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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

Premkumar65

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शीला नंगी होकर अपने दामाद संजय की बाहों में पड़े पड़े गोवा की आखिरी रात को रंगीन बनाने की तैयारी में थी.. दोनों आज अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण करने की फिराक में थे.. क्योंकी ऐसा मौका उन्हें दोबारा नही मिलने वाला था.. दोनों आपस में एकदम खुल चुके थे

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शीला की एक एक सिसकी.. संभोग के समय के हावभाव देखकर संजय पागल हो जाता था.. अब तो नोबत ऐसी आन पड़ी थी शीला के साथ प्रत्येक क्षण वो उत्तेजित ही रहता था.. पूरा समय लंड खड़ा रहने के कारण उसे दर्द होता था.. चार चार बार झड़ने के बाद भी शीला, संजय के गोरे.. वीर्य-विहीन लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़े रखती थी..

शीला: "बेटा.. मैंने कभी सोचा भी नही था की अपने दामाद के साथ ही मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा.. जो कुछ भी हो रहा है वो मुझे इतना अच्छा लग रहा है की तुम्हें बता नही सकती.. लेकिन आज ये सब कुछ करने का आखिरी दिन है.. तू एक जानदार मर्द है.. एक औरत होने के नाते मैं इतना तो कह ही सकती हूँ की तू अपनी कामुक हरकतों से किसी भी लड़की या स्त्री को अपनी गुलाम बना सकता है.. संजय बेटा.. तेरी हरेक हरकत ऐसी होती है की तुझसे एक बार चुदने के बाद कोई भी तेरे इस डंडे को कभी भूल नही पाएगा.. और मैं तो पहले से ही सेक्स की काफी शौकीन हूँ.. तेरे ससुर के साथ मैंने इतने खुलकर मजे कीये है की तुझे क्या बताऊँ.. !! तेरे साथ चुदते वक्त.. तेरे दमदार धक्कों को मेरी चूत में लेते वक्त.. मुझे ऐसा ही लगता था जैसे तेरे अंदर मदन घुस गया हो.. ये तेरा सुंदर लंड इतना रसीला है की कोई भी स्त्री उसे देखते ही अपने छेद में लेने के लिए बेबस हो जाएँ.. " शीला ने झुककर संजय के लंड को चूम लिया

संजय: "आहह मम्मीजी.. मुंह में लेकर चुसिए..बहोत मज़ा आ रहा है.. मम्मीजी, मैंने आज तक सेंकड़ों लड़कियों और औरतों को चोदा है.. पर आपके जैसी स्त्री मैंने आजतक नही देखि जो २४ घंटे बस चुदने के लिए ही बेकरार हो.. !!" कहते हुए संजय ने शीला के गदराए स्तनों को बड़ी मस्ती से दबा दिया "मम्मीजी, आप एक बार कलकत्ता आइए.. वहाँ मेरे बहोत सारे दोस्त है.. आपको नए नए लंडों को स्वाद मिलेगा.. !!"

शीला: "बेटा.. इतने दूर सिर्फ लंड लेने के लिए आऊँ?? और मुझे अलग अलग लंड लेने में दिलचस्पी नहीं है.. मुझे तो चाहिए एक ताकतवर लंड जो मेरे जनम जनम की भूख को संतुष्ट कर सकें.. मेरी चूत में जो हर दस मिनट पर चुदवाने की चूल मचती है.. उसे शांत कर सकें.. संजयं, तू यहाँ शिफ्ट हो जा.. फिर हम आराम से एक दूसरे को भोग सकेंगे.. तू मेरा दामाद है इसलिए किसी को शक भी नही होगा.. मेरा दिल अभी तेरा लंड लेकर भरा नही है.. अभी तो मुझे तुझसे बहोत बार चुदवाना है.. इतनी बार करवाना है की दोबारा कभी चुदवाने का मन ही न हो" कहते हुए शीला ने संजय को बिस्तर पर लेटा दिया और उसपर सवार हो गई.. संजय के लंड को अपनी गांड के छेद पर सेट किया और हल्के से दबाया.. आह्ह..

शीला: "तेरे मोटे लंड से जब गांड की दीवारें रगड़ती है तब बड़ी ही तेज खुजली होती है अंदर.. आज इस आखिरी रात को यादगार बनाने के लिए मैं तुझसे अपनी गांड मरवाना चाहती हूँ"

संजय: "ओह्ह ओह्ह आह्ह मम्मीजी.. कितनी टाइट है आपकी गांड आह्ह.. " सिसकियाँ लेते हुए संजय ने अपनी गांड ऊपर कर दी और शीला की कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसकी गांड को ड्रिल करने लगा.. शीला की दर्द से भरी सिसकियाँ.. और संजय की कराहों की गूंज के बीच.. शीला की गांड को चीरता हुआ संजय का तगड़ा लंड अंदर घुस गया.. शीला के परिपक्व और मदमस्त स्तनों को दोनों हाथों से पकड़कर मसलते हुए संजय ने उसे अपनी ओर खींचा.. और उसके रसीले कामुक होंठों पर एक जबरदस्त किस कर दी..

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शीला और उसका दामाद संजय.. एक कपल की तरह नही.. पर पति पत्नी की तरह एक दूसरे में खो गए.. संजय का लंड शीला की गांड में ऐसे फिट हो गया जैसे वो दोनों जनम जनम के साथी हो.. कमर हुचकाते हुए संजय.. अपने लंड को शीला की गांड के अंदर बाहर कर रहा था.. और शीला की गांड ऐसे लंड गटक रही थी जैसे उसका सर्जन ही लंड लेने के लिए हुआ हो.. बड़ी मस्त ठुकाई हो रही थी शीला की गांड की..

संजय: "ओह्ह मम्मी जी.. कितनी टाइट गांड है यार.. मेरे लंड में दर्द होने लगा है.. आह्ह जरा धीरे धीरे.. !!!"

शीला: "आह्ह बेटा.. मेरा तो मन कर रहा है की मैं तेरी रखेल बन जाऊँ.. और तू मुझे पूरा दिन चोदता रहें.. अलग अलग आसनों में..ओह्ह बेटा.. बहोत जोरों की खुजली मची है मेरी गांड में.. लगा जोर से धक्के.. फाड़ दे मेरी गांड.. आह्ह आह्ह ओह्ह ओह्ह.. !!"

संजय के ऊपर हिंसक होकर कूद रही थी शीला.. कैसी जवान लड़की से दोगुना जोर था शीला के धक्कों में.. उसकी गदराई कामुक काया की एक एक अंग भंगिमा.. किसी भी पुरुष को अपने वश में करने के लिए काफी थी.. शीला ने हाथ नीचे डालकर संजय का लंड पकड़ लिया और थोड़ा सा रुककर अपनी गांड से बाहर निकाला.. थोड़ा सा झुकी और एक ही धक्के में अपने भोसड़े में उतार दिया..

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शीला: "आह्ह.. आग तो यहाँ भी लगी हुई है.. जमकर धक्के लगा बेटा.. आग बुझा दे मेरी.. अब और रहा नही जाता संजु बेटा.. !!" शीला ने अपनी रिधम प्राप्त कर लिए थी.. वो संजय के जिस्म पर ऐसे हावी हो गई थी जैसे किसी बड़े मगरमच्छ ने छोटी सी गिलहरी को दबोच रखा हो.. संजय का लंड अब दर्द करने लगा था.. पर अपना बचाव करने की स्थिति में नही था वो.. शीला ने जैसे उसके शरीर, मन और मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया था.. बेजान पड़े पड़े वो बस शीला से संचालित हो रहा था.. शीला के इस सुनामी जैसे हमले को देखकर वो स्तब्ध हो गया था.. पड़े रहने के अलावा उसके पास ओर कोई विकल्प नही था.. शीला इतनी हिंसक होकर उसके लंड पर कूद रही थी जैसे उसके लंड को शरीर से अलग कर देना चाहती हो..

संजय अब घबरा रहा था.. कहीं शीला की ये तीव्र सेक्स की भूख उसकी जान न ले ले.. आँखें बंदकर वो प्रार्थना कर रहा था की शीला जल्द से जल्द झड जाए.. करीब १२ मिनट के भीषण धक्कों के शीला ढल पड़ी.. ऐसे लाश होकर संजय की छाती पर गिरी जैसे उसके शरीर की सारी ऊर्जा भांप बनकर उड़ गई हो.. शीला के विराट स्तनों और बदन के वज़न तले संजय दब गया था.. उसका लंड अब वीर्य छोड़ पाने की स्थिति में भी नही रहा था.. और बिना झड़े ही नरम होकर शीला के भोसड़े से बाहर निकल गया था.. और मरे हुए चूहे जैसे लटक रहा था.. दायें तरफ के आँड की ओर लटक रहे मुरझाएं लंड को देखकर ही पता लग रहा था की शीला के भोसड़े के अंदर उस पर क्या बीती होगी.. संजय ने मन ही मन अपने ससुर को सलाम कर दी.. जिन्होंने इतने सालों से इस हवस की महासागर को समेटकर संभाल रखा था.. पता नही ससुरजी कैसे इस शेरनी को काबू में रखते होंगे.. !! संजय सोच रहा था.. मैं इतना बड़ा चुदक्कड़ हूँ फिर भी मम्मी जी ने मेरे झाग निकाल दिए.. कोई सामान्य इंसान होता उसकी तो जान ही निकल जाती मम्मी जी के नीचे.. !!!

रात के साढ़े बारह बजे.. एक जानदार ऑर्गैज़म के बाद.. शीला और संजय बाथरूम में साथ नहाने गए.. नहाते हुए शीला ने फिरसे एकबार संजय को मुख-मैथुन का अलौकिक आनंद दिया.. वह जानती थी की किसी भी मर्द को अगर काबू में करना हो तो मुख-मैथुन से बेहतर ओर कोई दूसरा विकल्प नही है..

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अगर ईमानदारी से सर्वे किया जाए तो कोई कपल ऐसा नही मिलेगा जिसे ओरल सेक्स में मज़ा न आता हो.. मर्द को अपना लंड चुसवाने में.. और औरत को अपनी चुत चटवाने में हमेशा आनंद आता है.. सब के सामने या दोस्तों के बीच.. इस क्रिया को घृणास्पद या गंदा कहने वाले लोग.. बेडरूम की चार दीवारों के बीच बड़े आराम से इसका मज़ा उठाते है.. इतना ही नही.. दुनिया के सारे मर्द यही सोचते है.. की उसके जितनी विकृत हरकतें और कोई नही करता होगा.. उसमें भी जब उसकी बीवी उससे कहें "बाप रे.. क्या कर रहे हो आप? आप को तो कुछ शर्म ही नही है.. एक नंबर के बेशर्म हो.. !!" यह सुनते ही पुरुष का अहंकार पोषित होता है और वो सातवे आसमान पर पहुँच जाता है.. और इसी भ्रामक अहंकार का उपयोग कर औरतें मर्दों से अपने काम निकलवा लेती है.. इंसानों की बात छोड़िए.. जानवर भी तो ऐसा ही करते है.. !!! नर जानवर मादा की योनि की गंध सूंघकर और उसे चाटकर ही उसे संभोग के लिए तैयार करता है.. हाँ, मादा जानवर कभी नर के साथ मुख-मैथुन नही करती.. ये क्रिया केवल मनुष्यों में ही देखी जाती है.. कुदरत ने इस मामले में इंसानों को ज्यादा ही स्वतंत्रता दी है..

शावर लेते हुए जब शीला घुटनों के बल बैठकर अपने दामाद का लंड चूस रही थी तब उसका ध्यान इस बात पर जरा भी नही था की संजय को मज़ा आ रहा है या नही.. वह तो खो चुकी थी अपनी ही मैथुन की अलौकिक दुनिया में.. लंड के लिए उसने अपने मन में जो कुछ भी विकृतियाँ पाल रखी थी वो सब उसने गोवा की इस आलीशान होटल के बाथरूम में ही संतुष्ट करने का मन बना लिया था.. संजय के विकराल लंड को अपने मुख के अंदर बाहर कर रही थी.. उसने अपनी आँखें इसलिए खोली थी ताकि वो दीवार पर लगे आईने में अपनी हरकतें देख सके.. फिर से एक बार पूरे लंड को मुंह से बाहर निकालकर उसने अपनी जीभ से उसे चाट लिया.. एक एक हरकत को आईने में देखकर वो उत्तेजित हो रही थी.. संजय तो शीला के हाथों का एक खिलौना बनकर रह गया था.. वो शीला के स्तनों को बार बार दबाकर.. निप्पलों को खींचकर अपनी सास के स्तनों से खेलने की सालों पुरानी तमन्नाओं को पूरी कर रहा था.. संजय को वो समय याद आ रहा था.. जब जब वो ससुराल आता तब अपनी सास के गदराए जोबन को देखते ही बेचैन हो जाता था.. तब से उसे महसूस होता की इस स्त्री में कुछ ऐसा खास था जो मर्दों को अपनी ओर चुंबक की तरह खींच लेती थी..

जब संजय वैशाली को पहली बार देखने आया था तब से वो अपनी सास के हुस्न का आशिक बन गया था.. जब पहली बार शीला ने झुककर नाश्ते की प्लेट टेबल पर रखी थी और जिस तरह उसके सामने देखा था.. संजय को ऐसा ही लगा था जैसे वो उसके चोदने के लिए आमंत्रित कर रही हो.. वैशाली से कहीं ज्यादा वो शीला के प्यार में पागल था.. शीला के लिए ये कोई नई बात नही थी.. वो अपने दामाद की गंदी नज़रों से काफी समय पहले ही वाकिफ हो चुकी थी.. पहले तो वो ज्यादातर संजय के सामने आती ही नही थी.. ताकि उसकी कामुक नज़रों का सामना न करना पड़ें.. तब से लेकर आज तक.. उनके संबंध कहाँ से कहाँ पहुँच गए!!! शीला के हाथों में अपने दामाद का लंड आ चुका था.. और जिन उन्नत स्तनों को याद करते हुए संजय, वैशाली की चूत का भोसड़ा बना देता था.. वो स्तन भी संजय के हाथों में थे.. आम तौर पर संभोग के दौरान.. पुरुष सक्रिय होते है और स्त्री निष्क्रिय.. पर यहाँ तो सारी सक्रियता का ठेका शीला ने ही ले रखा था.. संजय तो बेचारा बस अपनी सास के आदेशों का पालन ही कर रहा था..

शीला आईने में संजय के लंड को ऐसे देख रही थी जैसी किसी एंटिक पीस को देख रही हो.. बार बार वो संजय के लंड को चूमती.. चाटती.. संजय शीला के इस कामुक स्वरूप को कभी नही जान पाता.. अगर उसे गोवा लेकर नही आता तो..

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शीला खड़ी हो गई और संजय के गले लग गई.. उसके आलिंगन में केवल उत्तेजना नही थी.. पर बेफिक्री से समाज और दुनियादारी के डर से दूर.. ये आखिरी आलिंगन हो रहा था इस भाव से लिपट पड़ी.. अपने दामाद के साथ ये संबंध संयोग से हुआ था.. और इस संबंध को समाज की स्वीकृति मिलना असंभव था.. पर शीला और संजय को एक दूसरे का चस्का लग गया था.. क्या भविष्य होगा इस संबंध का?? घर जाने के बाद दोनों अपने आप को कैसे रोक पाएंगे? वैसे सोचा जाएँ तो.. समाज जिसे स्वीकार नही कर सकता.. ऐसे कितने सारे संबंध हमारे आस पास पनप रहे होंगे.. !!! कीसे पता.. !!!

संजय के लंड की चुभन अपनी चिकनी जांघों पर फ़ील करते हुए शीला उत्तेजित कम और भावुक ज्यादा हो रही थी.. हाफ़िज़ का फोन आ चुका था.. वो वापिस जाने के लिए गाड़ी तैयार कर चुका था.. और दोनों का इंतज़ार कर रहा था.. चेकआउट करने की घड़ी जैसे जैसे नजदीक आती गई.. वैसे वैसे शीला संजय को और जोर से आलिंगन करती रही.. पर आँखें बंद कर देने से तूफान चला तो नही जाता.. !! सिर्फ दिखना बंद होता है

आखिर वो घड़ी आ गई.. दोनों तैयार होकर रीसेप्शन काउन्टर पर पहुँच गए.. शीला जान बूझकर धीरे धीरे तैयार हुई थी ताकि उतना ज्यादा समय संजय के साथ बिताने को मिले.. फिर भी वो क्षण आकर खड़ी हो गई.. संजय पेमेंट और चेकआउट की प्रक्रिया पूर्ण कर रहा था.. वेटर ने उनका सामान उठाकर गाड़ी की डीकी में रख दिया था.. बड़े ही भारी मन के साथ शीला ने गोवा और अपने दामाद के साथ संबंध को अलविदा कहा.. संजय के आने से पहले ही वो गाड़ी में जा बैठी.. हाफ़िज़ ने ए.सी. पहले से ही चला रखा था इसलिए गाड़ी का वातावरण एकदम ठंडा था..

हाफ़िज़: "मैडम, साड़ी में आप बड़ी कातिल लगती हो" बेक-मिरर सेट करके शीला की तरफ देखकर उसने कहा

शीला: "साड़ी के अंदर का सब कुछ तो देख रखा है तुमने.. अब भी मन नही भरा क्या??"

हाफ़िज़: "कसम से शीला.. तू चीज ही ऐसी है.. एक बार चोदकर मन ही नही भरा.. !!"

शीला: "चुप मर हरामी.. अभी तेरा बाप आ जाएगा और सुनेगा तो नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी.. उस दिन वो फ़ोटो वाले से तो मुश्किल से बची थी मैं.. "

हाफ़िज़: "अरे कोई मुसीबत नही होगी यार.. चल मेरे कु एक पप्पी दे" ड्राइवर सीट पर मुड़ते हुए हाफ़िज़ ने विचित्र डिमांड की..

शीला ने गुस्से से कहा "पागल हो गया है क्या?"

हाफ़िज़: "यार शीला.. तू माल ही ऐसी है की अच्छे अच्छे पागल हो जाएँ.. अब यार टाइम जास्ती खोटी मत कर.. उसके आने से पहले एक धमाकेदार पप्पी दे दे.. तो ड्राइविंग में मुझे मज़ा आयें"

शीला: "तू जरा समझ यार.. वो आ जाएगा अभी.. रास्ते में कहीं चांस मिला तो जरूर दूँगी.. ठीक है!!"

हाफ़िज़: "अरे मेरी रानी.. पता नही है पल की.. और बात करे है कल की.. " हाफ़िज़ ने अपनी सीट से उठकर शीला के स्तनों पर हाथ फेर दिया.. संजय के आ जाने के डर से शीला सहम कर बैठी रही.. पर हाफ़िज़ का हाथ उसके उरोजों पर हटाने की उसकी हिम्मत क्यों नही हुई.. क्या पता!! वो कितनी भी कोशिश कर लेती.. पर पुरुष का स्पर्श होते ही अपना कंट्रोल खो बैठती.. उसकी सालों पुरानी बीमारी थी ये.. शीला ने खिड़की से बाहर देखा.. संजय कहीं नजर नही आ रहा था.. अंधेरे का फायदा उठाकर उसने फटाफट अपने ब्लाउस के दो हुक खोल दिए.. और अपने दोनों विशाल स्तनों को बाहर निकालकर हाफ़िज़ के हाथों में थमा दिए..

शीला: "ले.. उसके आने से पहले दबा ले जितना दबाना हो.. उसकी मौजूदगी में अगर ऐसी वैसी बात या हरकत की तो तकलीफ हो जाएगी, मेरे बाप!!"

शीला के मदमस्त बबले मसलते हुए उसकी निप्पलों को दबाते हुए हाफ़िज़ ने कहा "क्या मस्त मम्मे है तेरे शीला मेरी जान.. " उसने दोनों स्तनों को ऐसा मरोड़ा की शीला की चीख निकल गई..

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शीला: "कमीने.. अपनी नजर रखना.. कहीं वो आ न जाएँ.. नहीं तो तेरी गांड फाड़कर रख देगा.. "

हाफ़िज़: "नही आएगा.. मुझे खिड़की से सब नजर आ रहा है.. तू चिंता मत कर, मेरी नजर है.. तू मजे कर और कुछ मत सोच"

शीला फिर से बेबस होकर हाफ़िज़ के मर्दाना हाथों से हो रहे अपने स्तनों के मर्दन का आनंद लेने लगी.. ये कार्यक्रम थोड़ी देर तक चलता रहा और तभी दूर से संजय नजर आया.. दोनों अलग हो गए.. शीला अपनी सीट पर ठीक से बैठ गई और अपने स्तनों को ब्लाउस और ब्रा के अंदर दबाकर डालने लगी.. संजय दरवाजे तक पहुँच गया और शीला एक हुक बंद भी नही कर पाई.. उसने पल्लू से अपने उरोजों को ढँक लिया.. अंदर बैठते ही संजय ने शीला के पल्लू में हाथ डाला.. तब शीला पल्लू के नीचे ही पहले से ही खुले हुक को खोलने का नाटक करती रही और तभी हाफ़िज़ ने गाड़ी को पाँचवे गियर पर लिया.. शीला ने खुद ही खोलकर अपना स्तन संजय के हाथ में रख दिया..

