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Romance श्रृष्टि की गजब रित

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भाग - 5


भीतर प्रवेश करते ही राघव को देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं... हे भगवान ये तो वहीं है जिन्होंने मेरा डॉक्युमेट लौटाया था। हे भगवान फिर से कोई बखेड़ा खडा मत करवा देना।

मन ही मन बोलते हुए श्रृष्टि जाकर राघव के सामने खडी हों गईं। श्रृष्टि को खडा देखकर राघव ने उसे बैठने को कहा बैठते ही श्रृष्टि बोलीं...सर अभी बहार जो कुछ भी आपसे कहा था उससे अगर आपको बुरा लगा हों तो माफ कर देना।

राघव ने उसके बातों का कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा कर देखा फ़िर एक साक्षत्कार अधिकारी की तरह श्रृष्टि के एक एक क्रियाकलाप पर नज़र बनाए हुए ही कुछ इधर उधर की बाते करने के बाद श्रृष्टि की मूल साक्षत्कार लेना शुरू किया।

श्रृष्टि की प्रमाण पत्र पुस्तिका को लेकर एक एक पेज देख रहा था और उससे वास्ता रखने वाला एक सवाल दाग देता। एक के बाद एक कई सवाल दागा गया। जिसका जवाब श्रृष्टि ने बड़े ही तहजीब और सलीके से दिया। एक वक्त ऐसा भी आया जब श्रृष्टि की फाइल में लगीं कुछ भवन मानचित्र सामने आया जिसे देखकर राघव बोला...एक गैर ज़िम्मेदार लड़की इतना भी ज़िम्मेदार हो सकती हैं कि इतनी बेहतरीन भवन मानचित्र भी बना सकती हैं या फिर ये सभी भवन मानचित्र किसी दूसरे की बनाई हुई हैं।

राघव सपाट लहज़े और गंभीर मुद्रा में ये सवाल दागा, जिसे सुनकर श्रृष्टि को बेहद गुस्सा आया। दोनों मुठ्ठी को भींचे, गुस्से को काबू करने में लग गईं। इसके अलावा श्रृष्टि कर भी क्या सकती थी।

राघव एक माहिर साक्षत्कार अधिकारी होने का पूरा पूरा परिचय दे रहा था उसकी नज़रे प्रमाण पत्रों पर बन हुआ था लेकिन खांकियों से श्रृष्टि के हाव भाव को भी देख रहा था। जब श्रृष्टि ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया तो एक बार फिर राघव बोला...क्या हुआ श्रृष्टि जी अपने कोई जबाव नहीं दिया या फ़िर जो मैंने कहा उसका एक एक लवज़ सही हैं।

श्रृष्टि...सर ये सभी भवन मानचित्र मेरे मेहनत का नतीजा हैं न कि किसी दूसरे की मेहनत हैं।

राघव...चलो आप कहती हों तो मान लेता हूं।

एक बार फिर से राघव प्रमाण पत्र पुस्तिका के एक एक पेज पलटकर देखने लग गया और जब अंत में पहुंचा तो उसे देखकर राघव बोला... श्रृष्टि जी आपका कार्य अनुभव बता रहा हैं कि आपने कई छोटे बड़े कंसट्रक्शन कंपनी में काम किया मगर इन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अपने डीएन कंसट्रक्शन ग्रुप जैसे नामी कंपनी में भी काम किया फिर ऐसा क्या करण रहा जिसके वजह से आपको वो कंपनी छोड़ना पड़ा। कहीं ऐसा तो नहीं आपके गैर जिम्मेदाराना हरकतों की वजह से आपको निकाल दिया गया हों।

मैं गैर ज़िम्मेदार नहीं हूं (कुछ पल रूकी और आई हुई गुस्से को काबू करते हुए आगे बोला) सर मैं गैर ज़िम्मेदार नहीं हूं और न ही मैं डीएन कंसट्रक्शन ग्रुप से निकली गई हूं बल्कि मैं ख़ुद उस कंपनी को छोड़ दिया था। अब आप छोड़ने की वजह न पूछ बैठना क्योंकि आप कारण पूछोगे तब भी मैं नहीं बताने वाली।

