प्रिय वाचक मित्रों..
पेश है आज का मेगा अपडेट... धमाकेदार लेस्बियन थ्रीसम के साथ.. !! आनंद लीजिए और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए..
नीचे के कमरे में.. रमिलाबहन के सो जाते ही.. कविता सरककर किचन से सटे स्टोररूम का दरवाजा अंदर से बंद कर.. पिंटू से बातें करने में व्यस्त थी.. उसे कहाँ अंदाजा था की ऊपर के मजले पर उसका पति पीयूष.. उसकी कुंवारी बहन को सेक्स के पाठ पढ़ा चुका था.. उसे तो ये भी पता नहीं था की उसके पापा, वैशाली और फाल्गुनी बाहर गए हुए थे.. वो तो यही सोच रही थी की पीयूष उसके पापा के साथ एक कमरे में है.. और दूसरे कमरे में मौसम के साथ वैशाली और फाल्गुनी बैठे है.. !!
जैसे ही सुबोधकांत की गाड़ी घर पहुंची.. गाड़ी की आवाज सुनकर पीयूष खड़ा हुआ और चुपचाप दूसरे कमरे में जाकर लेट गया.. मौसम ने अपने कपड़े ठीक किए और बेड के चादर की सिलवटें भी साफ कर दी.. चुदाई के सारे सबूत मिटा दीये उसने..
महंदी वाली लड़की ने मौसम के हाथों पर अपना काम शुरू कर दिया और वैशाली उन दोनों को मदद कर रही थी.. तब फाल्गुनी धीरे से सरककर बाहर आई और लॉबी में सुबोधकान्त के साथ रोमांस करने लगी.. थोड़ी देर के बाद मौसम ने फाल्गुनी को न देखकर वैशाली से पूछा "फाल्गुनी कहाँ गई??" तब वैशाली ने आँखें मटकाते हुए कहा "वो किसी खास काम से गई है"..
मौसम समझ गई की वो खास काम क्या था.. !! वैशाली की बात सुनकर उसके रोंगटे खड़े हो गए.. वैशाली भी कुछ कम नहीं थी.. "मैं अभी आती हूँ" कहकर.. मौसम को महंदी वाली लड़की के साथ छोड़.. वो भी कमरे से बाहर निकल गई.. लॉबी में खड़े फाल्गुनी और सुबोधकांत की नज़रों के सामने ही.. वैशाली पीयूष के कमरे में घुस गई.. !!
अपने दामाद के कमरे मे जा रही वैशाली को देखकर सुबोधकांत का लंड जबरदस्त कडक हो गया.. लॉबी में घनघोर अंधेरा था.. और उसी अंधेरे का फायदा उठाते हुए फाल्गुनी घुटनों के बल बैठ गई और अपनी हवस को मिटाने के प्रयास में लग गई.. जितना कुछ उसने सुबोधकांत से सीखा था.. आज सब कुछ आजमा लिया उसने.. अब तो उसे मौसम का भी कोई डर नहीं था.. अब तक तो वो मौसम को धोखा देने के अपराधभाव से पीड़ित थी.. पर मौसम ने भी अपने जीजू के साथ सेक्स किया था जिसका उसे पता था इसलिए अब "तेरी भी चुप.. मेरी भी चुप" वाला मामला था.. अब पीयूष या मौसम उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे..
चारों तरफ नीरव शांति के बीच सेक्स का मज़ा लेने का फाल्गुनी का प्रथम अनुभव था.. महंदी लगा रही लड़की.. इन सारी बातों से बेखबर.. मौसम के हाथों पर महीन डिजाइन बनाने में व्यस्त थी.. मौसम को ये तो पता था की फाल्गुनी क्या करने गई थी.. पर वह ये जानना चाहती थी की वैशाली आखिर कहाँ चली गई.. !! वह चाहती थी की खड़ी होकर चेक करें.. पर महंदी अधूरी छोड़कर वो खड़ी नहीं हो सकती थी..
थोड़ी देर में ही महंदी लगाने का काम पूरा हो गया.. वो लड़की मौसम से पूछा "दीदी, मुझे घर कौन छोड़ने आएगा??"
मौसम: "मेरे पापा तुझे छोड़ देंगे.. रुक, मैं पापा को बोलती हूँ"
मौसम के कमरे से बातचीत की आवाज़ें आते ही.. सुबोधकांत सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चले गए.. वैशाली पीयूष के कमरे से बाहर निकलकर फाल्गुनी के साथ खड़ी हो गई..
मौसम ने बाहर निकलकर देखा.. वैशाली और फाल्गुनी साथ खड़े थे..
मौसम के पूछने से पहले ही फाल्गुनी ने कहा "हम दोनों यहाँ बातें कर रहे थे.. हो गया महंदी लगाने का काम पूरा.. ??"
मौसम: "हाँ महंदी तो लग चुकी है.. अब इसे ड्रॉप करने जाना है.. पापा कहाँ है? सो गए क्या?"
सुबोधकांत: "मैं यहीं हूँ बेटा.. मुझे भला नींद कहाँ आएगी!!" सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आते आते उन्हों ने कहा "मैं इस लड़की को घर छोड़ आता हूँ" तब तक पीयूष आँखें मलते हुए कमरे से बाहर निकला.. "मुझे भी नींद नहीं आ रही.. मैं भी साथ चलता हूँ" फाल्गुनी और सुबोधकांत का चेहरा उतर गया.. पर वो मना भी कैसे करते.. !! तीनों साथ में उस लड़की को छोड़ने गए..
वैशाली और मौसम उसके कमरे में अकेले बैठे थे.. मौसम के हाथ पर लगी महंदी को देखते हुए वैशाली ने कहा "मौसम.. कल से तो तू तरुण की मंगेतर बन जाएगी.. अब तुझे फ्लर्ट करना बंद करना होगा.. और पीयूष की बनकर ही रहना होगा" सुनकर मौसम शरमा गई
मौसम: "वैशाली.. कुछ लोग तो शादी-शुदा होने के बावजूद भी गुलछर्रे उड़ाते है.. फिर मेरी तो अभी सिर्फ सगाई ही तो हो रही है..!!"
वैशाली: "हम्म.. तेरी बात तो सही है.. पर वो सब तेरी हिम्मत और साहस पर निर्भर करेगा.. जितना ज्यादा साहस करेगी.. उतना ही ज्यादा मज़ा मिलेगा.. "
मौसम: "हाँ.. मुझे भी तेरी तरह साहस करना सीखना ही होगा"
"मतलब??" चोंक उठी वैशाली
"कुछ नहीं.. मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी" मौसम ने बात को वहीं रोक दिया
वैशाली सोच में पड़ गई.. मौसम ने ऐसा क्यों कहा.. !! उसका इशारा उसके पापा के संबंधों के ओर नहीं हो सकता.. क्योंकी उस बारे में तो वो पहले से ही जानती थी.. दोनों साथ ही तो गए थे सुबोधकांत की ऑफिस पर साथ में रैड मारने.. और फिर फाल्गुनी के साथ वो भी शामिल हो गई थी.. दोनों साथ में सुबोधकांत से चुदी थी.. और इस बात का मौसम को पहले से ही पता था.. फिर आज उसने ये बात किस संदर्भ में कही होगी?? कहीं उसे उसके और पीयूष के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !!
वैशाली उठकर मौसम के बगल में बैठ गई.. उसकी महंदी खराब न हो इस तरह उसने मौसम के टीशर्ट में हाथ डाला और उसके दोनों संतरों के साथ खेलने लगी.. "आह्ह वैशाली.. ये तू.. !!" मौसम कराह उठी.. अभी कुछ देर पहले ही पीयूष ने मसल मसलकर उसकी चूचियों की हालत खराब कर दी थी.. वैशाली के छुते ही फिर से थोड़ा सा दर्द होने लगा.. पर वह स्पर्श अच्छा भी लगा..
"जरा सोच मौसम.. अगर मेरे पास अभी लंड होता तो तेरी क्या हालत की होती मैंने??" मौसम की निप्पल को मरोड़ते हुए वैशाली ने कहा.. वैशाली की बातें सुनकर मौसम को बहोत मज़ा आ रहा था
वैशाली: "फाल्गुनी को आने दे.. फिर हम साथ में शुरू करते है.. वरना हम दोनों ठंडी हो गई तो वो दिमाग खराब कर देगी"
मौसम: "ठीक कहा वैशाली.. वैसे अगर पीयूष जीजू साथ नहीं गए होते.. तो फाल्गुनी खुद ही ठंडी होकर आती.. !!"
वैशाली मौसम की जांघों पर सर रखकर लेट गई.. मौसम का टीशर्ट हटाकर उसके दोनों स्तनों को खोल दीये वैशाली ने.. निप्पल और उसके करीब के हिस्सों पर पीयूष के काटने के निशान साफ नजर आने लगे.. !! वैशाली के स्तन दबाते ही मौसम के मुंह से दर्द भरी कराह निकल गई.. वैशाली के विशाल स्तनों को अपनी कुहनी से दबाते हुए मौसम ने कहा "पापा और उसके बीच २५ वर्ष का अंतर है.. पता नहीं कैसे एड़जस्ट किया होगा उसने.. "
वैशाली: "तेरे पापा की पर्सनलिटी इतनी गजब की है की उम्र का फ़र्क मायने ही नहीं रखता.. बहोत ही हॉट और एक्टिव है तेरे पापा.. !!"
मौसम: "हाँ अब तुझे तो पता ही होगा कितने एक्टिव है वो.. और कहाँ पर"
वैशाली: "देख मौसम.. अब तुझसे कुछ छिपा हुआ तो है नहीं.. तू सब कुछ जानती है.. उस दिन जब हमने फाल्गुनी को तेरे पापा के साथ सेक्स करते हुए देखा तब मुझसे रहा नहीं गया.. कितना मस्त लंड है उनका यार.. !! और हाँ.. तुझे ये भी बता दूँ.. की जब तू अपने जीजू के साथ ज़िंदगी के पहले संभोग के मजे लूट रही थी.. तब तेरे पापा मेरे बॉल चूस रहे थे.. और जिस वक्त तूने फाल्गुनी को मेसेज किया तब मैं उनका लंड चूस रही थी.. उफ्फ़.. क्या गजब का लंड है यार.. मेरे तो नीचे खुजली होनी शुरू हो गई"
मौसम का पेपर भी लीक हो गया..!!!! मौसम इतनी हतप्रभ हो गई थी की कुछ बोल ही नहीं पाई.. !! उसे डर था की वैशाली कहीं उसकी दीदी को ये सब बता न दें..
वैशाली ने मौसम की निप्पल चूसते हुए कहा "तू जरा भी चिंता मत कर मौसम.. तेरा राज मेरे दिल में सुरक्षित रहेगा.. और पीयूष तो मुझे भी बहोत पसंद है.. मैं भी उसके लंड का स्वाद चख चुकी हूँ.. मेरे बूब्स पर तेरे जीजू फिदा है.. उसे इनकी साइज़ बहोत पसंद है"
मौसम को इस सदमे से उभरने में थोड़ा सा वक्त लगा.. पर जल्द ही उसके मन ने सारी सच्चाई स्वीकार ली.. अब तो वो भी दूध से धुली हुई नहीं थी.. राज तो उसके भी थे..
