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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Mast update broससुराल की नयी दिशा
अध्याय 33 : रागिनी का नया राग
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रागिनी और माधवी:
रागिनी जब नहाकर लौटी तब तक महेश ने भानु और अमोल को रात्रि की योजना समझा दी थी. दोनों उत्साहित थे और आज की रात की चुदाई के लिए उत्सुक भी. तभी माधवी ने लहराते हुए कमरे में प्रवेश किया. उसने सबकी ओर देखा और मुस्कराते हुए गांड मटकाते हुए बाथरूम में घुस गई. और फिर लौटी तो उसके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था.
अमोल: “ये बहुत चुड़क्कड़ है, सारी रात चुदने की क्षमता है इसमें.”
रागिनी का मुंह ये सुनकर उतर गया.
महेश: “तुमने अब तक रागिनी के उस स्वरूप को नहीं देखा है. मेरी जवानी में भी हम तीन मित्रों को रात भर में निचोड़ कर रख दी थी. और सुबह जाने के पहले एक बार फिर से चुदवाकर ही गई थी. हम तो दोपहर तक सोते रहे थे. और ललिता भी इतना हो चुड़क्कड़ है. तो आज रात हम तीनों को गहन परीक्षा है. मेरे विचार से हमें इसके लिए कुछ लेना होगा.”
ये कहते हुए महेश अपनी अलमारी में से नीले रंग की छह गोलियाँ ले आया.
“वायग्रा है, एक अभी खाओ, फिर एक बाद में एक घंटे बाद. अगर आवश्यकता हो तो. पर इन दोनों के साथ बिना इसके बचना सम्भव नहीं.”
तीनों ने एक एक गोली खाई. अभी इसका प्रभाव होने में आधा घंटा लगने वाला था और इतना समय तो था. माधवी वहीं खड़ी ये सब देख रही थी. उसे ये अच्छा लगा कि उसकी प्रशंसा हुई. हालाँकि रागिनी की क्षमता सुनकर उसे कुछ ईर्ष्या हुई. पर आज की रात इसके विषय में सोचने का नहीं था.
माधवी आगे आई और अमोल की गोद में बैठ गई. उसे चूमते हुए वो अमोल को उत्तेजित करने लगी और सफल भी हो गई. महेश ये देख रहा था और रागिनी के चेहरे के भावों को भी पढ़ रहा था. रागिनी को माधवी का ये व्यवहार रास नहीं आ रहा था. अमोल के साथ कुछ समय यूँ ही प्रेमालाप करने के बाद माधवी उठी, अमोल के लंड को मुट्ठी में लेकर दबाया और इस बार भानु की गोद में जाकर यही खेल करने लगी. महेश ने रागिनी को देखा और उनकी ऑंखें मिलीं. महेश ने एक मूक संकेत से रागिनी को समझाया कि वो चिंतित न हो. रागिनी के चेहरे से तनाव दूर हो गया.
भानु के साथ भी माधवी ने वही किया और जब वो महेश के पास पहुंची और उसकी गोद में बैठी तो महेश ने उसे चूमने का अवसर ही नहीं दिया. बल्कि उसके हाथों को पकड़ लिया.
“माधवी जी. आप हमारी अतिथि हैं. परन्तु कुछ मर्यादाएँ हैं जिन्हें आप लाँघ रही हैं. आप जानती हैं कि आज रागिनी पहली बार हमारे घर में आई हैं और हम तीनों ने उनका साथ चाहा था और वो मिला भी था. उनकी कुछ आशाएँ हैं आज की रात से. आप आई हैं तो आपका स्वागत है, परन्तु, बुरा न मानें तो ये रात उनके ही नाम है. रागिनी ने हमारे सारे निर्देशों को मानने की स्वीकृति दी है. केवल उस अवस्था में जब उन्हें कोई कष्ट या असहजता होगी वो हमें रोक सकती हैं.”
“जैसा मैंने कहा कि आपका भी स्वागत है. परन्तु मेरी ये प्रस्ताव है कि इसके लिए आपको हम चारों के निर्देशों का पालन करना होगा. मुख्यतः रागिनी की. हमारे निर्देशों को रागिनी चाहे तो आपको मानने से रोक सकती हैं. पर हम उनके निर्देशों को नहीं ठुकरा सकते. अगर वो आपको निर्देश देने की स्थिति में न हों, तो आपको हमारी बात माननी ही होगी.”
“उनका सुरक्षा का कोड है तीन बार दिशा का नाम लेना. आपका तीन बार रिया का नाम होगा. परन्तु आप हमारी किसी भी माँग या अनुरोध को ठुकरा नहीं सकती हैं.”
