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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

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पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

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वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


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अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

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वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

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पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

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तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

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पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

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शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..


उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
बहुत ही शानदार और कामुक अपडेट है ! यह अलग बात है स्टोरी कुछ भी समझ नहीं आ रही है ! बस कामुकता भरपूर है !
 

vakharia

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बहुत ही शानदार और कामुक अपडेट है ! यह अलग बात है स्टोरी कुछ भी समझ नहीं आ रही है ! बस कामुकता भरपूर है !
आप बीच के काफी अपडेट्स मिस कर गए है.. इसलिए शायद स्टोरी समझ नहीं आई होगी.. आशा करता हूँ की समय निकालकर इसे पूरा पढ़ने की कोशिश करेंगे.. ♥️ :heart:
 

Sanju@

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कविता घर पहुंची.. घर पर कोई नहीं था.. मम्मी अस्पताल गई हुई थी और पापा ऑफिस थे.. उसने पड़ोसी से चाबी मांगकर घर खोला..

अंदर कमरे में जाकर सब से पहले अपनी साड़ी उतारी.. और सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में, आईने के सामने खड़ी हो गई.. उभरी हुई छाती को देखकर उसे पिंटू का हाथ याद आ गया.. एक के बाद एक उसने ब्लाउस के सारे हुक खोल दीये.. और पेटीकोट का नाड़ा भी खींच लिया.. मायके आकर लड़कियां पहला काम साड़ी बदलकर किसी आरामदायक वस्त्र को पहनने का करती है.. सिर्फ ब्रा और पेन्टी में अपने जिस्म को आईने में निहार रही थी कविता..


पेन्टी पर चूत वाले हिस्से पर चिपचिपे प्रवाही का सूखा हुआ धब्बा था.. उस हिस्से को छूकर कविता ने धीरे से दबाया.. सिनेमा हॉल में हुए ऑर्गजम की निशानी थी वो.. क्लिटोरिस को दबाते ही उसकी चूत में फिर से हरकत होने लगी.. कविता को अपनी चूत से खेलने की इच्छा होने लगी..




आदर्श वातावरण था.. घर पर कोई नहीं था.. आधे घंटे पहले ही अपने प्रेमी संग बिताएं पलों की ढेर सारी यादें थी.. और क्या चाहिए?? कविता ने पेन्टी उतारकर फेंक दी.. और हाथ पीछे ले जाकर ब्रा की क्लिप भी खोल दी.. उसके दूध जैसे गोरे स्तन खुल गए.. कविता को अपने स्तनों पर लाल निशान नजर आए.. जो रसिक के काटने के कारण बने थे.. साले ने कितनी क्रूरता से काटा था.. ये तो अच्छा हुआ की उस रात पीयूष के संग चुदाई और आज पिंटू के संग चुसाई.. अंधेरे में हुई थी.. इसलिए उसके पति या प्रेमी ने ये निशान नहीं देखें.. पिंटू को तो वो फिर भी समझा देती की ये पीयूष की हरकत है.. पर पीयूष को कैसे समझाती??

कविता ने अपनी एक उंगली को मुंह में डालकर चूसा और ठीक से गीला कर अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी.. पिंटू के संग गुजारें उन हसीन पलों को याद करते हुए वो एक हाथ से अपने जिस्म के विविध अंग सहला रही थी.. और दूसरी उंगली से अपने गुप्तांग को रगड़ रही थी..



इस बार का ऑर्गजम जबरदस्त और जोरदार था.. कविता की चूत ने इतना रस बहाया.. की उसे पोंछने के लिए उसे कपड़ा ढूँढना पड़ा.. आखिर उसने अपने पर्स से रुमाल निकाला.. वही रुमाल जिससे उसने पिंटू का वीर्य पोंछा था सिनेमा हॉल में.. चूत साफ करना भूलकर कविता उस वीर्य से सने रुमाल को सूंघने लगी.. और फिर उस रुमाल को चूमकर गले लगा दिया.. और फिर अपनी चूत पर लगा दिया..

काफी देर तक यूं ही नंगी पड़ी रहने के बाद वो खड़ी हुई.. बेग से निकालकर उसने बेहद टाइट केप्री.. और टाइट स्लीवलेस टीशर्ट पहन लिया.. टीशर्ट के नीचे उसने पैडिड ब्रा पहन ली.. जिससे उसके उभारों की साइज़ डबल दिख रही थी.. अपने कपड़ों के ऊपर से स्तनों को एड़जस्ट करते हुए वो मौसम की स्कूटी की चाबी लेकर बाहर आई..

स्कूटी लेकर वो अस्पताल की ओर जाने लगी.. सोसायटी के नुक्कड़ पर चाय की टपरी पर तीन चार लड़के खड़े हुए थे.. कविता की मादक जवानी और टाइट उभारों को वो लोग देखते ही रह गए.. उनकी तरफ देखे बगैर ही कविता तेज गति से निकल गई.. हालांकि उसे पता था की सब की नजर उसपर ही चिपकी हुई थी..

अस्पताल पहुंचते ही वो मौसम के कमरे में गई.. बिस्तर पर लेटी हुई मौसम के हाथ पर सुई लगाई हुई थी और ग्लूकोज का बोतल चढ़ाया जा रहा था.. मौसम को इस हाल में देखकर कविता की आँखें भर आई.. दोनों बहने भावुक हो गई.. मौसम का चेहरा सूख चुका था.. माउंट आबू वाली सारी चंचलता गायब हो चुकी थी.. बहोत ही अस्वस्थ लग रही थी.. बीमारी अच्छे अच्छों की हालत खराब कर देती है..

कविता को देखते ही मौसम खुश हो गई.. वो ज्यादा खुश इस आशा से थी की दीदी के साथ जीजू भी आए होंगे.. उसकी आँखें पीयूष को ढूंढ रही थी पर अफसोस.. उदास हो गई मौसम.. पर कविता को भनक न लगे इसलिए अपने चेहरे के भाव छुपाकर रखें उसने.. कविता ने अपनी मम्मी, रमिला बहन के साथ मौसम की तबीयत को लेकर विस्तृत चर्चा की.. फिर वो जाकर डॉक्टर से भी मिल आई.. डॉक्टर ने कहा की मौसम को मेलेरिया हुआ था.. और अब उसकी हालत स्थिर थी.. एक दो दिन में अस्पताल से डिस्चार्ज दे देंगे.. सुनकर कविता ने चैन की सांस ली.. वापिस मौसम के कमरे में आकर उसने रमिला बहन को घर जाने के लिए कहा.. अब वो जो आ गई थी..

रमिला बहन के जाते ही दोनों बहने बातें करने में व्यस्त हो गई.. कविता ने उसे वैशाली के साथ जो हुआ उसके बारे मी बताया.. फिर कविता ने तरुण को फोन लगाया.. मौसम के मना करने के बावजूद, कविता ने तरुण को अस्पताल बुलाया.. वो जानती थी की तन की बीमारी तो दवाइयों से ठीक हो जाएगा.. मौसम के उदास मन को प्रफुल्लित करने के लिए ही उसने तरुण को बुला लिया था.. वो चाहती थी की दोनों मिलें.. एक दूसरे से प्यार भरी बातें करें.. तो मौसम को अच्छा लगेगा और वो जल्दी ठीक हो जाएगी.. तरुण ने कविता से आज ही वहाँ आ जाने का वादा किया..

वैसे रमिला बहन ने काफी बार मौसम को कहा था की वो तरुण को फोन करें.. पर मौसम ने ही मना कर रखा था.. उसका कहना था की उसकी तबीयत की बात सुनकर, तरुण दौड़ा चला आएगा.. फिर मम्मी को उसकी खातिरदारी करनी पड़ेगी.. बेचारी वैसे ही अस्पताल की दौड़-भाग से परेशान थी.. क्योंकी पापा तो ऑफिस में बिजी थे.. वैसे मौसम के पापा, सुबोधकान्त हररोज शाम को मौसम से मिलने जरूर आते..

मौसम ने एक बात नोटिस की थी.. शाम के टाइम जब फाल्गुनी उसे मिलने आती थी.. तभी पापा भी आ जाते थे.. उसका कारण भी मौसम से अनजान नहीं था.. फाल्गुनी और उसके पापा के संबंधों की याद आते ही.. मौसम शरमा गई.. खास कर वो बात याद आई जब वो वैशाली के साथ पापा के ऑफिस पहुंची थी.. और छुपकर सारा सीन देखा था.. फाल्गुनी घोड़ी बनी हुई थी और पापा पीछे से शॉट लगा रहे थे.. फाल्गुनी के स्तन झूल रहे थे.. और पापा का कडक लोंडा अंदर बाहर हो रहा था.. याद आते ही मौसम ने शर्म से आँखें बंद कर दी..

फाल्गुनी और सुबोधकान्त का अब भी यही मानना था की उनके संबंधों के बारे में मौसम कुछ भी नहीं जानती.. जब सुबोधकांत मौसम से मिलने आते तब.. फाल्गुनी की मौजूदगी में.. उनकी आँखों की शरारत और हवस.. दोनों ही साफ नजर आती मौसम को.. पापा की नजर फाल्गुनी के स्तनों पर ही चिपकी रहती.. पिछले तीन दिनों के मुकाबले मौसम को आज कुछ अच्छा लग रहा था.. वो और कविता अकेले थे इसलिए बातें भी आराम से हो सकती थी..

मौसम: "दीदी.. मैं पिछले तीन दिनों से देख रही हूँ.. यहाँ एक डॉक्टर है.. उम्र पचास के करीब होगी.. उनका चक्कर यहाँ की एक जवान पच्चीस साल की नर्स के साथ चल रहा है.. उम्र में इतना फाँसला होने के बावजूद.. वो लड़की.. अपने से दोगुनी उम्र के मर्द के प्रति कैसी आकर्षित हो गई?" मौसम ने मनघडन्त कहानी सुनाई.. जवान लड़की और बुजुर्ग के बीच संबंधों के बारे में वो अपनी अनुभवी दीदी के विचार जानना चाहती थी.. अब फाल्गुनी और पापा का नाम वो कैसे लेती भला.. !! इसलिए डॉक्टर और नर्स की कहानी सुनाकर फाल्गुनी और पापा के चक्कर का पोस्टमॉर्टम शुरू किया मौसम ने

कविता: "हाँ ये मुमकिन है.. हम सीरीअलों में देखते ही है ना.. कई बार काम उम्र की लड़कियां.. अपने से कई ज्यादा बड़े मर्द के प्यार में पड़ जाती है.. उसका कोई एक ठोस कारण नहीं है.. बहोत से कारण होते है.. !!"

मौसम: "बहोत से कारण?? जैसे की..!!"

कविता: "जैसे की.. सिक्योरिटी.. ज्यादा उम्र के आदमी अक्सर अनुभवी और परिपक्व होते है.. इसलिए उनके आसपास लड़कियों को सलामती महसूस होती है.. कभी कभी मजबूरी इसका कारण होती है.. कुछ लड़कियों को ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उन्हें समझे.. जवान मर्दों में ये गुण अक्सर कम ही देखने को मिलता है.. जब की प्रौढ़ उम्र के अनुभवी मर्दों की समझदारी लड़कियों को आकर्षित करती है.. !!"

कविता ने बड़े प्रेम से समझाया.. उसका आशय यह भी था की भविष्य में मौसम को ये सारी सीख काम आएगी.. कविता से बात करके मौसम को ऐसा लगा मानों उसकी आधी बीमारी दूर हो गई हो.. कई दिनों बाद वो किसी से खुलकर बात कर पा रही थी.. वैसे फाल्गुनी रोज मिलने आती थी.. पर उस वक्त या तो पापा या मम्मी की मौजूदगी के कारण वो ज्यादा बात कर नहीं पाते थे..

फाल्गुनी ने पहले तो मौसम को ये भ्रम में रखा था की उसे सेक्स से बेहद डर लगता है.. पर उस दिन पापा की ऑफ़िस में उसे जिस तरह उछल उछलकर चुदते देखा.. उसके बाद मौसम का ये भ्रम टूट गया.. उससे पहले मौसम यही सोचती थी की पापा ने ही बेचारी फाल्गुनी को अपनी जाल में फँसाया था.. अगर मौसम ने उस दिन सब अपनी आँखों से देखा न होता तो वो हमेशा यही समझती रहती की फाल्गुनी निर्दोष थी और पापा ही हवसखोर थे.. वो सब तो ठीक था.. पर मौसम को ये ताज्जुब हो रहा था की फाल्गुनी और पापा के बीच वैशाली ने कितने आराम से एंट्री कर ली थी.. !! दूसरा.. अगर पापा ने फाल्गुनी को नहीं पटाया था तो क्या फाल्गुनी खुद चलकर उनके पास गई होगी?? नहीं नहीं.. फाल्गुनी इतनी हिम्मत तो नहीं कर सकती.. इस मामले में फाल्गुनी पहले से अनाड़ी थी.. तो इसका मतलब ये हुआ की जरूर पापा ने ही फाल्गुनी को मजबूर किया होगा.. आखिर ये सब शुरू हुआ कैसे होगा? पापा ने जब पहली बार फाल्गुनी को बाहों में लिया होगा तब फाल्गुनी को कैसा महसूस हुआ होगा? उसने विरोध किया होगा या समर्पण? या फिर पापा ने जबरदस्ती की होगी?? जानना तो पड़ेगा.. जानना जरूरी है.. पर किस्से पूछें? फाल्गुनी या पापा से तो पूछ नहीं सकती.. हाँ वैशाली के जरिए जानकारी प्राप्त की जा सकती थी.. वैशाली को ही फोन करती हूँ.. पर उस बेचारी की खुद की हालत अभी ठीक नहीं है.. पर मुझे उसकी तबीयत पूछने के लिए.. और सहानुभूति व्यक्त करने के लिए फोन करना ही चाहिए..

कविता मौसम को विचारों में खोया हुआ देखकर सोच में पड़ गई.. मौसम आज ऐसे सवाल क्यों पूछ रही है? कहीं उसे तो किसी बड़ी उम्र के मर्द के साथ प्यार नहीं हो गया होगा?? हो सकता है.. तरुण से सगाई और अपने प्रेम के बीच की खींचतान के कारण ही तो वो बीमार नहीं हो गई ना.. ??

सोचते सोचते मौसम की आँखें बंद हो गई.. मौसम डिस्टर्ब न हो इसलिए कविता खड़ी होकर बालकनी में गई और उसने पीयूष को फोन किया.. पीयूष ने फोन उठाया और शुरू हो गया

पीयूष: "मायके जाकर तू तो मुझे जैसे भूल ही गई.. कितने फोन किए तुझे? तू ठीकठाक पहुंची या नहीं ये जानने के लिए मैं फोन कर रहा था.. कितनी चिंता हो रही थी मुझे.. !! घर पर किसी ने फोन नहीं उठाया.. तेरा पापा को मोबाइल ट्राय किया तो उन्होंने भी नहीं उठाया.. और तूने भी जवाब नहीं दिया.. मेरे इतने सारे मिसकॉल भी नहीं नजर आए तुझे??"

कविता मन ही मन मुस्कुरा रही थी.. क्या जवाब देती वो पीयूष के सवाल का? ये तो कह नहीं सकती की मैं पिंटू के साथ सिनेमा हॉल में थी इसलिए फोन नहीं उठाया..

कविता: "शांत हो जा जानु.. मैं सारे जवाब दूँगी तुझे.. घर आकर.. बिस्तर पर लेटे लेटे.. चलेगा ना.. !! लव यू.. टाइम पर खाना खा लेना.. शीला भाभी और वैशाली का ध्यान रखना" शरारती अंदाज में जवाब देकर.. पीयूष की बोलती बंद कर दी कविता ने.. और वो भी.. किसी भी सवाल के जवाब दीये बगैर

पीयूष: "हाँ हाँ.. अब मुझे मत सीखा.. और सुन.. तू वक्त रहते घर नहीं लौटी.. तो मैं शीला भाभी के घर रहने चला जाऊंगा.. "

कविता: "हाँ तो चला जा.. वैसे भी मदन भैया को एक सेक्स पार्टनर की जरूरत है.. शीला भाभी तो पूरा दिन वैशाली को संभालने में व्यस्त रहती होगी.. इसलिए बेचारे मदन भैया अकेले पड़ गए होंगे.. तू चला जा उनकों कंपनी देने.. हा हा हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "मुझे क्या खुसरा समझ रखा है तूने? जो मदन भैया के पास गांड मरवाने जाऊंगा.. !! मैं उनके घर गया तो शीला भाभी और वैशाली.. दोनों का गेम बजाकर आऊँगा.. याद रखना तू.. " गुस्से से फोन कट कर दिया पीयूष ने

कविता ने हँसते हँसते फोन पर्स में रख दिया.. स्त्री को एक ऑर्गजम मिल जाए तो उसका नशा दो-तीन दिनों तक रहता है.. चेहरे पर चमक सी रहती है.. और ये तो अपने प्रेमी से प्राप्त हुआ ऑर्गजम था.. उसकी तो बात ही निराली होती है..

एक दिन पहले वो कितनी तनाव में थी !! निःसहाय और बेबस.. जब वो अनुमौसी और रसिक के सिकंजे में फंस गई थी.. पर आज कविता बेहद खुश थी.. बालकनी में खड़े हुए वो मुख्य सड़क पर आते जाते वाहनों को देख रही थी

तीसरे माले की बालकनी से कविता ने देखा.. सड़क के किनारे पापा की गाड़ी आकर खड़ी रही.. और अंदर से फाल्गुनी उतरी.. कविता को इसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगा.. फाल्गुनी उनके घर के सदस्य जैसी थी और पापा अक्सर उसे अपनी गाड़ी में घर या कॉलेज छोड़ने जाते थे..

कविता अंदर कमरे में आई.. उनकी कोई पड़ोसी महिला मौसम की तबीयत पूछने आई थी.. कविता उनसे बातें करने में मशरूफ़ हो गई.. तभी सुबोधकांत कमरे में आए.. उनको देखते ही कविता ने उनके पैर छु लिए.. कविता को आशीर्वाद देते हुए उन्हों ने ससुराल के सारे सदस्यों के बारे मेंन साहजीक पूछताछ की.. और बगल में पड़े स्टूल पर बैठ गए

कविता को ताज्जुब हो रहा था की पापा आ गए.. पर फाल्गुनी क्यों नहीं आई अब तक?? पापा से तो उसे पहले आ जाना चाहिए था.. !! वो तो कब की उतर चुकी थी.. सीधे ऊपर आ सकती थी.. पापा को तो गाड़ी पार्क करनी थी.. पता नहीं कहाँ रह गई.. गई होगी कहीं काम से.. कविता अपने पापा से फाल्गुनी के बारे में पूछना चाहती थी पर उस पड़ोसी महिला की हाजरी में पूछना नहीं चाहती थी..

तभी फाल्गुनी ने कमरे में प्रवेश किया.. कविता को देखकर वो खुश हो गई.. "अरे दीदी.. आप कब आए? कितनी सुंदर लग रही हो आप इन कपड़ों में?"

टाइट टीशर्ट और पैडिड ब्रा की वजह से कविता के स्तन कुछ ज्यादा ही उभरकर बाहर दिख रहे थे.. कविता जान गई की फाल्गुनी का इशारा किस ओर था.. वैसे तो उसने तारीफ ही की थी.. पर पापा की मौजूदगी के कारण वो शरमा गई..



अनजान मौसम ने सवाल किया "कैसे आई तू फाल्गुनी? ऑटो से आई? या पिछली बार की तरह सिटी-बस में?"

"नहीं यार.. सिटी-बस में ही आई.. ऑटो वाला तो पचास से कम में राजी ही नहीं हुआ.. " फाल्गुनी का जवाब सुनकर कविता चोंक गई.. !! उसने अपनी सगी आँखों से फाल्गुनी को पापा की गाड़ी से उतरते हुए देखा था.. हो सकता है की वो सिटी-बस से आई हो.. और पापा ने उसे बस-स्टैन्ड से पीक-अप किया हो.. पर उस रोड पर तो गाड़ी खड़ी रख पाना नामुमकिन है.. ट्राफिक पुलिस वाले किसी को भी वहाँ गाड़ी रोकने नहीं देते..

"आप ऑफिस से सीधे यहाँ आए पापा?" कविता ने सुबोधकांत को ही प्रश्न पूछा

"हाँ बेटा.. आजकल काम का बोझ बहोत ज्यादा है.. अकेले थक जाता हूँ सब कुछ संभालते संभालते.. तू पीयूष कुमार को यहाँ क्यों नहीं भेज देती? वो मेरे साथ हो तो मैं बिजनेस को बहोत आगे तक ले जा सकता हूँ" सुबोधकांत ने उत्तर दिया

पापा ने तो फाल्गुनी को कार में बिठाने के बारे में कुछ कहा ही नहीं और अपनी बिजनेस की बातें लेकर बैठ गए..