मौसम ने तकिये के नीचे छुपाई हुई ब्रा बाहर निकाली "ये देख.. जीजू ने मुझे फर्स्ट सेक्स की गिफ्ट दी है"
वैशाली ने ब्रा देखी और मुसकुराते हुए बोली "एक नंबर का मादरचोद है तेरा जीजू.. !!"
मौसम: "क्यों?? क्या हुआ.. ??"
वैशाली: "कल मैं अपने लिए ब्रा लेने गई तब पीयूष मेरे साथ ही था.. मैंने अपने लिए और कविता के लिए ब्रा खरीदी फिर भी उसने मुझे भनक तक नहीं लगने दी की कब उसने तेरे लिए ये ब्रा खरीद ली.. !! मुझे आश्चर्य हो रहा है.. मैं पूरा वक्त उसके साथ ही थी.. तो उसने ये ब्रा खरीदी कब?? लगता है जब मैं ट्रायल रूम में गई तब उसने खरीदी होगी.. साला बड़ा ही शातिर है.. !!"
मौसम: "तू जीजू के साथ ऑफिस काम करने जाती है या ये सब करने?? जीजू को अपने साथ ब्रा लेने ले गई?? कमाल है तू.. !!"
वैशाली: "अरे सुन तो सही.. तेरे घर आना था इसलिए मुझे अपने लिए खरीदनी थी.. शाम को ऑफिस से घर लौटते वक्त मैंने उसे दुकान के बाहर खड़े रहने को कहा.. पर किसी मर्द के बाहर खड़े रहने से उस दुकान वाले का धंधा खराब हो रहा था.. कोई भी लड़की या औरत ऐसी जगह ब्रा-पेन्टी खरीदने नहीं जाएगी जहां बाहर कोई मर्द खड़ा होकर आती जाती लड़कियों को ताड़ रहा हो.. इसलिए उस दुकान वाले ने तेरे जीजू को अंदर भेज दिया.. फिर मैं क्या करती?? पता है.. मैंने आज तेरे जीजू के पसंद की ब्रा ही पहनी हुई है.. "
मौसम: "वाऊ.. तब तो हम दोनों की पसंद एक जैसी ही निकली वैशाली.. एक बात बता.. संजय के अलावा तू कितनों के संग चूद चुकी है? और सब से ज्यादा मज़ा किसके साथ आया था??" वैशाली की कामुक बातें सुनकर मौसम की चूत नए सिरे से गीली होने लगी थी..
वैशाली मौसम की गोद से खड़ी हुई.. उसने मौसम के हाथों और सर से सरकाते हुए उसका टीशर्ट उतार दिया.. अब महंदी सुख चुकी थी इसलिए उतारने में कोई परेशानी नहीं हुई.. उसके मस्त कडक संतरें जैसे स्तनों को सहलाते हुए वैशाली देखती रही.. अपने स्तनों को ऐसे घूर रही वैशाली को मौसम ने कहा "क्या देख रही है वैशाली? मेरे मुकाबले तो तेरे कई गुना ज्यादा बड़े है"
वैशाली: "बड़ा होना ही सब कुछ नहीं होता मौसम.. मर्दों को स्तनों की सख्ती और कड़ापन बहोत पसंद होता है.. शादी से पहले मेरे बूब्स भी ऐसे टाइट ही थे.. शादी के बाद लचक गए.. तेरे बूब्स देखकर सोच रही हूँ.. कितने बढ़िया शैप में है ये.. !! पर जैसे ही तरुण का हाथ लगेगा.. वो इन्हें मसल मसलकर ढीले कर देगा.. !!"
मौसम: "वैशाली.. मेरी शॉर्ट्स भी निकाल दे यार.. और नीचे जरा खुजा दे यार.. बहोत जोरों की खुजली हो रही है नीचे.. ये महंदी जब तक पूरी सूख नहीं जाती तब तक तुझे ही मदद करनी पड़ेगी.. फाल्गुनी भी जल्दी आ जाएँ तो अच्छा है.. "
वैशाली ने मौसम को खड़ा किया और एक झटके में उसकी शॉर्ट्स और पेन्टी साथ उतार दी.. बिल्कुल निर्वस्त्र अवस्था में .. महंदी लगे दोनों हाथों को सीधा रखकर.. अपनी टांगें खोलकर मौसम बिस्तर पर बैठ गई.. वैशाली ने भी आनन-फानन में अपनी टीशर्ट और ब्रा उतारी.. और मौसम के शरीर के ऊपर छा गई.. दोनों के स्तन एकाकार हो गए.. अद्भुत लेस्बियन सेक्स की शुरुआत होने वाली थी..
मौसम सिसकते हुए बोली "आह्ह वैशाली.. नीचे.. नीचे छेद पर.. जल्दी कुछ कर यार.. मैं मर जाऊँगी इस खुजली से.. अगर मेरा हाथ वहाँ चला गया तो सारी महंदी खराब हो जाएगी"
वैशाली ने मौसम को ओर बोलने ही नहीं दिया.. और उसके गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रखकर चूसने लगी.. मौसम उस किस का जवाब देते हुए वैशाली की नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली "वैशाली.. तू भी अपनी शॉर्ट्स उतार दे.. मज़ा आएगा"
"ओह मेरी जान.. तुझे जो चीज चाहिए.. वो शॉर्ट्स के अंदर है नहीं.. उसके लिए तो तुझे अपने जीजू को ही अपने ऊपर चढ़ाना पड़ेगा.. और सारे कपड़े अभी उतार दीये.. तो नीचे दरवाजा खोलने कौंन जाएगा?? यूं नंगी तो नहीं जा सकती ना.. १!"
"हाँ यार.. वो बात भी सही है तेरी.. "
तभी कार का हॉर्न बजा.. वैशाली ने तुरंत अपनी टीशर्ट पहन ली.. और मौसम को चादर से लपेट दिया.. तब तक तो सुबोधकांत ने अपनी चाबी से दरवाजा खोल दिया था और तीनों ऊपर आ चुके थे.. फाल्गुनी ने दरवाजे पर दस्तक दी और वैशाली ने दरवाजा खोला.. फाल्गुनी के साथ साथ पीयूष भी अंदर आ गया.. !! चादर के नीचे नंगी बैठी मौसम कांप उठी.. कहीं जीजू ने चादर खींच ली तो?? वैशाली भी थोड़ी सी झिझक के साथ खड़ी रही.. ये पीयूष बे-वक्त क्यों टपक पड़ा यहाँ??
मौसम बेहद संकोच महसूस कर रही थी..
"अरे वाह.. बहोत ही बढ़िया महंदी लगाई है" पीयूष ने कहा
मौसम: "थेंकस जीजू.. अच्छा हुआ जो आप उस लड़की को छोड़ आए.. वरना इतनी रात गए उस बेचारी को यही सो जाना पड़ता.. !!"
वैशाली: "वैसे वो महंदी वाली थी बड़ी हॉट.. !!"
पीयूष मौसम के बगल में बैठा था और उसकी टांग मौसम की जांघ को छु रही थी.. इतने से स्पर्श से भी मौसम अपने जिस्म मे गर्माहट महसूस कर रही थी.. थोड़ी देर पहले ही मौसम ने पीयूष के संग जवानी का पहला लंड-चूत घर्षण का अनुभव किया था.. ऊपर से वैशाली के संग लेस्बियन हरकतें करते हुए उसका पूरा बदन सिहर रहा था.. अब पीयूष का स्पर्श मिलते ही वो अपना आपा खो रही थी..
मौसम की निप्पल इस उत्तेजना के कारण एकदम कडक हो गई.. और चादर के पतले कपड़े से उभरकर अपना आकर दिखाने लगी थी.. जाहीर सी बात थी की पीयूष की नजर हर थोड़ी देर में मौसम के स्तनों पर चली जाती थी.. मौसम के सख्त उरोजों की गोलाई चादर के नीचे से भी अपना खुमार दिखा रही थी..
"हम सब यहाँ अब बातें करेंगे.. तुझे बड़ी नींद आ रही है.. पर मैं तुझे सोने नहीं दूँगी" कहते हुए फाल्गुनी ने मौसम की चादर खींच ली.. चोंक गई मौसम इस अचानक हमले से.. अपनी महंदी की परवाह किए बगैर ही उसने अपनी हथेलियों से दोनों स्तन ढँक दीये..
"ये क्या किया तूने फाल्गुनी.. मादरचो.... ???"
मौसम को नंगी देखकर पीयूष को इतना ताज्जुब नहीं हुआ जितना उसके मुंह से गाली सुनकर हुआ..
बेचारी फाल्गुनी को कहाँ पता था की मौसम चादर के नीचे बिल्कुल नंगी बैठी थी.. खींची हुई चादर उसने फिर से मौसम को ओढा दी.. पर तब तक पीयूष और वैशाली दोनों ने मौसम की नग्नता का पूरा लुत्फ उठा लिया था..
वैशाली: "अब अपने जीजू से क्यों शर्मा रही है मौसम.. ?? अभी थोड़ी देर पहले तो गांड उछाल उछालकर उनके लंड से अपनी चूत की खुजली शांत कर रही थी.. हाँ.. अगर हमारी मौजूदगी के कारण तुझे शर्म आ रही हो तो हम चले जाते है.. तेरे पापा के रूम में.. और तू पीयूष के साथ अपना हनीमून मना ले.. सगाई से पहले ही.. !!"
"बोलने में थोड़ा ध्यान रख वैशाली.. !! और जीजू आप क्यों अब भी यहाँ बैठे हो बेशरमों की तरह.. !!! जाइए अपने कमरे में.. प्लीज.." मौसम की शक्ल रोने जैसी हो गई
पीयूष: "अरे यार.. साली तो आधी घरवाली होती है.. अब तुझे भला मुझसे शर्माने की क्या जरूरत है.. !!"
वैशाली: "पीयूष, तुझे मौसम के कौनसे हिस्से में ज्यादा दिलचस्पी है?? कमर के ऊपर वाले या नीचे वाले?? बाकी का हिस्सा मैं ढँक देती हूँ ताकि मौसम को शर्म न आए.. !!"
फाल्गुनी को पीयूष और मौसम के संबंधों के बारे में तो पहले से ही पता था.. पर वैशाली को यूं खुल्लमखुला पीयूष से बातें करते हुए देख वो सोच में पड़ गई.. जरूर इन दोनों के बीच भी काफी कुछ हो रखा है..
मौसम गुस्सा हो गई "अब तू चुप बैठ वैशाली.. जल्दी से मुझे ठीक से ढँक दे.. और आधी घरवाली बनने का बहोत शौक हो तो तू ही चली जा जीजू के साथ.. आधी क्या.. पूरी घरवाली बन जा.. वैसे भी जीजू के साथ ब्रा खरीदने जाने में तो तुझे कोई झिझक नहीं होती"
फाल्गुनी ये सुनकर चोंक गई "बाप रे.. क्या बात कर रही है मौसम.. !! वैशाली जीजू के साथ ब्रा खरीदने गई थी??"
