ससुराल की नयी दिशा
अध्याय ३४: सरिता की इच्छापूर्ति
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सरिता, पंखुड़ी और नलिनी:
उन्होंने एक एक पेग पिया ही था कि रितेश और जयेश भी आ धमके. उनके लिए भी पेग बने और सब बैठकर पीने लगे. पंखुड़ी को ये आभास हो गया था कि सरिता आवश्यकता से अधिक पी रही थी. और इस बार जैसे ही सरिता ने अपने ग्लास में और शराब डालना चाही, पंखुड़ी ने उसे रोक दिया.
“नहीं, और नहीं. तुम बहुत पी चुकी हो. इससे अधिक सहन नहीं होगी. अब रुक जाओ.”
सरिता समझ गई कि पंखुड़ी ऐसा क्यों कह रही है.
“पर..”
“नहीं, तुम्हें इस क्रीड़ा का आनंद लेना है, उसे एक दण्ड नहीं समझना है. अगर शरीर और मन एक साथ नहीं होंगे तो तुम्हें केवल कष्ट ही होगा.”
“ये सही है.” नलिनी ने अपना विचार रखा.
“नानी, आप कुछ देर विश्राम के समय और ले लेना, पर अभी लेना आपके लिए भी ठीक नहीं है.” रितेश ने भी यही विचार रखा.
“ठीक है. अच्छा सुनो. मेरी बात सुनो.” सरिता बोली.
“मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों नलिनी और पंखुड़ी की एक बार चुदाई करो. गांड मत मारना. ऐसा करोगे तो एक बार झड़ने के बाद तुम अधिक समय तक मेरी गांड मार पाओगे. क्यों, ठीक है?”
रितेश और जयेश को तो कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती थी. नलिनी और पंखुड़ी की ऑंखें मिलीं और उन्होंने भी सहमति दे दी.
“चलो, ये तो ठीक है. अब मुझे बाथरूम जाना होगा. पंखुड़ी तुम भी आ जाओ.” ये कहते हुए सरिता उठी और चलने लगी.
“माँ जी!” नलिनी उठी और सरिता के सामने जा खड़ी हुई. उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसने सरिता के गाउन को खोलकर निकाल दिया.
“आपको इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी, अब.” और यही क्रिया उसने फिर पंखुड़ी के साथ भी की. दोनों नानियाँ नंगी बाथरूम की ओर चल दीं. नलिनी समझ चुकी थी कि सरिता की इच्छा क्या थी. उसने कोई पाँच मिनट रुककर दोनों भाइयों से कहा कि वे एक और पेग लें उसे बाथरूम जाना होगा. ये कहते हुए उसने भी अपना गाउन निकाला और बाथरूम में चली गई.
“भाई क्या चल रहा है?” जयेश ने पूछा.
‘हमें क्या, चल पेग बना. फिर चुदाई में व्यस्त हो जायेंगे तो न जाने कब मिले.” रितेश ने उसे समझाया.
उधर नलिनी ने जो कल्पना की थी वही घटित हो रहा था. पंखुड़ी कमोड पर बैठ कर सरिता के मुंह में मूत्र त्याग कर रही थी. दोनों का ध्यान उसकी ओर नहीं गया. जब पंखुड़ी की धार समाप्त हुई तो सरिता ने उसकी चूत को चाटा।
“न पेट भरा न मन.” सरिता ने दुखी मन से कहा.
“तो माँ जी, मैं हूँ न!” नलिनी अंदर आ चुकी थी. ये कहते ही उसने अपनी ऊँगली अपने होंठों पर रखते हुए उन्हें चुप रहने का संकेत दिया.
सरिता की तो गांड फट गई. पंखुड़ी भी हतप्रभ हो गई. अब क्या करें? नलिनी ने बाथरूम को फिर से बंद किया.
“माँ जी. सम्भव है कि इस बार आपका मन और पेट दोनों भर जाये.” ये कहते हुए उसने पंखुड़ी को हाथ पकड़कर उठाया और स्वयं बैठ गई.
