Ajju Landwalia
Well-Known Member
- 3,378
- 13,143
- 159
दूसरी सुबह करीब साढ़े पाँच बजे.. रोज की तरह शीला की आँख खुल गई.. मदन को सोता हुआ छोड़कर वो उतरकर नीचे आई.. नाइट-गाउन में ही वो घर के आँगन में बने झूले पर बैठकर झूलने लगी.. अभी घर में कोई जागा नहीं था.. थोड़ी ही देर में अखबार वाला पेपर फेंक कर गया.. शीला उसे उठाकर पढ़ते हुए झूल रही थी..
अखबार की खबरों में डूबी हुई शीला को पता ही नहीं चला की कब सुबोधकांत उसके सामने आकर कुर्सी लगाकर बैठ गए..
"अरे आप कब आए??" शीला ने चोंक कर पूछा
"अभी अभी.. वैसे मुझे जल्दी उठ जाने की आदत है.. सुबह सुबह आसपास की खूबसूरती देखने का मज़ा ही कुछ ओर होता है.. और आज तो आपको देखकर मेरी सुबह और भी मस्त हो गई" शीला शर्मा गई.. सुबोधकांत उसके साथ खुलेआम फ़्लर्ट कर रहे थे
शीला एकदम से अपने कपड़ों को लेकर जागरूक हो गई.. उसने गाउन के अंदर ब्रा नहीं पहनी थी.. और उसके दोनों स्तन.. बिगड़ी हुई औलादों की तरह.. उसका कहा मान नहीं रहे थे.. और उभरकर मस्त आकार बना रहे थे.. सुबोधकांत उन उभारों को देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फेर रहा था..
टी-शर्ट और ट्रेक पेंट पहने सुबोधकांत काफी हेंडसम लग रहे थे.. शीला ने उन्हें कनखियों से देखा.. उनके स्वस्थ शरीर की झलक टी-शर्ट से भलीभाँति नजर आ रही थी.. ऐसे पुरुष के साथ थोड़ा बहोत फ़्लर्ट करने में शीला को कोई दिक्कत नहीं थी
"अच्छा.. !! ऐसा तो क्या नजर आ गया आपको.. जो आपकी सुबह सुधर गई..??" शरारती मुस्कान के साथ शीला ने सुबोधकांत से कहा
"अब क्या कहूँ.. कहाँ से शुरू करू.. कुदरत ने आपको बड़े ही इत्मीनान से बनाया है.. क्या आपको कभी किसी ने कहा है की आप दुनिया की सब से सुंदर महिला हो??" सुबोधकांत ने अपनी गाड़ी चौथे गियर में डालकर दौड़ा दी
ये झूठ है.. जानते हुए भी शीला ने शरमाते हुए अपनी आँखें झुका दी.. ऐसी कौन सी स्त्री होगी जिसे अपनी तारीफ पसंद न हो? चाहे फिर झूठी ही क्यों न हो.. !!
"क्या आप भी.. !!! जो बात आपको रमिला बहन से करनी चाहिए वो आप मुझसे कर रहे है.. !!" शीला ने शरमाते हुए कहा
जवाब देने के बजाए.. सुबोधकांत अपनी कुर्सी से उठे और झूले पर शीला की बगल में बैठ गए.. झूला इतना चौड़ा नहीं था की दो लोगों को साथ समा सकें.. शीला और सुबोधकांत की जांघें एक दूसरे से सट कर रह गई.. शीला का चेहरा शर्म से लाल हो गया.. पर अपनी जांघों पर इस मजबूत पुरुष का स्पर्श उसे बड़ा ही लुभावना लगा.. वो बिना कुछ बोलें बैठी रही
"अजी क्या बताएं आपको.. तारीफ तो उसकी की जाती है जिसे कदर हो.. अब बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद.. !! और मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ.. आप के जितनी खूबसूरत महिला मैंने आज तक नहीं देखी.. " कहते ही सुबोधकांत अपना चेहरा शीला के कानों के नजदीक लाए.. जैसे उसे सूंघ रहे हो..
शीला सहम गई.. !! सुबोधकांत की इतनी हिम्मत का वो कैसे जवाब दे, उसे पता नहीं चल रहा था.. वो वहाँ से खड़ी होकर चली जा सकती थी.. पर पता नहीं ऐसा कौन सा आकर्षण था जो उसे वहाँ से उठने ही नहीं दे रहा था..जैसे उसके कूल्हें झूले से चिपक गए थे..
"रमिला बहन भी कितनी सुंदर है.. गोरी गोरी.. " शीला ने वापिस बात को सुबोधकांत की पत्नी पर ला खड़ा किया
"शीला जी.. आप तो जानती हो.. हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती.. और कुछ हीरे ऐसे होते है जिसकी परख, मुझ जैसे जोहरी के अलावा और कोई नहीं कर सकता.. !!" सुबोधकांत अपनी हरकतों से बाज नहीं आया
"देखिए सुबोधकांत जी.. मैं आपकी बहोत इज्जत करती हूँ.. अच्छा यही होगा की हम दोनों हमारी मर्यादा का उल्लंघन न करें.. !!" शीला ने थोड़ी सी नाराजगी के साथ कहा..
