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घर का माहौल काफी कामुक सा हो गया था।
अगले दिन मैं सुबह उठी और घर का काम काज करने लगी. पापा अपने कमरे में सोफे पर बैठे थे.
पापा सोच रहे थे कि मैं आज भी पिछली बार की तरह छोटी सी स्कर्ट और खुली टी शर्ट पहन कर काम करुँगी और शायद अपनी ब्रा और पैंटी भी न पहनू।
पापा को भी अब तो काफी आईडिया हो ही चूका था की मैं उनके साथ क्या खेल खेल रही हूँ. वो भी जानते थे की मेरा चुदवाने का मन है, पर पापा को भी समझ नहीं आ रहा था की बात को कैसे आगे बढ़ाया जाये.
पापा के मन में भी अब शरारत जागने लगी थी।
मैंने पापा को थोड़ा तंग करने और तड़पाने का सोच और जानभूझ कर सलवार कमीज पहन लिया और नीचे पैंटी भी पहन ली पर ब्रा नहीं पहनी, (आखिर पापा को भी मेरी हिलती छातिओं के मजा तो लेने का हक़ है न )
और झाड़ू लगाने के लिए पापा के कमरे की ओर चल पड़ी,
मैं पापा के कमरे की तरफ जाने लगी।
मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं आगे क्या होगा।
मैं दरवाजे के पास पहुँची और पर्दा हटाया तो देखा कि पापा बेड के बजाए बगल में सोफे पर बैठे थे और कुर्ता उतार दिया था और सिर्फ बनियान और लुंगी में थे।
तब मैं समझ गयी कि पापा भी यह मौका छोड़ना नहीं चाहते और आज कुछ करके ही मानेंगे।
हालांकि मैं और मेरी चूत दोनों पूरी तरह हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार थी।
अचानक ही मेरी निगाह नीचे लुंगी की तरफ चली गयी।
मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा।
दरअसल लण्ड के पास लुंगी काफी उभरी थी।
पापा की लुंगी का उभार देखते ही मैं समझ गयी कि पापा ने अंदर अण्डरवियर नहीं पहना है।
यह सोच कर ही कि अभी उनकी प्यारी बेटी एक छोटी सी स्कर्ट और टी शर्ट में उन के कमरे में सफाई के बहाने से उनको अपनी जवानी के नज़ारे दिखाने आ रही है , उनके लण्ड में तनाव आने लगा था जो लुंगी के ऊपर से ही साफ-साफ पता चल रहा था।
मेरी निगाह पापा की लुंगी की तरफ गयी तो वहां पर उनके लण्ड का तनाव साफ दिख रहा था।
तनाव देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्होंने लुंगी के नीचे अण्डरवियर नहीं पहनी है।
ऐसे माहौल में मेरी चूत भी हल्का-हल्का पनियाने लगी थी।
पापा ने मुझे लण्ड की तरफ देखते हुए मुझे देख लिया और उन्होंने भी झुककर एक निगाह अपने लण्ड की तरफ मारी।
वे समझ गये कि उनके लण्ड के तनाव को लुंगी छिपा नहीं पा रही है और मैं जान गयी हूँ कि वह बिना अण्डरवियर के हैं।
फिर पापा ने गर्दन उठाई और मेरी ओर देखा.
मैं उन्हें देखकर मुस्कुराई और फिर जानबूझकर दोबारा उनके लण्ड की तरफ देखने लगी।
जैसे ही हमारी निगाह मिली, मैं मुस्कुरा दी।
पर जैसे ही पापा ने मुझे सलवार कमीज में देखा तो पापा का तो मन ही जैसे बुझ सा गया. कहाँ तो वो अपनी बेटी की जवानी का दीदार करने की सोच रहे थे और कहाँ यहाँ मैं सलवार कमीज मैं आ गयी,
पापा का उतरा हुआ चेहरा देख कर मेरे मुंह पर एक शरारती सी मुस्कान आ गयी.
पापा को समझ नहीं आया की यह क्या हो गया.
उन्हें तो वो लग रहा थे की उनके तो दिल के अरमान दिल में ही दफ़न हो गए हों.
खैर मैंने जल्दी से कमरे की सफाई की और पापा का उतरा हुआ मुंह देख कर मन ही मन हंसती रही.
फिर जब काम ख़तम हो गया तो पापा को चिढ़ाते हुए बोली.
"पापा ! देखिये तो मैं इस सलवार कमीज में कैसी लग रही हूँ. "
और यह कहते हुए अपने मुम्मों को थोड़ा ऊपर की ओर उभार दिया. ताकि पापा को अपनी बेटी की छातिअं साफ साफ दिखाई दे जाएँ.
(मैंने सोचा की पापा को मेरी छाती और उनके निप्पल, जो ब्रा न पहन ने के कारण साफ दिख रहे थे दिखा ही दूँ.)
पापा को मेरे इस तरह अपने मुम्मे दिखने से दिल में थोड़ा होंसला सा तो हुआ और वो प्यार से बोले.
"सुमन बेटी ! तुम्हारी यह सलवार कमीज का सूट है तो बड़ा ही अच्छा। पर तुम स्कर्ट टी शर्ट में ज्यादा अच्छी लगती हो. सलवार कमीज में तुम थोड़ी बड़ी बड़ी लगती हो पर स्कर्ट में तुम कोई छोटी सी गुड़िया की तरह और एक बच्ची की तरह दिखती हो. मेरी लिए तो सदा ही तुम मेरी प्यारी सी और छोटी सी मुन्नी ही रहोगी तो तुम जहाँ तक हो सके स्कर्ट और टी शर्ट ही पहना करो, अब जाओ और इन कपड़ों को बदल कर वो दुसरे पहन कर आ जाओ और मेरे पास बैठो,
मैं पापा की इस तड़प को देख कर खुश हो गयी. मुझे लग रहा था की मैं पापा से चुदवाने के अपने मिशन में जल्दी ही कामयाब हो जाउंगी,
मैं अपने कमरे में जल्दी से कपडे बदल कर छोटी सी स्कर्ट और टी शर्ट पहन ली। मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो टी शर्ट के नीचे भी ऐसे ही रहने दिया.