राघव की नज़र भले ही नीचे प्रमाण पत्र पुस्तिका देखने में था मगर खांकियो से श्रृष्टि पर नज़र बनाया हुआ था। इसलिए उसे दिख गया की कुछ सवालों के दौरान श्रृष्टि को बहुत गुस्सा आया। जिसे देखकर राघव मन ही मन मुस्कुरा दिया। कुछ और सावल जवाब का दौर चला अंत में श्रृष्टि को उसका प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस देते हुए राघव बोला...श्रृष्टि जी अब आप जा सकती हों नौकरी की जानकारी आपको मेल या फिर लेटर द्वारा भेज दिया जाएगा।

बाद में जानकारी देने की बात सुनकर एक बार फिर से श्रृष्टि निराश हों गईं क्योंकि श्रृष्टि को उम्मीद था कि इतने वक्त तक साक्षत्कार चला हैं तो शायद उसको नौकरी मिल जाएं मगर इसका आसार उसे दिख नहीं रहा था। बाद में जानकारी देने का मतलब वो अच्छे से जानती हैं। इसलिए अनमाने मन से उठी और राघव को धन्यवाद कहकर चल दिया। अभी द्वार तक पुछा ही था कि राघव बोला... श्रृष्टि जी रूकिए! अगर आप मेरी कुछ शर्तों को पूरा करने का वादा करती हैं तो ये नौकरी आपको मिल सकता हैं।

नौकरी मिलने की बात सुनते ही श्रृष्टि खुशी से झूम उठी और मुस्कुराते हुए बोलीं... कैसी शर्त?

राघव... शर्त बस इतना हैं कि जो भी काम आपको दिया जाए उसे आप जिम्मेदारी से निभायेंगे।

श्रृष्टि... जी बिल्कुल आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।

राघव... ऐसा है तो अब आप खुशी खुशी घर जा सकती हैं और जब आपको ज्वाइन करने को कहा जाएं तब आकर जॉइन कर लेना।

एक बार फ़िर से श्रृष्टि चहकती मुस्कुराती हुई आभार व्यक्त किया फ़िर चलती बनी और राघव बोला... ओ क्या लड़की हैं? दिखने में जितनी मासूम और भोली हैं उतनी ही तेज तर्रार और गुस्से वाली और सबसे बडी बात स्वाभिमानी हैं मगर मैं उसके बारे में ऐसी बातें क्यों कर रहा हूं?


अब ये तो कौन बतायेगा ?????????

जारी है आगे पढ़िए
 

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श्रृष्टि को नौकरी मिल चुका हैं। ये बात घर आकर मां को बताया तो मां भी बेटी के खुशी में सारिका हों गई। मगर मां की ख़ुशी में सेंधमारी करतें हुए ख़ुद के साथ घटी एक एक घटना मां को कह सुनाया उसके बाद बोलीं...मां आपके बला उतराई और दही शक्कर खिलाने के बाद भी मुझे कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा तब कही जाकर नौकरी मिला।

"श्रृष्टि बेटा तुम इस घटना हो नकारत्मक नजरिए से क्यों देख रहीं है? तुम इस घटना को सकारात्मक नजरिया से भी देख सकती हों। जरा सोचकर देखो अगर मैं तुम्हारी बला न उतारती, तुम्हें दही शक्कर न खिलाती तो हों सकता हैं तुम्हारी मुस्किले ओर बढ़ जाती फिर जो नौकरी तुम्हें मिला हैं वो भी नहीं मिलती।"

मां के कहने पर श्रृष्टि अपने साथ घटी एक एक घटना को फिर से रिवाइन करने लग गई तब उसे समझ आया की मां का कहना सही हैं तब श्रृष्टि बोलीं... मां आप कह तो सही रहीं हों अब देखो न कोई ऑटो वाला उस रूट पर जानें को तैयार नहीं हों रहा था। ऐसे में एक ऑटो वाला परमिट न होते हुए भी मुझे उस रूट पर लेकर गया। अनजान होते हुए भी मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस लौटाने आया। मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वहां के सीईओ के हाथ लगना उनके जरिए मुझ तक पहुंचना, साक्षत्कार स्थगित होने के बाद भी मेरा साक्षत्कार सीईओ द्वारा लेना जबकि वो किसी का साक्षत्कार नहीं लेते हैं।