ये सुनते ही.. सुबोधकांत झूले से खड़े हो गए.. मस्त अंगड़ाई लेकर वो शीला के सामने ही खड़े रहे..
"अरे आप तो बुरा मान गई.. अब मुझे नहीं पता था की आपको तारीफ पसंद नहीं है.. "
"ऐसी बात नहीं है सुबोधकांत जी.. पर जैसा मैंने कहा.. हम दोनों अपनी मर्यादा में रहे वही बेहतर होगा" शीला ने कहा
"आपको नहीं पसंद तो मैं आगे कुछ नहीं कहूँगा.. लेकिन.. ये मर्यादा की बातें आपके मुंह से अच्छी नहीं लगती, शीला जी.. !!" बेशर्मी से सुबोधकांत ने कहा.. सुनकर शीला चकित हो गई.. ऐसी कौन सी बात इन्हें पता थी जो इतने आत्मविश्वास के साथ बोल रहे थे ये?? अभी कल ही तो पहली बार मिले है.. ऐसा कौन सा राज जानते थे सुबोधकांत.. शीला के बारे में.. !!
"आप क्या कहना चाहते है, मैं समझ नहीं पाई" शीला ने पूछा
"देखिए शीला जी.. अब घुमा फिराकर बात करने की आदत मुझे ही नहीं.. और दूसरों की ज़िंदगी में दखल देने की आदत भी नहीं है.. चाहे वो कोई भी क्यों न हो.. ये तो आपने मर्यादा की बात छेड़ दी तो मैंने सोचा की आप को याद दिला दूँ.. कल आप मेरे दामाद के प्राइवेट पार्ट को दबाकर कौन सी मर्यादा का पालन कर रही थी??" शैतानी मुस्कान के साथ सुबोधकांत ने शीला की ओर देखकर कहा
शीला को चक्कर आने लगे.. कल जब वो लोग ड्रॉइंगरूम में बैठे थे ,तब चारों लड़कियां बगल वाले कमरे में थी.. पीयूष जब उठकर उस कमरे की ओर जा रहा था तब शीला भी किचन में जाने के बहाने उठी थी और बीच रास्ते पीयूष का लंड दबा दिया था.. सुबोधकांत की शातिर नजर ने ये देख लिया था इसका उसे पता भी नहीं था..
शीला ने आँखें झुका ली और दुबक कर झूले पर बैठी रही.. उसके हाथ से अखबार भी छूटकर नीचे गिर गया.. मुसकुराती हुए सुबोधकांत ने अखबार उठाया और शीला के हाथों में थमाते हुए वापिस झूले पर उसके साथ बैठ गया
"अरे पढिए पढिए.. अखबार पढ़ना जरूरी है.. पता तो चले की दुनिया में क्या हो रहा है.. पर उससे भी ज्यादा जरूरी है अपने आसपास क्या हो रहा है उस पर नजर रखना.. !!"
अब शीला के पास बोलने के लिए कुछ बचा नहीं था.. डर के मारे उसकी बोलती बंद हो गई थी.. कल रात वैसे भी संजय और हाफ़िज़ को लेकर काफी टेंशन था.. वो खतम हुआ नहीं की एक नई चिंता जुड़ गई.. वो अखबार को पकड़कर नीचे देखते हुए बैठी रही
"घबराइए मत शीला जी.. मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगा.. जैसा मैंने पहले ही कहा.. मुझे किसी के जीवन में दखल अंदाजी करना पसंद नहीं है" कहते हुए इस बार सुबोधकांत अपना चेहरा शीला के गालों के इतने करीब ले आए की उनकी गरम साँसों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी शीला.. उफ्फ़.. मर्दानी गरम सांसें.. शीला की आँखें बंद हो गई..
शीला की ओर से कोई विरोध न दिखा तब सुबोधकांत ने हिम्मत करके शीला के कान को धीरे से चूम लिया.. शीला स्तब्ध हो गई.. पर वो जानती थी की उसकी दुखती नस को दबाकर ये इंसान अपनी मनमानी कर रहा था.. वो सोचने लगी.. अगर मैं इसे हड़का कर भगा दूँ तो क्या होगा?? उसने पीयूष के साथ जो हरकत की थी उसका पता अगर सब को लग गया तो कोहराम मच जाएगा.. मदन और उसके जीवन में भूकंप आ जाएगा.. कविता उससे बात नहीं करेगी कभी.. और अनुमौसी को पता चला मतलब पूरे मोहल्ले को पता चल जाएगा.. पूरी ज़िंदगी वो किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी.. गनीमत इसी में थी की वो उनका सहयोग करे और देखें की वो आगे कहाँ तक जाने की हिम्मत करते है
शीला ने शरमाकर अपना चेहरा दूर कर लिया..
