Thanks Dharmendra Kumar Patel bhai, for your commentsबहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट
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Thanks a lot for the comments Napster bhaiबहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
ये मौसम ने फाल्गुनी को बातों के जाल में फसा लिया हैं तो क्या फाल्गुनी मौसम को उसे चोदने वाले का नाम बता देगी या दोस्ती कुर्बान करेगी
देखते हैं आगे
Thank you Napster bhaiबहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर फाल्गुनी को चोदने वाले के नाम से पर्दा उठ ही गया मौसम के पापा
और ये सब मौसम ने दरवाजे को कान लगाकर सुन लिया लेकीन वैशाली और फाल्गुनी के सामने नार्मल बनी रही लेकीन मौसम दिल ही दिल से तुट गयी
अब ये फाल्गुनी और मौसम के पापा रिस्ता कैसे बना ये देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है शीला को मोका मिला और शीला पीयूष के साथ शुरू हो गई लेकिन बीच में ही मदन ने आकर दोनो का काम बिगाड़ दिया बेचारे पीयूष का kLPD हो गया शीला और मदन पीयूष को उसके और कविता के बीच अनबन की वजह से उसे समझाते हैं मदन और शीला दोनो अपनी प्यास बुझा लेते हैं शीला तो पहले से ही गरम थी उसे बीच में पीयूष ने छोड़ दिया था वो मदन के साथ पूरा कर लिया मदन ने सेक्स के बारे में शीला को बता दिया लेकिन शीला अपने संबंधों के बारे मे मदन को नहीं बता पाईशीला और मदन फिर से अकेले पड़े.. दोनों वापिस कुछ रोमेन्टीक सा करने ही वाले थे तब अचानक अनुमौसी टपक पड़ी.. मदन का मूड ऑफ हो गया और वो पैर पटकते हुए खड़ा हुआ और बोला "आप दोनों बातें करो.. मैं जरा बाहर घूम कर आता हूँ " कहकर वो निकल गया
अनुमौसी: "शीला.. मदनभैया के आने की खुशी तेरे चेहरे पर साफ साफ दिख रही है.. !!"
शीला ने शरमाते हुए नजरें झुका ली
अनुमौसी: "अरे.. शर्मा क्यों रही है.. पहले जब पीयूष के पापा काम के सिलसिले में दो दिन के लिए भी बाहर जाते थे तब मुझे भी इतना सुना सुना लगता था.." अनुमौसी अपनी जवानी के दिनों की बातें करने लगी फिर बोली "असल में मैं तुझसे एक खास बात करने आई हूँ "
शीला: "हाँ.. बताइए ना मौसी"
अनुमौसी: "पहली बात तो ये है की.. पीयूष और कविता के बीच कुछ कहा-सुनी हो रखी है.. दोनों एक दूसरे से बात तक नही कर रहे.. वैसे तो सुबह की चाय पीते पीते दोनों ढेर सारी बातें करते है.. लेकिन आज तो दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा तक नही.. कविता से तेरी अच्छी बनती है.. जरा पूछ के देख.. क्या प्रॉब्लेम है? और कुछ रास्ता निकाल.. पूरा घर शमशान जैसा लगता है दोनों की अनबन के कारण.. वैसे तो उन दोनों की बहोत अच्छी पटती है.. पर पता नही एकदम से क्या हो गया!!"
शीला: "मौसी, पति पत्नी के बीच ज्यादातर झगड़े रात के प्रोग्राम को लेकर होते है.. शायद पीयूष ने करने के लिए जिद की होगी और कविता बेचारी थक गई होगी इसलिए साथ नही दिया होगा.. उसी बात को लेकर टेंशन हुआ होगा.. ऐसा मेरा मानना है.. बाकी असल में क्या हुआ होगा वो तो पीयूष या कविता ही बता सकते है"
अनुमौसी: "यहाँ तो मिल नही रहा उस बात को लेकर झगड़े होते है.. और जिसे मिल रहा है उसे उसकी कदर नही है.. अजीब है आजकल के नौजवान"
शीला: "सही कहा आपने, मौसी.. मदन की गैर-मौजूदगी में मैंने कैसे दिन गुजारे है.. ये बस मैं ही जानती हूँ.. याद है ना.. उस दिन रूखी के दो दोस्तों के साथ हम क्या क्या कर बैठे थे.. !!! पता था की ये गलत है फिर भी.. !!!"
अनुमौसी: "हाय शीला.. उस दिन की याद मत दिला.. मुझे तो कुछ कुछ होने लगता है.. तू तो इसलिए भूखी थी क्योंकी मदन विदेश था.. मेरा हाल पूछ.. पति साथ में होते हुए भी भूखी तड़पती हूँ.. पता नही उन्हें क्या हो गया है !! मुझे छूते तक नही.. कभी कभी तो दिमाग ऐसा गरम हो जाता है की क्या क्या कर दूँ.. पर उन्होंने तो बिस्तर पर आते ही खर्राटे मारने के अलावा ओर कुछ नही सूझता.. तंग आ गई हूँ मैं, शीला.. इस बेजान ज़िंदगी से"
शीला: "आप मुझसे कोई दूसरी बात भी करने वाली थी.. बताइए.. !!"
अनुमौसी: "अरे हाँ.. वो बात ऐसी थी की.. !!" बोलते बोलते वो रुक गई और खड़ी होकर दरवाजा बंद कर आई और खिड़की भी बंद कर ली.. और शीला के करीब जाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाई..
शीला चोंक गई.. "क्या बात कर रही हो मौसी? ऐसा कैसे हो सकता है?"
अनुमौसी: "मना मत कर शीला.. मेरा इतना काम कर दे प्लीज.. तुझे मेरी हालत के बारे में पता तो है.. मैं पागल तो नही हूँ जो इस उम्र में तुझसे ऐसी बात करूंगी.. ये तो तू मेरी अपनी है इसलिए बता रही हूँ.. तू ये सोच की मेरी बर्दाश्त की कैसी हद पार हो गई होगी जो मुझे तुझसे ऐसी बात करनी पड़ रही है!! किसी और से तो इस बात का जिक्र करने की मैं सोच भी नही सकती.. और मैं जो भी कह रही हूँ उसमें तेरा तो कोई नुकसान नही है.. ऊपर से फायदा ही होगा तेरा.. कभी तुझे भी.. !!!"
शीला: "वो सब तो ठीक है मौसी.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर कैसे कहूँ?? शर्म आएगी"
तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया और दोनों चुप हो गए.. शीला ने उठकर दरवाजा खोला.. सामने पीयूष खड़ा था..
पीयूष ने अनुमौसी की तरफ देखकर कहा "मम्मी, मुझे घर की चाबी दीजिए.. कपड़े बदलने है मुझे.. मैंने आस-पड़ोस में देखा पर तुम कहीं नजर नही आई.. फिर सोचा तुम यहीं मिलोगी.. "
शीला: "कैसा चल रहा है पीयूष? आजकल बहोत खोया खोया सा लगता है तू.. !! क्या बात है? कहीं मेरी किसी बात का तो बुरा नही लग गया तुझे!! मुझसे बात भी नही कर रहा.. !! मुझसे कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना.. " अपने खास अंदाज में आँखें मटकाते हुए शीला ने कहा.. प्यार से सुना भी दिया पीयूष को..
पीयूष: "अरे.. आप कैसी हो भाभी? मैं थोड़ी जल्दी में था इसलिए आपसे बात करना रह गया.. कैसा चल रहा है सब? मदन भैया आ गए वापिस? कैसी है उनकी तबीयत?" शीला के सवालों के हमले से बोखला गया पीयूष
शीला ने आँखों से मौसी को इशारा किया.. मौसी समझ गई
अनुमौसी: "मैं घर खोलती हूँ.. मुझे भी लड़कियों के लिए खाना पकाना है.. मैं चलती हूँ" और वहाँ से निकल गई..
शीला: "अब आ ही गया है तो बैठ थोड़ी देर.. ऐसी भी क्या जल्दी है? वैशाली घर पर हो तो ही तू बैठेगा.. कहीं ऐसा तो नही है ना.. !!"
पीयूष: "अरे नही नही भाभी.. ऐसा तो कुछ नही है.. क्या आप भी !!" शीला की बात सुनकर पीयूष शरमा गया.. हर किसी की नब्ज दबाना जानती थी शीला..
पीयूष सोचने लगा.. शीला भाभी ने वैशाली का जिक्र क्यों किया होगा?? कहीं मेरे और वैशाली के संबंधों के बारे में उनको पता तो नही चल गया न?
वो कुछ ओर सोचता उससे पहले ही शीला ने पल्लू हटाकर.. अपने मदमस्त, गोलमटोल.. तंग ब्लाउस में कैद स्तनों की झलक दिखाते हुए कहा
शीला: "अब तुझे ये भी पसंद नही पीयूष? एक टाइम था जब तू इनकी झलक पाने के लिए घंटों छत पर कसरत करने के बहाने खड़ा रहता था.. भूल गया क्या?? मैं कपड़े सुखाने बाहर आती थी तब ऊपर से तू कैसे देखता रहता था.. !! उस दिन मूवी देखने गए तब दबा लेने के बाद तेरा मन भर गया क्या?? या फिर किसी ओर जवान लड़की के साथ.. !!!" शीला ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया
पीयूष: "भाभी, आप भी कैसी बातें करती हो.. !! उस दिन मूवी देखते वक्त जो हुआ वो तो मेरे लिए सपना पूरा होने जैसा था.. मैं तो सोच रहा था की फिर कभी मुझे ऐसा मौका नही मिलेगा.. इसीलिए आप से दूर भाग रहा था.. आप के करीब आने के बाद मैं खुद पर कंट्रोल नही कर पाता हूँ.. सच कह रहा हूँ.. आपको देखते ही मूवी वाला दिन याद आ जाता है और मन करता है की आपको बाहों में लेकर दबा दूँ.. मुझसे कुछ गलती न हो जाए इसलिए आप से दूरी बनाकर रखता हूँ"
शीला: "अरे बेवकूफ.. !! अभी घर पर कोई नही है.. पूरी कर ले अपनी मन की इच्छा.. !!" कहते हुए शीला ने पीयूष के दोनों हाथ पकड़कर अपने स्तनों के शिखर पर रख दिए.. और बोली "दबा ले जीतने जोर से दबाने हो तुझे.. लेकिन पहले दरवाजा बंद कर दे.. नही तो कोई आ गया तो.. "
पीयूष: "पर.. घर पर मम्मी इंतज़ार कर रही होगी"
शीला: "अबे चोदूनंदन.. मौका मिले तब उसका फायदा उठाना सिख.. नही तो पूरी ज़िंदगी बस देखकर ही खुश रहना पड़ेगा.. "
पीयूष ने तुरंत ही दरवाजा लॉक कर दिया और वापिस आकर शीला से लिपट पड़ा.. शीला के स्तनों को ब्लाउस की कटोरियों के ऊपर से दबाते हुए बड़ी आतुरता पूर्वक उसके होंठों को चूसने लगा.. शीला ने भी तुरंत पीयूष का लंड पकड़कर दबा दिया
पीयूष: "आह्ह.. जरा धीरे से.. भाभी"
शीला: "अच्छा.. तुझे दर्द हो रहा है.. तू जब मेरी छातियों को इतने जोर से मसलता है तब मुझे दर्द नही होता होगा.. !!!"
शीला के हाथों में बरकत थी.. एक ही पल में पीयूष का लंड उसकी पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया.. पेंट के ऊपर से ही उस गन्ने जैसे लंड को सहलाते हुए शीला ने कहा "पीयूष.. ये तो चूत मांग रहा है.. चल डाल दे जल्दी"
कहते हुए शीला घूम गई और अपना घाघरा ऊपर कर दिया.. सोफ़े का सहारा लेते हुए योनिप्रवेश के लिए आदर्श स्थिति में आ गई.. अपने चूतड़ उठाकर उसने पीयूष के सामने पेश कर दिए.. पीयूष का लंड खुश होकर ऐसे लहराने लगा जैसे पहली बारिश में खेत की फसल लहराती है
"आज चुसोगी नही भाभी? उस दिन मूवी देखते हुए आपने जिस तरह लिया था वैसे ही मुंह में लीजिए न.. !! मुझे बहोत अच्छा लगता है.. प्लीज!!" शीला के स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने कहा
"वो सब अभी नही.. कभी मदन कहीं बाहर गया होगा तब शांति से करेंगे.. अभी वो वापिस आ गया तो ये भी नही हो पाएगा.. इसलिए मैं जैसा कहती हूँ वैसा कर.. और तेरा लंड मेरी चूत में घुसा दे.. जल्दी कर अब!!" शीला ने थोड़े गुस्से से कहा
पीयूष ने अपना लंड हाथ में लिया.. उलटी लैटी शीला के भव्य कूल्हों पर लंड रगड़ते हुए अप्रतिम आनंद लेने लगा..
"वक्त बर्बाद मत कर.. कितनी बार समझाऊँ तुझे?? मदन कहीं आसपास ही होगा.. कभी भी आ जाएगा.. और घर पर तेरी मम्मी भी इंतज़ार कर रही है.. ये सब करने का समय नही है अभी.. जल्दी कर यार.. और न करना हो तो रहने दे.. ये तो मौका मिला तो मैंने सोचा की जल्दी जल्दी मजे कर लेते है.. तुझे ये सब फॉरप्ले ही करना हो तो छोड़ दे.. !!" शीला ने तंग आकर कहा.. वाकई, शीला इतना जोखिम उठा रही थी.. और नादान पीयूष बिना इस बात को समझे.. लंड डाल कर धुआंधार चुदाई करने के बदले शीला के कूल्हें छेद रहा था..
बाजी बिगड़ने से पहले.. पीयूष ने एक ही धक्के में पूरा लंड डाल दिया और धक्के लगाने लगा.. शीला की चूत टाइट तो थी नही.. की डालने में तकलीफ होती.. बड़ी ही आरामदायक चुदाई शुरू हो गई.. कच्ची कुंवारी लड़कियों के मुकाबले भाभियों को चोदने में यहीं लाब है.. नादान कुंवारी लड़कियों की चूत टाइट होती है.. इसलिए डालने में दिक्कत होती है.. पहले उनको तैयार करनें के लिए पापड़ बेलों.. फिर चुदाते वक्त भी चिल्लाने का डर.. लेकिन भाभी तैयार भी जल्दी हो जाती है.. और बिना किसी शोर-शराबे के लंड आराम से उनकी गुफा में घुसकर अपनी तपस्या कर सकता है.. कुंवारी लड़कियों के हावभाव देखें तो ये नही कह सकते की उन्हें मज़ा आ रहा होगा.. जबकी भाभी तो लंड लेते ही ऐसे सिहरती है जैसे सातवे आसमान पर हो...
शीला का जिस्म, पीयूष के लयबद्ध धक्कों से आगे पीछे हो रहा था.. दोनों बेहद उत्तेजित होकर एक दुसरें को भोगने के लिए उतावले हो गए थे.. तभी डोरबेल बजी.. बेल की आवाज सुनते ही.. एक झटके में दोनों अलग हो गए..
"जरूर मदन ही होगा.. तू जल्दी कपड़े पहन ले.. अच्छा हुआ ना जो मैंने कपड़े नही उतारे थे.. ब्लाउस खोला होता तो अभी ये मेरे दोनों को अंदर फिट करने में ही ३-४ मिनट निकल जाते.. आईने में अपनी शक्ल देखकर तसल्ली कर ली शीला ने.. फिर उसने दरवाजा खोला.. मदन को देखकर वो थोड़ी सी बोखला जरूर गई पर किसी भी हाल में मदन को जरा सी भी भनक न लगे उसका ध्यान रखा शीला ने..
पीयूष को देखकर थोड़ा सा चकित होते हुए मदन सोफे पर बैठा.. की तुरंत शीला शुरू हो गई.. वह दिखावा ऐसा कर रही थी की मदन के आने से पहले वो और पीयूष कोई गंभीर चर्चा कर रहे थे..
"सच सच बता पीयूष.. तेरे और कविता के बीच क्या तकलीफ हुई है? तुझे पता है तेरी मम्मी कितनी चिंता कर रही थी? बेचारी रो रही थी.. " शीला ने बखूबी अभिनय किया
मदन शीला और पीयूष की तरफ देखता ही रहा.. बंद दरवाजे के पीछे शीला और पीयूष को देखकर उसके दिमाग में जो शक हुआ था.. वो ये सुनते ही दूर हो गया.. शक के पन्ने और फड़फड़ाते उससे पहले ही उसपर विश्वास का पेपरवेइट रख दिया शीला ने..
"क्या बात है पीयूष?? ये सब क्या माजरा है? " मदन ने पूछा
"कुछ नही मदन भैया.. मेरे और कविता के बीच कुछ दिनों से अनबन चल रही है.. यह बात मम्मी के ध्यान में आई होगी इसलिए उन्होंने भाभी से शिकायत कर दी.. और भाभी मुझ पर टूट ही पड़ी.. मेरी कोई गलती नही है इसमे.. " एक ही सांस में पीयूष ने कहा.. अच्छा हुआ की मदन की नजर पीयूष के पेंट की खुली चैन पर नही गई.. वरना पीयूष और शीला का नाटक वहीं समाप्त हो जाता.. जल्दी जल्दी में बंद करने पर पेंट की चैन टूट गई थी.. और पीयूष का भूखा लंड अभी भी उभार बनाते हुए अपनी नाराजगी जाहीर कर रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की कुछ ही पलों में उसका लंड बैठ गया.. !!
"तूने खुद ही कैसे तय कर लिया की तेरी कोई गलती नही है ??? प्रत्येक गुनहगार के पास अपने निर्दोष होने के सबूत होते ही है" मदन ने कहा
शीला: "बिल्कुल सही कहा मदन ने.. तुझे इतना समझना चाहिए की पति पत्नी के बीच छोटे मोटे झगड़े और मन-मुटाव तो चलते रहते है.. जरूरी है की उन्हे समय रहते खतम कर दिया जाए.. वरना आगे जाकर वो बड़ा स्वरूप धारण कर लेते है.. और ऐसा तो क्या हो गया तुम दोनों के बीच की एक दूसरे की शक्ल तक देखना नही चाहते.. !!"
मदन थोड़ा चोंक गया "बात यहाँ तक पहुँच गई है???"
मदन की बातों से शीला को यकीन हो गया की उसके मन में पीयूष की हाजरी को लेकर कोई शक नही रहा था.. उसने राहत की सांस ली.. रंगेहाथों पकड़े जाते बच गए दोनों.. लेकिन वो काफी डर गई इस घटना से.. अब से सावधान रहना पड़ेगा..
मदन: "अरे तुम दोनों की अभी अभी तो शादी हुई है.. ये देख.. शादी के इतने सालों के बाद भी तेरी भाभी कैसी खिले हुए गुलाब जैसी है.. क्यों? क्योंकि मैं उसे इतना प्रेम देता हूँ की वो हमेशा खुश ही रहती है.. जीवन के बाग को हमेशा तरोताजा रखने के लिए निरंतर प्रेम की पानी से उसे सींचना चाहिए.. नही तो वो बाग मुरझाने लगता है.. फिर उसे जीवंत करना कठिन हो जाता है.. मेरी बात करूँ तो.. मुझे वहाँ विदेश में कितनी गोरीओ ने ललचाया था.. ऐसी ऐसी रूपसुंदरियाँ होती है वहाँ.. अच्छे अच्छों को नियत बदल जाए.. पर तेरी भाभी का चेहरा सामने आते ही मन पर लगाम लगा लेता था.. वो यहाँ अकेले मेरे बगैर तड़प रही हो.. और मैं वहाँ गुलछर्रे उड़ाऊँ.. !! ये कैसे हो सकता है.. !! तुरंत ही गोरी चमड़ी का सारा आकर्षण खतम हो जाता था.. इच्छा तो बहोत सारी होती है मन में.. पर जो मन में आयें वो सब करना ठीक नही.. समझा तू??"
मदन के प्रत्येक शब्द शीला के दिल पर कटार बनकर घाव बना रहे थे.. अपने आप पर धिक्कार हो गया शीला को.. शर्म आने लगी उसे.. मदन बेचारा इन दो सालों में कितना वफादार रहा उसके प्रति..!! और यहाँ मैं ??? एक स्त्री होने के बावजूद.. संयम खो बैठी.. लानत है तुझ पर शीला.. तू मदन के लायक ही नही है.. शीला के चेहरे से नूर उड़ गया.. उसका सुंदर मुख फीका पड़ गया.. जैसे पूनम के चाँद को ग्रहण लग गया हो.. !!
पीयूष: "आप सही कह रहे है मदन भैया.. पर कविता को भी थोड़ा समझना चाहिए ना.. !! जब देखो तब मुझे किसी न किसी बात पर बस टोकती ही रहती है.. क्या अपने पति के आत्म-सन्मान का ध्यान रखना उसकी जिम्मेदारी नही है?"
मदन: " मैं समझ सकता हूँ.. पर तुम दोनों के बीच असल में आखिर क्या हुआ है जो दोनों ऐसे रूठ गए हो.. !! तुम मर्ज बताओगे तो मैं तुम्हें इलाज बता सकता हूँ.. "
पीयूष ने माउंट आबू में जो हुआ था वो सब बताया.. कैसे कविता ने अधनंगे कपड़ों में सब के सामने आकर उसकी इज्जत की धज्जियां उड़ा दी थी.. पर उसने ये नही बताया की उसके वैशाली के प्रति आकर्षण के कारण कविता रूठ गई थी.. एक समय था जब पीयूष कविता कितने प्यार से एक दूसरे के साथ रहते थे.. पर हकीकत ये थी की जब से शीला के कारण कविता की ज़िंदगी में पिंटू की एंट्री हुई थी.. तब से कविता नाम के पंछी को पंख लग गए थे.. जाहीर सी बात थी की मदन इन सारी बातों से अनजान था.. इसलिए वो सोच में डूब गया.. पीयूष की बात उसके दिमाग में उतर नही रही थी..
मदन: "देख पीयूष.. कविता बहोत अच्छी लड़की है.. तुझे गई गुजरी भूल जानी चाहिए.. उसे फिर से पहले की तरह प्यार देना शुरू कर दे.. रिश्तों का व्यापार ऐसे ही चलता है.. प्यार दो और प्यार लो"
शीला: "पीयूष, तू कविता को प्यार तो करता ही है.. जरूरत है बस उसे व्यक्त करने की.. सिर्फ प्यार होना ही काफी नही है.. उसे वक्त वक्त पर जताना भी पड़ता है"
पीयूष: "हाँ भाभी.. आपकी बात सही है.. पर ताली कभी एक हाथ से नही बजती.. सारी गलती मेरी तो नही हो सकती ना.. उसका भी तो थोड़ा दोष होगा ही ना.. !!"
