• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

Rajizexy

Punjabi Doc
Supreme
46,167
47,851
304
Story updated

Napster Ajju Landwalia Rajizexy Smith_15 krish1152 Rocky9i crucer97 Gauravv liverpool244 urc4me SKYESH sunoanuj Sanjay dham normal_boy Raja1239 Haseena Khan CuriousOne sab ka pyra Raj dulara 8cool9 Dharmendra Kumar Patel surekha1986 CHAVDAKARUNA Delta101 rahul 23 SONU69@INDORE randibaaz chora Rahul Chauhan DEVIL MAXIMUM Pras3232 Baadshahkhan1111 pussylover1 Ek number Pk8566 Premkumar65 @Baribar Raja thakur Iron Man DINNA Rajpoot MS Hardwrick22 Raj3465 Rohitjony Dirty_mind Nikunjbaba @brij728 Rajesh Sarhadi ROB177A Raja1239 Tri2010 rhyme_boy Sanju@ Sauravb Bittoo raghw249 Coolraj839 Jassybabra rtnalkumar avi345 Nileshmckn kamdev99008 SANJU ( V. R. ) Neha tyagi Rishiii Aeron Boy Bhatakta Rahi 1234 kasi_babu Sutradhar dangerlund Arjun125 Gentleman Radha Shama nb836868 Monster Dick Rajgoa anitarani Jlodhi35 Raj_sharma Mukesh singh Pradeep paswan अंजुम Loveforyou Neelamptjoshi sandy1684 Royal boy034 mastmast123 Rajsingh Kahal Mr. Unique Vikas@170 DB Singh trick1w Vincenzo rahulg123 Lord haram Rishi_J flyingsara messyroy SKY is black Ayhina Pooja Vaishnav moms_bachha himansh Kamini sucksena Jay1990 rkv66 Ek number Hot&sexyboy Ben Tennyson Jay1990 sunitasbs 111ramjain Rocky9i krish1152 U.and.me archana sexy Gauravv vishali robby1611 Amisha2 Tiger 786 rahul198848 Sing is king 42 Tri2010 ellysperry Raja1239 macssm Slut Queen Anjali Ragini Ragini Karim Saheb rrpr Ayesha952 sameer26.shah26 rahuliscool smash001 rajeev13 Luv69 kingkhankar arushi_dayal rangeeladesi Mastmalang 695 Rumana001 rangeeladesi sushilk Rishiii satya18 Rowdy Pandu1990 small babe
Super duper sexy update
👌👌👌👌👌👌👌
✅✅✅✅✅✅
💦💦💦💦💦
 
Last edited:

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
5,464
5,620
173
पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

rev

वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


sd

अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

rub

वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

jui

पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

RUKHI5

तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

df

पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

fondsuck

शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..


उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
wowww very very erotic update.
 

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
5,464
5,620
173
उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..

bra
सुबह के साढ़े नौ बजे वो सब निकल गए.. रास्ते से पिंटू को भी ले लिया.. मदन अब शीला और वैशाली के साथ पीछे बैठ गया और पिंटू पीयूष के साथ.. ड्राइव करते हुए पीयूष पिंटू के साथ बातें कर रहा था.. पीछे बैठी वैशाली भी उनकी बातों में जुड़ रही थी.. अब वैशाली पिंटू के साथ काफी साहजीक हो चुकी थी..

रास्ते में एक बढ़िया से होटल में लंच लेने के बाद तीनों दोपहर के ढाई बजे मौसम के घर पहुंचे..

घर में प्रवेश करने से पहले.. ऊपर के मजले की बालकनी से मौसम ने पीयूष की तरफ देखा.. पीयूष और मौसम की आँखें चार हुई.. यादों के.. ख्वाबों के.. वादों के.. अनगिनत विचारों से दोनों के मन और दिल तरबतर थे.. कल मौसम की सगाई थी..

शीला के आते ही पूरा घर जैसे खुशी से जगमगा उठा था.. सुबोधकांत तैयारिओ में व्यस्त थे.. अब तक पीयूष इस घर का इकलौता दामाद होने का लुत्फ उठा रहा था लेकिन अब उसका ये एकाधिकार खत्म होने वाला था..

पिंटू तो गाड़ी से उतरकर अपने घर चला गया.. क्योंकि वो तो इसी शहर में रहता था.. हालांकि एक बार वैशाली ने उसे रुकने के लिए आग्रह जरूर किया पर पिंटू ने बड़ी ही नम्रता से इनकार करते हुए कहा की वो कल सगाई के वक्त पहुँच जाएगा

वैशाली दौड़कर ऊपर के कमरे में गई.. जहां मौसम और फाल्गुनी तैयारी में जुटे हुए थे.. वैशाली को देखकर दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा.. दोनों को देखकर वैशाली भी भावुक हो गई.. तीनों एक दूसरे से गले मिलें..

फाल्गुनी: "वैशाली.. माउंट आबू की तरह आज रात को भी हम तीनों साथ ही सो जाएंगे.. "

मौसम: "वैसे भी आज महंदी की रात है.. देर तक जागना पड़ेगा.. और हम तीनों के सोने का इंतेजाम मेरे कमरे में ही किया गया है"

तीनों बातों में मशरूफ़ थी तभी मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. पीयूष का फोन था.. मौसम ने वैशाली और फाल्गुनी के सामने ही नॉर्मल-फॉर्मल बातचीत करके फोन रख दिया.. पर वैशाली के ध्यान में ये बात आई की फोन रखने के बाद मौसम एकदम से गंभीर हो गई थी

फाल्गुनी हर थोड़ी देर के बाद पानी या नाश्ता लाने के बहाने नीचे जाती और सुबोधकांत को अपना सुंदर सा मुखड़ा दिखाकर.. प्यार का एग्रीमेंट रीन्यू कर आती..

साढ़े आठ बजे सब ने डिनर खतम किया.. नौ बजे तक बातें करने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे.. शीला के भरे भरे पयोधरों ने मौसम के घर को जीवंत बना दिया था.. जैसे परवाने ने पूरे गुलशन को जवान कर दिया हो.. शीला को पता था की सुबोधकांत की नजर उस पर ही टिकी हुई थी.. और उसे अच्छा भी लग रहा था.. पिछली बार जब वो यहाँ आई थी तब जिस तरह सुबोधकांत ने उसे घोड़ी बनाकर गराज में चोद दिया था.. वो याद आ गया उसे..!!

पीयूष और सुबोधकान्त ऊपर के मजले में बने दूसरे बेडरूम में सोने वाले थे.. बगल वाले कमरे में फाल्गुनी, वैशाली और मौसम थे.. साथ में तीसरा कमरा जहां पर मदन और शीला की व्यवस्था की गई थी.. कविता अपनी मम्मी के साथ नीचे के कमरे में सोने वाली थी.. जानबूझकर कविता ने ऐसा सेटिंग किया था क्योंकी उसे पता था की मम्मी तो दस मिनट में सो जाएगी.. फिर वो आराम से बाहर झूले पर बैठे बैठे पिंटू से बात कर सकेगी..

महंदी लगाने वाली लड़की ग्यारह बजे आने वाली थी.. उसका इंतज़ार करते करते वैशाली, मौसम और फाल्गुनी बातें कर रहे थे.. कविता नीचे किचन का काम निपटा रही थी..

फाल्गुनी: "मौसम, तू आज अचानक इतनी सिरियस क्यों हो गई है?? कल तो तेरी सगाई है.. वहाँ भी ऐसा उतरा हुआ मुंह लेकर जाएगी तो तरुण को लगेगा की तू उससे खुश नहीं है"

मौसम: "नहीं यार.. ऐसा कुछ नहीं है.. "

वैशाली: "वो नहीं बताएगी फाल्गुनी.. शायद तरुण ने उसे बूब्स पर काट लिया है इसलिए दर्द के कारण वो अपसेट है.. !!"

मौसम: "अरे यार ऐसा कुछ भी नहीं है.. उस बेचारे ने तो देखें तक नहीं है..काटने की तो बात ही दूर है.."

फाल्गुनी ने मज़ाक करते हुए कहा "अच्छा तो इसलिए अपसेट है की अब तक वो देख नहीं पाया??"

इस मज़ाक मस्ती भारी बातचीत के बीच.. वैशाली नहाने के लिए बाथरूम में चली गई..

मौसम अब फाल्गुनी के एकदम करीब आकर बैठ गई और एकदम धीमी आवाज में बोली "फाल्गुनी, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है.. एकदम टॉप सीक्रेट है.. वैशाली को भी नहीं पता चलना चाहिए"

फाल्गुनी: "अच्छा.. तो तू इसलिए टेंशन में लग रही थी.. !! क्या बात है मौसम.. ?? मैं किसी को नहीं बताऊँगी.. "

मौसम ने गला साफ किया.. मुश्किल बात की शुरुआत करने का ये एक तरीका है.. बात करने से पहले गला साफ करना.. बात का महत्व और बात करने वाले की हिम्मत/डर दर्शाता है

फाल्गुनी बेसब्री से मौसम की बात कहने का इंतज़ार कर रही थी.. उसे इतना तो पता चल गया की वो जो कुछ भी कहने वाली थी वो बड़ा ही स्फोटक था.. कहीं मौसम को उसके और अंकल के संबंध के बारे में तो पता नहीं चल गया?? सोचकर ही फाल्गुनी मौसम से भी ज्यादा गंभीर हो गई.. उसका दिल बड़ी जोरों से धड़कने लगा..

मौसम: "अब तुझे कैसे बताऊँ.. !! यार तू किसी को बताना मत.. वरना बहोत सारी ज़िंदगीयां बर्बाद हो जाएगी.. "

फाल्गुनी: "अब तू कुछ बता तो मुझे पता चलें"

मौसम: "बात दरअसल ऐसी है की.. (फाल्गुनी की हथेली अपने हाथ में लेकर दबाते हुए).. मैं पीयूष जीजू को लाइक करती हूँ.. हम जब माउंट आबू गए थे.. तब राजेश सर ने मुझे और जीजू को गिफ्ट लेने भेजा था.. तब जीजू ने मुझे प्रपोज किया था.. घर से दूर आजाद माहोल में.. मैं भी अपने होश गंवा बैठी और उन्हें रोका नहीं.. उन्हों ने मुझे किस किया था और मेरे दबाए भी थे.. "

फाल्गुनी: "ओ बाप रे.. फिर क्या हुआ?"

मौसम: "यार जीजू मेरे पीछे पागल हो गए है.. और सच कहूँ तो मैं भी उन्हें बहोत पसंद करती हूँ.. मैंने अपने आप को समझाने की और रोकने की बहोत कोशिश की पर.. जीजू के साथ एक बार सेक्स करने की मुझे बहोत इच्छा है पर चांस नहीं मिलता"

फाल्गुनी: 'उसमें मैं कैसे तेरी मदद करूँ?" मौसम, आई एम सॉरी पर तेरे गलत कामों में.. अगर मैंने तेरा साथ दिया तो कविता दीदी के साथ कितना बड़ा धोखा होगा.. !!"

मौसम: "मुझे पता है यार.. पर मैं जीजू को प्रोमिस कर चुकी हूँ की सगाई से पहले मैं उनके साथ एक बार सेक्स करूंगी.. तब मुझे कहाँ पता था की इतनी जल्दी सगाई हो जाएगी.. !! और सगाई के बाद मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती जिससे तरुण की नज़रों में गिर जाऊँ.. तू मेरी सहेली है इसलिए तेरी मदद चाहती हूँ.. तू महंदी वाली उस लड़की के घर लेने जाने के बहाने वैशाली को साथ ले जा.. पापा तेरे साथ आएंगे कार लेकर.. उस लड़की का घर तूने देखा ही है.. पर उलटे सीधे रास्ते ले जाकर ऐसा कुछ कर की तुम लोगों को लौटने में एक घंटा लग जाए.. तब तक मैं अपना काम निपटा लूँगी"

फाल्गुनी: "यार मैं तेरी मदद करना तो चाहती हूँ.. पर तूने एक पल के लिए भी कविता दीदी के बारे में नहीं सोचा??"

फाल्गुनी की बातें सुनकर मौसम को अब गुस्सा आ रहा था.. बड़ी सती-सावित्री बन रही थी.. !!

मौसम: "फाल्गुनी तू मेरी मदद नहीं कर सकती तो कोई बात नहीं.. पर मुझे रोकने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मैं कितना तड़प रही हूँ.. तुझे क्या पता.. !! जीजू का स्पर्श मुझे रोज याद आकर सताता है.. "

फाल्गुनी: "तो तू मास्टरबेट कर ले ना..!! वैसे भी आज रात को हम तीनों साथ ही सोने वाले है.. तब जितना मर्जी मजे कर लेना.. सारी आग बुझा लेंगे हम तीनों.. पर कविता दीदी से ऐसा धोखा करने के लिए मेरा मन तो नहीं मान रहा"

अब मौसम अपना आपा खो बैठी

मौसम: "तेरे मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती, फाल्गुनी.. मेरे बाप के साथ सेंकड़ों बार चुदवाते वक्त तुझे मेरी मम्मी का कभी विचार नहीं आया था??"

स्तब्ध हो गई फाल्गुनी.. !! उसका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया..

फाल्गुनी: "ये तू क्या बक रही है?? तुझे शर्म भी नहीं आती ऐसा आरोप लगाते हुए.. !!"

मौसम: "बहोत हुआ तेरा नाटक, फाल्गुनी.. मुझे सब पता है.. मैंने अपनी इन सगी आँखों से तुझे और वैशाली को पापा के साथ चुदाई करते.. उनकी ऑफिस में देखा है!!"

फाल्गुनी के पैरों तले से धरती खिसक गई.. भांडा फूट चुका था.. वो मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. झूठ बोलने वाले का जब भंडाफोड़ होता है तब उनका चेहरा देखने लायक होता है.. वो आँखें झुकाकर सुनती रही.. और फिर इतना ही बोली "मौसम, तेरे पास एक घंटे का समय है.. हो जाएगा एक घंटे में सब?"

मौसम: "जैसा मैंने कहा.. तू वैशाली और पापा को लेकर गाड़ी में जाएगी.. फिर तू रास्ता भूल जाने का नाटक करना.. आधा घंटा गाड़ी में दोनों को यहाँ वहाँ घुमाना.. फिर महंदी वाली के घर उसे लेने पहुँच जाना.. जब तक मैं कॉल न करूँ.. तू उन लोगों के लेकर वापिस मत आना.. तेरा नाम सुनते ही पापा आने से मना नहीं करेंगे.. उसी बहाने तुझे और वैशाली को पापा का लंड चूसने का मौका भी मिल जाएगा" चेहरे पर घिन और थोड़ी सी नफरत के भाव के साथ मौसम ने कहा

मौसम के मुंह से अपने पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर फाल्गुनी अंदर से हिल गई.. वो जवाब देने की स्थिति में नहीं थी..

काफी देर तक चुप्पी साधे रखने के बाद फाल्गुनी ने मौसम से पूछा "जब तुझे पहले से ही सब कुछ पता था तो इतने दिनों तक खामोश क्यों रही?"

मौसम: "वो सब बातें करने का अभी वक्त नहीं है.. वैसे मुझे अभी भी तुझसे कई सवालों के जवाब लेने है.. पर अभी नहीं.. अभी तो मुझे अपना प्रोमिस पूरा करना है.. तू अब जा फटाफट.. आज अगर ये मौका चूक गई तो फिर जीवन भर पछतावा रहेगा मुझे.. तू कुछ भी कर.. अपना दिमाग लगा.. और कम से कम एक घंटे के लिए मुझे प्रायवसी देना.. और हाँ.. वैशाली को इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए.. वो कविता दीदी की सहेली है.. कहीं दीदी को बता देगी तो मुझसे कभी बात नहीं करेगी.. "

तभी बाथरूम का दरवाजा खुला.. अंदर से वैशाली बाहर निकली.. कमर के ऊपर सम्पूर्ण टॉप-लेस वैशाली ने केवल कमर पर तौलिया बांध रखा था.. उसके विशाल स्तन झूल रहे थे..

towel

देखकर ही पता चलता था की उन्हें आज तक कई लोगों ने रगड़ा होगा.. माउंट आबू की उस रात को तीनों ने जो लेस्बियन हनीमून का आनंद लिया था.. उसके बाद तीनों के बीच शर्म की सारी दीवारें ढह चुकी थी.. बिना ब्रा पहने ही वैशाली ने टीशर्ट चढ़ा दिया और अपने स्तनों के लाइव-शो पर पर्दा डाल दिया.. पर टीशर्ट में ढंके हुए मदमस्त बबले और भी खतरनाक लग रहे थे..

मौसम वैशाली के करीब गई और उसको कमर से पकड़कर बोली "बड़ी हॉट लग रही है तू.. !!"

वैशाली: "हॉट तो मैं पहले से हूँ.. जरूरत तो मुझे ठंडा होने की है.. जब नीचे आग लगती है तब हाहाकार मच जाता है.. तुझे भी जल्द ही इस बारे में पता लग जाएगा.. वैसे तुम दोनों कब से क्या खुसुर-पुसुर कर रही थी??"