गरमागरम बातों के बीच पीयूष मौसम के पैरों के गोरे गोरे तलवों को सहला रहा था.. इस बात से बाकी दोनों लड़कियां बेखबर थी.. मौसम जीजू के इस स्पर्श को महसूस करते हुए जोर जोर से सांसें ले रही थी.. उसके स्तन हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे.. हाथ से ढंके होने के बावजूद स्तन का चालीस प्रतिशत हिस्सा बाहर दिख ही रहा था.. मौसम ने अपनी जांघों को सख्ती से भींच रखा था.. पर जिसके पूरे शरीर में ही सेक्स, खून बनकर दौड़ रहा हो.. ऐसी २४ वर्ष की यौवना.. सिर्फ दो हथेलियों से अपने रूप का ताजमहल कैसे और कितना ढँक पाएगी.. !!
मज़ाक मस्ती अपनी पराकाष्ठा पर थी.. साथ में नग्नता का मिश्रण भी हो रखा था.. पीयूष कमरे से बाहर जाने के लिए मान नहीं रहा था.. मौसम के संगेमरमरी बदन को देखकर सोच रहा था.. ओह्ह यह रूप का महासागर अभी एक घंटे पहले मेरी बाहों में था.. !!
फाल्गुनी शर्म के मारे कुछ बोल नहीं पा रही थी.. और वैशाली तो सब के मजे ले रही थी.. आखिर मौसम ने हिम्मत की और खड़ी होकर पीयूष को धक्के मारकर कमरे से बाहर कर दिया.. पीयूष नग्न मौसम के हिलोरे लेते जवान स्तनों को छूने गया.. पर मौसम ने झट से दरवाजा बंद कर दिया.. और पीयूष के उस प्रयास को निष्फल बना दिया.. जीजू गए या नहीं.. ये देखने के लिए मौसम ने हल्का सा दरवाजा खोला.. और पीयूष ने झपटकर हाथ डालकर मौसम के स्तनों को दबा लिया.. मौसम ने दरवाजा बंद करने की बहोत कोशिश की पर बीच में पीयूष का हाथ फंसा हुआ था और पीयूष भी उस तरफ से दरवाजे को धक्का दे रहा था..
वैशाली: "अरे.. बेचारे जीजू को थोड़ी देर दबाने देती.. !!"
पीयूष का हाथ धकेलकर दरवाजा बंद किया और बेड पर आकर बैठ गई
मौसम: "अब चुप भी कर.. अगर जीजू की इतनी दया आ रही हो तो अपने खोलकर दे दें उनको दबाने के लिए.. मुझ से तो तेरे काफी बड़े है.. मज़ा आएगा जीजू को.. और तुझे भी"
वैशाली: "आय हाय.. मैं तो कब से हूँ रेडी तैयार..पटा लें सैयाँ मिस-कॉल से.. !!" करीना की तरह कमर मटकाते हुए अपने बड़े बड़े स्तन दिखाकर वैशाली ने कहा
मौसम: "हम तेरा ही इंतज़ार कर रहे थे फाल्गुनी.. ताकि हम अपना खेल शुरू कर सकें.. जीजू ने आकर सारा प्लान चौपट कर दिया.. चलो वैशाली.. शुरू करते है.. तू हमारी सीनियर है.. इसलिए शुरुआत भी तुझे ही करनी होगी"
फाल्गुनी: "हाँ और हम सब से ज्यादा अनुभवी भी है.. वैसे तो हम तीनों को अनुभव है.. पर वैशाली का सब से ज्यादा है"
फाल्गुनी के कूल्हें पर चपत लगाते हुए वैशाली ने कहा "मादरचोद तूने इतनी बार तो अंकल का टांगें फैलाकर लिया है.. दिन रात चुदवाती है.. तू तो कुंवारी दुल्हन है अंकल की.. वैसे उस रिश्ते से तो तू मौसम की मम्मी हुई.. मौसम, अब से तू फाल्गुनी को मम्मी कहकर ही बुलाना.. तुम दोनों को नया रिश्ता मुबारक हो" हँसते हँसते वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: "आह्ह.. ले बेटा.. मम्मी के बॉल दबा" मौसम की तरफ देखकर फाल्गुनी ने मसखरे अंदाज में कहा.. मौसम के हाथों पर महंदी लगी हुई थी इसलिए वो कर नहीं सकती थी
मौसम: 'मैं क्या करूँ.. !! जैसे पुलिस के हाथ कानून से बंधे होते है वैसे ही मेरे हाथ आज महंदी से बंधे हुए है"
फाल्गुनी और वैशाली मौसम के करीब आए.. और दोनों ने मौसम का एक-एक स्तन आपस में बाँट लिया.. और चूसना शुरू कर दिया..
चूसते चूसते वैशाली ने मौसम की निप्पल एक पल के लिए बाहर निकाली और कहा "घोर कलियुग है.. !!"
मौसम: "क्यों, क्या हुआ??"
वैशाली: "आज तक बेटी को माँ की निप्पल चूसते देखा था.. आज पहली बार देखा की माँ ही बेटी की निप्पल चूस रही है.. उलटी गंगा बह रही है"
फाल्गुनी ने वैशाली के लटकते हुए विशाल चर्बी के गोलों को दबाते हुए कहा "मौसम बेटा.. तेरे इतने बड़े क्यों नहीं है?"
मौसम: "ओह्ह मम्मी.. अब क्या कहूँ.. !! मैं तो अभी कुंवारी हूँ ना.. !! कोई दबाने वाला होता तो ये भी इस तरह बड़े हो जाते.. मम्मी, तुम मेरे लिए कोई लंबे लंड वाला लड़का ढूंढ दो.. फिर मैं भी दबवा दबवाकर बड़े करवा लूँगी"
गरमागरम उत्तेजक बातों के बीच कमरे का महोल रंगीन हो चुका था.. धीरे धीरे उत्तेजना से भरी सिसकियों कमरा गूंजने लगा..
फाल्गुनी के होंठ चूसते हुए वैशाली ने कहा "फाल्गुनी, ये तेरी बेटी पूछना चाहती है की इतनी जवान होने के बावजूद, बूढ़े अंकल के प्यार में कैसे पड़ी? चाहती तो एक से एक जवान लंड मिल जाते तुझे.. !!"
मौसम की चूत पर हाथ सहलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "सब कुछ अचानक हो गया.. शुरू शुरू में तो मुझे भी पसंद नहीं था.. तुझे याद है मौसम.. बीच में मैंने तेरे घर पर आना काफी कम कर दिया था.. !! वो इसी कारण.. एक दिन मैं तेरे घर आई.. तेरी मम्मी सब्जी लेने मार्केट गई थी.. और तू भी घर पर नहीं थी.. तब अंकल ने मुझे पकड़ लिया.. मैं तो बहोत डर गई थी.. "
एक दूसरे के जिस्म से खेलते हुए वैशाली फाल्गुनी का नार्को-टेस्ट ले रही थी.. अपनी चूत की खुजली मिटाने के लिए इन दोनों पर निर्भर मौसम.. चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी.. उसे भी जानना था की पापा और फाल्गुनी के बीच सब कुछ कैसे शुरू हुआ.. !!
वैशाली ने स्वाभाविक प्रश्न पूछा "तो फिर तू चिल्लाई क्यों नहीं??"
"पता नहीं यार.. शायद मेरी हिम्मत नहीं हुई या चिल्लाना ठीक नहीं लगा" फाल्गुनी ने किसी राजनीतिज्ञ की तरह जवाब दिया..
वैशाली: तू इसलिए नहीं चिल्लाई थी क्योंकि तुझे मज़ा आने लगा था..और तू सामने से चलकर ही उनके पास गई थी.. चूत चटाने के लिए.. क्यों सही कहा ना मैंने.. !!"
वैशाली की गरमागरम बातें और फाल्गुनी की खामोशी.. सब बेहद उत्तेजक था.. मौसम की चूत में अब जबरदस्त खुजली हो रही थी..
"प्लीज वैशाली.. मुझे कुछ कर यार.. अंदर चींटियाँ रेंग रही है.. " वैशाली के गदराए उरोजों से अपने चेहरे को रगड़ते हुए मौसम ने कहा..
पर वैशाली और फाल्गुनी.. दोनों में से किसी का भी ध्यान मौसम की तरफ नहीं था..
फाल्गुनी ने वैशाली की टी-शर्ट उतारकर उसके स्तन-युग्मों को नंगा कर दिया.. वैशाली ने भी फाल्गुनी की शॉर्ट्स उतार दी.. फाल्गुनी की चूत पर हाथ फेरते हुए वैशाली को चिपचिपाहट का एहसास हुआ..
उस चिपचिपे रस लगे हाथ को नाक के पास ले जाकर सूंघते हुए वैशाली ने कहा "अंकल के क्रीम की गंध आ रही है नालायक.. चुदवाने के बाद पोंछ तो लेती.. !!"
मौसम ने नजरें ऊपर कर देखा.. वैशाली के शब्द सुनकर उसके पूरे जिस्म में झनझनाहट सी होने लगी.. वैशाली ने अपना हाथ मौसम को सूंघा दिया और बोली "तेरी चूत में.. तेरे जीजू का क्रीम है.. और फाल्गुनी की चूत में अंकल का.. !!"
फाल्गुनी ने वैशाली की बुर की फांक पर उंगली फेरते हुए कहा "हरामजादी तेरी चूत में तो उन दोनों का क्रीम है..!!"
वैशाली ने फाल्गुनी को बाहों में मजबूती से दबा दिया और कहा "चल आजा.. उन दोनों के क्रीम की ताकत तुझे दिखाती हूँ" कहते हुए उसने फाल्गुनी के पूरे शरीर को मसलकर रख दिया
फाल्गुनी को दबाए रखकर वैशाली ने पूछा "ये बता.. अंकल का इतना मोटा पहली बार लिया था तब तुझे दर्द नहीं हुआ था क्या? खून भी निकला होगा.. !!"
"आह्ह.. ईशशशश..!!" अपने पापा के लंड का जिक्र सुनकर मौसम सिहर उठी
"अरे यार.. चार पाँच दिनों तक तो ठीक से चल भी नहीं पाई थी.. पर अपना दुखड़ा किसको बताती??" फाल्गुनी ने कहा
मौसम के कूल्हों को सहलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "बेटा.. सच में.. तेरे पापा का बहोत मोटा है"
यह सुनकर तो अब मौसम मदहोशी के आलम में पहुँच गई
वैशाली: "मौसम, तूने जीजू का लिया तब ब्लीडिंग हुआ था क्या?"
मौसम: "नहीं यार.. पहली बार अंदर घुसा तब दर्द तो बहोत हुआ पर खून नहीं निकला था"
फाल्गुनी: "वैशाली, तू ने तो दोनों के देख रखे है.. किसका ज्यादा अच्छा है?"
वैशाली: 'ऑफकोर्स अंकल का.." बिना किसी झिझक के वैशाली ने सुबोधकांत के लंड को अवॉर्ड दे दिया
फाल्गुनी ने मौसम की तरफ देखा "मौसम, तेरे जीजू का कैसा है? और हाँ.. अगर तुझे अंकल का देखना हो तो.. मेरे मोबाइल में बहोत सारे फ़ोटोज़ है.. कुछ विडिओ भी है.. देखना है तुझे??"
