखा हने, मैं खुद न भूल गया सु, के तू मारे बालका की माँ बनेगी"""


मै फिर से हँस पड़ी हाहाहा हाहाहा....
(मै आप सभी पढ़ने वालो को बता नही सकती मुझे अपना लाइफ का पहला किसी लड़के का प्यार भरा प्रोपोजल ऐसे लिखते हुए कितनी हंसी आ रही है)

अरुण मुझे हस्ता हुआ देख शर्म से पानी पानी हो रहा था। मै उसको थोड़ी हँसी रोकते हुए बोली......
""तू घना बावला से, हरियाणा में यू लव स्व मत कर कूट के जाओगे""


हमारे बीच के इस हँसी भरे इश्के इजहार के
खूबसूरत लम्हे को रोकने के लिए अर्चना देवी जी फिर से प्रकट हो गयी। अर्चना को देखकर अरुण सकपका गया और दुकान के काउंटर से थोड़ा दूर खड़ा हो गया, अर्चना मेरी तरफ आँखो से इशारे में बोली क्या हुआ???? मैने भी उसे आँखों ही आँखों में बोला कुछ नही!!!
करीब पांच मिनिट बाद अरुण ने अपनी जेब में से एक पचास का नोट निकाल कर मुझे बड़ी अजीब इशारे के साथ दिखाते हुए जैसे कुछ खास हो उस पचास के नोट में काउंटर पर रखकर बड़ी फुर्ती में काउंटर से अपनी बुलेट की चाबी उठा कर गाड़ी स्टार्ट कर चला गया।


मै बस उसे जाते हुए देखती रही, जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नही हो गया। मै एक बार फिर से बुत बनी खड़ी थी। तभी पीछे से अर्चना आई और उसने मुझे मेरे नितंबो पर एक चपत लगाते हुए बोली क्या हुआ रेखा रानी??? शुरू हुयी कहानी??? कुछ बात हुयी, क्या कहा उसने, क्या किया तुमने??? मेरे चेहरे पर एक जंग जीतने वाली खुशी थी, मैने कहा अर्चना बात तो कुछ नही हुयी। मुझे वो ये पचास का नोट देकर गया है।


अर्चना चौकते हुए बोली पचास का नोट इसका क्या मतलब हुआ, उसने सिगरेट कितने रुपए की ली थी??? मैने कहा शायद चालीस मुझे याद नही और गिनी भी नही!! अर्चना बोली चल चालीस की थी तो दस तो वापस ले जाता??? मैने कहा जमा कर गया होगा कल आने के लिए बहाना मिल जायेगा उसे अगर मै दुकान पर नही मिली तो जो भी यहाँ बैठेगा उससे बोल देगा मुझे बुला दो मेरे पास उसके दस रुपए जमा है!!!
अर्चना बोली लोंडा स्मार्ट है..... Hmmm


पर जैसे ही मैने उस नोट को खोल कर देखा तो उसमे एक चिट्ठी थी....मेरी और अर्चना की ख़ुशी से एक साथ चीख निकली.....
ओ ओ ओ
मै और अर्चना खुशी से एक दूसरे से लिपट गई, हमारे स्तन एक दूसरे के जिस्म में समा रहे थे, हालांकि अर्चना के स्तन मेरे से छोटे से है पर मेरी तरह ही अभी टाइट और कसे हुए थे। राह चलते लोग मुझे और अर्चना को इस आलिंगन बद्ध अवस्था में खड़े हुए देख शायद हमें लेस्बियन समझे, जो सरासर गलत है। तभी अर्चना बोली रेखा अब हम खड़ी क्यो है वाबरी बैठ नीचे जल्दी खोल चिठी और पढ़!!!! मैने चिट्ठी खोली तो मेरे चेहरे पर एक सूरज की पहली किरण जैसी पानी चमकती है वैसी चमक आ गयी थी। ये मेरी जिंदिगी का पहला कुँवारा प्रेम पत्र था। अर्चना बोली ये तो हिंदी में है।

मुझे हँसी आ गयी हाहाहा हाहा......... ऐसे हंस क्यों रही है ऐसा क्या बोल दिया मैने अर्चना चिढ़ते हुए बोली!
मै कुछ नही यार ये अच्छा हुआ इसमें हिंदी में लिखा है उसने, क्योकि हरियाणावि मै लिखा कुछ होता और समझ कुछ आता... चल जल्दी कर पढ़ ना.......
उसमें लिखा था ... .... !

"सुनों ना मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ जो मैने किसी से नही कही। जब मैने तुम्हें पहली बार देखा तब मेरे दिल ने कहा की मै तुमको बार-बार देखूं, तुम से बहुत सारी बातें करूं, तुम से मुलाकात करूँ मगर तुमसे कहने की मुझमे कभी हिम्मत ही नही थी, की मै अपने दिल की बात तुम्हें पास आकर बता सकूं इसलिए अपने दिल की बात बताने के लिए यह चिठ्ठी लिखी हैं।
अब तुम ही बताओ मै क्या करूँ रात को नींद नही आती, दिन को यह दिल तुम्हारे सिवा कही लगता ही नही, रात-दिन बस एक ही काम है मेरा सिर्फ तुम और तुम्हारा ख्याल। यहाँ तक की मै जब भी किसी लड़की को देखता हूँ तो मुझे तुम ही तुम नजर आती हो। मुझे तुम्हारे सिवा और कोई नज़र ही नही आता। जब मुझसे रहा नही गया तो मैने अपने दिल के कागज पर मुहब्बत की कालम से अपने दिल का सारा हाल लिख डाला।"
(पेज पलटिये.....).

