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Story is nicely building up.अध्याय तीन
गर्मी की एक तपती दोपहर थी। सज्जनपुर गांव में सूरज आसमान से आग बरसा रहा था, और हवा में धूल और गर्मी का मिश्रण ऐसा था कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। रजनी अपने छोटे से मिट्टी के घर में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। उसने अलमारी के ऊपर रखी पुरानी टिन की डिबिया को खोला, जिसमें वह अपने परिवार की थोड़ी-बहुत बचत रखती थी। लेकिन जैसे ही उसने डिबिया खोली, उसका दिल धक् से रह गया। डिबिया खाली थी—एक भी पैसा नहीं बचा था।
रजनी को तुरंत समझ आ गया कि यह दिलीप की करतूत है। उसका पति, जो पहले भी कई बार घर से पैसे चुरा चुका था, इस बार हद पार कर गया था। उसने सारी जमा-पूंजी ले ली थी—वही पैसे जो रजनी ने बच्चों की स्कूल फीस और रोज़मर्रा के खर्चों के लिए बड़े जतन से बचाए थे। दिलीप को जुआ और दारू की ऐसी लत थी कि वह अपने परिवार की भूख और जरूरतों को भूल चुका था। रजनी को पता था कि वह अभी किसी गंदी शराबखाने में बैठा होगा, या फिर जुए के अड्डे पर सारे पैसे हार रहा होगा।उसके हाथ कांपने लगे। वह डिबिया को वैसे ही खुला छोड़कर मिट्टी के फर्श पर बैठ गई। उसकी आंखों में आंसू छलक आए, और गला रुंध गया। "यह आदमी हमें भूखा मार डालेगा," वह बड़बड़ाई। उसने अपने बच्चों के बारे में सोचा—सोनू और उसकी दो बड़ी बहनें, जो अभी स्कूल से नहीं लौटी थीं। उनके लिए आज रोटी का इंतज़ाम कैसे होगा? घर में चावल का एक दाना तक नहीं बचा था, और बाजार से उधार लेने की उसकी हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी।
रजनी ने खुद को संभाला और बाहर आंगन में कदम रखा। उसने सोनू को पुकारा, जो अपने दोस्तों के साथ गली में खेल रहा था। "सोनू! इधर आ, बेटा!"सोनू दौड़ता हुआ आया। उसका मासूम चेहरा पसीने से चमक रहा था। "क्या हुआ, अम्मा?" उसने मां की परेशान शक्ल देखकर पूछा।
रजनी ने अपने बेटे को देखा और एक पल के लिए हिचकिचाई। उसे नहीं चाहती थी कि इतनी छोटी उम्र में सोनू इन मुसीबतों को समझे, लेकिन अब छिपाने का वक्त नहीं था। "सोनू, तुम्हारे पापा ने घर के सारे पैसे चुरा लिए। अब हमारे पास खाने को कुछ नहीं है। हमें हवेली जाना होगा, नीलेश साहब से कर्जा मांगने।"सोनू की आंखें फैल गईं। वह जानता था कि हवेली का नाम सिर्फ मजबूरी में लिया जाता है। नीलेश गांव का जमींदार था, जिसके पास पैसा तो बहुत था, लेकिन उसकी शर्तें हमेशा भारी पड़ती थीं। फिर भी, उसने अपनी मां का हाथ थाम लिया और बोला, "ठीक है, अम्मा। मैं आपके साथ चलूंगा।
