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Romance श्रृष्टि की गजब रित

Funlover

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ये कहानी में sex नहीं है !!!!!

आप का पूरा साथ रहेगा ये उम्मीद रखती हु


और लिखने की कोशिश करती हु ...............

प्लीज़ बने रहिये ....................
 
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श्रृष्टि की गजब रित


भाग -1



श्रृष्टि कितना खूबसूरत नाम हैं। जितनी खूबसूरत नाम हैं उतना ही खूबसूरत इसकी आभा हैं। जिसमें पूरा जग समाहित हैं। न जानें कितने अजीबों गरीब प्राणिया इसमें अपना डेरा जमाए हुए हैं। उन्हीं अजीबो गरीब प्राणियों में इंसान ही एक मात्र ऐसा प्राणी हैं। जिसकी प्रवृति को समझ पाना बड़ा ही दुष्कर हैं। कब किसके साथ कैसा व्यवहार कर दे यह भी कह पाना दुष्कर हैं। कोई तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए रिश्तों को ताक पर रख देता है। तो कोई विपरीत परिस्थिति में भी रिश्तों की नाजुक डोर टूटने नहीं देता हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं कोई रिश्ता न होते हुए भी ऐसा कुछ कर जाता हैं जिसके लिए लोग उन्हे उम्र भार याद रखते हैं। हैं न बड़ा अजीब श्रृष्टि हमारी।

बहुत हुई बाते अब मुद्दे पर आती हूं और कहानी की सफर शुरू करती हूं….

.

श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि! सुन रहीं हैं कि नहीं, बेटा जल्दी से बाहर आ।

एक व्यस्क महिला रसोई की द्वार पर खड़ी होकर श्रृष्टि नाम की एक शख़्स को आवाज दे रहीं हैं। बुलाने के अंदाज और संबोधन के तरीके से जान पड़ता हैं। व्यस्क महिला का श्रृष्टि से कोई खास रिश्ता हैं।

आवाजे अत्यधिक उच्च स्वर में दिया गया था किन्तु इसका नतीजा ये रहा कि श्रृष्टि ने न कोई आहट किया और न ही बाहर निकलकर आई, इसलिए महिला खुद से बोलीं... इस लडकी का मै क्या करू, एक बार बुलाने से सुनती ही नहीं!

इतना बोलकर कुछ कदम आगे बढ गई और कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोलीं... श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि सो रहीं है क्या?

"नहीं मां" की एक आवाज़ अंदर से आई, तब महिला फ़िर से बोलीं...बहार आ बेटा कुछ काम हैं।

एक या दो मिनट का वक्त बीता ही होगा कि कमरे का दरवाजा खुला, दुनिया भर की मसूमिया और भोलापन चहरे पर लिए, मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं श्रृष्टि बोली... बोलों मां, क्या काम हैं?

"पहले तू ये बता, कर क्या रहीं थीं? कितनी आवाजे दिया मगर तू है कि सुन ही नहीं रहीं थी" इतना बोलकर महिला ने एक हल्का सा चपत श्रृष्टि के सिर पर मार दिया।

"ओ मेरी भोली मां (प्यार का भाव शब्दों में मिश्रित कर श्रृष्टि आगे बोलीं) कल मुझे साक्षात्कार (इन्टरव्यू) के लिए जाना है उसकी तैयारी कर रही थीं। आप ये अच्छे से जानती हों जब मैं काम में ध्यान लगाती हूं फ़िर मुझे कुछ सुनाई नहीं देता हैं।"

"अब उन कामों को अल्प विराम दे और बाजार से रसोई की कुछ जरूरी सामान लेकर आ।"

"ठीक है मैं तैयार होकर आती हूं।"

इतना बोलकर श्रृष्टि पलटकर अंदर को चल दिया और महिला किचन की और चल पड़ी। श्रृष्टि बाजार जानें की तैयारी कर ही रहीं थी कि उसके मोबाइल ने बजकर श्रृष्टि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, "कौन है" बस इतना ही बोलकर श्रृष्टि ने मोबाइल उठा लिया और स्क्रीन पर दिख रहीं नाम को देखकर हल्का सा मुस्कुराई फिर कॉल रिसीव करते हुए बोलीं... बोल समीक्षा कैसे याद किया।

समीक्षा...यार मुझे न कुछ शॉपिंग करने जाना था। तू खाली हैं तो मेरे साथ चल देती , तो अच्छा होता।"

श्रृष्टि...मैं भी कुछ काम से बजार ही जा रहीं थीं तो लगें हाथ तेरा भी काम करवा दूंगी, मेरा मतलब है तेरा शॉपिंग भी करवा दूंगी। तू घर आ जा तब तक मैं तैयार हों लेती हूं।"

श्रृष्टि से सहमति पाते ही "अभी आई" बोलकर समीक्षा ने कॉल कट कर दिया और श्रृष्टि तैयार होकर मां के पास पहुंचकर बजार से आने वाली सामानों की लिस्ट लिया फ़िर बोलीं…मां, वो समीक्षा भी आ रही है उसे शॉपिंग करनी हैं। तो हो सकता हैं कुछ वक्त लग जाय, इससे आपको दिक्कत तो नहीं होगी।"