ये (पेज पलटिये.....). पढ़कर मेरी और अर्चना की जोर से हँसी निकल गयी....
हाहा हाहा हाहा हाहा हाहा
साला ऐसा लगा कोई exam पेपर पढ रहे थे हम..........

हमने पेज पलट कर पढ़ना शुरु किया.....
अब फिर से उसने अपनी जाट बुद्धि लगा दी थी!!
""" अगर तुम भी मुझे पसंद करती हो, चाहती हो, और हमारे होने वाले बच्चे तुम्हे मम्मी बोले तो आज शाम पांच से छे के बीच इस नंबर पर फोन कर बता देना..... मै तुम्हारे फोन का इंतजार करूँगा """"
तुम्हारा अरुण!!!!!

मै और अर्चना एक दूसरे की शकल देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थे.... हमारी आवाज बंद थी दुकान में चरमारते हुए चल रहे पंखे की आवाज, सड़क पर निकल रही गाड़ियों की आवाज माहौल को संगीत मय बना रही थी!
थोड़ी देर की खामोशी के बाद एक लंबी सांस खीचते हुए अर्चना बोली अब बोल रेखा रानी शुरु करना चाहेगी अपनी
प्रेम कहानी, देगी उसे प्यार की निशानी, बनेगी उसके होने वाले बच्चे की मम्मी, बोल ना अब इतना सोच क्यो रही है, साढ़े चार बजे है, अभी????

मै खुश थी, और अच्छा भी लग रहा था, पता नही क्यो कुछ समझ नही आ रहा था??? अजीब सा लग रहा था!!! प्रेम कहानी शुरु तो करना थी, पर इतनी जल्दी फैसला लेने की हिम्मत नही हो रही थी!!!
वैसा वो पागल मुझे 5-6 का टाइम दे गया था.... ये दिल, प्यार, इकरार, इजहार का मामला था, कोई मेले का जादू वाला शो नही कि एक घण्टे बाद खतम!!

(शायद फिल्म में जैसे प्यार का इजहार होता है, वैसा नही था, हीरो के हाथ में गुलाब का फूल लेकर हीरोइन को अपने ईश्क का इजहार करना, हीरोइन का शर्मा जाना, )
मुझे ज्यादा सोचते हुए देख अर्चना बोली रेखा लगता तेरा मन बदल गया है क्या????
नही यार वो क्या है सब कुछ इतनी जल्दी और आसानी से हो रहा है ना इसलिए कुछ अजीब सा लग रहा मुझे!!!

अर्चना मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली रेखा फिल्म की दुनिया से बाहर निकल और
एक काम कर अंदर से मम्मी को बोल तू मेरे साथ जा रही है, वो अंजू दी दुकान पर बैठने के लिए बोल दे। मै बोली ठीक है और अंदर चली गयी।

मै--- मुझे अर्चना के साथ थोड़ा बाहर का काम है तुम या अंजू दीदी में से कोई एक दुकान पर बैठ जाओ!!!
मम्मी बोली रुक आधा घंटा बाद चली जाना अंजू अभी मेरे बालों में मेहंदी लगा रही है।

घडी में पांच में पांच कम थे, तभी एक ग्राहक आ गया और सिगरेट पीने लगा, वो गया दूसरा आया, ग्राहकों की तो लाइन लग गयी, समय निकलता जा रहा था, ग्राहक आते जा रहे थे, मम्मी और दीदी अब तक नही आई थी।
( मुझ जैसे छोटे दुकानदारो का यही प्रोबलम् है जब किसी जरूरी काम से बाहर जाना होता है तो ग्राहको की लाइन लग जाती है, ऊपर से सब सिगरेट वाले पहले पैसे नही देते है।)

देखते ही देखते 6 में 6 मिनिट कम रह गये, मै अर्चना से बोली बस चल अब गुल्लक में से बीस रुपए लिए और मम्मी को आवाज दी मै जा रही हू!!!!!

और पड़ोस वाली std वाले की दुकान पर पहुँच गयी, उसके पास एक ही फोन था, उस पर भी कोई चूतिया बात कर रहा था। और एक आदमी लाइन में लगा था मै उस std वाले से बोली मुझे urjent काल करनी है, वो std वाले मेरे पड़ोसी थे मुझे जानते थे तो उन्होंने उस आदमी से पहले मुझे काल करने को फोन दे दिया।

मैने डरते डरते अरुण का फोन नम्बर डायल किया सामने से आवाज आई हैलो......
मै भी पागल हरियाणा की जट्टी मुझे भी प्यार भरी बातें लिखना आती है बोलना नही....... Hmmmm

मेरे मुह से बस सीधी एक ही लाइन निकली मै तुम्हे पसंद करती हूँ, तुम्हारे होने वाले बच्चो की मम्मी बनने के लिए तैयार हू।
सामने से बड़ा विचित्र सा सवाल आया कौन बोल रहा है?????
मैं बोली तुम्हारी रेखा!!!!