“मैं बहुत देर से बेचैन थी पर रोके बैठी थी. पर अब जब आपको पीने का मन है तो मैं कैसे पीछे रह सकती हूँ?”
ये कहकर उसने प्रेम से सरिता के सिर को पकड़ा और अपनी चूत पर लगा लिया.
“माँ जी, मुंह खोलो न.” सरिता ने मुंह खोला ही था कि नलिनी ने अपनी टोंटी खोल दी. सरिता गट गट करते हुए पीने लगी. पंखुड़ी ये देखकर कुछ मलिनता का आभास हो रहा था. जब नलिनी ने अपनी टंकी खाली कर दी, तो सरिता ने उसे देखा. और उसकी चूत को चाटकर साफ कर दिया.
“मेरे बारे में क्या सोचती होगी, तू?” उसने भयभीत स्वर में कहा.
“अरे माँ जी. सबकी अपनी रूचि है. क्या आपको लगता है कि आपको भीं दृष्टि से देखूंगी? नहीं. मेरी प्रियतम सहेली भी कभी कभी इस प्रकार के खेलों में रूचि रखती है. तो कोई बुरी बात नहीं है. बस कभी किसी के दबाव में ऐसा मत करना.”
पंखुड़ी, “ये सच कह रही है. अगर कोई दबाव डाले तो कदाचित नहीं. पर जब तुम्हारी इच्छा हो तो पियो या नहाओ, कोई बुराई नहीं है.”
“ओह! नहाओ! ये भी करके देखूँगी एक बार.” सरिता ने किलकारी ली.
“कर लेना, पर अब चलो, वो दोनों आ गए तो व्यर्थ में बात बढ़ेगी.” नलिनी ने कहा.
“तुम दोनों चलो, मैं मुंह धोकर आती हूँ. और पंखुड़ी!” सरिता ने कहा, “एक छोटा सा पेग मुंह का स्वाद बदलने के लिए तो पीने दोगी?”
पंखुड़ी ने हंसकर स्वीकृति दी और नलिनी के साथ कमरे में चली गई. सरिता ने भी मुंह धोया, कुल्ला किया और कमरे में चली गई. सरिता ने कमरे में प्रवेश किया तो उसका उत्साह बढ़ गया. उसके दोनों नाती अब नंगे बैठे हुए थे और उनके तमतमाए हुए लौडों को पंखुड़ी और नलिनी चाट और चूस रही थीं. सरिता की गांड में खुजली होने लगी. और वो खुजली लंड के डबल आतंक से मिटनी थी. उसका हाथ अनजाने में ही अपनी गांड की ओर चला गया और उसने दो उँगलियों को उसमे डाला और फिर निकाल लिया.
“आज तेरी गांड की माँ चुदने वाली है, सरिता!” उसने अपने मन में सोचा और उसके चेहरे पर आनंद और भी के मिश्रित भाव आ गए. परन्तु उसे नलिनी पर प्र विश्वास था कि वो उसे हानि नहीं होने देगी. वैसे भी दोनों नाती नलिनी की गांड एक साथ पहले भी मारने का अद्वितीय अनुभव रखते थे. वो आगे जाकर सोफे पर बैठी तो देखा कि पंखुड़ी ने उसकी इच्छा के अनुसार एक छोटा सा पेग बनाया हुआ था. पर अभी उसे कोई चूमने वाला तो था नहीं, तो उसने उसे बाद के लिए छोड़ दिया और सामने चल रहे खेल को देखने लगी.
नलिनी और पंखुड़ी को भी सरिता के आने का आभास हो गया था. पर पंखुड़ी ही थी जो दोनों नातियों को उत्साहित और उद्वेलित दोनों कर रही थी.
“लौड़े तो तुम दोनों के अच्छे मोटे और लम्बे हैं. अपनी नानी की गांड मत फाड़ देना. बेचारी इस आयु में उसे सिलने कहाँ जाएगी? उसकी गांड को इतना मत चौड़ा कर देना कि हमारी कार भी उसमे खड़ी हो सके.” पंखुड़ी ने ये बोला तो जयेश हंसने लगा.