"ओह्ह फाल्गुनी प्लीज.. " बिस्तर के सिरहाने अपनी चूत रगड़ने लगी मौसम.. क्यों की दोनों में से कोई भी उसकी आग बुझाने में मदद नहीं कर रही थी.. उल्टा उस आग को और भड़का रही थी.. तंग आकर मौसम ने पास पड़े गोल तकिये का सहारा लिया.. उस पर सवारी करते हुए वो अपनी मुनिया को रगड़कर शांत करने की कोशिश करने लगी.. तकिये पर कूदने के कारण उसके स्तन मस्त उछल रहे थे.. इस स्थिति में अब उसे फाल्गुनी और वैशाली की उत्तेजक बातें सुनने में ओर मज़ा आने लगा
फाल्गुनी ने मौसम की ओर इशारा करते हुए वैशाली से कहा "अरे वाह देख तो.. मेरी बेटी कैसे घुड़सवारी कर रही है.. !! लंड लेने की इसकी भूख तो देख जरा.. अभी एक बार ही लिया है जीजू का लंड.. एक ही बार मैं ऐसा हाल हो गया.. बांवरी हो गई ये तो.. !!"
वैशाली: "फाल्गुनी, तू ब्लूटूथ से सारे फ़ोटोज़ और क्लिप भेज दे मुझे.. रात को उंगली करने में काम आएंगे मुझे"
फाल्गुनी: "अरे एक से बढ़कर एक तस्वीरें और विडिओ है.. पूरी रात उंगली करती रहेगी तो भी सब खतम नहीं होगा.. "
मन तो मौसम का भी कर रहा था की वो फाल्गुनी से कहें.. की उसके मोबाइल पर भी भेज दें.. पर हिम्मत नहीं हुई.. पर वो बेहद उत्तेजित और रोमांचित हो गई थी.. विडिओ क्लिप.. वो भी फाल्गुनी और पापा की चुदाई की..!! मौसम के स्तनों में गजब का कसाव आ गया.. तकिये पर अपनी पुच्ची रगड़ते हुए और इन दोनों की बातें सुनते ही वो बहोत ज्यादा गरम हो चुकी थी.. वो कैसे भी करके एक बार वो क्लिप देखना चाहती थी.. पर वो किस मुंह से फाल्गुनी से कहती?? वो एक बार अपने पापा का लंड ज़ूम करके देखना चाहती थी.. मौसम की नादानी अब हवा बनकर उड़ चुकी थी
रात के दो बज चुके थे पर तीनों में से एक की भी आँखों में नींद नहीं थी.. थी तो सिर्फ सेक्स की लालसा.. सेक्स का खुमार.. ज़िंदगी को पूरा जी लेने की तमन्ना.. !!
फाल्गुनी ने अपने मोबाइल में.. सुबोधकांत के लंड की फ़ोटो खोली.. और मोबाइल वैशाली को दिया.. मौसम के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए वैशाली ने कहा "यार.. कितना मस्त मोटा है.. !! देखकर ही नीचे चूल उठने लगी.. कम से कम तेरी कलाई जितना मोटा है मौसम.. उस दिन जब हम ऑफिस में छुपकर देख रहे थे तब उनका ये मूसल लंड देखकर मेरे मुंह और चूत दोनों में एक साथ पानी आ गया था.. "
फाल्गुनी: "वैशाली.. मैंने पहली बार जब अंकल का देखा तो बहोत डर गई थी.. एक महीने तक तो सिर्फ उसे पकड़ती और खेलती रहती.. कभी बहोत मन करें तो अपनी चूत पर रगड़ लेटी.. फिर एक बार अंकल के कहने पर हिम्मत की.. और आगे का गोल लाल हिस्सा अंदर डालने की कोशिश की तब इतना दर्द हुआ की बाहर निकाल लेना पड़ा था"
वैशाली: "अच्छा.. !! पर अभी तो बड़े आराम से दलवा लेती है पूरा.. !!"
फाल्गुनी: "फिर अंकल ने मुझे समझाया.. की पहली बार तो दर्द होगा ही होगा.. जान निकल जाएगी.. पर एक बार अंदर ले लिया.. फिर मजे ही मजे होंगे.. और सच में.. पहले दो तीन बार तो ऐसा ही लगा जैसे अंकल मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे है.. मैं रो पड़ती.. चिढ़ जाती.. गुस्सा करती.. पर फिर धीरे धीरे ऐसी आदत लग गई.. की अब तो रोज लेने का मन करता है मुझे.. अब क्या कहूँ तुझे वैशाली.. कहने में भी शर्म आती है.. पिरियड्स के दिनों में तो इतना मन करता है की एक बार तो मैंने सामने से अंकल को फोन किया था.. की अंकल प्लीज, कुछ सेटिंग कीजिए.. बहोत मन कर रहा है"
"साली रंडी मम्मी.. !!" मौसम ने सिर्फ उतना ही कहा.. दोनों का ध्यान अब मौसम की तरफ गया
फाल्गुनी: "बेटा.. तू तकिये से अपनी मुनिया रगड़ना जारी रख.. फिलहाल तुझे लोडा लेने की इजाजत नहीं है.. हाँ फ़ोटो देखनी हो तो देख ले.. ये ले देख.. इसी से तो तू पैदा हुई थी" कहते हुए फाल्गुनी ने वैशाली के हाथ से मोबाइल लेकर मौसम के सामने फेंका.. मौसम का दिल बड़े जोर से धकधक करने लगा.. स्क्रीन पर लंबा तगड़ा लंड देखने की अपेक्षा थी.. पर हाय रे किस्मत.. !! मोबाइल बेड पर उलटे मुंह पड़ा..
बेहद उत्तेजना और उत्कंठा से मौसम उलटे पड़े मोबाइल के सामने देखती रही.. पर निराशा के सिवा कुछ हाथ न लगा..
ये देखकर फाल्गुनी हंसी और मौसम के करीब आकर उसके होंठ चूसकर संतरें दबा दीये.. मौसम का हाथ ऊपर कर उसकी काँख को चाटते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम बेटा.. मुझे पता है.. तू अपने पापा का लंड देखने के लिए आतुर है.. ले देख ले अपने बाप का लंड.. कैसा है.. !!" कहते हुए फाल्गुनी वैशाली के पास जाकर बैठ गई..
कांपते हाथों से मौसम ने मोबाइल उठाया और स्क्रीन ऑन कर दी.. काफी देर तक वो स्क्रीन पर दिख रहे सुबोधकांत के लंड को देखती ही रही.. जैसे उसने खुद अपने बाप का लंड हाथ में पकड़ रखा हो..
थोड़ी देर देखकर वो बोली "फ़ोटो में तो जबरदस्त लग रहा है.. जीजू से भी लंबा और मोटा है.. " मौसम की चूत में ४४० वॉल्ट के झटके लगने शुरू ह ओ गए थे..
वैशाली: "लंबा और मोटा तो है ही.. साथ ही उनका स्टेमीना भी गजब का है"
मौसम ने उन दोनों की तरफ देखा.. फाल्गुनी और वैशाली पैर चौड़े कर बेड पर एक साथ लेट गए थे.. एक हाथ से एक दूसरे के स्तन दबा रहे थे.. जब की दूसरे हाथ की उंगली एक दूसरे की चूत में अंदर बाहर हो रही थी..
एक दूजे के अंगों से खेलते हुए वैशाली फाल्गुनी से और जानकारी प्राप्त करने में जुट गई..
वैशाली: "फाल्गुनी, तो फिर जब हमारे बीच लंड की बातें हो रही थी तब तू इतना डरती क्यों थी? तेरे शरीर को पहली बार जब मैंने छु लिया था तब भी तू घबरा गई थी.."
फाल्गुनी ने एक दीर्घ सांस लेकर बात की शुरुआत की.. पर उससे पहले उसने वैशाली का हाथ पकड़कर अपनी चूत पर रख दिया.. वैशाली समझ गई की फाल्गुनी की चूत इन बातों से उत्तेजित हो जाने वाली है.. इसलिए उसने पहले से ही इंतेजाम कर लिया.. वैशाली ने अपनी दो उँगलियाँ फाल्गुनी की मुनिया के अंदर तक उतार दी..
एक गहरी सिसकी लेते हुए फाल्गुनी ने कहा "यार एक दिन.. शाम के पाँच बजे.. मैं मौसम के घर गई.. मौसम नोट्स की फोटोकॉपी करवाने गई थी.. और घर पर सिर्फ रमिला आंटी ही थे.. आंटी ने मुझे एक कपड़ों से भरा बेग देते हुए कहा.. की मैं इसे अंकल की ऑफिस पर देकर आऊँ.. अंकल को अर्जेंट शहर से बाहर जाना था इसलिए.. मैं तैयार हो गई.. और बेग लेकर अंकल की ऑफिस पहुँच गई.. मुझे देखकर अंकल ने कहा "अरे फाल्गुनी.. तू क्यों देने आई? मौसम आने वाली थी".. मैंने जवाब दिया की "हाँ अंकल.. पर आपको अर्जेंट जाना था.. और मौसम कहीं बाहर थी.. इसलिए आंटी ने मुझे कहा इसे आप तक पहुंचाने को.. आप कहीं शहर से बाहर जा रहे है?"
फिर उन्हों ने कहा की.. हाँ.. एक अर्जेंट मीटिंग निकल आई है.. " कहते हुए वो मुझे अपनी चेम्बर में ले गए.. और चपरासी को कॉफी लाने के लिए कहा.. उस पल तक मेरे मन में अंकल के लिए मेरे पापा जितनी इज्जत थी.. मैं निःसंकोच उनके साथ कैबिन में अकेले बैठी थी.. जरा भी डर नहीं था.. पर कॉफी पीते पीते उन्हों ने मुझे फँसाने की हरकतें शुरू कर दी.. मुझे लगा.. मैं तो उनकी बेटी जैसी हूँ.. भला मुझसे ऐसी बातें क्यों कर रहे होंगे अंकल.. !!"
मौसम: "मतलब किस तरह की बातें कर रहे थे पापा??"
फाल्गुनी: "अब क्या कहूँ यार.. थोड़ी डबल मीनिंग वाली बातें कर रहे थे.. घुमाया फिराकर.. पर मतलब वही था "
वैशाली: "मतलब किस तरह की बातें?"
फाल्गुनी: "हम्म.. जैसे की.. फाल्गुनी.. अब तू जवान हो गई है.. तेरे पापा से बात करके लड़का ढूँढना पड़ेगा तेरे लिए.. जवानी की इच्छाएं बड़ी ही प्रबल होती है.. देखना कहीं पैर फिसल न जाएँ तेरा.. ये सब कहते हुए मेरे पीछे खड़े हो गए और कंधों पर हाथ रख दिया.. फिर भी मुझे कुछ भी अटपटा सा या विचित्र नहीं लगा"
मौसम: "फिर क्या हुआ??"
फाल्गुनी: "फिर उन्हों ने मुझसे पूछा.. तुझे कोई लड़का पसंद है क्या? या तेरा किसी के साथ कोई चक्कर है?? मैंने मना किया.. "
मौसम और वैशाली एकटक फाल्गुनी की तरफ नजरें जमाए थी..
