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अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे।
सुकूत ऐसा नहीं है जो कुछ सुनाई न दे।।
जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी,
न सुनना चाहो तो दिल की सदा सुनाई न दे।।
जो देखना हो तो आईना-ख़ाना है ये सुकूत,
हो आँख बंद तो इक नक़्श भी दिखाई न दे।।
ये रूहें इस लिए चेहरों से ख़ुद को ढाँपे हैं,
मिले ज़मीर तो इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई न दे।।
कुछ ऐसे लोग भी तन्हा हुजूम में हैं छुपे,
कि ज़िंदगी उन्हें पहचान कर दुहाई न दे।।
हूँ अपने-आप से भी अजनबी ज़माने के साथ,
अब इतनी सख़्त सज़ा दिल की आश्नाई न दे।।
सभी के ज़ेहन हैं मक़रूज़ क्या क़दीम ओ जदीद,
ख़ुद अपना नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं दिखाई न दे।।
बहुत है फ़ुर्सत-ए-दीवानगी की हसरत भी,
'वहीद' वक़्त गर इज़्न-ए-ग़ज़ल-सराई न दे।।
______वहीद अख़्तर
सुकूत ऐसा नहीं है जो कुछ सुनाई न दे।।
जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी,
न सुनना चाहो तो दिल की सदा सुनाई न दे।।
जो देखना हो तो आईना-ख़ाना है ये सुकूत,
हो आँख बंद तो इक नक़्श भी दिखाई न दे।।
ये रूहें इस लिए चेहरों से ख़ुद को ढाँपे हैं,
मिले ज़मीर तो इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई न दे।।
कुछ ऐसे लोग भी तन्हा हुजूम में हैं छुपे,
कि ज़िंदगी उन्हें पहचान कर दुहाई न दे।।
हूँ अपने-आप से भी अजनबी ज़माने के साथ,
अब इतनी सख़्त सज़ा दिल की आश्नाई न दे।।
सभी के ज़ेहन हैं मक़रूज़ क्या क़दीम ओ जदीद,
ख़ुद अपना नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं दिखाई न दे।।
बहुत है फ़ुर्सत-ए-दीवानगी की हसरत भी,
'वहीद' वक़्त गर इज़्न-ए-ग़ज़ल-सराई न दे।।
______वहीद अख़्तर