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Thriller शतरंज की चाल

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#अपडेट ३०


अब तक आपने पढ़ा -


"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"


"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....


अब आगे -


ये एक नया बम फूटा था मेरे ऊपर, मगर मैने कोई हैरत नहीं दिखाई। समर ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि कुछ भी सुनने को मिल सकता है, सबके लिए तैयार रहना।


"अच्छा, हमने तो बस ऐसे ही सुना था कि नेहा और संजीव का लव अफेयर था, और इस शादी से आप खुश नहीं थे।" मैने बात सम्हालने की कोशिश की।


"संजीव से उसकी शादी हमने ही करवाई थी, और नेहा के लव अफेयर से अजीज आ कर ही हमने संजीव को चुना था उसके लिए।" अंशुमान जी ने कहा।


समर, "आप अपनी और अपने परिवार के बारे में अच्छे से बताइए, इससे बहुत कुछ क्लियर होगा।"


"हां, ये सही रहेगा।" मैने भी समर की बात का समर्थन करते हुए कहा।


"हम चार लोग का परिवार है, अब तो था हो गया है।" उन्होंने उदासी भरे अंदाज में कहना शुरू किया, "मैं, मेरी पत्नी रीमा, बड़ा बेटा निशांत और बेटी नेहा। छोटी होने के कारण वो बहुत लाड़ प्यार में पली, और शायद उसी से बिगड़ भी गई।"


नेहा का बड़ा भाई, एक और झूठ या कहीं की पूरा सच नहीं बताया।


"मेरा पुश्तैनी घर उज्जैन के पास ही एक गांव सेमरी में है, मेरी नौकरी तबादले वाली है तो जब दोनों बच्चे पढ़ने के काबिल हुए तो रीमा ने उज्जैन में रह कर दोनों को पढ़ने का निर्णय लिया। अब मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में इधर उधर रहने लगा, और दोनो बच्चे रीमा के साथ रह कर पढ़ने लगे। फिर मैने दिल्ली में रह कर अपना प्रमोशन लेना बंद कर दिया, जिससे करीब 7 8 साल मैं वहीं रहा, उधर बच्चे बड़े हो रहे थे, निशांत और नेहा में 4 साल का अंतर है, जब नेहा बारवीं में आई, तब तक निशांत ग्रेजुएशन करके IIM इंदौर से MBA करना शुरू कर चुका था। उसी समय रीमा की तबियत अच्छी नहीं रहने लगी, उसे जोड़ों के दर्द की समस्या शुरू हो गई और कुछ सांस की दिक्कत भी होने लगी , जिससे वो नेहा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी, पर दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत काबिल थे, इसीलिए ज्यादा ध्यान की जरूरत भी नहीं लगी हमें। नेहा ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया जिसमें से निशांत ने graduation की थी। जब निशांत का MBA पूरा हुआ, तो उसकी नौकरी एक बड़ी फर्म में लग चुकी थी, और वो कुछ समय के लिए उज्जैन गया था, इस समय नेहा सेकंड ईयर में आ चुकी थी। निशांत के बहुत कॉन्टेक्ट थे उस कॉलेज में, तो एक दिन उसके किसी जानने वाले ने बताया कि नेहा कुछ गलत लोगों के संपर्क में आ गई है, और अच्छा होगा कि हम उसे उज्जैन से कहीं बाहर भेज दें। निशांत ने मुझसे बात की, और अब चूंकि बच्चे भी सैटल हो रहे थे, तो मैंने रीमा को बता कर अपना ट्रांसफर देहरादून ले किया, जिससे नेहा भी उस संगत से दूर हो, रीमा को भी अच्छी आबोहवा मिले, और मैं भी परिवार के साथ रहने लगूं।


नेहा ने पहले तो बहुत विरोध किया इस बात का, मगर निशांत के समझाने पर वो मान गई, इधर मेरी भी कई बड़े लोगों से जान पहुंच थी, बैंक में काम करने के कारण, तो मैने भी सोर्स लगवा कर नेहा का कॉलेज ट्रांसफर ले लिया। एक साल देहरादून में शांति से गुजरे, नेहा की भी कोई शिकायत नहीं आई।"


"पर कैसी गलत सोहबत में वो पड़ गई थी? निशांत ने कभी बोला नहीं आपको?" मैने टोकते हुए पूछा।


"वो कुछ आवारा दोस्त बन गए थे उसके, कुछ उसकी ही क्लास के कुछ सीनियर भी। और वो लोग शराब और पार्टी वगैरा भी करने लगे थे। कुछ तो गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड भी थे। मतलब आप समझ रहे हैं न?"


"जी, समझ गया, तो क्या नेहा का भी कोई बाय फ्रेंड था वहां?"


"पता नहीं, पर कोई खास दोस्त तो था, क्योंकि वो घर अक्सर लेट भी आती थी, और कई सारे गिफ्ट भी मिले थे उसे। लेकिन रीमा ने कभी किसी लड़के के साथ उसे आते जाते नहीं देखा था, बस एक लड़की ही हमेशा आती थी।"


"फिर क्या हुआ?"


"ग्रेजुएशन करने के बाद नेहा ने दिल्ली से MBA करने को कहा। लेकिन हमने उसका एडमिशन वहीं के एक अच्छे कॉलेज में करवा दिया। वो अक्सर प्रोजेक्ट्स और ट्रेनिंग के सिलसिले में दिल्ली आती जाती रहती थी। MBA खत्म होने से पहले निशांत भी दिल्ली आ चुका था, और वहां पर उसे फिर से नेहा की कुछ हरकतों का पता चला कि वो किसी दो तीन लोग के ग्रुप से ही मिलती है, और कोई ट्रेनिंग वगैरा नहीं होती। ये सुन कर पूरा परिवार एक बार फिर गुस्सा हो गया, और इस बार मैने उसकी शादी कराने की ही ठान ली। संजीव हमारे घर के पास ही रहता था, देखने में अच्छा और फौज की नौकरी भी थी उसकी। घर में कोई नहीं था, जब हम देहरादून गए थे तब उसकी मां थी वहां, मगर कुछ दिनों के बाद वो भी चल बसी। लेकिन हमारे संबंध अच्छे बन गए थे उनसे। बड़ा बेटा अलग हो चुका था, और संजीव ही उनके साथ था। वो भी नेहा को पसंद करता था।"


