• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Status
Not open for further replies.

Rekha rani

Well-Known Member
2,541
10,763
159
माफी चाहूंगा

आपकी कहानी में अब मुझे चुदाई कम लिखाई ज्यादा दिख रही है.....

कृपया ध्यान दें......
थैंक्स
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,518
354
I don't have words to appreciate your story. Maine pahle hi kaha tha ki ham jaiso ko aapse seekhne ki zarurat hai. Well idhar ke teeno hi update behad shandaar aur behad hi unique the....and sorry dear byastata ke chalte samay par main apne vichaar nahi rakh saka.... :sigh2:

Pichhle update me aapne jis tarah se Maa ke bare me explain kiya tha wo outstanding aur ekdam sach baat thi. Duniya me Maa shabd sabse pavitra mana jata hai aur aisa ham sab samajhte bhi hain. Shayad yahi vajah hai ki ham us Maa shabd ke bare me kabhi galat raay banane ki to baat door uske bare me galat sochte tak nahi. Ham ye sochna hi nahi chaahte ki Maa bhi ek aurat hi hoti hai jiski apni bhi kuch hasrate aur khwaaishe hoti hain...halaaki aaj ki generation aur aaj ka time aisa ho gaya hai ki loga ka apni soch aur apne vichaaro par koi niyantran nahi raha. Ho sakta hai ki ye aaj ke pariwesh ka asar ho. Khair is topic par baat karna byarth hai....

Sunil aur Rekha ke beech jo incident hua usko aapne bahut shandaar aur kushalta se darshaya hai. Wakt aur halaat ke bhanvar me fanse huye insaan ke sath waakayi me aisa ho jata hai. Is incident ke baad dono bhai bahan ke bich kaafi kuch badal gaya hai. Halaaki is last wale update me cheezo ko pahle ki tarah banane ki koshish ki gayi lekin shayad ab ye sambhav hi nahi hai ki dono ke beech bhai bahan wala rishta aur wahi pavitrata kaayam ho paaye. Ye scene bhi aapne bahut hi khubsurti se likha hai.. :applause:

Guzarte wakt ke sath jo kuch Rekha ke sath ghatiya ho raha hai usse aisa bhi lagta hai ki kahani se hi nahi balki Rekha ki zindagi se bhi Arun ka character out hota ja raha hai. Agar bhai bahan ke beech aise hi incident hote rahe to Arun ke hath se to Rekha gayi. Yaha par hamne gaur kiya ki bhole bhale Sunil me bhi tabdiliya aa gayi hain. Jis bebaaki aur nidarta ke sath usne Imran Hashmi ka roop liya tha aur Rekha ke hotho ko apne hotho me kaid kiya tha usse to yahi laga. Waise bhi shuruaat me hi pahal karne ki samasya hoti hai uske baad to sab asaan sa ho jata hai. Ab agar Rekha ne shakhti ya virodh na dikhaaya to Sunil ke liye bil me ghusna mushkil nahi hoga :D

Sheetal jaisi school teacher hamare desh ke har school me honi chahiye....jo bachche school jane me aana kaani karte hain aur jo padhaayi karne se katraate hain unke liye sheetal jaisi madam ki hi zarurat hai. Study or future ka vikas ho ya na ho lekin baaki cheezo ka vikas kar lene me wo zarur safal honge... ;)

Aaj kal maa bada khush hai aur us khushi me singing bhi kar rahi hai...lagta hai palang tod dene wali khushi ka jugaad ho gaya hai...let's see is khushi ka raaz kya hai :smoking:

Is forum ko aap jaise writers ki zarurat hai aur ham jaiso ko bhi taaki itni behtareen kahaniyo ko padhne ka gaurav praapt ho. Jaise jaise ye kahani aage badh rahi hai waise waise hame aapki lekhni me bhi nikharta dikh rahi hai. Shabdo ka chayan, situation ko behtar tarike se explain karna, tatwa gyaan ki kuch aisi baate jinhe aise forum par zyadatar log padhna nahi chaahte par ham yakeenan padhna chaahte hain...kyoki ye gyaan ki baate aur gyaan kaisa bhi ho use prasaad ki tarah tahe dil se grahan karna chahiye. Aapka gyaan to hamari kalpanaao se bhi upar wala hai...aise hi likhti rahiye dear. Aapki kahani, aapki lekhni aur aapki soch ko pranaam :bow:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,572
88,460
259
रेखा रानी ये नाम इस फोरम पर बहुत समय तक गूंजेगा. जब हम चले जाएंगे, हमारा ये जो थोड़ा सा दौर बचा है बीत जाएगा तब कोई तो होगा जो थामने लायक होगा इस फोरम को अपनी लेखनी से वो रेखा ही होगी
 

Vikashkumar

Well-Known Member
3,125
3,900
158
होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। जो एक भाई के लिए भाई बहन के रिश्ते से ग़लत हैं। तो वह शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी कहता हुआ मुझे वापस सीढ़ियों पर ठीक से चढ़ने की नसीहत देकर अपने कमरे में चला गया।


अब तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


मै अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि सीढ़िया चढ़ते चढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी।


अध्याय -- 13 -----


सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागती हुई रोती जा रही थी। ना ही होश था ना ही आँसू रुक रहे थे। छत से होते हुए बाथरूम में जा पहुँची। बाथरूम में दाखिल होते ही अपने पीछे दरवाजे को कस कर बंद कर लिया और दरवाज़े के सहारे नीचे बैठ गई। आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।


अचानक तेज़ आवाज़ होने से उसी छत पर बने बाथरूम के पास हड़बड़ी में अंजू आई।


"रेखा..." बाथरूम से बाहर खड़ी अंजू ने अब मुझे पुकारा।


लेकिन मेरा तो रो रो के बुरा हाल था।


"रेखा, बताओ मुझे क्या हुआ? तुम रो क्यूं रही हो?" अंजू अब नज़दीक बढ़ने लगी थी।


"वोह....वोह अंजू...वोही..." मैने किसी तरह बोलने की कोशिश की पर डर से कांप रही थी।


"कौन है? तुम किसकी बात कर रही हो?" अंजू अब मेरी हालत देख कर घबराने लगी थी। पर उसने जल्दी आ कर मुझे सीने से लगा लिया और माथे पर स्नेह से चूम लिया।


"रिलैक्स, तुम उठो यहां से पहले। मुझे पूरी बात बताओ। अंजू ने मुझे छत की मुंडेर पर बैठाते हुए पूछा।


"अंजू.... वो सुनील जिससे मेरी...." मै बोलते बोलते रुक गई ।


"सुनील ही था......तो क्या हुआ?" मुझ को झटका लगा था। और अंजू को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो यह बात पहले से जानती हो।


सुनील ने भी बहुत बार छूआ है मुझे। अब मैं किसी के दिमाग में क्या चल रहा है इसकी गारंटी तो नहीं ले सकती। हो सकता है कि यह भूल वश हुआ हो और ये भी हो सकता है कि उन्होने कामुकतावश उत्तेजित होकर ऐसा किया हो। तो क्या हो गया ? आखिर है तो भाई ही...!!