हाहा हाहा हाहा सामने से हसी के साथ आवाज आई sorry भाभी मै अरुण नही उसका दोस्त हू वो अभी ही नीचे गया है, मै दस मिनिट बाद आपकी उसकी बात कराता हूँ। मै बोली मेरा नम्बर है आपके पास है??? वो बोला मेरे फोन में caller id लगा हुआ है, इसी नम्बर पर काल back करता हूँ। मै बोली ठीक है.......

मै अर्चना के पास जाकर खड़ी हो गयी, वो बोली क्या हुआ???? अरुण से बात हुयी???
मै बोली नही ना!! उसके दोस्त से हुयी है वो मुझे भाभी बोल रहा था......
अर्चना हँस पड़ी इन लड़को का यही प्रोबलम् है लड़की पटे या ना पटे पर अपने दोस्तो की भाभी पहले बना देते है.....
हाहा हाहा

फिर अब क्या करना है???? अर्चना ने फिर पूछा???
मै बोली दस मिनिट इंतजार करते है और क्या!!! मैने और अर्चना ने 15 मिनिट तक इंतजार किया..... शाम अपना रूप बदलकर रात बनने लगी थी घडी में सात बजने वाले थे....... अर्चना बोली मै तो अब जाती हूँ...... मै बोली मै भी चलती हू.....
हम दोनों अपने अपने घर चल दिये। रास्ते में मुझे पानी पूरी वाला तो दस रुपए की पानी पूरी थैलि में पैक करा कर घर पहुँच गयी।

दुकान पर मम्मी और अंजू दीदी बैठी थी, मै भी निराश, उदास होकर उनके साथ ही दुकान पर बैठ कर हम तीनो पानी पूरी खाने लगे। करीब सात आठ मिनिट बाद आखिरी पानी पूरी मै मुह में रखने वाली थी कि std वाले की दुकान से आठ दस साल का लड़का आया, वो मुझे जानता था। मुझसे मम्मी और अंजू दीदी के सामने ही बोला.......
"""रेखा दीदी तुम्हारे होने वाले बच्चे का पापा फोन आया है, urjent बुलाया है। """'
ये सुनकर मेरे हाथ की पानी पूरी झटके से फूट गयी। मेरा मुह खुला रह गया.......

मेरी ओर मम्मी और अंजू दीदी मुझे खा जाने वाली नजरो से देख रहे थे.....

तभी किसी शेरनी की गर्जना या दहाड़ जैसी मम्मी की आवाज मेरे कानों में आई.......

"""हा ए भाई रोई रण्डी, रु के बरन की तन्ने भी यार भान लगे"""

"""ढंग से नाडा बाँधना आया कोनी खोलन न पहले तैयार होगी"""

"""इतनी आग लग री थी तेरे भोसड़े में तो मुह ने फूक देती"""
अल्हड़ उम्र का प्यार जहां होश से ज्यादा जोश से काम लेते है वो भी अक्ल पर पत्थर डाल कर। लग तो ऐसा रहा ही कि ये प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म ना हो जाए। मस्त अपडेट।
 

Rekha rani

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अल्हड़ उम्र का प्यार जहां होश से ज्यादा जोश से काम लेते है वो भी अक्ल पर पत्थर डाल कर। लग तो ऐसा रहा ही कि ये प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म ना हो जाए। मस्त अपडेट।
देखते है क्या रहता है,
 

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तभी किसी शेरनी की गर्जना या दहाड़ जैसी मम्मी की आवाज मेरे कानों में आई.......

"""हा ए भाई रोई रण्डी, रु के बरन की तन्ने भी यार भान लगे"""

"""ढंग से नाडा बाँधना आया कोनी खोलन न पहले तैयार होगी"""

"""इतनी आग लग री थी तेरे भोसड़े में तो मुह ने फूक देती"""

Kya baat hai, maza a gaya, mahare haryana aale.

Kyaa baat yaad dila di.

Ghani aag laaagri se to bhhooobhal me de le.
 

hypernova

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रेखारानीजी,
आपकी लेखन शैली अद्वित्य है, मन प्रफुल्लित हो जाता है पढ़ने पर। अश्लीलता नहीं है परंतु विषय के अनुसार कामुकता लाने के लिए आप four letter words (दुर्भाग्यवश हिंदी में four letter word को परिभाषित करने वाला कोई सटीक शब्द मेरे ज्ञान में नहीं है) का प्रयोग करने में भी आप झिझक नहीं रखती। कहानी को रोचक बनाने और कामुकता को लाने के लिए यह जरूरी है।
आशा करता हूँ कि आगे भी आप पाठकों को अपनी शैली और लेखन सामर्थ्य से कहानी से जोड़े रखने में सफल होंगी। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ रहेंगी।
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अध्याय -- 5 -----

उस आग को शांत करने के लिए मेरे पास घर में एक ऐसा कोना नही था कि लंड जैसे दिख रहे बैगन को अपनी कुंवारी प्यासी चूत में डालकर आत्म मंथन (हस्थमैथुन) करके प्यास बुझा सकूँ। इसी उधेड़बुन मे मेरी आँख लग गयी।

अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो बीते दिन की बात बीती हुई रात की तरह भूल गयी। दिल में अब सिर्फ अरुण से मुलाकात की हसरत है। अभी जवानी मुझ पर पूरे शबाब पर है.......मेरे दिल में भी आज वही अरमान है जो बाकी लड़कियों के होते है इस उमर में......अरुण......क्या वो मुझे प्यार करेगा.....कब मिलेगा मुझसे....... कुछ तो ख़ास है उसमे.......क्या वो मेरे जज्बातो को समझेगा........ ये सारे सवाल मुझे पल पल परेशान कर रहे थे। कब मिलेगा अरुण कब मेरा इंतेज़ार ख़तम होगा........मुझे यकीन था कि अरुण मुझे ज़रूर मिलेगा.....मगर कब मिलेगा इसकी ना तो कोई तारीख फिक्स थी और ना ही कोई जगह......

