शीला और मदन फिर से अकेले पड़े.. दोनों वापिस कुछ रोमेन्टीक सा करने ही वाले थे तब अचानक अनुमौसी टपक पड़ी.. मदन का मूड ऑफ हो गया और वो पैर पटकते हुए खड़ा हुआ और बोला "आप दोनों बातें करो.. मैं जरा बाहर घूम कर आता हूँ " कहकर वो निकल गया
अनुमौसी: "शीला.. मदनभैया के आने की खुशी तेरे चेहरे पर साफ साफ दिख रही है.. !!"
शीला ने शरमाते हुए नजरें झुका ली
अनुमौसी: "अरे.. शर्मा क्यों रही है.. पहले जब पीयूष के पापा काम के सिलसिले में दो दिन के लिए भी बाहर जाते थे तब मुझे भी इतना सुना सुना लगता था.." अनुमौसी अपनी जवानी के दिनों की बातें करने लगी फिर बोली "असल में मैं तुझसे एक खास बात करने आई हूँ "
शीला: "हाँ.. बताइए ना मौसी"
अनुमौसी: "पहली बात तो ये है की.. पीयूष और कविता के बीच कुछ कहा-सुनी हो रखी है.. दोनों एक दूसरे से बात तक नही कर रहे.. वैसे तो सुबह की चाय पीते पीते दोनों ढेर सारी बातें करते है.. लेकिन आज तो दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा तक नही.. कविता से तेरी अच्छी बनती है.. जरा पूछ के देख.. क्या प्रॉब्लेम है? और कुछ रास्ता निकाल.. पूरा घर शमशान जैसा लगता है दोनों की अनबन के कारण.. वैसे तो उन दोनों की बहोत अच्छी पटती है.. पर पता नही एकदम से क्या हो गया!!"
शीला: "मौसी, पति पत्नी के बीच ज्यादातर झगड़े रात के प्रोग्राम को लेकर होते है.. शायद पीयूष ने करने के लिए जिद की होगी और कविता बेचारी थक गई होगी इसलिए साथ नही दिया होगा.. उसी बात को लेकर टेंशन हुआ होगा.. ऐसा मेरा मानना है.. बाकी असल में क्या हुआ होगा वो तो पीयूष या कविता ही बता सकते है"
अनुमौसी: "यहाँ तो मिल नही रहा उस बात को लेकर झगड़े होते है.. और जिसे मिल रहा है उसे उसकी कदर नही है.. अजीब है आजकल के नौजवान"
शीला: "सही कहा आपने, मौसी.. मदन की गैर-मौजूदगी में मैंने कैसे दिन गुजारे है.. ये बस मैं ही जानती हूँ.. याद है ना.. उस दिन रूखी के दो दोस्तों के साथ हम क्या क्या कर बैठे थे.. !!! पता था की ये गलत है फिर भी.. !!!"
अनुमौसी: "हाय शीला.. उस दिन की याद मत दिला.. मुझे तो कुछ कुछ होने लगता है.. तू तो इसलिए भूखी थी क्योंकी मदन विदेश था.. मेरा हाल पूछ.. पति साथ में होते हुए भी भूखी तड़पती हूँ.. पता नही उन्हें क्या हो गया है !! मुझे छूते तक नही.. कभी कभी तो दिमाग ऐसा गरम हो जाता है की क्या क्या कर दूँ.. पर उन्होंने तो बिस्तर पर आते ही खर्राटे मारने के अलावा ओर कुछ नही सूझता.. तंग आ गई हूँ मैं, शीला.. इस बेजान ज़िंदगी से"
शीला: "आप मुझसे कोई दूसरी बात भी करने वाली थी.. बताइए.. !!"
अनुमौसी: "अरे हाँ.. वो बात ऐसी थी की.. !!" बोलते बोलते वो रुक गई और खड़ी होकर दरवाजा बंद कर आई और खिड़की भी बंद कर ली.. और शीला के करीब जाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाई..
शीला चोंक गई.. "क्या बात कर रही हो मौसी? ऐसा कैसे हो सकता है?"
अनुमौसी: "मना मत कर शीला.. मेरा इतना काम कर दे प्लीज.. तुझे मेरी हालत के बारे में पता तो है.. मैं पागल तो नही हूँ जो इस उम्र में तुझसे ऐसी बात करूंगी.. ये तो तू मेरी अपनी है इसलिए बता रही हूँ.. तू ये सोच की मेरी बर्दाश्त की कैसी हद पार हो गई होगी जो मुझे तुझसे ऐसी बात करनी पड़ रही है!! किसी और से तो इस बात का जिक्र करने की मैं सोच भी नही सकती.. और मैं जो भी कह रही हूँ उसमें तेरा तो कोई नुकसान नही है.. ऊपर से फायदा ही होगा तेरा.. कभी तुझे भी.. !!!"
शीला: "वो सब तो ठीक है मौसी.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर कैसे कहूँ?? शर्म आएगी"
तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया और दोनों चुप हो गए.. शीला ने उठकर दरवाजा खोला.. सामने पीयूष खड़ा था..
