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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

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Story updated

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कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..

रसिक के इस बदले बदले से रूप को देखकर शीला को भी ताज्जुब हो रहा था.. वो सोच रही थी.. या तो इसे लोटरी लगी है.. कोई धनलाभ हुआ है.. या तो इसकी दिल की कोई अदम्य इच्छ पूरी हुई है.. छोटा आदमी तो छोटी छोटी बात पर भी खुश हो सकता है.. गरीब इंसान को तो सेकंड-हेंड सायकल भी खुश कर देती है.. पर रसिक किस कारण से इतना खुश लग रहा था वह जानने की बड़ी ही बेसब्री हो रही थी शीला को
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गाड़ी चलाते हुए बोर हो रही कविता ने स्पीकर फोन पर वैशाली को फोन लगाया.. रसिक के साथ जो गुलछर्रे उड़ाये उसके बारे मे वो वैशाली को बतानी चाहती थी.. लेकिन फोन शीला ने उठाया.. मजबूरन कविता को शीला से बात करनी पड़ी.. थोड़ी सी प्राथमिक बातचीत के बाद, शीला ने अपना इन्टेरोगैशन शुरू कर दिया

शीला: "कविता, याद है वो दिन.. जब मैंने तुझे अपने प्रेमी पिंटू, जो की अब मेरा दामाद बनने वाला है, उसके साथ सेटिंग कर के दिया था.. !! यहाँ तक की तू आराम से उसके साथ वक्त बीता सकें इसलिए मैंने पीयूष को अपने दबाने भी दीये थे.. यह भी याद होगा.. की मैंने ही रेणुका को बात कर के पीयूष की जॉब लगवाई थी.. पीयूष की गैर-मौजूदगी मे, मैंने तुझे कई बार चाटकर ठंडा किया था.. सिनेमा हॉल मे वो पिंटू तेरी चूत मे उंगली डाल रहा था तब पीयूष देख न ले इसलिए मैंने तेरे पति को मेरे बबले दबाने दीये थे.. सब याद है या भूल गई?"

कविता को समझ नहीं आ रहा था की पिछली बातें याद दिला कर शीला भाभी अब क्यों एहसान जता रही थी

कविता: "अरे भाभी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो.. !! सब कुछ याद है मुझे.. !!"

शीला: "तो फिर तू कुछ बातें मुझसे छुपा क्यों रही है?? तू पीयूष, पिंटू या मौसम से बातें छुपाएँ, ये मैं समझ सकती हूँ, पर मुझसे क्यों छुपाना पड़ रहा है तुझे? क्या तू जानती नहीं है मुझे... की कितना भी छुपा ले मुझे सब पता चल ही जाता है.. !! जिस शख्स के साथ तुम लोग नाश्ता कर रही हो.. उसके साथ मैं रोज खाना खाती हूँ, यह भूल गई क्या?"

कविता: "साफ साफ बताइए भाभी.. आप क्या कहना चाहती हो?"

शीला: "भेनचोद.. ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर... उस दिन जब मैंने पूछा की तू और वैशाली रात को कहाँ गए थे तब तू झूठ क्यों बोली? चलो वैशाली के सामने तू मुझे सच नहीं बता सकी.. पर बाद मे तो मुझे बता ही सकती थी ना.. !! मुझे पता है की तुम दोनों अपने भोसड़े मरवाने गई थी.. पर तेरे दिमाग मे ये क्यों नहीं आया की कुछ ही दिनों में वैशाली की शादी है.. !! कुछ उंच-नीच हो गई तो.. !! तेरी खुजली मिटाने के चक्कर मे, मेरी बेटी का भविष्य दांव पर लगा दिया तूने.. ????"

कविता: "भाभी, आप सारा दोष मुझे मत दीजिए.. खुजली मेरी नहीं.. वैशाली की चूत में उठी थी.. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ... मैंने तो चुदवाया भी नहीं है.. ऐसा मोटा लँड मेरे छेद मे लेने की हिम्मत नहीं है मेरी, ये तो आप भी जानती हो.. !! वैशाली भी मुश्किल से आधा डलवा पाई थी.. उसने ही जिद की थी.. और मुझे खेत मे ले गई.. मैं तो सिर्फ साथ इसलिए गई थी की वैशाली की मदद कर सकूँ.. ऐसी जगह मैं उसे अकेले जाने देना नहीं चाहती थी.. मैंने तो रसिक का लंड लिया भी नहीं है.. हाँ ओरल सेक्स जरूर किया था पर उससे ज्यादा कुछ नहीं किया मैंने.. !!"

सुनकर शीला स्तब्ध हो गई.. उसकी आँखों के सामने रसिक का असुर जैसा लंड झलकने लगा.. जो लंड शीला और अनुमौसी को भी रुला गया हो.. उस लंड ने वैशाली का क्या हाल कर दिया होगा.. !! मन ही मन वो रसिक को गालियां देने लगी.. रसिक मादरचोद.. मेरी बेटी का घर बसने से पहले ही उझाड़ देगा क्या.. !! साले भड़वे.. तेरा गधे जैसा लंड लेने के बाद.. पहली रात को वैशाली उस पिंटू की मामूली सी नुन्नी से कैसे मज़ा ले पाएगी.. !!

कविता: "चुप क्यों हो गए भाभी? मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा क्या आपको.. !!" चिंतित होकर कविता ने पूछा

शीला: "नहीं यार, मुझे पता है, रसिक का इतना बड़ा है की उसका लेना तेरे बस की बात ही नहीं है.. पर मुझे यह समझ मे नहीं आया की आखिर वैशाली और रसिक का कनेक्शन हुआ कैसे?"

कविता: "भाभी, वैशाली को सब पता चल गया है की आप और मेरी सास उसके लंड के आशिक हो.. और आप तो अभी भी उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो.. मैंने ही बातों बातों में सब बता दिया था उसे.. मेरी सास और रसिक ने उस रात जो साजिश की थी.. उस घटना के बारे में बताते हुए मेरे मुंह से सब निकल गया.. लेकिन वो सब जान लेने के बाद.. वैशाली ने रसिक का लंड देखने की जिद पकड़ ली.. अब रसिक का लंड कोई सिनेमा थोड़े ही है की टिकट लिया और देख लिए.. !! मेरे लाख मना करने के बावजूद वैशाली नहीं मानी.. भाभी, आपकी बेटी भी आप ही की तरह बेहद शौकीन है..!! उस दिन वैशाली खुद दूध लेने उठी और वहीं से सब कुछ शुरू हुआ.. और फिर आप और मदन भैया रेणुका के घर चले गए अदला-बदली का खेल खेलने.. उसी रात वैशाली मुझे खींचकर रसिक के खेत पर ले गई.. " और फिर कविता ने पूरी घटना का विवरण दिया..

शीला ने सब कुछ सुनकर एक गहरी सांस ली और कहा "कविता, तूने तो रसिक और पिंटू, दोनों के लंड देख रखे है.. तुझे इतना भी खयाल नहीं आया की वैशाली को रसिक के महाकाय लंड की आदत लग गई तो वो पिंटू के संग कैसे खुश रह पाएगी?? अरे, जिस लंड को लेने मे, मुझ जैसी अनुभवी को भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है.. उस लंड से तूने वैशाली को चुदने दिया??? खैर, जो हो गया सो हो गया.. रखती हूँ फोन"

शीला को रसिक पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. इस खेल को जल्द से जल्द रोकना पड़ेगा वरना बात हाथ से निकल जाएगी.. वैशाली से यह बात करने मे बेहद झिझक रही थी शीला.. अब एक ही रास्ता था.. सीधे रसिक से ही बात की जाए.. उस सांड को कैसे भी करके रोकना पड़ेगा.. वरना वो शादी से पहले ही वैशाली की चूत फाड़ देगा..!!!

सोचते सोचते शीला सो गई..

दूसरी सुबह, जब रसिक दूध देने आया.. तब रोज की तरह वो शीला के गदराए जिस्म से खेलने लगा.. और शीला ने उसे मना भी नहीं किया.. पर जैसे ही रसिक, शीला का एक बबला बाहर निकालकर चूसने गया, तब शीला ने कहा "रसिक, मुझे तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है.. आज एक घंटे का समय निकाल.. बता, मैं कितने बजे आऊँ तेरे घर?"

रसिक: "दोपहर को आ जाना भाभी.. रूखी भी कहीं बाहर जाने वाली है उस वक्त"

शीला: "एक बजे ठीक रहेगा.. ??"

रसिक: "हाँ भाभी.. थोड़ा टाइम निकालकर आना.. काफी दिन हो गए है भाभी"

दोपहर के एक बजे.. शीला रसिक के घर पर थी.. रसिक सामने बैठा था.. बात को कैसे शुरू की जाए उस कश्मकश मे थी शीला..

शीला: "सुन रसिक.. मुझे कविता ने सब बता दिया है.. तूने दोनों को खेत पर बुलाया था.. और जो कुछ किया.. उसके बारे में बात करने आई हूँ"

रसिक: "भाभी, मैंने सामने से चलकर कुछ नहीं किया.. आपकी बेटी ही जिद कर रही थी.. उसे ही बड़ी चूल थी मुझसे करवाने की.. मैंने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की किसी के साथ.. और कविता के पीछे मैं कितना पागल हूँ ये तो आपको पता ही है.. फिर भी मैंने उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.. ऊपर ऊपर से ही सब कीया था.. !!!"

