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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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गांव के छत पर लिखा गया उल्लेख बिल्कुल सही था। बहुत सारी प्रेम-कहानियां बनती है उन जगहों पर। कुछ पाक तो कुछ व्यभिचार।
रेखा कमसिन उम्र की थी। यह उम्र ही ऐसा होता है जब युवतियों के दिल मे प्रेम के अंकुर फूटने लगते हैं। और यह यथार्थ सत्य है कि गलत कर्म आप को अपनी ओर ज्यादा आकर्षित करते है। अगर परिवेश भी वैसा ही हो गया तब तो और भी भटकने के चांसेज बढ़ जाते है।
यहां रेखा के साथ भी यही हो रहा है।
बहुत खुबसूरत अपडेट रेखा जी। इरोटिका काफी बेहतर लिख रही हैं आप।
Outstanding & Amazing & too hot 🔥.
 

Sanju@

Well-Known Member
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अध्याय -- 4 -----

रेखा ऊपर वाले की माया देख, एक इतने हैंडसम लड़के का लॉडा मुझे देखने का मौका अपने घर की छत पर से देखने को मिल गया। तुझे उस में कोई दिलचस्पी नहीं.” ये अच्छी बात है।
पर मै अगली बार जब वो आयेगा उसे अपने जाल में फांसकर ही रहूँगी।

मुझे अंजू दीदी की ये बात सुनकर एक पल के लिए खून कर दू उनका, जिस लड़के के साथ थोड़ी देर पहले मैने इतने हसीन सपने संजोये थे वो उसे ही फंसाना चाह रही थी।

मुझे अपनी सगी बहन अब मुझे अपनी सौतन नजर आ रही थी????


“ तुझे कैसे पता उस लड़के को मुझ में दिलचस्पी नहीं. हो सकता है वो मुझे पसंद करता हो, प्यार का इजहार करना चाहता हों.” मैने अंजू दीदी को गुस्से से घूर्राते हुए कहा.

“ हाई मर जाउ मेरी प्यारी बहना रेखा ! काश तेरी बात बिल्कुल सच हो. तेरी और उसकी रास लीला देखने के लिए तो मैं एक लाख रुपये देने को तैयार हूँ.”“ और उस हैंडसम से चुदवाने की लिए तो मैं जान भी देने को तैयार हूँ. रेखा रानी,

रेखा तूने चुदाई का मज़ा लिया ही कहाँ है. तूने कभी घोड़े को घोड़ी पर चढ़ते देखा है? जब ढाई फुट का लॉडा घोड़ी के अंडर जाता है तो उसकी हालत देखते ही बनती है. वो हैंडसम लड़का जिस लड़की पर चढ़ेगा उस लड़की का हाल भी घोड़ी जैसा ही होगा.”


अंजू दीदी की बातें सुनकर मेरा खून खोल रहा था, मेरा गोरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया, अर्चना जो मेरी सबसे अच्छी सहेली है वो मेरे चेहरे पर गुस्सा और आँखों में अंजू दीदी को कच्चा ही चबा जाने वाली निगाहों को देखकर हम दोनों की बहस को रोकते हुए बीच में ही हस्ती हुई बोल पड़ी मैने कुत्ते को कुतिया पर और सांड को गाय पर चढ़ते तो देखा है लेकिन घोड़े को कुतिया पर चढ़ते कभी नहीं देखा है.
हाहाहा हाहाहा हाहाहा हाहाहा


""""अर्चना का ये हँसी से व्यंग भरा ताना अंजू दीदी के लिए था। अर्चना की इस बात ने सिद्ध कर दिया वो मेरी सबसे प्यारी सहेली है। जो मेरी सगी बहन से ज्यादा मेरी दिल की बात समझती है।""""

मै भी उसकी बात का समर्थन करते हुए जोर शोर से हँसने लगी, मुझे और अर्चना को हँसता हुआ देख विवश होकर अंजू दीदी भी झूठी हंसी हँसने लगी, वो ये तो समझ गयी थी कि अर्चना ने यह ताना उन्हे ही मारा है।


हमारी इस तरह जोर से हँसी की आवाजें सुनकर सड़क पर आने जाने वाले लोग मेरी दुकान की ओर देखते हुए आ- जा रहे थे, एक दो बार कुछ खड़े होकर झांकने भी लगे जैसे दुकान के अंदर कोई तमाशा, या कोई हँसी की मेहफिल लगी और हम जोर शोर से हँस रहे है।


आखिरकार हँसी की मेहफिल का अंत घर के अंदर से आई मम्मी की कड़कती आवाज के साथ हुआ ""ओ नाश मिटी बस कर छोरियों एक दिन में कितना हंसोगी, रेखा चल किचिन में कुछ काम में हाथ बँटा।

चल रेखा में भी चलती हू बहुत देर हो गयी है, अपना ख्याल रखना और उम्मीद मत छोड़ना, उसका इशारा उस लड़के अरुण से मेरे मिलन की ओर था, आशा से आसमां टिका है, अर्चना मेरे हाथ की हथेली को छोड़ते हुए जाते हुई बोली।


अब बारी अंजू दीदी की थी और बड़ी कमीनी भरी मुस्कान के साथ अर्चना से बोली अर्चना सच्ची;; आशा के पास इतना बड़ा लंड है जो आसमान की गांड में टिका दिया। हाहाहा हाहाहा हाहाहा