शीला: "कहाँ मना किया मैंने?? मैं कविता को भी समझाऊँगी.. सब ठीक हो जाएगा.. आज रात जब तू मौसम को छोड़ने उसके घर जाएगा.. तब मैं और मदन, कविता से बात करेंगे.. जो होगा सब अच्छा ही होगा.. अब तू मुझे वचन दे.. की पुरानी बातों को कुरेदेगा नही.. और उन बातों को लेकर उसे ताने नही मारेगा.. !!"
पीयूष नीचे देखने लगा और धीरे से बोला "कोशिश करूंगा भाभी.. पर कुछ बातें ऐसी है जो भुलाएं नही भुलाती.. !! वक्त तो लगेगा"
वास्तव में पीयूष इस बात को लेकर परेशान था की मौसम को देखने लड़के वाले आ रहे थे.. बेचैन और उदास हो गया था.. मुंह तक आया हुआ निवाला खाने से पहले ही छीन गया.. !! मौसम की कच्ची कुंवारी जवानी को भोगने का सुवर्ण अवसर इतना जल्दी हाथ से चला जाएगा उसका अंदाजा नही था उसे.. मौसम भी लगभग तैयार हो गई थी.. तभी उसके माँ-बाप को क्या सुझा जो लड़के वालों को बुला लिया.. !! थोड़े दिन रुक जाते तो मौसम की कच्ची चूत को चोद लेता..
इसके बारे में तो शीला को भी कुछ पता नही था.. की पीयूष मौसम के शबाब में डूबा हुआ था..
मदन: "ऐसा कैसे चलेगा पीयूष?? तुझे कोई प्राइवेट प्रॉब्लेम हो तो निःसंकोच मुझे बता.. "
पीयूष: "नही भैया.. ऐसा तो कुछ नही है"
शीला, मदन और पीयूष चर्चा कर रहे थे तभी मदन के किसी दोस्त का मोबाइल पर फोन आया.. मदन बात करते हुए घर के बाहर बगीचे में पहुँच गया.. उसी दौरान एकांत में पीयूष और शीला के बीच गुपचुप बातें हुई.. और मदन के वापिस आते ही दोनों नॉर्मल होकर बैठ गए..
पीयूष ने खड़ा होते हुए कहा "मम्मी राह देख रही है.. मैं चलता हूँ.. मुझे शाम को जाना भी है इसलिए तैयारी करनी है.. भाभी, वैशाली को बता देना.. पाँच बजे निकलना है.. और कल दोपहर को आप दोनों लेने आ जाना.. "
मदन: "हाँ हाँ.. मैंने वैशाली को वादा किया है.. हम कार लेकर कल लेने आ पहुंचेंगे"
शीला: "हाँ, भाड़े पर कोई न कोई गाड़ी मिल ही जाएगी.. !!"
मदन: "अरे, कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नही है.. मैं जिस गाड़ी में आया था.. उस ड्राइवर हाफ़िज़ का नंबर मैंने स्टोर कर लिया था.. उसे ही बुला लेंगी.. गाड़ी भी मस्त है और चलाता भी अच्छा है.. !!"
शीला: "नही नही.. उसे नही.. किसी ओर को बुला लो" हाफ़िज़ का नाम सुनते ही शीला कांप उठी.. शीला सोचने लगी.. मदन, वो गाड़ी तो अच्छी चलाएगा पर साथ ही साथ तेरी बीवी को भी घोड़ी बनाकर चोद देगा..
पीयूष चला गया..
मदन: "क्यों? हाफ़िज़ के साथ जाने में क्या तकलीफ है तुझे?" कहते हुए उसने शीला को बाहों में भर लिया.. एकांत मिलते ही.. मदन ५८ से २८ साल का बन गया.. पीयूष के संग उस अधूरे सेक्स के प्रोग्राम के बाद शीला बहोत ही उत्तेजित थी.. मदन के अचानक आ जाने से अधूरे रहे कार्यक्रम को फिर से आगे चलाने का सोच रही थी शीला.. शुरुआत पीयूष के साथ हुई थी और खतम मदन के साथ होगा.. इससे मदन के मन का शक भी दूर हो जाएगा और भोसड़े की खुजली भी शांत हो जाएगी..
शीला ने भी मदन के आलिंगन का जवाब उसे चूमकर दिया..
शीला: "नही यार.. मुझे कोई तकलीफ नही है.. !! उस दो कौड़ी के ड्राइवर से मुझे भला क्या प्रॉब्लेम?? मैं तो ये सोचकर मना कर रही थी की उसकी गाड़ी बड़ी है.. तो हमें महंगा पड़ेगा.. इतनी बड़ी गाड़ी की हमें क्या जरूरत?? कोई छोटी गाड़ी ले लेते है न.. !!" शीला मदन को बेड तक ले गई और धक्का देकर बेड पर सुला दिया.. बड़ी ही कामुक अदा से शीला उसके बगल में लेट गई.. शीला के जिस्म के गदराए अंग उसके साथ ही उजागर हो गए.. शीला के गोल खरबूजे जैसे स्तनों को देखकर ही मदन के मुंह में पानी आ गया.. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल लाल हो गया..
मदन को और अधिक उत्तेजित करने के लिए शीला ने शब्दों का सहारा लिया.. किसी भी पुरुष को उत्तेजित करने के लिए सिर्फ जिस्म काफी नही होता.. संभोग के दौरान, जिस्म के साथ साथ उत्तेजक भाषा का भी जब प्रयोग होता है तब पुरुष की उत्तेजना, सारी हदें पार कर जाती है..
शीला: "जानु.. तेरी शीला बहोत तरसी है.. आज ऐसा चोद.. ऐसा चोद.. की पिछले दो सालों की भूख शांत हो जाए.. वैशाली शॉपिंग करने गई है इसलिए उसके आ जाने की भी चिंता नही है.. चल मदन.. आज तो मुझे रंडी बनाकर चोद.. मैं भी तो देखूँ.. विदेश की ठंडी हवाओ ने कहीं तेरे लंड को भी ठंडा तो नही कर दिया ना.. !! और हाँ.. तुझे बता देती हूँ.. अगर आज अभी तूने मुझे ठंडा नही किया ना.. तो मैं उस ड्राइवर हाफ़िज़ से भी चुदवाने में नही हिचकिचाऊँगी.. देख क्या रहा है.. मुझे नंगी कर.. नीचे जोर की खुजली हो रही है मुझे.. चाटकर उसे शांत कर.. और फिर तेरे लोडे से धक्के लगाकर तृप्त कर मुझे.. " शीला का एक एक शब्द मदन के लिए वियाग्रा का काम कर रहा था.. शीला की कामुक बातें सुनते ही मदन इंसान से जानवर बन गया.. मादरजात नंगा होकर वो शीला के बदन पर छा गया..
दोनों एक दूसरे को चूमते हुए प्रेमालाप में खो गए.. शीला के सुंदर कटीले बदन पर उसके पति मदन का हाथ फिरने लगा.. उसके सहलाते हुए शीला का पूरा जिस्म खिल उठा.. दोनों अत्यंत उत्कट प्रेम से एक दूसरे के भीतर समाने को बेताब होकर उत्तेजित होते हुए अंग मर्दन करने लगे
मदन: "ओह्ह शीला.. इस उम्र में भी तेरे अंदर कितनी गर्मी है.. मुझे तेरे अलावा कोई ओर इतना मज़ा दे ही नही सकता.. तू एक सम्पूर्ण स्त्री है.. जैसे हर मर्द की अपेक्षा होती है वैसी ही है तू.. शयनेषु रंभा.. का प्रत्यक्ष उदाहरण है तू!!" मदन अपनी पत्नी के उरोजों को पकड़कर.. अंगूठे और पहली उंगली से उसकी निप्पलों को मसलते हुए बोला
मदन के मस्त कडक लंड को शीला बेताबी से मुठ्ठी में पकड़कर सहला रही थी.. उसके हाथ का हलन-चलन इतना लयबद्ध था की मदन के लंड को स्वर्गीय सुख मिल रहा था.. एक उत्तम कपल था शीला और मदन का
शीला: "मदन, तू दो सालों तक वहाँ क्या कर रहा था? ये तेरा मस्त लंड, बिना चुत के कैसे रह पाया?? "
मदन: "ओह्ह शीला.. तुझे याद करके मैं रोज मूठ मारता था.. और ईमानदारी से कहूँ तो.. जिस घर में, मैं पेइंग गेस्ट था उसके मालिक की पत्नी के साथ मेरे सेक्स-संबंध थे.. बाकी के समय..हम दोनों के जो वीडियोज़ बनाकर ले गया था.. उसे लैपटॉप में देखते हुए.. हाथ से हिलाकर मैं ईसे ठंडा कर देता था"
शीला वास्तव में चोंक गई "क्या?? सच कह रहा है तू? पीयूष को तो ऐसे बोल रहा था तू मुझे वहाँ मिस करता था और मुझे ही वफादार रहा था"
मदन: "शीला, अब तुझसे क्या छुपाना.. !! पर तू भी सोच जरा.. दो साल का समय बड़ा लंबा होता है.. और इतने लंबे समय तक बिना सेक्स के रह पाना कितना मुश्किल होता है ये तू भी जानती है.. और फिर भी.. मैं तो तुझसे वफादार ही रहा था.. पर बात ही कुछ ऐसी हो गई की मुझे उस लैडी से सेक्स संबंध बनाना पड़ा.. मैं अपने आप की वकालत नही कर रहा.. पर मैं तुझे धोखे में रखना नही चाहता हूँ.. मैं तुझसे बेंतहाँ प्यार करता हूँ.. इसलिए मेरा मानना है की एक बार फिसल जाने को धोखा नही कह सकते.. और जो भी हुआ था वो जरूरत के आधार पर हुआ था.. अपने पार्टनर की गैर-मौजूदगी में जब कुदरती इच्छाएं चरमसीमा पर पहुँच जाएँ तब ऐसा होना स्वाभाविक है.. कोई बड़ी बात नही है.. !!"
शीला की छाती पर से एक बड़ा बोझ हल्का हो गया.. अपने कारनामों के चलते जो अपराधभाव जागृत हुआ था वो भांप बनकर उड़ गया.. चुदाई के दौरान ऐसी गंभीर चर्चा का नतीजा ये हुआ की मदन का लंड मुरझा गया.. शीला के हाथों में होने के बावजूद.. ये बात को शीला को राज न आई.. ईसे खड़ा करके ही वो अपने भोसड़े की खाज मिटाने वाली थी.. नरम लोडा स्त्री के किस काम का.. !! उससे तो पेशाब करने के अलावा और कोई काम नही हो सकता.. ज्यादातर औरतों को नरम लोडा देखने का अवसर नही मिलता.. क्योंकि जैसे ही किसी स्त्री के सामने लंड खुलता है.. वो खड़ा हो ही जाता है.. सच बात तो ये है की नरम लंड देखने में भी पसंद नही आता.. वो सुंदर तभी लगता है जब उत्तेजित होकर खड़ा हो जाए.. पुरुष भी होशियार होते है.. वो अपने कपड़े उतारने से पहले ही स्त्री को नंगी कर देते है.. और फिर उस निर्वस्त्र शरीर को देखकर.. सहला कर मसल कर.. अपने लंड को खड़ा करते है और फिर उसे स्त्री के सामने पेश करते है..
वैसे शीला ने मदन के नरम लंड को अनगिनत बार देखा था.. पर उत्तेजित होकर संभोग के लिए बेकरार हो तब नरम लंड देखना.. किसी सदमे से कम नही होता..
कुंवारी नादान लड़कियां जब पहली बार कडक लंड देखती है.. तो उनके दिमाग में यही गलतफहमी हो जाती है की लंड हमेशा ऐसे ही रहता होगा.. कडक और खड़ा.. !! और फिर उन्हे ये ताज्जुब होने लगता है की इतना बड़ा लंड पेंट में फिट कैसे रहता होगा??
शीला को इस बात की तसल्ली हो गई.. की मदन उसे अब भी बेहद प्यार करता है.. वरना गीले भोसड़े को चोदने के बजाए.. इतनी सच्चाई से क्यों अपना जुर्म कुबुलता.. !! और अगर उसने बताया न होता तो शीला को पता भी नही चलने वाला था.. जिस तरह मदन ने खुले दिल से उसे सारी बात बता दी थी.. शीला की नज़रों में मदन का कद और बड़ा हो गया था.. अब ये शीला को तय करना था.. मदन की एक गलती को दिमाग में रखकर सारी ज़िंदगी रोते रहना था या फिर बड़ा मन रखकर.. उसे स्वीकार कर भूल जाना था..
"क्या सोच रही हो शीला?? मुझे पता है.. ये जानकर तुझे बहोत दुख हुआ है.. पर तेरी इन छातियों को छोड़कर मैंने अपने आप को २१ महीने तक अपने आप को किसी तरह कंट्रोल में ही रखा हुआ था.. पर पता नही.. उस दिन मुझे क्या हो गया.. मैं अपने आप को रोक ही नही पाया.. अब मुझे माफ करना या न करना वो तुझ पर निर्भर है.. तू जो सजा देगी मुझे वो मंजूर है.. पर दिल में ये बोझ लिए जीना मुझे पसंद नही.. " इतना अच्छा उत्तेजना सभर वक्त बर्बाद हो रहा था.. शीला गंभीरता से सोचती रही
उसके दिमाग में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.. अगर मैं मदन को अपने कारनामों के बारे में बता दु तो क्या होगा?? वो क्या सोचेगा मेरे बारे में?? क्या वो मुझे कभी माफ कर पाएगा?? एक गलती उसने की और एक गलती मैंने की.. क्या इस तरह हिसाब बराबर मान सकते है?? शीला के होंठों तक ये बात आ गई.. उसका दिल कर रहा था पिछले दो महीनों के दौरान उसने जो कुछ भी किया वो सब कुछ मदन को बता दे और अपने दिल का बोझ भी हल्का कर ले.. पर गलती का इकरार करना बेहद कठिन होता है.. किसी की हत्या करने से भी ज्यादा कठिन.. जबरदस्त हिम्मत चाहिए अपनी गलती मानने के लिए.. हर किसी के बस की बात नही है.. लाख कोशिशों के बावजूद उसकी जबान नही चली.. मन ही मन वो सब समझती थी.. वो मदन को माफ क्यों न करें? अरे, मदन को माफ करने का उसे हक था ही कहाँ? हक तो तब होता अगर वो भी मदन के प्रति वफादार रही होती.. जब मदन से सौ गुना ज्यादा गलती खुद ही कर चुकी हो.. तब वो किस मुंह से मदन की माफी कुबूल करती??
बेड के एक कोने पर मदन बैठा हुआ था.. उसका लंड ऐसे निस्तेज होकर पड़ा था जैसे किसी काम का न हो.. शीला की नजर उस लंड पर पड़ते ही उसे दया आ गई.. अरे रे.. !! मेरी मौजूदगी में लंड की ये हालत!!! मैंने अच्छे अच्छे लंडों को पलक झपकते ही टाइट कर दिया है और मैं यहाँ पूरी की पूरी नंगी बैठी हूँ फिर भी ये निर्जीव हुआ पड़ा है.. !! ये तो मेरे सुंदर शरीर का.. मेरे स्त्रीयत्व का.. मेरी पत्नीत्व का.. अपमान है..
शीला उठकर किचन में गई और पानी पीकर वापिस आई.. आकर उसने मदन को कंधे से पकड़कर खड़ा किया..
शीला: "मदन.. जिंदगी में ऐसे कई मोड आएंगे जहां पर ऐसी घटनाएं घटेंगी जो हमने सपने में भी ना सोची हो.. " शीला ने जिस तरह उस अंग्रेज जॉन का इंग्लिश लंड अपने भोसड़े में लिया था वो याद करते हुए वो मदन के लंड को हल्के हाथों से मसाज करने लगी..
मदन: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. मैंने भी ये सपने में नही सोचा था की मैं किसी विदेश औरत से शरीर संबंध स्थापित करूंगा "
शीला को ऐसा लगा.. जैसे मदन खुद की नही.. पर शीला की बात कर रहा हो..
शीला ने मदन को एक प्रेमभरी चुम्मी देकर अपनी ओर खींचा और फिर से एक बार संभोग का मुक प्रस्ताव उसके सामने रखा.. जिसे मदन ने.. उसके स्तनों को दबाते हुए स्वीकार किया.. दोनों फिर से अपनी पसंदीदा प्रवृत्ति में खो गए.. शीला ने अपनी अनूठी काम कला का उपयोग कर.. अपने पति के चौबीस महीनों के विदेश प्रवास की थकान उतार दी.. उसके लंड के विदेशीपने को अपनी देसी चुत के कामरस से नामशेष कर दिया..
एक जबरदस्त ठुकाई के बाद.. जब दोनों शांत हुए तब उनके चेहरे खिले हुए ताजे गुलाब जैसे हो गए.. दोपहर को जल्दबाजी में जो कसर रह गई थी वो सब शीला ने एक साथ निकाल दी.. जब शीला आँखें बंद कर मदन के लंड को पूर्ण उत्तेजना से मुख-मैथुन का आनंद दे रही थी तभी उसका दिमाग यह कल्पना कर रहा था की वह विदेश जॉन का लंड चूस रही है.. कभी संजय के लंड की याद आ जाती तब वो हल्के से अपने दांत मदन के लंड पर गाड़ देती और मदन की धीमी चीख निकल जाती.. पर मदन शीला के गदराए जिस्म की मस्ती में कुछ ऐसा खो चुका था की उस बेवकूफ को ये विचार भी नही आया की पिछले दो सालों में.. उसकी गरम पत्नी ने अपनी चुत की आग बुझाने के लिए क्या क्या किया होगा.. !!
शीला अब मदन की कमजोरी बन चुकी थी.. उसके नंगे बदन को देखकर मदन अपनी विचारशक्ति खो बैठता था..
मादरजात नग्न पति-पत्नी.. दुनिया से बेखबर.. एक दूजे में खोए हुए थे और अपनी भूख को संतुष्ट करने के पश्चात कपड़े पहन कर.. तैयार होकर.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सोया हुआ था.. अभी भी ऑर्गैज़म के कारण तेज हुई साँसों से शीला की छाती हांफ रही थी.. हर सांस के साथ ऊपर नीचे होते हुए वह मांसल स्तनों की भव्यता को मदन मन भरकर देखता ही रहा..
शीला: "तुझे मेरे बॉल बहोत पसंद है ना.. मदन!! वो विदेशी औरत के स्तन मेरे स्तन से भी ज्यादा खूबसूरत थे क्या?"
मदन: "शीला, यह विदेशी लोग दिखने में जीतने सुंदर होते है.. उससे कई ज्यादा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मानती थी.. अपनी किसी भी इच्छा को बिना छुपायें खुलकर बोलने की क्षमता.. और उस इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने का मनोबल.. उनकी यह बात मुझे बहोत अच्छी लगी.."
शीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट हैशीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा
मदन: "क्या कहूँ शीला.. !! कहाँ से शुरुआत करूँ? मुझे बेहद गिल्टी फ़ील हो रहा है.. शर्म आ रही है.. "
शीला: "मदन, तुझे दूध से भरे हुए स्तन बहोत पसंद है ना.. !! मुझे पता है.. दूध से रिसते हुए स्तन देखकर तू अपने आप को रोक ही नही पाता.. वैशाली के जनम के बाद तू कैसे मेरे स्तनों से दूध चूसता था.. !! याद है ना तुझे.. !! मुझे रीक्वेस्ट करनी पड़ती थी की वैशाली के लिए थोड़ा दूध छोड़ दे.. दिन में दस बार तू मेरे स्तन दबाता था.. कभी कभी तो मम्मी-पापा.. या किसी मेहमान की मौजूदगी में भी तू किचन में घुसकर.. ब्लाउस के हुक खोलकर स्तन चूस लेता था.. मुझे तो अब अभी वो सारे दिन याद है!!"
मदन: "हाँ.. पर अभी वो बात क्यों याद आई? फिर से प्रेग्नन्ट होना है क्या तुझे?"
शीला ने शरमाकर मदन की नाक खींचते हुए कहा "वो रास्ता तो कब से बंद हो गया है.. मेरा तो मेनोपोज़ भी हो चुका है.. अब में सुरक्षित जॉन में हूँ.. तू कितना भी लंड घुसा ले.. कितने भी धक्के लगा ले.. कितना भी वीर्य मेरे अंदर भर दे.. अब कुछ नही हो सकता.. !!"
मदन: "मतलब अब हमारा बिना किसी डर के सेक्स को भोगने का समय शुरू हो चुका है.. एक बात पूछूँ?"
शीला: "हाँ.. पूछ ना.. !!"
मदन: "कभी तुझे किसी गैर मर्द से चुदवाने का मन होता है? जीवन में कभी तो दिल किया होगा ना की रोज रोज घर का खाना खाती हूँ.. एक बार बाहर की बिरियानी भी चख लूँ.. !!"
मदन की ये बात सुनते ही शीला के जिस्म में झनझनाहट सी होने लगी
शीला: "चुप साले नालायक.. कुछ भी बोलता है.. शर्म नही आती तुझे!!" कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा
मदन: "शीला, तुझे छोड़कर मैंने किसी ओर के साथ ये कभी नही किया था.. मुझे किसी ओर के साथ सेक्स करके कैसा लगेगा ये मालूम ही नही था.. पर आज तुझे मित्रभाव से कह रहा हूँ.. किसी ओर के साथ सेक्स करने में बड़ा ही मज़ा आता है!! उत्तेजना चार गुना हो जाती है.. पर इसका ये मतलब नही है की मुझे फिरसे वो सब करना है.. मैं तो केवल ये पूछ रहा हूँ की क्या तुझे भी ऐसा करने का मन करता है क्या?"
शीला: "मतलब तुझे उस विदेशी के साथ भी बहोत मज़ा आया होगा.. कैसा लगा था तुझे? मुझे सब कुछ बता न यार.. लगता है तू अभी भी मुझसे कुछ छुपा रहा है.. खुलकर नही बता रहा"
मदन: "शीला, तू एक बार मेरे साथ विदेश चल.. तुझे पता चलेगा की लोग वहाँ कितनी खुली और स्वतंत्र ज़िंदगी जीते है.. वाकई.. ज़िंदगी तो उनकी तरह ही जीनी चाहिए.. !!"
शीला: "तेरी पत्नी.. किसी गैर-मर्द के साथ संबंध रखें तो क्या तुझे अच्छा लगेगा?" एकदम वाहियात प्रश्न पूछ रही थी शीला.. ऐसा कौन सा पति होगा जो अपनी बीवी को किसी और की बाहों में देखना पसंद करेगा??
मदन: "ऑफ कॉर्स मुझे अच्छा नही लगेगा.. पर अगर तुझे पसंद हो तो मैं तुझे रोकूँगा नही.."
शीला: "वो सब तो ठीक है.. पर सच बता.. तुझे दुख होगा या नही?"
