बड़ी मुश्किल से पटरी पर आई हुई उसकी और कविता की प्रेम-गाड़ी को दूसरा कोई अवरोध न आए इसलिए पीयूष ने अपने दिमाग से मौसम के खयालों को फिलहाल निकाल फेंका.. और कविता के साथ बातें और मस्ती करते हुए घर की ओर जाने लगा..
कविता और पीयूष की हंसी खुशी घर के अंदर प्रवेश करता देख अनुमौसी के दिल को चैन मिला.. वो सोच रही थी.. शीला को कोई भी केस हाथ में दो तो वो उसका हल निकाल ही लेती है.. कितने अच्छे लग रहे है ये दोनों.. इसी कारण वश मौसी ने कविता को शीला और मदन के साथ मौसम के घर भेजा था.. उसे यकीन था की शीला कुछ न कुछ करके दोनों का मिलाप करवा ही देगी.. वैसे शीला का तो इसमें कोई हाथ नहीं था.. पर मौसी को ये कहाँ पता था.. !! बिना कुछ किए ही शीला को क्रेडिट मिल गया..
अनुमौसी ने मस्त कडक चाय बनाई सब के लिए.. चाय पीकर वैशाली, शीला और मदन अपने घर चले गए.. कविता किचन में बर्तन माँजने चली गई और पीयूष सीधा अपने बेडरूम मे आ गया..
बेडरूम में पहुंचते ही उसने सब से पहला काम मौसम को मेसेज करने का किया "ब्लेन्क मेसेज क्यों भेजा था जान.. !! हम बस अभी अभी घर पहुंचे.. !!" काफी देर तक मौसम का रिप्लाइ नहीं आया और पीयूष परेशान होकर बैठा रहा
फिर उसने अपने ससुराल की लेंडलाइन पर फोन किया.. फोन रमिला बहन ने उठाया.. पीयूष ने उन सब के पहुँच जाने की खबर दी.. उसका इरादा तो मौसम के बारे में जानने का था.. पर वो पूछ नहीं पाया और फोन रख दिया.. एक महीने के बाद जब पीयूष बेड पर पड़ा तो उसे मौसम की जुदाई का एहसास हुआ.. पिछले के महीने से.. वो किसी न किसी बहाने मौसम के आसपास ही रहता.. और उसके सुंदर चेहरे को देखकर खुश रहता.. पर अब मौसम नहीं थी.. पीयूष ने मोबाइल फोन की गॅलरी खोली और मौसम की तस्वीरों को देखता ही रहा.. उसे ऐसा लग रहा था जैसे तस्वीर से भी मौसम उसकी उदासी का मज़ाक उड़ा रही हो.. गुस्से में पीयूष ने फ़ोटो डिलीट कर दिया..
और तभी मौसम का रिप्लाइ आया.. "जीजू.. आई मिस यू अ लॉट.. आप के जाने के बाद मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा.. !!" मौसम का मेसेज पढ़ते ही पीयूष खुश हो गया.. एक मिनट पहले जो उदासी के बादल उसके चेहरे पर छाए थे वह सारे छट गए.. वो खड़ा होकर बाहर निकल रहा था तभी मौसी ने उसे टोका.. "कहाँ जा रहा है? सफर कर के आया है.. थोड़ा सा आराम कर ले"
"अभी आया मम्मी.. एक दोस्त का फोन था.. उसे कुछ काम है इसलिए मिलने बुलाया है.. " कहते हुए तेजी से बाहर निकल गया.. गली के नुक्कड़ पर आकार उसने मौसम को फोन किया
"हैलो.. " आहहहा.. मौसम की सुरीली आवाज को सुनकर पीयूष के मन का मोर नाचने लगा..
"मौसम.. आई लव यू यार.. तेरे बिना एक पल भी मेरा दिल नहीं लगता.. कैसी है तू?"
जीजू के मुंह से "आई लव यू" सुनकर मौसम के रोंगटे खड़े हो गए.. उसका रोम रोम पुलकित हो उठा
"मौसम.. मैं बस थोड़े समय के लिए ही बाहर निकला हूँ.. कविता मुझे ढूंढ रही होगी.. अभी ज्यादा बातें नहीं हो पाएगी.. कल ऑफिस जाने से पहले मैं तुझे कॉल करूंगा.. और तुझे अपना वादा तो याद है ना.. !! भूल मत जाना" पीयूष ने एक ही सांस में बहुत कुछ कह दिया
"याद है जीजू.. आप अभी घर जाइए.. कल बात करेंगे.. बाय जीजू"
"बाय जान.. लव यू.. " पियूँ ने फोन कट कर दिया और कॉल-लॉग से मेसेज और कॉल को डिलीट कर दिया और घर आ गया..
साढ़े सात बजे के करीब पीयूष को मदन का फोन आया "खाना खा लिया हो तो वॉक पर चलें??"
पीयूष: "हाँ चलना तो है.. पर अभी खाना बाकी है.. थोड़ी देर रुकिए.. मैं अभी खाकर आता हूँ" मदन के साथ संबंध आगे बड़ाने का ये अच्छा मौका दिखा पीयूष को
"ठीक है.. मैं गली के नुक्कड़ पर तेरा इंतज़ार करता हूँ.. जल्दी आना" मदन ने फोन काट दिया..
थोड़ी देर बाद दोनों साथ चलते चलते एक लंबा राउंड लगाकर लौटे.. मदन का घर पहला आता था इसलिए वो अंदर चला गया.. पीयूष की नजर शीला भाभी के दर्शन के लिए तरस रही थी.. छत पर बैठे बैठे शीला ये देखकर मुस्कुरा रही थी.. पीयूष बेचारा पागल हो गया है मेरे पीछे.. कैसे ढूंढ रहा है.. !!
शीला पीयूष को घर के अंदर जाने तक देखती रही..
रात के साढ़े आठ बज गए थे.. शीला छत से नीचे उतरी.. ड्रॉइंग रूम में वैशाली और मदन टीवी पर "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" धारावाहिक देख रहे थे..
"मम्मी.. ये जेठालाल कितना क्यूट है ना.. जेठा-दया की जोड़ी देखकर मुझे तुम और पापा ही नजर आते हो.. "
"मुझे तो बबीता बहोत पसंद है.. " मदन के सामने देखकर मज़ाक करते हुए शीला ने कहा.. बबीता का जिक्र हमेशा उसके बड़े बड़े स्तनों के लिए ही होता है.. बाकी उसमें और कुछ खास तो है नहीं..
"मुझे तो माधवी भाभी बहोत पसंद है.. इतनी स्वीट स्माइल है उनकी.. " मदन ने एकमेव सेक्रेटरी की बीवी को लपेट लिया..