"नहीं" बस इतना ही बोल पाई कि बहार से हॉर्न की आवाज़ आई। जिसे सुनकर श्रृष्टि बोलीं... लगता हैं समीक्षा आ गई है। मैं चलती हूं। बाय मां।

कुछ ही वक्त में दोनों सहेली दुपहिया पर सवार हों, हवा से बातें करते हुए बजार में पहुंच गईं। दोनों इस वक्त शहर के सबसे मशहूर शॉपिंग माल के गेट से भीतर पार्किंग में जा ही रहीं थीं कि एक चमचती कार दोनों के स्कूटी से बिल्कुल सटती हुई आगे को बढ़ गईं। जिसका नतीजा ये हुआ की समीक्षा का बैलेंस बिगड़ गया, किसी तरह गिरने से खुद को बचाकर समीक्षा बोलीं... अरे ओ आंख के अंधे, अमीर बाप के बिगड़े हुए औलाद दिन में ही चढ़ा लिया जो दिखना बंद हों गया।

श्रृष्टि...अरे छोड़ न यार जानें दे।

समीक्षा...क्या जानें दे, उसके पास चमचमाती कार हैं। इसका मतलब हमारी दुपिया का कोई वैल्यू ही नहीं मन कर रहा हैं पत्थर मारकर उसके चमचमाती कार का नक्शा ही बिगड़ दूं।

श्रृष्टि...अरे होते हैं कुछ लोग जिन्हें पैसे कि कुछ ज्यादा ही घमंड होता हैं। तू खुद ही देख उसके पास लाखों की कार हैं उसके आगे हमारी इस दूपिया की क्या वैल्यू?

"एक तो उस कमीने ने दिमाग की दही कर दिया। अब तू उसमें चीनी डालकर लस्सी बनाने पे तुली हैं।" तुनककर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि मुस्कुराते हुए जवाब दिया...उसमें से एक गिलास निकलकर पी ले और गुस्से को ठंडा कर लें ही ही ही...।

"श्रृष्टि" और ज्यादा तुनक कर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि फिर से मुस्कुराते हुए बोलीं...अरे अरे गुस्सा थूक दे और चलकर वहीं करते है जो हम करने आएं हैं।

समीक्षा को थोड़ा और समझा बुझा कर मॉल के भीतर लेकर जानें लगीं कि मुख्य दरवाजे से भीतर जाते वक्त एक हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छू कर गुजर गया। श्रृष्टि को लगा शायद अंजाने में किसी का हाथ छू गया होगा। इसलिए ज्यादा तुल नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की उसे बुरा नहीं लगा। बूरा लगा मगर वो उस शख्स को देख ही नहीं पाई जिसका हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छूकर निकल गया। सिर्फ और सिर्फ़ इसी कारण श्रृष्टि ने मामले को यही दबा देना बेहतर समझा। बरहाल दोनों सहेली आगे को बढ़ गई और अपने काम को अंजाम देने लग गई।

लड़कियों का भी क्या ही कहना? इनको शॉपिंग करने में ढेरों वक्त चाहिए होता है। देखेगी बीस और खरीदेगी एक दो, ऐसे ही करते हुए दोनों आगे बढ़ती गई। कहीं कुछ पसंद आया तो खरीद लिया वरना आगे चल दिया। ऐसे ही एक सेक्शन में कुछ ज्यादा ही भिड़ था और उन्हीं भीड़ में समीक्षा अपने लिए कपडे देख रहीं थीं और श्रृष्टि उसकी हेल्प करने में लगीं हुई थीं।

तभी श्रृष्टि को लगा कोई उसके जिस्म को छूकर निकल गया। पलटकर पिछे देखा तो उसे अपने पिछे कई चहरे दिखा। अब दुस्वारी ये थीं कि उन चेहरों को देखकर कैसे पहचाने, उनमें से किसने उसके जिस्म को छुआ, जब पहचान ही नहीं पाई तो कोई प्रतिक्रिया देना निरर्थक था। इसलिए वापस पलटकर समीक्षा की मदद करने लग गईं।

कुछ ही वक्त बीता था की एक बार फ़िर से किसी का हाथ उसके जिस्म को छु गया। इस बार श्रृष्टि को गुस्सा आ गया। गुस्से में तमतमती चेहरा लिए पीछे पलटी तो देखा उसके पीछे कोई नहीं था। गुस्सा तो बहुत आया मगर किसी को न देखकर अपने गुस्से को दबा गई और पलटकर उखड़ी मुड़ से समीक्षा को जल्दी करने को बोलीं, कुछ ही वक्त में समीक्षा की शॉपिंग पूरा हुआ फिर ग्रोसरी स्टोर से मां के दिए लिस्ट के मुताबिक किचन का सामान लेकर दोनों बिल देने पहुंच गई। समीक्षा अपना बिल बनवा ही रहीं थीं कि अचानक "चटकक्क" के साथ "बेशर्मी की एक हद होती हैं" की तेज आवाज़ वहां मौजुद सभी के कान के पर्दों को हिलाकर रख दिया।

जारी रहेगा... बने रहिये ............. हो सके तो अभिप्राय देते रहिये .........
 