"आप बिजनेस में.. मौसम और फाल्गुनी की मदद क्यों नहीं लेते? दोनों पढ़ी लिखी और होनहार है.. जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती तब तक तो वो आप की मदद कर ही सकते है.. !!" कविता की ये बात सुनकर फाल्गुनी की आँखों में चमक और मौसम की आँखों में चिंता के भाव आ गए.. मौसम सोच रही थी की.. दीदी ने अनजाने में ये बोलकर कितनी बड़ी गलती कर दी ये वो नहीं जानती.. उन्हें तो पता भी नहीं है फाल्गुनी और पापा के बारे में.. अगर उन्हें पता चला तो क्या गुजरेगी उन पर?? पर मौसम अभी कुछ भी बॉल पाने की स्थिति में नहीं थी.. वो चुप रही

थोड़ी देर बैठकर सुबोधकांत काम का बहाना बनाकर निकल गए.. और वो पड़ोसी महिला भी चली गई थी.. अब फाल्गुनी, कविता और मौसम.. कमरे में अकेले थे.. कविता को खास ध्यान नहीं गया पर मौसम ने ये नोटिस किया की पापा के जाते ही फाल्गुनी भी उठ खड़ी हुई.. और बालकनी के पास जाकर खड़ी हो गई.. थोड़ी ही देर में वो वापिस आकर अपनी जगह पर बैठ गई..

फाल्गुनी के आते ही.. कविता ने उससे कहा "तू मौसम का ध्यान रख.. और हाँ तुझे जल्दी घर जाना हो तो मुझे फोन कर देना.. मैं आ जाऊँगी.. " कहते हुए कविता निकल गई.. और बाहर अस्पताल के वैटिंग रूम में बैठकर पिंटू से फोन पर चिपक गई..

इस तरफ मौसम ने तकिये के नीचे से फोन निकालकर वैशाली को कॉल किया.. वैशाली ने तुरंत फोन उठाया.. मौसम बीमार है ये बात वैशाली को अनुमौसी से जानने मिली थी.. दोनों ने काफी बातें की.. वैशाली ने शीला से भी मौसम की बात करवाई.. फिर मौसम ने फाल्गुनी को फोन दिया और उसने भी वैशाली के हालचाल पूछें..

शाम ढलने को थी.. फाल्गुनी को घर जाना था.. इसलिए उसने कविता को फोन कर बुला लिया और वो निकल गई..

उस रात अस्पताल मे मौसम के साथ, कविता और सुबोधकांत रुकें थे.. और फाल्गुनी को घर पर रमिला बहन के साथ रहने को कहा था.. रात को कविता और उसके पापा के बीच मौसम की शादी और सगाई को लेकर काफी चर्चा हुई.. देर तक दोनों बाप और बेटी बातें करते रहे.. सुबोधकांत को इस बात की चिंता थी.. की लड़के वाले पंद्रह दिन में सगाइ और एक महीने बाद शादी निपटाना चाहते थे.. पर मौसम की बीमारी के कारण सारा प्लैनिंग बिगड़ गया..

दूसरी सुबह मौसम के रिपोर्ट्स देखकर डॉक्टर ने कहा की उसकी तबीयत अब सुधर रही थी और उसे शाम को डिस्चार्ज किया जाएगा..

एकाध घंटे के बाद तरुण और उसकी माँ अस्पताल आ पहुंचे.. कविता ने उनका बड़े अच्छे से स्वागत किया.. और फिर तरुण की मम्मी को लेकर वो अपने घर की ओर निकल गई ताकि मौसम और तरुण को थोड़ा वक्त अकेले गुजारने के लिए मिलें..

तरुण ने मौसम के सर पर हाथ फेरते हुए कहा "अब कैसी है तबीयत?"

मौसम ने शरमाते हुए कहा "ठीक है.. !!"

तरुण का हाथ मौसम के सर को सहलाता रहा और मौसम के शरीर में शक्ति का संचार होने लगा.. तरुण के स्पर्श से मौसम को बहोत अच्छा लगने लगा.. तभी मौसम के मोबाइल पर पीयूष का फोन आया.. मौसम फोन उठाती उससे पहले ही तरुण ने फोन उठा लिया..

"हैलो" तरुण की आवाज को पीयूष पहचान नहीं सका

"हैलो, मैं मौसम का जीजू बोल रहा हूँ.. जरा मौसम को फोन दीजिए प्लीज.. मुझे उसकी तबीयत के बारे में पूछना है.. "

"ओह.. पीयूष भैया.. मैं तरुण बोल रहा हूँ.. मौसम अभी काफी कमजोर है.. वो बाद में बात करेगी आप से.. ठीक है ना.. !!"

"हाँ हाँ.. कोई बात नहीं.. मौसम को कहना की टाइम मिलें तब मुझे फोन करें.. मुझे तो सिर्फ उसकी तबीयत का हाल पूछना था.. " पीयूष ने फोन रख दिया

रूम के एकांत में पीयूष जीजू की आवाज स्पष्ट सुनाई दी मौसम को.. जीजू के आवाज में जो दर्द छुपा था वो भी पहचान लिया उसने.. पर वो बेचारी क्या कर सकती थी? उसके शरीर और मन पर अब तरुण का सम्पूर्ण अधिकार था.. जीजू के प्रति उसे खिंचाव तो बहोत था.. पर तरुण को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने के बाद उसका हाल सेंडविच जैसा हो गया था.. आँखें बंद कर मौसम अफसोस करती रही और तरुण ने ये समझा की उसके सहलाने के कारण मौसम सो गई..

इस तरफ पीयूष को बहोत गुस्सा आ रहा था.. फोन काटते ही उसने उठाकर फेंक दिया.. अच्छा हुआ की उस वक्त ऑफिस में ओर कोई नजदीक नहीं था.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मौसम उसे इग्नोर कर रही थी.. पुरुष सब कुछ सह लेगा.. पर अपने प्रिय पात्र की अवहेलना बर्दाश्त नहीं करेगा.. हताश होकर उसने मोबाइल और उसकी निकली हुई बैटरी उठाई.. टूटे हुए मोबाइल के हिस्से तो इकठ्ठा कर लिए.. पर इस टूटे हुए दिल का क्या किया जाएँ?? मौसम ने तोड़ कर रख दिया था उसका दिल.. !!

बीमार मौसम.. बिस्तर पर लेटे हुए भी अपने जीजू की तड़प को महसूस कर रही थी.. उसे पता चल गया की जीजू को बहोत बुरा लगा था

"तरुण, मुझे ऑरेंज ज्यूस पीना है.. बाहर से लेकर आ न मेरे लिए प्लीज.. !!"

"तुम बस हुक्म करो.. तेरी सेवा करने के लिए तो इतनी दूर से आया हूँ मैं.. अभी लेकर आया"

जैसे ही तरुण ज्यूस लेने के लिए गया.. मौसम ने पीयूष को फोन किया

पर उसका फोन कहाँ लगने वाला था.. !!! फोन फेंकने के बाद, बैटरी और सिम-कार्ड अलग हो गए थे.. पीयूष का फोन आउट ऑफ कवरेज बता रहा था.. बहोत बार कोशिश करने पर भी जब फोन नहीं लगा तब मौसम ने वोइस मेसेज छोड़ दिया "जीजू, मेरी तबीयत अब अच्छी है.. मैंने आपको फोन ट्राय किया था पर नहीं लगा.. आप मेरी चिंता मत करना.. लव यू.. और हाँ जीजू.. मुझे मेरा वादा याद है.. और वो मैं पूरा करूंगी"

तरुण के आने से पहले उसने मोबाइल से सारे मेसेज डिलीट कर दीये.. और तरुण का इंतज़ार करने लगी.. अब उसे राहत हुई..

थोड़ी ही देर में तरुण ज्यूस के दो ग्लास लेकर लौटा.. एक ग्लास खुद के लिए और दूसरा मौसम के लिए.. ज्यूस पीते पीते तरुण अपने अभ्यास और केरियर के बारे में बता रहा था और मौसम पीयूष की यादों में खोई हुई थी.. मौसम तरुण की बातों से बोर हो रही थी.. वो चाहती थी की तरुण कोई ओर बात करें..

माउंट आबू में जीजू के संग जो पल बिताएं थे.. उसकी याद अब भी मौसम के दिल को झकझोर कर रख देती थी.. और वही यादें उसे बार बार जीजू की ओर आकर्षित कर रही थी.. उसका दिल और जिस्म दोनों पीयूष जीजू के लिए तड़प रहे थे.. मौसम के चेहरे पर ये सोचकर मुस्कान आ गई.. की अगर ऐसा एकांत उसे तरुण के बजाए जीजू के साथ मिल गया होता तो वो क्या करते? लीप किस करते.. स्तन दबाते.. उंगली डालते.. और उनका लंड भी पकड़ने को मिल जाता.. जीजू को वादा निभाने का प्रोमिस तो कर दिया था.. पर उसे निभाएगी कैसे?? कहाँ मिलेंगे वो दोनों? जैसे जैसे तरुण उसके करीब आता गया.. मौसम का अपराधभाव और तीव्र होता गया.. सगाई और शादी के बीच मुश्किल से २० दिनों का अंतर रहने वाला था.. जब जब मम्मी-पापा शादी के मुहूरत को लेकर चर्चा करते.. मौसम अपने जीजू से मिलने के मौके के बारे में मनोमंथन करने लगती.. वो जानती थी की ऐसा करने से वो तरुण और दीदी दोनों का विश्वास तोड़ रही है.. पर जीजू की हरकतें याद आते ही वो इस गुनाह के लिए भी तैयार हो जाती

शाम को सुबोधकांत और फाल्गुनी गाड़ी लेकर आए.. और मौसम को अस्पताल से घर ले जाने के लिए.. फाल्गुनी और सुबोधकांत आगे बैठे थे.. मौसम तरुण के साथ पीछे की सीट पर.. मौसम के ये राज नहीं आया.. फाल्गुनी क्यों पहले ही आगे बैठ गई? उसे पीछे मेरे साथ बैठना था और तरुण को आगे पापा के साथ बैठने देना चाहिए था.. !!

घर आकर मौसम अपने कमरे में जाकर लेट गई.. और बाकी लोग खाना खाने बैठे.. उस वक्त मौसम ने फिर से जीजू को कॉल किया लेकिन अब भी वो नोट रिचेबल बता रहा था.. जीजू ने कहीं कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया?? मौसम ये सोचकर ही डर गई.. इतने लंबे समय तक जीजू का फोन बंद क्यों आ रहा था? अब जीजू से कॉन्टेक्ट कैसे करूँ?

खाना खाने के बाद तरुण और सुबोधकांत बाहर गए.. कविता मौसम के पास आकर बैठ गई

"जीजू का फोन ही नहीं आया अब तक.. एक बार भी उन्हों ने मेरी तबीयत के बारे में नहीं पूछा.. किसी बात से नाराज है क्या? कहीं तुम दोनों के बीच फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हो गया?" मौसम ने कविता से पूछा

"तू पीयूष की बात छोड़.. मायके में आने के बाद मुझे ससुराल का कोई टेंशन नहीं चाहिए.. मैं हूँ ना यहाँ तेरे पास.. फिर तुझे और किसकी जरूरत है?" पिंटू के साथ मेसेज पर चेट करते हुए कविता ने कहा.. अब इसके आगे मौसम क्या बोलती?? निराश हो गई मौसम

आखिर उसने फाल्गुनी को फोन किया.. फाल्गुनी अभी अभी अपने घर पहुंची थी और मौसम का फोन देखकर चिंतित हो गई..

"क्या हुआ मौसम?"

मौसम: "यार एक काम कर.. तू जीजू को फोन लगा न.. मैं कब से ट्राय कर रही हूँ पर उनका फोन लग ही नहीं रहा.. !! मोबाइल न लगे तो लेंडलाइन पर फोन कर और जीजू मिलें तो उन्हें बताना की आप से बात न हो पाई इसलिए मौसम नाराज है.. और उन्हें कहना की मुझे फोन करें"

फाल्गुनी: "ठीक है.. खाना खाकर फोन करती हूँ"

मौसम: "कोई बात नहीं.. आराम से करना.. और फिर मुझे बताना"

अब मौसम के दिल को चैन मिला.. उसे यकीन था की लेंडलाइन पर तो जीजू मिल ही जाएंगे.. पर लेंडलाइन पर मैं भी तो कॉल कर सकती हूँ.. मौसम ने तुरंत फोन लगाया.. फोन अनुमौसी ने उठाया.. यहाँ वहाँ की थोड़ी बातें करने के बाद उसने जीजू के बारे में पूछा

"रुक.. मैं उसे फोन देती हूँ"

"ठीक है आंटी.. !!"

थोड़ी देर बाद मौसी ने ही फोन पर बात की "बेटा.. वो लैपटॉप पर अपनी कंपनी का काम करने में व्यस्त है.. पर उसने कहा है की वो थोड़ी देर बाद तुझे फोन करेगा.. तू अपनी तबीयत का ध्यान रखना.. ठीक है.. !!"

मौसम को गुस्सा आया.. वो यहाँ जीजू के लिए तड़प रही थी और जीजू उसे बात करने के लिए भी नहीं आए.. पीयूष जीजू की नाराजगी का एहसास हो गया उसे.. अब क्या करूँ? देखती हूँ वो फाल्गुनी का फोन उठाते है या नहीं

थोड़ी देर बाद फाल्गुनी का फोन आया उसने कहा की अंकल ने फोन उठाया था.. और उन्हों ने कहा की जीजू सो गए थे.. मोबाइल नहीं लगा उनका

मौसम को फिर से कमजोरी महसूस होने लगी.. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. तरुण से भी वो ज्यादा बात नहीं कर रही थी.. तरुण को लगा की बीमारी के कारण मौसम ऐसा कर रही होगी..

दूसरी सुबह तरुण अपनी मम्मी के साथ वापिस लौट गए.. तरुण मौसम की तबीयत को लेकर चिंतित था..

इस तरफ कविता ने भी पीयूष को फोन करने की बहोत कोशिश की.. पर लगा नहीं.. आखिर घर पर फोन करने पर पता चला की पीयूष का मोबाइल गिरने की वजह से टूट गया था..

कविता मन ही मन पीयूष को गालियां देने लगी.. ऐसे कैसे गिरा दिया फोन? छोटा बच्चा है क्या? एक फोन को नहीं संभाल पाया.. !! अभी ४ महीने पहले ही खरीदा था तीस हजार का फोन.. !! कर दिया नुकसान!! किसी चीज को ठीक से संभालकर रखना आता ही नहीं पीयूष को.. !! बड़बड़ाते हुए कविता घर के अंदर आई.. उसका गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा देखकर मौसम ने पूछा

"क्या हुआ दीदी? क्यों इतना तिलमिला रही हो?"

"अरे यार.. उस बेवकूफ ने फोन तोड़ दिया.. इसलिए बात नहीं हो पा रही है.. !!"

सुनकर मौसम के दिल को सुकून मिला.. चलो असली कारण तो जानने मिला.. शायद जीजू उससे नाराज नहीं थे पर फोन खराब होने की वजह से बात नहीं हो पा रही थी

मौसम: "तो दीदी.. तुम ऑफिस पर फोन क्यों नहीं करती? वहाँ तो बात हो पाएगी"

कविता: "ऐसी भी कोई ईमर्जन्सी नहीं है.. और ऑफिस के नंबर पर फोन करूंगी तो वो भड़केगा मुझ पर.. !!" वैसे कविता का मन तो कर रहा था ऑफिस पर फोन करने का.. शायद पिंटू फोन उठा लें.. !!

पीयूष के कानों में रह रहकर तरुण की आवाज गूंज रही थी.. मौसम को खुद से दूर करने वाला तरुण ही था.. वरना मौसम उससे बात जरूर करती.. अभी तो सगाई भी नहीं हुई और मौसम का मालिक बनकर बैठ गया कमीना.. तरुण के प्रति जबरदस्त नफरत हो गई पीयूष को.. गुस्से में वो ऑफिस से घर के लिए निकल गया.. उसको मन की शांति चाहिए थी.. और इस वक्त मौसम से मिलन के अलावा कोई भी चीज उसे शांत नहीं कर सकती थी

सोसायटी की गली से अंदर जाते ही अपने घर से पहले.. उसने शीला भाभी को घर के बरामदे में झाड़ू मारते हुए देखा.. झुककर झाड़ू लगा रही शीला के दोनों गजब के बड़े स्तन.. और मांसल कमर को देखकर अगर किसी पुरुष की नजर न जाएँ तो उसे अवश्य अपना मेडिकल चेकअप करवा लेना चाहिए..



पीयूष ने सोचा की चलो शीला भाभी से थोड़ी बात-चीत की जाएँ.. मौसम से ध्यान भी बँटेगा.. और दिमाग फ्रेश हो जाएगा.. अगर मदन भैया घर पर नहीं होते तो वो शीला की गोद में सर रखकर अपने सारे दुख उन्हें सुनाता और जी हल्का कर लेता.. मौसम के विचारों से मुक्त होने के लिए पीयूष को शीला भाभी के रूप में जैसे तारणहार मिल गई थी

"अरे पीयूष.. !! कैसे हो?" शीला भाभी ने पीयूष को देखते ही कहा

"ठीक हूँ भाभी, आप कैसे हो?"

"कुछ ठीक नहीं है पीयूष.. वैशाली का हाल देखा नहीं जाता.. बेचारी की पूरी ज़िंदगी तबाह हो गई" व्यथित होकर शीला ने कहा

शीला भाभी को यूं दुखी देखकर पीयूष के कदम अपने आप ही उनके घर की तरफ खींचे चले गए.. वो शीला के घर के बरामदे में गया और झूले पर बैठ गया.. तभी वैशाली घर से बाहर आई.. "ओह पीयूष.. कैसा है तू?" कहते हुए वो सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. वैशाली के चेहरे से चमक गायब थी.. ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर में खून है ही नहीं.. एकदम फीकी फीकी सी.. चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे

शीला ने अचानक झाड़ू लगाना छोड़ दिया, घर के अंदर गई.. और पीयूष को आवाज लगाई.. सुनते ही पीयूष अंदर शीला के पास गया

"हाँ कहिए भाभी.. " शीला की छातियों को देखते हुए पीयूष ने कहा

"वैशाली को इस सदमे से बाहर कैसे निकालूँ? देख उसकी हालत.. मुझ से तो देखा नहीं जाता.. तू कुछ कर ना जिससे की वो वापिस मूड में आ जाएँ.. !!" उदास शीला ने कहा

ये सुनकर मन ही मन पीयूष सोच रहा था.. शीला भाभी मेरी मदद मांग रही है वैशाली को सहारा देने के लिए.. पर उन्हें कहाँ पता है की फिलहाल मैं खुद ही सहारे की तलाश में हूँ.. !!

"जी जरूर.. आप ही बताइए.. कैसे मदद करूँ? आप जो कहोगे मैं करने के लिए तैयार हूँ"

"उसे कहीं गार्डन या रेस्टोरेंट में ले जा.. थोड़ा बाहर घूमेगी तो उसे अच्छा लगेगा और अपने सदमे से उभर पाएगी.. हम तो उसके माँ बाप है.. सलाह और सुझाव देने के अलावा ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उसे जरूरत है दोस्त की.. कविता अभी मायके गई हुई है इसीलिए मुझे तेरी मदद लेनी पड़ रही है.. "

"ठीक है भाभी.. मैं कुछ करता हूँ" कहते हुए पीयूष घर के बाहर निकला

वैशाली कुर्सी पर गुमशुम बैठी हुई थी.. विचारों में खोई हुई सी..

"अरे वैशाली.. मुझे एक दोस्त के घर लैपटॉप देने जाना है.. लैपटॉप बेग का बेल्ट टूट गया है तो मैं उसे बाइक पर अकेले ले नहीं जा सकता.. तू मेरे साथ चलेगी? सिर्फ पीछे बैठना है बेग पकड़कर.. कविता घर पर ही नहीं इसलिए तुझे बोल रहा हूँ.. प्लीज.. !!"

वैशाली का जरा भी मन नहीं था जाने का.. वो मना करना चाहती थी पर बोल न पाई.. उसके पीयूष से संबंध ही कुछ ऐसे थे की वो मना नहीं कर पाई.. हाँ अगर वो किसी काम में व्यस्त होती तो अलग बात थी.. पर फिलहाल वो फ्री थी..

"ठीक है पीयूष.. चलते है.. वैसे भी घर पर बैठे बैठे बोर हो रही हूँ" वैशाली ने कहा "तू घर पहुँच.. मैं थोड़ी देर में ड्रेस चेंज कर के आती हूँ"

उनके इस संवाद को सुन रही शीला खुश हो गई.. मन ही मन वो पीयूष का आभार प्रकट करने लगी.. कितनी आसानी से मना लिया वैशाली को उसने.. !!