"इसलिए तो कहते है जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अब बस मन लगाकर ईमानदारी से नौकरी करना ओर एक बात इन अमीर लोगों से उतना ही वास्ता रखना जीतना काम के लिए जरूरी हों क्योंकि इनकी फितरत आला दर्जे की होती हैं। ये लोग सही गलत नहीं देखते, बस अपना फायदा देखते हैं।"

श्रृष्टि... मैं जानती हूं आप ये बात क्यों कह रहीं हों। आपकी बताई सभी बातों का ध्यान रखूंगी।

मां ने ऐसी बातें क्यों कहा? ये तो सिर्फ़ वो जानें या फिर श्रृष्टि जानें बरहाल समय का पहिया घुमा और देखते ही देखते तीन दिन बीत गया। आज श्रृष्टि को एक मेल आया जिसमे दो दिन बाद नौकरी ज्वाइन करने की बात कहा गया था। खुशी खुशी ये बात श्रृष्टि ने मां को बता दिया।

अगले दिन सुबह के लगभग ग्यारह बजे करीब माताश्री कोई जरूरी काम बताकर कहीं चली गईं। जाना तो श्रृष्टि भी चाहती थीं मगर माताश्री उसे लेकर नहीं गईं। जिस भी काम को निपटाने गई थी उसे निपटाकर माताश्री दोपहर को लौट आईं।

शाम के वक्त दोनो मां बेटी चाय का लुप्त ले रहीं थीं उसी वक्त किसी ने अपने आगमन का संदेश द्वार पर लगी घंटी बजाकर दिया। तब माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाकर देख तो कौन आया हैं?

माताश्री के कहते ही श्रृष्टि बहार गई। वहां एक लड़का चमचमाती न्यू स्कूटी के साथ खडा था। उसके पास जाकर श्रृष्टि बोलीं...जी बोलिए क्या काम था?

"जी आपका ही नाम श्रृष्टि हैं।"

श्रृष्टि...जी मेरा ही नाम श्रृष्टि हैं। लेकिन आपको मूझसे क्या काम?

"जी आप ही से काम हैं ये स्कूटी जो आपको सौंपना हैं।"

श्रृष्टि... मुझे पर क्यों? मैंने तो किसी तरह का कोई ऑर्डर नहीं दिया।

"श्रृष्टि बेटा ले लो ये तुम्हारे लिए ही हैं।" माताश्री ने पीछे से बोला तो श्रृष्टि मां की और पलटकर देखा तब माताश्री ने हा में सिर हिला दिया तब कहीं जाकर श्रृष्टि ने स्कूटी की चाबी लिया और वापस पलट कर मां के पास जाकर मां से गले मिलते हुए बोलीं... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

"जरूरत थी बेटा, मैं बहुत दिनों से सोच रहीं थीं तुम्हें एक स्कूटी दिलवाऊँ लेकिन कोई खास मौका नहीं मिल रहा था। अब जब मौका मिला तो मैंने भी मौका ताड़ लिया अब मेरी बेटी को नौकरी पर जानें के लिऐ ऑटो की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ेगा।"

श्रृष्टि…. मां पर….।

"पर वर छोड़ और अपनी मां को अपनी नई स्कूटी की सवारी करवा।"

कुछ ही क्षण में दोनों मां बेटी दुपहिया पर सवार होकर घूमने चल दिया। श्रृष्टि के लिए मानो खुशियों का अंबर लग गया पहले कितनी सारी मुस्किलों का सामना करने के बाद नौकरी मिला और अब दुबारा उन्ही मुस्किलों का सामना न करना पड़े सिर्फ इसलिए माताश्री ने उसे न्यू स्कूटी दिलवा दिया।


जारी रहेगा... बने रहिये .....
आज के इस एपिसोड में कुछ खास ऐसी कुरियोसिटी जैसा तो नहीं पर क्या जाने आगे क्या होनेवाला है .......