फाल्गुनी: "तो मैंने कह दिया की नहीं अंकल.. ऐसा कुछ भी नहीं है.. तो उन्हों ने कहा की तू झूठ बोल रही है.. आज कल की जवान लड़कियों को लड़कों के लिए आकर्षण होना आम बात है.. और ऐसा पोसीबल ही नहीं है की तू किसी लड़के के साथ नहीं होगी.. तेरे शरीर का विकास देखकर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की तूने किसी न किसी के साथ जरूर इन्जॉय किया होगा.. मौसम.. वो पहली बार था की तेरे पापा की बातों से मैं गरम होने लगी.. खास कर जब उन्हों ने "शरीर के विकास" वाली बात कही तब.. मैंने भोली बनकर कहा.. इन्जॉय मतलब?? मैं समझी नहीं अंकल.. तब उन्हों ने बम फोड़ दिया और कहा.. बेटा तुझे सेक्स करने का तो मन करता होगा ना.. !!! मैं इतना शर्मा गई.. मैंने कोई जवाब नहीं दिया.. अंकल ने बोलना जारी रखा.. तुझे भी मन करता होगा किसी पुरुष के साथ कमर में हाथ डालकर दूर तक वॉक पर जाना.. बारिश में किसी हेंडसम पुरुष के साथ एक छाते में भीगते हुए जाना.. अंकल ने शुरू शुरू में तो प्रेम और रोमांस की बात की.. फिर धीरे धीरे फ्लर्ट करते हुए सेक्स तक बात पहुँच गई.. पहले तो सेक्स की बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ी.. पर उनकी बातें मुझे इतनी अच्छी लग रही थी की मन कर रहा था.. वो बातें करते रहें और मैं सुनती रहूँ.. मौसम.. क्या तुझे पता है की तेरे पापा सिगरेट पीते है??"
मौसम: "नहीं.. मैंने तो उन्हें कभी स्मोक करते हुए नहीं देखा है"
फाल्गुनी: "उस दिन मुझसे बातें करते हुए उन्हों ने सिगरेट जलाई और कहा.. फाल्गुनी तू यंग है और मैं अनुभवी हूँ.. तुझे अपनी इच्छाओं को काबू में रखने में परेशानी होती होगी.. और तेरी आंटी से मैं जरा भी खुश नहीं हूँ.. यूं ही समझ की शारीरिक रूप से वो रिटायर्ड हो चुकी है.. तो क्या हम दोनों अच्छे दोस्त बन सकते है.. ??"
वैशाली: "अरे दिमाग से पैदल लड़की.. जब उन्हों ने साफ साफ कह दिया की आंटी शारीरिक रूप से रिटायर्ड हो चुकी है.. तो जाहीर से बात है की वो तुझसे शारीरिक सपोर्ट की उम्मीद लगाएं बैठे थे.."
फाल्गुनी: "अरे यार.. मुझे उस वक्त कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. उस दिन तो उन्हों ने मुझे बिना कोई छेड़छाड़ कीये जाने दिया.. पर उस रात को डेढ़ बजे उन्हों ने मुझे व्हाट्सप्प पर नॉन-वेज जोक भेजा.. जो मैंने सुबह पढ़ा.. पढ़कर ही मैं इतना शर्मा गई की क्या बताऊँ"
मौसम ने उत्सुकतापूर्वक पूछा "कौन सा जोक था?"
फाल्गुनी: "अब वो तो मुझे कुछ याद नहीं है.. पर उस जोक में लंड और चूत जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया था.. इतनी सुबह अंकल को कॉल करना मुझे ठीक नहीं लगा.. इसलिए जब मम्मी और पापा दोनों ऑफिस चले गए तब तक मैं इंतज़ार किया.. बार बार मैं उस मेसेज को पढ़ती रहती.. लंड और चूत जैसे शब्द पढ़कर मुझे नीचे कुछ कुछ हो रहा था.. अनजाने में ही मेरा हाथ नीचे चला गया.. मैंने वो मेसेज पढ़ते पढ़ते उंगली फेरना शुरू कर दिया.. इतना मज़ा आया था यार.. पहली बार अंदर से पानी भी निकला था.. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया पर मज़ा बहोत आया था.. मेरा पानी निकला और तभी अंकल का कॉल आया.. मैंने नाराजगी से उन्हें उस मेसेज के बारे में कहा तो अंकल ने सॉरी कहा और बोले की आज के बाद ऐसे मेसेज नहीं भेजेंगे.. मैंने फोन रख दिया.. पर उस दिन के बाद अंकल के तरफ देखने का मेरा नजरिया बदल गया.. मैं तेरे घर आती तो उन्हें देखते ही मेरी धड़कनें तेज हो जाती.. पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो जाता"
फाल्गुनी नॉन-स्टॉप बोलें जा रही थी.. वैशाली और मौसम एक दूसरे के स्तनों को छेड़ते हुए बड़े ही इन्टरेस्ट से उसकी बातें सुन रहे थे
फाल्गुनी: "फिर काफी दिनों तक कुछ नहीं हुआ.. एक दिन तेरे घर आई तब अंकल घर पर अकेले बैठे थे.. उन्हों ने मुझे कहा की मुझसे एक बात करनी है पर मैं प्रोमिस करूँ की किसीको बताऊँगी नहीं.. मैंने प्रोमिस किया पर मुझे अंदाजा तो लग ही चुका था की अंकल क्या कहने वाले थे.. मेरे बूब्स को देखते हुए अंकल ने कहा की.. फाल्गुनी.. तू मौसम की हमउम्र है पर बहोत ही सुंदर है.. उस दिन तेरे साथ ऑफिस में कॉफी पीने के बाद तू मेरे दिल और दिमाग पर छा गई है.. मुझे ऐसा कहना तो नहीं चाहिए पर अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ.. मैंने कहा.. अंकल मुझे जाना चाहिए.. मैं बाद में आऊँगी.. उन्हों ने मुझे रोका नहीं.. और कहा की ठीक है.. रात को तुझे एक-दो मेसेज भेजूँगा.. पढ़कर डिलीट कर देना.. और प्लीज मेरी बात का बुरा मानकर यहाँ आना बंद मत कर देना.. मैं तो तुझे सिर्फ देखकर भी खुश हो जाऊंगा.. ये खुश मुझसे छीन मत लेना.. !!!"
फाल्गुनी सांस लेने के लिए एक सेकंड रुकी और फिर बात आगे बढ़ाई
फाल्गुनी: "मैं भागकर घर पहुंची.. मेरा दिन ज़ोरों से धकधक कर रहा था.. ताज्जुब की बात तो यह थी की मैं पूरी रात अंकल के मेसेज का इंतज़ार करती रही पर उन्हों ने मेसेज ही नहीं किया.. !! फिर मुझे अपने ही पागलपन पर हंसी आने लगी.. की मैं क्यों भला उनके मेसेज का वैट कर रही थी.. पर मुझे उस सवाल का जवाब नहीं मिला.. दूसरे दिन जब तेरे घर आई तब अंकल ने मुझे आँख मारी.. मेरा दिल कर रहा था की उनसे पूछूँ.. रात को मेसेज क्यों नहीं किया?? पर तब तेरी और आंटी की मौजूदगी के कारण मैं पूछ नहीं पाई.. दिन-ब-दिन अंकल की शरारतें बढ़ती गई.. तब तक तो मैं भी उनके साथ सिर्फ फ्लर्ट कर रही थी.. "
मौसम: "साली रांड.. तुझे फ्लर्ट करने के लिए मेरा ही बाप मिला.. !! अपने बाप के साथ कर लेती फ्लर्ट.. !!"
फाल्गुनी हंस पड़ी और बोली: "अबे साली.. मेरा बाप अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों को आँख नहीं मारता.. और ना ही उन्हें आधी रात को गंदे जोक्स भेजता है.. क्या कभी मेरे पापा ने तेरे बूब्स को घूर घूर कर देखा है?? नहीं ना.. !! सारी चूल तेरे बाप के लंड में है.. मेरे पापा तो एकदम जेन्टलमेन है.. समझी.. !! और सुन.. मैंने अंकल को खुद से दूर रखने की बहोत कोशिश की.. अभी मेरी पूरी बात तू सुन..तो पता चलेंगे तेरे बाप के कारनामे.. फिर तुझे जो बोलना हो बोल लेना.. !!"
वैशाली: "अरे यार मौसम, तू बीच में टोंक मत.. हम्म आगे बता फाल्गुनी"
फाल्गुनी: "जिस दिन उन्हों ने मुझे आँख मारी थी.. उस दिन जब मैं कॉलेज से घर पहुंची तब उनका फोन आया.. ना हैलो कहा और न और कुछ.. सिर्फ इतना बोलें की मुझे तेरी बहोत याद आ रही है यार.. अकेला बैठा हूँ.. तू आ जा.. इतना कहकर उन्हों ने फोन रख दिया.. मुझे एक पल के लिए तो समझ में नहीं आया.. मैंने सामने से फोन करके पूछा की अंकल आपने मुझे फोन किया था?? उन्हों ने जवाब दिया की.. ओह तुझे फोन लग गया था.. मैंने तो किसी ओर को लगाया था.. खैर.. अगर तू फ्री है तो ऑफिस आजा.. साथ बैठकर कॉफी पियेंगे और गप्पे मारेंगे.. ईमानदारी से कहूँ तो उस दिन मुझे अंकल को मना कर देना था.. पर मना नहीं कर पाई.. पता नहीं क्यों.. !! और उसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है.. अब मैं उनके बगैर जी नहीं सकती.. !!"
सुनकर एक पल के लिए मौसम चोंक गई और बोली "मतलब??? तू पापा से प्यार करती है??"
वैशाली: "अरे वो सब छोड़.. ये बता.. फिर तू जब उनकी ऑफिस गई.. तब उन्हों ने तुझे चोद दिया था?"
फाल्गुनी: "नहीं बाबा नहीं.. उन्हों ने बड़ी ही होशियारी से मुझे ऐसे उत्तेजित किया की मैं ही अपना कंट्रोल खो बैठी.. क्या कहूँ यार.. बहोत ही लंबी कहानी है.. जाने भी दो.. जो बीत गई सो बात गई.. !!"
गहरी सांस लेकर फाल्गुनी ने आगे बोलना शुरू किया
फाल्गुनी: "मैं उनका निमंत्रण ठुकरा नहीं सकी.. और मैंने कहा की.. हाँ अंकल.. मैं आपकी ऑफिस आती हूँ.. वैसे भी बोर हो रही थी.. मौसम भी मेरे कॉल का जवाब नहीं दे रही है"
मौसम: "साली रंडी.. बाप की रखैल.. मैंने कब तेरा फोन नहीं उठाया??"
फाल्गुनी: "अरे यार मैंने झूठ-मुट बोल दिया था.. बल्कि उस दिन तो तूने मुझे सेंकड़ों बार फोन किया था पर मैंने ही नहीं उठाया था.. !! और फिर मैंने बहाना बनाया था की फोन घर भूल गई थी.. असल में मैं अंकल के साथ थी.. इसलिए तेरा फोन नहीं उठा रही थी.. !!"
मौसम: "अच्छा तो ये बात थी.. मैं इसे कितनी भोली समझती थी वैशाली.. पर एक नंबर की छिनार निकली"
फाल्गुनी: "अब सुन भी ले आगे की कहानी"
मौसम: "हाँ.. बक.. !!"
