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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

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चेहरा स्पष्ट दिखते ही वैशाली के पैरों तले से जमीन खिसक गई!!! अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था उसे.. !!! नालायक पीयूष.. ये क्या किया तूने? कब से लगा हुआ है इनके साथ? रेणुका और पीयूष?? ओह माय गॉड.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? साला ये पीयूष तो खिलाड़ी निकला.. हरामी.. मादरचोद.. एक साथ कितनों को लपेटें रखा है उसने!! कभी मेरे साथ.. कभी मौसम के साथ.. और अब रेणुका के साथ भी.. !!!

"कब से क्या देख रही हो वैशाली? रेणुका को आज से पहले देखा नही क्या तुमने?" हँसते हुए राजेश ने कहा.. वो कब से वैशाली को रेणुका को देखते हुए देख रहा था.. परदे के पीछे क्या खेल चल रहे थे उसका राजेश को कोई इल्म नही था

वैशाली को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसे रंगेहाथों किसी ने पकड़ लिया हो.. बात को घुमाते हुए उसने कहा "अरे सर.. मुझे रेणुका जी की साड़ी बहोत पसंद आ गई.. इसलिए कब से उन्हें देख रही हूँ.. कितनी खूबसूरत लगती है वो.. कोई नही कहेगा की उनकी उम्र ४० के करीब है.. तीस साल से जरा भी ज्यादा की नही लगती.. लगता है आपकी संगत का असर है " आँखें लड़ाते हुए उसने राजेश से कहा

"हाँ वो तो है.. हम दोनों खूब इन्जॉय करते है.. लेकिन बिजनेस के चलते काफी समय से मैं उसे वक्त नही दे पा रहा.. अब यहाँ आकर कुछ वक्त साथ बिताने का मौका मिला है.. उसी की चमक है रेणुका के चेहरे पर.. इसके लिए मुझे पीयूष का भी आभार प्रकट करना चाहिए.. उसके आने के बाद ही मुझे ऑफिस से थोड़ा सा वक्त मिल पा रहा है.. और वही वक्त मैं रेणुका के साथ बीताता हूँ.. वरना पिछले तीन सालों में हम मुश्किल से तीन महीने ही साथ रहे है.. आई एम प्राउड ऑफ माय वाइफ.. मेरे इतने बीजी शिड्यूल के बावजूद उसने मुझे कभी एक लबज़ तक नही कहा.. अगर पीयूष मुझे न मिला होता तो हमारा संसार टूटने की कगार पर ही था.. ये तो अच्छा हुआ की रेणुका की एक सहेली शीला जी की सिफारिस पर मैंने पीयूष को इंटरव्यू के लिए बुलाया और सिलेक्ट कर लिया.. पीयूष उनका पड़ोसी है.. " राजेश ने एक सांस में ही पूरी कथा सुना दी

वैशाली के दिमाग में विचारों की शृंखला सी चल पड़ी ...अच्छा.. मतलब मम्मी ने ही रेणुका जी से बात करके पीयूष को नौकरी पर लगवाया है.. लेकिन पीयूष और रेणुका का सेटिंग हुआ कैसे होगा? इस सवाल का जवाब ढूँढना बेहद जरूरी था..

वैशाली: "शीला जी मेरी मम्मी है.. और पीयूष हमारा पड़ोसी है.. हम बचपन में साथ खेलकर बड़े हुए है.. और मैं उसे बहोत अच्छी तरह जानती हूँ.. बहोत ही होनहार लड़का है पीयूष" यह कहते हुए वैशाली मन में सोच रही थी.. जिस तरह उस दिन रेत के ढेर में मुझे रगड़कर चोदा था.. पीयूष होनहार तो है ही..

वैशाली: "कितना वक्त हुआ पीयूष को आपकी कंपनी जॉइन कीये हुए?"

राजेश: "ज्यादा नही.. बस दो महीने हुए है.. पर इतने समय में ही उसने जिस तरह काम किया है.. काबिल-ए-तारीफ है.. लड़का बहोत आगे जाएगा.. !!"

वैशाली सोचने लगी.. कुछ तो बात थी.. सिर्फ दो महीनों में ही पीयूष और रेणुका इतने करीब कैसे आ गए? कहीं नौकरी लगने से पहले ही दोनों का चक्कर चल रहा होगा क्या? और रेणुका मम्मी को कैसे जानती है? कहीं उन दोनों के बीच तो कहीं.. नही नही.. मुझे मम्मी के बारे में इतना गंदा नही सोचना चाहिए..

वैशाली जब विचारों में खोई हुई थी तब सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते हुए वैशाली के स्तनों को तांक रहा था.. अभी कुछ वक्त पहले ही इन्हे दबाए थे.. आहाहा.. कितना मज़ा आया था.. गले में पहने मंगलसूत्र के नीचे दिख रही दो स्तनों के बीच की खाई देखकर ही अंदर हाथ डालने का मन होने लगा राजेश को.. !! कितनी नाजुक और मदमस्त है.. !! एक पुरुष को जो चाहिए वह सब था वैशाली में..

दोनों चुपचाप एक दूसरे को देख रहे थे.. वैशाली सोच रही थी.. मम्मी और रेणुका के बीच कैसे संबंध होंगे? पापा काफी समय से विदेश है और रेणुका का पति भी ज्यादातर बाहर ही रहता है.. ऐसी स्थिति में कहीं दोनों ने मिलकर पीयूष के साथ ही.. ?? बाप रे.. क्या ऐसा हो सकता है?? हो तो सकता है.. पापा के बगैर दो साल मम्मी बिना सेक्स के तो रही नही होगी.. मैं खुद तीन-चार दिन से अधिक बिना सेक्स के पागल सी हो जाती हूँ.. संजय के बिना मुझे भी कितनी तकलीफ होती है!! कितनी रातें मैंने करवटें बदल कर और उँगलियाँ घिस घिसकर काटी है.. लेकिन उंगली में वो मज़ा कहाँ!! पुरुष का वो खास अंग जब अंदर स्पर्श करता है तब जो रियल टच की अनुभूति होती है.. वो उंगली में कभी नही मिल सकती.. अगर थोड़े दिन बिना सेक्स के रहना पड़े तो मेरी यह दशा होती है.. तो मम्मी और रेणुका को तकलीफ होना भी जायज था.. आखिर वह दोनों भी इंसान है और उनकी अपनी जरूरतें होंगी ही.. और यही इच्छा जब बेकाबू बनी होगी तभी रेणुका और पीयूष का संबंध बना होगा.. पर इन सब में मम्मी बीच में कहाँ से आई? क्या वो भी पीयूष के साथ करती होगी? हो सकता है.. शायद कोई ओर मर्द भी हो मम्मी के जीवन में.. जितना सोचती जा रही थी उतना ही उलझ रही थी वैशाली..

राजेश: "एक बात पूछूँ वैशाली?"

वैशाली: "हाँ पूछिए न, सर.. !!" पीयूष, रेणुका और मम्मी को अपने दिमाग से निकालकर सामने बैठे राजेश पर उसने ध्यान केंद्रित किया

"अभी थोड़ी देर पहले मैंने तुझे काफी रीक्वेस्ट की थी.. किस और स्पर्श के लिए.. तब तो तुमने साफ साफ मना कर दिया था.. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो तुमने मुझे टॉइलेट के अंदर खींच लिया? इस बात का ताज्जुब हो रहा है मुझे"

"आपकी बात और सोच बिल्कुल सही है सर.. मैंने पहले तो आपको मना किया था.. पर जैसे जैसे हम बात करते गए.. मुझे आपकी कंपनी में बहोत मज़ा आने लगा.. और माउंट आबू के इस रंगीन आजाद माहोल में.. बियर के नशे में.. मैंने कंट्रोल खो दिया सर.. !!"

"अच्छा.. मतलब तुम कंट्रोल खोकर मुझसे लिपट जाओ तो कोई प्रॉब्लेम नही.. और अगर मैं कंट्रोल खो कर सिर्फ एक किस मांग लूँ तो मेरी प्रपोज़ल रिजेक्ट?? ऐसा क्यों?"

वैशाली हंस पड़ी "सर, जो आउट ऑफ कंट्रोल होते है वो कभी प्रपोज नही करते.. सीधा पकड़ ही लेते है.. !! आपने प्रपोज किया क्यों की आप कंट्रोल में थे.. अगर आप आउट ऑफ कंट्रोल होते तो सीधा पकड़कर किस कर लेते.. पूछते नही !!"

"वो तो मैं कर ही सकता था.. पर फिर तुम मेरे बारे में क्या सोचती.. !! यहाँ इस वक्त तुम मेरी मेहमान हो.. तुम्हारी मर्जी के खिलाफ मैं कैसे कुछ कर सकता था?"

वैशाली: "बात तो आपकी सोलह आने सच है सर.. देखिए.. अगर हम चार धाम की यात्रा के दौरान ऐसा कुछ करते तो गलत होता.. पर यहाँ माउंट आबू का वातावरण ही अलग है.. रात का माहोल.. हाथ में बियर का ग्लास.. और ऐसे उत्तेजक कपड़ों में लड़कियां आस पास मंडरा रही हो.. तब थोड़ा सा ऊपर नीचे हो जाए तो हर किसी को थोड़ा समझना चाहिए.. अब ईसे देखो.. पीयूष की वाइफ कविता को.. जिस तरह के कपड़े उसने पहने है.. देखकर कितने मर्दों को इरेक्शन हो गया होगा.. !!"

राजेश: "कहीं तुम्हारे कहने का मतलब ये तो नही है न की ऐसा कुछ न करके मैंने गलती कर दी?? अगर ऐसा है तो मैं अपनी उस गलती को अभी सुधार लेने को तैयार हूँ"

"मतलब??" वैशाली रोमांचित हो गई राजेश की बात सुनकर.. "अरे मैं तो बस मज़ाक कर रही हूँ.. " कहते हुए उसने बात को वहीं रोकने की कोशिश की.. पर राजेश इस बात का अंत लाने को तैयार नही था

"वैशाली, तेरी छाती पर ये जो मंगलसूत्र के बीच की लकीर दिख रही है ना.. वहाँ किस करने का बहोत मन कर रहा है.. अब अगर मैं इजाजत माँगता हूँ तो तुम कहोगी की मैं कंट्रोल में हूँ.. और अगर सीधे सीधे किस कर लेता हूँ तो तुम्हें लगेगा की मैंने तुमसे जबरदस्ती की.. अब बोलो.. मैं क्या करूँ?"

वैशाली एकदम ही शरमा गई.. आसपास करीब ४० लोग थे और उसमे से काफी लोग पहचान के भी थे.. अगर बियर के नशे में राजेश ने सब के बीच कोई उलटी सीधी हरकत कर दी तो.. बाप रे!!

"सर, आप भी ना.. बड़े वो हो.. !!"

राजेश: "क्यों?? मैंने पूछकर कुछ गलत किया क्या?"

वैशाली: "अरे नही नही.. मेरे कहने का ये मतलब था की पहले हमने जो कुछ भी किया वो चार दीवारों के बीच सब की नज़रों से दूर किया था.. और अभी आप मुझे सब के सामने छाती पर किस करना चाहते हो.. अगर रेणुका मैडम ने देख लिया तो आपको माउंट के ऊपर से ही धक्का दे देगी.. अगर आसपास कोई नही होता तो बात अलग थी.. "

"अच्छा? ये बात है? तो चलो वापिस टॉइलेट में चलते है" राजेश ने वैशाली को चोंका दिया..

वैशाली सोच में पड़ गई.. अब क्या करें? बार बार टॉइलेट में थोड़े ही जा सकते है? कोई देख लेगा तो शक हो जाएगा..

"सोच क्या रही हो? ये लो.. एक दो दम लगाओ.. तो कुछ दिमाग काम करेगा" सिगरेट देते हुए राजेश ने कहा

वैशाली ने एक दम लगाते हुए कहा "सर, अभी थोड़ी देर पहले ही आपने खोलकर दबाए है.. चूसे भी है.. अभी एक छोटी सी लकीर के लिए इतनी जिद क्यों कर रहे हो? भरपेट खाना खा लेने के बाद.. सौंफ और मिस्री के पीछे पड़े हो.. !!"

"बात तो तुम्हारी सही है.. लेकिन कभी कभी खुली छाती देखकर भी इतनी उत्तेजना नही होती जो छोटी सी लकीर को देखकर होती है"

वैशाली ने आसपास देखा.. सब अपनी मस्ती में खोए हुए थे.. उसने टेबल पर झुककर अपने दोनों स्तनों को टीका दिया.. उसके साथ ही उसके स्तन उभरकर बाहर निकले.. और बीच की खाई काफी गहरी नजर आने लगी.. यौवन के शिखरों जैसे स्तनों को दिखाकर वैशाली ने कहा "फिलहाल तो आप बस देखकर ही काम चला लीजिए.. अगर मौका मिलें तो मैं खुद ही आपसे दबवा लूँगी.. ठीक है!! असल में.. मैं खुद भी दबवाना चाहती हूँ"

वैशाली के उभरते उरोजों को देखकर राजेश बेकाबू हो गया.. और वैशाली की कामुक बातों ने उसे ओर उत्तेजित कर दिया

राजेश: "वैशाली, मुझसे तो अब रहा नही जाता.. कुछ भी कर.. पर मुझे इन्हे चूसने दे प्लीज.. आह्ह.. थोड़ी और पास आ तो मैं इन्हें छु सकूँ.. दूर क्यों भाग रही हो यार?? या तो फिर चल मेरे साथ टॉइलेट में.. " राजेश अपना आपा खो रहा था.. और साथ ही साथ उसकी बातें सुनकर वैशाली की पुच्ची भी फुदक रही थी..

"नही सर.. आप प्लीज समझने की कोशिश कीजिए.. ये तो मैंने आपको शांत करने के लिए दिखाए.. बाकी आप देख ही सकते है.. आसपास कितने सारे लोग है!!"

"मैं तेरी बात समझ रहा हूँ.. पर तू भी जरा टेबल के नीचे जाकर मेरी हालत देख?" राजेश ने कहा

जानबूझ कर हाथ से चम्मच गिराते हुए वैशाली ने टेबल के नीचे देखा "अरे बाप रे!! ये क्या कर रहे है आप सर? अंदर रख दीजिए.. किसी ने देख लिया तो आफत आ जाएगी.. " टेबल के नीचे राजेश ने अपने पेंट की चैन खोलकर अपना फनफनाता हथियार हाथ में पकड़ा हुआ था.. वैशाली का चेहरा शर्म और उत्तेजना से लाल हो गया.. वो भी गरम हो गई.. खुलेआम लंड देखने का यह पहला मौका था वैशाली के लिए..

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वैशाली ने आसपास नजर डाली.. कहीं कोई सलामत जगह मिल जाएँ तो चुदाई का दूसरा राउंड कर लेने के लिए.. पर हॉल के अंदर ऐसी कोई जगह नही दिखी जहां वो राजेश के लंड और अपनी चूत को ठंडी कर सकें..

"प्लीज वैशाली.. अगर तुम मुझे अपनी क्लीवेज पर किस नही करने दोगी तो ये बैठेगा ही नही.. और जब तक ये बैठेगा नही तब तक मैं उसे पेंट के अंदर नही डाल पाऊँगा" राजेश ने विनती की

खुले वातावरण में लंड देखकर वैशाली की नियत भी डगमगा गई थी पर यहाँ पर कुछ भी करना मुमकिन नही था.. क्या करूँ? एक तरफ चूत में हो रही खुजली.. तो दूसरी तरफ प्राइवसी की तकलीफ.. खुले में थोड़े ही ये सब हो सकता है?

अचानक वैशाली को एक आइडिया सुझा.. हॉल के इस भाग की दीवार पर.. करीब चार फुट ऊपर एक कांच का कपबोर्ड बना था.. जिसके अंदर किताबें रखी थी

वैशाली: "सर, एक काम करते है.. मैं उस कपबोर्ड से किताब लेने खड़ी हो जाती हूँ.. सब लोगों की तरह मेरी पीठ होगी।। जब तक मैं किताब को निकालूँ उस दौरान आपको जो करना है कर लीजिए.. ठीक है!! पर आस पास देखते रहना.. और कहीं कुछ रिस्क लगे तो मुझे इशारा कर देना.." कहते हुए वैशाली ने खड़े होकर आसपास एक नजर दौड़ाई.. किसी की नजर उन पर नही थी.. पर खड़े होने के कारण उसके उभरे हुए स्तन वापिस ब्रा के अंदर चले गए.. लेकिन राजेश अब पीछे हटने के मूड में नही था.. जैसे ही वैशाली कपबोर्ड का कांच का दरवाजा खोलने के लिए झुकी.. उसके स्तन राजेश के मुंह के बिल्कुल ही करीब आ गए.. राजेश ने वैशाली की गदराई क्लीवेज पर अपनी जीभ फेर दी.. और एक स्तन भी दबा लिया.. वैशाली किताब को ढूँढने में वक्त लगा रही थी.. और काफी देर तक वह ढूंढती रही और राजेश का ज्यादा से ज्यादा मौका देती रही.. दोनों पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे.. ऐसी हरकतों से कभी आग नही बुझती.. उल्टा और भड़क जाती है.. राजेश ने हिम्मत करके वैशाली के टॉप में हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल लिया.. वैशाली को भी राजेश का लंड हाथ में पकड़ने की तीव्र इच्छा हो रही थी

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"कोई देख तो नही रहा??" वैशाली ने एकदम धीमी आवाज में पूछा.. "अगर कोई देख रहा हो तो मैं एक किताब बाहर निकालूँ.. वरना ऐसे ही बैठ जाती हूँ"

"नही, कोई नही देख रहा.. तुम बैठ जाओ"

वैशाली ने कपबोर्ड बंद किया और बैठ गई..

"अब मिल गई आपको ठंडक?" वैशाली ने कहा

"हाँ यार.. वैशाली.. तेरे जिस्म में कुछ तो ऐसी खास बात है.. किसी स्त्री को देखकर इतना उत्तेजित मैं कभी नही हुआ पहले" राजेश के हाथ की हलचल देखते हुए वैशाली को साफ पता चल रहा था की वो टेबल की नीचे मूठ लगा रहे थे.. उसके स्तनों को देखकर !!

