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एक नई और दिलचस्प कहानी आपके सामने परोस रहा हूं आशा है कि आप सब को स्वाद पसंद आयेगा। अपनी प्रतिक्रियाएं अवश्य दें तो आगे लिखने में मदद मिलेगी।
।।धन्यवाद।।
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Bhai...pure gaon ka introduction de de1980 का दशक, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां पास बहती नदी की लहरें खेतों को सींचती थीं, और हवा में मिट्टी की सौंधी खुशबू बसी रहती थी। यह गांव, सज्जनपुर, अपने किसानों के लिए जाना जाता था। यहां के लोग मेहनतकश थे, जिनके दिन खेतों में और रातें आंगन में तारों तले बीतती थीं। गरीबी थी, मगर सम्मान और संस्कारों की धनी थी यह बस्ती। गांव की गलियां मिट्टी की थीं, घर कच्चे, और दिल पक्के। यहीं बसा था फूल सिंह और अजीत का परिवार, जो अपने खेतों की फसल और आपसी प्यार से जीवन की गाड़ी खींच रहा था।
गांव के बीचों-बीच एक बड़ा-सा कच्चा मकान था, जिसमें फूल सिंह और अजीत का संयुक्त परिवार रहता था। घर का आंगन विशाल था, जहां सुबह-शाम सुमन और कुसुम की चूड़ियों की खनक गूंजती, और बच्चे क्रिकेट खेलते। आंगन के एक कोने में तुलसी का पौधा था, जिसकी पूजा हर सुबह होती। घर के बाहर खेतों की हरियाली फैली थी।
परिचय
कम्मू (कमल): एक किशोर, जो जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था। बदन पतला, मगर कमजोर नहीं—खेतों और क्रिकेट के मैदान की मेहनत ने उसे चुस्त-दुरुस्त बनाया था। चेहरे पर हल्के-हल्के रूंए उग आए थे, जो उसकी नई-नवेली जवानी का सबूत थे। उसकी आंखों में शरारत और सपने दोनों झलकते थे, और क्रिकेट के प्रति उसका जुनून उसे गांव का चहेता बनाता था।
सुमन: कम्मू की मां, 35 साल की एक देसी गांव की औरत, जिसका गदराया हुआ बदन और गेहूंआ रंग गांव की मिट्टी से मेल खाता था। उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक थी, और उसकी मुस्कान इतनी सुंदर कि हर किसी का दिल जीत ले। सुमन का भरा हुआ बदन, खासकर उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां, जो हर ब्लाउज को तान देती थीं, और उसका मांसल पेट, जिसमें गहरी, कामुक नाभि छिपी रहती थी, उसकी देह को और आकर्षक बनाते थे। कमर में पड़ी सिलवटें उसकी शोभा बढ़ाती थीं, और नीचे तरबूज जैसे चूतड़, जो हर कदम पर थिरकते, साथ में मोटी, केले के तने-सी जांघें—सुमन की देह गांव की हर नजर का ध्यान खींचती थी। फिर भी, उसकी सादगी और ममता ही उसकी असली पहचान थी।
अजीत: कम्मू के पिता, 36 वर्ष का गठीला किसान, जिसका बदन खेतों की मेहनत का गवाह था। बाहर से देखने में वह एक आम गांव का किसान था, मगर अंदर से रंगीन मिजाज। सुमन जैसी खूबसूरत पत्नी के साथ वह अपनी जवानी का भरपूर लुत्फ उठाता था। उनकी अंतरंग जिंदगी में जोश और जुनून की कमी नहीं थी, और अजीत अपनी पत्नी के साथ खुलकर प्रेम का आनंद लेता था।