मदन: "देख शीला.. अगर अभी यहाँ कोई ऐसी स्त्री आ जाए.. जिसके स्तनों में दूध भरा हो.. तो मैं अभी तेरे सामने ही उसके बॉल दबाकर चूस लूँगा.. पर उसका ये मतलब जरा भी नही है की मुझे तुझसे प्यार नही है.. अब तुझे कैसे समझाऊँ मेरे प्रेम की व्याख्या.. "
शीला: "मदन, मैं तेरी ये इच्छा पूरी कर सकती हूँ.. बोल है इच्छा?"
मदन उत्साहित हो गया "क्या सच में ये मुमकिन है??"
शीला के दिमाग में रूखी का खयाल आ गया.. उसने कहा "वैशाली के जाने के बाद, मैं तेरी ये इच्छा पूरी करवा दूँगी.. ये मेरा वादा है"
तभी उनकी बातों में डोरबेल बजने से विक्षेप हुआ.. शीला ने जाकर दरवाजा खोला.. वैशाली थी.. तेज कदमों से वो घर के अंदर घुसी
वैशाली: "मम्मी, मुझे निकलना है.. मेरा सामान पेक है.. पीयूष, मौसम और फाल्गुनी तैयार बैठे है.. कविता साथ नही चल रही.. उसने कहा है की वो शायद कल आप लोगों के साथ आएगी.. आप दोनों कल मुझे लेने आओगे ना... !! पापा, मैं कोई बहाना नही सुनने वाली. मम्मी को भी अच्छा लगेगा.. आप नही थे तो मम्मी पूरा दिन घर पर बैठी रहती थी.. थोड़ा सा घूम लेगी तो उसका मन बहल जाएगा"
मदन: "हाँ बेटा.. आएंगे तुझे लेने.. !!"
"थेंक यू पापा.. " कहते हुए वो अपने कमरे में चली गई और तैयार होने लगी.. वो जाने के लिए इसलिए ज्यादा उत्साहित थी क्योंकि वो मौसम के पापा को देखना चाहती थी.. उस इंसान को जिसने नाजुक कच्ची कुंवारी फाल्गुनी की चूत फाड़ दी थी..
करीब बीस मिनट में वैशाली तैयार होकर बाहर निकली.. उसका लो-नेक टीशर्ट.. और उसमे से उभरकर बाहर निकले उसके तंदूरस्त स्तन.. मदन बस देखता ही रह गया.. दोनों को बाय कहकर वैशाली कविता के घर चली गई
शीला: "चलो.. अब हम आराम से बात कर सकेंगे.. " मदन को आँख मारकर कातिल मुस्कान के साथ शीला ने कहा.. शीला की इन नखरों का दीवाना था मदन.. अब पति पत्नी पूरी रात अकेले आराम से काट पाएंगे..
शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे..
शीला: "मदन, खाने में क्या बनाउ??"
मदन: "मेरा मन कर रहा है की तुझे ही कच्चा चबा जाऊँ.. तुझसे बेहतर ओर कोई डिश नही हो सकती" एकांत मिलते ही पतियों की बंदरबाजी शुरू हो जाती है
मदन ने शीला को बाहों में भरकर दबा दिया.. शीला ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़कर अपने आप को मदन के हवाले कर दिया..
शीला के उन्नत स्तनों को दबाते हुए मदन ने कहा "चल.. आज हम बाहर डिनर करेंगे.. फिर पार्क में आराम से बैठकर बातें करेंगे.. " शीला ने हाँ कहते हुए गर्दन हिलाई
मदन: "शीला.. मेरी एक इच्छा पूरी करेगी?"
शीला: "तू बस अपनी इच्छा बता.. ऐसा कभी हुआ है की तेरी इच्छा को मैंने अधूरी रखा हो?"
शीला के ब्लाउस के अंदर उँगलियाँ डालकर उसके गोरे गोरे स्तनों को दबाते हुए मदन ने कहा "शीला.. मैं आज तुझे फेशनेबल अंदाज में देखना चाहता हूँ.. तू आज एकदम हॉट कपड़े पहनकर मेरे लिए तैयार हो जा.. आज तो सारे शहर को दिखाना चाहता हूँ की मेरी पत्नी कितनी सुंदर है"
शीला: "मदन, क्या पागलों जैसी बात कर रहा है.. !! ये कोई उम्र है मेरी फेशनेबल कपड़े पहनने की?? और मेरे इस भारी भरकम शरीर पर फिट हो ऐसे फेशनेबल कपड़े है भी नही.. " शीला थोड़ी सी शरमा गई..
मदन: "तेरे पास नही है तो वैशाली के बेग में देख.. उसके पास तो वैसे कपड़े होंगे ना.. !! और वैसे भी वैशाली का साइज़ भी तेरे बराबर ही है.. हल्का सा उन्नीस-बीस का फरक होगा.. पर उतना तो चलता है"
शीला: "अरे पागल.. उसका ड्रेस तो मुझे फिट हो जाएगा.. पर ये मेरे बबलों का साइज़ तो देख.. !! उसकी साइज़ से डबल साइज़ है मेरी.. इन्हें मैं वैशाली के कपड़ों में कैसे फिट करूँ?? दबा दबाकर तूने कितने बड़े कर दिए है.. "
मदन: "एक बार मुझे तो पहन कर दिखा.. अगर ठीक ना लगे तो मत पहनना.. प्लीज एक बार ट्राइ तो कर.. !! रुक एक मिनट.. मैं ही कोई ड्रेस निकालकर देता हूँ"
वैशाली के वॉर्डरोब से एक ड्रेस निकालकर उसने शीला को दिया.. पतले कपड़े से बना स्लीवलेस ड्रेस शीला को देकर वो दूसरा कोई ड्रेस ढूँढने लगा.. ढूंढते ढूंढते उसके हाथ में वैशाली की ब्रा और पेन्टी आ गई.. पेड़ वाली महंगी ब्रा को हाथ में लेकर उसकी कटोरी पर हाथ फेरते हुए मदन की सिसकी निकल गई..
शीला ने ये देखकर कहा "पागल हो गया है क्या?? ये क्या कर रहा है मदन.. ?? वो वैशाली की ब्रा है.. तुझे ईसे छूना नही चाहिए था" शीला गुस्सा हो गई.. मदन ने जवाब नही दिया.. ब्रा के कप को नाक के पास ले जाकर उसने एक लंबी सांस भरी.. कटोरी की टॉप पर निप्पल वाले हिस्से को किस करके उसने उत्तेजित होते हुए ब्रा को मुठ्ठी में दबा दिया.. जैसे वो वैशाली के......!!!
शीला: "बाप रे.. ये तुझे क्या हो गया है मदन.. !! ऐसा करते हुए तुझे शर्म नही आती?" मदन के हाथ से ब्रा छीनकर उसने वॉर्डरोब में फेंक दी.. और मदन को बाथरूम में धकेलकर नहाने के लीये भेजा.. "जा जल्दी.. और तैयार हो जा..!!" मदन को चिढ़ाने के लिए उसने बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.. और मन में सोचने लगी.. मदन ने आखिर ऐसा क्यों किया?? अपनी बेटी की ब्रा देखकर दबाते हुए वो क्या सोच रहा होगा? हाथ में लेकर सूंघते हुए उसे शर्म भी नही आई?? आज से पहले तो कभी उसने ऐसा कुछ नही किया था.. कहीं वो वैशाली को गंदी नज़रों से तो नही देखता होगा? विदेश में जाकर ये सारे चोंचले तो नही सिख आया होगा वो??
मदन नहाने के लिए बाथरूम तो गया.. पर जिस चीज से वो अपने आप को दूर रखना चाहता था वो सब खुद ही सामने से चलकर उसके पास आ रही थी.. बाथरूम को कोने में वैशाली की इस्तेमाल की हुई ब्रा और पेन्टी पड़ी थी.. खुद को काफी बार रोकने के बावजूद उसकी नजर उस गीली पेन्टी पर बार बार जा रही थी.. सर झटका कर उसने अपने मन के विकृत विचारों को दूर धकेलना चाहा.. पर अपने आप को रोक नही पाया.. यंत्रवत उसका हाथ वहाँ चला गया.. वैशाली की पेन्टी हाथ में लेकर मदन ध्यान से देखने लगा.. पेन्टी का जो हिस्सा चूत से चिपका हुआ होता है.. वहाँ टिपिकल सफेद धब्बे को देखकर मदन की जीभ वहाँ पहुँच गई.. विचित्र गंध और स्वाद से मदन का लंड खंभे की तरह खड़ा होकर लहराने लगा.. पेन्टी की मादक गंध को अपने नथुनों में भरते हुए मदन ने अपने लंड पर पेन्टी को रगड़ा.. दिमाग पर ऐसा नशा छा रहा था की जैसे वो किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गया हो.. आँखें बंद हो गई.. पता नही अचानक उसे क्या हुआ.. वैशाली की पेन्टी को अपने मुंह में डाल दिया.. और ऐसे स्वाद लेने लगा जैसे वैशाली की चूत चाट रहा हो.. साथ ही वैशाली की ब्रा को अपने लंड पर लपेटकर हिलाने लगा.. एक ही मिनट में उसके लंड ने पिचकारी छोड़ दी..
जब वो नहाकर बाहर निकला.. तब शीला वो टॉप पहनकर खड़ी थी जो संजय ने उसे गोवा में दिलाया था.. हाफ़िज़ के खींचने से थोड़ा सा फटा हुआ हिस्सा शीला ने धागे से सील दिया था.. मदन शीला के बिना ब्रा के उरोजों को देखकर.. उसकी उभरी हुई निप्पल के आकार को देखकर बावरा सा हो गया
मदन: "शीला यार.. अगर ये पहन कर हम डिनर करने गए.. तो वहाँ होटल के सारे मर्द पेंट में ही झड़ जाएंगे.. " शीला के दोनों स्तनों को टॉप के ऊपर से मसलते हुए मदन ने कहा
शीला: "वो सब तो ठीक है मदन.. पर ये पहनकर में सोसाइटी से बाहर कैसे निकलूँ? शाम के वक्त सब बाहर बैठे होंगे"
मदन: "मेरे पास उसका भी उपाय है.. तू इसके ऊपर साड़ी पहन ले.. शाम का वक्त है.. अभी अंधेरा हो जाएगा.. फिर वहाँ रेस्टोरेंट के बाथरूम में जाकर तुम साड़ी निकाल देना.. "
इस टॉप को पहनते ही शीला के दिलोदिमाग में गोवा की यादें ताज़ा हो गई..
मदन तो एकदम पागाल सा हो गया शीला को ऐसे कपड़ों में देखकर.. अब तक उसने शीला को सिर्फ साड़ी में ही देखा था.. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की वेस्टर्न कपड़ों में उसकी बीवी इतनी गरम लगेगी..
शीला ने टॉप के ऊपर साड़ी पहन ली.. दोनों चलते हुए बाहर निकले.. और ऑटो लेकर एक शानदार रेस्टोरेंट पर पहुंचे.. बाथरूम में जाकर शीला ने साड़ी निकाल दी.. और पतले टाइट टॉप पहनकर बाहर निकली.. उसे देखकर पूरे रेस्टोरेंट में हाहाकार मच गया..
अनगिनत बार जिसे नंगी देख चुका था उस शीला को.. आज इस टॉप में देखकर मदन को एकदम नया नया लग रहा था.. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी पत्नी के नही.. पर अपनी बेटी की भरी हुई छातियाँ देख रहा हो..
"शीला, ये टॉप वैशाली का है क्या??" टेबल पर बैठते हुए मदन ने पूछा
शीला हिचकिचाई.. "हाँ मदन.. उसका कोई पुराना टॉप ही है.. वैशाली को तो याद भी नही होगा.. उसके वॉर्डरोब के एकदम नीचे पड़ा हुआ था.. लड़की इतने नए कपड़े खरीद लाती है फिर पुराने कपड़ों को देखती तक नही"
मेनू कार्ड देखते हुए मदन ने कहा "तुझे क्या खाना है.. ? मैं तो पालक पनीर और नान मँगवाने की सोच रहा हूँ"
शीला: "मेरे लिए रोटी और दाल-फ्राई मँगवा ले.. मुझे ज्यादा हेवी नही खाना है.. ज्यादा खा लूँगी तो रात को मज़ा नही आएगा" शैतानी मुस्कान के साथ उसने मदन से कहा
सामने के टेबल पर बैठ आदमी.. टकटकी लगाकर शीला को देख रहा था.. शीला अब अपने अंगों को ढँकने की स्थिति में नही थी.. साड़ी पहनी होती तो पल्लू से अपने स्तन ढँक लेती और अपने विराट स्तन युग्मों को छुपा लेती.. पर इस छोटे से पतले टॉप से कुछ भी ढँक पाना नामुमकिन था..
शीला: "मदन.. देख उस नालायक को.. मुझे देख रहा है चूतिया.. " मदन के पैर पर लात मारकर गुस्से से बोली
मदन: "अरे मेरी जान.. तुझे पता है तू कैसी लग रही है?? मैं अब तक तुझे हजारों बार नंगी देख चुका हूँ और लाखों बार तेरे बबले दबा चुका हूँ फिर भी मेरा लंड अंदर ठुमक रहा है.. तो देखने वालों का क्या दोष?? बस देख ही तो रहे है बेचारे.. तू भी आनंद ले.. चिंता मत कर"
शीला को संकोच हो रहा था.. लेकिन मदन की मौजूदगी के कारण वह सलामत महसूस कर रही थी.. वैसे संजय ने गोवा में भी कुछ ऐसी ही चूतियागिरी की थी.. पर तब वो शहर से दूर थे.. यहाँ तो वो अपने पति के साथ थी इसलिए डर की कोई बात नही थी..
शीला: "मदन, मेरी एक इच्छा है.. !!" पानी का घूंट भरते हुए उसने कहा
प्रश्नसूचक नजर से मदन ने शीला के सामने देखा
शीला: "हम कहीं घूमने चले तो.. ?? दो चार दिनों के लिए.. वहाँ मैं ऐसे कपड़े पहनकर आराम से घूम सकूँगी.. और तेरे साथ एन्जॉय भी करूंगी.. यहाँ हमारे शहर में तो कोई न कोई देख लेगा इसी बात का डर सताता रहता है"
खाने का ऑर्डर देकर दोनों इंतज़ार कर रहे थे उसी दौरान एक नए जानदार प्लॉट का निर्माण हो रहा था
थोड़ी ही देर में वेटर आकर खाना परोस गया.. खाने की शुरुआत करते हुए मदन ने कहा "कहाँ जाना है बोल.. !! तू जहां कहेगी वहाँ चलेंगे"
शीला: "वो तो बाद में तय करेंगे.. पर पहले ये वैशाली और संजय का कुछ करना पड़ेगा" गंभीर चर्चा की शुरुआत की शीला ने..
मदन: "क्यों? क्या तकलीफ है वैशाली को? दामाद जी से झगड़ा हुआ है? या फिर से संजय कुमार ने कोई नया कांड कर दिया?? फिर से उसने किसी से कर्ज लिया होगा.. "
शीला: "वो तो मुझे पता नही है.. पर वैशाली का कहना है की वो अब संजय कुमार के साथ ओर नही रह सकती"
शीला ने खाते खाते मदन को अपनी बेटी वैशाली के वैवाहिक जीवन से संलग्न सारी तकलीफों का ब्योरा देकर मदन को सत्य हकीकत से अवगत कराया..
कोई भी बाप.. कितना भी अमीर और शक्तिशाली क्यों न हो.. पर दामाद के आगे वह अशक्त हो जाता है.. मदन का खाने से मन ही उठ गया.. पर शीला का मूड खराब न हो इसलिए उसने चेहरे से जताया नही.. और न चाहते हुए भी खाता रहा..
कुछ देर सोचकर वो बोला "शीला, अगर वैशाली को कोई तकलीफ हो.. अपने पति से या ससुराल से.. तो उसे उस तकलीफ से निकालना मेरी जिम्मेदारी है.. तू वैशाली से बोल दे.. की पापा आ गए है और डरने की या चिंता करने की कोई जरूरत नही है.. तू ज्यादा सोच मत.. मैं सब संभाल लूँगा.. आने दे उसे फिर बात करते है.. अब तू सारी चिंता छोड़कर आराम से खाना कहा.. "
मदन के इस आत्मविश्वास भरे जवाब को सुनकर शीला को बहोत अच्छा लगा.. खाना खतम कर जब मदन बिल चुकाने काउन्टर पर गया तब शीला ने उत्सुकतावश उस आदमी के सामने देखा जो उसे तांक रहा था.. जैसे ही दोनों की नजरें एक हुई.. उस आदमी ने अपनी दो उंगलियों से चूत का आकार बनाया और दूसरे हाथ की उंगली से अंदर बाहर करने लगा.. शीला समझ गई उसका इशारा.. मदन काउन्टर पर खड़ा था.. उसका ध्यान शीला की तरफ नही था.. शीला ने उस आदमी को हल्की सी मुस्कान दी..
पेमेंट कर जैसे ही मदन आया.. शीला मुसकुराते हुए उसके हाथों में हाथ डालकर साथ चल दी.. और उस अनजान शख्स को इशारे से बाय कहा..और अंगूठा दिखाते हुए चिढ़ाने लगी.. मदन शीला के आगे चल रहा था इसलिए उसे शीला की इन हरकतों के बारे में पता न चला..
चलते चलते वो दोनों मुख्य सड़क की पास बनी बैठक पर जा बैठे.. रात के साढ़े दस बज रहे थे.. ठंडी हवा शीला की निप्पलों को सख्त करने का काम कर रही थी.. शीला की मजबूरी ये थी की रात के १२ बजे तक वो घर नही जा सकती थी.. वरना किसी पड़ोसी के देख लेने का डर था.. बातों ही बातों में एक घंटा व्यतीत हो गया.. सर्द रात में साढ़े ग्यारह बजे सड़क पर आवाजाही बिल्कुल न के बराबर थी.. रात का अंधेरा अपना प्रभाव स्थापित कर चुका था.. सारी दुकानें भी बंद हो चुकी थी.. चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था..
ऐसा एकांत मिलते ही मदन ने शीला के कंधों पर हाथ रखकर उसके टॉप के अंदर अपनी हथेली डाल दी.. उसका पूरा एक स्तन पकड़ कर मसलते हुए उसने शीला का हाथ अपने लंड पर रख दिया..
शीला: "आह्ह मदन.. क्या कर रहा है.. ऐसे पब्लिक रोड पर ऐसा करता है कोई?? जरा शर्म कर.. ये तेरा तो एक ही पल में तैयार भी हो गया.. चल अब घर चलते है.. नहीं तो तू यहीं पर अंदर डालने की जिद करेगा.. एक बार गरम होने के बाद तुझे कुछ भी होश नही रहता.. पता है न तुझे??"
मदन ने आसपास देखकर तसल्ली कर ली की कोई आ-जा नही रहा था.. उसने शीला के होंठों पर एक जबरदस्त चुंबन दिया और उसके होंठ चूसने लगा.. शीला की मुठ्ठी अपनेआप ही मदन के लंड पर सख्त हो गई.. वो ये भी भूल गई की यहाँ खुली सड़क पर ये सब छपरीबाजी करना उन्हें शोभा नही देता था.. दोनों एक दूसरे के अंगों को टटोलने में मशरूफ़ थे तभी उनके पास अचानक एक जीप आकर खड़ी हो गई
शीला और मदन दोनों घबरा गए.. शीला ने मदन के लंड से हाथ हटा लिया और अपने टॉप से उसका हाथ झटक दिया.. अपने आप को ठीकठाक करके दोनों शरीफ होकर बैठ गए..
जीप से एक रुआबदार पुलिस इंस्पेक्टर बाहर उतरा.. छह फुट ऊंचा.. बड़ी बड़ी मुछ.. डरावना सा.. देखते ही शीला की गांड फट गई
मदन की ओर देखकर इंस्पेक्टर ने धमकी भरे सुर में कहा "इतनी रात गए क्या कर रहे हो तुम लोग यहाँ?"
मदन: "हम होटल पर डिनर करने गए थे.. थोड़ी देर फ्रेश होने के लिए यहाँ बैठे थे सर.. "
शीला को एक नजर देखकर इंस्पेक्टर ने कहा "क्यों? फ्रेश होने के लिए घर में बेडरूम नही है?"
मदन: "हम पति-पत्नी है.. मेरा नाम मदन है और ये मेरी पत्नी है.. शीला.. सर हम कोई लफड़ेबाज कपल नही है.. आप हमे गलत समझ रहे है:
इंस्पेक्टर: "ओ मिस्टर मदन.. आधी रात को खुली सड़क पर बैठकर बीभत्स हरकतें तुम कर रहे हो और गलत मुझे बता रहे हो.. !! चलो अपना नाम, नंबर और अड्रेस बताओ.. जल्दी.. !!"
बिना घबराएं मदन ने अपनी सारी डिटेल्स लिखा दी.. शीला जबरदस्त डरी हुई थी.. मदन की गैर-मौजूदगी में जो भी कांड उसने कीये थे.. उन सारी बातों के खुल जाने का अनजाना सा डर उसे सताने लगा था..
शीला के टॉप से उभर रही निप्पलों की ओर बार बार इंस्पेक्टर का ध्यान जा रहा था..
इंस्पेक्टर: "और कितने देर तक यहाँ बैठे रहने का इरादा है? बारह तो बज चुके है.. पूरी रात यहीं गुजारनी हो तो बिस्तर भिजवा दूँ?? " शीला के दोनों बबलों के बीच की खाई को देखकर अपने लंड को एडजस्ट करते हुए इंस्पेक्टर ने कहा
"साहब.. हम बस निकल ही रहे है" कांपते हुए शीला ने कहा
"अभी तो कोई ऑटो वाला भी नही मिलेगा.. जाओगे कैसे.. ?? चल कर?? सुबह तक पहुँचोगे.. और ऐसे कपड़ों में.. बीच रास्ते कोई मवाली से पाला पड़ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. चलिए.. मैँ उसी तरफ जा रहा हूँ.. आप लोगों को छोड़ दूंगा.. "
पुलिस वाले बड़े शातिर होते है.. उन्हें घर छोड़ने के बहाने वह इंस्पेक्टर यह चेक करना चाहता था की जो पता मदन ने लिखवाया वो सही था या नही.. पर मदन ने बिना डरे शीला से कहा
मदन: "शीला, बैठ जा.. अच्छा हुआ जो यह साहब मिल गए.. वरना इतनी रात गए हमे कुछ नही मिलता"
शीला जीप में पीछे बैठ गई.. साथ में मदन बैठ गया.. इंस्पेक्टर भी पीछे की सीट पर शीला के सामने बैठ गया.. मदन को ये आश्चर्य हो रहा था की आगे की सीट खाली होने के बावजूद इंस्पेक्टर पीछे क्यों बैठा था?? जीप में और दो लोग भी बैठे हुए थे जो शीला और मदन को विचित्र नजर से देख रहे थे.. एक बार को तो उसे शक भी हुआ की कहीं ये नकली पुलिस वाले तो नही है ना.. !! आज कल ऐसी काफी घटनाएं हो रही थी.. पर आगे के डैशबोर्ड पर पड़े वायरलेस सेट को देखकर उसे यकीन हो गया की यह असली पुलिस ही थी..