"यार वैशाली.. वापिस टेबल पर झुक जा.. तेरे बॉल छलक कर बाहर दिखेंगे तो मेरा जल्दी छूट जाएगा.. !!" राजेश बेचैन चेहरे से अपने लंड की ओर देख रहा था

"नही सर.. अभी आप छोड़ मत देना.. मुझे भी खेलना है उसके साथ.. आपका काम तो हो गया.. अब मेरी बारी.. " कहते हुए वो टेबल के नीचे घुस गई और एक ही सेकंड में राजेश का लंड उसके मुंह में था.. !! फटाफट उसने सात आठ बार लंड को मुंह में अंदर बाहर किया और तुरंत वापिस चैर पर बैठ गई.. "बस सर.. अब इससे ज्यादा कुछ नही हो सकता.. आप अपना पानी निकाल लो.. और मैं अपना निकालती हूँ.. " कहते ही वैशाली ने अपने स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर चुत को रगड़ना शुरू कर दिया.. अचानक वैशाली को अपनी कलाई पर कुछ गरम एहसास हुआ.. पर अपनी चूत रगड़ते हुए उसे ये देखने का समय नही था.. दो तीन मिनटों तक चूत की भरसक रगड़ाई करने के बाद.. वो भारी सांसें लेते हुए झड़ गई.. अब उसने अपनी कलाई पर नजर डाली.. उस पर राजेश का वीर्य लगा हुआ था.. हँसते हुए वैशाली ने उन बूंदों को अपनी कलाई से चाट लीया.. और फिर अपनी जिन उंगलियों से उसने अपनी चुत को रगड़ा था.. उन गीली उंगलियों को राजेश के बियर भरे ग्लास में डुबोते हुए बोली "अब बियर का असली स्वाद मिलेगा.. ये आज का आखिरी ग्लास मेरा..!!"


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"हाँ यार.. मुझे भी कुछ ज्यादा ही चढ़ गई आज.. " वैशाली की बात से सहमत होकर राजेश ने कहा

दोनों ने बियर का ग्लास खतम किया और सिगरेट सुलगा कर पार्टी में जुड़ गए.. सब लोग नशे में धुत थे और मस्ती से झूम रहे थे.. डांस करते हुए सब जान बूझकर कविता के जिस्म और बोब्बों से टकरा रहे थे.. कविता भी शायद बियर के नशे में थी.. वो भी पागलों की तरह झूम रही थी.. पीयूष मौसम के कंधे पर हाथ रखकर कुछ गुफ्तगू कर रहा था.. और पिंटू फाल्गुनी को कंपनी दे रहा था.. पूरी पार्टी में सिर्फ पीयूष, मौसम और फाल्गुनी ही ऐसे थे जिन्हों ने शराब नही पी थी..

रेणुका की बर्थडे पार्टी और आबू की ट्रिप अपने अंत की ओर बढ़ रही थी.. पीयूष अभी अभी रेणुका को चोदकर आया था.. फिर भी मौसम के कंधों पर हाथ रखकर बार बार उसके उभारों को छु रहा था.. वैशाली ये सब देखकर गुस्से से आग बबूला हो रही थी.. पर वो कर भी क्या कर सकती थी!! हाँ.. कविता जरूर कुछ कर सकती थी.. लेकिन उसे फिलहाल पीयूष की पड़ी नही थी.. और अपनी मस्ती में ही मस्त थी.. पीयूष का हाथ बार बार मौसम के उभारों पर होते हुए उसकी निप्पल पर चले जाते तब मौसम उसका हाथ हटा देती..

लेकिन पीयूष के सर पर तो हवस का भूत सवार था.. थोड़ी देर शांत रहकर वह वापिस अपनी हरकतें शुरू कर देता.. आखिर बगल में मौसम जैसी कच्ची कली खड़ी हो.. और अपने आकर्षक उभार दिखा रही हो.. और सब कुछ करने को राजी भी हो.. तब कोई कैसे खुद को कंट्रोल करें!! गलती पीयूष की नही थी.. पर मौसम की जवानी ही कुछ ऐसी कातिल थी.. की उसके चक्कर में पीयूष सब को भूल चुका था.. वैशाली, शीला, रेणुका.. अरे अपनी कविता को भी भूल चुका था.. सौन्दर्य का जादू अक्सर जानलेवा होता है.. मौसम तो अपने जिस्म पर पुरुष का स्पर्श पाकर अपनी ट्रिप को यादगार बना चुकी थी.. जीवन की पहली किस भी उसे यही मिली थी.. वो जितना पीयूष से दूर जाने की कोशिश करती.. उतना ही ज्यादा आकर्षित हो रही थी.. अपने आप से वो बार बार पूछ रही थी.. वो क्या बात थी जो उसे पीयूष की ओर खींचती जा रही थी? इतनी कोशिशों के बावजूद भी? अपनी बहन के पति के साथ ये सब करने का परिणाम कितना भयानक हो सकता है ये जानने के बावजूद भी वह खुद को क्यों नही रोक पा रही थी इस बात का उसे भी आश्चर्य हो रहा था.. मौसम को इन सब में मज़ा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था..

मौसम के कंधों पर हाथ रखे हुए पीयूष रेणुका को कुछ इशारे कर रहा था.. ये वैशाली ने देख लिया.. वैशाली पीयूष के पास आकर गाना गुनगुनाने लगी.. "कहीं पे निगाहें.. कहीं पे निशाना" वैशाली के कदम लड़खड़ा रहे थे.. जैसे मौसम और पीयूष के बीच हड्डी बनने के लीये आई हो.. वैसे वैशाली ने पीयूष के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "क्या यार पीयूष? तू तो कविता को भूल ही गया!! जब से आया है तब से मौसम के साथ ही घूम रहा है!!"

मौसम का मुंह यह सुनकर इतना सा हो गया.. जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो.. उसने झटके से अपने कंधे से पीयूष का हाथ हटा दिया.. और शरमाकर एक कोने में खड़ी हो गई..

वैशाली ने ये देखकर हँसते हुए कहा "अरे अरे.. टेक इट ईजी.. मैं तो बस मज़ाक कर रही थी.. " वैशाली को जो कहना था वो कह दिया और फिर बात को वापिस घुमा भी दिया.. स्त्रीओं को इस कला में महारथ हासिल होती है.. लेकिन मौसम अब डर गई थी.. झूठ-मूठ हँसते हुए उसने वैशाली से कहा "इट्स ओके.. मुझे बुरा नही लगा.." तभी नशे में झूमती हुई कविता वहाँ आ पहुंची.. उसके कपड़े देखकर पीयूष को शर्म आ रही थी.. पर अभी सब के सामने उसे कुछ भी कह पाना मुमकिन नही था.. नशे की हालत में कविता बात का बतंगड़ बना देती.. पीयूष सब के बीच कोई तमाशा खड़ा करना नही चाहता था.. ऐसी कोई हरकत करके वो रेणुका को भी गंवाना नही चाहता था.. उसने मन में गांठ बांध ली थी.. कविता को जो कुछ भी कहना है वो घर पर जाकर कहेगा..

मौसम और वैशाली के बीच खड़े पीयूष को देखकर कविता ने उसकी उंगली की "अरे वाह पीयूष.. तेरे तो चारों तरफ गोपियाँ मंडरा रही है!! बाकी है तू पक्का रोमियो.. मैं ये सोच रही थी की तेरी जोड़ी किसके साथ ज्यादा जाचेगी? वैशाली के साथ या मौसम के साथ? किससे पूछूँ? एक काम करते है.. रेणुका जी से ही पूछ लेते है.. चल.. !!"

वैशाली और मौसम को सिट्टी पीट्टी गूम हो गई.. बाप रे!! आज कविता जरूर तमाशा खड़ा करेगी.. बात को घुमाते हुए वैशाली ने कहा

वैशाली: "पीयूष की जोड़ी तो सिर्फ कविता के साथ ही अच्छी लगती है.. आखिर दोनों पति पत्नी है.. पीयूष.. तू कविता के साथ खड़ा हो जा.. मैं अपने मोबाइल में तुम दोनों की तस्वीर लेकर दिखाती हूँ.. कितने अच्छे लगते हो साथ में तुम दोनों.. !! अगर तुम्हारी जोड़ी अच्छी नही लगी तो फिर हम रेणुका जी से पूछेंगे.. ठीक है?" नशे के असर में लड़खड़ाती हुई कविता ने कपड़े तो उत्तेजक पहने ही थे.. पर नाच नाचकर वह कपड़े अस्तव्यस्त भी हो गए थे.. टॉप के साइड से उसकी आधे से ज्यादा चूचियाँ नजर आ रही थी.. उसके कपड़ों से सुंदरता का कम और नग्नता का प्रदर्शन ज्यादा हो रहा था.. ऊपर से उसमें मिला शराब का नशा.. नशा चढ़ते ही कविता बेफिक्र होकर किसी की परवाह कीये बिना झूम रही थी.. और आस पास मंडराते भँवरे.. मौका मिलते ही इस फूल का रस चूसने में कसर नही छोड़ते थे..

पीयूष को कविता के बगल में खड़ा रखकर वैशाली ने जबरदस्ती फ़ोटो खींच ली.. और सब को दिखाने लगी.. अब देखने वाले ये तो नही कहेंगे की जोड़ी अच्छी नही लगती.. !! सब ने यही कहा.. की जोड़ी अच्छी है और पीयूष के मुकाबले कविता ज्यादा सुंदर लगती है.. अपने गुणगान और पीयूष का अपमान सुनकर बड़े ही आत्मसंतोष के साथ खुश होकर कविता पहले से भी ज्यादा उन्मुक्त होकर महफ़िल के मजे लेने लगी.. पीयूष ने जो बर्ताव उसके साथ किया था उसका दिल से बदला ले लिया था कविता ने और इसी बात का जश्न मना रही थी वो.. !!!

कविता के जाते ही मौसम और वैशाली ने चैन की सांस ली..

"आज बहोत बातें कर रही थी तू राजेश सर के साथ?" पीयूष ने पूछताछ शुरू कर दी वैशाली से

"हाँ पीयूष.. मैं अकेली थी.. तू तो मौसम के साथ ही चिपका हुआ था.. कविता तो अपनी मस्ती में थी.. और तुझे मौसम के अलावा और कोई दिख ही नही रहा.. मैं अकेली बोर हो रही थी.. अच्छा हुआ की राजेश सर ने अपना समय दिया.. और मेरी उदासी कम हुई.. बाकी जिसके साथ मस्ती करने के इरादे से मैं यहाँ आई थी.. उसे तो मेरी पड़ी ही नही है!!"


"अरे यार वैशाली.. तुझे बुरा लगा हो तो आई एम सॉरी.. मैं सामने से तुझे फोर्स करके यहाँ लाया था. तू बोर ना हो ये देखने की जिम्मेदारी मेरी है.. पर मौसम और फाल्गुनी थे इसलिए मैंने सोचा की तुझे कंपनी मिल जाएगी.. बाकी तू सोच रही है ऐसा कुछ नही है.. मेरा ध्यान हमेशा से तेरे ऊपर था.. "
बहुत ही गरमागरम कामुक और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Sanju@

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माउंट आबू पहुंचते ही वहाँ के मदहोश वातावरण को देखकर सब रोमेन्टीक होने लगे.. वैशाली बार बार पीयूष की ओर देख रही थी.. वो सोच रही थी की एक बार अगर आधा घंटा पीयूष के साथ कहीं बाहर निकलने का मौका मिले तो मज़ा आ जाए.. जी भर कर पीयूष के साथ मजे करूंगी अगर ऐसा हुआ तो.. उस दिन रेत के ढेर में पीयूष ने जिस तरह उसके जिस्म को रौंदा था.. आह.. याद करते ही मज़ा आ गया.. वातावरण और विचारों के संगम से वैशाली की चुत में झटके लगने लगे थे.. दूसरी तरफ मौसम के कडक स्तनों को देखकर ठंडी आहें भर रही थी वैशाली.. अभी तक किसी मर्द का हाथ नहीं लगा है.. इसलिए मस्त टाइट है.. एक बार किसी का हाथ लगते ही आकार बिगड़ जाएगा.. वैशाली अपने खुद का भूतकाल याद करने लगी..

शुरुआत के समय में जब संजय के साथ सब ठीक चल रहा था तब संजय को उसके स्तन कितने पसंद थे!! जितनी बार वो दोनों अकेले पड़ते थे तब सब से पहले संजय उसके स्तन चूसता था.. कभी कभी किचन में वो काम कर रही हो.. सास ससुर बाहर बैठे हो.. तब भी संजय चुपके से आकर.. उसका टॉप ऊपर करके उसके बबले चूसकर भाग जाता.. वैशाली लाख मना करती पर वो मानता ही नहीं था.. वैशाली सोचती की उसका पति उसे कितना प्यार करता था.. !!! जब कोई अपने पीछे पागल हो तो कितना अच्छा लगता है.. !! वैसा ही वैशाली को महसूस होता था.. तकलीफ तो तब होती थी जब घर पर मेहमान आए हुए हो.. पूरा घर भरा हुआ हो तब संजय को अपनी चुची चुसवा पाना बेहद कठिन हो जाता था.. पर संजय इतना जिद्दी था की उसके बॉल चूसे बगैर हटता ही नहीं था..एक बार तो ज्यादा मेहमान होने की वजह से संजय-वैशाली के बेडरूम में भी ४ लोग सोये हुए थे.. तब भी संजय चादर के नीचे घुसकर वैशाली की निप्पलों को चूसने के बाद ही सोता था.. अपने दांत निप्पल में ऐसे गाड़ देता की दूसरे दिन वैशाली को दर्द होता रहता.. कितने सुहाने दिन थे वोह..!!!


पर वो वक्त जल्दी ही खतम हो गया.. संजय अपनी असलियत पर आ गया.. और फिर जो दुख के दिन शुरू हुए वो अब तक चल रहे थे.. संजय की याद आते ही वैशाली के चेहरे पर विषाद के भाव आ गए

कविता भी पीयूष को देख रही थी.. पर पीयूष जैसे उसे जानता ही न हो वैसे खिड़की से बाहर.. पहाड़ों के टेढ़े मेढ़े रास्तों को.. और दूर दिख रहे उत्तुंग शिखरों को देखने में व्यस्त था.. ये मर्द हमारे दिल का दर्द कब समझेंगे? पीयूष हमेशा अपने एंगल से ही सोचता है.. कभी उसने मेरे दृष्टिकोण को समझने का प्रयास ही नहीं किया.. मुझे इसीलिए तो पिंटू इतना पसंद है.. पिंटू की बात ही निराली थी.. जब साथ पढ़ाई करते थे तब एक बार पिंटू के मुंह से प्याज की बदबू आ रही थी.. कविता ने उसे टोका.. उसके बाद पिंटू ने कभी प्याज नहीं खाया.. इतना महत्व देता है वो मुझे.. सारे मर्द अगर ऐसे ही हमारी भावनाओं को समझे तो औरत अपना सबकुछ समर्पित कर दे उसे..

ऐसा नहीं था की कविता को पीयूष से प्यार नहीं था.. बस ऐसी ही छोटी छोटी बातों को लेकर असंतोष था.. पर ऐसी बातों पर अगर वक्त पर ध्यान न दिया जाएँ तो आगे जाकर यही बातें भयानक स्वरूप धारण कर लेती है..

माउंट आबू के नज़ारों का अगर कोई सब से ज्यादा आनंद ले रहा था तो वोह थे.. राजेश, रेणुका, फाल्गुनी और सब की आँखों का तारा.. मौसम !!

मौसम के कच्चे कुँवारे बदन को देखकर राजेश का लंड पेंट के अंदर.. सेंसेक्स और निफ्टी की तरह ऊपर उठ रहा था.. मौसम के गालों के डिम्पल देखकर राजेश की हवस जलने लगती थी.. गोरी सुंदर मौसम के टाइट ड्रेस के अंदर छुपे हुए अमरूद साइज़ के स्तन देखकर राजेश के पूरे बदन में घंटियाँ बजने लगती थी.. वो सोच रहा था "कुछ भी करके ईसे पटाना होगा.. " मन ही मन.. मौसम के जोबन को लूटने के ख्वाब देखते हुए राजेश ने रेणुका से पूछा

राजेश: "ये मौसम कहाँ तक पढ़ी है? अगर उसे कंप्युटर चलाना आता हो हमारी ऑफिस में एक जगह खाली है.. तू पूछकर देखना अगर वह नौकरी करना चाहती हो तो "

रेणुका के दिमाग की बत्ती जल गई.. औरतों के पास एक खास छठी इंद्रिय होती है.. जो उन्हे अपने आसपास के मर्दों की नजर के बारे में आगाह कर देती है.. ५० फिट दूर खड़े पुरुष की नजर कहाँ है वह औरतें एक पल में जान लेती है.. कुदरत ने जब औरतों को रूप दिया तो उसको संभालने के लिए ये शक्ति भी साथ ही दी..

रेणुका: "तुम चिंता मत करो राजेश.. मैं बात कर लूँगी.. तू एक बार पीयूष को पूछ ले.. मैं मौसम से डाइरेक्ट बात करती हूँ" रेणुका ने एक कुटिल मुस्कान के साथ राजेश को कहा.. राजेश को इस मुस्कुराहट का अर्थ समझ में नहीं आया.. वैसे मर्दों को औरतों की आधी बातें समझ में ही कहाँ आती है !!!

इन सब बातों से बेखबर पीयूष.. खिड़की से बाहर नजर आते अप्रतिम कुदरती नज़ारों का आनंद ले रहा था.. चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़.. हरे घने जंगल.. पतली सी घुमावदार सड़क.. बादलों से बातें करते हुए शिखर.. आहाहाहा.. देखकर ही मन प्रफुल्लित हो जाता था.. नशा सा हो जाता था देखकर.. अगर इंसान को पीना आता हो.. तो ऐसी कौन सी चीज है जो शराब नहीं है.. !!!