अनामिका: कम्मू की बड़ी बहन, 19 वर्ष की, जो बदन के मामले में अपनी मां सुमन की कार्बन कॉपी थी। गोरा रंग, जवानी की गर्मी से कसा हुआ बदन, और छाती पर संतरों के आकार की चूचियां, जो उसके कसे हुए सूट में साफ उभरती थीं। उसके गोल-मटोल चूतड़ों की थिरकन और कामुक कमर का मटकना गांव की गलियों में नजरें खींचता था।
फूल सिंह: कम्मू के दाऊ (ताऊजी), अजीत के बड़े भाई, 40 वर्ष के, और घर में सबसे बड़े। एकदम देसी किसान, जो अपने बाप-दादा से सीखे तौर-तरीकों पर चलता था। मान-सम्मान की उसे बहुत फिक्र थी।
कुसुम: कम्मू की ताई, फूल सिंह की पत्नी, 38 वर्ष की, और सुमन की जेठानी। बदन के मामले में वह सुमन से भी दो कदम आगे थी। उसका भरा हुआ बदन, कमर में पड़ी सिलवटें, और गेहूंआ रंग उसकी कामुकता को और बढ़ाता था। उसकी छाती पर बड़ी-बड़ी चूचियां और मांसल पेट थे, और चूतड़ तो ऐसे कि सुमन के तरबूजों को भी मात दे दें—जैसे दो बड़े पतीले। जब वह साड़ी पहनकर गांव में निकलती, तो उसकी थिरकन किसी का भी ध्यान खींच लेती। कुसुम का अंदाज बेबाक और मजाकिया था,
अंजू: फूल सिंह और कुसुम की बेटी, 20 वर्ष की, गोरे रंग की, और बदन में जवानी का पूरा जोश। उसका बदन अनामिका की तरह भरा हुआ नहीं, बल्कि जहां भरा होना चाहिए, वहीं भरा था। पतली कमर, पूरे आकार की चूचियां और चूतड़, जो उसकी पतली कमर के कारण और उभरकर नजर आते। सूट में जब वह गांव में निकलती, तो लोगों की नजरें उसके ऊपर से नीचे तक फिसलती रहतीं।
धीरज: फूल सिंह और कुसुम का बड़ा बेटा, 21 वर्ष का, जिसकी जवानी फूट रही थी। काला रंग, अपने पिता और चाचा के साथ खेतों में मेहनत करता था। उसका ब्याह होने वाला था।
जतन: फूल सिंह और कुसुम का छोटा बेटा, 19 वर्ष का, थोड़ा मंदबुद्धि। जल्दी चिढ़ जाता और हर समय रोने जैसी शकल बनाए रखता। अपनी गलतियों के कारण अक्सर पिटाई खाता, मगर परिवार का हिस्सा होने के नाते उसे सब प्यार भी करते थे।
फूल सिंह और अजीत के परिवार के साथ-साथ उनके पड़ोस में दो और परिवार थे—तेजपाल और दिलीप का। ये परिवार भी गांव की मिट्टी और संस्कारों से जुड़े थे, मगर हर घर की अपनी कहानी थी, अपनी रंगत थी।
तेजपाल का घर फूल सिंह के मकान से कुछ गज दूर था। उनका कच्चा मकान पुराना था, मगर आंगन में नीम का पेड़ और तुलसी का चबूतरा इसे जीवंत बनाता था। तेजपाल, 58 साल के, गांव के सबसे बुजुर्गों में से एक थे। उनका बदन अभी भी चुस्त था, और चेहरे पर सख्ती के साथ-साथ अनुभव की गहराई झलकती थी। मान-सम्मान उनके लिए सब कुछ था।
उनके बेटे रत्नाकर, 40 साल के, अपने पिता की छाया में रहते थे। रत्नाकर का कसा हुआ बदन और गेहूंआ रंग उन्हें एक आम किसान का रूप देता था, मगर उनकी लंबाई थोड़ी कम थी। वह मेहनती थे, मगर दारू का शौक उन्हें कभी-कभी रंगीन मिजाज में ले आता। नशे में वह गीत गुनगुनाते और गांव की गलियों में झुमरी की तारीफों के पुल बांधते।
