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Shayari शायरी और गजल™

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,768
117,217
354
कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं
आप की रग़बत ओ रज़ा हूँ मैं

मैं ने जब साज़ छेड़ना चाहा
ख़ामुशी चीख़ उठी सदा हूँ मैं

हश्र की सुब्ह तक तो जागूँगा
रात का आख़िरी दिया हूँ मैं

आप ने मुझ को ख़ूब पहचाना
वाक़ई सख़्त बे-वफ़ा हूँ मैं

मैं ने समझा था मैं मोहब्बत हूँ
मैं ने समझा था मुद्दआ हूँ मैं

काश मुझ को कोई बताए 'अदम'
किस परी-वश की बद-दुआ हूँ मैं.
Bahut khoob :perfect:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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क्या ग़ौर से ऐ जान-ए-जहाँ देख रहे हो,
तुम सा कोई आईने के अंदर तो नहीं है।।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते क्या हो।
ख़ुद अपने शोर में गुम आदमी से चाहते क्या हो।।

ये आँखों में जो कुछ हैरत है क्या वो भी तुम्हें दे दें,
बना कर बुत हमें अब ख़ामुशी से चाहते क्या हो।।

न इत्मिनान से बैठो न गहरी नींद सो पाओ,
मियाँ इस मुख़्तसर सी ज़िंदगी से चाहते क्या हो।।

उसे ठहरा सको इतनी भी तो वुसअत नहीं घर में,
ये सब कुछ जान कर आवारगी से चाहते क्या हो।।

किनारों पर तुम्हारे वास्ते मोती बहा लाए,
घरौंदे भी नहीं तोड़े नदी से चाहते क्या हो।।

चराग़-ए-शाम-ए-तन्हाई भी रौशन रख नहीं पाए,
अब और आगे हवा की दोस्ती से चाहते क्या हो।।

_______ज़फ़र गोरखपुरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा।
तुझे ऐसा कुशादा आसमाँ कोई नहीं देगा।।

अभी ज़िंदा हैं हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे,
हमारे बाद कोई इम्तिहाँ कोई नहीं देगा।।

जो प्यासे हो तो अपने साथ रक्खो अपने बादल भी,
ये दुनिया है विरासत में कुआँ कोई नहीं देगा।।

मिलेंगे मुफ़्त शोलों की क़बाएँ बाँटने वाले,
मगर रहने को काग़ज़ का मकाँ कोई नहीं देगा।।

ख़ुद अपना अक्स बिक जाए असीर-ए-आईना हो कर,
यहाँ इस दाम पर नाम ओ निशाँ कोई नहीं देगा।।

हमारी ज़िंदगी बेवा दुल्हन भीगी हुई लकड़ी,
जलेंगे चुपके चुपके सब धुआँ कोई नहीं देगा।।

_______ज़फ़र गोरखपुरी

 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी।
गिरोगे आसमाँ से जब ज़मीं ही काम आएगी।।

यहाँ से मत उठा बिस्तर कि इस सफ़्फ़ाक आँधी में,
ये टूटी फूटी दीवार-ए-यक़ीं ही काम आएगी।।

उठा रक्खा था सहरा सर पे तुम ने कौन मानेगा,
झटकना मत कि ये गर्द-ए-जबीं ही काम आएगी।।

वो दिन आएगा जब सारे समुंदर सूख जाएँगे,
मियाँ अंदर की जू-ए-आतशीं ही काम आएगी।।

कोई आँखों के शोले पोंछने वाला नहीं होगा,
'ज़फ़र' साहब ये गीली आस्तीं ही काम आएगी।।

_______ज़फ़र गोरखपुरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी।
तो क्यूँ क़रीब-ए-हवा शम्अ ला के रक्खी थी।।

फ़लक ने भी न ठिकाना कहीं दिया हम को,
मकाँ की नीव ज़मीं से हटा के रक्खी थी।।

ज़रा फुवार पड़ी और आबले उग आए,
अजीब प्यास बदन में दबा के रक्खी थी।।

अगरचे ख़ेमा-ए-शब कल भी था उदास बहुत,
कम-अज़-कम आग तो हम ने जला के रक्खी थी।।

वो ऐसा क्या था कि ना-मुतमइन भी थे उस से,
उसी से आस भी हम ने लगा के रक्खी थी।।

ये आसमान 'ज़फ़र' हम पे बे-सबब टूटा,
उड़ान कौन सी हम ने बचा के रक्खी थी।।

_______ज़फ़र गोरखपुरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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इश्क़ में क्या क्या मेरे जुनूँ की की न बुराई लोगो ने।
कुछ तुम ने बदनाम किया कुछ आग लगाईं लोगो ने।।