 

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भाग - 6
कहते हैं मुश्किलों के बाद मिली हुई खुशियां अनमोल होती हैं। ठीक वैसे ही श्रृष्टि को मिली हुई खुशियां अनमोल थी। एक दिन बाद श्रृष्टि को नौकरी ज्वाइन करना था। मगर उससे पहले श्रृष्टि अपने एक मात्र सहेली समीक्षा से मिली और उसे मुश्किलों के बाद मिली खुशियों का बखान सुना डाला। दोस्त यार सहेली सभी ऐसे ही मौके के तलाश में रहती है। तो समीक्षा भला ऐसा मौका हाथ से क्यों जाने देती। नई स्कूटी और नौकरी मिलने की सूचना पाते ही समीक्षा बोल पड़ी...नई स्कूटी नई नौकरी श्रृष्टि तेरे तो बारे नियारे हों गये। अब बता पार्टी कब दे रहीं हैं।

श्रृष्टि... अरे अरे ठहर जा लुटेरी, गांव बसा नहीं की लूटने पहुंच गई। पहले सैलरी तो मिल जानें दे फिर पार्टी ले लेना।

"श्रृष्टि ( दो तीन चपत लगाकर समीक्षा आगे बोलीं) मैं लुटेरी बता, बता मैं लुटेरी हूं।"

"अरे नहीं रे (समीक्षा को कोरिया कर श्रृष्टि आगे बोलीं) तू तो मेरी दोस्त है वो भी अच्छी वाली।

समीक्षा...अच्छा, अच्छा ठीक है। तुझे जब पार्टी देना हों दे देना। मेरे दोस्त को नई नौकरी मिलने की खुशी में आज पार्टी समीक्षा देगी। मगर जायेंगे तेरी नई फटफटिया पे।

इसके बाद दोनों सहेली श्रृष्टि की नई दुपहिया पर सवार हों चल पड़ी। करीब करीब दो से तीन घंटे में पार्टी मानकर दोनों सहेलियां लौट आईं।

अगले दिन श्रृष्टि तैयार होकर अपने लिए सभी जरूरी चीजों को लेकर जैसे ही कमरे से बहार निकली सामने माताश्री हाथ में दही का कटोरा और होंठो पर मुस्कान लिए खडी मिली।

माताश्री ने एक चम्मच दही श्रृष्टि के मुंह में डाला जिसे खाते हुए श्रृष्टि बोलीं... मां आज एक चम्मच से कुछ नहीं होगा आज तो पूरा कटोरी भर दही खाने के बाद ही जाऊंगी।

इतना बोलकर माताश्री के हाथ से कटोरी झपट लिया और एक एक चम्मच करके पूरा कटोरी खाली कर दिया फ़िर कटोरी मां को थमा दिया। माताश्री एक चपत लगाया फ़िर बोलीं... मां से मशकरी कर रही हैं।

"मेरी भोली मां" इतना बोलकर मां से लिपट गईं फिर "बाय मां शाम को मिलते है" बोलकर चली गई। नई स्कूटी और चालक भी उतना ही बेहतरीन, हवा से बातें करते हुए कुछ ही वक्त में श्रृष्टि दफ़्तर पहुंच गई।

पहला दिन कहा बैठना हैं, काम क्या करना हैं? ज्यादा कुछ जानकारी नहीं था तो रिसेप्शन पर जाकर तन्वी से पुछा, एक और इशारा करते हुए तन्वी बोली... मैम आप वहा जाकर बैठिए बाकी काम क्या करना हैं राघव सर ही बताएंगे।

बताई हुई जगह पर जाकर श्रृष्टि बैठ गई और दफ़्तर में मौजूद लोगों के हाव भाव का जायजा लेने लग गई। बरहाल कुछ ही देर में श्रृष्टि को बुलावा आ गया। बुलावा आते ही श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गईं।

आज श्रृष्टि का मुखड़ा खिला हुआ था। लबो पर मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहीं थीं। जिसे देखकर राघव की निगाहें एक बार फिर श्रृष्टि के मुखड़े पर अटक गई। दो चार पल अपनी निगाहें टीकाये रखा फ़िर सिर झटक कर मन में बोला... इस लड़की में क्या जादू हैं जो मेरी निगाह उस पर अटक जाती है। ओहो मेरे साथ ये क्या हों रहा हैं? पहले तो कभी नहीं हुआ।