"क्या मदमस्त खुशबू है आपकी.. जितना सुंदर तन उतनी ही मादक महक आ रही है.. " सुबोधकांत ने धीरे से अपना हाथ शीला की जांघों पर फेरना शुरू कर दिया.. शीला उसके स्पर्श से ऐसे सिहरने लगी.. न चाहते हुए भी उसका जिस्म उत्तेजित होने लगा.. अजीब सी उत्तेजना होने लगी उसे..
शीला बस अब आँखें बंद कर.. झूले पर सर पीछे टेककर बैठी रही.. और सुबोधकांत उसकी गर्दन पर चूमते हुए उसके होंठों पर कब पहुँच गए पता ही नहीं चला.. उनका एक हाथ शीला के खरबूजे जैसे बड़े स्तनों पर घूमने लगा.. बिना ब्रा के सिर्फ गाउन के अंदर कैद स्तनों की निप्पल.. बड़ी ही आसानी से सुबोधकांत के हाथ में आ गई.. शीला के होंठों को चूमते हुए जैसे ही सुबोधकांत ने निप्पल को पकड़कर दबाया.. शीला की आह्ह निकल गई.. और दोनों जांघों के बीच सुरसुरी होने के साथ गिलेपन का एहसास भी होने लगा..
शीला के बदन में खून तेजी से दौड़ने लगा.. उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया.. सुबोधकांत के चुंबनों से वह इतनी उत्तेजित हो गई की खुद ही अपनी निप्पल को मरोड़ने लगी.. सुबोधकांत ने शीला का गाउन नीचे से उठाना शुरू करते ही शीला संभल गई और अपना गाउन पकड़ कर उसे रोक दिया..
"सुबोधकांत जी.. ये बड़ा ही खतरनाक हो सकता है.. मुझे लगता है की हमें अब इससे आगे नहीं बढ़ना चाहिए.. !!"
"शीला जी.. आगे बढ़ना चाहिए की नहीं ये इम्पॉर्टन्ट नहीं है.. आप ये बताइए.. क्या आप आगे बढ़ना चाहती है?" बड़ा शातिर था ये बंदा.. ऐसे हिम्मत वाले पुरुष शीला को बेहद पसंद थे.. उसने कोई जवाब नहीं दिया.. और पलके झुकाकर बैठी रही..
पर सुबोधकांत को अपना जवाब मिल गया था.. उसने शीला को हाथ पकड़कर उठाया.. और घर के पिछवाड़े में बने गराज तक ले गए.. गराज का दरवाजा खोलकर दोनों अंदर गए और फिर सुबोधकांत ने उसे बंद कर दिया..
दरवाजा बंद होते ही सुबोधकांत ने शीला को दीवार से दबा दिया और उसके स्तनों को दोनों हाथों से मसलने लगे.. शीला बस आह्ह आह्ह करती रह गई.. उन्हों ने शीला के होंठों को चूसते हुए अपना एक हाथ गाउन के ऊपर से ही शीला के गरम भोसड़े पर दबा दिया.. रात को सोते वक्त शीला कभी गाउन के नीचे पेन्टी नहीं पहनती थी.. उसका भोसड़ा सुबोधकांत के हाथों चढ़ गया..
नीचे स्पर्श होते ही शीला के सब्र का बांध टूट गया.. और उसने दोनों हाथों से सुबोधकांत का चेहरा पकड़कर चूम लिया.. सुबोधकांत ने शीला का गाउन एक झटके में ही ऊपर कर दिया और उसकी लसलसित दरार में अपनी उंगली डाल दी..
गरम गरम भोसड़े में उंगली घुसते ही शीला ने अपने सारे हथियार डाल दीये.. उसने दोनों हाथों से सुबोधकांत के कंधों को दबाकर उन्हे नीचे बैठा दिया और अपनी टांगें खड़े खड़े ही चौड़ी कर दी.. इशारा स्पष्ट था और सुबोधकांत को समझने में देर भी नहीं लगी.. उसने एक ही पल में अपनी जीभ शीला की गुफा के अंदर डालकर चाटना शुरू कर दिया..
शीला की योनि विपुल मात्रा में कामरस बहाने लगी और सुबोधकांत बिना किसी घिन के उस रस को चाट रहे थे.. शीला दोनों हाथों से अपनी निप्पलों को खींचकर मरोड़ रही थी.. अब उसका जिस्म लिंग प्रवेश चाहता था.. उसने आजूबाजू देखा.. इतना कचरा पड़ा हुआ था की लेटना नामुमकिन था..