हां अगर अक्सर ही वो ऐसा करने की कोशिश करेगा तो भले वो मेरा ही भाई क्यो ना तो मैं उसे डांट कर समझा सकती हूं कि ये गलत है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये। और सुनील हमारा भाई है, रिश्ते हमें अपनी मर्जी से नही मिलते, वो भगवान की मर्जी से मिलते है, हमें भी उन रिश्तों को निभाना आना चाहिए, !!


कल्पना कर के सोच और बता मुझे
वैसे तो अभी मेरा मां बनना तो दूर शादी तक नहीं हुई है लेकिन मान लेते हैं कि भविष्य में जब मेरा बेटा जवां होने पर कभी कामुक भावनाओं से ग्रस्त हो मुझे यौन रूप से छू भी लेता है तो ऐसी बड़ी बात ना हो जायेगी तब भी उसकी मै मां ही रहूंगी।


कब से मै यही तो कहने की कोशिश कर रही हू। एक सामान्य ढंग के भारतीय परिवारों में कभी भी इन छोटी मोटी चीजों की लोग इतनी परवाह नहीं करते और हमें भी इन्हे इतना तूल देने की जरूरत नहीं लगती जब तक कि ऐसी चीजे बार बार ना दोहराई जांय। रेखा तुम भी अब दोहरा जीवन जीना बंद करो..... जो अंदर से हो वैसे ही बाहर से बनो... मेरी तरह बोल्ड, बिंदास, तब ही जिंदगी के मजे ले पाओगी..... वैसे भी हमारे पास आजादी का अब एक साल बचा एक हफ़्ता बाद स्कूल खुल जायेंगे... 12 वी खतम फिर शादी..... मैने अक्सर मम्मी को कहते सुना है, 12 वी के बाद दोनों बेटियों की शादी एक साथ करनी होगी....!!


अब इस बात को इस रात की तरह भूल जा..... चल अब नीचे...

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान मेंने अपने भाई से किसी क़िस्म का राबता अथवा मौखिक संपर्क (अहसास का रिश्ता) ना रखा। मेरी किस्मत में पता नहीं क्या क्या लिखा था? खैर , एक दो दिन में ही मेने महसूस किया कि मैं नयी उमंग से मुखातिब हो रही थी.

"जुलाई अगस्त (सावन) के मस्त महीने हमेशा से ही प्यार, मोहब्बत, (सेक्स) के बारे में अपने कामुक प्रभाव के लिए प्रसिद्ध रहे हैं क्योंकि गर्मी ख़त्म हो रही होती हैl सर्दी भी शुरु नहीं हुई होती है और कुदरत भी इस समय अपने रंग बदल रही होती हैl पेड़ो पर हरे भरे नए पत्ते आ रहे होते हैं और तरह तरह के रंग बिरंगे फूल चारो तरफ खिले होते हैं जिन्हे देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। "

हमारे स्कूल भी खुल गये थे....

""सरकारी स्कूलों की प्रसिद्ध कहानी... क्लास नई, किताबें पुरानी""

गवर्मेंट गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल हिसार..... हमारी जिंदगी के अनुभव और स्कूल की मस्तियों के किस्से बिना ये कहानी अधूरी सी लगेगी.........!!


(शिक्षा सत्र शुरू होते ही सड़क छाप मजनुओं का जमावड़ा गर्ल्स स्कूलों के बाहर लगने लगता है।)


मै, अंजू और अर्चना स्कूल आते जाते हमारे कदम सड़क पर होते किंतु आंखें दो मछलियों की तरह बेताबी से इधर-उधर घूमतीं और मोहल्ले भर के लड़कों को आमंत्रित करतीं. गली नुक्कड़ गुमटी सड़क पर चलने वाले कच्ची उम्र के अच्छे और कम अच्छे लड़कों के दिल हमें देख कर धड़कने लगते.


मेरा और अर्चना के घर का फ़ासला दस मिनट से ज़्यादा नहीं था. हम तीनों पक्की सहेलियां, अक्सर साथ आना जाना, स्कूल के बाद भी एक बार ज़रूर मुलाकात होती. कभी शाम को मै, अर्चना के घर तो कभी अर्चना, मेरे घर.. ........!!
अर्चना के घर में सबको मेरी मुखरता भाती. मुंह खोलती तो मेरी उन्मुक्त बातें पुरवाई के झोंके-सी माहौल को तरोताज़ा कर देतीं. देखती तो बांकी चितवन सबके मन का ताला खोल देती. अर्चना अपनी अंतरग सखी यानि कि मै (रेखा) की हरकतों और उसके लिए आहें भरने वाले लड़कों की फ़ौज से वाक़िफ़ थी पर मजाल जो कभी किसी से इस बात का खुलासा किया हो.


हालांकि अर्चना को मेरी छिछोरी हरकतें कतई पसंद न थी, हम तीनों के मिजाज़ और परवरिश और पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी रात दिन का अंतर था, किंतु वह उम्र अनहद प्यार और दोस्ती निभाने की होती है सो अर्चना ने शिद्दत से अपनी दोस्ती निभाई.


कभी कभी स्कूल से आते जाते हमउम्र लड़कों से मै मिलने भी लगी थी, ऐसे में अर्चना अक्सर आगे बढ़ जाती. बहरहाल आज की तरह वो डेटिंग का जमाना नहीं था, छिटपुट आंख-मिचौली, जिसे बुज़ुर्गों की भाषा में कहो तो नैन मटक्का, चिट्ठियों का लेनदेन, एक-दूजे को देख लेनेभर की हसरत और ना देख पाने पर आहें भरना… बस इतने में ही बाली उमर की कहानियां बन जाती थी. बॉयफ्रेंड बन जाना तो ""चरित्रहीनता का सर्टिफ़िकेट"" था.


हमारी उफनती जवानी को देखकर हमारे इर्द-गिर्द कितने ही दीवाने भंवरों की तरह डोलते, कोई गली के नुक्कड़ तो कोई पान की गुमटी पर..; कोई दुकान पर बैठा सेल्समेन तो कोई सीटी बजाता सेहज़ादा . पड़ोस के स्कूलों के छात्र भी रिंग मास्टर टाइप अपने किसी दोस्त की अगुवाई में टोली बनाकर स्कूल से लौटती लड़कियों का पीछा करते. मधुमक्खियों-सी लड़कियां भी हंसती खिलखिलाती मस्ती करती आगे-आगे चलतीं, जिनमें "" रेखा रानी "" मधुमक्खी की भूमिका में होती.

अर्चना इस ख़ुराफ़ात का हिस्सा कम ही बनती, क्योंकि वह अपनी सायकिल से घर लौटती. उसे सहेलियों के साथ मटरगश्ती करते हुए घर आने की इजाज़त नहीं थी. लड़कपन की मासूम और मादक फैंटेशियो में मुझे और अंजू को ख़ूब मज़ा आता. सब हम पर लट्टू हैं, हमें तरजीह देते हैं, यह बात मन को गुदगुदाती. भले ही उसमें ज़्यादातर सड़क छाप मजनू होते, पर हमारे लिए यह टाइम पास बड़ा सम्मोहक था.

