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Incest शहजादी सलमा

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विक्रम अपनी भीगी आंखों से वापिस उदयगढ़ आ गया और बेचैनी से इधर उधर टहल रहा था! उसने सपने में भी नही सोचा था कि सलमा उसके हाथ ऐसा व्यवहार करेगी! जब सलमा ने उसे थप्पड़ मारा तो उसका मन किया था कि उसका मुंह तोड़ दे लेकिन अपनी मोहब्बत की वजह से खामोश रहा और जिस तरह से सलमा ने उसे बेइज्जत करके अपने कक्ष से निकाला था उससे उसका दिल बुरी तरह से टूट गया था और विक्रम को अब बिलकुल भी सुकून नही मिल रहा था! जिस सलमा के लिए उसने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी और अपनी जान से ज्यादा प्यार किया उसने ही उसने धमकी दी कि सुल्तानपुर की सीमा में दिखे तो जिंदा वापिस नही जाओगे ये सब सोचकर उसे रोना आ रहा था!

बेचैनी से इधर उधर टहलते हुए विक्रम को पूरी रात हो गई और जैसे ही सुबह हुई तो वो अजय उसके पास आया और उसकी लाल आंखे देखकर बोला:"

" क्या हुआ युवराज ? आपकी आंखे बड़ी लाल हो रही हैं जैसे आप पूरी रात सोए नही हो!

विक्रम के चेहरे पर छाई उदासी उसकी हालत बयान कर रही थी और विक्रम बोला:"

" ऐसा कुछ नही हैं बस आंखे दर्द कर रही थी तो इसलिए नींद नही आई मुझे!

अजय:" माफ कीजिए युवराज लेकिन आपके चेहरे पर छाई उदासी मुझे कुछ और ही संकेत दे रही हैं !

विक्रम थोड़ी देर चुप रहा और बोला:" अजय ऐसा कुछ भी नहीं है, बस कल कुश्ती के बाद नींद नही आई तो इसलिए सो नही पाया मैं अच्छे से!

अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" युवराज एक बार मुझे अपनी समस्या बताकर तो देखिए, मुझे आपके काम आकर खुशी होगी!

अजय ने उसकी तरफ ध्यान से देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोला:" ठीक हैं अजय, सही समय आने पर आपसे सब बाते साझा करूंगा!

अजय:" मैं बेताबी से उस पल का इंतजार करूंगा युवराज! चलिए आप नहा लीजिए फिर आपको राजमाता ने बुलाया हैं!

विक्रम नहाने के लिए अंदर चला गया और थोड़ी देर बाद दोनो राजमाता के सामने खड़े हुए थे और राजमाता गायत्री देवी विक्रम को देखकर बोली:"

" क्या हुआ युवराज? आपके चेहरे पर ये पीड़ा किसलिए ?

विक्रम जानता था कि वो चाह कर अपनी मां की नजरों से नही बच सकता लेकिन सच कह पाने की हिम्मत उसमें नही थी और बोला:"

" तबियत थोड़ी ठीक नही है मेरी बस इसलिए ऐसा लग रहा है आपको!

राजमाता:" सिर्फ ये ही बात हैं या कुछ और भी वजह हैं युवराज?

अजय नही चाहता था कि विक्रम को राजमाता के और सवालों का सामना करना पड़े इसलिए विषय को बदलते हुए बोला:"

" राजमाता कल युवराज ने सागोला को कुश्ती में हरा दिया! सागोला ने हमारे राज्य के कई पहलवानों की रीढ की हड्डी तोड़ दी थी!

राजमाता ने आगे बढ़कर विक्रम का माथा चूम लिया और बोली:"

" शाबाश मेरे शेर बेटे! ऐसे ही दुश्मनों के हौसलों को तबाह करते रहे और उन्हें धूल चटाते रहो आप!

उसके बाद राजमाता बोली:"

" कल अजय का उदयगढ़ का सेनापति बनाया जायेगा इसलिए आप उत्सव की तैयारी में जुट जाएं युवराज! मुझे अजय से कुछ बात करनी है आप !

विक्रम उसकी बात सुनकर बोला:" जो आज्ञा राजमाता!

इतना कहकर वो बाहर निकल गया और उसके जाने के बाद राजमाता अजय से बोली:

" अजय पता करने की कोशिश करो कि विक्रम को क्या हुआ हैं ? उसके चेहरे की पीड़ा हमसे देखी नही जा रही है!

अजय:" आप चिंता मत करिए राजमाता! मैं युवराज की समस्या और समाधान दोनो ढूंढ लूंगा!

गायत्री:"मुझे आप पर पूरा भरोसा हैं अजय! मेरी कोई भी सहायता चाहिए तो बता देना!

अजय:" जी राजमाता! मैं भी घर जाऊंगा और उसके बाद कुछ तलवारों और तीरों का मुआयना करना है मुझे ताकि जरूरत पड़ने पर दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके!

राजमाता: वैसे तो आप आस ऐसा कोई राज्य हैं नही जो उदयगढ़ की तरफ नजर उठा कर देख सके! बस हमें पिंडारियो के हमले से बचने की जरूरत हैं क्योंकि उन्हें हराना बेहद मुश्किल हैं और वो राज्य का खजाना और खूबूसरत जवान औरतों को उठाकर ले जाते हैं!

अजय:" आप चिंता न करे राजमाता, मैं सौगंध खाता हूं कि उदयगढ़ की तरफ बुरी नजर डालने वाले हर दुश्मन को नर्क में पहुंचा दूंगा चाहे तो पिंडारी हो या फिर कोई दूसरा!

राजमाता:" हमे आप पर पूरा भरोसा है अजय! आप जाकर अपने काम कीजिए!

उसके बाद अजय राजमाता के कक्ष से निकल गया और अपने कामों में लग गया! वहीं दूसरी तरफ मेनका को समझ नहीं आ रहा था कि वो आज रात होने वाली विधि के लिए अजय को कैसे समझाए क्योंकि जो रूप उसे धारण करना था वो समाज के नियमो के खिलाफ था लेकिन तलवार सौंपने की विधि की पहली और अंतिम सबसे जरूरी शर्त वही थी!

दूसरी तरफ विक्रम के जाने के बाद सलमा अपने बेड पर गिर पड़ी और लंबी लंबी सांसे लेने लगी! उसका दिल ये मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि विक्रम उसके साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है उसे अपनी सच्चाई नही बताई और उसके साथ प्यार करता रहा! सलमा की बार बार आंखे भर भर आ रही थी और उसे अपने आपसे नफरत हो रही थी कि उसने जिंदगी मे उस आदमी से प्यार किया जिसके पिता ने उसके अब्बा की हत्या कर दी और उन्हें धोखा दिया! सलमा को अपने आप पर बाद गुस्सा आ रहा था कि कैसे वो खुद अपने जिस्म को विक्रम के हवाले कर बैठी थी!

पूरी रात ऐसे ही कट गई और अगले दिन सीमा और राधिका दोनो आ गए और राधिका शहजादी के लिए पानी गर्म करने चली गई तो सीमा उसकी हालत देखकर बोली:"

" क्या हुआ शहजादी ? आप बड़ी परेशान लग रही है!

सलमा ने उसकी तारीफ उदास नजरो से देखा और कोई जवाब नही दिया तो सीमा उसके करीब बैठ गई और बोली:"

" बताओ ना शहजादी? मुझसे आपकी ये हालत नही देखी जाती!

सलमा का दिल भर आया और वो बोली:"

" आपको पता है कि विक्रम कहां का युवराज हैं?

सीमा ने इंकार में उसकी तरफ सिर हिलाया तो सलमा बोली:"

" उदयगढ़ का! उसी उदयगढ़ का जिनकी वजह से हमारे अब्बा की मौत हुई थी!

सीमा की आंखे उसकी बात सुनकर खुली की खुली रह गई और थोड़ी देर शांति छाई रही तो सलमा बोली:"

" हमने उससे इतना प्यार किया और उसने हमने धोखे में रखा और हमसे अपनी सच्चाई छुपाई! आज के बाद हम किसी से प्यार करना का सच भी नहीं सकते!

इतना कहकर सलमा ने अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया और रो पड़ी! सीमा उसे थपथपाती रही और फिर उसके आंसू साफ करते हुए बोली:

" उसने गलत किया आपके साथ! उसे सच्चाई बता देना चाहिए थी आपको!

इतने में राधिका कक्ष में आ गई तो दोनो चुप हो गई लेकिन शहजादी की लाल आंखे राधिका से छुपी ना रह सकी लेकिन उसने कुछ नही कहा और सलमा बोझल कदमों से नहाने के लिए चली पड़ी! नहाकर आने के बाद उसने जबरदस्ती सीमा के जोर देने पर थोड़ा सा कुछ खाया और उसके बाद आराम से अपने कक्ष में ही लेट गई!

रात के करीब आठ बज गए थे और मेनका को समझ नही आ रहा था कि वो अजय को कैसे समझाए कि आज रात वो किस रूप में उसके सामने आयेगी तो उसने आखिर कार उससे बात करने का निर्णय लिया और उसके कक्ष की और चल पड़ी! अजय बैठा हुआ कुछ काम कर रहा था और मेनका को देखते ही खड़ा हुआ और बोला:"

" माता आप यहां? मुझे भी बुला लिया होता आपने आने का कष्ट क्यों किया ?

मेनका उसके पास पहुंच गई और बोली;" इतनी भी कमजोर नही हुई अभी कि चलकर आपके कक्ष तक न आ सकू पुत्र!

अजय बेड से उठ गया और खड़े होते हुए बोला:" मेरा वो मतलब नहीं था माता, आप तो अभी बिलकुल स्वस्थ जान पड़ती हैं! आइए बैठिए आप!

मेनका बेड पर बैठ गई और उसका हाथ पकड़ कर अजय को भी अपने पास बैठा लिया और बोली:" पुत्र आज मैं आपके पूर्वजों की निशानी भेंट करूंगी! लेकिन उसके लिए कुछ नियम हैं जो हम सदियों से मानते आ रहे हैं और मुझे भी उनका पालन करना ही होगा!

अजय:" हमारे पूर्वजों की परंपरा हमे माननी ही चाहिए ये तो बहुत अच्छी बात है!

मेनका को उसकी बात सुनकर थोड़ी हिम्मत मिली और बोली:

" बेटा तलवार को देने के लिए एक विधवा औरत अपशकुन मानी गई है! और मैं एक विधवा औरत हु तो मैं चाह कर भी आपको तलवार नही दे सकती है और हमारे परिवार के सिवा और कोई वो तलवार उठा नही सकता!

अजय उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरान हुआ और फिर बोला:"

" लेकिन फिर दूसरा कोई तरीका तो होगा न माता!

मेनका ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली:" एक ही तरीका हैं और वो ये हैं कि मुझे विधवा का रूप नही बल्कि एक सुहागन स्त्री का रूप धारण करके आपको तलवार देना होगी!

अजय ने हैरानी से अपनी माता की तरफ देखा और बोला:"

" लेकिन क्या ये समाज के नियमो के खिलाफ नही होगा कि आप एक विधवा होते हुए सुहागन स्त्री का रूप धारण करे! समाज क्या कहेगा ?