तीनों मस्ती भरी बातें कर रहे थे तभी घर की डोरबेल बजी.. शीला ने दरवाजा खोला और देखा तो इंस्पेक्टर तपन और उनके साथ संजय था.. मदन और शीला के साथ साथ वैशाली भी ये देखकर डर गई.. घबराहट के मारे वो भागकर किचन में चली गई..
मदन: "अरे इंस्पेक्टर साहब आप.. अभी, इस वक्त? क्या बात है?"
शीला भी पुलिस के साथ संजय को देखकर बहोत डर गई थी.. पता नहीं संजय ने क्या क्या बता दिया होगा.. !!
शीला ने घबराते हुए कहा "कहिए तपन जी.. कैसे आना हुआ?"
किचन के अंदर खड़ी वैशाली को ये सुनकर बेहद आश्चर्य हुआ.. भला मम्मी इंपेक्टर को नाम से कैसे जानती है.. !! हो सकता है की उनकी पहचान का हो.. वैशाली का डर थोड़ा कम हो गया.. उसने चुपके से किचन से बाहर देखा..
इंस्पेक्टर तपन ने मज़ाक किया "ये बहनजी बार बार किचन से क्यों झांक रही है?" वैशाली डर गई और अपना चेहरा वापिस खींच लिया
मदन ने कहा "वैशाली बेटा.. ये तपन अंकल है.. डरने की कोई बात नहीं है.. बाहर आजा.. मैं तेरी पहचान कराता हूँ.. "
बड़े ही संकोच के साथ वैशाली बाहर आई.. साथ ही ट्रे में पानी के ग्लास भरकर.. पानी सिर्फ मदन, इंस्पेक्टर और शीला को दिया.. संजय को नहीं.. इससे इन्स्पेक्टर तपन को भी साफ तौर पर पता चल गया की मियां बीवी के बीच सब कुछ ठीक नहीं था.. इस अपमान के बाद भी संजय चुप बैठा रहा क्योंकि इन्स्पेक्टर सामने खड़ा था
पानी पीकर ग्लास ट्रे में रखते हुए इंस्पेक्टर तपन ने कहा "मदन, बात दरअसल ये है की अभी एकाध घंटे पहले इन महाशय के मोबाइल पर फोन आया.. कलकत्ता से.. उनके पापा को हार्ट एटेक आया है और उनकी हालत गंभीर है.. मैंने सोच तुम्हें बता दूँ.. अब बोल.. क्या करना है? वरना जो गुनाह इसने किया है उसका अगर केस बनाऊँगा तो ये दस साल तक सलाखों के पीछे से बाहर नहीं आएगा"
वैशाली स्तब्ध हो कर सुनती ही रही.. इस संजय ने तो मायके में भी मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ा दी.. अब ऐसा तो कौन सा गुनाह कर दिया इसने? कहीं रोज का मर्डर तो नहीं कर दिया??
धीमी आवाज में वैशाली ने शीला से पूछा.. शीला ने उसे सारी हकीकत बताई..
शीला: "तपन भैया.. आप बैठिए.. मैं चाय बनाकर लाती हूँ"
वैशाली का हाथ पकड़कर शीला उसे किचन में ले गई..
शीला: "देख बेटा.. तेरे और संजय कुमार के बीच जो कुछ भी तकलीफें हो.. पर तेरे ससुर की इस हालत के वक्त.. एक बहु होने के नाते तेरा वहाँ जाना जरूरी है.. !!"
वैशाली: "मैं इस नालायक के साथ कहीं नहीं जाने वाली.. मुझे अब उसके साथ रहना ही नहीं है.. इतना सब कुछ तो तुम देख ही रही हो.. देखे ना उसके कारनामे!! फिर भी उसके साथ जाने के लिए कह रही हो.. ?? तुझे मेरी जरा सी भी फिक्र नहीं है.. एकदम थर्ड क्लास आदमी है.. प्लीज मम्मी.. मुझे यहीं रहने दो.. " हाथ जोड़कर रो पड़ी वैशाली
शीला: "बेटा.. ये घर तेरा ही है.. तू एक बार वहाँ जा.. अपने ससुरजी की तबीयत ठीक होने तक रहना.. फिर आ जाना वापिस.. !!"
वैशाली: "मुझे बहोत डर लग रहा है मम्मी.. तुझे पता है ना.. कलकत्ता कितना दूर है? वहाँ मेरा अपना कोई है भी नहीं.. और ये संजय वहाँ मेरे साथ क्या क्या करेगा कुछ कह नहीं सकते.. प्लीज मम्मी.. तुम भी चलो मेरे साथ.. मैं अकेली नहीं जाऊँगी"
शीला: "बेटा.. मैं जरूर तेरे साथ चलती.. पर वहाँ कितने दिनों तक रुकना पड़े.. क्या पता.. !! तू पहले वहाँ जा.. थोड़े दिनों बाद मैं और तेरे पापा वहाँ आएंगे.. और लौटते वक्त तुझे साथ यहीं वापिस ले आएंगे.. ठीक है.. !!"
शीला ने वैशाली को समझा ही लिया
चाय पीकर इंस्पेक्टर तपन जाने के लिए खड़े हुए.. जाने से पहले उन्हों ने संजय का गिरहबान पकड़कर धमकाया "कुछ भी उल्टा सीधा किया ना.. तो कहीं से भी ढूंढ निकालूँगा तुझे.. इतना याद रखना.. मदन के कारण आज तुझे छोड़ रहा हूँ.. दूसरी बार हाथ में आया तो उल्टा लटकाकर डंडा घुसा दूंगा.. समझा.. !!"
संजय कुछ भी नहीं बोला..
इंस्पेक्टर तपन निकल गए.. मदन ने तुरंत अपने ट्रैवल एजेंट को फोन लगाया और कलकत्ता की फ्लाइट की दो टिकट बुक करवा दी.. साढ़े बारह की फ्लाइट थी.. वैशाली और संजय को तुरंत निकलना था..
शीला ने तुरंत वैशाली को सामान पेक करने में मदद की.. संजय बेशर्म होकर टेबल पर पैर पसारकर सिगरेट फूँक रहा था.. पुलिस की मार खाकर उसका चेहरा सूझ गया था.. शीला उसके करीब से एक बार गुजरी पर संजय ने उसकी तरफ देखा तक नहीं.. रोज क्लीन शेवड और चकाचक होकर घूमता संजय.. ४-५ दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी और गंदे बदबूदार कपड़ों के साथ बड़ा ही घिनौना लग रहा था
शीला ने वैशाली को इशारा करते हुए कहा की वो संजय से नहाने के लिए कहे.. पर वैशाली ने उससे बात करने से साफ इनकार कर दिया
आखिर मदन ने कहा "संजय कुमार.. आप जरा नहा-धोकर फ्रेश हो जाइए.. "
गुस्से से तिमिलाते हुए संजय खड़ा होकर बाथरूम चला गया.. और थोड़ी देर में तैयार होकर बाहर निकला..