"दोस्तों, दस मिनट में हम माउंट के ऊपर पहुँच जाएंगे.. आपकी पर्सनल शॉपिंग के अलावा जो भी खर्च होगा वो मैडम ही देगी.. इन्जॉय योरसेल्फ पर थोड़ा कंट्रोल भी रखना" हँसते हुए राजेश ने घोषणा की..राजेश का इशारा किस तरफ था वो सब समझ गए.. गुजरात से अधिकतर लोग माउंट आबू शराब पीने ही आते है.. पीने वालों के लिए यह जगह स्वर्ग से कम नहीं है.. सब का दिल कर रहा था की कब होटल पहुंचे और शराब की महफ़िल जमाए.. राजेश की घोषणा का सबने तालियों से स्वागत किया.. साथ ही सब अपना समान इकठ्ठा करने लगे

जैसे ही बस रुकी.. सब धीरे धीरे नीचे उतरे.. पहाड़ की तलहटी पर एक सुंदर आलीशान होटल थी.. माउंट आबू का वातावरण वाकई बेहद उत्तेजक था.. फेशनेबल छोटे छोटे कपड़े पहनी लड़कियां.. अपने टाइट टॉप के ऊपर से आधे स्तन बाहर दिखाती हुई चले जा रही थी.. कुछ फिरंगी टुरिस्ट भी नजर आ रहे थे.. पास ही से गुजर रही एक फिरंगी लड़की की लो-नेक टॉप से नजर आ रही क्लीवेज को देखकर अपना लंड खुजा रहे पिंटू को गुस्से देख रही थी कविता.. वह सोच रही थी.. इन मर्दों को सारी औरतों की छातियों में ऐसा क्या दिख जाता है जो वहीं देखते रहते है.. !! सब के सब साले नालायक!!

रेणुका के कहने पर, मौसम और फाल्गुनी को एक अलग कमरा दे दिया गया.. होटल के तीसरे माले पर सुंदर बालकनी वाला कमरा उन दोनों को देखते ही पसंद आ गया.. फाल्गुनी ने इंटरकॉम पर फोन लगाकर एक कडक कॉफी का ऑर्डर दिया.. मौसम ने अपने लिए चाय बोली.. पहले तो दोनों ने अपने तंग कपड़े उतार दिए और आरामदायक टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिए.. बाहर बालकनी में खड़े रहकर बादलों को गुजरते देखा जा सकता था उतनी ऊंचाई पर थी होटल.. दोनों लड़कियां खुश होकर बादलों संग खेलने लगी..

माउंट आबू का वातावरण इतना अद्भुत है की अगर कोई बीमार यहाँ आकर रहें तो कुछ ही दिनों में ठीक होकर वापिस लौटे.. बालकनी में टेबल पर पैर जमाकर दोनों सहेलियाँ चाय और कॉफी की चुस्की लेने लगी.. मौसम के माउंट आबू पर प्रवेश करते ही जैसे पूरे पर्वत की सुंदरता दोगुनी हो गई थी.. उसे गोरे गालों में पड़ते खड्डों के सामने नक्की लेक की सुंदरता भी फीकी लग रही थी.. उसके मस्त स्तनों के आगे पहाड़ों की उछाइयाँ भी कम पड़ती नजर आ रही थी

बालकनी में बैठे दोनों कुंवारी अल्हड़ लड़कियां.. दुनियादारी से बेफिक्र होकर मजे लूट रही थी.. फाल्गुनी अक्सर शांत रहती.. पर अकेले में अपनी सहेली के साथ वह भी खुल गई थी.. उसके चेहरे पर निर्दोषता के साथ साथ एक अजीब सा डर और घबराहट छुपे हुए थे..

दोनों सहेलियाँ अपनी दुनिया में मस्त थी तभी वहाँ पीयूष आया.. पीयूष ने मौसम का चाय का कप उठाया और पीने लगा..

पीयूष: "क्यों साली साहेबा!! सब कुछ ठीक है ना!!"

मौसम: "अरे जीजू आप मेरी झूठी चाय क्यों पी रहे हो.. कहते है की किसी का झूठा खाएं या पिए तो उनके जैसे बन जाते है"

पीयूष: "हा हा हा.. मौसम अगर मैं तेरे जैसा बन गया तो सब से पहले राजेश सर को ही पागल कर दूंगा.. जिससे की मेरी तनख्वाह बढ़ जाए.. "

फाल्गुनी ने हँसते हुए कहा.. "इसका मतलब ये हुआ की मौसम ने राजेश सर को पागल बना दिया है.. सही कहा न मैंने?"

पीयूष: "हाँ यार.. बस में वो मौसम को ही देखें जा रहे थे.. मेरे खयाल से वो मौसम पर लाइन मार रहे थे"

मौसम: "क्या जीजू आप भी!! कुछ भी उल्टा सीधा बोलते हो.. " कृत्रिम क्रोध के साथ मौसम ने कहा

फाल्गुनी बैठे बैठे साली और बहनोई की शरारती बातों का मज़ा ले रही थी..

"क्या बात है पीयूष? अपनी साली को मेरे खिलाफ क्यों भड़का रहा है?" राजेश सर की एंट्री हुई..

पीयूष: "अरे सर.. आइए आइए.. हम आप की ही बात कर रहे थे.. मेरी साली तो आपकी तारीफ करते हुए थक ही नहीं रही.. कहती है की जीजू आपके बॉस कितने अच्छे इंसान है.. स्टाफ का कितना खयाल रखते है !!"

राजेश: "तुम चाहो तो.. मतलब अगर मिस मौसम चाहे तो वो भी इस स्टाफ का हिस्सा बन सकती है.. शर्त सिर्फ इतनी है की उसे कंप्युटर चलना आना चाहिए.. हमारी ऑफिस में वैसे भी एक कंप्युटर ऑपरेटर की जरूरत है.. और उस स्थान के लिए मौसम बिलकूल परफेक्ट है"

स्लीवलेसस टीशर्ट पहन कर बैठी मौसम के उरोजों को एकदम करीब से देखकर पागल हो रहा था राजेश.. स्लीवलेस टीशर्ट इतनी ढीली थी की मौसम के हाथ ऊपर करने पर साइड से उसका आधा खुला स्तन नजर आ जाता था.. संगेमरमर जैसी चिकनी काँखों को देखकर पीयूष का लंड भी सलामी देने लगा.. राजेश का लंड तो पेंट के अंदर मुजरा करने लगा था.. मौसम के कातिल हुस्न ने एक ही बॉल में दो विकेट गिरा दी थी.. टेबल पर पैर रखकर बैठी फाल्गुनी की शॉर्ट्स से उसकी गोरी मस्त जांघें बड़ी खतरनाक लग रही थी.. राजेश द्विधा में था.. मौसम को देखूँ या फाल्गुनी को?

मौसम और फाल्गुनी की कच्ची जवानी ने जैसे समय को बांध दिया था.. राजेश किस काम के लिए यहाँ आया था वोही भूल गया.. संस्कारी घर की लड़कियां वैसे तो नादान थी.. पर दो जवान हेंडसम मर्दों की उपस्थिति और माउंट आबू के मदमस्त वातावरण का असर उन दोनों पर भी हो रहा था.. जिस तरह मौसम और फाल्गुनी के हुस्न को देखकर पीयूष और राजेश की हालत खराब थी.. वैसे ही उन दोनों लड़कियों की चुत में भए सुरसुराहट हो रही थी.. जवानी का करंट उन दोनों को भी लग चुका था.. बातें करते करते राजेश और पीयूष मौसम के स्तनों को देखते हुए पिघल रहे थे..

राजेश: "अरे पीयूष.. मैं जो बात करने आया था वो तो भूल ही गया.. रात को हम मैडम के बर्थडे के लिए फ़ंक्शन रखने वाले है.. मैं उन्हे कोई अच्छा सा मस्त गिफ्ट देना चाहता हूँ.. मैं चाहता हूँ की तुम और कविता किसी दुकान से अच्छी सी गिफ्ट लेकर आओ.. !!"

कविता का नाम सुनते ही पीयूष का मूड खराब हो गया.. "कविता को गिफ्ट लेने में कुछ पता नहीं चलेगा.. वो तो शॉपिंग करते वक्त भी मुझे साथ लेकर चलती है.. एक काम करता हूँ.. मैं और मौसम गिफ्ट लेने चले जाते है.. मौसम, चलोगी न मेरे साथ?"

मौसम: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. फाल्गुनी को भी साथ ले लेंगे"

"कबाब में हड्डी" पीयूष मन ही मन बोला

फाल्गुनी: "नहीं.. मैं कबाब में हड्डी बनना नहीं चाहती.. मैं नहीं आऊँगी" चोंक गया पीयूष.. !!! ये फाल्गुनी ने उसके मन की बात कैसे जान ली.. !!! और वो भी उन्ही शब्दों में जैसा उसने मन में सोचा था !!! बचकर रहना पड़ेगा इस कबूतरी से.. कहीं इसने मेरे दिमाग में रेणुका के लिए जो खयाल है वो पढ़ लिए तो गजब हो जाएगा.. !!!

राजेश ने वॉलेट से १०,००० रुपये निकालकर देते हुए कहा "ये लो पीयूष दस हजार है.. तुम्हें और मौसम को जो गिफ्ट पसंद आए वो ले आना.. लेडिज की पसंद का पता दूसरी लेडिज को ही ज्यादा होता है.. कुछ कन्फ्यूजन हो तो फोन करना"

पीयूष: "ठीक है सर.. "

साली-जीजू की जोड़ी माउंट आबू के बाजार की तरफ निकल गई.. बाजार में दोनों तरफ दुकानों की लंबी कतार थी.. बीच का रास्ता काफी संकरा था और पार्क कीये हुए वाहनों के कारण और भी छोटा हो गया था.. थोड़ी भीड़ भी थी.. इसी कारण चलते वक्त मौसम के स्तन कई बार पीयूष के हाथों पर और पीठ पर छु जाते.. पीयूष सोच रहा था.. हाय रे मेरी किस्मत.. कविता की जगह अगर इसके साथ मेरा ब्याह हुआ होता तो तो पूरी ज़िंदगी जन्नत बन जाती.. पत्नी और मोबाइल दोनों किस्सों में यही होता है.. अपना वाला ले लो उसके बाद ही मार्केट में नए बढ़िया पीस आने लगते है.. जैसी मेरी किस्मत.. !! काश ये नए कंचे जैसा टंच माल एक बार इस्तेमाल करने के लिए मिल जाए !!

ये पहली बार था की मौसम और पीयूष अकेले मिले हो.. वैसे मौसम को पीयूष की कंपनी बेहद पसंद थी.. और उसे यह भी अंदेशा था की बाकी सारे जीजाजीओ की तरह.. उसके जीजू की नजर भी उसपर थी.. वैसे साली-जीजू के संबंध में थोड़ी बहोत शरारत तो चलती है.. ऐसा मौसम का मानना था.. मौसम पर माउंट आबू के दिलकश वातावरण का सुरूर धीरे धीरे छा रहा था..

एक गिफ्ट शॉप का बोर्ड देखकर दोनों अंदर घुसे.. रीसेप्शन पर खड़ी सुंदर लड़की ने उनका स्वागत किया.. मौसम ने पूरी दुकान पर नजर दौड़ा दी पर उसे कुछ खास पसंद नहीं आया.. उसने पीयूष को इस बारे में इशारा किया और वो दोनों दुकान से बाहर निकलने ही वाले थे तभी.. एक ४५ वर्ष के करीब की उम्र का पुरुष उनके पास आया और बोला

"May I help you gentleman and lady? If your choice is not hear..don't be disappointed. We have another part of this store, where you can get what you want. I am sure you will like something there.. Because that part of our shop is secret and safe. New couples like you love the items over there.. Would you like to visit?"

(आपकी पसंद की चीज यहाँ न मिली हो तो निराश होने की जरूरत नहीं है.. हमारी शॉप का एक दूसरा हिस्सा भी है जहां पर आप जो चाहो वो मिल जाएगा.. मुझे यकीन है की वहाँ पर आपको कुछ न कुछ जरूर पसंद आ जाएगा.. शॉप का वह दूसरा हिस्सा गोपनीय और सलामत है और सिर्फ खास लोगों के लिए है.. आप जैसे नवविवाहित जोड़ों की पसंद की बहोत सी चीजें है वहाँ.. आप चलोगे?)

मौसम: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. लेट्स गो"

आदमी: "ठीक है.. आप उस कोने से बायीं तरफ मुड़ जाना.. वहाँ एक दरवाजा होगा.. तीन बार खटखटाइएगा.. तो दरवाजा खुल जाएगा"

अंदर क्या होगा इस अपेक्षा में रोमांचित होकर दोनों उस दरवाजे तक गए.. तीन बार दस्तक देने पर दरवाजा खुला.. बाहर से देखने पर वो दरवाजे जैसा लगता भी नहीं था.. पीयूष को थोड़ी सी घबराहट हो रही थी.. अनजान जगह पर मौसम ले कर जाने में उसे डर लग रहा था.. लेकिन मौसम ने उसका हाथ पकड़कर खींच लिया और अंदर ले गई..

आगे छोटा सा पेसेज पार किया तो दूसरा दरवाजा आया.. ऐसे तीन और विचित्र दरवाजों को पार करने के बाद एक बड़ा सा हॉल दिखा.. काफी अंधेरा था.. एसी की तेज हवा से अंदर काफी ठंडक थी.. भव्य सुशोभन भी किया हुआ था..

"वेलकम सर एंड मैडम.. " कहीं से एक सुरीली आवाज ने उनका स्वागत किया.. दोनों ने आवाज की दिशा में देखा तो एक सुंदर स्त्री खड़ी थी और उन्हे पास बुला रही थी.. दोनों धीरे धीरे चलते हुए उसके पास गए

मौसम: "यहाँ इतना अंधेरा क्यों है?"

सेल्सगर्ल: "इसलिए की आपको शर्म न आए मैडम.. जो मैं दिखाना चाहती हूँ उसके लिए तैयार हो जाइए" कहते ही उसने लाइट ऑन की.. शोकैस में ढेर सारी चीजें रखी हुई थी जो अब नजर आ रही थी.. मौसम को तो ज्यादा कुछ पता नहीं चला पर पीयूष की देखकर ही गांड फट गई.. उससे भी ज्यादा झटका तब लगा जब रोशनी में उस सेल्सगर्ल को वो ठीक से देख पाया.. वो लड़की टॉपलेस थी !!! पूरी दुकान में लड़कियों और औरतों के मूठ मारने के लिए विविध उपकरण भरे हुए थे.. इलेक्ट्रॉनिक और मकैनिकल.. उत्तेजक परफ़्यूमस.. पॉर्न डीवीडी.. नंगे पोस्टर्स.. सजे हुए थे.. एक पोस्टर पर लंबे मोटे लंड वाले कल्लू को देखकर मौसम के होश उड़ गए.. शर्म से उसकी आँखें झुक गई

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मौसम: "छी छी छी.. ये सब क्या है जीजू?" शॉप में रखी सारी चीजों के अलावा उस अधनंगी सेल्सगर्ल को देखकर चोंक उठी मौसम

अपने स्तनों को मटकाते हुए वह सेल्सगर्ल बोली "मैडम, आजकल लैटस्ट यही चल रहा है गिफ्ट देने के लिए.. पुराना ज़माना गया.. ये देखिए.. ये डिल्डो.. मेईड इन जर्मनी.. फुली ऑटोमैटिक.. आपके पति की गैरमौजूदगी में ये आपको पूरा संतोष देगा.. स्पीड ज्यादा कम कर सकते है.. वॉटरप्रूफ है.. बाथरूम में भी इस्तेमाल कर सकते है.. और ये बटन दबाते ही अंडर डिस्चार्ज भी होगा.. है ना मजे की चीज? सिर्फ ६००० का है.. पूरा सिलिकॉन से बना है.. एकदम अरिजनल वाली फिल आएगी जब अंदर डालोगी तब.. ट्राय करके देखिए एक बार" वह लगातार बोले जा रही थी

मौसम का शरीर कांप रहा था.. पीयूष की स्थिति ऐसी थी की वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा था..

सेल्सगर्ल: "एक बात बताइए मैडम.. आपके हसबंड हफ्ते में कितनी बार आपसे सेक्स करते है?"

मौसम शरमाकर नीचे देखने लगी

आखिर में पीयूष बोला.. "मैडम, ये मेरी पत्नी नहीं है.. मेरी साली है.. और अभी कुंवारी है"

सेल्सगर्ल: "ओह्ह सॉरी.. यहाँ आने वाले अधिकतर लोग शादीशुदा होते है.. इसलिए मुझे गलतफहमी हो गई.. इनको शर्म आना स्वाभाविक है.. पर मैडम जीने का मज़ा तभी आता है जब आप शर्म छोड़ देगी.. जब आपकी शादी हो जाए तब यहाँ जरूर आना मैडम.. आपको नई नई चीजें देखने को मिलेगी.. और सर आप अपनी वाइफ को लेकर आइए.. उनका दिल खुश कर दूँगी"

बिना कुछ कहे मौसम और पीयूष दुकान के बाहर निकल गए.. थोड़े दूर जाने तक दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं कहा..

आखिर मौसम ने मौन तोड़ा "अच्छा हुआ हम वहाँ से निकाल गए, जीजू.."

पीयूष: "जो भी हुआ अनजाने में हुआ.. हमें थोड़े ही पता था की अंदर ऐसा सब होगा? चलो तुझे कुछ नया जानने को तो मिला.. अपने पति को लेकर आना इधर.. वैसे मैं कविता को शाम को यहाँ लेकर आने की सोच रहा हूँ"

मौसम: "हाँ हाँ जरूर लेकर आना" मौसम ये सोच रही थी की जीजू दीदी को यहाँ क्यों लेकर आना चाहते है? खैर, वो उन दोनों की पर्सनल बात है मैं जानकर क्या करूंगी.. !!!

मौसम: जीजू, एक घंटा बीत गया.. अभी गिफ्ट लेना बाकी है.. जल्दी कीजिए वरना दीदी शक करेगी.. की कहीं हम दोनों साथ भाग तो नहीं गए?"

पीयूष: "अरे ऐसे मेरे नसीब कहाँ.. !!! तू भागने के लिए राजी हो तो मैं तैयार हूँ.. वैसे भी साली तो आधी घरवाली होती है.. उस हिसाब से तेरी कमर के ऊपर के हिस्से पर तो मेरा हक है ही.. और अगर तू कमर के नीचे का हिस्सा देने को तैयार हो तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है !!"