मेनका उसकी बात सुनकर उसकी तरफ देखती हुई बोली:"

" देखो बेटा हमारे पूर्वजों ने जो नियम बनाए हैं वो हमे मानने ही होंगे और फिर इसमें किसी को कुछ नही पता चलेगा तो समाज क्या कहेगा इसकी चिन्ता आप छोड़ दो! मैं सुहागन का रूप नीचे गुफा में धारण करूंगी और फिर उसी रूप में आपके साथ नदी तक घोड़ा बग्गी के अंदर जाऊंगी और वही आपके हवाले ये तलवार करूंगी!

अजय:" ठीक हैं माता! जैसे आपको ठीक लगे! आप बड़ी हैं तो जो भी करेगी सोच समझकर ही करेगी!

मेनका:" अजय पुत्र आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी हैं! मैं अब चलती हु और 10 बजे ठीक आप नीचे गुफा में आ जाना!

इतना कहकर वो चल पड़ी और अजय उसे जाते हुए देखता रहा! मेनका ने अच्छे से नहाकर खुद को स्वच्छ किया और फिर गुफा के अंदर पहुंच गई! उसने कमरे को खोला और उसके बाद संदूक को खोल दिया जिसने तलवार रखी हुई थी और उसे बाहर निकाल लिया! उसके बाद उसने संदूक से एक बेहद खूबसूरत साड़ी निकाली और आभूषण के साथ साथ सौंदर्य प्रसाधन का सामान भी निकाल लिया जो सदियों पुराना था लेकिन अदभुत था! मेनका ने सब सामान निकालने के बाद सबसे पहले अपने जिस्म से चादर को हटाया और उसके बाद उसने एक काले रंग की बेहद आकर्षक रत्न जड़ित ब्रा पेंटी को अपने हाथ में लिया तो मेनका उसे देखती ही रह गई क्योंकि ये बेहद खूबसूरत और मुलायम थी! मेनका ने सामने दीवार पर पड़े हुए परदे को हटाया तो एक सामने एक बड़ा सा दर्पण नजर आया और मेनका की नजर जैसे ही खुद पर पड़ी तो वो खुद से ही शर्मा गई! उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि पिछले 15 साल से सिर्फ सफेद साड़ी पहनने वाली मेनका के हाथ में काले रंग की ब्रा पेंटी थी! मेनका ने शीशे में देखते हुए ब्रा को अपनी चुचियों पर रखा और उसकी स्ट्रिप को अपने कंधे पर से होते हुए पीछे ले गई और हुक लगाने की कोशिश करने लगी लेकिन कामयाब न हुई क्योंकि उसकी बड़ी बड़ी गोल मटोल चुचियों बेहद कसी हुई थी जिस कारण उसे हुक लगाने में दिक्कत हो रही थी और मेनका ने अपनी चुचियों को जबरदस्ती ब्रा में ज़ोर से ठूंस दिया और फिर हुक लगा दिया और उसके बाद पेंटी पहन कर अपने जिस्म ब्लाउस को पहन कर साड़ी को बांध लिया!

कपड़े पहन कर मेनका ने अपनी आंखो में वो दुर्लभ काजल लगाया और उसके बाद उसने लिपिस्टिक निकाली जो सदियों पुरानी विधि से बनाई गई थी और बेहद लाल सुर्ख थी! मेनका ने अपने होंठो पर लिपिस्टिक को लगाया और उसके बाद शीशे में खुद को निहारने लगी!


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मेनका अपने आपको शीशे में देख कर अपने रूप सौंदर्य पर मंत्र मुग्ध सी हो गई और बिना पलके झुकाए खुद को निहारती रही! मेनका ने देखा कि उसकी कमर अभी की बेहद आकर्षक थी और बस पिछले कुछ सालों में उसकी कमर की चर्बी थोड़ी सी बढ़ गई थी जिस कारण वो और ज्यादा मादक हो गई थी! मेनका ने अपने बालो को खोल दिया और काले बालो में उसका खूबसूरत चेहरा और भी सुंदर नजर आ रहा था! अपने बालो को अपनी उंगलियों से सहलाती हुई मेनका के होंठो पर मुस्कान आ गई थी और वो पलट कर खुद को देखने लगी और तभी उसे किसी के कदमों की आहत सुनाई पड़ी तो उसने देखा कि अजय कमरे में आ गया था और मेनका को ही देख रहा था और और मेनका आज पहली बार अपने बेटे के सामने खुद को असहज महसूस करती हुई बोली:

" पुत्र आओ मैं आपका ही इंतजार कर रही थी! मुझे ऐसे सुर्ख कपड़ो में देखकर नाराज तो नही हो ना ?

अजय ये तो जानता था कि उसकी मां मेनका सुंदर है लेकिन लाल सुर्ख कपड़ो में ऐसी अप्सरा लगेगी उसे उम्मीद नही थी इसलिए बोला:"

"मैं भला क्यों बुरा मानने लगा! लेकिन आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं आपसे?

मेनका चलती हुई उसके करीब आई और बोली:

" मैं भला क्यों आपकी बात का बुरा मानने लगी! कहो ना पुत्र?

अजय ने एक नजर अपनी माता पर फिर से डाली और बोला:" अदभुत, अकल्पनीय सौंदर्य हैं आपका माता! सच में आप स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही हो!

मेनका को अपने बेटे से ऐसी प्रसंशा की उम्मीद ना थी लेकिन वो अब अब कर भी क्या सकती थी क्योंकि वो जानती थी कि उसका रूप सौंदर्य सच मे बेहद कमाल का हैं और उसका बेटा भी आखिर एक जवान मर्द हैं तो वो कुछ नहीं बोली और अजय को अपने पास आने का इशारा किया तो अजय चलता हुआ उसके पास आया तो मेनका ने उसे एक पटरी पर खड़ा किया और फिर एक थाली में जलते हुए दीपक रखकर उसकी आरती उतारने लगी और जलते हुए दीपकों की मध्यम रोशनी अब उसके चेहरे को और आकर्षक बना रही थी और आरती उतारने के बाद मेनका ने अजय के माथे पर तिलक लगाया और उसके बाद थाली को एक तरफ रख दिया और बोली:

" अजय अब हम दोनो इसी गुफा से बाहर जायेंगे और नदी के किनारे बाकी बची हुई विधियां करने के बाद तलवार आपके हवाले कर दूंगी!

मेनका ने उसके बाद तलवार को उठाया और दोनो मां बेटे गुफा के अंदर के अंदर चल दिए! गुफा में हल्का हल्का प्रकाश था जिस कारण दोनो को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी! चलते चलते दोनो गुफा के अंतिम छोर तक पहुंच गए और तभी मेनका का पैर गुफा में पड़े हुए पत्थर से टकराया और वो फिसल पड़ी और उसकी साड़ी का पल्लू उसके सीने से सरक गया! पल्लू के सरकने से उसकी गोल गोल चुचियों के बीच की गहरी खाई नजर आ गई और अजय उसके पास आया और उसकी नजर पहली बार अपनी मां के सीने पर पड़ी और दोनो चुचियों के बीच झांकती हुई गहरी खाई को देखकर उसकी आंखे खुली की खुली रह गई और उसने अपनी माता की तरफ हाथ बढ़ाया और मेनका उसका हाथ पकड़कर धीरे धीरे खड़ी होने लगी जिसकी उसकी चुचियों का उभार और ज्यादा बाहर को छलक पड़ा! अजय के उपर मानो कयामत टूट पड़ी थी और अजय ना चाहते हुए भी अपनी सगी मां की चुचियों को देख रहा था और जैसे ही मेनका खड़ी हुई थी तो उसे अपने बेटे की नजरो का एहसास हुआ और उसकी आंखे शर्म से झुक गई!

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मेनका को समझ नही आया कि क्या करे और थोड़ी देर के लिए आंखे नीचे किए खड़ी रही और अजय ने उसका हाथ पकड़े हुए मौके का फायदा उठाते हुए जी भरकर उसकी चुचियों के उभार को निहारा और उसके बाद अजय ने होश में आते हुए जमीन पर पड़े हुए उसकी साड़ी के पल्लू को उठाया और उसके कंधे पर रख दिया तो मेनका ने अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक किया!


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अजय:" माता आप ठीक तो हैं न ? आपको चोट तो नही आई ?

मेनका ने अपना हाथ उससे छुड़ाया और फिर से तलवार को उठाते हुए बोली:"

" हम ठीक हैं पुत्र! आपने हमे बचा लिया!

उसके बाद दोनो गुफा से बाहर निकल गए और बाहर खड़ी हुई बग्गी में बैठकर नदी की तरफ चल पड़े! अजय बग्गी को चला रहा था और मेनका अंदर परदे में बैठी हुई थी और उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी कि थोड़ी देर पहले कैसे उसके बेटे के सामने उसकी साड़ी का पल्लू सरक गया गया और उसकी चुचियों का उभार साफ़ नजर आ गया था! मेनका अभी तक यकीन नही कर पा रही थी कि क्या सच में अजय उसकी गोलाईयों को देख रहा था या ये मात्र उसका वहम था! मेनका ने जान बूझकर अपने पल्लू को सरका दिया और अपनी चुचियों के उभार को देखने लगी कि क्या सच मे उसकी चूचियां अभी भी इतनी आकर्षक हैं और उनके बीच की कसी हुई गहरी खाई को देखते ही मेनका को अपने ऊपर अभिमान हुआ और उसने एक हथेली को अपनी एक चूची के उपर रख दिया और छूकर देखने लगी मानो उसकी सख्ती को महसूस करना चाहती हो और मेनका की सांसे तेज हो गईं! मेनका को एहसास हो गया था कि उसकी चूचियां अभी भी आश्चर्यजनक रूप से सख्त हैं या फिर कहीं मुझे सच में भरम तो नही हो रहा है! ये विचार उसके मन में आते ही उसका दिल तेजी से धड़का और उसने खिड़की से झांक कर अपने बेटे की तरफ देखा जो बग्गी चलाने में व्यस्त था और मेनका ने पर्दे को खिड़की पर टांग दिया और फिर अपने एक हाथ को अपनी ब्रा में घुसा दिया और अपनी अपनी नंगी चूची को हाथ में भर लिया जिससे उसके मुंह से आह निकल गई! मेनका की बड़ी गोल मटोल चूची उसके हाथ में ठीक से समा नही रही थी और मेनका उसे धीरे धीरे सहला कर उसकी कठोरता का जायजा लेने लगी और बदन मे कंपकपी सी आ गई क्योंकि उसकी आश्चर्यजनक रूप से कसी हुई थी ! मेनका अपनी चूची को दबा ही रही थी कि बग्गी रुक गई और मेनका ने पर्दा हटा कर देखा तो नदी आ गई थी और अजय बग्गी से नीचे उतर गया और बोला:"

" हम नदी पर आ गए हैं माता! आप बाहर आ सकती हैं!

मेनका ने अपने हाथ को अपनी ब्रा से बाहर निकाला और अपनी हालत को ठीक करती हुई खड़ी हुई और बग्गी से नीचे उतर गई! मेनका अपनी उत्तेजना से लाल सुर्ख आंखो के साथ अपनी तेज गति से चल रही सांसों को संभालने का प्रयास करने लगी और अजय उसकी अजीब सी हालत देखकर बोला:"

" क्या हुआ माता? आप ठीक तो है न?