“अरे नानी, आंटीजी को देखो। इनकी भी गांड मारी थी हमने एक साथ. कार क्या उसमें चूहा भी नहीं जा सकता अभी तक. वैसे गांड आपकी भी बहुत मस्त है. अगली बार आपका ही उद्धार करेंगे. पहले चूत का फिर गांड का, जैसे नानी का कर रहे हैं.”
इन सब बातों के कारण वातावरण हल्का हो गया, परन्तु लंड और बौखला गए और चूतों में पानी आ गया. चारों खड़े हुए और उन्होंने पंखुड़ी और नलिनी को बिस्तर पर लिटाया. जयेश ने पंखुड़ी की चूत चाटना आरम्भ किया तो रितेश ने नलिनी की. पर अधिक समय नहीं गँवाया। उन्हें पता था कि ये चुदाई केवल अगली चुदाई के लिए लंड अधिक समय तक खड़े रखने के लिए है. और फिर सरिता की गांड का बैंड बजाने के बाद इन दोनों की भी गांड मारी जा सकती है. और डबल चुदाई भी की जा सकती है. अब जैसी परिस्थिति बनेगी, वैसे ही करना होगा.
दोनों भाई अधिक समय चूत चाटने के पक्ष में नहीं थे और शीघ्र ही उन्होंने अपने मुंह उनसे हटा भी लिए, पंखुड़ी की पैरों को फैलाते हुए जयेश ने अपने लंड को एक ही धक्के में उसकी चूत में पेल दिया. उधर रितेश ने भी नलिनी के पैरों को उठाया और अपने लंड को एक बार में ही अपने लक्ष्य तक पहुंचा दिया. दोनों भाइयों ने एक दूसरे को देखा और फिर सटासट चुदाई में लग गए. पंखुड़ी और नलिनी समझ गए कि ये दोनों केवल अपने झड़ने के लिए चोद रहे हैं. उनका लक्ष्य कहीं और था. पर दोनों ने इस चुदाई का आनंद लेने में कोई कमी नहीं की.
अपने पैरों की कैंची बनाकर उन्होंने दोनों भाइयों को उत्साहित करते हुए अपने कूल्हे ऊपर उछालते हुए कड़ाई में सहयोग दिया. सरिता बैठी हुई देख रही थी और उसने अपने पेग से चुस्कियाँ लेते हुए सामने चल रही रतिक्रिया से उसकी गांड में हो रही कुलबुलाहट को कम करने का प्रयास किया. फिर उसने चोरी से एक और पेग बनाया और उसे पीने लगी. उसे अब पर्याप्त नशा हो चुका था. उसने अपने पेग को अधूरे में ही रख दिया. अभी इस चुदाई के बाद दोनों नातियों को फिर से चुदाई योग्य होने में भी समय लगेगा. फिर उसकी गांड का कचूमर बनेगा.
दस मिनट की तीव्र चुदाई के बाद जयेश और रितेश झड़ गए. अब उनके लंड अगली स्पर्धा में शीघ्र झड़ने वाले नहीं थे और उनकी नानी को सम्भवतः इस सुझाव के लिए बाद में खेद होगा. अपने लंड बाहर निकालकर दोनों सरिता के पास गए जिसने उन्हें चाटकर अपने लिए चमका दिया. पंखुड़ी और नलिनी इस त्वरित चुदाई के बाद गहरी साँसे लेते हुए लेटी रहीं.
“एक दूसरे को ऑफ कर लेते हैं. सरिता के भरोसे नहीं रह सकते, बहुत पी चुकी है वो.” पंखुड़ी ने धीरे से बोला।
नलिनी ने उठकर अपने मुंह और जीभ से पंखुड़ी की चूत को चूसकर खाली कर दिया और फिर लेट गई. इस बार पंखुड़ी ने अपना कर्तव्य निभाया. फिर दोनों ने एक दूसरे को चूमा और वैसे ही लेटी रहीं. जब कुछ समय हो गया तो उठकर सरिता के पास गयीं और जयेश ने तुरंत चार पेग बनाये। सरिता को छोड़ दिया गया क्योंकि उसका ग्लास अभी भी भरा था. धीरे धीरे उन पाँचों ने विश्राम करते हुए पेग मारे. अगले पंद्रह मिनट तक न कोई बात हुई न कोई और गतिविधि. फिर दोनों लंड अगले महासंग्राम के लिए लालायित हो गए.