झुमरी, उनकी 38 साल की पत्नी, एक मादक औरत थी। उसका गोल-मटोल चेहरा, गेहूंआ रंग, और भरा हुआ बदन हर नजर को खींचता था। उसकी साड़ी में तनी हुई मोटी चूचियां, कमर की सिलवटें, गहरी नाभि, और बाहर को निकले चूतड़—झुमरी की देह गांव की गपशप का हिस्सा थी। फिर भी, वह अपने परिवार के लिए समर्पित थी, और उसकी हंसी आंगन को गुलजार रखती थी।
रत्नाकर और झुमरी की बेटी बिंदिया, 22 साल की, अपनी मां की जवानी का छोटा रूप थी। उसकी कसी हुई चूचियां, बलखाती कमर, और गोल-मटोल चूतड़ गांव के लड़कों की धड़कनें बढ़ाते थे। उसका ब्याह तय होने वाला था, और तेजपाल इस बात को लेकर बहुत सजग थे।
मन्नू, 20 साल का, रत्नाकर का बेटा, गांव का शरारती लड़का था। वह कम्मू और सोनू का जिगरी यार था, और क्रिकेट के मैदान में तीनों की तिकड़ी मशहूर थी। मन्नू का गेहूंआ रंग और साधारण बदन उसे आम दिखाता था, मगर उसकी दोस्ती और हंसी उसे खास बनाती थी।
दिलीप का घर तेजपाल के मकान से थोड़ा हटकर था। उनका घर छोटा और जर्जर था, क्योंकि दिलीप की कमाई ज्यादातर दारू और जुए में उड़ जाती थी। दिलीप, 40 साल का, गांव का सबसे बदनाम शख्स था। उसकी हवस भरी नजरें हर औरत पर पड़ती थीं—चाहे वह सुमन हो, कुसुम हो, झुमरी हो, या उसकी अपनी पत्नी रजनी। उसका बदन मेहनत से गठा था, मगर उसकी आदतों ने उसे गांव में नीचा दिखा दिया था।
रजनी, 39 साल की, दिलीप की हरकतों से तंग थी। उसका गदराया बदन गांव में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय था। उसकी चूचियां इतनी बड़ी थीं कि सुमन, कुसुम, और झुमरी भी उसके सामने फीकी पड़ जाएं। उसका भरा हुआ पेट, गहरी नाभि, कमर की सिलवटें, और गोल-मटोल चूतड़—रजनी की देह में एक ऐसी कामुकता थी, जो अनायास ही नजरें खींच लेती थी। मगर उसकी आंखों में उदासी थी, क्योंकि दिलीप की हरकतें उसे हर पल तोड़ती थीं। वह अपने बच्चों के लिए जीती थी।
नेहा, 21 साल की, रजनी की बड़ी बेटी, अपनी मां की तरह खूबसूरत थी। उसका गोरा रंग, सुंदर चेहरा, और मौसमी के आकार की चूचियां उसे गांव की सबसे आकर्षक लड़कियों में शुमार करती थीं। उसका छरहरा बदन और गोल-मटोल चूतड़ जब सूट में थिरकते, तो गांव के लड़के ठिठक जाते।
विक्रम, 20 साल का, रजनी का बड़ा बेटा, शहर की फैक्ट्री में काम करता था। उसकी कमाई ही घर को चलाती थी। वह जिम्मेदार और समझदार था, और अपनी मां की परेशानियों को देखकर अक्सर चुपके से आंसू बहाता।
मनीषा, 19 साल की, रजनी की छोटी बेटी, मासूम और प्यारी थी। उसका पतला बदन, नींबू जैसी छोटी चूचियां, और छोटे-छोटे चूतड़ उसे उम्र से छोटा दिखाते थे, मगर उसकी मुस्कान दिल जीत लेती थी।