हमारे जीवन में यूं भी मनोरंजन और आनंद के विकल्प कम थे. पढ़ने लिखने में हम औसत छात्रा थी. परिवार निम्न मध्यमवर्गीय था. पिता की इकलौती कमाई में हम भाई बहन पल रहे थे. जैसे-तैसे पढ़ाई चल रही थी. मां को चूल्हे-चौके से फ़ुर्सत कहां कि अपनी बेटियों के चाल-चलन पर निगाह रखे. बहरहाल, अपनी चाल ढाल और लक्षणों के कारण अंजू के साथ साथ मेरी भी शालीनता खोती जा रही थी, कहें तो ज़माने की निगाहों में बदनाम होती जा रही थी. शायद अब हम पर चालू लड़की का ठप्पा लग गया था.

मुझे आज भी याद है, अगस्त की पांचवी तारीख थी, स्कूल के गलियारे पे तो जैसे हर कोई जल्दी में ही था | हाथ में किताबे और बैग्स लिए बस हर कोई कही ना कही जाना ही चाहता था | बहुत से कमरे और हर एक कमरे कोई ना कोई क्लास चल ही रही थी | चमचमाती हुई कुर्सिया , पूरी तरह से साफ़ सुथरा फर्श , जगह जगह पे डस्टबिन , हम ने एक कमरे में एंट्री की और पीछे पीछे सब घुस गए |

कमरे की छत पर लटका पुराना पंखा अपनी स्पीड से कमरे को ठंडा रक्खे हुए था , चेयर्स और डेस्क उस कमरे को एक क्लास का लुक दे रहे थे | कमरे की दिवार के बराबर ब्लैकबोर्ड बना हुआ था जिसपे चाक से कुछ लिखा भी हुआ था | मैने ध्यान से पढ़ने की कोशिश की " अपना.. साइज बताइये ! " मुझ को कुछ समझ नहीं आया की उसका क्या मतलब हैं |

"रेखा तू यहां आ मेरे पास बैठ " अर्चना ने मुझ को अपने बगल वाले सीट पे बैठा लिया ""अंजू के पीरियड चल रहे थे जिसकी वजह से वो दो तीन से स्कूल नही आ रही थी |"" सबसे आगे जो लड़किया बैठी थी ज्यादातर आँखों में चश्मे लगे हुए थे | देखने से ही पढ़ने वाली लग रही थी | धीरे धीरे बात करने की आवाज पुरे क्लास में गूँज रही थी | इतने में क्लास में एक औरत ने एंट्री की, सारे स्टूडेंट्स एक साथ खड़े हो गए |

ब्लू कलर की साड़ी और उसपे स्लीवलेस ब्लाउज, पूरी तरह से बदन से चिपका हुआ था | लग रहा था जैसे की ये कपडे खासकर उसके लिए ही बनाये गए हो | सुडौल जिस्म , भारी स्तन , ना बहुत ज्यादा पतली और ना ही बहुत ज्यादा मोटी कमर , साड़ी इतनी लोअर पोजीशन में थी की नाभि और उसके निचे पांच अंगुल की जगह साफ़ साफ़ नजर आ रही थी | बाल अच्छी तरह से सीधे किये हुए गर्दन के दायीं तरफ रक्खे हुए थे | औरत ने अपने हाथ से एक कागज मेज पे रक्खा और ब्लैकबोर्ड पे लिखे हुए शब्दों को पढ़ने लगी | पीठ क्लास की तरफ होने की वजह से बैकलेस ब्लाउज , पीठ को अच्छी तरह से दिखा रहा था | मुझ को पता ही नहीं चल रहा था की आखिर ब्लाउज बदन पे टिका कैसे हैं |


"गुड मॉर्निंग मैंम ! " एक स्वर में सबने विश किया |

मै भी सबके साथ ही खड़ी हो गयी और विश किया | उस औरत के चेहरे पर एक अलग ही तेज़ चमक रहा था |

"अर्चना ये कौन हैं ? " मैने बैठते हुए उससे पुछा |

"ये है शीतल जैन , हमारे स्कूल की बायोलॉजी की नई संविदा टीचर , बहुत ही इंटेलीजेंट और साथ ही साथ हसमुख भी बहुत हैं सबसे हसी मजाक करती हैं , इसलिए तो इनकी क्लास में इतनी हाई अटेंडेंस रहती हैं " अर्चना ने बताया !

शीतल जैन की मौजूदगी ने ही क्लास में टेंशन एक लेवल ऊपर कर दिया था |

"किसने लिखा ये ब्लैकबोर्ड पर ? " शीतल ने अपनी गहरी और गंभीर आवाज में क्लास से पूछा | क्लास में पूरी तरह से ख़ामोशी पसरी हुई थी | मैने एक बार फिर से ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए शब्दों को पढ़ा |

"अपना साइज बताइये ! " भला किस साइज की बात हो रही है और यहाँ ब्लैकबोर्ड पे लिखने की क्या जरुरत हैं उसे ? शीतल ने कुछ देर सोचा और फिर चाक से उस लाइन के निचे कुछ लिखने लगी |

"तुम्हारी कल्पना से बाहर !! " शीतल ने जवाब लिखने के बाद क्लास की तरफ देखा।

सवाल हमेशा मुँह पे करना चाहिए , इस तरह छुपकर लिखोगी तो जवाब भी ऐसे ही मिलेगा , सामने से पूछती तो शायद असली साइज बता भी देती !! " शीतल ने अपने होंठो पर स्माइल लाते हुए कहा |
क्लास में हंसी का एक ठहाका गूंजा |
हाहा हाहा हाहा

""बारहवी की क्लास बायोलॉजी विषय हमेशा से किशोर किशोरियों उम्र के लड़के ही नहीं लड़कियों में भी एक सेक्स संबधी उत्सुकता भरा हुआ विषय रहा है, किताब के अंदर के चैप्टर विचार के साथ साथ जिस्म के अंदर होने वाले बदलाव से भरे प्रश्न करते रहते है....... ""

बॉयोलॉजी का एक पेज नंबर बताने के बाद शीतल ने उस टॉपिक पर बोलना शुरू किया
टॉपिक था मेंसुरेशन साइकिल - प्रोसेस एंड एक्टिविटी |

"लड़कियों की माहवारी इंडिया में एक अनछुआ विषय हैं | लोग इस बारे में बात करने से कतराते हैं और इस एक शर्मनाक बॉडी प्रोसेस की तरह ट्रीट किया जाता हैं जबकि बाहर के देशो में इसे अच्छी तरह से एक्सप्लेन किया जाता हैं जब किसी लड़की को पीरियड्स आना स्टार्ट होते हैं !"