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"पहले से ही खोल रखा था?? क्या बात है मम्मी जी.. "

संजय ने बरमूडा पहन रखा था.. उसकी खुली जांघों पर शीला हाथ फेरते हुए उसके लंड को सहला रही थी

"बेटा.. समय न बिगड़े इसलिए मैं तैयार बैठी थी.. तेरे आते ही.. तेरे पसंदीदा खिलौने से तू खेल सके इसलिए.. !! मुझे पता है तुझे मेरी छातियाँ बहोत पसंद है" इतना कहते ही शीला ने बरमूडा के अंदर हाथ डालकर संजय के मुर्झाएँ लंड को मुठ्ठी में पकड़ लिया.. संजय ने शीला की कमर में हाथ डालकर अपने तरफ खींच लिया.. और दोनों आखिरी रोमांस में व्यस्त हो गए.. शीला की कामुक हरकतें इतनी जंगली हो गई थी.. जैसे इन आखिरी पलों को वो पूरे दिल से उपभोग करना चाहती हो..

जैसे जैसे रास्ता कटता गया और गोवा की ट्रिप अपने अंत की ओर जाने लगी.. शीला अपने हाथों को और तीव्रता से चलाने लगी.. संजय के अंगों के साथ हो रही एक एक छेड़खानी में एक अजीब प्रकार की आतुरता थी.. जिसका मतलब शायद ये भी निकलता था की काश.. !! इस स्वतंत्रता की रात की सुबह जल्दी न हो.. शीला का हाथ चलते ही संजय का लंड चड्डी की साइड से बाहर आकर शीला को उकसाने लगा.. उसके सुपाड़े का स्पर्श होते ही शीला की चूत में जैसे चिनगारी हुई..

"ओह्ह बेटा.. तेरा बम्बू तो फिरसे तैयार हो गया.. " संजय के लंड को मुठ्ठी में दबाते हुए शीला ने कहा

"ओह्ह मम्मीजी.. आप तो गजब हो यार.. !!" संजय इससे ज्यादा कुछ बोल नही पाया.. एक तरफ उसके हाथों में शीला के स्तन थे.. और दूसरी तरफ शीला के हाथों का स्पर्श उसके लंड के टोपे पर इतना आह्लादक और कामुक लग रहा था.. कोई मर्द अपनी उत्तेजना को कैसे कंट्रोल करे!!

हर पल उसके लंड का कद बढ़ता जा रहा था.. शीला के मदमस्त बबले भी जैसे उसके लंड के साथ प्रतियोगिता में शामिल होकर तंग हो रहे थे.. हाफ़िज़ कार चलाते हुए सास-दामाद की कामुक बातों और मादक आवाजों को सुनकर.. अपनी चैन खोलकर लंड बाहर निकालके हिला रहा था.. आगे और पीछे की सीट के बीच एक पतला सा पर्दा था.. जिसके कारण वो पीछे का द्रश्य देख तो नही पा रहा था.. लेकिन उनकी आवाज से पीछे क्या हो रहा था उसकी कल्पना कर वो गाड़ी चलाते चलाते मूठ मार रहा था

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जितनी तेज गति से गाड़ी चल रही थी उतनी ही गति से हाफ़िज़ अपने लंड को हिला रहा था.. शीला के संग बिताई हसीन पलों को याद करते हुए उसे स्खलित होने में ज्यादा वक्त नही लगा.. एक शानदार पिचकारी लगाकर वो ठंडा हो गया.. गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से उसने अपना लंड पोंछ लिया..

सेक्स के अलावा कोई खास घटना हुई नही सफर के दौरान.. तेज गति से भागती हुई गाड़ी सुबह पाँच बजे तक एक सुंदर होटल के प्रांगण में आकर रुक गई.. पूरी रात के ड्राइविंग के बाद उसे थोड़े आराम और एक कडक चाय की जरूरत थी.. शीला और संजय के साथ हाफ़िज़ भी गाड़ी के बाहर निकला.. बाहर काफी अंधेरा था.. शीला और संजय होटल की ओर चलते जा रहे थे और पीछे पीछे हाफ़िज़ शीला के पृष्ठ भाग को छेड़ते हुए चल रहा था.. संजय को पता न चले उस तरह वो बार बार शीला के कूल्हों पर हाथ फेर रहा था.. एक बार तो वो शीला के पीछे इतना करीब आ गया की उसने अपना लंड शीला की गांड पर रगड़ लिया..

शीला को हाफ़िज़ की हरकतें अच्छी तो नही लग रही थी क्योंकी अभी फिलहाल वो स्थिति न थी की शीला को मज़ा आयें.. पूरी रात उसने संजय के साथ अटखेलियाँ करते हुए बिताई थी.. संजय की उंगली ने उसके भोसड़े को ३-४ बार स्खलित कर दिया था.. सफर की थकान भी थी.. और संजय को पता चल जाने का डर भी था.. इसलिए वो हाफ़िज़ के स्पर्श का आनंद ले नही पा रही थी..

होटल के करीब पहुंचते ही हाफ़िज़ शीला से दूर चला गया.. उसकी इस समझदारी को देखकर शीला मन ही मन प्रसन्न हुई.. तीनों ने अदरख वाली कडक चाय का लुत्फ उठाया.. संजय ने सिगरेट जलाई.. दो दम मारते ही उसके पेट में उथल-पुथल होने लगी.. जैसा अक्सर सिगरेट पीने वालों के साथ होता है

संजय: "हाफ़िज़, तुम मेमसाब को लेकर गाड़ी में बैठो.. मुझे टॉइलेट जाना पड़ेगा.. मैं १५-२० मिनट में आता हूँ.. "

हाफ़िज़: 'जी साहब.. चलिए मैडम" हाफ़िज़ आगे आगे चल दिया और शीला उसके पीछे.. दोनों गाड़ी के पास पार्किंग में पहुंचे जहां कोई लाइट न होने की वजह से अब भी काफी अंधेरा था.. गाड़ी के पास पहुंचते ही.. अंधेरे का लाभ उठाकर शीला ने हाफ़िज़ को अपनी ओर खींचकर बाहों में भर लिया और एक जबरदस्त किस देकर कहा "मैंने कहा था न.. की रास्ते में मौका मिलेगा तो मैं कुछ करूंगी.. तो अब बिना समय गँवाएं कर ले पीछे से.. मेरा घाघरा उठाकर डाल दे अपना लोडा.. इससे पहले की कोई आ जाएँ.. " कहते ही शीला ने गाड़ी के बोनेट पर अपने दोनों हाथ टीका दिए और अपने चूतड़ को उठाते हुए हाफ़िज़ का लंड लेने के लिए तैयार हो गई.. फटी आँखों से हाफ़िज़ इस हवस की महारानी को देखता ही रहा.. फिर धीरे से उसने शीला का घाघरा ऊपर किया.. और शीला के नंगे चूतड़ों के प्रातः दर्शन कीये.. देखते ही हाफ़िज़ का लंड एक झटके में खड़ा हो गया..

शीला के कूल्हों में ऐसी बरकत थी की हाफ़िज़ का लंड अब बाहर निकलने के लिए तरसने लगा.. हाफ़िज़ ने तुरंत अपनी चैन खोलकर हथियार बाहर निकाला और हमले की तैयारी की.. लंड के टोपे पर थूक लगाकर उसने शीला के गरम सुराख पर टिकाया.. एक जोर के धक्के के साथ शीला की गुफा उस्ताद को निगल गई.. दोनों कूल्हों पर हथेलियाँ रखकर हाफ़िज़ ने जबरदस्त पमपिंग शुरू कर दिया.. शीला इस प्रत्येक पल को अपनी आखिरी क्षण मानते हुए पूरे मजे लेने लगी.. हाफ़िज़ के दमदार धक्कों से पूरी गाड़ी हिल रही थी.. जैसे वो शीला को नही.. गाड़ी को चोद रहा हो!!


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शीला जब बोनेट पर झुककर हाफ़िज़ से ठुकवा रही थी.. तभी.. गाड़ी की पिछली सीट पर पड़ा उसका मोबाइल बजने लगा.. लेकिन वासना के सागर में डूबी हुई शीला को मोबाइल की रिंग कहाँ सुनाई पड़ती!!! सामने टॉइलेट के कमोड पर बैठकर सिगरेट फूँक रहे संजय को वेन्टीलेशन से हाफ़िज़ और अपनी सास के बीच हो रही चुदाई नजर आ रही थी.. अंधेरा छट रहा था.. और द्रश्य इतना साफ नही था.. पर जुवान हाफ़िज़ अपनी सास को चोद रहा है वह साफ पता चल रहा था..

दस मिनट के अद्वितीय संभोग के बाद शीला के भोसड़े का मुर्गा "कुक-डे-कूक" बोल उठा और वोह झड़ गई.. उसी के साथ हाफ़िज़ के ताकतवर लंड ने भी इस्तीफा घोषित कर दिया.. और गोवा के ट्रिप का अंतिम अध्याय समाप्त हुआ.. शीला ने घाघरा नीचे किया और चुपचाप गाड़ी में बैठ गई..धीरे धीरे उजाला हो रहा था.. शीला तो चाहती थी की इस रात की कभी सुबह न हो.. संजय कार के पास आ पहुंचा.. और हाफ़िज़ बाथरूम की ओर चला गया..

अब १५० किलोमीटर का अंतर बाकी था और इन तीनों को यह बाकी का सफर सज्जनता पूर्वक पूर्ण करना था.. थोड़ी बहोत छेड़खानियों के अलावा कुछ ज्यादा कर पाना मुमकिन भी नही था.. डीकी खोलकर संजय ने अपने बेग से पेंट और शर्ट निकाला और शॉर्ट्स के ऊपर ही कपड़े पहन लिए.. तभी हाफ़िज़ बाथरूम से लौटा.. तुरंत गाड़ी ड्राइव करने का आदेश देकर संजय गाड़ी में बैठ गया..


जैसे जैसे समय बीतता गया.. राह कटती गई.. अपना शहर नजदीक आता गया.. शीला के मन को संकोच और शर्म ने घेर लिया.. वो सोचने लगी.. पिछले दो दिनों में क्या क्या नही हुआ.. !!! ऐसी सारी घटनाएं बड़ी सहजता से हो चुकी थी जिनके बारे में उसने कभी सपने में भी नही सोचा था..!! एक विदेशी से चुदवाया.. गोरी के साथ लेस्बियन सेक्स किया.. अपने दामाद से चुदवाया और गांड भी मरवाई.. और अंत में एक मामूली ड्राइवर से भी अपना भोसड़ा मरवा लिया.. !! शीला का गोरा चेहरा शर्म से लाल हो गया.. सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ते ही जैसी लालिमा नजर आती है वैसी ही कुछ शीला के चेहरे पर भी लिप्त थी..
Hot update.
 

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जैसे जैसे समय बीतता गया.. राह कटती गई.. अपना शहर नजदीक आता गया.. शीला के मन को संकोच और शर्म ने घेर लिया.. वो सोचने लगी.. पिछले दो दिनों में क्या क्या नही हुआ.. !!! ऐसी सारी घटनाएं बड़ी सहजता से हो चुकी थी जिनके बारे में उसने कभी सपने में भी नही सोचा था..!! एक विदेशी से चुदवाया.. गोरी के साथ लेस्बियन सेक्स किया.. अपने दामाद से चुदवाया और गांड भी मरवाई.. और अंत में एक मामूली ड्राइवर से भी अपना भोसड़ा मरवा लिया.. !! शीला का गोरा चेहरा शर्म से लाल हो गया.. सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ती है जैसी लालिमा नजर आती है वैसी ही कुछ शीला के चेहरे पर भी लिप्त थी..

गाड़ी तेजी से चलती हुए शहर में घुसी और कुछ ही मिनटों में शीला के घर के बाहर खड़ी हो गई.. सुबह के साढ़े दस बज रहे थे.. शीला को सब से पहले अनुमौसी ने देखा.. जो छत पर कपड़े सूखा रही थी

अनुमौसी: "आ गई शीला ?? कैसा रहा सफर?"

शीला: "अरे मौसी.. आप कैसी हो? घर पर सब कैसे है? कविता और पीयूष की कोई खबर?? कब लौट रहे है वो लोग?"

अनुमौसी: "हाँ, पीयूष का फोन आया था.. वो लोग आज शाम चार या पाँच बजे तक पहुँचने वाले है.. वो रसिक बेचारा रोज मुझे पूछता है की तू कब लौटनेवाली है?? पर तेरे लौटने का मुझे पता नही था इसलिए क्या जवाब देती!! " शीला और अनुमौसी बातों में व्यस्त थे तब संजय घर के अंदर घुस गया..

शीला: "मौसी, मैं आप को बताना ही भूल गई.. मैं अभी रसिक को फोन करती हूँ.. कल से दूध दे जाएँ.. "

अनुमौसी: "अगर अभी चाय वगैरह के लिए जरूरत हो तो मेरे घर से ले जा.. दामाद जी बेचारे थक गए होंगे.. एक काम करो.. तुम दोनों नहाकर मेरे घर पर ही आ जाओ.. मैं चाय तैयार रखूंगी.. और दोपहर का खाना भी मेरे ही घर खा लेना.. तू भी थकी होगी.. कहाँ खाना बनाने बैठेगी तू..!!"

शीला: "अरे नही नही मौसी.. मुझे तो भूख ही नही है.. संजय कुमार से पूछ लेती हूँ.. उन्हें जो भी खाना होगा, मैं बना दूँगी.. आप बस चाय बनाकर रखिए.. हम अभी आते है.. "

अनुमौसी: "ये कपड़े सूखा दु.. फिर चाय बनाती हूँ.. वैसे भी मुझे ग्यारह बजे चाय पीने की आदत हो गई है.. कविता रोज इस समय मुझे चाय बनाकर देती है और हम दोनों सास-बहु साथ में पीते है.. "

शीला: "ठीक है मौसी.. " शीला घर पहुंची और तुरंत अपनी बेग से सारा सामान अलमारी में रख दिया.. ताकि वैशाली को पता न चलें.. सारे कपड़े बिना इस्तेमाल हुए वापिस आए थे.. क्योंकी शीला ने ज्यादातर संजय का दिलाया टॉप और चड्डी पहनी थी.. और बाकी समय तो वो नंगी ही थी.. संजय ने जो टॉप उसे दिलाया था.. जो हाफ़िज़ के खींचने से फट गया था.. उसे शीला ने सीने से लगा लिया "ईसे तो मैं संभालकर रखूंगी.. गोवा की ट्रिप की याद के लिए" उसने सोचा.. अलमारी के एकदम अंदर वाले कोने में उसने वह टॉप छुपा दिया.. बाकी के कपड़े ठीक से लगाकर उसने अलमारी बंद कर दी..

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संजय नहाकर बाथरूम से निकला "गुड मॉर्निंग, शीला.. !!"

खुद का दामाद जब नाम से पुकारें तब कैसा महसूस होता है !! शीला की नजर नीची हो गई..

शीला: "बेटा.. अब हम गोवा में नही है.. मैं बार बार तुम्हें याद नही दिलाऊँगी.. हमें सब कुछ भूल जाना होगा.. जॉन और उसके साथ वो कौन लड़की थी.. ?? सब कुछ भूल जाना पड़ेगा"

संजय ने पीछे से शीला को बाहों में भरते हुए कहा "ओह्ह मम्मी जी.. आप शायद हाफ़िज़ को भूल जाओगी पर मैं चार्ली को कभी नही भूल पाऊँगा.. कितनी टाइट चूत थी इस गोरी की.. आह्ह.. !!"

शीला: "छोड़ दे मुझे बेटा.. अनुमौसी कभी भी आ सकती है.. अगर हम दोनों को इस स्थिति में देख लेगी तो उन्हे अटैक आ जाएगा.. वो चिमनकाका इस उम्र में रंडवा हो जाएगा.. " कहते हुए शीला ने अपने आप को संजय की पकड़ से मुक्त करने की कोशिश करने लगी.. गोवा के वातावरण में बेहद खुली रहने वाली शीला.. घर पहुँचते ही सहमी सहमी सी रहने लगी थी

अपने दोनों स्तनों को ब्लाउस के ऊपर से दबाते हुए संजय को शीला ने कहा "अब तो तुम्हारी इच्छाएं शांत हो जानी चाहिए संजय बेटा.. पिछले दिनों में तूने कितनी बार इन्हें दबाया.. चूसा है.. काटा है.. अब तो छोड़ दे..!! छातियाँ दर्द करने लगी है मेरी "

अपना लंड शीला की गांड की खाई में रगड़ते हुए संजय ने कहा "मम्मी जी.. दर्द तो मेरा लंड भी कर रहा है.. पिछले दो दिनों में आपने ईसे पूरा निचोड़ जो लिया था.. पर आपका ये भरा भरा जिस्म देखते ही ऐसी इच्छा हो रही है.. की पूरा दिन बस आपके शरीर से खेलता रहूँ"


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शीला: "बेटा.. तेरे इस लाडले को मेरे पिछवाड़े से दूर रख.. वरना मौसी के घर चाय ठंडी हो जाएगी.. और तेरा दर्द और बढ़ जाएगा.. मैं भी फिर ज्यादा देर तक शर्म का चोला पहने नही रह पाऊँगी.. मुझे उकसा मत.. !!"

संजय: "मम्मी जी, वैशाली तो शाम को आने वाली है.. तब तक तो मुझे मजे लूटने दीजिए.. !! फिर तो कभी ऐसा मौका मिलने नही वाला.. !!"

शीला: "पहले मौसी के घर जाकर चाय पीते है.. फिर वापिस आकर तुझे जो मर्जी में आए वो करना" शीला ने हथियार डाल दिए

शीला संजय का हाथ पकड़कर दरवाजे की तरफ खींचकर ले गई.. पर दरवाजा खोलने से पहले शीला ने संजय को बाहों में लेकर चूम लिया.. और उसके लंड को मुठ्ठी में दबा दिया..

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चाय पीने के बाद के कार्यक्रम की तैयारी करते हुए शीला संजय को मौसी के घर ले गई.. चिमनलाल घर पर था नही.. मौसी, शीला और संजय ने साथ में चाय पी.. शीला और मौसी बातें करने लगे.. संजय घर वापिस आकर बिस्तर पर पड़े पड़े शीला का इंतज़ार करने लगा..

बिस्तर पर पड़े पड़े संजय सोच रहा था.. जितना वो शीला को करीब से जानता जा रहा था.. उतना ही उसके पीछे पागल होता जा रहा था.. कैसी गजब की स्त्री है मेरी सास.. !! वैसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में स्त्री हमेशा शरमाती है.. खासकर सेक्स के मामले में.. लेकिन मेरी सास शीला तो एकदम बोल्ड है.. एकदम बिंदास..!! सासु माँ का पूरा व्यक्तित्व जानने के बाद संजय को यकीन हो गया की वो जितनी दिखती थी उतनी शरीफ तो थी नही.. लेकिन फिर भी उसने अपनी सास के किसी लफड़े या अफेर के बारे में कुछ सुना नही था.. संजय मन ही मन जितना इस रहस्यमयी नारी के बारे में सोचता गया.. उतना ही उलझता गया.. हो सकता है की वो इतनी दूर रहता था उस वजह से उसे शीला के व्यभिचार या गुलछर्रों के बारे में कुछ सुना न हो.. वरना इतना तो उसे पक्का यकीन था की मम्मी जी के एक से ज्यादा मर्दों से संबंध होंगे.. कितने मर्दों ने चोदा होगा इस रंडी को.. !!! अपनी सास को रांड शब्द से मन में संबोधित करते ही संजय का लंड ठुमकने लगा.. पेंट के ऊपर से ही उसे सहलाते हुए वो मन में बोला.. "माय डिअर.. थोड़ा धीरज धर.. तेरी पसंद का छेद अभी आता ही होगा.. इतना उतावला मत बन.. जो मज़ा इंतज़ार में है वो मिलन में कहाँ.. !!"

कब उसके पेंट की चैन खुल गई और कब उसका उस्ताद बाहर निकल कर शीला की चूत ढूँढने लगा.. इसका संजय को पता ही नही लगा.. मन में शीला के विचार आते ही लंड बेकाबू हो जाता था.. संजय के पूरे जीवन में ऐसा कभी नही हुआ था की किसी स्त्री या लड़की का विचार करने से ही लंड खड़ा हो जाएँ.. पर उसकी सास ऐसी जबरदस्त थी की बिना चूत में लंड दलवाएं किसी भी मर्द का पानी निकाल दे.. वाह मम्मी जी..

"बेटा संजय.. बिना दरवाजा लॉक कीये ही अंदर आ गया?? कोई घुस गया होता तो.. और तुझे इस तरह मेरे बिस्तर पर नंगा पड़ा हुआ देख लेता तो?? शीला ने थोड़े गुस्से से कहा

"वो सब बातें बाद में.. आप पहले नजदीक आइए.. देखिए तो सही.. ये कैसे तैयार होकर बैठा है आपके इंतज़ार में" संजय ने अपना सख्त लंड दिखाते हुए कहा

शीला: "वो तैयार है तो मैँ भी तैयार हूँ मेरे राजा.. !!" संजय के लंड को सहलाते हुए शीला उसकी छाती पर अपने स्तन दबाकर लेट गई.. शीला के ब्लाउस की टाइट कटोरी में बंद बड़े बड़े स्तन संजय की छाती पर दबाव बना रहे थे.. दो स्तनों के बीच की गहरी खाई देखकर संजय बेताब हो गया.. उसका हाथ अपनी मनपसंद जगह पर पहुँच गया और शीला के पुष्ट पयोधरों को मसलते हुए शीला के कामुक होंठों को चूसने लगा.. शीला ने अपनी मुठ्ठी में संजय का लंड इतना टाइट पकड़कर रखा था की संजय की उत्तेजना दोगुनी हो गई..