"सर मैं बैठ सकती हूं।" ये आवाज श्रृष्टि की थी। जो कानों से टकराते ही राघव तंद्रा मुक्त हुआ और अचकचाते हुए बोला... जी जी बिल्कुल बैठ जाइए।

थोडी बहुत बाते हुआ फ़िर राघव ने किसी को फ़ोन किया। दो चार मिनट का वक्त बीता ही था कि किसी ने बंद द्वार खटखटाया और भीतर आने की अनुमति मांगा। द्वार पर साक्षी थी जिसे
अनुमति मिलते ही भीतर आई फ़िर बोली... सर कुछ कम था?

राघव... साक्षी इनसे मिलो ये है श्रृष्टि अभी नई नई ज्वाइन किया हैं।

दोनों में हैलो हाय हुआ फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये तो वहीं है जिनका साक्षत्कार आपने लिया था।

राघव.. हां, साक्षी तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला हुआ है अगले एक हफ्ते तक इनके साथ मिलकर काम करो (फ़िर श्रृष्टि से मुखातिब होकर आगे बोला) श्रृष्टि जी आप अगले एक हफ्ते तक साक्षी के साथ काम कीजिए। इस एक हफ्ते में मैं देखना चाहता हूं। आप अपना काम कितना जिम्मेदारी से करती हों। मुझे ठीक लगा तो एक हफ्ते बाद एक नई प्रोजेक्ट पर आप मेरे साथ काम करेंगे।

नई नई ज्वाइन किया और सिर्फ़ एक हफ्ते बाद नया प्रोजेक्ट मिलना, सिर्फ मिलना ही नहीं बल्कि सीईओ के साथ काम करना मतलब श्रृष्टि के लिए बहुत बडी बात हैं। इसलिए श्रृष्टि खुशी खुशी हां कह दिया मगर राघव की बात साक्षी को पसन्द नहीं आई। मुंह भिचकाते हुए साक्षी मन में बोलीं... मेरे साथ तो कभी किसी प्रोजेक्ट पर काम करने को राज़ी नहीं हुए और नई आई लड़की के साथ सिर्फ़ एक हफ्ते बाद काम करने को राज़ी हों गए। पक्का कुछ न कुछ रिश्ता दोनों में हैं मगर कोई बात नहीं इस लड़की को पास या फेल करना मेरे हाथ में हैं। मैं नहीं तो किसी और को भी आपके साथ काम नहीं करने दूंगी।

कुछ ओर जरूरी बातें करने के बाद दोनों को जानें को कहा। दोनों के जाते ही राघव रिवोलविंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फिर एक टांग पर दुसरी टांग चढ़ाकर, दोनों हाथों को सिर के पीछे बांधकर सिर सहित रिवोलविंग चेयर के पुस्त से टिका दिया और पैर को नचाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लग गया। राघव का यूं मुस्कुराने का ढंग अलग ही कहानी बयां कर रहा था। ऐसा लग रहा था राघव के मस्तिस्क में कुछ तो चल रहा हैं।


क्रमश:
 

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भाग 6 चालु.....

दृश्य में बदलाव

श्रृष्टि को साथ लिए साक्षी एक कमरे में पहुंची जिसे देखकर ही बतलाया जा सकता हैं। ये एक आर्किटेक का स्प्रेट कार्यालय है मगर ऐसा नहीं था वह पहले से ही चार पांच लोग मौजूद थे। उन सभी को आवाज़ देते हुए साक्षी बोला... हैलो गायेज इनसे मिलो इनका नाम है श्रृष्टि आज ही ज्वाइन किया हैं और अगले एक हफ्ते तक हमारे साथ काम करेंगे।