वैशाली कपड़े बदलकर बाहर आई.. और शीला को बताया कर पीयूष के घर चली गई.. अनुमौसी के साथ थोड़ी बातचीत करने के बाद वो पीयूष के पीछे लैपटॉप का बेग लेकर बैठ गई

"ठीक से पकड़ना.. अभी मेरी किस्मत थोड़ी ठीक नहीं चल रही.. अभी अभी मेरा मोबाइल टूट चुका है.. !!" फिर से मौसम का खयाल.. हवा के झोंके की तरह.. पीयूष के मन में आ ही गया

"अरे वो कोई छोटी बच्ची है क्या?? जो तू उसे ये सब समझा रहा है!! मोबाइल टूटा होगा तो तेरी गलती से.. उसमें इस बेचारी को क्यों सुना रहा है?? " अनुमौसी ने पीयूष को धमकाया.. वैशाली ये सुनकर हंस पड़ी.. कलकत्ता से लौटने के बाद.. शायद पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी.. अनुमौसी ने उसका पक्ष लिया ये देखकर उसे बहोत अच्छा महसूस हुआ.. सदमे से गुजर रहे किसी भी इंसान को अच्छा लगेगा..

पीयूष ने बाइक स्टार्ट की.. वैशाली पीछे बैठ गई..

पीयूष ने मन में सोचा.. वैशाली से पूछूँ की किसी अन्डर-कन्स्ट्रक्शन साइट की तरफ बाइक ले लूँ?? पर वैशाली को देखकर लग रहा था की वो शायद अभी मज़ाक के मूड में नहीं थी..

बारिश के कारण गड्ढे से भरे रास्ते पर पीयूष ने तेजी से बाइक को दौड़ा दिया.. देखकर शीला ने चैन की सांस ली.. चलो अच्छा हुआ.. ये घर के बाहर तो निकली.. !!

शीला ने घर के अंदर जाकर देखा.. मदन अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था..

"क्या कब से लैपटॉप पर चिपका हुआ है तू? अच्छा सुन.. वैशाली को मैंने पीयूष के साथ बाहर भेजा है.. इसलिए अब कॉम्प्युटर से नजरें हटा और जरा मेरी तरफ भी देख.. अभी घर पर कोई नहीं है.. रात को खाने में क्या बनाउ?" साड़ी का पल्लू हटाकर अपने टाइट बबलों को दिखाते हुए कामुक अंदाज में उसने कहा.. वो बार बार मदन को ये इशारा दे रही थी की घर पर कोई नहीं है.. वो मदन को उत्तेजित कर रही थी..



मदन: "तेरे जो दिल में आए बना दे.. मैं खा लूँगा.. वैसे कुछ ज्यादा भूख नहीं है.. "

शीला मदन के पीछे इस तरह बैठ गई की उसके स्तनों का स्पर्श मदन के कंधों से हो.. और मदन लैपटॉप में क्या कर रहा था वो देखने लगी..

"उस मेरी से चैट कर रहा हूँ" शीला पूछती उससे पहले ही मदन ने बता दिया

"अच्छा.. !!! तभी कब से इस कॉम्प्युटर से चिपका बैठा है.. अब वो अंग्रेज रांड क्या तुझे कॉम्प्युटर स्क्रीन से दूध पिलाएगी?"

"दूध तो तू भी नहीं पीला सकती.. तेरे लिए तो अब ये मुमकिन ही नहीं है"

"वैशाली के जन्म के बाद तूने कहाँ कोई कमी छोड़ी थी मेरा दूध चूसने में.. !!! और अब तो तू दूध के बदले मेरा खून चूसता है वो कम है क्या? और दूध पीला नहीं सकती.. पर तेरा दूध और मलाई निकलवा तो सकती हूँ मैं.. " मदन के लंड पर हाथ रखते हुए बड़े ही कामुक अंदाज में शीला ने कहा



मदन: "शीला.. वैशाली के साथ जो कुछ भी हुआ उसके टेंशन की वजह से.. सेक्स को तो मैं भूल ही गया था.. कितने दिनों से कुछ मन ही नहीं कर रहा.. आज तू कुछ ऐसा कर की मेरी मरी हुई इच्छाएं फिर से जागृत हो जाएँ"

शीला: "ऐसा तो मैं क्या करूँ.. !!! मर्द तो तू है.. जो भी करना है तुझे ही करना होगा"

मदन: "मन तो मेरा बहोत कर रहा है.. पर अभी के हालात देखते हुए मैं सोच रहा था की मेरी ऐसी इच्छा प्रकट करूंगा तो तुझे अच्छा नहीं लगेगा.. और शायद मेरे बारे में तू क्या सोचेगी.. यही सोचकर मैं खामोश हूँ"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ.. पर वैशाली के साथ ऐसा होने के कारां हमने खाना-पीना तो नहीं छोड़ दिया ना.. वैसे ही ये भी एक प्राकृतिक जरूरत ही है.. वैसा समझकर ही हमें स्वाभाविक होकर इसे स्वीकार करना ही होगा.. और किसी बात को लेकर तेरी कोई इच्छा थी तो मुझे बताना चाहिए था ना.. मैं तुझे कैसे भी संतुष्ट करने का प्रयत्न करती.. और तू मुझे एक बार छु लें.. बाद में मेरी इच्छा हो ही जाती है"

मदन: "मेरी कह रही है की वो मेरा लंड चूसना चाहती है.. और बदले में मुझे अपना दूध पिलाना चाहती है" तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखते हुए मदन ने कहा और अपना लंड सहलाता रहा

शीला: "हाँ तो फिर डाल दे इस कॉम्प्युटर की स्क्रीन में अपना लंड.. " मदन को ताना मारते हुए उसने कहा "यहाँ तेरी पत्नी बिना लंड के तड़प रही है.. और तुझे उस मेरी की पड़ी है??" गुस्से में शीला ने लैपटॉप की पावर स्विच दबाकर बंद कर दिया

मदन: "अरे यार, क्या कर रही है तू? ऐसे बंद नहीं करते कभी.. विंडोज़ करप्ट हो जाएगा तो फिर से इंस्टॉल करना पड़ेगा मुझे " नाराज होते हुए उसने कहा

शीला: "अगर तू मेरे साथ अभी कुछ नहीं करेगा तो मैं भी करप्ट हो जाऊँगी.. इतना सेक्सी माल तेरे सामने चुदने के लिए बेकरार खड़ा है और तू कब से इस डिब्बे के साथ चिपका हुआ है.. !!"

मदन: "तू बेकार गुस्सा कर रही है.. बहोत दिन हो गए थे इसलिए चैटिंग करते हुए ठंडा होना चाहता था.. मुझे कहाँ पता था की तू टपक पड़ेगी बीच में.. !! और लैपटॉप का सत्यानाश कर देगी.. !!"

शीला: "और मेरे बदन और उसकी इच्छाओं का सत्यानाश हो रहा है उसका क्या?? तू तो कंप्यूटर में लंड डालकर मेरी को मुंह में देकर झड़ जाएगा.. पर मैं कहाँ जाऊँ? लगता है मुझे भी किसी सब्जीवाले या दूधवाले को ढूँढना ही पड़ेगा.. !!" छाती से पल्लू हटाते हुए मादक स्टाइल से मदन को ललचाते हुए कहा.. पिछले एक घंटे से मेरी के साथ चैट कर रहे मदन का लंड तो तैयार ही था..

अब लैपटॉप को रिस्टार्ट करने में बहोत वक्त लग जाता.. इसलिए मदन ने उसे साइड में रख दिया और शीला को बाहों में भर लिया.. दोनों काफी दिनों से भूखे थे..

"मेरी के साथ जो कुछ भी कर रहा था.. वो सब कुछ मेरे साथ भी कर.. देख.. मेरे बबले भी कितने भारी हो गए है.. तुझे पता है.. जब काफी दिनों तक इन्हें दबाया न जाए.. तब ऐसे ही सख्त और भारी लगते है.. मुझे वज़न लगता है इन छातियों का.. " ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये शीला ने..


ब्रा खुलते ही.. मदमस्त खरबूजों जैसे स्तन बाहर लटकने लगे.. एक इंच लंबी निप्पलें मदन का अभिवादन कर रही थी.. मदन ने शीला के दोनों स्तनों को मसलते हुए कहा

"ओह्ह शीला मेरी जान.. अगर वैशाली के आ जाने का डर नहीं होता तो आज मैं तुझे मेरी के साथ विडिओ-चैट करते हुए चोदता.. यहाँ मैं तेरे बबले मसलता और वहाँ मेरी के थनों से दूध निकलता.. !!"

मदन की जांघ पर बैठते हुए शीला ने कहा "मदन, तुझे दूध से भरे बबले बहोत पसंद है ना.. !! इसीलिए उस अंग्रेज मेरी के पीछे पागल हुआ पड़ा है.. पर वो यहाँ आकर तुझे दूध थोड़े ही पीला पाएगी??"

"आह्ह शीला.. तुझे क्या कहूँ यार.. !! सब पता होने के बावजूद मैं अपने आप पर कंट्रोल ही नहीं कर पाता.. दूध टपकती निप्पलें देखकर मैं होश खो बैठता हूँ.. !!" मेरी की दूध से भरी थैलियों को याद करते हुए मदन शीला की काँखों के नीचे से हाथ डालते हुए उसके स्तनों को दबाता रहा..

बहोत दिनों से भूखी थी शीला.. मदन के स्पर्श ने बेकाबू बना दिया उसे.. मदन के समक्ष अब वो निःसंकोच अपनी इच्छाएं व्यक्त कर रही थी

"ओह्ह मदन.. अब रहा नहीं जाता मुझसे.. तू जल्दी ही कुछ कर.. अभी वैशाली आ जाएगी तो सारा मज़ा खराब हो जाएगा.."

सुनते ही मदन ने शीला को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. शीला की जांघें अपने आप चौड़ी हो गई.. जैसे छोटे बच्चे के आगे निवाला रखते ही उसका मुंह खुल जाता है.. बिल्कुल वैसे ही

नीचे झुककर शीला की भोस को चूमते हुए शीला मचल उठी.. "आह्ह मदन.. !!"



शीला की रग रग से वाकिफ मदन ने चाट चाटकर भोसड़े को गीला कर दिया.. और फिर उसके चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. शीला का भोसड़ा ऐसे उभर गया जैसे दुनिया के सारे लंड एक साथ लेना चाहता हो.. शीला के भोसड़े का विश्वरूप दर्शन देखकर मदन भी बेचैन हो गया.. दोनों उंगलियों से शीला की भोस के वर्टिकल होंठों को चौड़ा कर अंदर के गुलाबी भाग को देखता ही रहा.. जैसे चेक कर रहा हो की उसकी नामौजूदगी में अंदर कितने लंड गए थे?? अपनी उंगलियों को गीली करते हुए मदन ने दो उंगलियों को शीला के गरम तंदूर जैसे छेद में डाल दी.. सिहर उठी शीला




शीला और मदन की सेक्स लाइफ इतनी उत्कृष्ट होने का एक कारण यह भी था की चुदाई के दौरान वो दोनों खुलकर बातें करते थे.. ऐसी नंगी बातों से दोनों को एक जबरदस्त किक मिलती थी.. और दोनों जंगलियों की तरह एक दूसरे को भोगते थे.. अपनी विकृतियों को जीवनसाथी के सामने निःसंकोच व्यक्त कर पाना.. हर किसी के नसीब में नहीं होता.. मदन ने भी काफी मेहनत के बाद शीला को इस तरह तैयार किया था.. वरना भारतीय स्त्री के मन में क्या क्या विकृत इच्छाएं है ये ९९% पतियों को पता ही नहीं होता.. !!

जैसे मर्दों की कई अदम्य इच्छाएं होती है.. वैसे औरतों के मन में भी कई ऐसी गुप्त कामेच्छाएं दबी पड़ी होती है.. जो अगर वो अपने पति को बताएं तो वो सुनकर ही बेहोश हो जाएँ.. मदन ने ये साहस किया था.. उसने अपनी पत्नी को पूर्णतः समझा था.. अपनी पत्नी की विकृत इच्छाओं का उसने स्वीकार किया था.. उसके चारित्र के बारे में गलत सोचें बगैर.. हर किसी के बस की बात नहीं है.. अगर पत्नी ग्रुप सेक्स की बात करें तो सुनकर पति को कैसा सदमा लगेगा? या फिर पार्टनर चेंज करने की बात अपनी पत्नी के मुंह से सुनकर कौन सा पति नहीं चौंकेगा?

रास्ते से गुजरते वक्त.. राह पर खड़े गधे के काले विकराल लंड को लटकता हुआ अहोभाव से देखने के बाद पत्नी जब रात को चुदाई के दौरान उस घटना का उल्लेख करें तब ज्यादातर मूर्ख पति यही सोचते है की उसकी पत्नी को लंबा और तगड़ा लंड लेने की ख्वाहिश है और वो उसके लंड से संतुष्ट नहीं है.. जब की मदन ये सोचता था की मेरी पत्नी कितनी हॉट है जो किसी प्राणी के अवयव के बारे में बात करते हुए सेक्स के दौरान एक्साइट हो रही है.. !! इसीलिए तो वो दोनों बेखौफ होकर अपनी विचित्र से विचित्र और विकृत से विकृत इच्छाओं को प्रकट करने से हिचकिचाते नहीं थे.. पति पत्नी के बीच पारदर्शिता का ये सब से उत्कृष्ट उदाहरण है.. शीला चुदाई करते हुए ऐसे ऐसे विचार प्रकट करती की सुनकर ही मदन का लाँड़ दोगुना सख्त हो जाता.. मदन भी सोचता की जब ये सब सुनकर मुझे इतना आनंद आ रहा है तो क्यों बेवजह पत्नी पर शक करके अपना मज़ा खराब करूँ??

शीला और मदन जब अकेले होते थे तब सेक्स से संलग्न किसी भी तरह की बात करने में शर्म महसूस नहीं करते थे.. किसी भी व्यक्ति को ईर्ष्या हो जाएँ ऐसा सुंदर सहजीवन व्यतीत कर रहे थे दोनों.. उत्कृष्ट सहजीवन जीने के लिए सुंदर पात्र की जरूरत नहीं होती.. बल्कि विकृत इच्छाओं की.. और उसे व्यक्त करने की आजादी होने की जरूरत होती है.. पत्नी कितनी भी सुंदर क्यों न हो.. अगर वो बेडरूम में भी वस्त्र उतारने से कतराती हो.. या फिर जब उसके हाथ में लंड हो तब.. सब्जियों के बढ़े हुए दाम.. और कल दूध टाइम पर आएगा या नहीं.. ऐसी बातें करती हो.. तब पात्र की सुंदरता निरर्थक बन जाती है.. भावनात्मक जुड़ाव के लिए सुंदरता मायने नहीं रखती..

पता नहीं क्यों.. पर मैंने ये अनुभव किया है की अति-सुंदर औरतों में कामुकता बहोत ही कम होती है.. स्त्री इतनी सुंदर हो की देखते ही लंड खड़ा हो जाए पर वो मुंह में लंड लेना नहीं चाहती.. चूत में डालो तो भी बार बार कहेगी की मुझे दर्द हो रहा है.. उससे तो अच्छा कम सौन्दर्य वाली स्त्री हो पर काम-कर्म में अपने मर्द को योग्य साथ दें.. ऐसी स्त्री लाख गुना बेहतर होती है.. पुस्तक दिखने में कितना सुंदर है ये मायने नहीं रखता.. अंदर लिखी कहानी कितनी रोचक है.. ये ज्यादा महत्वपूर्ण होता है.. !!

"मदन.. चल हम कहीं अकेले घूमने चलते है.. किसी मस्त जगह.. मुझे मुक्त मन से ज़िंदगी जीना है.. बिंदास होकर.. "उसका भोसड़ा चाट रहे मदन के सर के बाल पकड़कर खींचते हुए शीला ने कहा "आह्ह.. ये समाज और सोसायटी के नखरों से तंग आ गई हूँ मैं.. कहीं ऐसी जगह ले चल की जहां हमें कोई जानता न हो.. और हम बिना किसी शर्म या बंधन के जीवन जी सकें.. आह्ह मदन.. !!"

मदन को पता था की जब जब शीला दिन में चुदवाती तब बेकाबू होकर अनाब-शनाब बकने लगती थी.. कभी कभी शीला की ये सब व्यभिचारी बकवास सुनकर मदन को धक्का भी लगता.. पर वो ये सोचकर अपने आप को मनाता की पुरानी गाड़ी में दो पेसेन्जर ज्यादा बैठ भी गए तो क्या फरक पड़ता है!! मैंने भी तो वहाँ विदेश में मेरी के संग गुल खिलाए है.. !! और शीला मुझे सुख देने में कभी पीछे नहीं हटती.. यह सोचकर मदन शीला की बातों का बुरा न मानता.. और उसे सहकार भी देता..

"हाँ शीला.. मैं भी तुझे ऐसी किसी जगह ले जाना चाहता हूँ.. जहां हमें कोई न जानता हो.. मैं तो तुझे रंडी बनाकर बीच बाजार खड़ा करूंगा.. तू धंधा करें और मैं बैठकर पैसे गिनूँ.. ओह्ह.. !!" शीला को खुश करने के लिए मदन ने भी अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा दीये

"ओह्ह मदन.. मैं तेरी रंडी ही तो हूँ.. मुझे एक साथ आठ-दस लोगों से चुदवाने की बहोत इच्छा है.. आह्ह जल्दी जल्दी चाट मदन.. अब रहा नहीं जाता.. घुसेड़ दे अपना लोडा अंदर.. और चोद दे मुझे.. आह्ह.. ला उससे पहले तेरा लंड चूस लूँ.. कितने दिन हो गए इसे मुंह में लिए हुए!! " शीला उठी और मदन को धक्का देकर बेड पर गिराते हुए उसके लंड पर कब्जा कर लिया.. अद्भुत उत्तेजना के साथ शीला ने मदन को मुख-मैथुन का आनंद देने की शुरुआत की.. शीला की इन गरम हरकतों को देखकर मदन सोच रहा था.. शीला की गर्मी के आगे मेरी का तो कोई मुकाबला नहीं है.. मेरी लंड चूसने में इतनी ऐक्टिव कभी नहीं थी..

मदन का पूरा लंड निगलकर उसके आँड़ों को मुठ्ठी में पकड़कर इतने जोर से शीला ने दबाया की मदन दर्द से कराह उठा.. वो सोच रहा था की शीला की हवस एक दिन उसकी जान ले लेगी..



"आह्ह.. जरा धीरे से कर, शीला.. " शीला को रोकते हुए मदन ने कहा..

शीला ने लंड मुंह से निकाला और छलांग लगाकर मदन पर सवार हो गई.. लंड का चूत के अंदर सरक जाना तो तय ही था.. पूरा लंड एक धक्के में अपने भोसड़े में ग्रहण करते हुए शीला कूदने लगी.. "आह्ह आह्ह.. ओह्ह ओह्ह" की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी.. इन बदहवास धक्कों से मदन के लंड ने कुछ ही देर में पानी छोड़कर शीला के भोसड़े को पावन कर दिया.. पर जब तक शीला की आग नहीं बुझती वो मदन को छोड़ने वाली नहीं थी.. मदन के स्खलित होने के बाद भी करीब पाँच मिनट तक वो लंड पर उछलती रही.. जब तक उसके भोसड़े ने अपनी सारी खुजली, चिपचिपे प्रवाही के रूप में बाहर बहा न दी तब तक वो रुकी नहीं..



"ओह्ह चोद मुझे.. साले ढीले लंड.. इतनी जल्दी झड़ गया.. आह्ह.. ओह्ह.. आह्ह.. मैं भी गईईईईई........!!!!" कहते हुए वो निढाल होकर मदन की छाती पर गिर गई.. एक सुंदर ऑर्गजम प्राप्त कर शीला बेहद खुश हो गई थी..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है
 

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वैशाली और पीयूष बाइक पर जा रहे थे.. पीयूष बातें कर रहा था पर वैशाली जवाब नहीं दे रही थी.. वो चुपचाप पीछे की सीट पर बैठी रही.. पीयूष कैसे भी वैशाली से संवाद स्थापित करना चाहता था पर वो कुछ बोल ही नहीं रही.. उसकी खामोशी को तोड़ने के लिए उसने मज़ाक भी किया और उसे गुस्सा भी दिलाया.. पर वो मौन ही रही..

आखिर पीयूष का रफ ड्राइविंग देखकर उसने अपना मौन तोड़ा..