उसने धीरे से सुबोधकांत का चेहरा अपनी चूत से अलग किया और उन्हे खड़ा कर दिया.. अब वह पलट गई.. अपना गाउन कमर तक उठा लीया और अपने भोसड़े को चुदाई के लिए पेश कर दिया..
सुबोधकांत ने तुरंत ही अपना पेंट नीचे उतारा और अपना डंडा बाहर निकालकर.. मुंह से थोड़ा थूक लेकर सुपाड़े पर मल दिया.. उसका औज़ार अब शीला के किले को फतह करने के लिए तैयार हो गया था..
शीला को झुकाकर उसने अपने सुपाड़े को उसकी दोनों जांघों के बीच घुसेड़ा.. चूत की खुशबू सूंघते हुए लंड ने तुरंत ही छेड़ ढूंढ निकाला.. एक ही धक्के में लंड ऐसा घुस गया जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी घुस गई हो..
शीला सिसकने लगी.. और सुबोधकांत ने हौले हौले धक्के लगाने शुरू कर दीये.. दोनों हाथ आगे ले जाकर वो शीला के मदमस्त खरबूजों को मसल भी रहे थे.. दोनों उत्तेजना की पराकाष्ठा पर थे लेकिन साथ ही साथ वह जानते थे की उनके पास ज्यादा समय नहीं था..
शीला खुद ही हाथ नीचे ले जाकर अपनी क्लिटोरिस को कुरेदने लगी.. वो भी जल्द से जल्द स्खलित होना चाहती थी.. पीछे सुबोधकांत ने अपने धक्के तेज कर दीये.. शीला के विशाल चूतड़ों को अपने दोनों हाथ से पकड़कर वो धनाधन पेल रहे थे..
शीला का बदन अब थरथराने लगा.. अपनी मंजिल नजदीक नजर आते ही उसने अपनी क्लिटोरिस को दबा दिया.. उसका शरीर एकदम तंग हो गया.. और भोसड़े की मांसपेशियों ने सुबोधकांत के लंड को अंदर मजबूती से जकड़ लिया.. दोनों एक साथ झड़ गए.. वीर्य की तीन चार बड़ी पिचकारियों से सुबोधकांत ने शीला के भोसड़े को पावन कर दिया..
थोड़ी देर तक दोनों हांफते रहे.. सांसें नॉर्मल होते ही पहले सुबोधकांत ने दरवाजा खोलकर बाहर देखकर तसल्ली कर ली और फिर इशारे से शीला को बाहर जाने के लिए कहा.. शीला भागकर घर के अंदर चली गई.. अपने कमरे में जाकर देखा तो मदन अभी भी सो रहा था.. उसने चैन की सांस ली और बाथरूम में चली गई.. सुबोधकांत ने जो निशानी उसके भोसड़े में छोड़ रखी थी उसे साफ करने..
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मदन और शीला जब कविता के घर गए तब सब से अनजान थे.. आज जाते हुए सब की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी.. सब ऐसे बातें कर रहे थे जैसे एक दूसरे को सालों से जानते हो..
शीला को बाय कहते वक्त सुबोधकांत मुस्कुराये.. पिछले चौबीस घंटों में उन्हों ने माँ और बेटी दोनों को चोद लिया था.. दोनों एक से बढ़कर एक थी.. दोनों के संग की चुदाई, सुबोधकांत को पूरी ज़िंदगी याद रहने वाली थी..
वैशाली, मौसम और फाल्गुनी के साथ कुछ गुसपुस कर रही थी.. मौसम के चेहरे पर शर्म और उदासी दोनों के भाव थे.. अब वो पहले वाली नादान लड़की नहीं रही थी.. काफी तब्दीलियाँ आ चुकी थी.. चेहरे पर गंभीरता के भाव भी थे.. कविता मौसम को गले लगाकर खूब रोई.. सुबोधकांत भी भावुक हो गए.. इंसान कितना भी नीच और हलक्त क्यों न हो.. आखिर एक बाप था.. कविता को खुश देखकर उनके दिल को ठंडक मिल रही थी और वे चाहते थे की मौसम भी ऐसे ही खुश रहे..
सब ने एक दूसरे को अलविदा कहा.. रमिला बहन की आँखों से भी आँसू निकल रहे थे.. कल तक जो घर भरा भरा सा था.. आज वो एकदम खाली हो रहा था.. सब लोग कार में बैठे.. मौसम और फाल्गुनी ने गले मिलकर वैशाली को बाय कहा..
जुदाई.. बड़ा ही पीड़ादायक शब्द है.. हर मिलन में जुदाई समाई होती है..
कार चल पड़ी और साथ कितने संबंध अपनी मंजिल पर पहुंचे बिना ही अधूरे रह गए.. ?? सुबोधकांत और रमिला बहन घर के अंदर आए.. मौसम बड़ी देर तक रास्ते को देखती रही.. जा रही कार को अंत तक ऐसे देखती रही जैसे वो अभी वापस आने वाली हो.. उसके अलावा कोई नहीं जानता था की उस कार के साथ ओर क्या क्या चला गया था.. !!