मौसम: "अरे यार.. वो महंदी वाली लड़की को फोन किया था.. उसका स्कूटर खराब हो गया है.. और इतनी रात को वो ऑटो से आने में डर रही है.. फाल्गुनी ने उसका घर देखा हुआ है.. तो मैंने सोचा पापा को साथ ले जाकर, तुम और फाल्गुनी उसे घर से ले आओ.. फाल्गुनी ने उसका घर देखा हुआ है"

वैशाली: "ये बढ़िया काम किया.. जब घर में गाड़ी हो तब किसी बात के लिए क्यों झिझकना? फाल्गुनी तू अंकल को बता दे.. हम लोग अभी निकल जाते है.. " वैशाली ने मौसम का काम आसान कर दिया.. फाल्गुनी सुबोधकांत को बुलाने चली गई

ऐसा सुनहरा मौका मिलते ही, सुबोधकांत तुरंत तैयार हो गए.. वैशाली और फाल्गुनी उनकी गाड़ी में चले गए

मौसम ने तुरंत पीयूष को अपने कमरे में बुला लिया.. जैसे ही पीयूष अंदर आया.. मौसम ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया और पीयूष से लिपट पड़ी.. एक जबरदस्त लीप किस करते हुए दोनों एकाकार हो गए.. आवेश से गले लगने के कारण.. मौसम के बिना ब्रा के स्तन पीयूष की छाती से दबकर चपटे हो गए.. वह नरम और गद्देदार स्पर्श तो पीयूष की कमजोरी थी.. जबरदस्त उत्तेजना के बीच जरा सा भी समय बर्बाद किए बगैर.. पीयूष ने मौसम की शॉर्ट्स में हाथ डाल दिया और उसकी कुंवारी कमसिन चूत को सहलाने लगा..

ins

अब तक मौसम यही समझती थी की उत्तेजना को शांत करने के लिए किस और सहलाने से काम बन जाता होगा.. उसे कहाँ पता था की यह आग बुझाने के लिए तो गुप्तांगों को रगड़ रगड़कर तहस-नहस कर देना पड़ता है तब जाकर ये उत्तेजना शांत होती है..

"ओहह जीजू.. मुझे कुछ हो रहा है" मौसम ने पीयूष के कान में कहा

"मेरी जान.. उसे ही तो प्यार कहते है.. कुछ कुछ होने में ही बहोत कुछ होता है.. आह्ह मौसम.. तेरे ये बूब्स कितने कडक है यार.. !! तुझे तो पता ही है की मुझे ये कितने पसंद है.. !! मेरे इन पसंदीदा दोनों यारों के लिए मैं गिफ्ट लाया हूँ.. ये देख" कहते हुए पीयूष ने अपनी जेब से स्टाइलिश ब्रा निकाली जो उसने पिछले दिन खरीदी थी.. १२५० रुपये का चुना लगवाकर..

"वाऊ जीजू.. कितनी मस्त है.. !! वैसे तो मुझे व्हाइट रंग की ज्यादा पसंद है.. पर कोई बात नहीं.. ये लाल रंग तरुण का फेवरिट है.. उसे पसंद आएगा.. !! मौसम ने नादानी में कही बात.. पीयूष को कितनी तकलीफ पहुंचाएगी ये उसे पता नहीं था.. ऐसी स्थिति में तरुण का नाम सुनकर पीयूष को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके खड़े लंड पर तेजाब डाल दिया हो.. !!

तरुण के विचारों को दिमाग से हटाकर पीयूष ने वह ब्रा मौसम को पहना दी.. एकदम परफेक्ट फिट आ गई मौसम के स्तनों की गोलाइयों पर..

tr

दोनों ब्रा के कप को हाथों से दबाते हुए पीयूष ने कहा "यार, तेरे बूब्स तो मुझे पागल बना रहे है.. !!"

"आज की रात के लिए यह दोनों आपके ही है जीजू.. कल से ये तरुण के होकर रह जाएंगे.. " फिर से तरुण का नाम सुनकर पीयूष का मुंह कड़वा हो गया.. पर आज वो बेकार के विचारों मे समय गंवाना नहीं चाहता था.. ये हुस्न का जाम अब उसके लबों के बिल्कुल करीब था.. किसी भी प्रकार की गलती की गुंजाइश नहीं थी..

मौसम के गुलाबी अधरों को जीभ से चाटते हुए एकदम रोमेन्टीक अंदाज में पीयूष ने कहा "कितने वक्त के बाद जाकर तू आखिर मिली है तू.. तुझे याद कर रहे इस लंड को मैं रोज समझाता था.. देख तो जरा.. तेरी चूत की जुदाई में बेचारा कैसे आँसू बहा रहा है.. !!" अपनी शॉर्ट्स से लंड बाहर निकालकर.. सुपाड़े की नोक पर लगी उत्तेजना की बूंदों को दिखाते हुए मौसम के हाथ में थमा दिया..

"ओह्ह जीजू.. पहले मुझे जी भरकर किस तो कर लेने दीजिए.. मैं आपकी किस को बहोत मिस कर रही थी.. " कहते हुए मौसम ने पीयूष के होंठों पर अपने होंठ रख दीये.. प्यार का इजहार करने का सब से पुराना तरीका है ये..

ks

मौसम के मदमस्त कुँवारे संतरों को हाथों से मसलते हुए पीयूष ने काफी देर तक उसके होंठों को चूसा.. उस दौरान.. अपने पैरों के बीच गरम गरम लंड का स्पर्श होते ही मौसम के कुँवारे बदन में अजीब सी सिहरन उठने लगी.. आँखें बंद हो गई उसकी.. मौसम के उरोज पहले से भी ज्यादा सख्त हो गए.. उसने आँख बंद की.. तो उसे वो सीन याद आ गया.. जब फाल्गुनी उसके पापा का लंड चूस रही थी.. कितनी मस्ती से चूस रही थी.. कैसा लगता होगा लंड चूसने में.. ?? मुझे भी चूसना है.. पर जीजू से कैसे कहूँ.. माउंट आबू में वैशाली ने कहा था की जब हम लंड चूसते है तब हमारे पार्टनर को बहोत मज़ा आता है..

अनगिनत सवालों के बीच घिरी हुई मौसम की विचारधारा तब टूटी जब उसकी ब्रा की कटोरी ऊपर करके पीयूष उसके स्तन को चूसने लगा.. निप्पल पर लार की ठंडक और जीभ की गर्मी.. दोनों का एक साथ एहसास होने लगा..

sk


मौसम ने उत्तेजित होकर पीयूष का लोडा पकड़ लिया..

gd

मौसम के स्तनों को चूसते हुए पीयूष ने एक झटके में उसकी चड्डी उतारकर कमर से नीचे नंगा कर दिया.. और अपनी दो उंगली जैसे ही उसकी रिस रही बुर में डाली.. मौसम ऐसे मचलने लगी जैसे मदारी के बिन बजाते ही नागिन नाच रही हो.. !! सख्त लंड को चूसने के लिए मौसम बेकरार हो रही थी.. पर उसे बोलने में शर्म आ रही थी...

fin

आखिर उसने तय किया की जीजू सामने से कहेंगे तो ही मुंह में लूँगी.. पर शादी से पहले ये अनुभव करने का ये आखिरी मौका था.. और आज वो अपनी ज़िंदगी पूरी तरह जी लेना चाहती थी.. वो अब भी पीयूष के लाल सुपाड़े को तांक रही थी..

"मौसम, मेरी एक रीक्वेस्ट है.. अगर तुझे ऐतराज ना हो तो.. !!" पीयूष ने कहा

"आज किसी चीज का कोई बंधन मत रखना जीजू.. आपकी सारी रीक्वेस्ट मैं आज पूरी कर दूँगी.. आप सिर्फ कहिए एक बार.. हो जाएगा"

"तुझे ऑरल सेक्स के बारे में पता है?"

मौसम समझ गई की जीजू भी उसके मुंह में लंड देना चाहते है पर झिझक रहे है..

मौसम: "ओह जीजू.. वो सब तो मुझे नहीं पता.. पर आपकी जो इच्छा हो मैं पूरा करूंगी"

पीयूष: "पर मुझे लगता है की सुनकर तू नाराज हो जाएगी"

मौसम सोच रही थी.. की जीजू को कैसे समझाऊँ?? की आपका लंड चूसने के लिए तो मैं मर रही हूँ.. पर बोल नहीं पा रही

बहोत मन होने के बावजूद पीयूष ने कहा नहीं.. उसे डर था की लंड चुसवाने के चक्कर में कहीं कुंवारी चूत की चुदाई का मौका हाथ से ना निकल जाए.. !!

कुंवारी लड़की के संग चुदाई.. ये जरा पेचीदा मामला है.. सेक्स के अलावा भी उसमे बहोत कुछ होता है.. एक लड़की.. यौवन के द्वार तक पहुँचने तक.. अपनी इज्जत को जान की तरह संभालती है.. छाती से दुपट्टा सरक जाए तो भी शर्म से पानी पानी हो जाने वाली मुग्धा जब पहली बार अपने प्रेमी के सामने नंगी होती है.. तब बहोत कुछ होता है.. वो क्षण होती है विश्वास की.. समर्पण की.. प्रेम की.. पराकाष्ठा की.. जीवन में प्रथम बार किसी पुरुष के सामने नग्न हुई मौसम के सौन्दर्य में.. कौमार्य की खुमारी छलक रही थी.. उसके स्तनों का वैभव और कुँवारे बदन का जादू पीयूष को पागल कर रहा था..


2021


मौसम की चूत में उंगली अंदर बाहर करते हुए पीयूष उसके स्तनों को मसलता जा रहा था.. मौसम पीयूष के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाते हुए इतनी बेकाबू हो गई की सिसकते हुए बोली "ओह्ह जीजू.. अब मैं और सह नहीं पाऊँगी.. जल्दी कुछ करो.. आह्ह.. !! नीचे कुछ कुछ हो रहा है "

fp

पीयूष और तेजी से अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगा और उसके साथ ही मौसम ऑन ध स्पॉट झड़ गई.. ठंडी हो गई वो.. उसकी सांसें अब नियंत्रित होते देख पीयूष समझ गया.. की ठंडी होने के बाद मौसम फिर से शरीफ बन जाएगी.. जब चूत में खुजली उठी हो तब समय, स्थान दिन या रात न देखकर, गांड उछाल उछालकर चुदवाने वाली स्त्री.. खुजली शांत होते ही एकदम शालीन और संस्कारी बन जाती है..

थोड़ी ही देर में मौसम नॉर्मल हो गई.. उसके हाथ में जो पीयूष का लंड था वो और कडक हो गया पर मौसम की पकड़ ढीली हो गई.. वह एकदम धीमी आवाज में बोली "जीजू.. अब जो करना है जल्दी जल्दी करो... ताकि मेरा प्रोमिस पूरा हो जाएँ और टेंशन खतम हो"

hd

पीयूष ने मौसम को बेड पर लिटा दिया और उसकी दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जंघाओं को चौड़ी करके.. कामरस से लथबथ चूत के वर्टिकल होंठों क ओ उंगलियों से अलग किया.. अंदर का लाल लसलसित हिस्सा देखकर पीयूष से रहा नहीं गया और उसने झुककर मौसम की चूत को चूम लिया.. और उसके साथ ही मौसम का शरीर फिरसे तपने लगा.. वो ऐसे कांपने लगी जैसे उसे बुखार चढ़ गया हो.. लंड के कडक सुपाड़े को चूत पर रगड़कर.. मौसम को लंड के आक्रामक प्रहारों के लिए तैयार कर रहा था पीयूष

kp
"आई लव यू, मौसम" कहते ही पीयूष ने कसकर धक्का लगाया और मौसम की चूत में आधा लंड उतार दिया.. फिंगरिंग से स्निग्ध हो रखी चूत को ज्यादा दर्द तो नहीं हुआ.. पर वो प्रहार उसकी अपेक्षा से अधिक तीव्र था इसलिए मौसम दर्द और डर से सिसक पड़ी.. "ऊई माँ.. जीजू.. जरा आराम से.. और थोड़ा जल्दी करना.. कहीं कोई आ न जाएँ"

pp2pp

पीयूष अब अपना आपा खो चुका था.. कुंवारी लड़की की चूत में आधा लंड घुसेड़कर भला कौन अपने आप पर काबू रख पाएगा.. !! पीयूष ने मौसम की चूत का उद्धार कर दिया.. ज़िंदगी का पहला पुरुष सहवास.. मौसम को ऐसा लग रहा था.. जैसे पहली बरसात.. !! उसकी चूत से उत्तेजना और सुख का झरना सा बहने लगा था.. जैसे जैसे पीयूष उसकी चूत में लंड अंदर बाहर करता गया वैसे वैसे मौसम, कली से खिलकर फूल बनती गई.. पीयूष को मौसम के स्तन खास तौर पर पसंद थे.. इसलिए इस सम्पूर्ण संभोग के दरमियान उसने एक बार भी अपने हाथ मौसम के स्तनों से नहीं हटाए.. वो इतनी सख्ती से मौसम के कडक संतरों को मसल रहा था की मौसम को दर्द होने लगा.. मौसम की अब स्त्री-जीवन की शुरुआत हो चुकी थी.. इसलिए संभोग का दर्द सहना अब आवश्यक था.. और इसी दर्द में ही बेइंतहाँ आनंद मिलने वाला था.. !!

मौसम के ऊपर हुमच हुमच कर कूद रहा पीयूष.. बार बार नीचे झुककर मौसम की छोटी सी निप्पलों को चूस लेता.. तब मौसम को पहली बार एहसास हुआ की.. क्यों वैशाली और फाल्गुनी.. उसके पापा के साथ ये सब करने के लिए इतने उत्सुक रहते थे.. !! कितना मज़ा आ रहा था.. !! उसने आज ये साहस न किया होता तो वह भी इस अलौकिक आनंद से वंचित रह जाती.. !!


hmf2

पीयूष अपनी मंजिल के आखिरी पड़ाव पर पहुँच गया था और उसकी धक्के लगाने की स्पीड चार गुना बढ़ चुकी थी.. मौसम को पता नहीं चल पा रहा था की अचानक पीयूष के हाव भाव.. धक्कों की गति.. बदल क्यों गई.. !! उसके लिए यह सब नया नया था.. यह पहली बार था की कोई पुरुष उसके ऊपर चढ़कर.. चूत में लंड डालकर.. धक्के लगाते हुए झड़ने की कगार पर था.. जो कुछ भी चल रहा था उसमें उसे बहोत मज़ा आ रहा था.. उसकी चूत ने अब तक ढेर सारा रस छोड़ दिया था.. बार बार उसकी चूत ने स्खलित होकर कुल्ले कर दीये थे.. आखिर थक कर वो सुस्त हो गई.. तब पीयूष ने चूत से लंड को बाहर खींच निकाला और मौसम के पेट पर.. वीर्य की जोरदार पिचकारी मार दी.. मौसम के ये द्रश्य अभिभूत कर गया.. !! गाढ़े वीर्य की गरमागरम पिचकारी जिस्म को छूते ही मौसम सिहर उठी..

hcb

"ओह्ह जीजू.. आई लव यू.. " आज पहली बार मौसम ने खुलकर पीयूष को "लव यू" कहा था.. कडक लोड़े को वीर्य की बौछार करते देखने का पहला अनुभव मौसम के लिए बेहद उत्तेजक रहा था.. लंड की रचना से एक तो वो अनजान थी.. नरम लंड कैसे सख्त हो जाता है.. और सख्त होकर फिर से नरम क्यों हो जाता है.. ये सब जिज्ञासा संतुष्ट होना अभी बाकी था.. ऐसी सूरत में.. वीर्या का फव्वारा उसके स्तन तक उड़ता देख वो इतनी खुश हो गई की उसने पीयूष को खींचकर अपने गले लगा लिया..

थोड़ी देर तक उसी स्थिति में रहने के बाद दोनों पूर्ववत होने लगे.. उठकर दोनों ने कपड़े पहने.. और नॉर्मल होकर बेड पर बैठ गए..

मौसम ने फाल्गुनी को मेसेज किया "और कितनी देर लगेगी? मुझे तो नींद आ रही है.. !!"

जब फाल्गुनी ने ये मेसेज अपने मोबाइल पर पढ़ा तब वैशाली आगे की सीट पर बैठे बैठे झुककर सुबोधकांत का लंड चूस रही थी..

cr

और फाल्गुनी पीछे बैठे बैठे सुबोधकांत की छाती के घुँघराले बालों में हाथ फेर रही थी.. फाल्गुनी ने मेसेज पर रिप्लाय दिया "हम महंदी वाली के घर बस पहुँचने ही वाले है.. फिर घर आने में दस मिनट ही लगेंगे" परोक्ष तरीके से उसने मौसम को बता दिया की उसके पास सिर्फ उतना ही समय था..