दोपहर की चिलचिलाती धूप में मां-बेटे हवेली की ओर चल पड़े। रास्ते में धूल उड़ रही थी, और पसीने से उनकी सस्ती सूती कपड़े भीग गए थे। रजनी की फटी साड़ी उसकी मजबूरी को बयां कर रही थी, और सोनू का चेहरा चिंता से भरा हुआ था। हवेली गांव के बाहर थी, और जब वे वहां पहुंचे, तो ऊंचे लोहे के फाटक और पत्थर की दीवारें देखकर रजनी का दिल और सिकुड़ गया। यह जगह उसके छोटे से घर से बिल्कुल उलट थी—शानदार, ठंडी, और ऐसी, जहां गरीबों का आना आसान नहीं था।नौकर ने उन्हें अंदर बुलाया और एक छोटे से कमरे में इंतज़ार करने को कहा। वहां बैठे-बैठे रजनी का मन बार-बार अपने फैसले पर शक कर रहा था। लेकिन फिर उसने सोनू की ओर देखा, जो चुपचाप उसका हाथ थामे बैठा था, और उसे याद आया कि उसके पास और कोई रास्ता नहीं है।
कुछ देर बाद उन्हें मुख्य हॉल में ले जाया गया। नीलेश एक बड़ी, नक्काशीदार कुर्सी पर बैठा था। उसकी साफ-सुथरी धोती-कुर्ता और माथे पर तिलक उसे एक सम्मानित आदमी का रूप दे रहा था, लेकिन उसकी आंखों में कुछ ऐसा था जो रजनी को बेचैन कर रहा था।
रजनी ने हाथ जोड़े और कांपती आवाज़ में कहा, "नमस्ते, साहब। मैं रजनी हूँ, दिलीप की बीवी। आपके पास मदद मांगने आई हूँ।"नीलेश ने उसे सिर से पांव तक देखा और शांत स्वर में बोला, "बोलो, रजनी। क्या परेशानी है?"रजनी की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर कहा, "साहब, मेरे मरद ने घर के सारे पैसे चुरा लिए और जुए-दारू में उड़ा दिए। मेरे पास बच्चों को खिलाने के लिए एक दाना तक नहीं बचा। मैं आपसे थोड़े पैसे उधार मांगने आई हूँ, जब तक मैं कोई काम-धंधा नहीं ढूंढ लेती।
नीलेश ने उसकी बात ध्यान से सुनी। उसने अपना सिर हिलाया और नरम स्वर में कहा, "यह तो बहुत बुरा हुआ, रजनी। दिलीप ने तुम्हें बड़ी मुश्किल में डाल दिया। लेकिन हमारे गांव में तो एक-दूसरे की मदद करनी ही चाहिए। मैं तुम्हारी मदद करूंगा।"रजनी के चेहरे पर एक पल के लिए राहत की किरण दिखी। उसने हाथ जोड़कर कहा, "बहुत-बहुत धन्यवाद, साहब। मैं हर पैसा चुका दूंगी, जितनी जल्दी हो सके।"नीलेश ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, इसमें धन्यवाद की क्या बात है? लेकिन एक बात समझ लो, रजनी। कर्जा तो कर्जा होता है। इस पर ब्याज लगेगा। यह तो नीयत की बात है, कि मैं कुछ दूं तो कुछ वापस भी आए।"रजनी का दिल फिर से डूब गया। ब्याज का नाम सुनते ही उसे आने वाले दिनों की चिंता सताने लगी। लेकिन उसकी मजबूरी ऐसी थी कि वह इनकार नहीं कर सकती थी। उसने सिर झुकाकर कहा, "जी, साहब। जो भी शर्त होगी, मैं मान लूंगी। बस अभी मेरे बच्चों की भूख मिट जाए।"नीलेश ने संतुष्ट होकर सिर हिलाया। उसने अपने नौकर को इशारा किया, और एक छोटी सी थैली में कुछ नोट लाए गए। उसने थैली रजनी की ओर बढ़ाई और कहा, "लो, यह रखो। समझदारी से खर्च करना, और चुकाने की बात बाद में तय करेंगे।"रजनी ने कांपते हाथों से थैली ली। उसकी आंखों में आभार था, लेकिन मन में एक अजीब सी घबराहट भी। उसने फिर से हाथ जोड़े और कहा, "साहब, आपका यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी।