Very funny चिढ़ते हुए अर्चना मुझसे बोली चल रेखा बाय!!!!!
मै घर के अंदर चली गयी।


रेखा वो थैले में देखो क्या सब्जी है, आलू बैगन बना देती हू, मम्मी बर्तन धोते हुए मुझसे बोली,
बैगन मुझ को कतई पसंद नहीं था। मम्मी मै बैगन नही खाती, तुम्हे पता है ना । मै थैले के अंदर से सब्जिया निकालते हुए बोली।


तो अपने लिए थोड़े मसाले डालकर चटपटे सूखे आलू बना ले, पर अब जल्दी कर शाम होने को आई है, मम्मी झूझलाते हुए मुझसे बोली।
मैने पूरा थैला उलट दिया और जब मेरी नजर एक दम ताज़े मोटे और लंबे बेगन पर पड़ी,,,,,और ऊसपर नज़र पड़ते ही मुझे जांगो के बीच सुरसुराहट होती महसूस होने लगी। उस बैगन की लंबाई और मोटाई एकदम अरुण के हथियार जैसी थी।


"यार रेखा सच में तुम्हारे दिमाग में एकदम गंदगी भरी हुई है इन सब्जियों में भी तुम अपने ही मतलब की चीज ढुंढ़ती रहती हो।" (मै मन ही मन मुस्काती हुई सोच रही थी)


मुझे बैगन को घूरते देख "" बावरी हो रही है छोरी और एक मोटे ताजे और लंबे बेगन को अपनी मुट्ठी में लेकर मुझे वो बैगन हाथ में थमाते हुए, बोली कितना ताजा है, हाथ में आते ही मजा आ गया, ले इसे काट दे, "" और चार पांच आलू भी काट दे। बांकी के वापस थैले में रख दे।

बेगन को हाथ में लेते ही मेरे बदन में झनझनाहट सी महसूस होने लगी,,,, बचे हुए बैगन थैले में डालते समय मै शर्म के मारे मम्मी से नजर नहीं मिला पा रही थी । ना जाने आज मुझे बैगन को हाथ में लेने भर से ही शर्म महसूस हो रही थी मुझे ऐसा लग रहा था कि मै बैगन को नहीं बल्कि किसी के लंड को हाथ से पकड़ी हुई थी। इस वजह से मेरा चेहरा शर्म के मारे लाल लाल होकर मेरी खूबसूरती को और ज्यादा निखार रहा था।


अरे छोरी और कितनी देर लगायेगी तीन बैगन थैले में राख्न वास्ते, ऐसे धीरे धीरे हाथ चलावेगी, मम्मी फन्फनाते हुए मुझे बोली।
मैने जल्दी से थैले में बचे हुए तीनो बैगन डाले, और एक थाली में रखा हुआ लंबा और मोटा वाला बैगन छुरी से काटने लगी।

खैर जैसे तैसे करके मै सब्जियां काट कर वापस अपनी दुकान पर जाने लगी तो मम्मी ने पीछे से आवाज दी, ओ रेखा जा छोरी छत पर से कपड़े उठा ला शाम हो गयी सूख गए होंगे।

मम्मी का ऑर्डर सुनकर मै छत की तरफ आगे बढ़ने लगी मै अपने कदम छत की तरफ बढ़ा तो जरूर रही थी लेकिन बेगन को लेकर मेरे मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी,,, जिसकी वजह से मेरी बुर से बार बार रीसाव हो रहा था और चलते चलते मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी जो कि मुझे साफ-साफ महसूस हो रही थी। मैने आज तक बेगन कि इस तरह की उपयोगिता के बारे में कभी सपने में भी कल्पना नही की थी।

""नयी नयी जवानी में जरा सा भी ऊन्मादक माहौल होते ही या ख्यालों में उन्माद जगते ही पेंटी गीली होने लगती है।"""

पैंटी में फैल रही गीलेपन की वजह से मेरा हाथ बार-बार जांगो के बीच पैंटी को एडजस्ट करने के लिए पहुंच जा रहा था। जो कि मुझे अपनी यह अदा बड़े ही कामोत्तेजक लग रही थी।

"" अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसकी हालत अपने आप खराब हो जाए वह तो सोच-सोच कर ही अपने लंड से पानी छोड़ दे की रेखा अपनी नाजुक उंगलियों से अपने कौन से नाजुक अंग को बार बार सलवार के उपर से छु रही है।""

(वैसे भी मेरी हर एक अदा बड़ी ही कामोत्तेजक नजर आती थी यहां तक कि मेरा सांस लेना भी लोगों के सांस ऊपर नीचे कर देता था।)

मै जल्दी-जल्दी हड़बड़ाहट में बैगन की कल्पना से बाहर निकलकर छत की ओर जाती सीढ़ियों पर चलती हुई छत पर पहुँच गयी।