Ajju Landwalia

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श्रृष्टि की गजब रित


भाग -1



श्रृष्टि कितना खूबसूरत नाम हैं। जितनी खूबसूरत नाम हैं उतना ही खूबसूरत इसकी आभा हैं। जिसमें पूरा जग समाहित हैं। न जानें कितने अजीबों गरीब प्राणिया इसमें अपना डेरा जमाए हुए हैं। उन्हीं अजीबो गरीब प्राणियों में इंसान ही एक मात्र ऐसा प्राणी हैं। जिसकी प्रवृति को समझ पाना बड़ा ही दुष्कर हैं। कब किसके साथ कैसा व्यवहार कर दे यह भी कह पाना दुष्कर हैं। कोई तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए रिश्तों को ताक पर रख देता है। तो कोई विपरीत परिस्थिति में भी रिश्तों की नाजुक डोर टूटने नहीं देता हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं कोई रिश्ता न होते हुए भी ऐसा कुछ कर जाता हैं जिसके लिए लोग उन्हे उम्र भार याद रखते हैं। हैं न बड़ा अजीब श्रृष्टि हमारी।

बहुत हुई बाते अब मुद्दे पर आती हूं और कहानी की सफर शुरू करती हूं….

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श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि! सुन रहीं हैं कि नहीं, बेटा जल्दी से बाहर आ।

एक व्यस्क महिला रसोई की द्वार पर खड़ी होकर श्रृष्टि नाम की एक शख़्स को आवाज दे रहीं हैं। बुलाने के अंदाज और संबोधन के तरीके से जान पड़ता हैं। व्यस्क महिला का श्रृष्टि से कोई खास रिश्ता हैं।

आवाजे अत्यधिक उच्च स्वर में दिया गया था किन्तु इसका नतीजा ये रहा कि श्रृष्टि ने न कोई आहट किया और न ही बाहर निकलकर आई, इसलिए महिला खुद से बोलीं... इस लडकी का मै क्या करू, एक बार बुलाने से सुनती ही नहीं!

इतना बोलकर कुछ कदम आगे बढ गई और कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोलीं... श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि सो रहीं है क्या?

"नहीं मां" की एक आवाज़ अंदर से आई, तब महिला फ़िर से बोलीं...बहार आ बेटा कुछ काम हैं।

एक या दो मिनट का वक्त बीता ही होगा कि कमरे का दरवाजा खुला, दुनिया भर की मसूमिया और भोलापन चहरे पर लिए, मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं श्रृष्टि बोली... बोलों मां, क्या काम हैं?

"पहले तू ये बता, कर क्या रहीं थीं? कितनी आवाजे दिया मगर तू है कि सुन ही नहीं रहीं थी" इतना बोलकर महिला ने एक हल्का सा चपत श्रृष्टि के सिर पर मार दिया।

"ओ मेरी भोली मां (प्यार का भाव शब्दों में मिश्रित कर श्रृष्टि आगे बोलीं) कल मुझे साक्षात्कार (इन्टरव्यू) के लिए जाना है उसकी तैयारी कर रही थीं। आप ये अच्छे से जानती हों जब मैं काम में ध्यान लगाती हूं फ़िर मुझे कुछ सुनाई नहीं देता हैं।"

"अब उन कामों को अल्प विराम दे और बाजार से रसोई की कुछ जरूरी सामान लेकर आ।"

"ठीक है मैं तैयार होकर आती हूं।"

इतना बोलकर श्रृष्टि पलटकर अंदर को चल दिया और महिला किचन की और चल पड़ी। श्रृष्टि बाजार जानें की तैयारी कर ही रहीं थी कि उसके मोबाइल ने बजकर श्रृष्टि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, "कौन है" बस इतना ही बोलकर श्रृष्टि ने मोबाइल उठा लिया और स्क्रीन पर दिख रहीं नाम को देखकर हल्का सा मुस्कुराई फिर कॉल रिसीव करते हुए बोलीं... बोल समीक्षा कैसे याद किया।

समीक्षा...यार मुझे न कुछ शॉपिंग करने जाना था। तू खाली हैं तो मेरे साथ चल देती , तो अच्छा होता।"

श्रृष्टि...मैं भी कुछ काम से बजार ही जा रहीं थीं तो लगें हाथ तेरा भी काम करवा दूंगी, मेरा मतलब है तेरा शॉपिंग भी करवा दूंगी। तू घर आ जा तब तक मैं तैयार हों लेती हूं।"

श्रृष्टि से सहमति पाते ही "अभी आई" बोलकर समीक्षा ने कॉल कट कर दिया और श्रृष्टि तैयार होकर मां के पास पहुंचकर बजार से आने वाली सामानों की लिस्ट लिया फ़िर बोलीं…मां, वो समीक्षा भी आ रही है उसे शॉपिंग करनी हैं। तो हो सकता हैं कुछ वक्त लग जाय, इससे आपको दिक्कत तो नहीं होगी।"

"नहीं" बस इतना ही बोल पाई कि बहार से हॉर्न की आवाज़ आई। जिसे सुनकर श्रृष्टि बोलीं... लगता हैं समीक्षा आ गई है। मैं चलती हूं। बाय मां।