फाल्गुनी: "उस दिन मैं स्किन-टाइट टीशर्ट और ब्लू जीन्स पहनकर गई उनके ऑफिस.. मुझे देखते ही अंकल घायल हो गया ऐसा मुझे लगा.. टाइट टी-शर्ट से उनकी नजर आरपार होते मैं महसूस कर पा रही थी.. इतनी खतरनाक नजर से वो मेरे बूब्स को देख रहे थे.. ऐसा लग रहा था कि जैसे वहीं टेबल पर लिटाकर मुझे कच्चा चबा जाएंगे.. मैं ऑफिस पहुंची तब सारा स्टाफ जा चुका था.. उनकी कैबिन में ले जाकर अंकल ने मुझे वहाँ सोफ़े पर बिठाया.. और वो भी पास बैठ गए.. उन्हों ने मेरा हाथ छोड़ा ही नहीं.. फिर धीरे से उनका हाथ मेरे कंधों पर रख दिया.. मैं इतनी रोमांचित हो गई की क्या बताऊँ.. !!"
मौसम और वैशाली स्तब्ध होकर फाल्गुनी के कौमार्यभंग की काम-काथा सुन रहे थे.. कैसे एक कुंवारी शर्मीली लड़की सामने से चलकर अपने शरीर को.. खुद से दोगुनी उम्र के मर्द के हाथों में सौंप दिया..
फाल्गुनी: "चार दीवारों के बीच जब मर्द और लड़की अकेले होते है.. तब उम्र मायने नहीं रखती.. एकांत बड़ा ही भड़काने वाला होता है ये मुझे उस दिन पता चला.. अंकल का हाथ मेरे कंधे पर पड़ते ही मेरी चूत में आग सी लग गई.. "
मौसम: "मेरे समझ में ये नहीं आ रहा की तुम दोनों ऑफिस में अकेले कैसे मिले? वो चपरासी राजू तो हमेशा ऑफिस रहता है.. और वही तो ऑफिस बंद करता है"
फाल्गुनी: "मेरे वहाँ पहुंचते ही.. अंकल ने उसे कुछ लाने के लिए मार्केट भेज दिया था.. और मेरी प्यारी बेटी मौसम.. अब तक तो तुझे पता चल ही गया होगा की पुरुष के साथ एकांत में बैठने में कितना मज़ा आता है.. !! अब तो तूने भी अच्छे से सारे अनुभव कर लिए है"
मौसम: "हाँ मम्मी.. अंदर कुछ कुछ होने लगता है.. और वहीं तो सारे फसाद की जड़ है.. !!"
वैशाली: "ये कमाल पुरुष की मौजूदगी के कारण नहीं.. पर लंड और चूत के करीब आने से होता है"
फाल्गुनी: "सही कहा तूने वैशाली.. अंकल ने मुझे यहाँ वहाँ छूकर बहोत ही एक्साइट कर दिया.. आह्ह.. उनकी बातें सुनकर तो मैं पानी पानी हो रही थी.. !!"
तकिये से अपनी चूत घिसते हुए मौसम ने कहा "बताओ ना मम्मी.. क्या क्या बातें की थी पापा ने??"
अब वैशाली भी अपनी उंगलियों से फाल्गुनी की चूत छेड़ने लगी.. जैसे उसके सुराख में कुछ ढूंढ रही हो.. !! तीनों लड़कियां बेहद उत्तेजित हो गई थी.. सिर्फ एक मस्त लंड की कमी थी.. उस कमी को वो तीनों बातों से पूरा करने की भरसक कोशिशें कर रही थी..
वैशाली की निप्पल को दबाते हुए फाल्गुनी ने सवाल किया "वैशाली.. क्या ऐसा कभी हो सकता है.. की दूर बैठ कोई व्यक्ति.. बिना कुछ कहें.. बिना हाथ लगाएं.. सिर्फ अपने हाव भाव और हरकतों से ही ऑर्गजम दे सकें?"
वैशाली: "बहोत मुश्किल है.. हाँ फोन पर सेक्स चैट करते हुए ये हो सकता है.. पर बिना कुछ कहें ये हो पाना संभव नहीं है"
मौसम: "हाँ यार.. ऐसा तो कैसे मुमकिन हो सकता है??"
फाल्गुनी: "मुमकिन हुआ था.. तेरे पापा ने कर दिखाया था उस दिन.. जब उन्हों ने मेरे बूब्स की तारीफ की.. मेरी जांघों की तारीफ की.. तब मुझे इतना अच्छा लग रहा था.. मैंने पूछा की आपको और क्या क्या अच्छा लगता है मेरे शरीर में?? वैसे वो मुझे बातों से उत्तेजित करते गए.. उस दिन मुझे पता चला की मर्दों को हमारा शरीर इतना पसंद होता है.. !!"
मौसम: "मम्मी, ये बात तो सच कही.. मर्द हमें अपनी बातों से बड़ा एक्साइट कर देते है.. जीजू ने भी अपनी बातों के जादू से ही माउंट आबू में मुझे मोह लिया था.. उन लोगों को हमारे शरीर के हर अंग में दिलचस्पी होती है"
वैशाली: "हाँ यार.. संजय को मेरे पैर बहोत पसंद थे.. वो पहले तो मेरे पैरों से अपना लंड रगड़ता रहता.. कई बार तो वो बीच चुदाई में चूत से लंड बाहर निकालता.. मेरे दोनों पैरों को जोड़कर चूत का आकर बनाकर अंदर पेल देता..
और मेरे पैरों को उसने कितनी बार चाटा होगा.. हजारों बार मेरे पैरों पर वीर्य डिस्चार्ज किया है.. मुझे ताज्जुब होता था.. मर्दों को स्तन, चूत और गांड के लिए पागल होता देख समझ में आता है.. पर पैरों को कौन चोदता है यार.. !! पहली बार तो मैं चकित रह गई थी.. और उनकी दूसरी जानलेवा हरकत होती है उनकी किस.. आहाहाहा.. इतना मज़ा आता है जब वो किस करते है तब.. !!"
फाल्गुनी: "एक बात जरूर कहूँगी.. अंकल ने कभी भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं की.. पर उन्हों ने पूरा माहोल ही ऐसा बना दिया जहां हम एक के बाद एक कदम आगे बढ़ते गए और आखिर मुझे उनसे प्यार हो गया.. "
मौसम: "हम्म.. मतलब बातचीत कैसे शुरू हुई ये तो पता चल गया.. अब आगे कैसे बढ़ें वो भी बता दे"
वैशाली अब फाल्गुनी की चूत में उंगली करते हुए इतनी उत्तेजित हो गई की उसके शरीर के ऊपर पुरुष की तरह चढ़ गई.. और उसकी चूत से चूत रगड़ते हुए.. अपने बबलों को फाल्गुनी के संतरों पर घिसने लगी..
इस सुंदर नज़ारे को देखकर फाल्गुनी ने दोनों हाथों से वैशाली के नारियल जैसे स्तनों को थाम लिया और अपना चेहरा ऊपर कर वैशाली को किस करने के लिए आमंत्रित करने लगी.. बड़ी ही जबरदस्त कामुकता के साथ वैशाली ने अपने होंठ फाल्गुनी को सौंप दीये.. फाल्गुनी उसके होंठों को चूमने और चाटने लगी..
वैशाली को अपनी मनमानी करने दे रही थी फाल्गुनी.. उसी अवस्था में उसने बात आगे बढ़ाई..
फाल्गुनी: "अब मैं अंकल के साथ काफी खुल चुकी थी.. उनकी आँखों में आँखें डालकर कुछ भी बोल देने में मुझे शर्म नहीं आती थी.. अंकल ने मुझसे प्रोमिस ले लिया था की हमारी मीटिंग के बारे में मैं किसी को न बताऊँ.. यह बात तुझसे छुपाने का आज तक अफसोस है मुझे मौसम.. पर मैं चाहकर भी ये बात तुझे बता नहीं पाई.. !! फिर उस दिन अंकल ने मुझे बहोत सारे नॉन-वेज जोक्स कहे.. और मेरी बची कूची शर्म को निकाल दिया.. पर अभी भी वो मेरे सामने लंड और चूत जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.. बात बात में मैंने कहा की अंकल एक बार मैंने आप को फोन पर किसी को गाली देते हुए सुना था.. तो क्या आप को गाली बोलने में शर्म नहीं आई?? तो उन्हों ने कहा.. अरे.. चूतिया भी कोई गाली होती है.. फिर वो मेरे सामने ही भेनचोद और मादरचोद बोले.. और कहा की गालियों से शर्माने की कोई जरूरत नहीं है"
वैशाली: "अरे बाप रे.. !!"
मौसम: "हाँ ये बात तो सही है मम्मी.. मेरे पापा को फोन पर गालियां देते हुए तो मैंने भी बहोत बार सुना है.. कई बार तो गुस्से में मेरी मम्मी को भी गाली दे देते है.. "
वैशाली: "चोदते वक्त संजय भी बहोत गाली-गलोच करता था यार.. इतनी गंदी गंदी गालियां.. सुनकर ही घिन आ जाए.. खास कर मेरी मम्मी को लेकर इतना गंदा गंदा बोलता था वो.. !!"
फाल्गुनी: "मतलब? क्या बोलता था वो?"
वैशाली: "मेरे बूब्स दबाते हुए वो मेरी मम्मी के बूब्स की तारीफ करता था.. और जब मैं उसका लंड चुस्ती थी तब बोलता था की तेरी मम्मी भी पापा का लंड ऐसे ही चूसती होगी.. पर उस वक्त मैं इतनी गरम हो चुकी होती थी की उसकी बातों से मुझे कोई फरक न पड़ता.. !!"
मौसम: "मतलब संजय तेरी मम्मी को गालियां देता और तुझे कोई ऐतराज नहीं होता था, ये कहना चाहती है तू?? कमाल है यार.. कोई हमारी माँ को गाली दे और तब भी आपको सुनकर बुरा न लगे.. मानने में नहीं आ रहा"
वैशाली: "यार उस वक्त तो नीचे ऐसी चुनचुनी मची होती है की मन करता है.. उसे जो बोलना हो बोलें.. बस नीचे लंड डालता रहें.. एक बात बता.. जब अंकल के मुंह से पहली बार गाली सुनी थी.. तब तेरी चूत में भी कुछ कुछ हुआ था ना.. !!"
फाल्गुनी: "हाँ यार.. उन्हों ने तो फिर मेरे मुंह से भी गालियां बुलवाई.. फिर उन्हों ने कहा.. फाल्गुनी, अब हम दोनों दोस्त है.. तो एक दोस्त होने के नाते तू मुझे क्या क्या करने देगी.. ये बता दे ताकि मैं अपनी लिमिट क्रॉस न करूँ.. तो मैंने कहा.. अंकल ये सब में मुझे कुछ पता नहीं चलता.. मुझे किसी भी प्रकार की बातचीत से ऐतराज नहीं है.. इन्जॉय तो मैं भी करना चाहती हूँ.. बाकी आप इतने अनुभवी और समझदार हो.. मुझे यकीन है की आप ऐसा कोई काम नहीं करोगे जिससे मुझे या आपको कोई नुकसान हो.. अंकल ने मेरी बात मान ली और कहा की.. मेरे बॉल बहुत ही मस्त कडक है.. मेरी साइज़ पूछी उन्हों ने.. कैबिन के अंदर रूम फ्रेशनर और सिगरेट के धुएं की मिश्र गंध मुझे पागल बना रही थी.. मुझे उनके पूछने से बहोत मज़ा आ रहा था.. एक पल के लिए तो मन किया की वहीं अंकल से लिपट जाऊँ.. बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका.. फिर अंकल ने मुझ से पूछा.. बेटा, तेरी निप्पल का रंग कैसा है??"