एक सांस ले कर उन्होंने आगे बोलना शुरू किया। "जब हमने उनकी शादी तय की तो नेहा ने बहुत तमाशा किया, लेकिन हम सबकी जोर जबरदस्ती से शादी हो गई। और संजीव उसे ले कर अपनी पोस्टिंग पर चला गया। अक्सर हमारी बात दोनो से होती थी और दोनों खुश ही लगे हमे। फिर करीब छह महीने बाद पता नहीं क्या हुआ कि संजीव को सेना से निकला बाहर कर दिया। और दोनो वापस देहरादून आ गए। यहां आ कर नेहा और संजीव छोटी मोटी नौकरी करने लगे। फिर कुछ दिन बाद दोनों की नौकरी उसी चिट फंड कंपनी में लग गई, और वो भी 3 4 महीने बाद फ्रॉड करके भाग गई। कंपनी का ऑफिस संजीव के ही नाम पर लिया गया था, और नेहा को मैनेजर बना दिया गया था। तो लोगों की कंप्लेन पर दोनो को पुलिस ने पकड़ लिया, नेहा एक महीने बाद ही बाहर निकल आई, कैसे वो हमको भी नहीं पता। लेकिन संजीव एक साल बाद बाहर हुआ, और उसके बाद से ही दोनों के बीच कुछ सही नहीं रहा। कुछ दिन पहले ही खुद नेहा ने मुझे मित्तल सर से बात करके यहां नौकरी के लिए बोला, तो मेरी बात पर उन्होंने उसे रख लिया। बाकी का तो आप सबको पता ही है।"। ये सब बोलते बोलते उनकी आंखे भीग चुकी थी।


मैने उनके हाथ को पकड़ लिया।


"बेटा जितना अच्छा निकला, बेटी ने मुझे उतना ही निराश किया। पता नहीं हम पति पत्नी ने कहां चूक कर दी उसके लालन पालन में। किसकी सोहबत में वो ऐसी बन गई कुछ समझ नहीं आता। संजीव भी बहुत अच्छा हुआ करता था, पर उसकी भी जिंदगी शायद मेरे ही कारण बर्बाद हुई।"


"संजीव को सेना से क्यों निकाला गया?" मैने फिर से उनसे पूछा।


"आरोप लगा कि उसने दारू पी कर अपने किसी सीनियर की बीवी के साथ बतमीजी कर दी थी, और बहुत नशे में था वो। पर जब मैने उससे पूछा, तो उसका कहना था कि उसने तो बस दो या तीन पैग ही पीए थे, जो नॉर्मल था, पर एकदम से क्या हुआ, उसे भी समझ नहीं आया। और उसे कुछ याद भी नहीं था कि क्या हुआ था उस समय।"


"और नेहा का क्या रिएक्शन था उस बात पर?" अब समर ने सवाल।किया।


"नेहा ने तो संजीव का बहुत साथ दिया। वो थी तो उस पार्टी में ही, मगर जब वो कांड हुआ, उस समय वो भी वाशरूम में थी। संजीव पर उसे भरोसा था। और उसने संजीव की ही बात मानी। उस बात से हम सबको बहुत राहत मिली कि अब दोनों के बीच सब सही रहेगा। फिर वो वापस देहरादून आ गए, वहां कुछ दिन बाद दोनों ने वो चिटफंड कंपनी ज्वाइन की, और वो जेल वाला कांड हुआ। संजीव का कहना था कि नेहा खुद तो एक महीने में ही बाहर हो गई, और उसको बाहर करने की कोई कोशिश नहीं की। इसी बात पर दोनो के बीच तनाव बढ़ा और बात तलाक तक पहुंच गई, इसी बीच नेहा ने ही मुझे एक दिन मित्तल साहब से बात करके यहां काम करने को कहा।"


" वो चिटफंड कंपनी किसकी थी?" समर ने पूछा


"पुलिस ये कभी पता ही नहीं कर पाई, संजीव का कहना था कि कोई सतनाम सिंह नाम का सरदार था, जिससे नेहा ने ही उसे मिलवाया था। और वही उसका मालिक था, मगर उसके कागजात फर्जी निकले, पैसा भी कई अकाउंट्स से घुमाया गया तो किसके पास गया वो पैसा, पता ही नहीं चल पाया।"


"उज्जैन में उसकी संगत किन लोगों के साथ थी वो नहीं पूछा आपने? और दिल्ली में किन लोग से मिलती थी, वो सब अपने नहीं पता किया?" इस बार मैने पूछा।


"बेटा मैं अपनी नौकरी में और मेरी पत्नी की बीमारी के चलते ज्यादा तो नहीं पता कर पाए, लेकिन निशांत को भी ये सारी जानकारी उसके बहुत अच्छे जानने वालों ने ही दी थी, और उसने नेहा से इस बारे में पूछा तो उसने अपनी गलती मानते हुए उससे माफी मांग ली, और दुबारा उन लोगों से न मिलने की कसम भी खाई। इसीलिए उसने भी ज्यादा जानकारी नहीं ली।"


अब हमारे पास ज्यादा कुछ पूछने को था नहीं। तो समर उनको लेकर चला गया।


नेहा ने मुझसे कितने झूठ बोले थे उसका कोई अंत नहीं था, न सिर्फ शादी, बल्कि अपने प्यार, और यहां तक की अपने भाई के बारे में भी। मैं यही सब विचार करते हुए डिनर का ऑर्डर दे दिया।



थोड़ी देर बाद समर भी वापस आया, और हम डिनर पर इस बात पर विचार करने लगे कि आगे क्या किया जाय।


समर ने कहा कि वो उज्जैन जाएगा, आगे का पता करने। उसने मुझे जाने से रोका, क्योंकि वो पुलिस वाला था, इसीलिए वो जानकारी आराम से निकलवा सकता था। दूसरा उसका घर भी इंदौर में ही था तो उसने छुट्टी भी ली हुई थी वहां जाने के लिए तो उसका भी उपयोग कर लेगा वो।





फिर यही तय हुआ, और अगले दिन शाम में उसको निकलना था। अगला दिन भी होटल में रह कर ही बिताया मैने, समर ने मुझे ज्यादा बाहर न घूमने की सलाह दी थी। शाम को जाने से पहले वो मुझसे मिलने आया, और जाते जाते उसने मुझे एक चिट्ठी पकड़ाई....
Bechara Manish apni begunahi ke liye kitna parishram kar raha hai par kuchh nahi mil pa raha hai, koi baat nahi parishram kabhi bekar nahi jati hai.

Manish ki chhoti chhoti ye koshish use ek din jarur safal kar degi aur wo khud ko bacha payega!!!
Ye Bittu dekhna hoga aur iska kya role hone wala hai story mein aur Samar aur kya kya information pata kar pata hai Ujjain mein???