कुछ ही वक्त में दोनों सहेली दुपहिया पर सवार हों, हवा से बातें करते हुए बजार में पहुंच गईं। दोनों इस वक्त शहर के सबसे मशहूर शॉपिंग माल के गेट से भीतर पार्किंग में जा ही रहीं थीं कि एक चमचती कार दोनों के स्कूटी से बिल्कुल सटती हुई आगे को बढ़ गईं। जिसका नतीजा ये हुआ की समीक्षा का बैलेंस बिगड़ गया, किसी तरह गिरने से खुद को बचाकर समीक्षा बोलीं... अरे ओ आंख के अंधे, अमीर बाप के बिगड़े हुए औलाद दिन में ही चढ़ा लिया जो दिखना बंद हों गया।

श्रृष्टि...अरे छोड़ न यार जानें दे।

समीक्षा...क्या जानें दे, उसके पास चमचमाती कार हैं। इसका मतलब हमारी दुपिया का कोई वैल्यू ही नहीं मन कर रहा हैं पत्थर मारकर उसके चमचमाती कार का नक्शा ही बिगड़ दूं।

श्रृष्टि...अरे होते हैं कुछ लोग जिन्हें पैसे कि कुछ ज्यादा ही घमंड होता हैं। तू खुद ही देख उसके पास लाखों की कार हैं उसके आगे हमारी इस दूपिया की क्या वैल्यू?

"एक तो उस कमीने ने दिमाग की दही कर दिया। अब तू उसमें चीनी डालकर लस्सी बनाने पे तुली हैं।" तुनककर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि मुस्कुराते हुए जवाब दिया...उसमें से एक गिलास निकलकर पी ले और गुस्से को ठंडा कर लें ही ही ही...।

"श्रृष्टि" और ज्यादा तुनक कर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि फिर से मुस्कुराते हुए बोलीं...अरे अरे गुस्सा थूक दे और चलकर वहीं करते है जो हम करने आएं हैं।

समीक्षा को थोड़ा और समझा बुझा कर मॉल के भीतर लेकर जानें लगीं कि मुख्य दरवाजे से भीतर जाते वक्त एक हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छू कर गुजर गया। श्रृष्टि को लगा शायद अंजाने में किसी का हाथ छू गया होगा। इसलिए ज्यादा तुल नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की उसे बुरा नहीं लगा। बूरा लगा मगर वो उस शख्स को देख ही नहीं पाई जिसका हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छूकर निकल गया। सिर्फ और सिर्फ़ इसी कारण श्रृष्टि ने मामले को यही दबा देना बेहतर समझा। बरहाल दोनों सहेली आगे को बढ़ गई और अपने काम को अंजाम देने लग गई।

लड़कियों का भी क्या ही कहना? इनको शॉपिंग करने में ढेरों वक्त चाहिए होता है। देखेगी बीस और खरीदेगी एक दो, ऐसे ही करते हुए दोनों आगे बढ़ती गई। कहीं कुछ पसंद आया तो खरीद लिया वरना आगे चल दिया। ऐसे ही एक सेक्शन में कुछ ज्यादा ही भिड़ था और उन्हीं भीड़ में समीक्षा अपने लिए कपडे देख रहीं थीं और श्रृष्टि उसकी हेल्प करने में लगीं हुई थीं।

तभी श्रृष्टि को लगा कोई उसके जिस्म को छूकर निकल गया। पलटकर पिछे देखा तो उसे अपने पिछे कई चहरे दिखा। अब दुस्वारी ये थीं कि उन चेहरों को देखकर कैसे पहचाने, उनमें से किसने उसके जिस्म को छुआ, जब पहचान ही नहीं पाई तो कोई प्रतिक्रिया देना निरर्थक था। इसलिए वापस पलटकर समीक्षा की मदद करने लग गईं।

कुछ ही वक्त बीता था की एक बार फ़िर से किसी का हाथ उसके जिस्म को छु गया। इस बार श्रृष्टि को गुस्सा आ गया। गुस्से में तमतमती चेहरा लिए पीछे पलटी तो देखा उसके पीछे कोई नहीं था। गुस्सा तो बहुत आया मगर किसी को न देखकर अपने गुस्से को दबा गई और पलटकर उखड़ी मुड़ से समीक्षा को जल्दी करने को बोलीं, कुछ ही वक्त में समीक्षा की शॉपिंग पूरा हुआ फिर ग्रोसरी स्टोर से मां के दिए लिस्ट के मुताबिक किचन का सामान लेकर दोनों बिल देने पहुंच गई। समीक्षा अपना बिल बनवा ही रहीं थीं कि अचानक "चटकक्क" के साथ "बेशर्मी की एक हद होती हैं" की तेज आवाज़ वहां मौजुद सभी के कान के पर्दों को हिलाकर रख दिया।

जारी रहेगा... बने रहिये ............. हो सके तो अभिप्राय देते रहिये .........
Ek nayi kahani ke liye hardik shubhkamnaye Dear Funlover

Shuruwat se ek middle class ki sunder sanskari ladki kikahani lag rahi he............

Dekhte he aage kya hota he......

Keep posting Dear
 
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Ek nayi kahani ke liye hardik shubhkamnaye Dear Funlover

Shuruwat se ek middle class ki sunder sanskari ladki kikahani lag rahi he............