घर से निकलते वक्त वैशाली खूब रोई.. घर की एक एक चीज को जैसे आखिरी बार देख रही हो वैसी व्यथा थी उसकी आँखों में.. सामान लेकर टेकसी में सब बैठ गए.. एयरपोर्ट पहुंचते ही, वैशाली और संजय अंदर गए.. शीला और मदन बाहर इंतज़ार करते रहे.. जैसे ही उनकी फ्लाइट छूती.. मदन के सब्र का बांध टूट गया.. वो फुटफुटकर रोने लगा.. शीला ने सांत्वना देते हुए उसे बिठाया.. उसे शांत करने के बाद दोनों घर वापिस लौटे
अब फिर से मदन और शीला अकेले थे.. पर आज का एकांत न शीला को उत्तेजित कर रहा था और ना ही मदन को.. वैशाली के भविष्य की चिंता दोनों को खाए जा रही थी..
बेटी ससुराल में दुखी हो तो माँ बाप बेचारे कैसे खुश रह सकते है.. !!
रात के एक बजे शीला गाउन पहनकर मदन की बगल में सो गई.. उसका हाथ सीधा मदन की शॉर्ट्स के अंदर चला गया.. पर दोनों में से किसी को भी सेक्स का मूड नहीं था.. ये तो बस सोने के लिए एक आरामदायक पोजीशन थी.. मदन शीला के स्तनों को सहलाते हुए सो गया.. मदन हमेशा से ऐसे ही सोता था.. जब से उन दोनों की शादी हुई थी, तब से.. !!
सुबह दोनों काफी देर से जागे.. शीला ने घड़ी में समय देखा और चोंक गई.. अरे बाप रे.. आठ बज गए.. !!! रसिक ने आज डोरबेल भी नहीं बजाई.. ?? अब बिना दूध के चाय कैसे बनाउ?? शीला उठकर बाहर गई और चारों तरफ देखा.. फिर जल्दबाजी में दरवाजा बंद तो किया पर लोक करना भूल गई.. बेडरूम मे आकर उसने मदन को सोते हुए देखा और सोचा.. अच्छा हुआ जो आज रसिक से मुलाकात नहीं हुई.. वैसे भी कल रात की घटना के बाद आज उसका मूड नहीं था.. अब संजय कुमार कलकत्ता जा कर कोई नया गुल ना खिलाए तो अच्छा..
मदन ने आँखें मलते हुए कहा "अब शहर में एक रसिक अकेला तो नहीं है दूध देने वाला.. मैं अभी दुकान से दूध लेकर आता हूँ.. हम दो दिन से घर पर थे नहीं.. तो बेचारे ने दरवाजा नहीं खटखटाया होगा.. लगता है तुझे रसिक का दूध पसंद आ गया है" मदन ने मज़ाक करते हुए कहा
शीला ने भी जवाब में सिक्सर लगाई.. "हाँ.. जैसे तुझे उस अंग्रेजी मेरी का दूध पसंद आ गया था.. " मदन के गाल खींचकर शीला ने कहा "उस फिरंगी का दूध पीकर तेरे गाल फूल गए है.. " रसिक वाली बात को बदलने के लिए शीला ने ये चाल चली
"इतनी सुबह सुबह तुझे मेरी की याद कहाँ से आई?" शीला के गोलमटोल स्तनों से खेलते हुए मदन ने कहा
"अभी तूने पूरी बात बताई कहाँ है.. उसके बॉयफ्रेंड से मिलने का सेटिंग करवाया था तूने अपनी ऑफिस में.. फिर अपना ये बाम्बू उस गोरी की चूत में कैसे घुसा दिया वो कहानी अभी बाकी है.. " कहते हुए शीला ने मदन की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया..
शीला ने ये महसूस किया था की जब जब वो मेरी की बात करती थी तब मदन की पकड़ उसके स्तनों पर और सख्त हो जाती थी.. मतलब मदन मेरी को अब तक भुला नहीं था.. वैसे तो शीला भी.. जीवा, रघु और रसिक को कहाँ भूल पाई थी.. !!
शॉर्ट्स से निकले लंड को एक प्रेमभरा स्पर्श देकर उसने जीवित कर दिया.. जैसे गहरी नींद से जाग रहा हो.. वैसे अंगड़ाई भरकर मदन का लंड खड़ा हो गया.. शीला मदन के लंड से खेल रही थी और मदन शीला के स्तनों को मसल रहा था..
तभी घर के अंदर अनुमौसी ने, दूध की पतीली हाथ में लेकर, प्रवेश किया और सीधे बेडरूम में घुस आई.. ये तो अच्छा हुआ की दोनों की हरकतें चादर के भीतर चल रही थी.. वरना अनुमौसी के सामने अनर्थ हो जाता
अनुमौसी: "शीला, ये ले.. रसिक आज दूध मेरे घर देकर गया था.. रसिक बेचारा बेल बजा बजाकर थक गया.. पर आप दोनों में से कोई जागा ही नहीं.. आखिर वो मेरे घर ही तुम्हारा दूध देकर चला गया.. "
"मौसी, आप बैठिए शीला के साथ" संभालकर अपने खड़े लंड को छुपाते हुए मदन खड़ा हुआ और ब्रश करने चला गया.. अनुमौसी भी रुकी नहीं
"ढेर सारे काम है घर पर.. मैं चलती हूँ शीला" कहते हुए मौसी भी चली गई
चलो, अच्छा हुआ.. दूध का प्रॉब्लेम तो सॉल्व हो गया.. शीला ने किचन मे जाकर चाय बनाई..
चाय पीकर मदन अखबार पढ़ रहा था और शीला किचन में मशरूफ़ हो गई..
दोपहर के एक बजे वैशाली का शीला पर फोन आया..
वैशाली: "मम्मी.. मेरे ससुरजी का देहांत हो गया.. यहाँ का वातावरण बिल्कुल भी ठीक नहीं है.. संजय मुझे बहोत परेशान कर रहा है.. तुम जल्दी यहाँ आओ और मुझे यहाँ से ले जाओ.. !!"