रजनी और सोनू जब जाने लगे, तो नीलेश की नजरें उन पर टिकी रहीं। रजनी की पुरानी साड़ी उसके पसीने से तर शरीर से चिपक गई थी, और जैसे ही वह मुड़ी, उसके कदमों के साथ उसके नितंबों की हल्की सी थिरकन दिखी। नीलेश की आंखों में एक चमक आई, और उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान खेल गई। यह मुस्कान ऐसी थी, जैसे वह कोई गुप्त योजना बना रहा हो। उसने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप उन्हें जाते हुए देखता रहा।
रजनी और सोनू धूल भरे रास्ते से घर की ओर लौट पड़े। थैली में पैसे थे, लेकिन रजनी के मन में शांति नहीं थी। उसे पता था कि यह कर्जा उसकी मुश्किलों को हल करने की बजाय शायद और बढ़ा देगा। लेकिन अभी के लिए, उसके पास अपने बच्चों को भूखा न देखने का एक रास्ता था, और फिलहाल वही काफी था।
गांव में शाम की ठंडी हवा बहने लगी थी। गंगा किनारे के खेतों में किसानों की थकान अब घरों की ओर लौट रही थी। उसी वक्त तेजपाल अपने रिश्तेदारी के दौरे से वापस लौटे। उनके चेहरे पर एक संतुष्ट मुस्कान थी, और हाथ में एक पुराना लकड़ी का बक्सा था जिसमें कुछ मिठाइयां और रिश्तेदारी से लाए उपहार थे। उनके उनके कदमों की रफ्तार से ज्ञात हो रहा था वो थोड़े थके हुए थे।
घर पहुंचते ही तेजपाल ने अपने परिवार को आंगन में बुलाया। झुमरी ने जल्दी से चूल्हे पर चाय बनाई, और सारा परिवार खटिया पर बैठ गया। तेजपाल ने अपनी पुरानी पगड़ी ठीक की और गर्व से बोले, "बच्चों, आज मैं एक अच्छी खबर लेकर आया हूँ। रिश्तेदारी में गया था, और वहाँ मेरी नजर पड़ी एक अच्छे घर के लड़के पर—बिंदिया के लिए।"रत्नाकर ने उत्सुकता से पूछा, "पिताजी, ये तो बड़ी अच्छी बात है, अब उमर हो गई है बिंदिया की, लड़का कैसा है? उसका परिवार ठीक-ठाक है ना?"
तेजपाल ने सिर हिलाया और बोले, "हाँ, बेटा। वह लड़का गाँव के पास के ही एक सेठ के यहाँ काम करता है—नाम है अनिल, उम्र कोई बाईस-तेईस साल होगी। गोरा-चिट्टा, मेहनती, और लड़के का बाप एक छोटा-सा दुकान चलाता है। माँ-बाप दोनों जिंदा हैं, और घर में एक छोटी बहन भी है। लड़के का स्वभाव सीधा-सादा है।
झुमरी ने मुस्कुराते हुए कहा, "वाह, ससुर जी! यह तो अच्छी बात है। बिंदिया भी अब बड़ी हो गई है, उसकी शादी का वक्त आ गया है।" बिंदिया, जो पास ही खड़ी थी, शर्म से लाल हो गई और अपनी साड़ी का पल्लू मुंह पर खींच लिया। मन्नू ने मज़ाक में कहा, "अरे दीदी, अब तो तुम ज़्यादा दिन मुझे डांट नहीं पाओगी!" परिवार में हल्की हंसी गूंजी, और तेजपाल ने मन्नू को डांटते हुए कहा, "चुप कर, शरारती! क्यों चिढ़ा रहा है हमारी गुड़िया रानी को।