सिसकियाँ भरते हुए संजय ने शीला के घाघरे के अंदर हाथ डाला.. "आह्ह संजु बेटा.. " अपनी जांघ पर मर्दाना हाथ फिरते ही शीला के बदन में वासना का भूचाल सा मच गया.. संजय का हाथ शीला की संगेमरमरी गदराई जांघों पर होते हुए ऊपर की तरफ जाने लगा.. सासुमाँ के गोरे घुटनों को वो दो घड़ी देखता ही रहा.. कप में रखे हुए वेनिला आइसक्रीम के स्कूप जैसे गोरे घुटने.. और उससे भी ज्यादा कोमल और नाजुक.. देखते ही संजय का लंड फुदकने लगा..

संजय छलांग लगाकर खड़ा हो गया.. बेड पर जगह होते ही गोल तकिया सटाकर शीला दीवार पर अपनी कमर टेककर बैठ गई.. संजय ने शीला का घाघरा उठाकर उसकी चूत के दर्शन कीये.. घुटनों से पैरों को मोड़ते हुए शीला ने पैर चौड़े कीये.. संजय शीला के घुटनों को चाटते हुए उसकी जांघों की ओर बढ़ने लगा था.. शीला ने आँखें बंद कर ली..

शीला: "आह्ह संजु बेटा.. जहां चाटने की जरूरत है वहाँ चाट.. ये क्या घुटनों और जांघों पर लगा हुआ है तू, इतनी मस्त चूत को छोड़कर!!!"

संजय: 'मम्मी जी.. आपका तो पूरा जिस्म ही चाटने लायक है.. मैं तो आपकी गांड भी चाट सकता हूँ.. आह्ह"

जैसे जैसे संजय का हाथ शीला की मुलायम चूत पर फिरता गया वैसे वैसे उसकी चूत से सावन-भादों की तरह पानी बहने लगा..

"अपनी पेंट उतार दे, संजु" साड़ी के पल्लू को हटाकर अपने ब्लाउस के हुक खोलते हुए शीला ने कहा "ऐसे समय पर कपड़ों पर बहोत गुस्सा आता है.. नीचे आग लगी हो तब ये कपड़े उतारना.. मेरा तो दिमाग तप जाता है"

संजय ने तुरंत उठकर अपनी पेंट और अन्डरवेर उतार फेंकी और मादरजात नंगे होकर.. शीला के पेट पर सवार होते हुए अपना लंड बिल्कुल उसके मुंह के सामने धर दिया.. एफील टावर की तरह नजर आ रहे उस विकराल कडक लंड को देखते ही शीला का मुंह अपने आप खुल गया.. जिससे संजय को मुख-मैथुन की शुरुआत करने में काफी आसानी हो गई.. वो थोड़ा सा आगे खिसका और अपना लंड शीला के होंठों तक ले गया.. दो कदम तुम चलो दो कदम हम चले.. उस हिसाब से शीला ने भी अपना मुंह आगे किया.. लंड और शीला के मुख का मिलन हो गया.. शीला कुल्फी की तरह संजय का लंड चूसने लगी.. और संजय ने शीला के सुंदर स्तनों को ब्रा से आजादी दिलाने का संग्राम शुरू कर दिया..

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दोनों उरोजों को खोलकर उन्हें पागलों की तरह मसलने लगा संजय.. स्तन मर्दन और मुख मैथुन.. दोनों क्रियाओं के मजे साथ लूट रहे थे सास और दामाद.. संजय के कूल्हों को नाखूनों से कुरेदते हुए उसका लंड बड़ी ही मस्ती से चूस रही थी शीला.. उसके हाव भाव से यह स्पष्ट था की उसे बहोत मज़ा आ रहा था.. बीच बीच में वो संजय के अंडकोशों को भी बड़े प्यार से पुचकार लेती.. और एक बार तो उसने दोनों आँड़ों को अपने मुंह में भर लिया..

शीला संजय का लंड चूसने में व्यस्त थी तभी उसके मोबाइल की रिंग बजी.. रंग में भंग हो गया.. मुंह बिगाड़कर उसने लंड मुंह से निकाला और बोली "संजु बेटा.. वो मोबाइल मुझे देना जरा.. !!"

लंड लटकाते हुए संजय खड़ा हुआ और कोने के टेबल पर पड़ा मोबाइल लेने गया.. शीला ने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए दो उँगलियाँ अंदर डाल दी...

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संजय स्क्रीन पर कॉलर का नाम देखकर चोंक उठा.. उसने फोन शीला के हाथ में थमा दिया.. शीला भी स्क्रीन पर दिख रहा नाम देखकर थोड़ा चोंक गई.. लेकिन फिर स्वस्थ होकर उसने फोन रिसीव किया.. फोन उठाते वक्त उसने अपने होंठ पर उंगली रखकर संजय को चुप रहने का इशारा भी किया..

"हैलो.. !!!"

एक हाथ से संजय का लंड हिलाते हुए दूसरे हाथ में फोन पकड़कर शीला ने बात करना शुरू किया

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चकाचक तैयार होकर जैसे ही कविता ने बस में एंट्री ली.. सब का एक साथ तपोभंग हो गया.. पूरी बस में इंपोर्टेड परफ्यूम की महक फैल गई.. कविता जब बस में घुसी तब शेर-शायरी का दौर चल रहा था.. किसी ने अभी अभी कोई शायरी कही थी.. शायरी की दाद देते हुए सब "वाह वाह" कर ही रहे थे के तब कविता ने प्रवेश किया था.. सब की नजर कविता के उछलते हुए स्तनों पर चिपक गई थी.. कविता को ये पता नही चला की लोग "वाह-वाह" शायरी पर बोल रहे थे या उसके उत्तेजक स्तनों को देखकर.. !!

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"गुड मॉर्निंग एवरीबड़ी.. " कोयल जैसी आवाज में कविता ने सबका अभिवादन किया.. पीयूष पहले से ही विंडो सीट पर बैठा हुआ था.. हौले से उसके बगल में बैठते हुए इस बात का ध्यान रखा की पीयूष का हल्का सा भी स्पर्श उसे न हो.. परोक्ष तरीके से उसने पीयूष के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी हुई थी.. वैसे कविता और पीयूष की जोड़ी देखने में बिल्कुल परफेक्ट थी.. मामूली से मन-मुटाव के कारण दोनों एक दूसरे से बात नही कर रहे थे.. ऊपर से मौसम के आने से उनके रिश्तों में और तनाव आ गया था.. पीयूष मौसम की जवानी का दीवाना हो चुका था.. उसे मौसम के अलावा ओर कोई नजर नही आता था.. इस बात को तो वैशाली ने भी नोटिस किया था और उसे भी बुरा लग रहा था.. पर वो कर भी क्या सकती थी??

बस चल पड़ी और सब आनंद से चिल्ला उठे.. सब से आगे की सीट पर रेणुका बैठी हुई थी.. बार बार वो मुड़कर पीयूष की तरफ देख लेती थी.. कल रात टॉइलेट में पीयूष ने उसे सबसे बढ़िया बर्थडे गिफ्ट जो दी थी.. !! पीयूष का वो स्पर्श.. और जिस तरह उसने झुककर चूत चाटी थी.. आह्ह.. उसके सामने राजेश की गिफ्ट का कोई मोल नही था.. घर पहुंचकर वो कोई ऐसा प्लान बनाना चाहती थी जिससे वो बिना किसी टेंशन के पीयूष से चुदवा सके.. बहोत ज्यादा बार पीयूष के सामने देखते रहने में खतरा था इसलिए रेणुका संभल गई.. पर पता नही क्यों.. वो अब कविता से नजरें नही मिला पा रही थी..

वैशाली, मौसम और फाल्गुनी.. सब से आखिरी सीट पर बैठी हुई थी.. और बड़े इत्मीनान से बातें कर रही थी.. पिछली रात के कार्यक्रम के बाद तीनों के बीच के सभी परदे हट चुके थे.. जब जिस्म ही नंगे हो चुके थे फिर शब्दों में क्या परहेज करना.. !!

वैशाली: "देख देख फाल्गुनी.. तेरा पिंटू आया.. आज साइट-सीइंग के वक्त मौका मिले तो तू जाकर प्रपोज कर दे.. ऐसा चांस फिर नही मिलेगा !!"

मौसम ने थोड़ा सोचकर कहा "हाँ फाल्गुनी.. अब तो तेरा सेक्स का डर भी चला गया है.. है ना.. !!"

तीनों लड़कियां एकदम धीमी आवाज में बातें कर रही थी.. मौसम सोच में इसलिए पड़ गई क्योंकि पिंटू उसकी बहन कविता का पुराना आशिक था.. फिर उसने सोचा की वो बातें अब पुरानी हो चुकी थी.. इसलिए फाल्गुनी प्रपोज करें भी तो कुछ गलत नही था..

वैशाली: "पिंटू कितना हेंडसम लग रहा है यार.. ब्लू कलर के टीशर्ट में जच रहा है.. मेरे मन को भी भा गया तेरा पिंटू.. अगर मुझे मौका मिले तो मैं डेट पर लेकर जाऊँ पिंटू को.. "

मौसम: "इस बस में बैठे कितने मर्द तुझे पसंद है वैशाली?? राजेश सर तो पसंद है ही.. वो तो सबको पता है.. अब पिंटू पर डोरे डाल रही है.. फिर कल पीयूष जीजू पर नियत बिगाड़ेगी.. सब मर्दों के साथ जो फ्लर्ट करे उसे क्या कहते है.. पता है ना तुझे??"

मौसम की कमर पर चिमटी काटते हुए वैशाली ने कहा "पता है मुझे.. ज्यादा ज्ञान मत दे मुझे.. मैं सोच रही थी.. अभी वक्त है हमारे पास.. फाल्गुनी से उसके किस्से सुनते है.. चल फाल्गुनी.. शुरू हो जा.. और बता की प्रिंसिपल ने कैसे चोदा था तुझे.. पहली बार करवाया तब कैसा महसूस हुआ था.. पल्लवी मैडम को सर की गोद में बैठी देखा उसके बाद क्या क्या हुआ.. सब कुछ डीटेल में बता.. हमें जानना है.. है ना मौसम ??"

"हाँ यार.. जल्दी बता फाल्गुनी.. " मौसम को वैसे भी फाल्गुनी का झूठ खटक रहा था..

फाल्गुनी: "उस दिन शनिवार था.. दोपहर को कॉलेज छूटने के बाद मैं जब लेडिज स्टाफ रूम में गई तब पल्लवी मैडम वहाँ अकेले बैठी थी.. मुझे अंदर बुलाकर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.... "

बस धीरे धीरे माउंट आबू की ढलानों पर पानी की धारा की तरह आगे बढ़ रही थी.. खिड़की से नजर आ रहा नजारा अद्भुत था.. खिड़की से आती हवा से लहराती हुई अपनी बालों की लट को ठीक करते हुए फाल्गुनी ने बात आगे बढ़ाई

"मुझे बहोत डर लग रहा था.. पल्लवी मैडम मेरे पास कुर्सी पर बैठ गई और बोली 'फाल्गुनी, दो दिनों पहले तूने माथुर सर की चेम्बर में क्या देखा था?' मैंने कहा.. कुछ नही मैडम.. !! मुझे बहोत शर्म आ रही थी.. और संकोच भी हो रहा था.. उम्र में बड़ी और सन्माननीय मैडम के सामने मैं क्या बोलती.. उन्होंने कहा 'फाल्गुनी, मुझे पता है की तूने सब देख लिया है.. पर स्थिति ही कुछ ऐसी हुई थी.. हमें पता नही था की उस वक्त तू या कोई अंदर आ सकता था.. माथुर सर के चेम्बर में हाफ-डोर है जो लॉक हो नही सकता.. और मेइन डोर को हम लॉक कर नहीं सकते.. इसलिए तूने हमें देख लिया.. असल में फाल्गुनी, मिस्टर माथुर बहोत अच्छे इंसान है.. मुझे नौकरी भी उन्होंने ही दिलाई है.. अब जब तूने सबकुछ देख ही लिया है तो बेकार में लिपापोती करने की कोई जरूरत नही है.. तू कोई छोटी बच्ची तो है नही.. जो इतना न समझ पाएं की एक मर्द की गोद में बैठकर अपनी ब्रेस्ट दबवाने का अर्थ क्या होता है' कहते हुए मैडम ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ब्रेस्ट पर रख दिया.. यार वैशाली.. उस वक्त मेरी जो हालत हुई थी.. क्या बताऊँ.. !! मेरा हाथ उनके स्तन पर दबाते हुए पल्लवी मैडम बोली 'फाल्गुनी, प्लीज तू किसी को कुछ भी मत बतायाना.. मेरे और माथुर सर के बीच अफेर चल रहा है.. मैं अपने पति से जिस्मानी तौर पर बिल्कुल खुश नहीं हूँ.. इसलिए मेरे और सर के बीच संबंध बने.. इस शरीर की जरूरतों के सामने मैं लाचार हूँ.. तुझे भी यहाँ अकेले देखकर मेरी भावनाएं भड़क रही है'" बोलते बोलते फाल्गुनी का गला सुख गया

वैशाली और मौसम, दोनों फाल्गुनी की इस कहानी बुनने की कला को देख रहे थे.. मौसम सोच रही थी.. ये कमीनी फाल्गुनी अगर बॉलीवुड चली जाएँ तो टॉप की स्क्रिप्ट-राइटर बन सकती है.. जो घटना हुई ही नही है.. उसका कितना गजब और बारीक वर्णन कर रही है.. !!!

फाल्गुनी ने बात आगे बढ़ाई "मौसम, पिछली रात हम सब ने जो किया था वैसे ही पल्लवी मैडम ने उसके स्तन मेरे हाथों पर जबरदस्ती रगड़ना शुरू कर दिया.. जीवन में पहली बार मेरे साथ कोई ऐसा कर रहा था.. मैं बहोत डर गई थी.. " थोड़ा सा अटक कर फाल्गुनी ने मौसम की ओर देखा और बोली "तुझे पता है मौसम.. पल्लवी मैडम तेरे बारे में भी पूछ रही थी.. पर मैंने अब तक कोई जवाब नही दिया है" फाल्गुनी ने काल्पनी बम फोड़ते हुए कहा.. मौसम बखूबी जानती थी की ना तो पल्लवी मैडम और फाल्गुनी के बीच कुछ हुआ है.. और ना ही माथुर सर के साथ.. !! फाल्गुनी ने तो मेरे पापा के साथ सेक्स किया है और मुझे उल्लू बना रही है..

फिर भी मौसम ने चौंकने का अभिनय करते हुए कहा "क्या.. ??? क्या बात कर रही है? मतलब.. पल्लवी मैडम मेरा भी प्रोग्राम करवाना चाहती थी माथुर सर के साथ.. !!??"

फाल्गुनी: "अरे हाँ यार.. माथुर सर कह रहे थे की तेरे साथ जो लड़की घूमती है वो एकदम मस्त कोरा माल है.. एक बार मिल जाएँ तो मज़ा आ जाएँ" फाल्गुनी ने झूठ पर झूठ के तीर छोड़ना जारी रखा

वैशाली: "वो सब छोड़.. ये बता की पल्लवी मैडम ने उस दिन तेरे साथ क्या क्या किया??"

फाल्गुनी: "उस दिन तो उन्होंने ज्यादा कुछ किया नही.. पर हाँ.. वो मुझे लिपकिस करने की जिद करने लगी.. मैंने बहोत म अन्य किया पर वो मानी ही नही.. आखिर मुझे उनको किस करने देना पड़ा.. मुझे अच्छा तो बिल्कुल नही लगा मैडम से किस करना"

वैशाली ने उंगली करते हुए कहा "मैडम के साथ अच्छा नही लगा.. तो माथुर सर के साथ किस करने में मज़ा आया, ये कहना चाहती है?"

"नहीं यार.. क्या तू भी.. मुझे तो इतना डर लग रहा था की बात ही मत पूछो.. इनकार करूँ तो रिज़ल्ट खराब होने का डर और दूसरी तरफ.. पल्लवी मैडम और माथुर सर के बीच सेंडविच हो जाने का डर.. !!"

मौसम को अब इस झूठी कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नही थी.. वो बस में बैठे बाकी पेसेन्जर को देखने लगी.. जीजू और कविता दीदी चुपचाप बैठे थे.. उसे एक पल के लिए अपनी दीदी के लिए बुरा लग रहा था.. फिर उसने सोचा की पहल तो जीजू ने की थी.. उसमें उसकी क्या गलती?

इंसान अपने बुरे कर्म को छुपाने के लिए जितना दिमाग इस्तेमाल करता है उससे अगर आधा दिमाग भी अपने काम में लगाएं तो ऐसा कोई कार्य नही है जो नही हो सकता.. कोई कर्म अच्छा या बुरा नही होता.. अच्छा या बुरा तो उसका परिणाम होता है.. खराब परिणाम की अपेक्षा होने के बावजूद जब इंसान उसी कर्म में प्रवृत्त रहता है तब वहीं से उसकी अधोगति का मार्ग शुरू होता है "जानामी धर्मं नयमे प्रवृत्ति.. जानामी अधर्मंम् नयमे निवृत्ति" अर्थात "मुझे धर्म का ज्ञान है, लेकिन मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे अधर्म का भी ज्ञान है, लेकिन मैं अधर्म को छोड़ना नहीं चाहता" अपने अधर्मी कर्म का टोकरा दूसरे के सर पर दे मारना.. इंसान की पुरानी फितरत है..

मौसम ने पिंटू की ओर देखा.. वो अकेला सीट पर बैठे बैठे कुछ पढ़ रहा था.. दुनिया से अलिप्त.. लेकिन मौसम को कहाँ पता था की कविता के अत्यंत आकर्षक रूप को भोग न पाने के दुख को छुपाने के लिए वो किताब में मुंह छुपाकर अपने दुख को भुलाने की कोशिश कर रहा था

मौसम सोचने लगी.. क्या दीदी और पिंटू के बीच अब भी कुछ चल रहा होगा?? वैसे तो काफी समय हो गया था पर फिर भी कुछ कह नही सकते..मौसम के विचार तब थम गए जब बस एक भव्य मंदिर के पास आकर रुकी.. सब नीचे उतरे.. वैशाली और फाल्गुनी के चेहरे उत्तेजना से लाल थे.. क्योंकि पिछले आधे घंटे से उनके बीच फाल्गुनी की काल्पनीक कहानी के बारे में बातें हो रही थी.. दोनों का मानना था की मौसम को इस बारे में कुछ पता नही इसीलिए वह दोनों इस मन-घडन्त कहानी की बातें बड़े चाव से कर रहे थे.. लेकिन मौसम तो सब कुछ जान चुकी थी..

सब ने मंदिर में दर्शन कीये और बस में बैठ गए.. और बस चल दी.. साढ़े बारह का समय हो रहा था.. और तभी अपने पल्लू को ठीक करते हुए रेणुका ने खड़े होकर ये अनाउन्स किया "इसके साथ ही हमारी ट्रिप खतम हुई.. मुझे आशा है की आप सबको बहोत मज़ा आया होगा.. अब बढ़िया सा लंच लेकर हम वापिस लौटने का सफर शुरू करेंगे"

ड्राइवर ने बस को एक बढ़िया होटल के बाहर खड़ा कर दिया.. सब ने मजे से खाना खाया..और वापिस बस में आकर बैठ गए.. बस उनके शहर की ओर चल पड़ी

जैसे जैसे घर नजदीक आ रहा था कविता की उदासी बढ़ती जा रही थी.. क्यों की उसका और पीयूष का टयूनिंग माउंट आबू आने के बाद सुधारने के बजाए और खराब हो गया था..

बस में फिर से मज़ाक मस्ती का दौर शुरू हो गया.. वहीं अंताक्षरी.. नॉन-वेज जोक्स.. और छेड़छाड़ का सिलसिला चल पड़ा.. बातों ही बातों में कब उनकी बस ऑफिस के बाहर आकर कब खड़ी हो गई पता ही नही चला.. शाम के साढ़े सात बज गए पहुंचते पहुंचते.. सब थक चुके थे और घर जाकर खाना बनाने की इच्छा नही थी इसलिए पीयूष, कविता, वैशाली, मौसम और फाल्गुनी ने एक रेस्टोरेंट में डिनर करने का फैसला लिया..

माउंट आबू की इस ट्रिप में पीयूष और मौसम काफी करीब आ गए थे.. ट्रिप से पहले नादान मौसम बड़ी ही निर्दोषता से अपने जीजू को गला लगाती.. जो कहना हो बिंदास कह देती.. वही मौसम ट्रिप खतम होने के बाद जैसे एकदम शांत और परिपक्व हो गई थी.. वो अब पीयूष से ज्यादा बात नही कर रही थी.. पर पीयूष दिननर करते वक्त मौसम के जवान जिस्म को देखकर ये सोच रहा था की घर पहुँचने से पहले एकाध बार मौसम का स्पर्श मिल जाएँ तो मज़ा आ जाएँ.. तो दूसरे तरफ मौसम अपनी जवानी को ऐसे सिकुड़े हुए बैठी थी की स्पर्श तो दूर.. जिस्म का कोई खास हिस्सा दिखाई भी नही दे रहा था..

खाना खाकर उठाते वक्त पीयूष और मौसम की आँखें चार हुई.. मौसम की आँखों से एक अनकहा दर्द छलक पड़ा.. दोनों ने एक दूसरे को एक उदास स्माइल दी.. और घर की तरफ चल पड़े..

घर पहुंचते पहुंचते रात के साढ़े दस बज गए..