नीचे के कमरे में.. रमिलाबहन के सो जाते ही.. कविता सरककर किचन से सटे स्टोररूम का दरवाजा अंदर से बंद कर.. पिंटू से बातें करने में व्यस्त थी.. उसे कहाँ अंदाजा था की ऊपर के मजले पर उसका पति पीयूष.. उसकी कुंवारी बहन को सेक्स के पाठ पढ़ा चुका था.. उसे तो ये भी पता नहीं था की उसके पापा, वैशाली और फाल्गुनी बाहर गए हुए थे.. वो तो यही सोच रही थी की पीयूष उसके पापा के साथ एक कमरे में है.. और दूसरे कमरे में मौसम के साथ वैशाली और फाल्गुनी बैठे है.. !!


जैसे ही सुबोधकांत की गाड़ी घर पहुंची.. गाड़ी की आवाज सुनकर पीयूष खड़ा हुआ और चुपचाप दूसरे कमरे में जाकर लेट गया.. मौसम ने अपने कपड़े ठीक किए और बेड के चादर की सिलवटें भी साफ कर दी.. चुदाई के सारे सबूत मिटा दीये उसने..
Woww Lucky Piyush ek seal pack chut khol di.
 

SKYESH

Well-Known Member
3,281
7,947
158
उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..

bra
सुबह के साढ़े नौ बजे वो सब निकल गए.. रास्ते से पिंटू को भी ले लिया.. मदन अब शीला और वैशाली के साथ पीछे बैठ गया और पिंटू पीयूष के साथ.. ड्राइव करते हुए पीयूष पिंटू के साथ बातें कर रहा था.. पीछे बैठी वैशाली भी उनकी बातों में जुड़ रही थी.. अब वैशाली पिंटू के साथ काफी साहजीक हो चुकी थी..

रास्ते में एक बढ़िया से होटल में लंच लेने के बाद तीनों दोपहर के ढाई बजे मौसम के घर पहुंचे..

घर में प्रवेश करने से पहले.. ऊपर के मजले की बालकनी से मौसम ने पीयूष की तरफ देखा.. पीयूष और मौसम की आँखें चार हुई.. यादों के.. ख्वाबों के.. वादों के.. अनगिनत विचारों से दोनों के मन और दिल तरबतर थे.. कल मौसम की सगाई थी..

शीला के आते ही पूरा घर जैसे खुशी से जगमगा उठा था.. सुबोधकांत तैयारिओ में व्यस्त थे.. अब तक पीयूष इस घर का इकलौता दामाद होने का लुत्फ उठा रहा था लेकिन अब उसका ये एकाधिकार खत्म होने वाला था..

पिंटू तो गाड़ी से उतरकर अपने घर चला गया.. क्योंकि वो तो इसी शहर में रहता था.. हालांकि एक बार वैशाली ने उसे रुकने के लिए आग्रह जरूर किया पर पिंटू ने बड़ी ही नम्रता से इनकार करते हुए कहा की वो कल सगाई के वक्त पहुँच जाएगा

वैशाली दौड़कर ऊपर के कमरे में गई.. जहां मौसम और फाल्गुनी तैयारी में जुटे हुए थे.. वैशाली को देखकर दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा.. दोनों को देखकर वैशाली भी भावुक हो गई.. तीनों एक दूसरे से गले मिलें..

फाल्गुनी: "वैशाली.. माउंट आबू की तरह आज रात को भी हम तीनों साथ ही सो जाएंगे.. "

मौसम: "वैसे भी आज महंदी की रात है.. देर तक जागना पड़ेगा.. और हम तीनों के सोने का इंतेजाम मेरे कमरे में ही किया गया है"

तीनों बातों में मशरूफ़ थी तभी मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. पीयूष का फोन था.. मौसम ने वैशाली और फाल्गुनी के सामने ही नॉर्मल-फॉर्मल बातचीत करके फोन रख दिया.. पर वैशाली के ध्यान में ये बात आई की फोन रखने के बाद मौसम एकदम से गंभीर हो गई थी

फाल्गुनी हर थोड़ी देर के बाद पानी या नाश्ता लाने के बहाने नीचे जाती और सुबोधकांत को अपना सुंदर सा मुखड़ा दिखाकर.. प्यार का एग्रीमेंट रीन्यू कर आती..

साढ़े आठ बजे सब ने डिनर खतम किया.. नौ बजे तक बातें करने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे.. शीला के भरे भरे पयोधरों ने मौसम के घर को जीवंत बना दिया था.. जैसे परवाने ने पूरे गुलशन को जवान कर दिया हो.. शीला को पता था की सुबोधकांत की नजर उस पर ही टिकी हुई थी.. और उसे अच्छा भी लग रहा था.. पिछली बार जब वो यहाँ आई थी तब जिस तरह सुबोधकांत ने उसे घोड़ी बनाकर गराज में चोद दिया था.. वो याद आ गया उसे..!!

पीयूष और सुबोधकान्त ऊपर के मजले में बने दूसरे बेडरूम में सोने वाले थे.. बगल वाले कमरे में फाल्गुनी, वैशाली और मौसम थे.. साथ में तीसरा कमरा जहां पर मदन और शीला की व्यवस्था की गई थी.. कविता अपनी मम्मी के साथ नीचे के कमरे में सोने वाली थी.. जानबूझकर कविता ने ऐसा सेटिंग किया था क्योंकी उसे पता था की मम्मी तो दस मिनट में सो जाएगी.. फिर वो आराम से बाहर झूले पर बैठे बैठे पिंटू से बात कर सकेगी..

महंदी लगाने वाली लड़की ग्यारह बजे आने वाली थी.. उसका इंतज़ार करते करते वैशाली, मौसम और फाल्गुनी बातें कर रहे थे.. कविता नीचे किचन का काम निपटा रही थी..

फाल्गुनी: "मौसम, तू आज अचानक इतनी सिरियस क्यों हो गई है?? कल तो तेरी सगाई है.. वहाँ भी ऐसा उतरा हुआ मुंह लेकर जाएगी तो तरुण को लगेगा की तू उससे खुश नहीं है"

मौसम: "नहीं यार.. ऐसा कुछ नहीं है.. "

वैशाली: "वो नहीं बताएगी फाल्गुनी.. शायद तरुण ने उसे बूब्स पर काट लिया है इसलिए दर्द के कारण वो अपसेट है.. !!"

मौसम: "अरे यार ऐसा कुछ भी नहीं है.. उस बेचारे ने तो देखें तक नहीं है..काटने की तो बात ही दूर है.."

फाल्गुनी ने मज़ाक करते हुए कहा "अच्छा तो इसलिए अपसेट है की अब तक वो देख नहीं पाया??"

इस मज़ाक मस्ती भारी बातचीत के बीच.. वैशाली नहाने के लिए बाथरूम में चली गई..

मौसम अब फाल्गुनी के एकदम करीब आकर बैठ गई और एकदम धीमी आवाज में बोली "फाल्गुनी, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है.. एकदम टॉप सीक्रेट है.. वैशाली को भी नहीं पता चलना चाहिए"

फाल्गुनी: "अच्छा.. तो तू इसलिए टेंशन में लग रही थी.. !! क्या बात है मौसम.. ?? मैं किसी को नहीं बताऊँगी.. "

मौसम ने गला साफ किया.. मुश्किल बात की शुरुआत करने का ये एक तरीका है.. बात करने से पहले गला साफ करना.. बात का महत्व और बात करने वाले की हिम्मत/डर दर्शाता है

फाल्गुनी बेसब्री से मौसम की बात कहने का इंतज़ार कर रही थी.. उसे इतना तो पता चल गया की वो जो कुछ भी कहने वाली थी वो बड़ा ही स्फोटक था.. कहीं मौसम को उसके और अंकल के संबंध के बारे में तो पता नहीं चल गया?? सोचकर ही फाल्गुनी मौसम से भी ज्यादा गंभीर हो गई.. उसका दिल बड़ी जोरों से धड़कने लगा..

मौसम: "अब तुझे कैसे बताऊँ.. !! यार तू किसी को बताना मत.. वरना बहोत सारी ज़िंदगीयां बर्बाद हो जाएगी.. "

फाल्गुनी: "अब तू कुछ बता तो मुझे पता चलें"

मौसम: "बात दरअसल ऐसी है की.. (फाल्गुनी की हथेली अपने हाथ में लेकर दबाते हुए).. मैं पीयूष जीजू को लाइक करती हूँ.. हम जब माउंट आबू गए थे.. तब राजेश सर ने मुझे और जीजू को गिफ्ट लेने भेजा था.. तब जीजू ने मुझे प्रपोज किया था.. घर से दूर आजाद माहोल में.. मैं भी अपने होश गंवा बैठी और उन्हें रोका नहीं.. उन्हों ने मुझे किस किया था और मेरे दबाए भी थे.. "

फाल्गुनी: "ओ बाप रे.. फिर क्या हुआ?"

मौसम: "यार जीजू मेरे पीछे पागल हो गए है.. और सच कहूँ तो मैं भी उन्हें बहोत पसंद करती हूँ.. मैंने अपने आप को समझाने की और रोकने की बहोत कोशिश की पर.. जीजू के साथ एक बार सेक्स करने की मुझे बहोत इच्छा है पर चांस नहीं मिलता"

फाल्गुनी: 'उसमें मैं कैसे तेरी मदद करूँ?" मौसम, आई एम सॉरी पर तेरे गलत कामों में.. अगर मैंने तेरा साथ दिया तो कविता दीदी के साथ कितना बड़ा धोखा होगा.. !!"

मौसम: "मुझे पता है यार.. पर मैं जीजू को प्रोमिस कर चुकी हूँ की सगाई से पहले मैं उनके साथ एक बार सेक्स करूंगी.. तब मुझे कहाँ पता था की इतनी जल्दी सगाई हो जाएगी.. !! और सगाई के बाद मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती जिससे तरुण की नज़रों में गिर जाऊँ.. तू मेरी सहेली है इसलिए तेरी मदद चाहती हूँ.. तू महंदी वाली उस लड़की के घर लेने जाने के बहाने वैशाली को साथ ले जा.. पापा तेरे साथ आएंगे कार लेकर.. उस लड़की का घर तूने देखा ही है.. पर उलटे सीधे रास्ते ले जाकर ऐसा कुछ कर की तुम लोगों को लौटने में एक घंटा लग जाए.. तब तक मैं अपना काम निपटा लूँगी"

फाल्गुनी: "यार मैं तेरी मदद करना तो चाहती हूँ.. पर तूने एक पल के लिए भी कविता दीदी के बारे में नहीं सोचा??"

फाल्गुनी की बातें सुनकर मौसम को अब गुस्सा आ रहा था.. बड़ी सती-सावित्री बन रही थी.. !!

मौसम: "फाल्गुनी तू मेरी मदद नहीं कर सकती तो कोई बात नहीं.. पर मुझे रोकने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मैं कितना तड़प रही हूँ.. तुझे क्या पता.. !! जीजू का स्पर्श मुझे रोज याद आकर सताता है.. "

फाल्गुनी: "तो तू मास्टरबेट कर ले ना..!! वैसे भी आज रात को हम तीनों साथ ही सोने वाले है.. तब जितना मर्जी मजे कर लेना.. सारी आग बुझा लेंगे हम तीनों.. पर कविता दीदी से ऐसा धोखा करने के लिए मेरा मन तो नहीं मान रहा"

अब मौसम अपना आपा खो बैठी

मौसम: "तेरे मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती, फाल्गुनी.. मेरे बाप के साथ सेंकड़ों बार चुदवाते वक्त तुझे मेरी मम्मी का कभी विचार नहीं आया था??"

स्तब्ध हो गई फाल्गुनी.. !! उसका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया..

फाल्गुनी: "ये तू क्या बक रही है?? तुझे शर्म भी नहीं आती ऐसा आरोप लगाते हुए.. !!"

मौसम: "बहोत हुआ तेरा नाटक, फाल्गुनी.. मुझे सब पता है.. मैंने अपनी इन सगी आँखों से तुझे और वैशाली को पापा के साथ चुदाई करते.. उनकी ऑफिस में देखा है!!"

फाल्गुनी के पैरों तले से धरती खिसक गई.. भांडा फूट चुका था.. वो मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. झूठ बोलने वाले का जब भंडाफोड़ होता है तब उनका चेहरा देखने लायक होता है.. वो आँखें झुकाकर सुनती रही.. और फिर इतना ही बोली "मौसम, तेरे पास एक घंटे का समय है.. हो जाएगा एक घंटे में सब?"

मौसम: "जैसा मैंने कहा.. तू वैशाली और पापा को लेकर गाड़ी में जाएगी.. फिर तू रास्ता भूल जाने का नाटक करना.. आधा घंटा गाड़ी में दोनों को यहाँ वहाँ घुमाना.. फिर महंदी वाली के घर उसे लेने पहुँच जाना.. जब तक मैं कॉल न करूँ.. तू उन लोगों के लेकर वापिस मत आना.. तेरा नाम सुनते ही पापा आने से मना नहीं करेंगे.. उसी बहाने तुझे और वैशाली को पापा का लंड चूसने का मौका भी मिल जाएगा" चेहरे पर घिन और थोड़ी सी नफरत के भाव के साथ मौसम ने कहा

मौसम के मुंह से अपने पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर फाल्गुनी अंदर से हिल गई.. वो जवाब देने की स्थिति में नहीं थी..

काफी देर तक चुप्पी साधे रखने के बाद फाल्गुनी ने मौसम से पूछा "जब तुझे पहले से ही सब कुछ पता था तो इतने दिनों तक खामोश क्यों रही?"

मौसम: "वो सब बातें करने का अभी वक्त नहीं है.. वैसे मुझे अभी भी तुझसे कई सवालों के जवाब लेने है.. पर अभी नहीं.. अभी तो मुझे अपना प्रोमिस पूरा करना है.. तू अब जा फटाफट.. आज अगर ये मौका चूक गई तो फिर जीवन भर पछतावा रहेगा मुझे.. तू कुछ भी कर.. अपना दिमाग लगा.. और कम से कम एक घंटे के लिए मुझे प्रायवसी देना.. और हाँ.. वैशाली को इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए.. वो कविता दीदी की सहेली है.. कहीं दीदी को बता देगी तो मुझसे कभी बात नहीं करेगी.. "

तभी बाथरूम का दरवाजा खुला.. अंदर से वैशाली बाहर निकली.. कमर के ऊपर सम्पूर्ण टॉप-लेस वैशाली ने केवल कमर पर तौलिया बांध रखा था.. उसके विशाल स्तन झूल रहे थे..

towel

देखकर ही पता चलता था की उन्हें आज तक कई लोगों ने रगड़ा होगा.. माउंट आबू की उस रात को तीनों ने जो लेस्बियन हनीमून का आनंद लिया था.. उसके बाद तीनों के बीच शर्म की सारी दीवारें ढह चुकी थी.. बिना ब्रा पहने ही वैशाली ने टीशर्ट चढ़ा दिया और अपने स्तनों के लाइव-शो पर पर्दा डाल दिया.. पर टीशर्ट में ढंके हुए मदमस्त बबले और भी खतरनाक लग रहे थे..

मौसम वैशाली के करीब गई और उसको कमर से पकड़कर बोली "बड़ी हॉट लग रही है तू.. !!"

वैशाली: "हॉट तो मैं पहले से हूँ.. जरूरत तो मुझे ठंडा होने की है.. जब नीचे आग लगती है तब हाहाकार मच जाता है.. तुझे भी जल्द ही इस बारे में पता लग जाएगा.. वैसे तुम दोनों कब से क्या खुसुर-पुसुर कर रही थी??"

मौसम: "अरे यार.. वो महंदी वाली लड़की को फोन किया था.. उसका स्कूटर खराब हो गया है.. और इतनी रात को वो ऑटो से आने में डर रही है.. फाल्गुनी ने उसका घर देखा हुआ है.. तो मैंने सोचा पापा को साथ ले जाकर, तुम और फाल्गुनी उसे घर से ले आओ.. फाल्गुनी ने उसका घर देखा हुआ है"

वैशाली: "ये बढ़िया काम किया.. जब घर में गाड़ी हो तब किसी बात के लिए क्यों झिझकना? फाल्गुनी तू अंकल को बता दे.. हम लोग अभी निकल जाते है.. " वैशाली ने मौसम का काम आसान कर दिया.. फाल्गुनी सुबोधकांत को बुलाने चली गई

ऐसा सुनहरा मौका मिलते ही, सुबोधकांत तुरंत तैयार हो गए.. वैशाली और फाल्गुनी उनकी गाड़ी में चले गए

मौसम ने तुरंत पीयूष को अपने कमरे में बुला लिया.. जैसे ही पीयूष अंदर आया.. मौसम ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया और पीयूष से लिपट पड़ी.. एक जबरदस्त लीप किस करते हुए दोनों एकाकार हो गए.. आवेश से गले लगने के कारण.. मौसम के बिना ब्रा के स्तन पीयूष की छाती से दबकर चपटे हो गए.. वह नरम और गद्देदार स्पर्श तो पीयूष की कमजोरी थी.. जबरदस्त उत्तेजना के बीच जरा सा भी समय बर्बाद किए बगैर.. पीयूष ने मौसम की शॉर्ट्स में हाथ डाल दिया और उसकी कुंवारी कमसिन चूत को सहलाने लगा..

ins

अब तक मौसम यही समझती थी की उत्तेजना को शांत करने के लिए किस और सहलाने से काम बन जाता होगा.. उसे कहाँ पता था की यह आग बुझाने के लिए तो गुप्तांगों को रगड़ रगड़कर तहस-नहस कर देना पड़ता है तब जाकर ये उत्तेजना शांत होती है..