अपने भटक रहे विचारों को ढकेलेने के लिए मदन खिड़की से बाहर अंधेरी सड़क को देखने लगा.. शीला को बहोत गुस्सा आया.. ये मदन बाहर क्या देख रहा है? मेरी तरफ क्यों नही देख रहा.. !!
कोई कुछ बोल नही रहा था.. तभी आगे बैठे हवालदार ने धीमे से कहा "साहब.. ये तो वही बिरादर का पता है.. जीसे आपने कल अंदर कीया था"
इंस्पेक्टर: "अच्छा?? जरा ठीक से पढ़कर कन्फर्म कर"
जीप के हलन चलन से शीला के पतले कपड़े वाले टॉप के अंदर उसके स्तन उछल रहे थे और जीप में बैठे दोनों आदमी उन स्तनों को एकटक तांक रहे थे.. ऐसी परिस्थिति आज से पहले कभी नही हुई थी शीला के साथ.. पुलिस वाले की गाड़ी में.. अनजान लोगों के बीच.. बिना ब्रा के पतला टॉप पहन कर बैठे हुए सब की नज़रों का शिकार होना.. शीला को बहोत झिझक हो रही थी और शर्म भी आ रही थी।
हवालदार: "चेक कर लिया साहब.. पक्का वही पता है.. लगता है ये दोनों भी ऐसे ही किसी कारण से आधी रात को बाहर भटक रहे होंगे"
इंस्पेक्टर: "जेन्टलमेन.. माफी चाहता हूँ.. पर आप लोगों को मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा"
मदन: "पर क्यों सर?? ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया हमने? हम दोनों पति-पत्नी है.. मैं दो सालों से विदेश था और कल ही लौटा हूँ.. इस बात की खुशी मनाने हम बाहर निकले थे.. बस इतनी सी बात के लिए आप हमें पुलिस स्टेशन क्यों ले जा रहे हो? रही बात हमारी हरकतों की.. तू उसके लिए हम दोनों माफी मांगते है आप से"
इंस्पेक्टर: "देखिए.. टेंशन मत लीजिए.. उन सारी बातों से मुझे कोई दिक्कत नही है.. इतनी सुंदर पत्नी बगल में बैठी हो तो थोड़ी सी छेड़छाड़ करने का मन होना लाज़मी है.. मैं समझ सकता हूँ.. पर फिलहाल आपका पुलिस स्टेशन आना जरूरी है.. चिंता मत कीजिए.. स्टेशन रास्ते में ही है.. और बाद में मेरी जीप आपको घर छोड़ जाएगी"
अब तक चुप बैठी शीला को ये लगने लगा की इंस्पेक्टर मदन को गोल गोल घुमा रहा है.. अब इस केस को अपने हाथ में लेना होगा.. नही तो ये लोग मेरी और मदन की इज्जत का फ़ालूदा बना देंगे.. इतनी छोटी बात को खींचकर लंबा कर रहे है"
मदन: "कोई बात नही सर.. कानून की मदद करना मेरा फर्ज है.. पर मेरी आपसे एक विनती है.. अभी मेरी पत्नी पर्सनल ड्रेसिंग में है.. प्लीज.. अगर हम पहले मेरे घर जाए और कपड़े चेंज करने के बाद पुलिस स्टेशन पहुंचे तो?? हो सकता है की पुलिस स्टेशन में थोड़ा वक्त लग जाए.. शायद सुबह भी हो जाएँ.. तो मेरी पत्नी को इन कपड़ों में काफी तकलीफ होगी.. समझने की कोशिश कीजिये सर, प्लीज"
इंस्पेक्टर ने कुछ सोचकर कहा " एक काम करते है.. पहले आपकी बीवी को घर छोड़ देते है फिर आप मेरे साथ स्टेशन चलिए"
शीला: "मदन.. तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं साहब से बात करूँ?"
मदन की इजाजत का इंतज़ार कीये बगैर ही शीला ने केस अपने हाथ में ले लिया.. वो मदन को अकेले स्टेशन भेजना नही चाहती थी.. मदन काफी सीधा-साधा आदमी था.. और उसे पक्का यकीन था की मदन के सिम्पल जवाबों का ये पुलिस वाले हजार अलग अलग मतलब निकालकर उसे फंसा देंगे..
सामने बैठे हवालदार के पैर से पैर टकराते हुए.. शीला ने इंस्पेक्टर की आँखों में देखकर नैन मटकाते हुए कहा "सर, चलिए.. हम पहले थाने चलते है.. मेरे पति वहाँ हो तब मैं घर पर अकेले बैठकर क्या करूंगी? मुझे इन कपड़ों में वहाँ आने में कोई दिक्कत नही है" शीला की बिंदास बातों से इन्स्पेक्टर भी सोच में पड़ गए.. फिर उस हवालदार ने.. जिसके पैर से शीला का पैर टकरा रहा था.. उसने इंस्पेक्टर के कान में कुछ कहा
इंस्पेक्टर: "ठीक है.. पहले हम आपके घर चलते है.. और फिर स्टेशन साथ चले जाएंगे"
शीला: "सर, अगर पोसीबल हो तो ऊपर लगी लाल लाइट बंद कर दीजिए.. अगर किसी ने देख लिया तो बेकार ही बदनामी हो जाएगी हमारी"
इन्स्पेक्टर: "आधी रात को ऐसे कपड़े पहनकर निकलने में बदनामी नही हुई थी?? ये तो अच्छा हुआ की आज मेरी ड्यूटी थी तो बच गए आप दोनों.. वो दूसरा इंस्पेक्टर होता तो अब तक आपका टॉप उतर चुका होता"
इंस्पेक्टर की बात सुनकर मदन बहोत डर गया.. वह कुछ बोलने जा रहा था तभी शीला ने उसे रोक दिया
"लेकिन सर लाइट बंद करने में आपको क्या दिक्कत है??" कहते हुए शीला ने फिर उस हवालदार के पैर से अपनी जांघों का स्पर्श किया
तुरंत उस हवालदार ने कहा "बंद कर देते है न सर.. !!" आखिर शीला की रिश्वत काम कर गई
हवालदार: "एक काम करते है सर.. मैं गाड़ी दूर खड़ी रखूँगा.. आप इनके साथ उनके घर चले जाइएगा"
इन्स्पेक्टर: "हाँ ये बात भी ठीक है.. तू सामने उस खंभे के नीचे गाड़ी खड़ी कर.. मैं इन लोगों के साथ जाता हूँ"
गाड़ी से उतरकर मदन, शीला और इंस्पेक्टर तीनों मदन के घर पहुंचे.. घर के अंदर घुसते ही इंस्पेक्टर की पैनी नजर पूरे घर को छानने लगी.. शीला बेडरूम में जाकर साड़ी पहन कर.. ट्रे में दो ग्लास पानी लेकर बाहर आई.. एक ग्लास इंस्पेक्टर को देते हुए बोली
शीला: "सर क्या लेंगे आप? चाय, नाश्ता या कोल्डड्रिंक?"
इन्स्पेक्टर: "नो थेंक्स मैडम.. अब हम चलें? जितना जल्दी ये काम खतम हो जाए उतना जल्दी आप वापिस आ सकते है.. आपको तो अभी फ्रेश होना भी बाकी है.. आई नो" हँसते हुए इंस्पेक्टर ने कहा.. मदन और शीला दोनों शरमा गए
मदन किसी गहन विचारों में खोया हुआ था.. "साहब.. मुझे लगता है की मैंने आपको कहीं देखा है"
इंस्पेक्टर: "अच्छा?? असल में मुझे भी ऐसा लगा की आपको कहीं देखा है.. वरना इतने सॉफ्ट टोन में मैं किसी से बात नही करता.. याद कीजिए.. कहाँ मिले थे!! मुझे तो याद नही आ रहा"
ये कहकर इन्स्पेक्टर ने ग्लास शीला को वापिस दिया.. मुड़कर किचन में जा रही शीला की गोरी चिकनी पीठ को वो देखता रहा.. भारतीय पहनावे में पीठ को खुला रखना काफी सामान्य माना जाता है.. फिर भी यह एक ऐसा अंग है जो देखने वालों को उत्तेजित कर सकता है.. शीला जब बाजार जाती तब अपनी पीठ खुली ही रखती.. उसे पल्लू से ढंकती नही थी.. क्योंकि उसमे उसे कुछ गलत नही लगता था.. पर उसे कहाँ पता था.. देखने वालों को सिर्फ आगे के हिस्से में ही दिलचस्पी नही होती.. सुंदर चिकनी पीठ के आशिक भी सेंकड़ों होते है.. वैसे सुंदरता तो देखने वालों की आँखों में होती है.. ऐसा शायर लोग कहते रहते है.. किसी को खुले स्तन या ब्लाउस में छुपे स्तनों का आकर पसंद होते है.. किसी को खुले बाल.. किसी को पीठ तो किसी को कमर.. तो किसी को कूल्हें.. वैसे शीला काफी शातिर थी.. लोगों की नजर देखकर परख लेती थी की वो क्या देख रहे होंगे!!
इंस्पेक्टर की नज़रों से बेखबर शीला किचन में ग्लास रखने गई तब मदन और इंस्पेक्टर के बीच ये बातें हो रही थी
इंस्पेक्टर: "वेल मिस्टर मदन.. मेरा नाम है तपन देसाई"
मदन की आँखों में पुरानी यादें बिजली की तरह चमक कर निकल गई..
इंस्पेक्टर: "मिस्टर तपन.. जब आप आठवी कक्ष में थे.. तब आपके साथ पढ़ती शीतल से एकतरफा प्रेम करते थे.. क्यों सही कहा ना मैंने?"
इंस्पेक्टर गहरी सोच में पड़ गए.. रात के एक बजे ऐसी पुरानी बातें भला कैसे याद आती?? पर ये तो प्रेम की बात थी.. वो भी पहले प्रेम की.. ऐसी बातें इंसान मरते दम तक नही भूलता
मदन: "याद कीजिए.. आप बेंच पर बैठने गए तब पीछे किसी ने खड़ी पेंसिल रख दी थी जो आपके पिछवाड़े में घुस गई थी.. !! और आप चीख पड़े थे.. जिसके बदले आपको क्लास टीचर मंजुला मैडम ने आप के शैतान दोस्त को पूरा दिन बेंच पर खड़ा रहने की सजा दी थी!! और फिर दोपहर दो बजे आप स्टाफरूम में जाकर मंजुला मैडम से रीक्वेस्ट करने गए थे की मेरा दोस्त थक गया होगा.. उसे बैठा दे.. और आपके उस माफ करने के गुण के कारण आपको क्लास मॉनिटर बना दिया गया था .. !!"
"बस बस.. इतना सारा याद दिलाने के बाद अगर मुझे याद न आए तो लानत है मुझपर.. हमारे प्रोफेशन में याददस्त तेज होना बेहद जरूरी है.. देखा नही.. जैसे ही आपने अपना पता लिखवाया.. मेरे हवालदार ने तुरंत बता दिया.. की यह पता एक अन्य केस में भी दर्ज है.. साले मदन.. भेनचोद.. कितने सालों के बाद मिला!!! साले तेरी बीवी है या चलता फिरता एटम-बम?? क्या माल है यार!! कहीं ये हमारी क्लास वाली शीतल तो नही?? जिसने मेरा खाना-पीना-सोना सब हराम कर रखा था.. उसके बबले भी तेरी बीवी जैसे थे.. याद है ना तुझे.. !!"
मदन: "साले चूतिये.. तू अभी भी वैसे का वैसा ही है.. जब छोटा था तब मंजुला मैडम के बबलों की तस्वीर नोटबुक में बनाता था.. और फिर हमें दिखाकर हँसाता था.. अभी भी पराई औरतों को ही इस्तेमाल करता है या खुद का मशीन भी है घर पर??"
दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े
इंस्पेक्टर: "है भई है.. घर पर है मेरी घरवाली.. पर ये बता.. तू इतने सालों तक कहाँ गायब था?"
मदन: "वो सब बातें बाद में करेंगे.. पहले थाने चलते है.. तू किस बात के लिए हमें थाने ले जाना चाहता है? कोई दूसरे केस की बात कर रहा था "
इंस्पेक्टर: "हाँ यार.. स्टेशन तो चलना पड़ेगा.. पर देख.. हम दोनों एक दूसरे को जानते है ये बात अभी किसी को बताना मत.. क्यों की क्या होगा.. मेरे हवालदार ये समझेंगे की घर जाकर मैंने आप लोगों के साथ कुछ सेटिंग कर ली और इसलिए नरम होकर बात कर रहा हूँ.. बात में कुछ होता नही है और बेकार में लोग शक करने लगते है.. भाभी आ रही है.. तू चुप रहना.. मैं उन्हे थोड़ा चिढ़ाता हूँ"
शीला बहार आई और इंस्पेक्टर ने कहा "मैडम, आप उस टॉप में बहोत अच्छी लग रही थी.. वही पहने रखना था न.. !! हमें भी दर्शन का मौका मिलता.. कितनी सुंदर हो आप!!"
अपने पति की मौजूदगी में एक पुलिस इंस्पेक्टर को इस तरह बात करे देख शीला चोंक गई
इंस्पेक्टर की बातों को नजरअंदाज करते हुए सीधा मुद्दे पर आई शीला "आप हमें किसी तहकीकात के लिए स्टेशन ले जाने वाले थे सर!!"
इंस्पेक्टर: "हाँ हाँ.. चलिए.. " कहते हुए तपन घर से बाहर निकला.. शीला और मदन भी उसके पीछे चल दिए
जीप तक चलकर वो दोनों पीछे बैठ गए.. इस बार वो हवालदार ने सामने से ही शीला के पैर के करीब अपना पैर रख दिया और स्पर्श सुख का आनंद लेने लगा.. पुलिस स्टेशन पहुंचते ही इंस्पेक्टर तपन और सारे हवालदार अंदर गए..
मदन ने देखा की आसपास कोई नही था.. उसने चुपके से शीला के कान में कहा "शीला, मुझे लगता है की इंस्पेक्टर को तेरे बबले पसंद आ गए है.. इसीलिए हमें उठाकर यहाँ ले आया.. " इंस्पेक्टर दोस्त निकला इस बात से मदन का सारा टेंशन दूर हो गया था और वो मस्ती के मूड में था.. पुलिस स्टेशन आने की कोई चिंता उसके चेहरे पर नही थी.. शीला इस बात से अनजान थी.. इसलिए घबराई हुई थी.. पर उन्होंने कोई गुनाह नही किया था इसलिए निश्चिंत भी थी.. पर उसे ताज्जुब इस बात का था की उनका पता पुलिस स्टेशन पहुंचा कैसे?? वो कौन शख्स था जिसने हमारा पता दिया था??
स्टेशन के अंदर घुसते ही शीला और मदन के पैरों तले से धरती हिल गई.. लॉकअप में खड़े शख्स को देखकर वो दोनों चोंक गए.. लॉकअप में संजय था.. !!!
इंस्पेक्टर: "इस महानुभाव को आप जानते है जेन्टलमेन?" एकदम कडक आवाज में तपन ने मदन से पूछा
मदन: "जी हाँ सर.. ये मेरे दामाद है.. क्या किया है इन्हों ने? इन्हें बंद क्यों कीया है?"
इंस्पेक्टर: "ये भाईसाहब नकली इंस्पेक्टर बनकर लोगों से पैसे एठते थे.. कितने लोगों को ठग चुका है ये.. उसके साथ उसके साथी को भी बंद किया है.. अगर आप उसे भी जानते हो तो देख लीजिए" संजय के साथ हाफ़िज़ भी खड़ा था.. देखकर ही शीला की हालत खराब हो गई.. एक सेकंड में उसके चेहरे का सारा नूर उड़ गया.. कांप उठी वो.. !! शीला इस बात से डर रही थी की कहीं तहकीकात में इन दोनों में से किसी ने भी उसका नाम ले लिया तो उसका वैवाहिक जीवन यहीं समाप्त हो जाएगा.. क्या करूँ.. मुझसे ये कितनी बड़ी गलती हो गई.. !!
संजय: "मम्मी जी, इन लोगों ने मुझे बेवजह पकड़ रखा है.. मुझे छुड़वाइए प्लीज.. " संजय ने झूठे आँसू निकालकर विनती की
इंस्पेक्टर तपन ने लॉकअप की सलाखों के बीच से संजय का गिरहबान पकड़ कर एक मजबूत तमाचा रसीद कर दिया उसके गाल पर.. संजय का पूरा थोबड़ा घूम गया..
अपने सास और ससुर की मौजूदगी में ऐसा अपमान होने से संजय का अहंकार घायल हो गया "मम्मी जी.. आप चुप क्यों हो? मुझे यहाँ से जल्दी छुड़ाइए.. वरना.. !!!!"
शीला इतनी डर गई की उसे चक्कर आने लगे.. वो कुर्सी पर बैठ गई.. पूरी दुनिया गोल गोल घुमती नजर आ रही थी.. उसका शरीर भी तपने लगा था
शीला का यह हाल देखकर इंस्पेक्टर तपन और मदन दोनों घबरा गए
इंस्पेक्टर: "भाभी जी.. आपको क्या हो रहा है?"
शीला चोंक उठी.. उसे ये पता नही चला की इंस्पेक्टर उसे "भाभी जी" कहकर क्यों संबोधित कर रहा था.. !!
शीला के चेहरे पर अचरज के भाव देखकर मदन ने कहा "हाँ शीला.. ये मेरा दोस्त है.. तपन देसाई.. हम दोनों स्कूल में साथ पढ़ते थे.. एक ही बेंच पर.. चौथी से लेकर दसवीं कक्षा तक.. तू चिंता मत कर.. ये जरूर कोई न कोई रास्ता निकालेगा.. !!"
ये सुनकर शीला की जान में जान आई.. उसका शैतानी दिमाग.. अचानक आन पड़ी इस विपदा से कुंठित हो गया था..
इंस्पेक्टर: "आप चिंता मत कीजिए भाभी.. आप को कुछ नही होगा.. मैं बैठा हूँ ना.. !!" शीला को ढाढ़स बांधते हुए इंस्पेक्टर तपन ने कहा "अब आप दोनों घर जाइए.. और आराम से अपने आप को फ्रेश कीजिए.. हम कल मिलते है" मित्रभाव से मदन के कंधे पर हाथ रखते हुए उसने कहा "इस महाशय को पुलिस वालों का थोड़ा सा प्रसाद मिलेगा तो अपने आप ठिकाने पर आ जाएंगे"
फिर इंस्पेक्टर ने हवालदार की ओर देखकर कहा "गोहील.. तुम इन दोनों सज्जनों को उनके घर छोड़ दो"
हवालदार ड्राइवर और गाड़ी लेकर शीला तथा मदन को उनके घर छोड़ आया.. इस बार हवालदार ने शीला के पैरों को छूने की हिम्मत नही की.. बड़ी ही शालीनता से बर्ताव करने लगा..
घर के अंदर पहुंचकर.. दरवाजा बंद कर.. शीला मदन के गले लगकर रोने लगी.. इतना रोई.. इतना रोई की मदन को भी ताज्जुब हो रहा था
रात के तीन बज रहे थे.. चुदाई के कार्यक्रम का सत्यानाश हो चुका था.. दोनों का मूड ऑफ हो गया था.. मदन शीला को सांत्वना देते देते थक गया पर शीला का रोना अब भी बंद नही हुआ था..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है मदन और शीला की बीयर और सिगार पीते हुए धमाकेदार चूदाई थी दोनो ने शानदार तरीके से सुहागरात मनाई है मदन की अंग्रेज औरत को पटाने की कहानी भी मजेदार थी शीला को रूखी से क्या काम पड़ गया है कही अनु मौसी को तो चूदवाने का प्लान नहीं हैहवालदार ड्राइवर और गाड़ी लेकर शीला तथा मदन को उनके घर छोड़ आया.. इस बार हवालदार ने शीला के पैरों को छूने की हिम्मत नही की.. बड़ी ही शालीनता से बर्ताव करने लगा..
घर के अंदर पहुंचकर.. दरवाजा बंद कर.. शीला मदन के गले लगकर रोने लगी.. इतना रोई.. इतना रोई की मदन को भी ताज्जुब हो रहा था
रात के तीन बज रहे थे.. चुदाई के कार्यक्रम का सत्यानाश हो चुका था.. दोनों का मूड ऑफ हो गया था.. मदन शीला को सांत्वना देते देते थक गया पर शीला का रोना अब भी बंद नही हुआ था..
आखिर शीला को शांत करने के लिए मदन अपनी अलमारी से इंपोर्टेड जोहनी वॉकर ब्लैक लेबल की बोतल ले आया.. दो पटियाला पेग बनाकर उसमें आइसक्यूब डालकर.. उसने शीला के सामने रख दिए.. साथ ही साथ अपनी बेग से उसने सिगार का बॉक्स भी निकाला.. ये कोई पार्टी करने का समय नही था.. पर शीला को शांत करने के लीये.. और इस गहरे सदमे से उसे बाहर निकालने के लिए जरूरी था..
मदन को सिगार जलाते देख.. शीला को जॉन और चार्ली की याद आ गई.. जलती हुई सिगार को एश-ट्रे में रखकर मदन खड़ा हो गया और अपने कपड़े उतार दिए "जो भी हुआ सब भूल जा शीला.. और अपने कपड़े उतार दे.. इस स्ट्रेस को भूलने के लिए यही सब से बेहतरीन इलाज है"
मदन के नरम लंड को देखकर.. बिना उसके साथ "चीयर्स" कीये उसने ग्लास उठाया और बड़ा घूंट गले के नीचे उतार दिया.. उसके पूरे शरीर में गर्माहट का एहसास होने लगा.. एश-ट्रे से सिगार उठाकर एक लंबा कश खींचकर वो आराम से बैठ गई.. मदन को शीला का ये स्वरूप बेहद पसंद था.. जब शीला शर्म छोड़कर बिंदास बन जाती थी.. और खुली नंगी बातें करने लगती थी तब मदन को बहोत अच्छा लगता था..
"ये अच्छा किया तूने मदन.. इसके अलावा हमारा टेंशन दूर नही होने वाला.. लव यू डार्लिंग!!" शीला ने पास खड़े नंगे मदन का नरम लंड दारू के ग्लास में डुबोया.. और फिर ग्लास हटाकर उसके लंड पर लगी शराब को जीभ से चाट गई..
"ओह्ह शीला.. मज़ा आ गया यार.. !!" आखिर रात के चार बजे.. मदन और शीला का हनीमून.. शराब और सिगार के साथ शुरू हो गया
शीला की जीभ छूते ही मदन का लंड सरसराने लगा.. शीला बार बार उसका लंड शराब में डुबोती थी और फिर चूसती थी.. मदन शीला के इस कामुक स्वरूप के बड़े ही अहोभाव से देखता रहा.. वो सोच रहा था की इतनी कामुक स्त्री.. दो साल तक बिना लंड के कैसे रही होगी??