"""छोटे शहरों में मिडिल क्लास फैमिली के घर भले ही छोटे हो, लेकिन छत अक्सर बड़ी होती इसकी वजह ऐसे छोटे छोटे घरों की छत भी आपस में बड़ा ही प्यार करती, एक दूसरे के हाथ थामे आपस में मिली रहती है। जिससे छत का दायरा बढ़ जाता है, इन्ही छतो के नीचे रहने वालो में भले ही प्यार ना हो लेकिन इन्ही छतो के ऊपर बहुत सी प्रेम कहानिया शुरु होती है, पनपती है, और प्रेमी जोड़े की पहले मिलन की दास्ताँ की गवाही देती है।"""

मै धीरे धीरे अपनी कामुक मादक भरी चाल चलते हुए छत पर रस्सी पर सूखे हुए कपड़े समेटने लगी, सारे कपड़े समेटने के बाद वापस सीढ़ियों की तरफ आई, तभी मुझे लगा की पड़ोसी शर्मा के घर की छत पर कोई और भी मौजूद है | पहले मुझे लगा, शर्मा uncle होंगे, लेकिन छत से आती आवाजो पर ध्यान दिया, मुझे कुछ और आवाजे सुनाई दे रही थी, लेकिन जब मेरे कानो में कामुक सिसकारियों की आवाज पड़ी तो मेरे कदम ठिठक गए | भले ही मैने अभी तक सेक्स नही किया था लेकिन सेक्स की मादकता से भरी सिसकारियां जैसे ही मेरे कानो में पड़ी मै समझ गयी, छत पर जरुर कुछ चल रहा है |

आश्चर्य और सतर्कता से मै शर्मा जी छत की तरफ बढ़ने लगी, जैसे जैसे मै छत की तरफ बढती जाती, सिसकारियो की आवाज तेज होती जा रही, जब मै छत पर बनी तीन चार फुट की छोटी सी बनी बाउंड्री दीवाल के पास पंहुची, तो मैने जो भी आँखों से देखा उस पर मुझे यकीन नहीं हुआ |

मेरे सगे सुनील भैया पड़ोस में रहने वाले मनोज शर्मा की बेटी नूतन को चटाई पर लिटाकर उसके स्तन की चुसाई कर रहे थे, | नूतन ने ऊपर सिर्फ एक लूज कुर्ता पहना हुआ था जिसे उन्होंने ऊपर खिसकाकर नूतन के चेहरे को ढक दिया था | सुनील भैया एक हाथ से नूतन का बाया स्तन चूस रहे थे, और दूसरा हाथ नूतन की कमर की नीचे था और कपड़ो के ऊपर से ही कभी जांघो और कभी उसके बीच की जगह को सहला रहा थे |

ये द्रश्य देखकर मुझे अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ | नूतन उम्र में मेरे बराबर है और सुनील भैया को भी मेरी तरह भैया बोलती है, यहाँ तक कि सुनील भैया भी नूतन को अपनी छोटी बहन मानकर ही उसके साथ हँसी, मजाक, बातचीत, और बर्ताव करते है।

सुनील भैया की उम्र भी कोई ज्यादा नही है,वो मुझसे सिर्फ एक साल बड़े है और वो अपनी छोटी बहन की उम्र की लड़की के साथ जो उन्हें मुह बोला भाई बोलती है उसके साथ यह सब कैसे कर सकते है ?
सुनील भैया का नूतन के साथ ये चक्कर कब से चल रहा है ?

ऐसे कई सवाल मेरे दिमाग में बिजली की तरह कौंध गए | मै सदमे में थी और मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था जो मै देख रही हू वो सच है | तभी सुनील भैया ने नूतन की चूची में दांत गडा दिये | नूतन के मुहँ से दर्द भरी सिसकारी निकल गयी - आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् |


सुनील भैया - तुम हमें अपनी चिकनी गोरी चूत के दर्शन कब करावोगी ?


मादक नशे में तैरती उफनती नूतन ने झट से बोली - कभी और, अभी बस चूस के काम चलावो |
सुनील भैया – अभी क्यों नही इतना कहकर फिर से नूतन के स्तन पर दांत गडा दिए
सुनील भैया और नूतन की काम कीडा का नजारा देख मै भी गरम हो चली, मेरा शरीर भी उत्तेजना के आवेश में आने लगा, लेकिन तभी मैने खुद को सयम करते हुए, उन दोनों को रोकने की ठानी |


मैने तेज आवाज में खाँसा और आसमां की ओर देखने लगी | मेरे खांसने की आवाज सुनते ही नूतन ने अपना कुर्ता तेजी से नीचे किया और झट से चटाई से उठकर बैठ गयी और सुनील भैया को दूर ठेल दिया | सुनील भैया चटाई पर इधर उधर लुढ़क गए और नूतन बाल सही करके खड़ी हो गयी | सुनील भैया भी चटाई पर इधर उधर लुढकने के बाद उठकर खड़े हो गए |


दोनों के खड़े होते ही गुस्से में मै पूछने लगी - सुनील भैया ये सब क्या हो रहा है ?
सुनील भैया और नूतन सर झुकाकर जमींन की तरफ देखने लगे | मैने दुबारा जोर देकर पुछा तो सुनील भैया मेरे पैरो की तरफ निगाह रखकर हिचकिचाते हुए कहने लगे - ओह रेखा क्या सरप्राइज है ?