इधर, रजनी के घर का माहौल उलटा था। उसकी दोनों बेटियाँ—नेहा और मनीषा—स्कूल से लौट चुकी थीं, और बड़ा बेटा विक्रम भी फैक्ट्री से घर आ चुका था। सबकी आंखों में चिंता थी, क्योंकि दिलीप की हरकतों ने घर को तबाह कर दिया था। रजनी ने थैली से नीलेश से लिए पैसे निकाले और बच्चों को दिखाए। "यह पैसे नीलेश साहब ने दिए हैं, लेकिन इन पर ब्याज लगेगा। हमें इसे चुकाना होगा, वरना और मुसीबत में पड़ जाएंगे।"विक्रम ने गुस्से से मुट्ठी बांध ली और बोला, "अम्मा, पापा की वजह से यह सब हो रहा है। मैं फैक्ट्री में ओवरटाइम करूंगा, और नेहा दीदी भी कहीं सिलाई का काम ढूंढ लें। सोनू, तू स्कूल के बाद खेतों में मदद कर लेना।" नेहा ने सहमति में सिर हिलाया, "हाँ, मैं माँ की मदद के लिए कुछ करूंगी। लेकिन पापा को कुछ करना चाहिए, वह तो बस बर्बाद कर रहे हैं।" मनीषा, जो छोटी थी, चुपचाप रो रही थी। सोनू ने अपनी बहनों का हाथ थामते हुए कहा, "हम सब मिलकर यह कर्जा चुकाएंगे। पापा को सुधारने की कोशिश भी करेंगे।
रजनी की आंखों में आंसू थे, लेकिन बच्चों की हिम्मत देखकर उसे थोड़ा सुकून मिला। उसने कहा, "बच्चों, तुम सब मेरी ताकत हो। मैं भी कोई छोटा-मोटा काम ढूंढूंगी। बस, इस मुसीबत से निकलना है।" परिवार ने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया और योजना बनाई कि वे मिलकर नीलेश के कर्जे को चुकाने के लिए मेहनत करेंगे।
घर-घर में अलग-अलग कहानियाँ जीवंत थीं—कहीं उत्साह था, कहीं टकराव, और कहीं नई मुसीबतें सिर उठा रही थीं।
फूल सिंह के घर में इन दिनों एक अलग ही रौनक थी। उनके बड़े लड़के धीरज का विवाह का समय पास आ रहा था, और पूरे परिवार में उत्साह का माहौल था। फूल सिंह और अजीत आंगन में खटिया पर बैठे थे, हाथ में चाय के कप लिए, और आगे की योजना बना रहे थे। खेतों से लौटते हुए धूप में पसीने से तर उनके चेहरे पर संतोष था। फूल सिंह ने अपनी पगड़ी ठीक करते हुए कहा, "अजीत, ये फसल कट जाए तो जो पैसा आएगा, उससे धीरज का ब्याह की सारी तैयारियाँ हो जाएँगी। दुल्हन के लिए साड़ी, मेहमानों के लिए खाना, और कुछ पैसे बचाकर घर की मरम्मत भी कर लेंगे।"अजीत ने सिर हिलाया और बोला, "हाँ भैया, सारी उम्मीद फसल से ही है। वैसे भी इस बार फसल अच्छी लग रही है—धान के पौधे हरे-भरे हैं, और बारिश भी समय पर हुई। बस, कटाई सही से हो जाए, तो हमारा काम बन जाएगा।
फूल सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, भगवान की कृपा रही तो सब ठीक होगा। कुसुम और सुमन को भी कह दो कि मेहंदी और चूड़ियाँ की तैयारी शुरू कर दें।" अजीत हँसते हुए बोला, "भैया, औरतें तो पहले से ही उत्साहित हैं। कुसुम तो कह रही थी कि धीरज की दुल्हन को सौंदर्य का ऐसा तोहफा देना है कि पूरा गांव तारीफ करे!