पीयूष ने अनुमौसी की तरफ देखकर कहा "मम्मी, मुझे घर की चाबी दीजिए.. कपड़े बदलने है मुझे.. मैंने आस-पड़ोस में देखा पर तुम कहीं नजर नही आई.. फिर सोचा तुम यहीं मिलोगी.. "
शीला: "कैसा चल रहा है पीयूष? आजकल बहोत खोया खोया सा लगता है तू.. !! क्या बात है? कहीं मेरी किसी बात का तो बुरा नही लग गया तुझे!! मुझसे बात भी नही कर रहा.. !! मुझसे कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना.. " अपने खास अंदाज में आँखें मटकाते हुए शीला ने कहा.. प्यार से सुना भी दिया पीयूष को..
पीयूष: "अरे.. आप कैसी हो भाभी? मैं थोड़ी जल्दी में था इसलिए आपसे बात करना रह गया.. कैसा चल रहा है सब? मदन भैया आ गए वापिस? कैसी है उनकी तबीयत?" शीला के सवालों के हमले से बोखला गया पीयूष
शीला ने आँखों से मौसी को इशारा किया.. मौसी समझ गई
अनुमौसी: "मैं घर खोलती हूँ.. मुझे भी लड़कियों के लिए खाना पकाना है.. मैं चलती हूँ" और वहाँ से निकल गई..
शीला: "अब आ ही गया है तो बैठ थोड़ी देर.. ऐसी भी क्या जल्दी है? वैशाली घर पर हो तो ही तू बैठेगा.. कहीं ऐसा तो नही है ना.. !!"
पीयूष: "अरे नही नही भाभी.. ऐसा तो कुछ नही है.. क्या आप भी !!" शीला की बात सुनकर पीयूष शरमा गया.. हर किसी की नब्ज दबाना जानती थी शीला..
पीयूष सोचने लगा.. शीला भाभी ने वैशाली का जिक्र क्यों किया होगा?? कहीं मेरे और वैशाली के संबंधों के बारे में उनको पता तो नही चल गया न?
वो कुछ ओर सोचता उससे पहले ही शीला ने पल्लू हटाकर.. अपने मदमस्त, गोलमटोल.. तंग ब्लाउस में कैद स्तनों की झलक दिखाते हुए कहा
शीला: "अब तुझे ये भी पसंद नही पीयूष? एक टाइम था जब तू इनकी झलक पाने के लिए घंटों छत पर कसरत करने के बहाने खड़ा रहता था.. भूल गया क्या?? मैं कपड़े सुखाने बाहर आती थी तब ऊपर से तू कैसे देखता रहता था.. !! उस दिन मूवी देखने गए तब दबा लेने के बाद तेरा मन भर गया क्या?? या फिर किसी ओर जवान लड़की के साथ.. !!!" शीला ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया
पीयूष: "भाभी, आप भी कैसी बातें करती हो.. !! उस दिन मूवी देखते वक्त जो हुआ वो तो मेरे लिए सपना पूरा होने जैसा था.. मैं तो सोच रहा था की फिर कभी मुझे ऐसा मौका नही मिलेगा.. इसीलिए आप से दूर भाग रहा था.. आप के करीब आने के बाद मैं खुद पर कंट्रोल नही कर पाता हूँ.. सच कह रहा हूँ.. आपको देखते ही मूवी वाला दिन याद आ जाता है और मन करता है की आपको बाहों में लेकर दबा दूँ.. मुझसे कुछ गलती न हो जाए इसलिए आप से दूरी बनाकर रखता हूँ"
शीला: "अरे बेवकूफ.. !! अभी घर पर कोई नही है.. पूरी कर ले अपनी मन की इच्छा.. !!" कहते हुए शीला ने पीयूष के दोनों हाथ पकड़कर अपने स्तनों के शिखर पर रख दिए.. और बोली "दबा ले जीतने जोर से दबाने हो तुझे.. लेकिन पहले दरवाजा बंद कर दे.. नही तो कोई आ गया तो.. "
पीयूष: "पर.. घर पर मम्मी इंतज़ार कर रही होगी"
शीला: "अबे चोदूनंदन.. मौका मिले तब उसका फायदा उठाना सिख.. नही तो पूरी ज़िंदगी बस देखकर ही खुश रहना पड़ेगा.. "
पीयूष ने तुरंत ही दरवाजा लॉक कर दिया और वापिस आकर शीला से लिपट पड़ा.. शीला के स्तनों को ब्लाउस की कटोरियों के ऊपर से दबाते हुए बड़ी आतुरता पूर्वक उसके होंठों को चूसने लगा.. शीला ने भी तुरंत पीयूष का लंड पकड़कर दबा दिया
पीयूष: "आह्ह.. जरा धीरे से.. भाभी"
शीला: "अच्छा.. तुझे दर्द हो रहा है.. तू जब मेरी छातियों को इतने जोर से मसलता है तब मुझे दर्द नही होता होगा.. !!!"