"ओहह जीजू.. मुझे कुछ हो रहा है" मौसम ने पीयूष के कान में कहा

"मेरी जान.. उसे ही तो प्यार कहते है.. कुछ कुछ होने में ही बहोत कुछ होता है.. आह्ह मौसम.. तेरे ये बूब्स कितने कडक है यार.. !! तुझे तो पता ही है की मुझे ये कितने पसंद है.. !! मेरे इन पसंदीदा दोनों यारों के लिए मैं गिफ्ट लाया हूँ.. ये देख" कहते हुए पीयूष ने अपनी जेब से स्टाइलिश ब्रा निकाली जो उसने पिछले दिन खरीदी थी.. १२५० रुपये का चुना लगवाकर..

"वाऊ जीजू.. कितनी मस्त है.. !! वैसे तो मुझे व्हाइट रंग की ज्यादा पसंद है.. पर कोई बात नहीं.. ये लाल रंग तरुण का फेवरिट है.. उसे पसंद आएगा.. !! मौसम ने नादानी में कही बात.. पीयूष को कितनी तकलीफ पहुंचाएगी ये उसे पता नहीं था.. ऐसी स्थिति में तरुण का नाम सुनकर पीयूष को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके खड़े लंड पर तेजाब डाल दिया हो.. !!

तरुण के विचारों को दिमाग से हटाकर पीयूष ने वह ब्रा मौसम को पहना दी.. एकदम परफेक्ट फिट आ गई मौसम के स्तनों की गोलाइयों पर..

tr

दोनों ब्रा के कप को हाथों से दबाते हुए पीयूष ने कहा "यार, तेरे बूब्स तो मुझे पागल बना रहे है.. !!"

"आज की रात के लिए यह दोनों आपके ही है जीजू.. कल से ये तरुण के होकर रह जाएंगे.. " फिर से तरुण का नाम सुनकर पीयूष का मुंह कड़वा हो गया.. पर आज वो बेकार के विचारों मे समय गंवाना नहीं चाहता था.. ये हुस्न का जाम अब उसके लबों के बिल्कुल करीब था.. किसी भी प्रकार की गलती की गुंजाइश नहीं थी..

मौसम के गुलाबी अधरों को जीभ से चाटते हुए एकदम रोमेन्टीक अंदाज में पीयूष ने कहा "कितने वक्त के बाद जाकर तू आखिर मिली है तू.. तुझे याद कर रहे इस लंड को मैं रोज समझाता था.. देख तो जरा.. तेरी चूत की जुदाई में बेचारा कैसे आँसू बहा रहा है.. !!" अपनी शॉर्ट्स से लंड बाहर निकालकर.. सुपाड़े की नोक पर लगी उत्तेजना की बूंदों को दिखाते हुए मौसम के हाथ में थमा दिया..

"ओह्ह जीजू.. पहले मुझे जी भरकर किस तो कर लेने दीजिए.. मैं आपकी किस को बहोत मिस कर रही थी.. " कहते हुए मौसम ने पीयूष के होंठों पर अपने होंठ रख दीये.. प्यार का इजहार करने का सब से पुराना तरीका है ये..

ks

मौसम के मदमस्त कुँवारे संतरों को हाथों से मसलते हुए पीयूष ने काफी देर तक उसके होंठों को चूसा.. उस दौरान.. अपने पैरों के बीच गरम गरम लंड का स्पर्श होते ही मौसम के कुँवारे बदन में अजीब सी सिहरन उठने लगी.. आँखें बंद हो गई उसकी.. मौसम के उरोज पहले से भी ज्यादा सख्त हो गए.. उसने आँख बंद की.. तो उसे वो सीन याद आ गया.. जब फाल्गुनी उसके पापा का लंड चूस रही थी.. कितनी मस्ती से चूस रही थी.. कैसा लगता होगा लंड चूसने में.. ?? मुझे भी चूसना है.. पर जीजू से कैसे कहूँ.. माउंट आबू में वैशाली ने कहा था की जब हम लंड चूसते है तब हमारे पार्टनर को बहोत मज़ा आता है..

अनगिनत सवालों के बीच घिरी हुई मौसम की विचारधारा तब टूटी जब उसकी ब्रा की कटोरी ऊपर करके पीयूष उसके स्तन को चूसने लगा.. निप्पल पर लार की ठंडक और जीभ की गर्मी.. दोनों का एक साथ एहसास होने लगा..

sk


मौसम ने उत्तेजित होकर पीयूष का लोडा पकड़ लिया..

gd

मौसम के स्तनों को चूसते हुए पीयूष ने एक झटके में उसकी चड्डी उतारकर कमर से नीचे नंगा कर दिया.. और अपनी दो उंगली जैसे ही उसकी रिस रही बुर में डाली.. मौसम ऐसे मचलने लगी जैसे मदारी के बिन बजाते ही नागिन नाच रही हो.. !! सख्त लंड को चूसने के लिए मौसम बेकरार हो रही थी.. पर उसे बोलने में शर्म आ रही थी...

fin

आखिर उसने तय किया की जीजू सामने से कहेंगे तो ही मुंह में लूँगी.. पर शादी से पहले ये अनुभव करने का ये आखिरी मौका था.. और आज वो अपनी ज़िंदगी पूरी तरह जी लेना चाहती थी.. वो अब भी पीयूष के लाल सुपाड़े को तांक रही थी..

"मौसम, मेरी एक रीक्वेस्ट है.. अगर तुझे ऐतराज ना हो तो.. !!" पीयूष ने कहा

"आज किसी चीज का कोई बंधन मत रखना जीजू.. आपकी सारी रीक्वेस्ट मैं आज पूरी कर दूँगी.. आप सिर्फ कहिए एक बार.. हो जाएगा"

"तुझे ऑरल सेक्स के बारे में पता है?"

मौसम समझ गई की जीजू भी उसके मुंह में लंड देना चाहते है पर झिझक रहे है..

मौसम: "ओह जीजू.. वो सब तो मुझे नहीं पता.. पर आपकी जो इच्छा हो मैं पूरा करूंगी"

पीयूष: "पर मुझे लगता है की सुनकर तू नाराज हो जाएगी"

मौसम सोच रही थी.. की जीजू को कैसे समझाऊँ?? की आपका लंड चूसने के लिए तो मैं मर रही हूँ.. पर बोल नहीं पा रही

बहोत मन होने के बावजूद पीयूष ने कहा नहीं.. उसे डर था की लंड चुसवाने के चक्कर में कहीं कुंवारी चूत की चुदाई का मौका हाथ से ना निकल जाए.. !!

कुंवारी लड़की के संग चुदाई.. ये जरा पेचीदा मामला है.. सेक्स के अलावा भी उसमे बहोत कुछ होता है.. एक लड़की.. यौवन के द्वार तक पहुँचने तक.. अपनी इज्जत को जान की तरह संभालती है.. छाती से दुपट्टा सरक जाए तो भी शर्म से पानी पानी हो जाने वाली मुग्धा जब पहली बार अपने प्रेमी के सामने नंगी होती है.. तब बहोत कुछ होता है.. वो क्षण होती है विश्वास की.. समर्पण की.. प्रेम की.. पराकाष्ठा की.. जीवन में प्रथम बार किसी पुरुष के सामने नग्न हुई मौसम के सौन्दर्य में.. कौमार्य की खुमारी छलक रही थी.. उसके स्तनों का वैभव और कुँवारे बदन का जादू पीयूष को पागल कर रहा था..


2021


मौसम की चूत में उंगली अंदर बाहर करते हुए पीयूष उसके स्तनों को मसलता जा रहा था.. मौसम पीयूष के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाते हुए इतनी बेकाबू हो गई की सिसकते हुए बोली "ओह्ह जीजू.. अब मैं और सह नहीं पाऊँगी.. जल्दी कुछ करो.. आह्ह.. !! नीचे कुछ कुछ हो रहा है "

fp

पीयूष और तेजी से अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगा और उसके साथ ही मौसम ऑन ध स्पॉट झड़ गई.. ठंडी हो गई वो.. उसकी सांसें अब नियंत्रित होते देख पीयूष समझ गया.. की ठंडी होने के बाद मौसम फिर से शरीफ बन जाएगी.. जब चूत में खुजली उठी हो तब समय, स्थान दिन या रात न देखकर, गांड उछाल उछालकर चुदवाने वाली स्त्री.. खुजली शांत होते ही एकदम शालीन और संस्कारी बन जाती है..

थोड़ी ही देर में मौसम नॉर्मल हो गई.. उसके हाथ में जो पीयूष का लंड था वो और कडक हो गया पर मौसम की पकड़ ढीली हो गई.. वह एकदम धीमी आवाज में बोली "जीजू.. अब जो करना है जल्दी जल्दी करो... ताकि मेरा प्रोमिस पूरा हो जाएँ और टेंशन खतम हो"

hd

पीयूष ने मौसम को बेड पर लिटा दिया और उसकी दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जंघाओं को चौड़ी करके.. कामरस से लथबथ चूत के वर्टिकल होंठों क ओ उंगलियों से अलग किया.. अंदर का लाल लसलसित हिस्सा देखकर पीयूष से रहा नहीं गया और उसने झुककर मौसम की चूत को चूम लिया.. और उसके साथ ही मौसम का शरीर फिरसे तपने लगा.. वो ऐसे कांपने लगी जैसे उसे बुखार चढ़ गया हो.. लंड के कडक सुपाड़े को चूत पर रगड़कर.. मौसम को लंड के आक्रामक प्रहारों के लिए तैयार कर रहा था पीयूष

kp
"आई लव यू, मौसम" कहते ही पीयूष ने कसकर धक्का लगाया और मौसम की चूत में आधा लंड उतार दिया.. फिंगरिंग से स्निग्ध हो रखी चूत को ज्यादा दर्द तो नहीं हुआ.. पर वो प्रहार उसकी अपेक्षा से अधिक तीव्र था इसलिए मौसम दर्द और डर से सिसक पड़ी.. "ऊई माँ.. जीजू.. जरा आराम से.. और थोड़ा जल्दी करना.. कहीं कोई आ न जाएँ"

pp2pp

पीयूष अब अपना आपा खो चुका था.. कुंवारी लड़की की चूत में आधा लंड घुसेड़कर भला कौन अपने आप पर काबू रख पाएगा.. !! पीयूष ने मौसम की चूत का उद्धार कर दिया.. ज़िंदगी का पहला पुरुष सहवास.. मौसम को ऐसा लग रहा था.. जैसे पहली बरसात.. !! उसकी चूत से उत्तेजना और सुख का झरना सा बहने लगा था.. जैसे जैसे पीयूष उसकी चूत में लंड अंदर बाहर करता गया वैसे वैसे मौसम, कली से खिलकर फूल बनती गई.. पीयूष को मौसम के स्तन खास तौर पर पसंद थे.. इसलिए इस सम्पूर्ण संभोग के दरमियान उसने एक बार भी अपने हाथ मौसम के स्तनों से नहीं हटाए.. वो इतनी सख्ती से मौसम के कडक संतरों को मसल रहा था की मौसम को दर्द होने लगा.. मौसम की अब स्त्री-जीवन की शुरुआत हो चुकी थी.. इसलिए संभोग का दर्द सहना अब आवश्यक था.. और इसी दर्द में ही बेइंतहाँ आनंद मिलने वाला था.. !!

मौसम के ऊपर हुमच हुमच कर कूद रहा पीयूष.. बार बार नीचे झुककर मौसम की छोटी सी निप्पलों को चूस लेता.. तब मौसम को पहली बार एहसास हुआ की.. क्यों वैशाली और फाल्गुनी.. उसके पापा के साथ ये सब करने के लिए इतने उत्सुक रहते थे.. !! कितना मज़ा आ रहा था.. !! उसने आज ये साहस न किया होता तो वह भी इस अलौकिक आनंद से वंचित रह जाती.. !!


hmf2

पीयूष अपनी मंजिल के आखिरी पड़ाव पर पहुँच गया था और उसकी धक्के लगाने की स्पीड चार गुना बढ़ चुकी थी.. मौसम को पता नहीं चल पा रहा था की अचानक पीयूष के हाव भाव.. धक्कों की गति.. बदल क्यों गई.. !! उसके लिए यह सब नया नया था.. यह पहली बार था की कोई पुरुष उसके ऊपर चढ़कर.. चूत में लंड डालकर.. धक्के लगाते हुए झड़ने की कगार पर था.. जो कुछ भी चल रहा था उसमें उसे बहोत मज़ा आ रहा था.. उसकी चूत ने अब तक ढेर सारा रस छोड़ दिया था.. बार बार उसकी चूत ने स्खलित होकर कुल्ले कर दीये थे.. आखिर थक कर वो सुस्त हो गई.. तब पीयूष ने चूत से लंड को बाहर खींच निकाला और मौसम के पेट पर.. वीर्य की जोरदार पिचकारी मार दी.. मौसम के ये द्रश्य अभिभूत कर गया.. !! गाढ़े वीर्य की गरमागरम पिचकारी जिस्म को छूते ही मौसम सिहर उठी..

hcb

"ओह्ह जीजू.. आई लव यू.. " आज पहली बार मौसम ने खुलकर पीयूष को "लव यू" कहा था.. कडक लोड़े को वीर्य की बौछार करते देखने का पहला अनुभव मौसम के लिए बेहद उत्तेजक रहा था.. लंड की रचना से एक तो वो अनजान थी.. नरम लंड कैसे सख्त हो जाता है.. और सख्त होकर फिर से नरम क्यों हो जाता है.. ये सब जिज्ञासा संतुष्ट होना अभी बाकी था.. ऐसी सूरत में.. वीर्या का फव्वारा उसके स्तन तक उड़ता देख वो इतनी खुश हो गई की उसने पीयूष को खींचकर अपने गले लगा लिया..

थोड़ी देर तक उसी स्थिति में रहने के बाद दोनों पूर्ववत होने लगे.. उठकर दोनों ने कपड़े पहने.. और नॉर्मल होकर बेड पर बैठ गए..

मौसम ने फाल्गुनी को मेसेज किया "और कितनी देर लगेगी? मुझे तो नींद आ रही है.. !!"

जब फाल्गुनी ने ये मेसेज अपने मोबाइल पर पढ़ा तब वैशाली आगे की सीट पर बैठे बैठे झुककर सुबोधकांत का लंड चूस रही थी..

cr

और फाल्गुनी पीछे बैठे बैठे सुबोधकांत की छाती के घुँघराले बालों में हाथ फेर रही थी.. फाल्गुनी ने मेसेज पर रिप्लाय दिया "हम महंदी वाली के घर बस पहुँचने ही वाले है.. फिर घर आने में दस मिनट ही लगेंगे" परोक्ष तरीके से उसने मौसम को बता दिया की उसके पास सिर्फ उतना ही समय था..

नीचे के कमरे में.. रमिलाबहन के सो जाते ही.. कविता सरककर किचन से सटे स्टोररूम का दरवाजा अंदर से बंद कर.. पिंटू से बातें करने में व्यस्त थी.. उसे कहाँ अंदाजा था की ऊपर के मजले पर उसका पति पीयूष.. उसकी कुंवारी बहन को सेक्स के पाठ पढ़ा चुका था.. उसे तो ये भी पता नहीं था की उसके पापा, वैशाली और फाल्गुनी बाहर गए हुए थे.. वो तो यही सोच रही थी की पीयूष उसके पापा के साथ एक कमरे में है.. और दूसरे कमरे में मौसम के साथ वैशाली और फाल्गुनी बैठे है.. !!


जैसे ही सुबोधकांत की गाड़ी घर पहुंची.. गाड़ी की आवाज सुनकर पीयूष खड़ा हुआ और चुपचाप दूसरे कमरे में जाकर लेट गया.. मौसम ने अपने कपड़े ठीक किए और बेड के चादर की सिलवटें भी साफ कर दी.. चुदाई के सारे सबूत मिटा दीये उसने..
vada nibha liya ........ :love: :happy:
 

krish1152

Well-Known Member
5,323
15,888
188
वैशाली सीधे अपने कमरे में गई.. दरवाजा अंदर से बंद किया.. और बेड पर बैठ गई.. उसने अपनी सलवार उतारी.. और तेजी से अपनी चूत को कुरेदने लगी.. आज दो बार उसका ऑर्गजम होते होते रह गया.. एक बार कपल रूम में और दूसरी दफा पीयूष के घर में.. सारा गुस्सा उसने अपनी चूत पर निकाल दिया.. उत्तेजना, क्रोध और असंतोष के कारण वो जैसे तैसे स्खलित हो गई.. पर झड़ने के बाद उसका मन शांत हो गया.. हाथ मुंह धोकर उसने नाइटड्रेस पहन लिया और किचन में शीला की मदद करने गई..