(आखिर घर में तो और कोई था नहीं तो पापा को भी अपनी बेटी के झूलते मम्मों का खुल कर दीदार करने का मौका मिलना चाहिए.)
स्कर्ट के नीचे मैंने पैंटी पहन ली
(जो की बाद में मेरी एक बड़ी गलती साबित हुई , यह सब मैं आप को बाद में बताउंगी। )
फिर मैं पापा के पास आ गयी और उनके सामने खड़ी हो कर बोली.
"पापा! अब ठीक है न. अब तो मैं बड़ी नहीं पर आपकी प्यारी और नन्ही सी गुड़िया ही लगती हूँ न?)
पापा सोफे पर बैठे थे और सोफा ठीक बेड के बगल में था।
सोफे के सामने टेबल रखी थी।
पापा ने ऊपर से नीचे तक पहले मुझे कायदे से देखा।
पापा अपने सामने सोफे और टेबल की बीच की जगह को दिखाते हुए बोले- पास आओ बेटा यहाँ ताकि मैं अच्छे से देख सकूँ।
मैं जाकर उनके सामने खड़ी हो गयी।
एक बार मुझे लगा कि कहीं पापा सीधा मेरी स्कर्ट ना उठाकर देखने लगें।
सोफे पर बैठे-बैठे ही पापा की निगाहें, घुटने के नीचे मेरी गोरी-गोरी टांगों से होती हुई स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ, कमर और चूची को अच्छी तरह देख रही थीं।
कुछ देर तक सामने से मुझे ऊपर से नीचे तक कायदे से देखने के बाद वह बोले- थोड़ा घूमो ताकि पीछे से भी देख लूँ।
मैं समझ गयी कि पापा स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी गांड देखना चाहते थे।
तब मैं घूम गयी और अपनी गांड उनकी तरफ कर दी और करीब 15 सेकेण्ड बाद खुद ही घूमकर उनकी तरफ मुंह कर खड़ी हो गयी और मुस्कुराते हुए बोली- कैसी लग रही हूँ स्कर्ट में?
पापा बोले- ऐसा लग रहा है जैसे स्कूल जाने वाली कोई स्टूडेंट हो। एकदम कमसिन बच्ची लग रही हो स्कर्ट में! कोई कह नहीं सकता कि 19 साल की हो ।
दरअसल पापा की बात सही भी थी।
मुझे स्कर्ट-टॉप में देखकर हर कोई मुझे स्कूल की बच्ची ही समझता था।
मैं धीमे से हंस दी और बोली- मेरे स्कर्ट पहनने पर सभी यही बोलते हैं। तो देख लिया ना आपने स्कर्ट में … अब जाऊं मैं?
पर पापा ने अपने सामने रखे टेबल की तरफ इशारा करके मुस्कराकर बोले- थोड़ी देर बैठो मेरे साथ।
मैं जाकर सामने रखे टेबल पर बैठ गयी।
अब मैं पापा के ठीक सामने बैठी हुई थी.
मैंने टीशर्ट और घुटनों तक की स्कर्ट पहनी थी और पापा के ठीक सामने सोफे पर बैठी थी।
जानबूझकर मैंने अपनी जांघ को थोड़ा फैला दिया और उन्हें स्कर्ट के अंदर अपनी गोरी मांसल जांघों के दर्शन करने का पूरा मौका दे दिया।
पापा को भी यहाँ मम्मी का डर तो था नहीं तो वे भी बात करते हुए बिना किसी झिझक के मेरी जांघों को ललचाई नजरों से देख रहे थे।
वे बड़े सोफे पर बैठे थे वह अपने बगल में बैठने का इशारा करते हुए बोले- यहाँ आकर बैठो।
मैं तुरंत उठी और उनके बगल जाकर बैठ गयी।
पापा धीरे से अपना हाथ स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ पर रखते हुए मुस्कुराकर बोले
"सुमन! देखो तुम स्कर्ट टी शर्ट में कितनी प्यारी लगती हो, अब जब तक तुम्हारी मम्मी नहीं आ जाती, तुम यह कपडे ही पहना करो,"
(मैं समझ रही थी की पापा का मतलब है की जब तक मम्मी नहीं आ जाती, मुझे ऐसे ही अपनी जवानी के नजारे दिखती रहा करो.)
मैं इठलाती हुई बोली
"पापा! पता नहीं मम्मी को क्यों मेरे इस तरह की स्कर्ट पहनने से दिक्कत है, वो मुझे इस तरह के कपडे पहनने से रोकती रहती है. पर मुझे यह ही अच्छे लगते हैं, तो मैं रात में अपने कमरे में सोने के लिए यह ही कपडे पहनती हूँ। "
घर का माहौल कामुक सा हो गया था।
स्कर्ट मेरे घुटने से थोड़ा ऊपर ही थी और टीशर्ट भी थोड़ा टाइट वाली पहनी थी।
पापा फिर अपना हाथ धीरे से स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ पर रखते हुए बोले-
"वाह, आज कितनी देर के बाद मुझे मेरी वही प्यारी सी गुड़िया सी पहले वाली बेटी दिखी है। मुझे नहीं पता था कि तुम रात में अपने कमरे में स्कर्ट पहनती हो।
मैं मुस्कुराते हुए बोली-
"रात में कमरे के अंदर क्या-क्या करती हूँ यह आपको थोड़े ना पता चलेगा!"