Dekhte he aage kya hota he......

Keep posting Dear
Thank you very much

ji ha aage padhenge to shayad aap ko achchha lagega

koshish yahi hai ki jald se jald ye kahani puri karu....... shayad update regular milte rahenge ........
 

Anita Rani

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श्रृष्टि की गजब रित


भाग -1



श्रृष्टि कितना खूबसूरत नाम हैं। जितनी खूबसूरत नाम हैं उतना ही खूबसूरत इसकी आभा हैं। जिसमें पूरा जग समाहित हैं। न जानें कितने अजीबों गरीब प्राणिया इसमें अपना डेरा जमाए हुए हैं। उन्हीं अजीबो गरीब प्राणियों में इंसान ही एक मात्र ऐसा प्राणी हैं। जिसकी प्रवृति को समझ पाना बड़ा ही दुष्कर हैं। कब किसके साथ कैसा व्यवहार कर दे यह भी कह पाना दुष्कर हैं। कोई तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए रिश्तों को ताक पर रख देता है। तो कोई विपरीत परिस्थिति में भी रिश्तों की नाजुक डोर टूटने नहीं देता हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं कोई रिश्ता न होते हुए भी ऐसा कुछ कर जाता हैं जिसके लिए लोग उन्हे उम्र भार याद रखते हैं। हैं न बड़ा अजीब श्रृष्टि हमारी।

बहुत हुई बाते अब मुद्दे पर आती हूं और कहानी की सफर शुरू करती हूं….

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श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि! सुन रहीं हैं कि नहीं, बेटा जल्दी से बाहर आ।

एक व्यस्क महिला रसोई की द्वार पर खड़ी होकर श्रृष्टि नाम की एक शख़्स को आवाज दे रहीं हैं। बुलाने के अंदाज और संबोधन के तरीके से जान पड़ता हैं। व्यस्क महिला का श्रृष्टि से कोई खास रिश्ता हैं।

आवाजे अत्यधिक उच्च स्वर में दिया गया था किन्तु इसका नतीजा ये रहा कि श्रृष्टि ने न कोई आहट किया और न ही बाहर निकलकर आई, इसलिए महिला खुद से बोलीं... इस लडकी का मै क्या करू, एक बार बुलाने से सुनती ही नहीं!

इतना बोलकर कुछ कदम आगे बढ गई और कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोलीं... श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि सो रहीं है क्या?

"नहीं मां" की एक आवाज़ अंदर से आई, तब महिला फ़िर से बोलीं...बहार आ बेटा कुछ काम हैं।

एक या दो मिनट का वक्त बीता ही होगा कि कमरे का दरवाजा खुला, दुनिया भर की मसूमिया और भोलापन चहरे पर लिए, मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं श्रृष्टि बोली... बोलों मां, क्या काम हैं?

"पहले तू ये बता, कर क्या रहीं थीं? कितनी आवाजे दिया मगर तू है कि सुन ही नहीं रहीं थी" इतना बोलकर महिला ने एक हल्का सा चपत श्रृष्टि के सिर पर मार दिया।

"ओ मेरी भोली मां (प्यार का भाव शब्दों में मिश्रित कर श्रृष्टि आगे बोलीं) कल मुझे साक्षात्कार (इन्टरव्यू) के लिए जाना है उसकी तैयारी कर रही थीं। आप ये अच्छे से जानती हों जब मैं काम में ध्यान लगाती हूं फ़िर मुझे कुछ सुनाई नहीं देता हैं।"

"अब उन कामों को अल्प विराम दे और बाजार से रसोई की कुछ जरूरी सामान लेकर आ।"

"ठीक है मैं तैयार होकर आती हूं।"

इतना बोलकर श्रृष्टि पलटकर अंदर को चल दिया और महिला किचन की और चल पड़ी। श्रृष्टि बाजार जानें की तैयारी कर ही रहीं थी कि उसके मोबाइल ने बजकर श्रृष्टि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, "कौन है" बस इतना ही बोलकर श्रृष्टि ने मोबाइल उठा लिया और स्क्रीन पर दिख रहीं नाम को देखकर हल्का सा मुस्कुराई फिर कॉल रिसीव करते हुए बोलीं... बोल समीक्षा कैसे याद किया।

समीक्षा...यार मुझे न कुछ शॉपिंग करने जाना था। तू खाली हैं तो मेरे साथ चल देती , तो अच्छा होता।"

श्रृष्टि...मैं भी कुछ काम से बजार ही जा रहीं थीं तो लगें हाथ तेरा भी काम करवा दूंगी, मेरा मतलब है तेरा शॉपिंग भी करवा दूंगी। तू घर आ जा तब तक मैं तैयार हों लेती हूं।"

श्रृष्टि से सहमति पाते ही "अभी आई" बोलकर समीक्षा ने कॉल कट कर दिया और श्रृष्टि तैयार होकर मां के पास पहुंचकर बजार से आने वाली सामानों की लिस्ट लिया फ़िर बोलीं…मां, वो समीक्षा भी आ रही है उसे शॉपिंग करनी हैं। तो हो सकता हैं कुछ वक्त लग जाय, इससे आपको दिक्कत तो नहीं होगी।"