गुस्से का अभिनय करते हुए मौसम ने कहा "हाँ हाँ.. दीदी को पूछकर आपको बता दूँगी.. अब हम गिफ्ट लेने का काम निपटा दे?" कविता का नाम सुनते ही पीयूष सपनों के आसमान से वास्तविकता की धरती पर आ गिरा

पीयूष ने मौसम का हाथ पकड़ लिया.. मौसम ने कोई विरोध नहीं किया.. कैसे करती.. अभी थोड़ी देर पहले जो जीजू के साथ अलग अलग तरह के नकली लंड देखने के बाद वो भी थोड़ी सी उत्तेजित हो गई थी

एक बड़ी दुकान के अंदर वो दोनों गए.. अंदर जाते ही सब से पहले उसने दुकान वाले को बोल दिया.. "हम दोनों पति पत्नी नहीं है.. रिलेटिव है ठीक है!!" दुकान वाले को पता नहीं चला की यह मैडम ने आते ही ऐसी बात क्यों की

पीयूष भी यह सुनकर हंसने लगा..

मौसम: "फिर से उस दुकान में हुआ वैसा कोई लोचा हो उससे अच्छा पहले ही बता दिया"

पीयूष ने मौसम के कान में कहा "वैसे वहाँ जो चीजें थी वो बड़ी जबरदस्त थी.. तुझे कैसी लगी थी?"

"चुप्पपपपप.. " कहते हुए हल्की सी थप्पड़ लगाई मौसम ने पीयूष के गालों पर

पीयूष: "ओह्ह मौसम.. तू कितनी क्यूट है यार.. तुझे देखते ही मेरी नियत खराब हो जाती है.. एक किस करने का मन हो रहा है मुझे"

मौसम: "क्या जीजू आप भी!!! कोई देखेगा तो क्या सोचेगा हमारे बारे में?"

पीयूष: "अरे यार.. यहाँ हमें जानता ही कौन है !! अभी तूने बताया न होता तो इस दुकान वाले को थोड़े ही पता चलता की हम पति पत्नी नहीं है.. वैसे भी तू मेरी पत्नी जैसी ही लगती है.. एक किस तो कर ही सकता हूँ.. "

मौसम पीयूष के होंठों को देखती रही.. इस डर से की कहीं सब के सामने ही जीजू कुछ उल्टा सीधा कर न दे.. पर पीयूष से अब ओर रहा नहीं जा रहा था.. शॉप के एक हिस्से में बहोत सारे लेडिज ड्रेस लटके हुए थे.. पीयूष मौसम का हाथ पकड़कर उन ड्रेस के पीछे ले गया.. यहाँ से उन्हे कोई देख नहीं पा रहा था.. पीयूष ने मौसम को अपने आगोश में भर लिया और एक जबरदस्त किस कर दी.. "ओह मौसम.. आई लव यू.. यू आर सो हॉट मेरी जान" कहते हुए एक और बार उसने मौसम के गुलाबी होंठों को चूम लिया


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"आह्ह जीजू.. इशशशश.. " शर्म से लाल लाल हो गई मौसम.. मौसम के जिस्म से एक अजीब उत्तेजक खुश्बू आ रही थी.. पीयूष सोचने लगा.. कहीं उत्तेजित मौसम की चुनमुनिया की खुश्बू तो नहीं है वो.. पीयूष के पतलून में माउंट आबू से भी ऊंचा उभार आ गया.. जो उसके पेंट की चैन तोड़ देने की धमकी दे रहा था

मौसम स्तब्ध होकर मूर्ति सी खड़ी रह गई.. उसके जीवन की ये प्रथम किस.. आह्ह.. जैसे मौसम की पहली बारिश.. जैसे सरसराती हवा.. जैसे ताज़ा खिला हुआ गुलाब.. जैसे पहाड़ों से बहता हुआ झरना.. जैसे जीवन का पहला ऑर्गैज़म.. !!! रोमांच से थर थर कांप रही थी मौसम.. जिंदगी में पहली बार किसी मर्द ने इस तरह छुआ था उसे.. यह स्पर्श इतना मधुर लगेगा उसका अंदाजा नहीं था मौसम को.. उसकी दोनों जांघों के बीच कुछ अजीब सी अनुभूति हो रही थी.. जो वह समझ नहीं पा रही थी..

मौसम के हावभाव देखकर पीयूष को इतना तो यकीन हो गया की उसे अच्छा लगा था.. उस दुकान से उन्होंने एक अच्छा सा ड्रेस पेक करवाया और दोनों दुकान से बाहर निकल गए.. मौसम तेज कदमों से आगे चल रही थी और पीयूष उसके पीछे पीछे.. पीयूष ने और एक साहस कर दिया.. अपने मध्यम कद के कूल्हे मटकाते चल रही मौसम के एक चूतड़ को अपनी हथेली से दबा दिया..

मौसम रुककर पीछे देखने लगी और बोली "बस जीजू.. बहोत हो गया.. "

पीयूष हँसकर उसके करीब आया और उसकी कमर में हाथ डालकर उसके साथ ही चलने लगा..

पीयूष ने चलते चलते धीरे से उसके कानों में कहा "मौसम, आई लव यू.. टेल मे यू ऑलसो लव मी.. प्लीज मौसम प्लीज.. !!"

मौसम के हुस्न ने पीयूष को अंधा बना दिया था.. वह अभी अपना सबकुछ मौसम को समर्पित करने के लिए तैयार था.. बदले में सिर्फ मौसम का दिल चाहता था.. आज मिले इस मौके का वह भरपूर फायदा उठाना चाहता था.. जीवन की प्रथम किस के नशे ने मौसम को ऐसा भ्रमित कर दिया था की उसे ये भी खयाल नहीं आया की पीयूष उसकी बहन का पति था

मौसम: "आई लव यू टू, जीजू.. पर किसी को ये पता नहीं चलना चाहिए.. वरना आफत आ जाएगी.. मुझे आपके साथ बहोत अच्छा लगता है"

मौसम की कमर पर ओर जोर से पकड़ बनाई पीयूष ने.. और अपनी ओर खींच लिया.. वह ऐसा महसूस कर रहा था जैसे उसका जीवन सफल हो गया हो

पीयूष: "मौसम.. चल यार.. वो वाली दुकान पर वापिस चलते है"

मौसम: "नहीं जीजू.. हम उस लड़की को बता चुके है की हम पति पत्नी नहीं है.. अब वापिस जाएंगे तो वो लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे?"

एक दुकान के बार बैठक पर मौसम बैठ गई

पीयूष: "क्या हुआ? थक गई ?"

मौसम: "नहीं जीजू.. मुझे आपके साथ बैठकर बातें करनी है.. ढेर सारी.. बैठिए ना.. वापिस लौटकर दीदी की मौजूदगी में हम थोड़े ही बात कर पाएंगे.. !!"

पीयूष समझ गया.. इस आजादी और एकांत का फायदा उठाने का मन कर रहा है मौसम को.. पर यहाँ काफी लोग है आजूबाजू.. कहीं खोपचे में ले जाकर इसके संतरे दबाने की तीव्र इच्छा हो रही है.. क्या करू? ऐसी कटिली चीज है की देखते ही लंड बेकाबू हो जाए.. जिस मौसम को में पाना चाहता था वह इतनी आसानी से मेरी झोली में आ गिरेगी इसका अंदाजा नहीं था मुझे.. आग दोनों तरफ बराबर जली हुई है.. पर हाय रे किस्मत.. यहाँ खुली सड़क पर कुछ भी कर पाना नामुमकिन था..

सड़क के किनारे एक कुत्ता.. किसी कुत्तिया की पूत्ती सूंघ रहा था.. देखकर पीयूष को गुस्सा आया.. हम से तो अच्छे ये जानवर है.. जहां मर्जी चोदना शुरू कर सकते है.. ये समाज की हदें और इज्जत की बकचोदी.. बहोत गुस्सा आ रहा था पीयूष को.. उसका लंड उसे बार बार आपे से बाहर जाने की धमकी दे रहा था

मौसम ने पीयूष का हाथ अपनी जांघ पर रख दिया था.. और उस पर उंगलियों से "आई लव यू" लिख रही थी.. इस हरकत से पीयूष अब गुर्राए सांड की तरह हांफने लगा.. अपनी कुहनी से हल्के हल्के मौसम के स्तन को छु रहा था वो..

"जरा धीरे से करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे" मौसम ने पीयूष के कान में कहा.. वैसे भी बेचारी मौसम को स्तन मसलवाने का अनुभव तो था नहीं.. उसे भला कहाँ पता था की आगे जाकर उसके स्तनों के साथ क्या क्या होने वाला था.. !!

"कितने मस्त है यार तेरे.. अंदर हाथ डालकर दबाने का मन कर रहा है मुझे" पीयूष ने कहा

मौसम ने तुरंत अपना टीशर्ट ठीक कर लिया "नहीं जीजू"

पीयूष: "अगर रात को चांस मिले तो होटल से कहीं जाना है?"

मौसम: "नो जीजू.. रात को कहीं भी जाएंगे तो दीदी को पक्का डाउट जाएगा.. यहाँ से वापिस लौट जाने के बाद हम कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेंगे.. चलिए अब चलते है यहाँ से.. " गिफ्ट की थैली हाथ में पकड़कर मौसम खड़ी हो गई.. सड़क पर चलते चलते एक सुमसान नाके पर पीयूष ने मौसम को पकड़कर एक जोरदार किस कर दी.. किस करते वक्त पीयूष के हाथ मौसम की चूचियों पर चले गए और उसने मजबूती से उसके नरम संतरे जैसे स्तनों को दबा दिया..

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"ओ माँ.. कितनी जोर से दबाया आपने जीजू.. !!! ऐसे भी कोई दबाता है क्या?" टीशर्ट के बाहर निकली हुई ब्रा की पट्टी को अंदर डालते हुए मौसम ने कहा.. पर्स से छोटा सा आईना निकालकर मौसम ने अपना हुलिया चेक किया.. और दो बार किस करने से निकल चुकी लिपस्टिक को फिर से लगा दिया..
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है मौसम के हुस्न को देखकर सभी आदमी आहे भर रहे हैं सब इस ताक में है कि मौसम उनको मिल जाए वही राजेश और पीयूष दोनो भी मोसम की जवानी का रस पीना चाहते हैं पीयूष को मौसम के साथ kiss करने का मोका तो मिल गया है देखते हैं इस टूर में मौसम की सील कोन तोड़ता है
 

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पार्टी खत्म होने की कगार पर थी.. रेणुका ने सब को आखिरी बार संबोधित करते हुए कहा

"प्यारे परिवारजन, मेरे जन्मदिन को आप से सब ने अपनी उपस्थिति से यादगार बना दिया.. आप सब भविष्य में भी हमारे साथ जुड़े रहेंगे ऐसी अपेक्षा और विश्वास है.. अगली बर्थडे मैं बेंगकॉक में मनाना चाहती हूँ.. आप सब के साथ.. थेंक यू राजेश फॉर गीविंग मी सच अ मेमोरेबल पार्टी एंड थेंक यू एवरीबड़ी.. अगर किसी को भी कुछ तकलीफ हुई हो तो क्षमा चाहती हूँ.. इसके साथ ही आज की शानदार रात को यहीं खतम करते है.. आप सब अपने कमरे में जाकर आराम कीजिए.. कल सुबह साइट-सीइंग की लिए चलेंगे.. और दोपहर के बाद हम वापिस लौटने का सफर शुरू करेंगे.. गुड नाइट एंड स्वीट ड्रीम्स!!"

सब ने तालियों से पार्टी का समापन किया.. एक के बाद एक सब अपने कमरे की और जाने लगे.. सब के साथ कोई न कोई था.. सिर्फ वैशाली ही अकेली थी.. अपनी इस स्थिति से काफी व्यथित हो गई वैशाली.. सब के साथ कोई न कोई साथी था.. और वो यहाँ अकेली थी जब की संजय वहाँ किसी रांड की बाहों में पड़ा होगा..

साली कैसी कमबख्त ज़िंदगी है ये!!! आज संजय और मेरे बीच सब सही होता तो हम भी हाथ में हाथ डालकर डांस कर रहे होते.. पार्टी का अलग ही मज़ा आता.. बाकी कपल्स की तरह रूम में जाकर जबरदस्त चुदाई भी करते.. ऐसे खुले वातावरण में कितनी सारी इच्छाएं उठती है मन में!! पीयूष के साथ उतावला सेक्स और राजेश सर के साथ टॉइलेट में चुदाई ना करवानी पड़ती आज.. आराम से ए.सी. रूम में मुलायम बेड पर टांगें फैलाकर चुदवाती..!! सब निकल रहे थे और वैशाली इन खयालों के कारण उदास खड़ी हुई थी

"आप अभी भी यही खड़ी हो?? कमरे में चलना नही है क्या? सब चले गए.. " फाल्गुनी ने वैशाली का हाथ पकड़कर खींचा तब वैशाली अपने विचारों से बाहर आई.. वैशाली की आँखों के कोने में चमक रहें आंसुओं को देखकर वह समझ गई की कुछ तो गड़बड़ थी.. वरना इतनी शानदार पार्टी के बाद भला कोई उदास क्यों होगा!!

"इतनी उदास क्यों हो दीदी?" फाल्गुनी ने पूछा

"कुछ नही.. बस मेरे पति की याद आ गई थी.. "

"ओह्ह इतनी सी बात.. उदास क्यों हो रही हो.. फोन उठाओ और बात कर लो.. " नादान फाल्गुनी ने कहा

"नही फाल्गुनी.. मेरी समस्या गंभीर है.. तू नही समझेगी.. ज़िंदगी ने ऐसे अजीब मोड पर लाकर खड़ा कर दिया है की मुझे खुद ही नही पता आगे क्या होगा!!"

फाल्गुनी: "आपके हसबंड और आपके बीच झगड़ा हुआ है?" बड़ी ही निर्दोषता से उसने पूछा

"झगड़ा नही हुआ है.. जिंदगी ही खतम हो गई है.. पिछले दो सालों से हमारे बीच मनमुटाव है.. काफी समय से हम एक दूसरे से ठीक से बात भी नही करते.. यहाँ सब कपल्स को इन्जॉय करते देख मेरा दिल भर आया... दुख होना स्वाभाविक है!!"

पूरे हॉल में बस फाल्गुनी और वैशाली अकेले बचे थे..

"मैडम जी, अगर आपको यहाँ रुकना हो तो मैं हॉल बंद करने बाद में आऊँ?" मेनेजर ने उनसे पूछा

"अरे नही.. आप बंद कर दीजिए.. हम बस जा ही रहे है.. " वैशाली और फाल्गुनी बाहर निकल गए..

होटल के तीसरे माले पर कमरे की बालकनी में खड़े होकर आसमान में टिमटिमाते तारों को देखने लगी..

"अगर तुझे नींद आ रही हो तो सो जा.. मैं थोड़ी देर यहीं रुकूँगी.. " वैशाली ने फाल्गुनी से कहा.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली एक ही कमरे में रुके थे.. मौसम नाइटी पहनकर बेड पर लेटे हुए इन दोनों की बातें सुन रही थी.. उसे थोड़ी नींद आ रही थी इसलिए वो वहीं लेटी रही..

फाल्गुनी ने मौसम को सोते हुए देखकर कहा "बाहर बालकनी में चल.. दीदी के साथ बैठते है.. वापिस घर जाकर फिर सोना ही तो है.. यहाँ दोबारा कब आना होगा कीसे पता.. !!" फाल्गुनी ने बालकनी में दो कुर्सियाँ लगाते हुए कहा

"क्यों नही आएंगे वापिस?? शादी के बाद पति के साथ हनीमून पर यहीं तो आएंगे " फाल्गुनी को अपनी ओर खींचते हुए मौसम ने कहा

"तू आराम से सो जा.. और सपने में हनीमून मना ले.. हमे शांति से बैठने दे" कहते हुए फाल्गुनी खड़ी हो गई

"कोई बात नही.. तुझे हनीमून पर न जाना हो तो मुझे बता देना.. तेरे पति के साथ मैं चली जाऊँगी... और तू घर पर बैठे बैठे बातें करते रहना" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा

इन दोनों की हंसी-ठिठोली सुनकर वैशाली की उदासी के बादल भी छट गए..

वैशाली: "तुम दोनों कब से हनीमून हनीमून लगे हुए है.. पर उसमें क्या होता है ये पता भी है?? हनीमून में क्या करते है ये जानती हो?"

"वो तो जब मौका मिलेगा तब सीख लेंगे.. आप भी तो जब गई होगी तब नई नई ही होंगी.. जैसे आप ने सीख लिया वैसे हम भी सीख लेंगे"

"नई नई थी या नही वो तुम्हें क्या पता??" वैशाली ने शरारती आंखो से कहा और हंस पड़ी "अपना पाप तो हम खुद ही जानते है.. वो तो हमारे पति को भी पता नही होता की जिस बच्चे को वो गोदी में लेकर खेल रहा है वो असल में उसका है भी या नही.. सिर्फ माँ ही जानती है.. मेरा बेटा, मेरा बेटा कहते हुए उछल रहे पति की आवाज सुनकर किचन में उसकी पत्नी मन ही मन मुस्कुरा रही होती है की जिसे तू अपनी औलाद समझ रहा है वह असल में मेरे पुराने प्रेमी की निशानी है.. " वैशाली ने जीवन के कटु सत्य को फाल्गुनी और मौसम के सामने उजागर किया..

तीनों बातों में मशरूफ़ थे.. वैशाली और फाल्गुनी कुर्सी पर बैठे हुए अपने पैर बालकनी की दीवार पर टिकाए हुए थे.. मौसम बेड पर पड़े पड़े तकिये को अपनी बाहों में लेकर बातें कर रही थी.. वैशाली ने भी कपड़े बदलकर छोटी सी नाइटी पहन ली थी.. पैर दीवार पर रखे होने के कारण उसकी छोटी सी नाइटी उसकी जांघों तक सरक गई थी.. और उसकी गोरी गदराई जांघें साफ नजर आ रही थी.. वैसे कमरे में तीनों लड़कियां ही थी इसलिए वह बेफिक्र थी.. अब मौसम भी उठकर तीसरी कुर्सी पर उन दोनों के साथ बैठ गई

मौसम: "आप दोनों को नींद नही आ रही? बारह बज रहे है.. बातें कर कर के मेरी भी नींद उड़ा दी आप लोगों ने..

वैशाली: "तू आराम से सो जा.. तुझे कौन रोक रहा है.. तेरे पति के साथ हनीमून पर आबू आएगी तब सोने को नसीब ही नही होगा.. याद रखना!!"