अपने बेटे की बात सुनकर मेनका का दिल तेजी से धड़क उठा और बोली: मैं ठीक हु पुत्र! आओ हम आगे की विधि पूर्ण कर लेते हैं!

इतना कहकर मेनका तलवार लेकर नदी में उतर गई और अजय उसके साथ साथ चल पड़ा! मेनका अब नदी के बीच में खड़ी हुई थी और तलवार को मयान से बाहर निकाल कर एक डुबकी लगाई और उपर आ गई और बोली:

" लो पुत्र, पवित्र नदी और अपने पूर्वजों को ध्यान में रखते हुए डुबकी लगाओ!

अजय ने तलवार को हाथ में लिया और पानी में डुबकी लगाई और फिर मेनका ने उसे तलवार को वापिस लिया और फिर से डुबकी लगाई! दोनो ने इसी तरह तीन तीन डुबकियां लगाई और और उसके बाद मेनका ने तलवार को अजय को दिया और फिर दोनो हाथो में जल लेकर आंखे बंद करते हुए कुछ बुदबुदाने लगी! मेनका के कपड़े पानी से भीग जाने के कारण उसके जिस्म से चिपक गए थे जिस कारण उसकी काली ब्रा अब साफ नजर आ रही थी और ब्रा में फड़फड़ा रही उसकी चुचियों का सम्पूर्ण आकार देखकर अजय मंत्र मुग्ध सा हो गया और एक बार फिर से अपनी मां की चुचियों को घूरने लगा! मेनका ने अपनी आंखे खोली और जल को नदी में गिरा दिया और अजय को भी वैसा ही करने के लिए कहा तो अजय ने तलवार मेनका को दी और हाथो में जल भरकर क्रिया को दोहराने लगा! मेनका की नजर अपने आप पर पड़ी तो उसे अपनी सांसे रुकती हुई सी महसूस हुई क्योंकि कपड़े भीग जाने के कारण ब्रा में कैद उसकी चूंचियां अपने सम्पूर्ण आकार में अपनी अनौखी छटा बिखेर रही थी! मेनका को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे क्योंकि अब उसके अंदर अपने बेटे की नजरो का सामना करने की हिम्मत नहीं बची हुई थी! अजय ने पानी को नदी में अर्पण किया और अब मेनका की बारी थी तो मेनका अंदर ही अंदर कांप उठी और हिम्मत करके उसने जल को दोनो हाथों में लिया और आंखे बंद करके ध्यानमग्न हो गई और अजय की नजरे उसकी चुचियों पर आ टिकी और मेनका ने धीरे से अपनी आंखो को हल्का सा खोला और समझ गई कि उसका बेटा उसकी चुचियों को टकटकी लगाए देख रहा था तो उसकी आंखे तेज हो गईं! मेनका ने अपनी विधि को पूर्ण किया और उसके बाद अजय ने विधि को पूर्ण किया!

उसके बाद मेनका नदी के किनारे की तरफ चल पड़ी और यही उससे भूल हो गई क्योंकि उसकी भीगी हुई साड़ी उसके नितंबों के उभार से पूरी तरह से चिपक गई थी और उसकी भारी भरकम पिछवाड़े की गोलाई और मोटाई देखकर अजय को दूसरा झटका लगा और मेनका के चलने से उसकी गांड़ तराजू के पलड़े की तरह उछल रही थी! मेनका चलती हुई बाहर आ गई और बग्गी में बैठ गई तो अजय ने बग्गी को अपने घर की तरफ दौड़ा दिया! गुफा के पास पहुंच कर उसने बग्गी को रोक दिया और उसके बाद दोनो मा गुफा में घुस गए! अजय और मेनका दोनो साथ चल रहे थे और मेनका बोली:

" बेटा आज अच्छे से सारी विधियां पूर्ण हो गई है! अब बस मैं आपको तलवार दूंगी!

अजय:" माता आपने मेरे लिए इतना कुछ किया! सच में आप महान हो! समाज के नियमो को ताक पर रख दिया!

मेनका ने उसका हाथ पकड़ा और बोली:" वो मेरा दायित्व हैं पुत्र! मैं समाज की परवाह नही करती बल्कि आपकी खुशी मेरे लिए मायने रखती हैं!

अजय:" सच माता मैं धन्य हु जो आप जैसी माता मिली!

उसके बाद दोनो फिर से कक्ष में आ गए और मेनका ने अपने पूर्वजों की तस्वीर के आगे तलवार को निकालकर अजय के हाथ में दिया और बोली:सी

" आज से अपने पूर्वजों को साक्षी मानकर मैं ये तलवार आपके हवाले कर रही हूं! ध्यान रखना कि इस तलवार का उपयोग सिर्फ धर्म और न्याय की रक्षा के लिए ही करना! जान देकर भी अपने पूर्वजों के वचन की रक्षा करना आपकी जिन्दगी का लक्ष्य होगा!

अजय ने तलवार को हाथ में लिया तो उसका समूचा बदन कांप उठा और अजय बोला:"

" मैं आपके सिर की कसम खाता हु कि अपने प्राणों का बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटूंगा! मुझे आशीर्वाद दीजिए माता!

इतना कहकर अजय उसके कदमों में झुका तो मेनका ने उसे आशीर्वाद देते हुए गले लगा लिया और माथा चूम कर बोली:

" मेरा आशीर्वाद सदैव आपके साथ है पुत्र! जुग जुग जियो मेरे लाल!


उसके बाद अजय और मेनका दोनो उस कक्ष से निकल कर अपने घर में आ गए और रात का करीब एक बज गया था तो अजय सोने के लिए अपने कक्ष में चला गया और मेनका अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी! वही लाल सुर्ख दुल्हन का जोड़ा पहने हुए और जैसे ही उसकी नजर खुद के कपड़ो पर गई तो वो खुद को ना रोक पाई और शीशे के सामने फिर से खड़ी हो गईं और खुद को निहारने लगी! मेनका ने देखा कि उसकी मांगा का सिंदूर भीग कर हल्का सा फ़ैल गया था जिससे वो अब और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी! मेनका के भीगे हुए बाल पहले से ज्यादा आकर्षक लग रहे थे और मेनका ने अपने गले में पड़े हुए मंगल सूत्र को देखा तो उसे अपने पति की याद आ गई और उसकी आंखे भर आई! मेनका ने अपने मंगल सूत्र को पकड़ा और उसे उतारने लगी तो उसके हाथ कांप उठे क्योंकि उसे याद आया कि अब वो चाहकर भी जिंदगी भर इस मंगल सूत्र को नही उतार सकती क्योंकि ऐसा करना उसके बेटे के लिए अपशकुन होगा! मेनका ने मंगल सूत्र को अपने कपड़ो के अंदर छुपा लिया और फिर वापिस अपने बेड पर आ गई! वो चाहती थी तो अपने कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े पहन सकती थी लेकिन वो खुद को इन कपड़ो में बेहद खूबसूरत और आकर्षक महसूस कर रही थी जिस कारण उसका मन नहीं हुआ और उन्ही कपड़ों को पहने हुए अपने कक्ष में आ गई और फिर थोड़ी देर के बाद गहरी नींद में चली गई!
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया अपडेट।

जैसा कि पहले से मालूम था, सलमा ने अपने कदम वापस खींच लिए जैसे ही उसे विक्रम के बारे में पता चला। लेकिन उसे ये भी सोचना चाहिए था कि पूछने पर विक्रम ने उसे सच ही बताया, न कि कोई गोलमोल जवाब दिया, इसका मतलब वो धोखा तो नही ही दे रहा था।

बाकी अजय को तलवार मिल गई, और मेनका को न चाहते हुए भी सुहागन का रूप धारण करना पड़ा।

लेकिन ये रस्म कुछ अजीब लगी मुझे कि मंगलसूत्र उतर नही सकते, क्योंकि जैसा लिखा है उस हिसाब से तो मां ही देगी तलवार, लेकिन पिता की मृत्यु पर तो उसे मंगलसूत्र उतरना ही पड़ेगा।
 

Roy monik

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विक्रम अपनी भीगी आंखों से वापिस उदयगढ़ आ गया और बेचैनी से इधर उधर टहल रहा था! उसने सपने में भी नही सोचा था कि सलमा उसके हाथ ऐसा व्यवहार करेगी! जब सलमा ने उसे थप्पड़ मारा तो उसका मन किया था कि उसका मुंह तोड़ दे लेकिन अपनी मोहब्बत की वजह से खामोश रहा और जिस तरह से सलमा ने उसे बेइज्जत करके अपने कक्ष से निकाला था उससे उसका दिल बुरी तरह से टूट गया था और विक्रम को अब बिलकुल भी सुकून नही मिल रहा था! जिस सलमा के लिए उसने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी और अपनी जान से ज्यादा प्यार किया उसने ही उसने धमकी दी कि सुल्तानपुर की सीमा में दिखे तो जिंदा वापिस नही जाओगे ये सब सोचकर उसे रोना आ रहा था!

बेचैनी से इधर उधर टहलते हुए विक्रम को पूरी रात हो गई और जैसे ही सुबह हुई तो वो अजय उसके पास आया और उसकी लाल आंखे देखकर बोला:"

" क्या हुआ युवराज ? आपकी आंखे बड़ी लाल हो रही हैं जैसे आप पूरी रात सोए नही हो!

विक्रम के चेहरे पर छाई उदासी उसकी हालत बयान कर रही थी और विक्रम बोला:"

" ऐसा कुछ नही हैं बस आंखे दर्द कर रही थी तो इसलिए नींद नही आई मुझे!

अजय:" माफ कीजिए युवराज लेकिन आपके चेहरे पर छाई उदासी मुझे कुछ और ही संकेत दे रही हैं !

विक्रम थोड़ी देर चुप रहा और बोला:" अजय ऐसा कुछ भी नहीं है, बस कल कुश्ती के बाद नींद नही आई तो इसलिए सो नही पाया मैं अच्छे से!

अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" युवराज एक बार मुझे अपनी समस्या बताकर तो देखिए, मुझे आपके काम आकर खुशी होगी!

अजय ने उसकी तरफ ध्यान से देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोला:" ठीक हैं अजय, सही समय आने पर आपसे सब बाते साझा करूंगा!

अजय:" मैं बेताबी से उस पल का इंतजार करूंगा युवराज! चलिए आप नहा लीजिए फिर आपको राजमाता ने बुलाया हैं!

विक्रम नहाने के लिए अंदर चला गया और थोड़ी देर बाद दोनो राजमाता के सामने खड़े हुए थे और राजमाता गायत्री देवी विक्रम को देखकर बोली:"

" क्या हुआ युवराज? आपके चेहरे पर ये पीड़ा किसलिए ?

विक्रम जानता था कि वो चाह कर अपनी मां की नजरों से नही बच सकता लेकिन सच कह पाने की हिम्मत उसमें नही थी और बोला:"

" तबियत थोड़ी ठीक नही है मेरी बस इसलिए ऐसा लग रहा है आपको!

राजमाता:" सिर्फ ये ही बात हैं या कुछ और भी वजह हैं युवराज?