शीतल ने ध्यान से पूरे क्लास की तरफ देखा
हाँ अर्चना क्या सवाल हैं तुम्हारा ? " क्लास में एक हाथ ऊपर देख कर शीतल ने पूछा |

"मैंम वो कहते हैं की पीरियड्स स्टार्ट होने के बाद ही लड़की के साथ सेक्स करने पर वो माँ बन सकती हैं क्या ये बात सही हैं ? " अर्चना वापस अपनी सीट पे बैठ गयी |

"बिलकुल सही अर्चना !! जब लड़की के पीरियड्स स्टार्ट होते हैं और उसका गर्भाशय में अंडे का फर्टिलाइजेशन होता हैं तभी वो किसी लड़के के वीर्य का इंतज़ार करती हैं , जैसे बारिश के बाद खेत की मिटटी बहुत ही जयादा उपजाऊ हो जाती हैं और बीज के डाले जाने का इन्तजार करती हैं वैसे ही एक लड़की माहवारी के पहले ही बीज के आने का इंतज़ार करती हैं और अगर उसे निचित टाइम तक लड़के का बीज नहीं मिलता हैं तो उसके गर्भाशय से वो अंडा ब्लीडिंग के द्वारा बाहर निकल जाता हैं | " शीतल ने अर्चना के क्वेश्चन का जवाब दिया |

"हाँ रेखा पूछो !" अबकी बार मैने अपना हाथ उठाया ।

"तो इसका मतलब की अगर किसी लड़की का पीरियड्स अभी नहीं हो रहा हो तो वो किसी भी लड़के से कितना भी सेक्स करे मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध बनाये , लड़की के गर्भवती होने का कोई डर नहीं होता ? "

मेरा प्रश्न सुनकर क्लास में मौजूद हर कोई हसने लगा | शीतल भी अपनी हंसी नहीं रोक पायी | शीतल को हसते हुए देख कर सारे और भी तेजी से हसने लगे |
हाहा हाहा हाहा हाहा

"हाँ रेखा , ये बिलकुल सही हैं , अगर किसी लड़की का अगर मेंसुरेशन साइकिल स्टार्ट नहीं हुआ हैं और उसकी योनि में वीर्य घुस भी जाता हैं तो वह प्रजनन करने के लिए कही कोई अंडा ही नहीं होगा और वीर्य के शुक्राणु को पहुंचने के लिए कोई जगह ही नहीं मिलेगी | और अगर तुम लोगो की जनरेशन की नयी भाषा में समझाए तो मतलब एक लड़की अपनी पीरियड्स स्टार्ट होने से पहले चाहे जितना या चाहे जितने लड़को से चुदाई करवाएं वो प्रेग्नेंट नहीं होगी " शीतल ने अपनी होंठो की हंसी छुपाते हुए मेरे प्रश्न का उत्तर दिया |

क्लास की लड़किया हाथ से मुँह को छिपाकर हंस रही थी | हर कोई शीतल के इस हलके फुल्के माहौल में पढ़ाई का आनंद ले रहा था सिवाय मुझको छोड़कर |

शीतल के शब्दों के इस्तेमाल को सुनकर मै दंग हो गयी थी | भला एक टीचर कैसे इस तरह से अपने छात्राओ के सामने बोल सकती हैं | "चुदाई" शब्द तो मैने अब तक सिर्फ अंजू दीदी से ही सुना था वो भी आपस में खुशूर फुसुर करते हुए लेकिन यहाँ तो गुरु और शिष्य के बीच ही इस शब्द का इस्तेमाल हो रहा हैं और इतने गंदे शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी जिस तरह से शीतल और क्लास के बच्चे बिलकुल "कूल" दिख रहे थे उससे लग रहा था की ये पहली बार नहीं है |

मेरे चेहरे से उलझन धीरे धीरे हटती जा रही थी और अपनी नयी संविदा टीचर शीतल जैन के चेहरे पर भी इक चुप छिनाल की झलक नजर आती जा रही थी।

स्कूल की छुट्टी हो गयी और हम अपने घरों की ओर चल दिये... स्कूल के बाहर मेरा भाई सुनील अपनी मोटर साइकल पर गुमसुम बैठा हुआ था, और मेरा इंतजार कर रहा था।

उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी।

में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गईl

ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर चला आया।

रास्ते भर हम दोनों में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये।


ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर के दरवाजे खोलने लगी। तो शायद उस वक़्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी।

"रेखा तुम ने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी" ???सुनील ने मेरे खाली हाथो की तरफ़ देखते हुए पूछा।

"वो असल में जो चूड़ियाँ मेंने पहनी थीं। वह उस रात धक्के की वज़ह से मेरी कलाई में ही टूट गईं थी तो फिर इस ख़्याल से कि अगले हफ्ते राखी (रक्षाबंधन) है, जब मम्मी के साथ बाजार जाऊंगी तब नई खरीद लूंगी। मेंने बिना उस की तरफ़ देखे उस को जवाब दिया।

"अच्छा रेखा तुम चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ" यह कहते हुए सुनील मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया।

में अंदर आई तो देखा कि मम्मी काफ़ी खुश होने की वज़ह से किचिन में गाना गुनगुनाते हुयी गुलाब जामुन तल रहीं थी।

में अपने कमरे में आ कर बैठ गईl

रास्ते में सुनील भैया के साथ पेश आने वाले वाकये की वज़ह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नहीं पाईं थीं।

कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है।

शाम हो चुकी थी मम्मी और अंजू दुकान पर थी इसलिए में अभी खाना खाने की सोच ही रही थी कि सुनील मेरे कमरे में दाखिल हुआ।

उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था। जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और ख़ुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा।

अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ-साथ एक उलझन भी होने लगी और इस वज़ह से में भाई के साथ आँख से आँख नहीं मिला पा रही थी।

कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक़्त जैसे थम-सा गया हो।

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के बारे में कुछ पूछ रही हूँ।

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वह मेरे पास से वह बैग उठाया और वह ही चूड़ियाँ जो कि उस रात मेरी कलाई में टूट गयी थी।वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला" रेखा में तेरी चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ"

मेंने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ़ और फिर भाई की तरफ़ देखा और बोली "रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की"

"तकलीफ़ की क्या बात है रेखा, तुझ को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया" भाई ने मेरी बात का जवाब दिया।

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था।कि वह उस रात वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख़्याल रख रहा है। अपने भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी ।

"अच्छा देर काफ़ी हो चुकी है इसलिए तुम दुकान पर जाओ मै सुबह चूड़ीयाँ मम्मी से पहन लूँगी।" मेंने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

"ला मै तेरे हाथों में चूड़ीयाँ पहना देता हूँ"" । इससे पहले कि में उस को रोक पाती। सुनील ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में पहनाने लगा।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ । तो मेंने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह मम्मी से चूड़ीयाँ पहन लूँगी"

""जिस तरह शादी के कुछ टाइम बाद एक हज़्बेंड को अपनी वाइफ के जिस्म के नसीबो फर्ज़ (उतार चढ़ाव) का अंदाज़ा हो जाता है।""

बिल्कुल इसी तरह अपनी बेहन को उस रात के बाद से सुनील को भी ब खूबी अंदाज़ा हो चुका था। कि रेखा के जिस्म के वह कौन से तार हैं जिन को छेड़ने पर उस का बदन गरम होने लगता है।
Lagta h yhi se Suru ho rhi h pream kahani
Keep Going
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
5,007
20,087
188
होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। जो एक भाई के लिए भाई बहन के रिश्ते से ग़लत हैं। तो वह शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी कहता हुआ मुझे वापस सीढ़ियों पर ठीक से चढ़ने की नसीहत देकर अपने कमरे में चला गया।


अब तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


मै अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि सीढ़िया चढ़ते चढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी।


अध्याय -- 13 -----


सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागती हुई रोती जा रही थी। ना ही होश था ना ही आँसू रुक रहे थे। छत से होते हुए बाथरूम में जा पहुँची। बाथरूम में दाखिल होते ही अपने पीछे दरवाजे को कस कर बंद कर लिया और दरवाज़े के सहारे नीचे बैठ गई। आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।


