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Thriller शतरंज की चाल

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Napster

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#अपडेट ३४


अब तक आपने पढ़ा -



वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"


"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....


अब आगे -


जब मुझे होश आया तो मैने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। मेरे पूरे बदन में दर्द था, और मुझे स्लाइन लगी हुई थी, और एक हवलदार पास में ही बैठा था, जो मुझे होश में आता देख बाहर चला गया।


थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर और एक नर्स अंदर आए और मुझे चेक करने लगे।


डॉक्टर, "अब कैसा महसूस हो रहा है आपको?"


"पूरा शरीर टूट रहा है डॉक्टर।"


"बहुत मार लगी है आपको। नर्स अभी एक इंजेक्शन देगी, तो थोड़ी देर में आराम हो जाएगा आपको।" डॉक्टर ने कहा, "आरती।" और नर्स को इशारा करके बाहर निकल गया।


नर्स के इंजेक्शन देते ही कमरे में SP अमरकांत, और इंस्पेक्टर हरीश आए।


अमरकांत, "मनीष अच्छा है तुमको होश आ गया। हुए असली मुजरिम का पता चल गया है,और सॉरी वैसे ट्रीट करने के लिए। असल में मीडिया में लीक हो चुका था कि तुम पकड़े गए हो, और ये भी अफवाह उड़ा दी गई कि समर के दोस्त होने के कारण तुमको पुलिस अच्छे से ट्रीट कर रही है। इसीलिए मुझे वो टॉर्चर करवाना पड़ा, वरना समर और मेरे ऊपर सवाल उठ जाते बहुत सारे।"


"समर हैं कहां? बात हुई आपकी उससे?" मैने एक गहरी सांस ले कर पूछा।


"इधर हूं मैं।" तभी दरवाजे से आवाज आई।


हम सब ने उधर देखा तो समर अंदर आ रहा था।


"कैसा है भाई, ज्यादा लगी तो नहीं। सॉरी यार मुझे आने में जरा सी देर हो गई।" समर ने मेरे पास आते ही कहा।


"ठीक हूं यार, लेकिन तुम थे कहां? और तुमसे कॉन्टेक्ट भी नहीं हो रहा था।" मैंने उससे पूछा।


"अमर सर के पास मेरा ऑफिशियल नंबर ही है। छुट्टी पर था तो वो बंद रखा था। और आने में देर इसीलिए हुई कि आपके बिट्टू को खोजने के लिए मुझे उज्जैन, इंदौर, दिल्ली और देहरादून सब जगह जाना पड़ा, तब जा कर बिट्टू मिला।"


"तो क्या वो पकड़ा गया?" मैने उतावलेपन में पूछा।


"अभी नहीं, बस हम जा ही रहे हैं उसे पकड़ने।" इस बार अमरकांत ने जवाब दिया। "वैसे मनीष तुमने ये नहीं सोचा कभी कि मैने तुमको इतनी अच्छी ट्रीटमेंट क्यों दी?"


मैने उनकी ओर देखा, "सर सोचा तो कई बार, लेकिन..."


"क्योंकि समर ने भी एक बार मेरी बहुत मदद की थी एक केस को सुलझाने में, और जब मैने ये केस हाथ में लिया तो उसने मुझसे बस एक यही रिक्वेस्ट की थी कि मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊं जब भी तुम पकड़े जाओ।"


मैने समर की ओर कृतज्ञता से देखा।


"मगर अमर सर, अब क्यों टॉर्चर किया?" इस बार समर ने उनसे पूछा।


"समर, मनीष को हमने अनऑफिशियल ही पकड़ा था, लेकिन पता नहीं कैसे खबर बाहर आ गई, और मुझे एक इनपुट ये भी मिला कि मनीष की जान पर भी खतरा है। और उसे वहां से हटाना भी जरूरी था। इसीलिए मैने हरीश को कह कर बस इतना किया कि ये बेहोश हो, और यहां पुलिस हॉस्पिटल में ऑफिशियली आ जाय।" अमरकांत ने कहा।


"इनपुट सही भी हो सकता है, क्योंकि जितना शातिर है ये बिट्टू, कि मनीष की जान भी जा सकती है इसमें। अच्छा किया आपने सर। और थैंक्यू मेरे दोस्त का ख्याल रखने के लिए।" समर ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा।