शीला और मदन स्तब्ध हो गए.. उनके समधीजी की मृत्यु हुई थी.. इसलिए उनका कलकत्ता जाना जरूरी था.. मदन ने वैशाली को फोन पर आश्वासन देते हुए कहा की वो दोनों जल्द से जल्द वहाँ पहुँच जाएंगे.. ऐसे मौकों पर क्या किया जाए उसका मदन को भी ज्ञान नहीं था.. आखिर उन्होंने अनुभवी अनुमौसी को बुलाया.. बुजुर्गों को इस बारे में सारी जानकारी होती है.. जब बेटी के ससुराल में इस तरह की घटना हो तो क्या करना चाहिए.. कोई धार्मिक विधि होती है या नहीं.. वैशाली को वहाँ नहीं रहना है.. तो इस परिस्थिति में उसे यहाँ लेकर आना चाहिए या नहीं..
सारी चर्चाओ के बाद ये तय हुआ की शीला और मदन परसों कलकत्ता जाने के लिए निकलेंगे.. पर ससुर की तेरहवीं खतम होने तक वैशाली का वहाँ रहना जरूरी था.. उसके बाद मदन वापिस कलकत्ता जाकर उसे यहाँ ले आएगा..
मदन के एजेंट का फोन नहीं लग रहा था इसलिए उसने पीयूष से फोन करके टिकट बुक करवाने के लिए कहा.. पीयूष ने अपने दोस्तों की मदद से दूसरे दिन की दो टिकट बुक करवा भी दी..
मदन: "मौसी, एक विनती है.. आजकल चोरियाँ बहोत हो रही है.. हमें आते आते शायद दो-तीन दिन लग जाए.. तब तक पीयूष या तो चिमनलाल क्या मेरे घर पर सोएंगे रात को?"
अनुमौसी: "तुम दोनों निश्चिंत होकर जाओ.. यहाँ की कोई चिंता मत करो.. हम सब है ना.. !! सब कुछ देख लेंगे"
शीला और मदन जाने की तैयारी में जुट गए.. पूरा दिन दोनों ने एक दूसरे से कोई ओर बात तक नहीं की.. दूसरे दिन सुबह पाँच बजे की फ्लाइट थी.. इसलिए घर से रात के तीन बजे निकले.. जाने से पहले शीला ने अपने घर की चाबी देने के लिए मौसी को जगाया.. चाबी देते वक्त उसने मौसी के कानों में कुछ कहा.. सुनते ही मौसी की आँखें चमकने लगी..
जैसे ही शीला और मदन, ऑटो में बैठकर निकले.. मौसी भी घर के अंदर घुस गई.. थोड़ी देर बाद वो बाहर आई.. और शीला के घर चली गई.. मदन और शीला के बेड पर टांगें फैलाकर लेट गई.. इतनी रात को शीला ने जब उन्हें नींद से जगाया तब उनका थोड़ा गुस्सा आया था.. पर जब शीला ने उनके कान में वो बात कही.. सुनकर उनका सारा क्रोध हवा हो गया.. लेटी हुई अनुमौसी को नींद नहीं आ रही थी.. साढ़े तीन बज रहे थे फिर भी उनकी आँख में अब नींद का नामोनिशान नहीं था.. हर थोड़ी देर में वो घड़ी देख रही थी.. उन्हें लग रहा था जैसे समय थम सा गया था.. शीला की बात सुनने के बाद उनका जिस्म तापने लगा था.. शीला ने उसे फोन करके बता तो दिया होगा ना.. !!
शीला के घर की लेंडलाइन से अनुमौसी ने शीला को मोबाइल पर फोन लगाया.. शीला के फोन की घंटी बजी.. मदन बिल्कुल उसके बगल में खड़ा था.. शीला थोड़ी दूर चली गई और फोन पर बात करने लगी.. फिर फोन काटकर उसने दूसरा फोन मिलाया.. और बात करने के बाद वो वापिस लौटी.. शीला को सुबह चार बजे किसी से फोन पर बातें करते देख मदन को आश्चर्य हुआ..
मदन: "किसका फोन था शीला??"
शीला: "अनुमौसी का फोन था.. तुमने कहा था इसलिए वो आज से ही हमारे घर सोने चली आई.. "
मदन: "अच्छा.. अच्छा.. फिर ठीक है.. इतनी सुबह फोन आया ये देखकर मुझे चिंता होने लगी.. "
फोन खतम करके शीला वापिस लौट रही थी तब उसने कॉल-लॉग से आखिरी फोन की एंट्री डिलीट कर दी थी.. दोनों कुर्सी पर बैठे बैठे बोर्डिंग की राह देखने लगे..
सुबह के साढ़े चार बजे भी एयरपोर्ट पर काफी भीड़ थी.. छोटे तंग वस्त्रों में एयर-होस्टेस भी अपनी जिस्म का जादू बिखेरते हुए मदन के दिल को बाग बाग कर रही थी.. खूबसूरती और खुशबू.. कभी छुपाये नहीं छुपती..
मदन की नजर बचाकर शीला ने अनुमौसी को फोन करके बता दिया "मैंने बात कर ली है" और फोन काट दिया
मदन को थोड़ा आश्चर्य जरूर हुआ.. फिर उसने सोचा.. होगी कोई औरतों की अपनी बात.. !! मदन फिर से एयर-होस्टेस के जलवों को देखने में मशरूफ़ हो गया.. खूबसूरती को ताड़ना मदन का पुराना शोख था.. मदन सोच रहा था.. ये एयरपोर्ट वाले.. मेरी शीला जैसी गदराई एयर-होस्टेस क्यों नहीं रखते.. !! इन पतली लड़कियों को देखकर तो फ्लाइट के पैसे भी वसूल नहीं होते.. भरे भरे जिस्म और मदमस्त जोबन वाली एयर-होस्टेस हो तो देखने वालों का भी दिल लगा रहें.. !! बड़े स्तनों वाली को देखकर सफर करने का मज़ा ही अलग होता.. !! बाकी इन सुखी भिंडियों की तो सिर्फ शक्ल ही अच्छी होती है.. बाकी उनकी हड्डियाँ देखने में कोई मज़ा नहीं आता..
फ्लाइट का टाइम हो गया.. और शीला तथा मदन बैठकर निकल भी गए
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इस तरफ अनुमौसी की आँखों में इंतज़ार था.. और वो घड़ी आखिर आ ही पहुंची.. डोरबेल बजते ही उन्होंने तुरंत दरवाजा खोला.. सामने रसिक खड़ा था
"अरे मौसी आप यहाँ कैसे? भाभी जी कहाँ गई?" जल्दबाजी में शीला रसिक को ये बताना भूल गई थी की अनुमौसी को इस आयोजन के बारे में पहले से पता था..