मैंने पुछा यहाँ क्या हो रहा था ?
कुछ नहीं रेखा वो नूतन की पेट की नाभि की जो नाड़ी होती हैं, वो ठीक कर रहा था, उसके बहुत दर्द था पेट में।
सुनील भैया ने बहाना बनाया |


मैने कहा - अच्छा तुम बड़े डॉक्टर हो, !!!
फिर ठीक है आओ नीचे और तुम दोनों जो कर रहे थे | यहाँ जो कुछ हो रहा था सब बताउंगी मम्मी को |
इतना कहकर मै तेजी से छत से नीचे आ गयी और अपने कमरे में जाकर बैठ गयी | अभी भी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब मम्मी को बताये या नहीं | ये सब मेरे लिए बहुत ही शर्मनाक था |

""" हमारे देश की 60 प्रतिशत मध्यम वर्गीय फैमिली के छोटे छोटे घरों में सबसे बड़ी समस्या जगह की होती है, घर में अकसर दो से तीन कमरे होते है, जिससे privacy की समस्या बनी रहती है, छोटे छोटे झगड़े होने पर भी घर के लोग एक दूसरे के ऊपर ना चाहते हुए भी नजर गड़ाये रहते है, खाना, नहाना और हगना इन तीन काम को छोड़कर कभी अकेले रहकर वो काम नही कर सकते है जिस काम के लिए privacy चाहिए होती है, Privacy चाहिए तो घर के अंदर सिर्फ दो जगह होती एक छत और दूसरा बाथरूम जहाँ कुछ पल के लिए कोई आत्म मंथन (हस्थमैथुन) कर सकता है। हाहाहा हाहाहा हाहाहा """

(मेरे घर में भी वो ही समस्या थी दो कमरे थे, एक में जब पापा गुजरात से आते तो वो सोते थे, उनकी absent में सुनील भैया। मै मम्मी और अंजू दीदी एक कमरे सोती थी। पापा के आने पर सुनील भैया गर्मियों के मौसम में छत पर और सर्दी, बारिस में दुकान में सोते थे। अभी पापा तो नही थे इसलिए वो उनके कमरे में सोते थे।)


रात के आठ बज गये, और हम सबने साथ बैठकर खाना खाया, हम तीनो ही आपस में कोई भी बात नही कर रहे थे, सुनील भैया की हालत सबसे ज्यादा खराब थी, उनके चेहरे पर एक डर दिख रहा था, वो मुझसे नजर नही मिला रहे थे। हालांकि सुनील भैया और नूतन वाली बात अभी तक मैने किसी को नही बताई थी। हम सब खाना खा कर करीब दो घंटे बाद हम सब अपने बिस्तर पर लेट गए। मै और अंजू दीदी और मम्मी एक ही बेड पर सोते थे।

मुझे नींद नही आ रही थी, मै आज पूरे दिन जो हुआ उसके बार में सोचकर मन ही मन कश्मकश में उलझी हुई थी, आज हमारे घर की छत ने हम तीनो भाई बहन की जिंदगी बदल दी थी। मेरी अंजू दीदी अगर छत पर ना गयी होतीं तो अरुण की लंड का दीदार ना करती, और हम दोनों बहन एक दूसरे को सौतन की नजर से ना देख रहे होते। मैं अगर छत पर ना गयी होती तो सुनील भइया का नूतन के सैया वाला रूप नही देखती।

मेरी सोच जितनी गहरी होती जा रही थी मै उतनी उत्तेजित हो रही थी, दाएँ करवट करके आँख बंद करते ही अरुण का लंड सामने आ जाता. जब उससे ध्यान हटाती, और बाये करवट बदलती तो बड़े और मोटे लंड के जैसे बैगन दिखने लगते उन बैगन की तो मैं दीवानी हो गयी थी. आखिर में सीधी लेटती तो सुनील भैया जिस तरह नूतन के स्तनों की चूसाई कर रहे थे, उसके जिस्म को सहला रहे थे, वो नजारा दिखाई देने लगता।उतेजना के मारे पूरा बदन आग की तरह जल रहा था। उस आग को शांत करने के लिए मेरे पास घर में एक ऐसा कोना नही था कि लंड जैसे दिख रहे बैगन को अपनी कुंवारी प्यासी चूत में डालकर आत्म मंथन (हस्थमैथुन) करके प्यास बुझा सकूँ। इसी उधेड़बुन मे मेरी आँख लग गयी।
बहुत ही शानदार अपडेट था गांव की छत पर कई सारी प्रेम कहानियां बनती है कुछ सुनील जैसी और कुछ पाक वाली ।रेखा का भाई सुनील तो नूतन के दूध चुसाई के पूरे मजे ले गया पहले अरुण के लन्ड ने फिर बैगन ने उसके बाद में नूतन के दूध चुसाई ने रेखा कि नीचे की नदी बहवा दी
 
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जबरदस्त अपडेट है । कहानी बहुत ही शानदार ढंग से आगे बढ़ रही है । दोनों बहनों में होड़ लगी है कि पहले चुदाई का मजा कोन लगी । देखते है बाज़ी किस के हाथ लगेगी
 

Lib am

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अध्याय -- 4 -----

रेखा ऊपर वाले की माया देख, एक इतने हैंडसम लड़के का लॉडा मुझे देखने का मौका अपने घर की छत पर से देखने को मिल गया। तुझे उस में कोई दिलचस्पी नहीं.” ये अच्छी बात है।
पर मै अगली बार जब वो आयेगा उसे अपने जाल में फांसकर ही रहूँगी।

मुझे अंजू दीदी की ये बात सुनकर एक पल के लिए खून कर दू उनका, जिस लड़के के साथ थोड़ी देर पहले मैने इतने हसीन सपने संजोये थे वो उसे ही फंसाना चाह रही थी।

मुझे अपनी सगी बहन अब मुझे अपनी सौतन नजर आ रही थी????