"अच्छा अब हम चलते हैं समर, आखिर बिट्टू को भी तो पकड़ना है।" अमरकांत ने कहा।


"हां चलिए सर, ठीक है मनीष, हम फिर मिलते हैं। बिट्टू और उसके सच के साथ।" ये बोल कर समर भी उठ खड़ा हुआ।


सब लोग बाहर जाने लगे। तभी हरीश मुझसे बोला।


"मनीष सर, आई एम सारी, पर वो मेरी मजबूरी थी।" और उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया।


मैं उसका हाथ पकड़ कर, "हरीश जो भी किया तुमने वो मेरी भलाई के लिए ही था, तो मैं ही तुमको थैंक्यू बोलता हूं।"


दिन भर कोई नहीं आया, और रात को भी मैं आराम से सोया।


अगली सुबह हरीश आया और मुझे तैयार होने बोला, वो अपने साथ एक नाई को भी लाया था, जिसने मेरा हुलिया सही किया और वापस से मैं बाउजी के भतीजे से वापस मनीष मल्होत्रा बन गया। फिर हरीश मुझे ले कर अपनी जीप से पुलिस हैडक्वाटर ले गया।


वहां मुझे एक रूम में बैठा दिया गया। ये एक बड़ा सा हॉल था जिसमें आगे की ओर एक बड़ी सी डेस्क के पीछे कई सारी कुर्सियां रखी थी, मुझे उसी डेस्क के बाईं तरफ बैठा दिया गया, और हॉल का दरवाजा दाईं तरफ था। हरीश ने मेरे साथ एक हवलदार को खड़ा कर दिया, और मैं थोड़ा अंधेरे में था। थोड़ी देर बाद हाल का गेट खुला और उसमें से पुलिस के कई बड़े ऑफिसर, जो समर और अमरकांत से भी ऊंचे पद पर होंगे वो अंदर आते हैं, उनके साथ में श्रेय, प्रिया, शिवानी और महेश अंकल भी थे।


वो लोग आ कर सामने वाली डेस्क पर बैठ गए। सबसे दाईं ओर SSP, और एसीपी बैठे, फिर महेश अंकल, शिवानी, प्रिया और श्रेय, और उसके बाईं ओर कमिश्नर और डीसीपी बैठे। उसके पीछे कुछ पुरुष और महिला हवलदार भी आ कर खड़े हो गए।


फिर पांच मिनिट बाद अमरकांत भी हरीश के साथ आ कर बैठे और पूरे हॉल की लाइट जला दी गई, और सबकी नजर मुझ पर पड़ी। सब आश्चर्य से मुझे देख रहे थे, जहां महेश अंकल, प्रिया और श्रेय की आंखों में मुझे देख गुस्सा आया, वहीं शिवानी कुछ परेशान हो गई मुझे देख कर।


मुझे बिना किसी हथकड़ी के रखा गया था, जिसे देख कमिश्नर ने अमरकांत से गुस्से से पूछा, "अमर, सस्पेक्ट को ऐसे रखा जाता है क्या सेल के बाहर?"


"सस्पेक्ट, कौन सस्पेक्ट है यहां पर सर?" अमरकांत ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा।


"मनीष, और कौन?"


"ओह, वो। अब वो नहीं है सर। और सस्पेक्ट क्या अब तो असली मुजरिम भी हमारी गिरफ्त में है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "समर, अंदर आओ।"


अमरकांत के पुकारने के बाद समर हॉल के अंदर आता है, और उसके साथ एक आदमी की हथकड़ी में अंदर लाया गया, जिसके चेहरे पर कपड़ा पड़ा था, और साथ में वही इंस्पेक्टर था जो उस दिन मेरी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था......
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
समर की मेहरबानी से मनिष की हड्डी तोड कुटाई के बाद अच्छा खयाल भी रखा गया और असली गुनाहगार भी पकडा गया ये भी बता दिया
अब पुलिस हेडक्वार्टर में सभी बडे अधिकारी और मित्तल परिवार के सामने मनिष को असली रुप में पेश कर असली मुजरीम को सर पर कपडा ओढके
तो क्या असली मुजरीम बिट्टू हैं या कोई मित्तल परिवार से हैं
खैर देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

parkas

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#अपडेट ३४


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वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"


"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....


अब आगे -


जब मुझे होश आया तो मैने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। मेरे पूरे बदन में दर्द था, और मुझे स्लाइन लगी हुई थी, और एक हवलदार पास में ही बैठा था, जो मुझे होश में आता देख बाहर चला गया।


थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर और एक नर्स अंदर आए और मुझे चेक करने लगे।


डॉक्टर, "अब कैसा महसूस हो रहा है आपको?"