डिनर करने के बाद सब सो गए पर वैशाली के दिल को चैन नहीं था.. पीयूष ने ऐसी आग लगा दी थी जो सिर्फ वो ही बुझा सकता था.. दस बज रहे थे और तभी मोबाइल पर पीयूष का मेसेज आया.. खोलकर पढ़ने के बाद वैशाली के चेहरे पर मुस्कान आ गई

पीयूष का मेसेज: 'यार, तेरे बबलों की बहोत याद आ रही है" पढ़कर वैशाली शरमा गई पर उसे बहोत अच्छा लगा..

वैशाली ने रिप्लाय किया: "याद तो मुझे भी आ रही है.. पर किसी ओर चीज की"

पीयूष का मेसेज: "आई वॉन्ट टू फक यू.. मेरा लोडा अभी बम्बू की तरह खड़ा हो गया है" वैशाली की चूत में झटके लगने लगे.. अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए वो पीयूष से चैट करने लगी..

वैशाली का मेसेज: "हम्म तो अब तू क्या करेगा? अभी तो कविता भी नही है तेरे साथ.. एक काम कर.. यहाँ आजा.. मैं तेरे बम्बू को शांत कर देती हूँ"

पीयूष का मेसेज: "मैं तो अभी आ जाऊँ.. पर तेरे मम्मी पापा का क्या करें?"

वैशाली का मेसेज: "हट साले डरपोक.. इतना ही डर लग रहा है तू खुद ही हिला ले अपना बम्बू.. दिमाग लगा और कुछ तरकीब ढूंढ"

पीयूष की मर्दानगी जाग उठी.. एक तरफ वैशाली का वासना से सुलग रहा बदन उसे बुला रहा था.. दूसरी तरफ वो अकेले बैठे बैठे मौसम का गम भुलाने की कोशिश कर रहा था.. ऊपर से कविता की गैर-मौजूदगी.. उसका नटखट मन बंदर की तरह उछलने लगा.. वो सोचने लगा.. ऐसा क्या करूँ जिससे वैशाली की चूत तक पहुँचने का कोई रास्ता मिल जाएँ...

वैशाली का मेसेज: "चुप क्यों हो गया? हिलाने बैठ गया क्या?"

पीयूष का मेसेज: "नहीं यार.. सोच रहा हूँ.. की कैसे तेरे बेडरूम तक पहुँच जाऊँ!! मैं छत पर जा रहा हूँ.. देखता हूँ कोई रास्ता मिल जाए.. "

वैशाली का मेसेज: "कोई देख लेगा तो? मुझे तो बहोत डर लग रहा है"

पीयूष का मेसेज: "तो फिर मैं नहीं आ रहा" पीयूष ने हथियार डाल दीये

यहाँ वैशाली की चूत में ऐसी आग लगी थी.. लंड लेने के लिए वो तड़प रही थी..

वैशाली का मेसेज: "यार कुछ तो कर.. मुझसे अब रहा नहीं जाता.. सब तेरी गलती है.. एक तो आज दोपहर में उस कपल रूम के अंदर तूने मेरी आग भड़का दी.. तब से मैं बेचैन हो रही हूँ.. और शाम को तेरी मम्मी ने सारा खेल बिगाड़ दिया.. अब तो मुझसे कंट्रोल नहीं होता.. !!"




पीयूष का मेसेज: "यार.. तो अब मैं क्या करूँ?"

वैशाली का मेसेज: "मुझे क्या पता??"

थोड़ी देर तक पीयूष का मेसेज नहीं आया

वैशाली का मेसेज: "क्या हुआ? तेरा नरम हो गया क्या?? हा हा हा हा.. " वैशाली को सेक्स-चैट करने में मज़ा आ रहा था.. वो चैट करते करते अपनी चूत में उंगली कर रही थी..



पीयूष का मेसेज: "नरम तो ये तभी होगा जब तेरी चूत फाड़ देगा.. !!"

वैशाली का मेसेज: "आह्ह.. !!"

पीयूष का मेसेज: "क्या हुआ??"

वैशाली का मेसेज: "तेरे मेसेज पढ़कर मुझे नीचे कुछ कुछ हो रहा है"

पीयूष का मेसेज: "तुझे नीचे मेरा लंड लेने की जरूरत है.. मन कर रहा है की तेरे दोनों बबलों के बीच में लंड घुसाकर शॉट मारूँ.. तेरी चूत के अंदर जीभ डालकर सारा रस पी जाऊँ.. ओह्ह.. मेरा लोडा तेरे मुंह में डाल दूँ"

वैशाली का रिप्लाय नहीं आया

पीयूष का मेसेज: "सो गई क्या साली रंडी? या उंगली डाल रही है?" वैशाली के मेसेज आने बंद हो गए इसलिए पीयूष ने अनाब-शनाब लिखना शुरू कर दिया

पीयूष का मेसेज: "भेनचोद कहाँ मर गई? कहीं अपने बाप का लोडा लेने तो नहीं चली गई?"

अभी कुछ घंटों पहले ही वैशाली ने अपने पापा को चुदाई करते हुए देखा था.. ऊपर से पीयूष ने उनके लंड का जिक्र कर उसे और पागल बना दिया

वैशाली का मेसेज: "ओह पीयूष.. अब मुझसे नहीं रहा जाता.. तू जल्दी कुछ कर.. वरना मैं वहाँ आ जाऊँगी.. प्लीज यार"

पीयूष का मेसेज: "मुझे एक रास्ता सूझ रहा है"

वैशाली का मेसेज: "क्या??"

पीयूष का मेसेज: "अभी आधे घंटे में सोसायटी के सारे लोग सो गए होंगे.. कोई बाहर नहीं होगा.. तेरे घर के बाहर अब्बास भाई का ट्रक पड़ा हुआ है.. चुपके से उसके नीचे घुस जाते है.. किसी को पता नहीं चलेगा.. ट्रक के नीचे घुसकर कोई नहीं देखेगा.. !!"

वैशाली का मेसेज: "पागल हो गया है क्या?? तुझे सब ऐसी जगह ही दिमाग में आती है.. !! उस दिन रेत में और आज मिट्टी में??"

पीयूष का मेसेज: "जरा शांत दिमाग से सोच.. उस जगह किसी का ध्यान नहीं जाएगा.. हाँ कपड़े थोड़े से खराब होंगे.. पर उतना तो चलता है यार"

वैशाली का मेसेज: "नहीं यार.. वहाँ नहीं.. कुछ और सोच.. !!"

पीयूष का मेसेज: "फिलहाल वही जगह सब से सैफ है.. और कहीं तो पकड़े जाने का डर लगा रहेगा.. आजा न वैशाली.. मुझसे रहा नहीं जाता.. अब तुझे चोदना ही है"

स्क्रीन पर ये पढ़कर वैशाली की मुनिया फुदकने लगी..



वैशाली का मेसेज: "अरे यार.. तुझसे कहीं ज्यादा चूल मेरे नीचे मची हुई है.. पर यार वो जगह थोड़ी विचित्र लगती है मुझे"

पीयूष का मेसेज: "तू पहले बाहर तो निकल.. फिर कुछ सोचते है"

वैशाली का मेसेज: "ठीक है.. मैं बाहर निकलकर कॉल करूँ या मेसेज?"

पीयूष का मेसेज: "कॉल ही करना.. मेरा फोन साइलेंट है पर पता चल जाएगा मुझे"

वैशाली ने भी फोन को वाइब्रेट मोड पर रख दिया.. और खड़ी हो गई.. चुपके से उसने अपने बेडरूम का दरवाजा खोला.. पौने ग्यारह बज रहे थे.. शीला और मदन अपने बेडरूम में सो रहे थे.. वैशाली को मैन डोर खोलकर जाने में डर लग रहा था.. इसलिए वो किचन से होकर पीछे के रास्ते से बाहर निकली.. और सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर चली गई.. सामने पीयूष भी अपने घर की छत पर खड़ा था.. पीयूष ने तुरंत वैशाली को फोन लगाया

पीयूष: "मेरी बात ध्यान से सुन.. नीचे उतर.. बरामदे से बाहर निकल.. ट्रक और दीवार के बीच छुपकर खड़ी रहना.. मैं अभी वहाँ आता हूँ"

वैशाली ने फोन चालू रखा.. सीढ़ियाँ उतरकर वो कंपाउंड से बाहर आई.. ट्रक और दीवार के बीच की संकरी जगह में छुपकर खड़ी हो गई.. पूरी गली में सन्नाटा था.. अंधेरे के कारण किसी के भी देखने का डर नहीं था.. थोड़ी ही देर में पीयूष वहाँ आ पहुंचा.. और आते ही वो वैशाली से लिपट गया.. बिना ब्रा के नाइटड्रेस पहने खड़ी वैशाली के दोनों स्तनों को मजबूती से दबा दिया.. वैशाली का पूरा जिस्म सिहर उठा.. पीयूष के आक्रामक प्रहारों से वैशाली के पूरे शरीर में उत्तेजना की गर्मी फैल गई.. और लंड की भूख से उसकी चूत फड़फड़ाने लगी.. उसकी पुच्ची में इतनी खुजली हो रही थी की वो खुद ही अपनी जांघें आपस में रगड़ने लगी थी.. बड़ी मुश्किल से मिले इस मौके का दोनों पूरा लाभ उठाना चाहते थे..

वैशाली ने तुरंत ही पीयूष की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसका लंड पकड़कर बाहर निकाला.. ऐसा लग रहा था मानों लोहे का गरम सरिया हाथ में पकड़ रखा हो.. हथेली में इतना गर्म लग रहा था.. लंड की त्वचा को पीछे सरकाते हुए सुपाड़े को खुला कर दिया.. और साथ ही पीयूष के होंठों को चूमने लगी..



बहोत दिनों से भूखी वैशाली आज पीयूष से कई ज्यादा उत्तेजित थी.. उसकी कराहों और सिसकियों से पीयूष को अंदाजा लग चुका था की वैशाली कितनी गरम हो चुकी थी.. उसे डर था की कहीं वो अभी झड़ गई.. और हवस का भूत दिमाग से उतर गया तो डरकर तुरंत वापस भाग जाएगी.. उत्तेजना के अंधेरे में कुछ भी नजर नहीं आता.. एक बार डिस्चार्ज हो जाने के बाद ही सारे जोखिम नजर आने लगते है..

बिना समय गँवाए उसने वैशाली को उल्टा मोडकर झुका दिया.. और उसके ट्रैक-पेंट को घुटनों तक उतार दिया.. अंधेरे में भी वैशाली के गोरे विशाल चूतड़ चमक रहे थे.. पीयूष ने झुककर वैशाली के कूल्हों पर और चूत पर अपनी जीभ फेर दी..



वैशाली को बहोत मज़ा आ रहा था पर फिर भी पीयूष को रोकते हुए कहा "यार ये सब करने बैठेगा तो मैन काम रह जाएगा.. " वैशाली की बात में तथ्य था..

पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने सुपाड़े पर थोड़ा सा थूक लगाकर.. वैशाली के सुराख पर टीका दिया.. और धीरे धीरे अंदर दबाने लगा.. जैसे जैसे लंड की मोटाई वैशाली की चूत की दीवारों से घिसते हुए अंदर जाने लगी.. वैशाली की सिसकियाँ शुरू हो गई..


पूरा लंड अंदर घुसते ही पीयूष ने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू कर दीये.. और हाथ आगे ले जाकर वैशाली के लटक रहे स्तनों को दबोचने लगा..



दोनों इस काम-क्रीडा में मगन थे तभी एक आदमी ट्रक के आगे के हिस्से के सामने आकर खड़ा हो गया.. अंधेरे में उस आदमी को इतने करीब खड़ा देखकर दोनों की सीट्टी-पीट्टी गुम हो गई.. ये तो अच्छा था की उस आदमी की नजर इन दोनों के तरफ नहीं थी.. वो जरा सा मुड़कर देखता तो इस चोद रहे जोड़ें को आसानी से देख लेता.. वैशाली और पीयूष दोनों डर के मारे कांप रहे थे.. वो आदमी ट्रक का क्लीनर था जो पेशाब करने के लिए नीचे उतरा था.. कोने में खड़े रहकर वो मूतने लगा.. रात के सन्नाटे में पीयूष और वैशाली को उसकी पेशाब की धार की आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी.. पेशाब की दुर्गंध से वैशाली परेशान हो गई.. उस मूत रहे क्लीनर का नरम लंड अंधेरे में भी साफ नजर आ रहा था..

बिना हिले-डुले दोनों चुपचाप अपनी जगह पर ही मूर्ति बनकर खड़े थे.. थका हुआ क्लीनर आधी नींद में था.. वो वापिस ट्रक में जाकर सो गया.. वैशाली अब बहोत डर गई थी

"मुझे अब नहीं करना है.. डर लग रहा है.. मैं जा रही हूँ पीयूष.. सॉरी" पीयूष के जवाब का इंतज़ार कीये बगैर ही उसने एक ही पल में अपना ट्रैक-पेंट पहन लिया और अपने घर की दीवार फांदकर कंपाउंड में चली गई.. जिस रास्ते वो बाहर आई थी उसी किचन के रास्ते घर में घुस गई.. अपने बेडरूम में पहुंचकर ही उसके तेजी से धडक रहे दिल को चैन मिला.. बाप रे.. बच गई.. !! वरना आज तो तमाशा हो जाता.. अच्छा हुआ उस आदमी ने देखा नहीं.. कहीं उसने चिल्लाकर लोगों को इकठ्ठा कर दिया होता तो मैं सब को क्या मुंह दिखाती.. !!

अभी भी डर के कारण कांप रही वैशाली को नींद नहीं आ रही थी.. पीयूष ने उसे दो बार कॉल कीये पर उसने उठाए नहीं.. ढेर सारे मेसेज भी भेजे पर वैशाली ने एक का भी जवाब नहीं दिया.. पीयूष को पता चल गया की वैशाली नाराज हो गई थी.. वो और उसका लंड पूरी रात सो नहीं पाए..

सुबह ६ बजे उठकर जब वो घर की छत पर गया तब उसने बरामदे में खड़ी वैशाली को ब्रश करते देखा.. उसने हाथ हिलाकर पीयूष को हाई कहा.. तब पीयूष के दिल को कुछ तसल्ली हुई की वैशाली नाराज तो नहीं थी..

ब्रश करते हुए वैशाली घर के अंदर गई तब शीला ने वैशाली की घड़ी देते हुए कहा "अरे वैशाली.. देख तो.. !! ये तेरी ही घड़ी है ना.. !! बाहर कचरा फेंकने गई तब उस ट्रक के पास पड़ी मिली.."

शीला के हाथ से लगभग छीनते हुए वैशाली ने कहा "हाँ मम्मी.. ये तो मेरी ही घड़ी है.. वहाँ कैसे पहुँच गई?"

"मुझे क्या पता? तेरी घड़ी है तो तुझे पता होना चाहिए.. तू उस तरफ गई थी क्या? अब्बास भाई की ट्रक के पास??" शीला ने पूछा

"नहीं, मैं तो नहीं गई.. मैं क्यों जाऊँ वहाँ??" वैशाली ने ऊटपटाँग जवाब दिया.. पर उसके दिमाग में तुरंत ही बत्ती जली.. मम्मी बड़ी ही शातिर है.. उसे बेवकूफ बनाना आसान नहीं है.. अगर मैंने बहाना नहीं बनाया तो मुझे पकड़ने में उसे देर नहीं लगेगी..

"अरे हाँ मम्मी.. याद आया.. शाम को जब अनुमौसी के घर से लौट रही थी तब पता नहीं कहाँ से एक कुत्ता भोंकते हुए पीछे पड़ गया.. मैं डरकर उस ट्रक के पीछे छुप गई थी.. शायद तभी गिर गई होगी"

शीला के मन को वैशाली की बात से संतोष हुआ "अच्छा हुआ ना मेरी नजर पड़ गई.. !! वरना कोई ओर उठाकर ले जाता.. ये तो इंपोर्टेड घड़ी है.. जो तेरे पापा विदेश से तेरे लिए लाए थे.. "

उनकी बातें सुनकर मदन बाहर आया "वैशाली, मैं जहां पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उस मकान की मालकिन ने गिफ्ट दी थी ये घड़ी.. तेरे लिए.. " शीला के सामने देखकर आँख मारते हुए मदन ने कहा

शीला: "ओह्ह अच्छा तो ये मेरी ने गिफ्ट की थी.. और तुमने क्या दिया था उसे गिफ्ट के बदले?" शीला भी कम नहीं थी..

दोनों की बातें सुनकर वैशाली समझ गई की इशारा कहीं ओर था.. शीला-मदन को अकेले बातें करता छोड़कर वो ड्रॉइंगरूम में चली आई और टीवी चालू कर दिया.. टीवी की आवाज के बावजूद उसे मम्मी पापा की बातें सुनाई दे रही थी..