जीजू.. !! जिनके साथ उसने जीवन का प्रथम प्रेम-मिलन किया था.. जिन्होंने उसे जवानी का लुत्फ लेना सिखाया था.. काम इच्छा क्या होती है.. पुरुष और स्त्री का उसमें क्या भाग होता है.. पुरुष का प्रथम स्पर्श.. जीजू मौसम को छोड़कर जा चुके थे.. साथ ही कविता दीदी भी चली गई थी.. शीला भाभी और मदन भैया भी.. वैशाली जैसी सहेली भी जा चुकी थी.. वैशाली तो अब कब मिलेगी, क्या पता.. ?? मुझे भी एक दिन वैशाली की तरह सब को छोड़कर दूर जाना होगा.. मौसम का दिल बेचैन हो गया.. इस सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन करने का मन कर रहा था.. पर नियति को भला कौन बदल सकता है.. !! और उसकी नियति भी यही थी की उसे बाप का घर छोड़ना ही था..
"कब तक धूप में खड़ी रहेगी बेटा? अंदर नहीं आना? वो सब तो चले गए.. तू अंदर आ जा.." प्यार से रमिला बहन ने मौसम को कहा
पिछले एक महीने से मौसम उन लोगों के साथ थी.. इसलिए ये जुदाई का पल उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. मौसम की इस स्थिति को समझकर रमिला बहन उसे पीठ सहलाते हुए सांत्वना दे रहे थे.. मौसम उनके गले लगकर खूब रोई.. रमिला बहन का दिल भी भर आया.. फिर दोनों घर के अंदर आए.. मौसम पानी पीकर शांत हुई.. रमिला बहन तुरंत अंदर से बोर्नविटा वाला दूध लेकर आए जो मौसम को बेहद पसंद था.. कितने अच्छे से समझते है माँ बाप अपनी औलाद को!! उन्हें कब क्या चाहिए होगा, उन्हें सब पता होता है..
स्त्री जाती कितनी आसानी से रोकर अपना दिल हल्का कर सकती है.. !! इसीलिए शायद उनको ह्रदयरोग की समस्या कम होती है.. वे अपने दिल पर कोई बोझ रहने नहीं देती.. रोकर हल्का कर देती है.. इसकी तुलना में अगर पुरुषों को देखें.. कितने दंभी होते है.. दिल रो रहा हो फिर भी चेहरे पर मुस्कान ही होती है.. हाँ, पुरुष बिना आँसू के भी रो लेने की अद्भुत क्षमता जरूर रखते है..
मौसम घर के अंदर आई तब सुबोधकांत किसी से फोन पर बात कर रहे थे.. मौसम उदास होकर सोफ़े पर बैठी रही.. इस खलिश भरे माहोल में एक ही अच्छी बात थी और वो थी फाल्गुनी.. फाल्गुनी मौसम के लिए ए.टी.एम के बराबर थी.. जब भी बुलाओ वो हाजिर हो जाती थी.. यही तो होती है सच्चे मित्र की व्याख्या.. मौसम ने तुरंत फाल्गुनी को फोन लगाया पर उसने फोन काट दिया.. और पीछे से आकर हँसते हुए मौसम की आँखों पर अपने हाथ रख दीये.. उसके हाथ हटाते हुए मौसम मुड़कर बोली "लो, शैतान का नाम लो और हाजिर.. !!"
मौसम का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या हुआ?? तरुण की बहोत याद आ रही है क्या?" सुनकर मौसम हंस पड़ी
यहाँ वहाँ की बातें कर फाल्गुनी ने मौसम को नॉर्मल कर दिया.. फिर दोनों मौसम के कमरे में गए तब साढ़े दस बजे थे.. एक बजे तक दोनों कमरे के अंदर है बैठे रहे और तब बाहर निकले जब रमिला बहन ने खाने के लिए बुलाया.. मौसम ने उस दौरान फाल्गुनी को जरा सी भी भनक नहीं लगने दी की उसने कल अपने पापा के साथ उसकी चुदाई को अपनी आँखों से देख लिया था.. मौसम मानती थी की फाल्गुनी को उसके वहाँ होने के बारे में पता नहीं था.. पर हकीकत ये थी की वैशाली ने फोन करके फाल्गुनी को सब कुछ बता दिया था.. उसने ये भी बता दिया था की मौसम खुद ही उसे पापा की ऑफिस तक लेकर आई थी और उसने बाहर खड़े खड़े सब कुछ देख लिया था..
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मदन कार ड्राइव कर रहा था और शीला उसके बगल में बैठी थी.. कविता, पीयूष और वैशाली पीछे बैठे हुए थे.. कार फूल स्पीड पर चल रही थी.. और सबके दिमाग भी उतनी ही तेजी से चल रहे थे..