मेरे लहू के रंग से चमकी मेहंदी कितने हाथों पर,
शहर में जिस दिन क़त्ल हुआ मैं ईद मनाई लोगो ने।।

हम ही उन को बाम पे लाए और हम ही महरूम रहे,
पर्दा अपने नाम से उट्ठा आँख मिलाई लोगों ने।।

लोगों का भी एहसान है हम पर हम तेरे भी शुक्र-गुज़ार,
तेरी नज़र ने मारा हम को लाश उठाई लोगो ने।।

लोगों ने अरमान निकाले हमें ही बिगड़ी रास न आई,
हम को 'ज़फ़र' कल शैख़ समझ कर ख़ूब पिलाई लोगों।।

_______ज़फ़र गोरखपुरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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नींद रातों की उड़ा देते हैं।
हम सितारों को दुआ देते हैं।।

रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू,
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं।।

अब के हम जान लड़ा बैठेंगे,
देखें अब कौन सज़ा देते हैं।।

हाए वो लोग जो देखे भी नहीं,
याद आएँ तो रुला देते हैं।।

दी है ख़ैरात उसी दर से कभी,
अब उसी दर पे सदा देते हैं।।

आग अपने ही लगा सकते हैं,
ग़ैर तो सिर्फ़ हवा देते हैं।।

कितने चालाक हैं ख़ूबाँ 'अल्वी'
हम को इल्ज़ाम-ए-वफ़ा देते हैं।।

______मोहम्मद 'अल्वी'
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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कभी वो दीदा-ए-दिल वा भी छोड़ जाते हैं।
कभी ख़याल का रस्ता भी छोड़ जाते हैं।।

न जाओ घर के शब-अफ़रोज़ रौज़नों पे कि लोग,
दिया मकान में जलता भी छोड़ जाते हैं।।

कुछ ए'तिबार नहीं हम-रहान-ए-सहरा का,
ये दूर शहर से तन्हा भी छोड़ जाते हैं।।

जो बुल-हवस हैं फिर आते हैं तेरे कूचे में,
जो बे-ग़रज़ हैं वो दुनिया भी छोड़ जाते हैं।।

पलटते भी नहीं सरमस्तियों के सैल और फिर,
निशानियाँ लब-ए-दरिया भी छोड़ जाते हैं।।

अब इस से पेशरवान-ए-चमन को क्या मतलब,
चमन-नशीनों को जैसा भी छोड़ जाते हैं।।

बढ़ा भी लेते हैं रहगीर उन की ख़ाक से प्यार,
फिर अपनी ख़ाक को रुस्वा भी छोड़ जाते हैं।।

________महशर बदायुनी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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खिले हुए हैं फूल सितारे दरिया के उस पार।
अच्छे लोग बसे हैं सारे दरिया के उस पार।।

महकी रातें दोस्त हवाएँ पिछली शब का चाँद,
रह गए सब ख़ुश-ख़्वाब नज़ारे दरिया के उस पार।।

बस ये सोच के सरशारी है अब भी अपने लिए,
बहते हैं ख़ुशबू के धारे दरिया के उस पार।।

शाम को ज़िंदगी करने वाले रंग-बिरंगे फूल,
फूल वो सारे रह गए प्यारे दरिया के उस पार।।

यूँ लगता है जैसे अब भी रस्ता तकते हैं,
गए ज़माने रेत किनारे दरिया के उस पार।।

गूँजती है और लौट आती है अपनी ही आवाज़,
आख़िर कब तक कोई पुकारे दरिया के उस पार।।

दहकी हुई इक आग है 'साबिर' अपने सीने में,
जाते नहीं पर इस के शरारे दरिया के उस पार।।

______'साबिर' वसीम
 
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