वैशाली: "ओके.. कल मिलते है कविता.. सब को गुड नाइट.. गुड नाइट पीयूष.. जवाब तो दे.. कम से कम!!" मौसम के सामने देख रहे पीयूष को गुस्से से कहा

पीयूष: "ओह.. हाँ हाँ.. गुड नाइट वैशाली!!"

वैशाली अपने घर के दरवाजे पर पहुंची और डोरबेल बजाई.. बेचारी मम्मी.. सो चुकी होगी.. थोड़ा जल्दी आ जाते तो अच्छा रहता.. मम्मी की नींद खराब न होती..

"आ रही हूँ.. !!" दरवाजे के पीछे से शीला की बुलंद आवाज सुनाई दी.. वैशाली को राहत हुई.. अब ज्यादा देर बाहर खड़ा रहना नही पड़ेगा.. वो बहोत थक चुकी थी और जल्द से जल्द सो जाना चाहती थी..

शीला ने दरवाजा खोला "आ गई बेटा.. !! " खुश होकर उसने वैशाली को गले लगा लिया.. दोनों घर के अंदर गए और तभी अपनी आँखें मलते हुए संजय बाहर निकला.. उसके आते ही पूरे ड्रॉइंग रूम में शराब की बदबू फैल गई..

संजय: "ओह वैशाली.. तुम आ गई? थोड़ा लेट हो गया तुम्हें आते आते "

संजय की बात को अनसुना कर वैशाली सीधे बेडरूम में चली गई.. शीला के मेइन बेडरूम के बगल में एक दूसरा बेडरूम था जहां वैशाली ने पहुंचकर अपने आप को बिस्तर पर फेंका.. शीला जब उसके कमरे में गई तब वैशाली को बिस्तर पर पैर फैलाएं लेटी हुए देखकर सोचने लगी "ये करती भी नही है और करने देती भी नही है"


अब वैशाली को कहाँ पता था की उसके आगमन से मम्मी और संजय के रंग में कैसा भंग हो गया था.. !! मन में क्रोध दबाकर बड़े ही प्यार से शीला ने वैशाली से कहा "बेटा.. तुझे अपने पति के कमरे में जाना चाहिए.. इतने दिनों बाद मिल रही हो.. पर तेरे चेहरे पर कोई खुशी ही नजर नही आ रही संजय को देखने की.. !! ऐसा कैसे चलेगा और कब तक चलेगा?? इतना भी क्या रूठना.. !! ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन अलग होने की नोबत आ जाएगी.. याद रखना.. !!"
great update.
 

vakharia

Supreme
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पीयूष और कच्ची कली मौसम के बीच धीरे धीरे बहुत कुछ हो रहा है वही संजय अपनी सास शीला को घुमाने गोवा ले जा रहा है लगता है शीला गोवा में संजय से जरूर चुदने वाली है
Thanks bhai💖❤️💖
 

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
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अब वैशाली को कहाँ पता था की उसके आगमन से मम्मी और संजय के रंग में कैसा भंग हो गया था.. !!
मन में क्रोध दबाकर बड़े ही प्यार से शीला ने वैशाली से कहा "बेटा.. तुझे अपने पति के कमरे में जाना चाहिए.. इतने दिनों बाद मिल रही हो.. पर तेरे चेहरे पर कोई खुशी ही नजर नही आ रही संजय को देखने की.. !! ऐसा कैसे चलेगा और कब तक चलेगा?? इतना भी क्या रूठना.. !! ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन अलग होने की नोबत आ जाएगी.. याद रखना.. !!"


शीला ऐसे प्रकार की स्त्री थी जो अपनी इच्छाओं और जज़्बातों को दबाने में नही मानती थी.. कैसे भी वो अपनी पसंद की चीज प्राप्त कर ही लेती थी.. वैशाली ने गलत समय पर एंट्री कर, उसके होने वाले ऑर्गैज़म की माँ चोद दी थी.. इसलिए वो व्याकुल हो गई थी.. वो सोच रही थी.. की अगर वैशाली सिर्फ ५ मिनट देर से आती तो कितना अच्छा होता.. उसके भोसड़े का पानी बस झड़ने ही वाला था.. संजय भी फूल स्पीड से चोद रहा था और बस आखिरी तीन चार धक्के लगाने की ही देर थी.. दोनों अपनी मंजिल पर पहुँचने की तैयारी में थे तभी.. कमबख्त डोरबेल बजी.. और सारे मूड की माँ-बहन एक हो गई..

शीला का दिमाग भन्ना रहा था.. वैशाली को क्या खबर.. यहाँ मेरी चूत में कैसी खुजली मची हुई है!! वैशाली के बगल में लेटी शीला ने अपनी चूत को शांत करने के लिए दोनों जांघों को आपस में दबा दिया.. अपने अधूरे स्खलन को भुलाने के लिए उसने वैशाली से बात छेड़ी थी..

पर वैशाली ने शीला की बात को आधे में ही काटकर कहा "मम्मी, मुझे संजय के साथ बात करने में भी इन्टरेस्ट नही.. साथ सोने की बात तो बहोत दूर की है"

शीला: "ऐसा कब तक चलेगा वैशाली? लगता है अब मुझे ही बात करके कोई रास्ता निकालना पड़ेगा.. तेरा जीवन मैं इस तरह बर्बाद होते नही देख सकती.. तू यही बेड पर लेटी रहना.. मैं संजय कुमार को जाकर समझाती हूँ.. जब तक मैं ना कहूँ तुम वहाँ मत आना.. बेकार में बात का बतंगड़ बना देगी तू.. " कहते ही शीला बेड से उठी और वैशाली के बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया

संजय के कमरे का दरवाजा खोलते ही शीला ने सुना "आ जाओ अंदर वैशाली.. " अंधेरे में अपने लंड को हिला रहे संजय को लगा की कमरे में वैशाली आई है.. इसलिए उसी नग्न अवस्था में उसने निःसंकोच टेबल-लैम्प की स्विच ऑन कर दी.. सामने अपनी सासु माँ को देखकर वो स्तब्ध हो गया.. लैम्प के उजाले में संजय का गोरा कडक लंड देखकर शीला मुस्कुराई और उसने दरवाजा अंदर से लॉक कर दिया..

संजय के बिल्कुल करीब आकर एकदम दबी हुई आवाज में बोली "बड़ी मुश्किल से वैशाली को उल्लू बनाकर आई हूँ.. मैं तो ये सोच रही थी की वैशाली तेरे साथ सोने आएगी और मुझे उस कमरे में बाकी की रात उंगली डालकर ही बितानी पड़ेगी.. पर वो कहावत है ना "दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम"

संजय: "हाँ मम्मी जी.. और मेरे लंड पर लिखा है बस आपका ही नाम.. " कहकर संजय ने शीला को हाथ से खींचकर अपने ऊपर ले लिया.. शीला ऐसे खींची चली आई जैसे परवाना शमा को देखकर खींचा चला आता है.. शीला का पूरा गदराया शरीर संजय के ऊपर छा गया.. अब ना किसी औपचारिकता की जरूरत थी और ना ही किसी फॉरप्ले की.. वैशाली ने जब डोरबेल बजाई तब उनका कार्यक्रम जहां पर रुका था वहीं से दोनों ने शुरुआत की..

संजय का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसे अपनी धड़कती भोस के सुराख पर घिसते हुए.. लंड की चमड़ी को पीछे सरकाकर सुपाड़े को उजागर कर दिया.. और अपनी चिपचिपी गीली भोस पर रगड़ना शुरू कर दिया.. और धीमे से संजय के कान में बोली "आह्ह बेटा.. जरा जल्दी करना.. इससे पहले की कोई नई मुसीबत आ खड़ी हो.. जल्दी जल्दी मुझे झड़वा दे और तू भी पिचकारी मारकर खतम कर.. फिर मैं चुपचाप वैशाली के कमरे में चली जाऊँगी.. उफ्फ़फफ संजु.. अब रहा नही जाता.. अब चोद दे मुझे.. डाल दे अंदर" शीला उतावली हो रही थी..

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शीला के पपीते जैसे बड़े स्तनों को मसलते हुए उत्तेजित संजय ने कहा "ओर कोई तो यहाँ आने नही वाला.. अगर वैशाली आ गई तो दिक्कत ही क्या है.. माँ और बेटी दोनों को एक साथ चोद दूंगा.. ऐसा मौका कब मिलेगा.. !! चाहो तो जाकर वैशाली को बुला लो.. फिर दोनों को साथ में रगड़ता हूँ"

शीला पहले से ही जबरदस्त उत्तेजित थी.. ऊपर से संजय ने माँ-बेटी दोनों को साथ में चोदने की बात करके उसे ओर गरम कर दिया था.. संजय के चेहरे पर अपने विशाल बबले झुलाते हुए वो बोली "ओह्ह संजु.. वो सब बाद में.. पहले मुझे ठंडा कर.. काश.. वैशाली थोड़ी देर बाद आई होती तो सब कुछ आराम से हो जाता.. और उसकी मौजूदगी में मुझे तुम्हारे कमरे में आने का जोखिम उठाना नही पड़ता.. !!"

संजय: "अरे मेरी रानी.. कर दूंगा तुझे ठंडा.. पर पहले मेरे लंड को थोड़ा सा चूस तो लो.. !! फिर न जाने ऐसा मौका कब मिलेगा.. ??" शीला के स्तनों को दबाते हुए संजय ने कहा और शीला ने तुरंत ही उस विनती का स्वीकार करते हुए संजय का लंड एक ही पल में लपक कर मुंह में ले लिया..

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"आह्ह आह्ह मम्मी जी.. ओह्ह शीला.. जबरदस्त.. ओह्ह.. नही.. निकल जाएगा मेरा.. यार प्लीज" शीला तब तक चूसती रही जब तक की संजय की हालत खराब न हो गई और वो झड़ने की कगार पर नही आ गया.. साथ ही साथ उसने यह ध्यान भी रखा की संजय उसके मुंह में ही न झड़ जाएँ.. वरना उसके भोसड़े का क्या होता?? जिस डाली पर बैठी हो उसी डाली को काट दे ऐसी मूर्ख तो थी नही शीला.. !!

"बस्स बस्स मम्मी जी.. मज़ा आ गया.. !!" संजय आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शीला उसके बगल में बेड पर टांगें चौड़ी करके बैठ गई और बोली

"चल आजा बेटा.. शुरू हो जा.. आज तो निर्दय होकर ऐसी चुदाई कर की मेरी चूत फट जाएँ.. और हाँ.. डालने से पहले थोड़ी देर चाट लेना.. मस्त चाटता है रे तू.. तेरे जाने के बाद बहोत याद आएगी इस चटाई की"

अपनी बेटी बगल के कमरे में सो रही थी और शीला बिंदास अपने दामाद से चुत चटवा रही थी.. जबरदस्त डेरिंगबाज औरत थी शीला.. !! जैसे जैसे संजय उसकी चूत को चाटता गया वैसे वैसे शीला का सुराख ओर चिपचिपा शहद छोड़ता गया.. जब शीला एकदम गरम हो गई तब उसने संजय को इशारा करके अपने ऊपर चढ़ने का न्योता दिया.. संजय भी रिधम में आकर.. अपनी पत्नी की मौजूदगी की परवाह कीये बिना.. सासु माँ की चूत में अपना लंड पेलकर बड़ी मस्ती से चोदने लगा.. जबरदस्त धक्के लगाते हुए जब संजय और शीला शांत हुए तभी दम लीया.. दोनों अपनी मनमानी कर चुके थे और हांफ रही शीला अपनी सांस नियंत्रित होने का इंतज़ार कर रही थी..

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"संजय बेटा.. तेरे साथ बिताएं ये कुछ दिन मुझे हमेशा याद रहेंगे.. शाम को जब तेरे ससुरजी का फोन आया तब मैं उनकी साथ बात कर रही थी और तू जिस तरह मुझे उस वक्त छेड़ रहा था तब बहोत मज़ा आया था.. वो क्षण याद आते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. मैं मेरे पति से बात कर रही थी तब तू मेरी चूत चाट रहा था.. आह्ह.. मेरे स्तनों को मींज रहा था.. मैं बातों में व्यस्त थी तब तूने अपना सख्त लंड मेरे गालों पर रगड़ दिया था.. ईट वॉज जस्ट अमेजिंग.. मज़ा आ गया था बेटा.. फिर कभी चांस मिले तो और मजे करेंगे.. अब एक आखिरी बार मेरे गले लग जा"

दोनों ने एक दूसरे को अपने बाहुपाश में जकड़ते हुए एक जानदार किस कर ली.. संजय ने अपने पसंदीदा स्तनों को गाउन के ऊपर से ही दबाया और मसल लिया.. हाथ अंदर डालकर दोनों निप्पलों को मरोड़ा.. और शीला की गर्दन पर किस कर दी.. शीला ने भी संजय के लंड को उसकी सारी सेवा के बदले आभार प्रकट करते हुए चूम लिया..

शरीर की भूख सम्पूर्ण तृप्त करके सास और दामाद वापिस अपनी सामाजिक सृष्टि में लौट गए तब दोनों के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलक रहे थे.. अपने गाउन के हुक बंद कर रही शीला के स्तनों को वो आखिरी बार दबा रहा था.. आखिरी हुक बंद करते हुए शीला ने कहा " बस दामाद जी.. अब और शरात नही.. आजादी का समय पूरा हुआ.. मैं जाकर वैशाली को बुलाकर लाती हूँ.. मुझे कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करनी है तुम दोनों के साथ.. और सुन.. गुस्से में मैं अगर कुछ बोल दूँ तो बुरा मत मानना.. पिछले चार दिनों में.. हमने जो संबंध स्थापित किया है उसकी लाज रखना"

इतना कहकर शीला संजय के कमरे से बाहर निकली और वैशाली के रूम में गई.. उसे बुलाने.. पर जब वो वहाँ पहुंची तब उसने देखा की वैशाली तो खर्राटे मारते हुए सो रही थी.. "इतनी देर में नींद भी आ गई ईसे? पहले पता होता तो मैं इतनी जल्दी नही करती.. " शीला ने सोचा.. चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ.. लालच बुरी बला है.. ज्यादा लालच ठीक नही.. उसने अपने मन को मनाया..

सोचते सोचते शीला बाथरूम गई और पेशाब करते हुए सामने लगे आईने को देखकर मन ही मन बोलने लगी "संजय और मदन.. दोनों चोदने में एक्सपर्ट है.. मदन भी संजय की तरह तड़पा तड़पाकर चोदता था.. दोनों तब तक लंड चूत में नही डालते थे जब तक शीला अंदर डलवाने के लिए बेबस न हो जाए.. शाम को जब शीला और संजय चोद रहे थे तभी मदन का फोन आया था.. वो याद आते ही शीला के बदन में एक सुरसुरी से मच गई.. रोमांचित हो गई याद करके.. मदन जब फोन पर उसके साथ जज्बाती हो रहा था तब वो संजय का लंड हिलाते हिलाते सुन रही थी.. जब मदन शीला से यह कह रहा था की वो उसे मिलने के लिए बेताब है.. तब संजय शीला की चूत के होंठों को चाट रहा था.. एक बार तो वो बात करते सिसक भी पड़ी.. लेकिन मदन को लगा की शायद शीला रो रही थी..

चौबीस महीनों के बाद.. मदन कल आ रहा था.. और अगर उसे मेरी आँखों में प्यास या तड़प नही दिखेगी तो वो क्या सोचेगा अगर मैं रसिक, रूखी, जीवा, रघु और संजय के संपर्क में नही आई होती.. तो बिना लंड देखे ही उसे २ साल बिताने पड़ते.. पर मदन के लिए तो उसे ऐसा ही अभिनय करना था जैसे वो पिछले दो साल से बिना सेक्स के.. जुदाई की आग में जल रही हो.. जो रात होते ही अपने पति की आगोश में अपनी चूत शांत करने के लिए चिपक जाएँ..

पिछले दो महीनों में.. जिंदगी ने कहाँ से कहाँ लाकर रख दिया.. !! ऐसे अटपटे विचार करते हुए शीला सोने जा रही थी तभी उसे याद आया की संजय उनकी राह देख रहा होगा.. जाकर उसे बता देती हूँ ताकि वो भी सो जाएँ.. सारी बातें सुबह कर लेंगे.. वैसे भी.. अब तो सिर्फ बातें ही करनी थी.. और कुछ तो होने से रहा.. !! वो संजय के कमरे में गई पर संजय सो चुका था.. हल्की रोशनी में पूरे बेड पर हाथ फैलाकर सो रहे अपने दामाद को थोड़ी देर तक देखती ही रही शीला.. !! सास और दामाद के बीच कितने सामाजिक परदे होते है.. हवस की एक ही आंधी ने सब कुछ तहस नहस कर दिया.. चुपचाप वो संजय के रूम से निकलकर वैशाली के रूम में आ गई और लेट गई.. रात के साढ़े बारह बज चुके थे.. थोड़ी ही देर में शीला की भी आँख लग गई..

सुबह हो गई.. प्रभात के सुनहरे किरण आज नई ज़िंदगी का आगाज ले कर आए थे शीला के लिए.. आज मदन वापिस आने वाला था..

शीला जागी और बाथरूम में घुस गई.. अपने सुंदर शरीर को साबुन से रगड़ रगड़कर साफ करने लगी.. जैसे पिछले दो महीनों में जो भी पाप और व्यभिचार कीये थे उन्हे धो देना चाहती हो.. !! अपनी चूत को भी उसने बराबर रगड़कर साफ किया.. कहीं किसी पुराने लंड की कोई निशानी बाकी न रह जाएँ..

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लाल रंग की बांधनी साड़ी पहन कर शीला तैयार हो गई और नाश्ता बनाने किचन में गई.. ब्रेड-पकोड़े तल रही शीला को कुछ आवाज़ें सुनाई दी.. आवाज उसके बेडरूम से आ रही थी.. शायद वैशाली और संजय के बीच कुछ नोक-झोंक हो रही थी.. सुबह के नौ बजे ही दोनों शुरू हो गए!! शीला ने गेस की आंच को धीमा किया और बेडरूम की तरफ गई.. बेडरूम का दरवाजा बंद था.. वो कान लगाकर सुनने लगी..

"मुझे छूने की कोशिश भी मत करना संजय.. मुझे नही करवाना तेरे साथ.. तू चला जा.. आह्ह.. छोड़ मुझे.. मम्मी सुन लेगी.. " वैशाली की आवाज सुनकर शीला ने अंदाजा लगाया की संजय चोदने की जिद कर रहा था और वैशाली मना कर रही थी.. आगे क्या होता है वो बड़े ध्यान से सुनने लागि शीला..

संजय: "कितने दिन हो गए वैशाली.. !! तुझे मेरी जरा भी फिकर नही है.. मेरा कितना मन कर रहा है तुझे पता नही है.. ये देख.. कैसा तैयार हो गया है मेरा.. करीब आजा न यार.. क्यों तड़पा रही है.. मेरे लंड को देखकर जरा भी दया नही आती तुझे?"

वैशाली: "तेरा ये तो चौबीसों घंटे तैयार ही रहता है.. और ये सिर्फ मेरे लिए थोड़ी न खड़ा होता है.. !! तेरी वो रखेल है ना.. जा उसके पास.. और डाल उसकी चूत में.. मैं अपनी चूत को तेरे लंड से बर्बाद करवाना नही चाहती.. छोड़ मुझे!!"

वैशाली को संजय ने पकड़कर रखा होगा ऐसी कल्पना करने लगी शीला.. सेक्स से संलग्न किसी भी बात में शीला को हमेशा बहोत दिलचस्पी हो जाती.. सगी बेटी और दामाद को उनके निजी हरकतें करते हुए देखना या सुनना पाप है ये जानते हुए भी अपने आप को रोक नही पाई शीला..

संजय: "प्लीज जानु.. बहोत दिन हो गए.. एक बार मुंह में तो ले.. क्यों इतने नखरे कर रही है?? चल अब गुस्सा थूक दे और जल्दी जल्दी मुंह मे लेकर चूसना शुरू कर.. फिर मैं भी तेरी चुत को मस्त चाटूँगा.. आह्ह वैशाली.. दिन-ब-दिन तेरे स्तन तेरी मम्मी जैसे होते जा रहे है.. एकदम बड़े बड़े.. "

वैशाली: "ऊईईई माँ.. मर गई.. जरा धीरे से दबा स्टूपिड.. जब देखों तब मेरे बॉल पर ही टूट पड़ता है.. मेरे साथ जबरदस्ती मत कर.. वरना मम्मी को पता चल जाएगा.. एक बार कहा न मैंने.. मैं मुंह में नही लूँगी.. मुझे घिन आती है.. कौन जाने कितनी गंदी चूतों को चोदकर आया होगा तू.. !! और ऐसा गंदा लंड मैं चुसूँ?? छी.. !!"

संजय: "अरे!!! मेरी जान.. चूत में लंड जाने से गंदा थोड़े ही हो जाता है.. !! अब नखरे बंद कर और चूसना शुरू कर.. भेनचोद तेरी माँ का घर है इसलिए ज्यादा नखरे चोद रही है.. अभी मेरे घर पर होते तो तेरी क्या हालत करता.. पता है ना तुझे.. !!"

शीला समझ गई.. संजय के अंदर का शैतान जाग उठा था.. उसके बाद थोड़ी देर तक कमरे से कोई आवाज नही आई.. शायद वैशाली संजय के शरण में जा चुकी थी.. शीला वापिस किचन में लौट गई और नाश्ता बनाने लगी..

लाल रंग की सुंदर साड़ी पहने हुए शीला.. एक आदर्श गृहिणी बन गई थी.. अनैतिकता का चोला उतार फेंक कर वह वापिस वफादार पत्नी का किरदार निभाने के लिए तैयार हो गई थी..