Wonderful update brother.
 
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dhalchandarun

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#अपडेट ३१


अब तक आपने पढ़ा -


फिर यही तय हुआ, और अगले दिन शाम में उसको निकलना था। अगला दिन भी होटल में रह कर ही बिताया मैने, समर ने मुझे ज्यादा बाहर न घूमने की सलाह दी थी। शाम को जाने से पहले वो मुझसे मिलने आया, और जाते जाते उसने मुझे एक चिट्ठी पकड़ाई....


अब आगे -


मैने उसे सवालिया नजरों से देखा।


"ये शिविका की है।"


"तुमने बताया उससे कि मैं.."


"तुम्हारे जाने के बाद जब वो मुझसे मिलने आई थी तब ही दी थी उसने, कहा था कि मैं पक्का तुम्हारे टच में हूं तो ये चिट्ठी कभी न कभी तुमको मिल जाएगी। इसीलिए मैने दे दी तुम्हे।"


मैने उसे खोल कर पढ़ना शुरू किया।



मनीष,


कैसे कहूं ये समझ नहीं आ रहा, इसीलिए इस चिट्ठी का सहारा ले रही हूं।


मनीष हमारे घर में शादी ब्याह के मामले में बड़ों की राय ही सबसे महत्वपूर्ण है। मगर मुझे बड़े होते ही ये बताया गया कि मेरी और तुम्हारी शादी होगी, पहले तो मैं इसके खिलाफ थी, मगर जब तुम यहां आए और मैने तुमको जाना, तुम्हारे लिए मेरे मन में प्यार अंकुरित होने लगा था। याद है एक बार मैने तुमको कहा था कि सबसे पहले मुझे बताना अगर जो तुम्हे कोई पसंद आए तो। मगर शायद तुम समझे नहीं।


खैर, प्यार पर किसका जोर चलता है। तुम्हारे जीवन में नेहा आई और तुम उससे प्यार बैठे। सच कहती हूं जब मुझे ये पता चला, मेरा दिल बहुत बुरी तरह से टूट गया था। मगर तुम्हारी खुशी अगर जो नेहा में थी, तो मैं कौन होती हूं बीच में आने वाली। श्रेय ने मुझे कई बार अपनी बात बताने के लिए कहा, मगर मैने तुम्हारी खुशी को देखते हुए कभी ये बात तुमसे कहने की हिम्मत नहीं जुटाई।


ये चिट्ठी भी अभी मैने तुमको ये बताने के लिए नहीं, बल्कि ये कहने के लिए लिखी है कि भले ही दुनिया तुमको गलत समझ रही हो, मगर मैं तुमको बिल्कुल गलत नहीं मानती, और मैं हर समय तुम्हारे साथ खड़ी हूं। इस सबके पीछे जो कोई भी है, कोई हमारी कंपनी का ही है। याद है तुम्हे उस दिन चाचा ने फोन करके तुमको बुलाया था और कहा था कि तुम्हे फंसाया जा रहा है इन सब में, और उसके बाद जैसे ही तुम आए उनके ऊपर हमला हो चुका था।


उस समय मैं चाची से किसी काम से मिलने आई थी, और वो तुमसे बात कर रहे थे। मैं पूछना चाहती थी कि क्या हुआ है, मगर तब तक मां ने मुझे अपने कमरे में बुला लिया, और मैं पूछ भी नहीं पाई और चाचा जी इस हालत में आ गए। इस बात का मैं खुद को गुनाहगार मानती हूं मनीष। इसीलिए तुम मुझे बताओ, जो होगा मैं करूंगी उसको बेनकाब करने के लिए।


मुझे पता है कि नेहा ने जो तुम्हारे साथ किया उससे शायद मुझ पर क्या किसी पर भी तुम्हारा विश्वास करना कठिन है, लेकिन मैं आज भी तुम्हे एक दोस्त के रूप में देखती हूं और तुम्हारी हर संभव मदद करना चाहती हूं।


तुम्हारी हमेशा


शिविका



चिट्ठी पढ़ कर मुझे एक और झटका लगा, मित्तल सर ने मुझे फोन किया था?


मैने फौरन समर से पूछा, "मित्तल सर का फोन रिकॉर्ड चेक किया था तुमने?"


"हां, मगर क्यों?"


"उनका लास्ट कॉल किसे था?"


"तुमको।"


"मगर मैने तो उनका कोई कॉल रिसीव नहीं किया?"


"क्या?" अब चौंकने की बारी समर की थी। "अच्छा रुक दो मिनिट।" ये बोल कर वो किसी को फोन लगाने लगा।


पांच मिनिट बाद उसने मुझे एक रिकॉर्डिंग सुनवाई।



"हेलो मनीष?" मित्तल सर


"ह्म्म्म"


"बेटा जल्दी घर आओ, तुमको इन सब में फंसाया जा रहा है बेटा, यहां आओ मैं सब बताता हूं तुमको।


"ह्म्म्म"



इतनी ही रिकॉर्डिंग थी।


समर, "ये ही आखिरी कॉल थी तुम्हारे फोन पर, और मित्तल सर के फोन से भी। तुम्हारा फोन जो रिकॉर्डिंग पर डाला था उसमें आखिरी रिकॉर्डिंग यही हुई थी, फिर मैने बंद करवा दिया था। वैसे भी ये अनऑफिशियल था।"


"मगर मैने ये कॉल नहीं ली।"


"अच्छा चलो अभी फिलहाल तो मुझे उज्जैन से आने दो, पहले इस बिट्टू का पता लगाना जरूरी है। फिर इस कॉल का रहस्य भी सुलझाया जाएगा। और हां अपना ख्याल रखना, और बाहर कम से कम निकलना, मैं आता हूं 2 3 दिन में।" ये बोल कर समर निकल गया। जाते जाते उसने मुझे फिलहाल शिविका से मिलने को मना किया था।


अगले दिन मैं बैठा बोर हो रहा था तो दोपहर में फिर एक बार हॉस्पिटल के लिए निकल गया। और वहीं उसी वेटिंग रूम में शाम तक बैठ कर देखता रहा। आज मित्तल सर को देखने महेश अंकल और दोनो आंटी आईं थी।


अगले दिन मैं फिर से वहां चला गया। आज फिर शिविका आई थी, और फिर वो किसी को ढूंढ रही थी। उसकी नजर एक बार फिर मुझ पर टिकी, और वो कुछ देर ध्यान से मुझे देखती रही। तभी श्रेय ने उसके कंधे पर हाथ रखा, और वो दोनों फिर मित्तल सर के कमरे में चले गए।



थोड़ी देर बाद शिविका बदहवास सी कमरे से निकल कर नर्स को अंदर बुला ले गई, और नर्स ने भी फौरन किसी को कॉल किया....
I knew it, I knew it ki Shivika, Manish se pyar karti hai. Main Manish ki jagah hota toh main Neha ke milne se pahle hi Shivika ko select kar chuka hota khair main Manish kahan hoon, waise bhi logo ko sachha pyar jyadatar ek baar dhokha milne ke baad hi hota hai.