पापा मेरी इस बात पर मुस्कुराते हुए बोले-
"हाँ… ये तो सही कह रही हो। मुझे कैसे पता चलेगा कि कमरे के अन्दर क्या-क्या करती हो।"
फिर वे बोले-
"हाँ वैसे चली चलो यह तो बता ही दो की वैसे और क्या-क्या करती हो रात में अपने कमरे में? मुझे भी बताओ थोड़ा?"
मैं मुस्कुराकर बोली-
"बहुत कुछ करती हूँ … क्या बताऊँ?"
पापा भी अब मजे लेने लगे थे इसलिए हंसते हुए फिर पूछे-
"कुछ तो बताओ और क्या करती हो!"
मैं भी उसी तरह हंसती हुई बोली
"पापा मैं तो बहुत कुछ करती हूँ. कई बातें आपको बताने की नहीं भी होती. अब सब कुछ थोड़ी ही न बताउंगी. पापा मैं अब जवान हो गयी हूँ और जवान लड़किया रात में अपने कमरे में सोती ही है. आप को तो पता होगा. मैं रात में और क्या करती हूँ उनमे से कुछ ऐसी भी बात हो सकती है जो आप को भी बताने की न हो, आप खुद समझदार हैं. हमारी भी कुछ प्राइवेसी होती है न? "
पापा फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोले
"अरे बेटा ! मैं तुम्हारा पापा हूँ. मुझे बताओ न क्या क्या करती हो, अभी तुम्हारी शादी तो हुई नहीं है जो कि कुछ ऐसी वैसी, पापा को न बताने वाली बात हो. अकेली लड़की की ऐसी क्या बात है जो तुम मुझे नहीं बता सकती?"
यह कहते हुए पापा शरारत से मुस्कुरा रहे थे.
(वैसे समझ तो वो भी रहे ही थे, कि एक कुंवारी पर जवान और कामुक लड़की अपने कमरे में रात में क्या ऐसा करती है जो वो अपने पापा को नहीं बता सकती,)
मैं इस कामुक बातचीत का पूरा मजा ले रही थी और फिर बोली
"पापा आप समझा करो न. लड़कियों की रात की बहुत सी बातें ऐसी होती है, जो उनका सीक्रेट होती है और किसी को बताने की नहीं होती."
पापा मुस्कुरा पड़े
"बेटी मैं भी कोई बच्चा तो हूँ नहीं , समझ तो मैं गया कि तुम रात में अपने कमरे में क्या करती हो, पर तुम ऐसी लगती तो नहीं,"
पापा मुस्कुरा रहे थे और बात करते हुए लगातार स्कर्ट के ऊपर से मेरी जांघ सहलाते जा रहे थे।
उनके सहलाने से स्कर्ट थोड़ा ऊपर आ गयी थी जिसमें घुटनों के ऊपर मेरी जांघ भी थोड़ी दिखाई देने लगी थी।
हालांकि इससे आगे बढ़ने की हिम्मत अभी पापा की नहीं हो रही थी।
मुझे मौका मिल गया मैं तुरंत मुस्कुराते हुए बोली-
"अच्छा … और क्या जानना चाहते हैं आप बताइये तो मैं बता दूँ!"
पापा धीरे से बोले-
"जानना तो बहुत कुछ है, कहो तो बताऊँ?"
मैं मुस्कुराती हुई बोली-
"पहले बताइये तो सही … आपको स्कर्ट में देखने का मन था तो वह पहन ली. अगर कर सकूंगी तो बाकी भी करने की कोशिश करुंगी।"
पापा को सूझा नहीं कि वो क्या कहें तो बात को घुमाते हुए बोले
"सुमन! चाहे तुम जवान हो गयी हो पर मेरे लिए तो तुम सदा ही एक वही छोटी सी बच्ची हो जो स्कूल से आते ही मेरी गोद में चढ़ जाती ही और फिर मेरे लाख कहने पर भी मेरी गोद से उतरती ही नहीं थी, सदा कहती थी कि पापा मुझे आप की गोद में बैठना बहुत अच्छा लगता है, और अभी देखो कितने साल हो गए हैं जब से तुम मेरी गोद में आ कर नहीं बैठी हो,"
मैं समझ रही थी कि पापा के मन में क्या है, मुझे भी पापा को पटाने का यह एक और सुनहरी मौका लगा तो मैंने प्यार से कहा
"पापा मैं तो सदा ही आपकी वही छोटी सी बेटी हूँ. आप ही मुझे अपनी गोद में नहीं बिठाते. मेरा तो कितना मन करता है की मैं आपकी गोद में बैठूं. जैसे पहले बैठती थी,”
यह कह कर मैंने एक तरह से पापा को खुला इशारा कर दिया कि मैं उनकी गोद में बैठने को तैयार हूँ.
पापा के लिए भी यह एक मौका था. उन्होंने तुरंत बात को पकड़ लिया और बोले
"सुमन! मैं तो सदा तुम्हे गोद में बैठाने को तैयार हूँ. चाहो तो आज ही आ जाओ. पापा की गोद तो तुम्हारे लिए सदा तैयार है,"
यह कह कर पापा ने मुझे खुला आमंत्रण दे दिया और जिसे मैंने तुरंत लपक लिया.
मैंने मुस्कुरा कर कहा-
"पापा मुझे कभी मौका ही नहीं मिला आपकी गोद में बैठने का?"