सोनू, 18 साल का, सबसे छोटा बेटा, गोरा और पतला था। मां-बाप के झगड़ों ने उसे उम्र से ज्यादा समझदार बना दिया था। वह कम्मू और मन्नू का दोस्त था, और क्रिकेट में उनकी तिकड़ी को कोई नहीं हरा सकता था।
Bhai...pure gaon ka introduction de de1980 का दशक, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां पास बहती नदी की लहरें खेतों को सींचती थीं, और हवा में मिट्टी की सौंधी खुशबू बसी रहती थी। यह गांव, सज्जनपुर, अपने किसानों के लिए जाना जाता था। यहां के लोग मेहनतकश थे, जिनके दिन खेतों में और रातें आंगन में तारों तले बीतती थीं। गरीबी थी, मगर सम्मान और संस्कारों की धनी थी यह बस्ती। गांव की गलियां मिट्टी की थीं, घर कच्चे, और दिल पक्के। यहीं बसा था फूल सिंह और अजीत का परिवार, जो अपने खेतों की फसल और आपसी प्यार से जीवन की गाड़ी खींच रहा था।
गांव के बीचों-बीच एक बड़ा-सा कच्चा मकान था, जिसमें फूल सिंह और अजीत का संयुक्त परिवार रहता था। घर का आंगन विशाल था, जहां सुबह-शाम सुमन और कुसुम की चूड़ियों की खनक गूंजती, और बच्चे क्रिकेट खेलते। आंगन के एक कोने में तुलसी का पौधा था, जिसकी पूजा हर सुबह होती। घर के बाहर खेतों की हरियाली फैली थी।
परिचय
कम्मू (कमल): एक किशोर, जो जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था। बदन पतला, मगर कमजोर नहीं—खेतों और क्रिकेट के मैदान की मेहनत ने उसे चुस्त-दुरुस्त बनाया था। चेहरे पर हल्के-हल्के रूंए उग आए थे, जो उसकी नई-नवेली जवानी का सबूत थे। उसकी आंखों में शरारत और सपने दोनों झलकते थे, और क्रिकेट के प्रति उसका जुनून उसे गांव का चहेता बनाता था।
सुमन: कम्मू की मां, 35 साल की एक देसी गांव की औरत, जिसका गदराया हुआ बदन और गेहूंआ रंग गांव की मिट्टी से मेल खाता था। उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक थी, और उसकी मुस्कान इतनी सुंदर कि हर किसी का दिल जीत ले। सुमन का भरा हुआ बदन, खासकर उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां, जो हर ब्लाउज को तान देती थीं, और उसका मांसल पेट, जिसमें गहरी, कामुक नाभि छिपी रहती थी, उसकी देह को और आकर्षक बनाते थे। कमर में पड़ी सिलवटें उसकी शोभा बढ़ाती थीं, और नीचे तरबूज जैसे चूतड़, जो हर कदम पर थिरकते, साथ में मोटी, केले के तने-सी जांघें—सुमन की देह गांव की हर नजर का ध्यान खींचती थी। फिर भी, उसकी सादगी और ममता ही उसकी असली पहचान थी।
अजीत: कम्मू के पिता, 36 वर्ष का गठीला किसान, जिसका बदन खेतों की मेहनत का गवाह था। बाहर से देखने में वह एक आम गांव का किसान था, मगर अंदर से रंगीन मिजाज। सुमन जैसी खूबसूरत पत्नी के साथ वह अपनी जवानी का भरपूर लुत्फ उठाता था। उनकी अंतरंग जिंदगी में जोश और जुनून की कमी नहीं थी, और अजीत अपनी पत्नी के साथ खुलकर प्रेम का आनंद लेता था।