इस बार महेश ने माधवी के हाथों को छोड़ दिया.
“अगर आपको ये स्वीकृत है तो बताएं और क्रीड़ा में सम्मिलित हो जाएँ. अन्यथा आप हम सबके खेल को देख सकती हैं.”
माधवी समझ गई कि उसने बड़ी भूल कर दी है. और अपनी स्वीकृति न देकर वो स्थिति को और गंभीर बना सकती है. वैसे उसे नहीं लगता था कि ये तीनों ऐसा कुछ करने की इच्छा रखते हैं जो उसके लिए असहनीय सिद्ध होगा.
“मुझे स्वीकार है. मैं रागिनी से अपने व्यवहार के लिए क्षमा भी माँगती हूँ.” ये कहते हुए उसने रागिनी की ओर मुड़कर हाथ जोड़ दिए.
“इसकी आवश्यकता नहीं है. पर अब आपको, नहीं आज के लिए आप नहीं तुम, तुमको मेरी हर बात माननी है. ये भी अच्छा ही हुआ. अब मेरी भी सुनने वाला कोई होगा.” ये कहते हुए वो हंस पड़ी.
महेश ने माधवी के होंठ चूमे।
“अब जाओ और रागिनी से पूछो कि वो क्या चाहती हैं. और हाँ, जब तक आज्ञा न हो, अपना मुंह बंद ही रखना.”
माधवी उठी और रागिनी के सामने घुटनों के बल बैठ गई. रागिनी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जिससे वो आज कुछ ही समय पहले मिली थी वो आज उसके चरणों में उसकी दया पर आश्रित थी. पर आज उसे एक और आभास भी ही रहा था. अब तक चाहे नलिनी हो या अन्य कोई, उसे सदा ही अधीनता की ही भूमिका मिली थी. आज पहली बार उसे पृथक भूमिका मिली थी. उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गई. क्या वो इसमें फल होगी? ये इस बात पर भी निर्भर करता था कि माधवी इसे कितना स्वीकार करेगी. महेश के निर्देश के अनुसार उसे इसमें कोई अधिक शंका नहीं थी. उसने माधवी के सिर पर हाथ घुमाया.
“तो माधवी जी, क्या आप मेरी हर आज्ञा माने की इच्छुक हैं?”
माधवी ने सर हिलाकर स्वीकृति दी तो रागिनी का चेहरा चमक उठा. उसने देखा तो तीनो पुरुष उसी प्रकार से तौलिये में थे पर अब उनके लौडों का उभर दिख रहा था. उनके चेहरे पर भी दुविधा के भाव थे कि आगे क्या होगा.
“तो चलो फिर बिस्तर पर ही चलो और मेरी चूत और गांड को चुदाई के लिए चाटो। अगर अच्छे से चाटोगी और मुझे चुदाई में कोई कठिनाई नहीं होगी तो मैं तुम्हारी चुदाई की भी अनुमति दे दूँगी।” ये कहकर उसने महेश की ओर देखा कि ये ठीक है? महेश ने उसे सहमति दर्शाई.
“घुटनों पर ही रहना.” ये कहते हुए रागिनी उठी और बिस्तर की ओर चल दी. वहाँ पहुंचने से पहले उसने अपने तौलिये को नीचे गिरा दिया. अब तीनों पुरुष उन्हें देख रहे थे. रागिनी की मटकती गांड और उसके पीछे घुटनों पर चलती माधवी की गांड स्पष्ट दिखाई दे रही थीं.
“रागिनी की गांड तो बहुत चुदी नहीं लगती, जबकि माधवी की फटी पड़ी है.” भानु ने बहुत धीमे स्वर में बोला।
“माधवी की हर दिन गांड मारी जाती है. कभी कभी तो दिन में दो दो तीन तीन बार भी. मुझे नहीं लगता कि रागिनी की गांड को उतना व्यायाम प्राप्त होता है.” अमोल ने टिप्पणी की. फिर तीनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए.
“अगर मैं सही सोच रहा हूँ, तो अमोल का मन रागिनी की गांड पर आ गया है. उसे ही पहला अवसर देना होगा.” महेश ने कहा.
“मुझे कोई आपत्ति नहीं है.” भानु ने कहा.
“मैं तो चाहूँगा कि आज गांड मारने से ही रागिनी की चुदाई का शुभारम्भ किया जाये.” अमोल ने कहा.
भानु: “आपको अगर आपत्ति न हो तो मैं पहले माधवी की चुदाई करना चाहूँगा। इसके लिए रागिनी को मनाना होगा.”