पापा ने जांघ पर हाथ रखे हुए ही मुझसे हंसकर धीरे से बोले-
"वैसे सच तो यही है कि तुम्हें गोद में बैठाने का मौका नहीं मिला। मैं भी काफी व्यस्त रहता हूँ न। "
फिर वो मुस्कुराते हुए बोले
" आओ आज अपने पापा की गोद में बैठ जाओ। कुछ दिन बाद जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तो शादी के बाद तो अपने पति की ही गोद में बैठोगी मेरी गोद में थोड़े ही आओगी फिर."
पापा ने बिलकुल साफ़ बता दिया कि वो मुझे एक बाप की तरह नहीं बल्कि एक मर्द की तरह गोद में बिठाना चाहते है. मैं तो तैयार थी ही,
दोअर्थी और कामुकता भरी बातचीत से अब हम दोनों पर धीरे-धीरे वासना का बुखार चढ़ने लगा था।
मेरी चूत भी थोड़ी-थोड़ी गीली होने लगी थी।
पापा मेरी जाँघ को धीरे-धीरे सहलाते रहे और धीरे धीरे उनका हाथ ऊपर ही ऊपर जा रहा था.
ऐसा लग रहा था कि जल्दी ही उनका हाथ चूत तक पहुँच जायेगा. और मैं मन ही मन कुढ़ रही थी कि हमेशा तो मैं पैंटी के बिना पापा के पास आती हूँ, और आज जब मौका है की पापा मेरी चुदाई कर दें, तो मैं पैंटी पहन कर आ गयी. खैर अभी कुछ नहीं हो सकता था तो मैं चुप ही रही.
पापा समझ गये कि अब मैं भी चुदासी हो रही हूँ और खुलकर मजे लेना चाह रही हूँ।
मेरी चुप्पी से पापा की हिम्मत बढ़ गयी.
वे अभी तक स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जांघ सहला रहे थे पर इसके बाद उन्होंने धीरे से अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल दिया और सीधा मेरी नंगी जांघों को सहलाने लगे।
पापा के मेरी जांघ सहलाने से और लुंगी के नीचे तने लण्ड को देखकर मेरे ऊपर भी मस्ती छाने लगी और मेरी गीली हो चुकी चूत भी कुलबुलाने लगी थी।
मन तो कर रहा था कि टीशर्ट उठाकर चूची नंगी करके चूसने के लिए बोल दूँ, फिर लुंगी के अंदर हाथ डालकर सीधा लण्ड पकड़ लूँ और मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दूँ।
मेरी सांस तेजी से चल रही थी जिससे टाइट टीशर्ट में गोल-गोल चूचियां ऊपर नीचे हो रही थीं।
उत्तेजना में चूचियों के निप्पल तन गये थे जो टीशर्ट में साफ दिख रहे थे।
पापा एकदम ललचायी निगाह से मेरी चूचियों को देखते हुए स्कर्ट के अंदर हाथ डाले हुए मेरी नंगी जाघों को सहलाए जा रहे थे।
वे भी समझ चुके थे कि मैंने ब्रा नहीं पहनी है।
हम दोनों क्या बात करें … समझ में नहीं आ रहा था.
साथ ही हम दोनों ही समझ रहे थे कि आगे क्या होना है।
लेकिन कैसे शुरू करें … यह हम दोनों को ही समझ में नहीं आ रहा था।
उत्तेजना के चलते पापा के उनके होंठ सूख गये थे जिसे वह बार-बार जीभ से चाट कर गीला कर रहे थे।
उन्हें बार-बार होंठ चाटते देख मैंने धीरे से पूछा-
"प्यास लग रही है क्या पापा?"
पापा मेरी तरफ देखकर कामुक आवाज में धीरे से बोले-
"हाँ बेटा, होंठ सूख रहे हैं कुछ पीने का मन कर रहा है।"
मैं धीरे से बोली-
"पानी लाऊँ?"
कामुकता में पापा की आवाज कांपने लगी थी, वह मेरी चूचियों की तरफ देखते हुए बोले-
"पानी नहीं … कुछ और पिला दो बेटा!"
मैं भी एकदम मस्त चुदासी हो चुकी थी उत्तेजना के चलते मेरी आवाज भी हल्का से कंपकंपाने लगी थी और मैं धीरे से बोली-
"दूध पीएंगे?"
कामुकता और वासना के चलते मेरा चेहरा गर्म हो गया था और ऐसा लग रहा था कि चूत में चींटियाँ रेंग रहीं हों।
उधर वासना में पापा की आँखें लाल हो गयी थीं और उत्तेजना के चलते वह भी खुद पर काबू नहीं रख पा रहे थे।
वे इतना आगे झुक चुके थे और उनका चेहरा मेरी चूचियों के इतना पास था कि उनकी गर्म साँसों को मैं चूचियों पर महसूस कर रही थी।
वासना के नशे में पापा की आवाज़ भी हल्का सा कंपकंपाने लगी थी।
वे धीमी और कंपकंपाती आवाज में बोले-
"पिला दो बेटा!"
मैं :- "पापा फ्रिज का ठंडा दूध पिएंगे या गर्म दूध?"
पापा :- "बेटी हो सके तो ताज़ा दूध पिला दो."
मैं :-"पापा ताज़ा दूध अभी कहाँ से मिलेगा ?"
पापा :-"सुमन चाहो तो तुम पीला सकती हो, सब तुम्हारे ऊपर निर्भर है,"
मैं :-"पापा यह भी तो संभव है कि जहाँ से ताज़ा दूध आप पीना चाहते हों, वहां अभी दुध ही न आता हो,"
पापा :-"बेटी फिर भी कोशिश करने में क्या हर्ज है? शायद आ ही जाये"
और यह कह कर पापा फिर से मेरे मम्मों की ओर देखने लगे..
पापा के सीधा ही यह कहने से मेरी चूत में फिर से पानी आ गया.