शीला: "कोई बात नहीं रसिक.. मैं यहाँ तुझे धमकाने या डराने नहीं आई हूँ.. पर यह बताने आई हूँ की थोड़े दिन बाद वैशाली की शादी है.. अब तू ऐसे ही अगर अपने मोटे लंड से वैशाली को चोदता रहेगा, तो वो शादी के बाद किसी काम की नहीं रहेगी.. इसलिए तू मुझसे वादा कर की वैशाली कितनी भी जिद क्यों न करे.. तू ऊपर ऊपर से ही सब करना.. उसे चोदना मत.. !!"

रसिक: "भाभी.. वैशाली कितनी सुंदर है.. ऊपर ऊपर से करने के बाद मैं अपने आप को कैसे काबू मे रख पाऊँगा.. !! और वो तो खुद ही मेरा पकड़कर अंदर डाल देती है.. !!"

शीला: "बेवकूफ, इसलिए तो तुझसे मिलने आई हूँ.. उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है.. पर अब तुझे ध्यान रखना होगा... तू अब से उसे हाथ भी नहीं लगाएगा.. अगर फिर भी तूने कुछ किया.. और वैशाली की शादी में कोई बाधा आई.. तो समझ लेना.. मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा"

बड़े ही क्रोधित स्वर मे शीला ने कहा.. लेकिन रसिक जैसा मर्द, किसी औरत की धमकी को ऐसे ही सुन लेने वालों मे से नहीं था

रसिक: "एक बात मेरी भी ध्यान से सुन लीजिए भाभी.. मुझे धमकाने की कोशिश मत करना.. किसी के बाप से भी नही डरता हूँ मैं.. अब आप कह रही हो तो वैशाली को तो छोड़ो, मैं अब आपको भी कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.. ठीक है.. !! अब खुश.. !!"

शीला: "अरे पागल, मुझे छूने से कहाँ मना कर रही हूँ तुझे.. !! बस वैशाली से दूर रहना"

रसिक: "ठीक है.. जैसी आपकी इच्छा"

शीला: "तो अब मैं जाऊँ?"

रसिक: "कल से दूध देने रूखी आएगी.. साहब को कहना की उससे दूर ही रहें"

शीला: "क्यों? तू नहीं आएगा?"

रसिक: "अगर मैं आऊँगा तो वैशाली मौका देखकर मेरा लंड फिर से पकड़ लेगी.. और फिर मैं मना नहीं कर पाऊँगा"

शीला: "अरे पर दूध तो रोज मैं ही लेती हूँ ना.. !!"

रसिक: "कभी आपको उठने मे देर हो जाए.. या कहीं बाहर गई हो तब वैशाली ही दूध लेने निकलती है.. एक दिन के लिए आप बाहर क्या गई.. यह सारा कांड हो गया.. !!"

शीला: "अब वैशाली की शादी होने तक मैं कहीं नहीं जाने वाली.. तू बेफिक्र होकर दूध देने आना.. और वैसे भी.. शादी से पहले मेहमान आना शुरू हो जाएंगे.. फिर ये सब वैसे भी बंद कर देना पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आप फिक्र मत करना.. आप सोच रही हो, उतना गिरा हुआ नही है ये रसिक.. !!"

शीला: "ठीक है.. तो मैं चलूँ?? और हाँ.. मेरी बात का बुरा मानने की जरूरत नहीं है.. और आज तुझे तेरी भाभी की बबले नजर क्यों नहीं आ रहे? मुझे देखने या छूने से कहाँ मना किया है मैंने?? " खड़े होकर अपने स्तनों को टाइट कर रसिक के सामने पेश करते हुए शीला ने कहा

"अरे क्या भाभी.. आप तो बस आप ही हो.. एक नंबर.. आप जैसा कोई कहाँ हो सकता है भला.. !!! चलिए भाभी.. तो अब मैं अपने काम पर लग जाऊँ?" रसिक ने कहा

"काम पर क्यों?? मेरे शरीर से ही लग जा.. !!" कहते हुए रसिक की कुहनी पर अपने स्तनों को दबाते हुए रसिक को गुदगुदी करने लगी शीला

"सुन भी रहा है.. !! ये भी तो काम ही है.. बाकी सारे काम मेरे जाने के बाद कर लेना.. पहले तेरे सामने आकर जो काम पड़ा हुआ है उसे कर" शीला ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा

शीला की बातों से रसिक नाराज था पर फिर भी शीला ने अपने अनोखे अंदाज मे रसिक के शरीर से अपने भरे भरे स्तनों को दबाकर उसका खड़ा कर दिया.. रसिक का हाथ अपने ब्लाउज के अंदर डालकर वो पाजामे मे हाथ डालकर उसके लंड से खेलती रही.. रसिक ने शीला का एक स्तन बाहर निकालकर चूसना शुरू कीया ही था की तब शीला अपना स्तन छुड़वाकर वो नीचे बैठ गई.. और रसिक का लंड चूसने लगी

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आज लंड चूसते वक्त शीला को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था.. सोच रही थी.. ये वही लंड है जो वैशाली की चूत मे गया होगा.. बाप रे.. बेचारी फूल सी कोमल बच्ची ने कैसे इतना मोटा लंड लिया होगा.. !!

रसिक का लंड शीला की लार से चमक रहा था.. मुठ्ठी मे उसे मोटे मूसल को पकड़े हुए शीला ने कहा "एक नजर इस लंड को तो देख.. ऐसा तगड़ा लंड भला वैशाली कैसे ले पाएगी? उसकी बुद्धि तो घास चरने गई थी पर तेरा दिमाग भी नहीं चला था क्या???"

रसिक: "अब ऊपर वाले ने मुझे ऐसा लंड दिया उसमे मेरी क्या गलती.. !! वैसे आपके भी बबले कितने बड़े बड़े है.. कविता भाभी से तो पाँच गुना ज्यादा बड़े है... !!" शीला के दोनों स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए रसिक ने कहा

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शीला: "मैं समझती हूँ रसिक.. पर जरा सोच.. सायकल पर हाथी को बिठायेंगे तो क्या होगा??"

रसिक: "आप वैशाली को कम मत समझना.. मेरा आधा लंड तो बड़ी आसानी से ले लिया था.. हिम्मत तो उनकी आपसे भी एक कदम ज्यादा है.. हाँ, कविता भाभी बिल्कुल डरपोक है.. जरा सा भी अंदर लेने की कोशिश नहीं की"

शीला: "अंदर डालने से पहले तूने उसकी चाटी थी?"

रसिक: "हाँ भाभी.. चाट चाटकर पूरा छेद गीला कर दिया.. उसके बाद ही अंदर डाला था मैंने.. !!"

रसिक के अंडकोशों को चाटते हुए शीला ने पूछा "तूने ऊपर चढ़कर डाला था क्या?"

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रसिक: "गोदी मे उठाकर.. फिर उन्हें उठाकर मैं खड़ा हो गया.. क्योंकि कविता भाभी और वैशाली को ये देखना था की कितना अंदर गया"

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रसिक का आधा लंड मुठ्ठी मे दबाकर रसिक को दिखाते हुए शीला बोली "क्या इतना अंदर गया था?"

रसिक: "हाँ, लगभग उतना तो गया ही था.. कविता भाभी ने बाकी का आधा लंड पकड़कर रखा हुआ था.. ताकि बाकी का लंड अंदर ना घुस जाएँ.. पर सच कहूँ तो.. उससे ज्यादा अंदर जाने की गुंजाइश भी नहीं थी.. "

शीला: "जाहीर सी बात है.. वैशाली की जवान चूत मे इससे ज्यादा अंदर जाना मुमकिन ही नहीं है.. हाँ, मेरी और अनुमौसी की बात अलग है"

लंड चूसते चूसते शीला ने सब कुछ उगलवा लिया रसिक से.. और उस दौरान.. जब उसके भोसड़े से पर्याप्त मात्रा मे गीलापन टपकने लगा तब वो खड़ी हो गई और रसिक के कंधों पर जोर लगाते हुए उसे नीचे बीठा दिया.. अपने दोनों हाथों से भोसड़े के होंठों को फैलाकर रसिक के मुंह पर रख दिया.. रसिक ने अपनी खुरदरी जीभ से शीला के भोसड़े मे खजाना-खोज का खेल शुरू कर दिया.. भीतर के गरम गुलाबी हिस्से को कुरेद कुरेदकर चाटने लगा. अपनी उंगलियों से शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ भी रहा था..

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शीला की चूत से अब रस की धाराएँ बहते हुए रसिक के पूरे चहरे को तर कर रही थी.. अब रसिक उठा.. शीला के दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर.. उसने चूतड़ों के बीच से शीला के गरम सुराख को ढूंढकर अपने सेब जैसे बड़े सुपाड़े को रख दिया.. एक ही धक्के मे उस गीले भोसड़े ने रसिक के लंड को निगल लिया.. इंजन मे जैसे पिस्टन आगे पीछे होता है.. बिल्कुल वैसे ही, शीला के भोसड़े को धनाधान चोदने लगा रसिक.. शीला तब तक चुदवाती रही जब तक की रसिक के लोड़े के अंजर-पंजर ढीले नहीं हो गए.. !! रसिक के मजबूत लंड से २४ केरेट सोने जैसा शुद्ध ऑर्गजम प्राप्त नहीं कर लिया.. तब तक शीला ने उसे छोड़ा नहीं..

जब उसके भोसड़े ने संतुष्टि के डकार मार लिए.. तब शीला कपड़े पहने और घर जाने के लिए निकली..
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कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..