तभी मेरी मम्मी की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मैं एक बार फिर से अपने सपनों की उस हसीन दुनिया से बाहर निकल गयी.......ये मम्मी का रोज़ का काम था....ख्वमोखवाह वो मेरे सपनों की दुश्मन बनती थी....... और फिर उठकर मैं फ्रेश होने बाथरूम की ओर चल पड़ी. ( मिडिल क्लास फैमिली वाले बड़े जुगाड़ू होते है,अपने छोटे से घर के नीचे के छोटे से एरिया को बढा करने की जुगाड़ में अक्सर बाथरूम छत पर बनवा देते है)
.....उधेर मम्मी रोज़ की तरह अपना ज्ञान वर्धक बातें अंजू दीदी को सुना रही थी....रोज की उनकी बक बक....मगर वो कितना भी अंजू दीदी पर चिल्लाति दीदी को उनकी बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता.........

जैसे ही मैं छत पर पहुची तो अपने बाथरूम के दरवाज़े के पास सामने से मुझे सुनील भैया निकलते हुए नजर आये...... मैं उसे देखकर तुरंत बाथरूम में घुस गयी.......सुनील भैया का मूह देखने लायक था.....मुझे तो एक बार उनके चेहरे को देखकर उन पर बड़ी हँसी आई मगर मुझे और लेट नहीं होना था इस लिए मैं जल्दी से फ्रेश होने लगी... खैर मैं थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आई तो वो फ़ौरन बाथरूम में घुस गया.....शकल उनकी देखने लायक थी....... उनके चेहरे पर डर अब भी था......मैं उन्हे हल्की सी मुस्की देते हुए नीचे चल पड़ी..

कमरे में जाकर मैने एक नीले रंग का सूट पहना और नीचे वाइट कलर की लॅयागी......जो मेरे बदन से अब पूरी चिपकी हुई थी......उन कपड़ों में मेरी फिगर का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता था..ज़्यादातर मैं सूट में ही रहती थी....मैने अपने बाल सवरे जो इस वक़्त पूरे गीले थे नहाने की वजह से.......फिर आँखों पर हल्का सा काजल लगाया और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......थोड़ा मेकप और फाइनल टच देकर मैं कमरे से बाहर निकली और जाकर सीधे मम्मी और अंजू दी के पास बैठ गयी और नाश्ता आने का इंतेज़ार करने लगी.......

अंजू दीदी, मम्मी चाय की चुस्की लेते हुए बतिया रहे थे, मम्मी ने पोहा और हलवा का नास्ता देते हुए बोली तुम दोनों के जब तक स्कूल की छुट्टियां है, तब तक दुकान थोड़ी जल्दी खोल लिया करो सुबह सुबह ही हमारी किराने की दुकान पर ज्यादा ग्राहक आते हैं, सुनील तो अब sales man बन गया है, और आसपास के गाँव में सेल करने के लिए सुबह जल्दी जाया करेगा। तुम दोनों अपने अपने टाइम टेबल बना लो??? सुबह से दोपहर तक अंजू और दोपहर से शाम तक रेखा बैठ जायेगी।

सुबह दुकान खोलने की बात सुनकर अंजू दीदी एकदम से उठ पड़ी!! मम्मी बोली क्या हो गया छोरी ऐसे क्यो खड़ी हो गयी????
अंजू दीदी दुकान खोलने जा रही हू और सीधी छत पर लैट्रिन में घुस गयी।

मम्मी गुस्से में चिल्लाते हुए बोली अरे कर्मजली तेरे से बाहर वाली दुकान खोलने की बोली है ना की सलवार वाली......
मुझे ये सब देखकर बड़ी जोर से हसी आ गयी। हाहा हाहा हाहा हाहा

मुझे हस्ती हुई देख मम्मी मुझ पर भड़क गयी.... तू क्या दांत दिखा रही है तू ही दुकान खोल ले......
मै बोली मै खोलुंगी और दीदी की भी कोई जरूरत नही है, मै पूरे दिन अकेली बैठ सकती हू।
( अरुण से मुलाकात की हसरत में मैने अपनी डबल ड्यूटी की बात उतावले पन में आकर बोली)
( मै मन ही मन सोच रही थी ऐसा क्या हो गया इसे रात में कल दिन में अरुण को फँसाने के चक्कर में मुझसे दुकान पर बैठने के लिए खुद ही बोल रही थी)


ठीक है रेखा तो जा फिर अब नास्ता हो गया तेरा, दुकान खोल ले, अंजू घर के काम करेगी मेरे साथ। मै दुकान खोल कर, बैठ गयी ग्राहक के इंतजार में!
नही अपने !!! अरुण !!! के इंतजार में।