शीला ने खड़े होकर अपनी साड़ी निकाल दी.. ब्लाउस और घाघरे में बड़ी ही कातिल लग रही थी.. उसने शराब की बोतल उठाई और ढक्कन खोलकर थोड़ी थोड़ी दारू स्तनों की निप्पल पर गिरा दी.. कॉटन का ब्लाउस गीला होते ही निप्पल उभरकर आरपार दिखने लगी.. बोतल वापिस टेबल पर रखकर शीला ने कहा
"मदन.. ले मेरे बॉल चूस ले.. दूध तो नही निकलेगा पर शराब का मज़ा जरूर मिलेगा.. !!"
मदन ने शीला के दोनों स्तनों को बारी बारी ब्लाउस के उपर से चाट लिया और बोला "ये जबरदस्त है.. अगर औरतों को बच्चा बड़ा हो जाने पर स्तनों से शराब निकलती होती तो कितना मज़ा आता.. !! ओह शीला मेरी जान.. " एक स्तन को चूसते हुए वो दूसरे स्तन को दबा रहा था.. तो शीला ने भी मदन के फुले हुए लोड़े को पकड़कर उसके आँड दबा दिए.. मदन शीला के गाल पर शराब की धार करते हुए उसके गोरे गालों को चाटने लगा.. अब शीला के ब्लाउस के हुक खोलकर मदन ने उन मांस के गोलों को बाहर निकाला.. और उन्हें दोनों हाथों से मसलने लगा..
शीला: "मदन, मेरे बबलों पर शराब गिरा.. " मदन शराब गिराता रहा और चाटता रहा.. शराब की धारा नीचे उतरते हुए चूत तक पहुँच गई.. मदन की जीभ वहाँ भी पहुँच गई.. जोहनी वॉकर से भी कीमती चूत का रस और शराब चाटकर मदन मस्त हो गया.. उसकी जीभ शीला की चूत पर रगड़ रही थी.. इस हरकत का पूर्ण आनंद उठाते हुए शीला मदन के बालों में उँगलियाँ फेर रही थी.. मदन शीला के जिस्म के अलग अलग हिस्सों को चाट रहा था.. शीला की कमर की चर्बी के बीच अपना लाल सुपाड़ा रखकर वो रगड़ने लगा..
"आह्ह बहोत गरम लग रहा है, मदन!! ईसे यहाँ वहाँ रगड़ने छोड़ और अंदर डाल दे जान" अब सही अर्थ में उनका हनीमून शुरू हुआ था
मदन की गैर-मौजूदगी में यही बात शीला सब से ज्यादा मिस करती थी.. लंड दिखाकर अलग अलग हरकतें करते हुए वो जिस तरह उसे तड़पाता था वो शीला को बहोत पसंद था.. मदन के लंड को शराब में डुबोकर चूसते हुए शीला को रघु और जीव के संग की चुदाई याद आ रही थी.. उन दोनों ने भी ऐसे ही शराब के साथ उसकी चुदाई की थी.. !! बाप रे.. !! कितना मोटा था जीवा का लंड.. !! सिर्फ रूखी ही बर्दाश्त कर सकती है उसका.. !! मुझे तो उसके धक्कों से ही दर्द हो रहा था.. निर्दयी होकर चोदता था.. ऐसे धक्के लगाता था जैसे शरीर के अंगों को अलग कर देना चाहता हो..
मदन को बेड पर लैटाकर उसकी गांड के छेद को चूम लिया.. शीला को ऐसा करना पसंद था.. जरा भी घिन नही आती थी उसे.. अपने पसंदीदा मर्द के साथ.. !! मदन के लटक रहे अंडकोशों को मुंह में भरकर मस्ती से चूसने लगी.. उस पर लगी हुई शराब शीला की उत्तेजना को ओर बढ़ा रही थी.. मदन बेड पर पैर चौड़े कर लेट गया.. और शीला के इस रंभा स्वरूप को चकित होकर देखता रहा.. उसके बदन के हर मरोड़ में कामुकता छुपी हुई थी.. मदन के लंड को काफी देर तक चूसते रहने के बाद जब उसने मुंह से बाहर निकाला तब शीला के थूक से पूर्णतः गीला हो चुका था..
बिना समय गँवाएं शीला मदन पर सवार हो गई.. और उसके लंड को अपने भोसड़े की गहराई में उतार दिया.. उत्तेजना से चिपचिपी चूत में लंड ऐसे सरक गया जैसे पानी में सांप सरक रहा हो.. मिलन के आनंद से शीला की आँखें और चूत के होंठ एक साथ बंद हो गए.. मदन के दोनों हाथ शीला के नग्न उरोजों पर पहुँच गए.. अभी भी उसकी निप्पलों पर शराब लगी हुई थी..
मदन के लंड को अपनी चूत के काफी अंदर उतारकर अंदर बाहर करते हुए शीला हल्के हल्के अपनी पतवार चला रही थी क्योंकि उसे किनारे पर पहुँचने की कोई जल्दी नही थी.. और क्यों होती?? अब तक तो उसे जल्दी इसलीये होती थी क्योंकी किसी के आने का डर रहता था.. अपने पति के साथ उसे यह दिक्कत नही थी.. इसलिए वो धीरे धीरे अपना काम कर रही थी
शीला की निप्पल को मसलते हुए मदन बोला "आह्ह शीला.. कितनी सेक्सी है तू.. !! तुझे इतनी बार चोदने के बाद भी मेरा आवेग काम नही हुआ.. इतनी मदमस्त जवानी को भोगने का अवसर किसी किस्मत वाले को ही मिल सकता है.. तुझे पाकर मैं वाकई धन्य हो गया.. "
चूत की मांसपेशियों को और टाइट करते हुए शीला ने अपने अनोखे अंदाज में मदन की प्रशंसा का उत्तर दिया.. मदन के लंड पर दबाव बढ़ते ही उसकी "आह्ह" निकल गई..
"ऐसी भूखी कामुक जवानी को तू दो सालों के लिए छोड़कर चला गया था.. कभी ये नही सोचा की बिना लंड के मैं कैसे रह पाऊँगी?? तुझे ये अंदाजा नही है मदन.. तेरे इस लंड की याद में मैंने कैसे अपनी रातें काटी है.. !! कितना तड़पी हूँ.. सिर्फ मेरा मन जानता है.. अब तो मुझे छोड़कर कहीं नही जाएगा ना.. ??"
"शीला तुझे छोड़कर जाना मुझे भी अच्छा नही लगा था.. पर जाना मेरी मजबूरी थी.. वरना तुझे यहाँ छोड़कर जाने में.. मुझे कितना दुख हुआ था ये तू नही जानती.. कितने महीनों तक ये लंड तड़पता रहा.. फिर किस्मत से मेरी के साथ सेक्स करने का मौका मिला.. बाकी मैं उसे सामने से पटाने नही गया था" मदन ने कहा
शीला: "क्या नाम बताया तूने अपने मकान मालिक की पत्नी का??"
मदन: "मेरी था उसका नाम"
शीला: "हम्म अच्छा नाम है मेरी.. कैसी लगती थी वो? तुम दोनों की सेटिंग कैसे हुई?"
मदन: "क्या कहूँ यार..!! उसकी चार महीने की बेटी थी.. रोजी.. बड़ी ही क्यूट सी थी.. उसे देखकर ही मुझे वैशाली का बचपन याद आ जाता.. शीला.. तुझे पता है ना मेरी कमजोरी??"
मदन के लंड प आर ऊपर नीचे होते हुए शीला ने झुककर अपने स्तन प्रदेश से मदन का मुंह ढँकते हुए कहा "हाँ मदन.. जानती हूँ.. दूध भरे स्तनों को देखकर तेरा क्या हाल हो जाता है, मुझे पता है"
शीला के उन्नत पयोधरों को बारी बारी चूसते हुए मदन ने शीला की पीठ को अपने नाखूनों से कुरेद दिया.. उस वक्त शीला को महसूस हुआ की उसके भोसड़े के अंदर मदन का लंड और कठोर हो गया.. शीला समझ गई की मदन को मेरी के दूध भरे स्तनों की याद आ रही थी.. मदन पागलों की तरह शीला की निप्पलों को चूस रहा था
"मदन.. तू चाहे जितना चूस ले.. फिर भी दूध नही निकलने वाला"
"बस यही बात मुझे मेरी के पास घसीटकर ले गई.. वरना मैं तुझे कभी धोखा नही दे सकता.. " मदन ने अपना कुबुलातनामा फिर से शुरू कर दिया
"शीला, मैं तेरे इन बबलों को याद करते हुए.. दूरबीन से आती जाती विदेशी लड़कियों और औरतों को देखते हुए मूठ मार रहा था.. तभी मेरी ने मुझे देख लिया.. वो बहोत ही सुंदर और गोरी थी.. डिलीवरी के बाद उसका पूरा बदन गदराया हुआ था.. और ये बड़े बड़े स्तन.. उसके टॉप की स्तन वाली नोक हमेशा दूध से गीली रहती थी.. वो ब्रा भी नही पहनती थी"
"अच्छा.. मतलब उसके दूध भरे स्तनों को दिखाकर उसने तुझे पटा लिया.. " मदन की छाती के बाल खींचते हुए शीला ने कहा
"हाँ शीला.. एक दिन उसने मुझे कहा "मदन.. तुम्हें रोड पर जा रही लड़कियों को देखने में बहोत मज़ा आता है?" तब मैंने जवाब दिया की नही.. मैं तो केवल उन लड़कियों को देखकर.. अपनी बीवी को याद करते हुए खुद को शांत करने की बस कोशिश कर रहा हूँ.. फिर मेरी ने पूछा की क्या मुझे अपनी पत्नी की बहोत याद आ रही है? जिसके जवाब में मैंने कहा की हाँ.. बहोत याद आती है.. उसकी भी और उसके संग बिताए समय की भी"
शीला मदन के लंड पर उछलते हुए उसकी बातें बड़े चाव से सुन रही थी
मदन: "फिर मेरी ने मुझसे कहा.. 'देखो.. तुम एक अच्छे आदमी हो.. तुमने मुझे कभी गलत नजर से नही देखा.. इसलिए मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ पर बदले में तुम्हें भी मेरी मदद करनी होगी'.. शीला.. विश्वास करो.. मैंने तब तक मेरी को कभी गलत नज़रों से नही देखा था.. पर मेरी ने जिस तरह मुझसे बात की थी.. मेरा दिल कर रहा था की उसे एक रीक्वेस्ट करूँ.. जिससे मेरा लंड भी शांत हो जाए और तेरा विश्वासघात भी न हो.. "
शीला: "अच्छा? फिर क्या किया तूने?" शीला को बहोत मज़ा आ रहा था.. वो हौले हौले मदन के लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी
मदन: "मेरी ने अपनी कहानी सुनाई..
"एक लड़का था जिसका नाम था पीटर.. हम दोनों एक दूसरे को बहोत चाहते थे.. हम लोग शादी करने ही वाले थे की अचानक वो गायब हो गया.. मैंने उसे बहोत खोजा पर काफी समय तक ना वो मुझे मिला और ना ही उसका कोई फोन आया.. एक साल तक जब उसका कोई पता न चला तब मैंने अपने ऑफिस के साथी से शादी कर ली.. तुम देख ही रहे हो की वो मुझे और रोजी को कितना चाहता है.. !! पर रोजी के जनम के बाद उसके बर्ताव में काफी परिवर्तन आया है.. खैर वो बात फिर कभी.. कल मुझे पीटर मिला मार्केट में.. मैं उसे देखकर चोंक गई.. उसने मुझे अपना नंबर दिया और चला गया.. मैं बड़ी उलझन में हूँ.. कॉल करूँ या ना करूँ!! क्या तुम उसे कॉल करके सारी बात जान सकते हो?? मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ पर अब मेरी शादी हो गई है इसलिए मेरा उससे संपर्क करना उचित नही होगा.. पर मैं सिर्फ इतना जानना चाहती हूँ की वो आखिर कहा चला गया था मुझे बिना कुछ बताएं.. जाते जाते उसने कहा था की वो मुझे मिलना चाहता है.. मैं भी उससे मिलना चाहती हूँ मगर मेरे पति के डर से ऐसा नही कर पा रही हूँ.. आपको मित्रभाव से ये बता दूँ.. रोजी के जनम के बाद उसे मेरे में कोई रुचि ही नही रही है.. मैं बहोत असन्तुष्ट हूँ.. पता नही क्यों मेरे साथ ठीक से बात भी नही करते.. ऐसे में अगर मैं पीटर से मिलने गई और कहीं पुरानी बातों की याद आ गई तो मैं अपने आप को रोक नही पाऊँगी.. मैं अपने पति से बहोत प्यार करती हूँ पर मेरे प्यार को भी ठुकरा नही सकती.. और उसे अभी तक भूल नही पाई.. जैसे आप अपनी पत्नी को नही भूल पाए बिल्कुल वैसे ही.. मेरे दिल की कशमकश को आप समझ सकेंगे.. मिस्टर मदन.. वो एक हफ्ते में चला जाने वाला है.. मेरा उससे मिलना जरूरी है.. अगर अभी नही मिली तो उसके सारे राज, राज बनकर ही रह जाएंगे.. प्लीज तुम मेरी हेल्प करो..' "
मदन की बात को शीला बड़े ध्यान से सुन रही थी.. उसे ये जानने में दिलचस्पी थी की आखिर दोनों के बीच चुदाई शुरू कैसे हुई!! अभी तो उसकी चूत में मजेदार खुजली हो रही थी और मदन का सख्त लंड अंदर बाहर करते हुए वो अपनी खुजाल मिटा रही थी.. सुकून से चुदवाने में शीला को बहोत मज़ा आ रहा था..
वैसे देखा जाएँ तो शीला और मदन के बीच आदर्श संभोग हो रहा था.. परिपक्व उम्र के संभोग और नादान उम्र के संभोग में यही फरक होता है.. अनुभवी संभोग में दोनों पात्र इतने मेच्योर होते है.. की किसी पराए पात्र संग हुए संभोग को भी बड़ी निखालसता से याद कर सकते है.. और विकृतियों का भी आनंद ले सकते है.. जब की नादान उम्र का संभोग.. रस्सी पर बिना सहारे चलने जितना कठिन काम होता है.. नादान पात्रों को संभोग के दौरान कब किस बात का बुरा लग जाएँ.. पता ही नही चलता.. एक छोटी से गलतफहमी ही काफी होती है पूरे संभोग की माँ चोद देने के लिए.. दोनों पात्र करवट बदलकर सो जाते है और एक रात कम हो जाती है
शीला के भव्य कूल्हों को हाथों से दबाते हुए मदन ने बात आगे बढ़ाई
"शीला, उस दिन वो पहली बार मेरी नजदीक आकर खड़ी हुई.. उसके दूध से भरे हुए सुंदर रसीले बबलों को इतने करीब से मैंने पहली बार देखा था.. और तुझे पता है.. ये एक ऐसा आकर्षण है जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ.. मैंने हिम्मत की और मेरी से कहा 'मैं आपकी हेल्प कर सकता हूँ पर बदले में आपको मेरी एक हेल्प करनी होगी.. मैं अपनी बीवी को याद करते हुए मास्टरबेट कर रहा था कल.. तब तुमने देख लिया था.. मुझे दूरबीन से देखते हुए ये सब क्यों करना पड़ता है ये जानती हो तुम? वैसे चाहता तो ब्लू फिल्म भी देख सकता हूँ' तब मेरी ने मुझे जवाब दिया की 'हाँ.. मुझे पता है.. तुम्हें असली चीज देखकर ही मज़ा आता है.. ' मेरी बात को अच्छे से समझती थी.. मैंने कहा 'बिल्कुल सही कहा मेरी.. आप अपनी बेटी रोजी को फीडिंग कराने के लिए किचन में बैठती हो.. और मैं यहाँ बालकनी में काम करता हूँ.. तो क्यों न ऐसा किया जाए की तुम ड्रॉइंग रूम में बैठकर ही बच्ची को दूध पिलाओ और तुम्हारी बॉडी को देखकर मैं अपना काम निपटा लूँ?? मैं प्रोमिस करता हूँ.. तुम्हें टच नही करूंगा' "
शीला: "अरे वाह मदन.. जबरदस्त दांव खेला तूने.. तुझे पता था की तेरे इस खूँटे जैसे लंड को एक बार देख लेने के बाद मेरी तो क्या.. उसकी माँ भी तुझसे चुदवाने में मना नही करती.. खिलाड़ी है तू तो.. " शीला धीरे धीरे लय में आकर अपनी गांड को मदन के लंड पर गोल गोल घुमा रही थी और अपनी चूत का मक्खन गिरा रही थी
मदन: "अरे यार.. तीन महीनों से मैं उसे दूध पिलाते देखने के लिए छुप छुपकर कोशिश करता था.. अब ऐसा मौका मिल गया तो मैंने पूछ लिया.. इसमें गलत क्या है.. !!"
शीला: "हाँ हाँ साले कमीने.. मेरी की चूत में लंड डाल आया और कहता है की गलत क्या है.. !! मैं भी तेरी तरह ऐसा कुछ करूँ और कहूँ की इसमे गलत क्या है, तो चलेगा?"
मदन: "हाँ उसमें भी कुछ गलत नही होगा.. बस किसी के साथ जबरदस्ती करना गलत है.. बाकी सब चलता है.. जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी.. !!"
शीला ने मदन के होंठों पर एक कातिल किस की और जबरदस्त दस-पंद्रह धक्के लगाए.. मदन की बातें सुनकर उसकी चूत में जो भूकंप आया था वो थोड़ा सा शांत हुआ.. और वो फिर से अपनी रिधम में आ गई.. शीला चाहती थी की उसका ऑर्गैज़म तभी हो जब मदन अपनी बात खतम करे.. नही तो चुदाई के अंतिम क्षणों में इतनी रसीली कथा अधूरी रह जाएगी.. साथ ही साथ वह ये सावधानी भी रख रही थी की कहीं मदन उत्तेजित होकर बीच में ही झड़ न जाएँ
शीला: "फिर क्या जवाब दिया मेरी ने?"
मदन: "अपने पुराने प्रेमी पीटर से मिलने के लिए वह इतनी बेचैन थी की अगर मैंने उसे चोदने के लिए कहा होता तो वो भी मान जाती.. पर मैं तुझसे धोखा करना नही चाहता था शीला.. इसीलिए मैंने मेरी को दूध पिलाते देखकर मूठ मारने की पेशकश की.. अगर चाहता तो उसके बॉल दबाने की डिमांड भी कर सकता था और वो मान भी जाती.. "
शीला: "तो रखनी थी ना डिमांड? क्यों नही रखी?" शीला भी मदन के सुर में साथ दे रही थी "मदन, सच सच बताना.. वैशाली के जनम के बाद जैसे तू बार बार मेरी छातियाँ चूसने की जिद करता था वैसे ही मेरी के पीछे पड़ गया था क्या?? आखिर थककर उसने तुझसे चुदवा लिया होगा"
मदन: "अरे मेरी रानी.. ऐसा कुछ नही हुआ था.. " शराब के ग्लास का आखिरी घूंट हलक के नीचे उतारते हुए मदन ने कहा
शीला और मदन एक ही ग्लास में से पी रहे थे.. और दूसरा ग्लास भरा हुआ पड़ा था.. खाली ग्लास को दूर धकेलकर शीला ने मदन के नग्न शरीर पर सवारी करते हुए भरा हुआ ग्लास उठाया.. एक घूंट भरा और सिगार का एक कश लिया.. एक के बाद एक.. दोनों ने तीन सिगार खतम कर दी थी अब तक.. सिगार खतम हो जाती थी पर पति पत्नी के बीच का रोमांस अभी भी प्रज्वलित था.. मदन के लंड को अपने तरीके से आराम पूर्वक भोग रही थी शीला.. पिछले पौने घंटे से उसकी लंड सवारी चल रही थी.. जाहीर था की मदन को उसके शरीर का वज़न महसूस हो रहा था.. भारी भरकम थी शीला.. पर लंड को इतना आनंद मिल रहा था की उसके सामने ये तकलीफ तो कुछ भी नही थी.. शीला की सुंदर बड़ी छातियों में मेरी के स्तन नजर आ रहे थे मदन को
मदन ने शीला का सिगार वाला हाथ अपने मुंह तक खींचा और एक जबरदस्त दम भर लिया.. मुंह से धुआँ छोड़ते ही उस धुएं की चादर के पीछे शीला के स्तन छुप गए.. दो-तीन सेकंड में ही धुआँ फैल गया और उसके पसंदीदा स्तन वापिस नजर आने लगे..
मदन: "मेरी के कहने के मुताबिक मैंने उसके प्रेमी पीटर को फोन किया.. और उसे मेरी ऑफिस पर मिलने बुलाया.. मैंने उसे सब बता दिया की मैं मेरी का पेइंग गेस्ट हूँ और उसके पति से छुपकर उनके मिलने का सेटिंग कर रहा हूँ.. उसने आभार प्रकट किया.. ऑफिस में मेरी कैबिन सब से आखिर में थी.. और जब तक बेल दबाकर बुलाऊँ नही तब तक पयुन आता भी नही था.. इसलिए मुझे कोई चिंता नही थी.. मेरी ने मुझे ये भी कहा था की उनकी मीटिंग के वक्त अगर मैं मौजूद रहूँगा तो पीटर मेरे साथ कोई हरकत नही करेगा..वरना एक बार अगर पीटर ने मुझे छु लिया तो मैं अपने आप को रोक नही पाऊँगी.."
शराब के घूंट भरते हुए शीला बड़े ध्यान से सुन रही थी.. शीला को इतनी मस्ती से सुनते हुए देखकर मदन खुल गया और सारी बातें बताने लगा.. उसे यकीन हो गया था की शीला इस बात को धोखा नही समझ रही.. उल्टा मजे लेकर सुन रही है..
"शाम को लगभग साढ़े पाँच बजे सारा स्टाफ जाने की तैयारी में था.. तभी मेरी अपनी बेटी रोजी के साथ ऑफिस पहुंची.. उसके पीछे पीछे पीटर भी आ पहुंचा.. बहोत समय के बाद मिल रहे दो प्रेमियों को कभी देखा है तूने शीला?"
शीला ने गर्दन हिलाकर "ना" कहा
"बड़ा अनोखा होता ही वो द्रश्य.. इतना प्रेम.. इतने जज़्बात.. मेरी पीटर को देखकर जो रोई थी.. जो रोई थी.. तुझे क्या बताऊँ यार.. !! देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए.. मैं सोच रहा था की इतना प्यार करने वाले को ऊपर वाला क्यों जुड़ा करता होगा.. !! मेरी कैबिन में आकर वो दोनों एक दूसरे को किस करने लगे.. गले लगाने लगे.. फिर अचानक मेरी ने पीटर के लंड पर हाथ रख दिया.. फिर दोनों ने अंग्रेजी में क्या गुसपुस की ये तो पता नही चला पर मैं इतना समझ पाया की मेरी पीटर से एक आखिरी बार चुदना चाहती थी.. मैं समझ गया.. और रोजी को गोद में उठाकर बाहर चला गया.. उस दौरान दोनों ने अपना काम खतम कर लिया.. फिर पीटर तुरंत चला गया.. और उसके जाने के बाद मेरी हालत खराब हो गई.. पीटर ने चोदते हुए मेरी के बबलों को जोर से दबाया होगा.. सारा दूध निकल रहा था..