रसिक के इस बदले बदले से रूप को देखकर शीला को भी ताज्जुब हो रहा था.. वो सोच रही थी.. या तो इसे लोटरी लगी है.. कोई धनलाभ हुआ है.. या तो इसकी दिल की कोई अदम्य इच्छ पूरी हुई है.. छोटा आदमी तो छोटी छोटी बात पर भी खुश हो सकता है.. गरीब इंसान को तो सेकंड-हेंड सायकल भी खुश कर देती है.. पर रसिक किस कारण से इतना खुश लग रहा था वह जानने की बड़ी ही बेसब्री हो रही थी शीला को
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गाड़ी चलाते हुए बोर हो रही कविता ने स्पीकर फोन पर वैशाली को फोन लगाया.. रसिक के साथ जो गुलछर्रे उड़ाये उसके बारे मे वो वैशाली को बतानी चाहती थी.. लेकिन फोन शीला ने उठाया.. मजबूरन कविता को शीला से बात करनी पड़ी.. थोड़ी सी प्राथमिक बातचीत के बाद, शीला ने अपना इन्टेरोगैशन शुरू कर दिया

शीला: "कविता, याद है वो दिन.. जब मैंने तुझे अपने प्रेमी पिंटू, जो की अब मेरा दामाद बनने वाला है, उसके साथ सेटिंग कर के दिया था.. !! यहाँ तक की तू आराम से उसके साथ वक्त बीता सकें इसलिए मैंने पीयूष को अपने दबाने भी दीये थे.. यह भी याद होगा.. की मैंने ही रेणुका को बात कर के पीयूष की जॉब लगवाई थी.. पीयूष की गैर-मौजूदगी मे, मैंने तुझे कई बार चाटकर ठंडा किया था.. सिनेमा हॉल मे वो पिंटू तेरी चूत मे उंगली डाल रहा था तब पीयूष देख न ले इसलिए मैंने तेरे पति को मेरे बबले दबाने दीये थे.. सब याद है या भूल गई?"

कविता को समझ नहीं आ रहा था की पिछली बातें याद दिला कर शीला भाभी अब क्यों एहसान जता रही थी

कविता: "अरे भाभी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो.. !! सब कुछ याद है मुझे.. !!"

शीला: "तो फिर तू कुछ बातें मुझसे छुपा क्यों रही है?? तू पीयूष, पिंटू या मौसम से बातें छुपाएँ, ये मैं समझ सकती हूँ, पर मुझसे क्यों छुपाना पड़ रहा है तुझे? क्या तू जानती नहीं है मुझे... की कितना भी छुपा ले मुझे सब पता चल ही जाता है.. !! जिस शख्स के साथ तुम लोग नाश्ता कर रही हो.. उसके साथ मैं रोज खाना खाती हूँ, यह भूल गई क्या?"

कविता: "साफ साफ बताइए भाभी.. आप क्या कहना चाहती हो?"

शीला: "भेनचोद.. ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर... उस दिन जब मैंने पूछा की तू और वैशाली रात को कहाँ गए थे तब तू झूठ क्यों बोली? चलो वैशाली के सामने तू मुझे सच नहीं बता सकी.. पर बाद मे तो मुझे बता ही सकती थी ना.. !! मुझे पता है की तुम दोनों अपने भोसड़े मरवाने गई थी.. पर तेरे दिमाग मे ये क्यों नहीं आया की कुछ ही दिनों में वैशाली की शादी है.. !! कुछ उंच-नीच हो गई तो.. !! तेरी खुजली मिटाने के चक्कर मे, मेरी बेटी का भविष्य दांव पर लगा दिया तूने.. ????"

कविता: "भाभी, आप सारा दोष मुझे मत दीजिए.. खुजली मेरी नहीं.. वैशाली की चूत में उठी थी.. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ... मैंने तो चुदवाया भी नहीं है.. ऐसा मोटा लँड मेरे छेद मे लेने की हिम्मत नहीं है मेरी, ये तो आप भी जानती हो.. !! वैशाली भी मुश्किल से आधा डलवा पाई थी.. उसने ही जिद की थी.. और मुझे खेत मे ले गई.. मैं तो सिर्फ साथ इसलिए गई थी की वैशाली की मदद कर सकूँ.. ऐसी जगह मैं उसे अकेले जाने देना नहीं चाहती थी.. मैंने तो रसिक का लंड लिया भी नहीं है.. हाँ ओरल सेक्स जरूर किया था पर उससे ज्यादा कुछ नहीं किया मैंने.. !!"

सुनकर शीला स्तब्ध हो गई.. उसकी आँखों के सामने रसिक का असुर जैसा लंड झलकने लगा.. जो लंड शीला और अनुमौसी को भी रुला गया हो.. उस लंड ने वैशाली का क्या हाल कर दिया होगा.. !! मन ही मन वो रसिक को गालियां देने लगी.. रसिक मादरचोद.. मेरी बेटी का घर बसने से पहले ही उझाड़ देगा क्या.. !! साले भड़वे.. तेरा गधे जैसा लंड लेने के बाद.. पहली रात को वैशाली उस पिंटू की मामूली सी नुन्नी से कैसे मज़ा ले पाएगी.. !!

कविता: "चुप क्यों हो गए भाभी? मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा क्या आपको.. !!" चिंतित होकर कविता ने पूछा

शीला: "नहीं यार, मुझे पता है, रसिक का इतना बड़ा है की उसका लेना तेरे बस की बात ही नहीं है.. पर मुझे यह समझ मे नहीं आया की आखिर वैशाली और रसिक का कनेक्शन हुआ कैसे?"

कविता: "भाभी, वैशाली को सब पता चल गया है की आप और मेरी सास उसके लंड के आशिक हो.. और आप तो अभी भी उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो.. मैंने ही बातों बातों में सब बता दिया था उसे.. मेरी सास और रसिक ने उस रात जो साजिश की थी.. उस घटना के बारे में बताते हुए मेरे मुंह से सब निकल गया.. लेकिन वो सब जान लेने के बाद.. वैशाली ने रसिक का लंड देखने की जिद पकड़ ली.. अब रसिक का लंड कोई सिनेमा थोड़े ही है की टिकट लिया और देख लिए.. !! मेरे लाख मना करने के बावजूद वैशाली नहीं मानी.. भाभी, आपकी बेटी भी आप ही की तरह बेहद शौकीन है..!! उस दिन वैशाली खुद दूध लेने उठी और वहीं से सब कुछ शुरू हुआ.. और फिर आप और मदन भैया रेणुका के घर चले गए अदला-बदली का खेल खेलने.. उसी रात वैशाली मुझे खींचकर रसिक के खेत पर ले गई.. " और फिर कविता ने पूरी घटना का विवरण दिया..

शीला ने सब कुछ सुनकर एक गहरी सांस ली और कहा "कविता, तूने तो रसिक और पिंटू, दोनों के लंड देख रखे है.. तुझे इतना भी खयाल नहीं आया की वैशाली को रसिक के महाकाय लंड की आदत लग गई तो वो पिंटू के संग कैसे खुश रह पाएगी?? अरे, जिस लंड को लेने मे, मुझ जैसी अनुभवी को भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है.. उस लंड से तूने वैशाली को चुदने दिया??? खैर, जो हो गया सो हो गया.. रखती हूँ फोन"

शीला को रसिक पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. इस खेल को जल्द से जल्द रोकना पड़ेगा वरना बात हाथ से निकल जाएगी.. वैशाली से यह बात करने मे बेहद झिझक रही थी शीला.. अब एक ही रास्ता था.. सीधे रसिक से ही बात की जाए.. उस सांड को कैसे भी करके रोकना पड़ेगा.. वरना वो शादी से पहले ही वैशाली की चूत फाड़ देगा..!!!

सोचते सोचते शीला सो गई..

दूसरी सुबह, जब रसिक दूध देने आया.. तब रोज की तरह वो शीला के गदराए जिस्म से खेलने लगा.. और शीला ने उसे मना भी नहीं किया.. पर जैसे ही रसिक, शीला का एक बबला बाहर निकालकर चूसने गया, तब शीला ने कहा "रसिक, मुझे तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है.. आज एक घंटे का समय निकाल.. बता, मैं कितने बजे आऊँ तेरे घर?"

रसिक: "दोपहर को आ जाना भाभी.. रूखी भी कहीं बाहर जाने वाली है उस वक्त"

शीला: "एक बजे ठीक रहेगा.. ??"

रसिक: "हाँ भाभी.. थोड़ा टाइम निकालकर आना.. काफी दिन हो गए है भाभी"

दोपहर के एक बजे.. शीला रसिक के घर पर थी.. रसिक सामने बैठा था.. बात को कैसे शुरू की जाए उस कश्मकश मे थी शीला..

शीला: "सुन रसिक.. मुझे कविता ने सब बता दिया है.. तूने दोनों को खेत पर बुलाया था.. और जो कुछ किया.. उसके बारे में बात करने आई हूँ"

रसिक: "भाभी, मैंने सामने से चलकर कुछ नहीं किया.. आपकी बेटी ही जिद कर रही थी.. उसे ही बड़ी चूल थी मुझसे करवाने की.. मैंने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की किसी के साथ.. और कविता के पीछे मैं कितना पागल हूँ ये तो आपको पता ही है.. फिर भी मैंने उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.. ऊपर ऊपर से ही सब कीया था.. !!!"