अचानक तेज़ आवाज़ होने से उसी छत पर बने बाथरूम के पास हड़बड़ी में अंजू आई।


"रेखा..." बाथरूम से बाहर खड़ी अंजू ने अब मुझे पुकारा।


लेकिन मेरा तो रो रो के बुरा हाल था।


"रेखा, बताओ मुझे क्या हुआ? तुम रो क्यूं रही हो?" अंजू अब नज़दीक बढ़ने लगी थी।


"वोह....वोह अंजू...वोही..." मैने किसी तरह बोलने की कोशिश की पर डर से कांप रही थी।


"कौन है? तुम किसकी बात कर रही हो?" अंजू अब मेरी हालत देख कर घबराने लगी थी। पर उसने जल्दी आ कर मुझे सीने से लगा लिया और माथे पर स्नेह से चूम लिया।


"रिलैक्स, तुम उठो यहां से पहले। मुझे पूरी बात बताओ। अंजू ने मुझे छत की मुंडेर पर बैठाते हुए पूछा।


"अंजू.... वो सुनील जिससे मेरी...." मै बोलते बोलते रुक गई ।


"सुनील ही था......तो क्या हुआ?" मुझ को झटका लगा था। और अंजू को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो यह बात पहले से जानती हो।


सुनील ने भी बहुत बार छूआ है मुझे। अब मैं किसी के दिमाग में क्या चल रहा है इसकी गारंटी तो नहीं ले सकती। हो सकता है कि यह भूल वश हुआ हो और ये भी हो सकता है कि उन्होने कामुकतावश उत्तेजित होकर ऐसा किया हो। तो क्या हो गया ? आखिर है तो भाई ही...!!


हां अगर अक्सर ही वो ऐसा करने की कोशिश करेगा तो भले वो मेरा ही भाई क्यो ना तो मैं उसे डांट कर समझा सकती हूं कि ये गलत है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये। और सुनील हमारा भाई है, रिश्ते हमें अपनी मर्जी से नही मिलते, वो भगवान की मर्जी से मिलते है, हमें भी उन रिश्तों को निभाना आना चाहिए, !!


कल्पना कर के सोच और बता मुझे
वैसे तो अभी मेरा मां बनना तो दूर शादी तक नहीं हुई है लेकिन मान लेते हैं कि भविष्य में जब मेरा बेटा जवां होने पर कभी कामुक भावनाओं से ग्रस्त हो मुझे यौन रूप से छू भी लेता है तो ऐसी बड़ी बात ना हो जायेगी तब भी उसकी मै मां ही रहूंगी।


कब से मै यही तो कहने की कोशिश कर रही हू। एक सामान्य ढंग के भारतीय परिवारों में कभी भी इन छोटी मोटी चीजों की लोग इतनी परवाह नहीं करते और हमें भी इन्हे इतना तूल देने की जरूरत नहीं लगती जब तक कि ऐसी चीजे बार बार ना दोहराई जांय। रेखा तुम भी अब दोहरा जीवन जीना बंद करो..... जो अंदर से हो वैसे ही बाहर से बनो... मेरी तरह बोल्ड, बिंदास, तब ही जिंदगी के मजे ले पाओगी..... वैसे भी हमारे पास आजादी का अब एक साल बचा एक हफ़्ता बाद स्कूल खुल जायेंगे... 12 वी खतम फिर शादी..... मैने अक्सर मम्मी को कहते सुना है, 12 वी के बाद दोनों बेटियों की शादी एक साथ करनी होगी....!!


अब इस बात को इस रात की तरह भूल जा..... चल अब नीचे...

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान मेंने अपने भाई से किसी क़िस्म का राबता अथवा मौखिक संपर्क (अहसास का रिश्ता) ना रखा। मेरी किस्मत में पता नहीं क्या क्या लिखा था? खैर , एक दो दिन में ही मेने महसूस किया कि मैं नयी उमंग से मुखातिब हो रही थी.

"जुलाई अगस्त (सावन) के मस्त महीने हमेशा से ही प्यार, मोहब्बत, (सेक्स) के बारे में अपने कामुक प्रभाव के लिए प्रसिद्ध रहे हैं क्योंकि गर्मी ख़त्म हो रही होती हैl सर्दी भी शुरु नहीं हुई होती है और कुदरत भी इस समय अपने रंग बदल रही होती हैl पेड़ो पर हरे भरे नए पत्ते आ रहे होते हैं और तरह तरह के रंग बिरंगे फूल चारो तरफ खिले होते हैं जिन्हे देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। "

हमारे स्कूल भी खुल गये थे....

""सरकारी स्कूलों की प्रसिद्ध कहानी... क्लास नई, किताबें पुरानी""

गवर्मेंट गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल हिसार..... हमारी जिंदगी के अनुभव और स्कूल की मस्तियों के किस्से बिना ये कहानी अधूरी सी लगेगी.........!!


(शिक्षा सत्र शुरू होते ही सड़क छाप मजनुओं का जमावड़ा गर्ल्स स्कूलों के बाहर लगने लगता है।)


मै, अंजू और अर्चना स्कूल आते जाते हमारे कदम सड़क पर होते किंतु आंखें दो मछलियों की तरह बेताबी से इधर-उधर घूमतीं और मोहल्ले भर के लड़कों को आमंत्रित करतीं. गली नुक्कड़ गुमटी सड़क पर चलने वाले कच्ची उम्र के अच्छे और कम अच्छे लड़कों के दिल हमें देख कर धड़कने लगते.


मेरा और अर्चना के घर का फ़ासला दस मिनट से ज़्यादा नहीं था. हम तीनों पक्की सहेलियां, अक्सर साथ आना जाना, स्कूल के बाद भी एक बार ज़रूर मुलाकात होती. कभी शाम को मै, अर्चना के घर तो कभी अर्चना, मेरे घर.. ........!!
अर्चना के घर में सबको मेरी मुखरता भाती. मुंह खोलती तो मेरी उन्मुक्त बातें पुरवाई के झोंके-सी माहौल को तरोताज़ा कर देतीं. देखती तो बांकी चितवन सबके मन का ताला खोल देती. अर्चना अपनी अंतरग सखी यानि कि मै (रेखा) की हरकतों और उसके लिए आहें भरने वाले लड़कों की फ़ौज से वाक़िफ़ थी पर मजाल जो कभी किसी से इस बात का खुलासा किया हो.


हालांकि अर्चना को मेरी छिछोरी हरकतें कतई पसंद न थी, हम तीनों के मिजाज़ और परवरिश और पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी रात दिन का अंतर था, किंतु वह उम्र अनहद प्यार और दोस्ती निभाने की होती है सो अर्चना ने शिद्दत से अपनी दोस्ती निभाई.


कभी कभी स्कूल से आते जाते हमउम्र लड़कों से मै मिलने भी लगी थी, ऐसे में अर्चना अक्सर आगे बढ़ जाती. बहरहाल आज की तरह वो डेटिंग का जमाना नहीं था, छिटपुट आंख-मिचौली, जिसे बुज़ुर्गों की भाषा में कहो तो नैन मटक्का, चिट्ठियों का लेनदेन, एक-दूजे को देख लेनेभर की हसरत और ना देख पाने पर आहें भरना… बस इतने में ही बाली उमर की कहानियां बन जाती थी. बॉयफ्रेंड बन जाना तो ""चरित्रहीनता का सर्टिफ़िकेट"" था.