वैशाली सुन नहीं रही है ये सोचकर शीला ने मदन का कान पकड़कर खींचा.. "मेरी की कितनी बार चाटी थी तूने इस गिफ्ट के बदले?? सच सच बता"

मदन: "अरे यार.. हम दोनों के बीच सब कुछ शुरू हुआ उससे पहले ये गिफ्ट दी थी उसने.. "

शीला: "अच्छा.. मतलब उसने तुझे एक घड़ी क्या गिफ्ट दे दी.. तूने तो अपना सब कुछ लूटा दिया उसके पीछे!! यहाँ मैं बिस्तर में पड़ी पड़ी करवटें बदल रही थी और वहाँ तुम दोनों हरामी..!!" शीला ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया

मदन ने अपना कान छुड़ाकर हँसते हुए कहा "तूने कहा होता तो मैं अपना लंड यहाँ छोड़कर जाता.. !!"

शीला: "मैं लंड के लिए नहीं मर रही थी.. लंड तो एक नहीं एक हजार मिल जाते.. मुझे तो जरूरत तेरी थी.. तेरे लंड की नहीं"

मदन: "वो सब बातें छोड़.. ये बता.. सुबह जो दूध देने आई थी वो कौन थी?? जबरदस्त माल थी यार.. !!"

शीला: "मुझे पता है की तुझे उसमें क्या जबरदस्त लगा.. !!! उसका नाम रूखी है.. रसिक की पत्नी.. आज रसिक कहीं बाहर गया हुआ था इसलिए वो दूध देने आई थी.. अब कल से मैं रसिक को भी ध्यान से देखूँगी.. मुझे भी शायद उसमे कुछ जबरदस्त दिख जाएँ.. !!"

मदन: "मज़ाक कर रहा था डार्लिंग.. खूबसूरत थी, इसलिए पूछ लिया.. इतना क्यों भड़क रही है?"

शीला: "हाँ हाँ.. मैं क्यों भड़कूँ?? तुम कभी मेरी के बबले चूसो तो कभी उसकी चूत.. !!" अचानक वो बोलते बोलते रुक गई.. उसे एहसास हुआ की घर पर वो अकेले नहीं थे.. वैशाली भी मौजूद थी.. और जब तक वो सेटल नहीं हो जाती तब तक यहीं रहेगी.. लंबे समय तक अकेले रहकर शीला की जुबान से कंट्रोल चला गया था

पापा मम्मी की बातें सुनकर वैशाली हंस पड़ी..

मदन: "पागल जरा धीरे से बोल.. वैशाली सुन लेगी"

शीला: "अरे हाँ.. मुझे अभी खयाल आया.. और हाँ मदन.. वैसे तो तुझे देखकर पता चल ही गया होगा पर फिर भी मैं तुझे बता देती हूँ.. रूखी को अभी कुछ महीनों पहले ही बच्चा हुआ है.. मैं उसके घर भी जा चुकी हूँ.. बहोत ही अच्छी है रूखी.. तेरी गैर-मौजूदगी में उसने मेरा बहोत ध्यान भी रखा था"

मदन: "तो जरा मेरी भी पहचान करा दे.. मैं भी तो देखूँ.. जितनी तू तारीफ कर रही है उतनी अच्छी है भी या नहीं" शीला के गाल खींचकर मदन बाथरूम में घुस गया

मन ही मन शीला सोच रही थी.. वो तो अच्छी है ही.. पर उससे भी अच्छा है उसका पति.. इस बात की गँवाही तो अनुमौसी भी दे सकती है

बाथरूम में नहाते हुए मदन सोच रहा था.. क्या जालिम जवानी थी उस रूखी की..

गाँव की औरतों की खूबसूरती की बात ही निराली होती है.. आह्ह रूखी.. !! मदन के दिलोदिमाग पर रूखी ने कब्जा कर लिया था.. नहाते हुए उसका लंड एकदम कडक हो गया रूखी को याद करते हुए.. काश मेरा कुछ सेटिंग हो जाएँ उससे तो मज़ा आ जाए.. उसके मदमस्त मटके जैसे बबलों से दूध पीना नसीब हो जाए.. आह्ह.. मदन को तभी मूठ लगाकर अपने लंड की मलाई बाहर निकालनी पड़ी..


वो नहाकर बाहर निकला तब उसने देखा की पीयूष घर पर आया था और शीला तथा वैशाली के साथ बातें कर रहा था..

"कितनी देर लगा दी पापा आप ने?? मैं कब से नहाने जाने के लिए वैट कर रही हूँ.. !! पीयूष, मैं दो मिनट में नहाकर आई.. " कहते हुए वैशाली बाथरूम में घुस गई.. वैशाली के जाने के बाद, शीला और मदन, पीयूष के साथ बातें करने लगे..

"गुड मॉर्निंग मदन भैया.. कैसे है आप?? कलकत्ता की थकान उतरी या नहीं??"

"ठीक हूँ पीयूष.. यार मैं कलकत्ता को तो याद भी करना नहीं चाहता.. तू बता.. कैसे आना हुआ?" सोफ़े पर बैठते हुए मदन ने पूछा

"मैं आपको न्योता देने आया हूँ.. अगले हफ्ते मौसम की सगाई है.. तो आप तीनों को आना होगा.. !!"

मदन: "अरे वाह.. ये तो बहोत अच्छी बात है.. !! हम सब जरूर आएंगे.. वैशाली को भी अच्छा लगेगा.. हैं ना बेटा.. ??" बाथरूम से बाहर निकलकर अपने बालों को झटकाकर सूखा रही वैशाली से मदन ने कहा.. पिंक ड्रेस में उभर रहे यौवन की मल्लिका वैशाली.. अपने लंबे बालों से विशाल स्तनों को ढँककर कंगी कर रही थी.. उसक कंगी बालों से गुजरते वक्त स्तनों को दबा दे रही थी.. पीयूष बस उस द्रश्य को अभिभूत होकर देखता ही रहा.. ताज़ा ताज़ा नहाकर आई स्त्री जब बाल सूखा रही हो, यह द्रश्य देखने में ही बड़ा मनोहर होता है.. वैसे भी औरत का अर्ध-अनावृत रूप नग्नता से ज्यादा सुंदर लगता है..

वैशाली: "हाँ पापा.. मौसम तो मेरी बहोत अच्छी सहेली है.. और वैसे भी.. अब मैं अपने भूतकाल को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहती हूँ.. कल पीयूष ने मेरी आँखें खोल दी (आँखों के साथ साथ और भी काफी कुछ खोल दिया था).. अब मै ज़िंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती हूँ.. बिना किसी दुख या मलाल के.. मैं घर पर बहोत बोर हो रही हूँ.. अगर तुझे ऐतराज न हो तो क्या मैं कुछ दिनों के लिए तेरी कंपनी में आ सकती हूँ?? मुझे अपना दिमाग बिजी रखना है.. ताकि पुरानी बातें परेशान न करें मुझे.. !!"

पीयूष: "अरे यार तू बिंदास चल.. कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. मेरे बॉस राजेश सर से तो तेरी अच्छी जान पहचान हो ही चुकी है.. पिंटू और रेणुका मैडम को भी तू जानती है.. इन फेक्ट ऑफिस के सारे लोग तुझे जानते है.. तेरे आने से सब को अच्छा लगेगा.. और तू भी ज्यादातर लोगों को जानती है इसलिए तुझे भी अटपटा नहीं लगेगा.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. वैशाली को ले जा अपने ऑफिस.. उसे बाहर निकलने की सख्त जरूरत है.. !!"

मदन: "हाँ गुड़िया.. मम्मी ने ठीक कहा.. तू पास्ट को भूल जा.. लाइफ को इन्जॉय कर.. पर जो भी करना संभल कर करना"

वैशाली: "डॉन्ट वरी पापा.. मैं ध्यान रखूंगी"

मदन और वैशाली दोनों ही इस सलाह की अहेमीयत जानते थे.. मदन ने सिर्फ इशारा किया.. की जो कुछ भी करना.. खानदान की इज्जत को ध्यान में रखकर करना.. और वैशाली ने भी एक जिम्मेदार बेटी की तरह संतोषजनक उत्तर दिया..

पीयूष ने वैशाली को अपनी बाइक पर बैठा दिया.. और दोनों ऑफिस की तरफ निकल गए.. रास्ते मे वैशाली ने जी भरकर अपने स्तनों को पीयूष की पीठ से दबाएं रखा..

वैशाली को ऑफिस में देखकर सारा स्टाफ खुश हो गया.. राजेश सर ने तो फोन करके रेणुका को भी बुला लिया.. और वैशाली का इतना गर्मजोशी से स्वागत किया की उसकी आँखें भर आई..

पिंटू तीन दिन की छुट्टी के बाद आज ही ऑफिस आया था.. कविता जो थी मायके में.. इसलिए वो छुट्टी पर ही था.. कविता और पिंटू दोनों घंटों फोन पर बातें करते.. मेसेज पर चैट करते.. दिन में दो बार तो पीयूष, कविता के घर की पास वाली दुकान पर आ जाता.. पर दोनों को अपनी जिस्मानी भूख मिटाने का मौका नहीं मिला था.. पर कविता तो पिंटू को दिन में एक बार देखकर भी खुश थी.. जब कविता ने पिंटू से कहा की वो अब मौसम की सगाई होने तक मायके में ही रहने वाली थी.. तब पिंटू ने वापिस ऑफिस शुरू करने का फैसला किया.. तीन दिन बाद आज वो ऑफिस आया था..

वैशाली भी पिंटू को ठीक-ठाक जानती थी.. माउंट आबू की ट्रिप के दौरान उसका ध्यान कई बार इस हेंडसम लड़के पर गया था..बहोत कम बोलने वाला.. और जब भी बोलता तब नाप-तोलकर बोलता.. खास कर औरतों के साथ और स्टाफ की अन्य युवतीओं के साथ.. इतने सलीके से बात करता.. इसी कारण रेणुका सहित ऑफिस का सारा महिला स्टाफ उससे बेहद प्रभावित था..

दोपहर केंटीन में लंच करते हुए राजेश सर, वैशाली, पीयूष और पिंटू ने बहोत सारी बातें की.. पिंटू के आध्यात्मिक और तात्विक ज्ञान से भरी बातें सुनकर पीयूष भी सुनता ही रह गया.. पिंटू की तरफ देखने के उसका नजरिया बदलने लगा.. पर वैशाली को पिंटू की बातों से कुछ अधिक फरक नहीं पड़ा.. उसके पति संजय की बेवफाई का जहर पूरे शरीर में ऐसे फैल चुका था की उसे पूरी मर्द जात से डर सा लगने लगा था.. हाँ, पीयूष उसके बचपन का साथी था इसलिए उसके साथ वो काफी स्वाभाविक रह पाती थी.. राजेश सर ने माउंट आबू की उस रात जिस तरह उसके साथ सेक्स किया था और साथ ही साथ सन्माननीय तरीके से पेश आए थे.. इसलिए उनकी छवि भी वैशाली के मन में बहोत अच्छी थी.. बाकी अन्य मर्दों से उसे डर और घिन दोनों का एहसास होता था.. उनसे ज्यादा बात करना भी पसंद नहीं करती थी.. संजय ने उसके मम्मी-पापा के साथ जो बेहूदा बर्ताव किया था उसका वैशाली के दिल-ओ-दिमाग पर बड़ा ही गहरा असर हुआ था

शाम को साढ़े पाँच बी ऑफिस से छूटते ही पिंटू ने कविता को फोन लगाया.. कविता भी स्कूटी लेकर मार्केट जाने के बहाने निकल गई और दोनों सात बजे तक फोन पर लगे रहे.. दोनों प्रेमियों ने डेढ़ घंटे तक ढेर सारी बातें की.. पिंटू ने कविता को वैशाली के ऑफिस आने की बारे में बताया.. सुनकर कविता भी खुश हो गई.. कविता ने पिंटू को वैशाली की मानसिक स्थिति के बारे में बताया और अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा की वो बहोत ही अच्छी लड़की है.. पर उसकी किस्मत खराब चल रही है.. कविता ने ये भी बताया की वो लोग मौसम की सगाई में राजेश सर, रेणुका मैडम और पिंटू को न्योता देने वाले थे.. शादी पर सारे स्टाफ को शरीक होने के लिए बुलाएंगे..

पिंटू ने खुश होकर फोन रख दिया.. चलो.. इसी बहाने कविता के साथ रहने का मौका तो मिलेगा.. !!

मौसम अपनी दीदी और पिंटू के संबंधों से हल्का हल्का वाकिफ थी इसीलिए उसने पिंटू को आमंत्रित करने की सोची थी.. साथ ही साथ उसके मन में और भी एक बात चल रही थी.. जो वक्त आने पर पता चल जाएगी..

दूसरे दिन जब वैशाली ऑफिस पहुंची तब कल के मुकाबले ज्यादा फ्रेश और खुश लग रही थी.. स्टाफ के बाकी लोगों से अब जान पहचान भी हो रही थी और वो अधिक आसानी से सब के साथ घुल-मिल रही थी..पीयूष और पिंटू वैशाली को अच्छी कंपनी दे रहे थे.. बातों बातों में पीयूष ने वैशाली और पिंटू को मौसम की सगाई के बारे में बताया था.. वैशाली तो ये पहले से ही जानती थी.. और पिंटू भी.. पर वो किस मुंह से पीयूष को बताता की कविता ने पहले ही इस बारे में बता दिया था.. !! वो चुपचाप सुनता रहा..

दोपहर के लगभग तीन बजे रेणुका ऑफिस आई.. और जिद करके वैशाली को अपने साथ घर ले गई.. जाते जाते वैशाली ने पीयूष को कहा की वो साढ़े पाँच बजे तक लौट आएगी.. और पीयूष के साथ ही घर जाएगी.. तो वो उसका इंतज़ार करें और अकेला घर न चला जाएँ

रेणुका के साथ कार में बैठे बैठे बातें करके वैशाली को बहोत अच्छा लगा.. ऑफिस से रेणुका के घर का रास्ता काटने में लगभग दस से पंद्रह मिनट लगती थी.. वैशाली को खुश करने के तमाम प्रयत्न कर रही थी रेणुका.. राजेश ने ही उसे इस काम पर लगाया था

दोनों घर पहुंचे.. वैशाली को आराम से सोफ़े पर बिठाकर रेणुका ने पूछा

"बोल वैशाली.. क्या लेगी? चाय, कॉफी, मिल्कशेक, शर्बत, बियर या वाइन??"

वैशाली: "मैं जो पीना चाहती हूँ उसका तो आपने पूछा ही नहीं?"

याद करते हुए रेणुका ने कहा "यार, जितना याद आया सब पूछ लिया.. तेरी कोई स्पेशल फरमाइश हो तो बता दे"

वैशाली: "जहर.. !!"

रेणुका: "चुप हो जा.. आइंदा कभी ऐसी बात बोली तो ज़बान खींच लूँगी तेरी.. "

वैशाली: "रेणुकाजी, आप नहीं जानते की उस नालायक ने मेरी क्या हालत बना दी है.. मेरी और साथ साथ में मम्मी पापा की भी" संजय की याद आते ही एक भयानक कड़वाहट वैशाली के रोम-रोम में फैल गई.. ग्लानि और दुख से भरी उसकी आँखों में पानी आ गया.. उसकी आँखों में उभर रहे आंसुओं को देखकर रेणुका ने वैशाली को गले से लगा दिया.. वैशाली ने उसके कंधे पर सर रखकर खूब आँसू बहायें.. रेणुका बड़े ही प्यार से उसे सहलाते हुए दिलासा दिया.. काफी देर तक वो दोनों उसी स्थिति में खड़े रहे..

फिर रेणुका सोफ़े पर बैठ गई और वैशाली उसकी गोद में सर रखकर लेट गई.. वैशाली के गालों पर लगे आंसुओं को रेणुका ने पोंछा.. गोद में सो रही वैशाली की नजर अचानक रेणुका के पल्लू से दिख रहे उभारों पर जा टिकी.. ब्लाउस की कटोरियों की नोक वैशाली के कपाल को छु रही थी.. और इस बात से रेणुका बेखबर थी.. पर पिछले दो दिनों से.. ऑर्गजम की कगार पर पहुंचकर भी स्खलित होने का मौका न मिलने पर निराश हो रही वैशाली को एक अजीब सी झुंझुनाहट महसूस होने लगी..