शीला: "कोई बात नहीं रसिक.. मैं यहाँ तुझे धमकाने या डराने नहीं आई हूँ.. पर यह बताने आई हूँ की थोड़े दिन बाद वैशाली की शादी है.. अब तू ऐसे ही अगर अपने मोटे लंड से वैशाली को चोदता रहेगा, तो वो शादी के बाद किसी काम की नहीं रहेगी.. इसलिए तू मुझसे वादा कर की वैशाली कितनी भी जिद क्यों न करे.. तू ऊपर ऊपर से ही सब करना.. उसे चोदना मत.. !!"

रसिक: "भाभी.. वैशाली कितनी सुंदर है.. ऊपर ऊपर से करने के बाद मैं अपने आप को कैसे काबू मे रख पाऊँगा.. !! और वो तो खुद ही मेरा पकड़कर अंदर डाल देती है.. !!"

शीला: "बेवकूफ, इसलिए तो तुझसे मिलने आई हूँ.. उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है.. पर अब तुझे ध्यान रखना होगा... तू अब से उसे हाथ भी नहीं लगाएगा.. अगर फिर भी तूने कुछ किया.. और वैशाली की शादी में कोई बाधा आई.. तो समझ लेना.. मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा"

बड़े ही क्रोधित स्वर मे शीला ने कहा.. लेकिन रसिक जैसा मर्द, किसी औरत की धमकी को ऐसे ही सुन लेने वालों मे से नहीं था

रसिक: "एक बात मेरी भी ध्यान से सुन लीजिए भाभी.. मुझे धमकाने की कोशिश मत करना.. किसी के बाप से भी नही डरता हूँ मैं.. अब आप कह रही हो तो वैशाली को तो छोड़ो, मैं अब आपको भी कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.. ठीक है.. !! अब खुश.. !!"

शीला: "अरे पागल, मुझे छूने से कहाँ मना कर रही हूँ तुझे.. !! बस वैशाली से दूर रहना"

रसिक: "ठीक है.. जैसी आपकी इच्छा"

शीला: "तो अब मैं जाऊँ?"

रसिक: "कल से दूध देने रूखी आएगी.. साहब को कहना की उससे दूर ही रहें"

शीला: "क्यों? तू नहीं आएगा?"

रसिक: "अगर मैं आऊँगा तो वैशाली मौका देखकर मेरा लंड फिर से पकड़ लेगी.. और फिर मैं मना नहीं कर पाऊँगा"

शीला: "अरे पर दूध तो रोज मैं ही लेती हूँ ना.. !!"

रसिक: "कभी आपको उठने मे देर हो जाए.. या कहीं बाहर गई हो तब वैशाली ही दूध लेने निकलती है.. एक दिन के लिए आप बाहर क्या गई.. यह सारा कांड हो गया.. !!"

शीला: "अब वैशाली की शादी होने तक मैं कहीं नहीं जाने वाली.. तू बेफिक्र होकर दूध देने आना.. और वैसे भी.. शादी से पहले मेहमान आना शुरू हो जाएंगे.. फिर ये सब वैसे भी बंद कर देना पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आप फिक्र मत करना.. आप सोच रही हो, उतना गिरा हुआ नही है ये रसिक.. !!"

शीला: "ठीक है.. तो मैं चलूँ?? और हाँ.. मेरी बात का बुरा मानने की जरूरत नहीं है.. और आज तुझे तेरी भाभी की बबले नजर क्यों नहीं आ रहे? मुझे देखने या छूने से कहाँ मना किया है मैंने?? " खड़े होकर अपने स्तनों को टाइट कर रसिक के सामने पेश करते हुए शीला ने कहा

"अरे क्या भाभी.. आप तो बस आप ही हो.. एक नंबर.. आप जैसा कोई कहाँ हो सकता है भला.. !!! चलिए भाभी.. तो अब मैं अपने काम पर लग जाऊँ?" रसिक ने कहा

"काम पर क्यों?? मेरे शरीर से ही लग जा.. !!" कहते हुए रसिक की कुहनी पर अपने स्तनों को दबाते हुए रसिक को गुदगुदी करने लगी शीला

"सुन भी रहा है.. !! ये भी तो काम ही है.. बाकी सारे काम मेरे जाने के बाद कर लेना.. पहले तेरे सामने आकर जो काम पड़ा हुआ है उसे कर" शीला ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा

शीला की बातों से रसिक नाराज था पर फिर भी शीला ने अपने अनोखे अंदाज मे रसिक के शरीर से अपने भरे भरे स्तनों को दबाकर उसका खड़ा कर दिया.. रसिक का हाथ अपने ब्लाउज के अंदर डालकर वो पाजामे मे हाथ डालकर उसके लंड से खेलती रही.. रसिक ने शीला का एक स्तन बाहर निकालकर चूसना शुरू कीया ही था की तब शीला अपना स्तन छुड़वाकर वो नीचे बैठ गई.. और रसिक का लंड चूसने लगी

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आज लंड चूसते वक्त शीला को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था.. सोच रही थी.. ये वही लंड है जो वैशाली की चूत मे गया होगा.. बाप रे.. बेचारी फूल सी कोमल बच्ची ने कैसे इतना मोटा लंड लिया होगा.. !!

रसिक का लंड शीला की लार से चमक रहा था.. मुठ्ठी मे उसे मोटे मूसल को पकड़े हुए शीला ने कहा "एक नजर इस लंड को तो देख.. ऐसा तगड़ा लंड भला वैशाली कैसे ले पाएगी? उसकी बुद्धि तो घास चरने गई थी पर तेरा दिमाग भी नहीं चला था क्या???"

रसिक: "अब ऊपर वाले ने मुझे ऐसा लंड दिया उसमे मेरी क्या गलती.. !! वैसे आपके भी बबले कितने बड़े बड़े है.. कविता भाभी से तो पाँच गुना ज्यादा बड़े है... !!" शीला के दोनों स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए रसिक ने कहा

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शीला: "मैं समझती हूँ रसिक.. पर जरा सोच.. सायकल पर हाथी को बिठायेंगे तो क्या होगा??"

रसिक: "आप वैशाली को कम मत समझना.. मेरा आधा लंड तो बड़ी आसानी से ले लिया था.. हिम्मत तो उनकी आपसे भी एक कदम ज्यादा है.. हाँ, कविता भाभी बिल्कुल डरपोक है.. जरा सा भी अंदर लेने की कोशिश नहीं की"

शीला: "अंदर डालने से पहले तूने उसकी चाटी थी?"

रसिक: "हाँ भाभी.. चाट चाटकर पूरा छेद गीला कर दिया.. उसके बाद ही अंदर डाला था मैंने.. !!"

रसिक के अंडकोशों को चाटते हुए शीला ने पूछा "तूने ऊपर चढ़कर डाला था क्या?"

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रसिक: "गोदी मे उठाकर.. फिर उन्हें उठाकर मैं खड़ा हो गया.. क्योंकि कविता भाभी और वैशाली को ये देखना था की कितना अंदर गया"

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रसिक का आधा लंड मुठ्ठी मे दबाकर रसिक को दिखाते हुए शीला बोली "क्या इतना अंदर गया था?"

रसिक: "हाँ, लगभग उतना तो गया ही था.. कविता भाभी ने बाकी का आधा लंड पकड़कर रखा हुआ था.. ताकि बाकी का लंड अंदर ना घुस जाएँ.. पर सच कहूँ तो.. उससे ज्यादा अंदर जाने की गुंजाइश भी नहीं थी.. "

शीला: "जाहीर सी बात है.. वैशाली की जवान चूत मे इससे ज्यादा अंदर जाना मुमकिन ही नहीं है.. हाँ, मेरी और अनुमौसी की बात अलग है"

लंड चूसते चूसते शीला ने सब कुछ उगलवा लिया रसिक से.. और उस दौरान.. जब उसके भोसड़े से पर्याप्त मात्रा मे गीलापन टपकने लगा तब वो खड़ी हो गई और रसिक के कंधों पर जोर लगाते हुए उसे नीचे बीठा दिया.. अपने दोनों हाथों से भोसड़े के होंठों को फैलाकर रसिक के मुंह पर रख दिया.. रसिक ने अपनी खुरदरी जीभ से शीला के भोसड़े मे खजाना-खोज का खेल शुरू कर दिया.. भीतर के गरम गुलाबी हिस्से को कुरेद कुरेदकर चाटने लगा. अपनी उंगलियों से शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ भी रहा था..

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शीला की चूत से अब रस की धाराएँ बहते हुए रसिक के पूरे चहरे को तर कर रही थी.. अब रसिक उठा.. शीला के दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर.. उसने चूतड़ों के बीच से शीला के गरम सुराख को ढूंढकर अपने सेब जैसे बड़े सुपाड़े को रख दिया.. एक ही धक्के मे उस गीले भोसड़े ने रसिक के लंड को निगल लिया.. इंजन मे जैसे पिस्टन आगे पीछे होता है.. बिल्कुल वैसे ही, शीला के भोसड़े को धनाधान चोदने लगा रसिक.. शीला तब तक चुदवाती रही जब तक की रसिक के लोड़े के अंजर-पंजर ढीले नहीं हो गए.. !! रसिक के मजबूत लंड से २४ केरेट सोने जैसा शुद्ध ऑर्गजम प्राप्त नहीं कर लिया.. तब तक शीला ने उसे छोड़ा नहीं..

जब उसके भोसड़े ने संतुष्टि के डकार मार लिए.. तब शीला कपड़े पहने और घर जाने के लिए निकली..
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Premkumar65

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कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..