((साल 2000 ये वो दौर चल रहा था, जिसमें 80 और 90 के दशक में जन्मे प्रेमी प्रेमिका की मोहब्बत करने का मजा खतम होने की कगार पर था। चिठिया, खत, प्रेम पत्र, लिखने वालो की कलम आखिरी साँसे भर रही थी। ग्रीटिंग कार्ड्स, जो त्योहारो के मौसम में अक्सर बधाई देने के लिए बाजारों में रंग बिरंगे रंगो में लटके हुए बिकने लिए बेचैन रहते थे। उनका आखिरी समय चल रहा था,!!मोबाइल फोन मार्केट में आने की खबर सुनायी देती, दूसरो का पता नही पर हमारे घर में मोबाइल फोन नही था। जब भी पापा से गुजरात बात करनी होती तो हम लोग पड़ोस की std दुकान पर जाकर बात कर लिया करते थे।))

मै अपनी दुकान पर सुबह से बैठी हुयी अपने अरुण को याद करते हुए गाना गुनगुनाते हुए
"" आखिर तुम्हे आना है, जरा देर लगेगी "" इंतजार कर रही थी।

दोपहर होने को आई पर अरुण नही आया।
आई तो मम्मी सिर्फ मम्मी की आवाज -- रेखा ओ रेखा चल आ छोरी खाना बन गया है, खाना खा ले। आती हू बस पांच मिनिट में ???

पांच मिनिट तक उदास मन से दुकान का शटर डाउन कर मै खाना खाने चली गई, खाना खाने का मन नही कर रहा था, पर मम्मी के डाइलोग खाने से अच्छा खाना, खाना है।

""लोगो को कहते सुना है, माँ के हाथ के बने खाने में जो स्वाद है, वो स्वाद कही नही मिलता। मुझे तो बस ये अनुभव हुआ है कि माँ के हाथ से बने खाने में स्वाद हो या ना हो पर मुझे खाते हुए माँ के डाइलोग सुनने में स्वाद हमेशा आता था "" हाहा हाहा हाहा

मै जल्दी जल्दी खाना खा कर वापस दुकान पर शटर ओपन कर फिर से अरुण का इंतजार करने लगी।
दस मिनिट बीत गये, अरुण तो नही आया पर मेरी हमदर्द, सखी, अर्चना देवी जी जरूर प्रकट हो गयी। रेखा कैसी है, क्यो उदास है, निराश है, आया नही अभी तक तेरा जो शक्स खास है??? शायरी मारते हुए अर्चना मुझसे हस्ती हुई बोली..... हाहा
नही आया यार, पता नही आयेगा भी कि नही, कही मुझसे झूठा वादा तो नही कर गया??? मै बड़े दुखी मन से अर्चना से बोली....

आयेगा, आयेगा जरूर आयेगा यार आस मत छोड़, उम्मीद मत छोड़, जब अपने सपनो के हीरो का इतनी सालों से इंतजार किया है और कुछ दिन सही, वैसे भी अब तो तुम उसे भरी भीड़ में पहचान सकती है।

हमें बातें करते हुए आधा घंटा बीत गया था, और अचानक से ऐसा लगा मुझे कोई आ रहा है, मेरे दिल की धड़कन की रफ्तार तेज होने लगी, और बीता हुआ कल आज फिर मेरे सामने खड़ा था, मेरा अरुण आ गया!!!!
पूरा दृश्य कल की तरह था, अरुण ने एक wills सिगरेट मांगी, तीन तीलियों को एक साथ जलाया, माचिस उछलकर दूसरे हाथ, उसके होंठों से निकलता हुआ धुँआ मेरे गालों को फिर से चूम रहा था। वो काउंटर के एक कोने खड़ा हो कर चोरी चोरी मुझे ही देख रहा था। मेरा हाल ही वैसा ही था, मै भी बार बार उसकी नजरो से अपनी नजरो के पेच लड़ा रही थी। उसकी एक सिगरेट खतम हो गयी थी, वो कुछ सोच रहा था, कुछ कहना चाहता था, हिम्मत नही कर पा रहा था,। फिर से उसने दूसरी सिगरेट मांगी;
फिर सिगरेट पीते हुए मेरी तरफ देखता और नजर फेर लेता।

एक सिगरेट खतम होती तो दूसरी पीने लगता, मै सोचने लगी साला इतनी सिगरेट पियेगा तो गांड में से धुँआ निकालने लगेगा, मुझे गुस्सा आने लगा था, कुछ तो बोल! !


!!!! कोई भी लड़की दिल में कितना भी प्यार भी हो पर अपनी तरफ से पहल नही करेगी, इसी मोहब्बत ए इजहार ना होने की वजह से ना जाने कितनी प्रेम कहानिया शुरु नही हो पाई, ऐसा नहीं लड़की इजहार करने से डरती है, वो डरती नहीं है, वो कर सकती है, लेकिन लड़की अगर इजहार करेगी तो लड़के उसकी कदर नही करते उसके चरित्र पर शक करते है, इसे बड़ी खुजली है खुद ही सामने से लाइन दे रही है, ""छिनाल"" है जैसे -- शादी की सुहाग रात पर अगर लड़की पहल कर दे और पूरी तरह से खुल कर मजे लेने लगे तो लड़का तुरंत सोचने लगता है, ये चुदवा चुकी है, बड़ा अनुभव है!!!