"नहीं" बस इतना ही बोल पाई कि बहार से हॉर्न की आवाज़ आई। जिसे सुनकर श्रृष्टि बोलीं... लगता हैं समीक्षा आ गई है। मैं चलती हूं। बाय मां।

कुछ ही वक्त में दोनों सहेली दुपहिया पर सवार हों, हवा से बातें करते हुए बजार में पहुंच गईं। दोनों इस वक्त शहर के सबसे मशहूर शॉपिंग माल के गेट से भीतर पार्किंग में जा ही रहीं थीं कि एक चमचती कार दोनों के स्कूटी से बिल्कुल सटती हुई आगे को बढ़ गईं। जिसका नतीजा ये हुआ की समीक्षा का बैलेंस बिगड़ गया, किसी तरह गिरने से खुद को बचाकर समीक्षा बोलीं... अरे ओ आंख के अंधे, अमीर बाप के बिगड़े हुए औलाद दिन में ही चढ़ा लिया जो दिखना बंद हों गया।

श्रृष्टि...अरे छोड़ न यार जानें दे।

समीक्षा...क्या जानें दे, उसके पास चमचमाती कार हैं। इसका मतलब हमारी दुपिया का कोई वैल्यू ही नहीं मन कर रहा हैं पत्थर मारकर उसके चमचमाती कार का नक्शा ही बिगड़ दूं।

श्रृष्टि...अरे होते हैं कुछ लोग जिन्हें पैसे कि कुछ ज्यादा ही घमंड होता हैं। तू खुद ही देख उसके पास लाखों की कार हैं उसके आगे हमारी इस दूपिया की क्या वैल्यू?

"एक तो उस कमीने ने दिमाग की दही कर दिया। अब तू उसमें चीनी डालकर लस्सी बनाने पे तुली हैं।" तुनककर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि मुस्कुराते हुए जवाब दिया...उसमें से एक गिलास निकलकर पी ले और गुस्से को ठंडा कर लें ही ही ही...।

"श्रृष्टि" और ज्यादा तुनक कर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि फिर से मुस्कुराते हुए बोलीं...अरे अरे गुस्सा थूक दे और चलकर वहीं करते है जो हम करने आएं हैं।

समीक्षा को थोड़ा और समझा बुझा कर मॉल के भीतर लेकर जानें लगीं कि मुख्य दरवाजे से भीतर जाते वक्त एक हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छू कर गुजर गया। श्रृष्टि को लगा शायद अंजाने में किसी का हाथ छू गया होगा। इसलिए ज्यादा तुल नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की उसे बुरा नहीं लगा। बूरा लगा मगर वो उस शख्स को देख ही नहीं पाई जिसका हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छूकर निकल गया। सिर्फ और सिर्फ़ इसी कारण श्रृष्टि ने मामले को यही दबा देना बेहतर समझा। बरहाल दोनों सहेली आगे को बढ़ गई और अपने काम को अंजाम देने लग गई।

लड़कियों का भी क्या ही कहना? इनको शॉपिंग करने में ढेरों वक्त चाहिए होता है। देखेगी बीस और खरीदेगी एक दो, ऐसे ही करते हुए दोनों आगे बढ़ती गई। कहीं कुछ पसंद आया तो खरीद लिया वरना आगे चल दिया। ऐसे ही एक सेक्शन में कुछ ज्यादा ही भिड़ था और उन्हीं भीड़ में समीक्षा अपने लिए कपडे देख रहीं थीं और श्रृष्टि उसकी हेल्प करने में लगीं हुई थीं।

तभी श्रृष्टि को लगा कोई उसके जिस्म को छूकर निकल गया। पलटकर पिछे देखा तो उसे अपने पिछे कई चहरे दिखा। अब दुस्वारी ये थीं कि उन चेहरों को देखकर कैसे पहचाने, उनमें से किसने उसके जिस्म को छुआ, जब पहचान ही नहीं पाई तो कोई प्रतिक्रिया देना निरर्थक था। इसलिए वापस पलटकर समीक्षा की मदद करने लग गईं।

कुछ ही वक्त बीता था की एक बार फ़िर से किसी का हाथ उसके जिस्म को छु गया। इस बार श्रृष्टि को गुस्सा आ गया। गुस्से में तमतमती चेहरा लिए पीछे पलटी तो देखा उसके पीछे कोई नहीं था। गुस्सा तो बहुत आया मगर किसी को न देखकर अपने गुस्से को दबा गई और पलटकर उखड़ी मुड़ से समीक्षा को जल्दी करने को बोलीं, कुछ ही वक्त में समीक्षा की शॉपिंग पूरा हुआ फिर ग्रोसरी स्टोर से मां के दिए लिस्ट के मुताबिक किचन का सामान लेकर दोनों बिल देने पहुंच गई। समीक्षा अपना बिल बनवा ही रहीं थीं कि अचानक "चटकक्क" के साथ "बेशर्मी की एक हद होती हैं" की तेज आवाज़ वहां मौजुद सभी के कान के पर्दों को हिलाकर रख दिया।