किचन में ब्रेड पकोड़े तलते हुए उसका मन तो बेडरूम में ही था.. क्या चल रहा होगा उन दोनों के बीच में?? एकदम आवाज़ें बंद क्यों हो गई होगी? पकोड़े तैयार हो गए.. प्लेट में सजाकर उसने टेबल पर रखे और तुरंत भागकर बेडरूम के दरवाजे पर पहुँच गई और सुनने लगी

वैशाली और संजय की बातें अब सुनाई दे रही थी

वैशाली: "आह्ह.. अब डाल भी दे अंदर.. गरम करने के बाद इतनी देर क्यों कर रहा है संजय? प्लीज.. मुझे फिर किचन में भी जाना है.. मम्मी अकेले सारा काम कर रही होगी.. तू सुबह सुबह ये सब लेकर बैठ जाता है ये मुझे जरा भी पसंद नही है.. !!"

संजय: "तो मैंने कहाँ तुझे पकड़ कर रखा है?? जा.. तेरी मम्मी की मदद कर.. मैं नही रोकूँगा.. "

वैशाली: "अब मुझे इतना एक्साइट करने के बाद बोल रहा है.. !! अब मुझ से बर्दाश्त नही हो रहा.. मुझे झड़ना है.. बाहर रगड़ना छोड़ और डाल दे अंदर.. आह्ह.. आग लगी है.. !!"


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ये सुनकर शीला सोचने लगी .. अभी थोड़ी देर पहले तो कितनी नफरत से बात कर रही थी.. और अब गिड़गिड़ा रही है.. रात को तो संजय से सीधे मुंह बात तक नही की और अब उसका लंड चूत में लेने के लीये फुदक रही है..

चिपचिपी चूत में लंड के अंदर बाहर होने की आवाज कमरे में गूंजने लगी.. इन आवाजों से शीला परिचित थी.. वैशाली संजय के गोरे लंड को अपनी चूत की गहराइयों में अंदर बाहर करवाते हुए चूत की खुजली को मिटा रही थी.. धक्के लगाते वक्त संजय के हाव भाव कैसे होंगे?? पिछली रात ही शीला ने अनुभव किया था.. वो मन ही मन संजय और वैशाली की चुदाई की कल्पना करने लगी.. वैशाली को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !!

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कई स्त्री कितनी भी सीधी-साधी और सरल क्यों न हो अपने पति के साथ बेडरूम में ऐसा चाहती है की उसका पति जबरदस्ती करे.. उसे रौंद दे.. उसकी चूत के परखच्चे उड़ा दे.. उसके इनकार को अनदेखा कर उसे जबरदस्त चोद दे.. इसीलिए वैसी स्त्री संभोग की शुरुआत.. सभी चीजों के लिए ना - ना कहकर ही करती है.. और पुरुष को और ज्यादा आक्रामक बना देती है.. आवेश में आकर जब पुरुष जबरदस्ती उस पर चढ़ता है तब उसे दोगुना मज़ा आता है.. ये सब के साथ तो नही होता.. पर हाँ कुछ औरतें ऐसा जरूर चाहती है..

वैशाली की सिसकियाँ और कराहें सुनकर शीला के जिस्म में मीठी मीठी सुरसुरी होने लगी.. संजय के गोरे तगड़े लंड को याद करते हुए वो अपनी चूत को साड़ी के ऊपर से ही दबाकर उसे उत्तेजित होने से रोकने लगी..

"ओह्ह वैशाली.. गजब की टाइट है तेरी चूत.. आह्ह आह्ह ओह्ह मेरी जान.. तुझे चोदने का मज़ा ही अलग है.. " संजय की इस आवाज को सुनकर शीला अपने घाघरे में हाथ डालने के लिए मजबूर हो गई..

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तभी शीला के घर की डोरबेल बजी.. भागकर शीला ने दरवाजा खोला.. सामने उसका पति मदन खड़ा था.. उसे देखते ही शीला भावुक हो गई.. एक ही पल में उसकी सारी उत्तेजना भांप बनकर उड़ गई.. पूरे दो सालों के बाद वो अपने पति को देख रही थी..

"ओह मदन.. तुम आ गए.. " कहते हुए मदन के गले लगकर रोने लगी शीला..

बाहर गाड़ी का ड्राइवर डीकी खोलकर सामान निकालने की तैयारी करते हुए खड़ा था.. वो भी इस पति पत्नी के मिलन को देखता रहा.. किसी भी विकार या वासना से अलिप्त इस शुद्ध मिलन की घड़ी को अनुमौसी और कविता भी अपने घर से देख रहे थे..

पल्लू से अपने आँसू पोंछते हुए शीला ने देखा की ड्राइवर उन दोनों को देखकर मुस्कुरा रहा था.. शीला शरमा गई.. और साथ ही साथ उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान भी आ गई.. वो ड्राइवर और कोई नही.. पर हाफ़िज़ ही था..

शीला तुरंत मदन से अलग हो गई और उसका हाथ पकड़कर घर के अंदर ले गई..

"कितना प्यार है दोनों के बीच" अनुमौसी ने कविता से कहा "धन्य है शीला को.. !!दो दो साल तक बिना पति के रह पाना कितना मुश्किल होता है.. अच्छा हुआ जो मदन आ गया.. अब शीला के दुख के दिन खत्म हुए.." एक स्त्री को पुरुष के शारीरिक साथ की कितनी जरूरत होती है वो अनुमौसी बखूबी समझते थे.. उनकी बातों से उम्र और अनुभव दोनों का निचोड़ छलक रहा था.. कविता को अचानक पीयूष की याद आ गई और वो दुखी हो गई.. वो सोच रही थी.. शीला भाभी और मदन भैया इस उम्र में भी एक दूसरे को कितना प्यार करते है.. !! और यहाँ पीयूष को तो मेरी कदर ही नही है.. पता नही एकदम से उसे क्या हो गया.. वो पहले तो ऐसा नही था.. पिछले एकाध महीने से ही उसके स्वभाव में ये बदलाव आया है.. जैसे जैसे वो सोचती गई वैसे वैसे कविता को भी अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था.. वो सोचने लगी.. कहीं मेरे और पिंटू के बीच के संबंध के बारे में पीयूष को पता तो नही चल गया होगा?? कांप उठी कविता

"किस सोच में डूब गई कविता.. ?? चाय उबलकर पतीली से बाहर गिर रही है.. ध्यान कहाँ है तेरा?? अभी चाय तेरे हाथ पर गिर जाती.. " अनुमौसी ने कविता की विचारशृंखला को तोड़ा और किचन के बाहर चली गई

शीला और मदन, इनोवा की डीकी से सामान उतारने लगे.. ड्राइवर हाफ़िज़ कैरियर पर रस्सी से बांधी हुई बेग को खोल रहा था.. और कार के टॉप से शीला के स्तनों के बीच की खाई को देखता जा रहा था
शीला और मदन दोनों अंदर आए.. शीला ने मदन को ड्रॉइंग रूम में ही बिठाया.. ताकि वैशाली और संजय को मिलन की आखिरी पलों में चरमसीमा हासिल करने में कोई खलल ना पड़े.. मंजिल पर पहुंचते वक्त कोई बाधा आ जाएँ तो क्या गुजरती है ये शीला बखूबी जानती थी.. कल रात ही ऐसा हुआ था जब वैशाली चुदाई के बीच ही टपक पड़ी थी

सामान लेकर हाफ़िज़ अंदर आया.. शीला उससे नजरें नही मिला पा रही थी.. वो चाहती थी की मदन उसे भाड़ा देकर जल्द से जल्द रवाना कर दे.. पर मदन को कहाँ पता था जिस गाड़ी में वो आया है उस गाड़ी का ड्राइवर उसकी बीवी को दो बार चोद चुका है.. !!

"तुमने मेरी बहोत मदद की है.. अंदर आओ.. शीला.. ड्राइवर भाई के लिए चाय बना दे.. बहोत ही अच्छा आदमी है.. " मदन का ये कहते ही शीला के छक्के छूट गए.. पर वो क्या करती!!

"आइए आइए भैया.. यहाँ सोफ़े पर बैठिए.. मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ.. " ना चाहते हुए भी शीला को हाफ़िज़ का स्वागत करना पड़ा..

मन ही मन खुश होते हुए हाफ़िज़ सोफ़े पर बैठ गया.. शीला ने जब उसे पानी का ग्लास दिया तब हाफ़िज़ ने जानबूझकर शीला के हाथ को छु लिया.. शीला के जिस्म में बिजली दौड़ गई.. वो बेचारी इन सब से दूर भागना चाहती थी.. लेकिन स्थिति ही कुछ ऐसी थी की वो कुछ कर नही पाई.. वो तुरंत किचन में चली गई और मदन और हाफ़िज़ के लिए चाय बनाने लगी..

तीन कप चाय ट्रे में लेकर बाहर आई.. और तीनों चाय पीने लगे.. तभी बेडरूम का दरवाजा खुला और वैशाली संजय के साथ तृप्त होकर बाहर निकली

"पापा....!!!" कहते हुए वैशाली मदन से लिपट पड़ी

बाप और बेटी के इस भावुक मिलन के दौरान.. वैशाली की आँखों से टपकते आँसू.. अपने पिता संग मिलन की खुशी.. और संजय से मन-मुटाव का दुख.. दोनों व्यक्त कर रहे थे.. वैशाई अपने पापा के कंधे पर सर रखकर काफी देर तक रोती रही.. सृष्टि के सब से करुण द्रश्य में से एक था.. पहले तो मदन को पता नही चला.. पर जब वैशाली का रोना काफी देर तक चलता रहा तब उसे शक हुआ की कुछ तो हुआ था वैशाली के साथ.. कोई भी बाप अपनी बेटी को रोते हुए नही देख सकता.. बड़ी मुश्किल से मदन ने वैशाली को अपने आप से अलग किया और शीला को इशारा किया की वो वैशाली को अंदर ले जाएँ.. वैशाली को सांत्वना देते हुए शीला उसे अंदर किचन में ले गई.. वैशाली के आधे से ज्यादा आंसुओं का जवाबदार संजय ऐसे बैठा था जैसे उसे कुछ पता ही न हो.. पास पड़ा अखबार उठाकर पढ़ने लगा वो

मदन ने पर्स से पैसे निकालकर हाफ़िज़ को भाड़ा चुकाया.. जाते जाते हाफ़िज़ किचन के करीब से खाँसते हुए निकला.. शीला का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए.. लेकिन शीला ने उसकी तरफ देखा तक नही.. "चलिए मेमसाब.. मैं चलता हूँ. चाय पिलाने के लिए शुक्रिया.. कभी किराएं पर गाड़ी की जरूरत हो.. या और किसी भी चीज की जरूरत हो तो याद करना.. बंदा हाजिर हो जाएगा.. आपके जैसी पार्टियां बहोत कम मिलती है" शीला को आँख मारते हुए हाफ़िज़ ने कहा

शीला को एक पल के लिए अपने आप पर ही घिन आने लगी.. हे प्रभु.. मैं कैसी थी और कैसी बन गई.. !! अब ये मेरा काला भूतकाल मेरा पीछा नही छोड़ेगा.. कुछ अनहोनी ना हो जाए तो अच्छा है..

संजय खड़ा हुआ और किचन में आकर बोला "मम्मी जी.. मैं काम से बाहर जा रहा हूँ.. मेरा खाना मत बनाना.. पार्टी से मिलने जा रहा हूँ वहीं खाना खा लूँगा.. !!"

"बड़ा आया पार्टी वाला.. होगी कोई उसकी रांड.. मुझे तो मन भरकर भोग लिया.. उसका काम हो गया.. अब यहाँ रहकर क्या फायदा.. अब सस्ती चूतों के पीछे भटकता रहेगा मादरचोद" वैशाली मन में सोच रही थी..

संजय के चले जाने के बाद.. माँ, बेटी और मदन अकेले हुए.. तब तक मदन बाथरूम से नहाकर निकला था..

"आह.. अपने वतन में आकर कितना अच्छा लगता है.. मैं क्या बताऊँ वैशाली.. !! विदेश में सुख सुविधा का भंडार था.. पर जो सुकून अपने देश में आकर मिलता है वो कहीं नही मिलता.. " सोफ़े पर आराम से बैठते हुए मदन ने वैशाली से कहा

विदेश की बातें करते हुए मदन और वैशाली ने नाश्ता किया.. उसे ब्रेड पकोड़े बेहद पसंद थे इसीलिए शीला ने याद करके वही बनाए थे.. वहाँ विदेश में रहकर शीला के हाथ का बना भोजन वो कितना मिस कर रहा था ये बताया मदन ने.. खाने के अलावा.. शीला से दूर रहकर उसे कितनी तकलीफें झेलनी पड़ी उसका सारा ब्यौरा दे रहा था वो.. ये सुनकर शीला बेचैन हो गई.. अपने पति की जुदाई में उसने जो कारनामे कीये थे वो याद करके दुखी दुखी हो गई शीला.. मेरा पति वहाँ मेरी जुदाई के गम में तड़प रहा था.. और मैंने यहाँ क्या क्या कर दिया.. छी छी ची.. अपने आप पर ही घृणा होने लगी शीला को.. पर जो बीत गई सो बात गई.. अब कुछ नही हो सकती था

वैशाली सयानी और शादीशुदा थी.. वो समझ सकती थी की दो सालों के बाद मिले पति पत्नी को एकांत देना बेहद जरूरी था.. नाश्ता खतम करके वो खड़ी हो गई

वैशाली: "पापा.. मैं कविता और उसकी बहन मौसम से मिलकर आती हूँ.. तब तक आप और मम्मी बातें कीजिए.. और हाँ.. पापा से सब कुछ पूछ लेना मम्मी.. की वहाँ क्या गुल खिलाकर आए है " हँसते हँसते वैशाली ने शीला के कान में कहा "वहाँ की गोरी लड़कियां बेहद सुंदर और आकर्षक होती है.. अच्छे अच्छे उनके आगे फिसल जाते है.. पूछना तुम पापा से" खिलखिलाकर हँसते हुए वैशाली चली गई.. शीला भी हंस पड़ी..

बड़ी ही प्रेमभरी नज़रों से मदन शीला को हँसते हुए देखता रहा "शीला, तेरा ये हँसता हुआ चेहरा देखने के लिए मैं दो साल तक तरसा हूँ"


सम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!
Very very erotic update.
 

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सम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!

"||ये सब से अद्भुत अवस्था होती है मिलन की.. कहना तो बहुत कुछ है.. पर याद कुछ भी नही||"

शीला और मदन दोनों की स्थिति एक जैसी ही थी.. शीला का पल्लू सरककर मदन के चेहरे पर आ गिरा.. पल्लू ने आँसू तो सोख लिए पर पूर्णिमा के चंद्र जैसे शीला के स्तनों के उभारों को उजागर कर दिया.. और साथ ही साथ मदन के चेहरे को भी ढँक दिया

अजब लीला है कुदरत की.. जब मीठा खाने की उम्र और इच्छा दोनों हो तब जेब में पैसे नही होते.. जब इच्छा और पैसे दोनों होते है तब तक तो डॉक्टर ने मीठा खाने के लिए मना कर दिया होता है.. जीवन का दूसरा नाम ही है अभाव.. हर किसी को जीवन में कोई न कोई अभाव जरूर होता है

"जो चीज देखने के लिए मैं अमेरिका से यहाँ तक आया..वो देखने नही दोगी क्या!! दिखाने के लिए पल्लू हटाती हो.. और दूसरी तरफ मेरा चेहरा ढँक देती हो.. !!" बिना पल्लू हटाए मदन ने कहा

शीला की विशाल छातियाँ.. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रही थी.. वासना के साथ साथ शर्म और हया भी पूरे शरीर में फैल चुकी थी..

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आखिर मदन ने खुद ही अपने चेहरे से शीला का पल्लू हटा लिया.. अपनी पत्नी शीला के स्तन उसने सेंकड़ों बार चूसे, दबाए और मसले थे.. और अनगिनत बार उसके दो बबलों के बीच लंड घुसेड़कर स्तन-चुदाई भी की थी.. फिर भी.. उन स्तनों की साइज़ और परिधि को देखकर वो निःशब्द हो गया.. शीला के महंदी लगे सुंदर बाल.. गोरा चेहरा.. चमकती त्वचा.. गालों की लाली.. और ऊपर पहनी लाल रंग की सुंदर साड़ी.. अगर वैशाली यहाँ नही होती तो बड़े इत्मीनान से मदन शीला को चोदता..

अचानक शीला को याद आया की दरवाजा तो खुला था..

"मदन, मैं दरवाजा बंद कर दूँ? वैशाली एकदम से आ जाएगी तो अच्छा नही लगेगा"

"कोई नही आएगा शीला.. अब तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जा.. प्लीज.. वैशाली सयानी और समझदार है.. हमें अकेला छोड़ने के लिए ही वो जान बूझकर बाहर गई है इसलिए वो तो अब नही आएगी.. बस मुझे प्यार कर और प्यार करने दे शीला" कहते हुए मदन ने शीला का मुख अपनी ओर खींचा और एक शानदार चुंबन के साथ उनके नए हनीमून की शुरुआत हुई..

"ओह शीला मेरी जान.. पूरी दुनिया घूम ली मैंने.. पर तेरे इन दमदार चूचियों जैसा रूप कहीं नही देखा.." शीला के ब्लाउस की एक कटोरी को दबाते हुए मदन ने कहा.. हर स्त्री को अपने पति की प्रशंसा अतिप्रिय होती है.. शीला की परिपक्व जवानी मदन के स्पर्श से खिल उठी.. उसकी आँखें अपने आप ही बंद हो गई.. उसने नीचे झुककर मदन के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसकी बोलती बंद कर दी.. मदन शीला के विशाल स्तनों के भार तले दब गया.. और उसका लंड तनकर खड़ा हो गया.. मदन के लोडे का उभार देखकर शीला मुस्कुराई और बोली "बहोत जल्दी तैयार हो गया तेरा.. मेरे शरीर के प्रति तेरा आकर्षण अभी भी पहले जितना ही है.. मैं तो सोच रही थी की इतना समय विदेश रहने के बाद तुझे अब सिर्फ गोरी चमड़ी वाली मेमसाब ही पसंद आती होगी.. "

शीला के ब्लाउस के टाइट हुक.. एक के बाद एक खोलने लगा मदन..

मदन: "हाँ.. वहाँ की गोरी लड़कियां और औरतें बेहद सुंदर, सेक्सी और आकर्षक होती है.. अंग प्रदर्शन भी इतना करती है.. ऐसा नही था की मैं उनसे आकर्षित नही हुआ था.. पर मेरे दिल की रानी तो हमेशा तू ही रहेगी शीला.. !! तेरा स्थान और कोई ले नही सकता.. देख देख.. मेरा लंड भी इस बात की गँवाही दे रहा है.. !!"

शीला ने अपना हाथ लंबा कर मदन के पेंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाया.. और उसकी सख्ती भी जांच ली.. लंड के ऊपर अन्डरवेर और पेंट का आवरण होने के बावजूद शीला को उसकी गर्मी का एहसास अपनी हथेली पर हो रहा था.. उसके जिस्म में वासना की भूख ऐसी जागी की वो बस इतना ही बोल पाई "मदन, तेरे जाने के बाद.. इसके बिना.. मत इतना तड़पी हूँ.. इतना तड़पी हूँ की बता नही सकती.. आज तो मुझे पूरा रगड़ दे.. ऐसा चोद.. ऐसा चोद मुझे की मेरी चीखें निकल जाएँ.. आह्ह" शीला के ब्लाउस के तमाम हुक खुलते ही उसके दोनों भारी भरकम खरबूजे मदन के मुख पर जा टकराए.. उस नरम मांसल स्पर्श ने मदन को बेहद उत्तेजित कर दिया.. शीला का जो हाथ मदन के लंड पर था उसने भी लोड़े की इस उत्तेजना को महसूस किया

शीला ने पेंट की चैन को नीचे सरकाते हुए कहा "मदन, अगर बीच कार्यक्रम में वैशाली आ गई तो मेरी सारी इच्छाएं दबी की दबी रह जाएगी.. इसलिए अभी फिलहाल तो तू मुझे जल्दी जल्दी ठंडी कर दे.. फिर रात को हम दोनों तसल्ली से चुदाई करेंगे.. मुझे तेरे साथ बड़े ही इत्मीनान से चुदवाना है आज.. !!"

पेंट की चैन सरकाकर.. शीला ने मदन का लंड बाहर निकाल दिया.. दिन के उजाले में इस सख्त खिले हुए लंड को देखकर शीला को सेंकड़ों विचार एक साथ आ गए.. रसिक का.. जीवा का.. रघु का.. पीयूष का.. संजय का.. सब के लंड उसकी नज़रों के सामने एक साथ नाचने लगे.. उस अंग्रेज जॉन के लंड की भी याद आ गई जो उसने गोवा में देखा था.. और हाफ़िज़ का भी

अपनी गोद से मदन का सर हटाकर तकिये पर रखकर शीला ने खड़ी होकर अपना घाघरा उठाया.. चुत के दोनों वर्टिकल होंठों को उंगलियों से चौड़ा कर अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा मदन को दिखाने लगी..

"ओह्ह शीला.. करीब आ.. थोड़ी देर चाटने दे मुझे" मदन ने अपना सर उठाते हुए कहा

"नही मदन.. पहले मुझे ईसे चूसने दे.. फिर तू चाट लेना.. " कहते हुए शीला ने लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे किया.. शीला की कोमल हथेली का अनुभवी स्पर्श मिलते ही मदन का लोडा ठुमकने लगा.. मोर की तरह नाचने लगा.. छत की तरफ तांकते हुए लहराने लगा..