घर में कुसुम और सुमन पहले से ही मेहंदी के डिज़ाइन और दुल्हन के लिए सजावट की बातें कर रही थीं। कुसुम ने जोश में कहा, "सुमन, इस बार धीरज की शादी में ऐसा जश्न मनाएँगे कि गांव की सारी औरतें जलेंगी!" सुमन हँसते हुए बोली, "हाँ जीजी, लेकिन पहले फसल कटे, और सब कुछ अच्छे से हो जाए।
कुसुम: अरे सब अच्छे से होगा।
गांव के मैदान में क्रिकेट का मैच चल रहा था, जो हमेशा की तरह कम्मू, मन्नू, और सोनू की दोस्ती का केंद्र था। लेकिन इस बार माहौल गरमा गया। कर्मा, नीलेश का बेटा, मैदान में अपनी दबंगई दिखाने आया था। बल्लेबाज़ी के दौरान कम्मू ने उसकी विकेट उड़ा दी, और कर्मा को यह नागवार गुजरा। कर्मा ने गुस्से में चिल्लाया, "अरे भेंचो, इतनी तेज गेंद कहाँ से सीखी? अगली बार मिल छक्का मारकर तेरी गांड फाड़ दूंगा!
कम्मू ने हँसते हुए ताना मारा, "अरे कर्मा, तू तो बस भौंकता है, खेलना नहीं आता।
कर्मा: साले अपनी औकात में रह कर बात कर नहीं तो तुम सब की बहन यहीं चोद दूंगा।
यह सुनकर मन्नू भड़क गया और बोला, "कर्मा, तू अपनी हवेली की हेकड़ी यहाँ मत दिखा, ये तेरे बाप की हवेली नहीं है।
कर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने मन्नू की ओर कदम बढ़ाया और कहा, "साला, तेरी इतनी हिम्मत? आज तेरी खबर लेता हूँ!" दोनों एक-दूसरे की ओर लपके, और झड़प शुरू हो गई। कम्मू भी बीच में कूद पड़ा, और तीनों एक-दूसरे को धक्का-मुक्की करने लगे।
सोनू और बाकी लड़कों ने दौड़कर बीच-बचाव किया। सोनू ने चिल्लाकर कहा, "अरे भाई, रुक जाओ! यहाँ लड़ाई से क्या होगा? खेल खेल की लड़ाई में, अब एक-दूसरे को मारोगे क्या?" बाकी लड़कों ने भी उन्हें अलग किया, लेकिन माहौल में तनाव बना रहा। कर्मा ने गुस्से से कहा, "ये गाँव के कुत्ते अपनी औकात भूल गए हैं। याद दिलानी पड़ेगी
कम्मू ने जवाब दिया, "जा, अपनी हवेली में जाकर सो जा, चुप चाप।
सोनू ने कम्मू को खींचते हुए कहा, "चुप कर, भाई। अब घर चल, वरना और बवाल होगा।
रजनी का परिवार धीरे-धीरे मेहनत से नीलेश के कर्जे को चुकाने की कोशिश कर रहा था। विक्रम फैक्ट्री में ओवरटाइम करता, नेहा सिलाई का काम ढूंढ रही थी, और सोनू स्कूल के बाद खेतों में मदद करता था। रजनी भी पड़ोसियों से छोटा-मोटा काम लेती थी। लेकिन एक दिन अचानक मुसीबत ने फिर दस्तक दी। विक्रम फैक्ट्री से उदास चेहरे के साथ घर लौटा। उसने रजनी को बताया, "अम्मा, फैक्ट्री में चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया गया है। मालिक कह रहा है कि मैंने मशीन के पार्ट चुराए, जो सच नहीं है!