शीला के हाथों में बरकत थी.. एक ही पल में पीयूष का लंड उसकी पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया.. पेंट के ऊपर से ही उस गन्ने जैसे लंड को सहलाते हुए शीला ने कहा "पीयूष.. ये तो चूत मांग रहा है.. चल डाल दे जल्दी"
कहते हुए शीला घूम गई और अपना घाघरा ऊपर कर दिया.. सोफ़े का सहारा लेते हुए योनिप्रवेश के लिए आदर्श स्थिति में आ गई.. अपने चूतड़ उठाकर उसने पीयूष के सामने पेश कर दिए.. पीयूष का लंड खुश होकर ऐसे लहराने लगा जैसे पहली बारिश में खेत की फसल लहराती है
"आज चुसोगी नही भाभी? उस दिन मूवी देखते हुए आपने जिस तरह लिया था वैसे ही मुंह में लीजिए न.. !! मुझे बहोत अच्छा लगता है.. प्लीज!!" शीला के स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने कहा
"वो सब अभी नही.. कभी मदन कहीं बाहर गया होगा तब शांति से करेंगे.. अभी वो वापिस आ गया तो ये भी नही हो पाएगा.. इसलिए मैं जैसा कहती हूँ वैसा कर.. और तेरा लंड मेरी चूत में घुसा दे.. जल्दी कर अब!!" शीला ने थोड़े गुस्से से कहा
पीयूष ने अपना लंड हाथ में लिया.. उलटी लैटी शीला के भव्य कूल्हों पर लंड रगड़ते हुए अप्रतिम आनंद लेने लगा..
"वक्त बर्बाद मत कर.. कितनी बार समझाऊँ तुझे?? मदन कहीं आसपास ही होगा.. कभी भी आ जाएगा.. और घर पर तेरी मम्मी भी इंतज़ार कर रही है.. ये सब करने का समय नही है अभी.. जल्दी कर यार.. और न करना हो तो रहने दे.. ये तो मौका मिला तो मैंने सोचा की जल्दी जल्दी मजे कर लेते है.. तुझे ये सब फॉरप्ले ही करना हो तो छोड़ दे.. !!" शीला ने तंग आकर कहा.. वाकई, शीला इतना जोखिम उठा रही थी.. और नादान पीयूष बिना इस बात को समझे.. लंड डाल कर धुआंधार चुदाई करने के बदले शीला के कूल्हें छेद रहा था..
बाजी बिगड़ने से पहले.. पीयूष ने एक ही धक्के में पूरा लंड डाल दिया और धक्के लगाने लगा.. शीला की चूत टाइट तो थी नही.. की डालने में तकलीफ होती.. बड़ी ही आरामदायक चुदाई शुरू हो गई.. कच्ची कुंवारी लड़कियों के मुकाबले भाभियों को चोदने में यहीं लाब है.. नादान कुंवारी लड़कियों की चूत टाइट होती है.. इसलिए डालने में दिक्कत होती है.. पहले उनको तैयार करनें के लिए पापड़ बेलों.. फिर चुदाते वक्त भी चिल्लाने का डर.. लेकिन भाभी तैयार भी जल्दी हो जाती है.. और बिना किसी शोर-शराबे के लंड आराम से उनकी गुफा में घुसकर अपनी तपस्या कर सकता है.. कुंवारी लड़कियों के हावभाव देखें तो ये नही कह सकते की उन्हें मज़ा आ रहा होगा.. जबकी भाभी तो लंड लेते ही ऐसे सिहरती है जैसे सातवे आसमान पर हो...
शीला का जिस्म, पीयूष के लयबद्ध धक्कों से आगे पीछे हो रहा था.. दोनों बेहद उत्तेजित होकर एक दुसरें को भोगने के लिए उतावले हो गए थे.. तभी डोरबेल बजी.. बेल की आवाज सुनते ही.. एक झटके में दोनों अलग हो गए..
"जरूर मदन ही होगा.. तू जल्दी कपड़े पहन ले.. अच्छा हुआ ना जो मैंने कपड़े नही उतारे थे.. ब्लाउस खोला होता तो अभी ये मेरे दोनों को अंदर फिट करने में ही ३-४ मिनट निकल जाते.. आईने में अपनी शक्ल देखकर तसल्ली कर ली शीला ने.. फिर उसने दरवाजा खोला.. मदन को देखकर वो थोड़ी सी बोखला जरूर गई पर किसी भी हाल में मदन को जरा सी भी भनक न लगे उसका ध्यान रखा शीला ने..
पीयूष को देखकर थोड़ा सा चकित होते हुए मदन सोफे पर बैठा.. की तुरंत शीला शुरू हो गई.. वह दिखावा ऐसा कर रही थी की मदन के आने से पहले वो और पीयूष कोई गंभीर चर्चा कर रहे थे..
"सच सच बता पीयूष.. तेरे और कविता के बीच क्या तकलीफ हुई है? तुझे पता है तेरी मम्मी कितनी चिंता कर रही थी? बेचारी रो रही थी.. " शीला ने बखूबी अभिनय किया
मदन शीला और पीयूष की तरफ देखता ही रहा.. बंद दरवाजे के पीछे शीला और पीयूष को देखकर उसके दिमाग में जो शक हुआ था.. वो ये सुनते ही दूर हो गया.. शक के पन्ने और फड़फड़ाते उससे पहले ही उसपर विश्वास का पेपरवेइट रख दिया शीला ने..