अजय नही चाहता था कि विक्रम को राजमाता के और सवालों का सामना करना पड़े इसलिए विषय को बदलते हुए बोला:"

" राजमाता कल युवराज ने सागोला को कुश्ती में हरा दिया! सागोला ने हमारे राज्य के कई पहलवानों की रीढ की हड्डी तोड़ दी थी!

राजमाता ने आगे बढ़कर विक्रम का माथा चूम लिया और बोली:"

" शाबाश मेरे शेर बेटे! ऐसे ही दुश्मनों के हौसलों को तबाह करते रहे और उन्हें धूल चटाते रहो आप!

उसके बाद राजमाता बोली:"

" कल अजय का उदयगढ़ का सेनापति बनाया जायेगा इसलिए आप उत्सव की तैयारी में जुट जाएं युवराज! मुझे अजय से कुछ बात करनी है आप !

विक्रम उसकी बात सुनकर बोला:" जो आज्ञा राजमाता!

इतना कहकर वो बाहर निकल गया और उसके जाने के बाद राजमाता अजय से बोली:

" अजय पता करने की कोशिश करो कि विक्रम को क्या हुआ हैं ? उसके चेहरे की पीड़ा हमसे देखी नही जा रही है!

अजय:" आप चिंता मत करिए राजमाता! मैं युवराज की समस्या और समाधान दोनो ढूंढ लूंगा!

गायत्री:"मुझे आप पर पूरा भरोसा हैं अजय! मेरी कोई भी सहायता चाहिए तो बता देना!

अजय:" जी राजमाता! मैं भी घर जाऊंगा और उसके बाद कुछ तलवारों और तीरों का मुआयना करना है मुझे ताकि जरूरत पड़ने पर दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके!

राजमाता: वैसे तो आप आस ऐसा कोई राज्य हैं नही जो उदयगढ़ की तरफ नजर उठा कर देख सके! बस हमें पिंडारियो के हमले से बचने की जरूरत हैं क्योंकि उन्हें हराना बेहद मुश्किल हैं और वो राज्य का खजाना और खूबूसरत जवान औरतों को उठाकर ले जाते हैं!

अजय:" आप चिंता न करे राजमाता, मैं सौगंध खाता हूं कि उदयगढ़ की तरफ बुरी नजर डालने वाले हर दुश्मन को नर्क में पहुंचा दूंगा चाहे तो पिंडारी हो या फिर कोई दूसरा!

राजमाता:" हमे आप पर पूरा भरोसा है अजय! आप जाकर अपने काम कीजिए!

उसके बाद अजय राजमाता के कक्ष से निकल गया और अपने कामों में लग गया! वहीं दूसरी तरफ मेनका को समझ नहीं आ रहा था कि वो आज रात होने वाली विधि के लिए अजय को कैसे समझाए क्योंकि जो रूप उसे धारण करना था वो समाज के नियमो के खिलाफ था लेकिन तलवार सौंपने की विधि की पहली और अंतिम सबसे जरूरी शर्त वही थी!

दूसरी तरफ विक्रम के जाने के बाद सलमा अपने बेड पर गिर पड़ी और लंबी लंबी सांसे लेने लगी! उसका दिल ये मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि विक्रम उसके साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है उसे अपनी सच्चाई नही बताई और उसके साथ प्यार करता रहा! सलमा की बार बार आंखे भर भर आ रही थी और उसे अपने आपसे नफरत हो रही थी कि उसने जिंदगी मे उस आदमी से प्यार किया जिसके पिता ने उसके अब्बा की हत्या कर दी और उन्हें धोखा दिया! सलमा को अपने आप पर बाद गुस्सा आ रहा था कि कैसे वो खुद अपने जिस्म को विक्रम के हवाले कर बैठी थी!

पूरी रात ऐसे ही कट गई और अगले दिन सीमा और राधिका दोनो आ गए और राधिका शहजादी के लिए पानी गर्म करने चली गई तो सीमा उसकी हालत देखकर बोली:"

" क्या हुआ शहजादी ? आप बड़ी परेशान लग रही है!

सलमा ने उसकी तारीफ उदास नजरो से देखा और कोई जवाब नही दिया तो सीमा उसके करीब बैठ गई और बोली:"

" बताओ ना शहजादी? मुझसे आपकी ये हालत नही देखी जाती!

सलमा का दिल भर आया और वो बोली:"

" आपको पता है कि विक्रम कहां का युवराज हैं?

सीमा ने इंकार में उसकी तरफ सिर हिलाया तो सलमा बोली:"

" उदयगढ़ का! उसी उदयगढ़ का जिनकी वजह से हमारे अब्बा की मौत हुई थी!

सीमा की आंखे उसकी बात सुनकर खुली की खुली रह गई और थोड़ी देर शांति छाई रही तो सलमा बोली:"

" हमने उससे इतना प्यार किया और उसने हमने धोखे में रखा और हमसे अपनी सच्चाई छुपाई! आज के बाद हम किसी से प्यार करना का सच भी नहीं सकते!

इतना कहकर सलमा ने अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया और रो पड़ी! सीमा उसे थपथपाती रही और फिर उसके आंसू साफ करते हुए बोली:

" उसने गलत किया आपके साथ! उसे सच्चाई बता देना चाहिए थी आपको!

इतने में राधिका कक्ष में आ गई तो दोनो चुप हो गई लेकिन शहजादी की लाल आंखे राधिका से छुपी ना रह सकी लेकिन उसने कुछ नही कहा और सलमा बोझल कदमों से नहाने के लिए चली पड़ी! नहाकर आने के बाद उसने जबरदस्ती सीमा के जोर देने पर थोड़ा सा कुछ खाया और उसके बाद आराम से अपने कक्ष में ही लेट गई!

रात के करीब आठ बज गए थे और मेनका को समझ नही आ रहा था कि वो अजय को कैसे समझाए कि आज रात वो किस रूप में उसके सामने आयेगी तो उसने आखिर कार उससे बात करने का निर्णय लिया और उसके कक्ष की और चल पड़ी! अजय बैठा हुआ कुछ काम कर रहा था और मेनका को देखते ही खड़ा हुआ और बोला:"

" माता आप यहां? मुझे भी बुला लिया होता आपने आने का कष्ट क्यों किया ?

मेनका उसके पास पहुंच गई और बोली;" इतनी भी कमजोर नही हुई अभी कि चलकर आपके कक्ष तक न आ सकू पुत्र!

अजय बेड से उठ गया और खड़े होते हुए बोला:" मेरा वो मतलब नहीं था माता, आप तो अभी बिलकुल स्वस्थ जान पड़ती हैं! आइए बैठिए आप!

मेनका बेड पर बैठ गई और उसका हाथ पकड़ कर अजय को भी अपने पास बैठा लिया और बोली:" पुत्र आज मैं आपके पूर्वजों की निशानी भेंट करूंगी! लेकिन उसके लिए कुछ नियम हैं जो हम सदियों से मानते आ रहे हैं और मुझे भी उनका पालन करना ही होगा!

अजय:" हमारे पूर्वजों की परंपरा हमे माननी ही चाहिए ये तो बहुत अच्छी बात है!

मेनका को उसकी बात सुनकर थोड़ी हिम्मत मिली और बोली:

" बेटा तलवार को देने के लिए एक विधवा औरत अपशकुन मानी गई है! और मैं एक विधवा औरत हु तो मैं चाह कर भी आपको तलवार नही दे सकती है और हमारे परिवार के सिवा और कोई वो तलवार उठा नही सकता!

अजय उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरान हुआ और फिर बोला:"

" लेकिन फिर दूसरा कोई तरीका तो होगा न माता!

मेनका ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली:" एक ही तरीका हैं और वो ये हैं कि मुझे विधवा का रूप नही बल्कि एक सुहागन स्त्री का रूप धारण करके आपको तलवार देना होगी!

अजय ने हैरानी से अपनी माता की तरफ देखा और बोला:"

" लेकिन क्या ये समाज के नियमो के खिलाफ नही होगा कि आप एक विधवा होते हुए सुहागन स्त्री का रूप धारण करे! समाज क्या कहेगा ?

मेनका उसकी बात सुनकर उसकी तरफ देखती हुई बोली:"

" देखो बेटा हमारे पूर्वजों ने जो नियम बनाए हैं वो हमे मानने ही होंगे और फिर इसमें किसी को कुछ नही पता चलेगा तो समाज क्या कहेगा इसकी चिन्ता आप छोड़ दो! मैं सुहागन का रूप नीचे गुफा में धारण करूंगी और फिर उसी रूप में आपके साथ नदी तक घोड़ा बग्गी के अंदर जाऊंगी और वही आपके हवाले ये तलवार करूंगी!

अजय:" ठीक हैं माता! जैसे आपको ठीक लगे! आप बड़ी हैं तो जो भी करेगी सोच समझकर ही करेगी!

मेनका:" अजय पुत्र आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी हैं! मैं अब चलती हु और 10 बजे ठीक आप नीचे गुफा में आ जाना!

इतना कहकर वो चल पड़ी और अजय उसे जाते हुए देखता रहा! मेनका ने अच्छे से नहाकर खुद को स्वच्छ किया और फिर गुफा के अंदर पहुंच गई! उसने कमरे को खोला और उसके बाद संदूक को खोल दिया जिसने तलवार रखी हुई थी और उसे बाहर निकाल लिया! उसके बाद उसने संदूक से एक बेहद खूबसूरत साड़ी निकाली और आभूषण के साथ साथ सौंदर्य प्रसाधन का सामान भी निकाल लिया जो सदियों पुराना था लेकिन अदभुत था! मेनका ने सब सामान निकालने के बाद सबसे पहले अपने जिस्म से चादर को हटाया और उसके बाद उसने एक काले रंग की बेहद आकर्षक रत्न जड़ित ब्रा पेंटी को अपने हाथ में लिया तो मेनका उसे देखती ही रह गई क्योंकि ये बेहद खूबसूरत और मुलायम थी! मेनका ने सामने दीवार पर पड़े हुए परदे को हटाया तो एक सामने एक बड़ा सा दर्पण नजर आया और मेनका की नजर जैसे ही खुद पर पड़ी तो वो खुद से ही शर्मा गई! उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि पिछले 15 साल से सिर्फ सफेद साड़ी पहनने वाली मेनका के हाथ में काले रंग की ब्रा पेंटी थी! मेनका ने शीशे में देखते हुए ब्रा को अपनी चुचियों पर रखा और उसकी स्ट्रिप को अपने कंधे पर से होते हुए पीछे ले गई और हुक लगाने की कोशिश करने लगी लेकिन कामयाब न हुई क्योंकि उसकी बड़ी बड़ी गोल मटोल चुचियों बेहद कसी हुई थी जिस कारण उसे हुक लगाने में दिक्कत हो रही थी और मेनका ने अपनी चुचियों को जबरदस्ती ब्रा में ज़ोर से ठूंस दिया और फिर हुक लगा दिया और उसके बाद पेंटी पहन कर अपने जिस्म ब्लाउस को पहन कर साड़ी को बांध लिया!

कपड़े पहन कर मेनका ने अपनी आंखो में वो दुर्लभ काजल लगाया और उसके बाद उसने लिपिस्टिक निकाली जो सदियों पुरानी विधि से बनाई गई थी और बेहद लाल सुर्ख थी! मेनका ने अपने होंठो पर लिपिस्टिक को लगाया और उसके बाद शीशे में खुद को निहारने लगी!