"ओर थोड़ा फास्ट चला.. कम से कम इस ज़िंदगी से तो छुटकारा मिलें.. " निराश वैशाली ने कहा

पीयूष: "अरे यार.. कैसी अशुभ बातें कर रही थी.. तुझे अभी मारना थोड़े ही है.. अगर तेरी किस्मत में मौत लिखी होती तो आत्महत्या की कोशिश के बाद तू कैसे बच जाती?? मैं तो इसलिए ऐसे चला रहा हूँ क्यों की मुझे मरना है" मज़ाक करते हुए पीयूष ने कहा.. वैशाली को बोलते हुए देख वो खुश हुआ..

बेफिक्री से बाइक को तेज चलाते हुए वो तेजी से ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर जा रहा था.. अचानक धड़ाम से बाइक एक खड्डे में गिरा पर पीयूष ने कंट्रोल कर लिया इसलिए वे दोनों गिरे नहीं.. वैशाली ने पीयूष का कंधा पकड़ लिया वरना वो जरूर गिर पड़ती..

"क्या कर रहा है तू? कैसे बाइक चला रहा है यार.. !! अभी हम दोनों मर जाते.. !!" वैशाली ने परेशान होते हुए कहा

पीयूष: "ऑफ कोर्स तुझे मारने के लिए.. अभी अभी तो तूने कहा.. की ज़िंदगी से छुटकारा चाहिए तुझे.. अब फट गई तेरी??"

वैशाली: "डर नहीं रही.. पर चिंता तो होगी ना.. !!"

पीयूष: "ओह.. क्या बात है.. !! मतलब मेरी चिंता करने वाला भी दुनिया में कोई है.. !!"

वैशाली: "ज्यादा रोमियोगिरी मत कर.. और सीधे सीधे बाइक चला.. " पीयूष को धमकाते हुए उसने कहा.. हम-उम्र दोस्त कितनी आसानी से एक दूसरे को किसी भी सदमे से उभरने में मदद कर सकते है.. !!

एक कॉफी शॉप के पास पीयूष ने बाइक रोक दी.. वैशाली चुपचाप उतर गई.. दोनों अंदर गए.. और एक टेबल पर बैठ गए..

एक वेटर ने आकर कहा "सर, वहाँ कॉर्नर सीट भी खाली है.. और कपल रूम भी अवेलेबल है.. सिर्फ 300 रुपये एक्स्ट्रा"

"ओके ओके.. थेंक्स.. पर हम कपल नहीं है" पीयूष ने हँसते हँसते कहा

"शरमाइए मत सर.. एकदम सैफ है.. और यहाँ आने वाले ज्यादातर कपल होते भी नहीं है.. " वेटर ने पीयूष को आँख मारते हुए कहा

"बहुत हुआ.. अब मुंह बंद कर.. और चलता बन.. एक बार मना किया ना तुझे?" पीयूष ने गुस्से से कहा

"ओके ओके.. सॉरी सर.. " वेटर चला गया

"साले, कैसे कैसे मार्केटिंग करते है!! भाई बहन को भी कपल समझ ले, ये लोग..!!" पीयूष ने कहा

"हम दोनों भाई बहन है क्या?" वैशाली ने सवाल किया

"अरे यार.. मैंने तो बस उदाहरण के रूप में कहा.."

"तो फिर ऐसा कहना चाहिए था की पड़ोसी को कपल बना दिया"

"तुझे जैसा ठीक लगे.. तू बचपन से ऐसी ही है.. हमेशा अपनी बात को सच साबित करना चाहती है.. " बचपन की बात सुनते ही वैशाली थोड़ी सी जज्बाती हो गई पर उसे अच्छा लगा

पीयूष: "अब मैं जो भी कह रहा हूँ वो ध्यान से सुन.. मैं तुझे वयस्क बुजुर्ग लोगों की तरह सलाह नहीं दूंगा.. पर एक दोस्त होने के नाते बता रहा हूँ.. तेरे साथ जो कुछ भी हुआ वो ठीक नहीं हुआ.. पर अब जो हो गया सो हो गया.. तू कितनी भी उदास होकर रहेगी.. उससे तेरा भूतकाल बदलने वाला नहीं है.. और ना ही उस चूतिये को इससे कोई फरक पड़ेगा.. वो साला तो उस रोजी की बाहों में पड़े पड़े बिस्तर गरम कर रहा होगा.. फिर तू क्यों उसे याद करके अपनी ज़िंदगी खराब कर रही है.. !!"

कॉफी के घूंट लगाते हुए पीयूष ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाई.. "तू यहाँ से गई तब कितनी सुंदर और खुश लग रही थी.. तेरा चेहरा खिले हुए गुलाब जैसा था.. और अब देख अपना चेहरा आईने में?? मैं ये नहीं कह रहा की जो हुआ उसका तुझे दुख नहीं हुआ होगा.. बोलना आसान है पर जिस पर गुजरती है वही असलियत जानता है.. ये मैं समझता हूँ.. पर अगर मेरी बातों पर गौर करेगी तो तुझे समझ में आएगा.. तू अपने मन, शरीर और अपने माता-पिता को क्यों दुखी कर रही है?? ये तेरी जवानी के सामने.. एक नहीं हजार संजय तेरे कदमों में गिरने के लिए तैयार हो जाएंगे.. ऐसा कातिल हुस्न है तेरा.. " कहते कहते पीयूष ने वैशाली का हाथ पकड़ लिया.. वैशाली ने उसे रोका नहीं

वो वेटर फिर से टेबल के पास आकर बोला "सर, आपको अगर प्राइवसी चाहिए तो 300 रुपये खर्च कर दीजिए.. पर ऐसे टेबल पर ही शुरू मत हो जाइए.. यहाँ ओर कस्टमर भी है आस पास.. जरा ध्यान रखिए"

"ओके ओके.. आई एम सॉरी" सज्जनता पूर्वक पीयूष ने माफी मांगी..

वैशाली ने उस वेटर से पूछा "कपल रूम कहाँ है?" सुनते ही पीयूष चोंक उठा

"आइए मैडम.. मैं आपको दिखाता हूँ.. सर से तो ज्यादा आप फॉरवर्ड हो" वैशाली की तारीफ करते हुए वो वेटर उन्हें एक कमरे तक ले गया.. एक छोटी सी चेम्बर थी.. वैशाली अंदर गई और पीयूष भी उसके पीछे पीछे अंदर गया..

"अच्छा सुनो.. आधे घंटे बाद दो प्लेट समोसे ले कर आना.. और तब तक हमें डिस्टर्ब मत करना.. " वैशाली ने वेटर से कहा

"चिंता मत कीजिए मैडम.. आप को कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा.. बस जाते जाते मुझे टिप जरूर दीजिएगा.. !!" कहते हुए वेटर खुश होकर चला गया..

पीयूष और वैशाली दोनों बेड पर बैठ गए..

पीयूष ने अपनी बात आगे बढ़ाई "क्या तुझे नहीं लगता की संजय को भूलकर तुझे आगे बढ़ना चाहिए? कब तक बीती हुई बातों को याद करके रोती रहेगी? जो हो गया उसे भूल कर.. अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर.. कहीं जॉब जॉइन कर ले.. अच्छा लड़का ढूंढ.. ऐसा लड़का जो ना सिर्फ तेरे जिस्म को बल्कि तेरे दिल को भी चाहें.. ऐसा लड़का मिलते ही बिना वक्त गँवाए उसे आई लव यू बोल दे.. और ये सुनिश्चित कर की वो तुझे खुश रखें.. खुश रहने के लिए खुश होने का इरादा भी जरूरी होता है.. तेरी इस जवानी का उपयोग कर.. तेरी सुंदरता से पुरुषों को अपनी उंगलियों पर नचा..ज्यादातर मर्द इसी लायक होते है.. अगर तूने ऐसा नहीं किया तो फिर से कोई संजय आकर तुझे बर्बाद कर देगा.. तुझे इस्तेमाल करके फेंक देगा.. तुझे क्यों नींद की गोलियां खानी पड़ीं?? तूने ऐसा क्यों कुछ नहीं किया की संजय को खुद गोलियाँ खानी पड़ें??" एक सांस में बहोत कुछ बोल गया पीयूष

ये सुनकर वैशाली के चेहरे की रेखाएं बदलने लगी.. जैसे जैसे पीयूष की बातें उसके दिमाग में उतरती गई वैसे वैसे उसके चेहरे पर चमक आने लगी..

थोड़ी देर के लिए चेम्बर में सन्नाटा छाया रहा.. विचारों में डूब गई वैशाली.. वैशाली ने सामने रखे ग्लास से पानी पिया.. चेहरे पर उदासी अब भी बरकरार थी पर पानी पीने से गीले हो चुके होंठ बहोत ही सुंदर लग रहे थे..

काफी देर तक जब वैशाली ने कुछ नहीं कहा तब पीयूष बोला "मेरी बातों का बुरा मान गई क्या?" पीयूष ने फिर से वैशाली का हाथ पकड़ लिया.. शायद वैशाली को ये पसंद न आयें.. ये सोचकर उसने हाथ छोड़ दिया.. उसकी आँखों में आँखें डालकर अपना खोया हुआ आत्मविश्वास ढूंढ रहा था पीयूष.. वैशाली की आँखों में दृढ़ निश्चय के भाव देखकर पीयूष की आँखों में चमक सी आ गई

वैशाली जैसे मन ही मन में तय कर लिया था की.. बस, अब बहोत हुआ.. अब तक की ज़िंदगी तो संजय ने तबाह कर दी थी.. पर अब आगे के जीवन को मैं बर्बाद नहीं होने दूँगी.. वैशाली के भावों में आ रहे सकारात्मक बदलाव को पीयूष आश्चर्यसह देखता ही रहा

वैशाली का दिमाग तेजी से चल रहा था,. वो सोच रही थी.. मैंने संजय को अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और फिर भी उसने मुझे धोखा दिया.. !! वो चूतिया रोजी को चोदकर आता था.. और उस कमीनी रोजी की चूत के पानी से गीला लंड, साला मेरे मुंह में डालता था.. !! छी.. मादरचोद साला.. वैशाली के चेहरे पर क्रोध की रेखाओं को देखकर पीयूष समझ गया की वो संजय को याद कर रही थी

अब वैशाली ने सामने से पीयूष का हाथ पकड़ लिया.. निःसंकोच होकर.. और उसकी हथेली को चूम लिया.. चेम्बर के अंदर जल रहे लाल रंग के बल्ब की हल्की रोशनी में चमक रहे पीयूष के हेंडसम चेहरे को देखते हुए वैशाली ने कहा "तेरी बात सौ फीसदी सच है.. जो हो गया है उसे याद करके मैं और दुखी होना नहीं चाहती हूँ.. पर क्या करूँ यार!! पुरानी यादें दिमाग से हटती ही नहीं है.. चाहे कितनी भी कोशिश कर लूँ.. अब तू ही मुझे इन यादों से मुक्त होने में मदद कर.. !!"

वैशाली ने अभी भी पीयूष की हथेली को पकड़ रखा था.. पीयूष खड़ा हुआ और वैशाली के पीछे आया.. उसके कंधों को हल्के हल्के मसाज करता रहा.. उसका स्पर्श वैशाली को बहोत अच्छा लगा.. गर्दन झुकाते हुए उसने पीयूष के हाथ पर अपना सर रख दिया.. और फिर विचारों में खो गई.. पीयूष समझ गया की वैशाली वापिस अपने भूतकाल की यादों में खोने लगी थी.. इसलिए अब उसने ऐसी बातें करना शुरू कर दिया जो वैशाली को उन बुरी यादों से दूर रख सकें..

"याद है वैशाली.. उस दिन हमें जब वो ऑटो वाला उसके मकान पर ले गया था.. जो अभी बन रहा था.. वहाँ उस रेत के ढेर में हमने कितने मजे किए थे.. !! कितनी मस्ती कर रही थी तू उस दिन.. !! मैं तो तेरी हरकतों से पागल सा हो गया था.. जब हम छोटे थे तब तू मुझे लाइन मारती थी पर जब मैं तेरे बॉल की तरफ देखता था तब तू उन्हें दुपट्टे से ढँक लेती थी.. तुझे याद होगा.. ट्यूशन में जब हम साथ बैठते थे.. तब में अपनी कुहनी तेरे बबलों पर मारता रहता था.. और तू कितना गुस्सा करती थी!!" खराब भूतकाल को भूलने की सब से बेहतरीन जड़ीबूटी है अच्छे भूतकाल को याद करना..!!

स्कूल के वो दिन और किशोरावस्था का वो अदम्य विजातीय आकर्षण याद आते ही वैशाली को ऐसा महसूस हुआ जैसे वो फिर से सोलह साल की हो गई हो.. वो चुपचाप पीयूष की बातें सुनती रही.. जब हफ्तों तक स्त्री को किसी पुरुष का प्रेमभरा स्पर्श न मिला हो.. और लंबे अवकाश के बाद जब कोई मर्द उसे छु लेता है.. तब शरीर में अजीब सी हलचल होने लगती है.. शर्म और चारित्र के खोखले बक्से में बंद वासना रूपी शेर को कंट्रोल करने में उसे कितनी तकलीफ हुई होगी.. ये किसी ने नहीं सोचा था.. !! पीयूष के हाथ वैशाली के कंधों से सरककर उसके ड्रेस के अंदर घुस गए.. और उसने वैशाली की चूचियों को मजबूती से निचोड़ दिया.. स्तब्ध हो गई वैशाली.. और उसकी आँखों से आँसू बरसने लगे.. वो कैसा महसूस कर रही थी वो खुद तय नहीं कर पा रही थी.. मित्र भाव था या प्रेम.. या वासना या फिर संजय के प्रति नफरत..!!

लंबे अरसे से पुरुष के स्पर्श और संसर्ग के बिना सुषुप्त अवस्था में आ चुकी कामेच्छा को, जैसे पीयूष ने झकझोर कर जागा दिया था.. दोनों हाथों से उसके भव्य स्तनों को दबा रहे पीयूष ने उसकी निप्पलों को मरोड़ना शुरू कर दिया.. और इतने जोर से दबाया की वैशाली दर्द से कराह उठी..


"आह्ह.. पीयूष.. दर्द हो रहा है.. जरा धीरे धीरे कर.. बट डॉन्ट स्टॉप.. आई लाइक इट.. !!"

अब पीयूष निश्चिंत होकर वैशाली के स्तनों को अधिकार से दबाता रहा.. वैशाली के मदमस्त बबलों को दबाते हुए वो उत्तेजित हो रहा था..

"सेक्स करने का मन कर रहा है ना तुझे, वैशाली?? तू खुद को उंगली तो करती है ना.. !! या सब भूल गई.. इसलिए तेरी जवानी मुरझाए हुए फूल जैसी हो गई है.. फूल हो या चूत.. उसे समय समय पर पानी न पिलाया जाएँ तो वो मुरझा ही जाते है.. !!"

"ओह्ह पीयूष.. अब जोर से दबा.. आह्ह.. ओर जोर से मसल.. इशशशश.. " वैशाली अब सम्पूर्ण तौर पर कामदेव के प्रभाव तले आ चुकी थी.. "आह्ह पीयूष.. अब कंट्रोल नहीं होता" बेरहमी से स्तनों को मसल रहे पीयूष के हाथों को उसने अपने ड्रेस से बाहर निकाला.. और कुर्सी से खड़ी हो गई.. और पीयूष को अपनी बाहों में भरकर चूमने लगी.. काफी देर तक ये लीप किस चलती रही.. जब वेटर ने दरवाजे पर दस्तक दी तब दोनों का वास्तविकता का ज्ञान हुआ और फिर से नॉर्मल हो गए..

पीयूष ने दरवाजा खोला.. वैशाली को बहोत संकोच हो रहा था.. वो उत्तेजना के कारण थरथर कांप रही थी.. वेटर ने टेबल पर समोसे की प्लेट रख दी और चला गया.. पीयूष ने दरवाजा बंद कर दिया..

"आई एम सॉरी पीयूष.. बहोत दिन हो गए इसलिए मैं अपना कंट्रोल खो बैठी.. मुझे अभी भी कुछ कुछ हो रहा है..आई फ़ील सो हॉट.. प्लीज चल यहाँ से चले जाते है.. वरना मुझ से कोई गलती हो जाएगी.. मुझे अभी घर जाकर मास्टरबेट करना पड़ेगा.. !!"

वैशाली को इतना उत्तेजित देखकर पीयूष समझ गया की ये लड़की हवस और सदमे दोनों को साथ में संभालते हुए थक गई थी.. जिस्मानी जरूरतें गुर्रा रहे सांड की तरह बेकाबू हो रही थी.. और इस कपल रूम में कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था..

वैशाली को सांत्वना देते हुए उसने कहा "थोड़ी देर के लिए अपने आप को संभाल लें.. हम घर जाकर.. मेरे रूम में ही करेंगे.. मैं जब बुलाऊँ तब तू आ जाना.. और हाँ.. ये लैपटॉप की बैटरी अपने पास रख.. उसे देने के बहाने चली आना.. मैं जब फोन करूँ तब तू शीला भाभी से कहना की तू ये बैटरी देना भूल गई थी और मुझे देने आ रही है.. किसी को शक नहीं होगा.. मेरा भी बहोत मन कर रहा है वैशाली.. कविता से मुझे कोई शिकायत नहीं है यार पर ये तेरी बड़ी बड़ी छातियाँ देखकर.. उफ्फ़.. मुझ से रहा नहीं जाता.. !!"

"बड़ा तो मुझे भी पसंद है.. अब यहाँ बातें करके ही मुझे झड़वा देगा क्या?? कितनी प्यारी बातें करता है तू.. कोई कैसे तुझे मना कर पाएगा.. !!"

"चल अब फटाफट समोसे खा ले.. और तेरे इन विराट बबलों को दुपट्टे से ढँक ले जरा.. मेरा लंड इन्हें देखकर अंदर उछल रहा है.. तेरे बबलों के बीच की ये रेखा.. हाय.. कितने जबरदस्त चुचे है तेरे वैशाली.. !!" लंड को हाथ से दबाते हुए सामने की कुर्सी पर बैठी वैशाली के अर्धनग्न स्तनों के बीच की खाई को छूते हुए बोला पीयूष..

आँखें बंद कर सिसकें लगी वैशाली.. "आह्ह पीयूष.. ऐसा मत कर.. मुझे कुछ कुछ हो रहा है.. चल अब चलते है.. तेरे दोस्त के घर लैपटॉप देने भी तो जाना है"

"अरे मुझे किसी दोस्त के घर लैपटॉप नहीं देना था.. कंपनी का लैपटॉप है.. चिमनलाल की जागीर नहीं.. ये तो तेरी उदासी छटाने के लिए तेरी अति-सुंदर मम्मी ने मुझे रीक्वेस्ट की थी इसलिए बहाना बनाया था मैंने.. और मैं खुश हूँ की मैं ऐसा करने में सफल रहा.. शीला भाभी भी तुझे हँसता हुआ देखकर खुश हो जाएगी.. वैशाली.. अपने जज़्बातों को उन्हीं लोगों के लिए आरक्षित रखना चाहिए जिन्हें हमारी कदर हो.. संजय जैसे नालायक के लिए क्यों आँसू बहाना?? चल अब टाइम वेस्ट मत कर.. और समोसे खाना शुरू कर.. " कहते हुए एक समोसा वैशाली को देकर दूसरा खुद खाने लगा पीयूष

वैशाली गदगद हो गई.. इतने लंबे अरसे के दुख भरे दिनों के बाद.. आज वो खुश हुई थी.. दोनों ने फटाफट समोसे खतम कीये और खुशी खुशी कॉफी शॉप के बाहर निकलने लगे.. वो वेटर तभी आ टपका.. "सर, आशा है की आपको और मैडम को मज़ा आया होगा.. मुसकुराते हुए वो वैशाली के अस्तव्यस्त कपड़े और शर्म से लाल चेहरे को देख रहा था.. सारे वेटर वैशाली के मदमस्त उरोजों को तांकते हुए पीयूष की ओर ईर्ष्या के भाव से देख रहे थे.. उनकी भूखी नज़रों को अपने स्तनों पर महसूस करते हुए वैशाली को बड़ा अजीब लग रहा था.. पर वो क्या करती? अपने गदराए स्तनों को कैसे उनकी नज़रों से छुपाती??

पीयूष ने पेमेंट और टिप चुकाई तब तक सारे वेटर तसल्ली से वैशाली के स्तनों का चक्षु-चोदन करते रहे..

वैशाली पीयूष के पीछे बाइक पर बैठ गई.. और पीयूष ने तेजी से बाइक को घर की तरफ दौड़ा दी.. ऐसा लग रहा था जैसे बाइक को पीयूष नहीं.. पर उसका उत्तेजित लंड चला रहा था.. आते वक्त तो वैशाली ने उसे तेज बाइक चलाने से टोका था.. पर अब वो खुद चाह रही थी की पीयूष और तेज बाइक चलाएं और जल्दी से जल्दी घर पहुंचा दे.. अपने विशाल स्तनों को पीयूष की पीठ पर टेककर.. उसको दोनों कंधों से पकड़े रखा था.. स्त्री हो या स्तन.. टिकने के लिए उन्हें आधार की जरूरत तो पड़ती ही है..