"क्या बात है पीयूष?? ये सब क्या माजरा है? " मदन ने पूछा
"कुछ नही मदन भैया.. मेरे और कविता के बीच कुछ दिनों से अनबन चल रही है.. यह बात मम्मी के ध्यान में आई होगी इसलिए उन्होंने भाभी से शिकायत कर दी.. और भाभी मुझ पर टूट ही पड़ी.. मेरी कोई गलती नही है इसमे.. " एक ही सांस में पीयूष ने कहा.. अच्छा हुआ की मदन की नजर पीयूष के पेंट की खुली चैन पर नही गई.. वरना पीयूष और शीला का नाटक वहीं समाप्त हो जाता.. जल्दी जल्दी में बंद करने पर पेंट की चैन टूट गई थी.. और पीयूष का भूखा लंड अभी भी उभार बनाते हुए अपनी नाराजगी जाहीर कर रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की कुछ ही पलों में उसका लंड बैठ गया.. !!
"तूने खुद ही कैसे तय कर लिया की तेरी कोई गलती नही है ??? प्रत्येक गुनहगार के पास अपने निर्दोष होने के सबूत होते ही है" मदन ने कहा
शीला: "बिल्कुल सही कहा मदन ने.. तुझे इतना समझना चाहिए की पति पत्नी के बीच छोटे मोटे झगड़े और मन-मुटाव तो चलते रहते है.. जरूरी है की उन्हे समय रहते खतम कर दिया जाए.. वरना आगे जाकर वो बड़ा स्वरूप धारण कर लेते है.. और ऐसा तो क्या हो गया तुम दोनों के बीच की एक दूसरे की शक्ल तक देखना नही चाहते.. !!"
मदन थोड़ा चोंक गया "बात यहाँ तक पहुँच गई है???"
मदन की बातों से शीला को यकीन हो गया की उसके मन में पीयूष की हाजरी को लेकर कोई शक नही रहा था.. उसने राहत की सांस ली.. रंगेहाथों पकड़े जाते बच गए दोनों.. लेकिन वो काफी डर गई इस घटना से.. अब से सावधान रहना पड़ेगा..
मदन: "अरे तुम दोनों की अभी अभी तो शादी हुई है.. ये देख.. शादी के इतने सालों के बाद भी तेरी भाभी कैसी खिले हुए गुलाब जैसी है.. क्यों? क्योंकि मैं उसे इतना प्रेम देता हूँ की वो हमेशा खुश ही रहती है.. जीवन के बाग को हमेशा तरोताजा रखने के लिए निरंतर प्रेम की पानी से उसे सींचना चाहिए.. नही तो वो बाग मुरझाने लगता है.. फिर उसे जीवंत करना कठिन हो जाता है.. मेरी बात करूँ तो.. मुझे वहाँ विदेश में कितनी गोरीओ ने ललचाया था.. ऐसी ऐसी रूपसुंदरियाँ होती है वहाँ.. अच्छे अच्छों को नियत बदल जाए.. पर तेरी भाभी का चेहरा सामने आते ही मन पर लगाम लगा लेता था.. वो यहाँ अकेले मेरे बगैर तड़प रही हो.. और मैं वहाँ गुलछर्रे उड़ाऊँ.. !! ये कैसे हो सकता है.. !! तुरंत ही गोरी चमड़ी का सारा आकर्षण खतम हो जाता था.. इच्छा तो बहोत सारी होती है मन में.. पर जो मन में आयें वो सब करना ठीक नही.. समझा तू??"
मदन के प्रत्येक शब्द शीला के दिल पर कटार बनकर घाव बना रहे थे.. अपने आप पर धिक्कार हो गया शीला को.. शर्म आने लगी उसे.. मदन बेचारा इन दो सालों में कितना वफादार रहा उसके प्रति..!! और यहाँ मैं ??? एक स्त्री होने के बावजूद.. संयम खो बैठी.. लानत है तुझ पर शीला.. तू मदन के लायक ही नही है.. शीला के चेहरे से नूर उड़ गया.. उसका सुंदर मुख फीका पड़ गया.. जैसे पूनम के चाँद को ग्रहण लग गया हो.. !!
पीयूष: "आप सही कह रहे है मदन भैया.. पर कविता को भी थोड़ा समझना चाहिए ना.. !! जब देखो तब मुझे किसी न किसी बात पर बस टोकती ही रहती है.. क्या अपने पति के आत्म-सन्मान का ध्यान रखना उसकी जिम्मेदारी नही है?"
मदन: " मैं समझ सकता हूँ.. पर तुम दोनों के बीच असल में आखिर क्या हुआ है जो दोनों ऐसे रूठ गए हो.. !! तुम मर्ज बताओगे तो मैं तुम्हें इलाज बता सकता हूँ.. "
पीयूष ने माउंट आबू में जो हुआ था वो सब बताया.. कैसे कविता ने अधनंगे कपड़ों में सब के सामने आकर उसकी इज्जत की धज्जियां उड़ा दी थी.. पर उसने ये नही बताया की उसके वैशाली के प्रति आकर्षण के कारण कविता रूठ गई थी.. एक समय था जब पीयूष कविता कितने प्यार से एक दूसरे के साथ रहते थे.. पर हकीकत ये थी की जब से शीला के कारण कविता की ज़िंदगी में पिंटू की एंट्री हुई थी.. तब से कविता नाम के पंछी को पंख लग गए थे.. जाहीर सी बात थी की मदन इन सारी बातों से अनजान था.. इसलिए वो सोच में डूब गया.. पीयूष की बात उसके दिमाग में उतर नही रही थी..