“ तुझे कैसे पता उस लड़के को मुझ में दिलचस्पी नहीं. हो सकता है वो मुझे पसंद करता हो, प्यार का इजहार करना चाहता हों.” मैने अंजू दीदी को गुस्से से घूर्राते हुए कहा.

“ हाई मर जाउ मेरी प्यारी बहना रेखा ! काश तेरी बात बिल्कुल सच हो. तेरी और उसकी रास लीला देखने के लिए तो मैं एक लाख रुपये देने को तैयार हूँ.”“ और उस हैंडसम से चुदवाने की लिए तो मैं जान भी देने को तैयार हूँ. रेखा रानी,

रेखा तूने चुदाई का मज़ा लिया ही कहाँ है. तूने कभी घोड़े को घोड़ी पर चढ़ते देखा है? जब ढाई फुट का लॉडा घोड़ी के अंडर जाता है तो उसकी हालत देखते ही बनती है. वो हैंडसम लड़का जिस लड़की पर चढ़ेगा उस लड़की का हाल भी घोड़ी जैसा ही होगा.”


अंजू दीदी की बातें सुनकर मेरा खून खोल रहा था, मेरा गोरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया, अर्चना जो मेरी सबसे अच्छी सहेली है वो मेरे चेहरे पर गुस्सा और आँखों में अंजू दीदी को कच्चा ही चबा जाने वाली निगाहों को देखकर हम दोनों की बहस को रोकते हुए बीच में ही हस्ती हुई बोल पड़ी मैने कुत्ते को कुतिया पर और सांड को गाय पर चढ़ते तो देखा है लेकिन घोड़े को कुतिया पर चढ़ते कभी नहीं देखा है.
हाहाहा हाहाहा हाहाहा हाहाहा


""""अर्चना का ये हँसी से व्यंग भरा ताना अंजू दीदी के लिए था। अर्चना की इस बात ने सिद्ध कर दिया वो मेरी सबसे प्यारी सहेली है। जो मेरी सगी बहन से ज्यादा मेरी दिल की बात समझती है।""""

मै भी उसकी बात का समर्थन करते हुए जोर शोर से हँसने लगी, मुझे और अर्चना को हँसता हुआ देख विवश होकर अंजू दीदी भी झूठी हंसी हँसने लगी, वो ये तो समझ गयी थी कि अर्चना ने यह ताना उन्हे ही मारा है।


हमारी इस तरह जोर से हँसी की आवाजें सुनकर सड़क पर आने जाने वाले लोग मेरी दुकान की ओर देखते हुए आ- जा रहे थे, एक दो बार कुछ खड़े होकर झांकने भी लगे जैसे दुकान के अंदर कोई तमाशा, या कोई हँसी की मेहफिल लगी और हम जोर शोर से हँस रहे है।


आखिरकार हँसी की मेहफिल का अंत घर के अंदर से आई मम्मी की कड़कती आवाज के साथ हुआ ""ओ नाश मिटी बस कर छोरियों एक दिन में कितना हंसोगी, रेखा चल किचिन में कुछ काम में हाथ बँटा।

चल रेखा में भी चलती हू बहुत देर हो गयी है, अपना ख्याल रखना और उम्मीद मत छोड़ना, उसका इशारा उस लड़के अरुण से मेरे मिलन की ओर था, आशा से आसमां टिका है, अर्चना मेरे हाथ की हथेली को छोड़ते हुए जाते हुई बोली।


अब बारी अंजू दीदी की थी और बड़ी कमीनी भरी मुस्कान के साथ अर्चना से बोली अर्चना सच्ची;; आशा के पास इतना बड़ा लंड है जो आसमान की गांड में टिका दिया। हाहाहा हाहाहा हाहाहा


Very funny चिढ़ते हुए अर्चना मुझसे बोली चल रेखा बाय!!!!!
मै घर के अंदर चली गयी।


रेखा वो थैले में देखो क्या सब्जी है, आलू बैगन बना देती हू, मम्मी बर्तन धोते हुए मुझसे बोली,
बैगन मुझ को कतई पसंद नहीं था। मम्मी मै बैगन नही खाती, तुम्हे पता है ना । मै थैले के अंदर से सब्जिया निकालते हुए बोली।


तो अपने लिए थोड़े मसाले डालकर चटपटे सूखे आलू बना ले, पर अब जल्दी कर शाम होने को आई है, मम्मी झूझलाते हुए मुझसे बोली।
मैने पूरा थैला उलट दिया और जब मेरी नजर एक दम ताज़े मोटे और लंबे बेगन पर पड़ी,,,,,और ऊसपर नज़र पड़ते ही मुझे जांगो के बीच सुरसुराहट होती महसूस होने लगी। उस बैगन की लंबाई और मोटाई एकदम अरुण के हथियार जैसी थी।