मौसम: "तभी तो कह रही हूँ.. उस वक्त जागना पड़ेगा इसलिए सो जाते है"

वैशाली: "तू चिंता मत कर.. उस समय अगर तुझे नींद आ भी गई तो तेरा पति छातियाँ दबाकर तुझे जगा देगा.. "

वैशाली की यह खुल्लमखुल्ला बातचीत से मौसम और फाल्गुनी.. दोनों के जिस्मों में सुरसुरी होने लगी.. वैसे मौसम ने कुछ घंटों पहले ही अपने जीजू से छातियाँ दबवाई थी.. इसलिए उसके शरीर में जो स्पंदन जग रहे थे वह वासना के थे.. फाल्गुनी के मन में वासना का भाव कम और जिज्ञासा का भाव ज्यादा था..

मौसम: "एक बात मुझे समझ नही आती वैशाली.. जब पुरुष का हाथ हमारी छाती को छूता है तब बहोत मज़ा आता है क्या?" जान कर भी अनजान बन रही थी मौसम..

वैशाली: "क्यों? तुझे अब तक ऐसा कोई अनुभव नही हुआ क्या??? सच सच बता.. बगैर दबवाये ही तेरे इतने बड़े हो गए क्या?? मुझे तो पक्का डाउट है.. किसी की मदद लिए बगैर इतने आकर्षक और परफेक्ट शेप में ये रह ही नही सकते.. और मौसम.. तेरे बबलों की ताजगी देखकर यही लगता है की तू जरूर किसी से दबवाती होगी.. !!"

फाल्गुनी: "सही बात है दीदी.. ये साली बड़ी छुपी रुस्तम है.. किसी को पता भी न चले वैसे मजे करने वाली.. मैं अच्छे से जानती हूँ ईसे"

मौसम: "साली.. मुझे क्यों बदनाम करती है.. !! पूरा दिन तो मैं तेरे साथ होती हूँ.. फिर मैं कहाँ किसी से ऐसा करवाने जा सकती हूँ? थोड़ा तो विश्वास रख मुझ पर"

वैशाली: "विश्वास? हा हा हा हा हा.. आज के जमाने में विश्वास सगे भाई पर भी नही रख सकते.. तू अखबारों में पढ़ती होगी.. जवान लड़की पर उसका भाई या बाप ही रेप करता है कई जगह.. "

मौसम: "वैशाली, तुम जो कह रही हो उसे बलात्कार कहते है.. अपनी मर्जी से दबवाने में और बलात्कार में जमीन आसमान का फरक है.. क्या तुम यह कहना चाहती हो की जबरदस्ती होने पर भी लड़की को मज़ा आता होगा?"

फाल्गुनी का चेहरा एकदम पीला पड़ गया "नही ऐसा कभी नही हो सकता.. किसी भी लड़की के लिए जबरदस्ती सहना बेहद यातनामय होता है" बोलकर फाल्गुनी एकदम चुप हो गई.. पर उसे एहसास हुआ की उसने बहोत बड़ी गलती कर दी ये बोलकर.. उसके कहने का मतलब ना समझ सके ऐसे मूर्ख नही थे वैशाली और मौसम

मौसम: "फाल्गुनी? तुझे पता भी है क्या बोल रही है? ये सब तुझे कैसे पता? क्या तेरे साथ कभी ऐसा कुछ??"

फाल्गुनी ने जवाब नही दिया

वैशाली ने बड़े ही प्यार और वात्सल्य से जांघ पर हाथ फेरते हुए कहा "मौसम की बात का जवाब दे फाल्गुनी"

फाल्गुनी: "नही यार ऐसा कुछ खास नही है"

फाल्गुनी की आवाज बदल गई.. उसकी आवाज में एक अजीब प्रकार का डर झलक रहा था.. वह नीचे देखते हुए बैठी रही

वैशाली: "सच सच बता फाल्गुनी.. मैं कल से देख रही हूँ.. इतने खुले और आजाद वातावरण में भी तुम किसी भी पुरुष के साथ ज्यादा बात नही करती.. मैं ये जानना चाहती हूँ की तू इतनी चुप चुप क्यों रहती है? प्लीज हमें बता"

मौसम: "बिल्कुल सही कहा तुमने वैशाली.. इस बात को तो मैंने भी नोटिस किया है.. सेक्स के बारे में जब भी बात होती है तब तू दूर ही भागती है.. कॉलेज में भी तू लड़कों से दूर रहती है.. मैं काफी समय से पूछना चाहती थी.. अच्छा हुआ आज ये बात निकली"

वैशाली: "देख फाल्गुनी, यहाँ पर हमारे अलावा और कोई नही है.. और हम दोनों तुझे वचन देते है की हम किसी को भी नही बताएंगे.. बता.. क्या हुआ था तेरे साथ?"

फाल्गुनी: "ऐसा भी कुछ नही हुआ था.. पर जब भी मैं सेक्स के बारे में सोचती हूँ.. मन में अजीब सा डर लगने लगता है.. पता नही क्यों.. रात को नींद में जब मैं उत्तेजित हो जाती हूँ तब सपने में एक भयानक चेहरा आँखों के सामने आ जाता है ओर वो मेरे साथ.. जबरदस्ती करने लगता है.. !!"

वैशाली और मौसम स्तब्ध होकर सुनते रहे..

वैशाली: "जबरदस्ती करने लगता है.. मतलब क्या करता है?"

फाल्गुनी: "प्लीज दीदी.. आगे मत पूछिए.. मुझे तो बताने में भी शर्म आती है" थरथर कांपती फाल्गुनी ने अपनी खुली हुई जांघें अचानक बंद कर दी..

थोड़ी देर के लिए तीनों चुप बैठे रहे

अब वैशाली कुर्सी से खड़ी होकर बोली "यहाँ आओ फाल्गुनी.. मेरे पास.. मौसम तू भी" मौसम तुरंत उठी और वैशाली के पास जाकर खड़ी हो गई.. लेकिन फाल्गुनी कुर्सी पर अब भी बैठी ही रही..

मौसम का हाथ पकड़कर वैशाली ने उसे अपनी ओर खींचा और उसके होंठों पर एक मस्त लेस्बियन किस कर दी.. मौसम इस हरकत के लिए तैयार नही थी.. उसे बड़ा अचरज हुआ.. पर वैशाली ने इस आश्चर्य को उत्तेजना में बदलते हुए मौसम के स्तनों को.. फाल्गुनी की नज़रों के सामने ही.. दबाना शुरू कर दिया..

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ये देखते ही फाल्गुनी ऐसे थरथराने लगी जैसे उसने भूत देख लिया हो.. उसे इस तरह कांपते हुए देख वैशाली ने यह अंदाजा लगाया की जरूर कोई ऐसी घटना घाटी थी फाल्गुनी के साथ जिसके कारण उसके कोमल मन पर गंभीर असर किया था.. या तो फिर उसने कोई ऐसा खतरनाक मंज़र देखा था.. कुछ तो था जिसके कारण फाल्गुनी सेक्स से जुड़ी बातों से इतना डर रही थी..

वैशाली सोच रही थी की ऐसा क्या करूँ जिससे उसका यह डर गायब हो जाएँ.. !!

मौसम के स्तनों पर वैशाली का हाथ, ना उसने हटाने की कोशिश की और ना ही फाल्गुनी की नजर उसके स्तनों से..

वैशाली: "कैसा महसूस हो रहा है तुझे मौसम? सच सच बताना.. "

मौसम: "ओह वैशाली.. मज़ा ही आएगा ना.. जाहीर सी बात है!!"

वैशाली: "देख फाल्गुनी.. मौसम को कितना मज़ा आ रहा है.. देखा तूने!!" मौसम के स्तनों को मसलते हुए वैशाली ने फाल्गुनी की ओर देखकर कहा "तू बेकार ही डर रही है फाल्गुनी.. एक औरत होते हुए अगर मेरा स्पर्श मौसम को इतना मज़ा दे रहा हो.. तो सोच.. जब किसी पुरुष का मर्दाना हाथ पड़ेगा तब कितना जबरदस्त मज़ा आएगा!! सच कह रही हूँ फाल्गुनी.. तू अपने मन से सेक्स के प्रति घृणा और डर निकाल दे.. ये तो जीवन का सब से श्रेष्ठ आनंद है.. " वैशाली मौसम के अद्भुत वक्षों को धीरे धीरे मसलते हुए फाल्गुनी के डर को दूर करने की कोशिश कर रही थी.. मौसम भी वैशाली के इस प्रयास में पूर्ण सहयोग दे रही थी.. और उसे मज़ा भी आ रहा था.. जो की साइड इफेक्ट था..!!

मौसम की कुंवारी छाती पुरुष के मर्दाना स्पर्श को एक बार चख चुकी थी.. जैसे आदमखोर शेर एक बार इंसान का खून चख ले फिर उसे चैन नही पड़ता वैसे ही कुछ हाल मौसम का भी था.. जिन स्तनों को देखकर लड़के मूठ लगाते थे वही स्तनों को अभी दबाने वाले पुरुष की तलाश थी.. काफी सुंदर द्रश्य था.. माउंट आबू की शांत रात्री के माहोल में शराब पीकर सब सो रहे थे.. तब रात के साढ़े बारह बजे.. यह तीन लड़कियां एक दूसरे के अंगों को पुरुष से दबवाने के बारे में सोच रहे थे..

सीनियर शिक्षिका की तरह वैशाली अपना रोल बखूबी निभा रही थी.. आज के ही दिन वैशाली ने पीयूष और राजेश सर दोनों से अपनी मरवाई हुई थी.. अलग अलग लंड से चुदकर काफी बार जानदार ऑर्गजम का आनंद और चमक उसके चेहरे पर साफ छलक रही थी..

वैशाली: "फाल्गुनी.. एक समय था जब मैं भी सेक्स के मामले में तेरी तरह ही गंवार थी.. मुझे तो ये ही पता नही चल रहा था की कुदरत ने लड़कियों की छाती पर ये बबले आखिर बनाए क्यों थे!! इतनी ही समझ थी की आगे जाकर होने वाले बच्चे को दूध पिलाने की लिए ही इस व्यवस्था को बनाया गया होगा.. पर एक बार जब ये स्तन दबे.. तब मुझे एहसास हुआ की दूध पिलाने के लिए तो इसका उपयोग बाद में होगा.. इसका असली काम तो दबवाकर मजे लूटने का था.. तू मानेगी नही मौसम.. मुझे हमेशा ताज्जुब होता था की लड़के आखिर मेरी छातियों को हमेशा क्यों तांकते होंगे? मुझे भी सब कुछ संजय के साथ शादी करने के बाद ही पता चला.. शादी की पहली रात जब संजय ने मेरी छातियों को दबाया और चूसा.. तब मुझे पता चला की जीवन का असली मज़ा छाती को ब्रा के अंदर छुपाने में नही.. पर किसी के हाथों में सौंपने में था.. !!"

वैशाली की इस असखलित प्रवाह वाला लेक्चर फाल्गुनी बड़े ध्यान से सुन रही थी.. वैशाली दोनों के चेहरों की तरफ देख रही थी.. उसे लगा की दोनों को उसकी बातों में गहरी दिलचस्पी थी..

वैशाली: "फाल्गुनी.. एक बात पूछूँ.. तुम दोनों सच सच बताना.. !! मैं प्रोमिस करती हूँ की इस बात को मैं राज ही रखूंगी.. तू यहाँ आ फाल्गुनी मेरे पास.. घबरा मत.. यहाँ आ" फाल्गुनी धीरे से उठकर उन दोनों के पास गई.. तीनों इतने करीब खड़ी थी की अगर थोड़ा सा भी और नजदीक आती तो उनके स्तन आपसे में दब जाते..

फाल्गुनी के गोरे गालों पर वैशाली ने हल्के से हाथ फेर लिया.. और बड़े प्रेम से उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा "फाल्गुनी, तूने कभी लिप किस की ही?" फाल्गुनी की हथेली कांप रही थी "बता न फाल्गुनी?.. मौसम तूने कभी.. ??" फाल्गुनी के साथ मौसम को भी घेरे में लिया वैशाली ने..

मौसम: "मैंने तो नही की.. " पर इतना बोलते ही मौसम को पीयूष के संग बिताएं वो हसीन पल याद आने लगे.. हल्की सी मुस्कान के साथ उसने कहा "वैशाली मुझे लिप किस अच्छी नही लगती यार.. एक दूसरे के मुंह में मुंह डालना मुझे नही पसंद.. घिन आती है.. "

फाल्गुनी ने धीमी आवाज में कहा "मैंने एक इंग्लिश मूवी में देखा तो है.. पर ट्राय नही किया कभी"

वैशाली: "ओके.. अब अगर तुम दोनों को दिक्कत न हो.. तो क्या हम एक दूसरे को किस करें? जब तुम्हारी शादी होगी और पति लिप किस करेगा तब तुम दोनों को यह अनुभव बहोत काम आएगा.. पर तुम्हारी इच्छा हो तो ही.. लिप किस भी एक कला है.. सीखना बहोत जरूरी है"

मौसम: "हाँ मुझे सिखाओ.. मैं सीखना चाहती हूँ" फाल्गुनी कुछ बोलने जा ही रही थी पर उससे पहले मौसम शुरू हो गई इसलिए वह चुप रही.. वैशाली ने फाल्गुनी का हाथ पकड़कर अपने एकदम नजदीक खींचते हुए कहा "मौसम.. पहले मैं फाल्गुनी को किस करूंगी.. फिर हम दोनों करेंगे.. ठीक है!!"

मौसम: "ओके डन.. पहले तुम दोनों करो.. मैं देखूँगी और सीखूँगी"

वैशाली: "फाल्गुनी, आर यू रेडी?"

डरी हुई फाल्गुनी कुछ बोल न पाई.. वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए दूसरा सवाल किया "कभी किसी ओर लड़की की ब्रेस्ट को दबाया है?" फाल्गुनी ने सर दायें बाएं हिलाकर "ना" कहा.. दोनों की हरकतें देखकर मौसम का हाथ अनजाने में ही खुद के स्तनों पर चला गया..

वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली में अपना स्तन दे दिया.. और कहा "जरा जोर से दबा.. और देख कितना मज़ा आता है!!"

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सहमी हुई फाल्गुनी मशीन की तरह वैशाली के स्तन को दबा रही थी.. ना ऊष्मा थी और ना ही वासना

वैशाली: "सहला क्या रही है.. जरा जोर से दबा.. तभी तो मज़ा आएगा" फाल्गुनी के गले में अपना हाथ डालकर अपने होंठों को उसके नाक तक लेकर वैशाली ने धीरे से चाट लिया.. फाल्गुनी ने ना ही विरोध किया और ना ही कुछ बोली.. अब वैशाली ने फाल्गुनी के स्तनों को अपने हाथों से बड़े जोर से मसल दिया

फाल्गुनी: "आह्ह.. दीदी.. धीरे से.. दर्द हो रहा है"

वैशाली: "अरे यार.. मैं तो ये कह रही हूँ की इस तरह दबा मेरे.. समझी.. जरा जोर से.. तेरे बॉल अभी अनछुए और कोरे है.. इसलिए दर्द हो रहा है.. मेरे तो अब अनुभवी हो गए है.. धीरे धीरे दबाने से मेरे स्तनों को कुछ महसूस ही नही होता इसलिए कह रही हूँ की जरा ताकत लगाकर दबा" इतना कहकर वैशाली ने फाल्गुनी के गालों को चूम लिया.. चूमने के बाद उसने अपनी जीभ बाहर निकालकर उसके गाल को चाट लिया.. पूरा गीला कर दिया.. वैशाली को पता था की फाल्गुनी को इसमें मज़ा नही आ रहा था पर शुरुआत में ऐसा होना स्वाभाविक था..

अब वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली को अपनी नाइटी के अंदर डालकर अपने नंगे चुचे का स्पर्श करवाया.. "आह्ह.. " यह द्रश्य देखकर ही मौसम की सिसकी निकल गई.. और वो दोनों हथेलियों से अपने स्तन दबाने लगी..

कुदरत के बक्शे हुए इन सुंदर यौवन कलशों को अब तक अनगिनत बार आईने में देखकर मसल चुकी मौसम.. फाल्गुनी के स्तनों को कभी छुआ नही था उसने.. हाँ कभी कभार अनजाने में हल्का सा स्पर्श जरूर हो जाता.. या फिर स्तन दब जाते तब एक दूसरे को हँसकर "सॉरी" बोल देते थे.. उस हंसी का मतलब ये होता था की भले ही गलती से दब गए हो.. पर स्तन का दबना ही उसका भविष्य होता है.. और दबने में ही स्तनों के अस्तित्व की सार्थकता थी..

लेकिन इन दोनों नादान लड़कियों का दिमाग इतना ज्यादा भी कलुषित नही हुआ था.. कभी कभार टीवी पर दिख जाती कोंडोम की एड.. या फिर किसी मूवी का उत्तेजक गाना या सीन.. देखकर उत्तेजित होती दोनों इतनी मासूम भी नही थी.. पर अन्य फॉरवर्ड और मॉडर्न लड़कियों के मुकाबले मौसम और फाल्गुनी सेक्स के मामले में बिल्कुल अनुभवहीन थे.. अब तक सेंकड़ों बार वो दोनों खुद के स्तनों को छु चुके थे पर आज तक कभी ऐसा एहसास नही हुआ था.. फाल्गुनी का पूरा शरीर वैशाली के स्तन का स्पर्श होते ही कांपने लगा.. वो ऐसे पेश आ रही थी जैसे काफी डरी हुई हो.. पर बिना इसकी परवाह कीये.. वैशाली ने फाल्गुनी के कान में कहा "कैसे लगे मेरे स्तन तुझे, फाल्गुनी?"

"ओह्ह प्लीज दीदी.. " फाल्गुनी सिर्फ इतना ही बोल पाई.. बालकनी के अंधेरे में अपना पूरा स्तन ही नाइटी से बाहर निकाल दिया वैशाली ने.. और फाल्गुनी के हाथ में थमाते हुए दबवाने लगी.. "और ये देख मेरी निप्पल.. कैसी लगी तुझे फाल्गुनी?" वैशाली के एक के बाद एक कामुक सवालों से फाल्गुनी के जवान कुँवारे जिस्म में बिजली सी दौड़ रही थी.. उसका कांपना अभी बंद नही हुआ था.. वैशाली अपने स्तनों पर चल रही ठंडी हवा को महसूस करते हुए सिहर रही थी.. उसने मौसम से कहा "अपनी नाइटी ऊपर कर के देख.. स्तनों पर जब ठंडी ठंडी हवा टकराती है तब कितना मज़ा आता है.. !!"

मौसम शरमा गई.. और बोली "मुझे लगता है.. की तुम काफी एक्साइटेड हो गई हो वैशाली"

"तो उसमें गलत भी क्या है मौसम? यहाँ होटल में हर कोई अपने पति या बॉयफ्रेंड को अपने बाहों में भरके उनके मस्त लंड से चुदवा रही होगी.. और यहाँ मैँ.. शादीशुदा होते हुए भी तड़प रही हूँ.. आप दोनों ने तो वो मज़ा लिया नहीं है इसलिए नही समझ पाओगे.. पर एक बार स्त्री पुरुष के स्पर्श को प्राप्त कर ले फिर वो उसकी जरूरत बन जाता है.. जब तक सिर्फ उंगलियों से मास्टरबेट ही किया हो तब तक असली पेनिस से करवाने के मजे के बारे में पता नही चलता.. बस ऐसा ही लगता है की उंगलियों में ही सारा सुख छुपा हुआ है.. पर एक बार जब छेद के अंदर मर्द का अंग घुसता है और अंदर बाहर होता है.. और उसकी सख्ती से रोम रोम जीवंत हो जाता है.. ओह्ह फाल्गुनी.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. अभी मुझे लंड की सख्ती बड़ी याद आ रही है.. मुझे ऐसा एहसास हो रहा है जैसे नीचे हजारों चींटियाँ एक साथ काट रही हो.. ऐसी खुजली हो रही है की मैं बता नही सकती.. मैं तो वो स्वाद काफी बार चख चुकी हूँ.. इसीलिए आधी रात को ऐसे मादक माहोल में मुझे याद आ रही है.. इसमे मेरी कोई गलती नही है"

कहते हुए वैशाली ने फाल्गुनी को अपनी बाहों में भर लिया और उसके कुँवारे होंठों पर अपने होंठ रखकर फाल्गुनी को उसके जीवन की पहली लिप किस भेंट कर दी.. थरथर कांपती फाल्गुनी ने मुंह फेरते हुए इनकार करने की कोशिश की.. पर वह इनकार से ज्यादा इजहार का संकेत था.. वैशाली की उत्तेजना उसके शरीर को फाल्गुनी से भी ज्यादा बल दे रही थी.. एक तरफ फाल्गुनी की नादान उम्र और चढ़ती जवानी की चाह उसे शरण में आने की लिए मजबूर कर रही थी.. "दीदी प्लीज.... " अभी भी वो अशक्त विरोध कर रही थी.. लेकिन दूसरी तरफ वैशाली की चूत लंड मांग रही थी.. और लंड की अनुपस्थिति में वह सारी कसर फाल्गुनी पर निकाल रही थी..

जब वैशाली ने फाल्गुनी को बाहों में भर लिया तब फाल्गुनी के कडक स्तन वैशाली की छातियों पर चुभने लगे थे.. अब फाल्गुनी भी इन हरकतों से मजे लेने लगी थी..

वैशाली: "यार फाल्गुनी.. तेरी ब्रेस्ट कितनी कडक है.. !! मेरे बॉल पर तेरी दोनों निप्पल चुभ रही है मुझे!!"

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यह गरमागरम सीन देखकर मौसम की जांघों के बीच में चुनचुनी होने लगी.. पीयूष ने उसके स्तन जिस तरह मसले थे.. उसे वो सीन याद आ गया.. उसने वैशाली के कंधे पर हाथ रखकर उसे दबाया.. अंधेरे में वैशाली को उसके हावभाव तो दिखे नही पर वो समझ गई की मौसम फाल्गुनी से भी अधिक उत्तेजित हो चुकी थी.. पर मौसम ने तो किसी और काम के लिए हाथ रखा था

मौसम: 'वैशाली.. वहाँ देखो.. !!"

मौसम ने वैशाली और फाल्गुनी के रोमांस के रंग में भंग करते हुए दोनों को सामने की तरफ के गेस्टहाउस के चौथे मजले के एक कमरे की आधी खुली खिड़की से दिख रहे द्रश्य की ओर निर्देश किया.. एक कपल की हरकतें खिड़की से साफ नजर आ रही थी.. तीनों की नजर वहीं चिपक गई..

वैशाली: "तुम दोनों देखती रहो.. अब इनका कार्यक्रम शुरू होगा"

खिड़की से दिख रहा था.. एक पुरुष और स्त्री आपस में चुम्मा-चाटी कर रहे थे..

"मैं अभी आई.. " कहते हुए वैशाली भागकर कमरे में गई और अपनी बेग से दूरबीन लेकर वापिस लौटी.. दूरबीन से से देखकर उसने फाल्गुनी को देते हुए कहा.. "तू थोड़ी देर देख फिर मौसम को देना और फिर वापिस मुझे.. सब मिलकर देखते है"

मौसम: "दूरबीन तो मैं भी लाई हूँ.. "

वैशाली: "तो जल्दी लेकर आ.. मुफ़्त में बी.पी. देखने का मौका मिला है.. जा जल्दी"

दूरबीन से देखते हुए फाल्गुनी ने कहा "वैशाली.. वो दोनों किस कर रहे है.. एकदम साफ साफ दिख रहा है यार.. " फाल्गुनी को अब मज़ा आ रहा था

"ला मुझे भी देखने दे.. " वैशाली ने कहा

"नही.. मुझे देखने दे पहले" फाल्गुनी ने दूरबीन नही दिया

दूरबीन से उस बेखबर और बिंदास कपल के हरकतों को देख रही फाल्गुनी के स्तनों पर हाथ रखकर वैशाली दूसरे हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी.. तभी मौसम भी अपना दूरबीन ले आई.. और वैशाली के पीछे खड़े होकर देखने लगी.. मौसम के स्तन वैशाली की पीठ पर छु रहे थे..

मौसम: "देख देख फाल्गुनी.. वो आदमी बॉल दबा रहा है उस औरत के" रोमांचित होकर उसने फाल्गुनी से कहा

वैशाली फाल्गुनी के स्तनों को हल्के हल्के मसलते हुए अपनी क्लिटोरिस से खेल रही थी.. उसे उस कपल की हरकतें देखने में कोई दिलचस्पी नही थी क्योंकि उसके लिए ये कोई नई बात तो थी नही.. लेकिन फाल्गुनी और मौसम के लिए ये पहली बार था.. सेक्स का लाइव टेलीकास्ट देखने का मौका.. दोनों कुंवारी लड़कियां ये देखने के लिए आतुर थी की आगे ओर क्या होगा.. !! फाल्गुनी को ये सब देखने में पता ही नही चला की कब वैशाली ने उसकी नाइटी के सारे हुक खोल दीये और उसके दोनों उरोजों को बाहर निकालकर दबाने लगी.. मौसम भी उत्तेजित होकर अपने स्तनों को वैशाली की पीठ पर रगड़ने लगी थी

मौसम बालकनी के उस कामुक सीन को दूरबीन से देखते हुए.. कुछ घंटों पहले अपने जीजू के संग हुए संसर्ग को याद करते हुए गीली हो रही थी.. फाल्गुनी अभी नादान थी.. वो तो ये द्रश्य देखकर हतप्रभ से हो गई थी.. सामने दिख रहा सीन कुछ ऐसा था.. वह औरत खिड़की पकड़े खड़ी हुई थी और उसका पार्टनर पीछे से गर्दन और पीठ को चूम रहा था.. बाहर घनघोर अंधेरा था और कमरे की लाइट चालू थी इसलिए इन तीनों को वहाँ का नजर एकदम साफ साफ नजर आ रहा था..

कब से मौसम और फाल्गुनी दूरबीन पर ऐसे चिपकी थी जैसे गुड पर मक्खी.. अब वैशाली को भी इच्छा हो गई उस कपल की हरकतें देखने की.. किसी जोड़े को संभोग करते हुए देखना अपने आप में ही बड़ा अनोखा अनुभव होता है.. किसी कपल की विकृत काम हरकतों को देखकर वैसी ही प्रबल उत्तेजना होती है जो वास्तविक संभोग के दौरान होती है..

मौसम के हाथ से दूरबीन छीनते हुए वैशाली ने कहा "मुझे तो देखने दे.. !! तू तो कब से ऐसे देख रही है जैसे तुझे इस बारे में परीक्षा देनी हो और उसकी तैयारी कर रही हो.. " अब बिना दूरबीन के मौसम को साफ नजर तो नही आ रहा था.. फिर भी आँखें खींचकर वो देखने की कोशिश कर रही थी.. इस बात से बेखबर की उसके स्तन वैशाली की पीठ से दबकर बिल्कुल ही चपटे हो गए थे.. या तो फिर हो सकता है की उसे पता हो और उत्तेजना के मारे जान बूझकर उसने ही अपने स्तन वैशाली की पीठ से दबा दिए हो.. !!

"तुम दोनों में से किसी ने भी मर्द का पेनिस देखा है कभी?" वैशाली के इस बोल्ड और बिंदास प्रश्न से मौसम और फाल्गुनी की हालत खराब हो गई..

फाल्गुनी: "नही दीदी.. कभी नही.. "

मौसम ने कुछ जवाब नही दिया.. वो सोच रही थी की जीजू का लंड आज दिख ही जाने वाला था अगर वो थोड़ी सी और हिम्मत करती तो.. पर खुले बाजार के बीच वो ऐसा कैसे करती?

"कैसा होता है.. वैशाली?" मौसम ने अपने स्तन पीठ पर रगड़ते हुए वैशाली को पूछा

"देख.. देख.. वो औरत उस मर्द का चूस रही है" वैशाली ने मौसम के हाथों में दूरबीन थमाते हुए कहा.. मौसम ने दूरबीन लिया और वैशाली के पीछे से हटकर वो अब फाल्गुनी के पीछे खड़ी हो गई और देखने लगी..

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वैशाली ने मौसम की गर्दन के पीछे एक हल्की सी किस कर दी और बोली "बहोत ही मस्त होता है यार.. मर्द का हथियार.. अब तुम दोनों को क्या बताऊँ.. !! हाथ में पकड़े तो छोड़ने का मन ही नही करता.. देखो वो कितने मजे से चूस रही है? देखा.. ??" वैशाली अब काफी उत्तेजित हो गई थी और उसके हाथ की हलचल इस बात का सबूत दे रहा था क्योंकि उसने फाल्गुनी के स्तनों को नाइटी के बाहर निकाल ही दिया था और अब वो मौसम के स्तनों से खेल रही थी..

मौसम की काँख के नीचे से दोनों हाथ अंदर डालकर वैशाली ने मौसम के दूरबीन पकड़े हाथों को पकड़ लिया.. अब उसने मौसम की नाइटी के अंदर हाथ डालकर जोर से उसके उरोजों को दबाया.. मौसम की हल्की चीख निकल गई.. "क्या कर रही हो यार? जरा धीरे धीरे दबा न.. ज्यादा गर्मी चढ़ रही हो तो चली जा सामने वाले उस कमरे में.. वो तैयार ही बैठा है "

वैशाली ने अपने दोनों स्तन बाहर निकालकर मौसम की पीठ से घिसते हुए उसकी चुत पर उंगली फेरी.. सीधा अपने प्राइवेट पार्ट पर वैशाली के हाथ का स्पर्श महसूस होते ही मौसम सहम गई और अपनी जांघें भींच ली.. "छी छी.. वैशाली.. इन दोनों को तो देख.. कैसा गंदा गंदा कर रहे है!! मुझे तो देखकर ही घिन आती है.. देख तो सही !!"

दूरबीन हाथ में लेकर वैशाली ने देखा.. वह पुरुष उस स्त्री की चूत के होंठों को फैलाकर चाट रहा था.. उस स्त्री की एक टांग खिड़की पर टिकी हुई थी और उसका पार्टनर अपनी जीभ अंदर तक फेर रहा था.. वैशाली ने हँसकर मौसम को अपनी ओर मोडाल और गले लगाते हुए कहा "यार यही तो सब से सर्वोत्तम सुख होता है.. जितना मज़ा लंड से चुदवाने में आता है.. उतना ही मज़ा अपनी चटवाने में भी आता है.. एक बार जीभ का स्पर्श नीचे चूत पर हो तब ऐसे झटके लगते है अंदर.. की तुम्हें क्या बताऊँ.. !!"

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वैशाली के मुंह से "लंड" और "चूत" जैसे शब्द सुनकर फाल्गुनी और मौसम शर्म से लाल हो गए..

मौसम: "वैशाली.. तुमने अभी बताया ना की मर्द का पेनिस देखने लायक होता है.. !! तो मुझे वो देखना है.. !!"

वैशाली ने अन दोनों हाथ नाइटी के अंदर डालकर मौसम के दोनों जवान चुचे हाथ में पकड़ लिए और दबाने लगी..

वैशाली: "तू पागल है क्या मौसम!! मेरे पास लंड कहाँ है जो मैं तुम्हें दिखाऊँ.. !! मेरे पास तो बस तेरे जैसी चूत ही है.. देखना तो मुझे भी है पर अभी इस वक्त लंड कहाँ से लाऊँ??"

फाल्गुनी चुपचाप मौसम और वैशाली की कामुक बातें सुनते हुए दूरबीन से उस कपल की एक एक हरकत को बड़े ध्यान से देख रही थी..

वैशाली: "मौसम, तू एक हाथ से दूरबीन पकड़ और दूसरे हाथ से फाल्गुनी की चुची दबा.. तो उसे भी मज़ा आए.. "

मौसम ने तुरंत ही फाल्गुनी के मासूम स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके गाल पर पप्पी कर दी.. और एक बार उसके गाल को चाट भी लिया.. गाल पर मौसम की जीभ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी उत्तेजना से कराहने लगी.. तभी अचानक वो सामने दिख रहे कपल ने अपनी खिड़की बंद कर दी


फाल्गुनी निराश हो गई "खेल खतम और पैसा हजम"
बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
ये वैशाली फाल्गुनी और मौसम की सेक्स के गुर सिखाने वाली सेक्स गुरू बन गयी
बालकनी से सामने के रुम में चल रही काम लिला से दोनों को रुबरु कराते हुए खुद भी उत्तेजित हो गयी है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है​
 

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पार्टी खत्म होने की कगार पर थी.. रेणुका ने सब को आखिरी बार संबोधित करते हुए कहा

"प्यारे परिवारजन, मेरे जन्मदिन को आप से सब ने अपनी उपस्थिति से यादगार बना दिया.. आप सब भविष्य में भी हमारे साथ जुड़े रहेंगे ऐसी अपेक्षा और विश्वास है.. अगली बर्थडे मैं बेंगकॉक में मनाना चाहती हूँ.. आप सब के साथ.. थेंक यू राजेश फॉर गीविंग मी सच अ मेमोरेबल पार्टी एंड थेंक यू एवरीबड़ी.. अगर किसी को भी कुछ तकलीफ हुई हो तो क्षमा चाहती हूँ.. इसके साथ ही आज की शानदार रात को यहीं खतम करते है.. आप सब अपने कमरे में जाकर आराम कीजिए.. कल सुबह साइट-सीइंग की लिए चलेंगे.. और दोपहर के बाद हम वापिस लौटने का सफर शुरू करेंगे.. गुड नाइट एंड स्वीट ड्रीम्स!!"

सब ने तालियों से पार्टी का समापन किया.. एक के बाद एक सब अपने कमरे की और जाने लगे.. सब के साथ कोई न कोई था.. सिर्फ वैशाली ही अकेली थी.. अपनी इस स्थिति से काफी व्यथित हो गई वैशाली.. सब के साथ कोई न कोई साथी था.. और वो यहाँ अकेली थी जब की संजय वहाँ किसी रांड की बाहों में पड़ा होगा..

साली कैसी कमबख्त ज़िंदगी है ये!!! आज संजय और मेरे बीच सब सही होता तो हम भी हाथ में हाथ डालकर डांस कर रहे होते.. पार्टी का अलग ही मज़ा आता.. बाकी कपल्स की तरह रूम में जाकर जबरदस्त चुदाई भी करते.. ऐसे खुले वातावरण में कितनी सारी इच्छाएं उठती है मन में!! पीयूष के साथ उतावला सेक्स और राजेश सर के साथ टॉइलेट में चुदाई ना करवानी पड़ती आज.. आराम से ए.सी. रूम में मुलायम बेड पर टांगें फैलाकर चुदवाती..!! सब निकल रहे थे और वैशाली इन खयालों के कारण उदास खड़ी हुई थी

"आप अभी भी यही खड़ी हो?? कमरे में चलना नही है क्या? सब चले गए.. " फाल्गुनी ने वैशाली का हाथ पकड़कर खींचा तब वैशाली अपने विचारों से बाहर आई.. वैशाली की आँखों के कोने में चमक रहें आंसुओं को देखकर वह समझ गई की कुछ तो गड़बड़ थी.. वरना इतनी शानदार पार्टी के बाद भला कोई उदास क्यों होगा!!

"इतनी उदास क्यों हो दीदी?" फाल्गुनी ने पूछा

"कुछ नही.. बस मेरे पति की याद आ गई थी.. "

"ओह्ह इतनी सी बात.. उदास क्यों हो रही हो.. फोन उठाओ और बात कर लो.. " नादान फाल्गुनी ने कहा

"नही फाल्गुनी.. मेरी समस्या गंभीर है.. तू नही समझेगी.. ज़िंदगी ने ऐसे अजीब मोड पर लाकर खड़ा कर दिया है की मुझे खुद ही नही पता आगे क्या होगा!!"

फाल्गुनी: "आपके हसबंड और आपके बीच झगड़ा हुआ है?" बड़ी ही निर्दोषता से उसने पूछा

"झगड़ा नही हुआ है.. जिंदगी ही खतम हो गई है.. पिछले दो सालों से हमारे बीच मनमुटाव है.. काफी समय से हम एक दूसरे से ठीक से बात भी नही करते.. यहाँ सब कपल्स को इन्जॉय करते देख मेरा दिल भर आया... दुख होना स्वाभाविक है!!"

पूरे हॉल में बस फाल्गुनी और वैशाली अकेले बचे थे..

"मैडम जी, अगर आपको यहाँ रुकना हो तो मैं हॉल बंद करने बाद में आऊँ?" मेनेजर ने उनसे पूछा

"अरे नही.. आप बंद कर दीजिए.. हम बस जा ही रहे है.. " वैशाली और फाल्गुनी बाहर निकल गए..