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मेनका अपने आपको शीशे में देख कर अपने रूप सौंदर्य पर मंत्र मुग्ध सी हो गई और बिना पलके झुकाए खुद को निहारती रही! मेनका ने देखा कि उसकी कमर अभी की बेहद आकर्षक थी और बस पिछले कुछ सालों में उसकी कमर की चर्बी थोड़ी सी बढ़ गई थी जिस कारण वो और ज्यादा मादक हो गई थी! मेनका ने अपने बालो को खोल दिया और काले बालो में उसका खूबसूरत चेहरा और भी सुंदर नजर आ रहा था! अपने बालो को अपनी उंगलियों से सहलाती हुई मेनका के होंठो पर मुस्कान आ गई थी और वो पलट कर खुद को देखने लगी और तभी उसे किसी के कदमों की आहत सुनाई पड़ी तो उसने देखा कि अजय कमरे में आ गया था और मेनका को ही देख रहा था और और मेनका आज पहली बार अपने बेटे के सामने खुद को असहज महसूस करती हुई बोली:

" पुत्र आओ मैं आपका ही इंतजार कर रही थी! मुझे ऐसे सुर्ख कपड़ो में देखकर नाराज तो नही हो ना ?

अजय ये तो जानता था कि उसकी मां मेनका सुंदर है लेकिन लाल सुर्ख कपड़ो में ऐसी अप्सरा लगेगी उसे उम्मीद नही थी इसलिए बोला:"

"मैं भला क्यों बुरा मानने लगा! लेकिन आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं आपसे?

मेनका चलती हुई उसके करीब आई और बोली:

" मैं भला क्यों आपकी बात का बुरा मानने लगी! कहो ना पुत्र?

अजय ने एक नजर अपनी माता पर फिर से डाली और बोला:" अदभुत, अकल्पनीय सौंदर्य हैं आपका माता! सच में आप स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही हो!

मेनका को अपने बेटे से ऐसी प्रसंशा की उम्मीद ना थी लेकिन वो अब अब कर भी क्या सकती थी क्योंकि वो जानती थी कि उसका रूप सौंदर्य सच मे बेहद कमाल का हैं और उसका बेटा भी आखिर एक जवान मर्द हैं तो वो कुछ नहीं बोली और अजय को अपने पास आने का इशारा किया तो अजय चलता हुआ उसके पास आया तो मेनका ने उसे एक पटरी पर खड़ा किया और फिर एक थाली में जलते हुए दीपक रखकर उसकी आरती उतारने लगी और जलते हुए दीपकों की मध्यम रोशनी अब उसके चेहरे को और आकर्षक बना रही थी और आरती उतारने के बाद मेनका ने अजय के माथे पर तिलक लगाया और उसके बाद थाली को एक तरफ रख दिया और बोली:

" अजय अब हम दोनो इसी गुफा से बाहर जायेंगे और नदी के किनारे बाकी बची हुई विधियां करने के बाद तलवार आपके हवाले कर दूंगी!

मेनका ने उसके बाद तलवार को उठाया और दोनो मां बेटे गुफा के अंदर के अंदर चल दिए! गुफा में हल्का हल्का प्रकाश था जिस कारण दोनो को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी! चलते चलते दोनो गुफा के अंतिम छोर तक पहुंच गए और तभी मेनका का पैर गुफा में पड़े हुए पत्थर से टकराया और वो फिसल पड़ी और उसकी साड़ी का पल्लू उसके सीने से सरक गया! पल्लू के सरकने से उसकी गोल गोल चुचियों के बीच की गहरी खाई नजर आ गई और अजय उसके पास आया और उसकी नजर पहली बार अपनी मां के सीने पर पड़ी और दोनो चुचियों के बीच झांकती हुई गहरी खाई को देखकर उसकी आंखे खुली की खुली रह गई और उसने अपनी माता की तरफ हाथ बढ़ाया और मेनका उसका हाथ पकड़कर धीरे धीरे खड़ी होने लगी जिसकी उसकी चुचियों का उभार और ज्यादा बाहर को छलक पड़ा! अजय के उपर मानो कयामत टूट पड़ी थी और अजय ना चाहते हुए भी अपनी सगी मां की चुचियों को देख रहा था और जैसे ही मेनका खड़ी हुई थी तो उसे अपने बेटे की नजरो का एहसास हुआ और उसकी आंखे शर्म से झुक गई!

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मेनका को समझ नही आया कि क्या करे और थोड़ी देर के लिए आंखे नीचे किए खड़ी रही और अजय ने उसका हाथ पकड़े हुए मौके का फायदा उठाते हुए जी भरकर उसकी चुचियों के उभार को निहारा और उसके बाद अजय ने होश में आते हुए जमीन पर पड़े हुए उसकी साड़ी के पल्लू को उठाया और उसके कंधे पर रख दिया तो मेनका ने अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक किया!


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अजय:" माता आप ठीक तो हैं न ? आपको चोट तो नही आई ?

मेनका ने अपना हाथ उससे छुड़ाया और फिर से तलवार को उठाते हुए बोली:"

" हम ठीक हैं पुत्र! आपने हमे बचा लिया!

उसके बाद दोनो गुफा से बाहर निकल गए और बाहर खड़ी हुई बग्गी में बैठकर नदी की तरफ चल पड़े! अजय बग्गी को चला रहा था और मेनका अंदर परदे में बैठी हुई थी और उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी कि थोड़ी देर पहले कैसे उसके बेटे के सामने उसकी साड़ी का पल्लू सरक गया गया और उसकी चुचियों का उभार साफ़ नजर आ गया था! मेनका अभी तक यकीन नही कर पा रही थी कि क्या सच में अजय उसकी गोलाईयों को देख रहा था या ये मात्र उसका वहम था! मेनका ने जान बूझकर अपने पल्लू को सरका दिया और अपनी चुचियों के उभार को देखने लगी कि क्या सच मे उसकी चूचियां अभी भी इतनी आकर्षक हैं और उनके बीच की कसी हुई गहरी खाई को देखते ही मेनका को अपने ऊपर अभिमान हुआ और उसने एक हथेली को अपनी एक चूची के उपर रख दिया और छूकर देखने लगी मानो उसकी सख्ती को महसूस करना चाहती हो और मेनका की सांसे तेज हो गईं! मेनका को एहसास हो गया था कि उसकी चूचियां अभी भी आश्चर्यजनक रूप से सख्त हैं या फिर कहीं मुझे सच में भरम तो नही हो रहा है! ये विचार उसके मन में आते ही उसका दिल तेजी से धड़का और उसने खिड़की से झांक कर अपने बेटे की तरफ देखा जो बग्गी चलाने में व्यस्त था और मेनका ने पर्दे को खिड़की पर टांग दिया और फिर अपने एक हाथ को अपनी ब्रा में घुसा दिया और अपनी अपनी नंगी चूची को हाथ में भर लिया जिससे उसके मुंह से आह निकल गई! मेनका की बड़ी गोल मटोल चूची उसके हाथ में ठीक से समा नही रही थी और मेनका उसे धीरे धीरे सहला कर उसकी कठोरता का जायजा लेने लगी और बदन मे कंपकपी सी आ गई क्योंकि उसकी आश्चर्यजनक रूप से कसी हुई थी ! मेनका अपनी चूची को दबा ही रही थी कि बग्गी रुक गई और मेनका ने पर्दा हटा कर देखा तो नदी आ गई थी और अजय बग्गी से नीचे उतर गया और बोला:"

" हम नदी पर आ गए हैं माता! आप बाहर आ सकती हैं!

मेनका ने अपने हाथ को अपनी ब्रा से बाहर निकाला और अपनी हालत को ठीक करती हुई खड़ी हुई और बग्गी से नीचे उतर गई! मेनका अपनी उत्तेजना से लाल सुर्ख आंखो के साथ अपनी तेज गति से चल रही सांसों को संभालने का प्रयास करने लगी और अजय उसकी अजीब सी हालत देखकर बोला:"

" क्या हुआ माता? आप ठीक तो है न?

अपने बेटे की बात सुनकर मेनका का दिल तेजी से धड़क उठा और बोली: मैं ठीक हु पुत्र! आओ हम आगे की विधि पूर्ण कर लेते हैं!

इतना कहकर मेनका तलवार लेकर नदी में उतर गई और अजय उसके साथ साथ चल पड़ा! मेनका अब नदी के बीच में खड़ी हुई थी और तलवार को मयान से बाहर निकाल कर एक डुबकी लगाई और उपर आ गई और बोली:

" लो पुत्र, पवित्र नदी और अपने पूर्वजों को ध्यान में रखते हुए डुबकी लगाओ!

अजय ने तलवार को हाथ में लिया और पानी में डुबकी लगाई और फिर मेनका ने उसे तलवार को वापिस लिया और फिर से डुबकी लगाई! दोनो ने इसी तरह तीन तीन डुबकियां लगाई और और उसके बाद मेनका ने तलवार को अजय को दिया और फिर दोनो हाथो में जल लेकर आंखे बंद करते हुए कुछ बुदबुदाने लगी! मेनका के कपड़े पानी से भीग जाने के कारण उसके जिस्म से चिपक गए थे जिस कारण उसकी काली ब्रा अब साफ नजर आ रही थी और ब्रा में फड़फड़ा रही उसकी चुचियों का सम्पूर्ण आकार देखकर अजय मंत्र मुग्ध सा हो गया और एक बार फिर से अपनी मां की चुचियों को घूरने लगा! मेनका ने अपनी आंखे खोली और जल को नदी में गिरा दिया और अजय को भी वैसा ही करने के लिए कहा तो अजय ने तलवार मेनका को दी और हाथो में जल भरकर क्रिया को दोहराने लगा! मेनका की नजर अपने आप पर पड़ी तो उसे अपनी सांसे रुकती हुई सी महसूस हुई क्योंकि कपड़े भीग जाने के कारण ब्रा में कैद उसकी चूंचियां अपने सम्पूर्ण आकार में अपनी अनौखी छटा बिखेर रही थी! मेनका को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे क्योंकि अब उसके अंदर अपने बेटे की नजरो का सामना करने की हिम्मत नहीं बची हुई थी! अजय ने पानी को नदी में अर्पण किया और अब मेनका की बारी थी तो मेनका अंदर ही अंदर कांप उठी और हिम्मत करके उसने जल को दोनो हाथों में लिया और आंखे बंद करके ध्यानमग्न हो गई और अजय की नजरे उसकी चुचियों पर आ टिकी और मेनका ने धीरे से अपनी आंखो को हल्का सा खोला और समझ गई कि उसका बेटा उसकी चुचियों को टकटकी लगाए देख रहा था तो उसकी आंखे तेज हो गईं! मेनका ने अपनी विधि को पूर्ण किया और उसके बाद अजय ने विधि को पूर्ण किया!