पर अभी मेरी हिम्मत नहीं हो पायी की मैं अपनी टी शर्ट ऊपर उठा कर अपनी नंगी छाती पापा के मुंह में दे दूँ.
मेरे लिए खुद को रोक पाना अब बर्दाश्त के बाहर हो चुका था।
चूंकि टेबल सोफे से थोड़ी ऊंची थी तो मेरी चूचियां, पापा के मुंह के ठीक सामने थीं।
उत्तेजनावश मेरी चूचियों की निप्पल कड़ी हो गयी थीं जो टीशर्ट के ऊपर से साफ पता चल रही थीं।
पापा की निगाह बार-बार उसी पर जा रही थी।
टेबल सोफे के इतना पास था कि मेरे और पापा के घुटने आमने-सामने से एक दूसरे से टच कर रहे थे।
मेरी निगाह पापा के लोअर की तरफ गयी तो वहां पर उनके लण्ड का तनाव साफ दिख रहा था।
तनाव देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्होंने लोअर के नीचे अण्डरवियर नहीं पहनी है। ध्यान से देखने पर पापा के लौड़े का सुपाड़ा भी दिखाई दे रहा था.
ऐसे माहौल में मेरी चूत भी हल्का-हल्का पनियाने लगी थी।
मैं बिना कुछ बोले बस धीरे से हंस दी।
पापा समझ गये कि मेरी हंसी में भी हाँ है।
मुझे लग रहा था की बस अभी पापा मेरी टी शर्ट ऊपर करके मेरी चूचीयां नंगी कर देंगे और अपने मुंह में डाल कर चूसना शुरू कर देंगे.
मैं थोड़ा डर गयी और बात को पलटते बोली
फिर मैं बोली
"पापा वैसे मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी तो मैं आपकी गोद में बैठ जाती थी और आपने भी मुझे गोद में बहुत खिलाया था।"
पापा मुस्कुराते हुए बोले-
"मेरा तो अभी ये भी मन में है कि तुम्हें गोद में बैठा लूँ!"
इस बात पर मैंने भी जानबूझकर मजे लेते हुए कहा-
"हाँ … मैं तो अभी भी तैयार हूँ. आपका मन हो तो कहिए मैं अभी आपकी गोद में बैठ जाऊँ ?"
ठरकी पापा की आँखों में वासना साफ झलक रही थी।
वे मुस्कुराकर बोले-
"अरे वाह … आ जाओ बेटा मेरी गोद में!"
मैंने कहा-
"तो इसमें कौन सी बड़ी बात है … अभी आपके गोद में बैठ जाती हूँ।"
मैं जान रही थी कि अभी हमारे पास काफी समय है , घर में हम दोनों बाप बेटी ही तो हैं और कोई आने वाला भी नहीं है.
और मैं भी अब थोड़ा मजा लेना चाह रही थी।
मैं मुस्कराती हुई खड़ी हो गयी।
पापा थोड़ा पीछे होकर सोफे पर पीछे टेक लेकर बैठ गये और अपने जांघों को फैलाकर मुझे गोद में बैठने की पूरी जगह दे दी।
मैं पापा की ओर पीठ किये हुए पापा की गोद में बैठने लगी.
गोद में बैठते हुए मैंने पूरा टाइम लिया और आराम से झुक कर उनकी गोद में अपनी गांड राखी, मैं जानबूझ कर धीरे धीरे बैठ रही थी, ताकि पापा को मेरी गांड ठीक से दिखाई दे।
पर पापा ने तो उस मौके का ज्यादा ही लाभ उठाया. जब में गोद में बैठने लगी तो उन्होंने धीरे से मेरी स्कर्ट का पिछला कपडा ऊपर उठा दिया.
इस से मेरे चूतड़ नंगे हो गए. पापा को निराशा तो हुई क्योंकि उनको लग रहा था की मैंने पैंटी नहीं पहनी होगी और उन्हें मेरी गांड देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा. पर मैंने कच्छी पहन राखी थी,
इस बात से वैसे तो पापा से अधिक मैं खुद निराश थी. काश आज मैंने पैंटी ही न पहनी होती,
वैसे मेरी पैंटी देख कर पापा ने एक हैरानीजनक काम किया, जिस से काफी हद तक मेरी पैंटी पहनने की गलती ढक गयी,
ज्योंही मैं पापा की गोद में बैठने लगी तो पापा ने धीरे से अपना लण्ड अपनी लुंगी से बाहर निकाल लिया और नंगा कर लिया.
(क्योंकि मेरी पीठ पापा की ओर थी तो मैं पापा की यह शरारत तो न देख सकी पर उनकी गोद में बैठते ही मुझे उनके नंगे लौड़े का एहसास हुआ.
पापा की गोद में बैठते ही लोअर के अंदर पापा के तने हुए लण्ड को मैं साफ महसूस कर रही थी जो ठीक मेरी गांड के नीचे था।
पापा के लण्ड को अपनी गांड पर महसूस करते ही मेरी चूत एकदम गीली हो गयी।
मैं जानबूझकर बोली-
"पापा अब तो हो गयी गोद में बैठाने की तमन्ना पूरी? अब उठ जाऊं?"
पापा ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के अगल-बगल से लाकर एक हाथ मेरे जांघ पर रख दिया और दूसरे हाथ को मेरे पेट पर रखकर कसकर मुझे पकड़ते हुए बोले-
"बस बेटा, थोड़ी देर और बैठी रहो ना ऐसे ही! अच्छा लग रहा है। कितनी देर के बाद तो अपने पापा की गोद में बैठी हो, थोड़ा अपने पापा का दिल तो भर जाने दो "
मैं भी कहाँ उठना चाहती थी, यह तो मैं झूठमूठ हो बोल रही थी, मन तो कर रहा था की इसी तरह पापा की गोद में बैठी रहूं.
