Incestlala
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धर्मवीर - इस तरह लेटकर अब अपने दोनों घुटनों को अपने पेट से लगाओ ।
यह सुनकर उपासना बोली - पापाजी पेट से कैसे लगाए घुटने तो छातियों पर आरहे है ।
सोमनाथ - हां बेटी यही मतलब है समधीजी का ।
उपासना और पूजा ने अपने दोनों घुटने अपनी छातियों से लगा लिए मोड़कर ।
अब तो उन दोनों के कूल्हों ने फैलकर अपना पूरा आ
कार ले लिया । पतली कमर के नीचे फैली हुई गांड आमंत्रित कर रही थी एक ताबड़तोड़ चुदाई को ।
सोमनाथ और धर्मवीर का कलेजा मुह को आगया ।
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अब धर्मवीर और सोमनाथ दोनों उनके मुंह को अपने गोद में लेकर बैठ गए फर्श पर और उनके पैरों को पकड़कर अपनी तरफ खींचकर बिल्कुल सीधा कर दिया ।
ऐसा करने से उपासना और पूजा के नितम्बो का उठान किसी को भी पागल करने के लिए काफी था ।
ऐसे बैठने से सोमनाथ और धर्मवीर का लंड अपनी औकात में आकर खड़ा हो गया और पूजा और उपासना के माथे से टकराने लगा ।
धर्मवीर - पूजा की जांघों पर हाथ फेरते हुए बोला - सही कहा था सोमनाथ जी हमारी बेटियों ने की ये हार मानने वाली घोड़ियां नही है ।
सोमनाथ - समधीजी घोड़ी वही अच्छी होती है जो कभी हारे ना।
दोनों की ये वार्तालाप सुनकर पूजा और उपासना शरमा गयीं ।क्योंकि वो जानती थी इस बात का मतलब । लेकिन उपासना बात को आगे बढ़ाते हुए सोमनाथ से बोली।
उपासना - पापाजी ऐसी घोड़ियों के लिए घुड़सवार भी दमदार होना चाहिए ।
सोमनाथ - घुड़सवार की तुम चिंता ना करो बेटी घुड़सवार तो ऐसे ही कि घोड़ियों के मुह से हिनहिनाने की आवाज तक ना निकले ।
ऐसा बोलकर सोमनाथ ने अपने पैंट की चैन खोलकर अपना विशालकाय लंड उपासना के माथे पर रख दिया ।
जब उपासना ने अपने सगे बाप का लंबा लंड देखा तो उसके माथे से लेकर उसके होंठ सोमनाथ के आधे लंड पर ही आरहे थे। इतना लंबा लंड देखकर उपासना ने आंखे बंद करली।
धर्मवीर ने भी ऐसा ही किया तो धर्मवीर का लंड तो सोमनाथ से मोटा था पूजा को दोनों होंठ ढक गए उसके लंड से ।
शाम हो चली थी तो धर्मवीर बोला - कि चलो सोमनाथ जी हम नहा लेते है ।
ऐसा बोलकर दोनों खड़े हो गए पूजा और उपासना को फर्श पर पड़ी छोड़कर बाहर निकल गए ।
पूजा और उपासना भी नहाकर निकल चुकी थी ।
दोनों ने अपने लिए ट्रांसपेरेंट साड़ी निकाली लेकिन कुछ सोचकर दोनों ने सूट सलवार पहन लिए और फैसला किया कि पहले पापाजी को चाय देकर आजाये फिर साड़ी पहनेंगे ।
ऐसा फैसला करके दोनों उपासना ने अपने हाथ मे चाय की ट्रे ली और पूजा ने कुछ स्नैक्स लिए और चल दिये धर्मवीर और सोमनाथ वाले रूम की तरफ ।
जैसे ही गेट पर पहुंचीं दोनों तो अचानक ठिठक गयीं क्योंकि अंदर से कुछ बात करने की आवाजें आरही थी ।
गेट खुला हुआ था । सोमनाथ जी सोफे पर बैठे थे और धर्मवीर जी बैड पर बैठे दोनों बातें कर रहे थे ।