महेश: “ओह, उसमे कोई समस्या नहीं है. रागिनी हमें मना कर ही नहीं सकती. न ही माधवी. वैसे भी अब वायग्रा का भी प्रभाव होने लगा है. आशा है माधवी रागिनी की गांड को अच्छे से मारने के उपयुक्त बना देगी.”
रागिनी बिस्तर पर जाकर घुटनों के बल हो गई. अब उसकी चूत और गांड दोनों ही दूर तक दिख रही थीं. रागिनी ने माधवी से कर्कश स्वर में कहा.
“देख क्या रही हो, चलो चाटो अच्छे से. आज बहुत लौड़े खाने हैं मेरे दोनों छेदों को. ऐसा न हो कि मुझे कोई कष्ट हो. समझीं.”
माधवी ने कुछ न कहा, पर वो रागिनी के पीछे आकर बैठ गई और अपनी जीभ से पहले उसकी जांघें चाटीं और फिर धीरे धीरे वर्ग के पहले द्वार के पास आ गई. जब उसकी जीभ ने रागिनी की चूत की पंखुड़ियों को छेड़ा तो रागिनी की सिसकी निकल गई. माधवी बिना रुके उसकी चूत के बाहरी भाग को चाटती रही. फिर उसकी जीभ ने भग्न को छेड़ा. और मानो रागिनी के शरीर से ज्वालामुखी फूट पड़ा. उसकी चूत से रस से माधवी भीग गई, पर रुकी नहीं. वो भग्न को अब अपने होठों के बीच लेकर चूसने लगी. रागिनी कसमसाने लगी. माधवी इस कला की पारखी थी. उन इस कला का ज्ञान न केवल पाया था, बल्कि अपनी इकलौती पुत्री रिया को भी पूर्णरूप से दिया था.
चूत की पर्याप्त रूप से सेवा करने के पश्चात उसे रागिनी के रस के सेवन का भरपूर सेवन किया. एक तृप्त भाव से अब उसने भग्न को उँगलियों में लिया और अपनी उँगलियों को रागिनी के रस में भिगोया और उसकी गांड के छेद पर लगाने के बाद उसके साथ खेलने लगी. हल्के धीमे गोलाकार वृत में उँगलियों से रागिनी के भूरे छेद को सहलाती रही. भग्न से ध्यान न हटाते हुए ये करना सच्चे अर्थों में कला की पराकाष्ठा थी.
इस पूरी गतिविधि को देखकर जहाँ महेश और भानु चकित थे, तो अमोल मुस्कुरा रहा था. उसने माधवी के इस इंद्रजाल के चंगुल में तड़पती और तरसती हुई अपनी पत्नी और सास को भी देखा था. रिया भी इस कला में पारंगत थी, पर वो भी माधवी के सम्मुख एक शिशु के समान थी. माधवी ने अपने मुंह को रागिनी के भग्न के सामने लेकर उसकी चूत पर मुंह गोल करते हुए फूँक मारते हुए उसके भग्न को मसलना और गांड के छेद को सहलाना आरम्भ रखा.
रागिनी को समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है. उसने इस प्रकार का अनुभव जीवन में कभी नहीं किया था. उसका शरीर मानो अब माधवी के हाथों में खिलौना बन गया था. माधवी बीच बीच में अपनी उँगलियों को गीला करती और फिर से रागिनी की गांड पर घुमाने लगती. अचानक ही इस बार माधवी ने अपनी ऊँगली को गांड पर सहलाया और एक ऊँगली को गांड में डाल दिया. रागिनी इस हमले से उछल पड़ी. माधवी बिना रुके गांड में ऊँगली को अंदर बाहर करती रही.
कुछ देर तक एक ऊँगली से रागिनी की गांड खोलने के बाद माधवी ने दो उँगलियों का प्रयोग किया. जब उसे लगा कि गांड समुचित रूप से खुल चुकी है तो मुड़कर तीनों पुरुषों को देखा. संकेत समझकर अमोल खड़ा हो गया और तौलिया उतार दिया. वायग्रा से उकसित उसका लंड भयावह सा लग रहा था. माधवी ने ललचा कर उसे देखा पर कुछ कहा नहीं. फिर भानु भी खड़ा हुआ और उसने भी तौलिया निकाला तो माधवी ने उसके लंड के नए रूप को देखकर सिसकारी ली.
भानु आगे आया और उसने माधवी और रागिनी को सम्बोधित किया, “माधवी, जाकर नीचे लेटो और रागिनी की चूत चाटो। अमोल पहले रागिनी की गांड मारने के लिए उत्सुक है. और मुझे तुम्हारी चूत चोदने की इच्छा है.”