"पूरा शरीर टूट रहा है डॉक्टर।"


"बहुत मार लगी है आपको। नर्स अभी एक इंजेक्शन देगी, तो थोड़ी देर में आराम हो जाएगा आपको।" डॉक्टर ने कहा, "आरती।" और नर्स को इशारा करके बाहर निकल गया।


नर्स के इंजेक्शन देते ही कमरे में SP अमरकांत, और इंस्पेक्टर हरीश आए।


अमरकांत, "मनीष अच्छा है तुमको होश आ गया। हुए असली मुजरिम का पता चल गया है,और सॉरी वैसे ट्रीट करने के लिए। असल में मीडिया में लीक हो चुका था कि तुम पकड़े गए हो, और ये भी अफवाह उड़ा दी गई कि समर के दोस्त होने के कारण तुमको पुलिस अच्छे से ट्रीट कर रही है। इसीलिए मुझे वो टॉर्चर करवाना पड़ा, वरना समर और मेरे ऊपर सवाल उठ जाते बहुत सारे।"


"समर हैं कहां? बात हुई आपकी उससे?" मैने एक गहरी सांस ले कर पूछा।


"इधर हूं मैं।" तभी दरवाजे से आवाज आई।


हम सब ने उधर देखा तो समर अंदर आ रहा था।


"कैसा है भाई, ज्यादा लगी तो नहीं। सॉरी यार मुझे आने में जरा सी देर हो गई।" समर ने मेरे पास आते ही कहा।


"ठीक हूं यार, लेकिन तुम थे कहां? और तुमसे कॉन्टेक्ट भी नहीं हो रहा था।" मैंने उससे पूछा।


"अमर सर के पास मेरा ऑफिशियल नंबर ही है। छुट्टी पर था तो वो बंद रखा था। और आने में देर इसीलिए हुई कि आपके बिट्टू को खोजने के लिए मुझे उज्जैन, इंदौर, दिल्ली और देहरादून सब जगह जाना पड़ा, तब जा कर बिट्टू मिला।"


"तो क्या वो पकड़ा गया?" मैने उतावलेपन में पूछा।


"अभी नहीं, बस हम जा ही रहे हैं उसे पकड़ने।" इस बार अमरकांत ने जवाब दिया। "वैसे मनीष तुमने ये नहीं सोचा कभी कि मैने तुमको इतनी अच्छी ट्रीटमेंट क्यों दी?"


मैने उनकी ओर देखा, "सर सोचा तो कई बार, लेकिन..."


"क्योंकि समर ने भी एक बार मेरी बहुत मदद की थी एक केस को सुलझाने में, और जब मैने ये केस हाथ में लिया तो उसने मुझसे बस एक यही रिक्वेस्ट की थी कि मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊं जब भी तुम पकड़े जाओ।"


मैने समर की ओर कृतज्ञता से देखा।


"मगर अमर सर, अब क्यों टॉर्चर किया?" इस बार समर ने उनसे पूछा।


"समर, मनीष को हमने अनऑफिशियल ही पकड़ा था, लेकिन पता नहीं कैसे खबर बाहर आ गई, और मुझे एक इनपुट ये भी मिला कि मनीष की जान पर भी खतरा है। और उसे वहां से हटाना भी जरूरी था। इसीलिए मैने हरीश को कह कर बस इतना किया कि ये बेहोश हो, और यहां पुलिस हॉस्पिटल में ऑफिशियली आ जाय।" अमरकांत ने कहा।


"इनपुट सही भी हो सकता है, क्योंकि जितना शातिर है ये बिट्टू, कि मनीष की जान भी जा सकती है इसमें। अच्छा किया आपने सर। और थैंक्यू मेरे दोस्त का ख्याल रखने के लिए।" समर ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा।


"अच्छा अब हम चलते हैं समर, आखिर बिट्टू को भी तो पकड़ना है।" अमरकांत ने कहा।


"हां चलिए सर, ठीक है मनीष, हम फिर मिलते हैं। बिट्टू और उसके सच के साथ।" ये बोल कर समर भी उठ खड़ा हुआ।


सब लोग बाहर जाने लगे। तभी हरीश मुझसे बोला।


"मनीष सर, आई एम सारी, पर वो मेरी मजबूरी थी।" और उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया।