अनामिका: कम्मू की बड़ी बहन, 19 वर्ष की, जो बदन के मामले में अपनी मां सुमन की कार्बन कॉपी थी। गोरा रंग, जवानी की गर्मी से कसा हुआ बदन, और छाती पर संतरों के आकार की चूचियां, जो उसके कसे हुए सूट में साफ उभरती थीं। उसके गोल-मटोल चूतड़ों की थिरकन और कामुक कमर का मटकना गांव की गलियों में नजरें खींचता था।
फूल सिंह: कम्मू के दाऊ (ताऊजी), अजीत के बड़े भाई, 40 वर्ष के, और घर में सबसे बड़े। एकदम देसी किसान, जो अपने बाप-दादा से सीखे तौर-तरीकों पर चलता था। मान-सम्मान की उसे बहुत फिक्र थी।
कुसुम: कम्मू की ताई, फूल सिंह की पत्नी, 38 वर्ष की, और सुमन की जेठानी। बदन के मामले में वह सुमन से भी दो कदम आगे थी। उसका भरा हुआ बदन, कमर में पड़ी सिलवटें, और गेहूंआ रंग उसकी कामुकता को और बढ़ाता था। उसकी छाती पर बड़ी-बड़ी चूचियां और मांसल पेट थे, और चूतड़ तो ऐसे कि सुमन के तरबूजों को भी मात दे दें—जैसे दो बड़े पतीले। जब वह साड़ी पहनकर गांव में निकलती, तो उसकी थिरकन किसी का भी ध्यान खींच लेती। कुसुम का अंदाज बेबाक और मजाकिया था,
अंजू: फूल सिंह और कुसुम की बेटी, 20 वर्ष की, गोरे रंग की, और बदन में जवानी का पूरा जोश। उसका बदन अनामिका की तरह भरा हुआ नहीं, बल्कि जहां भरा होना चाहिए, वहीं भरा था। पतली कमर, पूरे आकार की चूचियां और चूतड़, जो उसकी पतली कमर के कारण और उभरकर नजर आते। सूट में जब वह गांव में निकलती, तो लोगों की नजरें उसके ऊपर से नीचे तक फिसलती रहतीं।
धीरज: फूल सिंह और कुसुम का बड़ा बेटा, 21 वर्ष का, जिसकी जवानी फूट रही थी। काला रंग, अपने पिता और चाचा के साथ खेतों में मेहनत करता था। उसका ब्याह होने वाला था।
जतन: फूल सिंह और कुसुम का छोटा बेटा, 19 वर्ष का, थोड़ा मंदबुद्धि। जल्दी चिढ़ जाता और हर समय रोने जैसी शकल बनाए रखता। अपनी गलतियों के कारण अक्सर पिटाई खाता, मगर परिवार का हिस्सा होने के नाते उसे सब प्यार भी करते थे।
फूल सिंह और अजीत के परिवार के साथ-साथ उनके पड़ोस में दो और परिवार थे—तेजपाल और दिलीप का। ये परिवार भी गांव की मिट्टी और संस्कारों से जुड़े थे, मगर हर घर की अपनी कहानी थी, अपनी रंगत थी।
तेजपाल का घर फूल सिंह के मकान से कुछ गज दूर था। उनका कच्चा मकान पुराना था, मगर आंगन में नीम का पेड़ और तुलसी का चबूतरा इसे जीवंत बनाता था। तेजपाल, 58 साल के, गांव के सबसे बुजुर्गों में से एक थे। उनका बदन अभी भी चुस्त था, और चेहरे पर सख्ती के साथ-साथ अनुभव की गहराई झलकती थी। मान-सम्मान उनके लिए सब कुछ था।
उनके बेटे रत्नाकर, 40 साल के, अपने पिता की छाया में रहते थे। रत्नाकर का कसा हुआ बदन और गेहूंआ रंग उन्हें एक आम किसान का रूप देता था, मगर उनकी लंबाई थोड़ी कम थी। वह मेहनती थे, मगर दारू का शौक उन्हें कभी-कभी रंगीन मिजाज में ले आता। नशे में वह गीत गुनगुनाते और गांव की गलियों में झुमरी की तारीफों के पुल बांधते।