Kya Shivika apne pyar ke liye kuchh kar payegi??
Kya Samar, Manish ke liye koi surag khoj payega jo use innocent sabit karne ke liye kaphi ho.

Nice and wonderful update brother.
 
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dhalchandarun

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अब तक आपने पढ़ा -

अगले दिन मैं फिर से वहां चला गया। आज फिर शिविका आई थी, और फिर वो किसी को ढूंढ रही थी। उसकी नजर एक बार फिर मुझ पर टिकी, और वो कुछ देर ध्यान से मुझे देखती रही। तभी श्रेय ने उसके कंधे पर हाथ रखा, और वो दोनों फिर मित्तल सर के कमरे में चले गए।

थोड़ी देर बाद शिविका बदहवास सी कमरे से निकल कर नर्स को अंदर बुला ले गई, और नर्स ने भी फौरन किसी को कॉल किया....

अब आगे -



अब उस तरफ थोड़ी आगरा तफरी मची हुई थी। मेरा दिल भी किसी अंजानी आशंका से घिर गया था। कुछ देर बाद पूरी मित्तल फैमिली भी आ चुकी थी।

मैं भी उठ कर थोड़ा उस तरफ गया और सुनने की कोशिश की क्या हो रहा है। पता चला कि मित्तल सर कोमा से बाहर आ गए थे। ये सुन मुझे बहुत राहत मिली कि अब कम से कम सच बाहर आयेगा।

आज का दिन भी बीत गया। समर ने अभी तक मुझे कोई फोन नहीं किया था।

अगले दिन फिर से मैं वैसे ही जा कर हॉस्पिटल में बैठ गया। कल मित्तल सर को होश आने के बाद अभी उनको डॉक्टर ने किसी भी तरह के स्ट्रेस से दूर रखने को कहा था, इसीलिए पुलिस का स्टेटमेंट।नहीं हुआ था। आज पुलिस स्टेटमेंट लेने वाली थी।

दोपहर में पुलिस को हलचल बढ़ी हॉस्पिटल में और थोड़ी देर बाद एक SP रैंक का ऑफिसर आया उनके कमरे में जाने के लिए। शायद यही SP अमरकांत थे, इस केस के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर। थोड़ी देर बाद वो मित्तल सर के कमरे में जाते हैं, और वहां पर पहले से मौजूद शिविका और मित्तल सर की पत्नी बाहर आते हैं।

वो दोनों भी आ कर इधर ही बैठ जाते हैं, लेकिन मुझसे थोड़ा दूर, जहां से हम लोग एक दूसरे को देख तो सकते थे मगर हमारी बात नहीं हो सकती थी। शिविका आंटी से बात करते हुए मुझे ही देख रही थी। कुछ देर बाद अमरकांत रूम से निकले और वो दोनों उनके पास जा कर कुछ बात करने लगे। फिर अमरकांत चले गए और वो दोनों भी मित्तल सर के कमरे में चले गए। जाते जाते एक बार फिर शिविका ने मेरी ओर देखा। इसके बाद फिर दिन भर कुछ खास नहीं हुआ।

अगले दिन फिर वही सिलसिला चला। आज समर को गए हुए चौथा दिन था, मगर मेरी उससे कोई बात नहीं हुई थी। शाम को शिविका वापस जाने हुए फिर से मुझे देखा, और इस बात वो थोड़ा मुस्कुराई, और चली गई।

मुझे बैठे हुए बहुत देर हो गई थी, तो मैं भी अपनी जगह से उठा और बाहर की ओर जाने लगा।

वेटिंग रूम से बाहर निकलते ही एक हाथ मेरे कंधे पर पड़ा, और मैने घूम कर देखा। ये एक इंस्पेक्टर था।

"चलिए मनीष बाबू, बहुत भाग लिए अब आप।"

उसके इतना कहते ही दो लोग सादे कपड़ों में मेरे आजू बाजू खड़े हो गए।

"चुपचाप इन दोनों के साथ नीचे जाइए, हम अभी हॉस्पिटल में आपको गिरफ्तार करके कोई हंगामा नहीं करना चाहते, और वैसे भी sp साहब ने आपको चुपचाप लाने कहा है पुलिस स्टेशन में।" वो इंस्पेक्टर फिर से बोला।


मैने हां में गर्दन हिला कर उन दोनों के साथ नीचे की ओर चल दिया। नीचे बेसमेंट पार्किंग में एक पुलिस की कार लगी थी, और मुझे उसी में बैठ कर बाहर ले जाया गया। गेट पर करते ही मुझे शिविका गेट के बाहर खड़ी दिखी, शायद किसी का इंतजार कर रही थी....
Ye kya Manish ko kaise pahchan liya in logo ne?? Kya khel chal raha hai yahan, kya Manish isliye pakda gaya ki wo roj yahan aane laga tha jiske karan police ko doubt hua ya koi aur baat hai, khair ye bilkul bhi achha nahi hua hai philhal ke liye.

Wonderful update brother.
 
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अब तक आपने पढ़ा -

मैने हां में गर्दन हिला कर उन दोनों के साथ नीचे की ओर चल दिया। नीचे बेसमेंट पार्किंग में एक पुलिस की कार लगी थी, और मुझे उसी में बैठ कर बाहर ले जाया गया। गेट पर करते ही मुझे शिविका गेट के बाहर खड़ी दिखी, शायद किसी का इंतजार कर रही थी....