मेरी भी मजबूरी थी जब वो लड़का होकर बात शुरु नही कर सकता तो मै तो लड़की हू। शर्म ही मेरी इज्जत है, मेरी खामोशी ही मेरी चरित्रवान होने का प्रमाण है।
आज फिर अर्चना ने एक सच्ची सहेली होने का रिश्ता निभाते हुए एक चाल चलते हुए मुझसे अरुण की तरफ इशारा करते हुए बोली रेखा इन्हे कुर्सी दे दो बैठने के लिए, काफी देर से खड़े हुए है। जब तक मै पानी लेकर आती हू।
अर्चना की ये चाल तो मेरे लिए संजीवनी बूटी की तरह थी, मैने अरुण से कहा ये कुर्सी ले लीजिये!!!


वो घबराते हुए नही नही इसकी कोई जरूरत नही है, और दुकान के पीछे वाले दरवाजे की तरफ देखते हुए बोला मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूं!!!
मुझे फिर से लगा मेरी मन की मुराद अब पूरी होने वाली है और मैने शर्माती हुए अपनी मुंडी हिलाते हुए बोलिये????


""मन्ने तैर ती जब से देखा हने, मैं खुद न भूल गया सु, के तू मारे बालका की माँ बनेगी"""


ये सुनकर तो मेरी हँसी छूट गयी और मै जोर से हँसी!!! हाहा हाहा हाहा!


((हमारे देश में सबसे कम प्रेम कहानिया हरियाणा में बनती है, उसकी दो वजह एक ओनर् किलिंग दूसरी यही!!!, जी बिल्कुल सच बोल रही हूँ मै हम लोग जब सीधा सवाल भी टेढ़ी अदा से पूछते है, तो इश्के इजहार करना ही सबसे टेढ़ा काम है, शायद ऐसे ही इश्के इजहार के किस्से सुना सुना कर हमारे हरियाणा के कवि बहुत वाह वाह लूट रहे है))


मेरी हंसी रुक नही रही थी, मै हस्ती हुई अरुण से बोली क्या??? फिर से बोलना मै समझी नही??? बेचारा इस बार तो वो पूरा डरा हुआ था और एक फिर से डरते डरते बोला.........
""मन्ने तैर ती जब से देखा हने, मैं खुद न भूल गया सु, के तू मारे बालका की माँ बनेगी"""


मै फिर से हँस पड़ी हाहाहा हाहाहा....
(मै आप सभी पढ़ने वालो को बता नही सकती मुझे अपना लाइफ का पहला किसी लड़के का प्यार भरा प्रोपोजल ऐसे लिखते हुए कितनी हंसी आ रही है)

अरुण मुझे हस्ता हुआ देख शर्म से पानी पानी हो रहा था। मै उसको थोड़ी हँसी रोकते हुए बोली......
""तू घना बावला से, हरियाणा में यू लव स्व मत कर कूट के जाओगे""


हमारे बीच के इस हँसी भरे इश्के इजहार के
खूबसूरत लम्हे को रोकने के लिए अर्चना देवी जी फिर से प्रकट हो गयी। अर्चना को देखकर अरुण सकपका गया और दुकान के काउंटर से थोड़ा दूर खड़ा हो गया, अर्चना मेरी तरफ आँखो से इशारे में बोली क्या हुआ???? मैने भी उसे आँखों ही आँखों में बोला कुछ नही!!!
करीब पांच मिनिट बाद अरुण ने अपनी जेब में से एक पचास का नोट निकाल कर मुझे बड़ी अजीब इशारे के साथ दिखाते हुए जैसे कुछ खास हो उस पचास के नोट में काउंटर पर रखकर बड़ी फुर्ती में काउंटर से अपनी बुलेट की चाबी उठा कर गाड़ी स्टार्ट कर चला गया।


मै बस उसे जाते हुए देखती रही, जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नही हो गया। मै एक बार फिर से बुत बनी खड़ी थी। तभी पीछे से अर्चना आई और उसने मुझे मेरे नितंबो पर एक चपत लगाते हुए बोली क्या हुआ रेखा रानी??? शुरू हुयी कहानी??? कुछ बात हुयी, क्या कहा उसने, क्या किया तुमने??? मेरे चेहरे पर एक जंग जीतने वाली खुशी थी, मैने कहा अर्चना बात तो कुछ नही हुयी। मुझे वो ये पचास का नोट देकर गया है।


अर्चना चौकते हुए बोली पचास का नोट इसका क्या मतलब हुआ, उसने सिगरेट कितने रुपए की ली थी??? मैने कहा शायद चालीस मुझे याद नही और गिनी भी नही!! अर्चना बोली चल चालीस की थी तो दस तो वापस ले जाता??? मैने कहा जमा कर गया होगा कल आने के लिए बहाना मिल जायेगा उसे अगर मै दुकान पर नही मिली तो जो भी यहाँ बैठेगा उससे बोल देगा मुझे बुला दो मेरे पास उसके दस रुपए जमा है!!!
अर्चना बोली लोंडा स्मार्ट है..... Hmmm