तेजी से चलाते हुए थोड़ी ही मिनटों में दोनों शीला के घर के बाहर आ गए.. वैशाली को वहाँ छोड़कर वो अपने घर पहुँच गया..

वैशाली ने अपनी चाबी से घर खोला.. यहाँ वहाँ देखने पर भी मम्मी कहीं नजर नहीं आई.. उसने धीरे से उनके बेडरूम का दरवाजा खोला.. शीला घोड़ी बनी हुई थी और मदन पीछे से उसे पेल रहा था.. दोनों ही मादरजात नंगे थे..




स्तब्ध हो गई वैशाली.. सेक्स की आखिरी पलों में मगन मम्मी और पापा को देखकर उसने चुपके से दरवाजा बंद कर दिया.. गनीमत थी की मदन और शीला की पीठ दरवाजे के तरफ थी.. इसलिए वो देख्न न पाएं.. सामने भी होते तो वो दोनों चुदाई में इतने डूब चुके थे की वैशाली की मौजूदगी का एहसास भी न होता दोनों को..

वैशाली घर से बाहर निकली और पीयूष के घर की तरफ चल दी.. थोड़ी क्षणों पहले जो द्रश्य उसने देखा था वो नज़रों के सामने से हट नहीं रहा था.. पापा मम्मी को घोड़ी बनाकर कैसे चोद रहे थे.. !! इस उम्र में भी दोनों कितने ऐक्टिव है.. !! आज उसे मम्मी के सौन्दर्य का राज पता चला.. जब इतनी मजबूत ठुकाई नियमित रूप से मिलती हो.. तब किसी भी औरत का चेहरा सुंदर और खिला हुआ रहेगा..

पहले से ही उत्तेजित वैशाली.. अपने माँ-बाप की चुदाई को देखकर और व्यग्र हो गई.. उसका शरीर थरथर कांप रहा था.. एक तो वो कपल रूम में पीयूष ने बबले दबाकर चूत को पहले से ही गीला कर रखा था.. ऊपर से मम्मी-पापा को मस्ती से छोड़ते हुए देखकर.. पेन्टी में बाढ़ आ चुकी थी.. चलते हुए भी वैशाली को चिपचिपाहट का एहसास हो रहा था.. अब वैशाली का शरीर और मन दोनों.. मर्द के संसर्ग के लिए बेबस हो चुका था

वो पीयूष के घर के दरवाजे पर ही थी तभी पीयूष का फोन आया उसके मोबाइल पर..

"अरे, तू पहुँच भी गई.. !! बहोत मस्ती चढ़ी है तुझे ऐसा लगता है.. रहा नहीं जाता ना.. !! चल जल्दी.. मेरे लंड की हालत भी कुछ ऐसी ही है.. " हाथ पकड़कर लगभग घसीटते हुए वैशाली को अपने घर के अंदर ले गया पीयूष.. और लात मारकर दरवाजा बंद कर दिया..

"घर पर कोई नहीं है क्या?" वैशाली ने पूछा

"मम्मी मंदिर गई है.. एक घंटे से पहले नहीं आने वाली.. और पापा दुकान पर है.. रात को लौटेंगे"

मौसम के कुँवारे उरोजों को जितनी उत्कटता से वो पाना चाह रहा था उतनी ही उन्हें पाने की संभावना कम होती जा रही थी.. मौसम के गोरे मासूम स्तनों को माउंट आबू में देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था.. दोनों तरफ आग बराबर जल रही थी पर हालातों ने आगे कुछ होना मुमकिन न होने दिया.. अब वो सारी भड़ास वैशाली पर निकाल रहा था पीयूष.. वैशाली के ड्रेस पर से उसके बेमिसाल उरोजों को पूरी ताकत से दबा दिया पीयूष ने.. वैशाली ने एक ऊँह तक नहीं की.. कितने दिनों के बाद आज ठीक से स्तन दबे थे उसके.. !! वो खुद ही चाहती थी की कोई उसके स्तन दबाएं, मसल दे.. कुचल कर रख दें.. पीयूष को उसने रोका नहीं.. बल्कि पीयूष की इस क्रिया में मदद करने लगी..


पीयूष ने जब उसके स्तनों से हाथ हटाकर उसकी कमर को सहलाना शुरू किया तब वैशाली का मन अब तक स्तन-मर्दन से भरा नहीं था..

"मेरी निप्पल को पकड़ कर दबा और खींच उन्हें.. मेरे बॉल चूस यार.. जल्दी.. "बेशर्म होकर वैशाली ने कहा.. इसलिए कहा की पीयूष उसे जल्दी से जल्दी नंगी कर दें..

उसने पीयूष के लंड को पेंट को ऊपर से दबाकर देखा.. लंड के उभार को देखकर उससे रहा नहीं गया.. उसने तुरंत चैन खोली और अन्डरवेर के अंदर हाथ डालकर उसे पकड़ लिया.. जबरदस्त सख्त हो गया था पीयूष का लंड.. !! पीयूष को खुद ताज्जुब हो रहा था की कविता के संग सेक्स करते हुए कभी इतना कडक नहीं हुआ था.. अरे कविता के चूसने पर भी कभी इतना सख्त नहीं हुआ था पहले.. ये सब अनधिकृत सेक्स का कमाल था..

"आह्ह पीयूष.. मस्त कडक हो गया है तेरा.. " लंड को बाहर निकाल कर मुठ्ठी में भरते हुए वैशाली ने उत्तेजित होकर कहा.. काफी समय के बाद वो पीयूष के लंड को देख रही थी.. पीयूष ने वैशाली को घुमा कर उल्टा कर दिया.. और उसके ड्रेस की चैन उतार दी.. अपनी पीठ पर पीयूष के हाथों के स्पर्श से सिहर उठी वैशाली..

पीयूष का नंगा लंड आइफेल टावर की तरह झूल रहा था.. और वैशाली की गांड की दरार के संग प्रेम-क्रीडा कर रहा था.. अपने मांसल चूतड़ों पर सुपाड़े का गरमागरम स्पर्श महसूस होते ही वैशाली उत्तेजना के शिखर पर पहुँच गई.. दोनों हाथ पीछे ले जाकर उसने पीयूष की गर्दन को पकड़कर अपना चेहरा ऊपर किया..

दोनों ने फ्रेंच किस करते हुए एक दूसरे के वस्त्रों को उतारना जारी रखा.. वैशाली ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दीये.. और पीयूष ने उसका ड्रेस निकाल दिया.. उसका गोरा नंगा बदन देखकर पीयूष हतप्रभ हो गया.. वाकई अपनी माँ पर ही गई थी वैशाली.. !! शीला भाभी का बदन भी ऐसा ही गोरा और गदराया था.. पिंक कलर की ब्रा से आधे बाहर झांक रहे स्तनों को ललचाई नज़रों से देख रहा था पीयूष.. जैसे उसके स्तन पीयूष को आमंत्रित कर रहे थे.. लेकिन पीयूष को ये ब्रा का आवरण मंजूर नहीं था.. ब्रा की क्लिप निकालकर उसने उस खजाने को खोल दिया.. स्प्रिंग की तरह उछलकर दोनों स्तन मुक्त हो गए..


पीयूष ने वैशाली की पीठ को चाटना शुरू कर दीया.. पीठ से लेकर कमर पर होते हुए उसकी जीभ चूतड़ों की दरार तक पहुँच गई..

"ओह्ह पीयूष, प्लीज.. !!" कहते हुए वैशाली पीयूष की तरफ मुड़ गई.. उसके सुंदर दुधमल थनों को देखकर पीयूष अपने होश गंवा बैठा.. उसके लंड ने अभूतपूर्व सख्ती हाँसील कर ली थी.. वासना की आग में जल रही वैशाली ने पीयूष को अपनी बाहों में भरकर चूम लिया..

पीयूष ने वैशाली के तमाम वस्त्र उतारकर उसे अनावृत कर दिया.. और अपनी पतलून उतारते हुए कमर के नीचे से खुद भी नंगा हो गया.. देखकर वैशाली शरमा गई.. उसे अपनी खुद की नग्नता से शर्म नहीं आ रही थी.. पर पीयूष को नंगा देखकर वो लाल हो गई.. दोनों जांघों के बीच में झूलता हुआ उसका लंड इतना आकर्षक लग रहा था की वैशाली तुरंत ही घुटनों के बल बैठ गई और लंड को पकड़ते हुए, ब्ल्यू फिल्मों की हीरोइन की तरह चूसने लगी.. उसके शरीर और गर्दन की हलचल से ये साफ प्रतीत हो रहा था की वो कितनी गरम हो चुकी थी..

दोनों इस काम-करम में इतने व्यस्त हो गए थे की अनुमौसी ने तीसरी बार दरवाजे पर दस्तक दी तब उन्हें सुनाई दिया.. दोनों ने तुरंत ही कपड़े पहन लिए.. और वैशाली पीयूष के लैपटॉप के सामने बैठ गई.. जैसे अंदर कुछ देख रही हो.. पतलून की चैन बंद करते हुए पीयूष ने दरवाजा खोला

"क्या कर रहा था? कितनी देर से खटखटा रही हूँ? कान की दुकान बंद है क्या?" मौसी ने गुस्से से कहा.. मंदिर से चलकर आ रही मौसी हांफ रही थी.. वो इतनी थकी हुई थी की आगे कोई तहकीकात करने जितनी ऊर्जा ही नहीं बची थी..

तभी रसिक दूध के पैसे लेने आ गया.. रसिक एक नंबर का हरामी था.. उसने देखा की ड्रॉइंग रूम में बैठे पीयूष और वैशाली का ध्यान उसकी और नहीं था.. मौसी को हिसाब समझाते हुए अपने पाजामे से नरम लोडा बाहर निकालकर मौसी को दिखाकर हंसने लगा.. उसका सोया हुआ काला नाग देखकर मौसी एकदम डर गई.. वैसे तो वो रसिक के लंड की आशिक थी.. पर यहाँ खुले में.. पीयूष और वैशाली की मौजूदगी में उसका खुला लंड देखकर मौसी घबरा गई..



"नालायक.. अक्ल नाम की कोई चीज है की नहीं तेरे पास?? अगल-बगल की परवाह कीये बगैर लंड खोलकर खड़ा हो गया? शर्म कर साले.. किसी ने देख लिया तो हम दोनों मरेंगे.. " मौसी तुरंत किचन में चली गई.. जैसे वो नाग उठकर उन्हें डंस लेगा.. मुसकुराते हुए रसिक ने लंड पाजामे में वापिस डाल दिया..

हँसते हँसते रसिक बरामदे से बाहर निकला और अपनी साइकिल पर बैठा तभी उसने मौसी को किचन की खिड़की से झाँकते हुए देखा और बोला "चलता हूँ मौसी.. अब तो शीला भाभी भी वापिस आ गई है" आँख मारते हुए उसने मौसी को गुस्सा दिलाया

मौसी ने दूर से चिल्लाकर कहा "पैसे कल ले जाना.. और दूध में पानी मिलाना कम कर" मौसी को इतना गुस्सा आ रहा था की उनका बस चलता तो बाहर निकलकर रसिक की गांड पर लात मारकर भागा देती.. एक तो खुले में लंड निकालकर खड़ा हो गया.. और जाते जाते शीला के नाम की हूल देकर गया.. रसिक अपनी साइकिल लेकर तेजी से निकल गया..

मौसी किचन से बाहर आई.. तभी वैशाली उठकर जा रही थी

"अरे बैठ ना बेटा.. !! इतनी जल्दी जा रही है.. !!! तेरा कंप्यूटर का काम हो गया क्या?"

"नहीं मौसी, काम तो अभी भी बाकी है.. कल आकर खत्म कर लूँगी.. अभी बहोत देर हो गई इसलिए जा रही हूँ" वैशाली ने जो भी कहा सच ही कहा.. काम कहाँ पूरा हुआ ही था?? बस होने ही वाला था की मौसी टपक पड़ी.. अपनी भूखी चूत को लेकर वैशाली घर गई..

घर पहुंचते ही उसने देखा.. शीला किचन में खाना बना रही थी.. और मदन टीवी पर न्यूज़ देख रहा था.. घर में वापीस आते ही वैशाली को उदासी ने फिर से घेर लिया.. जब तक वो बाहर थी तब तक उसका मूड ठीक था.. घर पर आते ही सारे विचारों ने फिर से उसके मन पर हमला कर दिया.. सामाजिक दीवारों से अक्सर इंसानों का दम घूँटने लगता है.. जब आदिमानव गुफाओं में रहता था तब शायद आज से ज्यादा सुखी होगा..


वैशाली सीधे अपने कमरे में गई.. दरवाजा अंदर से बंद किया.. और बेड पर बैठ गई.. उसने अपनी सलवार उतारी.. और तेजी से अपनी चूत को कुरेदने लगी..


आज दो बार उसका ऑर्गजम होते होते रह गया.. एक बार कपल रूम में और दूसरी दफा पीयूष के घर में.. सारा गुस्सा उसने अपनी चूत पर निकाल दिया.. उत्तेजना, क्रोध और असंतोष के कारण वो जैसे तैसे स्खलित हो गई.. पर झड़ने के बाद उसका मन शांत हो गया.. हाथ मुंह धोकर उसने नाइटड्रेस पहन लिया और किचन में शीला की मदद करने गई..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
 

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पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

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वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


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अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

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वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

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पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

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तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

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पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

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शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..


उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
Behtreen update
 

Sanju@

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वैशाली सीधे अपने कमरे में गई.. दरवाजा अंदर से बंद किया.. और बेड पर बैठ गई.. उसने अपनी सलवार उतारी.. और तेजी से अपनी चूत को कुरेदने लगी.. आज दो बार उसका ऑर्गजम होते होते रह गया.. एक बार कपल रूम में और दूसरी दफा पीयूष के घर में.. सारा गुस्सा उसने अपनी चूत पर निकाल दिया.. उत्तेजना, क्रोध और असंतोष के कारण वो जैसे तैसे स्खलित हो गई.. पर झड़ने के बाद उसका मन शांत हो गया.. हाथ मुंह धोकर उसने नाइटड्रेस पहन लिया और किचन में शीला की मदद करने गई..

डिनर करने के बाद सब सो गए पर वैशाली के दिल को चैन नहीं था.. पीयूष ने ऐसी आग लगा दी थी जो सिर्फ वो ही बुझा सकता था.. दस बज रहे थे और तभी मोबाइल पर पीयूष का मेसेज आया.. खोलकर पढ़ने के बाद वैशाली के चेहरे पर मुस्कान आ गई

पीयूष का मेसेज: 'यार, तेरे बबलों की बहोत याद आ रही है" पढ़कर वैशाली शरमा गई पर उसे बहोत अच्छा लगा..

वैशाली ने रिप्लाय किया: "याद तो मुझे भी आ रही है.. पर किसी ओर चीज की"

पीयूष का मेसेज: "आई वॉन्ट टू फक यू.. मेरा लोडा अभी बम्बू की तरह खड़ा हो गया है" वैशाली की चूत में झटके लगने लगे.. अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए वो पीयूष से चैट करने लगी..

वैशाली का मेसेज: "हम्म तो अब तू क्या करेगा? अभी तो कविता भी नही है तेरे साथ.. एक काम कर.. यहाँ आजा.. मैं तेरे बम्बू को शांत कर देती हूँ"

पीयूष का मेसेज: "मैं तो अभी आ जाऊँ.. पर तेरे मम्मी पापा का क्या करें?"

वैशाली का मेसेज: "हट साले डरपोक.. इतना ही डर लग रहा है तू खुद ही हिला ले अपना बम्बू.. दिमाग लगा और कुछ तरकीब ढूंढ"

पीयूष की मर्दानगी जाग उठी.. एक तरफ वैशाली का वासना से सुलग रहा बदन उसे बुला रहा था.. दूसरी तरफ वो अकेले बैठे बैठे मौसम का गम भुलाने की कोशिश कर रहा था.. ऊपर से कविता की गैर-मौजूदगी.. उसका नटखट मन बंदर की तरह उछलने लगा.. वो सोचने लगा.. ऐसा क्या करूँ जिससे वैशाली की चूत तक पहुँचने का कोई रास्ता मिल जाएँ...

वैशाली का मेसेज: "चुप क्यों हो गया? हिलाने बैठ गया क्या?"

पीयूष का मेसेज: "नहीं यार.. सोच रहा हूँ.. की कैसे तेरे बेडरूम तक पहुँच जाऊँ!! मैं छत पर जा रहा हूँ.. देखता हूँ कोई रास्ता मिल जाए.. "

वैशाली का मेसेज: "कोई देख लेगा तो? मुझे तो बहोत डर लग रहा है"

पीयूष का मेसेज: "तो फिर मैं नहीं आ रहा" पीयूष ने हथियार डाल दीये

यहाँ वैशाली की चूत में ऐसी आग लगी थी.. लंड लेने के लिए वो तड़प रही थी..

वैशाली का मेसेज: "यार कुछ तो कर.. मुझसे अब रहा नहीं जाता.. सब तेरी गलती है.. एक तो आज दोपहर में उस कपल रूम के अंदर तूने मेरी आग भड़का दी.. तब से मैं बेचैन हो रही हूँ.. और शाम को तेरी मम्मी ने सारा खेल बिगाड़ दिया.. अब तो मुझसे कंट्रोल नहीं होता.. !!"




पीयूष का मेसेज: "यार.. तो अब मैं क्या करूँ?"

वैशाली का मेसेज: "मुझे क्या पता??"

थोड़ी देर तक पीयूष का मेसेज नहीं आया

वैशाली का मेसेज: "क्या हुआ? तेरा नरम हो गया क्या?? हा हा हा हा.. " वैशाली को सेक्स-चैट करने में मज़ा आ रहा था.. वो चैट करते करते अपनी चूत में उंगली कर रही थी..



पीयूष का मेसेज: "नरम तो ये तभी होगा जब तेरी चूत फाड़ देगा.. !!"

वैशाली का मेसेज: "आह्ह.. !!"

पीयूष का मेसेज: "क्या हुआ??"

वैशाली का मेसेज: "तेरे मेसेज पढ़कर मुझे नीचे कुछ कुछ हो रहा है"

पीयूष का मेसेज: "तुझे नीचे मेरा लंड लेने की जरूरत है.. मन कर रहा है की तेरे दोनों बबलों के बीच में लंड घुसाकर शॉट मारूँ.. तेरी चूत के अंदर जीभ डालकर सारा रस पी जाऊँ.. ओह्ह.. मेरा लोडा तेरे मुंह में डाल दूँ"

वैशाली का रिप्लाय नहीं आया

पीयूष का मेसेज: "सो गई क्या साली रंडी? या उंगली डाल रही है?" वैशाली के मेसेज आने बंद हो गए इसलिए पीयूष ने अनाब-शनाब लिखना शुरू कर दिया

पीयूष का मेसेज: "भेनचोद कहाँ मर गई? कहीं अपने बाप का लोडा लेने तो नहीं चली गई?"

अभी कुछ घंटों पहले ही वैशाली ने अपने पापा को चुदाई करते हुए देखा था.. ऊपर से पीयूष ने उनके लंड का जिक्र कर उसे और पागल बना दिया

वैशाली का मेसेज: "ओह पीयूष.. अब मुझसे नहीं रहा जाता.. तू जल्दी कुछ कर.. वरना मैं वहाँ आ जाऊँगी.. प्लीज यार"

पीयूष का मेसेज: "मुझे एक रास्ता सूझ रहा है"

वैशाली का मेसेज: "क्या??"

पीयूष का मेसेज: "अभी आधे घंटे में सोसायटी के सारे लोग सो गए होंगे.. कोई बाहर नहीं होगा.. तेरे घर के बाहर अब्बास भाई का ट्रक पड़ा हुआ है.. चुपके से उसके नीचे घुस जाते है.. किसी को पता नहीं चलेगा.. ट्रक के नीचे घुसकर कोई नहीं देखेगा.. !!"

वैशाली का मेसेज: "पागल हो गया है क्या?? तुझे सब ऐसी जगह ही दिमाग में आती है.. !! उस दिन रेत में और आज मिट्टी में??"

पीयूष का मेसेज: "जरा शांत दिमाग से सोच.. उस जगह किसी का ध्यान नहीं जाएगा.. हाँ कपड़े थोड़े से खराब होंगे.. पर उतना तो चलता है यार"

वैशाली का मेसेज: "नहीं यार.. वहाँ नहीं.. कुछ और सोच.. !!"

