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Shayari शायरी और गजल™

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए।
ये गुमाँ है कि हम जैसे घर आ गए।।

वो गया है तो ख़ुशियाँ भी सारी गईं,
शाख़-ए-दिल पर ख़िज़ाँ के समर आ गए।।

लाख चाहो मगर फिर वो रुकते नहीं,
जिन परिंदों के भी बाल-ओ-पर आ गए।।

हम तो रस्ते पे बैठे हैं ये सोच कर,
जो गए थे अगर लौट कर आ गए।।

उस से मिल के भी कब उस से मिल पाए हम,
बीच में ख़्वाहिशों के शजर आ गए।।

उस ने उस पार अपना बसेरा किया,
हम ने दरिया को छोड़ा इधर आ गए।।

एक दुश्मन से मिलने गए थे मगर,
इक मोहब्बत के ज़ेर-ए-असर आ गए।।

______'साबिर' वसीम
 

Mr. BERLIN

~ Kar Vida Alvidaaa......
Prime
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Yun samne Aakar mere na baitho hardam
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अज़ाब आए थे ऐसे कि फिर न घर से गए।
वो ज़िंदा लोग मिरे घर के जैसे मर से गए।।

हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोग,
न जाने क्या हुआ इक आन में बिखर से गए।।

बिछड़ने वालों का दुख हो तो सोच लेना यही,
कि इक नवा-ए-परेशाँ थे रहगुज़र से गए।।

हज़ार राह चले फिर वो रहगुज़र आई,
कि इक सफ़र में रहे और हर सफ़र से गए।।

कभी वो जिस्म हुआ और कभी वो रूह तमाम,
उसी के ख़्वाब थे आँखों में हम जिधर से गए।।

ये हाल हो गया आख़िर तिरी मोहब्बत में,
कि चाहते हैं तुझे और तिरी ख़बर से गए।।

मिरा ही रंग थे तो क्यूँ न बस रहे मुझ में,
मिरा ही ख़्वाब थे तो क्यूँ मिरी नज़र से गए।।

जो ज़ख़्म ज़ख़्म-ए-ज़बाँ भी है और नुमू भी है,
तो फिर ये वहम है कैसा कि हम हुनर से गए।।

_______उबैदुल्लाह अलीम
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह।
जी बहल जाएगा शब से तिरे गेसू की तरह।।

दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है,
फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह।।

मेरी आशुफ़्तगी-ए-शौक़ में इक हुस्न भी है,
तेरे आरिज़ पे मचलते हुए गेसू की तरह।।

अब तिरे हिज्र में लज़्ज़त न तिरे वस्ल में लुत्फ़,
इन दिनों ज़ीस्त है ठहरे हुए आँसू की तरह।।

ज़िंदगी की यही क़ीमत है कि अर्ज़ां हो जाओ,
नग़्मा-ए-दर्द लिए मौजा-ए-ख़ुश्बू की तरह।।

किस को मालूम नहीं कौन था वो शख़्स 'अलीम'
जिस की ख़ातिर रहे आवारा हम आहू की तरह।।


_______उबैदुल्लाह अलीम
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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गुज़रो न इस तरह कि तमाशा नहीं हूँ मैं।
समझो कि अब हूँ और दोबारा नहीं हूँ मैं।।

इक तब्अ' रंग रंग थी सो नज़्र-ए-गुल हुई,
अब ये कि अपने साथ भी रहता नहीं हूँ मैं।।

तुम ने भी मेरे साथ उठाए हैं दुख बहुत,
ख़ुश हूँ कि राह-ए-शौक़ में तन्हा नहीं हूँ मैं।।

पीछे न भाग वक़्त की ऐ ना-शनास धूप,
सायों के दरमियान हूँ साया नहीं हूँ मैं।।

जो कुछ भी हूँ मैं अपनी ही सूरत में हूँ 'अलीम'
'ग़ालिब' नहीं हूँ 'मीर'-ओ-'यगाना' नहीं हूँ मैं।।

_______उबैदुल्लाह अलीम
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे।
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे।।

शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं,
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे।।

वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था,
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे।।

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा,
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे।।

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का,
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे।।

मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे,
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे।।

______जौन एलिया
 

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दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-वफ़ा नहीं किया।
ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया।।

ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दार,
शहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया।।

जो भी हो तुम पे मो'तरिज़ उस को यही जवाब दो,
आप बहुत शरीफ़ हैं आप ने क्या नहीं किया।।

निस्बत इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़त को अज़ीज़,
उस ने तो कार-ए-जहल भी बे-उलमा नहीं किया।।

जिस को भी शैख़ ओ शाह ने हुक्म-ए-ख़ुदा दिया क़रार,
हम ने नहीं क्या वो काम हाँ ब-ख़ुदा नहीं किया।।

______जौन एलिया
 
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कभी जब मुद्दतों के बा'द उस का सामना होगा।
सिवाए पास आदाब-ए-तकल्लुफ़ और क्या होगा।।

यहाँ वो कौन है जो इंतिख़ाब-ए-ग़म पे क़ादिर हो,
जो मिल जाए वही ग़म दोस्तों का मुद्दआ' होगा।।

नवेद-ए-सर-ख़ुशी जब आएगी उस वक़्त तक शायद,
हमें ज़हर-ए-ग़म-ए-हस्ती गवारा हो चुका होगा।।

सलीब-ए-वक़्त पर मैं ने पुकारा था मोहब्बत को,
मिरी आवाज़ जिस ने भी सुनी होगी हँसा होगा।।

अभी इक शोर-ए-हा-ओ-हू सुना है सारबानों ने,
वो पागल क़ाफ़िले की ज़िद में पीछे रह गया होगा।।

हमारे शौक़ के आसूदा-ओ-ख़ुश-हाल होने तक,
तुम्हारे आरिज़-ओ-गेसू का सौदा हो चुका होगा।।

नवाएँ निकहतें आसूदा चेहरे दिल-नशीं रिश्ते,
मगर इक शख़्स इस माहौल में क्या सोचता होगा।।

हँसी आती है मुझ को मस्लहत के इन तक़ाज़ों पर,
कि अब इक अजनबी बन कर उसे पहचानना होगा।।

दलीलों से दवा का काम लेना सख़्त मुश्किल है,
मगर इस ग़म की ख़ातिर ये हुनर भी सीखना होगा।।

वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने,
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा।।

है निस्फ़-ए-शब वो दीवाना अभी तक घर नहीं आया,
किसी से चाँदनी रातों का क़िस्सा छिड़ गया होगा।।

सबा शिकवा है मुझ को उन दरीचों से दरीचों से,
दरीचों में तो दीमक के सिवा अब और क्या होगा।।


______जौन एलिया
 
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बात कोई उमीद की मुझ से नहीं कही गई।
सो मिरे ख़्वाब भी गए सो मेरी नींद भी गई।।

दिल का था एक मुद्दआ' जिस ने तबाह कर दिया,
दिल में थी एक ही तो बात वो जो फ़क़त सही गई।।

जानिए क्या तलाश थी 'जौन' मिरे वजूद में,
जिस को मैं ढूँढता गया जो मुझे ढूँढती गई।।

एक ख़ुशी का हाल है ख़ुश-सुख़नाँ के दरमियाँ,
इज़्ज़त-ए-शाएक़ीन-ए-ग़म थी जो रही-सही गई।।

बूद-ओ-नबूद की तमीज़ एक अज़ाब थी कि थी,
या'नी तमाम ज़िंदगी धुँद में डूबती गई।।

उस के जमाल का था दिन मेरा वजूद और फिर,
सुब्ह से धूप भी गई रात से चाँदनी गई।।

जब मैं था शहर ज़ात का था मिरा हर-नफ़स अज़ाब,
फिर मैं वहाँ का था जहाँ हालत-ए-ज़ात भी गई।।

गर्द-फ़शाँ हूँ दश्त में सीना-ज़नाँ हूँ शहर में,
थी जो सबा-ए-सम्त-ए-दिल जाने कहाँ चली गई।।

तुम ने बहुत शराब पी उस का सभी को दुख है 'जौन'
और जो दुख है वो ये है तुम को शराब पी गई।।

______जौन एलिया
 
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