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"एक काम कर.. तू नीचे सोजा और मैं उल्टा होकर तेरे ऊपर लेट जाता हूँ.. मैं तेरी चाट लूँगा तू मेरा चूस लेना.. दोनों का काम एक साथ हो जाएगा " मदन ने उत्तम सुझाव दिया

शीला तुरंत बेड पर तकिये पर सर रखकर लेट गई.. और मदन उसके ऊपर उल्टा लेट गया.. दोनों 69 की पोजीशन में सेट हो गए.. अब संवाद के लिए कोई स्थान न था क्योंकि शीला के मुख के सामने मदन का आठ इंच का लंड था और मदन के मुंह के सामने शीला का रसीला रस टपकाता भोसड़ा.. जो मदन को चाटने के लिए ललचा रहा था.. मदन अपनी पत्नी की चूत पर ऐसे टूट पड़ा जैसे जनम जनम का भूखा हो.. तर्जनी जैसी शीला की फुली हुई क्लिटोरिस दोनों होंठों के बीच रखकर चॉकलेट की तरह चूसने लगा.. मदन की गरम जीभ का स्पर्श होते ही शीला एक पल के लीये उछल पड़ी.. और मदन के पूरे लंड को एक ही बार में.. मुंह के अंदर ले लिया.. और ऐसे चूसने लगी की मदन सारी गोरी राँडों को एक सेकंड में भूल गया..

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शीला की लंड चुसाई से मदन ओर उत्तेजित होकर शीला के भोसड़े की गहराई में खो गया और अंदर के लाल हिस्से को अपनी जीभ से कुरेद कुरेदकर चाटने लगा.. शीला आज चौबीस महीनों के बाद.. बिना किसी डर या अपराधभाव के चुदाई का आनंद ले रही थी.. पिछले दो महीनों में उसे केवल गैर-कानूनी या यूं कहिए.. सामाजिक तौर पर अस्वीकृत सेक्स ही मिला था.. मदन के लंड को शीला जब चूसती थी तब कभी पूरे लंड को एक ही बार में अंदर डाल देती.. तो कभी लंड को चारों तरफ से चाटती.. मदन शीला की चूत को चाटते हुए.. बुर से रिस रहे शहद को भी चटकारे लेकर चूस रहा था..

मदन ने अब अपनी कमर हिलाते हुए शीला के मुंह को चोदना शुरू कर दिया.. उसकी चोदने की गति बढ़ने लगी.. शीला समझ गई की उसके वीर्य का फव्वारा बस छूटने को था.. वो भी ऑर्गैज़म की प्रतियोगित में पीछे रहना नही चाहती थी.. उसने भी मदन के चेहरे को अपनी गोरी मांसल गदराई जांघों के बीच ऐसे दबा दिया.. की मदन की सांस रुक गई.. थोड़ी ही देर में शीला का मुंह.. चिपचिपे गाढ़े सफेद वीर्य से भर गया.. तो बदले में उसने भी मदन का मुंह अपनी चुत के रसगुल्ले की चासनी जैसे शहद से भर दिया..

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मदन हांफते हुए शीला पर धराशायी हो गया और उसका लंड शीला के मुख के अंदर नरम होकर दफन हो गया.. मदन के अंडकोश शीला की ठुड्डी पर दब रहे थे.. वीर्य खाली होते ही उसके आँड भी नरम होकर निर्जीव हो गए.. दोनों संतुष्ट हुए थी की किसी के आने की भनक लगी..

"लगता है वैशाली आ गई.. जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर बाहर जा.. मुझे साड़ी और ब्लाउस पहनने में थोड़ी देर लगेगी.. और मुझे बाथरूम में जाकर मुंह भी साफ करना है.. " कहते ही शीला अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ भागी.. मदन ने फटाफट कपड़े पहन लिए और बाहर के कमरे में आ गया.. वैशाली, मौसम, फाल्गुनी और कविता.. चारों ड्रॉइंग रूम में बैठे थे..

"आप आ गए अंकल? कैसी है तबीयत आपकी? हमारे लिए क्या लाए?" कहते हुए कविता ने मदन के साथ बातें शुरू कर दी.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली मदन के चेहरे की ओर देखकर बार बार हंस रहे थे.. कविता भी बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक रही थी..

तभी शीला बाथरूम से बाहर आई.. चारों लड़कियों को साथ देखकर वो खुश हो गई

"अरे तुम सब एक साथ!! चलो अच्छा हुआ.. अंकल से मिलने आ गई.. " शीला ने कहा.. पर मौसम, फाल्गुनी और कविता की हंसी देखकर उसे लगा की कहीं तो कुछ था जिसे देखकर इन लड़कियों को इतनी हंसी आ रही थी.. तभी उसकी नजर मदन के चेहरे पर गई और वो एकदम शर्मा गई.. वो भागकर किचन में आई और मदन को आवाज दी

मदन अंदर किचन में गया.. शीला ने उसके चेहरे पर चिपकी अपनी बिंदी निकाल दी..

"ये लड़कियां इतना हंस रही थी तो तुझे पता भी नही चला की क्यों हंस रही है? ये बिंदी देखकर हंस रही थी वो सब"

"अरे मुझे क्या पता!! मुझे थोड़े ही अपना चेहरा दिखता है जो मुझे तेरी बिंदी नजर आती?"

"अरे मेरे साहब.. बाहर आने से पहले एक बार आईने में देख तो लेते.. पता लग जाता की क्या चिपका है.. !! जा बाहर जाकर उनके साथ बैठ.. मैँ शर्बत बनाकर लाती हूँ सब के लिए"

मदन शरमाते हुए बाहर आकर बैठ गया.. जवान लड़कियों को पता चल गया था की अंकल-आंटी अभी अभी चुदाई का प्रोग्राम करके बाहर निकले थे.. पर अब कुछ नही हो सकता था.. बात को बदलना ही योग्य था

"तेरी तो बहोत सारी सहेलियाँ हो गई है, वैशाली.. मेरी बेटी है ही ऐसी.. सब के साथ सेट हो जाती है" मदन ने हँसते हुए कहा

"हाँ.. मेरे पीयूष के साथ भी जरूरत से ज्यादा सेट हो गई है आपकी बेटी" कविता के होंठों तक ये शब्द आ गए फिर खुद ही निगल गई.. और चेहरे पर झूठी मुस्कान का चोला पहन लिया

तभी शीला शर्बत के ग्लास की ट्रे ले कर आई और सब को एक एक ग्लास दिया.. बैठने की जगह थोड़ी कम थी इसलिए शीला उस सोफ़े पर दुबक कर बैठ गई जहां कविता और मौसम बैठे हुए थे.. इतनी सी जगह में बैठते हुए शीला के स्तन कविता के कंधे से दब गए.. कविता के पूरे जिस्म में झुंझुनाहट होने लगी.. पुरानी यादें ताज़ा हो गई.. पर अभी सब के सामने ऐसे किसी भी तरह के जज़्बात को व्यक्त करना मुमकिन नही था..

कविता: "शीला भाभी, आज सुबह मेरे पापा का फोन आया था.. मौसम को लड़के वाले देखने आ रहे है.. इसलिए मौसम को तुरंत घर वापिस जाना होगा.. आज शाम मौसम और फाल्गुनी को घर छोड़ने जाएगा पीयूष.. और कल लौटेगा.. इसलिए सोचा की दोनों को अंकल से आज ही मिलवा दूँ.. "

मदन: "अरे मौसम बेटा.. मैं आज आया और तुम जा रही हो.. ऐसा कैसे चलेगा?" मदन ने प्यार से कहा

मौसम ने मुस्कुराकर कहा "मैं भी यहाँ रुकना चाहती हूँ अंकल.. पर क्या करू.. मम्मी को मुझे घर से भगाने की बड़ी जल्दी है.. आए दिन लड़के वालों को देखने के लिए बुला लेती है.. मुझे तो अभी ओर पढ़ाई करनी है.. पर मम्मी पापा मुझे शादी के लिए फोर्स कर रहे है.. क्या करू??"

मदन: "अरे बेटा.. हर माँ बाप को अपनी बेटी की शादी की चिंता रात दिन रहती है.. इसमे गलत क्या है!! और अभी के अभी तेरी शादी थोड़े ही कर देंगे!! अभी तो लड़का देखने का सिलसिला शुरू हुआ है.. पसंद है या नही है.. वो ज्यादा जरूरी है"

वैशाली: "लड़का पसंद करने में जरा भी जल्दबाजी मत करना मौसम.. वरना बहोत पछताएगी बाद में.. सिर्फ दिखावे पर कभी मत जाना.. कितना कमाता है.. पढ़ा लिखा है भी या नही.. उसके दोस्त कैसे है.. इन सब की जानकारी लिए बगैर कुछ भी तय मत करना वरना लेने के देने पड़ जाएंगे.. आज कल तो ऐसे लड़कों की भरमार लगी हुई है जो बाप के पैसों पर उछलते रहते है और खुद तो एक ढेला भी नही कमाते.. " वैशाली नॉन-स्टॉप बोले जा रही थी.. वैशाली को ऐसा बोलते हुए मदन देखता ही रह गया

मौसम और फाल्गुनी को वैशाली की बातों में कुछ खास दिलचस्पी नही थी पर कविता, मदन और शीला को वैशाली की बातों में छुपा अर्थ और दर्द महसूस हो रहा था

कविता: "वैशाली, इससे अच्छा तो ये होगा की तुम ही मौसम के साथ चली जाओ.. इंसान को परखने का अनुभव तो तुझे है ही.. वैसे भी मौसम की तेरे साथ अच्छी पटती है.. फाल्गुनी के साथ तू भी उसकी फ्रेंड की तरह मीटिंग में साथ रहना"

"हाँ वैशाली.. दीदी की बात बिल्कुल सही है.. तुम भी मेरे साथ घर चलो.. हम दोनों ने तुम्हारे घर और तुम्हारे साथ कितने मजे कीये है!!! अब हमें भी आपकी खातिरदारी करने का मौका दो.. " मौसम तुरंत बोल पड़ी

"मौसम के बात बिलकूल सही है" फाल्गुनी ने भी मौसम का साथ दिया

वैशाली उलझन में पड़ गई.. क्या किया जाए?

अपनी बेटी के चेहरे को साफ पढ़ते हुए मदन ने हल निकाला "मुझे लगता है की तुम्हें मौसम के साथ जाना चाहिए, वैशाली। लड़की की पूरी ज़िंदगी का सवाल है.. सिर्फ सलाह देने से काम नही होता.. तुम्हें साथ रहकर प्रेकटिकली मदद करनी चाहिए उसकी.. "

शीला: "कई बार लड़कियां शरमाकर काफी सवाल पूछने की हिम्मत ही नही करती.. घरवाले भी ज्यादा पूछ नही सकते.. ऐसे में सहेलियाँ ही काम आती है.. जो उनको सटीक सवाल पूछकर सारी जानकारी हासिल कर सके.. !! तू जरूर जा मौसम के साथ"

वैशाली: "ठीक है मम्मी.. आप सब कह रहे है तो मैं तैयार हूँ जाने के लिए.. पर मेरी एक शर्त है"

मदन: "कौन सी शर्त, बेटा?"

वैशाली: "यही की आप और मम्मी मुझे वापिस लेने आएंगे.. वादा करो तो ही मैं जाऊँगी मौसम के साथ"

मदन: "अरे पगली.. तू क्या अब छोटी बच्ची है जो हम तुझे लेने आए!! तू कलकत्ता से अकेली यहाँ आती है.. और हम तुझे दो घंटों के बस के सफर के लिए लेने आए.. कैसी बचकानी बातें कर रही है तू वैशाली.. !!"

वैशाली: "पापा, आप और मम्मी कार लेकर मुझे लेने आओ तो मुझे बस के धक्के खाने न पड़े.. "

शीला: "दो घंटों में तुझे कौन से धक्के लग जाने वाले है?"

वैशाली: "वो सब मैं कुछ नही जानती.. आप दोनों मुझे लेने आओ तो ही मैं जाऊँगी वरना सॉरी मौसम.. !!"

मौसम: "अंकल.. आंटी.. प्लीज मान जाइए ना.. !!"

कविता: "अरे वो कहाँ मना करने वाले है.. वैशाली मैं तुझे गारंटी के साथ कहती हूँ.. ये दोनों तुझे लेने आएंगे कार लेकर.. तू चिंता मत कर.. दो जोड़ी कपड़े भर दे बेग में.. शाम को पाँच बजे निकलना है..तैयार रहना.. मौसम.. फाल्गुनी.. चलो उठो.. हमें बाजार जाना है.. मुझे तुम दोनों को शॉपिंग करवानी है"

कविता, फाल्गुनी और मौसम तीनों निकल गए.. और वैशाली अपने कमरे में पॅकिंग करने लगी.. मदन और शीला इस सोच में थे की मौसम के घर जाएँ या न जाएँ.. तभी संजय का फोन आया.. उसे काम आ गया था इसलिए वो तीन दिन तक घर वापिस नही आएगा.. वैशाली समझ गई की उसे कौनसा काम आ गया होगा


कविता ने वैशाली को फोन किया और कहा की अगर वो भी शॉपिंग में उन तीनों के साथ आना चाहती हो तो तैयार होकर आ जाए.. वैशाली फटाफट तैयार होकर निकल गई.. शॉपिंग के लिए कभी कोई लड़की मना करती है क्या.. !!
Good progress of story.
 

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शीला और मदन फिर से अकेले पड़े.. दोनों वापिस कुछ रोमेन्टीक सा करने ही वाले थे तब अचानक अनुमौसी टपक पड़ी.. मदन का मूड ऑफ हो गया और वो पैर पटकते हुए खड़ा हुआ और बोला "आप दोनों बातें करो.. मैं जरा बाहर घूम कर आता हूँ " कहकर वो निकल गया

अनुमौसी: "शीला.. मदनभैया के आने की खुशी तेरे चेहरे पर साफ साफ दिख रही है.. !!"

शीला ने शरमाते हुए नजरें झुका ली

अनुमौसी: "अरे.. शर्मा क्यों रही है.. पहले जब पीयूष के पापा काम के सिलसिले में दो दिन के लिए भी बाहर जाते थे तब मुझे भी इतना सुना सुना लगता था.." अनुमौसी अपनी जवानी के दिनों की बातें करने लगी फिर बोली "असल में मैं तुझसे एक खास बात करने आई हूँ "

शीला: "हाँ.. बताइए ना मौसी"

अनुमौसी: "पहली बात तो ये है की.. पीयूष और कविता के बीच कुछ कहा-सुनी हो रखी है.. दोनों एक दूसरे से बात तक नही कर रहे.. वैसे तो सुबह की चाय पीते पीते दोनों ढेर सारी बातें करते है.. लेकिन आज तो दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा तक नही.. कविता से तेरी अच्छी बनती है.. जरा पूछ के देख.. क्या प्रॉब्लेम है? और कुछ रास्ता निकाल.. पूरा घर शमशान जैसा लगता है दोनों की अनबन के कारण.. वैसे तो उन दोनों की बहोत अच्छी पटती है.. पर पता नही एकदम से क्या हो गया!!"

शीला: "मौसी, पति पत्नी के बीच ज्यादातर झगड़े रात के प्रोग्राम को लेकर होते है.. शायद पीयूष ने करने के लिए जिद की होगी और कविता बेचारी थक गई होगी इसलिए साथ नही दिया होगा.. उसी बात को लेकर टेंशन हुआ होगा.. ऐसा मेरा मानना है.. बाकी असल में क्या हुआ होगा वो तो पीयूष या कविता ही बता सकते है"

अनुमौसी: "यहाँ तो मिल नही रहा उस बात को लेकर झगड़े होते है.. और जिसे मिल रहा है उसे उसकी कदर नही है.. अजीब है आजकल के नौजवान"

शीला: "सही कहा आपने, मौसी.. मदन की गैर-मौजूदगी में मैंने कैसे दिन गुजारे है.. ये बस मैं ही जानती हूँ.. याद है ना.. उस दिन रूखी के दो दोस्तों के साथ हम क्या क्या कर बैठे थे.. !!! पता था की ये गलत है फिर भी.. !!!"

अनुमौसी: "हाय शीला.. उस दिन की याद मत दिला.. मुझे तो कुछ कुछ होने लगता है.. तू तो इसलिए भूखी थी क्योंकी मदन विदेश था.. मेरा हाल पूछ.. पति साथ में होते हुए भी भूखी तड़पती हूँ.. पता नही उन्हें क्या हो गया है !! मुझे छूते तक नही.. कभी कभी तो दिमाग ऐसा गरम हो जाता है की क्या क्या कर दूँ.. पर उन्होंने तो बिस्तर पर आते ही खर्राटे मारने के अलावा ओर कुछ नही सूझता.. तंग आ गई हूँ मैं, शीला.. इस बेजान ज़िंदगी से"

शीला: "आप मुझसे कोई दूसरी बात भी करने वाली थी.. बताइए.. !!"

अनुमौसी: "अरे हाँ.. वो बात ऐसी थी की.. !!" बोलते बोलते वो रुक गई और खड़ी होकर दरवाजा बंद कर आई और खिड़की भी बंद कर ली.. और शीला के करीब जाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाई..

शीला चोंक गई.. "क्या बात कर रही हो मौसी? ऐसा कैसे हो सकता है?"

अनुमौसी: "मना मत कर शीला.. मेरा इतना काम कर दे प्लीज.. तुझे मेरी हालत के बारे में पता तो है.. मैं पागल तो नही हूँ जो इस उम्र में तुझसे ऐसी बात करूंगी.. ये तो तू मेरी अपनी है इसलिए बता रही हूँ.. तू ये सोच की मेरी बर्दाश्त की कैसी हद पार हो गई होगी जो मुझे तुझसे ऐसी बात करनी पड़ रही है!! किसी और से तो इस बात का जिक्र करने की मैं सोच भी नही सकती.. और मैं जो भी कह रही हूँ उसमें तेरा तो कोई नुकसान नही है.. ऊपर से फायदा ही होगा तेरा.. कभी तुझे भी.. !!!"

शीला: "वो सब तो ठीक है मौसी.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर कैसे कहूँ?? शर्म आएगी"

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया और दोनों चुप हो गए.. शीला ने उठकर दरवाजा खोला.. सामने पीयूष खड़ा था..

पीयूष ने अनुमौसी की तरफ देखकर कहा "मम्मी, मुझे घर की चाबी दीजिए.. कपड़े बदलने है मुझे.. मैंने आस-पड़ोस में देखा पर तुम कहीं नजर नही आई.. फिर सोचा तुम यहीं मिलोगी.. "

शीला: "कैसा चल रहा है पीयूष? आजकल बहोत खोया खोया सा लगता है तू.. !! क्या बात है? कहीं मेरी किसी बात का तो बुरा नही लग गया तुझे!! मुझसे बात भी नही कर रहा.. !! मुझसे कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना.. " अपने खास अंदाज में आँखें मटकाते हुए शीला ने कहा.. प्यार से सुना भी दिया पीयूष को..

पीयूष: "अरे.. आप कैसी हो भाभी? मैं थोड़ी जल्दी में था इसलिए आपसे बात करना रह गया.. कैसा चल रहा है सब? मदन भैया आ गए वापिस? कैसी है उनकी तबीयत?" शीला के सवालों के हमले से बोखला गया पीयूष

शीला ने आँखों से मौसी को इशारा किया.. मौसी समझ गई

अनुमौसी: "मैं घर खोलती हूँ.. मुझे भी लड़कियों के लिए खाना पकाना है.. मैं चलती हूँ" और वहाँ से निकल गई..

शीला: "अब आ ही गया है तो बैठ थोड़ी देर.. ऐसी भी क्या जल्दी है? वैशाली घर पर हो तो ही तू बैठेगा.. कहीं ऐसा तो नही है ना.. !!"

पीयूष: "अरे नही नही भाभी.. ऐसा तो कुछ नही है.. क्या आप भी !!" शीला की बात सुनकर पीयूष शरमा गया.. हर किसी की नब्ज दबाना जानती थी शीला..

पीयूष सोचने लगा.. शीला भाभी ने वैशाली का जिक्र क्यों किया होगा?? कहीं मेरे और वैशाली के संबंधों के बारे में उनको पता तो नही चल गया न?