पीयूष का मेसेज: "फिलहाल वही जगह सब से सैफ है.. और कहीं तो पकड़े जाने का डर लगा रहेगा.. आजा न वैशाली.. मुझसे रहा नहीं जाता.. अब तुझे चोदना ही है"

स्क्रीन पर ये पढ़कर वैशाली की मुनिया फुदकने लगी..



वैशाली का मेसेज: "अरे यार.. तुझसे कहीं ज्यादा चूल मेरे नीचे मची हुई है.. पर यार वो जगह थोड़ी विचित्र लगती है मुझे"

पीयूष का मेसेज: "तू पहले बाहर तो निकल.. फिर कुछ सोचते है"

वैशाली का मेसेज: "ठीक है.. मैं बाहर निकलकर कॉल करूँ या मेसेज?"

पीयूष का मेसेज: "कॉल ही करना.. मेरा फोन साइलेंट है पर पता चल जाएगा मुझे"

वैशाली ने भी फोन को वाइब्रेट मोड पर रख दिया.. और खड़ी हो गई.. चुपके से उसने अपने बेडरूम का दरवाजा खोला.. पौने ग्यारह बज रहे थे.. शीला और मदन अपने बेडरूम में सो रहे थे.. वैशाली को मैन डोर खोलकर जाने में डर लग रहा था.. इसलिए वो किचन से होकर पीछे के रास्ते से बाहर निकली.. और सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर चली गई.. सामने पीयूष भी अपने घर की छत पर खड़ा था.. पीयूष ने तुरंत वैशाली को फोन लगाया

पीयूष: "मेरी बात ध्यान से सुन.. नीचे उतर.. बरामदे से बाहर निकल.. ट्रक और दीवार के बीच छुपकर खड़ी रहना.. मैं अभी वहाँ आता हूँ"

वैशाली ने फोन चालू रखा.. सीढ़ियाँ उतरकर वो कंपाउंड से बाहर आई.. ट्रक और दीवार के बीच की संकरी जगह में छुपकर खड़ी हो गई.. पूरी गली में सन्नाटा था.. अंधेरे के कारण किसी के भी देखने का डर नहीं था.. थोड़ी ही देर में पीयूष वहाँ आ पहुंचा.. और आते ही वो वैशाली से लिपट गया.. बिना ब्रा के नाइटड्रेस पहने खड़ी वैशाली के दोनों स्तनों को मजबूती से दबा दिया.. वैशाली का पूरा जिस्म सिहर उठा.. पीयूष के आक्रामक प्रहारों से वैशाली के पूरे शरीर में उत्तेजना की गर्मी फैल गई.. और लंड की भूख से उसकी चूत फड़फड़ाने लगी.. उसकी पुच्ची में इतनी खुजली हो रही थी की वो खुद ही अपनी जांघें आपस में रगड़ने लगी थी.. बड़ी मुश्किल से मिले इस मौके का दोनों पूरा लाभ उठाना चाहते थे..

वैशाली ने तुरंत ही पीयूष की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसका लंड पकड़कर बाहर निकाला.. ऐसा लग रहा था मानों लोहे का गरम सरिया हाथ में पकड़ रखा हो.. हथेली में इतना गर्म लग रहा था.. लंड की त्वचा को पीछे सरकाते हुए सुपाड़े को खुला कर दिया.. और साथ ही पीयूष के होंठों को चूमने लगी..



बहोत दिनों से भूखी वैशाली आज पीयूष से कई ज्यादा उत्तेजित थी.. उसकी कराहों और सिसकियों से पीयूष को अंदाजा लग चुका था की वैशाली कितनी गरम हो चुकी थी.. उसे डर था की कहीं वो अभी झड़ गई.. और हवस का भूत दिमाग से उतर गया तो डरकर तुरंत वापस भाग जाएगी.. उत्तेजना के अंधेरे में कुछ भी नजर नहीं आता.. एक बार डिस्चार्ज हो जाने के बाद ही सारे जोखिम नजर आने लगते है..

बिना समय गँवाए उसने वैशाली को उल्टा मोडकर झुका दिया.. और उसके ट्रैक-पेंट को घुटनों तक उतार दिया.. अंधेरे में भी वैशाली के गोरे विशाल चूतड़ चमक रहे थे.. पीयूष ने झुककर वैशाली के कूल्हों पर और चूत पर अपनी जीभ फेर दी..



वैशाली को बहोत मज़ा आ रहा था पर फिर भी पीयूष को रोकते हुए कहा "यार ये सब करने बैठेगा तो मैन काम रह जाएगा.. " वैशाली की बात में तथ्य था..

पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने सुपाड़े पर थोड़ा सा थूक लगाकर.. वैशाली के सुराख पर टीका दिया.. और धीरे धीरे अंदर दबाने लगा.. जैसे जैसे लंड की मोटाई वैशाली की चूत की दीवारों से घिसते हुए अंदर जाने लगी.. वैशाली की सिसकियाँ शुरू हो गई..


पूरा लंड अंदर घुसते ही पीयूष ने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू कर दीये.. और हाथ आगे ले जाकर वैशाली के लटक रहे स्तनों को दबोचने लगा..



दोनों इस काम-क्रीडा में मगन थे तभी एक आदमी ट्रक के आगे के हिस्से के सामने आकर खड़ा हो गया.. अंधेरे में उस आदमी को इतने करीब खड़ा देखकर दोनों की सीट्टी-पीट्टी गुम हो गई.. ये तो अच्छा था की उस आदमी की नजर इन दोनों के तरफ नहीं थी.. वो जरा सा मुड़कर देखता तो इस चोद रहे जोड़ें को आसानी से देख लेता.. वैशाली और पीयूष दोनों डर के मारे कांप रहे थे.. वो आदमी ट्रक का क्लीनर था जो पेशाब करने के लिए नीचे उतरा था.. कोने में खड़े रहकर वो मूतने लगा.. रात के सन्नाटे में पीयूष और वैशाली को उसकी पेशाब की धार की आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी.. पेशाब की दुर्गंध से वैशाली परेशान हो गई.. उस मूत रहे क्लीनर का नरम लंड अंधेरे में भी साफ नजर आ रहा था..

बिना हिले-डुले दोनों चुपचाप अपनी जगह पर ही मूर्ति बनकर खड़े थे.. थका हुआ क्लीनर आधी नींद में था.. वो वापिस ट्रक में जाकर सो गया.. वैशाली अब बहोत डर गई थी

"मुझे अब नहीं करना है.. डर लग रहा है.. मैं जा रही हूँ पीयूष.. सॉरी" पीयूष के जवाब का इंतज़ार कीये बगैर ही उसने एक ही पल में अपना ट्रैक-पेंट पहन लिया और अपने घर की दीवार फांदकर कंपाउंड में चली गई.. जिस रास्ते वो बाहर आई थी उसी किचन के रास्ते घर में घुस गई.. अपने बेडरूम में पहुंचकर ही उसके तेजी से धडक रहे दिल को चैन मिला.. बाप रे.. बच गई.. !! वरना आज तो तमाशा हो जाता.. अच्छा हुआ उस आदमी ने देखा नहीं.. कहीं उसने चिल्लाकर लोगों को इकठ्ठा कर दिया होता तो मैं सब को क्या मुंह दिखाती.. !!

अभी भी डर के कारण कांप रही वैशाली को नींद नहीं आ रही थी.. पीयूष ने उसे दो बार कॉल कीये पर उसने उठाए नहीं.. ढेर सारे मेसेज भी भेजे पर वैशाली ने एक का भी जवाब नहीं दिया.. पीयूष को पता चल गया की वैशाली नाराज हो गई थी.. वो और उसका लंड पूरी रात सो नहीं पाए..

सुबह ६ बजे उठकर जब वो घर की छत पर गया तब उसने बरामदे में खड़ी वैशाली को ब्रश करते देखा.. उसने हाथ हिलाकर पीयूष को हाई कहा.. तब पीयूष के दिल को कुछ तसल्ली हुई की वैशाली नाराज तो नहीं थी..

ब्रश करते हुए वैशाली घर के अंदर गई तब शीला ने वैशाली की घड़ी देते हुए कहा "अरे वैशाली.. देख तो.. !! ये तेरी ही घड़ी है ना.. !! बाहर कचरा फेंकने गई तब उस ट्रक के पास पड़ी मिली.."

शीला के हाथ से लगभग छीनते हुए वैशाली ने कहा "हाँ मम्मी.. ये तो मेरी ही घड़ी है.. वहाँ कैसे पहुँच गई?"

"मुझे क्या पता? तेरी घड़ी है तो तुझे पता होना चाहिए.. तू उस तरफ गई थी क्या? अब्बास भाई की ट्रक के पास??" शीला ने पूछा

"नहीं, मैं तो नहीं गई.. मैं क्यों जाऊँ वहाँ??" वैशाली ने ऊटपटाँग जवाब दिया.. पर उसके दिमाग में तुरंत ही बत्ती जली.. मम्मी बड़ी ही शातिर है.. उसे बेवकूफ बनाना आसान नहीं है.. अगर मैंने बहाना नहीं बनाया तो मुझे पकड़ने में उसे देर नहीं लगेगी..

"अरे हाँ मम्मी.. याद आया.. शाम को जब अनुमौसी के घर से लौट रही थी तब पता नहीं कहाँ से एक कुत्ता भोंकते हुए पीछे पड़ गया.. मैं डरकर उस ट्रक के पीछे छुप गई थी.. शायद तभी गिर गई होगी"

शीला के मन को वैशाली की बात से संतोष हुआ "अच्छा हुआ ना मेरी नजर पड़ गई.. !! वरना कोई ओर उठाकर ले जाता.. ये तो इंपोर्टेड घड़ी है.. जो तेरे पापा विदेश से तेरे लिए लाए थे.. "

उनकी बातें सुनकर मदन बाहर आया "वैशाली, मैं जहां पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उस मकान की मालकिन ने गिफ्ट दी थी ये घड़ी.. तेरे लिए.. " शीला के सामने देखकर आँख मारते हुए मदन ने कहा

शीला: "ओह्ह अच्छा तो ये मेरी ने गिफ्ट की थी.. और तुमने क्या दिया था उसे गिफ्ट के बदले?" शीला भी कम नहीं थी..

दोनों की बातें सुनकर वैशाली समझ गई की इशारा कहीं ओर था.. शीला-मदन को अकेले बातें करता छोड़कर वो ड्रॉइंगरूम में चली आई और टीवी चालू कर दिया.. टीवी की आवाज के बावजूद उसे मम्मी पापा की बातें सुनाई दे रही थी..

वैशाली सुन नहीं रही है ये सोचकर शीला ने मदन का कान पकड़कर खींचा.. "मेरी की कितनी बार चाटी थी तूने इस गिफ्ट के बदले?? सच सच बता"

मदन: "अरे यार.. हम दोनों के बीच सब कुछ शुरू हुआ उससे पहले ये गिफ्ट दी थी उसने.. "

शीला: "अच्छा.. मतलब उसने तुझे एक घड़ी क्या गिफ्ट दे दी.. तूने तो अपना सब कुछ लूटा दिया उसके पीछे!! यहाँ मैं बिस्तर में पड़ी पड़ी करवटें बदल रही थी और वहाँ तुम दोनों हरामी..!!" शीला ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया

मदन ने अपना कान छुड़ाकर हँसते हुए कहा "तूने कहा होता तो मैं अपना लंड यहाँ छोड़कर जाता.. !!"

शीला: "मैं लंड के लिए नहीं मर रही थी.. लंड तो एक नहीं एक हजार मिल जाते.. मुझे तो जरूरत तेरी थी.. तेरे लंड की नहीं"

मदन: "वो सब बातें छोड़.. ये बता.. सुबह जो दूध देने आई थी वो कौन थी?? जबरदस्त माल थी यार.. !!"

शीला: "मुझे पता है की तुझे उसमें क्या जबरदस्त लगा.. !!! उसका नाम रूखी है.. रसिक की पत्नी.. आज रसिक कहीं बाहर गया हुआ था इसलिए वो दूध देने आई थी.. अब कल से मैं रसिक को भी ध्यान से देखूँगी.. मुझे भी शायद उसमे कुछ जबरदस्त दिख जाएँ.. !!"

मदन: "मज़ाक कर रहा था डार्लिंग.. खूबसूरत थी, इसलिए पूछ लिया.. इतना क्यों भड़क रही है?"

शीला: "हाँ हाँ.. मैं क्यों भड़कूँ?? तुम कभी मेरी के बबले चूसो तो कभी उसकी चूत.. !!" अचानक वो बोलते बोलते रुक गई.. उसे एहसास हुआ की घर पर वो अकेले नहीं थे.. वैशाली भी मौजूद थी.. और जब तक वो सेटल नहीं हो जाती तब तक यहीं रहेगी.. लंबे समय तक अकेले रहकर शीला की जुबान से कंट्रोल चला गया था

पापा मम्मी की बातें सुनकर वैशाली हंस पड़ी..

मदन: "पागल जरा धीरे से बोल.. वैशाली सुन लेगी"

शीला: "अरे हाँ.. मुझे अभी खयाल आया.. और हाँ मदन.. वैसे तो तुझे देखकर पता चल ही गया होगा पर फिर भी मैं तुझे बता देती हूँ.. रूखी को अभी कुछ महीनों पहले ही बच्चा हुआ है.. मैं उसके घर भी जा चुकी हूँ.. बहोत ही अच्छी है रूखी.. तेरी गैर-मौजूदगी में उसने मेरा बहोत ध्यान भी रखा था"

मदन: "तो जरा मेरी भी पहचान करा दे.. मैं भी तो देखूँ.. जितनी तू तारीफ कर रही है उतनी अच्छी है भी या नहीं" शीला के गाल खींचकर मदन बाथरूम में घुस गया

मन ही मन शीला सोच रही थी.. वो तो अच्छी है ही.. पर उससे भी अच्छा है उसका पति.. इस बात की गँवाही तो अनुमौसी भी दे सकती है

बाथरूम में नहाते हुए मदन सोच रहा था.. क्या जालिम जवानी थी उस रूखी की..

गाँव की औरतों की खूबसूरती की बात ही निराली होती है.. आह्ह रूखी.. !! मदन के दिलोदिमाग पर रूखी ने कब्जा कर लिया था.. नहाते हुए उसका लंड एकदम कडक हो गया रूखी को याद करते हुए.. काश मेरा कुछ सेटिंग हो जाएँ उससे तो मज़ा आ जाए.. उसके मदमस्त मटके जैसे बबलों से दूध पीना नसीब हो जाए.. आह्ह.. मदन को तभी मूठ लगाकर अपने लंड की मलाई बाहर निकालनी पड़ी..


वो नहाकर बाहर निकला तब उसने देखा की पीयूष घर पर आया था और शीला तथा वैशाली के साथ बातें कर रहा था..

"कितनी देर लगा दी पापा आप ने?? मैं कब से नहाने जाने के लिए वैट कर रही हूँ.. !! पीयूष, मैं दो मिनट में नहाकर आई.. " कहते हुए वैशाली बाथरूम में घुस गई.. वैशाली के जाने के बाद, शीला और मदन, पीयूष के साथ बातें करने लगे..

"गुड मॉर्निंग मदन भैया.. कैसे है आप?? कलकत्ता की थकान उतरी या नहीं??"

"ठीक हूँ पीयूष.. यार मैं कलकत्ता को तो याद भी करना नहीं चाहता.. तू बता.. कैसे आना हुआ?" सोफ़े पर बैठते हुए मदन ने पूछा

"मैं आपको न्योता देने आया हूँ.. अगले हफ्ते मौसम की सगाई है.. तो आप तीनों को आना होगा.. !!"

मदन: "अरे वाह.. ये तो बहोत अच्छी बात है.. !! हम सब जरूर आएंगे.. वैशाली को भी अच्छा लगेगा.. हैं ना बेटा.. ??" बाथरूम से बाहर निकलकर अपने बालों को झटकाकर सूखा रही वैशाली से मदन ने कहा.. पिंक ड्रेस में उभर रहे यौवन की मल्लिका वैशाली.. अपने लंबे बालों से विशाल स्तनों को ढँककर कंगी कर रही थी.. उसक कंगी बालों से गुजरते वक्त स्तनों को दबा दे रही थी.. पीयूष बस उस द्रश्य को अभिभूत होकर देखता ही रहा.. ताज़ा ताज़ा नहाकर आई स्त्री जब बाल सूखा रही हो, यह द्रश्य देखने में ही बड़ा मनोहर होता है.. वैसे भी औरत का अर्ध-अनावृत रूप नग्नता से ज्यादा सुंदर लगता है..

वैशाली: "हाँ पापा.. मौसम तो मेरी बहोत अच्छी सहेली है.. और वैसे भी.. अब मैं अपने भूतकाल को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहती हूँ.. कल पीयूष ने मेरी आँखें खोल दी (आँखों के साथ साथ और भी काफी कुछ खोल दिया था).. अब मै ज़िंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती हूँ.. बिना किसी दुख या मलाल के.. मैं घर पर बहोत बोर हो रही हूँ.. अगर तुझे ऐतराज न हो तो क्या मैं कुछ दिनों के लिए तेरी कंपनी में आ सकती हूँ?? मुझे अपना दिमाग बिजी रखना है.. ताकि पुरानी बातें परेशान न करें मुझे.. !!"

पीयूष: "अरे यार तू बिंदास चल.. कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. मेरे बॉस राजेश सर से तो तेरी अच्छी जान पहचान हो ही चुकी है.. पिंटू और रेणुका मैडम को भी तू जानती है.. इन फेक्ट ऑफिस के सारे लोग तुझे जानते है.. तेरे आने से सब को अच्छा लगेगा.. और तू भी ज्यादातर लोगों को जानती है इसलिए तुझे भी अटपटा नहीं लगेगा.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. वैशाली को ले जा अपने ऑफिस.. उसे बाहर निकलने की सख्त जरूरत है.. !!"

मदन: "हाँ गुड़िया.. मम्मी ने ठीक कहा.. तू पास्ट को भूल जा.. लाइफ को इन्जॉय कर.. पर जो भी करना संभल कर करना"

वैशाली: "डॉन्ट वरी पापा.. मैं ध्यान रखूंगी"

मदन और वैशाली दोनों ही इस सलाह की अहेमीयत जानते थे.. मदन ने सिर्फ इशारा किया.. की जो कुछ भी करना.. खानदान की इज्जत को ध्यान में रखकर करना.. और वैशाली ने भी एक जिम्मेदार बेटी की तरह संतोषजनक उत्तर दिया..

पीयूष ने वैशाली को अपनी बाइक पर बैठा दिया.. और दोनों ऑफिस की तरफ निकल गए.. रास्ते मे वैशाली ने जी भरकर अपने स्तनों को पीयूष की पीठ से दबाएं रखा..

वैशाली को ऑफिस में देखकर सारा स्टाफ खुश हो गया.. राजेश सर ने तो फोन करके रेणुका को भी बुला लिया.. और वैशाली का इतना गर्मजोशी से स्वागत किया की उसकी आँखें भर आई..

पिंटू तीन दिन की छुट्टी के बाद आज ही ऑफिस आया था.. कविता जो थी मायके में.. इसलिए वो छुट्टी पर ही था.. कविता और पिंटू दोनों घंटों फोन पर बातें करते.. मेसेज पर चैट करते.. दिन में दो बार तो पीयूष, कविता के घर की पास वाली दुकान पर आ जाता.. पर दोनों को अपनी जिस्मानी भूख मिटाने का मौका नहीं मिला था.. पर कविता तो पिंटू को दिन में एक बार देखकर भी खुश थी.. जब कविता ने पिंटू से कहा की वो अब मौसम की सगाई होने तक मायके में ही रहने वाली थी.. तब पिंटू ने वापिस ऑफिस शुरू करने का फैसला किया.. तीन दिन बाद आज वो ऑफिस आया था..

वैशाली भी पिंटू को ठीक-ठाक जानती थी.. माउंट आबू की ट्रिप के दौरान उसका ध्यान कई बार इस हेंडसम लड़के पर गया था..बहोत कम बोलने वाला.. और जब भी बोलता तब नाप-तोलकर बोलता.. खास कर औरतों के साथ और स्टाफ की अन्य युवतीओं के साथ.. इतने सलीके से बात करता.. इसी कारण रेणुका सहित ऑफिस का सारा महिला स्टाफ उससे बेहद प्रभावित था..