अनुमौसी चोंक गई.. अरे बाप रे.. इस मुए को तो कुछ पता ही नहीं है.. अब क्या करूँ!! बेहद इंतज़ार के बाद जब आखिर भारत-पाकिस्तान का मैच होने वाला हो और उसी दिन बरसात गिर जाएँ तब जैसा महसूस होता है वैसा ही कुछ हो रहा था मौसी को.. एक ही पल में न जाने कितने विचार आ गए मौसी के मन में..
"तुझे शीला का कॉल नहीं आया था क्या?? अंदर आ.. बैठकर बात करते है" रसिक का हाथ पकड़कर अंदर खींच लिया मौसी ने
"मुझे फोन तो आया था भाभी का.. पर उन्होंने ये नहीं कहा था की आप यहाँ होंगे.. !!"
"तू वो सब बातें छोड़.. और शीला ने जो करने के लिए कहा है वो कर.. समय मत बिगाड़.. !!"
रसिक के जलवों की बातें मौसी ने शीला से सुन रखी थी.. बस सामने से पहल करने में घबरा रही थी.. उनके पति चिमनलाल ने जब से सेक्स में रिटाइरमेंट ले लिया था तब से मौसी की हालत खराब हो गई थी.. पिछले पाँच सालों से मौसी तड़प रही थी.. पति के होते हुए ये दिन देखने पड़ रहे थे इस बात का मलाल था उन्हें.. उनकी उम्र के चलते वो किसी और से मुंह मारने की सोच भी नहीं सकती थी.. लेकिन आज शीला की बदौलत उन्हें ये मौका मिला था.. अगर आज ये मौका गंवाया तो न जाने फिर कब लंड नसीब होगा.. !!
रसिक की चौड़ी छाती पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा
"रसिक, तू शीला के साथ जो कुछ करता है.. वो सब आज मेरे साथ कर.. शीला शहर से बाहर गई है और मैं यहाँ उसके घर का खयाल रख रही हूँ.. अब शीला ने तुझे फोन करके बता तो दिया है सब.. फिर क्यों टाइम-पास कर रहा है??"
सुबह के पाँच बजे.. जब लगभग सारे लोग.. चैन की नींद सो रहे होते है.. तब अनुमौसी अपने जिस्म की भूख मिटाने के चक्कर में रसिक के सामने गिड़गिड़ा रहे थे.. वैसे रसिक ने मौसी को कभी उस नजर से पहले देखा नहीं था.. इसलिए उसे भी संकोच हो रहा था..
अनुमौसी ने रसिक को रिझाने की सारी तरकीबें आजमा ली.. रसिक बेचारा.. खाने आया था रसगुल्ला.. अब चीनी चाटनी पड़ेगी.. अनुमौसी की बूढ़ी छातियों में वो शीला के गदराएं स्तनों का अंदाज तराश रहा था.. उत्तेजना के कारण ऊपर नीचे हो रही मौसी की छातियों को देखकर रसिक को कुछ खास मज़ा नहीं आया.. पर अनुमौसी आज तय कर चुके थे.. उन्होंने रसिक का हाथ पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. और उसके हाथों को दबाते हुए बोली
"ओह्ह रसिक.. जल्दी जल्दी कुछ कर न यार.. " ऐसा कौन सा मर्द होगा जो स्त्री की इन हरकतों के बाद भी अड़ग रह पाए.. !! नरम मांस के गोले हाथ में आते ही उसका लंड फुदकने लगा.. शरमाते हुए रसिक ने अनुमौसी को अपनी ताकतवर भुजाओं में जकड़ लिया.. और उनकी पीठ पर हाथ सहलाने लगा..
मर्द के शरीर का स्पर्श होते ही मौसी के जिस्म में भूचाल सा आ गया.. स्त्री और पुरुष के शरीर जब एक दूजे के साथ कामुक स्पर्श करते है तब दोनों पात्रों के लिए दुनिया की सारी बातें गौण हो जाती है.. काम-वासना का इतना जबरदस्त प्रभाव होता है.. देखते ही देखते अनुमौसी के जिस्म पर हवस ने कब्जा कर लिया
अनुमौसी का हाथ पकड़कर रसिक ने अपने लंड पर रख दिया.. रसिक का मूसल पकड़कर अनुमौसी धन्य हो गई.. उनकी आँखों में आँसू आ गए.. रसिक के लंड की सख्ती को महसूस करते हुए वो सिसकने लगी.. मन ही मन अपने पति चिमनलाल को गालियां देते हुए अनुमौसी ने रसिक के लंड को हिलाना शुरू कर दिया..
उनके अनुभवी भोंसड़े से काम-रस टपकने लगा.. और पूरे कमरे में चूत-रस की विचित्र गंध फैल गई..
चूत की मांसल गंध को सूंघकर सांड की तरह उत्तेजित हो गया रसिक.. अपना पाजामा उतारते हुए उसने अनुमौसी के कानों में कुछ कहा.. सुनकर अनुमौसी तुरंत ही घुटनों के बल बैठ गई.. और रसिक के फुँकारते लंड को बड़े ही अहोभाव से देखने लगी.. जैसे छोटा बच्चा किसी नए खिलौने को कुतूहल से देखता है.. बिल्कुल वैसे ही.. !! गजब की उत्तेजना थी अनुमौसी के चेहरे पर.. अपने भोसड़े को खुजाते हुए वो बिना पलक झपकाए इस लंड की भव्यता और सख्ती को देखती ही रह गई.. एक ही पल में उनके दिमाग में अनगिनत विचार आ गए.. इस लंड से क्या क्या काम लिया जा सकता है वह सारी संभावनाएं सोचने लगा उनका दिमाग.. !! कहाँ चिमनलाल का मेले में मिलती पाँच रुपये की बाँसुरी जैसा लंड..और कहाँ रसिक का विकराल मूसल.. कोई मुकाबला ही नहीं था..!!
हतप्रभ होकर देख रही अनुमौसी के सामने रसिक अपना लंड थोड़ा सा आगे की ओर ले गया और उसके सुपाड़े ने अनुमौसी को होंठों का स्पर्श किया.. अनुमौसी ने अपना मुख खोला और उसी के साथ नो-एंट्री का बोर्ड हट गया.. एक ही धक्के में रसिक ने अपना अंगारे जैसा लाल सुपाड़ा मौसी के मुंह में डाल दिया..