फाल्गुनी की गरमागरम बातें सुनकर मौसम के मुंह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. ऊँहहहहह.. !!
वैशाली और फाल्गुनी ने मौसम की तरफ देखा.. वो बेकाबू होकर अपनी चूत को तकिये से पागलों की तरह रगड़े जा रही थी.. बेहद उत्तेजना का खुमार उसके सुंदर चेहरे को ओर निखार रहा था.. उसके उरोजों की गोलाई जबरदस्त दिख रही थी.. पसीने से तरबतर मौसम की निप्पल से पसीने की बूंदें टपक रही थी.. उसने आँखें बंद कर सिसकते हुए कहा "जल्दी बोल.. फिर पापा ने आगे क्या कहा.. ??" मौसम ने गहरी आवाज में पूछा
फाल्गुनी: "वही की.. फाल्गुनी बेटा.. तेरा बदन मुझे जबरदस्त आकर्षित कर रहा है.. और तुझे देखते ही मेरे सारे शरीर में उत्तेजना फैल जाती है.. और मैं तुम्हारे जिस्म को नजदीक से देखना चाहता हो अगर तेरी इजाजत हो तो.. उनकी ये बात सुनकर मैं एकदम स्तब्ध हो गई.. थोड़ा डर भी लगा.. मैंने कहा.. अंकल मुझे ऐसा करने में डर लग रहा है.. हमने तय किया था की हम सिर्फ बातों से मजे लेंगे.. मैं शर्मा भी रही थी.. अंकल ने कहा.. मैंने सिर्फ देखने की बात कही है.. मैं तुझे हाथ भी नहीं लगाऊँगा.. अगर बिना छूए हम एक दूसरे को सिर्फ देखकर संतुष्ट कर सकते है तो उसमें बुराई क्या है??"
मौसम हांफते हुए बोली "यार मुझे तो पता नहीं चल रहा है की तूने मेरे बाप को फँसाया था या मेरे बाप ने तुझे.. !!"
वैशाली: "तू चुप बैठ.. और तकिये को गीला करना चालू रख.. हाँ फाल्गुनी, आगे क्या हुआ?"
फाल्गुनी: "और क्या होना था.. !! मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए थोड़ी सी आनाकानी के बाद मैं मान गई.. पर ये कहकर की मैं लिमिट क्रॉस नहीं करूंगी"
मौसम: "बहोत सही कहा.. तू ठहरी सति-सावित्री.. तू भला कैसे लिमिट क्रॉस कर सकती है.. !!" उत्तेजना से चूत रगड़ते हुए भी मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा
फाल्गुनी: "फिर मैंने अंकल से कहा.. आप क्या देखना चाहते हो.. और मैं कैसे दिखाऊँ?? मुझे कुछ पता नहीं चलता.. आप ही बताइए.. फिर अंकल ने मुझे झुककर अपने बूब्स के बीच की क्लीवेज दिखाने को कहा.. सच कहूँ तो मुझे वो दिखाने में ज्यादा हर्ज नहीं हुआ.. जाने अनजाने में हम दिन भर वैसे भी सब को दिखाते रहते है.. पर रोजमर्रा की हरकत और आज के दिन में फरक तो था.. वो मुझे अंकल की सिसकियाँ सुनकर पता चला.. मुझे बहोत शर्म आई.. वी-नेक टीशर्ट में से मैंने अपने बूब्स का ऊपरी हिस्सा झुककर अंकल को दिखाया.. देखकर थोड़ी देर तक वो कुछ नहीं बोलें.. फिर उन्होंने कहा.. भेनचोद, क्या बवाल बबले है तेरे.. !! मेरा लंड तो इन्हें देखते ही खड़ा हो गया.. अगर तूने मुझे करने की छूट दे दी होती तो मैं आज तुझे नोच कर खा ही जाता.. आह.. !! यार वैशाली, उस वक्त अंकल के चेहरे के भाव देखकर मैं तो डर ही गई.. मेरी सांसें तेज चलने लगी और साँसों के साथ मेरे बूब्स भी ऊपर नीचे होने लगे.. अंकल ने पेंट के ऊपर से ही अपने लंड का उभार मसलना शुरू कर दिया और मेरे सामने आकर खड़े हो गए.. उस उभरे हिस्से को दिखाते हुए कहा.. फाल्गुनी, तुझे पता है ना इसके अंदर क्या है? और इसका ऐसा हाल तेरे दोनों बूब्स के बीच की लकीर को देखकर हुआ है.. मैंने कहा.. मुझे पता है अंकल.. इसके अंदर आपका पेनीस है.. अंकल ने कहा.. पेनीस नहीं बेटा.. उसे लंड कहते है.. फाल्गुनी, तूने आज से पहले कभी लंड देखा है?? मैंने कहा.. नहीं देखा.. अंकल ने कहा.. तुझे देखना है?? मैंने भी कह दिया की मुझे नहीं देखना.. और मैं घर जाना चाहती हूँ.. मैं समझ गई थी की अब मैं अगर नहीं रुकी तो अंकल मुझे छोड़ेंगे नहीं.. अंकल ने कहा.. तू बेकार घबरा रही है.. ये थोड़ी बाहर निकलकर तुझे काटेगा.. !! तुझे देखना हो तो बोल.. अभी दिखाता हूँ.. वरना मैं चैन बंद कर दूंगा और ये मौका तेरे हाथ से निकल जाएगा.. !! सच कहूँ तो मेरा इतना मन था की हाँ कह दूँ.. पर शर्म के मारे बोल नहीं पाई.. !!"
वैशाली: "तेरी जगह अगर मैं होती ना.. तो अंकल को इतना तड़पने नहीं देती.. " फाल्गुनी की चूत पर जीभ फेरते हुए वैशाली ने कहा..
ये देखकर मौसम चिल्लाई "कोई मेरी चूत भी तो चाट लो.. मुझे तो एकदम अकेली कर दिया है तुम दोनों ने.. कब से आपस में ही लगी हो"
नाराज मौसम को देखकर वैशाली हँसते हँसते उसके करीब गई और मौसम के सुंदर स्तनों की निप्पल को मुंह में लेकर चूसते हुए दूसरे हाथ से दूसरा स्तन सहलाने लगी.. और बोली "अरे मेरी जान.. मेरी तो इच्छा है की तुझे एक बार रेणुका मैडम के लंड से चोदने की.. "
मौसम: "रेणुका जी का लंड??? मतलब तू राजेश सर की बात कर रही है?? माय गॉड.. तूने उनका लंड भी चख रखा है??"
फाल्गुनी की कहानी की लिंक टूट गई.. और बात दूसरी और मुड़ गई..
वैशाली ने मौसम को बालों से पकड़ कर उसका मुंह अपनी चूत पर रख दिया.. मौसम चुपचाप वैशाली की मुनिया का रस चाटने लगी..
वैशाली: "ओह्ह यस.. आह्ह यार.. चूत चटवाने का मज़ा ही कुछ ओर है.. आह्ह जोर से चाट मेरी.. ऊई माँ.. हाँ मौसम.. हाँ वहीं पर.. अंदर तक डाल अपनी जीभ.. हाय मैं मर गई.. !! दो-तीन उँगलियाँ साथ में अंदर बाहर कर.. तो मेरा जल्दी निपट जाए.. आह्ह अब रहा नहीं जाता.. !!!"
मौसम ने सिर्फ दो मिनट में वैशाली की चूत रस की टंकी खाली कर दी.. पर उन दो मिनटों के दौरान जो युद्ध हुआ था वो बड़ा ही खतरनाक था.. फाल्गुनी फटी आँखों से देखते हुए अपनी पुच्ची सहला रही थी और मौसम तथा वैशाली के इस गजबनाक चूत चटाई के द्रश्य को देख रही थी.. ठंडी होते ही वैशाली एक तरफ ढल गई.. फाल्गुनी तुरंत मौसम के पास आई और जांघें चौड़ी कर अपनी चूत पेश कर दी.. मौसम ने वैशाली की चूत को छोड़कर फाल्गुनी के गुलाबी पंखुड़ीनुमा चूत के होंठों को चूसना शुरू कर दिया.. चाटते हुए उसने अपने दोनों होंठों के बीच फाल्गुनी का छोटा गुलाबी दाना (क्लिटोरिस) को दबा दिया
"मर गई.. मर गई मैं तो.. हाय ये क्या कर दिया मौसम तूने.. !! उफ्फ़फफ.. क्या गजब का चूसती है रे तू.. मन करता है की पूरी ज़िंदगी तुझे अपनी चूत से चिपकाकर रखू.. आह्ह.. " अपनी निप्पलों को उंगलियों से मरोड़ते हुए फाल्गुनी सिसक रही थी..
फाल्गुनी ने बेशर्म होकर कहा "यार, मन तो कर रहा है की बगल के कमरे से अंकल को बुला लूँ और तसल्ली से चूदवाऊँ.. आह्ह.. अब तो लंड लिए बगैर चैन नहीं मिलेगा मुझे.. !!"
चूत चाटते चाटते मौसम रुक गई और बोली "तूने कहानी अधूरी ही छोड़ दी.. ये तो बता.. की आखिर तूने पापा का लंड कब और कैसे देखा?"
फाल्गुनी: "उसके बाद की कहानी तो बड़ी उत्तेजक है मौसम.. मेरे मना करने के बावजूद अंकल समझ गए थे की मैं देखना तो चाहती थी.. उन्हों ने खोलकर तभी दिखा दिया.. सिर्फ 2 फुट दूर खड़े थे अंकल.. क्या बताऊँ यार.. !! मेरी जो हालत हुई थी उनका देखकर.. !! विकराल डरावना आकार और उत्तेजना से ऊपर नीचे हलचल कर रहे उनके लंड को देखकर मेरा तो मुंह सूख गया.. और नीचे सब गीला हो गया.. ये मेरी पुच्ची के रस की गंध पूरी ऑफिस में फैल गई थी.. लाइफ में पहली बार मैंने सख्त वयस्क लंड को देखा था.. और मेरी चूत में ऐसी खलबली मैच गई थी की अंकल के सामने ही मैंने अपनी चूत खुजाना शुरू कर दिया.. मुझे लगा की एक बार खुजाने से खुजाल शांत हो जाएगी.. मगर ये तो और बढ़ गई.. मुझसे तो बर्दाश्त ही नहीं हो रहा था वैशाली.. ऐसा लग रहा था की अगर अभी कुछ नहीं किया तो मेरी रूह जिस्म से निकल जाएगी"
फाल्गुनी की चूत चाटना भूलकर मौसम एकटक अपने पापा के लंड की कहानी सुन रही थी..