दोपहर केंटीन में लंच करते हुए राजेश सर, वैशाली, पीयूष और पिंटू ने बहोत सारी बातें की.. पिंटू के आध्यात्मिक और तात्विक ज्ञान से भरी बातें सुनकर पीयूष भी सुनता ही रह गया.. पिंटू की तरफ देखने के उसका नजरिया बदलने लगा.. पर वैशाली को पिंटू की बातों से कुछ अधिक फरक नहीं पड़ा.. उसके पति संजय की बेवफाई का जहर पूरे शरीर में ऐसे फैल चुका था की उसे पूरी मर्द जात से डर सा लगने लगा था.. हाँ, पीयूष उसके बचपन का साथी था इसलिए उसके साथ वो काफी स्वाभाविक रह पाती थी.. राजेश सर ने माउंट आबू की उस रात जिस तरह उसके साथ सेक्स किया था और साथ ही साथ सन्माननीय तरीके से पेश आए थे.. इसलिए उनकी छवि भी वैशाली के मन में बहोत अच्छी थी.. बाकी अन्य मर्दों से उसे डर और घिन दोनों का एहसास होता था.. उनसे ज्यादा बात करना भी पसंद नहीं करती थी.. संजय ने उसके मम्मी-पापा के साथ जो बेहूदा बर्ताव किया था उसका वैशाली के दिल-ओ-दिमाग पर बड़ा ही गहरा असर हुआ था

शाम को साढ़े पाँच बी ऑफिस से छूटते ही पिंटू ने कविता को फोन लगाया.. कविता भी स्कूटी लेकर मार्केट जाने के बहाने निकल गई और दोनों सात बजे तक फोन पर लगे रहे.. दोनों प्रेमियों ने डेढ़ घंटे तक ढेर सारी बातें की.. पिंटू ने कविता को वैशाली के ऑफिस आने की बारे में बताया.. सुनकर कविता भी खुश हो गई.. कविता ने पिंटू को वैशाली की मानसिक स्थिति के बारे में बताया और अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा की वो बहोत ही अच्छी लड़की है.. पर उसकी किस्मत खराब चल रही है.. कविता ने ये भी बताया की वो लोग मौसम की सगाई में राजेश सर, रेणुका मैडम और पिंटू को न्योता देने वाले थे.. शादी पर सारे स्टाफ को शरीक होने के लिए बुलाएंगे..

पिंटू ने खुश होकर फोन रख दिया.. चलो.. इसी बहाने कविता के साथ रहने का मौका तो मिलेगा.. !!

मौसम अपनी दीदी और पिंटू के संबंधों से हल्का हल्का वाकिफ थी इसीलिए उसने पिंटू को आमंत्रित करने की सोची थी.. साथ ही साथ उसके मन में और भी एक बात चल रही थी.. जो वक्त आने पर पता चल जाएगी..

दूसरे दिन जब वैशाली ऑफिस पहुंची तब कल के मुकाबले ज्यादा फ्रेश और खुश लग रही थी.. स्टाफ के बाकी लोगों से अब जान पहचान भी हो रही थी और वो अधिक आसानी से सब के साथ घुल-मिल रही थी..पीयूष और पिंटू वैशाली को अच्छी कंपनी दे रहे थे.. बातों बातों में पीयूष ने वैशाली और पिंटू को मौसम की सगाई के बारे में बताया था.. वैशाली तो ये पहले से ही जानती थी.. और पिंटू भी.. पर वो किस मुंह से पीयूष को बताता की कविता ने पहले ही इस बारे में बता दिया था.. !! वो चुपचाप सुनता रहा..

दोपहर के लगभग तीन बजे रेणुका ऑफिस आई.. और जिद करके वैशाली को अपने साथ घर ले गई.. जाते जाते वैशाली ने पीयूष को कहा की वो साढ़े पाँच बजे तक लौट आएगी.. और पीयूष के साथ ही घर जाएगी.. तो वो उसका इंतज़ार करें और अकेला घर न चला जाएँ

रेणुका के साथ कार में बैठे बैठे बातें करके वैशाली को बहोत अच्छा लगा.. ऑफिस से रेणुका के घर का रास्ता काटने में लगभग दस से पंद्रह मिनट लगती थी.. वैशाली को खुश करने के तमाम प्रयत्न कर रही थी रेणुका.. राजेश ने ही उसे इस काम पर लगाया था

दोनों घर पहुंचे.. वैशाली को आराम से सोफ़े पर बिठाकर रेणुका ने पूछा

"बोल वैशाली.. क्या लेगी? चाय, कॉफी, मिल्कशेक, शर्बत, बियर या वाइन??"

वैशाली: "मैं जो पीना चाहती हूँ उसका तो आपने पूछा ही नहीं?"

याद करते हुए रेणुका ने कहा "यार, जितना याद आया सब पूछ लिया.. तेरी कोई स्पेशल फरमाइश हो तो बता दे"

वैशाली: "जहर.. !!"

रेणुका: "चुप हो जा.. आइंदा कभी ऐसी बात बोली तो ज़बान खींच लूँगी तेरी.. "

वैशाली: "रेणुकाजी, आप नहीं जानते की उस नालायक ने मेरी क्या हालत बना दी है.. मेरी और साथ साथ में मम्मी पापा की भी" संजय की याद आते ही एक भयानक कड़वाहट वैशाली के रोम-रोम में फैल गई.. ग्लानि और दुख से भरी उसकी आँखों में पानी आ गया.. उसकी आँखों में उभर रहे आंसुओं को देखकर रेणुका ने वैशाली को गले से लगा दिया.. वैशाली ने उसके कंधे पर सर रखकर खूब आँसू बहायें.. रेणुका बड़े ही प्यार से उसे सहलाते हुए दिलासा दिया.. काफी देर तक वो दोनों उसी स्थिति में खड़े रहे..

फिर रेणुका सोफ़े पर बैठ गई और वैशाली उसकी गोद में सर रखकर लेट गई.. वैशाली के गालों पर लगे आंसुओं को रेणुका ने पोंछा.. गोद में सो रही वैशाली की नजर अचानक रेणुका के पल्लू से दिख रहे उभारों पर जा टिकी.. ब्लाउस की कटोरियों की नोक वैशाली के कपाल को छु रही थी.. और इस बात से रेणुका बेखबर थी.. पर पिछले दो दिनों से.. ऑर्गजम की कगार पर पहुंचकर भी स्खलित होने का मौका न मिलने पर निराश हो रही वैशाली को एक अजीब सी झुंझुनाहट महसूस होने लगी..

माउंट आबू में होटल के रूम के अंदर.. मौसम और फाल्गुनी के साथ किया लेस्बियन सेक्स याद आ गया वैशाली को.. सामने दीवार पर टंगे हुए राजेश के हँसते क्लोज-अप की तस्वीर देखकर.. उस रात टॉइलेट में की हुई घनघोर चुदाई की यादें भी वैशाली को उकसा रही थी.. एकांत.. और पिछले दो दिनों से किनारें तक पहुँचने पर भी मंजिल को न पा सक्ने की निराशा.. जिस्म की आग.. ये सब आज एक साथ मिलकर वैशाली को बेहद परेशान करने लगे.. अपने आप को कंट्रोल में रखने की बहोत कोशिश की उसने.. पर रेणुका के आकर्षक उभारों की गोलाई और गदरायापन देखकर वो बहोत ही गरम हो रही थी.. दो दिन तक तड़पने के बाद वैशाली अपना संयम खो बैठी.. वो भी गलत जगह और गलत इंसान के साथ.. वैशाली ने धीरे से रेणुका के स्तन की कटोरी को दबा दिया



रेणुका ने चोंककर वैशाली की तरफ देखा.. शर्म से लाल वैशाली ने अपनी आँखें बंद कर ली.. अपने आप को मन ही मन कोसने लगी वैशाली.. ऐसा न किया होता तो अच्छा होता.. रेणुका तो मुझे उम्र में भी काफी बड़ी है.. वो क्या सोचेगी? मौसम और फाल्गुनी की बात अलग थी.. तीनों सहेलियों ने आपस में एक दूसरे की रजामंदी से सब कुछ किया था.. रेणुका तो कम से कम दस साल बड़ी थी.. !! शर्म और संकोच से वैशाली सिकुड़े हुए पड़ी रही


"आई एम सॉरी, रेणुका जी" वैशाली ने अपनी गलती सुधारने की कोशिश की..

जिस तरह के हालत से वैशाली गुजर रही थी.. उसको देखकर ही ये अनुमान लगाया जा सकता था की वो काफी समय से अछूती रही होगी.. रेणुका सब कुछ समझ गई.. आखिर वो भी एक महिला थी.. !! रोज रात को राजेश के लंड से जी भरकर खेलती थी वो.. और वो कितना सुखदायी था ये बराबर जानती थी रेणुका.. उसी आनंद को मिस कर रही थी वैशाली.. वो जवान थी और अभी तो संभोग करने के बेहतरीन सालों से गुजर रही थी.. ऐसी स्थिति में.. जब स्त्री का जिस्म.. काफी लंबे अरसे तक भोगा न जाएँ.. तब ऐसा होना काफी सामान्य था..

वैशाली की ओर प्रेम से देखते हुए.. आँखों में आँखें डालकर रेणुका ने कहा "कोई बात नहीं वैशाली.. रीलैक्स.. चिंता मत कर.. आई लाइक लेस्बियन लव.. " पिछली रात को ही राजेश ने रेणुका की दोनों टांगों को कंधे पर लेकर, धनाधन चोद कर ठंडा किया था.. इसलिए रेणुका को ज्यादा इच्छा तो नहीं थी.. पर वैशाली की शर्मिंदगी कम करने के लिए उसने ये कहा.. गोद में सो रही वैशाली के गालों को सहलाते हुए उसकी उँगलियाँ उसके लाल होंठों तक पहुँच गई.. काफी देर तक वो उन होंठों को उंगलियों से रगड़ती रही.. वैशाली ने रेणुका का हाथ पकड़कर अपने गाल और गर्दन के बीच दबा दिया.. ऐसा करने से रेणुका की उँगलियाँ अब ज्यादा नजदीक से वैशाली के अधरों को छूने लगी.. उसने रेणुका की पहली दो उँगलियाँ मुंह में भर ली और धीरे धीरे चूसने लगी.. और थोड़ी ही देर में वो ऐसी तेजी से चूसने लगी जैसे लंड को चूस रही हो..

रेणुका समझ गई.. निश्चित रूप से वैशाली लंड की चुसाई को मिस कर रही थी.. उसकी इस भूख को देखकर रेणुका को अचानक कुछ याद आया और उसकी आँखों में एक अनोखी सी चमक आ गई..

"मैं अभी आई वैशाली.. तेरे लिए एक सप्राइज़ लेकर.. " वैशाली का सर अपनी गोद से हटाते हुए रेणुका ने खड़ी होकर कहा और अपने बेडरूम में चली गई

कुछ मिनटों बाद जब वो लौटी तो वैशाली उसे देखकर दंग रह गई.. राजेश का पेंट और शर्ट पहनकर खड़ी हुई रेणुका कमाल की लग रही थी.. उसने जान बूझकर शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले छोड़ दीये थे.. और स्तनों के बीच की गहरी खाई को उजागर करते हुए खड़ी थी..

"कैसी लग रही हूँ मैं??" मुसकुराते हुए अपने कमर पर दोनों हाथ रखे बोली रेणुका

"जबरदस्त लग रही हो रेणुका जी.. एकदम हॉट.. साइज़ क्या है आपकी? ३८ की तो होगी ही.. " वैशाली ने पूछा

"३८ से थोड़ी सी ज्यादा.. तुम्हारा साइज़ ४० का है ये तो मैं बिना छुए ही बता सकती हूँ"

"हाँ सही कहा आपने.. ४० की साइज़ है मेरी"

रेणुका सोफ़े पर बैठ गई और वैशाली का सर वापिस अपनी गोदी में रख दिया.. पहली जिस स्थिति में बैठे थे उसी स्थिति में फिर से आ गए.. रिधम टूट जाने से वैशाली फिर से थोड़ी शरमा रही थी.. पर अब जब रेणुका ने ही पहल कर दी थी.. तब और झिझकने का कोई मतलब नहीं था.. रेणुका ने मर्दों की तरह उसने वैशाली के गर्दन के पीछे के हिस्से को मजबूती से पकड़ा और झुककर वैशाली के होंठों को चूम लिया.. शर्ट के खुले हुए बटनों से रेणुका के गदराए स्तनों की मांसल झलक देखते हुए वैशाली उन गोलाइयों को छूने लगी.. रेणुका को कॉलर से पकड़कर उसके चेहरे को अपने चेहरे से दबाते हुए वो भी उस चुंबन का जवाब देने लगी.. चूमते हुए दोनों की नजरें एक हो गई

"बहोत ही खूबसूरत है तू, वैशाली.." रेणुका के स्तन अब वैशाली के गालों से पूर्णतः दब रहे थे.. अपनी गर्दन के पिछले हिस्से पर वैशाली को कुछ चुभ सा रहा था.. पर उसने उस बारे में ज्यादा सोचा नहीं..

"मेरे बूब्स चुसेगी तू, वैशाली??"

"ओह्ह स्योर, रेणुकाजी.. !!"

रेणुका ने अपने शर्ट के बटन खोल दीये और अंदर पहनी बनियान के पीछे से अपने मदमस्त कातिल स्तनों को हाथ से बाहर निकालकर वैशाली को दिखाएं.. मर्दों के कपड़ों में रेणुका को देखकर वैशाली काफी उत्तेजित हो रही थी.. लो-नेक बनियान के बाहर लटक रहे दोनों भव्य स्तनों में एक जबरदस्त सेक्स अपील थी.. और उसकी एक इंच लंबी निप्पलों को देखकर वैशाली की चूत की फांक से रस चुने लगा था.. बड़े ही आराम से वैशाली ने रेणुका की निप्पलों को छु कर देखा.. स्पर्श स्त्री का हो या पुरुष का.. आनंद तो देता ही है.. वैशाली के इस स्पर्श से रेणुका सिहर उठी


रेणुका की गोलाइयों पर अब वैशाली अपनी जीभ फेरते हुए चाटने लगी.. अपने स्तनों को वैशाली को सौंपकर.. रेणुका बड़े आराम से सोफ़े पर पीठ टीकाकर बैठी रही.. वो मन ही मन वैशाली के विशाल उभारों को देखकर सोच रही थी.. जैसी माँ वैसी बेटी.. बिल्कुल शीला जैसे ही है.. बड़े बड़े.. पास पड़े मोबाइल को उठाकर उसने वैशाली की छातियों की तस्वीरें खींच ली.. वैशाली ने भी कोई एतराज नहीं जताया.. बल्कि उसने तो अपने ड्रेस के अंदर हाथ डालकर.. अपने स्तनों को और उभारकर बाहर निकाल दिया.. उन उभरे हुए स्तनों की रेणुका ने फिर से दो-तीन तस्वीर खींच ली..


वैशाली ने अब रेणुका की बनियान को ऊपर कर दिया और दोनों स्तनों को बिल्कुल खोल कर रख दिया.. ब्राउन रंग की निप्पलों को ध्यान से देखते हुए जो करना था वो शुरू कर दिया.. बारी बारी से दोनों निप्पलों को चूस लिया उसने.. स्तनों को और झुकाकर रेणुका ने वैशाली के मुंह में अपनी निप्पल ठूंस दी..

अब वैशाली ने पास पड़ा मोबाइल उठाया.. और उसका विडिओ ऑन करते हुए फोन रेणुका के हाथों में थमा दिया.. रेणुका समझ गई.. और उसने पास पड़े टेबल पर मोबाइल को ऐसे सेट कर दिया ताकि सारा सीन आराम से रिकार्ड हो सके.

वैशाली ने रेणुका की निप्पलों को चूसते हुए एक हाथ से अपने स्तन को दबाना शरू कर दिया.. ये देखते ही रेणुका की चूत में एक चिनगारी सी हो गई.. वैशाली के जिस्म का नरम स्पर्श और निप्पल की चुसाई.. उसे बहोत आनंद दे रही थी.. उसकी उत्तेजना अब बुरी तरह भड़क चुकी थी..


वैशाली को अपनी गोद से हटाते हुए रेणुका खड़ी हुई.. शर्ट और बनियान उतारकर वो टॉप-लेस हो गई.. वैशाली के सामने खड़ी होकर उसने उसका चेहरा अपनी चूत वाले हिस्से पर दबा दिया.. वैशाली को रेणुका के पेंट के अंदर कुछ कडक चीज महसूस हुई.. वो आश्चर्य से रेणुका की ओर देखने लगी.. अपने उस हिस्से पर वैशाली का चेहरा रगड़ते हुए रेणुका ने कहा

"जिस चीज के लिए तू तड़प रही है.. वो मेरे पास है.. ये देख.. !!" कहते हुए रेणुका ने अपने पेंट की चैन खोल दी.. और उसे नीचे सरका दिया.. ये नजारा देखकर वैशाली दंग रह गई.. क्रीम कलर का रबर से बना हुआ लंड.. रेणुका के दोनों पैरों के बीच लटक रहा था.. काले पट्टों से उस लंड को कमर पर बांध रखा था रेणुका ने..

वैशाली उस लंड के विकराल आकार को अभिभूत होकर देखती ही रही.. साधारण लंड की तुलना में ये कई ज्यादा मोटा और लंबा भी था.. रेणुका ने अपना पेंट घुटनों तक उतार दिया.. देखने पर ऐसा ही लग रहा था जैसे रेणुका का ही लंड था.. वैशाली उस अंग को घूरते हुए देखती रही.. फिर उसने रेणुका की तरफ देखा.. मुसकुराते हुए रेणुका ने कहा


"मुंह में लेकर चूस इसे.. मज़ा आएगा.. आज ये मैंने ये तेरे लिए ही पहना है.. राजेश लाया था ये मेरे लिए" रेणुका ने वैशाली के मुंह से इस रबर के लंड को दबाते ही वैशाली के होंठ खुल गए.. रेणुका ने हल्के से एक धक्का दिया.. चार इंच जितना लंड वैशाली के मुंह में चला गया.. रेणुका भी किसी मर्द की अदा से वैशाली के मुंह को चोदने लगी.. एकदम अलग सा.. नया सा अनुभव था ये वैशाली के लिए.. पर लंड की मोटाई इतनी ज्यादा थी की थोड़ी देर तक चूसने पर ही उसका जबड़ा दर्द करने लग गया.. और उसने लंड मुंह से बाहर निकाल दिया.. और बोली "बहोत मोटा है ये तो.. थोड़ा सा पतला होता तो चूसने में आसानी रहती"

"डॉन्ट वरी वैशाली.. वैसे भी ये मुंह में डालने से ज्यादा नीचे डालने के लिए ही इस्तेमाल करना है हमें.. और नीचे का तो तुम्हें पता ही है.. जितना ज्यादा मोटा उतना ही ज्यादा मज़ा आता है.. !!"

वैशाली: "बाप रे.. इतना मोटा मैं तो नहीं ले पाऊँगी.. फट जाएगी मेरी.. " कुतूहल मिश्रित उत्तेजना और डर से वैशाली उस रबर के लंड से खेलते हुए बोली

रेणुका: "मुझे तो ऐसी मोटी-तगड़ी साइज़ वाला ही पसंद है.. पतले वाले भी होते है.. पर वैसा लंड तो हम रोज घर पर देखते ही है.. जब कुछ अलग करने का मन हो तब कुछ अलग चीज ही चाहिए.. चल अब जल्दी जल्दी कपड़े उतार.. टाइम खराब मत कर.. कहीं कोई आ टपका तो मुझे इन कपड़ों में देखकर डर जाएगा.. और ये सब उतारने में भी बहोत वक्त लगता है.. ये तो मैं कभी कभी इस्तेमाल करती हूँ.. राजेश जब शहर से बाहर हो तब.. पर आज तेरी भूख को देखकर मुझे दया आ गई.. तुझे लंड के लिए तड़पता देखकर सोचा की तुझे इससे ही ठंडी कर दूँ.. "

इन बातों के दौरान दोनों ने अपने वस्त्र उतार दीये और संपूर्णतः नग्न हो गई.. रेणुका ने वैशाली के मदमस्त स्तनों को बड़े मजे से दबाएं और निप्पलों को मसल मसल कर चूस लिया.. वैशाली की चूत उत्तेजना से पानी पानी हो गई.. दो दिनों से चूत की खुजली से परेशान थी वो.. आज वही खुजली फिर से मचल पड़ी थी..

वैशाली ने रेणुका को फर्श पर लिटा दिया और अपनी फड़कती चूत को रेणुका के होंठों पर रख दिया.. वैशाली की सारी शर्म और हया.. अब हवा हो चुकी थी.. वो बिंदास रेणुका के होंठों से अपनी चूत को रगड़ते हुए उसके नंगे स्तनों को दबाने लगी..