उसके बाद मेनका नदी के किनारे की तरफ चल पड़ी और यही उससे भूल हो गई क्योंकि उसकी भीगी हुई साड़ी उसके नितंबों के उभार से पूरी तरह से चिपक गई थी और उसकी भारी भरकम पिछवाड़े की गोलाई और मोटाई देखकर अजय को दूसरा झटका लगा और मेनका के चलने से उसकी गांड़ तराजू के पलड़े की तरह उछल रही थी! मेनका चलती हुई बाहर आ गई और बग्गी में बैठ गई तो अजय ने बग्गी को अपने घर की तरफ दौड़ा दिया! गुफा के पास पहुंच कर उसने बग्गी को रोक दिया और उसके बाद दोनो मा गुफा में घुस गए! अजय और मेनका दोनो साथ चल रहे थे और मेनका बोली:

" बेटा आज अच्छे से सारी विधियां पूर्ण हो गई है! अब बस मैं आपको तलवार दूंगी!

अजय:" माता आपने मेरे लिए इतना कुछ किया! सच में आप महान हो! समाज के नियमो को ताक पर रख दिया!

मेनका ने उसका हाथ पकड़ा और बोली:" वो मेरा दायित्व हैं पुत्र! मैं समाज की परवाह नही करती बल्कि आपकी खुशी मेरे लिए मायने रखती हैं!

अजय:" सच माता मैं धन्य हु जो आप जैसी माता मिली!

उसके बाद दोनो फिर से कक्ष में आ गए और मेनका ने अपने पूर्वजों की तस्वीर के आगे तलवार को निकालकर अजय के हाथ में दिया और बोली:सी

" आज से अपने पूर्वजों को साक्षी मानकर मैं ये तलवार आपके हवाले कर रही हूं! ध्यान रखना कि इस तलवार का उपयोग सिर्फ धर्म और न्याय की रक्षा के लिए ही करना! जान देकर भी अपने पूर्वजों के वचन की रक्षा करना आपकी जिन्दगी का लक्ष्य होगा!

अजय ने तलवार को हाथ में लिया तो उसका समूचा बदन कांप उठा और अजय बोला:"

" मैं आपके सिर की कसम खाता हु कि अपने प्राणों का बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटूंगा! मुझे आशीर्वाद दीजिए माता!

इतना कहकर अजय उसके कदमों में झुका तो मेनका ने उसे आशीर्वाद देते हुए गले लगा लिया और माथा चूम कर बोली:

" मेरा आशीर्वाद सदैव आपके साथ है पुत्र! जुग जुग जियो मेरे लाल!


उसके बाद अजय और मेनका दोनो उस कक्ष से निकल कर अपने घर में आ गए और रात का करीब एक बज गया था तो अजय सोने के लिए अपने कक्ष में चला गया और मेनका अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी! वही लाल सुर्ख दुल्हन का जोड़ा पहने हुए और जैसे ही उसकी नजर खुद के कपड़ो पर गई तो वो खुद को ना रोक पाई और शीशे के सामने फिर से खड़ी हो गईं और खुद को निहारने लगी! मेनका ने देखा कि उसकी मांगा का सिंदूर भीग कर हल्का सा फ़ैल गया था जिससे वो अब और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी! मेनका के भीगे हुए बाल पहले से ज्यादा आकर्षक लग रहे थे और मेनका ने अपने गले में पड़े हुए मंगल सूत्र को देखा तो उसे अपने पति की याद आ गई और उसकी आंखे भर आई! मेनका ने अपने मंगल सूत्र को पकड़ा और उसे उतारने लगी तो उसके हाथ कांप उठे क्योंकि उसे याद आया कि अब वो चाहकर भी जिंदगी भर इस मंगल सूत्र को नही उतार सकती क्योंकि ऐसा करना उसके बेटे के लिए अपशकुन होगा! मेनका ने मंगल सूत्र को अपने कपड़ो के अंदर छुपा लिया और फिर वापिस अपने बेड पर आ गई! वो चाहती थी तो अपने कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े पहन सकती थी लेकिन वो खुद को इन कपड़ो में बेहद खूबसूरत और आकर्षक महसूस कर रही थी जिस कारण उसका मन नहीं हुआ और उन्ही कपड़ों को पहने हुए अपने कक्ष में आ गई और फिर थोड़ी देर के बाद गहरी नींद में चली गई!
Mst update intzar rahega agle update ka
 

parkas

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विक्रम अपनी भीगी आंखों से वापिस उदयगढ़ आ गया और बेचैनी से इधर उधर टहल रहा था! उसने सपने में भी नही सोचा था कि सलमा उसके हाथ ऐसा व्यवहार करेगी! जब सलमा ने उसे थप्पड़ मारा तो उसका मन किया था कि उसका मुंह तोड़ दे लेकिन अपनी मोहब्बत की वजह से खामोश रहा और जिस तरह से सलमा ने उसे बेइज्जत करके अपने कक्ष से निकाला था उससे उसका दिल बुरी तरह से टूट गया था और विक्रम को अब बिलकुल भी सुकून नही मिल रहा था! जिस सलमा के लिए उसने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी और अपनी जान से ज्यादा प्यार किया उसने ही उसने धमकी दी कि सुल्तानपुर की सीमा में दिखे तो जिंदा वापिस नही जाओगे ये सब सोचकर उसे रोना आ रहा था!

बेचैनी से इधर उधर टहलते हुए विक्रम को पूरी रात हो गई और जैसे ही सुबह हुई तो वो अजय उसके पास आया और उसकी लाल आंखे देखकर बोला:"

" क्या हुआ युवराज ? आपकी आंखे बड़ी लाल हो रही हैं जैसे आप पूरी रात सोए नही हो!

विक्रम के चेहरे पर छाई उदासी उसकी हालत बयान कर रही थी और विक्रम बोला:"

" ऐसा कुछ नही हैं बस आंखे दर्द कर रही थी तो इसलिए नींद नही आई मुझे!

अजय:" माफ कीजिए युवराज लेकिन आपके चेहरे पर छाई उदासी मुझे कुछ और ही संकेत दे रही हैं !

विक्रम थोड़ी देर चुप रहा और बोला:" अजय ऐसा कुछ भी नहीं है, बस कल कुश्ती के बाद नींद नही आई तो इसलिए सो नही पाया मैं अच्छे से!

अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" युवराज एक बार मुझे अपनी समस्या बताकर तो देखिए, मुझे आपके काम आकर खुशी होगी!

अजय ने उसकी तरफ ध्यान से देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोला:" ठीक हैं अजय, सही समय आने पर आपसे सब बाते साझा करूंगा!

अजय:" मैं बेताबी से उस पल का इंतजार करूंगा युवराज! चलिए आप नहा लीजिए फिर आपको राजमाता ने बुलाया हैं!

विक्रम नहाने के लिए अंदर चला गया और थोड़ी देर बाद दोनो राजमाता के सामने खड़े हुए थे और राजमाता गायत्री देवी विक्रम को देखकर बोली:"

" क्या हुआ युवराज? आपके चेहरे पर ये पीड़ा किसलिए ?

विक्रम जानता था कि वो चाह कर अपनी मां की नजरों से नही बच सकता लेकिन सच कह पाने की हिम्मत उसमें नही थी और बोला:"

" तबियत थोड़ी ठीक नही है मेरी बस इसलिए ऐसा लग रहा है आपको!

राजमाता:" सिर्फ ये ही बात हैं या कुछ और भी वजह हैं युवराज?

अजय नही चाहता था कि विक्रम को राजमाता के और सवालों का सामना करना पड़े इसलिए विषय को बदलते हुए बोला:"

" राजमाता कल युवराज ने सागोला को कुश्ती में हरा दिया! सागोला ने हमारे राज्य के कई पहलवानों की रीढ की हड्डी तोड़ दी थी!

राजमाता ने आगे बढ़कर विक्रम का माथा चूम लिया और बोली:"

" शाबाश मेरे शेर बेटे! ऐसे ही दुश्मनों के हौसलों को तबाह करते रहे और उन्हें धूल चटाते रहो आप!

उसके बाद राजमाता बोली:"

" कल अजय का उदयगढ़ का सेनापति बनाया जायेगा इसलिए आप उत्सव की तैयारी में जुट जाएं युवराज! मुझे अजय से कुछ बात करनी है आप !

विक्रम उसकी बात सुनकर बोला:" जो आज्ञा राजमाता!

इतना कहकर वो बाहर निकल गया और उसके जाने के बाद राजमाता अजय से बोली:

" अजय पता करने की कोशिश करो कि विक्रम को क्या हुआ हैं ? उसके चेहरे की पीड़ा हमसे देखी नही जा रही है!

अजय:" आप चिंता मत करिए राजमाता! मैं युवराज की समस्या और समाधान दोनो ढूंढ लूंगा!

गायत्री:"मुझे आप पर पूरा भरोसा हैं अजय! मेरी कोई भी सहायता चाहिए तो बता देना!

अजय:" जी राजमाता! मैं भी घर जाऊंगा और उसके बाद कुछ तलवारों और तीरों का मुआयना करना है मुझे ताकि जरूरत पड़ने पर दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके!

राजमाता: वैसे तो आप आस ऐसा कोई राज्य हैं नही जो उदयगढ़ की तरफ नजर उठा कर देख सके! बस हमें पिंडारियो के हमले से बचने की जरूरत हैं क्योंकि उन्हें हराना बेहद मुश्किल हैं और वो राज्य का खजाना और खूबूसरत जवान औरतों को उठाकर ले जाते हैं!

अजय:" आप चिंता न करे राजमाता, मैं सौगंध खाता हूं कि उदयगढ़ की तरफ बुरी नजर डालने वाले हर दुश्मन को नर्क में पहुंचा दूंगा चाहे तो पिंडारी हो या फिर कोई दूसरा!

राजमाता:" हमे आप पर पूरा भरोसा है अजय! आप जाकर अपने काम कीजिए!

उसके बाद अजय राजमाता के कक्ष से निकल गया और अपने कामों में लग गया! वहीं दूसरी तरफ मेनका को समझ नहीं आ रहा था कि वो आज रात होने वाली विधि के लिए अजय को कैसे समझाए क्योंकि जो रूप उसे धारण करना था वो समाज के नियमो के खिलाफ था लेकिन तलवार सौंपने की विधि की पहली और अंतिम सबसे जरूरी शर्त वही थी!

दूसरी तरफ विक्रम के जाने के बाद सलमा अपने बेड पर गिर पड़ी और लंबी लंबी सांसे लेने लगी! उसका दिल ये मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि विक्रम उसके साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है उसे अपनी सच्चाई नही बताई और उसके साथ प्यार करता रहा! सलमा की बार बार आंखे भर भर आ रही थी और उसे अपने आपसे नफरत हो रही थी कि उसने जिंदगी मे उस आदमी से प्यार किया जिसके पिता ने उसके अब्बा की हत्या कर दी और उन्हें धोखा दिया! सलमा को अपने आप पर बाद गुस्सा आ रहा था कि कैसे वो खुद अपने जिस्म को विक्रम के हवाले कर बैठी थी!

पूरी रात ऐसे ही कट गई और अगले दिन सीमा और राधिका दोनो आ गए और राधिका शहजादी के लिए पानी गर्म करने चली गई तो सीमा उसकी हालत देखकर बोली:"

" क्या हुआ शहजादी ? आप बड़ी परेशान लग रही है!

सलमा ने उसकी तारीफ उदास नजरो से देखा और कोई जवाब नही दिया तो सीमा उसके करीब बैठ गई और बोली:"

" बताओ ना शहजादी? मुझसे आपकी ये हालत नही देखी जाती!