जारी रहेगा... बने रहिये ............. हो सके तो अभिप्राय देते रहिये .........
Bahut sundar aur behtareen tarike si likhi Rahi ho aap ...lag hi nahi Raha hai ki kahani padh rahi hu ..ye bhi sahi hai jab do saheli apas mai milti hai mazal hai koi kaam jaldi ho jaye ..
Shristi ka character mujhe bahut pasand aya dikhne mai sunder shushil aur chalak ladki ....magar last mai aap ne acha suspence bana diya .🥰🥰🥰🥰
 
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Bahut sundar aur behtareen tarike si likhi Rahi ho aap ...lag hi nahi Raha hai ki kahani padh rahi hu ..ye bhi sahi hai jab do saheli apas mai milti hai mazal hai koi kaam jaldi ho jaye ..
Shristi ka character mujhe bahut pasand aya dikhne mai sunder shushil aur chalak ladki ....magar last mai aap ne acha suspence bana diya .🥰🥰🥰🥰
Shukriya dost
Ji ha shrushti is kahani ki heroin hai baki aapki jo imagine hai wo sahi hai
Har lekhak ka ye prayas hota hai ki uske pathak ko curiosity bani rahe aur jude rahe.

Maine bhi wohi koshish ki hai
Vaise pehli kahani hai ye meri

Kahi kahi likhavat ya shabdo ka chayan me nadaniya hogi bhul bhi hogi
Bas dhyan doriyega jis se agli kahani me wo nadani bhul sudhar saku
Chhoti aur kamzor lekhika hu ya likh ne ki koshish kar rahi hu..... Tay to aap logo ko karna hai
Prayas jari rakhungi bas jude rahiye.....
 

Funlover

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शायद आप लोगो को मेरा भाग 1 पसंद आया हो ऐसी उम्मीद के साथ अगला एपिसोड दे रही हु .............

आशा रखती हु आप लोगो को पसंद आएगा ............

आप सर्वे पाठको को विनंती है की कही कोई कचाश दिखे तो प्लीज़ आप मेरा ध्यान दोरिये ताकि मै अगली कहानी में वो भूल सुधर सकू


शुक्रिया जिनको कहानी पसंद आई उनका और जिनको नहीं आई उनका भी ...............
 
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शायद आप लोगो को मेरा भाग 1 पसंद आया हो ऐसी उम्मीद के साथ अगला एपिसोड दे रही हु .............

आशा रखती हु आप लोगो को पसंद आएगा ............

आप सर्वे पाठको को विनंती है की कही कोई कचाश दिखे तो प्लीज़ आप मेरा ध्यान दोरिये ताकि मै अगली कहानी में वो भूल सुधर सकू


शुक्रिया जिनको कहानी पसंद आई उनका और जिनको नहीं आई उनका भी ...............
Waiting jaldi update dijiye bahen
 
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भाग - 2
चमचमाती सूट बूट में खड़ा एक बांका जवान अपने गोरे गाल को सहला रहा था। गाल पर छापी उंगली की छापा और लाल रंगत दर्शा रहा था। बड़े ही नजाकत से गाल की छिकाई किया गया था। आस पास अजबही करतें हुए लोग अचभित सा, जहां का तहां जम गए और गाल सहलाते हुए सूट बूट में खडे युवक को देखने में लगे हुए थे।


युवक के सामने गुस्से में तमतमाई, नथुने फूलती हुई श्रृष्टि खड़ी गहरी गहरी सांस ले और छोड़ रहीं थीं। इस उम्मीद में कि आसमान छूती अपार गुस्से को काबू कर सके मगर सामने खड़ा युवक जिसके चेहरे पर शर्मिंदगी का रत्ती भर भी अंश नहीं आया बल्कि ढीठ सा, स्वास के साथ ऊपर नीचे होती श्रृष्टि के वक्ष स्थल पर नजरे गड़ाए खड़ा रहा।


सहसा श्रृष्टि को आभास हुआ, उसके सामने खड़ा, युवक की दृष्टि कहा गड़ा हुआ हैं। बस एक पल से भी कम वक्त में श्रृष्टि का गुस्सा उड़ान छू हों गया और गुस्से की जगह लाज ने ले लिया। लजा का गहना ओढ़े, दोनों हाथों को एक दुसरे से क्रोस करते हुए अपने सीने पर रख लिया और पलटकर खड़ी हो गई।


श्रृष्टि को ऐसा करते हुए देखकर समीक्षा को समझने में एक पल से भी कम का वक्त नहीं लगा कि अभी अभी क्या हुआ होगा। समझ आते ही, गुस्से में लाल हुई, तेज आवाज़ में समीक्षा बोलीं…दिखने में पढ़े लिखें और अच्छे घर के लगते हों, फ़िर भी हरकते छिछोरे जैसी करते हों। तुम्हें देखकर लग रहा हैं शर्म लिहाज सब कोडीयो के भाव बेच खाए हों तभी तो इतनी भीड़ में थप्पड़ खाने के वावजूद ढीठ की तरह खडे हों।


समीक्षा के स्वर में गुंजन इतना अधिक था कि वहां बर्फ समान जमे लोगों को बर्फ से आजाद कर दिया और सभी चाहल कदमी करते हुए पास आने लग गए।


भिड़ इक्कठा होते हुए देख, युवक वहां से निकलना ही बेहतर समझा। रहस्यमई मुस्कान लबो पर सजाएं युवक वहां से चला गया। वहां मौजुद किसी ने भी उसे रोकना या पूछना जरूरी नहीं समझा, खैर कुछ वक्त में सब सामान्य हो गया और दोनों सहेली अपने अपने बिलों का भुगतान करके घर को चल दिया।


भाग 2 क्रमश .....
 