होटल के तीसरे माले पर कमरे की बालकनी में खड़े होकर आसमान में टिमटिमाते तारों को देखने लगी..

"अगर तुझे नींद आ रही हो तो सो जा.. मैं थोड़ी देर यहीं रुकूँगी.. " वैशाली ने फाल्गुनी से कहा.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली एक ही कमरे में रुके थे.. मौसम नाइटी पहनकर बेड पर लेटे हुए इन दोनों की बातें सुन रही थी.. उसे थोड़ी नींद आ रही थी इसलिए वो वहीं लेटी रही..

फाल्गुनी ने मौसम को सोते हुए देखकर कहा "बाहर बालकनी में चल.. दीदी के साथ बैठते है.. वापिस घर जाकर फिर सोना ही तो है.. यहाँ दोबारा कब आना होगा कीसे पता.. !!" फाल्गुनी ने बालकनी में दो कुर्सियाँ लगाते हुए कहा

"क्यों नही आएंगे वापिस?? शादी के बाद पति के साथ हनीमून पर यहीं तो आएंगे " फाल्गुनी को अपनी ओर खींचते हुए मौसम ने कहा

"तू आराम से सो जा.. और सपने में हनीमून मना ले.. हमे शांति से बैठने दे" कहते हुए फाल्गुनी खड़ी हो गई

"कोई बात नही.. तुझे हनीमून पर न जाना हो तो मुझे बता देना.. तेरे पति के साथ मैं चली जाऊँगी... और तू घर पर बैठे बैठे बातें करते रहना" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा

इन दोनों की हंसी-ठिठोली सुनकर वैशाली की उदासी के बादल भी छट गए..

वैशाली: "तुम दोनों कब से हनीमून हनीमून लगे हुए है.. पर उसमें क्या होता है ये पता भी है?? हनीमून में क्या करते है ये जानती हो?"

"वो तो जब मौका मिलेगा तब सीख लेंगे.. आप भी तो जब गई होगी तब नई नई ही होंगी.. जैसे आप ने सीख लिया वैसे हम भी सीख लेंगे"

"नई नई थी या नही वो तुम्हें क्या पता??" वैशाली ने शरारती आंखो से कहा और हंस पड़ी "अपना पाप तो हम खुद ही जानते है.. वो तो हमारे पति को भी पता नही होता की जिस बच्चे को वो गोदी में लेकर खेल रहा है वो असल में उसका है भी या नही.. सिर्फ माँ ही जानती है.. मेरा बेटा, मेरा बेटा कहते हुए उछल रहे पति की आवाज सुनकर किचन में उसकी पत्नी मन ही मन मुस्कुरा रही होती है की जिसे तू अपनी औलाद समझ रहा है वह असल में मेरे पुराने प्रेमी की निशानी है.. " वैशाली ने जीवन के कटु सत्य को फाल्गुनी और मौसम के सामने उजागर किया..

तीनों बातों में मशरूफ़ थे.. वैशाली और फाल्गुनी कुर्सी पर बैठे हुए अपने पैर बालकनी की दीवार पर टिकाए हुए थे.. मौसम बेड पर पड़े पड़े तकिये को अपनी बाहों में लेकर बातें कर रही थी.. वैशाली ने भी कपड़े बदलकर छोटी सी नाइटी पहन ली थी.. पैर दीवार पर रखे होने के कारण उसकी छोटी सी नाइटी उसकी जांघों तक सरक गई थी.. और उसकी गोरी गदराई जांघें साफ नजर आ रही थी.. वैसे कमरे में तीनों लड़कियां ही थी इसलिए वह बेफिक्र थी.. अब मौसम भी उठकर तीसरी कुर्सी पर उन दोनों के साथ बैठ गई

मौसम: "आप दोनों को नींद नही आ रही? बारह बज रहे है.. बातें कर कर के मेरी भी नींद उड़ा दी आप लोगों ने..

वैशाली: "तू आराम से सो जा.. तुझे कौन रोक रहा है.. तेरे पति के साथ हनीमून पर आबू आएगी तब सोने को नसीब ही नही होगा.. याद रखना!!"

मौसम: "तभी तो कह रही हूँ.. उस वक्त जागना पड़ेगा इसलिए सो जाते है"

वैशाली: "तू चिंता मत कर.. उस समय अगर तुझे नींद आ भी गई तो तेरा पति छातियाँ दबाकर तुझे जगा देगा.. "

वैशाली की यह खुल्लमखुल्ला बातचीत से मौसम और फाल्गुनी.. दोनों के जिस्मों में सुरसुरी होने लगी.. वैसे मौसम ने कुछ घंटों पहले ही अपने जीजू से छातियाँ दबवाई थी.. इसलिए उसके शरीर में जो स्पंदन जग रहे थे वह वासना के थे.. फाल्गुनी के मन में वासना का भाव कम और जिज्ञासा का भाव ज्यादा था..

मौसम: "एक बात मुझे समझ नही आती वैशाली.. जब पुरुष का हाथ हमारी छाती को छूता है तब बहोत मज़ा आता है क्या?" जान कर भी अनजान बन रही थी मौसम..

वैशाली: "क्यों? तुझे अब तक ऐसा कोई अनुभव नही हुआ क्या??? सच सच बता.. बगैर दबवाये ही तेरे इतने बड़े हो गए क्या?? मुझे तो पक्का डाउट है.. किसी की मदद लिए बगैर इतने आकर्षक और परफेक्ट शेप में ये रह ही नही सकते.. और मौसम.. तेरे बबलों की ताजगी देखकर यही लगता है की तू जरूर किसी से दबवाती होगी.. !!"

फाल्गुनी: "सही बात है दीदी.. ये साली बड़ी छुपी रुस्तम है.. किसी को पता भी न चले वैसे मजे करने वाली.. मैं अच्छे से जानती हूँ ईसे"

मौसम: "साली.. मुझे क्यों बदनाम करती है.. !! पूरा दिन तो मैं तेरे साथ होती हूँ.. फिर मैं कहाँ किसी से ऐसा करवाने जा सकती हूँ? थोड़ा तो विश्वास रख मुझ पर"

वैशाली: "विश्वास? हा हा हा हा हा.. आज के जमाने में विश्वास सगे भाई पर भी नही रख सकते.. तू अखबारों में पढ़ती होगी.. जवान लड़की पर उसका भाई या बाप ही रेप करता है कई जगह.. "

मौसम: "वैशाली, तुम जो कह रही हो उसे बलात्कार कहते है.. अपनी मर्जी से दबवाने में और बलात्कार में जमीन आसमान का फरक है.. क्या तुम यह कहना चाहती हो की जबरदस्ती होने पर भी लड़की को मज़ा आता होगा?"

फाल्गुनी का चेहरा एकदम पीला पड़ गया "नही ऐसा कभी नही हो सकता.. किसी भी लड़की के लिए जबरदस्ती सहना बेहद यातनामय होता है" बोलकर फाल्गुनी एकदम चुप हो गई.. पर उसे एहसास हुआ की उसने बहोत बड़ी गलती कर दी ये बोलकर.. उसके कहने का मतलब ना समझ सके ऐसे मूर्ख नही थे वैशाली और मौसम

मौसम: "फाल्गुनी? तुझे पता भी है क्या बोल रही है? ये सब तुझे कैसे पता? क्या तेरे साथ कभी ऐसा कुछ??"

फाल्गुनी ने जवाब नही दिया

वैशाली ने बड़े ही प्यार और वात्सल्य से जांघ पर हाथ फेरते हुए कहा "मौसम की बात का जवाब दे फाल्गुनी"

फाल्गुनी: "नही यार ऐसा कुछ खास नही है"

फाल्गुनी की आवाज बदल गई.. उसकी आवाज में एक अजीब प्रकार का डर झलक रहा था.. वह नीचे देखते हुए बैठी रही

वैशाली: "सच सच बता फाल्गुनी.. मैं कल से देख रही हूँ.. इतने खुले और आजाद वातावरण में भी तुम किसी भी पुरुष के साथ ज्यादा बात नही करती.. मैं ये जानना चाहती हूँ की तू इतनी चुप चुप क्यों रहती है? प्लीज हमें बता"

मौसम: "बिल्कुल सही कहा तुमने वैशाली.. इस बात को तो मैंने भी नोटिस किया है.. सेक्स के बारे में जब भी बात होती है तब तू दूर ही भागती है.. कॉलेज में भी तू लड़कों से दूर रहती है.. मैं काफी समय से पूछना चाहती थी.. अच्छा हुआ आज ये बात निकली"

वैशाली: "देख फाल्गुनी, यहाँ पर हमारे अलावा और कोई नही है.. और हम दोनों तुझे वचन देते है की हम किसी को भी नही बताएंगे.. बता.. क्या हुआ था तेरे साथ?"

फाल्गुनी: "ऐसा भी कुछ नही हुआ था.. पर जब भी मैं सेक्स के बारे में सोचती हूँ.. मन में अजीब सा डर लगने लगता है.. पता नही क्यों.. रात को नींद में जब मैं उत्तेजित हो जाती हूँ तब सपने में एक भयानक चेहरा आँखों के सामने आ जाता है ओर वो मेरे साथ.. जबरदस्ती करने लगता है.. !!"

वैशाली और मौसम स्तब्ध होकर सुनते रहे..

वैशाली: "जबरदस्ती करने लगता है.. मतलब क्या करता है?"

फाल्गुनी: "प्लीज दीदी.. आगे मत पूछिए.. मुझे तो बताने में भी शर्म आती है" थरथर कांपती फाल्गुनी ने अपनी खुली हुई जांघें अचानक बंद कर दी..

थोड़ी देर के लिए तीनों चुप बैठे रहे

अब वैशाली कुर्सी से खड़ी होकर बोली "यहाँ आओ फाल्गुनी.. मेरे पास.. मौसम तू भी" मौसम तुरंत उठी और वैशाली के पास जाकर खड़ी हो गई.. लेकिन फाल्गुनी कुर्सी पर अब भी बैठी ही रही..

मौसम का हाथ पकड़कर वैशाली ने उसे अपनी ओर खींचा और उसके होंठों पर एक मस्त लेस्बियन किस कर दी.. मौसम इस हरकत के लिए तैयार नही थी.. उसे बड़ा अचरज हुआ.. पर वैशाली ने इस आश्चर्य को उत्तेजना में बदलते हुए मौसम के स्तनों को.. फाल्गुनी की नज़रों के सामने ही.. दबाना शुरू कर दिया..

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ये देखते ही फाल्गुनी ऐसे थरथराने लगी जैसे उसने भूत देख लिया हो.. उसे इस तरह कांपते हुए देख वैशाली ने यह अंदाजा लगाया की जरूर कोई ऐसी घटना घाटी थी फाल्गुनी के साथ जिसके कारण उसके कोमल मन पर गंभीर असर किया था.. या तो फिर उसने कोई ऐसा खतरनाक मंज़र देखा था.. कुछ तो था जिसके कारण फाल्गुनी सेक्स से जुड़ी बातों से इतना डर रही थी..

वैशाली सोच रही थी की ऐसा क्या करूँ जिससे उसका यह डर गायब हो जाएँ.. !!

मौसम के स्तनों पर वैशाली का हाथ, ना उसने हटाने की कोशिश की और ना ही फाल्गुनी की नजर उसके स्तनों से..

वैशाली: "कैसा महसूस हो रहा है तुझे मौसम? सच सच बताना.. "

मौसम: "ओह वैशाली.. मज़ा ही आएगा ना.. जाहीर सी बात है!!"

वैशाली: "देख फाल्गुनी.. मौसम को कितना मज़ा आ रहा है.. देखा तूने!!" मौसम के स्तनों को मसलते हुए वैशाली ने फाल्गुनी की ओर देखकर कहा "तू बेकार ही डर रही है फाल्गुनी.. एक औरत होते हुए अगर मेरा स्पर्श मौसम को इतना मज़ा दे रहा हो.. तो सोच.. जब किसी पुरुष का मर्दाना हाथ पड़ेगा तब कितना जबरदस्त मज़ा आएगा!! सच कह रही हूँ फाल्गुनी.. तू अपने मन से सेक्स के प्रति घृणा और डर निकाल दे.. ये तो जीवन का सब से श्रेष्ठ आनंद है.. " वैशाली मौसम के अद्भुत वक्षों को धीरे धीरे मसलते हुए फाल्गुनी के डर को दूर करने की कोशिश कर रही थी.. मौसम भी वैशाली के इस प्रयास में पूर्ण सहयोग दे रही थी.. और उसे मज़ा भी आ रहा था.. जो की साइड इफेक्ट था..!!

मौसम की कुंवारी छाती पुरुष के मर्दाना स्पर्श को एक बार चख चुकी थी.. जैसे आदमखोर शेर एक बार इंसान का खून चख ले फिर उसे चैन नही पड़ता वैसे ही कुछ हाल मौसम का भी था.. जिन स्तनों को देखकर लड़के मूठ लगाते थे वही स्तनों को अभी दबाने वाले पुरुष की तलाश थी.. काफी सुंदर द्रश्य था.. माउंट आबू की शांत रात्री के माहोल में शराब पीकर सब सो रहे थे.. तब रात के साढ़े बारह बजे.. यह तीन लड़कियां एक दूसरे के अंगों को पुरुष से दबवाने के बारे में सोच रहे थे..

सीनियर शिक्षिका की तरह वैशाली अपना रोल बखूबी निभा रही थी.. आज के ही दिन वैशाली ने पीयूष और राजेश सर दोनों से अपनी मरवाई हुई थी.. अलग अलग लंड से चुदकर काफी बार जानदार ऑर्गजम का आनंद और चमक उसके चेहरे पर साफ छलक रही थी..

वैशाली: "फाल्गुनी.. एक समय था जब मैं भी सेक्स के मामले में तेरी तरह ही गंवार थी.. मुझे तो ये ही पता नही चल रहा था की कुदरत ने लड़कियों की छाती पर ये बबले आखिर बनाए क्यों थे!! इतनी ही समझ थी की आगे जाकर होने वाले बच्चे को दूध पिलाने की लिए ही इस व्यवस्था को बनाया गया होगा.. पर एक बार जब ये स्तन दबे.. तब मुझे एहसास हुआ की दूध पिलाने के लिए तो इसका उपयोग बाद में होगा.. इसका असली काम तो दबवाकर मजे लूटने का था.. तू मानेगी नही मौसम.. मुझे हमेशा ताज्जुब होता था की लड़के आखिर मेरी छातियों को हमेशा क्यों तांकते होंगे? मुझे भी सब कुछ संजय के साथ शादी करने के बाद ही पता चला.. शादी की पहली रात जब संजय ने मेरी छातियों को दबाया और चूसा.. तब मुझे पता चला की जीवन का असली मज़ा छाती को ब्रा के अंदर छुपाने में नही.. पर किसी के हाथों में सौंपने में था.. !!"

वैशाली की इस असखलित प्रवाह वाला लेक्चर फाल्गुनी बड़े ध्यान से सुन रही थी.. वैशाली दोनों के चेहरों की तरफ देख रही थी.. उसे लगा की दोनों को उसकी बातों में गहरी दिलचस्पी थी..

वैशाली: "फाल्गुनी.. एक बात पूछूँ.. तुम दोनों सच सच बताना.. !! मैं प्रोमिस करती हूँ की इस बात को मैं राज ही रखूंगी.. तू यहाँ आ फाल्गुनी मेरे पास.. घबरा मत.. यहाँ आ" फाल्गुनी धीरे से उठकर उन दोनों के पास गई.. तीनों इतने करीब खड़ी थी की अगर थोड़ा सा भी और नजदीक आती तो उनके स्तन आपसे में दब जाते..

फाल्गुनी के गोरे गालों पर वैशाली ने हल्के से हाथ फेर लिया.. और बड़े प्रेम से उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा "फाल्गुनी, तूने कभी लिप किस की ही?" फाल्गुनी की हथेली कांप रही थी "बता न फाल्गुनी?.. मौसम तूने कभी.. ??" फाल्गुनी के साथ मौसम को भी घेरे में लिया वैशाली ने..

मौसम: "मैंने तो नही की.. " पर इतना बोलते ही मौसम को पीयूष के संग बिताएं वो हसीन पल याद आने लगे.. हल्की सी मुस्कान के साथ उसने कहा "वैशाली मुझे लिप किस अच्छी नही लगती यार.. एक दूसरे के मुंह में मुंह डालना मुझे नही पसंद.. घिन आती है.. "

फाल्गुनी ने धीमी आवाज में कहा "मैंने एक इंग्लिश मूवी में देखा तो है.. पर ट्राय नही किया कभी"

वैशाली: "ओके.. अब अगर तुम दोनों को दिक्कत न हो.. तो क्या हम एक दूसरे को किस करें? जब तुम्हारी शादी होगी और पति लिप किस करेगा तब तुम दोनों को यह अनुभव बहोत काम आएगा.. पर तुम्हारी इच्छा हो तो ही.. लिप किस भी एक कला है.. सीखना बहोत जरूरी है"

मौसम: "हाँ मुझे सिखाओ.. मैं सीखना चाहती हूँ" फाल्गुनी कुछ बोलने जा ही रही थी पर उससे पहले मौसम शुरू हो गई इसलिए वह चुप रही.. वैशाली ने फाल्गुनी का हाथ पकड़कर अपने एकदम नजदीक खींचते हुए कहा "मौसम.. पहले मैं फाल्गुनी को किस करूंगी.. फिर हम दोनों करेंगे.. ठीक है!!"

मौसम: "ओके डन.. पहले तुम दोनों करो.. मैं देखूँगी और सीखूँगी"

वैशाली: "फाल्गुनी, आर यू रेडी?"

डरी हुई फाल्गुनी कुछ बोल न पाई.. वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए दूसरा सवाल किया "कभी किसी ओर लड़की की ब्रेस्ट को दबाया है?" फाल्गुनी ने सर दायें बाएं हिलाकर "ना" कहा.. दोनों की हरकतें देखकर मौसम का हाथ अनजाने में ही खुद के स्तनों पर चला गया..

वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली में अपना स्तन दे दिया.. और कहा "जरा जोर से दबा.. और देख कितना मज़ा आता है!!"