"नाईस नेम एंड स्वीट गर्ल।" "सो स्वीट नेम एंड सेक्सी गर्ल।" ऐसे तरह तरह के कॉमेंट सभी ने पास किया। जो श्रृष्टि को पसन्द नहीं आया मगर वो जानती थी इस तरह का कॉमेंट आम बात हैं। जो अमूमन साथ में काम करने वालो से सुनने को मिल जाता हैं। इसलिए ज्यादा बुरा नहीं माना, एक एक कर अपने बारे में बताते जा रहें थे। वो कहा से हैं, पहले कहा काम करता था। यह तक कैसे पंहुचा अब तक कितने प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं। फलाना डिमाका एक विस्तृत जानकारी देने लग गए। जिस कारण बहुत अधिक समय जाया हों रहा था। इसलिए श्रृष्टि उन्हें रोकते हुए बोलीं...हे गायेज अपने बारे में जानकारी बाद में दे देना अभी काम क्या करना हैं इस पर बात कर लेते हैं।

"अरे श्रृष्टि भले ही एक हफ्ते के लिए हमें साथ में काम करना हैं फ़िर भी एक दूसरे की जानकारी तो होना ही चाहिए हों सकता है आगे भी हमें साथ में काम करना पड़े इसलिए अभी जान पहचाना हों जाएं तो आगे चलकर काम करने में आसानी होगा (सामने खडे साथियों को एक आंख दबाकर समीक्षा आगे बोलीं) चलो गायेज हमारी नई साथी को अपने बारे में जानकारी दो, ओर हा ठीक से देना जिससे कि श्रृष्टि हमारे साथ अच्छे से घुल मिल जाएं।"

श्रृष्टि उन्हें कुछ कहती या रोकती उससे पहले ही सभी अपनी अपनी राम कहानी का पिटारा खोलकर शुरू हों गए। अभी उनकी राम कहानी चल ही रहा था कि "ये क्या हों रहा हैं सभी काम धाम छोड़कर गप्पे हाकने में लगे हों। तुम्हें गप्पे मारने की नहीं काम करने की सैलरी दिया जाता हैं।" ये आवाज़ वहा गूंजा जो की राघव का था।

राघव को आया देखकर सभी तुंरत संभले ओर साक्षी चापलूसी करते हुए बोलीं...सर हम तो काम ही करना चाहते थे मगर श्रृष्टि ही कह रहीं थीं वो नई हैं सभी उसे अपने बारे में विस्तृत जानकारी दे, काम तो बाद में होता रहेगा।

साक्षी के साथ में काम करने वाले दूसरे साथियों ने उसके हां में हां मिलाकर सारा दोष श्रृष्टि पर मढ दिया। ये सुन और देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं...सभी के सभी नम्बर वन कमीने हैं। इनसे बचकर रहना होगा नहीं तो गलती ये करेंगे और दोष मेरे सिर थोप देंगे। ये तो बाद की बात है अभी क्या करूं? अभी कुछ नहीं बोला तो बात और बिगड़ जाएगी। हे प्रभु तेरी मूझसे क्या दुश्मनी हैं? गलती न होते हुए भी मुझे पाचेडे में फसवा देता है। क्यों, आखिर क्यो ऐसा करता हैं?

मन ही मन खुद से बातें और ऊपर वाले से सावल करने के बाद श्रृष्टि अपने बचाव में बोलने जा ही रहीं थीं कि राघव बीच में बोला...श्रृष्टि जी मुझे लगता हैं एक गैर ज़िम्मेदार लड़की को नौकरी देखकर मैंने ख़ुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं। मुझे डर हैं कहीं आपकी संगत में रहकर मेरे काबिल और ज़िम्मेदार मुलाजिम कहीं आप की तरह गैर ज़िम्मेदार न बन जाएं।

श्रृष्टि... सर...।

"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।




क्या अब गेंद साक्षी के पास में है ???
साक्षी कुछ अपना नया रंग दिखायेगी या फिर श्रुष्टि से मिलजुल के काम को आगे बढ़ाएगी ?
राघव के मन में क्या चल रहा है ?
श्रुष्टि की जो पहली छाप उसके दिमांग में है क्या वो कायम रहेगी?
श्रुष्टि को अब क्या एक नयी नौकरी की तलाश कर लेना चाहिए ?
जानिये मेरे साथ अगले भाग में

जारी रहेगा...
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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भाग 6 चालु.....