मदन का दिमाग संजय की बात को लेकर खराब हो रहा था.. अच्छा हुआ जो इंस्पेक्टर उसका दोस्त निकला.. नहीं तो बड़ी मुसीबत हो जाती.. नकली पुलिस बनकर लोगों से पैसे लेना.. कितना बड़ा जुर्म होता है.. !! जो इंसान एक गुनाह कर सकता है.. वो दुसरें भी कर सकता है.. ये संजय कब सुधरेगा? क्या करें उसे सुधारने के लिए? वैशाली के भविष्य का क्या होगा??
अचानक सामने से एक ट्रक आ गई और गाड़ी के एकदम करीब से निकल गई.. एक्सीडेंट होते होते रह गया..
"तेरा ध्यान कहाँ है मदन? अभी एक्सीडेंट हो जाता.. !!" शीला ने उसे हड़काते हुए कहा
मदन ने अपना सर झटकते हुए कहा "सही बात है यार.. विचार करते करते ड्राइविंग नहीं करना चाहिए.. " मदन ने कहा
शीला समझ गई की मदन को किस बात का टेंशन था.. कल पुलिस स्टेशन से फोन आया तब से मदन उलझा हुआ सा लग रहा था.. अब शीला को भी चिंता होने लगी.. संजय की चिंता तो थी ही पर उससे ज्यादा चिंता इस बात की थी की कहीं संजय या हाफ़िज़ ने सब कुछ बक न दिया हो.. वरना उसका भंडाफोड़ होना तय था.. अब क्या करू?? अगर सच में उन दोनों ने सब बक दिया होगा तो?? मैं मदन को क्या मुंह दिखाऊँगी?? अगर मदन को मेरे और संजय की गोवा की ट्रिप के बारे में पता चला तो उसकी नज़रों में, मैं हमेशा के लिए गिर जाऊँगी.. !!!
शीला के चेहरे का नूर उड़ गया.. चिंता उसे दीमक की तरह खाए जा रही थी.. अगर संजय ने पुलिस को दोनों के संबंधों के बारे में कुछ भी बताया होगा तो मदन को पता चलने में देर नहीं लगेगी..
पीयूष के साथ समाधान हो जाने के बाद कविता बेहद खुश थी.. अच्छा हुआ की पीयूष के साथ सारे प्रॉब्लेम एक साथ खतम हो गए.. पिछली रात के हसीन संभोग को याद करते हुए कविता की पेन्टी गीली हो रही थी.. कितने दिनों के बाद हम-बिस्तर हुए थे दोनों.. !! पीयूष के उत्तेजित लंड को याद करते हुए कविता ने अपनी जांघें आपस में दबा दी..
दूसरी तरफ पीयूष के सर पर मौसम सवार थी.. हर आती जाती लड़की में उसे मौसम नजर आ रही थी.. मौसम ने वादा तो किया था की सगाई से पहले के बार अकेले में मिलेगी.. पर ऐसा मौका क्या जाने कब मिलेगा?? मिलेगा भी या नहीं? तरुण थोड़ी देर बाद मौसम की ज़िंदगी में आया होता तो सब सही से हो जाता.. तरुण पर उसे बहोत गुस्सा आ रहा था पर क्या करता??
वैशाली को चिंता हो रही थी.. अब वापिस कलकत्ता जाना पड़ेगा.. कितने दिन हो गए.. ससुराल से किसी का एक फोन तक नहीं आया था.. बेचारे बूढ़े सास ससुर.. फोन करते तो भी किस मुंह से?? उनका बेटा ही जब हरामी निकला हो.. रखैलों के साथ भटकता रहता हो और कुछ कमाई न हो.. ऐसे पति के साथ जीने से तो अच्छा है की जिंदगी अकेले ही गुजारी जाए..
वैशाली को सुबोधकांत के संग बिताएं हसीन पल याद आ गए.. ५२-५५ की उम्र के होने के बावजूद कितनी ताकत थी उनमें.. !! दिखने में भी हेंडसम थे.. उनके मुकाबले रमिला बहन तो बेचारी बहोत सीधी थी.. अगर उनकी मेरे जैसी पत्नी होती तो रोज रात को चुदाई महोत्सव मनाती.. एक बार में ही उन्होंने मुझे पिघला दिया.. फिर बेचारी फाल्गुनी का क्या दोष?? वैसे पर्सनालिटी तो संजय की भी अच्छी है पर साला है एक नंबर का कमीना.. सुबोधकांत तो इतने बड़े बिजनेसमेन है फिर भी पैसों का घमंड नहीं है.. अच्छा हुआ जो उसने मौका देखकर उनसे चुदवा लिया.. पर एक बार करने से कभी मन संतुष्ट कहाँ होता है कभी?? आह्ह फाल्गुनी.. तेरी गलती नहीं है.. सुबोधकांत बूढ़ा है.. पर है कोहिनूर हीरा.. ओल्ड इस गोल्ड.. फिर से एक बार मौका मिले तो मज़ा आ जाएँ.. पर अब कहाँ मौका मिलने वाला था..!! मन ही मन वैशाली मुस्कुरा रही थी
मदन रियर व्यू मिरर से वैशाली को मुसकुराते हुए देखता रहा..इस बेचारी को कहाँ पता ही की उसका पति अभी जैल में बंद है.. !!