रेणुका और वैशाली दोनों अब अपना आपा खो चुकी थी.. वैशाली ने अपनी पोजीशन बदली पर रेणुका के मुंह से चूत न हटाना पड़े इस लिए वो सिर्फ पलट गई.. रेणुका ने पहना हुआ रबर का लंबा विशाल लंड.. छत की तरफ तांक रहा था.. वैशाली ने उसे मुठ्ठी में पकड़कर हिलाया.. जिज्ञासावश वो इस रबर के लंड की बनावट को देख रही थी.. सहलाने में इतना मज़ा आ रहा था.. उसने दबाकर भी देखा.. दबाने में नरम और फिर भी सख्त.. वाह.. !! अद्भुत बनावट थी.. काफी बढ़िया कवॉलिटी का था वो औज़ार.. वैशाली को बहोत पसंद आ गया ये कृत्रिम लंड.. बनाने वाली कंपनी ने महिलाओं की उत्तेजना और जरूरतों का कितना ध्यान रखते हुए उसे बनाया था.. !!! पर इतना मोटा और लंबा क्यों बनाया होगा?? इंसान से ज्यादा गधे के लंड लग रहा था.. ये लंड को इस्तेमाल करने के बाद आनंद के बजाए कहीं दर्द न होने लगे.. ये डर लग रहा था वैशाली को

मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए वैशाली ने झुककर उस लंड के टोपे को चूम लिया.. दूसरी तरह रेणुका ने वैशाली की चूत को ऐसे चाटा.. ऐसे चाटा की वैशाली जबरदस्त गरम हो गई और उसकी धड़कती हुई चूत रेणुका के होंठों से घिसते हुए.. उसके स्तनों से होती हुई.. उस लंड तक जा पहुंची.. कुआं खुद चलकर प्यासे के पास आ गया.. उस रबर के निर्जीव अवयव में.. वैशाली ने अपनी वासनायुक्त हरकतों से जैसे जान फूँक दी थी.. वैशाली अपनी चूत को सुपाड़े पर रगड़ने लगी.. उस घर्षण से ऊपर ऊपर की खुजली तो थोड़ी शांत जरूर हुई.. पर चूत की गहराइयों में जो तूफान मचा हुआ था.. वो अब भी शांत होने की उम्मीद लगाए बैठा था..

वैशाली के चेहरे के भाव देखने के लिए उसने उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए उसे अपनी तरफ मोड़ा.. अब दोनों के शरीर एक दूसरे के बिल्कुल सामने आ चुके थे.. वैशाली के मस्त स्तनों को रेणुका ने सोते सोते ही दबाया और उसकी निप्पल को अपनी चुटकियों में भरकर मसल दिया.. आग में पेट्रोल डालने का काम किया था रेणुका ने.. अब वैशाली इतनी ज्यादा गरम हो गई थी.. की अब न उसे लंड की मोटाई का डर रहा और ना ही उसकी लंबाई का..

अपनी तंदूर जैसी गरम चूत के सुराख के बिल्कुल मध्य में लंड को टिकाते हुए वैशाली ने अपने जिस्म का वज़न रखते हुए दबाया.. आज तक इतनी मोटी कोई चीज उसकी चूत के अंदर गई नहीं थी.. पर आज की इस हवस का नशा कुछ ऐसा था की दर्द की परवाह किए बगैर ही उसने अपने जिस्म का सारा वज़न उस लंड पर रख दिया.. चूत को चीरते हुए वह रबर का लंड अंदर घुसने लगा.. और जब वैशाली की सहने की शक्ति खतम हुई तब जाकर रुकी.. रेणुका समझ गई.. ये लंड तो उसके और शीला के साइज़ के भोसड़ों के लिए बनी थी.. जवान वैशाली बेचारी कैसे उसे ले पाती.. ??

वैशाली की कमर को पकड़ते हुए.. रेणुका नीचे से अपनी कमर उठाकर हौले हौले धक्के लगाने लगी.. ये सुनिश्चित करते हुए की लंड का उतना ही हिस्सा वैशाली की चूत के अंदर जाए.. जितना की वो बर्दाश्त कर सकें.. लंड अब अंदर बाहर होने लगा.. कभी कभी जब रेणुका से थोड़ा मजबूत धक्का लग जाता और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस जाता तब वैशाली दर्द से कराह उठती..



"आह्ह.. रेणुकाजी.. ऊई माँ.. बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह.. ऐसे ही धक्के लगाते रहिए.. ओह माय गॉड.. मर गई.. आह्ह.. आह्ह.." वैशाली के हाव भाव और हरकत देखकर ही पता लग रहा था की उसे कितना मज़ा आ रहा था.. रेणुका ने वैशाली को अपने बगल में फर्श पर लिटा दिया और टेढ़ी होकर वैशाली को चोदने लगी.. थोड़ी देर तक ऐसे ही चोदते रहने के बाद.. उसने वैशाली को घोड़ी बना दिया.. और पीछे से चूत में डालकर जबरदस्त चोद दिया.. उस दौरान वैशाली तीन बार झड़ चुकी थी.. उसके आनंद का कोई ठिकाना न रहा.. बिना मर्द के भी लंड से मज़ा करने के बाद उसने रेणुका से कहा



"रेणुका जी, ये आपका औज़ार तो सच में बड़ा ही जबरदस्त है.. आप के पास तो राजेश सर है इसलिए इसकी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती होगी.. पर मुझ जैसी लड़कियों के लिए तो ये किसी आशीर्वाद से कम नहीं है.. क्या मुझे भी ऐसा एक मिल सकता है?? मतलब मैं भी ऐसा एक खरीदना चाहती हूँ.. क्यों की अब तो मुझे इसकी बहोत जरूरत पड़ने वाली है.. जब तक कोई साथ तलाश न लूँ"

"बिल्कुल सही कहा तूने.. जिस्म की आग बुझाने के लिए परेशान होते रहने से.. और अपनी इज्जत को दांव पर लगाने के डर के बगैर.. ये हथियार काफी काम आएगा तुझे.. तू लेकर जा.. और जब तुझे अपना कोई साथी मिल जाए तब लौटा देना.. ठीक है.. !!" वैशाली के स्तनों को मसलते हुए रेणुका ने कहा

"क्या सच में मैं इसे ले जा सकती हूँ?? पिछले कई दिनों से मैं तड़प रही थी.. पर अपनी ये समस्या किससे कहती? कविता भी मायके गई हुई है.. वरना उसके साथ भी थोड़ी बातचीत हो जाती और जी हल्का हो जाता.. अच्छा हुआ जो आप मुझे यहाँ ले आए.. वरना पता नहीं मैं क्या कर बैठती.. !!"

"चिंता मत कर.. ये ले जा और मजे कर.. अपने शरीर की भूख मिटाते हुए हमें तो अपनी इज्जत और आबरू का भी खयाल रखना पड़ता है.. जल्दबाजी में किसी भी मर्द को मत पकड़ लेना.. वरना फिर से कोई हरामी तेरी ज़िंदगी से खिलवाड़ करेगा.. कुछ हलकट मर्द ऐसे भी होते है.. जिन्हें सब कुछ मिलता रहे तब तक वो खुश और चुप रहते है.. पर किसी कारणवश अगर हम उनकी जरूरतों को कभी पूरा न कर पाएं.. तो हमारी इज्जत को सरेआम नीलाम करते हुए हिचकिचाते नहीं है.. ऐसे मर्दों से बचकर रहना.. और आराम से अपना जीवन व्यतीत कर.. ये डिल्डो मेरी तरफ से गिफ्ट समझ कर ले जा.. और मजे कर.. तेरी साइज़ के हिसाब से थोड़ा मोटा और लंबा जरूर है.. पर मैं राजेश से कहकर तेरी साइज़ का मँगवा दूँगी.. सेक्स लाइफ जब बोरिंग हो जाती है तब बदलाव के लिए ये उत्तम साधन है.. कभी कभी तो मैं और राजेश इसे साथ में इस्तेमाल करते है.. मज़ा आता है.. !! अच्छा सुन.. तेरे लिए दूसरा डिल्डो कौन से कलर का मँगवाऊँ?"

वैशाली शरमा गई.. अभी भी रेणुका की कमर पर वो एनाकोंडा बांधे रखा था..

"मतलब इसमे अलग अलग रंग भी होते है क्या??" वैशाली ने आश्चर्य से पूछा.. वैसे उसने इस तरह के डिल्डो ब्ल्यू-फिल्मों में देख रखे थे.. पर उसे ज्यादा जानकारी नहीं थी..

"अलग अलग कलर.. अलग अलज साइज़.. सब मिलता है.. जैसे ब्रा में अलग अलग साइज़ होती है.. बिल्कुल वैसे ही.. " रेणुका उस लंड को लटकाते हुए किचन में गई और फ्रिज से पानी की बोतल और दो ग्लास लेकर बाहर आई.. उसके चलने से.. रबर का लंड ऐसे झूल रहा था.. देखकर वैशाली की हंसी छूट गई..

"एकदम मर्द जैसे लग रहे हो आप.. बस ये छातियाँ निकलवा दीजिए" हँसते हँसते वैशाली ने कहा

"ये छातियाँ तो मर्दों को रिझाने का हथियार है.. उसे भला क्यों निकलवा दूँ?? छातियों से मर्द खुश और जब जरूरत पड़े तब ये नकली लंड लगाकर तेरे जैसी महिला भी खुश.. " रेणुका ने हँसते हुए कहा.. फिर उसने बात आगे बढ़ाई "राजेश ने कहा था की इसमे कई अलग अलग प्रकार और रंग आते है.. कुछ तो इलेक्ट्रॉनिक भी होते है.. बटन दबाते ही बिल्कुल वीर्य जैसी पिचकारी छोड़ें ऐसे डिल्डो भी होते है.."

"वाऊ.. ऐसे डिल्डो में तो कितना मज़ा आएगा.. !! ऐसे ही नए नए डिल्डो मार्केट में आते गए तो हम औरतों को मर्दों की जरूरत ही नहीं रहेगी.. !!" वैशाली ने कहा

रेणुका: "वैशाली.. ये नकली डिल्डो सिर्फ विकल्प के तौर पर ठीक है.. पर ये कभी भी असली हथियार का मुकाबला नहीं कर सकता.. असली लंड चाहे कितना भी छोटा या पतला न हो.. उसका आनंद ही अलग होता है.. "

वैशाली: "हाँ, वो बात तो है.. पर असली लंड लेने में रिस्क बहोत है.. "

रेणुका: "सही कहा तूने.. पता है.. राजेश मेरे लिए इतना मोटा लंड क्यों ले कर आया?? जब जब हम सेक्स करते और अपनी कल्पनाओ के बारे में चर्चा करते.. तब अक्सर मैं मोटे लंड का जिक्र करती.. ब्ल्यू-फिल्मों मे कल्लुओं को अपना बारह इंच का हथियार.. भोसड़े में डालकर खोदते हुए देखती.. तब मैं डर जाती.. ऊपर से वो उस खूँटे जैसे लंड को गांड में डालते तब देखकर मेरी रूह कांपने लगती.. हमेशा सोचती रहती की मोटा लंड अंदर लेने पर कैसा महसूस होता होगा.. !!"

वैशाली: "हाँ मैंने भी देखा है ब्ल्यू-फिल्मों में.. बाप रे.. मेरी तो देखकर ही फट जाती है.. !!"

रेणुका: "पर फिर भी जब उन औरतों को खुशी खुशी बारह इंच का लंड लेटे हुए देखती तब मुझे ताज्जुब होता.. मुझे जीवन में एक बार ऐसे किसी तगड़े लंड वाले से चुदवाना है.. पर यहाँ तो ऐसे मर्द मिलने से रहे.. !! इसलिए राजेश ये मोटा डिल्डो मेरे लिए लेकर आए थे.. मेरी उस इच्छा को संतुष्ट करने के लिए"

रेणुका ने डिल्डो को वॉश-बेज़ीन में पानी से धो लिया और पोंछकर बॉक्स में पैक कर दिया.. एक काली पन्नी में उस बॉक्स को डालकर उसने वैशाली को डे दिया.. वैशाली को टेंशन हो गया.. वापिस जाते वक्त कहीं पीयूष ने पूछ लिया की अंदर क्या है.. तो मैं क्या जवाब दूँगी??

दोनों ने कपड़े पहने.. मेकअप ठीक करके दोनों गाड़ी में निकल पड़ी.. वैशाली की चूत में अब भी जलन हो रही थी.. वो समझ गई की अपने मुंह से बड़ा लड्डू खाने की कोशिश करने की वजह से ये जलन हो रही थी..

वैशाली: "वैसे मज़ा बहोत आया रेणुका जी.. अचानक से कितना कुछ हो गया हमारे बीच.. !!"

रेणुका: "वैशाली.. मैं अक्सर घर पर अकेली होती हूँ.. अगर तुझे कोई साथी मिल जाएँ.. और मजे करने का मन हो तो बिंदास उसे लेकर मेरे घर चली आना.. बेकार में किसी गेस्टहाउस में जाकर खतरा मत उठाना.. वहाँ तो कभी भी पुलिस की रैड पड़ जाती है.. तू घर पर ही चली आना.. राजेश को मैं समझा दूँगी.. वो बहोत प्रेक्टिकल है.. समझ जाएगा.. और हाँ.. अगर कोई पार्टनर न मिलें तो भी चली आना.. पार्टनर का बंदोबस्त भी हो जाएगा"

वैशाली: 'साथी की जरूरत तो है.. पर ऐसा साथी कहाँ मिलेगा?? मेरी उम्र में जो भी मिलेगा वो शादीशुदा ही होगा.. और अगर कोई कुंवारा मिल भी गया तो मेरे जैसी से अब कौन शादी करेगा? किसी शादीशुदा मर्द से एकाद बार सेक्स करने तक ठीक है.. पर हमेशा के लिए ऐसा करना ठीक नहीं.. फिर मेरे और उस रोजी में क्या अंतर?? मैं किसी और औरत के साथ ऐसी नाइंसाफी नहीं कर सकती.. एकाद बाद करना ठीक है"

रेणुका ने गाड़ी ऑफिस के बाहर रोक दी.. घड़ी में पौने छह का वक्त दिखा रहा था.. पिछली पंद्रह मिनट से पीयूष वैशाली का इंतज़ार कर रहा था.. पीयूष को देखते ही रेणुका के मन में माउंट आबू की यादें ताज़ा हो गई.. एक नजर उसकी तरफ देखकर रेणुका ने नजरें फेर ली.. डिल्डो वाला बॉक्स उठाकर वैशाली को देते हुए उसने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.. ताकि पीयूष भी सुन सकें "अरे वैशाली, ये बॉक्स तो तू लेना भूल ही गई.. तेरी मम्मी की साड़ी है.. कितने दिनों पहले मैंने उनसे ली थी.. पर वापिस करना भूल जाती थी.. शीला को तो याद भी नहीं होगा.. !!"

रेणुका की इस समझदारी ने वैशाली की समस्या हल कर दी.. वरना पीयूष इस बॉक्स के बारे में जरूर पूछता.. वैशाली पीयूष के पीछे अपने बॉल चिपकाकर बैठ गई.. स्तन छूते ही पीयूष की आह्ह निकल गई..

"चुपचाप बाइक चला.. नखरे मत कर नालायक.. !!" हँसते हुए वैशाली ने कहा.. पीयूष ने बाइक चला दी.. रास्ते में पीयूष सोचता रहा की कल की तरह आज भी कुछ सेटिंग हो जाएँ तो कितना अच्छा होगा.. !! कल रात उस मादरचोद क्लीनर ने सारा मूड खराब कर दिया.. वैशाली उसके लंड को कैसे तांक रही थी!! ये लड़कियां वैसे तो शर्म की बड़ी बड़ी बातें करती रहती है.. पर जब लंड देखने का मौका मिलें तब चुकती भी नहीं है.. दोनों ने हिम्मत की और घर से बाहर निकलें.. पर कुछ हो नहीं पाया.. किस्मत.. और क्या.. !! पर अब तो वैशाली किसी भी सूरत में रात को बाहर नहीं निकलेगी.. पीयूष मन ही मन कोई और योजना सोचने लगा.. कविता भी घर पर नहीं थी इसलिए पूरी आजादी थी.. पर कुछ भी सेट नहीं हो पा रहा था.. उस तरफ मौसम कुछ कर नहीं रही थी.. और इस तरफ वैशाली के साथ कुछ हो नहीं पा रहा था.. वैसे वैशाली ने हिम्मत तो बहोत की थी.. वरना आधी रात को घरवालों से छुपकर चुदवाने के लिए बाहर निकलना बड़ी हिम्मत का काम है.. इसलिए जो कुछ भी हुआ था उसमें वैशाली की कोई गलती नहीं थी.. मौसम की याद आते ही फिर से पीयूष का मूड खराब हो गया.. तरुण ने उस दिन कैसे अपमानित किया था फोन पर.. !!

बाइक पर बैठी वैशाली अपने स्तनों को दबाते हुए पीयूष की जांघ सहला रही थी.. घर नजदीक आते ही उसने पीयूष से थोड़ी दूरी बना ली.. पूरे रास्ते दोनों के बीच कुछ खास बातचीत नहीं हुई.. क्योंकि पीयूष के दिमाग पर मौसम के खयाल हावी हो चुके थे.. वैशाली ये सोच रही थी की मम्मी पापा की नज़रों से बचाकर इस बॉक्स को अंदर कैसे ले जाया सकें??

वैशाली को शीला के घर के बाहर उतारकर पीयूष अपने घर चला गया.. मुसकुराते हुए वैशाली ने घर में प्रवेश किया.. सोफ़े पर बैठे शीला और मदन के सामने स्माइल देकर वो बिना कुछ कहें अपने कमरे में चली गई.. उसने सब से पहला काम उस बॉक्स को छुपाने का किया..

शीला ने आज वैशाली की पसंद की सब्जी बनाई थी.. डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हुए तीनों ने ढेर सारी बातें की.. वैशाली को खुश देखकर मदन के दिल को ठंडक मिली.. शीला भी खुश थी पर उसे एक चिंता खाए जा रही थी.. पीयूष के साथ वैशाली खुश थी.. पर क्या कविता के आने के बाद ये सब मुमकिन हो पाएगा?? कौन सी पत्नी अपने जवान पति के पीछे पराई लड़की को रोज ऑफिस जाते देख पाएगी??

खाना खाने के बाद वैशाली और मदन वॉक लेने के लिए गए.. बाप बेटी के बीच बहोत सारी बातें हुई.. दोनों दस बजे लौटे.. हाथ मुंह धोकर वैशाली बेड पर पड़ी और पूरे दिन की दिनचर्या याद करने लगी.. आज पूरा दिन जिस किसी से भी बातें हुई थी वो सब याद आने लगी.. लंच करते वक्त पिंटू की कही आध्यात्मिक बातें भी याद आ गई.. वो सोच रही थी.. कितने स्पष्ट विचार है पिंटू के?? आदमी भी एकदम साफ दिल का लगता है.. काफी बातें सीखने जैसी थी पिंटू से.. अच्छे विचार वाले और सिद्धांतवादी इंसान सब को आकर्षित करते है.. पीयूष और पिंटू दोनों के अलग अलग व्यक्तित्व थे पर वैशाली दोनों के साथ काफी कम्फर्ट महसूस करती थी.. संजय के साथ हुए कड़वाहट भरे अनुभवों के कारण वो न चाहते हुए भी पिंटू का बातों बातों मे अपमान कर बैठी थी इस बात का उसे पछतावा हो रहा था..

अपनी इस गलती को सुधारने के लिए और उसे सॉरी बोलने के लिए वैशाली ने पिंटू को फोन लगाया.. और कहा की मानसिक तौर पर डिस्टर्ब होने की वजह से वो उसका अपमान कर बैठी थी.. जो उसका मकसद नहीं था.. और वो इस बात को लेकर कोई कड़वाहट मन में न रखे

पिंटू: "मैं समझ सकता हूँ वैशाली जी.. और मुझे इस बारे में आपसे कोई शिकायत नहीं है.. आप चिंता मत कीजिए.. और हाँ.. आपके साथ जो कुछ भी हुआ उसका मुझे दुख है.. इस सदमे से उभरने के लिए आपको किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बेझिझक बताइएगा.. वैसे भी मुझे अच्छे मित्रों की तलाश है.. गुड नाइट.. !!"


पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम की रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है
पीयूष और वैशाली का 2 बार KLPD हो गया एक बार अनु मौसी के आने से दूसरी बार ट्रक ड्राइवर के आने से दोनों ही बीच मझधार में ही रह गए हैं वैशाली ने पीयूष के साथ उसका ऑफिस ज्वाइन कर लिया है अब उसके मजे होने वाले हैं लगता है ऑफिस में सबके साथ चांस लगने वाले हैं
 

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पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

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वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


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अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

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वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

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पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

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तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

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पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

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शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..


उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
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पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

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वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


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अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

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वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

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पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

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तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

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पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

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शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..


उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है वैशाली और पीयूष छुप छुप कर मिल रहे हैं
 
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