हमारी उफनती जवानी को देखकर हमारे इर्द-गिर्द कितने ही दीवाने भंवरों की तरह डोलते, कोई गली के नुक्कड़ तो कोई पान की गुमटी पर..; कोई दुकान पर बैठा सेल्समेन तो कोई सीटी बजाता सेहज़ादा . पड़ोस के स्कूलों के छात्र भी रिंग मास्टर टाइप अपने किसी दोस्त की अगुवाई में टोली बनाकर स्कूल से लौटती लड़कियों का पीछा करते. मधुमक्खियों-सी लड़कियां भी हंसती खिलखिलाती मस्ती करती आगे-आगे चलतीं, जिनमें "" रेखा रानी "" मधुमक्खी की भूमिका में होती.

अर्चना इस ख़ुराफ़ात का हिस्सा कम ही बनती, क्योंकि वह अपनी सायकिल से घर लौटती. उसे सहेलियों के साथ मटरगश्ती करते हुए घर आने की इजाज़त नहीं थी. लड़कपन की मासूम और मादक फैंटेशियो में मुझे और अंजू को ख़ूब मज़ा आता. सब हम पर लट्टू हैं, हमें तरजीह देते हैं, यह बात मन को गुदगुदाती. भले ही उसमें ज़्यादातर सड़क छाप मजनू होते, पर हमारे लिए यह टाइम पास बड़ा सम्मोहक था.

हमारे जीवन में यूं भी मनोरंजन और आनंद के विकल्प कम थे. पढ़ने लिखने में हम औसत छात्रा थी. परिवार निम्न मध्यमवर्गीय था. पिता की इकलौती कमाई में हम भाई बहन पल रहे थे. जैसे-तैसे पढ़ाई चल रही थी. मां को चूल्हे-चौके से फ़ुर्सत कहां कि अपनी बेटियों के चाल-चलन पर निगाह रखे. बहरहाल, अपनी चाल ढाल और लक्षणों के कारण अंजू के साथ साथ मेरी भी शालीनता खोती जा रही थी, कहें तो ज़माने की निगाहों में बदनाम होती जा रही थी. शायद अब हम पर चालू लड़की का ठप्पा लग गया था.

मुझे आज भी याद है, अगस्त की पांचवी तारीख थी, स्कूल के गलियारे पे तो जैसे हर कोई जल्दी में ही था | हाथ में किताबे और बैग्स लिए बस हर कोई कही ना कही जाना ही चाहता था | बहुत से कमरे और हर एक कमरे कोई ना कोई क्लास चल ही रही थी | चमचमाती हुई कुर्सिया , पूरी तरह से साफ़ सुथरा फर्श , जगह जगह पे डस्टबिन , हम ने एक कमरे में एंट्री की और पीछे पीछे सब घुस गए |

कमरे की छत पर लटका पुराना पंखा अपनी स्पीड से कमरे को ठंडा रक्खे हुए था , चेयर्स और डेस्क उस कमरे को एक क्लास का लुक दे रहे थे | कमरे की दिवार के बराबर ब्लैकबोर्ड बना हुआ था जिसपे चाक से कुछ लिखा भी हुआ था | मैने ध्यान से पढ़ने की कोशिश की " अपना.. साइज बताइये ! " मुझ को कुछ समझ नहीं आया की उसका क्या मतलब हैं |

"रेखा तू यहां आ मेरे पास बैठ " अर्चना ने मुझ को अपने बगल वाले सीट पे बैठा लिया ""अंजू के पीरियड चल रहे थे जिसकी वजह से वो दो तीन से स्कूल नही आ रही थी |"" सबसे आगे जो लड़किया बैठी थी ज्यादातर आँखों में चश्मे लगे हुए थे | देखने से ही पढ़ने वाली लग रही थी | धीरे धीरे बात करने की आवाज पुरे क्लास में गूँज रही थी | इतने में क्लास में एक औरत ने एंट्री की, सारे स्टूडेंट्स एक साथ खड़े हो गए |

ब्लू कलर की साड़ी और उसपे स्लीवलेस ब्लाउज, पूरी तरह से बदन से चिपका हुआ था | लग रहा था जैसे की ये कपडे खासकर उसके लिए ही बनाये गए हो | सुडौल जिस्म , भारी स्तन , ना बहुत ज्यादा पतली और ना ही बहुत ज्यादा मोटी कमर , साड़ी इतनी लोअर पोजीशन में थी की नाभि और उसके निचे पांच अंगुल की जगह साफ़ साफ़ नजर आ रही थी | बाल अच्छी तरह से सीधे किये हुए गर्दन के दायीं तरफ रक्खे हुए थे | औरत ने अपने हाथ से एक कागज मेज पे रक्खा और ब्लैकबोर्ड पे लिखे हुए शब्दों को पढ़ने लगी | पीठ क्लास की तरफ होने की वजह से बैकलेस ब्लाउज , पीठ को अच्छी तरह से दिखा रहा था | मुझ को पता ही नहीं चल रहा था की आखिर ब्लाउज बदन पे टिका कैसे हैं |


"गुड मॉर्निंग मैंम ! " एक स्वर में सबने विश किया |

मै भी सबके साथ ही खड़ी हो गयी और विश किया | उस औरत के चेहरे पर एक अलग ही तेज़ चमक रहा था |

"अर्चना ये कौन हैं ? " मैने बैठते हुए उससे पुछा |

"ये है शीतल जैन , हमारे स्कूल की बायोलॉजी की नई संविदा टीचर , बहुत ही इंटेलीजेंट और साथ ही साथ हसमुख भी बहुत हैं सबसे हसी मजाक करती हैं , इसलिए तो इनकी क्लास में इतनी हाई अटेंडेंस रहती हैं " अर्चना ने बताया !

शीतल जैन की मौजूदगी ने ही क्लास में टेंशन एक लेवल ऊपर कर दिया था |

"किसने लिखा ये ब्लैकबोर्ड पर ? " शीतल ने अपनी गहरी और गंभीर आवाज में क्लास से पूछा | क्लास में पूरी तरह से ख़ामोशी पसरी हुई थी | मैने एक बार फिर से ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए शब्दों को पढ़ा |

"अपना साइज बताइये ! " भला किस साइज की बात हो रही है और यहाँ ब्लैकबोर्ड पे लिखने की क्या जरुरत हैं उसे ? शीतल ने कुछ देर सोचा और फिर चाक से उस लाइन के निचे कुछ लिखने लगी |

"तुम्हारी कल्पना से बाहर !! " शीतल ने जवाब लिखने के बाद क्लास की तरफ देखा।

सवाल हमेशा मुँह पे करना चाहिए , इस तरह छुपकर लिखोगी तो जवाब भी ऐसे ही मिलेगा , सामने से पूछती तो शायद असली साइज बता भी देती !! " शीतल ने अपने होंठो पर स्माइल लाते हुए कहा |
क्लास में हंसी का एक ठहाका गूंजा |
हाहा हाहा हाहा

""बारहवी की क्लास बायोलॉजी विषय हमेशा से किशोर किशोरियों उम्र के लड़के ही नहीं लड़कियों में भी एक सेक्स संबधी उत्सुकता भरा हुआ विषय रहा है, किताब के अंदर के चैप्टर विचार के साथ साथ जिस्म के अंदर होने वाले बदलाव से भरे प्रश्न करते रहते है....... ""

बॉयोलॉजी का एक पेज नंबर बताने के बाद शीतल ने उस टॉपिक पर बोलना शुरू किया
टॉपिक था मेंसुरेशन साइकिल - प्रोसेस एंड एक्टिविटी |

"लड़कियों की माहवारी इंडिया में एक अनछुआ विषय हैं | लोग इस बारे में बात करने से कतराते हैं और इस एक शर्मनाक बॉडी प्रोसेस की तरह ट्रीट किया जाता हैं जबकि बाहर के देशो में इसे अच्छी तरह से एक्सप्लेन किया जाता हैं जब किसी लड़की को पीरियड्स आना स्टार्ट होते हैं !"