पापा अभी तक जहाँ स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी जाँघों को सहला रहे थे अब वह स्कर्ट के अंदर हाथ डाल कर मेरी चिकनी नंगी जांघ को सहलाने लगे थे।
साथ ही अपने लण्ड को मेरी गांड पर दबाए हुए थे।
मैं- "अच्छा तो कब तक बैठी रहूंगी इसी तरह? आपको तो मजा आ रहा है।"
पापा- "प्लीज थोड़ी देर बैठी रहो ना … तुम्हें मज़ा नहीं आ रहा क्या?"
मैं मुस्कुराती हुई बोली- " कुछ खास तो नहीं।"
अब मैं भी आराम से गोद में बैठी हुई मजे लेने लगी और बात करते हुए किसी न किसी बहाने अपनी गांड को लोअर के ऊपर से ही पापा के लण्ड पर हल्का-हल्का रगड़ रही थी।
वहीं बात करते हुए मैंने अपनी जांघों को दोनों ओर थोड़ा फैला दिया और पापा को सहलाने के लिए और जगह दे दी।
पापा भी समझ रहे थे कि अब मैं भी मजा लेने के मूड में आ गयी हूँ।
इससे पापा की हिम्मत थोड़ी बढ़ी और अब वे धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों को जांघों पर घुटनों की तरफ से ऊपर की और सरकाते हुए ले आए और जांघों के ऊपरी हिस्से सहलाने लगे।
पापा बोले- "काश, तुम मेरे साथ इसी तरह घर में ही रहती और रोज मैं तुम्हें इस तरह अपनी गोद में बैठाता!"
बात करते हुए मैं अपनी गांड को पापा के लण्ड पर हल्का-हल्का रगड़ती जा रही थी।
वहीं पापा भी अपने लण्ड को मेरी गांड पर दबाए हल्का-हल्का अपनी कमर को हिला रहे थे।
हम आपस में बातें भी कर रहे थे।
तभी पापा बोले- "बेटा, थोड़ा एक मिनट के लिए उठोगी तो मैं थोड़ा पैर ठीक कर लूँ फिर आराम से ठीक से गोद में बैठ जाना।"
मैंने ‘ठीक है’ बोलकर अपनी गांड को थोड़ा ऊपर उठा दिया.
तो पापा अपने पैरों को थोड़ा फैलाया और फिर ऐसा लगा जैसे मेरी स्कर्ट को पीछे से कुछ किए।
उसके बाद मुझसे बोले-
"हाँ अब बैठ जाओ बेटा!"
जैसे ही मैं वापस उनकी गोद में बैठी मैं समझ गयी पापा ने क्या किया है।
दरअसल पापा ने अपने लंड को एडजस्ट कर ठीक मेरी गांड के नीचे कर लिया था अब पापा के लण्ड का गर्म गर्म सुपाड़ा ठीक मेरी गांड के छेद पर था.
और सबसे बड़ी और हिम्मत की बात तो यह थी की पापा ने अपना लण्ड अपनी लुंगी से बाहर निकाल लिया था. शायद उन्हें लगा होगा की यदि वे अपना लण्ड लुंगी से बाहर करके नंगा भी कर लेते हैं तो उनके लौड़े और मेरी चूत के बीच फिर भी एक मेरी पैंटी का कपडा तो रहेगा ही,
हमारी कामुक बातचीत से पापा की हिम्मत और बढ़ गयी थी जिससे अब वह मेरी जांघ सहलाना छोड़कर मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया और बैठे-बैठे ही अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए अपने लण्ड को मेरी गांड पर रगड़ने लगे।
पापा ने बात करना बंद कर दिया था और उनके मुंह से धीमी-धीमी सिसकारी निकल रही थी।
मेरा भी मन अब बात करने में कम था और सारा ध्यान अपनी जांघों के बीच पनियायी चूत पर आ गया था जिसकी खुजली अब बर्दाश्त के बाहर हो रही थी।
मैं भी हल्का-हल्का कमर हिलाते हुए उनका साथ दे रही थी।
हम दोनों एकदम चुप थे बस हमारे शरीर हिल रहे थे।
अब पापा और मैं खुल कर गांड पर लण्ड रगड़ रहे थे.
हम दोनों की साँसे बहुत तेज चल रही थी,
पर चाहे पोर्न कहानिओं में कितना ही लिखा जाये, पर असल मैं और भारतीय समाज में बाप बेटी के बीच के सामाजिक सम्बन्धो और बंधनो का टुटना इतना आसान नहीं है,
मैं पापा की गोद में उनके लौड़े पर अपनी गांड घिसने की कोशिश कर रही थी और उधर पापा भी अपना नंगा लौड़ा मेरी गांड पर रगड़ रहे थे पर फिर भी वो तेजी और वो रगड़ाई नहीं हो पा रही थी,
मैं तेज तेज और ज्यादा मजा लेना चाहती थी, अब हम दोनों बाप बेटी जान तो रहे ही थे कि हम क्या कर रहे हैं, बस आपसी सम्बन्धो का ही बंधन था.
मैंने एक चाल सोची और पापा से कहा
"पापा मुझे याद है की बचपन में जब मैं आपकी गोद में बैठती थी तो आप मुझे गुदगुदी करते थे. और मैं बहुत हंसती और आपकी गोद में उछलती थी,"
पापा गोद में उछलने की बात से समाज गए कि मेरे मन में क्या है, यह उनके लिए भी एक सुनहरी मौका था.