रजनी का चेहरा पीला पड़ गया। "यह कैसे हो सकता है, बेटा? तू तो ईमानदारी से काम करता है!" विक्रम ने आंसुओं को रोकते हुए कहा, "मालिक कह रहा है, या तो पच्चीस हज़ार रुपये दो, वरना पुलिस में डलवा देगा। मैंने तो कुछ नहीं किया, अम्मा!" नेहा और मनीषा भी रोने लगीं। सोनू ने गुस्से में मुट्ठी बांध ली और बोला, "ये गंदी साजिश है। कोई और ने चोरी की होगी, और मुझ पर ठीकरा फोड़ दिया!"रजनी का दिमाग चकरा गया। नीलेश का कर्जा अभी पूरा नहीं चुकाया गया था, और अब यह नई मुसीबत। उसके पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। उसने सोनू को बुलाया और कहा, "बेटा, हमें फिर से हवेली जाना होगा। नीलेश साहब से मदद मांगनी पड़ेगी।" सोनू ने हिचकते हुए कहा, "अम्मा, वो तो पहले ही हम पर कर्जा लाद चुका है। फिर भी, चलो, कोशिश करते हैं।
रजनी और सोनू फिर से हवेली के फाटक पर खड़े थे। नौकर ने उन्हें अंदर बुलाया, और नीलेश ने अपने उसी रौबदार अंदाज में उनका स्वागत किया। रजनी ने सारी बात बताई—विक्रम पर इल्ज़ाम, मालिक की धमकी, और उनकी बेबसी। नीलेश ने गहरी सांस ली और बोला, "अरे रजनी, यह तो बहुत बुरा हुआ। तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारी मदद करूँगा। पच्चीस हज़ार देकर इस मामले को सुलझा दूँगा।"रजनी ने राहत की सांस ली, लेकिन नीलेश ने बात को आगे बढ़ाया। "लेकिन रजनी, यह पैसा तुम वापस कैसे लोगे? तुम्हारे पास तो पहले से ही मेरा कर्जा है।" रजनी ने सिर झुकाकर कहा, "साहब, मैं मेहनत करके चुकाऊँगी। बस, मेरे बेटे को बचा लीजिए।" नीलेश ने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, लेकिन मेरे पास एक उपाय है। तुम और तुम्हारा छोटा बेटा सोनू मेरी हवेली में काम करने लगो। मैं तुम्हें मज़दूरी दूँगा, और धीरे-धीरे तुम्हारा कर्जा भी उतर जाएगा।"रजनी का मन कांप गया। हवेली में काम करने का मतलब था नीलेश की नजरों के सामने रहना, जिसकी नीयत उसने पहले ही भांप ली थी। लेकिन विक्रम की रिहाई के लिए उसके पास और कोई चारा नहीं था। उसने सिर हिलाया और कहा, "जी साहब, जैसा आप कहें।" नीलेश ने नौकर को पैसे की थैली लाने का इशारा किया और रजनी को थैली थमा दी।
जब रजनी और सोनू हवेली से बाहर निकले, नीलेश की नजरें फिर से रजनी के बदन पर टिक गईं। उसकी साड़ी पसीने से चिपकी थी, और उसके नितंबों की थिरकन उसे और आकर्षक बना रही थी। नीलेश के चेहरे पर वह शरारती मुस्कान फिर खिल गई, जैसे वह अपनी जीत का जश्न मना रहा हो। रजनी ने यह महसूस किया, लेकिन उसकी मजबूरी ने उसे चुप रहने को मजबूर कर दिया।
बहुत बहुत आभार मित्र, दूसरी कहानी पर भी अपडेट दिया है उस पर भी प्रतिक्रिया देंArthur Morgan Bhai,
Sabse pehle to ek nayi kahani shuru karne ke liye Hardik Shuhkamnaye
Sabhi updates ek se badhkar ek he Bro.......
Keep rocki
Please update
Story is nicely building up.
Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
बहुत बहुत धन्यवाद सभी का, दूसरी कहानी पर भी अपडेट दिया है उस पर भी प्रतिक्रिया अवश्य दें।Nice story yar
बहुत बहुत धन्यवाद मित्रVe
ry very nice start. Ghar me aur pados bahut mast maal hai. Story interesting hone wali hai.