मदन: "देख पीयूष.. कविता बहोत अच्छी लड़की है.. तुझे गई गुजरी भूल जानी चाहिए.. उसे फिर से पहले की तरह प्यार देना शुरू कर दे.. रिश्तों का व्यापार ऐसे ही चलता है.. प्यार दो और प्यार लो"
शीला: "पीयूष, तू कविता को प्यार तो करता ही है.. जरूरत है बस उसे व्यक्त करने की.. सिर्फ प्यार होना ही काफी नही है.. उसे वक्त वक्त पर जताना भी पड़ता है"
पीयूष: "हाँ भाभी.. आपकी बात सही है.. पर ताली कभी एक हाथ से नही बजती.. सारी गलती मेरी तो नही हो सकती ना.. उसका भी तो थोड़ा दोष होगा ही ना.. !!"
शीला: "कहाँ मना किया मैंने?? मैं कविता को भी समझाऊँगी.. सब ठीक हो जाएगा.. आज रात जब तू मौसम को छोड़ने उसके घर जाएगा.. तब मैं और मदन, कविता से बात करेंगे.. जो होगा सब अच्छा ही होगा.. अब तू मुझे वचन दे.. की पुरानी बातों को कुरेदेगा नही.. और उन बातों को लेकर उसे ताने नही मारेगा.. !!"
पीयूष नीचे देखने लगा और धीरे से बोला "कोशिश करूंगा भाभी.. पर कुछ बातें ऐसी है जो भुलाएं नही भुलाती.. !! वक्त तो लगेगा"
वास्तव में पीयूष इस बात को लेकर परेशान था की मौसम को देखने लड़के वाले आ रहे थे.. बेचैन और उदास हो गया था.. मुंह तक आया हुआ निवाला खाने से पहले ही छीन गया.. !! मौसम की कच्ची कुंवारी जवानी को भोगने का सुवर्ण अवसर इतना जल्दी हाथ से चला जाएगा उसका अंदाजा नही था उसे.. मौसम भी लगभग तैयार हो गई थी.. तभी उसके माँ-बाप को क्या सुझा जो लड़के वालों को बुला लिया.. !! थोड़े दिन रुक जाते तो मौसम की कच्ची चूत को चोद लेता..
इसके बारे में तो शीला को भी कुछ पता नही था.. की पीयूष मौसम के शबाब में डूबा हुआ था..
मदन: "ऐसा कैसे चलेगा पीयूष?? तुझे कोई प्राइवेट प्रॉब्लेम हो तो निःसंकोच मुझे बता.. "
पीयूष: "नही भैया.. ऐसा तो कुछ नही है"
शीला, मदन और पीयूष चर्चा कर रहे थे तभी मदन के किसी दोस्त का मोबाइल पर फोन आया.. मदन बात करते हुए घर के बाहर बगीचे में पहुँच गया.. उसी दौरान एकांत में पीयूष और शीला के बीच गुपचुप बातें हुई.. और मदन के वापिस आते ही दोनों नॉर्मल होकर बैठ गए..
पीयूष ने खड़ा होते हुए कहा "मम्मी राह देख रही है.. मैं चलता हूँ.. मुझे शाम को जाना भी है इसलिए तैयारी करनी है.. भाभी, वैशाली को बता देना.. पाँच बजे निकलना है.. और कल दोपहर को आप दोनों लेने आ जाना.. "
मदन: "हाँ हाँ.. मैंने वैशाली को वादा किया है.. हम कार लेकर कल लेने आ पहुंचेंगे"
शीला: "हाँ, भाड़े पर कोई न कोई गाड़ी मिल ही जाएगी.. !!"
मदन: "अरे, कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नही है.. मैं जिस गाड़ी में आया था.. उस ड्राइवर हाफ़िज़ का नंबर मैंने स्टोर कर लिया था.. उसे ही बुला लेंगी.. गाड़ी भी मस्त है और चलाता भी अच्छा है.. !!"
शीला: "नही नही.. उसे नही.. किसी ओर को बुला लो" हाफ़िज़ का नाम सुनते ही शीला कांप उठी.. शीला सोचने लगी.. मदन, वो गाड़ी तो अच्छी चलाएगा पर साथ ही साथ तेरी बीवी को भी घोड़ी बनाकर चोद देगा..
पीयूष चला गया..
मदन: "क्यों? हाफ़िज़ के साथ जाने में क्या तकलीफ है तुझे?" कहते हुए उसने शीला को बाहों में भर लिया.. एकांत मिलते ही.. मदन ५८ से २८ साल का बन गया.. पीयूष के संग उस अधूरे सेक्स के प्रोग्राम के बाद शीला बहोत ही उत्तेजित थी.. मदन के अचानक आ जाने से अधूरे रहे कार्यक्रम को फिर से आगे चलाने का सोच रही थी शीला.. शुरुआत पीयूष के साथ हुई थी और खतम मदन के साथ होगा.. इससे मदन के मन का शक भी दूर हो जाएगा और भोसड़े की खुजली भी शांत हो जाएगी..