सलमा का दिल भर आया और वो बोली:"

" आपको पता है कि विक्रम कहां का युवराज हैं?

सीमा ने इंकार में उसकी तरफ सिर हिलाया तो सलमा बोली:"

" उदयगढ़ का! उसी उदयगढ़ का जिनकी वजह से हमारे अब्बा की मौत हुई थी!

सीमा की आंखे उसकी बात सुनकर खुली की खुली रह गई और थोड़ी देर शांति छाई रही तो सलमा बोली:"

" हमने उससे इतना प्यार किया और उसने हमने धोखे में रखा और हमसे अपनी सच्चाई छुपाई! आज के बाद हम किसी से प्यार करना का सच भी नहीं सकते!

इतना कहकर सलमा ने अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया और रो पड़ी! सीमा उसे थपथपाती रही और फिर उसके आंसू साफ करते हुए बोली:

" उसने गलत किया आपके साथ! उसे सच्चाई बता देना चाहिए थी आपको!

इतने में राधिका कक्ष में आ गई तो दोनो चुप हो गई लेकिन शहजादी की लाल आंखे राधिका से छुपी ना रह सकी लेकिन उसने कुछ नही कहा और सलमा बोझल कदमों से नहाने के लिए चली पड़ी! नहाकर आने के बाद उसने जबरदस्ती सीमा के जोर देने पर थोड़ा सा कुछ खाया और उसके बाद आराम से अपने कक्ष में ही लेट गई!

रात के करीब आठ बज गए थे और मेनका को समझ नही आ रहा था कि वो अजय को कैसे समझाए कि आज रात वो किस रूप में उसके सामने आयेगी तो उसने आखिर कार उससे बात करने का निर्णय लिया और उसके कक्ष की और चल पड़ी! अजय बैठा हुआ कुछ काम कर रहा था और मेनका को देखते ही खड़ा हुआ और बोला:"

" माता आप यहां? मुझे भी बुला लिया होता आपने आने का कष्ट क्यों किया ?

मेनका उसके पास पहुंच गई और बोली;" इतनी भी कमजोर नही हुई अभी कि चलकर आपके कक्ष तक न आ सकू पुत्र!

अजय बेड से उठ गया और खड़े होते हुए बोला:" मेरा वो मतलब नहीं था माता, आप तो अभी बिलकुल स्वस्थ जान पड़ती हैं! आइए बैठिए आप!

मेनका बेड पर बैठ गई और उसका हाथ पकड़ कर अजय को भी अपने पास बैठा लिया और बोली:" पुत्र आज मैं आपके पूर्वजों की निशानी भेंट करूंगी! लेकिन उसके लिए कुछ नियम हैं जो हम सदियों से मानते आ रहे हैं और मुझे भी उनका पालन करना ही होगा!

अजय:" हमारे पूर्वजों की परंपरा हमे माननी ही चाहिए ये तो बहुत अच्छी बात है!

मेनका को उसकी बात सुनकर थोड़ी हिम्मत मिली और बोली:

" बेटा तलवार को देने के लिए एक विधवा औरत अपशकुन मानी गई है! और मैं एक विधवा औरत हु तो मैं चाह कर भी आपको तलवार नही दे सकती है और हमारे परिवार के सिवा और कोई वो तलवार उठा नही सकता!

अजय उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरान हुआ और फिर बोला:"

" लेकिन फिर दूसरा कोई तरीका तो होगा न माता!

मेनका ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली:" एक ही तरीका हैं और वो ये हैं कि मुझे विधवा का रूप नही बल्कि एक सुहागन स्त्री का रूप धारण करके आपको तलवार देना होगी!

अजय ने हैरानी से अपनी माता की तरफ देखा और बोला:"

" लेकिन क्या ये समाज के नियमो के खिलाफ नही होगा कि आप एक विधवा होते हुए सुहागन स्त्री का रूप धारण करे! समाज क्या कहेगा ?

मेनका उसकी बात सुनकर उसकी तरफ देखती हुई बोली:"

" देखो बेटा हमारे पूर्वजों ने जो नियम बनाए हैं वो हमे मानने ही होंगे और फिर इसमें किसी को कुछ नही पता चलेगा तो समाज क्या कहेगा इसकी चिन्ता आप छोड़ दो! मैं सुहागन का रूप नीचे गुफा में धारण करूंगी और फिर उसी रूप में आपके साथ नदी तक घोड़ा बग्गी के अंदर जाऊंगी और वही आपके हवाले ये तलवार करूंगी!

अजय:" ठीक हैं माता! जैसे आपको ठीक लगे! आप बड़ी हैं तो जो भी करेगी सोच समझकर ही करेगी!

मेनका:" अजय पुत्र आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी हैं! मैं अब चलती हु और 10 बजे ठीक आप नीचे गुफा में आ जाना!

इतना कहकर वो चल पड़ी और अजय उसे जाते हुए देखता रहा! मेनका ने अच्छे से नहाकर खुद को स्वच्छ किया और फिर गुफा के अंदर पहुंच गई! उसने कमरे को खोला और उसके बाद संदूक को खोल दिया जिसने तलवार रखी हुई थी और उसे बाहर निकाल लिया! उसके बाद उसने संदूक से एक बेहद खूबसूरत साड़ी निकाली और आभूषण के साथ साथ सौंदर्य प्रसाधन का सामान भी निकाल लिया जो सदियों पुराना था लेकिन अदभुत था! मेनका ने सब सामान निकालने के बाद सबसे पहले अपने जिस्म से चादर को हटाया और उसके बाद उसने एक काले रंग की बेहद आकर्षक रत्न जड़ित ब्रा पेंटी को अपने हाथ में लिया तो मेनका उसे देखती ही रह गई क्योंकि ये बेहद खूबसूरत और मुलायम थी! मेनका ने सामने दीवार पर पड़े हुए परदे को हटाया तो एक सामने एक बड़ा सा दर्पण नजर आया और मेनका की नजर जैसे ही खुद पर पड़ी तो वो खुद से ही शर्मा गई! उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि पिछले 15 साल से सिर्फ सफेद साड़ी पहनने वाली मेनका के हाथ में काले रंग की ब्रा पेंटी थी! मेनका ने शीशे में देखते हुए ब्रा को अपनी चुचियों पर रखा और उसकी स्ट्रिप को अपने कंधे पर से होते हुए पीछे ले गई और हुक लगाने की कोशिश करने लगी लेकिन कामयाब न हुई क्योंकि उसकी बड़ी बड़ी गोल मटोल चुचियों बेहद कसी हुई थी जिस कारण उसे हुक लगाने में दिक्कत हो रही थी और मेनका ने अपनी चुचियों को जबरदस्ती ब्रा में ज़ोर से ठूंस दिया और फिर हुक लगा दिया और उसके बाद पेंटी पहन कर अपने जिस्म ब्लाउस को पहन कर साड़ी को बांध लिया!

कपड़े पहन कर मेनका ने अपनी आंखो में वो दुर्लभ काजल लगाया और उसके बाद उसने लिपिस्टिक निकाली जो सदियों पुरानी विधि से बनाई गई थी और बेहद लाल सुर्ख थी! मेनका ने अपने होंठो पर लिपिस्टिक को लगाया और उसके बाद शीशे में खुद को निहारने लगी!


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मेनका अपने आपको शीशे में देख कर अपने रूप सौंदर्य पर मंत्र मुग्ध सी हो गई और बिना पलके झुकाए खुद को निहारती रही! मेनका ने देखा कि उसकी कमर अभी की बेहद आकर्षक थी और बस पिछले कुछ सालों में उसकी कमर की चर्बी थोड़ी सी बढ़ गई थी जिस कारण वो और ज्यादा मादक हो गई थी! मेनका ने अपने बालो को खोल दिया और काले बालो में उसका खूबसूरत चेहरा और भी सुंदर नजर आ रहा था! अपने बालो को अपनी उंगलियों से सहलाती हुई मेनका के होंठो पर मुस्कान आ गई थी और वो पलट कर खुद को देखने लगी और तभी उसे किसी के कदमों की आहत सुनाई पड़ी तो उसने देखा कि अजय कमरे में आ गया था और मेनका को ही देख रहा था और और मेनका आज पहली बार अपने बेटे के सामने खुद को असहज महसूस करती हुई बोली:

" पुत्र आओ मैं आपका ही इंतजार कर रही थी! मुझे ऐसे सुर्ख कपड़ो में देखकर नाराज तो नही हो ना ?

अजय ये तो जानता था कि उसकी मां मेनका सुंदर है लेकिन लाल सुर्ख कपड़ो में ऐसी अप्सरा लगेगी उसे उम्मीद नही थी इसलिए बोला:"

"मैं भला क्यों बुरा मानने लगा! लेकिन आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं आपसे?

मेनका चलती हुई उसके करीब आई और बोली:

" मैं भला क्यों आपकी बात का बुरा मानने लगी! कहो ना पुत्र?

अजय ने एक नजर अपनी माता पर फिर से डाली और बोला:" अदभुत, अकल्पनीय सौंदर्य हैं आपका माता! सच में आप स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही हो!

मेनका को अपने बेटे से ऐसी प्रसंशा की उम्मीद ना थी लेकिन वो अब अब कर भी क्या सकती थी क्योंकि वो जानती थी कि उसका रूप सौंदर्य सच मे बेहद कमाल का हैं और उसका बेटा भी आखिर एक जवान मर्द हैं तो वो कुछ नहीं बोली और अजय को अपने पास आने का इशारा किया तो अजय चलता हुआ उसके पास आया तो मेनका ने उसे एक पटरी पर खड़ा किया और फिर एक थाली में जलते हुए दीपक रखकर उसकी आरती उतारने लगी और जलते हुए दीपकों की मध्यम रोशनी अब उसके चेहरे को और आकर्षक बना रही थी और आरती उतारने के बाद मेनका ने अजय के माथे पर तिलक लगाया और उसके बाद थाली को एक तरफ रख दिया और बोली:

" अजय अब हम दोनो इसी गुफा से बाहर जायेंगे और नदी के किनारे बाकी बची हुई विधियां करने के बाद तलवार आपके हवाले कर दूंगी!

मेनका ने उसके बाद तलवार को उठाया और दोनो मां बेटे गुफा के अंदर के अंदर चल दिए! गुफा में हल्का हल्का प्रकाश था जिस कारण दोनो को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी! चलते चलते दोनो गुफा के अंतिम छोर तक पहुंच गए और तभी मेनका का पैर गुफा में पड़े हुए पत्थर से टकराया और वो फिसल पड़ी और उसकी साड़ी का पल्लू उसके सीने से सरक गया! पल्लू के सरकने से उसकी गोल गोल चुचियों के बीच की गहरी खाई नजर आ गई और अजय उसके पास आया और उसकी नजर पहली बार अपनी मां के सीने पर पड़ी और दोनो चुचियों के बीच झांकती हुई गहरी खाई को देखकर उसकी आंखे खुली की खुली रह गई और उसने अपनी माता की तरफ हाथ बढ़ाया और मेनका उसका हाथ पकड़कर धीरे धीरे खड़ी होने लगी जिसकी उसकी चुचियों का उभार और ज्यादा बाहर को छलक पड़ा! अजय के उपर मानो कयामत टूट पड़ी थी और अजय ना चाहते हुए भी अपनी सगी मां की चुचियों को देख रहा था और जैसे ही मेनका खड़ी हुई थी तो उसे अपने बेटे की नजरो का एहसास हुआ और उसकी आंखे शर्म से झुक गई!