पूजा ने इशारा किया उपासना को कि दीदी दोनों की बातें सुनते है ।
धर्मवीर - तो सोमनाथ जी आखिर करा ही दिए अपने अपनी बड़ी घोड़ी को अपने लंड के दर्शन ।
सोमनाथ - समधीजी अपने भी तो अपनी घोड़ी चुन ही ली है ।
धर्मवीर - तो देर कैसी फिर चलो उन दोनों की चूतों के छेदों को और चौड़ा कर दिया जाए ।
सोमनाथ - जल्दबाजी ठीक नही समधीजी । चूतों को तो हम आज फाड़ेंगे ही लेकिन तब जब वो दोनों अपनी चूतों को हमारे सामने हाथो से फैलाकर ये ना कहे कि पापाजी चोद दीजिये हमे और भर दीजिये हमारी चूतों को अपने मूसल जैसे लौड़ो से ।
धर्मवीर - तो फिर एक काम करते है दोनों को बुलाते है चाय के बहाने से और एक खेल खेलते है पत्तों से जो हारा उसे सजा देंगे और जाहिर सी बात है कि हम तो हारेंगे नही ।
सोमनाथ - समधीजी बात में तो दम है । फिर बुलाइये दोनों रंडियों को।
धर्मवीर ने फोन मिलाया उपासना को।
उधर जैसे ही फोन लगाया उपासना ने तुरंत मोबाइल साइलेंट कर लिया । और पीछे जाकर कॉल उठायी ।
उपासना - जी पापाजी।
धर्मवीर - बेटा चाय लेकर आजाओ तुम्हारे पापाजी चाय के लिए बोल रहे है ।
उपासना - जी पापाजी हम तो चाय लेकर ही आरहे है लिफ्ट में है बस दो मिनट में आपके पास पहुंच जाएंगे।
फोन रखकर उपासना ने इशारा किया और दोनों एक मिनट गेट पर वेट करके चाय लेकर चली गयी अंदर ।
धर्मवीर और सोमनाथ जी ने जल्दी से चाय खत्म की और कहने लगे।
धर्मवीर - बेटी अगर तुम बोर हो रही हो तो क्यों ना कोई खेल खेला जाए तुम्हारे पापाजी का भी मन लग जायेगा।
पूजा - हां हां क्यों नही पर गेम क्या खेले ।
सोमनाथ - ताश खेल लेते है अगर सबकी रजामंदी हो तो ।
उपासना - हम तो हर खेल के लिए तैयार है पापाजी आप खेलिए तो सही ।
यह सुनकर दोनों समझ गए कि उपासना किस खेल की बात कर रही है ।
धर्मवीर - लेकिन पत्ते तो हैं नही और अनवर भी छुट्टियों पर है पत्ते तो खरीदकर लेन पड़ेंगे।
सोमनाथ - 5 मिनट लगेंगे लाने में चलो दोनों चलते है ।
धर्मवीर - ठीक है हम दोनों पत्ते लेकर आते है तब तक तुम यहीं इंतजार करो ।
यह कहकर धर्मवीर और सोमनाथ पत्ते लेने चले गए और उपासना और पूजा एकदूसरे को देखकर मुस्कुराने लगीं ।
कुछ मिनट बाद ही धर्मवीर और सोमनाथ पत्ते लेकर आगये और जैसे ही कमरे की तरफ बढ़े तो उनके कदमो की आहट सुनकर पूजा और उपासना दोनों एकदूसरे को इशारा करके जोर जोर से तेज आवाज में बातें करने लगी ताकि उनकी बातों को उनके पापा सुन सके।
और उधर धर्मवीर और सोमनाथ भी गेट पर खड़े होकर सुनने लगे ।
पूजा - दीदी जिस तरह से दोनों बात कर रहे थे मुझे तो लग रहा है कि हमारी चूतों का आज ही सत्यानाश होने वाला है ।
उपासना - हां तभी तो देखो कितने चालाक है दोनों ने पत्ते खेलने का फैसला किया है ताकि हम हार जाए और बदले में उनकी टांगो के नीचे आजाये ।
यह सुनकर धर्मवीर और सोमनाथ का मुह खुला का खुला रह गया कि दोनों की पोल तो पहले ही खुल गयी।