मैं उसका हाथ पकड़ कर, "हरीश जो भी किया तुमने वो मेरी भलाई के लिए ही था, तो मैं ही तुमको थैंक्यू बोलता हूं।"


दिन भर कोई नहीं आया, और रात को भी मैं आराम से सोया।


अगली सुबह हरीश आया और मुझे तैयार होने बोला, वो अपने साथ एक नाई को भी लाया था, जिसने मेरा हुलिया सही किया और वापस से मैं बाउजी के भतीजे से वापस मनीष मल्होत्रा बन गया। फिर हरीश मुझे ले कर अपनी जीप से पुलिस हैडक्वाटर ले गया।


वहां मुझे एक रूम में बैठा दिया गया। ये एक बड़ा सा हॉल था जिसमें आगे की ओर एक बड़ी सी डेस्क के पीछे कई सारी कुर्सियां रखी थी, मुझे उसी डेस्क के बाईं तरफ बैठा दिया गया, और हॉल का दरवाजा दाईं तरफ था। हरीश ने मेरे साथ एक हवलदार को खड़ा कर दिया, और मैं थोड़ा अंधेरे में था। थोड़ी देर बाद हाल का गेट खुला और उसमें से पुलिस के कई बड़े ऑफिसर, जो समर और अमरकांत से भी ऊंचे पद पर होंगे वो अंदर आते हैं, उनके साथ में श्रेय, प्रिया, शिवानी और महेश अंकल भी थे।


वो लोग आ कर सामने वाली डेस्क पर बैठ गए। सबसे दाईं ओर SSP, और एसीपी बैठे, फिर महेश अंकल, शिवानी, प्रिया और श्रेय, और उसके बाईं ओर कमिश्नर और डीसीपी बैठे। उसके पीछे कुछ पुरुष और महिला हवलदार भी आ कर खड़े हो गए।


फिर पांच मिनिट बाद अमरकांत भी हरीश के साथ आ कर बैठे और पूरे हॉल की लाइट जला दी गई, और सबकी नजर मुझ पर पड़ी। सब आश्चर्य से मुझे देख रहे थे, जहां महेश अंकल, प्रिया और श्रेय की आंखों में मुझे देख गुस्सा आया, वहीं शिवानी कुछ परेशान हो गई मुझे देख कर।


मुझे बिना किसी हथकड़ी के रखा गया था, जिसे देख कमिश्नर ने अमरकांत से गुस्से से पूछा, "अमर, सस्पेक्ट को ऐसे रखा जाता है क्या सेल के बाहर?"


"सस्पेक्ट, कौन सस्पेक्ट है यहां पर सर?" अमरकांत ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा।


"मनीष, और कौन?"


"ओह, वो। अब वो नहीं है सर। और सस्पेक्ट क्या अब तो असली मुजरिम भी हमारी गिरफ्त में है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "समर, अंदर आओ।"



अमरकांत के पुकारने के बाद समर हॉल के अंदर आता है, और उसके साथ एक आदमी की हथकड़ी में अंदर लाया गया, जिसके चेहरे पर कपड़ा पड़ा था, और साथ में वही इंस्पेक्टर था जो उस दिन मेरी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था......
Bahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai....
Nice and lovely update....
 
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रिकी भाई ,
हथेली पर ओस रखकर प्यास मिटाने की बात करते हो ! इतने कम पानी से प्यास कहां बुझती है ! :D

खैर , बिट्ट नामक परिंदे की पर आखिरकार कतर ही दी गई । कुछ देर मे इस के चेहरे का भी दर्शन हो जायेगा ।
मगर , इस परिंदे को दाना पानी देने वाला व्यक्ति कौन था ? जिस तरह से मित्तल फैमिली के सभी सदस्य को आमंत्रित किया गया है उससे लगता तो यही है कि इन्ही मे वह व्यक्ति होगा !

खुबसूरत अपडेट रिकी भाई ।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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रिकी भाई ,
हथेली पर ओस रखकर प्यास मिटाने की बात करते हो ! इतने कम पानी से प्यास कहां बुझती है ! :D

खैर , बिट्ट नामक परिंदे की पर आखिरकार कतर ही दी गई । कुछ देर मे इस के चेहरे का भी दर्शन हो जायेगा ।
मगर , इस परिंदे को दाना पानी देने वाला व्यक्ति कौन था ? जिस तरह से मित्तल फैमिली के सभी सदस्य को आमंत्रित किया गया है उससे लगता तो यही है कि इन्ही मे वह व्यक्ति होगा !