शीतल ने ध्यान से पूरे क्लास की तरफ देखा
हाँ अर्चना क्या सवाल हैं तुम्हारा ? " क्लास में एक हाथ ऊपर देख कर शीतल ने पूछा |

"मैंम वो कहते हैं की पीरियड्स स्टार्ट होने के बाद ही लड़की के साथ सेक्स करने पर वो माँ बन सकती हैं क्या ये बात सही हैं ? " अर्चना वापस अपनी सीट पे बैठ गयी |

"बिलकुल सही अर्चना !! जब लड़की के पीरियड्स स्टार्ट होते हैं और उसका गर्भाशय में अंडे का फर्टिलाइजेशन होता हैं तभी वो किसी लड़के के वीर्य का इंतज़ार करती हैं , जैसे बारिश के बाद खेत की मिटटी बहुत ही जयादा उपजाऊ हो जाती हैं और बीज के डाले जाने का इन्तजार करती हैं वैसे ही एक लड़की माहवारी के पहले ही बीज के आने का इंतज़ार करती हैं और अगर उसे निचित टाइम तक लड़के का बीज नहीं मिलता हैं तो उसके गर्भाशय से वो अंडा ब्लीडिंग के द्वारा बाहर निकल जाता हैं | " शीतल ने अर्चना के क्वेश्चन का जवाब दिया |

"हाँ रेखा पूछो !" अबकी बार मैने अपना हाथ उठाया ।

"तो इसका मतलब की अगर किसी लड़की का पीरियड्स अभी नहीं हो रहा हो तो वो किसी भी लड़के से कितना भी सेक्स करे मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध बनाये , लड़की के गर्भवती होने का कोई डर नहीं होता ? "

मेरा प्रश्न सुनकर क्लास में मौजूद हर कोई हसने लगा | शीतल भी अपनी हंसी नहीं रोक पायी | शीतल को हसते हुए देख कर सारे और भी तेजी से हसने लगे |
हाहा हाहा हाहा हाहा

"हाँ रेखा , ये बिलकुल सही हैं , अगर किसी लड़की का अगर मेंसुरेशन साइकिल स्टार्ट नहीं हुआ हैं और उसकी योनि में वीर्य घुस भी जाता हैं तो वह प्रजनन करने के लिए कही कोई अंडा ही नहीं होगा और वीर्य के शुक्राणु को पहुंचने के लिए कोई जगह ही नहीं मिलेगी | और अगर तुम लोगो की जनरेशन की नयी भाषा में समझाए तो मतलब एक लड़की अपनी पीरियड्स स्टार्ट होने से पहले चाहे जितना या चाहे जितने लड़को से चुदाई करवाएं वो प्रेग्नेंट नहीं होगी " शीतल ने अपनी होंठो की हंसी छुपाते हुए मेरे प्रश्न का उत्तर दिया |

क्लास की लड़किया हाथ से मुँह को छिपाकर हंस रही थी | हर कोई शीतल के इस हलके फुल्के माहौल में पढ़ाई का आनंद ले रहा था सिवाय मुझको छोड़कर |

शीतल के शब्दों के इस्तेमाल को सुनकर मै दंग हो गयी थी | भला एक टीचर कैसे इस तरह से अपने छात्राओ के सामने बोल सकती हैं | "चुदाई" शब्द तो मैने अब तक सिर्फ अंजू दीदी से ही सुना था वो भी आपस में खुशूर फुसुर करते हुए लेकिन यहाँ तो गुरु और शिष्य के बीच ही इस शब्द का इस्तेमाल हो रहा हैं और इतने गंदे शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी जिस तरह से शीतल और क्लास के बच्चे बिलकुल "कूल" दिख रहे थे उससे लग रहा था की ये पहली बार नहीं है |

मेरे चेहरे से उलझन धीरे धीरे हटती जा रही थी और अपनी नयी संविदा टीचर शीतल जैन के चेहरे पर भी इक चुप छिनाल की झलक नजर आती जा रही थी।

स्कूल की छुट्टी हो गयी और हम अपने घरों की ओर चल दिये... स्कूल के बाहर मेरा भाई सुनील अपनी मोटर साइकल पर गुमसुम बैठा हुआ था, और मेरा इंतजार कर रहा था।

उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी।

में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गईl

ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर चला आया।

रास्ते भर हम दोनों में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये।


ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर के दरवाजे खोलने लगी। तो शायद उस वक़्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी।

"रेखा तुम ने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी" ???सुनील ने मेरे खाली हाथो की तरफ़ देखते हुए पूछा।

"वो असल में जो चूड़ियाँ मेंने पहनी थीं। वह उस रात धक्के की वज़ह से मेरी कलाई में ही टूट गईं थी तो फिर इस ख़्याल से कि अगले हफ्ते राखी (रक्षाबंधन) है, जब मम्मी के साथ बाजार जाऊंगी तब नई खरीद लूंगी। मेंने बिना उस की तरफ़ देखे उस को जवाब दिया।

"अच्छा रेखा तुम चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ" यह कहते हुए सुनील मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया।

में अंदर आई तो देखा कि मम्मी काफ़ी खुश होने की वज़ह से किचिन में गाना गुनगुनाते हुयी गुलाब जामुन तल रहीं थी।

में अपने कमरे में आ कर बैठ गईl

रास्ते में सुनील भैया के साथ पेश आने वाले वाकये की वज़ह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नहीं पाईं थीं।

कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है।

शाम हो चुकी थी मम्मी और अंजू दुकान पर थी इसलिए में अभी खाना खाने की सोच ही रही थी कि सुनील मेरे कमरे में दाखिल हुआ।

उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था। जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और ख़ुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा।

अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ-साथ एक उलझन भी होने लगी और इस वज़ह से में भाई के साथ आँख से आँख नहीं मिला पा रही थी।

कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक़्त जैसे थम-सा गया हो।

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के बारे में कुछ पूछ रही हूँ।

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वह मेरे पास से वह बैग उठाया और वह ही चूड़ियाँ जो कि उस रात मेरी कलाई में टूट गयी थी।वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला" रेखा में तेरी चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ"

मेंने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ़ और फिर भाई की तरफ़ देखा और बोली "रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की"

"तकलीफ़ की क्या बात है रेखा, तुझ को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया" भाई ने मेरी बात का जवाब दिया।

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था।कि वह उस रात वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख़्याल रख रहा है। अपने भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी ।