शीला ने भी मदन के आलिंगन का जवाब उसे चूमकर दिया..
शीला: "नही यार.. मुझे कोई तकलीफ नही है.. !! उस दो कौड़ी के ड्राइवर से मुझे भला क्या प्रॉब्लेम?? मैं तो ये सोचकर मना कर रही थी की उसकी गाड़ी बड़ी है.. तो हमें महंगा पड़ेगा.. इतनी बड़ी गाड़ी की हमें क्या जरूरत?? कोई छोटी गाड़ी ले लेते है न.. !!" शीला मदन को बेड तक ले गई और धक्का देकर बेड पर सुला दिया.. बड़ी ही कामुक अदा से शीला उसके बगल में लेट गई.. शीला के जिस्म के गदराए अंग उसके साथ ही उजागर हो गए.. शीला के गोल खरबूजे जैसे स्तनों को देखकर ही मदन के मुंह में पानी आ गया.. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल लाल हो गया..
मदन को और अधिक उत्तेजित करने के लिए शीला ने शब्दों का सहारा लिया.. किसी भी पुरुष को उत्तेजित करने के लिए सिर्फ जिस्म काफी नही होता.. संभोग के दौरान, जिस्म के साथ साथ उत्तेजक भाषा का भी जब प्रयोग होता है तब पुरुष की उत्तेजना, सारी हदें पार कर जाती है..
शीला: "जानु.. तेरी शीला बहोत तरसी है.. आज ऐसा चोद.. ऐसा चोद.. की पिछले दो सालों की भूख शांत हो जाए.. वैशाली शॉपिंग करने गई है इसलिए उसके आ जाने की भी चिंता नही है.. चल मदन.. आज तो मुझे रंडी बनाकर चोद.. मैं भी तो देखूँ.. विदेश की ठंडी हवाओ ने कहीं तेरे लंड को भी ठंडा तो नही कर दिया ना.. !! और हाँ.. तुझे बता देती हूँ.. अगर आज अभी तूने मुझे ठंडा नही किया ना.. तो मैं उस ड्राइवर हाफ़िज़ से भी चुदवाने में नही हिचकिचाऊँगी.. देख क्या रहा है.. मुझे नंगी कर.. नीचे जोर की खुजली हो रही है मुझे.. चाटकर उसे शांत कर.. और फिर तेरे लोडे से धक्के लगाकर तृप्त कर मुझे.. " शीला का एक एक शब्द मदन के लिए वियाग्रा का काम कर रहा था.. शीला की कामुक बातें सुनते ही मदन इंसान से जानवर बन गया.. मादरजात नंगा होकर वो शीला के बदन पर छा गया..
दोनों एक दूसरे को चूमते हुए प्रेमालाप में खो गए.. शीला के सुंदर कटीले बदन पर उसके पति मदन का हाथ फिरने लगा.. उसके सहलाते हुए शीला का पूरा जिस्म खिल उठा.. दोनों अत्यंत उत्कट प्रेम से एक दूसरे के भीतर समाने को बेताब होकर उत्तेजित होते हुए अंग मर्दन करने लगे
मदन: "ओह्ह शीला.. इस उम्र में भी तेरे अंदर कितनी गर्मी है.. मुझे तेरे अलावा कोई ओर इतना मज़ा दे ही नही सकता.. तू एक सम्पूर्ण स्त्री है.. जैसे हर मर्द की अपेक्षा होती है वैसी ही है तू.. शयनेषु रंभा.. का प्रत्यक्ष उदाहरण है तू!!" मदन अपनी पत्नी के उरोजों को पकड़कर.. अंगूठे और पहली उंगली से उसकी निप्पलों को मसलते हुए बोला
मदन के मस्त कडक लंड को शीला बेताबी से मुठ्ठी में पकड़कर सहला रही थी.. उसके हाथ का हलन-चलन इतना लयबद्ध था की मदन के लंड को स्वर्गीय सुख मिल रहा था.. एक उत्तम कपल था शीला और मदन का
शीला: "मदन, तू दो सालों तक वहाँ क्या कर रहा था? ये तेरा मस्त लंड, बिना चुत के कैसे रह पाया?? "
मदन: "ओह्ह शीला.. तुझे याद करके मैं रोज मूठ मारता था.. और ईमानदारी से कहूँ तो.. जिस घर में, मैं पेइंग गेस्ट था उसके मालिक की पत्नी के साथ मेरे सेक्स-संबंध थे.. बाकी के समय..हम दोनों के जो वीडियोज़ बनाकर ले गया था.. उसे लैपटॉप में देखते हुए.. हाथ से हिलाकर मैं ईसे ठंडा कर देता था"
शीला वास्तव में चोंक गई "क्या?? सच कह रहा है तू? पीयूष को तो ऐसे बोल रहा था तू मुझे वहाँ मिस करता था और मुझे ही वफादार रहा था"
मदन: "शीला, अब तुझसे क्या छुपाना.. !! पर तू भी सोच जरा.. दो साल का समय बड़ा लंबा होता है.. और इतने लंबे समय तक बिना सेक्स के रह पाना कितना मुश्किल होता है ये तू भी जानती है.. और फिर भी.. मैं तो तुझसे वफादार ही रहा था.. पर बात ही कुछ ऐसी हो गई की मुझे उस लैडी से सेक्स संबंध बनाना पड़ा.. मैं अपने आप की वकालत नही कर रहा.. पर मैं तुझे धोखे में रखना नही चाहता हूँ.. मैं तुझसे बेंतहाँ प्यार करता हूँ.. इसलिए मेरा मानना है की एक बार फिसल जाने को धोखा नही कह सकते.. और जो भी हुआ था वो जरूरत के आधार पर हुआ था.. अपने पार्टनर की गैर-मौजूदगी में जब कुदरती इच्छाएं चरमसीमा पर पहुँच जाएँ तब ऐसा होना स्वाभाविक है.. कोई बड़ी बात नही है.. !!"