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सहमी हुई फाल्गुनी मशीन की तरह वैशाली के स्तन को दबा रही थी.. ना ऊष्मा थी और ना ही वासना

वैशाली: "सहला क्या रही है.. जरा जोर से दबा.. तभी तो मज़ा आएगा" फाल्गुनी के गले में अपना हाथ डालकर अपने होंठों को उसके नाक तक लेकर वैशाली ने धीरे से चाट लिया.. फाल्गुनी ने ना ही विरोध किया और ना ही कुछ बोली.. अब वैशाली ने फाल्गुनी के स्तनों को अपने हाथों से बड़े जोर से मसल दिया

फाल्गुनी: "आह्ह.. दीदी.. धीरे से.. दर्द हो रहा है"

वैशाली: "अरे यार.. मैं तो ये कह रही हूँ की इस तरह दबा मेरे.. समझी.. जरा जोर से.. तेरे बॉल अभी अनछुए और कोरे है.. इसलिए दर्द हो रहा है.. मेरे तो अब अनुभवी हो गए है.. धीरे धीरे दबाने से मेरे स्तनों को कुछ महसूस ही नही होता इसलिए कह रही हूँ की जरा ताकत लगाकर दबा" इतना कहकर वैशाली ने फाल्गुनी के गालों को चूम लिया.. चूमने के बाद उसने अपनी जीभ बाहर निकालकर उसके गाल को चाट लिया.. पूरा गीला कर दिया.. वैशाली को पता था की फाल्गुनी को इसमें मज़ा नही आ रहा था पर शुरुआत में ऐसा होना स्वाभाविक था..

अब वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली को अपनी नाइटी के अंदर डालकर अपने नंगे चुचे का स्पर्श करवाया.. "आह्ह.. " यह द्रश्य देखकर ही मौसम की सिसकी निकल गई.. और वो दोनों हथेलियों से अपने स्तन दबाने लगी..

कुदरत के बक्शे हुए इन सुंदर यौवन कलशों को अब तक अनगिनत बार आईने में देखकर मसल चुकी मौसम.. फाल्गुनी के स्तनों को कभी छुआ नही था उसने.. हाँ कभी कभार अनजाने में हल्का सा स्पर्श जरूर हो जाता.. या फिर स्तन दब जाते तब एक दूसरे को हँसकर "सॉरी" बोल देते थे.. उस हंसी का मतलब ये होता था की भले ही गलती से दब गए हो.. पर स्तन का दबना ही उसका भविष्य होता है.. और दबने में ही स्तनों के अस्तित्व की सार्थकता थी..

लेकिन इन दोनों नादान लड़कियों का दिमाग इतना ज्यादा भी कलुषित नही हुआ था.. कभी कभार टीवी पर दिख जाती कोंडोम की एड.. या फिर किसी मूवी का उत्तेजक गाना या सीन.. देखकर उत्तेजित होती दोनों इतनी मासूम भी नही थी.. पर अन्य फॉरवर्ड और मॉडर्न लड़कियों के मुकाबले मौसम और फाल्गुनी सेक्स के मामले में बिल्कुल अनुभवहीन थे.. अब तक सेंकड़ों बार वो दोनों खुद के स्तनों को छु चुके थे पर आज तक कभी ऐसा एहसास नही हुआ था.. फाल्गुनी का पूरा शरीर वैशाली के स्तन का स्पर्श होते ही कांपने लगा.. वो ऐसे पेश आ रही थी जैसे काफी डरी हुई हो.. पर बिना इसकी परवाह कीये.. वैशाली ने फाल्गुनी के कान में कहा "कैसे लगे मेरे स्तन तुझे, फाल्गुनी?"

"ओह्ह प्लीज दीदी.. " फाल्गुनी सिर्फ इतना ही बोल पाई.. बालकनी के अंधेरे में अपना पूरा स्तन ही नाइटी से बाहर निकाल दिया वैशाली ने.. और फाल्गुनी के हाथ में थमाते हुए दबवाने लगी.. "और ये देख मेरी निप्पल.. कैसी लगी तुझे फाल्गुनी?" वैशाली के एक के बाद एक कामुक सवालों से फाल्गुनी के जवान कुँवारे जिस्म में बिजली सी दौड़ रही थी.. उसका कांपना अभी बंद नही हुआ था.. वैशाली अपने स्तनों पर चल रही ठंडी हवा को महसूस करते हुए सिहर रही थी.. उसने मौसम से कहा "अपनी नाइटी ऊपर कर के देख.. स्तनों पर जब ठंडी ठंडी हवा टकराती है तब कितना मज़ा आता है.. !!"

मौसम शरमा गई.. और बोली "मुझे लगता है.. की तुम काफी एक्साइटेड हो गई हो वैशाली"

"तो उसमें गलत भी क्या है मौसम? यहाँ होटल में हर कोई अपने पति या बॉयफ्रेंड को अपने बाहों में भरके उनके मस्त लंड से चुदवा रही होगी.. और यहाँ मैँ.. शादीशुदा होते हुए भी तड़प रही हूँ.. आप दोनों ने तो वो मज़ा लिया नहीं है इसलिए नही समझ पाओगे.. पर एक बार स्त्री पुरुष के स्पर्श को प्राप्त कर ले फिर वो उसकी जरूरत बन जाता है.. जब तक सिर्फ उंगलियों से मास्टरबेट ही किया हो तब तक असली पेनिस से करवाने के मजे के बारे में पता नही चलता.. बस ऐसा ही लगता है की उंगलियों में ही सारा सुख छुपा हुआ है.. पर एक बार जब छेद के अंदर मर्द का अंग घुसता है और अंदर बाहर होता है.. और उसकी सख्ती से रोम रोम जीवंत हो जाता है.. ओह्ह फाल्गुनी.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. अभी मुझे लंड की सख्ती बड़ी याद आ रही है.. मुझे ऐसा एहसास हो रहा है जैसे नीचे हजारों चींटियाँ एक साथ काट रही हो.. ऐसी खुजली हो रही है की मैं बता नही सकती.. मैं तो वो स्वाद काफी बार चख चुकी हूँ.. इसीलिए आधी रात को ऐसे मादक माहोल में मुझे याद आ रही है.. इसमे मेरी कोई गलती नही है"

कहते हुए वैशाली ने फाल्गुनी को अपनी बाहों में भर लिया और उसके कुँवारे होंठों पर अपने होंठ रखकर फाल्गुनी को उसके जीवन की पहली लिप किस भेंट कर दी.. थरथर कांपती फाल्गुनी ने मुंह फेरते हुए इनकार करने की कोशिश की.. पर वह इनकार से ज्यादा इजहार का संकेत था.. वैशाली की उत्तेजना उसके शरीर को फाल्गुनी से भी ज्यादा बल दे रही थी.. एक तरफ फाल्गुनी की नादान उम्र और चढ़ती जवानी की चाह उसे शरण में आने की लिए मजबूर कर रही थी.. "दीदी प्लीज.... " अभी भी वो अशक्त विरोध कर रही थी.. लेकिन दूसरी तरफ वैशाली की चूत लंड मांग रही थी.. और लंड की अनुपस्थिति में वह सारी कसर फाल्गुनी पर निकाल रही थी..

जब वैशाली ने फाल्गुनी को बाहों में भर लिया तब फाल्गुनी के कडक स्तन वैशाली की छातियों पर चुभने लगे थे.. अब फाल्गुनी भी इन हरकतों से मजे लेने लगी थी..

वैशाली: "यार फाल्गुनी.. तेरी ब्रेस्ट कितनी कडक है.. !! मेरे बॉल पर तेरी दोनों निप्पल चुभ रही है मुझे!!"

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यह गरमागरम सीन देखकर मौसम की जांघों के बीच में चुनचुनी होने लगी.. पीयूष ने उसके स्तन जिस तरह मसले थे.. उसे वो सीन याद आ गया.. उसने वैशाली के कंधे पर हाथ रखकर उसे दबाया.. अंधेरे में वैशाली को उसके हावभाव तो दिखे नही पर वो समझ गई की मौसम फाल्गुनी से भी अधिक उत्तेजित हो चुकी थी.. पर मौसम ने तो किसी और काम के लिए हाथ रखा था

मौसम: 'वैशाली.. वहाँ देखो.. !!"

मौसम ने वैशाली और फाल्गुनी के रोमांस के रंग में भंग करते हुए दोनों को सामने की तरफ के गेस्टहाउस के चौथे मजले के एक कमरे की आधी खुली खिड़की से दिख रहे द्रश्य की ओर निर्देश किया.. एक कपल की हरकतें खिड़की से साफ नजर आ रही थी.. तीनों की नजर वहीं चिपक गई..

वैशाली: "तुम दोनों देखती रहो.. अब इनका कार्यक्रम शुरू होगा"

खिड़की से दिख रहा था.. एक पुरुष और स्त्री आपस में चुम्मा-चाटी कर रहे थे..

"मैं अभी आई.. " कहते हुए वैशाली भागकर कमरे में गई और अपनी बेग से दूरबीन लेकर वापिस लौटी.. दूरबीन से से देखकर उसने फाल्गुनी को देते हुए कहा.. "तू थोड़ी देर देख फिर मौसम को देना और फिर वापिस मुझे.. सब मिलकर देखते है"

मौसम: "दूरबीन तो मैं भी लाई हूँ.. "

वैशाली: "तो जल्दी लेकर आ.. मुफ़्त में बी.पी. देखने का मौका मिला है.. जा जल्दी"

दूरबीन से देखते हुए फाल्गुनी ने कहा "वैशाली.. वो दोनों किस कर रहे है.. एकदम साफ साफ दिख रहा है यार.. " फाल्गुनी को अब मज़ा आ रहा था

"ला मुझे भी देखने दे.. " वैशाली ने कहा

"नही.. मुझे देखने दे पहले" फाल्गुनी ने दूरबीन नही दिया

दूरबीन से उस बेखबर और बिंदास कपल के हरकतों को देख रही फाल्गुनी के स्तनों पर हाथ रखकर वैशाली दूसरे हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी.. तभी मौसम भी अपना दूरबीन ले आई.. और वैशाली के पीछे खड़े होकर देखने लगी.. मौसम के स्तन वैशाली की पीठ पर छु रहे थे..

मौसम: "देख देख फाल्गुनी.. वो आदमी बॉल दबा रहा है उस औरत के" रोमांचित होकर उसने फाल्गुनी से कहा

वैशाली फाल्गुनी के स्तनों को हल्के हल्के मसलते हुए अपनी क्लिटोरिस से खेल रही थी.. उसे उस कपल की हरकतें देखने में कोई दिलचस्पी नही थी क्योंकि उसके लिए ये कोई नई बात तो थी नही.. लेकिन फाल्गुनी और मौसम के लिए ये पहली बार था.. सेक्स का लाइव टेलीकास्ट देखने का मौका.. दोनों कुंवारी लड़कियां ये देखने के लिए आतुर थी की आगे ओर क्या होगा.. !! फाल्गुनी को ये सब देखने में पता ही नही चला की कब वैशाली ने उसकी नाइटी के सारे हुक खोल दीये और उसके दोनों उरोजों को बाहर निकालकर दबाने लगी.. मौसम भी उत्तेजित होकर अपने स्तनों को वैशाली की पीठ पर रगड़ने लगी थी

मौसम बालकनी के उस कामुक सीन को दूरबीन से देखते हुए.. कुछ घंटों पहले अपने जीजू के संग हुए संसर्ग को याद करते हुए गीली हो रही थी.. फाल्गुनी अभी नादान थी.. वो तो ये द्रश्य देखकर हतप्रभ से हो गई थी.. सामने दिख रहा सीन कुछ ऐसा था.. वह औरत खिड़की पकड़े खड़ी हुई थी और उसका पार्टनर पीछे से गर्दन और पीठ को चूम रहा था.. बाहर घनघोर अंधेरा था और कमरे की लाइट चालू थी इसलिए इन तीनों को वहाँ का नजर एकदम साफ साफ नजर आ रहा था..

कब से मौसम और फाल्गुनी दूरबीन पर ऐसे चिपकी थी जैसे गुड पर मक्खी.. अब वैशाली को भी इच्छा हो गई उस कपल की हरकतें देखने की.. किसी जोड़े को संभोग करते हुए देखना अपने आप में ही बड़ा अनोखा अनुभव होता है.. किसी कपल की विकृत काम हरकतों को देखकर वैसी ही प्रबल उत्तेजना होती है जो वास्तविक संभोग के दौरान होती है..

मौसम के हाथ से दूरबीन छीनते हुए वैशाली ने कहा "मुझे तो देखने दे.. !! तू तो कब से ऐसे देख रही है जैसे तुझे इस बारे में परीक्षा देनी हो और उसकी तैयारी कर रही हो.. " अब बिना दूरबीन के मौसम को साफ नजर तो नही आ रहा था.. फिर भी आँखें खींचकर वो देखने की कोशिश कर रही थी.. इस बात से बेखबर की उसके स्तन वैशाली की पीठ से दबकर बिल्कुल ही चपटे हो गए थे.. या तो फिर हो सकता है की उसे पता हो और उत्तेजना के मारे जान बूझकर उसने ही अपने स्तन वैशाली की पीठ से दबा दिए हो.. !!

"तुम दोनों में से किसी ने भी मर्द का पेनिस देखा है कभी?" वैशाली के इस बोल्ड और बिंदास प्रश्न से मौसम और फाल्गुनी की हालत खराब हो गई..

फाल्गुनी: "नही दीदी.. कभी नही.. "

मौसम ने कुछ जवाब नही दिया.. वो सोच रही थी की जीजू का लंड आज दिख ही जाने वाला था अगर वो थोड़ी सी और हिम्मत करती तो.. पर खुले बाजार के बीच वो ऐसा कैसे करती?

"कैसा होता है.. वैशाली?" मौसम ने अपने स्तन पीठ पर रगड़ते हुए वैशाली को पूछा

"देख.. देख.. वो औरत उस मर्द का चूस रही है" वैशाली ने मौसम के हाथों में दूरबीन थमाते हुए कहा.. मौसम ने दूरबीन लिया और वैशाली के पीछे से हटकर वो अब फाल्गुनी के पीछे खड़ी हो गई और देखने लगी..

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वैशाली ने मौसम की गर्दन के पीछे एक हल्की सी किस कर दी और बोली "बहोत ही मस्त होता है यार.. मर्द का हथियार.. अब तुम दोनों को क्या बताऊँ.. !! हाथ में पकड़े तो छोड़ने का मन ही नही करता.. देखो वो कितने मजे से चूस रही है? देखा.. ??" वैशाली अब काफी उत्तेजित हो गई थी और उसके हाथ की हलचल इस बात का सबूत दे रहा था क्योंकि उसने फाल्गुनी के स्तनों को नाइटी के बाहर निकाल ही दिया था और अब वो मौसम के स्तनों से खेल रही थी..

मौसम की काँख के नीचे से दोनों हाथ अंदर डालकर वैशाली ने मौसम के दूरबीन पकड़े हाथों को पकड़ लिया.. अब उसने मौसम की नाइटी के अंदर हाथ डालकर जोर से उसके उरोजों को दबाया.. मौसम की हल्की चीख निकल गई.. "क्या कर रही हो यार? जरा धीरे धीरे दबा न.. ज्यादा गर्मी चढ़ रही हो तो चली जा सामने वाले उस कमरे में.. वो तैयार ही बैठा है "

वैशाली ने अपने दोनों स्तन बाहर निकालकर मौसम की पीठ से घिसते हुए उसकी चुत पर उंगली फेरी.. सीधा अपने प्राइवेट पार्ट पर वैशाली के हाथ का स्पर्श महसूस होते ही मौसम सहम गई और अपनी जांघें भींच ली.. "छी छी.. वैशाली.. इन दोनों को तो देख.. कैसा गंदा गंदा कर रहे है!! मुझे तो देखकर ही घिन आती है.. देख तो सही !!"

दूरबीन हाथ में लेकर वैशाली ने देखा.. वह पुरुष उस स्त्री की चूत के होंठों को फैलाकर चाट रहा था.. उस स्त्री की एक टांग खिड़की पर टिकी हुई थी और उसका पार्टनर अपनी जीभ अंदर तक फेर रहा था.. वैशाली ने हँसकर मौसम को अपनी ओर मोडाल और गले लगाते हुए कहा "यार यही तो सब से सर्वोत्तम सुख होता है.. जितना मज़ा लंड से चुदवाने में आता है.. उतना ही मज़ा अपनी चटवाने में भी आता है.. एक बार जीभ का स्पर्श नीचे चूत पर हो तब ऐसे झटके लगते है अंदर.. की तुम्हें क्या बताऊँ.. !!"

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वैशाली के मुंह से "लंड" और "चूत" जैसे शब्द सुनकर फाल्गुनी और मौसम शर्म से लाल हो गए..

मौसम: "वैशाली.. तुमने अभी बताया ना की मर्द का पेनिस देखने लायक होता है.. !! तो मुझे वो देखना है.. !!"

वैशाली ने अन दोनों हाथ नाइटी के अंदर डालकर मौसम के दोनों जवान चुचे हाथ में पकड़ लिए और दबाने लगी..

वैशाली: "तू पागल है क्या मौसम!! मेरे पास लंड कहाँ है जो मैं तुम्हें दिखाऊँ.. !! मेरे पास तो बस तेरे जैसी चूत ही है.. देखना तो मुझे भी है पर अभी इस वक्त लंड कहाँ से लाऊँ??"

फाल्गुनी चुपचाप मौसम और वैशाली की कामुक बातें सुनते हुए दूरबीन से उस कपल की एक एक हरकत को बड़े ध्यान से देख रही थी..

वैशाली: "मौसम, तू एक हाथ से दूरबीन पकड़ और दूसरे हाथ से फाल्गुनी की चुची दबा.. तो उसे भी मज़ा आए.. "

मौसम ने तुरंत ही फाल्गुनी के मासूम स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके गाल पर पप्पी कर दी.. और एक बार उसके गाल को चाट भी लिया.. गाल पर मौसम की जीभ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी उत्तेजना से कराहने लगी.. तभी अचानक वो सामने दिख रहे कपल ने अपनी खिड़की बंद कर दी


फाल्गुनी निराश हो गई "खेल खतम और पैसा हजम"
बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
ये वैशाली फाल्गुनी और मौसम की सेक्स के गुर सिखाने वाली सेक्स गुरू बन गयी
बालकनी से सामने के रुम में चल रही काम लिला से दोनों को रुबरु कराते हुए खुद भी उत्तेजित हो गयी है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है​
 
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