अब आगे -

मुझे पुलिस हैडक्वाटर ले जाया गया, और एक कमरे में बैठा दिया गया। इस कमरे में एक पलंग लगा था, और कुछ कुर्सियां थी। और एक पंखा और लाइट। कोई खिड़की नहीं थी इसमें।

मुझे पलंग पर बैठने बोला गया, और वो लोग दरवाजा बाहर से बंद करके चले गए। मेरे हाथ खुले थे। कुछ समय बाद दरवाजा खुला और SP अमरकांत अंदर आए, उनके साथ वही इंस्पेक्टर था जिसने मुझे हॉस्पिटल में साथ चलने कहा था।

"और कुछ चाय पानी पिलाया की नहीं इनको, हरीश।" बैठते हुए अमरकांत ने उस इंस्पेक्टर से पूछा।

"अभी नहीं सर।"

"ठीक है दो चाय मंगवाओ।"

"और मनीष बाबू, बहुत छकाया हमे अपने। क्या किया जाय आपके साथ अब?"

"देखिए मैने कुछ नहीं किया।" मैने घबराते हुए कहा।

"वो तो हम पता ही कर लेंगे। या तो आप सीधे से बताइए या फिर हम अपना तरीके से पूछेंगे।"

तब तक चाय आ चुकी थी।

"लीजिए चाय पीजिए। और जब मन हो बताने का, बस दरवाजा खटखटा दीजिएगा। फिलहाल आप समर के दोस्त हैं, और उसकी थ्योरी के मुताबिक अपने कुछ नहीं किया। आपके कॉल रिकॉर्डिंग भी सुनी है मैने। लेकिन वो कोई सबूत नहीं है आपके पक्ष में। क्योंकि वाल्ट की सारी एक्सेस आपके पास ही थी, लुटेरे आपके इश्यू किए हुए पास से अंदर आए। मित्तल साहब के पास भी आपही पाए गए। ये सारे सबूत आपके खिलाफ है मनीष बाबू। बस दो कड़ी नहीं मिल रही, हथियार वाल्ट के अंदर कैसे पहुंचा और फॉर्महाउस से नेहा से साथ और कौन भागा था?"

"देखिए मैं सच कह रहा हूं, मैने इनमें से कुछ भी नहीं किया।"

"मैं अभी बताने कह भी नहीं रहा आपको। समर के दोस्त हैं आप, कुछ करने से पहले सब मौका आपको दूंगा मैं।"

"पर आप लोग ने मुझे पकड़ा कैसे?"

"पुलिस का क्या आप बेवकूफ समझते हैं? पिछले चार दिन से आप आईसीयू वार्ड में हैं, न किसी से बात कर रहे हैं, न किसी मरीज की खोज खबर ले रहे हैं, बस आते हैं और बैठ जाते हैं। हमें आप पर शक क्यों नहीं होता? बस हमने आपकी फोटो ली और दाढ़ी मूंछ हटा कर देख लिया आप कौन हो।"

"मतलब किसी ने बताया नहीं आपको मेरे बारे में?"

"वैसे तो ये किसी सस्पेक्ट को बताना बनता नहीं है, पर सच में किसी ने नहीं बताया कि आप हॉस्पिटल में मौजूद हैं।"

मैने एक राहत की सांस ली। अब तक चाय भी खत्म हो चुकी थी। अमरकांत अपनी कुर्सी से खड़े हो कर

"मनीष बाबू, अब चलता हूं, भूख लगी हो तो बताइए, खाना भी भिजवा दूंगा। वैसे अब भूख तो मर ही है होगी आपकी।" एक टेडी मुस्कान के साथ अमरकांत ने मुझे बोला, और बाहर निकल गया।

हरीश ने मुझसे कहा, "तीन साल से इनके साथ हूं मैं, आज पहली बार देखा है कि किसी मुजरिम के साथ ऐसे पेश आ रहे हैं। वरना आते ही टॉर्चर शुरू कर देता हैं। वैसे भी अभी आपकी गिरफ्तारी ऑफिशियल नहीं दिखाई गई है। सारा सच जल्द से जल्द बता दीजिए, वरना कब इनका दिमाग घूम जाए, कुछ पता नहीं।"


हरीश ने एक वार्निंग दी थी मुझे।

"बुला लो उनको, जो बोलना है अभी ही बोलूंगा।" मैंने कहा।

कुछ देर बाद अमरकांत वापस मेरे पास आए। इस बार एक वीडियो कैमरा भी उनके साथ था। उसको सेट करने के बाद,

"बोलिए मनीष जी, क्या कहना है आपका?"

मैने भी शुरू से लेकर अभी अपने पकड़े जाने तक की सारी बात बता दी। सब सुनने के बाद।

"देखिए मनीष जी, आपने जो कहा वो सब हम लोग को पता ही है। समर ने भी यही थ्योरी बनाई थी। और कुछ ऐसा जो नया हो?"

"नहीं, मैने सब सच बता दिया आपको।"

"अगर जो आपके इस बयान को सच मानू तो आप लूट में शामिल नहीं थे। लेकिन मित्तल सर पर जो हमला किया उसका क्या?"

"क्या उन्होंने अपना बयान नहीं दिया?"

"हां दिया न, उनका कहना है कि उन्होंने गोली मारने वाले को नहीं देखा। पहले पीठ में गोली लगी उनको, और फिर वो बेहोश हो गए तो उन्हें नहीं पता किसने मारी गोली उनको। लेकिन आपको रिवॉल्वर के साथ प्रिया और मिसेज मित्तल ने देखा। फिर? और आपके अलावा कोई और बाहर का आदमी नहीं गया मेंशन में। इस मामले में तो बहुत सबूत हैं आपके खिलाफ।"

ये सुन कर मुझे एक और झटका लगा।

"और कुछ बताना रह गया हो तो बता दो मनीष बाबू।" अमरकांत ने फिर कहा मुझसे।

"बस समर को आ जाने दीजिए, वो बहुत सारी इनफॉर्मेशन ले कर आएगा।"

"समर तो अपने घर गया है, वो कौन सी इनफॉर्मेशन ले आएगा?"