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भाग 2 आगे .......

दृश्य में बदलाव



शहर के एक बहुमंजिला भवन में मौजुद एक आलीशान ऑफिस में इस वक्त सभी काम काजी लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे। वही एक ओर बने एक कमरे का दरवाजा खटखटाया जाता हैं और बोला जाता है " सर क्या मैं अन्दर आ सकती हूं?" प्रतिउत्तर में "हां आ जाओ।" की आवाज आता हैं।


कुछ ही वक्त में एक लडकी फॉर्मल ड्रेस और ऊंची एड़ी की सैंडल पहनी ठाक ठाक की आवाज़ करती हुईं। कमरे के अंदर प्रवेश करती हैं और जाकर सामने बैठा, लड़के के सामने खड़ी हो जाती हैं। " बैठ जाओ" इतना बोलकर लडकी की और देखता हैं। देखते ही सामने बैठा युवक के चहरे का भाव बदल जाता है और तल्ख लहजे में बोला... साक्षी तुम्हें कितनी बार कहा है जब भी मैं बुलाऊ, आते वक्त अपने कपड़ों की स्थिति को जांच परख कर आया करो मगर तुम हों कि सुनती ही नहीं!


साक्षी...मेरे कपडे तो ठीक हैं इसे ओर कितना ठीक करू।


"तुम्हें ऐसा लग रहा होगा लेकीन मेरी नजर में बिल्कुल ठीक नही हैं। तुम खुद ही देखो तुम्हारे शर्ट के दो बटन खुले हुए है, जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नही, इसलिए तुम अभी के अभी उन बटनो को बंद करो।"


उठी हुई नजरों को थोड़ा सा नीचे झुकाकर अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए शर्ट का बटन बंद कर लेती हैं फ़िर बोलीं…अब तो आपको कोई दिक्कत नहीं होगा सर्ररर...।


सर शब्द को थोड़ा लम्बा खींचते हुए बोलीं तो युवक थोड़ा खिसिया गया और कुछ बोलता उससे पहले उसका सेल फ़ोन बज उठा, आ रही कॉल को रिसीव करके बात करने में लग गया जैसे जैसे बात आगे बड़ रहा था वैसे वैसे युवक के चहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लग गया। कुछ देर बात करने के बाद फोन रखते ही साक्षी बोलीं... सर क्या हुआ आप इतने टेंशन में क्यों हों?


"अरमान आया की नहीं!"


साक्षी... अभी तो नहीं आया।


"इस लड़के का मै क्या करूं जिम्मेदारी नाम की कोई चीज नहीं हैं।" इतना बोलकर दुबारा किसी को कॉल लगा दिया। कॉल रिसीव होते ही युवक बोला... अरमान तू अभी कहा हैं?


अरमान…?????


"जल्दी से ऑफिस आ बहुत जरूरी काम हैं।"


इतना बोलकर कॉल कट कर दिया फ़िर साक्षी से काम को लेकर कुछ बाते करके वापस भेज दिया। कुछ ही देर में कमरे का दरवाजा खुला और एक युवक धनधानते हुए भीतर आया फ़िर बोला... राघव ऐसी कौन सी आफत आ गई जो तू मुझे जल्दी से ऑफिस बुला लिया।


राघव... तेरा बड़ा भाई हूं और उम्र में तुझसे कई साल बड़ा हूं, कम से कम इसका तो लिहाज कर लिया कर।


बड़ा भाई (एक क्षण रूका फिर अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए आगे बोला) बड़ा भाई तो हैं पर...।


इसके आगे कुछ बोला नहीं, अरमान के मुस्कुराने के अंदाज से राघव समझ गया वो क्या कहना चहता था। इसलिए राघव की आंखों में नमी आ गईं मगर उन नमी को बहने से पहले ही रोक लिया और मंद मंद मुस्कान से मुस्कुराकर बोला…मैं क्या हूं क्या नहीं, इस पर बात करने के लिऐ तुझे नहीं बुलाया बल्कि ये बताने के लिए बुलाया था। तुझे अभी के अभी जयपुर जाना होगा। वहां के कंस्ट्रक्शन साइड में कोई दिक्कत आ गया है।


अरमान...यही तेरा जरूरी काम था।


राघव... हा यही जरूरी काम था और तुझे करना ही होगा। अब तू घर जा और पैकिंग कर ले क्योंकि हों सकता है तुझे वहां ज्यादा दिनों के लिए रुकना पड़े मैं तब तक टिकट की व्यवस्था करता हूं।


थोड़ा गरम लहजे में राघव ने अपनी बाते कह दिया इसलिए अरमान ज्यादा कुछ न बोलकर चुपचाप चला गया फ़िर राघव सभी व्यवस्था करके घर को चल दिया और अरमान को साथ लेकर एयरपोर्ट छोड़ने चला गया।


जायिगा नहीं भाग 2 क्रमश .........
 
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