उसका पूरा टॉप भीग गया था.. ये देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया.. बार बार उसके स्तनों पर नजर जाती.. मेरी शरमा रही थी.. और बोली 'जो काम में नही करना चाहती थी वो मुझसे हो गया.. आई एम सॉरी.. तुमने अपना काम कर लिया और अब मैं आज शाम को तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूँगी.. जब तुम कहोगे.. ठीक है.. अब मैं चलूँ?'"
"तो फिर तूने अपने खड़े लंड का क्या किया? उसे जाने क्यों दिया?"
"अरे मैं पागल थोड़ी न हूँ.. मैंने मेरी से कहा..जब तुम अपने आप पर कंट्रोल न कर पाई तो मैं अपने आप पर अब कंट्रोल कैसे कर सकता हूँ? प्लीज तुम यहीं पर रोजी को दूध पिलाओ.. मैं देखते हुए अपना काम निपटा लूँगा.. मेरी बड़े ही संकोच के साथ कैबिन के सोफ़े पर बैठ गई और टॉप को ऊपर करने लगी.. मैंने पेंट से अपना लंड बाहर निकाल लिया.. मेरी को मेरा लंड नही दिख रहा था क्योंकि बीच में मेरा ऑफिस टेबल था.. जैसे ही मेरी ने अपना एक बबला बाहर निकाला.. और मेरे लंड ने पिचकारी मार दी.. पूरे इक्कीस महीनों के बाद मैंने खुला स्तन देखा था.. मैं इतनी जल्दी झड गया ये देखकर मेरी को ताज्जुब हुआ.. पर उसने मुझसे कोई सवाल नही किया और वहाँ से चली गई"
इस रोचक कहानी को सुनकर शीला सिहर उठी.. मदन के लंड पर उसके भारी कूल्हें पटक पटककर उसके लंड की चटनी बनाने लगी.. मदन भी मेरी के स्तनों का वर्णन करते हुए उत्तेजित होकर शीला के मदमस्त उरोजों का मसल मसलकर नीचे से अपनी गांड उछालकर शीला को सहयोग दे रहा था.. मेरी की सूक्ष्म हाजरी को दोनों उस कमरे में महसूस कर रहे थे.. सिगार जैसे जैसे खतम हो रही थी.. वैसे ही शराब और शीला की उत्तेजना भी अपने अंतिम चरण पर पहुँच रही थी.. ज्यादातर पुरुष हमेशा एक्टिव पार्टनर होता है और स्त्री पेसिव रहती है.. पर काफी पुरुषों के ये अंदाजा नही होगा की पेसिव पार्टनर बनकर स्त्री के सामने घुटने टेक देने में कितना मज़ा आता है
संभोग.. !!! कितना सुंदर शब्द है.. आह.. !!
इस एक ही शब्द में अपने साथी को तृप्त करने का भाव छुपा हुआ है.. सम + भोग = संभोग.. जिसमे दोनों पात्रा समान तरीके से भोग का आनंद ले उसे संभोग कहते ही.. अत्यंत प्रेम हो तो ही अपने साथी की भूख को.. केवल चेहरा देखकर पहचान सकते है.. वरना ऐसे लोगों की भी कमी नही है जिनके सामने पत्नी दांतों तले होंठ दबाते हुए इशारा करे फिर भी वो पागल इंस्टाग्राम की रील्स ही देखता रहे..
शीला की हवस अब सारी हदें पार कर चुकी थी.. मेरी के दूध भरे स्तनों की बात.. शराब और सिगार का संग.. और साथ में मदन का कडक लंड.. सब से ऊपर था.. उन दोनों के बीच का प्रगाढ़ प्रेम.. और संवादों का सेतू.. एक आदर्श जोड़ी थी शीला और मदन की
आदर्श जोड़ी कीसे कहते है?
दोनों आपस में जो मन में हो वो बेझिझक कह सके.. गलतफहमियों के लिए कोई स्थान न हो.. बिना कहें बहुत कुछ समझ ले.. वही होती है आदर्श जोड़ी.. इस आदर्शता को प्राप्त करने के लिए अगर कोई चीज सब से जरूरी होती है तो वो है.. एक दूसरे के प्रति अंधा विश्वास.. बदनसीबी से आजकल के जोड़ों के बीच जो विश्वास होता है वो नकली घी जैसा.. देखने में तो पौष्टिक होता है पर अंत में हार्ट अटैक ही देता है.. शुरू शुरू में जो कपल.. Made for each other नजर आता है.. वो थोड़े समय के बाद.. अपेक्षाओं के बोझ के तले दबकर.. एक दूजे से असन्तुष्ट रहने लगता है.. विश्वास डगमगा जाता है और अविश्वास की खाई में गिर पड़ते है..
सुबह के साढ़े चार बजे तक शीला और मदन.. मेरी की बातें करते हुए संभोग और शराब की महफ़िल में मशरूफ़ थे.. शीला ने मदन के लंड को अपने भोसड़े में दबोच रखा था.. उसका सारा वीर्य निचोड़ लिया था.. मदन शीला के जिस्म को अपनी भुजाओं में जकड़कर थोड़ी देर सो गया.. और उसी के साथ शीला के शरीर पर भी निंद्रा का असर होने लगा था.. शराब का नशा.. सिगार का नशा और सब से बड़ा.. संभोग की पराकाष्ठा का नशा..
संभोग की पराकाष्ठा का अर्थ क्या होता है?
योगी पुरुष सालों की तपस्या के बाद समाधि में जिस अवस्था को महसूस करते है उसी अनुभूति को स्त्री और पुरुष भी ऑर्गजम के वक्त महसूस करते है.. प्राणायाम का शिखर, समाधि होती है.. वैसे ही संभोग का शिखर उसकी पराकाष्ठा होती है.. पराकाष्ठा.. !! संसार को त्यागकर सिर्फ आत्मकेंद्री बनकर.. सामाजिक जिम्मेदारियों से डर कर जो सन्यास लेते हुए उसे पलायनवाद कहते है..
असल सन्यासी तो वो होता है जो संसार में रहकर अपनी पत्नी और बच्चों की एक मुस्कान के लिए.. उनके सुख चैन के लिए रात दिन काम करता है.. लोन की किश्तें भरता है.. इसीलिए ऊपर वाले ने.. बड़ी ही ईमानदारी से सांसारिक जीवन जी रहे स्त्री और पुरुषों को ऑर्गजम रूपी समाधि अवस्था की भेंट दी.. जो किसी पलायनवादी को सालों की तपस्या के बाद भी प्राप्त नही होती.. किसी दंभी सन्यासी के मुकाबले.. हर रात पति के सर में प्यार से उँगलियाँ फेरती.. उसके लंड पर चूत दबाती पत्नी.. या पत्नी की चूत में आखिरी धक्के लगाकर परम सुख पाता हुआ पति.. कुदरत को शायद ज्यादा प्रिय होते है.. क्यों की उनकी प्रजोत्पति के कारण ही तो सृष्टि इतनी आगे तक पहुंची है.. अगर हर कोई सन्यास लेकर संसार त्याग दे तो प्रजोत्पति का क्या होगा? नसलें आगे कैसे बढ़ेगी? जिसका व्यवहार शुद्ध होता है उसे ही परमार्थ प्राप्त होता है.. बाकी सारा भ्रम ही है
इतना उत्तम कामसुख भोगने के बाद नींद आने में ज्यादा देर नही लगती.. दोनों गाढ़ी नींद सो रहे थे तभी डोरबेल बजी.. शीला को डोरबेल की आवाज बड़ी सुहानी लगी.. और क्यों न लगती.. मदन की गैर-मौजूदगी में इसी आवाज के सहारे तो उसने दिन और रात काटे थे.. !! लड़खड़ाते हुए आधी नींद में.. और पूरे नशे में शीला नंगी ही खड़ी हुई.. अगर सारे कपड़े पहन ने जाती तो रसिक डोरबेल बजा बजा कर मदन की नींद खराब करता.. इसलिए उसने कल रात का.. संजय वाला टॉप पहन लिया.. और जाकर दरवाजा खोला.. सामने रसिक खड़ा था.. हाथ में दूध का कनस्तर लेकर खड़ा रसिक.. शीला के दूध के कनस्तर देखकर चकित हो गया.. उसने शीला को इस रूप में देखने की कभी कल्पना भी नही की थी.. असल में पिछले काफी दिनों से उसने शीला को देखा ही नही था..
"अरे भाभी.. आप कहाँ थे इतने दिनों से?? और ये क्या पहना है? जबरदस्त लग रही हो.. " रसिक ने होंठों पर अपनी जीभ फेरते हुए कहा
"चुप मर रसिक.. अब मैं अकेली नही हूँ.. तेरा बाप आ गया है.. अंदर सो रहा है.. इसलिए तू लिमिट में रहना.. और अपने लोड़े को भी रोज रोज घुसाने की जिद मत करना.. वरना तकलीफ हो जाएगी.. एक लीटर दूध दे और चलता बन.. और सुन.. मैं जल्द ही कुछ सेटिंग करती हूँ.. उतावला होकर कोई गलती मत करना.. समझा.. !! मेरी इशारे का इंतज़ार करना.. जब तक मैं ना कहूँ तब तक तू मुझसे बात करने की भी कोशिश मत करना "
उदास होकर रसिक ने कहा "ठीक है भाभी.. जैसा आप कहो" इतना जबरदस्त माल ऐसे ही हाथ से चला जाएगा ये सोचा नही था रसिक ने.. इतने दिनों के बाद आज भाभी नजर आई.. और ऐसे सेक्सी टॉप में.. उसे आशा थी की आज कुछ तो होगा.. पर ये तो सब कुछ खोने की नोबत आन पड़ी थी.. रसिक का मुंह लटक गया.. शीला से ये देखा न गया.. उसने रसिक के पाजामे में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया और थोड़ी देर सहलाते हुए उसके बगल में खड़ी रही.. रसिक का हाथ पकड़कर अपने बोबले पर रखते हुए बोली
"क्या तू छोटे बच्चों की तरह रूठ गया?? मैंने कहा ना की कुछ सेटिंग करूंगी जल्दी है.. ले अब दबा ले थोड़ी देर और फिर निकल.. मेरा पति विदेश से लौट चुका है.. अंदर सो रहा है" शीला ने एक सांस में ही बोल दिया..
रसिक शीला के बबलों को टॉप के ऊपर से ही दबाकर बोला "आह्ह भाभी.. आपको क्या पता.. मुझे क्या क्या हो रहा है.. !! आप तो मुझे बीच रेगिस्तान में भूखा प्यासा छोड़कर चले जाने की बात कर रही हो.. फिर मेरे इस लोड़े का क्या होगा??"
"तो तेरी बीवी रूखी है ना.. तेरे इस लोड़े के धक्के खाने के लिए.. उसे चोदता नही है क्या? मना करती है क्या तुझे? वो वहाँ भूखी प्यासी बिलखती रहती है और तू यहाँ मेरे चक्कर में पड़ा है"
"नही भाभी.. उसे गरम करके संभालना मेरे बस की बात नही है.. उसे तो उसका मायके वाला दोस्त जीवा ही शांत कर सकता है"
शीला चोंक गई.. "मतलब? तू जानता है सब कुछ?" तभी उसे बेडरूम से मदन के उठने की आवाज आई.. शीला ने रसिक का लंड छोड़ दिया और अपने स्तनों से उसका हाथ हटा दिया.. उसे धकेलकर बाहर करते हुए उसने दरवाजा बंद कर दिया..
सच में.. मदन जाग गया था.. अच्छा हुआ जो रसिक चला गया..
मदन नंगा ही शीला की तरफ आया और बोला "गुड मॉर्निंग मेरी जान.. !! किसके साथ बात कर रही थी सुबह सुबह?"
"लगता है कल रात की तुझे उतरी नही अब तक.. देख रहा है ना.. दरवाजा बंद है.. तुझे क्या लगा.. ये बंद दरवाजे से मैं किसी का लंड पकड़कर हिला रही थी?? पागल.. मैं तो ऐसे ही गाना गा रही थी"
"मज़ाक कर रहा हूँ यार.. मैं तो पेशाब करने के लिए उठा था.. देख.. क्या हालत कर दी तूने मेरे लंड की? सुखी भिंडी जैसा हो गया है.. दो साल की कसर एक रात में निकाल दी तूने.. " शीला के स्तन पर चिमटी काटते हुए प्यार से मदन ने कहा और बाथरूम की तरफ चला गया..
शीला सोच रही थी.. मेरी के दूध भरे स्तनों को याद कर के मेरे बबलों की माँ चोद दी कल रात.. जरा सा चांस मिला नही की मेरे बॉल पर टूट पड़ता है.. जब इतने पसंद थे तो दो साल तक छोड़कर क्यों गया था??
शीला दूध की पतीली लेकर किचन में आई.. गेस जलाकर उसने दूध गरम करने के लिए रख दिया.. किचन की खिड़की खोलते ही उसने देखा.. अनुमौसी और रसिक हंस हँसकर बातें कर रहे थे.. रसिक उनकी पतीली में दूध भर रहा था..
अनुमौसी को देखकर.. उनकी की हुई अरज याद आ गई शीला को.. और उसके दिमाग में एक चिनगारी हुई
रसिक रोज अपनी साइकिल शीला के घर के पास रखकर अनुमौसी के घर दूध देने जाता था.. फिर दूध देकर वापिस शीला के घर से साइकिल लेकर आगे निकल जाता.. शीला ने सोचा.. रसिक के लोड़े के चक्कर में.. मुख्य बात तो बताना भूल ही गई.. मदन जल्दी बाथरूम से निकलकर सो जाए तो अच्छा.. रसिक साइकिल लेने आएगा तब उसे बता दूँगी.. और वैसा ही हुआ.. बाथरूम से निकलकर मदन वापिस बिस्तर पर लेट गया. शीला किचन के दरवाजे से बाहर आई और अपने घर के मैन गेट पर खड़ी हो गई.. अभी भी काफी अंधेरा था.. रसिक की साइकिल के पास जाकर वो उसका इंतज़ार करने लगी.. जैसे ही रसिक आया.. सब से पहले तो शीला ने उसे पकड़कर किस कर दी.. और लंड को पकड़कर खेल लिया.. रसिक के लंड को शीला कभी भूल नही सकती थी.. इसी लंड ने ही अकेलेपन में उसकी खुजली मिटाई थी.. !!
"भाभी, आप यहाँ क्यों आई? वो भी मेरी साइकिल के पास?" रसिक को आश्चर्य हुआ
"रसिक, तुझे एक बात बताना भूल गई थी इसलिए आई हूँ"
"हाँ बताओ ना भाभी"
"रूखी को बोलना की कल दोपहर से पहले मुझे मिलने आए.. मुझे कुछ काम है उसका"
"हाँ हाँ जरूर भेज दूंगा.. आज ही भेज दूँ?.. आप कहों तो मैं आ जाऊँ.. आपका जो भी काम होगा, निपटा दूंगा" नटखट अंदाज में हँसते हुए रसिक ने कहा
"अरे बेवकूफ, तेरा काम तो मुझे पड़ेगा ही.. पर अभी नही.. जब जरूरत पड़ेगी और मौका मिलेगा तब बुलाऊँगी.. आ जाना.. वैसे तो मैं रूखी को आज ही बुलाने वाली थी पर आज हम शहर से बाहर जाने वाले है.. इसलिए उसे कल भेजना.. "
"ठीक है भाभी.. " शीला वापिस घर के अंदर जाने लगी..
रसिक: "एक मिनट भाभी!!"
शीला ने पलटकर पूछा "अब क्या है?"
रसिक: "भाभी, अभी भी काफी अंधेरा है.. थोड़ी देर चूस देती तो.. कितने दिन हो गए!! आप को तो याद नही आती होगी पर मैं रोज याद करता हूँ"
शीला: "जा जा नालायक.. यहाँ बीच सड़क पर मैं पागल हूँ जो तेरा लोडा चुसूँगी?? भड़वे, एक दिन तू भी मरेगा और मुझे भी मरवाएगा.. "
रसिक का चेहरा उतर गया.. शीला वापिस जाने लगी.. और फिर से पलटकर रसिक की ओर आई
"तेरा उतरा हुआ चेहरा मुझसे देखा नही जाता " घुटनों पर बैठकर उसने कहा "बात बात पर लड़कियों की तरह रूठ जाता है तू.. " एक ही पल में उसने पाजामे से रसिक का लंड बाहर निकाला और तेजी से मुंह में डालकर अंदर बाहर करने लगी..
रसिक को मज़ा आ गया.. एक ही मिनट में उसका लंड मूसल सा हो गया.. खड़े लंड को देख शीला से रहा न गया.. रसिक के आँड मुठ्ठी में पकड़कर मसलते हुए वो ऐसे चूसने लगी की रसिक की आँखों का आगे अंधेरा छा गया.. पर मदन के डर से शीला झड़ने तक चूस नही पाई.. रसिक का स्खलन होने ही वाला था तभी मुंह में से लंड निकालकर घर भाग गई.. चकराया हुआ रसिक देखता ही रह गया.. डंडे जैसा लंड हाथ में लिए हुए!!
किचन में आकर शीला ने धीरे से अपने बेडरूम में देखा.. मदन अभी भी शराब के नशे में सो रहा था.. शीला को देखकर राहत हुई.. चलो सब कुछ ठीक तरीके से हो गया.. बुरे समय में रसिक ने ही मेरे जिस्म की आग बुझाकर बाहर मुंह मारने के जोखिम से बचाया था.. उसे नाराज कैसे करती!!
चाय को गेस की धीमी आंच पर उबालने के लिए रखकर वो बाथरूम में नहाने के लिए चली गई.. नहा-धो कर एकदम टंच माल बनकर आईने के सामने खड़ी हो गई.. मांग में सिंदूर भरते वक्त वो सोच रही थी.. किसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरूँ ?? मदन के नाम का.. या पीयूष के.. या जीवा के.. या रघु के.. या रूखी के ससुर के नाम का.. या पिंटू के नाम का.. या संजय कुमार के नाम का.. या फिर उस हाफ़िज़ के नाम का.. हम्म या फिर जॉन के नाम का??? जॉन की गिनती ना करे तो चलता क्योंकि वो तो सिर्फ मेहमान था..
तभी रेडियो पर गाना बजा...
♬⋆.˚ "यूं ही कोई.. मिल गया था.. ♫♫ सरे राह चलते चलते.. सरे राह चलते चलते..𝄞⨾𓍢ִ໋♬⋆.˚𝄢ᡣ𐭩 "
सुनकर अपनी हंसी रोक न पाई शीला.. !!
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट हैचाय को गेस की धीमी आंच पर उबालने के लिए रखकर वो बाथरूम में नहाने के लिए चली गई.. नहा-धो कर एकदम टंच माल बनकर आईने के सामने खड़ी हो गई.. मांग में सिंदूर भरते वक्त वो सोच रही थी.. किसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरूँ ?? मदन के नाम का.. या पीयूष के.. या जीवा के.. या रघु के.. या रूखी के ससुर के नाम का.. या पिंटू के नाम का.. या संजय कुमार के नाम का.. या फिर उस हाफ़िज़ के नाम का.. हम्म या फिर जॉन के नाम का??? जॉन की गिनती ना करे तो चलता क्योंकि वो तो सिर्फ मेहमान था..
"यूं ही कोई.. मिल गया था.. सरे राह चलते चलते.. सरे राह चलते चलते.. "
अपनी हंसी रोक न पाई शीला..
"अकेले अकेले हंस क्यों रही है, शीला?" मदन ने जागकर रिमोट से टीवी चालू किया और म्यूज़िक चेनल लगाई.. टीवी पर कोई गाना बजने लगा
"ये गाना सुनकर मुझे वो विदेशी मेरी और तेरी पौष्टिक चुदाई याद आ गई" शीला ने कहा
"पौष्टिक चुदाई?? वो भला कैसे होती है?" मदन ने आश्चर्य से पूछा
"अरे पागल.. दूध का आहार तो पौष्टिक ही होता है ना.. मेरी का दूध चूसते हुए तूने चोदा था.. तो हो गई ना पौष्टिक चुदाई.. !!" कहते हुए हंसने लगी शीला
शीला ने चालाकी से मदन का ध्यान भटका दिया.. औरतें अपने पतियों को कितनी आसानी से चोदू बना सकती है.. !! दुनिया भर के सारे पति यही सोचते है की उनकी पत्नी सती-सावित्री है.. और वो उनके अलावा किसी और के बारे में नही सोचती.. वैसे पिछली सदी तक ये बात सच भी थी.. पर जैसे ही पश्चिमी हवा का रंग चढ़ने लगा.. तबसे माहोल में तबदीली आ गई है.. और बाकी की कसर मोबाइल ने पूरी कर दी.. एक जमाने में नग्नता चार दीवारों के बीच.. बंद कमरे में देखी जाती थी.. अब तो खुलेआम देखी जा सकती है.. हाईवे पर पार्क गाड़ी के अंदर.. बाग-बगीचे में.. सिनेमा हॉल के अंदर.. हॉटेलों में.. घूमने फिरने की जगहों पर.. पहले के जमाने में स्त्री अपने पति के सामने घूँघट उठाने में भी शरमाती थी.. और आज कल की मॉडर्न लड़कियां.. अपना टॉप उतारने में भी झिझकती नही है.. नौजवान पीढ़ी अपनी उत्तेजना को भी बड़ी ही आसानी से व्यक्त कर लेती है.. वैसे पहले के समय में भी ये सब था पर काफी सीमित मात्रा में.. आज कल जो काम हाईवे पर पार्क गाड़ियों में होता है.. वह पहले खेत की झाड़ियों में होता था.. समय बदला है.. पर हवस वैसे की वैसी ही है.. !!
शीला: "मदन, हमें कविता के मायके जाना है.. वैशाली को लेने.. याद है ना.. !! अगर नही जाएंगे तो लड़की कोहराम मचा देगी.. कविता भी हमारे साथ आने वाली है"
मदन: "कविता कल ही क्यों नही चली गई?? उसे उनके साथ ही जाना चाहिए था.. "
शीला: "अरे पागल.. हमने कविता का घर देखा नही है.. इसलिए वो हमारे साथ आने वाली है.. अकेले जाने में हमें संकोच भी होता.. वो तो बेचारी हमारे भले के लिए रुक गई थी.. अच्छा हुआ.. इस बहाने गाड़ी में उसके और पीयूष के प्रॉब्लेम के बारे में डिस्कस भी कर लेंगे"
मदन: "हाँ, वो भी सही है.. कितने बजे निकलना है? दस बजे निकलें??"