" वो नेहा के अतीत को खंगालने गया है, और हम दोनो के यकीन है कि उससे ही सब सुलझ जाएगा।"

मेरी ये बात सुनते ही अमरकांत ने अपना फोन निकला और कहीं फोन लगाया। कुछ देर बाद, "समर का फोन स्विच ऑफ बता रहा है मनीष जी। खैर कल तक की छुट्टी है उसकी, हम कल तक देखते हैं, फिर उसके बाद न मैं आपकी गिरफ्तारी छुपा सकता हूं, और न आपको बचा सकता हूं।"

ये बोल कर वो कमरे से बाहर निकल गए। और थोड़ी देर बाद खाना भी आ गया मेरे लिए।

खाना खा कर मैं सोच में डूब गया।

"इन कुछ दिनों में मैने इतने धोखे खाए हैं कि अब मुझे किसी पर विश्वास नहीं हो रहा। शिविका की चिट्ठी झूठ नहीं थी लेकिन, वो मुझसे सच में प्यार करती है। और शायद इसीलिए नेहा और मेरे संबंध के जानने के बाद वो मुझसे कटी कटी रहने लगी। वैसे तो वो मुझे अच्छी लगती थी, मगर मैं ही खुद को मित्तल सर की फैमिली से दूर रखता आया था, क्या इसी कारण शिविका के इशारे मुझे समझ नहीं आ रहे थे? दूसरी तरफ समर, क्या कहूं उसको मैं दोस्त या तारणहार, लेकिन अब उसका फोन क्यों स्विचऑफ है? वैसे तो अभी तक तो समर ने ऐसा कुछ किया नहीं कि उस पर शक करूं, लेकिन वो भी तो इंदौर का ही है रहने वाला, क्या वही बिट्टू तो नहीं? लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?"

यही सब सोचते सोचते मेरी आंख लग गई। सुबह एक हवलदार ने मुझे उठाया और अपने साथ ले कर चला गया बाथरूम वगैरा के लिए। मैं फ्रेश हो कर वापस उसी कमरे में आ गया। आज का दिन भी ऐसे ही निकल गया। शाम को अमरकांत मेरे पास आया, और मुझे कुछ घंटों की मोहलत और दे दी। देर रात तक तो समर नहीं ही आया था।

अगले दिन सुबह मुझे उठाने हरीश आया।

"मनीष जी अब चलिए, अब हम आपकी और सहायता नहीं कर सकते, क्योंकि मीडिया को आपके यहां पर होने की खबर लग गई है, और अब आपकी गिरफ्तारी हम छुपा नहीं सकते।"

"क्या समर से कोई कॉन्टेक्ट हुआ, या वो आया?" मैने उससे पूछा।

"नहीं।"

ये बोल कर वो मुझे अपने साथ ले कर ऑफिस में गया और कुछ जगह मेरे सिग्नेचर करवा कर इंटेरोगेशन रूम में ले गया, जहां दो और लोग मौजूद थे। ये दोनों बहुत हट्टे कट्टे आदमी थे, और दोनों बिना शर्ट के थे, देख कर ही डर लग रहा था उनको।

वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"

"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....
Ye kya naya chiz mann mein aaya hai Manish ke ki Samar aur Bittu ek hi hai.
Jab aadmi itna dhokha kha chuka hota hai toh kisi par believe karna mushkil ho jata hai aur yahi Manish ke sath ho raha hai waise iski chance bhi hai Manish ki theory ke according.

Wonderful update brother. Par agar Samar aur Bittu ek hai toh phir Neha ne kise bhagaya tha jabki theory ke hisab se wo Bittu lag raha tha.

Nice and wonderful update brother.
 
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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#अपडेट ३४


अब तक आपने पढ़ा -



वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"


"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....


अब आगे -


जब मुझे होश आया तो मैने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। मेरे पूरे बदन में दर्द था, और मुझे स्लाइन लगी हुई थी, और एक हवलदार पास में ही बैठा था, जो मुझे होश में आता देख बाहर चला गया।


थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर और एक नर्स अंदर आए और मुझे चेक करने लगे।


डॉक्टर, "अब कैसा महसूस हो रहा है आपको?"


"पूरा शरीर टूट रहा है डॉक्टर।"


"बहुत मार लगी है आपको। नर्स अभी एक इंजेक्शन देगी, तो थोड़ी देर में आराम हो जाएगा आपको।" डॉक्टर ने कहा, "आरती।" और नर्स को इशारा करके बाहर निकल गया।


नर्स के इंजेक्शन देते ही कमरे में SP अमरकांत, और इंस्पेक्टर हरीश आए।


अमरकांत, "मनीष अच्छा है तुमको होश आ गया। हुए असली मुजरिम का पता चल गया है,और सॉरी वैसे ट्रीट करने के लिए। असल में मीडिया में लीक हो चुका था कि तुम पकड़े गए हो, और ये भी अफवाह उड़ा दी गई कि समर के दोस्त होने के कारण तुमको पुलिस अच्छे से ट्रीट कर रही है। इसीलिए मुझे वो टॉर्चर करवाना पड़ा, वरना समर और मेरे ऊपर सवाल उठ जाते बहुत सारे।"


"समर हैं कहां? बात हुई आपकी उससे?" मैने एक गहरी सांस ले कर पूछा।


"इधर हूं मैं।" तभी दरवाजे से आवाज आई।


हम सब ने उधर देखा तो समर अंदर आ रहा था।


"कैसा है भाई, ज्यादा लगी तो नहीं। सॉरी यार मुझे आने में जरा सी देर हो गई।" समर ने मेरे पास आते ही कहा।


"ठीक हूं यार, लेकिन तुम थे कहां? और तुमसे कॉन्टेक्ट भी नहीं हो रहा था।" मैंने उससे पूछा।


"अमर सर के पास मेरा ऑफिशियल नंबर ही है। छुट्टी पर था तो वो बंद रखा था। और आने में देर इसीलिए हुई कि आपके बिट्टू को खोजने के लिए मुझे उज्जैन, इंदौर, दिल्ली और देहरादून सब जगह जाना पड़ा, तब जा कर बिट्टू मिला।"


"तो क्या वो पकड़ा गया?" मैने उतावलेपन में पूछा।


"अभी नहीं, बस हम जा ही रहे हैं उसे पकड़ने।" इस बार अमरकांत ने जवाब दिया। "वैसे मनीष तुमने ये नहीं सोचा कभी कि मैने तुमको इतनी अच्छी ट्रीटमेंट क्यों दी?"


मैने उनकी ओर देखा, "सर सोचा तो कई बार, लेकिन..."