पर जैसे ही मैने उस नोट को खोल कर देखा तो उसमे एक चिट्ठी थी....मेरी और अर्चना की ख़ुशी से एक साथ चीख निकली.....
ओ ओ ओ
मै और अर्चना खुशी से एक दूसरे से लिपट गई, हमारे स्तन एक दूसरे के जिस्म में समा रहे थे, हालांकि अर्चना के स्तन मेरे से छोटे से है पर मेरी तरह ही अभी टाइट और कसे हुए थे। राह चलते लोग मुझे और अर्चना को इस आलिंगन बद्ध अवस्था में खड़े हुए देख शायद हमें लेस्बियन समझे, जो सरासर गलत है। तभी अर्चना बोली रेखा अब हम खड़ी क्यो है वाबरी बैठ नीचे जल्दी खोल चिठी और पढ़!!!! मैने चिट्ठी खोली तो मेरे चेहरे पर एक सूरज की पहली किरण जैसी पानी चमकती है वैसी चमक आ गयी थी। ये मेरी जिंदिगी का पहला कुँवारा प्रेम पत्र था। अर्चना बोली ये तो हिंदी में है।

मुझे हँसी आ गयी हाहाहा हाहा......... ऐसे हंस क्यों रही है ऐसा क्या बोल दिया मैने अर्चना चिढ़ते हुए बोली!
मै कुछ नही यार ये अच्छा हुआ इसमें हिंदी में लिखा है उसने, क्योकि हरियाणावि मै लिखा कुछ होता और समझ कुछ आता... चल जल्दी कर पढ़ ना.......
उसमें लिखा था ... .... !

"सुनों ना मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ जो मैने किसी से नही कही। जब मैने तुम्हें पहली बार देखा तब मेरे दिल ने कहा की मै तुमको बार-बार देखूं, तुम से बहुत सारी बातें करूं, तुम से मुलाकात करूँ मगर तुमसे कहने की मुझमे कभी हिम्मत ही नही थी, की मै अपने दिल की बात तुम्हें पास आकर बता सकूं इसलिए अपने दिल की बात बताने के लिए यह चिठ्ठी लिखी हैं।
अब तुम ही बताओ मै क्या करूँ रात को नींद नही आती, दिन को यह दिल तुम्हारे सिवा कही लगता ही नही, रात-दिन बस एक ही काम है मेरा सिर्फ तुम और तुम्हारा ख्याल। यहाँ तक की मै जब भी किसी लड़की को देखता हूँ तो मुझे तुम ही तुम नजर आती हो। मुझे तुम्हारे सिवा और कोई नज़र ही नही आता। जब मुझसे रहा नही गया तो मैने अपने दिल के कागज पर मुहब्बत की कालम से अपने दिल का सारा हाल लिख डाला।"
(पेज पलटिये.....).

ये (पेज पलटिये.....). पढ़कर मेरी और अर्चना की जोर से हँसी निकल गयी....
हाहा हाहा हाहा हाहा हाहा
साला ऐसा लगा कोई exam पेपर पढ रहे थे हम..........

हमने पेज पलट कर पढ़ना शुरु किया.....
अब फिर से उसने अपनी जाट बुद्धि लगा दी थी!!
""" अगर तुम भी मुझे पसंद करती हो, चाहती हो, और हमारे होने वाले बच्चे तुम्हे मम्मी बोले तो आज शाम पांच से छे के बीच इस नंबर पर फोन कर बता देना..... मै तुम्हारे फोन का इंतजार करूँगा """"
तुम्हारा अरुण!!!!!

मै और अर्चना एक दूसरे की शकल देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थे.... हमारी आवाज बंद थी दुकान में चरमारते हुए चल रहे पंखे की आवाज, सड़क पर निकल रही गाड़ियों की आवाज माहौल को संगीत मय बना रही थी!
थोड़ी देर की खामोशी के बाद एक लंबी सांस खीचते हुए अर्चना बोली अब बोल रेखा रानी शुरु करना चाहेगी अपनी
प्रेम कहानी, देगी उसे प्यार की निशानी, बनेगी उसके होने वाले बच्चे की मम्मी, बोल ना अब इतना सोच क्यो रही है, साढ़े चार बजे है, अभी????

मै खुश थी, और अच्छा भी लग रहा था, पता नही क्यो कुछ समझ नही आ रहा था??? अजीब सा लग रहा था!!! प्रेम कहानी शुरु तो करना थी, पर इतनी जल्दी फैसला लेने की हिम्मत नही हो रही थी!!!
वैसा वो पागल मुझे 5-6 का टाइम दे गया था.... ये दिल, प्यार, इकरार, इजहार का मामला था, कोई मेले का जादू वाला शो नही कि एक घण्टे बाद खतम!!

(शायद फिल्म में जैसे प्यार का इजहार होता है, वैसा नही था, हीरो के हाथ में गुलाब का फूल लेकर हीरोइन को अपने ईश्क का इजहार करना, हीरोइन का शर्मा जाना, )
मुझे ज्यादा सोचते हुए देख अर्चना बोली रेखा लगता तेरा मन बदल गया है क्या????
नही यार वो क्या है सब कुछ इतनी जल्दी और आसानी से हो रहा है ना इसलिए कुछ अजीब सा लग रहा मुझे!!!