रसिक के इस बदले बदले से रूप को देखकर शीला को भी ताज्जुब हो रहा था.. वो सोच रही थी.. या तो इसे लोटरी लगी है.. कोई धनलाभ हुआ है.. या तो इसकी दिल की कोई अदम्य इच्छ पूरी हुई है.. छोटा आदमी तो छोटी छोटी बात पर भी खुश हो सकता है.. गरीब इंसान को तो सेकंड-हेंड सायकल भी खुश कर देती है.. पर रसिक किस कारण से इतना खुश लग रहा था वह जानने की बड़ी ही बेसब्री हो रही थी शीला को
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गाड़ी चलाते हुए बोर हो रही कविता ने स्पीकर फोन पर वैशाली को फोन लगाया.. रसिक के साथ जो गुलछर्रे उड़ाये उसके बारे मे वो वैशाली को बतानी चाहती थी.. लेकिन फोन शीला ने उठाया.. मजबूरन कविता को शीला से बात करनी पड़ी.. थोड़ी सी प्राथमिक बातचीत के बाद, शीला ने अपना इन्टेरोगैशन शुरू कर दिया

शीला: "कविता, याद है वो दिन.. जब मैंने तुझे अपने प्रेमी पिंटू, जो की अब मेरा दामाद बनने वाला है, उसके साथ सेटिंग कर के दिया था.. !! यहाँ तक की तू आराम से उसके साथ वक्त बीता सकें इसलिए मैंने पीयूष को अपने दबाने भी दीये थे.. यह भी याद होगा.. की मैंने ही रेणुका को बात कर के पीयूष की जॉब लगवाई थी.. पीयूष की गैर-मौजूदगी मे, मैंने तुझे कई बार चाटकर ठंडा किया था.. सिनेमा हॉल मे वो पिंटू तेरी चूत मे उंगली डाल रहा था तब पीयूष देख न ले इसलिए मैंने तेरे पति को मेरे बबले दबाने दीये थे.. सब याद है या भूल गई?"

कविता को समझ नहीं आ रहा था की पिछली बातें याद दिला कर शीला भाभी अब क्यों एहसान जता रही थी

कविता: "अरे भाभी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो.. !! सब कुछ याद है मुझे.. !!"

शीला: "तो फिर तू कुछ बातें मुझसे छुपा क्यों रही है?? तू पीयूष, पिंटू या मौसम से बातें छुपाएँ, ये मैं समझ सकती हूँ, पर मुझसे क्यों छुपाना पड़ रहा है तुझे? क्या तू जानती नहीं है मुझे... की कितना भी छुपा ले मुझे सब पता चल ही जाता है.. !! जिस शख्स के साथ तुम लोग नाश्ता कर रही हो.. उसके साथ मैं रोज खाना खाती हूँ, यह भूल गई क्या?"

कविता: "साफ साफ बताइए भाभी.. आप क्या कहना चाहती हो?"

शीला: "भेनचोद.. ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर... उस दिन जब मैंने पूछा की तू और वैशाली रात को कहाँ गए थे तब तू झूठ क्यों बोली? चलो वैशाली के सामने तू मुझे सच नहीं बता सकी.. पर बाद मे तो मुझे बता ही सकती थी ना.. !! मुझे पता है की तुम दोनों अपने भोसड़े मरवाने गई थी.. पर तेरे दिमाग मे ये क्यों नहीं आया की कुछ ही दिनों में वैशाली की शादी है.. !! कुछ उंच-नीच हो गई तो.. !! तेरी खुजली मिटाने के चक्कर मे, मेरी बेटी का भविष्य दांव पर लगा दिया तूने.. ????"

कविता: "भाभी, आप सारा दोष मुझे मत दीजिए.. खुजली मेरी नहीं.. वैशाली की चूत में उठी थी.. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ... मैंने तो चुदवाया भी नहीं है.. ऐसा मोटा लँड मेरे छेद मे लेने की हिम्मत नहीं है मेरी, ये तो आप भी जानती हो.. !! वैशाली भी मुश्किल से आधा डलवा पाई थी.. उसने ही जिद की थी.. और मुझे खेत मे ले गई.. मैं तो सिर्फ साथ इसलिए गई थी की वैशाली की मदद कर सकूँ.. ऐसी जगह मैं उसे अकेले जाने देना नहीं चाहती थी.. मैंने तो रसिक का लंड लिया भी नहीं है.. हाँ ओरल सेक्स जरूर किया था पर उससे ज्यादा कुछ नहीं किया मैंने.. !!"

सुनकर शीला स्तब्ध हो गई.. उसकी आँखों के सामने रसिक का असुर जैसा लंड झलकने लगा.. जो लंड शीला और अनुमौसी को भी रुला गया हो.. उस लंड ने वैशाली का क्या हाल कर दिया होगा.. !! मन ही मन वो रसिक को गालियां देने लगी.. रसिक मादरचोद.. मेरी बेटी का घर बसने से पहले ही उझाड़ देगा क्या.. !! साले भड़वे.. तेरा गधे जैसा लंड लेने के बाद.. पहली रात को वैशाली उस पिंटू की मामूली सी नुन्नी से कैसे मज़ा ले पाएगी.. !!

कविता: "चुप क्यों हो गए भाभी? मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा क्या आपको.. !!" चिंतित होकर कविता ने पूछा

शीला: "नहीं यार, मुझे पता है, रसिक का इतना बड़ा है की उसका लेना तेरे बस की बात ही नहीं है.. पर मुझे यह समझ मे नहीं आया की आखिर वैशाली और रसिक का कनेक्शन हुआ कैसे?"

कविता: "भाभी, वैशाली को सब पता चल गया है की आप और मेरी सास उसके लंड के आशिक हो.. और आप तो अभी भी उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो.. मैंने ही बातों बातों में सब बता दिया था उसे.. मेरी सास और रसिक ने उस रात जो साजिश की थी.. उस घटना के बारे में बताते हुए मेरे मुंह से सब निकल गया.. लेकिन वो सब जान लेने के बाद.. वैशाली ने रसिक का लंड देखने की जिद पकड़ ली.. अब रसिक का लंड कोई सिनेमा थोड़े ही है की टिकट लिया और देख लिए.. !! मेरे लाख मना करने के बावजूद वैशाली नहीं मानी.. भाभी, आपकी बेटी भी आप ही की तरह बेहद शौकीन है..!! उस दिन वैशाली खुद दूध लेने उठी और वहीं से सब कुछ शुरू हुआ.. और फिर आप और मदन भैया रेणुका के घर चले गए अदला-बदली का खेल खेलने.. उसी रात वैशाली मुझे खींचकर रसिक के खेत पर ले गई.. " और फिर कविता ने पूरी घटना का विवरण दिया..

शीला ने सब कुछ सुनकर एक गहरी सांस ली और कहा "कविता, तूने तो रसिक और पिंटू, दोनों के लंड देख रखे है.. तुझे इतना भी खयाल नहीं आया की वैशाली को रसिक के महाकाय लंड की आदत लग गई तो वो पिंटू के संग कैसे खुश रह पाएगी?? अरे, जिस लंड को लेने मे, मुझ जैसी अनुभवी को भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है.. उस लंड से तूने वैशाली को चुदने दिया??? खैर, जो हो गया सो हो गया.. रखती हूँ फोन"

शीला को रसिक पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. इस खेल को जल्द से जल्द रोकना पड़ेगा वरना बात हाथ से निकल जाएगी.. वैशाली से यह बात करने मे बेहद झिझक रही थी शीला.. अब एक ही रास्ता था.. सीधे रसिक से ही बात की जाए.. उस सांड को कैसे भी करके रोकना पड़ेगा.. वरना वो शादी से पहले ही वैशाली की चूत फाड़ देगा..!!!

सोचते सोचते शीला सो गई..

दूसरी सुबह, जब रसिक दूध देने आया.. तब रोज की तरह वो शीला के गदराए जिस्म से खेलने लगा.. और शीला ने उसे मना भी नहीं किया.. पर जैसे ही रसिक, शीला का एक बबला बाहर निकालकर चूसने गया, तब शीला ने कहा "रसिक, मुझे तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है.. आज एक घंटे का समय निकाल.. बता, मैं कितने बजे आऊँ तेरे घर?"

रसिक: "दोपहर को आ जाना भाभी.. रूखी भी कहीं बाहर जाने वाली है उस वक्त"

शीला: "एक बजे ठीक रहेगा.. ??"

रसिक: "हाँ भाभी.. थोड़ा टाइम निकालकर आना.. काफी दिन हो गए है भाभी"

दोपहर के एक बजे.. शीला रसिक के घर पर थी.. रसिक सामने बैठा था.. बात को कैसे शुरू की जाए उस कश्मकश मे थी शीला..

शीला: "सुन रसिक.. मुझे कविता ने सब बता दिया है.. तूने दोनों को खेत पर बुलाया था.. और जो कुछ किया.. उसके बारे में बात करने आई हूँ"

रसिक: "भाभी, मैंने सामने से चलकर कुछ नहीं किया.. आपकी बेटी ही जिद कर रही थी.. उसे ही बड़ी चूल थी मुझसे करवाने की.. मैंने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की किसी के साथ.. और कविता के पीछे मैं कितना पागल हूँ ये तो आपको पता ही है.. फिर भी मैंने उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.. ऊपर ऊपर से ही सब कीया था.. !!!"