शीला: "अब मुझे क्या पता यार.. की कविता का मायका कितना दूर है? मैं तो दस सालों से अपने खुद के मायके नही गई हूँ.. !!"
"वैसे तेरे मायके में, है भी कौन, जाने के लिए?" शेविंग ब्रश पर क्रीम लगाते हुए मदन ने कहा
शीला: "क्यों नही है.. !! माँ बाप मर गए मतलब सब से रिश्ता कट गया क्या मेरा?? मेरी सगी बहन तो है ना.. !! जब तू विदेश में उस मेरी की चूत में घुसा हुआ था तब उसने ही मेरा खयाल रखा था.. समझा.. !! तुम्हें तो उसे शुक्रिया कहना चाहिए"
मदन: "तेरी बहन मोहिनी को तो मैं गले लगाकर पर्सनली थेंक्स कहूँगा.. आखिर मेरी साली है.. उसके साथ तो मुझे भी ढेर सारी बातें करनी है"
शीला और मदन बातों में व्यस्त थे तभी कविता आई.. उसके हाथ में गरमागरम पकोड़े की प्लेट थी.. "अंकल, मम्मी जी ने खास आपके लिए भिजवाएं है.. एकदम गरम है.. अभी खा लीजिए.. ठंडे हो जाएंगे फिर मज़ा नही आएगा" एकदम सीधे मतलब से कविता ने कही हुई बात का उल्टा अर्थ निकालकर शीला और मदन दोनों हंसने लगे.. उनको हँसता देख कविता को भी एकदम से खयाल आया की उसकी बात का कौनसा मतलब निकाला गया था.. वो भी शरमा गई..
वैसे शीला के साथ तो वो हर किस्म की बात कर सकती थी.. पर मदन के सामने ऐसा करना मुमकिन नही था.. वो मदन को अभी अभी ही तो मिली थी.. जब वो शादी करके आई तब से मदन विदेश था..
शीला ने कविता को आँख मारकर हँसते हुए कहा "हाँ सही बात है.. कोई भी चीज गरम हो तभी मज़ा आता है.. एक बार ठंडी हो जाएँ फिर कोई मतलब नही रहता.."
अब कविता की हालत खराब हो गई.. बेचारी मदन की मौजूदगी में बहोत ही शरमा गई.. एक तो मदन अनजान भी था.. और उससे उम्र में काफी बड़ा भी..
उसने तुरंत बात बदल दी.. "मैँ चलूँ भाभी?? आप खा लेना" शर्म से लाल चेहरे के साथ वो बाहर जाने लगी तभी शीला ने उसे आवाज दी "कहाँ जा रही है.. !! सुन तो ले मेरी बात"
रुक गई कविता.. और मुड़कर शीला की तरफ देखते हुए बोली "हाँ भाभी बताइए.. क्या बात है ?"
"यहाँ आ.. और बैठ जा.. मुझे एक काम है तुझसे " आदेशात्मक आवाज में शीला ने कहा
"भाभी.. गैस पर सब्जी रखकर आई हूँ.. अभी नही बैठ सकती" कविता ने कहा
"नही.. तू बैठ.. मैं फोन कर देती हूँ अनुमौसी को.. वो गेस बंद कर देगी.. यहाँ बैठ जा शांति से.. जब भी आती है, भागी-भागी ही आती है!! " शीला ने हाथ पकड़कर कविता को सोफ़े पर बैठा दिया..
मदन ने शेविंग कर ली थी.. मुंह धोकर वो भी कविता के सामने बैठ गया..
"अब ये पकोड़े खाने में, तू भी हमें कंपनी दे.. " एक पकोड़ा कविता के हाथ में देते हुए शीला ने कहा
शीला: "तेरा मायका यहाँ से कितना दूर है? कितने बजे निकलना चाहिए?"
कविता: "डेढ़-सौ किलोमीटर दूर है.. साढ़े नौ को निकलें तो साढ़े बारह तक पहुँच जाएंगे.. और वहाँ से शाम के ६ बजे निकलेंगे.. तो साढ़े नौ बजे तक घर वापिस.. "
मदन: "हाँ.. वैसे ही ठीक रहेगा "
कविता: 'ठीक है.. तो आप लोग तैयार हो जाइए अंकल.. मैं नौ बजे आ जाऊँगी.. पीयूष ने अपने एक दोस्त की कार मँगवाई है.. आप ड्राइव कर लोगे ना अंकल?"
मदन: "हाँ हाँ.. बड़े आराम से.. विदेश जाकर सब सिख गया हूँ.. कोई भी गाड़ी हो.. चला लेता हूँ"
शीला: "हाँ कविता.. मदन विदेश जाकर सब तरह की गाड़ियां चलाना सिख गया है.. है ना मदन!!" अपने पैर से मदन के पैर के अंगूठे को दबाते हुए शीला ने मदन को आँख मारी.. उसका इशारा उस विदेश मेरी पर था..
कविता शीला की इस द्विअर्थी बात को समझ नही पाई.. उसने कहा "अरे वाह अंकल.. मुझे भी गाड़ी चलाना सीखना है.. आप सिखाओगे मुझे?? पीयूष को बोल बोलकर थक गई पर वो सुनता ही नही है"
मदन: "अच्छा? क्यों नही सिखाता? मना करता है क्या?"
कविता: "अरे, उसे मेरे लिए टाइम ही कहाँ है !! आप भाभी से पूछिए.. जब भी कहूँ तो कहता है की टाइम नही है"
मदन: "ये तो गलत बात है.. अपनी पत्नी को कार चलाना सिखाने का टाइम न हो.. ऐसा कैसे चलेगा??"
शीला: "वो नही सिखाएगा तो कोई और सीखा देगा.. क्यों चिंता करती है?? पर तुझे सीखकर काम क्या है? गाड़ी चलाकर कहाँ जाना है तुझे?"
कविता: "ऐसा नही भाभी.. गाड़ी चलाना आना तो चाहिए.. भले जरूरत हो या ना हो.. कभी भी काम आ सकता है.. वैसे स्टियरिंग और क्लच-ब्रेक के बारे में सब जानती हूँ.. बस गियर चलाना नही आता"
मदन: "गियर चेंज करना सीखना तो काफी आसान है.. और सब गाड़ियों में थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होता है.. बाकी गियर सब का एक जैसा ही होता है"
ये आखिरी वाक्य सुनकर शीला के फिर शरारत सूझी.. " समझ गई ना कविता.. !! गियर सब का एक जैसा ही होता है.. सिर्फ हिलाना आना चाहिए" और हंसने लगी
शीला की बात का मतलब कविता समझ गई.. वो गियर की तुलना लंड से कर रही थी.. कविता नाम की नाजुक कली फिर से शरमा गई.. उसने तीरछी नज़रों से मदन की ओर देखा.. मदन ये जानता था की जब दो औरतें बात करती है तब उनके बीच द्विअर्थी संवाद हमेशा होते है.. घर के काम के बोझ तले दबी औरतें.. ऐसी हंसी-ठिठोली से अपना मन हल्का कर लेती है..
कविता: "आप और अंकल तैयार हो जाइए.. मैं तो तैयार ही हूँ.. बस कपड़े बदलने है.. भाभी, मौसम को देखने जो लड़का आने वाला है वो सी.ए. है.. बहोत ही अच्छे खानदान से है.. मौसम के नखरे बहोत है.. देखते है, उसे पसंद आता है या नही.. भगवान करें की दोनों एक दूसरे को पसंद कर लें.. और ये रिश्ता हो जाएँ.. पापा के सर से एक बड़ा टेंशन उतर जाएगा"
मदन: "अरे कविता.. रिश्ता होने पर टेंशन कम नही होता.. बल्कि शुरू होता है.. "
कविता ने हँसकर कहा "हाँ अंकल, आपकी बात बिल्कुल सही है.. "
कविता चली गई और शीला तथा मदन तैयार होकर बाहर निकले.. पीयूष के दोस्त की गाड़ी में मदन ड्राइवर सीट पर बैठ गया.. कविता को अकेला न लगे इसलिए शीला उसके साथ पीछे बैठ गई.. मदन ड्राइव करने लगा.. मस्त म्यूज़िक भी बज रहा था.. तीनों फ्रेश मूड में बातें कर रहे थे.. शीला ने अपने अंदाज में नॉन-वेज बातें करते हुए कविता की पेन्टी गीली कर दी थी.. कविता हंस हँसकर पागल हो गई थी.. इस मज़ाक मस्ती में वो पीयूष के साथ हुए झगड़े को भी भूल गई थी.. मदन भी बीच बीच में जोक सुनाकर हँसाता.. उसका सेंस ऑफ ह्यूमर कविता को पसंद आ गया
"आपका स्वभाव बड़ा ही मशखरा है मदन भैया" अपने शहरे में गाड़ी का प्रवेश होते ही कविता खिल उठी.. और क्यों न खिलती!! मायके की बात सुनकर ही हर स्त्री रोमांचित हो जाती है.. यहाँ तो कविता खुद अपने मायके पहुँचने वाली थी.. जाहीर सी बात है की वो बहोत खुश थी.. शहर के अंदर प्रवेश होते ही मदन ने कविता से कहा
"कविता, तू आगे आजा.. ताकि मुझे रास्ता ढूँढने में मदद कर सके"
मदन के साथ बैठना कविता को थोड़ा सा अटपटा तो लगा पर फिर भी वो आगे की सीट पर आ गई और रास्ता दिखाने लगी.. मदन धीरे धीरे कविता के घर की ओर गाड़ी चलाने लगा.. तभी उसकी नजर रीअर व्यू मिरर पर गई.. पीछे बैठी शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया था और अपने दोनों दूध के कनस्तर उजागर कर रखे थे.. देखकर ही मदन को खांसी आ गई.. दोनों की नजर मिरर में एक होते ही शीला ने आँख मारते हुए एक कामुक मुस्कान दी.. मदन भी मुस्कुरा उठा.. शीला मदन को चिढ़ा रही थी
"हम पहुँच गए भैया.. गाड़ी यहाँ साइड में लगा दीजिए.. भाभी.. वो दो मंज़िली इमारत देख रही है?? वही है मेरा घर.. चलिए !!" कहते हुए कविता गाड़ी का दरवाजा खोलकर अपने घर की ओर दौड़ी..
मदन और शीला, कविता के पीछे पीछे घर के अंदर गए
"आइए.. आइए" कविता के माता पिता ने दोनों का स्वागत किया.. कविता ने सबकी पहचान करवाई.. मौसम और फाल्गुनी कहीं नजर नही आ रहे थे.. शीला को कविता के पापा की नजर कुछ ठीक नही लगी.. वह अपने कपड़ों को ठीक करके सोफ़े पर कोने में बैठ गई.. मौसम के पापा सुबोध ने मदन को सोफ़े पर बैठाया और किचन में चले गए..
थोड़ी ही देर में मौसम की माँ, रमिला पानी लेकर आई.. कविता ने अपने आने की खबर पहले ही फोन पर दे दी थी इसलिए उसकी माँ ने खाना तैयार रखा था.. तब तक चाय पानी पीकर सब बातें करने लगे.. तभी मौसम और फाल्गुनी वहाँ आ पहुंची.. उनके पीछे वैशाली और पीयूष ने भी प्रवेश किया.. वो दोनों किसी बात को लेकर हंस रहे थे.. कविता भी अपने कमरे से दौड़ी चली आई.. मौसम को देखने जो लड़का आ रहा था उसे देखने के लिए वो बड़ी उत्सुक थी
मौसम: "अरे दीदी!! आप लोग कब आए?? आइए आइए भाभी.. कैसे हो भैया?" मौसम के चेहरे पर जवानी छलक रही थी..
कविता ने इशारे से मौसम से पूछा.. की वो लड़के से मिली या नही? जवाब में मौसम ने शरमाकर अपनी आँखें झुका ली.. मतलब मीटिंग हो चुकी थी.. वैशाली का ध्यान बार बार मौसम के पापा की ओर जा रहा था.. करीब ५० की उम्र के सुबोधकांत दिखने में प्रभावशाली और हेंडसम थे.. उनके चेहरे पर बेफिक्री साफ नजर आ रही थी.. जब की उनकी पत्नी रमिला बहन, गोरी और भारी कदकाठी वाली.. धीर गंभीर औरत थी.. देखने से ही पता चलता था की रमिला बहन काफी शांत और धार्मिक स्वभाव की थी..
सुबोधकांत की नजर बार बार शीला के मदमस्त जिस्म और चुंबकीय व्यक्तित्व की ओर खींची चली आती.. भँवरा कितना भी खुद को रोक क्यों न ले.. खुश्बूदार फूल देखकर वह आकर्षित हो ही जाता है.. सुबोधकांत काफी रंगीन मिजाज थे और आए दिन बिजनेस टूर के नाम पर अपनी रंगरेलियाँ मना ही लेते थे.. जो आनंद उसकी शांत बीवी उसे कभी न दे पाती.. वह वो बाहर से प्राप्त कर लेते.. ऐसा रंगीन इंसान, शीला को देखकर कैसे कंट्रोल में रहता?? किसी गंभीर या शांत स्वभाव के इंसान का भी, अपनी हरकतों से, एक सेकंड में लंड टाइट करने की शक्ति थी शीला के गदराए जिस्म में.. सुबोधकांत हतप्रभ होकर शीला के सौन्दर्य का रसपान कर रहे थे..
शीला के बिल्कुल पीछे, वैशाली और फाल्गुनी खड़े थे.. सुबोधकांत जब भी शीला की ओर देखते.. उनकी आँखें कम पड़ जाती.. इतना जबरदस्त सौन्दर्य सिर्फ दो आँखों से ही कैसे देखें?? एक तो शीला बैठी थी.. पीछे बड़े स्तनों वाली वैशाली.. और कमसिन बदन वाली फाल्गुनी.. आहाहा
शीला जिस कोने में बैठी थी उस कोने पर, सारे पुष्प, जैसे एक साथ इकठ्ठा हो गए थे.. सामने खड़ी मौसम, अपने बाप की रसीली नजर देखकर शरमा गई.. उसे पता था की उसके पापा शीला भाभी, वैशाली और फाल्गुनी को ताड़ रहे थे.. अब ये बात तो वैशाली को भी नही पता थी की मौसम को अपने पापा की असलियत का पता चल चुका था.. मौसम अपने पापा की हर नजर को बड़ी ही विचित्रता से देख रही थी
शीला समझ गई.. की बाकी सारे मर्दों की तरह, सुबोधकांत भी उसके दोनों स्तनों के बीच की खाई में धँसते जा रहे थे.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो सिर्फ अपनी नज़रों से ही उसके स्तनों को चूस रहे थे.. जैसे भँवरा फूल से रस चूस रहा हो..
मौसम ये सोच रही थी की पापा देख कीसे रहे है? फाल्गुनी को, वैशाली को या शीला भाभी को? इन सारी बातों से बेखबर होकर पीयूष कोने में बैठकर अखबार के पीछे मुंह छुपाकर सोच रहा था.. अरे यार.. मेरी कच्ची कुंवारी साली को चोदने की इच्छा, ख्वाब बनकर ही रह गई.. किनारे पर आते आते मेरी नाव डूब गई.. जवानी में पहला कदम रख रही मौसम ने इतनी जल्दी अपने मांझी को ढूंढ लिया.. !! काश वो ओर थोड़ा तड़पी होती तो पके हुए फल की तरह, मेरी गोद में आ गिरती.. माउंट आबू की उस दुकान के बाहर.. बंद रेहड़ी के पीछे.. कैसे मौसम ने मेरा लोडा पकड़ लिया था..!! आह्ह..
मस्त काले बादल छाए हो.. और बारिश की अपेक्षा में.. छत पर नहाने की तैयारी के साथ पहुंचे.. और तभी चमचमाती धूप निकल आए..तब जो हालत होती है.. वही हालत पीयूष की थी.. और मजे की बात तो यह थी.. की अभी कमरे में मौजूद.. मौसम, शीला, वैशाली और कविता.. सब के स्तनों को वो दबा चुका था.. फाल्गुनी को कभी पीयूष ने उस नजर से देखा नही था.. या यूं कह सकते है की फाल्गुनी के बारे में इस तरह से सोचने का उसे मौका ही नही मिला था.. माउंट आबू के आह्लादक वातावरण में.. उसके हाथों मौसम जैसा जेकपोट लग जाने के बाद.. जाहीर सी बात थी की उसे और किसी में दिलचस्पी नही रही थी.. पर मौसम नाम का प्याला.. लबों से लगने से पहले ही छीन गया था.. इस बात से लगा सदमा.. पीयूष के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था और उसी भाव को छुपाने के लिए वो अखबार खोलकर बैठ गया था..
कविता, वैशाली, फाल्गुनी और मौसम.. बगल के कमरे में घुस गए.. चारों लड़कियां अपनी प्राइवेट बातें करने के लिए चली गई.. अब पीयूष के सामने केवल शीला थी.. अखबार को साइड में रखकर उसने शीला की ओर देखा.. आसपास कोई देख तो नही रहा.. ये चेक करने के शीला ने चुपके से पीयूष को आँख मारी.. इस शरारत से पीयूष अपनी सीट पर सीधा हो गया.. यार.. ये कैसी गजब स्त्री है!! शांत बैठे आदमी को एक पल में उत्तेजित करने की अनोखी कला थी शीला में..
मदन और सुबोधकांत, बिजनेस और राजनीति से जुड़ी बातें कर रहे थे.. एक बात मदन के ध्यान में आई.. बातों के बीच में.. सुबोधकांत बार बार शीला की ओर देख लेते थे.. मदन मन ही मन में हंस पड़ा.. हाय मेरी शीला.. तेरे जादू से बच पाना नामुमकिन है.. अपनी खुशकिस्मती पर आनंद प्रकट करते हुए मदन वापिस सुबोधकांत को बातों में उलझा देता..
पीयूष बेचैन हो रहा था.. बार बार पूछने के बावजूद मौसम ने उसे ये नही बताया था की जिस लड़के से उसकी मीटिंग हुई थी, वो उसे कैसा लगा था!!! आखिर परेशान होकर वो उस कमरे की ओर गया जहां वो चारों लड़कियां बैठी हुई थी.. तभी शीला भी किचन में जाने के लिए खड़ी हुई और बीच पेसेज में उसने चुपके से पीयूष का लंड दबा दिया और किचन में चली गई.. पीयूष को पता नहीं चल रहा था की शीला भाभी उसे क्यों उकसा रही थी.. उनके विचार को दिमाग से झटक कर वो कमरे की तरफ गया.. कमरे में प्रवेश करते ही उसके कानों ने सुना..
कविता मौसम को सब कुछ पूछ रही थी और मौसम शरमाते हुए धीमी आवाज में उत्तर दे रही थी..
"आइए जीजू" पीयूष को देखते ही फाल्गुनी ने कहा.. इन चारों ने पूरे बेड पर कब्जा जमाया हुआ था.. बैठने की जगह नही थी.. फाल्गुनी खड़ी होकर बोली "मैं आंटी को किचन में मदद करने जा रही हूँ.. आप यहाँ बैठिए जीजू.. " पीयूष वहाँ बैठ गया
फाल्गुनी ने किचन में जाते हुए सुबोधकांत की तरफ देखा... सुबोधकांत ने भी मदन के साथ बातों में व्यस्त होने के बावजूद फाल्गुनी को एक हल्की सी स्माइल दी..
उधर कमरे में.. चर्चा-विचार के बाद.. मौसम अपना निर्णय सब को बताने के लिए तैयार थी.. पीयूष अपने नाखून चबा रहा था..
कविता: "मौसम, जल्दी जल्दी बता.. क्या क्या बातें हुई उसके साथ? तुझे कैसे लगा? पसंद आया? क्या सोचा तूने फिर?"
पीयूष के दिल की धड़कनें तेज हो गई.. अब क्या कहेगी मौसम? वो जो कहने वाली थी उसकी अपेक्षा से ही पीयूष का दिल बैठा जा रहा था ..
पीयूष मौसम के तंदूरस्त उभारों को ऊपर नीचे होते हुए देखता रहा.. उसके ड्रेस से छोटी सी क्लीवेज भी नजर आ रही थी.. यार.. सिर्फ एक रात के लिए इस जोबन का लुत्फ उठाने का मौका मिल जाए, बस.. !! ये दोनों सुंदर नाजुक स्तनों के बीच की लकीर में लंड घिसने का अवसर मिलें तो जीवन सफल हो जाएगा.. ये हाथ से चली जाएँ इससे पहले सिर्फ एक मौका मिल जाएँ.. बस.. !! मौसम उस चूतिये को रिजेक्ट कर दे तो मज़ा ही आ जाएँ.. !!
जब फाल्गुनी कमरे से बाहर निकली तब वैशाली भी उसके पीछे गई.. फाल्गुनी को किचन में जाते देख वो वापिस लौट आई और बेड पर पीयूष के पीछे ऐसे बैठ गई की उसके घुटनें पीयूष को छुने लगे.. पर इस स्पर्श से पीयूष को कोई फरक नही पड़ा.. कहाँ से पड़ता?? मस्त रसगुल्ले की चासनी को वो चूस पाता इससे पहले ही हाथ से गिर गया.. !!
"लड़का तो अच्छा है, दीदी!!" मौसम ने कहा "सी.ए. की परीक्षा पास कर ली है.. एकाध महीने में डिग्री भी आ जाएगी.. बहोत ही समझदार है"
"दिखने में कैसा है? क्या नाम है उसका?" कविता ने पूछा
मौसम: "दिखने में तो बड़ा हेंडसम है यार!!" मौसम के एक एक शब्द से पीयूष के दिल पर आरी चल रही थी..
कविता: "जरा खुलकर बता.. मुझे सब कुछ जानना है उसके बारे में"
वैशाली अपने घुटने को पीयूष की पीठ पर रगड़ रही थी.. इस बात से अनजान के पीयूष को आज उसके हरकतों से कोई फरक नही पड़ रहा था.. कविता का सारा ध्यान मौसम की ओर था इसलिए उसे वैशाली की छेड़खानियाँ दिख नही रही थी.. वो तो मौसम के आने वाले सुनहरे कल के सपने देख रही थी..
वैशाली: "हाँ यार.. जरा विस्तार से बता.. हेंडसम है.. पर पर्सनालिटी कैसी है? तेरे साथ उसकी जोड़ी कैसी लगती थी?"
वैशाली जैसे जानबूझकर पीयूष के घावों पर नमक छिड़क रही थी.. उसने खुद पीयूष की मौसम के लिए लट्टूगिरी देख रखी थी माउंट आबू में.. इसीलिए वो चाहती थी की मौसम नाम का कांटा.. उसके और पीयूष के बीच से जल्द से जल्द हट जाए.. और पीयूष का ध्यान फिर से उसकी ओर आकर्षित हो.. कितनी ईर्ष्या होती है औरतों में.. !!