माउंट आबू में होटल के रूम के अंदर.. मौसम और फाल्गुनी के साथ किया लेस्बियन सेक्स याद आ गया वैशाली को.. सामने दीवार पर टंगे हुए राजेश के हँसते क्लोज-अप की तस्वीर देखकर.. उस रात टॉइलेट में की हुई घनघोर चुदाई की यादें भी वैशाली को उकसा रही थी.. एकांत.. और पिछले दो दिनों से किनारें तक पहुँचने पर भी मंजिल को न पा सक्ने की निराशा.. जिस्म की आग.. ये सब आज एक साथ मिलकर वैशाली को बेहद परेशान करने लगे.. अपने आप को कंट्रोल में रखने की बहोत कोशिश की उसने.. पर रेणुका के आकर्षक उभारों की गोलाई और गदरायापन देखकर वो बहोत ही गरम हो रही थी.. दो दिन तक तड़पने के बाद वैशाली अपना संयम खो बैठी.. वो भी गलत जगह और गलत इंसान के साथ.. वैशाली ने धीरे से रेणुका के स्तन की कटोरी को दबा दिया



रेणुका ने चोंककर वैशाली की तरफ देखा.. शर्म से लाल वैशाली ने अपनी आँखें बंद कर ली.. अपने आप को मन ही मन कोसने लगी वैशाली.. ऐसा न किया होता तो अच्छा होता.. रेणुका तो मुझे उम्र में भी काफी बड़ी है.. वो क्या सोचेगी? मौसम और फाल्गुनी की बात अलग थी.. तीनों सहेलियों ने आपस में एक दूसरे की रजामंदी से सब कुछ किया था.. रेणुका तो कम से कम दस साल बड़ी थी.. !! शर्म और संकोच से वैशाली सिकुड़े हुए पड़ी रही


"आई एम सॉरी, रेणुका जी" वैशाली ने अपनी गलती सुधारने की कोशिश की..

जिस तरह के हालत से वैशाली गुजर रही थी.. उसको देखकर ही ये अनुमान लगाया जा सकता था की वो काफी समय से अछूती रही होगी.. रेणुका सब कुछ समझ गई.. आखिर वो भी एक महिला थी.. !! रोज रात को राजेश के लंड से जी भरकर खेलती थी वो.. और वो कितना सुखदायी था ये बराबर जानती थी रेणुका.. उसी आनंद को मिस कर रही थी वैशाली.. वो जवान थी और अभी तो संभोग करने के बेहतरीन सालों से गुजर रही थी.. ऐसी स्थिति में.. जब स्त्री का जिस्म.. काफी लंबे अरसे तक भोगा न जाएँ.. तब ऐसा होना काफी सामान्य था..

वैशाली की ओर प्रेम से देखते हुए.. आँखों में आँखें डालकर रेणुका ने कहा "कोई बात नहीं वैशाली.. रीलैक्स.. चिंता मत कर.. आई लाइक लेस्बियन लव.. " पिछली रात को ही राजेश ने रेणुका की दोनों टांगों को कंधे पर लेकर, धनाधन चोद कर ठंडा किया था.. इसलिए रेणुका को ज्यादा इच्छा तो नहीं थी.. पर वैशाली की शर्मिंदगी कम करने के लिए उसने ये कहा.. गोद में सो रही वैशाली के गालों को सहलाते हुए उसकी उँगलियाँ उसके लाल होंठों तक पहुँच गई.. काफी देर तक वो उन होंठों को उंगलियों से रगड़ती रही.. वैशाली ने रेणुका का हाथ पकड़कर अपने गाल और गर्दन के बीच दबा दिया.. ऐसा करने से रेणुका की उँगलियाँ अब ज्यादा नजदीक से वैशाली के अधरों को छूने लगी.. उसने रेणुका की पहली दो उँगलियाँ मुंह में भर ली और धीरे धीरे चूसने लगी.. और थोड़ी ही देर में वो ऐसी तेजी से चूसने लगी जैसे लंड को चूस रही हो..

रेणुका समझ गई.. निश्चित रूप से वैशाली लंड की चुसाई को मिस कर रही थी.. उसकी इस भूख को देखकर रेणुका को अचानक कुछ याद आया और उसकी आँखों में एक अनोखी सी चमक आ गई..

"मैं अभी आई वैशाली.. तेरे लिए एक सप्राइज़ लेकर.. " वैशाली का सर अपनी गोद से हटाते हुए रेणुका ने खड़ी होकर कहा और अपने बेडरूम में चली गई

कुछ मिनटों बाद जब वो लौटी तो वैशाली उसे देखकर दंग रह गई.. राजेश का पेंट और शर्ट पहनकर खड़ी हुई रेणुका कमाल की लग रही थी.. उसने जान बूझकर शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले छोड़ दीये थे.. और स्तनों के बीच की गहरी खाई को उजागर करते हुए खड़ी थी..

"कैसी लग रही हूँ मैं??" मुसकुराते हुए अपने कमर पर दोनों हाथ रखे बोली रेणुका

"जबरदस्त लग रही हो रेणुका जी.. एकदम हॉट.. साइज़ क्या है आपकी? ३८ की तो होगी ही.. " वैशाली ने पूछा

"३८ से थोड़ी सी ज्यादा.. तुम्हारा साइज़ ४० का है ये तो मैं बिना छुए ही बता सकती हूँ"

"हाँ सही कहा आपने.. ४० की साइज़ है मेरी"

रेणुका सोफ़े पर बैठ गई और वैशाली का सर वापिस अपनी गोदी में रख दिया.. पहली जिस स्थिति में बैठे थे उसी स्थिति में फिर से आ गए.. रिधम टूट जाने से वैशाली फिर से थोड़ी शरमा रही थी.. पर अब जब रेणुका ने ही पहल कर दी थी.. तब और झिझकने का कोई मतलब नहीं था.. रेणुका ने मर्दों की तरह उसने वैशाली के गर्दन के पीछे के हिस्से को मजबूती से पकड़ा और झुककर वैशाली के होंठों को चूम लिया.. शर्ट के खुले हुए बटनों से रेणुका के गदराए स्तनों की मांसल झलक देखते हुए वैशाली उन गोलाइयों को छूने लगी.. रेणुका को कॉलर से पकड़कर उसके चेहरे को अपने चेहरे से दबाते हुए वो भी उस चुंबन का जवाब देने लगी.. चूमते हुए दोनों की नजरें एक हो गई

"बहोत ही खूबसूरत है तू, वैशाली.." रेणुका के स्तन अब वैशाली के गालों से पूर्णतः दब रहे थे.. अपनी गर्दन के पिछले हिस्से पर वैशाली को कुछ चुभ सा रहा था.. पर उसने उस बारे में ज्यादा सोचा नहीं..

"मेरे बूब्स चुसेगी तू, वैशाली??"

"ओह्ह स्योर, रेणुकाजी.. !!"

रेणुका ने अपने शर्ट के बटन खोल दीये और अंदर पहनी बनियान के पीछे से अपने मदमस्त कातिल स्तनों को हाथ से बाहर निकालकर वैशाली को दिखाएं.. मर्दों के कपड़ों में रेणुका को देखकर वैशाली काफी उत्तेजित हो रही थी.. लो-नेक बनियान के बाहर लटक रहे दोनों भव्य स्तनों में एक जबरदस्त सेक्स अपील थी.. और उसकी एक इंच लंबी निप्पलों को देखकर वैशाली की चूत की फांक से रस चुने लगा था.. बड़े ही आराम से वैशाली ने रेणुका की निप्पलों को छु कर देखा.. स्पर्श स्त्री का हो या पुरुष का.. आनंद तो देता ही है.. वैशाली के इस स्पर्श से रेणुका सिहर उठी


रेणुका की गोलाइयों पर अब वैशाली अपनी जीभ फेरते हुए चाटने लगी.. अपने स्तनों को वैशाली को सौंपकर.. रेणुका बड़े आराम से सोफ़े पर पीठ टीकाकर बैठी रही.. वो मन ही मन वैशाली के विशाल उभारों को देखकर सोच रही थी.. जैसी माँ वैसी बेटी.. बिल्कुल शीला जैसे ही है.. बड़े बड़े.. पास पड़े मोबाइल को उठाकर उसने वैशाली की छातियों की तस्वीरें खींच ली.. वैशाली ने भी कोई एतराज नहीं जताया.. बल्कि उसने तो अपने ड्रेस के अंदर हाथ डालकर.. अपने स्तनों को और उभारकर बाहर निकाल दिया.. उन उभरे हुए स्तनों की रेणुका ने फिर से दो-तीन तस्वीर खींच ली..


वैशाली ने अब रेणुका की बनियान को ऊपर कर दिया और दोनों स्तनों को बिल्कुल खोल कर रख दिया.. ब्राउन रंग की निप्पलों को ध्यान से देखते हुए जो करना था वो शुरू कर दिया.. बारी बारी से दोनों निप्पलों को चूस लिया उसने.. स्तनों को और झुकाकर रेणुका ने वैशाली के मुंह में अपनी निप्पल ठूंस दी..

अब वैशाली ने पास पड़ा मोबाइल उठाया.. और उसका विडिओ ऑन करते हुए फोन रेणुका के हाथों में थमा दिया.. रेणुका समझ गई.. और उसने पास पड़े टेबल पर मोबाइल को ऐसे सेट कर दिया ताकि सारा सीन आराम से रिकार्ड हो सके.

वैशाली ने रेणुका की निप्पलों को चूसते हुए एक हाथ से अपने स्तन को दबाना शरू कर दिया.. ये देखते ही रेणुका की चूत में एक चिनगारी सी हो गई.. वैशाली के जिस्म का नरम स्पर्श और निप्पल की चुसाई.. उसे बहोत आनंद दे रही थी.. उसकी उत्तेजना अब बुरी तरह भड़क चुकी थी..


वैशाली को अपनी गोद से हटाते हुए रेणुका खड़ी हुई.. शर्ट और बनियान उतारकर वो टॉप-लेस हो गई.. वैशाली के सामने खड़ी होकर उसने उसका चेहरा अपनी चूत वाले हिस्से पर दबा दिया.. वैशाली को रेणुका के पेंट के अंदर कुछ कडक चीज महसूस हुई.. वो आश्चर्य से रेणुका की ओर देखने लगी.. अपने उस हिस्से पर वैशाली का चेहरा रगड़ते हुए रेणुका ने कहा

"जिस चीज के लिए तू तड़प रही है.. वो मेरे पास है.. ये देख.. !!" कहते हुए रेणुका ने अपने पेंट की चैन खोल दी.. और उसे नीचे सरका दिया.. ये नजारा देखकर वैशाली दंग रह गई.. क्रीम कलर का रबर से बना हुआ लंड.. रेणुका के दोनों पैरों के बीच लटक रहा था.. काले पट्टों से उस लंड को कमर पर बांध रखा था रेणुका ने..

वैशाली उस लंड के विकराल आकार को अभिभूत होकर देखती ही रही.. साधारण लंड की तुलना में ये कई ज्यादा मोटा और लंबा भी था.. रेणुका ने अपना पेंट घुटनों तक उतार दिया.. देखने पर ऐसा ही लग रहा था जैसे रेणुका का ही लंड था.. वैशाली उस अंग को घूरते हुए देखती रही.. फिर उसने रेणुका की तरफ देखा.. मुसकुराते हुए रेणुका ने कहा


"मुंह में लेकर चूस इसे.. मज़ा आएगा.. आज ये मैंने ये तेरे लिए ही पहना है.. राजेश लाया था ये मेरे लिए" रेणुका ने वैशाली के मुंह से इस रबर के लंड को दबाते ही वैशाली के होंठ खुल गए.. रेणुका ने हल्के से एक धक्का दिया.. चार इंच जितना लंड वैशाली के मुंह में चला गया.. रेणुका भी किसी मर्द की अदा से वैशाली के मुंह को चोदने लगी.. एकदम अलग सा.. नया सा अनुभव था ये वैशाली के लिए.. पर लंड की मोटाई इतनी ज्यादा थी की थोड़ी देर तक चूसने पर ही उसका जबड़ा दर्द करने लग गया.. और उसने लंड मुंह से बाहर निकाल दिया.. और बोली "बहोत मोटा है ये तो.. थोड़ा सा पतला होता तो चूसने में आसानी रहती"

"डॉन्ट वरी वैशाली.. वैसे भी ये मुंह में डालने से ज्यादा नीचे डालने के लिए ही इस्तेमाल करना है हमें.. और नीचे का तो तुम्हें पता ही है.. जितना ज्यादा मोटा उतना ही ज्यादा मज़ा आता है.. !!"

वैशाली: "बाप रे.. इतना मोटा मैं तो नहीं ले पाऊँगी.. फट जाएगी मेरी.. " कुतूहल मिश्रित उत्तेजना और डर से वैशाली उस रबर के लंड से खेलते हुए बोली

रेणुका: "मुझे तो ऐसी मोटी-तगड़ी साइज़ वाला ही पसंद है.. पतले वाले भी होते है.. पर वैसा लंड तो हम रोज घर पर देखते ही है.. जब कुछ अलग करने का मन हो तब कुछ अलग चीज ही चाहिए.. चल अब जल्दी जल्दी कपड़े उतार.. टाइम खराब मत कर.. कहीं कोई आ टपका तो मुझे इन कपड़ों में देखकर डर जाएगा.. और ये सब उतारने में भी बहोत वक्त लगता है.. ये तो मैं कभी कभी इस्तेमाल करती हूँ.. राजेश जब शहर से बाहर हो तब.. पर आज तेरी भूख को देखकर मुझे दया आ गई.. तुझे लंड के लिए तड़पता देखकर सोचा की तुझे इससे ही ठंडी कर दूँ.. "

इन बातों के दौरान दोनों ने अपने वस्त्र उतार दीये और संपूर्णतः नग्न हो गई.. रेणुका ने वैशाली के मदमस्त स्तनों को बड़े मजे से दबाएं और निप्पलों को मसल मसल कर चूस लिया.. वैशाली की चूत उत्तेजना से पानी पानी हो गई.. दो दिनों से चूत की खुजली से परेशान थी वो.. आज वही खुजली फिर से मचल पड़ी थी..

वैशाली ने रेणुका को फर्श पर लिटा दिया और अपनी फड़कती चूत को रेणुका के होंठों पर रख दिया.. वैशाली की सारी शर्म और हया.. अब हवा हो चुकी थी.. वो बिंदास रेणुका के होंठों से अपनी चूत को रगड़ते हुए उसके नंगे स्तनों को दबाने लगी..


रेणुका और वैशाली दोनों अब अपना आपा खो चुकी थी.. वैशाली ने अपनी पोजीशन बदली पर रेणुका के मुंह से चूत न हटाना पड़े इस लिए वो सिर्फ पलट गई.. रेणुका ने पहना हुआ रबर का लंबा विशाल लंड.. छत की तरफ तांक रहा था.. वैशाली ने उसे मुठ्ठी में पकड़कर हिलाया.. जिज्ञासावश वो इस रबर के लंड की बनावट को देख रही थी.. सहलाने में इतना मज़ा आ रहा था.. उसने दबाकर भी देखा.. दबाने में नरम और फिर भी सख्त.. वाह.. !! अद्भुत बनावट थी.. काफी बढ़िया कवॉलिटी का था वो औज़ार.. वैशाली को बहोत पसंद आ गया ये कृत्रिम लंड.. बनाने वाली कंपनी ने महिलाओं की उत्तेजना और जरूरतों का कितना ध्यान रखते हुए उसे बनाया था.. !!! पर इतना मोटा और लंबा क्यों बनाया होगा?? इंसान से ज्यादा गधे के लंड लग रहा था.. ये लंड को इस्तेमाल करने के बाद आनंद के बजाए कहीं दर्द न होने लगे.. ये डर लग रहा था वैशाली को

मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए वैशाली ने झुककर उस लंड के टोपे को चूम लिया.. दूसरी तरह रेणुका ने वैशाली की चूत को ऐसे चाटा.. ऐसे चाटा की वैशाली जबरदस्त गरम हो गई और उसकी धड़कती हुई चूत रेणुका के होंठों से घिसते हुए.. उसके स्तनों से होती हुई.. उस लंड तक जा पहुंची.. कुआं खुद चलकर प्यासे के पास आ गया.. उस रबर के निर्जीव अवयव में.. वैशाली ने अपनी वासनायुक्त हरकतों से जैसे जान फूँक दी थी.. वैशाली अपनी चूत को सुपाड़े पर रगड़ने लगी.. उस घर्षण से ऊपर ऊपर की खुजली तो थोड़ी शांत जरूर हुई.. पर चूत की गहराइयों में जो तूफान मचा हुआ था.. वो अब भी शांत होने की उम्मीद लगाए बैठा था..

वैशाली के चेहरे के भाव देखने के लिए उसने उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए उसे अपनी तरफ मोड़ा.. अब दोनों के शरीर एक दूसरे के बिल्कुल सामने आ चुके थे.. वैशाली के मस्त स्तनों को रेणुका ने सोते सोते ही दबाया और उसकी निप्पल को अपनी चुटकियों में भरकर मसल दिया.. आग में पेट्रोल डालने का काम किया था रेणुका ने.. अब वैशाली इतनी ज्यादा गरम हो गई थी.. की अब न उसे लंड की मोटाई का डर रहा और ना ही उसकी लंबाई का..

अपनी तंदूर जैसी गरम चूत के सुराख के बिल्कुल मध्य में लंड को टिकाते हुए वैशाली ने अपने जिस्म का वज़न रखते हुए दबाया.. आज तक इतनी मोटी कोई चीज उसकी चूत के अंदर गई नहीं थी.. पर आज की इस हवस का नशा कुछ ऐसा था की दर्द की परवाह किए बगैर ही उसने अपने जिस्म का सारा वज़न उस लंड पर रख दिया.. चूत को चीरते हुए वह रबर का लंड अंदर घुसने लगा.. और जब वैशाली की सहने की शक्ति खतम हुई तब जाकर रुकी.. रेणुका समझ गई.. ये लंड तो उसके और शीला के साइज़ के भोसड़ों के लिए बनी थी.. जवान वैशाली बेचारी कैसे उसे ले पाती.. ??