दृश्य में बदलाव

श्रृष्टि को साथ लिए साक्षी एक कमरे में पहुंची जिसे देखकर ही बतलाया जा सकता हैं। ये एक आर्किटेक का स्प्रेट कार्यालय है मगर ऐसा नहीं था वह पहले से ही चार पांच लोग मौजूद थे। उन सभी को आवाज़ देते हुए साक्षी बोला... हैलो गायेज इनसे मिलो इनका नाम है श्रृष्टि आज ही ज्वाइन किया हैं और अगले एक हफ्ते तक हमारे साथ काम करेंगे।

"नाईस नेम एंड स्वीट गर्ल।" "सो स्वीट नेम एंड सेक्सी गर्ल।" ऐसे तरह तरह के कॉमेंट सभी ने पास किया। जो श्रृष्टि को पसन्द नहीं आया मगर वो जानती थी इस तरह का कॉमेंट आम बात हैं। जो अमूमन साथ में काम करने वालो से सुनने को मिल जाता हैं। इसलिए ज्यादा बुरा नहीं माना, एक एक कर अपने बारे में बताते जा रहें थे। वो कहा से हैं, पहले कहा काम करता था। यह तक कैसे पंहुचा अब तक कितने प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं। फलाना डिमाका एक विस्तृत जानकारी देने लग गए। जिस कारण बहुत अधिक समय जाया हों रहा था। इसलिए श्रृष्टि उन्हें रोकते हुए बोलीं...हे गायेज अपने बारे में जानकारी बाद में दे देना अभी काम क्या करना हैं इस पर बात कर लेते हैं।

"अरे श्रृष्टि भले ही एक हफ्ते के लिए हमें साथ में काम करना हैं फ़िर भी एक दूसरे की जानकारी तो होना ही चाहिए हों सकता है आगे भी हमें साथ में काम करना पड़े इसलिए अभी जान पहचाना हों जाएं तो आगे चलकर काम करने में आसानी होगा (सामने खडे साथियों को एक आंख दबाकर समीक्षा आगे बोलीं) चलो गायेज हमारी नई साथी को अपने बारे में जानकारी दो, ओर हा ठीक से देना जिससे कि श्रृष्टि हमारे साथ अच्छे से घुल मिल जाएं।"

श्रृष्टि उन्हें कुछ कहती या रोकती उससे पहले ही सभी अपनी अपनी राम कहानी का पिटारा खोलकर शुरू हों गए। अभी उनकी राम कहानी चल ही रहा था कि "ये क्या हों रहा हैं सभी काम धाम छोड़कर गप्पे हाकने में लगे हों। तुम्हें गप्पे मारने की नहीं काम करने की सैलरी दिया जाता हैं।" ये आवाज़ वहा गूंजा जो की राघव का था।

राघव को आया देखकर सभी तुंरत संभले ओर साक्षी चापलूसी करते हुए बोलीं...सर हम तो काम ही करना चाहते थे मगर श्रृष्टि ही कह रहीं थीं वो नई हैं सभी उसे अपने बारे में विस्तृत जानकारी दे, काम तो बाद में होता रहेगा।

साक्षी के साथ में काम करने वाले दूसरे साथियों ने उसके हां में हां मिलाकर सारा दोष श्रृष्टि पर मढ दिया। ये सुन और देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं...सभी के सभी नम्बर वन कमीने हैं। इनसे बचकर रहना होगा नहीं तो गलती ये करेंगे और दोष मेरे सिर थोप देंगे। ये तो बाद की बात है अभी क्या करूं? अभी कुछ नहीं बोला तो बात और बिगड़ जाएगी। हे प्रभु तेरी मूझसे क्या दुश्मनी हैं? गलती न होते हुए भी मुझे पाचेडे में फसवा देता है। क्यों, आखिर क्यो ऐसा करता हैं?

मन ही मन खुद से बातें और ऊपर वाले से सावल करने के बाद श्रृष्टि अपने बचाव में बोलने जा ही रहीं थीं कि राघव बीच में बोला...श्रृष्टि जी मुझे लगता हैं एक गैर ज़िम्मेदार लड़की को नौकरी देखकर मैंने ख़ुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं। मुझे डर हैं कहीं आपकी संगत में रहकर मेरे काबिल और ज़िम्मेदार मुलाजिम कहीं आप की तरह गैर ज़िम्मेदार न बन जाएं।

श्रृष्टि... सर...।

"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।




क्या अब गेंद साक्षी के पास में है ???
साक्षी कुछ अपना नया रंग दिखायेगी या फिर श्रुष्टि से मिलजुल के काम को आगे बढ़ाएगी ?
राघव के मन में क्या चल रहा है ?
श्रुष्टि की जो पहली छाप उसके दिमांग में है क्या वो कायम रहेगी?
श्रुष्टि को अब क्या एक नयी नौकरी की तलाश कर लेना चाहिए ?
जानिये मेरे साथ अगले भाग में

जारी रहेगा...
Dear Funlover

Sabhi updates ek se badhkar ek he.............

Shrishti ko kitni mushkilo ke baad ye job mili he...............ye to hum sabne dekha

Raghav ka kuch jhukav shrishti ki taraf apne aap hi hoa gaya he............ya yun kahe ki opposite sex ke liye attraction he ye

Sakshi ke behad shatir ladki he...........jo apne jism ko dikha kar raghav ko fansana chahti he.......lekin raghav ko usme ko bhi interest nahi he.........

Shrishti ko jo team mili he vo bhi ek se badhkar ek kamine he............dekhte ab shrishti kaise survive karti he

Keep posting Dear
 
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Sabhi updates ek se badhkar ek he.............

Shrishti ko kitni mushkilo ke baad ye job mili he...............ye to hum sabne dekha

Raghav ka kuch jhukav shrishti ki taraf apne aap hi hoa gaya he............ya yun kahe ki opposite sex ke liye attraction he ye

Sakshi ke behad shatir ladki he...........jo apne jism ko dikha kar raghav ko fansana chahti he.......lekin raghav ko usme ko bhi interest nahi he.........

Shrishti ko jo team mili he vo bhi ek se badhkar ek kamine he............dekhte ab shrishti kaise survive karti he

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जी आप ने सही कहा

सवाल बहोत से है
वैसे श्रुष्टि इतना तो समज गई है की यहाँ काम करना थोडा मुश्किल तो होगा वैसे भी हर जगह सीनियर और जूनियर में तनाव तो रहता ही है
पता नहीं जूनियर जब सीनियर बन जाता है तब भूल क्यों जता है की वो भी जूनियर था
राघव भी तो शायद कौनसी प्रतिकृति है पता नहीं जहा साक्षी मिल रही है वो लेना नहीं है और कही और किसी के बारे में सोच रहा है ऐसा क्या है ?????
शायद वो दुसरे मनुष्य की तरह ही है जो आसानी से मिल जाए वो खाने का स्वाद बेरंग लगता है और जो मुश्किल से मिला है उसका स्वाद बेरंग होते हुए भी ख़ुशी से खाता है .......क्या ये भी श्रुष्टि की रित है ??????
well आपके सभी सवाल के जवाब एक भाग में तो नहीं मिल पायेगा

जुड़े रहिये

मै रोज ही अपडेट देने की कोशिश करुँगी क्यों की मुझे ये कहानी जल्द ही ख़तम करनी है क्यों की समय की तंगी है और ......वैसे आगे बहोत सी कहानी या आनि बाकी है....... देखते है पाठको कितना पसंद करते है .....
 

Funlover

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Sabhi updates ek se badhkar ek he.............

Shrishti ko kitni mushkilo ke baad ye job mili he...............ye to hum sabne dekha

Raghav ka kuch jhukav shrishti ki taraf apne aap hi hoa gaya he............ya yun kahe ki opposite sex ke liye attraction he ye

Sakshi ke behad shatir ladki he...........jo apne jism ko dikha kar raghav ko fansana chahti he.......lekin raghav ko usme ko bhi interest nahi he.........

Shrishti ko jo team mili he vo bhi ek se badhkar ek kamine he............dekhte ab shrishti kaise survive karti he

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वैसे आपका बहोत बहोत धन्यवाद इतने ध्यान से स्टोरी पढने के लिए
 
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