“माँ जी, आप नानी की ओर ध्यान दो, मैं इन दोनों बदमाशों को संभालती हूँ. देखो नानी की गांड मारने के लिए कितने आतुर हो रहे हैं दोनों दुष्ट!” नलिनी ने दोनों लौडों को देखते हुए पंखुड़ी से कहा. सरिता की गांड फटने लगी. उसने भयभीत दृष्टि से नलिनी को देखा.
नलिनी ने उसे ढाढ़स बंधाया, “माँ जी, आप चिंता न करो. मैं हूँ न. और आप इतने दिनों से इसके लिए आतुर हैं तो अब पीछे हटने का कोई अर्थ भी नहीं है.”
सरिता ने सिर हिलाया और पंखुड़ी उसका हाथ पकड़कर बिस्तर पर ले गई. उसे घोड़ी बनाकर टेबल पर रखी तेल की शीशी को उठाया. फिर उसने सरिता की गांड में ऊँगली डालकर कुछ समय तक उसे खोला. फिर तेल डालकर उस उपक्रम को दोहराया. नलिनी ने भी दोनों लंड पर्याप्त रूप से चुदाई के लिए उपयुक्त कर दिए.
“नानी के सामने मत जाना, नहीं तो वो डर कर पीछे न हट जाये. समझे.” उन दोनों को समझाया. फिर उसने पंखुड़ी से तेल की शीशी लेकर दोनों लौडों पर तेल लगाकर उन्हें भलीभांति चिकना कर दिया.
“अब यहीं रुकना.” ये कहते हुए वो बिस्तर की ओर चली गई.
“माँ जी, क्या स्थिति है?” उसने पंखुड़ी से पूछा.
“लंड खाने के लिए कुलबुला रही है.” पंखुड़ी ने उत्तर दिया.
“ठीक है. जयेश इधर आओ और लेटो नीचे.” नलिनी ने आदेश दिया.
जयेश सरिता के नीचे लेट गया तो नलिनी ने पंखुड़ी से उसके लंड को पकड़कर सीधा रखने के लिए कहा. फिर नलिनी ने सरिता की गांड को जयेश के लंड पर लगा दिया.
तभी कमरे में ललिता ने प्रवेश किया. उसने देखा कि उसकी माँ अब जयेश के लंड पर चढ़ने वाली है. अपने कैमरे को उस ओर केंद्रित करते हुए उसने नलिनी को जो उसकी ओर देख रही थी शांत रहने को कहा. पंखुड़ी ने भी इस देखा और दोनों ने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी. पंखुड़ी की भूमिका अब समाप्त हो चुकी थी. पर नलिनी को अब पूरे संग्राम का निर्देशन करना था. पंखुड़ी ललिता के पास आई तो ललिता ने उसे कैमरा थमा दिया और टेबल पर पड़ी बोतल की ओर संकेत दिया. पंखुड़ी समझ गई. उसने अब रिकॉर्डिंग का दायित्व संभाला और ललिता ने अपने लिए एक पटियाला पेग बनाया. इतनी चुदाई देखकर उसका गला जो सूख चूका था!
नलिनी के सुरीले स्वर में रितेश और सरिता को दिए हुए निर्देश उसे विचित्र लग रहे थे. अचानक बिस्तर पर जो हुआ उसे देखकर उसकी आँखें चौंधिया गयीं. उसने पंखुड़ी को देखा पर वो तो अपने कार्य में व्यस्त थी. वो इस दृश्य को देखने के लिए बिस्तर के पास चली गई.
क्रमशः