"यार रेखा सच में तुम्हारे दिमाग में एकदम गंदगी भरी हुई है इन सब्जियों में भी तुम अपने ही मतलब की चीज ढुंढ़ती रहती हो।" (मै मन ही मन मुस्काती हुई सोच रही थी)


मुझे बैगन को घूरते देख "" बावरी हो रही है छोरी और एक मोटे ताजे और लंबे बेगन को अपनी मुट्ठी में लेकर मुझे वो बैगन हाथ में थमाते हुए, बोली कितना ताजा है, हाथ में आते ही मजा आ गया, ले इसे काट दे, "" और चार पांच आलू भी काट दे। बांकी के वापस थैले में रख दे।

बेगन को हाथ में लेते ही मेरे बदन में झनझनाहट सी महसूस होने लगी,,,, बचे हुए बैगन थैले में डालते समय मै शर्म के मारे मम्मी से नजर नहीं मिला पा रही थी । ना जाने आज मुझे बैगन को हाथ में लेने भर से ही शर्म महसूस हो रही थी मुझे ऐसा लग रहा था कि मै बैगन को नहीं बल्कि किसी के लंड को हाथ से पकड़ी हुई थी। इस वजह से मेरा चेहरा शर्म के मारे लाल लाल होकर मेरी खूबसूरती को और ज्यादा निखार रहा था।


अरे छोरी और कितनी देर लगायेगी तीन बैगन थैले में राख्न वास्ते, ऐसे धीरे धीरे हाथ चलावेगी, मम्मी फन्फनाते हुए मुझे बोली।
मैने जल्दी से थैले में बचे हुए तीनो बैगन डाले, और एक थाली में रखा हुआ लंबा और मोटा वाला बैगन छुरी से काटने लगी।

खैर जैसे तैसे करके मै सब्जियां काट कर वापस अपनी दुकान पर जाने लगी तो मम्मी ने पीछे से आवाज दी, ओ रेखा जा छोरी छत पर से कपड़े उठा ला शाम हो गयी सूख गए होंगे।

मम्मी का ऑर्डर सुनकर मै छत की तरफ आगे बढ़ने लगी मै अपने कदम छत की तरफ बढ़ा तो जरूर रही थी लेकिन बेगन को लेकर मेरे मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी,,, जिसकी वजह से मेरी बुर से बार बार रीसाव हो रहा था और चलते चलते मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी जो कि मुझे साफ-साफ महसूस हो रही थी। मैने आज तक बेगन कि इस तरह की उपयोगिता के बारे में कभी सपने में भी कल्पना नही की थी।

""नयी नयी जवानी में जरा सा भी ऊन्मादक माहौल होते ही या ख्यालों में उन्माद जगते ही पेंटी गीली होने लगती है।"""

पैंटी में फैल रही गीलेपन की वजह से मेरा हाथ बार-बार जांगो के बीच पैंटी को एडजस्ट करने के लिए पहुंच जा रहा था। जो कि मुझे अपनी यह अदा बड़े ही कामोत्तेजक लग रही थी।

"" अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसकी हालत अपने आप खराब हो जाए वह तो सोच-सोच कर ही अपने लंड से पानी छोड़ दे की रेखा अपनी नाजुक उंगलियों से अपने कौन से नाजुक अंग को बार बार सलवार के उपर से छु रही है।""

(वैसे भी मेरी हर एक अदा बड़ी ही कामोत्तेजक नजर आती थी यहां तक कि मेरा सांस लेना भी लोगों के सांस ऊपर नीचे कर देता था।)

मै जल्दी-जल्दी हड़बड़ाहट में बैगन की कल्पना से बाहर निकलकर छत की ओर जाती सीढ़ियों पर चलती हुई छत पर पहुँच गयी।

"""छोटे शहरों में मिडिल क्लास फैमिली के घर भले ही छोटे हो, लेकिन छत अक्सर बड़ी होती इसकी वजह ऐसे छोटे छोटे घरों की छत भी आपस में बड़ा ही प्यार करती, एक दूसरे के हाथ थामे आपस में मिली रहती है। जिससे छत का दायरा बढ़ जाता है, इन्ही छतो के नीचे रहने वालो में भले ही प्यार ना हो लेकिन इन्ही छतो के ऊपर बहुत सी प्रेम कहानिया शुरु होती है, पनपती है, और प्रेमी जोड़े की पहले मिलन की दास्ताँ की गवाही देती है।"""

मै धीरे धीरे अपनी कामुक मादक भरी चाल चलते हुए छत पर रस्सी पर सूखे हुए कपड़े समेटने लगी, सारे कपड़े समेटने के बाद वापस सीढ़ियों की तरफ आई, तभी मुझे लगा की पड़ोसी शर्मा के घर की छत पर कोई और भी मौजूद है | पहले मुझे लगा, शर्मा uncle होंगे, लेकिन छत से आती आवाजो पर ध्यान दिया, मुझे कुछ और आवाजे सुनाई दे रही थी, लेकिन जब मेरे कानो में कामुक सिसकारियों की आवाज पड़ी तो मेरे कदम ठिठक गए | भले ही मैने अभी तक सेक्स नही किया था लेकिन सेक्स की मादकता से भरी सिसकारियां जैसे ही मेरे कानो में पड़ी मै समझ गयी, छत पर जरुर कुछ चल रहा है |