मौसम: "दीदी.. उसका नाम तरुण है.. जीजू जैसा ही दिखता है.. उनके जैसी ही पर्सनालिटी है.. कद काठी में भी सैम टू सैम.. मुझे तो वो पसंद है.. अब प्रश्न ये है की क्या मैं भी उसे पसंद आती हूँ या नही.. !! अगर उसे पसंद हो तो मेरी तरफ से हाँ है.. !!"
पीयूष का सारा शरीर एकदम ठंडा पड़ गया.. काटो तो खून ना निकले.. पीयूष के प्रेम की छत्री का कौवा बन गया था
वैशाली: "कैसी बात करती है तू मौसम? तुझ जैसी सुंदर लड़की को भला कौन रिजेक्ट कर सकता है?? क्यों ठीक कहा ना मैंने पीयूष!! बोलता क्यों नही है.. क्या तू ये नही चाहता की मौसम का रिश्ता किसी अच्छे लड़के से हो जाए!!"
"अरे.. नही नही.. ऐसा कुछ नही है.. मैं कोई उसका दुश्मन थोड़े ही हूँ.. !! पर मुझे विश्वास है.. की अगर उस लड़के ने रिजेक्ट किया भी तो मौसम को उससे कई गुना अच्छा लड़का मिल जाएगा.. मौसम तो लाखों में एक है.. " अपने सारे गम को छुपाकर.. कृत्रिम मुस्कुराहट धारण करते हुए पीयूष ने कहा.. एक एक शब्द बोलते हुए, कितना कष्ट हो रहा था, वो सिर्फ पीयूष ही जानता था..
कविता: "तुम दोनों की मीटिंग कितने वक्त तक चली? कहाँ मिले थे तुम दोनों?"
मौसम: "वो मुझे सुबह दस बजे लेने आया था.. फिर हम होटल रंगोली में गए और कॉफी पी.. करीब दो घंटों तक हम वहीं थे.. बहोत सारी बातें की.. आप लोग आए उससे कुछ देर पहले ही वो मुझे छोड़ गया.. वो उनके किसी रिश्तेदार के घर रुके है.. शायद दोपहर के बाद फिर से मिलना होगा.. "
रमिला बहन ने कमरे में आकर कहा "खाना तैयार है.. चलिए सब.. !!"
उस आनंद भरे वातावरण में सब डाइनिंग टेबल पर जा बैठे.. पूरा घर उन लड़कियों की किलकीलारियों से गूंज रहा था..
रमिला बहन और सुबोधकांत ने सब को आग्रह कर खिलाया.. सब खुश थे.. सिवाय पीयूष के.. !! खाना खतम हुआ और सब खड़े हुए
तभी एक फोन आया और बात करके सुबोधकांत ने कविता से कहा "अरे कविता बेटा.. लड़के वालों का फोन था.. वह एक बार ओर मीटिंग करना चाहते है.. उनके रिश्तेदार के घर बुलाया है.. आप सब में से कौन कौन जाएगा मौसम के साथ?"
रमिला बहन: "अरे कविता है ना.. वो और फाल्गुनी साथ जाएंगे"
सुबोधकांत: "अरे.. सब चले जाएंगे तो यहाँ मेहमानों को अकेला महसूस होगा.. एक काम करते है.. पीयूषकुमार को गाड़ी लेकर भेज देते है.. साथ में कविता और मौसम.. फाल्गुनी को यही रहने दो.. " फाल्गुनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया.. उसका चेहरा देखकर मौसम और वैशाली समझ गए की सुबोधकांत अपनी नजर से फाल्गुनी को दूर रखना नही चाहते थे.. लेकिन किसी और को इस बारे में कुछ पता नही चला
"आप चिंता मत कीजिए पापा.. मैं मौसम के साथ चला जाऊंगा.. और उसे वापिस भी सही सलामत ले आऊँगा.. मेरे होते हुए आपको किसी चिंता करने की कोई जरूरत नही है" पीयूष ने कहा
ये सब सुन रही वैशाली सोच रही थी.. की यहाँ इतनी भीड़ भाड़ में सुबोधकांत के बारे में कुछ पता तो चलने वाला था नही
वैशाली: "एक काम करें?? अगर आपको प्रॉब्लेम न हो तो मैं भी मौसम के साथ जाऊँ? हो सकता है की मौसम को मेरी सलाह की जरूरत पड़ जाए.. !!"
मौसम: "हाँ हाँ वैशाली.. तुम साथ चलो.. फाल्गुनी को यही रहने दो.. तुम साथ रहोगी तो अच्छा रहेगा"
मौसम, वैशाली और कविता को गाड़ी में बिठाकर पीयूष ले चला..
गाड़ी चलाते हुए पीयूष.. मिरर से अपनी दोनों प्रेमिकाएं.. मौसम और वैशाली को बेबस नज़रों से देख रहा था.. पर फिलहाल देखने के अलावा वो और कुछ कर पाने की स्थिति में नही थी.. कविता जो उसके बगल में बैठी थी..
जिस गति से कार दौड़ रही थी उससे दोगुनी गति से पीयूष का दिल धडक रहा था.. क्या होगा.. !!! जो होगा देखा जाएगा.. !!
गाड़ी तरुण के रिश्तेदार के घर के पास आ पहुंची.. मौसम के गाल कश्मीरी सेब की तरह लाल हो गए.. कविता और वैशाली भी बेहद उत्सुक थे.. तरुण को देखते ही कविता और वैशाली तो ऐसा ही मान बैठे की यही है मौसम का होने वाला पति.. सपनों का राजकुमार.. !!
वैशाली ने कुहनी मारकर कविता को कहा "कितना हेंडसम है यार!! एकदम डैशिंग है.." कविता ने भी मौसम की आँखों में देखकर हामी भरी.. की वो जैसा बता रही थी.. लड़का वैसा ही था
तरुण दिखने में सौम्य.. और स्वभाव से शांत था.. उसके चेहरे पर चार्टर्ड अकाउन्टन्ट वाली गंभीरता भी थी.. कविता ने कुछ सवाल पूछे.. वैशाली ने भी दो-तीन सवाल पूछ लिए.. अब बारी पीयूष की थी.. पर वो बेचारा क्या पूछता..!! उसकी हालत बस वही जानता था.. विनेश फोगाट जैसी हालत थी उसकी.. १०० ग्राम वज़न के कारण मेडल गंवाना पड़ रहा था.. एक-दो सवाल पूछकर पीयूष कमरे से बाहर चला गया.. बेचैनी बर्दाश्त के बाहर हो रही थी.. कविता और वैशाली भी दोनों को बातें करने अकेला छोड़कर कमरे से बाहर निकले..
मौसम और तरुण की मीटिंग चल रही थी.. उस दौरान.. कविता, मौसम और पीयूष बाहर सड़क पर टहलने लगे.. तीनों की बातों का टोपिक एक ही था.. मौसम.. !! काफी देर हो गई और फिर भी मौसम घर के बाहर नही निकली थी
पीयूष का मन प्रेशर कुकर की तरह सीटियाँ बजा रहा था.. भेनचोद चूतिया तरुण.. क्या कर रहा होगा अंदर मौसम के साथ?? मन ही मन तरुण को गालियां देते हुए.. ना चाहते हुए भी वैशाली और कविता की बातों में शामिल हो रहा था..
वैशाली: "यार लगता है इन्हें और देर लगेगी.. यहाँ खड़े खड़े क्या करेंगे हम लोग? पीयूष, तू एक काम कर.. तू हम दोनों को वापिस घर छोड़ दे.. और फिर मौसम को लेने आ जाना.. पता नही मीटिंग और कितनी देर तक चलेगी.. मैं तो बोर हो रही हूँ"
कविता: "यार उसकी ज़िंदगी का सवाल है.. पूछ लेने दे.. कर लेने दे दोनों को बातें.. शादी करना कोई मज़ाक तो है नही.. चलने दे उनकी मीटिंग.. पीयूष, तू हमें घर छोड़ दे.. और फिर मौसम को लेने आ जाना.. तब तक शायद उनकी मीटिंग खतम हो जाएगी.. "
दोनों को लेकर पीयूष ने गाड़ी घुमाई और उन्हें कविता के घर ड्रॉप करने के बाद वापिस आ गया..
वो बरामदे में लगे झूले पर बैठे बैठे सोच रहा था.. कैसी ड्यूटी आ गई सर पर? जिस सेक्सी जिस्म को मैं चोदने के ख्वाब देख रहा था.. वो अंदर बंद कमरे में अनजान लड़के के साथ बैठी है.. और मैं यहाँ इंतज़ार करते हुए अपनी गांड मरवा रहा हूँ.. इससे तो मर जाना बेहतर होगा.. अपने आप पर गुस्सा आ रहा था पीयूष को.. प्रेमी बनने के चक्कर में अपनी साली का चौकीदार बन गया था वोह.. पर करता भी क्या!! मौसम अब उससे बहोत दूर चली जाने वाली थी.. !!
"कहाँ गए दीदी और वैशाली? चलिए जीजू.. चलते है.. बहोत देर हो गई.. मम्मी पापा चिंता कर रहे होंगे.. !!"
पीयूष: "उन दोनों को तो मैं घर छोड़ आया.. बहोत देर हो गई इसलिए.. फिर तुझे लेने वापिस आया.. चल चलते है घर.. !!"
दोनों फटाफट कार में बैठ गए.. कविता का घर पहुँचने में लगभग बीस मिनट का समय लगता था.. तभी मौसम पर उसके पापा का फोन आया और वो पूछने लगे की और कितनी देर होगी..!! जवाब में मौसम ने कहा की बस आधे घंटे में पहुँच जाएंगे..
थोड़ी देर तक पीयूष और मौसम दोनों मौन ही रहे.. मौसम जानती थी अपने जीजू के दिल का हाल.. !!
आखिरी मौसम ने चुप्पी तोड़ी.. "जीजू.. उस गार्डन के पास गाड़ी रोकिए"
रोड के उस तरफ सुंदर बगीचा था.. कार खड़ी होते ही मौसम उतर गई.. और साथ में पीयूष भी.. !!
गार्डन के अंदर जाकर एक कोने में खड़े होकर मौसम ने कहा "जीजू, उस दिन माउंट आबू में हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद मैं आपकी और जबरदस्त आकर्षण महसूस कर रही हूँ.. एक तरफ आपकी ओर ये खिंचाव.. दूसरी ओर दीदी के साथ धोखा करने का अपराधभाव.. और तीसरी ओर ये तरुण.. !!! मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ में नही आता.. !!"
पीयूष: "मौसम, दिल पर किसी का जोर नही चलता.. दिल को कितना भी समझा लो पर वो नही मानता.. मैं भी क्या करूँ? मेरी हालत भी खराब है.. क्या मैं तुझे कभी पा नही सकूँगा?? ये रिश्ता हो गया तो तू तरुण की होकर रह जाएगी.. हमारी लव स्टोरी बस यही तक थी " बोलते बोलते पीयूष की आँखों से आँसू गिरने लगे.. अब तक जिस दर्द को वो छुपा रहा था.. व्यक्त हो गया
मौसम ने अपने रुमाल से पीयूष की आँखें पोंछ ली.. पूरा रुमाल गीला हो गया.. पीयूष की इस स्थिति में दोनों घर जाते को सब को पता चल जाने का डर था..
बड़े भारी दिल से उसने पीयूष के हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा "जीजू.. मैं भी तो इस कशमकश से गुजर रही हूँ.. !! पर वास्तविकता को सवेकार्ने के अलावा और कोई चारा भी तो नही है.. मैं आप से शादी तो कर नही सकती.. आप को चाहे कितना भी प्यार करूँ.. ब्याह तो मुझे किसी और के साथ.. कभी ना कभी तो करना ही होगा.. !! तो फिर तरुण से बेहतर और कौन हो सकता है.. !! प्लीज आप मेरी हालत को समझने की कोशिश कीजिए.. !!"
पीयूष: "तेरी बात मैं समझ रहा हूँ.. मैं ही बेकार में हवा को मुठ्ठी में कैद करने की जिद ले बैठा.. बट आई लव यू मौसम.. बस यही बात मुझे खाए जा रही है की तू मुझे एक बार भी नही मिली.. "
मौसम: "जीजू प्लीज.. आप उदास मत हो.. मैं आपको प्रोमिस करती हूँ.. आप से मैं एक बार एकांत में जरूर मिलूँगी.. पर सिर्फ एक बार.. !! और वो भी मेरी सगाई से पहले.. ताकि मुझे तरुण को धोखा देने का दुख न हो.. आई ऑलसों लव यू जीजू.. अब हम घर जाए उससे पहले आप नॉर्मल हो जाओ ताकि किसी को शक न हो.. अब इससे ज्यादा मैं आपकी उदासी के लिए कुछ नही कर सकती.. प्लीज" कहते हुए मौसम रोने लगी.. उसे रोती देख पीयूष अपनी उदासी भूल गया
पीयूष: 'मौसम, तू रो मत यार.. मुझे तेरी बात मंजूर है.. मुझे पता है की शादी तो तुझे किसी ओर से करनी ही होगी.. और तू मुझे इससे ज्यादा कुछ दे नही पाएगी, ये भी समझता हूँ.. चल रोना छोड़.. अब चलते है वापिस"
दोनों बाहर निकलें.. स्टोर से मिनरल वॉटर की बोतल लेकर उन्होंने मुंह साफ किया.. और फ्रेश होकर घर की ओर निकल गए.. पीयूष मन ही मन खुश हो रहा था की आखिर मौसम ने उसके प्यार की लाज रख ली.. एक बार के लिए हाथ में आएगी जरूर..
गाड़ी कविता के घर पास पहुंची.. गाड़ी से उतरने से पहले मौसम ने आसपास देखा.. फिर उसने पीयूष के होंठों पर किस कर दी..और उसका हाथ अपने मस्त स्तनों पर रख दिया.. कडक मांसल गोले हाथ में आते ही पीयूष के अंदर का पुरुष जाग उठा.. जोर से स्तनों को मसलते हुए पीयूष ने मौसम के होंठों पर एक मजबूत चुंबन दिया.. एक पल के लिए गाड़ी के अंदर हवस और उत्तेजना की तेज आंधी से उठने लगी..
किस तोड़कर पीयूष ने अपने लंड का उभार मौसम को दिखाया और बोला "ये देख मौसम.. तेरी चूत में घुसने के लिए कितना उतावला हो रहा है.. और तू मुझे रोता छोड़कर शादी करने चली है.. !!"
पीयूष के लंड के उभार को प्यार से अपनी हथेली से दबा दिया.. "सब्र का फल मीठा होता है.. थोड़ा इंतज़ार कीजिए जनाब" शायराना अंदाज मे मौसम ने कहा
पीयूष: "मौसम, मुझे तेरे बूब्स चूसने है.. यहाँ आसपास कोई नही है.. अपना टॉप थोड़ा सा ऊपर कर.. मैं फटाफट चूस लूँगा"
मौसम ने शरमाते हुए अपना टॉप ऊपर कर दिया.. मदमस्त दूधरंगी कडक स्तन बाहर निकल आए.. एक स्तन को हाथ से मसलते हुए दूसरे स्तन को झुककर चूसने लगा पीयूष.. निप्पल पर जीभ का स्पर्श होते ही मौसम बेकाबू हो गई.. और पीयूष का सर अपनी छाती से दबाकर आहें भरने लगी..
एक दो मिनट तक ये खेल चला.. मौसम ने अपने स्तनों को फिर से टॉप के अंदर पेक कर दिया.. पीयूष ने भी अपने बाल और चेहरे को ठीक कर लिया.. पीयूष अब गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर निकलने ही जा रहा था तभी मौसम ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया
मौसम: "जीजू मुझे आपका वो.. देखना है एक बार.. दिखाइए ना प्लीज!!"
पीयूष: "ओह माय गॉड मौसम.. तेरी ये बातें सुनकर.. मन करता है की अभी गाड़ी में तुझे भगा ले चलूँ.. कहीं दूर ले जाकर घंटों तक बस प्यार करता रहूँ.. फिर आगे जो होना हो सो हो.. !!"
पीयूष की जांघ पर हाथ फेरते हुए मौसम ने कहा "प्लीज जीजू.. वक्त बर्बाद मत कीजिए.. जल्दी बाहर निकालिए.. मुझे देखना है.. इससे पहले कोई आ जाए यहाँ.. !!"
ड्राइवर सीट पर बैठे हुए खड़े लंड को टाइट जीन्स से बाहर निकालना बड़ा मुश्किल काम है.. बड़ी मुसीबत से पीयूष ने अपना विकराल लंड बाहर निकाला.. लंड को देखकर मौसम कांपने लगी.. "बाप रे.. जीजू.. ये तो कितना बड़ा है.. !!" कहते हुए उसने लंड को मुठ्ठी में लेकर पकड़ा और चमड़ी को नीचे उतारते ही लाल सुपाड़ा बाहर निकल आया "इशशशश.. जीजू, कितना कडक है ये यार" मौसम का हाथ अब और मजबूती से लंड को जकड़े हुए था.. दिन के उजाले में ये सारा खेल चल रहा था
तभी पीछे से ऑटो-रिक्शा के आने की आवाज आई.. मौसम ने लंड छोड़ दिया.. और पीयूष ने अपने सांप को फिर से पेंट के अंदर डाल दिया.. फटाफट गाड़ी से निकलकर दोनों घर के अंदर घुस गए
घर पहुंचते ही मौसम ने चरण स्पर्श करके सब बड़ों का आशीर्वाद लेते हुए कहा "मुझे लड़का पसंद है और उसकी भी हाँ है.. " सुनते ही मौसम के पापा सुबोधकांत ने कहा "बहोत अच्छा हुआ.. " उनकी आँखें भर आई.. बेटी अब पराये घर जाने वाली थी इस बात का दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था.. ये देखते ही रमिला बहन की आँखों से भी आँसू छलकने लगे..
"अरे मम्मी, अभी तो केवल शुरुआत है.. आप तो अभी से रोने लगे?? मौसम को बिदा करते वक्त क्या होगा फिर??" अपनी माँ की पीठ को सहलाकर उन्हें सांत्वना देते हुए कविता ने कहा.. उसकी आँखें भी नम हो गई थी
तभी फलगुगनी सब के लिए चाय लेकर आई.. सब अपनी जगह बैठ गए.. फाल्गुनी ने सुबोधकांत के हाथ में चाय का कप दिया तब सुबोधकांत ने उसका हाथ छु लिया और ये वैशाली और मौसम दोनों ने नोटिस किया..
सुबोधकांत: "मदन जी, आप हमारे घर पहली बार पधारे है.. अब वापिस जाने की जल्दी मत करना.. !! मैं आपको रात में ड्राइविंग करके जाने नही दूंगा.. मैं अभी ऑफिस जा रहा हूँ.. आप सब पीयूष कुमार के साथ शहर घूम लीजिए.. शाम को खाना खाकर आप रात को यहीं रुक जाना.. इसी बहाने कविता भी एक पूरा दिन हमारे साथ रहेगी.. !!"
मदन ने बहोत आनाकानी की पर रमिला बहन और सुबोधकांत ने एक न सुनी.. आखिर उन्हें मानना पड़ा.. तय ये हुआ की पीयूष गाड़ी में कविता, मदन, शीला और फाल्गुनी के साथ घूमने जाएगा.. मौसम नही जाने वाली थी.. शायद शाम को फिर से तरुण का कॉल आ जाए.. !! पर तभी फाल्गुनी ने कहा "मैं साथ नही चलूँगी.. मुझे घर जाना होगा"
सुबोधकांत के पीछे पीछे फाल्गुनी भी बाहर निकल गई.. ये देखते ही वैशाली के दिमाग में शक का कीड़ा जाग गया.. कहीं दोनों साथ तो नही गए?!! जो विचार वैशाली को आया वही बात मौसम के दिमाग में भी आ गई.. उसने तुरंत एक आइडिया आया॥
"जीजू, हम सब एक गाड़ी में नही आ पाएंगे.. आप एक काम कीजिए.. आप कविता दीदी, मदन भैया और शीला भाभी को घूमने ले जाइए.. वैशाली यहाँ मेरे साथ ही रुकेगी"
सुनते ही वैशाली की आँखों में चमक आ गई.. मौका मिले तो वो फाल्गुनी का पीछा करना चाहती थी.. पर उसने इस शहर में कुछ देखा नही था.. अगर मौसम से पूछती तो उसे शक हो जाता.. क्या करूँ? मस्त चांस था दोनों को रंगेहाथों पकड़ने का.. पर इस अनजान शहर में वो कहाँ जाती?
कविता, मदन और शीला को लेकर जैसे ही पीयूष की गाड़ी निकली.. मौसम ने अपनी स्कूटी बाहर निकाली "मम्मी, मैं और वैशाली थोड़ा सा घूम कर आते है"
मौसम ने स्कूटी को स्टार्ट किया और वैशाली को पीछे बैठ जाने का इशारा किया.. माउंट आबू में लेस्बियन सेक्स के बाद, मौसम वैशाली के साथ काफी खुल चुकी थी.. वैशाली ने अपने मस्त बबले मौसम की पीठ के साथ दबा दिए..
"अरे यार, तूने तो ऐसे अपनी छाती चिपका दी, जैसे किसी मर्द के पीछे बैठी हो" स्कूटी को मेइन रोड पर लेते हुए मौसम ने कहा.. जवाब में वैशाली ने मौसम को कमर से पकड़कर दबाते हुए कहा "फाल्गुनी को भी साथ ले लेते तो और मज़ा आता.. है ना मौसम?"
वैशाली के दिमाग से फाल्गुनी और सुबोधकांत हट ही नही रहे थे.. इधर मौसम का दिमाग भी घूम रहा था..
मौसम तेजी से स्कूटी दौड़ा रही थी.. शहर से बाहर जाते हाइवे की ओर चलाने लगी..
वैशाली: "कहाँ लेकर जा रही है? हाइवे पर कौन सा काम है तुझे? कहीं बाजार में ले चल.. थोड़ी शॉपिंग कर लेते.. यहाँ क्या देखना है?"
मौसम: "तू चुप बैठ वैशाली.. मुझे कुछ चेक करना है"
सुनकर वैशाली चोंक गई.. ईसे क्या चेक करना है? कहाँ ले जा रही है ये?
मौसम: "हाँ वैशाली.. जरा गंभीर और सीक्रेट बात है"
वैशाली को बड़ा आश्चर्य हो रहा था.. कहीं मौसम को फाल्गुनी और उसके पापा के बारे में पता तो नही चल गया होगा.. !! उस दिन जब फाल्गुनी के साथ बाथरूम में बातें हुई थी तब कहीं मौसम ने सुन तो नही ली थी!! या फिर मौसम किसी और काम से ले जा रही हो?? पर किसी और काम के लिए वो मुझे क्यों साथ ले जा रही है?? पर लगता तो यही है की मौसम को पता चल गया है.. और वो ये भी जान चुकी है की मुझे इस बात का पता पहले से है.. इसीलिए तो मुझे साथ लिया है..!!
Thanks krish1152 bhainice update