अब मौसी की तकलीफ ये थी की उन्हें लंड ठीक से चूसना आता ही नहीं था.. पर शीला को उन्होंने जिस तरह लंड चूसते देखा था उसका अनुकरण करने लगी.. रसिक के लंड को स्त्री के कोमल होंठों का स्पर्श मिलते ही वो खिलने लगा.. उत्तेजित रसिक "आह्ह-आह्ह" करते हुए मौसी के मुंह को पेलने लगा.. सेक्स के अभाव से तड़प रही अनुमौसी ने जैसा समझ में आया वैसा चूसना चालू कर दिया.. इस अनोखे लंड को प्यार करना.. वो चूसते चूसते सीख गई.. और रसिक के काले चूतड़ों को अपनी हथेलियों से दबाते हुए वो लंड का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा अपने मुंह मे लेने लगी..
वह रोमांचक क्षण आ गई जब रसिक का मोटे डंडे जैसा लंड और अनुमौसी का भूखा मुंह.. दोनों एकाकार हो गए.. हवा जाने की भी जगह नहीं थी.. परिणाम स्वरूप.. अनुमौसी का दम घूँटने लगा.. वो गॉन्गियाने लगी.. उन्होंने लंड को अपने कंठ से निकालने की भरसक कोशिश की.. पर वो भूल गई थी की अब उनकी मर्जी चलने नहीं वाली थी..
पिछले कई दिनों से रोज सुबह.. रसिक शीला के जिस्म से खिलवाड़ करने के इरादे से आ रहा था.. पर उसके हाथों सिर्फ निराशा ही लग रही थी.. आज शीला नहीं तो कोई और सही.. इसी सोच के साथ उसने अनुमौसी पर हमला कर दिया था.. अनुमौसी के अंदर सालों से कैद रति..और रसिक का काम देव.. दोनों पूर्णतः जागृत हो चुके थे..
अब तक खामोश रहकर कमर हिला रहा रसिक.. अनुमौसी के अपरिपक्व मुख-मैथुन से जबरदस्त उत्तेजित हो कर मौसी का हाथ पकड़कर उन्हें शीला के बिस्तर तक खींच गया.. वही बिस्तर पर जहां वो अनगिनत बार शीला को चोद चुका था.. लगभग हररोज पाँच बजे रसिक और शीला का काम उत्सव शुरू हो जाता और साढ़े पाँच तक चलता रहता.. और रसिक के सहारे ही शीला ने मदन की जुदाई को बर्दाश्त किया था.. वरना कभी कभी शीला को डर लगा रहता की चूत की आग की वजह से वो कहीं कोई गलत कदम न उठा ले.. अच्छा हुआ जो शीला को रसिक मिल गया.. किसी को शक भी नहीं हुआ और शीला की भूख भी मिटती रही..
शीला को याद करते हुए रसिक ने अनुमौसी को बेड पर पटक दिया और उन पर सवार हो गया.. भूखे भेड़िये की तरह वो मौसी पर टूट पड़ा.. हवस से पागल हुआ रसिक, मौसी के घाघरे के अंदर घुस गया और उनके चिपचिपे भोसड़े को चूमकर चाटने लगा.. रसिक की जीभ छेद में घुसते ही.. मौसी सिहरने लगी.. सातवे आसमान पर पहुँच गई..
"आह रसिक.. बड़ा मज़ा आ रहा है यार.. एक बार और जोर से चाट.. आह्ह.. चौड़ी करके चाट नीचे.. ओह्ह कितने दिनों से तड़प रही थी मैं.. आह्ह.. जैसे शीला की चाटता है बिल्कुल वैसे ही मेरी चाट.. ऊईईई.. !!"
मौसी की बातों से रसिक को ये पता चल गया.. की उसके और शीला भाभी के कारनामों के बारे में मौसी को सब कुछ पता था.. तो उसमे क्या हो गया.. !! इस हमाम में तो सब नंगे थे.. मौसी भी.. !! तू भी चोर और मैं भी चोर.. !! अब न तो रसिक को किसी बात की फिक्र था और ना ही मौसी को कोई चिंता.. !! चिमनलाल के साथ मौसी को इतने सालों में ये सुख कभी नहीं मिला था.. उस चूतिये को ये नहीं पता था की संभोग का मतलब सिर्फ चूत में लंड डालकर हिलाना नहीं होता.. उसके अलावा भी की सारी हरकतें होती है जो स्त्री को तृप्त करने के लिए करनी जरूरी होती है.. अगर चिमनलाल को ये सब आता तो.. इस उम्र में अनुमौसी को एक मामूली दूधवाले के सामने टांगें फैलाने की नोबत नहीं आती..
रसिक की जीभ जैसे जैसे अनुमौसी के भोसड़े पर घूमती गई.. मौसी के मन में चिमनलाल के प्रति नफरत और तीव्र होती गई.. उन्हें यही मलाल था की शादी के पचास सालों तक उस कमीने चिमनलाल ने मुझे चूत-चटाई की इस अद्भुत सुख से वंचित क्यों रखा.. !!
कामदेव के अद्वितीय रूप से अभिभूत होकर अनुमौसी बिस्तर पर टांगें खोलकर अपना भोसड़ा चटवा रही थी.. दो उंगलियों से मौसी की चूत के होंठों को चौड़ा करके रसिक अंदर के लाल गुलाबी भाग पर अपनी खुरदरी जीभ रगड़ रहा था.. बीच बीच में वो अनुमौसी की जामुन जैसी बड़ी क्लिटोरिस में मुख में लेकर दबा देता था..
"ओह्ह रसिक.. ये तूने अभी क्या किया?? एक बार फिर से कर.. आह्ह आज तो मार ही देगा मुझे तू.. बहोत मज़ा आ रहा है.. रसिक.. इतनी तेज खाज हो रही है अंदर.. तू जितना चाट रहा है उतनी ही खुजली तेज होती जा रही है.. ओह्ह माँ.. " अपने चूतड़ों को उछाल उछलकर मौसी अपनी क्लिटोरिस को रसिक के चेहरे से रगड़ने लगी
रसिक के पास अब ज्यादा समय नहीं था.. उसने दो-तीन मिनट में ही अनुमौसी के तरसते भोसड़े को अपने थूक से सींच दिया.. फिर मौसी की दोनों जांघों को चौड़ा कर बीच में बाइओथ गया.. पैरों के बीच उस विकराल लंड को देखकर अनुमौसी को बेहद प्यार आ गया.. तेज हवा में जैसे पतंग लहराती है बिल्कुल वैसे ही रसिक का मजबूत लोडा लहरा रहा था.. उत्तेजना के कारण खंभे जैसे लंड को अनुमौसी देखती ही रह गई.. लाल सुपाड़े की नोक पर वीर्य की एक बूंद भी प्रकट हो चुकी थी..