तब सोमनाथ ने धीरे से धर्मवीर के कान में कहा - लो समधीजी इन्होंने ने तो सारी बातें सुन ली और ये तो खुद ही दोनों चुदने को बेताब हैं। तो क्या पत्ते खेलना जाकर सीधे ही इनकी चुदाई कर देते है।
धर्मवीर - नही इसमे हमे ही शर्मिंदा होना पड़ेगा । अच्छा रहेगा कि ये खुद ही चुदने को बोले । तुम चुपचाप चलने दो ।
पूजा - मुझे तो दीदी तुम्हारे ससुर जी का लौड़ा बड़ा मोटा लगा । हाय मेरी तो चूत का बाजा बजा देगा ।
उपासना - मुझे भी अपने पापा का लंड बहुत लंबा लगा था जी चाह रहा था कि चुत को उनके लंड से सहला लूं ।
पूजा - लगता है दीदी आज तुम पापाजी के फनफनाते लंड से अपनी चूत की धज्जियां उड़वाने के लिए बेताब हो रही हो ।
उपासना - मेरी कुतिया बहन चूत तो आज तेरी भी फटेगी ।
पूजा - ना दीदी कुतिया ना बोलो मुझ जैसी संस्कारी लड़की को।
उपासना - हंसते हुए - संस्कारी , आज तेरे संस्कार तब देखूंगी जब तू अपनी चूत को मेरे ससुर के मुंह पर उठा उठाकर मारेगी ।
पूजा - दीदी आप वो दोनों आने वाले होंगे तो चुपचाप उनकी संस्कारी बहु बेटियों की तरह बैठो ।
ऐसा कहकर दोनों TV की स्क्रीन की तरफ देखने लगी ।
जैसे ही धर्मवीर और सोमनाथ ने ये सुना अपने लौडों को सैट करते हुए कमरे में घुसे।
धर्मवीर - लो बेटा हम ले आये पत्ते ।
उपासना - आइए पापाजी काफी देर लगा दी।
फिर चारो बैड पर बैठ जाते है। सोमनाथ जी पत्ते बांटते है और खेल शुरू होता है।
खेल का नियम रखा गया कि जिसका पत्ता बड़ा होगा वो जीता माना जायेगा और जितने वाला हारने वालो को यानी बाकी तीनो को कोई भी पनिशमेंट दे सकता है ।
पहली बाजी उपासना की थी । उसके पास सबसे बड़ा पत्ता हुकुम का बादशाह था उसने उसी की चाल की ।
तीनो ने पत्ते चले धर्मवीर ने हुकुम का इक्का मार दिया ।
धर्मवीर जीता अब पनिशमेंट देनी थी।
धर्मवीर ने कहा - मैं अपनी बहू को कोई कड़ी सजा तो दे नही सकता । चलो एक काम करो उपासना तुम और पूजा नाचकर दिखाओ । और सोमनाथ जी फैसला करेंगे कि किसने अच्छा डांस किया ।
उपासना मुस्कुराते हुए बोली मुझे तो नाचना आता भी नही पर सजा दी है तो नाचना ही पड़ेगा चलो पूजा ऐसा कहते हुए दोंनो मुस्कुराते हुए खड़ी हो गयी ।
असल मे दोनों समझ गयी कि नाचना तो बहाना है असलियत में तो इन दोनों ठरकियों को अपनी गांड और चूचे दिखाने हैं ।
दोनों कमरे में नाचने लगी अपनी ढूंगे पर हाथ रखकर ।
दोनों के मटकते कूल्हे लचकती कमर गजब ढा रही थी ।
दोनों के भारी भारी चूतड़ और चूचे हिल रहे थे ।
पांच मिनट नाचने के बाद दोनों रुक गयी । सोमनाथ जी ने कहा कि धर्मवीर जी मेरी दोनों ही बेटियों ने गजब का डांस किया है ।
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आगे की कहानी next update में ।
मेरे उन प्रिय पाठकों को दिल से धन्यवाद जो मुझे message करके इस स्टोरी के लिए सुझाव देते है ।
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