"क्योंकि समर ने भी एक बार मेरी बहुत मदद की थी एक केस को सुलझाने में, और जब मैने ये केस हाथ में लिया तो उसने मुझसे बस एक यही रिक्वेस्ट की थी कि मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊं जब भी तुम पकड़े जाओ।"


मैने समर की ओर कृतज्ञता से देखा।


"मगर अमर सर, अब क्यों टॉर्चर किया?" इस बार समर ने उनसे पूछा।


"समर, मनीष को हमने अनऑफिशियल ही पकड़ा था, लेकिन पता नहीं कैसे खबर बाहर आ गई, और मुझे एक इनपुट ये भी मिला कि मनीष की जान पर भी खतरा है। और उसे वहां से हटाना भी जरूरी था। इसीलिए मैने हरीश को कह कर बस इतना किया कि ये बेहोश हो, और यहां पुलिस हॉस्पिटल में ऑफिशियली आ जाय।" अमरकांत ने कहा।


"इनपुट सही भी हो सकता है, क्योंकि जितना शातिर है ये बिट्टू, कि मनीष की जान भी जा सकती है इसमें। अच्छा किया आपने सर। और थैंक्यू मेरे दोस्त का ख्याल रखने के लिए।" समर ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा।


"अच्छा अब हम चलते हैं समर, आखिर बिट्टू को भी तो पकड़ना है।" अमरकांत ने कहा।


"हां चलिए सर, ठीक है मनीष, हम फिर मिलते हैं। बिट्टू और उसके सच के साथ।" ये बोल कर समर भी उठ खड़ा हुआ।


सब लोग बाहर जाने लगे। तभी हरीश मुझसे बोला।


"मनीष सर, आई एम सारी, पर वो मेरी मजबूरी थी।" और उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया।


मैं उसका हाथ पकड़ कर, "हरीश जो भी किया तुमने वो मेरी भलाई के लिए ही था, तो मैं ही तुमको थैंक्यू बोलता हूं।"


दिन भर कोई नहीं आया, और रात को भी मैं आराम से सोया।


अगली सुबह हरीश आया और मुझे तैयार होने बोला, वो अपने साथ एक नाई को भी लाया था, जिसने मेरा हुलिया सही किया और वापस से मैं बाउजी के भतीजे से वापस मनीष मल्होत्रा बन गया। फिर हरीश मुझे ले कर अपनी जीप से पुलिस हैडक्वाटर ले गया।


वहां मुझे एक रूम में बैठा दिया गया। ये एक बड़ा सा हॉल था जिसमें आगे की ओर एक बड़ी सी डेस्क के पीछे कई सारी कुर्सियां रखी थी, मुझे उसी डेस्क के बाईं तरफ बैठा दिया गया, और हॉल का दरवाजा दाईं तरफ था। हरीश ने मेरे साथ एक हवलदार को खड़ा कर दिया, और मैं थोड़ा अंधेरे में था। थोड़ी देर बाद हाल का गेट खुला और उसमें से पुलिस के कई बड़े ऑफिसर, जो समर और अमरकांत से भी ऊंचे पद पर होंगे वो अंदर आते हैं, उनके साथ में श्रेय, प्रिया, शिवानी और महेश अंकल भी थे।


वो लोग आ कर सामने वाली डेस्क पर बैठ गए। सबसे दाईं ओर SSP, और एसीपी बैठे, फिर महेश अंकल, शिवानी, प्रिया और श्रेय, और उसके बाईं ओर कमिश्नर और डीसीपी बैठे। उसके पीछे कुछ पुरुष और महिला हवलदार भी आ कर खड़े हो गए।


फिर पांच मिनिट बाद अमरकांत भी हरीश के साथ आ कर बैठे और पूरे हॉल की लाइट जला दी गई, और सबकी नजर मुझ पर पड़ी। सब आश्चर्य से मुझे देख रहे थे, जहां महेश अंकल, प्रिया और श्रेय की आंखों में मुझे देख गुस्सा आया, वहीं शिवानी कुछ परेशान हो गई मुझे देख कर।


मुझे बिना किसी हथकड़ी के रखा गया था, जिसे देख कमिश्नर ने अमरकांत से गुस्से से पूछा, "अमर, सस्पेक्ट को ऐसे रखा जाता है क्या सेल के बाहर?"


"सस्पेक्ट, कौन सस्पेक्ट है यहां पर सर?" अमरकांत ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा।


"मनीष, और कौन?"


"ओह, वो। अब वो नहीं है सर। और सस्पेक्ट क्या अब तो असली मुजरिम भी हमारी गिरफ्त में है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "समर, अंदर आओ।"



अमरकांत के पुकारने के बाद समर हॉल के अंदर आता है, और उसके साथ एक आदमी की हथकड़ी में अंदर लाया गया, जिसके चेहरे पर कपड़ा पड़ा था, और साथ में वही इंस्पेक्टर था जो उस दिन मेरी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था......
Let's see then kya Manish innocent sabit hota hai ya phir koi aur drama hone wala hai waise lag tot raha hai sab kuchh sahi hone wala hai par ye story sidhi bhi nahi hai isliye pata nahi Manish bach payega ya nahi.

Aur ye Shivani, Manish ko dekh kar kyon pareshan ho gayi ye bhi ek bomb sawal hai???

Wonderful update brother.
 
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Ajju Landwalia

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तबियत खराब है भाई, फीवर आ रहा है २ दिन से। अभी कुछ सही लगा तो login किया।

ठीक होते ही अपडेट आ जाएगा।

Koi baat nahi Riky007 Bhai,

Aap apna khyal rakho............

Jab tabiyat thik lage tab update dena
 
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Ajju Landwalia

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अब तक आपने पढ़ा -



वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"


"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....


अब आगे -


जब मुझे होश आया तो मैने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। मेरे पूरे बदन में दर्द था, और मुझे स्लाइन लगी हुई थी, और एक हवलदार पास में ही बैठा था, जो मुझे होश में आता देख बाहर चला गया।


थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर और एक नर्स अंदर आए और मुझे चेक करने लगे।


डॉक्टर, "अब कैसा महसूस हो रहा है आपको?"


"पूरा शरीर टूट रहा है डॉक्टर।"


"बहुत मार लगी है आपको। नर्स अभी एक इंजेक्शन देगी, तो थोड़ी देर में आराम हो जाएगा आपको।" डॉक्टर ने कहा, "आरती।" और नर्स को इशारा करके बाहर निकल गया।


नर्स के इंजेक्शन देते ही कमरे में SP अमरकांत, और इंस्पेक्टर हरीश आए।


अमरकांत, "मनीष अच्छा है तुमको होश आ गया। हुए असली मुजरिम का पता चल गया है,और सॉरी वैसे ट्रीट करने के लिए। असल में मीडिया में लीक हो चुका था कि तुम पकड़े गए हो, और ये भी अफवाह उड़ा दी गई कि समर के दोस्त होने के कारण तुमको पुलिस अच्छे से ट्रीट कर रही है। इसीलिए मुझे वो टॉर्चर करवाना पड़ा, वरना समर और मेरे ऊपर सवाल उठ जाते बहुत सारे।"