झुमरी, उनकी 38 साल की पत्नी, एक मादक औरत थी। उसका गोल-मटोल चेहरा, गेहूंआ रंग, और भरा हुआ बदन हर नजर को खींचता था। उसकी साड़ी में तनी हुई मोटी चूचियां, कमर की सिलवटें, गहरी नाभि, और बाहर को निकले चूतड़—झुमरी की देह गांव की गपशप का हिस्सा थी। फिर भी, वह अपने परिवार के लिए समर्पित थी, और उसकी हंसी आंगन को गुलजार रखती थी।
रत्नाकर और झुमरी की बेटी बिंदिया, 22 साल की, अपनी मां की जवानी का छोटा रूप थी। उसकी कसी हुई चूचियां, बलखाती कमर, और गोल-मटोल चूतड़ गांव के लड़कों की धड़कनें बढ़ाते थे। उसका ब्याह तय होने वाला था, और तेजपाल इस बात को लेकर बहुत सजग थे।
मन्नू, 20 साल का, रत्नाकर का बेटा, गांव का शरारती लड़का था। वह कम्मू और सोनू का जिगरी यार था, और क्रिकेट के मैदान में तीनों की तिकड़ी मशहूर थी। मन्नू का गेहूंआ रंग और साधारण बदन उसे आम दिखाता था, मगर उसकी दोस्ती और हंसी उसे खास बनाती थी।
दिलीप का घर तेजपाल के मकान से थोड़ा हटकर था। उनका घर छोटा और जर्जर था, क्योंकि दिलीप की कमाई ज्यादातर दारू और जुए में उड़ जाती थी। दिलीप, 40 साल का, गांव का सबसे बदनाम शख्स था। उसकी हवस भरी नजरें हर औरत पर पड़ती थीं—चाहे वह सुमन हो, कुसुम हो, झुमरी हो, या उसकी अपनी पत्नी रजनी। उसका बदन मेहनत से गठा था, मगर उसकी आदतों ने उसे गांव में नीचा दिखा दिया था।
रजनी, 39 साल की, दिलीप की हरकतों से तंग थी। उसका गदराया बदन गांव में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय था। उसकी चूचियां इतनी बड़ी थीं कि सुमन, कुसुम, और झुमरी भी उसके सामने फीकी पड़ जाएं। उसका भरा हुआ पेट, गहरी नाभि, कमर की सिलवटें, और गोल-मटोल चूतड़—रजनी की देह में एक ऐसी कामुकता थी, जो अनायास ही नजरें खींच लेती थी। मगर उसकी आंखों में उदासी थी, क्योंकि दिलीप की हरकतें उसे हर पल तोड़ती थीं। वह अपने बच्चों के लिए जीती थी।
नेहा, 21 साल की, रजनी की बड़ी बेटी, अपनी मां की तरह खूबसूरत थी। उसका गोरा रंग, सुंदर चेहरा, और मौसमी के आकार की चूचियां उसे गांव की सबसे आकर्षक लड़कियों में शुमार करती थीं। उसका छरहरा बदन और गोल-मटोल चूतड़ जब सूट में थिरकते, तो गांव के लड़के ठिठक जाते।
विक्रम, 20 साल का, रजनी का बड़ा बेटा, शहर की फैक्ट्री में काम करता था। उसकी कमाई ही घर को चलाती थी। वह जिम्मेदार और समझदार था, और अपनी मां की परेशानियों को देखकर अक्सर चुपके से आंसू बहाता।
मनीषा, 19 साल की, रजनी की छोटी बेटी, मासूम और प्यारी थी। उसका पतला बदन, नींबू जैसी छोटी चूचियां, और छोटे-छोटे चूतड़ उसे उम्र से छोटा दिखाते थे, मगर उसकी मुस्कान दिल जीत लेती थी।
सोनू, 18 साल का, सबसे छोटा बेटा, गोरा और पतला था। मां-बाप के झगड़ों ने उसे उम्र से ज्यादा समझदार बना दिया था। वह कम्मू और मन्नू का दोस्त था, और क्रिकेट में उनकी तिकड़ी को कोई नहीं हरा सकता था।