शीला: "कोई बात नहीं रसिक.. मैं यहाँ तुझे धमकाने या डराने नहीं आई हूँ.. पर यह बताने आई हूँ की थोड़े दिन बाद वैशाली की शादी है.. अब तू ऐसे ही अगर अपने मोटे लंड से वैशाली को चोदता रहेगा, तो वो शादी के बाद किसी काम की नहीं रहेगी.. इसलिए तू मुझसे वादा कर की वैशाली कितनी भी जिद क्यों न करे.. तू ऊपर ऊपर से ही सब करना.. उसे चोदना मत.. !!"

रसिक: "भाभी.. वैशाली कितनी सुंदर है.. ऊपर ऊपर से करने के बाद मैं अपने आप को कैसे काबू मे रख पाऊँगा.. !! और वो तो खुद ही मेरा पकड़कर अंदर डाल देती है.. !!"

शीला: "बेवकूफ, इसलिए तो तुझसे मिलने आई हूँ.. उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है.. पर अब तुझे ध्यान रखना होगा... तू अब से उसे हाथ भी नहीं लगाएगा.. अगर फिर भी तूने कुछ किया.. और वैशाली की शादी में कोई बाधा आई.. तो समझ लेना.. मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा"

बड़े ही क्रोधित स्वर मे शीला ने कहा.. लेकिन रसिक जैसा मर्द, किसी औरत की धमकी को ऐसे ही सुन लेने वालों मे से नहीं था

रसिक: "एक बात मेरी भी ध्यान से सुन लीजिए भाभी.. मुझे धमकाने की कोशिश मत करना.. किसी के बाप से भी नही डरता हूँ मैं.. अब आप कह रही हो तो वैशाली को तो छोड़ो, मैं अब आपको भी कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.. ठीक है.. !! अब खुश.. !!"

शीला: "अरे पागल, मुझे छूने से कहाँ मना कर रही हूँ तुझे.. !! बस वैशाली से दूर रहना"

रसिक: "ठीक है.. जैसी आपकी इच्छा"

शीला: "तो अब मैं जाऊँ?"

रसिक: "कल से दूध देने रूखी आएगी.. साहब को कहना की उससे दूर ही रहें"

शीला: "क्यों? तू नहीं आएगा?"

रसिक: "अगर मैं आऊँगा तो वैशाली मौका देखकर मेरा लंड फिर से पकड़ लेगी.. और फिर मैं मना नहीं कर पाऊँगा"

शीला: "अरे पर दूध तो रोज मैं ही लेती हूँ ना.. !!"

रसिक: "कभी आपको उठने मे देर हो जाए.. या कहीं बाहर गई हो तब वैशाली ही दूध लेने निकलती है.. एक दिन के लिए आप बाहर क्या गई.. यह सारा कांड हो गया.. !!"

शीला: "अब वैशाली की शादी होने तक मैं कहीं नहीं जाने वाली.. तू बेफिक्र होकर दूध देने आना.. और वैसे भी.. शादी से पहले मेहमान आना शुरू हो जाएंगे.. फिर ये सब वैसे भी बंद कर देना पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आप फिक्र मत करना.. आप सोच रही हो, उतना गिरा हुआ नही है ये रसिक.. !!"

शीला: "ठीक है.. तो मैं चलूँ?? और हाँ.. मेरी बात का बुरा मानने की जरूरत नहीं है.. और आज तुझे तेरी भाभी की बबले नजर क्यों नहीं आ रहे? मुझे देखने या छूने से कहाँ मना किया है मैंने?? " खड़े होकर अपने स्तनों को टाइट कर रसिक के सामने पेश करते हुए शीला ने कहा

"अरे क्या भाभी.. आप तो बस आप ही हो.. एक नंबर.. आप जैसा कोई कहाँ हो सकता है भला.. !!! चलिए भाभी.. तो अब मैं अपने काम पर लग जाऊँ?" रसिक ने कहा

"काम पर क्यों?? मेरे शरीर से ही लग जा.. !!" कहते हुए रसिक की कुहनी पर अपने स्तनों को दबाते हुए रसिक को गुदगुदी करने लगी शीला

"सुन भी रहा है.. !! ये भी तो काम ही है.. बाकी सारे काम मेरे जाने के बाद कर लेना.. पहले तेरे सामने आकर जो काम पड़ा हुआ है उसे कर" शीला ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा

शीला की बातों से रसिक नाराज था पर फिर भी शीला ने अपने अनोखे अंदाज मे रसिक के शरीर से अपने भरे भरे स्तनों को दबाकर उसका खड़ा कर दिया.. रसिक का हाथ अपने ब्लाउज के अंदर डालकर वो पाजामे मे हाथ डालकर उसके लंड से खेलती रही.. रसिक ने शीला का एक स्तन बाहर निकालकर चूसना शुरू कीया ही था की तब शीला अपना स्तन छुड़वाकर वो नीचे बैठ गई.. और रसिक का लंड चूसने लगी

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आज लंड चूसते वक्त शीला को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था.. सोच रही थी.. ये वही लंड है जो वैशाली की चूत मे गया होगा.. बाप रे.. बेचारी फूल सी कोमल बच्ची ने कैसे इतना मोटा लंड लिया होगा.. !!

रसिक का लंड शीला की लार से चमक रहा था.. मुठ्ठी मे उसे मोटे मूसल को पकड़े हुए शीला ने कहा "एक नजर इस लंड को तो देख.. ऐसा तगड़ा लंड भला वैशाली कैसे ले पाएगी? उसकी बुद्धि तो घास चरने गई थी पर तेरा दिमाग भी नहीं चला था क्या???"

रसिक: "अब ऊपर वाले ने मुझे ऐसा लंड दिया उसमे मेरी क्या गलती.. !! वैसे आपके भी बबले कितने बड़े बड़े है.. कविता भाभी से तो पाँच गुना ज्यादा बड़े है... !!" शीला के दोनों स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए रसिक ने कहा

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शीला: "मैं समझती हूँ रसिक.. पर जरा सोच.. सायकल पर हाथी को बिठायेंगे तो क्या होगा??"

रसिक: "आप वैशाली को कम मत समझना.. मेरा आधा लंड तो बड़ी आसानी से ले लिया था.. हिम्मत तो उनकी आपसे भी एक कदम ज्यादा है.. हाँ, कविता भाभी बिल्कुल डरपोक है.. जरा सा भी अंदर लेने की कोशिश नहीं की"

शीला: "अंदर डालने से पहले तूने उसकी चाटी थी?"

रसिक: "हाँ भाभी.. चाट चाटकर पूरा छेद गीला कर दिया.. उसके बाद ही अंदर डाला था मैंने.. !!"

रसिक के अंडकोशों को चाटते हुए शीला ने पूछा "तूने ऊपर चढ़कर डाला था क्या?"

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रसिक: "गोदी मे उठाकर.. फिर उन्हें उठाकर मैं खड़ा हो गया.. क्योंकि कविता भाभी और वैशाली को ये देखना था की कितना अंदर गया"

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रसिक का आधा लंड मुठ्ठी मे दबाकर रसिक को दिखाते हुए शीला बोली "क्या इतना अंदर गया था?"

रसिक: "हाँ, लगभग उतना तो गया ही था.. कविता भाभी ने बाकी का आधा लंड पकड़कर रखा हुआ था.. ताकि बाकी का लंड अंदर ना घुस जाएँ.. पर सच कहूँ तो.. उससे ज्यादा अंदर जाने की गुंजाइश भी नहीं थी.. "

शीला: "जाहीर सी बात है.. वैशाली की जवान चूत मे इससे ज्यादा अंदर जाना मुमकिन ही नहीं है.. हाँ, मेरी और अनुमौसी की बात अलग है"

लंड चूसते चूसते शीला ने सब कुछ उगलवा लिया रसिक से.. और उस दौरान.. जब उसके भोसड़े से पर्याप्त मात्रा मे गीलापन टपकने लगा तब वो खड़ी हो गई और रसिक के कंधों पर जोर लगाते हुए उसे नीचे बीठा दिया.. अपने दोनों हाथों से भोसड़े के होंठों को फैलाकर रसिक के मुंह पर रख दिया.. रसिक ने अपनी खुरदरी जीभ से शीला के भोसड़े मे खजाना-खोज का खेल शुरू कर दिया.. भीतर के गरम गुलाबी हिस्से को कुरेद कुरेदकर चाटने लगा. अपनी उंगलियों से शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ भी रहा था..

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शीला की चूत से अब रस की धाराएँ बहते हुए रसिक के पूरे चहरे को तर कर रही थी.. अब रसिक उठा.. शीला के दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर.. उसने चूतड़ों के बीच से शीला के गरम सुराख को ढूंढकर अपने सेब जैसे बड़े सुपाड़े को रख दिया.. एक ही धक्के मे उस गीले भोसड़े ने रसिक के लंड को निगल लिया.. इंजन मे जैसे पिस्टन आगे पीछे होता है.. बिल्कुल वैसे ही, शीला के भोसड़े को धनाधान चोदने लगा रसिक.. शीला तब तक चुदवाती रही जब तक की रसिक के लोड़े के अंजर-पंजर ढीले नहीं हो गए.. !! रसिक के मजबूत लंड से २४ केरेट सोने जैसा शुद्ध ऑर्गजम प्राप्त नहीं कर लिया.. तब तक शीला ने उसे छोड़ा नहीं..

जब उसके भोसड़े ने संतुष्टि के डकार मार लिए.. तब शीला कपड़े पहने और घर जाने के लिए निकली..
Bahut hi mast update.
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..