आश्चर्य और सतर्कता से मै शर्मा जी छत की तरफ बढ़ने लगी, जैसे जैसे मै छत की तरफ बढती जाती, सिसकारियो की आवाज तेज होती जा रही, जब मै छत पर बनी तीन चार फुट की छोटी सी बनी बाउंड्री दीवाल के पास पंहुची, तो मैने जो भी आँखों से देखा उस पर मुझे यकीन नहीं हुआ |

मेरे सगे सुनील भैया पड़ोस में रहने वाले मनोज शर्मा की बेटी नूतन को चटाई पर लिटाकर उसके स्तन की चुसाई कर रहे थे, | नूतन ने ऊपर सिर्फ एक लूज कुर्ता पहना हुआ था जिसे उन्होंने ऊपर खिसकाकर नूतन के चेहरे को ढक दिया था | सुनील भैया एक हाथ से नूतन का बाया स्तन चूस रहे थे, और दूसरा हाथ नूतन की कमर की नीचे था और कपड़ो के ऊपर से ही कभी जांघो और कभी उसके बीच की जगह को सहला रहा थे |

ये द्रश्य देखकर मुझे अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ | नूतन उम्र में मेरे बराबर है और सुनील भैया को भी मेरी तरह भैया बोलती है, यहाँ तक कि सुनील भैया भी नूतन को अपनी छोटी बहन मानकर ही उसके साथ हँसी, मजाक, बातचीत, और बर्ताव करते है।

सुनील भैया की उम्र भी कोई ज्यादा नही है,वो मुझसे सिर्फ एक साल बड़े है और वो अपनी छोटी बहन की उम्र की लड़की के साथ जो उन्हें मुह बोला भाई बोलती है उसके साथ यह सब कैसे कर सकते है ?
सुनील भैया का नूतन के साथ ये चक्कर कब से चल रहा है ?

ऐसे कई सवाल मेरे दिमाग में बिजली की तरह कौंध गए | मै सदमे में थी और मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था जो मै देख रही हू वो सच है | तभी सुनील भैया ने नूतन की चूची में दांत गडा दिये | नूतन के मुहँ से दर्द भरी सिसकारी निकल गयी - आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् |


सुनील भैया - तुम हमें अपनी चिकनी गोरी चूत के दर्शन कब करावोगी ?


मादक नशे में तैरती उफनती नूतन ने झट से बोली - कभी और, अभी बस चूस के काम चलावो |
सुनील भैया – अभी क्यों नही इतना कहकर फिर से नूतन के स्तन पर दांत गडा दिए
सुनील भैया और नूतन की काम कीडा का नजारा देख मै भी गरम हो चली, मेरा शरीर भी उत्तेजना के आवेश में आने लगा, लेकिन तभी मैने खुद को सयम करते हुए, उन दोनों को रोकने की ठानी |


मैने तेज आवाज में खाँसा और आसमां की ओर देखने लगी | मेरे खांसने की आवाज सुनते ही नूतन ने अपना कुर्ता तेजी से नीचे किया और झट से चटाई से उठकर बैठ गयी और सुनील भैया को दूर ठेल दिया | सुनील भैया चटाई पर इधर उधर लुढ़क गए और नूतन बाल सही करके खड़ी हो गयी | सुनील भैया भी चटाई पर इधर उधर लुढकने के बाद उठकर खड़े हो गए |


दोनों के खड़े होते ही गुस्से में मै पूछने लगी - सुनील भैया ये सब क्या हो रहा है ?
सुनील भैया और नूतन सर झुकाकर जमींन की तरफ देखने लगे | मैने दुबारा जोर देकर पुछा तो सुनील भैया मेरे पैरो की तरफ निगाह रखकर हिचकिचाते हुए कहने लगे - ओह रेखा क्या सरप्राइज है ?


मैंने पुछा यहाँ क्या हो रहा था ?
कुछ नहीं रेखा वो नूतन की पेट की नाभि की जो नाड़ी होती हैं, वो ठीक कर रहा था, उसके बहुत दर्द था पेट में।
सुनील भैया ने बहाना बनाया |


मैने कहा - अच्छा तुम बड़े डॉक्टर हो, !!!
फिर ठीक है आओ नीचे और तुम दोनों जो कर रहे थे | यहाँ जो कुछ हो रहा था सब बताउंगी मम्मी को |
इतना कहकर मै तेजी से छत से नीचे आ गयी और अपने कमरे में जाकर बैठ गयी | अभी भी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब मम्मी को बताये या नहीं | ये सब मेरे लिए बहुत ही शर्मनाक था |