रास्ते में एक बढ़िया होटल के बाहर मदन ने गाड़ी रोकी.. सब ने चाय-नाश्ता किया.. नाश्ते के बाद पीयूष और मदन सब के लिए मीठा पान लेने के लिए गए.. शीला, वैशाली और कविता लेडिज बाथरूम की तरफ गए.. बाथरूम तो एक बहाना था इसी बहाने पैरों को रीलैक्स कर रहे थे.. कार में बैठे बैठे पैरों में जकड़न हो गई थी सब को..
जब वैशाली और कविता कुछ गुसपुस कर रहे थे तब शीला वहाँ से दूर चली गई.. उसका मानना था की जवान लड़कियों की बातों में दखलअंदाजी नहीं करने चाहिए.. और उन्हें उनके हिसाब से जीने देना चाहिए.. वैशाली को ये देखकर अपनी मम्मी की परिपक्वता पर गर्व हुआ.. कविता और वैशाली बातें करते करते टॉइलेट में पहुंचे
बाहर निकलकर कविता ने एक जोरदार सिक्सर लगाई.. "वैशाली, टॉइलेट देखकर कुछ याद आया की नहीं?"
वैशाली को समझ नहीं आया "टॉइलेट देखकर भला क्या याद आएगा!!"
"क्यों? माउंट आबू में राजेश सर के साथ.. टॉइलेट ट्रिप.. भूल गई क्या?" शरारती मुस्कुराहट के साथ कविता ने कहा
स्तब्ध रह गई वैशाली.. काटो तो खून न निकले ऐसी दशा हो गई उसकी.. पर पलट कर वार करने में वो भी कम नहीं थी.. आखिर थी तो वो शीला की ही बेटी..
"तू भी ज्यादा होशियार मत बन.. मुझे भी तेरी सारे राज पता है"
कविता: "मेरे कौन से राज.. ज्यादा से ज्यादा पिंटू को इशारे करते हुए देख लिया होगा.. और क्या.. !!"
वैशाली को इस बारे में कुछ मालूम नहीं था.. उसने तो ऐसे ही अंधेरे में तीर चला दिया था.. पर कविता ने पिंटू का नाम लेकर उसे बड़ा हिंट दे दिया था.. उसने मन में ही बात जोड़ दी..
"हाँ.. मुझे मौसम ने बताया था की तुझे पिंटू बहोत पसंद है"
कविता: "तो उसमें कौन सी बड़ी बात है.. !! सब शादी से पहले की बात थी.. और काफी सालों के बाद जब हमें कोई अपनी पहचान का मिल जाएँ तब पुरानी यादें तो ताज़ा हो ही जाती है.. !!"
वैशाली: "सही बात है.. पुरानी यादें ताज़ा हो जाती है.. और रिपिट भी हो जाती है.. बस मौका मिलना चाहिए.. हैं ना..!!"
वैशाली और कविता बातें कर रहे थे तब शीला को वो बात याद आ रही थी जब ऐसे ही किसी हाइवे होटल पर रात को हाफ़िज़ ने उसे खड़े खड़े चोद दिया था.. गोवा से लौटते वक्त जब वो लोग खाना खाने रुके थे और संजय टॉइलेट गया था तब.. साला कितना हरामी था.. बिना शरमाये अपना लंड निकालकर मेरे मुँह में दे दिया था.. और मेरी छातियाँ तो ऐसे दबाता था जैसे अपनी बीवी की दबा रहा हो..
वैशाली और कविता को करीब आते देख शीला ने अपनी यादों का पिटारा बंद कर दीया.. ये ऐसा प्रकरण था जिसे याद करते ही शीला के चेहरे पर चमक आ जाती थी.. और छुपायें छुपती नहीं थी.. संजय पाँच मिनट के लिए दूर क्या गया.. उस मामूली ड्राइवर ने कितनी हिम्मत दिखाई थी.. और उस दिन जब मदन को छोड़ने आया था तब मुझे आँख मार रहा था.. साला, रंडी समझता था मुझे..!!
"घर पहुंचकर आराम से सारी बातें करेंगे.. अभी देर हो रही है" कहते हुए कविता ने वैशाली को हाथ से खींचकर जल्दी चलने पर मजबूर कर दिया..
मदन एक कोने में खड़े खड़े सिगरेट फूँक रहा था और पीयूष से बातें कर रहा था..