रसिक के इस बदले बदले से रूप को देखकर शीला को भी ताज्जुब हो रहा था.. वो सोच रही थी.. या तो इसे लोटरी लगी है.. कोई धनलाभ हुआ है.. या तो इसकी दिल की कोई अदम्य इच्छ पूरी हुई है.. छोटा आदमी तो छोटी छोटी बात पर भी खुश हो सकता है.. गरीब इंसान को तो सेकंड-हेंड सायकल भी खुश कर देती है.. पर रसिक किस कारण से इतना खुश लग रहा था वह जानने की बड़ी ही बेसब्री हो रही थी शीला को
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गाड़ी चलाते हुए बोर हो रही कविता ने स्पीकर फोन पर वैशाली को फोन लगाया.. रसिक के साथ जो गुलछर्रे उड़ाये उसके बारे मे वो वैशाली को बतानी चाहती थी.. लेकिन फोन शीला ने उठाया.. मजबूरन कविता को शीला से बात करनी पड़ी.. थोड़ी सी प्राथमिक बातचीत के बाद, शीला ने अपना इन्टेरोगैशन शुरू कर दिया

शीला: "कविता, याद है वो दिन.. जब मैंने तुझे अपने प्रेमी पिंटू, जो की अब मेरा दामाद बनने वाला है, उसके साथ सेटिंग कर के दिया था.. !! यहाँ तक की तू आराम से उसके साथ वक्त बीता सकें इसलिए मैंने पीयूष को अपने दबाने भी दीये थे.. यह भी याद होगा.. की मैंने ही रेणुका को बात कर के पीयूष की जॉब लगवाई थी.. पीयूष की गैर-मौजूदगी मे, मैंने तुझे कई बार चाटकर ठंडा किया था.. सिनेमा हॉल मे वो पिंटू तेरी चूत मे उंगली डाल रहा था तब पीयूष देख न ले इसलिए मैंने तेरे पति को मेरे बबले दबाने दीये थे.. सब याद है या भूल गई?"

कविता को समझ नहीं आ रहा था की पिछली बातें याद दिला कर शीला भाभी अब क्यों एहसान जता रही थी

कविता: "अरे भाभी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो.. !! सब कुछ याद है मुझे.. !!"

शीला: "तो फिर तू कुछ बातें मुझसे छुपा क्यों रही है?? तू पीयूष, पिंटू या मौसम से बातें छुपाएँ, ये मैं समझ सकती हूँ, पर मुझसे क्यों छुपाना पड़ रहा है तुझे? क्या तू जानती नहीं है मुझे... की कितना भी छुपा ले मुझे सब पता चल ही जाता है.. !! जिस शख्स के साथ तुम लोग नाश्ता कर रही हो.. उसके साथ मैं रोज खाना खाती हूँ, यह भूल गई क्या?"

कविता: "साफ साफ बताइए भाभी.. आप क्या कहना चाहती हो?"

शीला: "भेनचोद.. ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर... उस दिन जब मैंने पूछा की तू और वैशाली रात को कहाँ गए थे तब तू झूठ क्यों बोली? चलो वैशाली के सामने तू मुझे सच नहीं बता सकी.. पर बाद मे तो मुझे बता ही सकती थी ना.. !! मुझे पता है की तुम दोनों अपने भोसड़े मरवाने गई थी.. पर तेरे दिमाग मे ये क्यों नहीं आया की कुछ ही दिनों में वैशाली की शादी है.. !! कुछ उंच-नीच हो गई तो.. !! तेरी खुजली मिटाने के चक्कर मे, मेरी बेटी का भविष्य दांव पर लगा दिया तूने.. ????"

कविता: "भाभी, आप सारा दोष मुझे मत दीजिए.. खुजली मेरी नहीं.. वैशाली की चूत में उठी थी.. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ... मैंने तो चुदवाया भी नहीं है.. ऐसा मोटा लँड मेरे छेद मे लेने की हिम्मत नहीं है मेरी, ये तो आप भी जानती हो.. !! वैशाली भी मुश्किल से आधा डलवा पाई थी.. उसने ही जिद की थी.. और मुझे खेत मे ले गई.. मैं तो सिर्फ साथ इसलिए गई थी की वैशाली की मदद कर सकूँ.. ऐसी जगह मैं उसे अकेले जाने देना नहीं चाहती थी.. मैंने तो रसिक का लंड लिया भी नहीं है.. हाँ ओरल सेक्स जरूर किया था पर उससे ज्यादा कुछ नहीं किया मैंने.. !!"

सुनकर शीला स्तब्ध हो गई.. उसकी आँखों के सामने रसिक का असुर जैसा लंड झलकने लगा.. जो लंड शीला और अनुमौसी को भी रुला गया हो.. उस लंड ने वैशाली का क्या हाल कर दिया होगा.. !! मन ही मन वो रसिक को गालियां देने लगी.. रसिक मादरचोद.. मेरी बेटी का घर बसने से पहले ही उझाड़ देगा क्या.. !! साले भड़वे.. तेरा गधे जैसा लंड लेने के बाद.. पहली रात को वैशाली उस पिंटू की मामूली सी नुन्नी से कैसे मज़ा ले पाएगी.. !!

कविता: "चुप क्यों हो गए भाभी? मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा क्या आपको.. !!" चिंतित होकर कविता ने पूछा

शीला: "नहीं यार, मुझे पता है, रसिक का इतना बड़ा है की उसका लेना तेरे बस की बात ही नहीं है.. पर मुझे यह समझ मे नहीं आया की आखिर वैशाली और रसिक का कनेक्शन हुआ कैसे?"

कविता: "भाभी, वैशाली को सब पता चल गया है की आप और मेरी सास उसके लंड के आशिक हो.. और आप तो अभी भी उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो.. मैंने ही बातों बातों में सब बता दिया था उसे.. मेरी सास और रसिक ने उस रात जो साजिश की थी.. उस घटना के बारे में बताते हुए मेरे मुंह से सब निकल गया.. लेकिन वो सब जान लेने के बाद.. वैशाली ने रसिक का लंड देखने की जिद पकड़ ली.. अब रसिक का लंड कोई सिनेमा थोड़े ही है की टिकट लिया और देख लिए.. !! मेरे लाख मना करने के बावजूद वैशाली नहीं मानी.. भाभी, आपकी बेटी भी आप ही की तरह बेहद शौकीन है..!! उस दिन वैशाली खुद दूध लेने उठी और वहीं से सब कुछ शुरू हुआ.. और फिर आप और मदन भैया रेणुका के घर चले गए अदला-बदली का खेल खेलने.. उसी रात वैशाली मुझे खींचकर रसिक के खेत पर ले गई.. " और फिर कविता ने पूरी घटना का विवरण दिया..

शीला ने सब कुछ सुनकर एक गहरी सांस ली और कहा "कविता, तूने तो रसिक और पिंटू, दोनों के लंड देख रखे है.. तुझे इतना भी खयाल नहीं आया की वैशाली को रसिक के महाकाय लंड की आदत लग गई तो वो पिंटू के संग कैसे खुश रह पाएगी?? अरे, जिस लंड को लेने मे, मुझ जैसी अनुभवी को भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है.. उस लंड से तूने वैशाली को चुदने दिया??? खैर, जो हो गया सो हो गया.. रखती हूँ फोन"

शीला को रसिक पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. इस खेल को जल्द से जल्द रोकना पड़ेगा वरना बात हाथ से निकल जाएगी.. वैशाली से यह बात करने मे बेहद झिझक रही थी शीला.. अब एक ही रास्ता था.. सीधे रसिक से ही बात की जाए.. उस सांड को कैसे भी करके रोकना पड़ेगा.. वरना वो शादी से पहले ही वैशाली की चूत फाड़ देगा..!!!

सोचते सोचते शीला सो गई..

दूसरी सुबह, जब रसिक दूध देने आया.. तब रोज की तरह वो शीला के गदराए जिस्म से खेलने लगा.. और शीला ने उसे मना भी नहीं किया.. पर जैसे ही रसिक, शीला का एक बबला बाहर निकालकर चूसने गया, तब शीला ने कहा "रसिक, मुझे तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है.. आज एक घंटे का समय निकाल.. बता, मैं कितने बजे आऊँ तेरे घर?"

रसिक: "दोपहर को आ जाना भाभी.. रूखी भी कहीं बाहर जाने वाली है उस वक्त"

शीला: "एक बजे ठीक रहेगा.. ??"

रसिक: "हाँ भाभी.. थोड़ा टाइम निकालकर आना.. काफी दिन हो गए है भाभी"

दोपहर के एक बजे.. शीला रसिक के घर पर थी.. रसिक सामने बैठा था.. बात को कैसे शुरू की जाए उस कश्मकश मे थी शीला..

शीला: "सुन रसिक.. मुझे कविता ने सब बता दिया है.. तूने दोनों को खेत पर बुलाया था.. और जो कुछ किया.. उसके बारे में बात करने आई हूँ"

रसिक: "भाभी, मैंने सामने से चलकर कुछ नहीं किया.. आपकी बेटी ही जिद कर रही थी.. उसे ही बड़ी चूल थी मुझसे करवाने की.. मैंने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की किसी के साथ.. और कविता के पीछे मैं कितना पागल हूँ ये तो आपको पता ही है.. फिर भी मैंने उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.. ऊपर ऊपर से ही सब कीया था.. !!!"