शीला की छाती पर से एक बड़ा बोझ हल्का हो गया.. अपने कारनामों के चलते जो अपराधभाव जागृत हुआ था वो भांप बनकर उड़ गया.. चुदाई के दौरान ऐसी गंभीर चर्चा का नतीजा ये हुआ की मदन का लंड मुरझा गया.. शीला के हाथों में होने के बावजूद.. ये बात को शीला को राज न आई.. ईसे खड़ा करके ही वो अपने भोसड़े की खाज मिटाने वाली थी.. नरम लोडा स्त्री के किस काम का.. !! उससे तो पेशाब करने के अलावा और कोई काम नही हो सकता.. ज्यादातर औरतों को नरम लोडा देखने का अवसर नही मिलता.. क्योंकि जैसे ही किसी स्त्री के सामने लंड खुलता है.. वो खड़ा हो ही जाता है.. सच बात तो ये है की नरम लंड देखने में भी पसंद नही आता.. वो सुंदर तभी लगता है जब उत्तेजित होकर खड़ा हो जाए.. पुरुष भी होशियार होते है.. वो अपने कपड़े उतारने से पहले ही स्त्री को नंगी कर देते है.. और फिर उस निर्वस्त्र शरीर को देखकर.. सहला कर मसल कर.. अपने लंड को खड़ा करते है और फिर उसे स्त्री के सामने पेश करते है..
वैसे शीला ने मदन के नरम लंड को अनगिनत बार देखा था.. पर उत्तेजित होकर संभोग के लिए बेकरार हो तब नरम लंड देखना.. किसी सदमे से कम नही होता..
कुंवारी नादान लड़कियां जब पहली बार कडक लंड देखती है.. तो उनके दिमाग में यही गलतफहमी हो जाती है की लंड हमेशा ऐसे ही रहता होगा.. कडक और खड़ा.. !! और फिर उन्हे ये ताज्जुब होने लगता है की इतना बड़ा लंड पेंट में फिट कैसे रहता होगा??
शीला को इस बात की तसल्ली हो गई.. की मदन उसे अब भी बेहद प्यार करता है.. वरना गीले भोसड़े को चोदने के बजाए.. इतनी सच्चाई से क्यों अपना जुर्म कुबुलता.. !! और अगर उसने बताया न होता तो शीला को पता भी नही चलने वाला था.. जिस तरह मदन ने खुले दिल से उसे सारी बात बता दी थी.. शीला की नज़रों में मदन का कद और बड़ा हो गया था.. अब ये शीला को तय करना था.. मदन की एक गलती को दिमाग में रखकर सारी ज़िंदगी रोते रहना था या फिर बड़ा मन रखकर.. उसे स्वीकार कर भूल जाना था..
"क्या सोच रही हो शीला?? मुझे पता है.. ये जानकर तुझे बहोत दुख हुआ है.. पर तेरी इन छातियों को छोड़कर मैंने अपने आप को २१ महीने तक अपने आप को किसी तरह कंट्रोल में ही रखा हुआ था.. पर पता नही.. उस दिन मुझे क्या हो गया.. मैं अपने आप को रोक ही नही पाया.. अब मुझे माफ करना या न करना वो तुझ पर निर्भर है.. तू जो सजा देगी मुझे वो मंजूर है.. पर दिल में ये बोझ लिए जीना मुझे पसंद नही.. " इतना अच्छा उत्तेजना सभर वक्त बर्बाद हो रहा था.. शीला गंभीरता से सोचती रही
उसके दिमाग में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.. अगर मैं मदन को अपने कारनामों के बारे में बता दु तो क्या होगा?? वो क्या सोचेगा मेरे बारे में?? क्या वो मुझे कभी माफ कर पाएगा?? एक गलती उसने की और एक गलती मैंने की.. क्या इस तरह हिसाब बराबर मान सकते है?? शीला के होंठों तक ये बात आ गई.. उसका दिल कर रहा था पिछले दो महीनों के दौरान उसने जो कुछ भी किया वो सब कुछ मदन को बता दे और अपने दिल का बोझ भी हल्का कर ले.. पर गलती का इकरार करना बेहद कठिन होता है.. किसी की हत्या करने से भी ज्यादा कठिन.. जबरदस्त हिम्मत चाहिए अपनी गलती मानने के लिए.. हर किसी के बस की बात नही है.. लाख कोशिशों के बावजूद उसकी जबान नही चली.. मन ही मन वो सब समझती थी.. वो मदन को माफ क्यों न करें? अरे, मदन को माफ करने का उसे हक था ही कहाँ? हक तो तब होता अगर वो भी मदन के प्रति वफादार रही होती.. जब मदन से सौ गुना ज्यादा गलती खुद ही कर चुकी हो.. तब वो किस मुंह से मदन की माफी कुबूल करती??