"ओह्ह रसिक.. कितना मस्त है रे तेरा.. !!! इसे कहते है असली लंड.. पीयूष के पापा का तो इसकी तुलना में नुन्नी जैसा लगेगा.. अब मुझे समझ में आया की वो शीला तेरे पीछे क्यों इतनी पागल है.. ऐसा सांड जैसा मर्द मिल जाए.. और साथ में मूसल जैसा लंड.. आह्ह.. फिर जीवन में और चाहिए ही क्या.. !!" चूतड़ उठाकर अनुमौसी ने अपनी भोस का स्पर्श करवाया लंड से.. जैसे दो अनजान लोगों की पहचान करा रही हो..
रसिक का लंड अब फुँकारने लगा..
"सोच क्या रहा है.. डाल दे अंदर जल्दी.. नहीं तो तेरे लंड को मेरी ही नजर लग जाएगी.. " अनुमौसी के इस रूप को देखकर रसिक भी स्तब्ध था.. रोज भजन करती मौसी का कौन सा रूप असली था??
वैसे देखने जाए तो हर व्यक्ति के कितने अलग अलग रूप होते है.. !!
चाय की टपरी पर पॉलिटिक्स या क्रिकेट की चर्चा करते वक्त हम विवेचक होते है..
मंदिर में पूजा करते वक्त हम भक्त बन जाते है
बच्चों को उनकी गलतियों के लिए डांटते वक्त हम सर्वगुण सम्पन्न महसूस करते है..
ग्राहक को मीठी जबान से फुलसाकर माल बेचते वक्त हम होशियार होने का दावा करते है..
और बीवी या गर्लफ्रेंड की चूत चाटते वक्त हम उनके वफादार प्रेमी होने का ढोंग भी कर लेते है..
एक ही व्यक्ति.. और उसके ढेर सारे व्यक्तित्व.. कौन सा सही.. कौन सा गलत.. कीसे पता.. !!
रसिक ने मौसी के दोनों स्वरूप देखे हुए थे.. एक तो पूरे दिन भक्तिभाव में डूबी रहती स्त्री का और आज उसके सामने भोसड़ा चौड़ा कर लेटी.. चुदने के लिए बेकरार एक भूखी औरत का..
अपने लंड को टकटकी लगाकर देखती हुई मौसी को देख रहा था रसिक.. मौसी के ढल चुके स्तन देखकर उसे शीला के मदमस्त बबलों की याद आ गई.. पता नहीं क्यों.. शीला का खयाल आते ही लंड की सख्ती दोगुनी हो जाती थी.. शीला के साथ हुए संबंधों के बाद ऐसा हो रहा था.. ऐसा नहीं था.. पहली बार जब वो दूध देने आया और शीला को देखा तब से वो उसके दिमाग में बस गई थी.. उसे तब सपने में भी अंदाजा नहीं था की दूध लेते वक्त झुककर अपने स्तनों को दिखाती भाभी के दोनों बबलों के बीच लंड घुसाने का मौका मिलेगा..
शीला के विचारों में सख्त हुए लंड को देखकर अनुमौसी को ये गलतफहमी हो गई की रसिक उनको देखकर इतना उत्तेजित हो रहा था.. गर्व से उन्होंने अपने जिस्म को थोड़ा और ऊपर किया और रसिक को याद दिलाया की सिर्फ देखते रहने से काम नहीं बनेगा..
रसिक ने नीचे झुककर मौसी के दोनों पिचके स्तनों को पकड़ लिया और एक जबरदस्त धक्का लगाया..
"ओह माँ.." अनुमौसी की चीख निकल गई.. एक ही धक्के ने उन्हे अपनी जवानी की दिनों की याद दिला दी.. अनुभवी चौड़े भोसड़े वाली अनुमौसी को दर्द होने का कोई सवाल ही नहीं था.. पर रसिक का लंड काफी तगड़ा और मोटा था.. इसलिए उनके भोसड़े की दीवारों को खुरेचते हुए वो अंदर जाकर फिट हो गया.. मौसी के भोंसड़े और दिल दोनों को ठंडक मिली..
रसिक अपने विशाल जिस्म के बोझ तले अनुमौसी को कुचले जा रहा था.. और पूरी ताकत लगाकर लंड को अंदर बाहर करने लगा.. कामरस से चिपचिपी हो चुकी अनुमौसी की बूढ़ी भोस.. उत्तेजना के कारण खुल रही थी और बंद हो रही थी.. रसिक बेरहमी से पेलने लगा.. और काफी समय से बिना चुदे तड़प रही मौसी को स्खलित होने में देर नहीं लगी..
पर रसिक को मौसी के ढले हुए बदन में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी.. काफी धक्के लगाने के बावजूद उसका लंड झड़ने से इनकार कर रहा था.. बेचारा रसिक.. लंड का जहर निकालने के लिए.. वो मन मे शीला और रूखी को याद करते हुए तेजी से धक्के लगा रहा था.. पर लगातार दस मिनट तक चोदने पर भी रसिक के लंड ने वीर्य नहीं निकाला.. बूढ़ी फैली हुई चूत में वो दम कहाँ जो रसिक के लंड को दबोचकर उसका पानी निकाल दे.. !!
आखिर रसिक धक्के लगा लगा कर परेशान हो गया.. मौसी तो अब तक खुश हो ही चुकी थी.. उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया
"मौसी, मज़ा आ गया आज तो.. ऐसा मज़ा मुझे कभी नहीं आया पहले.. " रसिक ने झूठी तारीफ की
"पर तेरा पानी क्यों नहीं निकल??" मौसी ने पूछा
"बात दरअसल ये है की जब शीला भाभी का फोन आया तब मैं रूखी को चोद रहा था.. उसने मेरा सारा रस चूस लिया.. इसलिए अभी पानी नहीं निकला.. वैसे आपको तो मज़ा आया ना.. ??"
रसिक के विकराल चमकते लंड को अहोभाव से देखते हुए मौसी ने कहा "मुझे पता है रसिक.. की ये सब तू मुझे खुश करने के लिए बोल रहा है.. पर मैं इतनी मतलबी भी नहीं हूँ.. की मेरा काम हो जाए और मैं तुझे भूल जाऊ.." ये कहते ही अनुमौसी घूमकर घोड़ी बन गई और अपनी गांड रसिक के सामने पेश कर दी
उत्तेजित रसिक को मज़ा आ गया.. मौसी की टाइट गांड में अब उसका लंड जरूर झड़ जाएगा.. लंड तो उसका पहले से ही गीला था.. अपनी हथेली में मुंह से लार निकालकर उसने अनुमौसी की गांड के छेद पर लगा दी.. फिर अपनी एक उंगली डालकर छेद के कसाव को चेक करने लगा.. जैसे मुख्यमंत्री के आने से पहले उनके सिक्योरिटी वाले स्थल का मुआयना करते है बिल्कुल वैसे ही..