फाल्गुनी: "अरे यार.. तूने चाटना क्यों बंद कर दिया?? सारा मज़ा किरकिरा हो गया.. !!"
वैशाली: "तू भी अपनी बात चालू रख.. बीच बीच में रुक जाती है तो हमारा मज़ा भी किरकिरा हो जाता है"
फाल्गुनी: "अंकल के सामने ही मैंने चूत खुजाना शुरू कर दिया ये देखकर अंकल ने कहा.. बेटा अब मुझे भी तू अपना एक बॉल खोलकर दिखा दे.. जरा सा टीशर्ट ऊपर कर दे तो आराम से दिख जाएगा.. पहली बार उन्हों ने नरमी छोड़कर.. आदेश के सुर में कहा.. मैं चूत की खुजली और उत्तेजना के कारण इतनी बेबस हो चुकी थी की मैंने चुपचाप अपना टीशर्ट ऊपर किया और ब्रा में कैद दोनों स्तनों को दिखा दिया.. उन्हों ने कहा.. ऐसे नहीं बेटा.. मैं ठीक से देख नहीं पा रहा हूँ.. बीच में ब्रा आ रही है.. सब कुछ दिखाओ.. मैं भी तो देखूँ.. फाल्गुनी की चोली के पीछे क्या है!! मौसम.. तेरे पापा का एक एक शब्द जैसे मुझे अपना ग़ुलाम बना रहा था.. चाहकर भी मैं उन्हें किसी बात के लिए मना नहीं कर पा रही थी.. मैंने ब्रा ऊपर कर दी और जीवन में पहली बार किसी को अपनी नंगी चूचियाँ दिखाई.. !!"
वैशाली: "तेरे ये कडक अमरूद देखकर अंकल के लंड की तो हालत खराब हो गई होगी.. !!
फाल्गुनी: "उनके लंड को छोड़.. हालत तो मेरी चूत की खराब हो गई.. वैशाली.. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था की नीचे छेद में इतनी तेज खुजली क्यों हो रही है.. और क्यों खुजाने पर भी शांत नहीं हो रही है.. !! मैं जितना उसे सहलाती उतना ही और भड़कती.. आखिर मुझे अंकल से कहना पड़ा.. अंकल.. मुझे नीचे कुछ हो रहा है.. और मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. उन्हों ने मुझसे कहा.. बेटा तू अपनी पेन्टी उतार दे.. और अपनी बीच वाली उंगली को छेद के अंदर तेजी से अंदर बाहर कर.. उस दौरान अपनी चूचियों को भी दबाते रहना.. तेरी खुजली शांत हो जाएगी.. !!"
वैशाली: "अच्छा.. !! मतलब तुझे चोदने से पहले अंकल तुझे मास्टरबेट करते हुए देखना चाहते थे.. !!"
फाल्गुनी: "हाँ वैशाली.. खुजली से परेशान होकर मैंने तुरंत अपनी चड्डी उतार फेंकी और सोफ़े पर बैठकर फिंगरिंग शुरू कर दिया.. जो मज़ा आया था.. उतना मज़ा की बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है.. "
मौसम: "फिर?? पापा के डंडे का क्या हुआ?"
वैशाली: "इसे तो बस अपने पापा के लंड में ही दिलचस्पी है.. !!"
फाल्गुनी: "मुझे उंगली करते देख.. उन्हों ने भी अपना लंड हिलाना शुरू किया.. और थोड़ी देर हिलाने पर उनकी पिचकारी निकल गई.. मेरे पैरों के पास बूंदें आकर गिरी.. और वो हांफते हुए कुर्सी पर बैठ गए.. मेरा भी पानी निकल गया.. और उनका भी.. !!"
फाल्गुनी ने कहानी के एक अध्याय का समापन किया तभी वैशाली को कुछ याद आया
वैशाली: "अरे यार.. मेरे पास एक गजब की आइटम आई है" फाल्गुनी और मौसम को लंड लेने के लिए फुदकते देख वैशाली ने आखिर बता दिया
फाल्गुनी: "कौनसी आइटम?"
वैशाली ने फाल्गुनी की कलाई पकड़कर मोटाई दिखाते हुए कहा "इससे भी मोटा रबर का डिल्डो.. कहाँ से लाई ये मत पूछना"
मौसम: "डिल्डो? वो क्या होता है?"
वैशाली: "अभी तूने जो जीजू को अंदर लिया था न.. बस वही होता है डिल्डो.. दिखने में सैम टू सैम.. पर रबर का बना होता है.. देख.. अभी हम तीनों मजे तो कर रहे है पर बिना लंड के हमारे छेदों को तृप्त करना मुमकिन नहीं है, यह तो हम सब भी जानते है.. ये डिल्डो में बेल्ट लगा हुआ है.. उसे पेन्टी की तरह पहनते है.. पहनते ही लंड तैयार.. मोटा तगड़ा.. इतना जबरदस्त है यार.. !!"
मौसम: "ओह्ह अच्छा.. याद आया.. और कहाँ मिलता है ये भी मुझे पता है" मौसम को माउंट आबू की सेक्स-शॉप की मुलाकात याद आ गई
फाल्गुनी: "अब तुझे ये सब कैसे पता? तू भी कम नहीं है मौसम.. !!"
मौसम: "तुझे तो जब चाहे असली लंड मिल जाता है इसलिए तुझे जरूरत नहीं पड़ती.. पर मुझे तो ऐसे जुगाड़ से ही काम चलाना पड़ता है"
वैशाली: "मौसम, अब तो तेरे पास दो-दो असली लंड है.. इसलिए तुझे भला रबर के लंड की क्या जरूरत? जरूरत तो मुझे है.. अड्रेस बता.. मैं लेकर आऊँगी.. नया वाला"
मौसम: "तू मेरी चूत चाट.. तभी अड्रेस बताऊँगी"
वैशाली: "हरामखोर, रबर के लंड के लिए ब्लैकमेल कर रही है.. अगर असली लंड शेर करना होता तो पता नहीं और क्या क्या मांग लेती मुझसे.. !!"
फाल्गुनी: "असली लंड के बदले में, मौसम तुझसे अपनी गांड चटवाएगी.. !!"
वैशाली: "अगर असली लोडा मिलने वाला हो तो मैं वो करने के लिए भी तैयार हूँ"
वैशाली ने मौसम पर तरस खाकर उसे बेड पर लिटा दिया और उसके पैर खोलकर चूत को चाटना शुरू कर दिया.. पिछले एक घंटे से तड़प रही मौसम की चूत को थोड़ा चैन मिला.. गांड ऊंचक्कर उसने अपनी चूत वैशाली के चेहरे से दबा दी.. और चूत पर वैशाली की जीभ की गर्मी महसूस करने लगी.. फाल्गुनी भी मौसम के बगल में लेट गई.. और उसके एक स्तन को पकड़कर निप्पल चूसने लगी..
"ओह माय गॉड.. फाल्गुनी, तू तो बिल्कुल जीजू की तरह चूसती है.. आह्ह.. जरा निप्पल पर बाइट कर.. और जोर से दबा.. मसल दे यार.. ओह्ह"
फाल्गुनी मौसम के स्तन पर और वैशाली उसकी चूत पर जबरदस्त प्रहार कर रहें थे.. दो-तरफा आनंद से उत्तेजित होकर वो स्खलन की ओर बड़ी ही जल्दी से पहुँच गई..
"ओह्ह यस.. फाल्गुनी.. चूस यार मेरी निप्पल.. काट ले उसे.. ऊई माँ.. वैशाली और अंदर डाल अपनी जीभ.. मेरे दाने को चबा जा.. ऊँह.. आह्ह.. जल्दी.. जल्दी.. दो उँगलियाँ डाल.. एकदम फास्ट अंदर बाहर कर यार.. ओह्ह आह्ह.. मज़ा आ रहा है" हवस अब मौसम के सर चढ़ कर बोल रही थी.. वैशाली उसकी क्लिटोरिस को खुरदरी जीभ से कुरेदते हुए अपनी दो उँगलियाँ तेजी से अंदर बाहर कर रही थी.. आँखें बंद कर मौसम अपने जीजू के साथ किए हुए सेक्स को याद करते हुए.. फाल्गुनी के हाथ को अपने स्तन पर मजबूती से दबाकर.. थरथराते हुए झड गई.. !!!!
हल्की सी खुली हुई खिड़की से सुबोधकांत.. इन तीनों सुंदरियों की शारीरिक छटपटाहट अपनी आँखों से भोग रहे थे.. मौसम को नंगी देखकर उनके जिस्म में एक विचित्र सा रोमांच हो रहा था.. उनका हाथ अपने लंड पर पहुँच गया.. तीन अलग अलग साइज़ और आकार के स्तनों के बीच.. रूप के समंदर को निहारते हुए सुबोधकांत जैसे रंगीन मिजाज इंसान के मन में जो होना चाहिए वो सब हो रहा था..
अचानक मौसम की नजर, हल्की सी खुली हुई खिड़की पर पड़ी.. खिड़की के उस तरफ एक साया नजर आ रहा था.. जो लगातार किसी कारणवश हिल रहा था.. मौसम को समझने में देर नहीं लगी की कोई उनकी काम-लीला को देख चुका था और अंधेरे में लंड हिला रहा था.. मौसम को लगा की वो पक्का पीयूष जीजू ही होंगे..
मौसम के ऊपर चढ़कर उसके स्तन चूस रही वैशाली को धीरे से उसने कहा "वैशाली.. वहाँ खिड़की के पीछे से कोई हमें देखकर हिला रहा है.. मुझे लगता है की जीजू ही होंगे"
वैशाली ने चुपके से कनखियों से देखकर कहा "हाँ यार.. कोई तो खड़ा है वहाँ..!!" फिर उसने तसल्ली से खिड़की की तरफ देखा और कहा "मौसम, वो तेरे जीजू नहीं बल्कि तेरे पापा है"
"क्या.. !!!!! क्या बात कर रही है यार?? पापा ने मुझे ऐसे देख लिया.. !!" तुरंत चादर खींचकर अपना नंगा जिस्म छिपा लिया मौसम ने.. तब तक तो सुबोधकांत ने अपनी बेटी के नग्न सौन्दर्य को देखते हुए पिचकारी भी मार दी थी.. और अब वो वहाँ ज्यादा देर रुकना नहीं चाहते थे.. अपने झड़ चुके लंड को फिर से पैक करके वो वहाँ से निकल गए और अपने कमरे में जाकर सो गए
मौसम की चूत, सगाई की अगली रात ही दो बार झड़ कर शांत हो चुकी थी.. फाल्गुनी और वैशाली भी एक एक बार झड़ गए थे.. थोड़ा सा नॉर्मल होने के बाद फाल्गुनी ने वैशाली को उस रबर के लंड के बारे में पूछा.. वैशाली ने अनुभवी शिक्षिका की तरह उसको सारे जवाब दीये..
जब फाल्गुनी और वैशाली ने बार बार मौसम से पूछा तब मौसम ने बताया की तब उसने बताया की रेणुका के लिए गिफ्ट लेने गए थे तब उसने और जीजू ने सेक्स शॉप में ये सब देखा था..
तीनों लड़कियां शांत होकर.. एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर सो गई..