बेड के एक कोने पर मदन बैठा हुआ था.. उसका लंड ऐसे निस्तेज होकर पड़ा था जैसे किसी काम का न हो.. शीला की नजर उस लंड पर पड़ते ही उसे दया आ गई.. अरे रे.. !! मेरी मौजूदगी में लंड की ये हालत!!! मैंने अच्छे अच्छे लंडों को पलक झपकते ही टाइट कर दिया है और मैं यहाँ पूरी की पूरी नंगी बैठी हूँ फिर भी ये निर्जीव हुआ पड़ा है.. !! ये तो मेरे सुंदर शरीर का.. मेरे स्त्रीयत्व का.. मेरी पत्नीत्व का.. अपमान है..
शीला उठकर किचन में गई और पानी पीकर वापिस आई.. आकर उसने मदन को कंधे से पकड़कर खड़ा किया..
शीला: "मदन.. जिंदगी में ऐसे कई मोड आएंगे जहां पर ऐसी घटनाएं घटेंगी जो हमने सपने में भी ना सोची हो.. " शीला ने जिस तरह उस अंग्रेज जॉन का इंग्लिश लंड अपने भोसड़े में लिया था वो याद करते हुए वो मदन के लंड को हल्के हाथों से मसाज करने लगी..
मदन: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. मैंने भी ये सपने में नही सोचा था की मैं किसी विदेश औरत से शरीर संबंध स्थापित करूंगा "
शीला को ऐसा लगा.. जैसे मदन खुद की नही.. पर शीला की बात कर रहा हो..
शीला ने मदन को एक प्रेमभरी चुम्मी देकर अपनी ओर खींचा और फिर से एक बार संभोग का मुक प्रस्ताव उसके सामने रखा.. जिसे मदन ने.. उसके स्तनों को दबाते हुए स्वीकार किया.. दोनों फिर से अपनी पसंदीदा प्रवृत्ति में खो गए.. शीला ने अपनी अनूठी काम कला का उपयोग कर.. अपने पति के चौबीस महीनों के विदेश प्रवास की थकान उतार दी.. उसके लंड के विदेशीपने को अपनी देसी चुत के कामरस से नामशेष कर दिया..
एक जबरदस्त ठुकाई के बाद.. जब दोनों शांत हुए तब उनके चेहरे खिले हुए ताजे गुलाब जैसे हो गए.. दोपहर को जल्दबाजी में जो कसर रह गई थी वो सब शीला ने एक साथ निकाल दी.. जब शीला आँखें बंद कर मदन के लंड को पूर्ण उत्तेजना से मुख-मैथुन का आनंद दे रही थी तभी उसका दिमाग यह कल्पना कर रहा था की वह विदेश जॉन का लंड चूस रही है.. कभी संजय के लंड की याद आ जाती तब वो हल्के से अपने दांत मदन के लंड पर गाड़ देती और मदन की धीमी चीख निकल जाती.. पर मदन शीला के गदराए जिस्म की मस्ती में कुछ ऐसा खो चुका था की उस बेवकूफ को ये विचार भी नही आया की पिछले दो सालों में.. उसकी गरम पत्नी ने अपनी चुत की आग बुझाने के लिए क्या क्या किया होगा.. !!
शीला अब मदन की कमजोरी बन चुकी थी.. उसके नंगे बदन को देखकर मदन अपनी विचारशक्ति खो बैठता था..
मादरजात नग्न पति-पत्नी.. दुनिया से बेखबर.. एक दूजे में खोए हुए थे और अपनी भूख को संतुष्ट करने के पश्चात कपड़े पहन कर.. तैयार होकर.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सोया हुआ था.. अभी भी ऑर्गैज़म के कारण तेज हुई साँसों से शीला की छाती हांफ रही थी.. हर सांस के साथ ऊपर नीचे होते हुए वह मांसल स्तनों की भव्यता को मदन मन भरकर देखता ही रहा..
शीला: "तुझे मेरे बॉल बहोत पसंद है ना.. मदन!! वो विदेशी औरत के स्तन मेरे स्तन से भी ज्यादा खूबसूरत थे क्या?"
मदन: "शीला, यह विदेशी लोग दिखने में जीतने सुंदर होते है.. उससे कई ज्यादा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मानती थी.. अपनी किसी भी इच्छा को बिना छुपायें खुलकर बोलने की क्षमता.. और उस इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने का मनोबल.. उनकी यह बात मुझे बहोत अच्छी लगी.."
शीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा