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Adultery "संभोग"

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रघुनाथपुर के सीमा में खड़ी थी एक विशाल और आलीशान बंगला.... लगता तो ऐसा था कि कोई राजा महाराज की बंगला हो.. विल्कुल मनमोहक..

रात के करीब 11 बज रहे थे.. बंगले की सारी लाइटें ऑफ थी.. ऊपरी मंजिला की corner वाले कमरे से किसी औरत की मादकता से भरी आवाज़ें आ रही थी.. आआआहहहहहहह...मममममम.. ससससससस,

कुछ समय बाद आवाज़ें आनी बन्द हो गयी और कमरे की लाइट ऑन हो गयी... एक बुढा आदमी जिसकी उम्र लगभग 60 साल की थी बिल्कुल नंगा बेड पर बैठा हुआ था और उसके सामने एक औरत जिसकी उम्र लगभग 47 साल की थी बेड पर नंगी थी... दोनों पसीनों से लथपथ थे.. उस औरत बहुत ही सेक्सी थी, जिसके चुची बड़ी बड़ी थी जो कि 38 साइज की होगी... बड़ी गाँड़ के साथ साथ चुत के ऊपर झांटों से भरी हुई जंगल थी... उस बुड्ढा की लन्ड मुरझा हुआ झुका हुआ बिल्कुल छोटा था....

वो बुड्डा और कोई नहीं उस बंगले की मालिक और रघुनाथपुर की सबसे अमीर आदमी जनार्दन चौधुरी थे और सामने बैठी औरत उनकी बीवी सावित्री थी...

सावित्री- जब आपसे होता नहीं है तो आप करते ही क्यों हैं ?

जनार्दन- में कोसिस तो कर रहा हूँ ना सावित्री...

सावित्री- ख़्वामोखा मुझे प्यासी करके छोड़ देते हैं, बस अपना आनंद ले लेते हो...

जनार्दन- क्या करूँ, उमर भी तो हो गया है...

सावित्री- तो फिर करते ही क्यों है ?

जनार्दन- क्या करूँ, आदत जो हो गयी है तुम्हारी...

सावित्री- रहने दो,

सावित्री गुस्से में लग रही थी.. क्यों कि जनार्दन चौधुरी उसको भरपूर सेक्स का मजा नहीं दे पा रहे थे...

सावित्री जो कि एक गदरायी हुई सेक्सी बदन की मालकिन थी.. उभरे हुए 38 की चुचीं, रसीले कमर और उभरा हुआ पाहाड जैसी गाँड़, जिसको देख कर किसी भी मर्द का लन्ड झट से खड़ा हो जाये....

सावित्री 2 बच्चों की माँ थी.. एक बेटा और एक बेटी... बेटा का नाम रंजीत था जो कि चौधरी बंश का अगला वारिश था जो कि Delhi में किसी multi-National company में job कर रहा था.. रंजीत का उम्र 30 साल था...

और एक बेटी थी नम्रता जो कि 25 साल की थी.. जिसकी शादी जल्दी ही हो गयी थी... पास के सहर में ही उसकी शादी हुई थी...

तो इतने बड़े बंगले में सिर्फ जनार्दन चौधुरी और उनकी बीवी सावित्री ही थे... उनकी बंगले में उनके अलावा एक नौकर, एक नौकरानी, और एक ड्राइवर भी थे..

नौकर का नाम परमेस्वर, नौकरानी का नाम शांति, और ड्राइवर का नाम रघु था....

***********************

परमेस्वर और शांति बंगले का सभी काम करते थे..और ड्राइवर रघु भी गाड़ी चलाने के अलावा बगीचे का काम भी कर लेता था..

भले ही जनार्दन चौधुरी बुड्ढे हो गए हों और सेक्स करने में दिक्कतें आ रही हो फिर भी वो एक कामुक किस्म के आदमी थे.. औरत उनकी कमजोरी थी.. अपने जवानी के दिन में वो बहुत अय्याश किये थे फिर उन्होंने सावित्री से शादी कर ली.. शादी के बाद भी उनकी रासलीला खत्म नही हुई थी.... रघुनाथपुर गांव के कई औरतों को वो अपना रांड बना कर रखे हुए थे... चौधरी के पास बहुत जमीन जायदाद था.. खेती काम के लिए जब गावों की औरतें काम के लिए आते तो जनार्दन उनको हवस की नजर से देखते थे और छेड़ते थे..... कई औरतों को खेत में बने झोपड़ी में चुदाई करते थे.... ये सब बात सावित्री को पता थी लेकिन जनार्दन के गुस्सा को वो अच्छी तरह जानती थी....

एक दिन जनार्दन अपने बगीचे में बेठ के चाय पी रहे थे... तभी उनका नौकर परमेस्वर आया-

परमेस्वर- मालिक, गांव की कोई औरत आपसे मिलना चाहती है..

जनार्दन जैसे ही औरत की नाम सुने, उनके आंखों में वासना के कीड़े दौड़ने लगे...

जनार्दन- कौन औरत ? क्या नाम है उसकी ?

परमेस्वर- पता नहीं मालिक..

जनार्दन- ठीक है यहां भेज दे उसे...

परमेस्वर के जाने के बाद जनार्दन एक सिगरेट निकाल के मुंह पर डालने लगे.....

औरत- नमस्ते हुजूर...

जनार्दन ने पीछे मुड़ के देखे तो पीला रंग की साड़ी में एक औरत खड़ी थी, पीला ब्लाउज में उसकी चुचीं साफ नजर आ रही थी...

जनार्दन- पीछे क्यों खड़ी है, आगे आजा....

वो औरत आगे आ गयी...

जनार्दन- क्या नाम है तेरा ?

औरत- जी, निर्मला

जनार्दन- बोल क्या बात है ?

निर्मला- हुजूर मुझे कुछ पैसे उधार चाहिए, मेरे बच्चे की तवियत खराब है, उसे अस्पताल ले जाना है....

जनार्दन हमेशा ऐसी मौके की तलाश में रहता था...

जनार्दन- क्या हुआ है तेरे बच्चे को ?

निर्मला- जी पता नहीं हुजूर, कल से बुखार है....

जनार्दन- देख पैसे तो मेरे पास भी नहीं है लेकिन तेरे लिए में जुगाड़ कर सकता हूँ अगर तू चाहे तो !!

निर्मला- मालिक में क्या कर सकती हूँ ? आप ही तो सब कुछ हो...

जनार्दन निर्मला की बड़ी बड़ी चुचीं को घूरते हुए बोला- निर्मला कुछ चीज़ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है....

निर्मला एक सीधी साधी औरत थी, लेकिन वो सब समझ गयी कि चौधुरी क्या कहना चाहता है, लेकिन वो मजबूर थी, गांव में दूसरा कोई उसकी मदद नहीं कर सकता....

निर्मला- जी में तैयार हूं...

जनार्दन- अरे वाह !!! बड़ी होशियार है तू, सब समझ गयी...

निर्मला नज़रें झुकाए खड़ी थी...

जनार्दन- आज रात को यहां आ जाना, पैसे वहां मिल जाएंगे...

निर्मला- जी मालिक....

निर्मला वापस जाने लगी....

पीछे परमेस्वर झाड़ी को पानी दे रहा था और ये सब चुपके से देख रहा था...तभी ड्राइवर रघु वहां आ गया..

रघु- और परमेस्वर भाई, क्या खबर है, सब ठीकठाक ना ?

परमेस्वर- हैं भाई... यहां तो बस चौधुरी साहब का ही मजे ही मजे हैं...

रघु- हां उनका तो है.. क्यों आज कोई नई माल मिल गया क्या उन्हें...

परमेस्वर- हां भाई.. गांव की कोई औरत आयी थी निर्मला नाम की.. उसको आज रात यहां पर बुलाये हैं चौधुरी साहब ने...

रघु- चौधुरी साहब की मजे है भाई, रोज नई नई चुत... और साला हम हैं कि एक ही चुत पे लन्ड रगड़ रगड़ के थक गए हैं, मजा नहीं आ रहा है...

परमेस्वर- क्यों भाभी अब और मजा नहीं दे रही है क्या (हंसते हुए)

रघु- हां भाई एक ही चुत कितना मारोगे....

परमेस्वर- तो फिर कोई नई चुत ढूंढ लो भाई...

रघु- वो में ढूंढ लिया हुँ...

परमेस्वर- अच्छा, बताना कौन है वो ?

रघु- चौधरी साहब की बीवी सावित्री....

परमेस्वर- अबे पागल हो गया क्या ? तुझे पता है तू किसकी बारे में बोल रहा है...

रघु- पता है...

परमेस्वर- पता है फिर भी बोल रहा है... अगर मालकिन को पता चल गया तो तेरा छुट्टी हो जाएगा यहां से....

रघु- परमेस्वर एक बात बताऊं, तू कभी ध्यान से सावित्री मालकिन को देखना, उनकी आंखों में प्यास नजर आती है... बस इसीका फायदा मुझे उठाना है...

परमेस्वर- क्या बक रहा है तू ?

रघु- मुझे लगता है उनको भरपूर सेक्स की जरूरत है... बुड्डा अभी ठीक से चोद नहीं पा रहा है उनको....

परमेस्वर- देख भाई.. जो भी करना है चालाकी से कर वरना कुछ गड़बड़ हो गया तो तू नहीं बचेगा....

रघु हंसते हुए बोला- बोल तुझे चाहिए क्या सावित्री की चुत ?

परमेस्वर- नहीं भाई मेरे पास शांति की चुत है जिससे में खुश हूं..

रघु- साला शांति (नौकरानी) को चोद चोद के सारे रस चूस लिया है तूने, कभी मुझे भी तो चूसा...

परमेस्वर- पहले तू सावित्री मालकिन की चूस ले, बाद में शांति की चूसना...

फिर दोनों खिलखिला कर हंसने लगे.....

***********************

सावित्री अपने कमरे में बेठ के अपना बेटा रंजीत से फ़ोन पे बात कर रही थी....

सावित्री- बहुत दिन हो गया तुझे यहाँ से जाके, कब आ रहा है तू ?

रंजीत- बस और कुछ दिन ठहर जाओ mom... फिर में अकेला नहीं किसी और को भी लेकर आऊंगा....

सावित्री- किसी और को, किसको ?

रंजीत- तुम्हारी बहु को....

सावित्री- तूने हम सबको बिन बताए शादी कर ली ?

रंजीत- नहीं mom, शादी करने वाला हूँ, वो भी Court marraige...

सावित्री- Court marraige क्यों ?

रंजीत- क्योंकि वो दूसरे Caste की है और हमारी love marraige होगी....

सावित्री- तेरे पापा को पता चल गया तो गुस्सा होंगे....

रंजीत- Mom आप सब संभाल लेना please....

सावित्री- ठीक है, पहले तू आ तो सही, फिर तेरा शादी की पार्टी भी होगी....

रंजीत- Thank you mom...

सावित्री- Bye बेटा....

रंजीत- Bye mom..

सावित्री के phone रखते ही शांति (नौकरानी) चाय लेके आ गयी...

शांति- मालकिन चाय....

सावित्री चाय की कप उठा कर पीने लगी.....

शांति- मालकिन आज हमारे पास एक नई खबर है....

सावित्री- बोल...

शांति- मालिक आज रात यहां पर गाँव की किसी औरत को बुलाये हैं.....

सावित्री- खबर पक्की है ना...

शांति- हां मालकिन...

सावित्री- तुझे पता है वो औरत कौन है ?

शांति- नहीं मालकिन...

सावित्री- ठीक है तू जा.....

शांति अपनी मोटी मोटी गाँड़ मटका ते हुए चली गयी..

सावित्री मन ही मन बोल रही थी- पता नहीं ये आदमी कब सुधरेगा ? जब भी देखो औरत.. लेकिन उनसे होता कुछ नहीं है फिर भी औरत चाहिए... जब उनके दो बच्चों को ये पता चलेगा तब क्या होगा ?

तब पीछे से रघु ने आवाज दिया- मालकिन आपने मुझे बुलाया ?

सावित्री पीछे मुड़ गयी और बोली- हां कल सुबह मुझे सहर थोड़ा जाना है, गाड़ी तैयार रखो...

रघु- जी मालकिन...

ये कहते हुए रघु बार बार सावित्री के बड़े बड़े चुचीं को घूर रहा था कि जो कि मदमस्त नजर आ रहे थे....

रघु जाते हुए सोच रहा था- उफ्फ क्या जवानी है सावित्री मालकिन की... रसीले बदन के साथ साथ रसीले चुचियाँ.... बुड्डा की जगह में होता तो सारी रस चूस कर फेंक देता...

ये सोचते हुए रघु अपना लन्ड पैंट के ऊपर से हाथ से मसलते हुए बाहर जा रहा था....

रात के 9 बज रहे थे.. निर्मला बंगले की गेट पे खड़ी थी... तभी शांति ने सावित्री को ये खबर दे दी... सावित्री ने रघु को फ़ोन करके बोल दी कि उस औरत को गेट के पास ही रोक कर रखो, में आ रही हूं...

गेट के पास रघु और निर्मला खड़े थे, तभी अंदर से सावित्री आ रही थी... जोर जोर से चलने की वजह से सावित्री की दोनो चुचियाँ हवा में ऊपर नीचे हो रही थी... रघु की नजर सावित्री की चुचियों पर थी जो जोर जोर से हिल रही थी... रघु निचले होंठ को अपने दांतों से दबा रहा था सावित्री की हिलते चुचियाँ देख कर....

सावित्री पास आ गयी और बोली- तू कौन है, तेरा नाम क्या है ?

निर्मला- जी निर्मला...

सावित्री- यहां पे क्यों आयी है ?

निर्मला- जी मालिक ने बुलाया है...

सावित्री- तुझे पता है वो तुझे किस लिए बुलाये हैं ?

निर्मला- जी पता है...

सावित्री- फिर भी तू आयी है ?

निर्मला- जी..

सावित्री- बोल तुझे क्या चाहिए, पैसा चाहिए या कुछ और ? में देती हूं....

तभी बालकनी में खड़े जनार्दन ने आवाज दिया- रघु, उस औरत को अंदर आने दो....

सावित्री पीछे मुड़ कर जनार्दन को घूर के देख रही थी... निर्मला बंगले के अंदर जा रही थी...

रघु बारबार सावित्री को घूरते हुए मन में बोल रहा था- तेरा पति तेरे सामने गैर औरतों की ठुकाई कर रहा है, तू भी गैर मर्दों से ठुकाई करवा लें....

फिर सावित्री बड़े गुस्से से अंदर जा रही थी....

बाहर में खड़े शांति और रघु ये सब देख रहे थे.......

रघु- शांति, क्या तुझे पता है कि चौधुरी सहाब ने इस औरत को इतनी रात को क्यों बुलाये हैं ?

शांति शरमा गयी और बोली- बात तो ऐसे कर रहा है जैसे कुछ मालूम ही ना हो....

रघु- अरे सच में मालूम नहीं है... कुछ काम है क्या अभी ?

शांति- मुझे नही पता..

ये कहते हुए शांति हड़बड़ी में जाने लगी...

रघु- (मन में) तुझे सब पता है.. बस एक बार सावित्री की चुत मारने दे फिर तुझे बताऊंगा की इतनी रात को एक औरत को क्यों बुलाया जाता है.....

फिर सब नौकर परमेस्वर, शांति और ड्राइवर रघु सब काम निपटा कर अपने अपने घर जाने लगे... बस गेट पर वॉचमैन था एक बुड्डा...

जाते जाते वॉचमैन को रघु ने बोला- थोड़ा ध्यान से काका, हमारे मालिक मालकिन का ध्यान रखना.....

बुड्डा- हां बेटा....

**********************

अंदर जनार्दन आराम कुर्शी पे सिगरेट पीते हुए बैठा हुआ था..

सावित्री- ये क्या चल रहा है यहां पर, आपने किसी औरत को यहां बुलाये हो क्यों ?

जनार्दन- क्यों कि वो मुझे पसंद है...

सावित्री- अभी तो ये सब बन्द करो, तुम्हारे दो जवान जवान बच्चे हैं.....

जनार्दन- अब ज्यादा मेरा मुंह मत खुलवाओ तुम....समझे....

सावित्री गुस्से से वहां से जा रही थी......

अंदर जनार्दन के कमरे में निर्मला नजरें झुकाए चुपचाप बैठी थी...

जनार्दन जैसे ही अंदर आये निर्मला खड़ी हो गयी....

जनार्दन ने दरवाजा बंद कर दिया...

जनार्दन- देख क्या रही है, अपने कपड़े उतार...

निर्मला कपड़े उतारने लगी...

जनार्दन- ये बता तेरे बच्चे कितने हैं ?

निर्मला- जी 4 बच्चे हैं...

जनार्दन- क्यों और कोई काम नहीं है क्या तेरे पति का, बस बच्चे पैदा करते रहो...

निर्मला अब सिर्फ चड्डी में थी.. सिर्फ ब्लाउज पहनी थी जो कि वो निकाल दी थी... उसके बड़े बड़े चुचीं पाहाड जैसी खड़ी थी... चुचियाँ बड़ी थी लेकिन ज्यादा दबाने की वजह से झूल रही थी..

जनार्दन निर्मला की चुचियों को घूरते हुए बोला- लगता है तेरे पति ने कुछ ज्यादा ही मेहनत किया है..

निर्मला चुपचाप खड़ी थी....

जनार्दन ने पीछे से जाके एक हाथ से चुचीं को मसल दिया....

निर्मला की बदन पे आग लग गयी थी....

फिर जनार्दन ने दोनों हाथों से चुचियों को मसल रहे थे....

निर्मला दोनो आंखे बंद करके खड़ी थी और पीछे से चौधुरी उसकी बूब्स को मसल रहे थे...

निर्मला पहली बार किसी गैर मर्द से चुचीं मसलवा रही थी....

कुछ देर बाद जनार्दन अपने लन्ड चुसा रहे थे निर्मला को.... निर्मला मजबूरी में लण्ड चूस रही थी...

कुछ देर चूसाने के बाद जनार्दन निर्मला को बेड पे लिटा दिए और जैसे ही लन्ड डाल दिए और चोदने लगे, बस कुछ ही सेकंड में वो झड़ गए.... निर्मला प्यासी रह गयी थी....
फिर जनार्दन थक के बेड के किनारे पे सो गए... लेकिन निर्मला बिन पानी जल की तरह छटपटा रही थी....

सुबह जब हुई तो जनार्दन ने निर्मला को कुछ पैसे दे के वहां से भेज दिए.....

निर्मला जैसे ही बंगले से बाहर निकली तो वहां पे रघु आ चुका था क्योंकि आज उसे सावित्री मालकिन को शहर ले जाना था.....

रघु- क्यों निर्मला, रात को मजा आया ना ?

निर्मला चुपचाप जा रही थी...

रघु- बोल ना, दबा के ठुकाई हुई कि नहीं तेरी.....

निर्मला चुपचाप जा रही थी...

रघु- अगर ठुकाई ठीक से नहीं हुई तो बता दे, तुझे इतना ठोकुंगा कि चलने लायक नहीं छोडूंगा....

निर्मला रघु की बात को नजरअंदाज करके जा रही थी तो रघु ने निर्मला के हाथ पकड़ लिए-

रघु- मुझे पता है चौधुरी सहाब बुड्ढे हो गए हैं, वो तुझे कहाँ चोद पाएंगे... तू अभी भी प्यासी है.. चल कोने में चल तेरी प्यास बुझाता हूँ...

निर्मला की बदन पे आग लगी हुई थी तो वो चुपचाप रघु के साथ जाने लगी...

गेट के पास एक छोटी से झाड़ी है जो कि बंगले के अंदर ही है, पर सुबह सुबह कोई ना होने के कारण रघु निर्मला को वहां पे ले गया और चड्डी उतार के खड़े खड़े चोद रहा था....निर्मला की चुचियाँ जोर जोर से हिल रहे थे, रघु चुचियों को मसल मसल के खड़े खड़े ठोक रहा था....ठुकाई इतनी तेज थी कि निर्मला की गाँड़ फट रही थी पर मजा भी आ रही थी....कुछ देर ठोकने के बाद निर्मला को रघु ने छोड़ दिया... और निर्मला अपने घर जाने लगी...

**********************

रघु बगीचे में पौधों को पानी दे रहा था, तभी देखा कि बालकनी पे सावित्री नाइटी में खड़ी थी और चाय पी रही थी... नाइटी में से उसकी 36 की बड़ी बड़ी चुची साफ नजर आ रही थी.... सावित्री बालकनी पर टहल रही थी तो उसके नाइटी के अंदर ब्रा ना पहनने की वजह से उसके दोनों चुचीं हिल रहे थे... रघु ये सब नजारा देख के अपने होठों को दात से दबा रहा था....

रघु की नजर सावित्री के ऊपर बहुत दिनों से था... उसे चोदने के लिए रघु पागल हो गया था... सावित्री की मादक अदाओं पर वो फिदा था.... उसकी हर एक अंग को वो चूसना चाहता था....

फिर सावित्री किसी से फ़ोन पर हंस हंस के बातें कर रही थी, ये देख कर रघु मन ही मन बोल रहा था "बस एक बार मुझसे चुद ले सावित्री, फिर तुझे और किसी की जरूरत ही नही पड़ेगी... इतना ठोकुंगा की चुत की खुजली मिट जाएगी...

फिर फ़ोन ऑफ कर के बालकनी से ही सावित्री बोली- रघु गाड़ी तैयार है ना...

रघु- जी मालकिन..

सावित्री- ठीक है, तो फिर में नहा लेती हूं, फिर सहर की तरफ निकलेंगे...

रघु- जी मालकिन...

फिर सावित्री अंदर चली गयी...

रघु मन ही मन सोचा- सावित्री नहाने गयी है, क्यों ना उसकी नहाने का scene थोड़ा देखने की कोशिश किया जाए.... और वो अंदर जाने लगा...

चुपके चुपके वो अंदर गया जहां पे बाथरूम था... बाथरूम के अंदर से पानी गिरने की आवाज आ रहा था, शायद सावित्री नहा रही थी... रघु अंदर झांकने की पूरी कोशिश की लेकिन देखने में नाकामयाब रहा... फिर अचानक उसका नजर बाथरूम के बाहर पड़ा एक कुर्शी के ऊपर गया जहां पे एक लाल रंग की ब्रा और चड्डी पड़ी हुई थी... उसे समझने में देर नहीं लगा कि ये ब्रा और पैंटी सावित्री मेडम की है... रघु हाथ से ब्रा को उठाया और ध्यान से देखने लगा, और मन ही मन बोला" उफ्फ क्या ब्रा है, चुचीं बहुत ही बड़ी होगी, ये ब्रा देख के पता चल रहा है... फिर ब्रा को हाथों से मसलने लगा मानो सावित्री की चुचीं मसल रहा हो..... ब्रा को सूंघने लगा और चाटने लगा... ब्रा को पागलों की तरह चाट रहा था... पैंटी को भी पागलों की तरह चाट रहा था....

रघु मन ही मन बोला- क्यों ना ये ब्रा और पैंटी को में अपने साथ ले लूं, ये ब्रा और पैंटी को सावित्री मेडम ने पहनी है, इसको चाटने में मजा आ जायेगा... फिर ब्रा और पैंटी को ले के बाहर आ गया....

रघु कमरे से बाहर निकल कर सीधा बाहर में बना visitors लोगों के लिए toilet में घुस गया और वहां पे अपना लन्ड निकाल के लन्ड के ऊपर ब्रा को लगा के मुठ मारने लगा... मुठ मारते वक़्त उसके जुबान पे बस एक ही नाम था "सावित्री मेरी रांड"

रघु 30 साल का एक मजबूत मर्द था, उसका लन्ड 9 इंच का फौलादी वाला था, जो कि किसी भी चुत की धज्जियां उड़ा सकता था... रघु की नजर 48 साल की सावित्री की चुत मारने की थी.. वो सावित्री की जबरदस्त ठुकाई करना चाहता था....

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Lutgaya

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शानदार शुरूआत मित्र
आगे का सीन कब आएगा
 
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SKYESH

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badhiya.............................

congrats .........................for new story
 
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फिर कुछ देर बाद सावित्री एक वैनिटी बैग पकड़ के बाहर निकली.... रघु की नजर जब सावित्री पर पड़ा तो वो हक्का बक्का रह गया.... सावित्री लाल रंग की साड़ी और लाल रंग की ब्लाउज में बिल्कुल सेक्स की देवी लग रही थी.... रघु की लन्ड फड़फड़ाकर खड़ा होने लगा और सलामी दे रहा था.....
रघु सावित्री की मादक जिस्म को देख कर पागल होए जा रहा था... खास कर उसकी चुचीं और गाँड़ को देख कर रघु अपने लन्ड पे हाथ मसल रहा था.....

सावित्री- रघु, गाड़ी निकालो....

रघु- जी मालकिन...

रघु ने गाड़ी निकाला और सावित्री कार की पीछे वाली सीट पर बेठ गयी.... गाड़ी बंगले की गेट से होके बाहर निकल गयी....

ये सब बगीचे में काम करते हुए परमेस्वर और शांति देख रहे थे....

परमेस्वर- क्या किस्मत है भाई रघु की ? मालकिन की बड़े बड़े चुचियां और बड़ी बड़ी गाँड़ की हमेशा दर्शन करता है साला.....

शांति- क्यों तुझे भी दर्शन करना है क्या मालकिन की चुचीं और गाँड़ की ?

परमेस्वर- हट बे साली... मेरे लिए तो तू है...

शांति- फिर भी तू मालकिन को क्यों घूरता रहता है हमेशा ?

परमेस्वर- मालकिन चीज़ ही ऐसा है... देख कर लन्ड खड़ा हो जाता है...

शांति- धीरे से बोल.. कहीं मालिक ने सुन लिया तो तेरा छुट्टी हो जाएगा...

परमेस्वर- सुनने दे उस ठरकी बुड्ढे को... साला बुड्डा मालकिन को ठीक से चोद नहीं पाता और गांव से रंडियां बुलाता रहता है....

शांति- बस बस अभी रहने दे.. मालकिन भी तो बुड्ढी हो गयी हैं, 48 साल हो गयी है मालकिन को...

परमेस्वर- 48 साल हो गयी है फिर भी तेरे जैसी औरत उनके सामने कुछ नहीं है.... क्या सेक्सी बदन, मादक होठ, ओह सोचते ही लन्ड खड़ा हो जाता है.... साला रघु अभी रास्ते भर मालकिन की सेक्सी बदन की दर्शन कर रहा होगा...

शांति- तुम दोनों किसी दिन पकड़े गए ना तो समझो खेल खत्म....

परमेस्वर- खेल तो अभी सुरु हुआ है मेरी रानी, संभोग का खेल......

शांति- संभोग का खेल ?

परमेस्वर- हां संभोग का खेल ऐसा होता है जिसमें उम्र,ऊंच नीच, जात-पात, ये सब मायने नहीं रखती... संभोग में तो बस लन्ड और चुत का मिलन होता है....

शांति- जैसे कि तुम लोग हो.. तू और रघु 30 साल के हो और मालकिन 48 साल की... फिर भी उसके चुत के पीछे पड़े हो....

परमेस्वर- यही तो संभोग है मेरी रानी... जब 48 साल की चुत में 30 साल की जवान लन्ड घुसेगा ना मजा और भी दोगुनी हो जाएगी... चुत कोई भी उमर की हो चोदना चाहिए, मजा उतना ही आएगा..... यही तो सम्भोग है...

शांति- चल अब बस कर, काम कर काम...

परमेस्वर खिलखिला कर हंसने लगा........

**********************

सावित्री कार में बेठ के शहर जा रही थी उसकी कुछ जरूरी काम के लिए... रघु ड्राइविंग कर रहा था लेकिन उसका नजर सामने लगे गाड़ी के mirror पर था... वहां से वो सावित्री को ध्यान से देख रहा था... सावित्री की मादक जिस्म को भूखे भेड़िया की तरह देख रहा था....

सावित्री- रघु ज्यादा mirror मत देख, आगे देख....

रघु एक दम से चौंक गया, शायद मालकिन ने उसे देख लिया था...

रघु- जी मेडम..

रघु फिर भी धीरे धीरे mirror को देख कर आहे भर रहा था, उसकी नजर सावित्री के मोटे चुचीयों के ऊपर थी....

कुछ समय गाड़ी ऐसे चलता रहा..

सावित्री- रघु आजकल तू लोगों की काफी मदद कर रहा है...

रघु एक दम से चौंक गया, क्योंकि वो समझ नहीं पाया कि सावित्री मेडम ने ऐसा क्यों पूछा ?

रघु- में समझा नहीं मेडम..

सावित्री- आज सुबह गेट के पास लगे फूल बगीचे की झाड़ी में निर्मला की कुछ मदद कर रहा था ना तू ?

ये बात सुन के रघु की गाँड़ फट गई... रघु पसीना पसीना हो गया...

रघु- कब मेडम ?

सावित्री- आज सुबह...

रघु- हां वो निर्मला की आंख में कुछ गिर गया था तो उसमें थोड़ा पानी दे रहा था और फूंक दे रहा था...

सावित्री- अच्छी बात है, हमेशा औरतों की मदद करना चाहिए...

रघु की जान में जान आया, चलो मेडम को कुछ पता नहीं चला...

गाड़ी कुछ समय बाद शहर पहुंच गया......

**********************

इधर दोपहर में परमेस्वर शांति को store room में दनादन ठुकाई कर रहा था...

शांति doggy पोजीशन में थी और परमेस्वर पीछे से चोद रहा था... शांति की साड़ी को ऊपर कर चड्डी निकाल कर परमेस्वर शॉट पे शॉट मार रहा था... शांति हल्की हल्की सिसकारी ले रही थी...

चुदाई खत्म होने के बाद परमेस्वर बोला- तुझे तेरा पति ठोकता है कि नहीं ?

शांति- क्यों ?

परमेस्वर- तेरी चुत बहुत टाइट है, कुंवारी चुत के जैसी... कोई बोलेगा ही नहीं कि 3 बच्चे की माँ की चुत है...

शांति सेक्सी स्माइल करते हुए बोली- हट पागल...

शांति 36 साल की गोरी बदन की औरत थी.... उसकी 3 बच्चे थी लेकिन पति बेवड़ा था.... वो बहुत दिनों से जनार्दन चौधुरी के बंगले में काम करती थी.... जनार्दन चौधुरी भी उसकी जवानी का मजा ले चुका था....
परमेस्वर उसे हफ्ते में 3,4 बार चोदता था...

उधर सहर से सब काम निपटा के सावित्री बापस आ रही थी... बंगले के अंदर गाड़ी रुकी और सावित्री गाड़ी से उतर कर जाने लगी, फिर पीछे मुड़ के रघु के पास आई और बोली-: मेरी ब्रा पैंटी तेरे बीवी को दे देना, कहना मालकिन ने गिफ्ट दिया है.... ये कह कर सावित्री बंगले के अंदर जाने लगी....

रघु को मानो shock लग गया था सावित्री की बात सुन कर... उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि मालकिन को ये कैसे पता चला कि उनकी ब्रा पैंटी उसके पास है....

रघु एक दम से घबरा गया था, अब क्या होगा ? मेडम उसे क्या सजा देंगे चोरी करने का... चोरी वो भी क्या ब्रा और चड्डी..... रघु मेडम की बात याद करके घबरा भी रहा था और उसके लन्ड खड़े भी हो रहे थे.. क्यों की मेडम जैसी सेक्सी औरत ऐसी बात करे तो किसकी लण्ड खड़ा ना होए...

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सावित्री जैसे ही बंगले के अंदर गयी, अपने पति जनार्दन की रूम से किसी औरत की सिसकारी गूंज रही थी... उसे समझने में देर नहीं लगा कि अंदर क्या चल रहा था......

सावित्री अंदर झांक कर देखा तो उसकी आंखें फटी रह गयी... जनार्दन शांति को bed के ऊपर दनादन चोद रहा था....

सावित्री मन ही मन बोली- बस रंडीयों को चोदते रहो, घर की बीवी को छोड़ के....

तभी सावित्री की मोबाइल पे रिंग हुआ तो उसकी आँखों में थोड़ी सी चमक आ गयी...

सावित्री- हेलो, हां कब आ रहे हो, ठीक है आ जाओ फिर, कुछ दिन रह के चले जाना.....

फ़ोन रखते ही सावित्री की आंखों में एक अजब सा नशा दिखने लगा....

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अगली सुबह बंगले के अंदर एक काले रंग की कार दाखिल हुआ.. दिखने में महंगी कार लग रहा था...

परमेस्वर और रघु बगीचे से सीधे कार के पास आ गए.....

कार की गेट जब खुली तो अंदर से एक खूबसूरत सी गोरी सी औरत बाहर निकल रही थी, जिसे देख कर रघु और परमेस्वर की होश उड़ गए... वो औरत काले रंग की ट्रांसपेरेंट साड़ी पहनी हुई थी, जिससे उसकी ब्लाउज और उसके गोलाई साफ नजर आ रहे थे.....

फिर कार की दूसरी तरफ से एक आदमी बाहर निकला...

रघु- क्या माल है भाई ?

परमेस्वर- अबे माल नहीं, मालकिन की बेटी है....

रघु- क्या बात कर रहा है, जैसी माँ, वैसी बेटी... सेक्सी.... क्या गाँड़ है उफ्फ....

अंदर से सावित्री हंसते हुए आ रही थी... सावित्री लाल रंग की साड़ी में सेक्स की देवी लग रही थी.... ,रघु उसे देख कर अपने लन्ड पे हाथ मसल रहा था....

सावित्री ने अपनी बेटी को गले से लगाई और माथे पे किस करके बोली- केसी है तू नम्रता ?

नम्रता- में ठीक हु mom, और आप ?

सावित्री- में भी... दामादजी नहीं आये क्या ? दिखाई नहीं दे रहे हैं...

नम्रता- आये हैं ना.. गाड़ी के पास हैं...

सावित्री- ओह ऐसा है...

फिर सावित्री हंसते हुए गाड़ी के पास आ रही थी जहां पे रघु और परमेस्वर भी खड़े थे....

सावित्री- कैसे हैं दामादजी ?

कहते हुए सावित्री उसके दामाद से गले मिलने लगी...

उसके दामाद ने कहा- बस आपकी कृपा है सासु मां... ये कहते हुए उसने सावित्री की चुचीं को हाथ से हल्का सा दबा दिया, जिसे रघु और परमेस्वर ने देख लिया....

हल्की सी चुचीं दबाने के बाद सावित्री की मुंह पे एक सेक्सी सी स्माइल आ गयी और बोली- अंदर चलिए, बाहर क्यों खड़े हैं...

सावित्री- परमेस्वर, गाड़ी से सामान निकाल के अंदर लाओ...

परमेस्वर- जी मालकिन...

उन तीनों के जाते ही रघु बोला- देखा भाई, किस तरह उस आदमी ने सावित्री की चूची दबाया और मालकिन ने कुछ बोला भी नही, उल्टा हंसती रही... कुछ तो झोल है गुरु...

परमेस्वर- क्या झोल है ?

रघु- अबे सीधी सी बात है... मालकिन की रस उसके दामाद चूस रहा है... और ये सब बहुत दिनों से चल रहा है....

परमेस्वर- चूसे नहीं तो क्या करे, ऐसी रसीली चीज़ को कोई बिना खाये कैसे जाने दे...

रघु- साला बेटी की रस भी चूस रहा है और उसकी माँ की भी...

परमेस्वर- पर तु क्यों अपना लन्ड मसल रहा है, जा और मुठ मार ले...

रघु- हां भाई, अब ऐसा ही करना पड़ेगा.... पर एक बात तुझे बता दूं भाई सावित्री मालकिन को एक दिन चोद के ही रहूंगा....

परमेस्वर- ठीक है अभी जा और मुठ मार ले.....

परमेस्वर गाड़ी का सामान उठा कर अंदर ले गया तो देखा सावित्री हंस हंस के उसके दामाद से बात कर रही थी...

और पास में नम्रता सोफे पर बैठी हुई थी....

सावित्री- अरे परमेस्वर, रघु को थोड़ा अंदर भेज दे...

परमेस्वर- जी मालकिन..

परमेस्वर बाहर आके रघु से बोला- अबे जा, तेरा lottery लग गया, मालकिन तुझे बुला रहे हैं...

रघु अंदर जाते हुए एक हल्की सी मुस्कुरा रहा था...

रघु- आपने मुझे बुलाया मालकिन ?

सावित्री- ह्नां रघु, इधर आ.. राजेश इसको पहचान लो, ये है रघु, मेरी ड्राइवर.. तुम्हे कहीं भी जाना हो बस रघु को बुला लेना ठीक है...

राजेश- और रघु, सही है ना ...

रघु- जी साहब...

सावित्री- रघु अब तू जा...

रघु- जी मालकिन....

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