खुबसूरत अपडेट रिकी भाई ।
बिट्टू के चक्कर में कोई इस बात तक पहुंचा ही नहीं, सिवाय आपके 😂

बिल्कुल इनमें से ही है वो
 

Localmusafir

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हम कुछ नही बोलेगा,
लेकिन फिर भी बोले तो मित्तल साहब .......?
पुलिस पुलिस भाई भाई ।
समर सचमुच यारों का यार हे।
आगे क्या होने वाला है, देखते है ब्रेक के बाद।
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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अब तक आपने पढ़ा -



वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"


"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....


अब आगे -


जब मुझे होश आया तो मैने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। मेरे पूरे बदन में दर्द था, और मुझे स्लाइन लगी हुई थी, और एक हवलदार पास में ही बैठा था, जो मुझे होश में आता देख बाहर चला गया।


थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर और एक नर्स अंदर आए और मुझे चेक करने लगे।


डॉक्टर, "अब कैसा महसूस हो रहा है आपको?"


"पूरा शरीर टूट रहा है डॉक्टर।"


"बहुत मार लगी है आपको। नर्स अभी एक इंजेक्शन देगी, तो थोड़ी देर में आराम हो जाएगा आपको।" डॉक्टर ने कहा, "आरती।" और नर्स को इशारा करके बाहर निकल गया।


नर्स के इंजेक्शन देते ही कमरे में SP अमरकांत, और इंस्पेक्टर हरीश आए।


अमरकांत, "मनीष अच्छा है तुमको होश आ गया। हुए असली मुजरिम का पता चल गया है,और सॉरी वैसे ट्रीट करने के लिए। असल में मीडिया में लीक हो चुका था कि तुम पकड़े गए हो, और ये भी अफवाह उड़ा दी गई कि समर के दोस्त होने के कारण तुमको पुलिस अच्छे से ट्रीट कर रही है। इसीलिए मुझे वो टॉर्चर करवाना पड़ा, वरना समर और मेरे ऊपर सवाल उठ जाते बहुत सारे।"


"समर हैं कहां? बात हुई आपकी उससे?" मैने एक गहरी सांस ले कर पूछा।


"इधर हूं मैं।" तभी दरवाजे से आवाज आई।


हम सब ने उधर देखा तो समर अंदर आ रहा था।


"कैसा है भाई, ज्यादा लगी तो नहीं। सॉरी यार मुझे आने में जरा सी देर हो गई।" समर ने मेरे पास आते ही कहा।


"ठीक हूं यार, लेकिन तुम थे कहां? और तुमसे कॉन्टेक्ट भी नहीं हो रहा था।" मैंने उससे पूछा।


"अमर सर के पास मेरा ऑफिशियल नंबर ही है। छुट्टी पर था तो वो बंद रखा था। और आने में देर इसीलिए हुई कि आपके बिट्टू को खोजने के लिए मुझे उज्जैन, इंदौर, दिल्ली और देहरादून सब जगह जाना पड़ा, तब जा कर बिट्टू मिला।"


"तो क्या वो पकड़ा गया?" मैने उतावलेपन में पूछा।


"अभी नहीं, बस हम जा ही रहे हैं उसे पकड़ने।" इस बार अमरकांत ने जवाब दिया। "वैसे मनीष तुमने ये नहीं सोचा कभी कि मैने तुमको इतनी अच्छी ट्रीटमेंट क्यों दी?"


मैने उनकी ओर देखा, "सर सोचा तो कई बार, लेकिन..."


"क्योंकि समर ने भी एक बार मेरी बहुत मदद की थी एक केस को सुलझाने में, और जब मैने ये केस हाथ में लिया तो उसने मुझसे बस एक यही रिक्वेस्ट की थी कि मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊं जब भी तुम पकड़े जाओ।"


मैने समर की ओर कृतज्ञता से देखा।


"मगर अमर सर, अब क्यों टॉर्चर किया?" इस बार समर ने उनसे पूछा।


"समर, मनीष को हमने अनऑफिशियल ही पकड़ा था, लेकिन पता नहीं कैसे खबर बाहर आ गई, और मुझे एक इनपुट ये भी मिला कि मनीष की जान पर भी खतरा है। और उसे वहां से हटाना भी जरूरी था। इसीलिए मैने हरीश को कह कर बस इतना किया कि ये बेहोश हो, और यहां पुलिस हॉस्पिटल में ऑफिशियली आ जाय।" अमरकांत ने कहा।