माधवी को तो मानो उसके मन की इच्छा पूर्ण होती दिखी. वो तुरंत ही रागिनी के नीचे चली गई पर अब तक रागिनी ने अपनी गांड उठाई हुई थी. तो चूत तक नहीं पहुंच पाई. भानु उसके पैरों की ओर गया और अपने सामने परोसी चूत को ताकने लगा. अमोल ने भी अपने लंड पर थूका और रागिनी की गांड की ओर अग्रसर हुआ.
तभी कमरा खुला और ललिता ने प्रवेश किया. और आते ही उसने कैमरा ऑन किया. महेश ये देखकर मुस्कुरा दिया.
क्रमशः
ससुराल की नयी दिशा
अध्याय 33 : रागिनी का नया राग
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रागिनी और माधवी:
रागिनी जब नहाकर लौटी तब तक महेश ने भानु और अमोल को रात्रि की योजना समझा दी थी. दोनों उत्साहित थे और आज की रात की चुदाई के लिए उत्सुक भी. तभी माधवी ने लहराते हुए कमरे में प्रवेश किया. उसने सबकी ओर देखा और मुस्कराते हुए गांड मटकाते हुए बाथरूम में घुस गई. और फिर लौटी तो उसके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था.
अमोल: “ये बहुत चुड़क्कड़ है, सारी रात चुदने की क्षमता है इसमें.”
रागिनी का मुंह ये सुनकर उतर गया.
महेश: “तुमने अब तक रागिनी के उस स्वरूप को नहीं देखा है. मेरी जवानी में भी हम तीन मित्रों को रात भर में निचोड़ कर रख दी थी. और सुबह जाने के पहले एक बार फिर से चुदवाकर ही गई थी. हम तो दोपहर तक सोते रहे थे. और ललिता भी इतना हो चुड़क्कड़ है. तो आज रात हम तीनों को गहन परीक्षा है. मेरे विचार से हमें इसके लिए कुछ लेना होगा.”
ये कहते हुए महेश अपनी अलमारी में से नीले रंग की छह गोलियाँ ले आया.
“वायग्रा है, एक अभी खाओ, फिर एक बाद में एक घंटे बाद. अगर आवश्यकता हो तो. पर इन दोनों के साथ बिना इसके बचना सम्भव नहीं.”
तीनों ने एक एक गोली खाई. अभी इसका प्रभाव होने में आधा घंटा लगने वाला था और इतना समय तो था. माधवी वहीं खड़ी ये सब देख रही थी. उसे ये अच्छा लगा कि उसकी प्रशंसा हुई. हालाँकि रागिनी की क्षमता सुनकर उसे कुछ ईर्ष्या हुई. पर आज की रात इसके विषय में सोचने का नहीं था.
माधवी आगे आई और अमोल की गोद में बैठ गई. उसे चूमते हुए वो अमोल को उत्तेजित करने लगी और सफल भी हो गई. महेश ये देख रहा था और रागिनी के चेहरे के भावों को भी पढ़ रहा था. रागिनी को माधवी का ये व्यवहार रास नहीं आ रहा था. अमोल के साथ कुछ समय यूँ ही प्रेमालाप करने के बाद माधवी उठी, अमोल के लंड को मुट्ठी में लेकर दबाया और इस बार भानु की गोद में जाकर यही खेल करने लगी. महेश ने रागिनी को देखा और उनकी ऑंखें मिलीं. महेश ने एक मूक संकेत से रागिनी को समझाया कि वो चिंतित न हो. रागिनी के चेहरे से तनाव दूर हो गया.
भानु के साथ भी माधवी ने वही किया और जब वो महेश के पास पहुंची और उसकी गोद में बैठी तो महेश ने उसे चूमने का अवसर ही नहीं दिया. बल्कि उसके हाथों को पकड़ लिया.
“माधवी जी. आप हमारी अतिथि हैं. परन्तु कुछ मर्यादाएँ हैं जिन्हें आप लाँघ रही हैं. आप जानती हैं कि आज रागिनी पहली बार हमारे घर में आई हैं और हम तीनों ने उनका साथ चाहा था और वो मिला भी था. उनकी कुछ आशाएँ हैं आज की रात से. आप आई हैं तो आपका स्वागत है, परन्तु, बुरा न मानें तो ये रात उनके ही नाम है. रागिनी ने हमारे सारे निर्देशों को मानने की स्वीकृति दी है. केवल उस अवस्था में जब उन्हें कोई कष्ट या असहजता होगी वो हमें रोक सकती हैं.”