""" हमारे देश की 60 प्रतिशत मध्यम वर्गीय फैमिली के छोटे छोटे घरों में सबसे बड़ी समस्या जगह की होती है, घर में अकसर दो से तीन कमरे होते है, जिससे privacy की समस्या बनी रहती है, छोटे छोटे झगड़े होने पर भी घर के लोग एक दूसरे के ऊपर ना चाहते हुए भी नजर गड़ाये रहते है, खाना, नहाना और हगना इन तीन काम को छोड़कर कभी अकेले रहकर वो काम नही कर सकते है जिस काम के लिए privacy चाहिए होती है, Privacy चाहिए तो घर के अंदर सिर्फ दो जगह होती एक छत और दूसरा बाथरूम जहाँ कुछ पल के लिए कोई आत्म मंथन (हस्थमैथुन) कर सकता है। हाहाहा हाहाहा हाहाहा """

(मेरे घर में भी वो ही समस्या थी दो कमरे थे, एक में जब पापा गुजरात से आते तो वो सोते थे, उनकी absent में सुनील भैया। मै मम्मी और अंजू दीदी एक कमरे सोती थी। पापा के आने पर सुनील भैया गर्मियों के मौसम में छत पर और सर्दी, बारिस में दुकान में सोते थे। अभी पापा तो नही थे इसलिए वो उनके कमरे में सोते थे।)


रात के आठ बज गये, और हम सबने साथ बैठकर खाना खाया, हम तीनो ही आपस में कोई भी बात नही कर रहे थे, सुनील भैया की हालत सबसे ज्यादा खराब थी, उनके चेहरे पर एक डर दिख रहा था, वो मुझसे नजर नही मिला रहे थे। हालांकि सुनील भैया और नूतन वाली बात अभी तक मैने किसी को नही बताई थी। हम सब खाना खा कर करीब दो घंटे बाद हम सब अपने बिस्तर पर लेट गए। मै और अंजू दीदी और मम्मी एक ही बेड पर सोते थे।

मुझे नींद नही आ रही थी, मै आज पूरे दिन जो हुआ उसके बार में सोचकर मन ही मन कश्मकश में उलझी हुई थी, आज हमारे घर की छत ने हम तीनो भाई बहन की जिंदगी बदल दी थी। मेरी अंजू दीदी अगर छत पर ना गयी होतीं तो अरुण की लंड का दीदार ना करती, और हम दोनों बहन एक दूसरे को सौतन की नजर से ना देख रहे होते। मैं अगर छत पर ना गयी होती तो सुनील भइया का नूतन के सैया वाला रूप नही देखती।

मेरी सोच जितनी गहरी होती जा रही थी मै उतनी उत्तेजित हो रही थी, दाएँ करवट करके आँख बंद करते ही अरुण का लंड सामने आ जाता. जब उससे ध्यान हटाती, और बाये करवट बदलती तो बड़े और मोटे लंड के जैसे बैगन दिखने लगते उन बैगन की तो मैं दीवानी हो गयी थी. आखिर में सीधी लेटती तो सुनील भैया जिस तरह नूतन के स्तनों की चूसाई कर रहे थे, उसके जिस्म को सहला रहे थे, वो नजारा दिखाई देने लगता।उतेजना के मारे पूरा बदन आग की तरह जल रहा था। उस आग को शांत करने के लिए मेरे पास घर में एक ऐसा कोना नही था कि लंड जैसे दिख रहे बैगन को अपनी कुंवारी प्यासी चूत में डालकर आत्म मंथन (हस्थमैथुन) करके प्यास बुझा सकूँ। इसी उधेड़बुन मे मेरी आँख लग गयी।
एक तरफ रेखा है जो पहले संभोग के सपने ले रही थी अरुण के साथ और दूसरी तरफ अंजु अपने अनुभव को और बढ़ाना चाहती थी। अब रेखा कच्ची उम्र के सपनो में फंस गई है और हर लंबी वस्तु उसका ध्यान एक ही तरफ ले जा रही थी। रही सही कसर अपने भाई और नूतन की रास लीला देख कर पूरी हो गई। अब रेखा का नंबर अरुण के साथ लगता है या फिर अरुण की किसी साजिश की वजह से किसी और के साथ या सुनील के साथ? शानदार अपडेट।
 

Kratos

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Phenomenal update Rekha ji...dono bahno me hod lagi hai ki...saman kaun lega. aur Rekha jaha anju par waise hi bhadki Hui hai..aur kahi isi sanak me Rekha kuch kand na karde.. aur idhar Sunil chat par bhaiya ban ke saiya wala maja utha rahe hai.incest ki shuruaat kya Ghar sehi hogi. Aur kahi anju me launde ka lauda le liya tab sudhir ka kya hoga..kyonki Rekha to Milne se rahi cinema wali harkat se aur anju ab shayad hi sudhir ko bhav de..
 

hypernova

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मेरी आपसे एक विनती है। चाहे कितने ही पाठक फ़ोटो डालने के लिए कहें, ऐसा कभी नहीं करियेगा। फ़ोटो केवल वे लेखक / लेखिका डालतें हैं जिन्हें अपनी लेखन कुशलता पर विश्वाश/ भरोसा नहीं होता, या जिन्हें कहानी कमजोर लगती है। Inserting images only diverts the attention and is completely avoidable. This forum is full of threads which exclusively have nude/ semi-nude or glamour images. I can not understand then why there is clamour for images in a story. I can only express my opinion, it's your prerogative to decide which path you wish to take.
 

kamdev99008

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AGREE मेरा भी यही मानना है
 

HalfbludPrince

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Sahi kaha
 
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