"इनपुट सही भी हो सकता है, क्योंकि जितना शातिर है ये बिट्टू, कि मनीष की जान भी जा सकती है इसमें। अच्छा किया आपने सर। और थैंक्यू मेरे दोस्त का ख्याल रखने के लिए।" समर ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा।


"अच्छा अब हम चलते हैं समर, आखिर बिट्टू को भी तो पकड़ना है।" अमरकांत ने कहा।


"हां चलिए सर, ठीक है मनीष, हम फिर मिलते हैं। बिट्टू और उसके सच के साथ।" ये बोल कर समर भी उठ खड़ा हुआ।


सब लोग बाहर जाने लगे। तभी हरीश मुझसे बोला।


"मनीष सर, आई एम सारी, पर वो मेरी मजबूरी थी।" और उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया।


मैं उसका हाथ पकड़ कर, "हरीश जो भी किया तुमने वो मेरी भलाई के लिए ही था, तो मैं ही तुमको थैंक्यू बोलता हूं।"


दिन भर कोई नहीं आया, और रात को भी मैं आराम से सोया।


अगली सुबह हरीश आया और मुझे तैयार होने बोला, वो अपने साथ एक नाई को भी लाया था, जिसने मेरा हुलिया सही किया और वापस से मैं बाउजी के भतीजे से वापस मनीष मल्होत्रा बन गया। फिर हरीश मुझे ले कर अपनी जीप से पुलिस हैडक्वाटर ले गया।


वहां मुझे एक रूम में बैठा दिया गया। ये एक बड़ा सा हॉल था जिसमें आगे की ओर एक बड़ी सी डेस्क के पीछे कई सारी कुर्सियां रखी थी, मुझे उसी डेस्क के बाईं तरफ बैठा दिया गया, और हॉल का दरवाजा दाईं तरफ था। हरीश ने मेरे साथ एक हवलदार को खड़ा कर दिया, और मैं थोड़ा अंधेरे में था। थोड़ी देर बाद हाल का गेट खुला और उसमें से पुलिस के कई बड़े ऑफिसर, जो समर और अमरकांत से भी ऊंचे पद पर होंगे वो अंदर आते हैं, उनके साथ में श्रेय, प्रिया, शिवानी और महेश अंकल भी थे।


वो लोग आ कर सामने वाली डेस्क पर बैठ गए। सबसे दाईं ओर SSP, और एसीपी बैठे, फिर महेश अंकल, शिवानी, प्रिया और श्रेय, और उसके बाईं ओर कमिश्नर और डीसीपी बैठे। उसके पीछे कुछ पुरुष और महिला हवलदार भी आ कर खड़े हो गए।


फिर पांच मिनिट बाद अमरकांत भी हरीश के साथ आ कर बैठे और पूरे हॉल की लाइट जला दी गई, और सबकी नजर मुझ पर पड़ी। सब आश्चर्य से मुझे देख रहे थे, जहां महेश अंकल, प्रिया और श्रेय की आंखों में मुझे देख गुस्सा आया, वहीं शिवानी कुछ परेशान हो गई मुझे देख कर।


मुझे बिना किसी हथकड़ी के रखा गया था, जिसे देख कमिश्नर ने अमरकांत से गुस्से से पूछा, "अमर, सस्पेक्ट को ऐसे रखा जाता है क्या सेल के बाहर?"


"सस्पेक्ट, कौन सस्पेक्ट है यहां पर सर?" अमरकांत ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा।


"मनीष, और कौन?"


"ओह, वो। अब वो नहीं है सर। और सस्पेक्ट क्या अब तो असली मुजरिम भी हमारी गिरफ्त में है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "समर, अंदर आओ।"



अमरकांत के पुकारने के बाद समर हॉल के अंदर आता है, और उसके साथ एक आदमी की हथकड़ी में अंदर लाया गया, जिसके चेहरे पर कपड़ा पड़ा था, और साथ में वही इंस्पेक्टर था जो उस दिन मेरी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था......
Bade aaram se pakda gaya bittu ,itne aasani se sab sahi ho raha hai
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Bade aaram se pakda gaya bittu ,itne aasani se sab sahi ho raha hai
उसका भी रीजन पता चलेगा कि पकड़ा कैसे गया।
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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अब तक आपने पढ़ा -



वहां जाते ही मुझे दोनों हाथ बांध कर लटका दिया गया और वो लोग मुझसे बोले, "मनीष जी सच सच बता दीजिए, हम फिर से आपसे कह रहे हैं, वरना हमको आपको मजबूरन टॉर्चर करना पड़ेगा।"


"मैने सब सच ही बताया है sp साहब को।"


मेरे ये बोलते ही वो दोनों और हरीश मेरे ऊपर डंडे बरसाने लगे, कुछ देर तो मैं सहता रहा, पर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैं बेहोश हो गया.....