अर्चना मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली रेखा फिल्म की दुनिया से बाहर निकल और
एक काम कर अंदर से मम्मी को बोल तू मेरे साथ जा रही है, वो अंजू दी दुकान पर बैठने के लिए बोल दे। मै बोली ठीक है और अंदर चली गयी।

मै--- मुझे अर्चना के साथ थोड़ा बाहर का काम है तुम या अंजू दीदी में से कोई एक दुकान पर बैठ जाओ!!!
मम्मी बोली रुक आधा घंटा बाद चली जाना अंजू अभी मेरे बालों में मेहंदी लगा रही है।

घडी में पांच में पांच कम थे, तभी एक ग्राहक आ गया और सिगरेट पीने लगा, वो गया दूसरा आया, ग्राहकों की तो लाइन लग गयी, समय निकलता जा रहा था, ग्राहक आते जा रहे थे, मम्मी और दीदी अब तक नही आई थी।
( मुझ जैसे छोटे दुकानदारो का यही प्रोबलम् है जब किसी जरूरी काम से बाहर जाना होता है तो ग्राहको की लाइन लग जाती है, ऊपर से सब सिगरेट वाले पहले पैसे नही देते है।)

देखते ही देखते 6 में 6 मिनिट कम रह गये, मै अर्चना से बोली बस चल अब गुल्लक में से बीस रुपए लिए और मम्मी को आवाज दी मै जा रही हू!!!!!

और पड़ोस वाली std वाले की दुकान पर पहुँच गयी, उसके पास एक ही फोन था, उस पर भी कोई चूतिया बात कर रहा था। और एक आदमी लाइन में लगा था मै उस std वाले से बोली मुझे urjent काल करनी है, वो std वाले मेरे पड़ोसी थे मुझे जानते थे तो उन्होंने उस आदमी से पहले मुझे काल करने को फोन दे दिया।

मैने डरते डरते अरुण का फोन नम्बर डायल किया सामने से आवाज आई हैलो......
मै भी पागल हरियाणा की जट्टी मुझे भी प्यार भरी बातें लिखना आती है बोलना नही....... Hmmmm

मेरे मुह से बस सीधी एक ही लाइन निकली मै तुम्हे पसंद करती हूँ, तुम्हारे होने वाले बच्चो की मम्मी बनने के लिए तैयार हू।
सामने से बड़ा विचित्र सा सवाल आया कौन बोल रहा है?????
मैं बोली तुम्हारी रेखा!!!!

हाहा हाहा हाहा सामने से हसी के साथ आवाज आई sorry भाभी मै अरुण नही उसका दोस्त हू वो अभी ही नीचे गया है, मै दस मिनिट बाद आपकी उसकी बात कराता हूँ। मै बोली मेरा नम्बर है आपके पास है??? वो बोला मेरे फोन में caller id लगा हुआ है, इसी नम्बर पर काल back करता हूँ। मै बोली ठीक है.......

मै अर्चना के पास जाकर खड़ी हो गयी, वो बोली क्या हुआ???? अरुण से बात हुयी???
मै बोली नही ना!! उसके दोस्त से हुयी है वो मुझे भाभी बोल रहा था......
अर्चना हँस पड़ी इन लड़को का यही प्रोबलम् है लड़की पटे या ना पटे पर अपने दोस्तो की भाभी पहले बना देते है.....
हाहा हाहा

फिर अब क्या करना है???? अर्चना ने फिर पूछा???
मै बोली दस मिनिट इंतजार करते है और क्या!!! मैने और अर्चना ने 15 मिनिट तक इंतजार किया..... शाम अपना रूप बदलकर रात बनने लगी थी घडी में सात बजने वाले थे....... अर्चना बोली मै तो अब जाती हूँ...... मै बोली मै भी चलती हू.....
हम दोनों अपने अपने घर चल दिये। रास्ते में मुझे पानी पूरी वाला तो दस रुपए की पानी पूरी थैलि में पैक करा कर घर पहुँच गयी।

दुकान पर मम्मी और अंजू दीदी बैठी थी, मै भी निराश, उदास होकर उनके साथ ही दुकान पर बैठ कर हम तीनो पानी पूरी खाने लगे। करीब सात आठ मिनिट बाद आखिरी पानी पूरी मै मुह में रखने वाली थी कि std वाले की दुकान से आठ दस साल का लड़का आया, वो मुझे जानता था। मुझसे मम्मी और अंजू दीदी के सामने ही बोला.......
"""रेखा दीदी तुम्हारे होने वाले बच्चे का पापा फोन आया है, urjent बुलाया है। """'
ये सुनकर मेरे हाथ की पानी पूरी झटके से फूट गयी। मेरा मुह खुला रह गया.......

मेरी ओर मम्मी और अंजू दीदी मुझे खा जाने वाली नजरो से देख रहे थे.....

तभी किसी शेरनी की गर्जना या दहाड़ जैसी मम्मी की आवाज मेरे कानों में आई.......

"""हा ए भाई रोई रण्डी, रु के बरन की तन्ने भी यार भान लगे"""

"""ढंग से नाडा बाँधना आया कोनी खोलन न पहले तैयार होगी"""

"""इतनी आग लग री थी तेरे भोसड़े में तो मुह ने फूक देती"""
खाया ना पिया
गिलास तोड़ा बड़ा आना।

अरुण ने तो सूखे सूखे ही कांड कर दिया। :akshay:
 
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