वो कुछ ओर सोचता उससे पहले ही शीला ने पल्लू हटाकर.. अपने मदमस्त, गोलमटोल.. तंग ब्लाउस में कैद स्तनों की झलक दिखाते हुए कहा

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शीला: "अब तुझे ये भी पसंद नही पीयूष? एक टाइम था जब तू इनकी झलक पाने के लिए घंटों छत पर कसरत करने के बहाने खड़ा रहता था.. भूल गया क्या?? मैं कपड़े सुखाने बाहर आती थी तब ऊपर से तू कैसे देखता रहता था.. !! उस दिन मूवी देखने गए तब दबा लेने के बाद तेरा मन भर गया क्या?? या फिर किसी ओर जवान लड़की के साथ.. !!!" शीला ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया

पीयूष: "भाभी, आप भी कैसी बातें करती हो.. !! उस दिन मूवी देखते वक्त जो हुआ वो तो मेरे लिए सपना पूरा होने जैसा था.. मैं तो सोच रहा था की फिर कभी मुझे ऐसा मौका नही मिलेगा.. इसीलिए आप से दूर भाग रहा था.. आप के करीब आने के बाद मैं खुद पर कंट्रोल नही कर पाता हूँ.. सच कह रहा हूँ.. आपको देखते ही मूवी वाला दिन याद आ जाता है और मन करता है की आपको बाहों में लेकर दबा दूँ.. मुझसे कुछ गलती न हो जाए इसलिए आप से दूरी बनाकर रखता हूँ"

शीला: "अरे बेवकूफ.. !! अभी घर पर कोई नही है.. पूरी कर ले अपनी मन की इच्छा.. !!" कहते हुए शीला ने पीयूष के दोनों हाथ पकड़कर अपने स्तनों के शिखर पर रख दिए.. और बोली "दबा ले जीतने जोर से दबाने हो तुझे.. लेकिन पहले दरवाजा बंद कर दे.. नही तो कोई आ गया तो.. "

पीयूष: "पर.. घर पर मम्मी इंतज़ार कर रही होगी"

शीला: "अबे चोदूनंदन.. मौका मिले तब उसका फायदा उठाना सिख.. नही तो पूरी ज़िंदगी बस देखकर ही खुश रहना पड़ेगा.. "

पीयूष ने तुरंत ही दरवाजा लॉक कर दिया और वापिस आकर शीला से लिपट पड़ा.. शीला के स्तनों को ब्लाउस की कटोरियों के ऊपर से दबाते हुए बड़ी आतुरता पूर्वक उसके होंठों को चूसने लगा.. शीला ने भी तुरंत पीयूष का लंड पकड़कर दबा दिया

पीयूष: "आह्ह.. जरा धीरे से.. भाभी"

शीला: "अच्छा.. तुझे दर्द हो रहा है.. तू जब मेरी छातियों को इतने जोर से मसलता है तब मुझे दर्द नही होता होगा.. !!!"

शीला के हाथों में बरकत थी.. एक ही पल में पीयूष का लंड उसकी पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया.. पेंट के ऊपर से ही उस गन्ने जैसे लंड को सहलाते हुए शीला ने कहा "पीयूष.. ये तो चूत मांग रहा है.. चल डाल दे जल्दी"


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कहते हुए शीला घूम गई और अपना घाघरा ऊपर कर दिया.. सोफ़े का सहारा लेते हुए योनिप्रवेश के लिए आदर्श स्थिति में आ गई.. अपने चूतड़ उठाकर उसने पीयूष के सामने पेश कर दिए.. पीयूष का लंड खुश होकर ऐसे लहराने लगा जैसे पहली बारिश में खेत की फसल लहराती है

"आज चुसोगी नही भाभी? उस दिन मूवी देखते हुए आपने जिस तरह लिया था वैसे ही मुंह में लीजिए न.. !! मुझे बहोत अच्छा लगता है.. प्लीज!!" शीला के स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने कहा

"वो सब अभी नही.. कभी मदन कहीं बाहर गया होगा तब शांति से करेंगे.. अभी वो वापिस आ गया तो ये भी नही हो पाएगा.. इसलिए मैं जैसा कहती हूँ वैसा कर.. और तेरा लंड मेरी चूत में घुसा दे.. जल्दी कर अब!!" शीला ने थोड़े गुस्से से कहा

पीयूष ने अपना लंड हाथ में लिया.. उलटी लैटी शीला के भव्य कूल्हों पर लंड रगड़ते हुए अप्रतिम आनंद लेने लगा..

"वक्त बर्बाद मत कर.. कितनी बार समझाऊँ तुझे?? मदन कहीं आसपास ही होगा.. कभी भी आ जाएगा.. और घर पर तेरी मम्मी भी इंतज़ार कर रही है.. ये सब करने का समय नही है अभी.. जल्दी कर यार.. और न करना हो तो रहने दे.. ये तो मौका मिला तो मैंने सोचा की जल्दी जल्दी मजे कर लेते है.. तुझे ये सब फॉरप्ले ही करना हो तो छोड़ दे.. !!" शीला ने तंग आकर कहा.. वाकई, शीला इतना जोखिम उठा रही थी.. और नादान पीयूष बिना इस बात को समझे.. लंड डाल कर धुआंधार चुदाई करने के बदले शीला के कूल्हें छेद रहा था..

बाजी बिगड़ने से पहले.. पीयूष ने एक ही धक्के में पूरा लंड डाल दिया और धक्के लगाने लगा.. शीला की चूत टाइट तो थी नही.. की डालने में तकलीफ होती.. बड़ी ही आरामदायक चुदाई शुरू हो गई.. कच्ची कुंवारी लड़कियों के मुकाबले भाभियों को चोदने में यहीं लाब है.. नादान कुंवारी लड़कियों की चूत टाइट होती है.. इसलिए डालने में दिक्कत होती है.. पहले उनको तैयार करनें के लिए पापड़ बेलों.. फिर चुदाते वक्त भी चिल्लाने का डर.. लेकिन भाभी तैयार भी जल्दी हो जाती है.. और बिना किसी शोर-शराबे के लंड आराम से उनकी गुफा में घुसकर अपनी तपस्या कर सकता है.. कुंवारी लड़कियों के हावभाव देखें तो ये नही कह सकते की उन्हें मज़ा आ रहा होगा.. जबकी भाभी तो लंड लेते ही ऐसे सिहरती है जैसे सातवे आसमान पर हो...

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शीला का जिस्म, पीयूष के लयबद्ध धक्कों से आगे पीछे हो रहा था.. दोनों बेहद उत्तेजित होकर एक दुसरें को भोगने के लिए उतावले हो गए थे.. तभी डोरबेल बजी.. बेल की आवाज सुनते ही.. एक झटके में दोनों अलग हो गए..

"जरूर मदन ही होगा.. तू जल्दी कपड़े पहन ले.. अच्छा हुआ ना जो मैंने कपड़े नही उतारे थे.. ब्लाउस खोला होता तो अभी ये मेरे दोनों को अंदर फिट करने में ही ३-४ मिनट निकल जाते.. आईने में अपनी शक्ल देखकर तसल्ली कर ली शीला ने.. फिर उसने दरवाजा खोला.. मदन को देखकर वो थोड़ी सी बोखला जरूर गई पर किसी भी हाल में मदन को जरा सी भी भनक न लगे उसका ध्यान रखा शीला ने..

पीयूष को देखकर थोड़ा सा चकित होते हुए मदन सोफे पर बैठा.. की तुरंत शीला शुरू हो गई.. वह दिखावा ऐसा कर रही थी की मदन के आने से पहले वो और पीयूष कोई गंभीर चर्चा कर रहे थे..

"सच सच बता पीयूष.. तेरे और कविता के बीच क्या तकलीफ हुई है? तुझे पता है तेरी मम्मी कितनी चिंता कर रही थी? बेचारी रो रही थी.. " शीला ने बखूबी अभिनय किया

मदन शीला और पीयूष की तरफ देखता ही रहा.. बंद दरवाजे के पीछे शीला और पीयूष को देखकर उसके दिमाग में जो शक हुआ था.. वो ये सुनते ही दूर हो गया.. शक के पन्ने और फड़फड़ाते उससे पहले ही उसपर विश्वास का पेपरवेइट रख दिया शीला ने..

"क्या बात है पीयूष?? ये सब क्या माजरा है? " मदन ने पूछा

"कुछ नही मदन भैया.. मेरे और कविता के बीच कुछ दिनों से अनबन चल रही है.. यह बात मम्मी के ध्यान में आई होगी इसलिए उन्होंने भाभी से शिकायत कर दी.. और भाभी मुझ पर टूट ही पड़ी.. मेरी कोई गलती नही है इसमे.. " एक ही सांस में पीयूष ने कहा.. अच्छा हुआ की मदन की नजर पीयूष के पेंट की खुली चैन पर नही गई.. वरना पीयूष और शीला का नाटक वहीं समाप्त हो जाता.. जल्दी जल्दी में बंद करने पर पेंट की चैन टूट गई थी.. और पीयूष का भूखा लंड अभी भी उभार बनाते हुए अपनी नाराजगी जाहीर कर रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की कुछ ही पलों में उसका लंड बैठ गया.. !!

"तूने खुद ही कैसे तय कर लिया की तेरी कोई गलती नही है ??? प्रत्येक गुनहगार के पास अपने निर्दोष होने के सबूत होते ही है" मदन ने कहा

शीला: "बिल्कुल सही कहा मदन ने.. तुझे इतना समझना चाहिए की पति पत्नी के बीच छोटे मोटे झगड़े और मन-मुटाव तो चलते रहते है.. जरूरी है की उन्हे समय रहते खतम कर दिया जाए.. वरना आगे जाकर वो बड़ा स्वरूप धारण कर लेते है.. और ऐसा तो क्या हो गया तुम दोनों के बीच की एक दूसरे की शक्ल तक देखना नही चाहते.. !!"

मदन थोड़ा चोंक गया "बात यहाँ तक पहुँच गई है???"

मदन की बातों से शीला को यकीन हो गया की उसके मन में पीयूष की हाजरी को लेकर कोई शक नही रहा था.. उसने राहत की सांस ली.. रंगेहाथों पकड़े जाते बच गए दोनों.. लेकिन वो काफी डर गई इस घटना से.. अब से सावधान रहना पड़ेगा..

मदन: "अरे तुम दोनों की अभी अभी तो शादी हुई है.. ये देख.. शादी के इतने सालों के बाद भी तेरी भाभी कैसी खिले हुए गुलाब जैसी है.. क्यों? क्योंकि मैं उसे इतना प्रेम देता हूँ की वो हमेशा खुश ही रहती है.. जीवन के बाग को हमेशा तरोताजा रखने के लिए निरंतर प्रेम की पानी से उसे सींचना चाहिए.. नही तो वो बाग मुरझाने लगता है.. फिर उसे जीवंत करना कठिन हो जाता है.. मेरी बात करूँ तो.. मुझे वहाँ विदेश में कितनी गोरीओ ने ललचाया था.. ऐसी ऐसी रूपसुंदरियाँ होती है वहाँ.. अच्छे अच्छों को नियत बदल जाए.. पर तेरी भाभी का चेहरा सामने आते ही मन पर लगाम लगा लेता था.. वो यहाँ अकेले मेरे बगैर तड़प रही हो.. और मैं वहाँ गुलछर्रे उड़ाऊँ.. !! ये कैसे हो सकता है.. !! तुरंत ही गोरी चमड़ी का सारा आकर्षण खतम हो जाता था.. इच्छा तो बहोत सारी होती है मन में.. पर जो मन में आयें वो सब करना ठीक नही.. समझा तू??"

मदन के प्रत्येक शब्द शीला के दिल पर कटार बनकर घाव बना रहे थे.. अपने आप पर धिक्कार हो गया शीला को.. शर्म आने लगी उसे.. मदन बेचारा इन दो सालों में कितना वफादार रहा उसके प्रति..!! और यहाँ मैं ??? एक स्त्री होने के बावजूद.. संयम खो बैठी.. लानत है तुझ पर शीला.. तू मदन के लायक ही नही है.. शीला के चेहरे से नूर उड़ गया.. उसका सुंदर मुख फीका पड़ गया.. जैसे पूनम के चाँद को ग्रहण लग गया हो.. !!

पीयूष: "आप सही कह रहे है मदन भैया.. पर कविता को भी थोड़ा समझना चाहिए ना.. !! जब देखो तब मुझे किसी न किसी बात पर बस टोकती ही रहती है.. क्या अपने पति के आत्म-सन्मान का ध्यान रखना उसकी जिम्मेदारी नही है?"

मदन: " मैं समझ सकता हूँ.. पर तुम दोनों के बीच असल में आखिर क्या हुआ है जो दोनों ऐसे रूठ गए हो.. !! तुम मर्ज बताओगे तो मैं तुम्हें इलाज बता सकता हूँ.. "

पीयूष ने माउंट आबू में जो हुआ था वो सब बताया.. कैसे कविता ने अधनंगे कपड़ों में सब के सामने आकर उसकी इज्जत की धज्जियां उड़ा दी थी.. पर उसने ये नही बताया की उसके वैशाली के प्रति आकर्षण के कारण कविता रूठ गई थी.. एक समय था जब पीयूष कविता कितने प्यार से एक दूसरे के साथ रहते थे.. पर हकीकत ये थी की जब से शीला के कारण कविता की ज़िंदगी में पिंटू की एंट्री हुई थी.. तब से कविता नाम के पंछी को पंख लग गए थे.. जाहीर सी बात थी की मदन इन सारी बातों से अनजान था.. इसलिए वो सोच में डूब गया.. पीयूष की बात उसके दिमाग में उतर नही रही थी..

मदन: "देख पीयूष.. कविता बहोत अच्छी लड़की है.. तुझे गई गुजरी भूल जानी चाहिए.. उसे फिर से पहले की तरह प्यार देना शुरू कर दे.. रिश्तों का व्यापार ऐसे ही चलता है.. प्यार दो और प्यार लो"

शीला: "पीयूष, तू कविता को प्यार तो करता ही है.. जरूरत है बस उसे व्यक्त करने की.. सिर्फ प्यार होना ही काफी नही है.. उसे वक्त वक्त पर जताना भी पड़ता है"

पीयूष: "हाँ भाभी.. आपकी बात सही है.. पर ताली कभी एक हाथ से नही बजती.. सारी गलती मेरी तो नही हो सकती ना.. उसका भी तो थोड़ा दोष होगा ही ना.. !!"

शीला: "कहाँ मना किया मैंने?? मैं कविता को भी समझाऊँगी.. सब ठीक हो जाएगा.. आज रात जब तू मौसम को छोड़ने उसके घर जाएगा.. तब मैं और मदन, कविता से बात करेंगे.. जो होगा सब अच्छा ही होगा.. अब तू मुझे वचन दे.. की पुरानी बातों को कुरेदेगा नही.. और उन बातों को लेकर उसे ताने नही मारेगा.. !!"

पीयूष नीचे देखने लगा और धीरे से बोला "कोशिश करूंगा भाभी.. पर कुछ बातें ऐसी है जो भुलाएं नही भुलाती.. !! वक्त तो लगेगा"

वास्तव में पीयूष इस बात को लेकर परेशान था की मौसम को देखने लड़के वाले आ रहे थे.. बेचैन और उदास हो गया था.. मुंह तक आया हुआ निवाला खाने से पहले ही छीन गया.. !! मौसम की कच्ची कुंवारी जवानी को भोगने का सुवर्ण अवसर इतना जल्दी हाथ से चला जाएगा उसका अंदाजा नही था उसे.. मौसम भी लगभग तैयार हो गई थी.. तभी उसके माँ-बाप को क्या सुझा जो लड़के वालों को बुला लिया.. !! थोड़े दिन रुक जाते तो मौसम की कच्ची चूत को चोद लेता..

इसके बारे में तो शीला को भी कुछ पता नही था.. की पीयूष मौसम के शबाब में डूबा हुआ था..

मदन: "ऐसा कैसे चलेगा पीयूष?? तुझे कोई प्राइवेट प्रॉब्लेम हो तो निःसंकोच मुझे बता.. "

पीयूष: "नही भैया.. ऐसा तो कुछ नही है"

शीला, मदन और पीयूष चर्चा कर रहे थे तभी मदन के किसी दोस्त का मोबाइल पर फोन आया.. मदन बात करते हुए घर के बाहर बगीचे में पहुँच गया.. उसी दौरान एकांत में पीयूष और शीला के बीच गुपचुप बातें हुई.. और मदन के वापिस आते ही दोनों नॉर्मल होकर बैठ गए..

पीयूष ने खड़ा होते हुए कहा "मम्मी राह देख रही है.. मैं चलता हूँ.. मुझे शाम को जाना भी है इसलिए तैयारी करनी है.. भाभी, वैशाली को बता देना.. पाँच बजे निकलना है.. और कल दोपहर को आप दोनों लेने आ जाना.. "

मदन: "हाँ हाँ.. मैंने वैशाली को वादा किया है.. हम कार लेकर कल लेने आ पहुंचेंगे"

शीला: "हाँ, भाड़े पर कोई न कोई गाड़ी मिल ही जाएगी.. !!"

मदन: "अरे, कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नही है.. मैं जिस गाड़ी में आया था.. उस ड्राइवर हाफ़िज़ का नंबर मैंने स्टोर कर लिया था.. उसे ही बुला लेंगी.. गाड़ी भी मस्त है और चलाता भी अच्छा है.. !!"

शीला: "नही नही.. उसे नही.. किसी ओर को बुला लो" हाफ़िज़ का नाम सुनते ही शीला कांप उठी.. शीला सोचने लगी.. मदन, वो गाड़ी तो अच्छी चलाएगा पर साथ ही साथ तेरी बीवी को भी घोड़ी बनाकर चोद देगा..

पीयूष चला गया..

मदन: "क्यों? हाफ़िज़ के साथ जाने में क्या तकलीफ है तुझे?" कहते हुए उसने शीला को बाहों में भर लिया.. एकांत मिलते ही.. मदन ५८ से २८ साल का बन गया.. पीयूष के संग उस अधूरे सेक्स के प्रोग्राम के बाद शीला बहोत ही उत्तेजित थी.. मदन के अचानक आ जाने से अधूरे रहे कार्यक्रम को फिर से आगे चलाने का सोच रही थी शीला.. शुरुआत पीयूष के साथ हुई थी और खतम मदन के साथ होगा.. इससे मदन के मन का शक भी दूर हो जाएगा और भोसड़े की खुजली भी शांत हो जाएगी..

शीला ने भी मदन के आलिंगन का जवाब उसे चूमकर दिया..

शीला: "नही यार.. मुझे कोई तकलीफ नही है.. !! उस दो कौड़ी के ड्राइवर से मुझे भला क्या प्रॉब्लेम?? मैं तो ये सोचकर मना कर रही थी की उसकी गाड़ी बड़ी है.. तो हमें महंगा पड़ेगा.. इतनी बड़ी गाड़ी की हमें क्या जरूरत?? कोई छोटी गाड़ी ले लेते है न.. !!" शीला मदन को बेड तक ले गई और धक्का देकर बेड पर सुला दिया.. बड़ी ही कामुक अदा से शीला उसके बगल में लेट गई.. शीला के जिस्म के गदराए अंग उसके साथ ही उजागर हो गए.. शीला के गोल खरबूजे जैसे स्तनों को देखकर ही मदन के मुंह में पानी आ गया.. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल लाल हो गया..

मदन को और अधिक उत्तेजित करने के लिए शीला ने शब्दों का सहारा लिया.. किसी भी पुरुष को उत्तेजित करने के लिए सिर्फ जिस्म काफी नही होता.. संभोग के दौरान, जिस्म के साथ साथ उत्तेजक भाषा का भी जब प्रयोग होता है तब पुरुष की उत्तेजना, सारी हदें पार कर जाती है..

शीला: "जानु.. तेरी शीला बहोत तरसी है.. आज ऐसा चोद.. ऐसा चोद.. की पिछले दो सालों की भूख शांत हो जाए.. वैशाली शॉपिंग करने गई है इसलिए उसके आ जाने की भी चिंता नही है.. चल मदन.. आज तो मुझे रंडी बनाकर चोद.. मैं भी तो देखूँ.. विदेश की ठंडी हवाओ ने कहीं तेरे लंड को भी ठंडा तो नही कर दिया ना.. !! और हाँ.. तुझे बता देती हूँ.. अगर आज अभी तूने मुझे ठंडा नही किया ना.. तो मैं उस ड्राइवर हाफ़िज़ से भी चुदवाने में नही हिचकिचाऊँगी.. देख क्या रहा है.. मुझे नंगी कर.. नीचे जोर की खुजली हो रही है मुझे.. चाटकर उसे शांत कर.. और फिर तेरे लोडे से धक्के लगाकर तृप्त कर मुझे.. " शीला का एक एक शब्द मदन के लिए वियाग्रा का काम कर रहा था.. शीला की कामुक बातें सुनते ही मदन इंसान से जानवर बन गया.. मादरजात नंगा होकर वो शीला के बदन पर छा गया..

दोनों एक दूसरे को चूमते हुए प्रेमालाप में खो गए.. शीला के सुंदर कटीले बदन पर उसके पति मदन का हाथ फिरने लगा.. उसके सहलाते हुए शीला का पूरा जिस्म खिल उठा.. दोनों अत्यंत उत्कट प्रेम से एक दूसरे के भीतर समाने को बेताब होकर उत्तेजित होते हुए अंग मर्दन करने लगे

मदन: "ओह्ह शीला.. इस उम्र में भी तेरे अंदर कितनी गर्मी है.. मुझे तेरे अलावा कोई ओर इतना मज़ा दे ही नही सकता.. तू एक सम्पूर्ण स्त्री है.. जैसे हर मर्द की अपेक्षा होती है वैसी ही है तू.. शयनेषु रंभा.. का प्रत्यक्ष उदाहरण है तू!!" मदन अपनी पत्नी के उरोजों को पकड़कर.. अंगूठे और पहली उंगली से उसकी निप्पलों को मसलते हुए बोला

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मदन के मस्त कडक लंड को शीला बेताबी से मुठ्ठी में पकड़कर सहला रही थी.. उसके हाथ का हलन-चलन इतना लयबद्ध था की मदन के लंड को स्वर्गीय सुख मिल रहा था.. एक उत्तम कपल था शीला और मदन का

शीला: "मदन, तू दो सालों तक वहाँ क्या कर रहा था? ये तेरा मस्त लंड, बिना चुत के कैसे रह पाया?? "

मदन: "ओह्ह शीला.. तुझे याद करके मैं रोज मूठ मारता था.. और ईमानदारी से कहूँ तो.. जिस घर में, मैं पेइंग गेस्ट था उसके मालिक की पत्नी के साथ मेरे सेक्स-संबंध थे.. बाकी के समय..हम दोनों के जो वीडियोज़ बनाकर ले गया था.. उसे लैपटॉप में देखते हुए.. हाथ से हिलाकर मैं ईसे ठंडा कर देता था"

शीला वास्तव में चोंक गई "क्या?? सच कह रहा है तू? पीयूष को तो ऐसे बोल रहा था तू मुझे वहाँ मिस करता था और मुझे ही वफादार रहा था"

मदन: "शीला, अब तुझसे क्या छुपाना.. !! पर तू भी सोच जरा.. दो साल का समय बड़ा लंबा होता है.. और इतने लंबे समय तक बिना सेक्स के रह पाना कितना मुश्किल होता है ये तू भी जानती है.. और फिर भी.. मैं तो तुझसे वफादार ही रहा था.. पर बात ही कुछ ऐसी हो गई की मुझे उस लैडी से सेक्स संबंध बनाना पड़ा.. मैं अपने आप की वकालत नही कर रहा.. पर मैं तुझे धोखे में रखना नही चाहता हूँ.. मैं तुझसे बेंतहाँ प्यार करता हूँ.. इसलिए मेरा मानना है की एक बार फिसल जाने को धोखा नही कह सकते.. और जो भी हुआ था वो जरूरत के आधार पर हुआ था.. अपने पार्टनर की गैर-मौजूदगी में जब कुदरती इच्छाएं चरमसीमा पर पहुँच जाएँ तब ऐसा होना स्वाभाविक है.. कोई बड़ी बात नही है.. !!"