अब आगे -


जब मुझे होश आया तो मैने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। मेरे पूरे बदन में दर्द था, और मुझे स्लाइन लगी हुई थी, और एक हवलदार पास में ही बैठा था, जो मुझे होश में आता देख बाहर चला गया।


थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर और एक नर्स अंदर आए और मुझे चेक करने लगे।


डॉक्टर, "अब कैसा महसूस हो रहा है आपको?"


"पूरा शरीर टूट रहा है डॉक्टर।"


"बहुत मार लगी है आपको। नर्स अभी एक इंजेक्शन देगी, तो थोड़ी देर में आराम हो जाएगा आपको।" डॉक्टर ने कहा, "आरती।" और नर्स को इशारा करके बाहर निकल गया।


नर्स के इंजेक्शन देते ही कमरे में SP अमरकांत, और इंस्पेक्टर हरीश आए।


अमरकांत, "मनीष अच्छा है तुमको होश आ गया। हुए असली मुजरिम का पता चल गया है,और सॉरी वैसे ट्रीट करने के लिए। असल में मीडिया में लीक हो चुका था कि तुम पकड़े गए हो, और ये भी अफवाह उड़ा दी गई कि समर के दोस्त होने के कारण तुमको पुलिस अच्छे से ट्रीट कर रही है। इसीलिए मुझे वो टॉर्चर करवाना पड़ा, वरना समर और मेरे ऊपर सवाल उठ जाते बहुत सारे।"


"समर हैं कहां? बात हुई आपकी उससे?" मैने एक गहरी सांस ले कर पूछा।


"इधर हूं मैं।" तभी दरवाजे से आवाज आई।


हम सब ने उधर देखा तो समर अंदर आ रहा था।


"कैसा है भाई, ज्यादा लगी तो नहीं। सॉरी यार मुझे आने में जरा सी देर हो गई।" समर ने मेरे पास आते ही कहा।


"ठीक हूं यार, लेकिन तुम थे कहां? और तुमसे कॉन्टेक्ट भी नहीं हो रहा था।" मैंने उससे पूछा।


"अमर सर के पास मेरा ऑफिशियल नंबर ही है। छुट्टी पर था तो वो बंद रखा था। और आने में देर इसीलिए हुई कि आपके बिट्टू को खोजने के लिए मुझे उज्जैन, इंदौर, दिल्ली और देहरादून सब जगह जाना पड़ा, तब जा कर बिट्टू मिला।"


"तो क्या वो पकड़ा गया?" मैने उतावलेपन में पूछा।


"अभी नहीं, बस हम जा ही रहे हैं उसे पकड़ने।" इस बार अमरकांत ने जवाब दिया। "वैसे मनीष तुमने ये नहीं सोचा कभी कि मैने तुमको इतनी अच्छी ट्रीटमेंट क्यों दी?"


मैने उनकी ओर देखा, "सर सोचा तो कई बार, लेकिन..."


"क्योंकि समर ने भी एक बार मेरी बहुत मदद की थी एक केस को सुलझाने में, और जब मैने ये केस हाथ में लिया तो उसने मुझसे बस एक यही रिक्वेस्ट की थी कि मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊं जब भी तुम पकड़े जाओ।"


मैने समर की ओर कृतज्ञता से देखा।


"मगर अमर सर, अब क्यों टॉर्चर किया?" इस बार समर ने उनसे पूछा।


"समर, मनीष को हमने अनऑफिशियल ही पकड़ा था, लेकिन पता नहीं कैसे खबर बाहर आ गई, और मुझे एक इनपुट ये भी मिला कि मनीष की जान पर भी खतरा है। और उसे वहां से हटाना भी जरूरी था। इसीलिए मैने हरीश को कह कर बस इतना किया कि ये बेहोश हो, और यहां पुलिस हॉस्पिटल में ऑफिशियली आ जाय।" अमरकांत ने कहा।