"अच्छा देर काफ़ी हो चुकी है इसलिए तुम दुकान पर जाओ मै सुबह चूड़ीयाँ मम्मी से पहन लूँगी।" मेंने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

"ला मै तेरे हाथों में चूड़ीयाँ पहना देता हूँ"" । इससे पहले कि में उस को रोक पाती। सुनील ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में पहनाने लगा।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ । तो मेंने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह मम्मी से चूड़ीयाँ पहन लूँगी"

""जिस तरह शादी के कुछ टाइम बाद एक हज़्बेंड को अपनी वाइफ के जिस्म के नसीबो फर्ज़ (उतार चढ़ाव) का अंदाज़ा हो जाता है।""

बिल्कुल इसी तरह अपनी बेहन को उस रात के बाद से सुनील को भी ब खूबी अंदाज़ा हो चुका था। कि रेखा के जिस्म के वह कौन से तार हैं जिन को छेड़ने पर उस का बदन गरम होने लगता है।
Excellent update
सुनील तो सुपर फास्ट ट्रेन की तरह आगे बढ़ रहा है आज तो चुड़िया खरीद कर ले आया है लगता है रेखा के लिए आगे बहुत कुछ खरीद कर लायेगा आपने सुनील और रेखा के साथ जो इंसीडेंट हुआ है उसके बारे में बहुत ही अच्छा चित्रण किया है लगता है अरुण की जगह धीरे धीरे सुनील ले रहा है
शीतल मैडम ने बिना किसी शर्म और हिचकिचाहट के बच्चो को उनके पूछे प्रश्न को अच्छे से समझाया है ताकि सभी बच्चे अच्छे से समझे
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,541
10,763
159
I don't have words to appreciate your story. Maine pahle hi kaha tha ki ham jaiso ko aapse seekhne ki zarurat hai. Well idhar ke teeno hi update behad shandaar aur behad hi unique the....and sorry dear byastata ke chalte samay par main apne vichaar nahi rakh saka.... :sigh2:

Pichhle update me aapne jis tarah se Maa ke bare me explain kiya tha wo outstanding aur ekdam sach baat thi. Duniya me Maa shabd sabse pavitra mana jata hai aur aisa ham sab samajhte bhi hain. Shayad yahi vajah hai ki ham us Maa shabd ke bare me kabhi galat raay banane ki to baat door uske bare me galat sochte tak nahi. Ham ye sochna hi nahi chaahte ki Maa bhi ek aurat hi hoti hai jiski apni bhi kuch hasrate aur khwaaishe hoti hain...halaaki aaj ki generation aur aaj ka time aisa ho gaya hai ki loga ka apni soch aur apne vichaaro par koi niyantran nahi raha. Ho sakta hai ki ye aaj ke pariwesh ka asar ho. Khair is topic par baat karna byarth hai....

Sunil aur Rekha ke beech jo incident hua usko aapne bahut shandaar aur kushalta se darshaya hai. Wakt aur halaat ke bhanvar me fanse huye insaan ke sath waakayi me aisa ho jata hai. Is incident ke baad dono bhai bahan ke bich kaafi kuch badal gaya hai. Halaaki is last wale update me cheezo ko pahle ki tarah banane ki koshish ki gayi lekin shayad ab ye sambhav hi nahi hai ki dono ke beech bhai bahan wala rishta aur wahi pavitrata kaayam ho paaye. Ye scene bhi aapne bahut hi khubsurti se likha hai.. :applause:

Guzarte wakt ke sath jo kuch Rekha ke sath ghatiya ho raha hai usse aisa bhi lagta hai ki kahani se hi nahi balki Rekha ki zindagi se bhi Arun ka character out hota ja raha hai. Agar bhai bahan ke beech aise hi incident hote rahe to Arun ke hath se to Rekha gayi. Yaha par hamne gaur kiya ki bhole bhale Sunil me bhi tabdiliya aa gayi hain. Jis bebaaki aur nidarta ke sath usne Imran Hashmi ka roop liya tha aur Rekha ke hotho ko apne hotho me kaid kiya tha usse to yahi laga. Waise bhi shuruaat me hi pahal karne ki samasya hoti hai uske baad to sab asaan sa ho jata hai. Ab agar Rekha ne shakhti ya virodh na dikhaaya to Sunil ke liye bil me ghusna mushkil nahi hoga :D

Sheetal jaisi school teacher hamare desh ke har school me honi chahiye....jo bachche school jane me aana kaani karte hain aur jo padhaayi karne se katraate hain unke liye sheetal jaisi madam ki hi zarurat hai. Study or future ka vikas ho ya na ho lekin baaki cheezo ka vikas kar lene me wo zarur safal honge... ;)

Aaj kal maa bada khush hai aur us khushi me singing bhi kar rahi hai...lagta hai palang tod dene wali khushi ka jugaad ho gaya hai...let's see is khushi ka raaz kya hai :smoking:

Is forum ko aap jaise writers ki zarurat hai aur ham jaiso ko bhi taaki itni behtareen kahaniyo ko padhne ka gaurav praapt ho. Jaise jaise ye kahani aage badh rahi hai waise waise hame aapki lekhni me bhi nikharta dikh rahi hai. Shabdo ka chayan, situation ko behtar tarike se explain karna, tatwa gyaan ki kuch aisi baate jinhe aise forum par zyadatar log padhna nahi chaahte par ham yakeenan padhna chaahte hain...kyoki ye gyaan ki baate aur gyaan kaisa bhi ho use prasaad ki tarah tahe dil se grahan karna chahiye. Aapka gyaan to hamari kalpanaao se bhi upar wala hai...aise hi likhti rahiye dear. Aapki kahani, aapki lekhni aur aapki soch ko pranaam :bow:

I have no words.

कैसे आपका शुक्रिया अदा करू.... एक artist को हमेशा से अपनी perfrmance के बाद तालियों की gadgdahat sunkar जो खुशी मिलती है। वो ही खुशी मुझे आप जैसे reders के comment, rivew, विश्लेषण पढ़कर होती है। आप जैसे redars के बिना मेरी कहानी का हर update बिना makeup की दुल्हन की तरह लगता है.... जिसका makeup आप लोगों के शब्दो से पूर्ण होता है।

आप जैसे विश्लेषक की सूची बहुत बड़ी तो नही है पर कुछ खास लोग है.... आप, vr sanju, hypernova, fouji bhaai, kaamdev, Sanju, और भी बहुत से है jinke naam वक्त की कमी के कारण मै अभी नही लिख सकती।

आप सभी इसी तरह अपना प्यार देते रहे यही दुआ है मेरी!!!
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,541
10,763
159
रेखा रानी ये नाम इस फोरम पर बहुत समय तक गूंजेगा. जब हम चले जाएंगे, हमारा ये जो थोड़ा सा दौर बचा है बीत जाएगा तब कोई तो होगा जो थामने लायक होगा इस फोरम को अपनी लेखनी से वो रेखा ही होगी

आप इतनी बड़ी जिम्मेदारी मत दीजिये....
मै तो आपसे ही prena लेकर एक छोटी सी कोशिस कर रही हू!

वैसे आप जाने की बात ना कीजिये.... दौर कोई भी हो आपकी बराबरी शायद कोई नही कर सकता।
 
Status
Not open for further replies.
Top