शीला: "कोई बात नहीं रसिक.. मैं यहाँ तुझे धमकाने या डराने नहीं आई हूँ.. पर यह बताने आई हूँ की थोड़े दिन बाद वैशाली की शादी है.. अब तू ऐसे ही अगर अपने मोटे लंड से वैशाली को चोदता रहेगा, तो वो शादी के बाद किसी काम की नहीं रहेगी.. इसलिए तू मुझसे वादा कर की वैशाली कितनी भी जिद क्यों न करे.. तू ऊपर ऊपर से ही सब करना.. उसे चोदना मत.. !!"

रसिक: "भाभी.. वैशाली कितनी सुंदर है.. ऊपर ऊपर से करने के बाद मैं अपने आप को कैसे काबू मे रख पाऊँगा.. !! और वो तो खुद ही मेरा पकड़कर अंदर डाल देती है.. !!"

शीला: "बेवकूफ, इसलिए तो तुझसे मिलने आई हूँ.. उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है.. पर अब तुझे ध्यान रखना होगा... तू अब से उसे हाथ भी नहीं लगाएगा.. अगर फिर भी तूने कुछ किया.. और वैशाली की शादी में कोई बाधा आई.. तो समझ लेना.. मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा"

बड़े ही क्रोधित स्वर मे शीला ने कहा.. लेकिन रसिक जैसा मर्द, किसी औरत की धमकी को ऐसे ही सुन लेने वालों मे से नहीं था

रसिक: "एक बात मेरी भी ध्यान से सुन लीजिए भाभी.. मुझे धमकाने की कोशिश मत करना.. किसी के बाप से भी नही डरता हूँ मैं.. अब आप कह रही हो तो वैशाली को तो छोड़ो, मैं अब आपको भी कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.. ठीक है.. !! अब खुश.. !!"

शीला: "अरे पागल, मुझे छूने से कहाँ मना कर रही हूँ तुझे.. !! बस वैशाली से दूर रहना"

रसिक: "ठीक है.. जैसी आपकी इच्छा"

शीला: "तो अब मैं जाऊँ?"

रसिक: "कल से दूध देने रूखी आएगी.. साहब को कहना की उससे दूर ही रहें"

शीला: "क्यों? तू नहीं आएगा?"

रसिक: "अगर मैं आऊँगा तो वैशाली मौका देखकर मेरा लंड फिर से पकड़ लेगी.. और फिर मैं मना नहीं कर पाऊँगा"

शीला: "अरे पर दूध तो रोज मैं ही लेती हूँ ना.. !!"

रसिक: "कभी आपको उठने मे देर हो जाए.. या कहीं बाहर गई हो तब वैशाली ही दूध लेने निकलती है.. एक दिन के लिए आप बाहर क्या गई.. यह सारा कांड हो गया.. !!"

शीला: "अब वैशाली की शादी होने तक मैं कहीं नहीं जाने वाली.. तू बेफिक्र होकर दूध देने आना.. और वैसे भी.. शादी से पहले मेहमान आना शुरू हो जाएंगे.. फिर ये सब वैसे भी बंद कर देना पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आप फिक्र मत करना.. आप सोच रही हो, उतना गिरा हुआ नही है ये रसिक.. !!"

शीला: "ठीक है.. तो मैं चलूँ?? और हाँ.. मेरी बात का बुरा मानने की जरूरत नहीं है.. और आज तुझे तेरी भाभी की बबले नजर क्यों नहीं आ रहे? मुझे देखने या छूने से कहाँ मना किया है मैंने?? " खड़े होकर अपने स्तनों को टाइट कर रसिक के सामने पेश करते हुए शीला ने कहा

"अरे क्या भाभी.. आप तो बस आप ही हो.. एक नंबर.. आप जैसा कोई कहाँ हो सकता है भला.. !!! चलिए भाभी.. तो अब मैं अपने काम पर लग जाऊँ?" रसिक ने कहा

"काम पर क्यों?? मेरे शरीर से ही लग जा.. !!" कहते हुए रसिक की कुहनी पर अपने स्तनों को दबाते हुए रसिक को गुदगुदी करने लगी शीला

"सुन भी रहा है.. !! ये भी तो काम ही है.. बाकी सारे काम मेरे जाने के बाद कर लेना.. पहले तेरे सामने आकर जो काम पड़ा हुआ है उसे कर" शीला ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा

शीला की बातों से रसिक नाराज था पर फिर भी शीला ने अपने अनोखे अंदाज मे रसिक के शरीर से अपने भरे भरे स्तनों को दबाकर उसका खड़ा कर दिया.. रसिक का हाथ अपने ब्लाउज के अंदर डालकर वो पाजामे मे हाथ डालकर उसके लंड से खेलती रही.. रसिक ने शीला का एक स्तन बाहर निकालकर चूसना शुरू कीया ही था की तब शीला अपना स्तन छुड़वाकर वो नीचे बैठ गई.. और रसिक का लंड चूसने लगी

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आज लंड चूसते वक्त शीला को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था.. सोच रही थी.. ये वही लंड है जो वैशाली की चूत मे गया होगा.. बाप रे.. बेचारी फूल सी कोमल बच्ची ने कैसे इतना मोटा लंड लिया होगा.. !!

रसिक का लंड शीला की लार से चमक रहा था.. मुठ्ठी मे उसे मोटे मूसल को पकड़े हुए शीला ने कहा "एक नजर इस लंड को तो देख.. ऐसा तगड़ा लंड भला वैशाली कैसे ले पाएगी? उसकी बुद्धि तो घास चरने गई थी पर तेरा दिमाग भी नहीं चला था क्या???"

रसिक: "अब ऊपर वाले ने मुझे ऐसा लंड दिया उसमे मेरी क्या गलती.. !! वैसे आपके भी बबले कितने बड़े बड़े है.. कविता भाभी से तो पाँच गुना ज्यादा बड़े है... !!" शीला के दोनों स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए रसिक ने कहा

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शीला: "मैं समझती हूँ रसिक.. पर जरा सोच.. सायकल पर हाथी को बिठायेंगे तो क्या होगा??"

रसिक: "आप वैशाली को कम मत समझना.. मेरा आधा लंड तो बड़ी आसानी से ले लिया था.. हिम्मत तो उनकी आपसे भी एक कदम ज्यादा है.. हाँ, कविता भाभी बिल्कुल डरपोक है.. जरा सा भी अंदर लेने की कोशिश नहीं की"

शीला: "अंदर डालने से पहले तूने उसकी चाटी थी?"

रसिक: "हाँ भाभी.. चाट चाटकर पूरा छेद गीला कर दिया.. उसके बाद ही अंदर डाला था मैंने.. !!"

रसिक के अंडकोशों को चाटते हुए शीला ने पूछा "तूने ऊपर चढ़कर डाला था क्या?"

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रसिक: "गोदी मे उठाकर.. फिर उन्हें उठाकर मैं खड़ा हो गया.. क्योंकि कविता भाभी और वैशाली को ये देखना था की कितना अंदर गया"

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रसिक का आधा लंड मुठ्ठी मे दबाकर रसिक को दिखाते हुए शीला बोली "क्या इतना अंदर गया था?"

रसिक: "हाँ, लगभग उतना तो गया ही था.. कविता भाभी ने बाकी का आधा लंड पकड़कर रखा हुआ था.. ताकि बाकी का लंड अंदर ना घुस जाएँ.. पर सच कहूँ तो.. उससे ज्यादा अंदर जाने की गुंजाइश भी नहीं थी.. "

शीला: "जाहीर सी बात है.. वैशाली की जवान चूत मे इससे ज्यादा अंदर जाना मुमकिन ही नहीं है.. हाँ, मेरी और अनुमौसी की बात अलग है"

लंड चूसते चूसते शीला ने सब कुछ उगलवा लिया रसिक से.. और उस दौरान.. जब उसके भोसड़े से पर्याप्त मात्रा मे गीलापन टपकने लगा तब वो खड़ी हो गई और रसिक के कंधों पर जोर लगाते हुए उसे नीचे बीठा दिया.. अपने दोनों हाथों से भोसड़े के होंठों को फैलाकर रसिक के मुंह पर रख दिया.. रसिक ने अपनी खुरदरी जीभ से शीला के भोसड़े मे खजाना-खोज का खेल शुरू कर दिया.. भीतर के गरम गुलाबी हिस्से को कुरेद कुरेदकर चाटने लगा. अपनी उंगलियों से शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ भी रहा था..

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शीला की चूत से अब रस की धाराएँ बहते हुए रसिक के पूरे चहरे को तर कर रही थी.. अब रसिक उठा.. शीला के दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर.. उसने चूतड़ों के बीच से शीला के गरम सुराख को ढूंढकर अपने सेब जैसे बड़े सुपाड़े को रख दिया.. एक ही धक्के मे उस गीले भोसड़े ने रसिक के लंड को निगल लिया.. इंजन मे जैसे पिस्टन आगे पीछे होता है.. बिल्कुल वैसे ही, शीला के भोसड़े को धनाधान चोदने लगा रसिक.. शीला तब तक चुदवाती रही जब तक की रसिक के लोड़े के अंजर-पंजर ढीले नहीं हो गए.. !! रसिक के मजबूत लंड से २४ केरेट सोने जैसा शुद्ध ऑर्गजम प्राप्त नहीं कर लिया.. तब तक शीला ने उसे छोड़ा नहीं..

जब उसके भोसड़े ने संतुष्टि के डकार मार लिए.. तब शीला कपड़े पहने और घर जाने के लिए निकली..
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Santushti ke dhakar, kya likha hai devar ji
"Rishton Me Haseen Badlav-part 2 started"
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