शीला की छाती पर से एक बड़ा बोझ हल्का हो गया.. अपने कारनामों के चलते जो अपराधभाव जागृत हुआ था वो भांप बनकर उड़ गया.. चुदाई के दौरान ऐसी गंभीर चर्चा का नतीजा ये हुआ की मदन का लंड मुरझा गया.. शीला के हाथों में होने के बावजूद.. ये बात को शीला को राज न आई.. ईसे खड़ा करके ही वो अपने भोसड़े की खाज मिटाने वाली थी.. नरम लोडा स्त्री के किस काम का.. !! उससे तो पेशाब करने के अलावा और कोई काम नही हो सकता.. ज्यादातर औरतों को नरम लोडा देखने का अवसर नही मिलता.. क्योंकि जैसे ही किसी स्त्री के सामने लंड खुलता है.. वो खड़ा हो ही जाता है.. सच बात तो ये है की नरम लंड देखने में भी पसंद नही आता.. वो सुंदर तभी लगता है जब उत्तेजित होकर खड़ा हो जाए.. पुरुष भी होशियार होते है.. वो अपने कपड़े उतारने से पहले ही स्त्री को नंगी कर देते है.. और फिर उस निर्वस्त्र शरीर को देखकर.. सहला कर मसल कर.. अपने लंड को खड़ा करते है और फिर उसे स्त्री के सामने पेश करते है..

वैसे शीला ने मदन के नरम लंड को अनगिनत बार देखा था.. पर उत्तेजित होकर संभोग के लिए बेकरार हो तब नरम लंड देखना.. किसी सदमे से कम नही होता..

कुंवारी नादान लड़कियां जब पहली बार कडक लंड देखती है.. तो उनके दिमाग में यही गलतफहमी हो जाती है की लंड हमेशा ऐसे ही रहता होगा.. कडक और खड़ा.. !! और फिर उन्हे ये ताज्जुब होने लगता है की इतना बड़ा लंड पेंट में फिट कैसे रहता होगा??

शीला को इस बात की तसल्ली हो गई.. की मदन उसे अब भी बेहद प्यार करता है.. वरना गीले भोसड़े को चोदने के बजाए.. इतनी सच्चाई से क्यों अपना जुर्म कुबुलता.. !! और अगर उसने बताया न होता तो शीला को पता भी नही चलने वाला था.. जिस तरह मदन ने खुले दिल से उसे सारी बात बता दी थी.. शीला की नज़रों में मदन का कद और बड़ा हो गया था.. अब ये शीला को तय करना था.. मदन की एक गलती को दिमाग में रखकर सारी ज़िंदगी रोते रहना था या फिर बड़ा मन रखकर.. उसे स्वीकार कर भूल जाना था..

"क्या सोच रही हो शीला?? मुझे पता है.. ये जानकर तुझे बहोत दुख हुआ है.. पर तेरी इन छातियों को छोड़कर मैंने अपने आप को २१ महीने तक अपने आप को किसी तरह कंट्रोल में ही रखा हुआ था.. पर पता नही.. उस दिन मुझे क्या हो गया.. मैं अपने आप को रोक ही नही पाया.. अब मुझे माफ करना या न करना वो तुझ पर निर्भर है.. तू जो सजा देगी मुझे वो मंजूर है.. पर दिल में ये बोझ लिए जीना मुझे पसंद नही.. " इतना अच्छा उत्तेजना सभर वक्त बर्बाद हो रहा था.. शीला गंभीरता से सोचती रही

उसके दिमाग में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.. अगर मैं मदन को अपने कारनामों के बारे में बता दु तो क्या होगा?? वो क्या सोचेगा मेरे बारे में?? क्या वो मुझे कभी माफ कर पाएगा?? एक गलती उसने की और एक गलती मैंने की.. क्या इस तरह हिसाब बराबर मान सकते है?? शीला के होंठों तक ये बात आ गई.. उसका दिल कर रहा था पिछले दो महीनों के दौरान उसने जो कुछ भी किया वो सब कुछ मदन को बता दे और अपने दिल का बोझ भी हल्का कर ले.. पर गलती का इकरार करना बेहद कठिन होता है.. किसी की हत्या करने से भी ज्यादा कठिन.. जबरदस्त हिम्मत चाहिए अपनी गलती मानने के लिए.. हर किसी के बस की बात नही है.. लाख कोशिशों के बावजूद उसकी जबान नही चली.. मन ही मन वो सब समझती थी.. वो मदन को माफ क्यों न करें? अरे, मदन को माफ करने का उसे हक था ही कहाँ? हक तो तब होता अगर वो भी मदन के प्रति वफादार रही होती.. जब मदन से सौ गुना ज्यादा गलती खुद ही कर चुकी हो.. तब वो किस मुंह से मदन की माफी कुबूल करती??

बेड के एक कोने पर मदन बैठा हुआ था.. उसका लंड ऐसे निस्तेज होकर पड़ा था जैसे किसी काम का न हो.. शीला की नजर उस लंड पर पड़ते ही उसे दया आ गई.. अरे रे.. !! मेरी मौजूदगी में लंड की ये हालत!!! मैंने अच्छे अच्छे लंडों को पलक झपकते ही टाइट कर दिया है और मैं यहाँ पूरी की पूरी नंगी बैठी हूँ फिर भी ये निर्जीव हुआ पड़ा है.. !! ये तो मेरे सुंदर शरीर का.. मेरे स्त्रीयत्व का.. मेरी पत्नीत्व का.. अपमान है..

शीला उठकर किचन में गई और पानी पीकर वापिस आई.. आकर उसने मदन को कंधे से पकड़कर खड़ा किया..

शीला: "मदन.. जिंदगी में ऐसे कई मोड आएंगे जहां पर ऐसी घटनाएं घटेंगी जो हमने सपने में भी ना सोची हो.. " शीला ने जिस तरह उस अंग्रेज जॉन का इंग्लिश लंड अपने भोसड़े में लिया था वो याद करते हुए वो मदन के लंड को हल्के हाथों से मसाज करने लगी..

मदन: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. मैंने भी ये सपने में नही सोचा था की मैं किसी विदेश औरत से शरीर संबंध स्थापित करूंगा "

शीला को ऐसा लगा.. जैसे मदन खुद की नही.. पर शीला की बात कर रहा हो..

शीला ने मदन को एक प्रेमभरी चुम्मी देकर अपनी ओर खींचा और फिर से एक बार संभोग का मुक प्रस्ताव उसके सामने रखा.. जिसे मदन ने.. उसके स्तनों को दबाते हुए स्वीकार किया.. दोनों फिर से अपनी पसंदीदा प्रवृत्ति में खो गए.. शीला ने अपनी अनूठी काम कला का उपयोग कर.. अपने पति के चौबीस महीनों के विदेश प्रवास की थकान उतार दी.. उसके लंड के विदेशीपने को अपनी देसी चुत के कामरस से नामशेष कर दिया..

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एक जबरदस्त ठुकाई के बाद.. जब दोनों शांत हुए तब उनके चेहरे खिले हुए ताजे गुलाब जैसे हो गए.. दोपहर को जल्दबाजी में जो कसर रह गई थी वो सब शीला ने एक साथ निकाल दी.. जब शीला आँखें बंद कर मदन के लंड को पूर्ण उत्तेजना से मुख-मैथुन का आनंद दे रही थी तभी उसका दिमाग यह कल्पना कर रहा था की वह विदेश जॉन का लंड चूस रही है.. कभी संजय के लंड की याद आ जाती तब वो हल्के से अपने दांत मदन के लंड पर गाड़ देती और मदन की धीमी चीख निकल जाती.. पर मदन शीला के गदराए जिस्म की मस्ती में कुछ ऐसा खो चुका था की उस बेवकूफ को ये विचार भी नही आया की पिछले दो सालों में.. उसकी गरम पत्नी ने अपनी चुत की आग बुझाने के लिए क्या क्या किया होगा.. !!

शीला अब मदन की कमजोरी बन चुकी थी.. उसके नंगे बदन को देखकर मदन अपनी विचारशक्ति खो बैठता था..

मादरजात नग्न पति-पत्नी.. दुनिया से बेखबर.. एक दूजे में खोए हुए थे और अपनी भूख को संतुष्ट करने के पश्चात कपड़े पहन कर.. तैयार होकर.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सोया हुआ था.. अभी भी ऑर्गैज़म के कारण तेज हुई साँसों से शीला की छाती हांफ रही थी.. हर सांस के साथ ऊपर नीचे होते हुए वह मांसल स्तनों की भव्यता को मदन मन भरकर देखता ही रहा..

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शीला: "तुझे मेरे बॉल बहोत पसंद है ना.. मदन!! वो विदेशी औरत के स्तन मेरे स्तन से भी ज्यादा खूबसूरत थे क्या?"

मदन: "शीला, यह विदेशी लोग दिखने में जीतने सुंदर होते है.. उससे कई ज्यादा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मानती थी.. अपनी किसी भी इच्छा को बिना छुपायें खुलकर बोलने की क्षमता.. और उस इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने का मनोबल.. उनकी यह बात मुझे बहोत अच्छी लगी.."


शीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा
Woww very understanding Sheela.
 

vakharia

Supreme
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बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है शीला गोवा की बाते याद करके गरम हो गई और संजय के पहल करने पर उसको मना नहीं कर पाई और दोनो में चूदाई की शुरुआत हो गई है संजय शीला ही हवस देखकर हैरान हो गया
Thanks 💖❤️💖
 

Dirty_mind

Love sex without any taboo
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जिस घर में, मैं पेइंग गेस्ट था उसके मालिक की पत्नी के साथ मेरे सेक्स-संबंध थे.. बाकी के समय..हम दोनों के जो वीडियोज़ बनाकर ले गया था.. उसे लैपटॉप में देखते हुए.. हाथ से हिलाकर मैं ईसे ठंडा कर देता था"

शीला वास्तव में चोंक गई "क्या?? सच कह रहा है तू? पीयूष को तो ऐसे बोल रहा था तू मुझे वहाँ मिस करता था और मुझे ही वफादार रहा था"

मदन: "शीला, अब तुझसे क्या छुपाना.. !! पर तू भी सोच जरा.. दो साल का समय बड़ा लंबा होता है.. और इतने लंबे समय तक बिना सेक्स के रह पाना कितना मुश्किल होता है ये तू भी जानती है.. और फिर भी.. मैं तो तुझसे वफादार ही रहा था.. पर बात ही कुछ ऐसी हो गई की मुझे उस लैडी से सेक्स संबंध बनाना पड़ा.. मैं अपने आप की वकालत नही कर रहा.. पर मैं तुझे धोखे में रखना नही चाहता हूँ.. मैं तुझसे बेंतहाँ प्यार करता हूँ.. इसलिए मेरा मानना है की एक बार फिसल जाने को धोखा नही कह सकते.. और जो भी हुआ था वो जरूरत के आधार पर हुआ था.. अपने पार्टनर की गैर-मौजूदगी में जब कुदरती इच्छाएं चरमसीमा पर पहुँच जाएँ तब ऐसा होना स्वाभाविक है.. कोई बड़ी बात नही है.. !!"

शीला की छाती पर से एक बड़ा बोझ हल्का हो गया.. अपने कारनामों के चलते जो अपराधभाव जागृत हुआ था वो भांप बनकर उड़ गया.. चुदाई के दौरान ऐसी गंभीर चर्चा का नतीजा ये हुआ की मदन का लंड मुरझा गया.. शीला के हाथों में होने के बावजूद.. ये बात को शीला को राज न आई.. ईसे खड़ा करके ही वो अपने भोसड़े की खाज मिटाने वाली थी.. नरम लोडा स्त्री के किस काम का.. !! उससे तो पेशाब करने के अलावा और कोई काम नही हो सकता.. ज्यादातर औरतों को नरम लोडा देखने का अवसर नही मिलता.. क्योंकि जैसे ही किसी स्त्री के सामने लंड खुलता है.. वो खड़ा हो ही जाता है.. सच बात तो ये है की नरम लंड देखने में भी पसंद नही आता.. वो सुंदर तभी लगता है जब उत्तेजित होकर खड़ा हो जाए.. पुरुष भी होशियार होते है.. वो अपने कपड़े उतारने से पहले ही स्त्री को नंगी कर देते है.. और फिर उस निर्वस्त्र शरीर को देखकर.. सहला कर मसल कर.. अपने लंड को खड़ा करते है और फिर उसे स्त्री के सामने पेश करते है..

वैसे शीला ने मदन के नरम लंड को अनगिनत बार देखा था.. पर उत्तेजित होकर संभोग के लिए बेकरार हो तब नरम लंड देखना.. किसी सदमे से कम नही होता..

कुंवारी नादान लड़कियां जब पहली बार कडक लंड देखती है.. तो उनके दिमाग में यही गलतफहमी हो जाती है की लंड हमेशा ऐसे ही रहता होगा.. कडक और खड़ा.. !! और फिर उन्हे ये ताज्जुब होने लगता है की इतना बड़ा लंड पेंट में फिट कैसे रहता होगा??

शीला को इस बात की तसल्ली हो गई.. की मदन उसे अब भी बेहद प्यार करता है.. वरना गीले भोसड़े को चोदने के बजाए.. इतनी सच्चाई से क्यों अपना जुर्म कुबुलता.. !! और अगर उसने बताया न होता तो शीला को पता भी नही चलने वाला था.. जिस तरह मदन ने खुले दिल से उसे सारी बात बता दी थी.. शीला की नज़रों में मदन का कद और बड़ा हो गया था.. अब ये शीला को तय करना था.. मदन की एक गलती को दिमाग में रखकर सारी ज़िंदगी रोते रहना था या फिर बड़ा मन रखकर.. उसे स्वीकार कर भूल जाना था..

"क्या सोच रही हो शीला?? मुझे पता है.. ये जानकर तुझे बहोत दुख हुआ है.. पर तेरी इन छातियों को छोड़कर मैंने अपने आप को २१ महीने तक अपने आप को किसी तरह कंट्रोल में ही रखा हुआ था.. पर पता नही.. उस दिन मुझे क्या हो गया.. मैं अपने आप को रोक ही नही पाया.. अब मुझे माफ करना या न करना वो तुझ पर निर्भर है.. तू जो सजा देगी मुझे वो मंजूर है.. पर दिल में ये बोझ लिए जीना मुझे पसंद नही.. " इतना अच्छा उत्तेजना सभर वक्त बर्बाद हो रहा था.. शीला गंभीरता से सोचती रही

उसके दिमाग में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.. अगर मैं मदन को अपने कारनामों के बारे में बता दु तो क्या होगा?? वो क्या सोचेगा मेरे बारे में?? क्या वो मुझे कभी माफ कर पाएगा?? एक गलती उसने की और एक गलती मैंने की.. क्या इस तरह हिसाब बराबर मान सकते है?? शीला के होंठों तक ये बात आ गई.. उसका दिल कर रहा था पिछले दो महीनों के दौरान उसने जो कुछ भी किया वो सब कुछ मदन को बता दे और अपने दिल का बोझ भी हल्का कर ले.. पर गलती का इकरार करना बेहद कठिन होता है.. किसी की हत्या करने से भी ज्यादा कठिन.. जबरदस्त हिम्मत चाहिए अपनी गलती मानने के लिए.. हर किसी के बस की बात नही है.. लाख कोशिशों के बावजूद उसकी जबान नही चली.. मन ही मन वो सब समझती थी.. वो मदन को माफ क्यों न करें? अरे, मदन को माफ करने का उसे हक था ही कहाँ? हक तो तब होता अगर वो भी मदन के प्रति वफादार रही होती.. जब मदन से सौ गुना ज्यादा गलती खुद ही कर चुकी हो.. तब वो किस मुंह से मदन की माफी कुबूल करती??

बेड के एक कोने पर मदन बैठा हुआ था.. उसका लंड ऐसे निस्तेज होकर पड़ा था जैसे किसी काम का न हो.. शीला की नजर उस लंड पर पड़ते ही उसे दया आ गई.. अरे रे.. !! मेरी मौजूदगी में लंड की ये हालत!!! मैंने अच्छे अच्छे लंडों को पलक झपकते ही टाइट कर दिया है और मैं यहाँ पूरी की पूरी नंगी बैठी हूँ फिर भी ये निर्जीव हुआ पड़ा है.. !! ये तो मेरे सुंदर शरीर का.. मेरे स्त्रीयत्व का.. मेरी पत्नीत्व का.. अपमान है..

शीला उठकर किचन में गई और पानी पीकर वापिस आई.. आकर उसने मदन को कंधे से पकड़कर खड़ा किया..

शीला: "मदन.. जिंदगी में ऐसे कई मोड आएंगे जहां पर ऐसी घटनाएं घटेंगी जो हमने सपने में भी ना सोची हो.. " शीला ने जिस तरह उस अंग्रेज जॉन का इंग्लिश लंड अपने भोसड़े में लिया था वो याद करते हुए वो मदन के लंड को हल्के हाथों से मसाज करने लगी..

मदन: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. मैंने भी ये सपने में नही सोचा था की मैं किसी विदेश औरत से शरीर संबंध स्थापित करूंगा "

शीला को ऐसा लगा.. जैसे मदन खुद की नही.. पर शीला की बात कर रहा हो..

शीला ने मदन को एक प्रेमभरी चुम्मी देकर अपनी ओर खींचा और फिर से एक बार संभोग का मुक प्रस्ताव उसके सामने रखा.. जिसे मदन ने.. उसके स्तनों को दबाते हुए स्वीकार किया.. दोनों फिर से अपनी पसंदीदा प्रवृत्ति में खो गए.. शीला ने अपनी अनूठी काम कला का उपयोग कर.. अपने पति के चौबीस महीनों के विदेश प्रवास की थकान उतार दी.. उसके लंड के विदेशीपने को अपनी देसी चुत के कामरस से नामशेष कर दिया..

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एक जबरदस्त ठुकाई के बाद.. जब दोनों शांत हुए तब उनके चेहरे खिले हुए ताजे गुलाब जैसे हो गए.. दोपहर को जल्दबाजी में जो कसर रह गई थी वो सब शीला ने एक साथ निकाल दी.. जब शीला आँखें बंद कर मदन के लंड को पूर्ण उत्तेजना से मुख-मैथुन का आनंद दे रही थी तभी उसका दिमाग यह कल्पना कर रहा था की वह विदेश जॉन का लंड चूस रही है.. कभी संजय के लंड की याद आ जाती तब वो हल्के से अपने दांत मदन के लंड पर गाड़ देती और मदन की धीमी चीख निकल जाती.. पर मदन शीला के गदराए जिस्म की मस्ती में कुछ ऐसा खो चुका था की उस बेवकूफ को ये विचार भी नही आया की पिछले दो सालों में.. उसकी गरम पत्नी ने अपनी चुत की आग बुझाने के लिए क्या क्या किया होगा.. !!

शीला अब मदन की कमजोरी बन चुकी थी.. उसके नंगे बदन को देखकर मदन अपनी विचारशक्ति खो बैठता था..

मादरजात नग्न पति-पत्नी.. दुनिया से बेखबर.. एक दूजे में खोए हुए थे और अपनी भूख को संतुष्ट करने के पश्चात कपड़े पहन कर.. तैयार होकर.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सोया हुआ था.. अभी भी ऑर्गैज़म के कारण तेज हुई साँसों से शीला की छाती हांफ रही थी.. हर सांस के साथ ऊपर नीचे होते हुए वह मांसल स्तनों की भव्यता को मदन मन भरकर देखता ही रहा..

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शीला: "तुझे मेरे बॉल बहोत पसंद है ना.. मदन!! वो विदेशी औरत के स्तन मेरे स्तन से भी ज्यादा खूबसूरत थे क्या?"

मदन: "शीला, यह विदेशी लोग दिखने में जीतने सुंदर होते है.. उससे कई ज्यादा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मानती थी.. अपनी किसी भी इच्छा को बिना छुपायें खुलकर बोलने की क्षमता.. और उस इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने का मनोबल.. उनकी यह बात मुझे बहोत अच्छी लगी.."

शीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा
मदन अरब मकान-मालकिन की गांड मारते हुए
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