"समर हैं कहां? बात हुई आपकी उससे?" मैने एक गहरी सांस ले कर पूछा।


"इधर हूं मैं।" तभी दरवाजे से आवाज आई।


हम सब ने उधर देखा तो समर अंदर आ रहा था।


"कैसा है भाई, ज्यादा लगी तो नहीं। सॉरी यार मुझे आने में जरा सी देर हो गई।" समर ने मेरे पास आते ही कहा।


"ठीक हूं यार, लेकिन तुम थे कहां? और तुमसे कॉन्टेक्ट भी नहीं हो रहा था।" मैंने उससे पूछा।


"अमर सर के पास मेरा ऑफिशियल नंबर ही है। छुट्टी पर था तो वो बंद रखा था। और आने में देर इसीलिए हुई कि आपके बिट्टू को खोजने के लिए मुझे उज्जैन, इंदौर, दिल्ली और देहरादून सब जगह जाना पड़ा, तब जा कर बिट्टू मिला।"


"तो क्या वो पकड़ा गया?" मैने उतावलेपन में पूछा।


"अभी नहीं, बस हम जा ही रहे हैं उसे पकड़ने।" इस बार अमरकांत ने जवाब दिया। "वैसे मनीष तुमने ये नहीं सोचा कभी कि मैने तुमको इतनी अच्छी ट्रीटमेंट क्यों दी?"


मैने उनकी ओर देखा, "सर सोचा तो कई बार, लेकिन..."


"क्योंकि समर ने भी एक बार मेरी बहुत मदद की थी एक केस को सुलझाने में, और जब मैने ये केस हाथ में लिया तो उसने मुझसे बस एक यही रिक्वेस्ट की थी कि मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊं जब भी तुम पकड़े जाओ।"


मैने समर की ओर कृतज्ञता से देखा।


"मगर अमर सर, अब क्यों टॉर्चर किया?" इस बार समर ने उनसे पूछा।


"समर, मनीष को हमने अनऑफिशियल ही पकड़ा था, लेकिन पता नहीं कैसे खबर बाहर आ गई, और मुझे एक इनपुट ये भी मिला कि मनीष की जान पर भी खतरा है। और उसे वहां से हटाना भी जरूरी था। इसीलिए मैने हरीश को कह कर बस इतना किया कि ये बेहोश हो, और यहां पुलिस हॉस्पिटल में ऑफिशियली आ जाय।" अमरकांत ने कहा।


"इनपुट सही भी हो सकता है, क्योंकि जितना शातिर है ये बिट्टू, कि मनीष की जान भी जा सकती है इसमें। अच्छा किया आपने सर। और थैंक्यू मेरे दोस्त का ख्याल रखने के लिए।" समर ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा।


"अच्छा अब हम चलते हैं समर, आखिर बिट्टू को भी तो पकड़ना है।" अमरकांत ने कहा।


"हां चलिए सर, ठीक है मनीष, हम फिर मिलते हैं। बिट्टू और उसके सच के साथ।" ये बोल कर समर भी उठ खड़ा हुआ।


सब लोग बाहर जाने लगे। तभी हरीश मुझसे बोला।


"मनीष सर, आई एम सारी, पर वो मेरी मजबूरी थी।" और उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया।


मैं उसका हाथ पकड़ कर, "हरीश जो भी किया तुमने वो मेरी भलाई के लिए ही था, तो मैं ही तुमको थैंक्यू बोलता हूं।"


दिन भर कोई नहीं आया, और रात को भी मैं आराम से सोया।


अगली सुबह हरीश आया और मुझे तैयार होने बोला, वो अपने साथ एक नाई को भी लाया था, जिसने मेरा हुलिया सही किया और वापस से मैं बाउजी के भतीजे से वापस मनीष मल्होत्रा बन गया। फिर हरीश मुझे ले कर अपनी जीप से पुलिस हैडक्वाटर ले गया।


वहां मुझे एक रूम में बैठा दिया गया। ये एक बड़ा सा हॉल था जिसमें आगे की ओर एक बड़ी सी डेस्क के पीछे कई सारी कुर्सियां रखी थी, मुझे उसी डेस्क के बाईं तरफ बैठा दिया गया, और हॉल का दरवाजा दाईं तरफ था। हरीश ने मेरे साथ एक हवलदार को खड़ा कर दिया, और मैं थोड़ा अंधेरे में था। थोड़ी देर बाद हाल का गेट खुला और उसमें से पुलिस के कई बड़े ऑफिसर, जो समर और अमरकांत से भी ऊंचे पद पर होंगे वो अंदर आते हैं, उनके साथ में श्रेय, प्रिया, शिवानी और महेश अंकल भी थे।


वो लोग आ कर सामने वाली डेस्क पर बैठ गए। सबसे दाईं ओर SSP, और एसीपी बैठे, फिर महेश अंकल, शिवानी, प्रिया और श्रेय, और उसके बाईं ओर कमिश्नर और डीसीपी बैठे। उसके पीछे कुछ पुरुष और महिला हवलदार भी आ कर खड़े हो गए।


फिर पांच मिनिट बाद अमरकांत भी हरीश के साथ आ कर बैठे और पूरे हॉल की लाइट जला दी गई, और सबकी नजर मुझ पर पड़ी। सब आश्चर्य से मुझे देख रहे थे, जहां महेश अंकल, प्रिया और श्रेय की आंखों में मुझे देख गुस्सा आया, वहीं शिवानी कुछ परेशान हो गई मुझे देख कर।


मुझे बिना किसी हथकड़ी के रखा गया था, जिसे देख कमिश्नर ने अमरकांत से गुस्से से पूछा, "अमर, सस्पेक्ट को ऐसे रखा जाता है क्या सेल के बाहर?"


"सस्पेक्ट, कौन सस्पेक्ट है यहां पर सर?" अमरकांत ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा।


"मनीष, और कौन?"


"ओह, वो। अब वो नहीं है सर। और सस्पेक्ट क्या अब तो असली मुजरिम भी हमारी गिरफ्त में है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "समर, अंदर आओ।"



अमरकांत के पुकारने के बाद समर हॉल के अंदर आता है, और उसके साथ एक आदमी की हथकड़ी में अंदर लाया गया, जिसके चेहरे पर कपड़ा पड़ा था, और साथ में वही इंस्पेक्टर था जो उस दिन मेरी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था......

Bahut hi shandar update he Riky007 Bhai,

Aakhirkar samar ki koshish rang layi...........

Bittoo pakda gaya...........lekin ye he kaun???

Keep rocking Bro
 
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