पापा मेरी बगलों में हाथ डाल कर मेरी कांखों में ऊँगली घुमाते बोले
"मुझे सब याद है सुमन। मैं तो कब से तुम्हे उसी तरह गुदगुदी करना चाह रहा था. पर तुम एक काम करो, मेरी ओर मुंह करके बैठ जाओ फिर मैं तुम्हे गुदगुदी करता हूँ. "
असल में अभी मेरी पीठ पापा की ओर थी, जिस के कारण उनका लण्ड मेरी गांड दी दरार में घिस रहा था. पापा शायद अब डायरेक्ट मेरी चूत पर हमला करना चाहते थे.
मैं तो तैयार थी ही, बस चुपचाप उठी और पापा की ओर मुंह करके बैठने लगी,
पापा ने फिर धीरे से अपना हाथ मेरे पीछे ले जा कर मेरी स्कर्ट को पीछे से ऊपर उठा दिया जिस से मेरी गांड फिर से नंगी हो गयी,
मैंने अपनी टाँगे पूरी चौड़ी कर ली ताकि मेरी चूत का मुँह पूरा खुल जाये,
मुझे अपने पर बहुत गुस्सा आ रहा था की बेवकूफ तुमने आज पैंटी क्यों पहनी, यदि न पहनी होती तो आज पापा द्वारा अभी गुदगुदी के बहाने से तुम्हारी चूत का उद्घाटन समारोह हो जाता.
पर फिर मैंने सोच पर यदि मैंने कच्छी न पहनी होति तो शायद फिर पापा भी अपना लौड़ा लुंगी से बाहर न निकालते। खैर अब जो भी है उसी से मजा लेते हैं और कोशिश करती हूँ की पापा आज मुझे चोद ही दें.
पापा मुस्कुराते हुए बोले - "सुमन! बोलो तो क्या मैं फिर से तुम्हे गुदगुदी कारु?"
मैं हँसते से बोली "पापा आप की मर्जी है,"
पापा को इशारा मिलते ही उन्होंने मेरी बगलों में हाथ डाल कर मुझे गुदगुदाना शुरू कर दिया.
मैं भी इस तरह नाटक करने लगी की जैसे मुझे बहुत गुदगुदी हो रही हो और मैंने हँसते हुए पापा की गोद में उछलना शुरू कर दिया.
पापा गुदगुदी तो थोड़ी कर रहे थे पर मैं उनकी गॉड में उछल ज्यादा रही थी,
असल में मैं चाह रही थी की पापा का लण्ड जो अब बहुत टाइट हो चूका था. और इस समय मेरी गांड पर रगड़ रहा था किसी तरह मेरी चूत के ऊपर आ जाये.
मैं हिलने के बहाने से अपनी गांड थोड़ी पीछे कर रही थी और अपनी चूत आगे ला रही थी,
पापा भी शायद मेरी इच्छा समझ गए थे. वो भी जानते तो थे ही की लौंडिया दाना चुगना चाह रही है, उन्होंने भी कोशिश करनी शुरू कर दी की किसी तरह लौड़ा जो मेरे चूतडों के नीचे दबा पड़ा है, बाहर आ जाये ताकी वो उसे मेरी चूत पर सेट कर सकें.
पापा ने एक हाथ से गुदगुदी करते हुए दूसरा हाथ हमारी जांघों के बीच लाया, मैंने पापा को मौका देने के लिए हंसने का नाटक करते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.
और अपनी टांगों पर जोर देते हुए अपनी गांड थोड़ी ऊपर उठा ली। और अपनी टांगें पुरी तरह से चौड़ी कर ली.
पापा ने तुरंत अपना लौड़ा मेरी गांड के नीचे से निकाला और मेरी चूत (जिसका मुंह अब पूरा खुल चूका था) की फांकों के बीच फंसा दिया.
ज्योंही पापा के लौड़े का गर्म गर्म सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह के बीच आया मेरे मुंह से एक जोर की आह निकल गयी. पापा के मुंह से भी उतने ही जोर की आह की आवाज़ आयी,
अब स्थिति यह थी की पापा का लौड़ा जो कि पूरी तरह से नंगा था. मेरी पैंटी में ढकी हुई चूत के मुंह में लगा हुआ था.
हम दोनों ही बाप बेटी जन्नत के साक्षात् दर्शन कर रहे थे और स्वर्गिक आनंद का अनुभव ले रहे थे.
पापा ने फिर से गुदगुदी करनी शुरू कर दी और इस बहाने से उन्होंने मेरी चूत में धक्के देने शुरू कर दिए.
मुझे भी बहुत ही मजा आ रहा था.
मैंने भी गुदगुदी का बहाना लेते हुए पापा के लौड़े पर अपनी चूत घिसनी शुरू कर दी.
हम दोनों बाप बेटी बहुत जोश में आ चुके थे और पापा जोर जोर से मेरी चूत में ऐसे धक्के लगा रहे थे की यदि मैंने पैंटी न पहनी होती तो अब तक तो कभी का पापा का पूरा लण्ड उनकी बेटी की चूत में जड़ तक घुस गया होता.
हम दोनों बाप बेटी गुद्गुदी कम और धक्का पेल ज्यादा कर रहे थे.
हम दोनों की ही सांसे बहुत तेज चल रही थी,
मेरी चूत में पानी आ रहा था और ऐसा लग रहा था की मेरा निकलने ही वाला है,
मैंने सोचा की अब जब इतना सब कुछ हो ही गया है तो शर्म कैसी?
और मैंने तेज तेज अपनी चूत पापा के लण्ड के सुपाडे पर रगड़नी चालू कर दी.
पापा के भी धक्के अब बहुत तेज और जोरदार हो गए थे. पापा ने इतना ध्यान रखा की धक्कों की रफ़्तार में भी उनके लण्ड का सुपाड़ा उनकी बेटी की चूत के मुंह से हिलने न पाए.
