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वैसे तो कहानी यहाँ ख़तम होती है पर आगे जाते
साक्षी की भी शादी हुई और घर जाते हुए
एक गाडी में आगे राघव और श्रुष्टि थी जब की पिछली सिट पर तिवारी और मनोरमा थे तभी तिवारी ने अपना सर मनोरमा के कंधे पे रख दिया तो मनोरमा बोलो कुछ तो शर्म करो
वैसे भी आज आपकी लक्ष्मी घर से गई
तिवारी: मनोरमा दोनों का जवाब देता हु तुम्हे
अपनी पत्नी को प्रेम करना कोई गलत नहीं है और बच्चो देखेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे मा और बाप का प्रेम देख के वो भी अपने जीवन में एक दुसरे से प्रेम करना सीखेंगे इसमें मै कोई शर्म नहीं समजता
हमारी खराबी ही यही है अगर पति या पत्नी अपने साथी के कंधे पे सर रख के या कुछ प्रेम की भाषा बोल ने से शर्म रखनी चाहिए ऐसा कहते है वही अगर दूसरी औरत या मर्द के कंधे पे सर रखने से व्याभिचार हो जाता है कैसा समाज है ये
अब दूसरी बात मनोरमा मै एक बिजनेसमेन हु हमेशा प्रॉफिट की सोचता हु यहाँ भी मै तो फायदे में ही हु
एक लक्ष्मी दी पर सामने दो लक्ष्मी ली भी ......
सभी हसे
समय के चलते मनोरमा के पैर भारी भी हो गए और उसका मन नहीं था की बच्चा हो पर सभी की रे और खास कर राघव श्रुष्टि और साक्षी शुभम ने उस बच्चे की जिम्मेदारी ली अगर वो नहीं रहे तो और तिवारी भी यही चाहते थे बहोत तकलीफ के बाद सिजेरियन से बेटा हुआ जिसका नाम “प्रेमप्रतिक” रखा गया और श्रुष्टि ने भी समय के साथ चलते हुए बेटी को बाद में बेटे को जन्म दिए वही साक्षी भी एक बेटे की मा बन गई थी
समाज ने सब स्वीकार लिया बस थोड़े समय लोगो ने यहाँ वहा बाते की और भूल भी गए ......................
क्या यही श्रुष्टि की वृत्ति है ????? आपका क्या कहना है ?????????????
साक्षी की भी शादी हुई और घर जाते हुए
एक गाडी में आगे राघव और श्रुष्टि थी जब की पिछली सिट पर तिवारी और मनोरमा थे तभी तिवारी ने अपना सर मनोरमा के कंधे पे रख दिया तो मनोरमा बोलो कुछ तो शर्म करो
वैसे भी आज आपकी लक्ष्मी घर से गई
तिवारी: मनोरमा दोनों का जवाब देता हु तुम्हे
अपनी पत्नी को प्रेम करना कोई गलत नहीं है और बच्चो देखेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे मा और बाप का प्रेम देख के वो भी अपने जीवन में एक दुसरे से प्रेम करना सीखेंगे इसमें मै कोई शर्म नहीं समजता
हमारी खराबी ही यही है अगर पति या पत्नी अपने साथी के कंधे पे सर रख के या कुछ प्रेम की भाषा बोल ने से शर्म रखनी चाहिए ऐसा कहते है वही अगर दूसरी औरत या मर्द के कंधे पे सर रखने से व्याभिचार हो जाता है कैसा समाज है ये
अब दूसरी बात मनोरमा मै एक बिजनेसमेन हु हमेशा प्रॉफिट की सोचता हु यहाँ भी मै तो फायदे में ही हु
एक लक्ष्मी दी पर सामने दो लक्ष्मी ली भी ......
सभी हसे
समय के चलते मनोरमा के पैर भारी भी हो गए और उसका मन नहीं था की बच्चा हो पर सभी की रे और खास कर राघव श्रुष्टि और साक्षी शुभम ने उस बच्चे की जिम्मेदारी ली अगर वो नहीं रहे तो और तिवारी भी यही चाहते थे बहोत तकलीफ के बाद सिजेरियन से बेटा हुआ जिसका नाम “प्रेमप्रतिक” रखा गया और श्रुष्टि ने भी समय के साथ चलते हुए बेटी को बाद में बेटे को जन्म दिए वही साक्षी भी एक बेटे की मा बन गई थी
समाज ने सब स्वीकार लिया बस थोड़े समय लोगो ने यहाँ वहा बाते की और भूल भी गए ......................
क्या यही श्रुष्टि की वृत्ति है ????? आपका क्या कहना है ?????????????
समाप्त
मेरी अगली कहानी पढ़ना ना भूलियेगा
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