जैसे ही शीला, कविता और वैशाली गाड़ी में बैठे.. मदन ने कार की चाबी पीयूष को थमा दी..
"ले भाई.. मैं तो थक गया.. वैसे भी मुझे कुछ खाने के बाद नींद आ जाती है.. कल भी मैंने ड्राइव किया था.. अब तू ही चला ले" मदन ने कहा
"कोई बात नहीं मदन भैया.. मैं चला लेता हूँ.. आप आराम से शीला भाभी की गोद में सर रखकर सो जाइए" हँसते हुए पीयूष ने कहा
"अरे पागल.. जवान बेटी के सामने ऐसा सब करना ठीक नहीं.. वो नहीं होती तो सो जाता.. " मदन ने गाड़ी में बैठते हुए कहा
पीयूष के ड्राइवर सीट पर बैठते ही कविता भी आगे आ गया.. पीछे मदन का छोटा सा परिवार बैठ गया..
गाड़ी चल पड़ी.. बार बार गियर बदलने पर पीयूष का हाथ कविता की जांघों से टच हो जाता.. और दोनों के जिस्म में अजीब सी सुरसुरी होने लगती थी.. पिछली रात आइसक्रीम लेने गए तब मारुति ८०० में जो संभोग हुआ था वो तो नाश्ते के बराबर था.. फिर रात को जो हुआ वो बड़ा ही मजेदार था.. अब दोनों की भूख जाग चुकी थी.. जल्दी से जल्दी घर पहुंचकर कपड़े उतारकर एक दूसरे में समा जाने की दोनों की चाह थी..
ड्राइव करते करते.. कविता को छेड़ते छेड़ते.. पीयूष बार बार मिरर से वैशाली की ओर देख लेता था और आँखों से इशारे भी कर रहा था.. पर फिलहाल मदन और शीला के बीच बैठी वैशाली उसकी किसी भी हरकत का जवाब नहीं दे पा रही थी.. पीयूष की नजर वैशाली के उछलते स्तनों पर टिकी हुई थी.. गड्ढे में गाड़ी उछलते ही वैशाली के स्तन ऐसे कूदते थे जैसे उसने अपने टॉप में खरगोश के बच्चे छुपाये हो..
तभी पीयूष के मोबाइल पर मेसेज आया.. ड्राइव करते करते उसने मोबाइल को अनलॉक किया और देखा.. मौसम ने ब्लेन्क मेसेज भेजा था.. उसने बिना शब्दों के ही अपने जीजू को यादें भेजी थी.. मौसम का मेसेज देखकर पीयूष फिर से उसकी यादों में खो गया.. कविता के संग संबंधों का जो रिपेर काम चल रहा था उसमे फिर से डेमेज हो गया.. दंगों के वक्त जब कर्फ्यू लगा हो.. और उसमे थोड़े समय के लिए मुक्ति मिले.. उसी दौरान छुरेबाज़ी हो जाए और शांति जिस तरह चकनाचूर हो जाती है.. वैसा ही हाल पीयूष के दिल का भी हो रहा था.. आग लगाने के लिए माचिस की एक तीली ही काफी होती है.. बड़ी मुश्किल से तैरकर वो कविता नाम के किनारे पर पहुँचने ही वाला था तब मौसम नाम की बाढ़ ने उसे फिर से तहसनहस कर दिया.. जैसे ही मौसम के विचारों ने उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया.. वैसे ही उसने कविता को छेड़ना बंद कर दिया.. मानों कविता का स्पर्श करके वो मौसम को धोखा दे रहा हो ऐसा उसे लग रहा था
इंसान अपने नाजायज प्यार के प्रति जितना वफादार होता है उतनी ही वफादारी अपनी पत्नी की ओर क्यों नहीं दिखाता??
चार घंटों के सफर के बाद.. गाड़ी घर पहुँच गई.. एक के बाद एक सब गाड़ी से उतरें.. पिछले दिन ही तो वो सब वहाँ गए थे.. फिर भी ऐसा लग रहा था की जैसे घर छोड़े हुए अरसा हो गया हो..
बड़ी मुश्किल से पटरी पर आई हुई उसकी और कविता की प्रेम-गाड़ी को दूसरा कोई अवरोध न आए इसलिए पीयूष ने अपने दिमाग से मौसम के खयालों को फिलहाल निकाल फेंका.. और कविता के साथ बातें और मस्ती करते हुए घर की ओर जाने लगा..
Behad shandar update he vakharia Bhai,
Sheela ki chudai ki kahaniyo par to ab upanyas likha ja sakta he............ ek aur chapter subodhkant ka bhi jud gaya usme............
Shayad hi ba koi uski jaan pehchan me koi mard bacha ho jisase usne chudwaya na ho............
Falguni ko pata chal gaya ki uski aur subodhkant ki chudayi mausam ne live telecast dekha he..........
Gazab Bhai.............Keep rocking