हम दोनों के मुंह से आह आह और हु हूँ की आवाज़ निकल रही थी,
दोनों का पानी चूतने ही वाला था.
मुश्किल से अभी 2 मिनट ही बीते होंगे कि तभी मैंने महसूस किया कि पापा ने मुझे जोर से चिपका लिया है और अपनी कमर को थोड़ा तेज हिलाने लगे हैं।
अभी मैं कुछ समझती … तभी अचानक उन्होंने अपने हाथ से मेरी गांड को पकड़ लिए और जोर से अपनी ओर खींच लिया. और अपने लण्ड को मेरी चूत के मुंह पर एकदम दबा दिया और कमर को एक तेज झटका देने के साथ उनके मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली- बस … बेटाआ आआ आआ … आआआ आआहहह हह!
पापा का यह आखिरी झटका इतना जोरदार था की पापा के लौड़े का सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह को पूरी तरह से खोलता हुआ लगभग २ इंच तक मेरी कच्छी को भी अंदर ही धकेलता हुआ घुस गया.
वो तो मेरी कच्छी पहनी थी पर पापा का दम इतना था की कच्छी भी बेचारी मेरी चूत में ही घुस गयी और पापा के लण्ड का सुपाड़ा पूरा मेरी चूत में घुस गया.
वो तो भगवान का शुक्र था की पैंटी का कपडा थोड़ा लचकदार था तो फटा नहीं बल्कि चूत के अंदर घुस गया.
वरना तो पापा का आखिरी धक्का इतना जोरदार था की यदि कपडा कोई और होता तो पापा के लण्ड का सुपाड़ा उसको फाड़के अंदर चला जाता.
और ऐसी स्थिति में फिर तो न जाने कितना लण्ड अंदर जाता. अभी तो सुपाड़ा ही घुसा था.
पापा ने मुझे इतनी जोर से अपने से चिपका लिया की मेरी छातिआं पापा की छाती में चिपक गयी.
पापा ने सुपाड़े ने मेरी चूत के अंदर अपना माल छोड़ना शुरू कर दिया.
पापा के लण्ड ने बहुत देर तक वीर्य के न जाने कितने फुहारे छोड़े.
पापा का वीर्य मेरी पैंटी के कपडे से फ़िल्टर हो कर मेरी चूत में जाता रहा. ज्योंही पापा का गर्म गर्म वीर्य मुझे अपनी चूत में महसूस हुआ, तो मेरे शरीर में भी अपने आप झटके लगने शुरू हो गए.
मेरी चूत ने भी अपना अमृत छोड़ना शुरू कर दिया.
अपने आप मेरी दोनों बाहें पापा के गले में लिपट गया और मैं भी जोर जोर से आ आ आ करती हुई झड़ने लगी,
आज पहली बार पापा ने मेरी चूत में अपन माल छोड़ा था.
हम दोनों बाप बेटी चाहे पूर्ण चुदाई नहीं कर रहे थे, पर जो भी हुआ था वो भी किसी चुदाई से कम नहीं था.
हम दोनों बाप बेटी आपस में चिपटे बैठे रहे.
पापा के लैंड का सुपाड़ा मेरी चूत में हे फंसा रहा. उसके बाद उनके शरीर में हल्के-हल्के दो-दीन झटके लगे और कांपते हुए वे मेरी पीठ से चिपके रहे।
मैं समझ गयी कि पापा मेरी चूत के अंदर ही झड़ गये हैं।
थोड़ी देर बाद हम दोनो की साँसे थोड़ी सामान्य हुई तो हमे यह एहसास हुआ की हमने क्या कर दिया है,
पापा ने थोड़ा सा अपने शरीर को पीछे किया और मैंने भी पापा के लण्ड सुपाडे को अपनी चूत से बाहर निकाला।
पापा का वीर्य और मेरा चुतरस मेरी चूत से बाहर निकल कर मेरी जाँघों पर बह रहा था.
मैं जल्दी से उनके गोद से उठकर सोफे पर आकर बैठ गयी कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी स्कर्ट पर उनके लण्ड का पानी लग जाए।
मैंने पापा की तरफ देखा तो वे आँखें बंद किये सोफे पर बैठे अपनी सांस को काबू में करने की कोशिश कर रहे थे।
उन्होंने धीरे से अपना लौड़ा अपनी लुंगी में ढक लिया (शायद अभी इतना कुछ हो जाने के बाद भी हमारे बाप बेटी के सम्बध की कुछ शर्म बाकि थी)
उनकी लुंगी का वो हिस्सा लण्ड के पास वीर्य से गीला हो गया था जो साफ पता चल रहा था।
पापा ने मुझे देखते हुए देख लिया और वे समझ गये कि जो कुछ हुआ है, वह सब मैं समझ रही हूँ।
जैसे ही हमारी निगाह मिली, हम दोनों हल्का सा मुस्कुरा दिये।
इसके बाद पापा बिना कुछ बोले तेजी से उठे और अपने कमरे की तरफ चले गये।
मैं भी उठ कर लड़खड़ाते क़दमों से अपने कमरे की ओर चल पड़ी,
मेरे दिल में ख़ुशी के अनार फूट रहे थे. आज पहली बार पापा ने मेरी चूत को अपने लण्ड से रगड़ा था और मुझे विश्वास था की चाहे आज मेरी पूरी और खुल कर चुदाई नहीं भी हो पाई है, पर जल्दी ही मैं अपने पापा से चुदवाने मैं कामयाब हो ही जाउंगी.
बस पापा के लण्ड के बारे में सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी. और मैं देर तक सोती रही,.
Thanks for encouragingwah!wah!wah! kya ek gajab kahaani hai yah! ekdum kamaal ka writings!