वैशाली की कमर को पकड़ते हुए.. रेणुका नीचे से अपनी कमर उठाकर हौले हौले धक्के लगाने लगी.. ये सुनिश्चित करते हुए की लंड का उतना ही हिस्सा वैशाली की चूत के अंदर जाए.. जितना की वो बर्दाश्त कर सकें.. लंड अब अंदर बाहर होने लगा.. कभी कभी जब रेणुका से थोड़ा मजबूत धक्का लग जाता और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस जाता तब वैशाली दर्द से कराह उठती..



"आह्ह.. रेणुकाजी.. ऊई माँ.. बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह.. ऐसे ही धक्के लगाते रहिए.. ओह माय गॉड.. मर गई.. आह्ह.. आह्ह.." वैशाली के हाव भाव और हरकत देखकर ही पता लग रहा था की उसे कितना मज़ा आ रहा था.. रेणुका ने वैशाली को अपने बगल में फर्श पर लिटा दिया और टेढ़ी होकर वैशाली को चोदने लगी.. थोड़ी देर तक ऐसे ही चोदते रहने के बाद.. उसने वैशाली को घोड़ी बना दिया.. और पीछे से चूत में डालकर जबरदस्त चोद दिया.. उस दौरान वैशाली तीन बार झड़ चुकी थी.. उसके आनंद का कोई ठिकाना न रहा.. बिना मर्द के भी लंड से मज़ा करने के बाद उसने रेणुका से कहा



"रेणुका जी, ये आपका औज़ार तो सच में बड़ा ही जबरदस्त है.. आप के पास तो राजेश सर है इसलिए इसकी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती होगी.. पर मुझ जैसी लड़कियों के लिए तो ये किसी आशीर्वाद से कम नहीं है.. क्या मुझे भी ऐसा एक मिल सकता है?? मतलब मैं भी ऐसा एक खरीदना चाहती हूँ.. क्यों की अब तो मुझे इसकी बहोत जरूरत पड़ने वाली है.. जब तक कोई साथ तलाश न लूँ"

"बिल्कुल सही कहा तूने.. जिस्म की आग बुझाने के लिए परेशान होते रहने से.. और अपनी इज्जत को दांव पर लगाने के डर के बगैर.. ये हथियार काफी काम आएगा तुझे.. तू लेकर जा.. और जब तुझे अपना कोई साथी मिल जाए तब लौटा देना.. ठीक है.. !!" वैशाली के स्तनों को मसलते हुए रेणुका ने कहा

"क्या सच में मैं इसे ले जा सकती हूँ?? पिछले कई दिनों से मैं तड़प रही थी.. पर अपनी ये समस्या किससे कहती? कविता भी मायके गई हुई है.. वरना उसके साथ भी थोड़ी बातचीत हो जाती और जी हल्का हो जाता.. अच्छा हुआ जो आप मुझे यहाँ ले आए.. वरना पता नहीं मैं क्या कर बैठती.. !!"

"चिंता मत कर.. ये ले जा और मजे कर.. अपने शरीर की भूख मिटाते हुए हमें तो अपनी इज्जत और आबरू का भी खयाल रखना पड़ता है.. जल्दबाजी में किसी भी मर्द को मत पकड़ लेना.. वरना फिर से कोई हरामी तेरी ज़िंदगी से खिलवाड़ करेगा.. कुछ हलकट मर्द ऐसे भी होते है.. जिन्हें सब कुछ मिलता रहे तब तक वो खुश और चुप रहते है.. पर किसी कारणवश अगर हम उनकी जरूरतों को कभी पूरा न कर पाएं.. तो हमारी इज्जत को सरेआम नीलाम करते हुए हिचकिचाते नहीं है.. ऐसे मर्दों से बचकर रहना.. और आराम से अपना जीवन व्यतीत कर.. ये डिल्डो मेरी तरफ से गिफ्ट समझ कर ले जा.. और मजे कर.. तेरी साइज़ के हिसाब से थोड़ा मोटा और लंबा जरूर है.. पर मैं राजेश से कहकर तेरी साइज़ का मँगवा दूँगी.. सेक्स लाइफ जब बोरिंग हो जाती है तब बदलाव के लिए ये उत्तम साधन है.. कभी कभी तो मैं और राजेश इसे साथ में इस्तेमाल करते है.. मज़ा आता है.. !! अच्छा सुन.. तेरे लिए दूसरा डिल्डो कौन से कलर का मँगवाऊँ?"

वैशाली शरमा गई.. अभी भी रेणुका की कमर पर वो एनाकोंडा बांधे रखा था..

"मतलब इसमे अलग अलग रंग भी होते है क्या??" वैशाली ने आश्चर्य से पूछा.. वैसे उसने इस तरह के डिल्डो ब्ल्यू-फिल्मों में देख रखे थे.. पर उसे ज्यादा जानकारी नहीं थी..

"अलग अलग कलर.. अलग अलज साइज़.. सब मिलता है.. जैसे ब्रा में अलग अलग साइज़ होती है.. बिल्कुल वैसे ही.. " रेणुका उस लंड को लटकाते हुए किचन में गई और फ्रिज से पानी की बोतल और दो ग्लास लेकर बाहर आई.. उसके चलने से.. रबर का लंड ऐसे झूल रहा था.. देखकर वैशाली की हंसी छूट गई..

"एकदम मर्द जैसे लग रहे हो आप.. बस ये छातियाँ निकलवा दीजिए" हँसते हँसते वैशाली ने कहा

"ये छातियाँ तो मर्दों को रिझाने का हथियार है.. उसे भला क्यों निकलवा दूँ?? छातियों से मर्द खुश और जब जरूरत पड़े तब ये नकली लंड लगाकर तेरे जैसी महिला भी खुश.. " रेणुका ने हँसते हुए कहा.. फिर उसने बात आगे बढ़ाई "राजेश ने कहा था की इसमे कई अलग अलग प्रकार और रंग आते है.. कुछ तो इलेक्ट्रॉनिक भी होते है.. बटन दबाते ही बिल्कुल वीर्य जैसी पिचकारी छोड़ें ऐसे डिल्डो भी होते है.."

"वाऊ.. ऐसे डिल्डो में तो कितना मज़ा आएगा.. !! ऐसे ही नए नए डिल्डो मार्केट में आते गए तो हम औरतों को मर्दों की जरूरत ही नहीं रहेगी.. !!" वैशाली ने कहा

रेणुका: "वैशाली.. ये नकली डिल्डो सिर्फ विकल्प के तौर पर ठीक है.. पर ये कभी भी असली हथियार का मुकाबला नहीं कर सकता.. असली लंड चाहे कितना भी छोटा या पतला न हो.. उसका आनंद ही अलग होता है.. "

वैशाली: "हाँ, वो बात तो है.. पर असली लंड लेने में रिस्क बहोत है.. "

रेणुका: "सही कहा तूने.. पता है.. राजेश मेरे लिए इतना मोटा लंड क्यों ले कर आया?? जब जब हम सेक्स करते और अपनी कल्पनाओ के बारे में चर्चा करते.. तब अक्सर मैं मोटे लंड का जिक्र करती.. ब्ल्यू-फिल्मों मे कल्लुओं को अपना बारह इंच का हथियार.. भोसड़े में डालकर खोदते हुए देखती.. तब मैं डर जाती.. ऊपर से वो उस खूँटे जैसे लंड को गांड में डालते तब देखकर मेरी रूह कांपने लगती.. हमेशा सोचती रहती की मोटा लंड अंदर लेने पर कैसा महसूस होता होगा.. !!"

वैशाली: "हाँ मैंने भी देखा है ब्ल्यू-फिल्मों में.. बाप रे.. मेरी तो देखकर ही फट जाती है.. !!"

रेणुका: "पर फिर भी जब उन औरतों को खुशी खुशी बारह इंच का लंड लेटे हुए देखती तब मुझे ताज्जुब होता.. मुझे जीवन में एक बार ऐसे किसी तगड़े लंड वाले से चुदवाना है.. पर यहाँ तो ऐसे मर्द मिलने से रहे.. !! इसलिए राजेश ये मोटा डिल्डो मेरे लिए लेकर आए थे.. मेरी उस इच्छा को संतुष्ट करने के लिए"

रेणुका ने डिल्डो को वॉश-बेज़ीन में पानी से धो लिया और पोंछकर बॉक्स में पैक कर दिया.. एक काली पन्नी में उस बॉक्स को डालकर उसने वैशाली को डे दिया.. वैशाली को टेंशन हो गया.. वापिस जाते वक्त कहीं पीयूष ने पूछ लिया की अंदर क्या है.. तो मैं क्या जवाब दूँगी??

दोनों ने कपड़े पहने.. मेकअप ठीक करके दोनों गाड़ी में निकल पड़ी.. वैशाली की चूत में अब भी जलन हो रही थी.. वो समझ गई की अपने मुंह से बड़ा लड्डू खाने की कोशिश करने की वजह से ये जलन हो रही थी..

वैशाली: "वैसे मज़ा बहोत आया रेणुका जी.. अचानक से कितना कुछ हो गया हमारे बीच.. !!"

रेणुका: "वैशाली.. मैं अक्सर घर पर अकेली होती हूँ.. अगर तुझे कोई साथी मिल जाएँ.. और मजे करने का मन हो तो बिंदास उसे लेकर मेरे घर चली आना.. बेकार में किसी गेस्टहाउस में जाकर खतरा मत उठाना.. वहाँ तो कभी भी पुलिस की रैड पड़ जाती है.. तू घर पर ही चली आना.. राजेश को मैं समझा दूँगी.. वो बहोत प्रेक्टिकल है.. समझ जाएगा.. और हाँ.. अगर कोई पार्टनर न मिलें तो भी चली आना.. पार्टनर का बंदोबस्त भी हो जाएगा"

वैशाली: 'साथी की जरूरत तो है.. पर ऐसा साथी कहाँ मिलेगा?? मेरी उम्र में जो भी मिलेगा वो शादीशुदा ही होगा.. और अगर कोई कुंवारा मिल भी गया तो मेरे जैसी से अब कौन शादी करेगा? किसी शादीशुदा मर्द से एकाद बार सेक्स करने तक ठीक है.. पर हमेशा के लिए ऐसा करना ठीक नहीं.. फिर मेरे और उस रोजी में क्या अंतर?? मैं किसी और औरत के साथ ऐसी नाइंसाफी नहीं कर सकती.. एकाद बाद करना ठीक है"

रेणुका ने गाड़ी ऑफिस के बाहर रोक दी.. घड़ी में पौने छह का वक्त दिखा रहा था.. पिछली पंद्रह मिनट से पीयूष वैशाली का इंतज़ार कर रहा था.. पीयूष को देखते ही रेणुका के मन में माउंट आबू की यादें ताज़ा हो गई.. एक नजर उसकी तरफ देखकर रेणुका ने नजरें फेर ली.. डिल्डो वाला बॉक्स उठाकर वैशाली को देते हुए उसने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.. ताकि पीयूष भी सुन सकें "अरे वैशाली, ये बॉक्स तो तू लेना भूल ही गई.. तेरी मम्मी की साड़ी है.. कितने दिनों पहले मैंने उनसे ली थी.. पर वापिस करना भूल जाती थी.. शीला को तो याद भी नहीं होगा.. !!"

रेणुका की इस समझदारी ने वैशाली की समस्या हल कर दी.. वरना पीयूष इस बॉक्स के बारे में जरूर पूछता.. वैशाली पीयूष के पीछे अपने बॉल चिपकाकर बैठ गई.. स्तन छूते ही पीयूष की आह्ह निकल गई..

"चुपचाप बाइक चला.. नखरे मत कर नालायक.. !!" हँसते हुए वैशाली ने कहा.. पीयूष ने बाइक चला दी.. रास्ते में पीयूष सोचता रहा की कल की तरह आज भी कुछ सेटिंग हो जाएँ तो कितना अच्छा होगा.. !! कल रात उस मादरचोद क्लीनर ने सारा मूड खराब कर दिया.. वैशाली उसके लंड को कैसे तांक रही थी!! ये लड़कियां वैसे तो शर्म की बड़ी बड़ी बातें करती रहती है.. पर जब लंड देखने का मौका मिलें तब चुकती भी नहीं है.. दोनों ने हिम्मत की और घर से बाहर निकलें.. पर कुछ हो नहीं पाया.. किस्मत.. और क्या.. !! पर अब तो वैशाली किसी भी सूरत में रात को बाहर नहीं निकलेगी.. पीयूष मन ही मन कोई और योजना सोचने लगा.. कविता भी घर पर नहीं थी इसलिए पूरी आजादी थी.. पर कुछ भी सेट नहीं हो पा रहा था.. उस तरफ मौसम कुछ कर नहीं रही थी.. और इस तरफ वैशाली के साथ कुछ हो नहीं पा रहा था.. वैसे वैशाली ने हिम्मत तो बहोत की थी.. वरना आधी रात को घरवालों से छुपकर चुदवाने के लिए बाहर निकलना बड़ी हिम्मत का काम है.. इसलिए जो कुछ भी हुआ था उसमें वैशाली की कोई गलती नहीं थी.. मौसम की याद आते ही फिर से पीयूष का मूड खराब हो गया.. तरुण ने उस दिन कैसे अपमानित किया था फोन पर.. !!

बाइक पर बैठी वैशाली अपने स्तनों को दबाते हुए पीयूष की जांघ सहला रही थी.. घर नजदीक आते ही उसने पीयूष से थोड़ी दूरी बना ली.. पूरे रास्ते दोनों के बीच कुछ खास बातचीत नहीं हुई.. क्योंकि पीयूष के दिमाग पर मौसम के खयाल हावी हो चुके थे.. वैशाली ये सोच रही थी की मम्मी पापा की नज़रों से बचाकर इस बॉक्स को अंदर कैसे ले जाया सकें??

वैशाली को शीला के घर के बाहर उतारकर पीयूष अपने घर चला गया.. मुसकुराते हुए वैशाली ने घर में प्रवेश किया.. सोफ़े पर बैठे शीला और मदन के सामने स्माइल देकर वो बिना कुछ कहें अपने कमरे में चली गई.. उसने सब से पहला काम उस बॉक्स को छुपाने का किया..

शीला ने आज वैशाली की पसंद की सब्जी बनाई थी.. डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हुए तीनों ने ढेर सारी बातें की.. वैशाली को खुश देखकर मदन के दिल को ठंडक मिली.. शीला भी खुश थी पर उसे एक चिंता खाए जा रही थी.. पीयूष के साथ वैशाली खुश थी.. पर क्या कविता के आने के बाद ये सब मुमकिन हो पाएगा?? कौन सी पत्नी अपने जवान पति के पीछे पराई लड़की को रोज ऑफिस जाते देख पाएगी??

खाना खाने के बाद वैशाली और मदन वॉक लेने के लिए गए.. बाप बेटी के बीच बहोत सारी बातें हुई.. दोनों दस बजे लौटे.. हाथ मुंह धोकर वैशाली बेड पर पड़ी और पूरे दिन की दिनचर्या याद करने लगी.. आज पूरा दिन जिस किसी से भी बातें हुई थी वो सब याद आने लगी.. लंच करते वक्त पिंटू की कही आध्यात्मिक बातें भी याद आ गई.. वो सोच रही थी.. कितने स्पष्ट विचार है पिंटू के?? आदमी भी एकदम साफ दिल का लगता है.. काफी बातें सीखने जैसी थी पिंटू से.. अच्छे विचार वाले और सिद्धांतवादी इंसान सब को आकर्षित करते है.. पीयूष और पिंटू दोनों के अलग अलग व्यक्तित्व थे पर वैशाली दोनों के साथ काफी कम्फर्ट महसूस करती थी.. संजय के साथ हुए कड़वाहट भरे अनुभवों के कारण वो न चाहते हुए भी पिंटू का बातों बातों मे अपमान कर बैठी थी इस बात का उसे पछतावा हो रहा था..

अपनी इस गलती को सुधारने के लिए और उसे सॉरी बोलने के लिए वैशाली ने पिंटू को फोन लगाया.. और कहा की मानसिक तौर पर डिस्टर्ब होने की वजह से वो उसका अपमान कर बैठी थी.. जो उसका मकसद नहीं था.. और वो इस बात को लेकर कोई कड़वाहट मन में न रखे

पिंटू: "मैं समझ सकता हूँ वैशाली जी.. और मुझे इस बारे में आपसे कोई शिकायत नहीं है.. आप चिंता मत कीजिए.. और हाँ.. आपके साथ जो कुछ भी हुआ उसका मुझे दुख है.. इस सदमे से उभरने के लिए आपको किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बेझिझक बताइएगा.. वैसे भी मुझे अच्छे मित्रों की तलाश है.. गुड नाइट.. !!"


पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम की रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला
nice update
 
Top