"इनपुट सही भी हो सकता है, क्योंकि जितना शातिर है ये बिट्टू, कि मनीष की जान भी जा सकती है इसमें। अच्छा किया आपने सर। और थैंक्यू मेरे दोस्त का ख्याल रखने के लिए।" समर ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा।


"अच्छा अब हम चलते हैं समर, आखिर बिट्टू को भी तो पकड़ना है।" अमरकांत ने कहा।


"हां चलिए सर, ठीक है मनीष, हम फिर मिलते हैं। बिट्टू और उसके सच के साथ।" ये बोल कर समर भी उठ खड़ा हुआ।


सब लोग बाहर जाने लगे। तभी हरीश मुझसे बोला।


"मनीष सर, आई एम सारी, पर वो मेरी मजबूरी थी।" और उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया।


मैं उसका हाथ पकड़ कर, "हरीश जो भी किया तुमने वो मेरी भलाई के लिए ही था, तो मैं ही तुमको थैंक्यू बोलता हूं।"


दिन भर कोई नहीं आया, और रात को भी मैं आराम से सोया।


अगली सुबह हरीश आया और मुझे तैयार होने बोला, वो अपने साथ एक नाई को भी लाया था, जिसने मेरा हुलिया सही किया और वापस से मैं बाउजी के भतीजे से वापस मनीष मल्होत्रा बन गया। फिर हरीश मुझे ले कर अपनी जीप से पुलिस हैडक्वाटर ले गया।


वहां मुझे एक रूम में बैठा दिया गया। ये एक बड़ा सा हॉल था जिसमें आगे की ओर एक बड़ी सी डेस्क के पीछे कई सारी कुर्सियां रखी थी, मुझे उसी डेस्क के बाईं तरफ बैठा दिया गया, और हॉल का दरवाजा दाईं तरफ था। हरीश ने मेरे साथ एक हवलदार को खड़ा कर दिया, और मैं थोड़ा अंधेरे में था। थोड़ी देर बाद हाल का गेट खुला और उसमें से पुलिस के कई बड़े ऑफिसर, जो समर और अमरकांत से भी ऊंचे पद पर होंगे वो अंदर आते हैं, उनके साथ में श्रेय, प्रिया, शिवानी और महेश अंकल भी थे।


वो लोग आ कर सामने वाली डेस्क पर बैठ गए। सबसे दाईं ओर SSP, और एसीपी बैठे, फिर महेश अंकल, शिवानी, प्रिया और श्रेय, और उसके बाईं ओर कमिश्नर और डीसीपी बैठे। उसके पीछे कुछ पुरुष और महिला हवलदार भी आ कर खड़े हो गए।


फिर पांच मिनिट बाद अमरकांत भी हरीश के साथ आ कर बैठे और पूरे हॉल की लाइट जला दी गई, और सबकी नजर मुझ पर पड़ी। सब आश्चर्य से मुझे देख रहे थे, जहां महेश अंकल, प्रिया और श्रेय की आंखों में मुझे देख गुस्सा आया, वहीं शिवानी कुछ परेशान हो गई मुझे देख कर।


मुझे बिना किसी हथकड़ी के रखा गया था, जिसे देख कमिश्नर ने अमरकांत से गुस्से से पूछा, "अमर, सस्पेक्ट को ऐसे रखा जाता है क्या सेल के बाहर?"


"सस्पेक्ट, कौन सस्पेक्ट है यहां पर सर?" अमरकांत ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा।


"मनीष, और कौन?"


"ओह, वो। अब वो नहीं है सर। और सस्पेक्ट क्या अब तो असली मुजरिम भी हमारी गिरफ्त में है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "समर, अंदर आओ।"



अमरकांत के पुकारने के बाद समर हॉल के अंदर आता है, और उसके साथ एक आदमी की हथकड़ी में अंदर लाया गया, जिसके चेहरे पर कपड़ा पड़ा था, और साथ में वही इंस्पेक्टर था जो उस दिन मेरी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था......
Amazing update Riky007 bhai
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Ye to samj me aaya jo kuch bhi kia gaya wo Manish ko bachane ke leye kia Amarkant , Samar or Harish me
Lekin
Ab room me jaha Kamishnar or SSP ke sath Mahesh , Shivani , shrey or Priya baithe hai lekin ye Shivani Q pareshan lag rhe hai ajeeb hai kuch to
Or
Ye Bitto ko room me laya gaya hai to chehre per kapda kis leye
 
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