अनुमौसी के कूल्हों पर अपना सुपाड़ा रगड़कर छेद पर रख दिया.. और हल्के से दबाया.. थोड़ा और दबाव बनाते ही उसका सुपाड़ा मौसी की गांड के अंदर चला गया.. अब उसने एक जोर का धक्का लगाकर मौसी की गांड में आधा लंड घुसा दिया.. अनुमौसी का बूढ़ा चेहरा पीड़ा के कारण लाल हो गया
"मर गई.. जरा धीरे धीरे डाल रसिक.. फट जाएगी मेरी.. !!" अनुमौसी की सिसकियों में दर्द से ज्यादा आनंद का भाव था.. इसलिए अब रसिक ने बिना कुछ ज्यादा सोचें दूसरा धक्का लगाया और अनुमौसी की गांड की भूगोल बदल दी..
"दर्द तो बहोत हो रहा है रसिक.. पर तू चिंता मत कर.. और अपना काम निपटा ले.. फिकर मत कर और अपना पानी निकाल.. आह्ह बहुत तगड़ा है रे तेरा तो.. "
इस पल का महीनों से इंतज़ार कर रही थी अनुमौसी.. जब से उन्हें पता चला था की शीला मदन की जुदाई का गम रसिक के साथ हल्का कर रही थी.. तब से उनकी बड़ी इच्छा थी.. पर ऐसी बातों में जल्दबाजी करना योग्य न था.. इसलिए जब तक उन्होंने अपनी सगी आँखों से रसिक और शीला के गुलछर्रों को देख नहीं लिया तब तक उन्हों ने शीला से इस बारे में कोई बात नहीं की थी.. अपने हिसाब से ही छानबीन करती रही और जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गई तब ही उन्हों ने शीला से इस बारे में बात की.. हालांकि शीला ने पहले तो काफी शर्म और संकोच दिखाया था.. और बात को टाल दी थी.. पर उसके ध्यान में सारी बातें थी.. मौका मिलते ही शीला ने अनुमौसी के भोसड़े की भूख शांत करने का प्रबंध कर ही दिया..
मन ही मन शीला का आभार मान रही अनुमौसी की गांड में रसिक के लंड ने गरमागरम वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. सालों बाद अपने जिस्म के अंदर ये गुनगुना एहसास महसूस करते हुए अनुमौसी चिहुँक उठी..
रसिक के चेहरे पर तृप्ति के भाव देखकर वो और खुश हो गई.. दोनों पात्रों को संतुष्टि मिलें वहीं सम्पूर्ण संभोग कहलाता है.. अभी भी उत्तेजित रसिक अपने लंड से मौसी की गांड को ड्रिल कर रहा था.. उसका निकल गया होने के बावजूद.. टाइट गांड में धक्के लगाने मे उसे मज़ा आ रहा था..
थोड़ा सा नरम हुआ लंड अभी भी गांड के अंदर था और अप-डाउन हो रहा था.. और उसके ऊपर नीचे होने के कारण अनुमौसी के भोसड़े में कुछ कुछ होने लगा था.. मौसी के जीवन का ये एक यादगार दिवस था.. वो तो चाहती थी की ऐसा मौका उन्हें बार-बार मिले पर उसकी संभावना काफी कम थी.. वैसे रसिक को भी कहाँ अनुमौसी में ज्यादा दिलचस्पी थी.. !!! पर चूत ढीली हो या टाइट.. चेहरा सुंदर हो या कुरूप.. मर्द कभी भी अपनी हवस को संतुष्ट करने से पीछे नहीं हटता.. वो तो आँखें बंद कर अपने मनपसंद फिगर को याद करते हुए.. चूत के अंदर लंड के नृत्य का आनंद प्राप्त कर लेता है.. दोनों जिस्म शांत होने के बाद लगभग दस मिनट पश्चात.. रसिक ने हथियार डाल दीये..
दोनों के अवयव ढीले पड़ते ही.. कमरे में ऐसा सन्नाटा छा गया जैसा युद्ध-समाप्ति की घोषणा के बाद हो जाता है.. वासना का उफान उतरते ही मौसी को अपने जिस्म पर रसिक का शरीर बोझ सा लगने लगा.. मौसी की गांड से लंड बाहर निकलते ही रसिक उनके शरीर से नीचे उतरा और फटाफट कपड़े पहनने लगा.. पाजामा चढ़ा रहे रसिक का हाफ-टाइट लंड देखकर मौसी सोच रही थी.. कितना अच्छा होता अगर वो जब चाहे तब रसिक के लंड का आनंद ले सकती.. !! अनुमौसी ने भी कपड़े पहने और रसिक को गले लगा लिया
"मौसी.. अब मुझे जाना होगा.. सब जगह दूध देने जाना है.. उजाला होने से पहले मुझे निकल जाना चाहिए.. " रसिक ने कहा
"ठीक है रसिक.. आज तो मुझे बड़ा मज़ा आया.. फिर कभी मौका मिले तो जरूर आना.. पीयूष का बाप तो मुझे खुश करने से रहा.. और शीला को अब उसका पति मिल गया है.. उसकी तरफ थोड़ा कम ध्यान देगा तो भी चलेगा.. पर मुझे मत तड़पाना.. तेरा कुछ भी काम हो मैं कर दूँगी.. पर तू मुझे खुश करते रहना.. भले ही मेरा जिस्म शीला जितना सुंदर न हो.. पर मेरी भूख शीला से भी ज्यादा है.. " भावुक होकर मौसी ने फिर से रसिक को गले से लगा लिया..
"कोई बात नहीं मौसी.. आप चिंता मत कीजिए.. जब भी मौका मिलेगा मैं आपको खुश करूंगा.. चलिए मैं अब चलता हूँ.. !!"
रसिक के जाते ही मौसी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर को ठीक करने लगी.. मौसी का हाथ अनायास ही उनकी गांड पर चला गया.. अभी भी दर्द हो रहा था.. मौसी बिस्तर पर लेट गई.. सुबह के छह बजे थे.. रोज जल्दी जागकर घर के काम निपटाने वाली मौसी का जिस्म आज सुस्त था.. थोड़ी देर तक सो कर अपनी थकान उतारकर वो घर चली गई..