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मेनका को समझ नही आया कि क्या करे और थोड़ी देर के लिए आंखे नीचे किए खड़ी रही और अजय ने उसका हाथ पकड़े हुए मौके का फायदा उठाते हुए जी भरकर उसकी चुचियों के उभार को निहारा और उसके बाद अजय ने होश में आते हुए जमीन पर पड़े हुए उसकी साड़ी के पल्लू को उठाया और उसके कंधे पर रख दिया तो मेनका ने अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक किया!


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अजय:" माता आप ठीक तो हैं न ? आपको चोट तो नही आई ?

मेनका ने अपना हाथ उससे छुड़ाया और फिर से तलवार को उठाते हुए बोली:"

" हम ठीक हैं पुत्र! आपने हमे बचा लिया!

उसके बाद दोनो गुफा से बाहर निकल गए और बाहर खड़ी हुई बग्गी में बैठकर नदी की तरफ चल पड़े! अजय बग्गी को चला रहा था और मेनका अंदर परदे में बैठी हुई थी और उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी कि थोड़ी देर पहले कैसे उसके बेटे के सामने उसकी साड़ी का पल्लू सरक गया गया और उसकी चुचियों का उभार साफ़ नजर आ गया था! मेनका अभी तक यकीन नही कर पा रही थी कि क्या सच में अजय उसकी गोलाईयों को देख रहा था या ये मात्र उसका वहम था! मेनका ने जान बूझकर अपने पल्लू को सरका दिया और अपनी चुचियों के उभार को देखने लगी कि क्या सच मे उसकी चूचियां अभी भी इतनी आकर्षक हैं और उनके बीच की कसी हुई गहरी खाई को देखते ही मेनका को अपने ऊपर अभिमान हुआ और उसने एक हथेली को अपनी एक चूची के उपर रख दिया और छूकर देखने लगी मानो उसकी सख्ती को महसूस करना चाहती हो और मेनका की सांसे तेज हो गईं! मेनका को एहसास हो गया था कि उसकी चूचियां अभी भी आश्चर्यजनक रूप से सख्त हैं या फिर कहीं मुझे सच में भरम तो नही हो रहा है! ये विचार उसके मन में आते ही उसका दिल तेजी से धड़का और उसने खिड़की से झांक कर अपने बेटे की तरफ देखा जो बग्गी चलाने में व्यस्त था और मेनका ने पर्दे को खिड़की पर टांग दिया और फिर अपने एक हाथ को अपनी ब्रा में घुसा दिया और अपनी अपनी नंगी चूची को हाथ में भर लिया जिससे उसके मुंह से आह निकल गई! मेनका की बड़ी गोल मटोल चूची उसके हाथ में ठीक से समा नही रही थी और मेनका उसे धीरे धीरे सहला कर उसकी कठोरता का जायजा लेने लगी और बदन मे कंपकपी सी आ गई क्योंकि उसकी आश्चर्यजनक रूप से कसी हुई थी ! मेनका अपनी चूची को दबा ही रही थी कि बग्गी रुक गई और मेनका ने पर्दा हटा कर देखा तो नदी आ गई थी और अजय बग्गी से नीचे उतर गया और बोला:"

" हम नदी पर आ गए हैं माता! आप बाहर आ सकती हैं!

मेनका ने अपने हाथ को अपनी ब्रा से बाहर निकाला और अपनी हालत को ठीक करती हुई खड़ी हुई और बग्गी से नीचे उतर गई! मेनका अपनी उत्तेजना से लाल सुर्ख आंखो के साथ अपनी तेज गति से चल रही सांसों को संभालने का प्रयास करने लगी और अजय उसकी अजीब सी हालत देखकर बोला:"

" क्या हुआ माता? आप ठीक तो है न?

अपने बेटे की बात सुनकर मेनका का दिल तेजी से धड़क उठा और बोली: मैं ठीक हु पुत्र! आओ हम आगे की विधि पूर्ण कर लेते हैं!

इतना कहकर मेनका तलवार लेकर नदी में उतर गई और अजय उसके साथ साथ चल पड़ा! मेनका अब नदी के बीच में खड़ी हुई थी और तलवार को मयान से बाहर निकाल कर एक डुबकी लगाई और उपर आ गई और बोली:

" लो पुत्र, पवित्र नदी और अपने पूर्वजों को ध्यान में रखते हुए डुबकी लगाओ!

अजय ने तलवार को हाथ में लिया और पानी में डुबकी लगाई और फिर मेनका ने उसे तलवार को वापिस लिया और फिर से डुबकी लगाई! दोनो ने इसी तरह तीन तीन डुबकियां लगाई और और उसके बाद मेनका ने तलवार को अजय को दिया और फिर दोनो हाथो में जल लेकर आंखे बंद करते हुए कुछ बुदबुदाने लगी! मेनका के कपड़े पानी से भीग जाने के कारण उसके जिस्म से चिपक गए थे जिस कारण उसकी काली ब्रा अब साफ नजर आ रही थी और ब्रा में फड़फड़ा रही उसकी चुचियों का सम्पूर्ण आकार देखकर अजय मंत्र मुग्ध सा हो गया और एक बार फिर से अपनी मां की चुचियों को घूरने लगा! मेनका ने अपनी आंखे खोली और जल को नदी में गिरा दिया और अजय को भी वैसा ही करने के लिए कहा तो अजय ने तलवार मेनका को दी और हाथो में जल भरकर क्रिया को दोहराने लगा! मेनका की नजर अपने आप पर पड़ी तो उसे अपनी सांसे रुकती हुई सी महसूस हुई क्योंकि कपड़े भीग जाने के कारण ब्रा में कैद उसकी चूंचियां अपने सम्पूर्ण आकार में अपनी अनौखी छटा बिखेर रही थी! मेनका को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे क्योंकि अब उसके अंदर अपने बेटे की नजरो का सामना करने की हिम्मत नहीं बची हुई थी! अजय ने पानी को नदी में अर्पण किया और अब मेनका की बारी थी तो मेनका अंदर ही अंदर कांप उठी और हिम्मत करके उसने जल को दोनो हाथों में लिया और आंखे बंद करके ध्यानमग्न हो गई और अजय की नजरे उसकी चुचियों पर आ टिकी और मेनका ने धीरे से अपनी आंखो को हल्का सा खोला और समझ गई कि उसका बेटा उसकी चुचियों को टकटकी लगाए देख रहा था तो उसकी आंखे तेज हो गईं! मेनका ने अपनी विधि को पूर्ण किया और उसके बाद अजय ने विधि को पूर्ण किया!

उसके बाद मेनका नदी के किनारे की तरफ चल पड़ी और यही उससे भूल हो गई क्योंकि उसकी भीगी हुई साड़ी उसके नितंबों के उभार से पूरी तरह से चिपक गई थी और उसकी भारी भरकम पिछवाड़े की गोलाई और मोटाई देखकर अजय को दूसरा झटका लगा और मेनका के चलने से उसकी गांड़ तराजू के पलड़े की तरह उछल रही थी! मेनका चलती हुई बाहर आ गई और बग्गी में बैठ गई तो अजय ने बग्गी को अपने घर की तरफ दौड़ा दिया! गुफा के पास पहुंच कर उसने बग्गी को रोक दिया और उसके बाद दोनो मा गुफा में घुस गए! अजय और मेनका दोनो साथ चल रहे थे और मेनका बोली:

" बेटा आज अच्छे से सारी विधियां पूर्ण हो गई है! अब बस मैं आपको तलवार दूंगी!

अजय:" माता आपने मेरे लिए इतना कुछ किया! सच में आप महान हो! समाज के नियमो को ताक पर रख दिया!

मेनका ने उसका हाथ पकड़ा और बोली:" वो मेरा दायित्व हैं पुत्र! मैं समाज की परवाह नही करती बल्कि आपकी खुशी मेरे लिए मायने रखती हैं!

अजय:" सच माता मैं धन्य हु जो आप जैसी माता मिली!

उसके बाद दोनो फिर से कक्ष में आ गए और मेनका ने अपने पूर्वजों की तस्वीर के आगे तलवार को निकालकर अजय के हाथ में दिया और बोली:सी

" आज से अपने पूर्वजों को साक्षी मानकर मैं ये तलवार आपके हवाले कर रही हूं! ध्यान रखना कि इस तलवार का उपयोग सिर्फ धर्म और न्याय की रक्षा के लिए ही करना! जान देकर भी अपने पूर्वजों के वचन की रक्षा करना आपकी जिन्दगी का लक्ष्य होगा!

अजय ने तलवार को हाथ में लिया तो उसका समूचा बदन कांप उठा और अजय बोला:"

" मैं आपके सिर की कसम खाता हु कि अपने प्राणों का बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटूंगा! मुझे आशीर्वाद दीजिए माता!

इतना कहकर अजय उसके कदमों में झुका तो मेनका ने उसे आशीर्वाद देते हुए गले लगा लिया और माथा चूम कर बोली:

" मेरा आशीर्वाद सदैव आपके साथ है पुत्र! जुग जुग जियो मेरे लाल!


उसके बाद अजय और मेनका दोनो उस कक्ष से निकल कर अपने घर में आ गए और रात का करीब एक बज गया था तो अजय सोने के लिए अपने कक्ष में चला गया और मेनका अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी! वही लाल सुर्ख दुल्हन का जोड़ा पहने हुए और जैसे ही उसकी नजर खुद के कपड़ो पर गई तो वो खुद को ना रोक पाई और शीशे के सामने फिर से खड़ी हो गईं और खुद को निहारने लगी! मेनका ने देखा कि उसकी मांगा का सिंदूर भीग कर हल्का सा फ़ैल गया था जिससे वो अब और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी! मेनका के भीगे हुए बाल पहले से ज्यादा आकर्षक लग रहे थे और मेनका ने अपने गले में पड़े हुए मंगल सूत्र को देखा तो उसे अपने पति की याद आ गई और उसकी आंखे भर आई! मेनका ने अपने मंगल सूत्र को पकड़ा और उसे उतारने लगी तो उसके हाथ कांप उठे क्योंकि उसे याद आया कि अब वो चाहकर भी जिंदगी भर इस मंगल सूत्र को नही उतार सकती क्योंकि ऐसा करना उसके बेटे के लिए अपशकुन होगा! मेनका ने मंगल सूत्र को अपने कपड़ो के अंदर छुपा लिया और फिर वापिस अपने बेड पर आ गई! वो चाहती थी तो अपने कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े पहन सकती थी लेकिन वो खुद को इन कपड़ो में बेहद खूबसूरत और आकर्षक महसूस कर रही थी जिस कारण उसका मन नहीं हुआ और उन्ही कपड़ों को पहने हुए अपने कक्ष में आ गई और फिर थोड़ी देर के बाद गहरी नींद में चली गई!
Bahut hi shaandar update diya hai Unique star bhai.....
Nice and lovely update.....
 
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