“जैसा मैंने कहा कि आपका भी स्वागत है. परन्तु मेरी ये प्रस्ताव है कि इसके लिए आपको हम चारों के निर्देशों का पालन करना होगा. मुख्यतः रागिनी की. हमारे निर्देशों को रागिनी चाहे तो आपको मानने से रोक सकती हैं. पर हम उनके निर्देशों को नहीं ठुकरा सकते. अगर वो आपको निर्देश देने की स्थिति में न हों, तो आपको हमारी बात माननी ही होगी.”
“उनका सुरक्षा का कोड है तीन बार दिशा का नाम लेना. आपका तीन बार रिया का नाम होगा. परन्तु आप हमारी किसी भी माँग या अनुरोध को ठुकरा नहीं सकती हैं.”
इस बार महेश ने माधवी के हाथों को छोड़ दिया.
“अगर आपको ये स्वीकृत है तो बताएं और क्रीड़ा में सम्मिलित हो जाएँ. अन्यथा आप हम सबके खेल को देख सकती हैं.”
माधवी समझ गई कि उसने बड़ी भूल कर दी है. और अपनी स्वीकृति न देकर वो स्थिति को और गंभीर बना सकती है. वैसे उसे नहीं लगता था कि ये तीनों ऐसा कुछ करने की इच्छा रखते हैं जो उसके लिए असहनीय सिद्ध होगा.
“मुझे स्वीकार है. मैं रागिनी से अपने व्यवहार के लिए क्षमा भी माँगती हूँ.” ये कहते हुए उसने रागिनी की ओर मुड़कर हाथ जोड़ दिए.
“इसकी आवश्यकता नहीं है. पर अब आपको, नहीं आज के लिए आप नहीं तुम, तुमको मेरी हर बात माननी है. ये भी अच्छा ही हुआ. अब मेरी भी सुनने वाला कोई होगा.” ये कहते हुए वो हंस पड़ी.
महेश ने माधवी के होंठ चूमे।
“अब जाओ और रागिनी से पूछो कि वो क्या चाहती हैं. और हाँ, जब तक आज्ञा न हो, अपना मुंह बंद ही रखना.”
माधवी उठी और रागिनी के सामने घुटनों के बल बैठ गई. रागिनी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जिससे वो आज कुछ ही समय पहले मिली थी वो आज उसके चरणों में उसकी दया पर आश्रित थी. पर आज उसे एक और आभास भी ही रहा था. अब तक चाहे नलिनी हो या अन्य कोई, उसे सदा ही अधीनता की ही भूमिका मिली थी. आज पहली बार उसे पृथक भूमिका मिली थी. उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गई. क्या वो इसमें फल होगी? ये इस बात पर भी निर्भर करता था कि माधवी इसे कितना स्वीकार करेगी. महेश के निर्देश के अनुसार उसे इसमें कोई अधिक शंका नहीं थी. उसने माधवी के सिर पर हाथ घुमाया.
“तो माधवी जी, क्या आप मेरी हर आज्ञा माने की इच्छुक हैं?”
माधवी ने सर हिलाकर स्वीकृति दी तो रागिनी का चेहरा चमक उठा. उसने देखा तो तीनो पुरुष उसी प्रकार से तौलिये में थे पर अब उनके लौडों का उभर दिख रहा था. उनके चेहरे पर भी दुविधा के भाव थे कि आगे क्या होगा.
“तो चलो फिर बिस्तर पर ही चलो और मेरी चूत और गांड को चुदाई के लिए चाटो। अगर अच्छे से चाटोगी और मुझे चुदाई में कोई कठिनाई नहीं होगी तो मैं तुम्हारी चुदाई की भी अनुमति दे दूँगी।” ये कहकर उसने महेश की ओर देखा कि ये ठीक है? महेश ने उसे सहमति दर्शाई.
“घुटनों पर ही रहना.” ये कहते हुए रागिनी उठी और बिस्तर की ओर चल दी. वहाँ पहुंचने से पहले उसने अपने तौलिये को नीचे गिरा दिया. अब तीनों पुरुष उन्हें देख रहे थे. रागिनी की मटकती गांड और उसके पीछे घुटनों पर चलती माधवी की गांड स्पष्ट दिखाई दे रही थीं.
“रागिनी की गांड तो बहुत चुदी नहीं लगती, जबकि माधवी की फटी पड़ी है.” भानु ने बहुत धीमे स्वर में बोला।
“माधवी की हर दिन गांड मारी जाती है. कभी कभी तो दिन में दो दो तीन तीन बार भी. मुझे नहीं लगता कि रागिनी की गांड को उतना व्यायाम प्राप्त होता है.” अमोल ने टिप्पणी की. फिर तीनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए.
“अगर मैं सही सोच रहा हूँ, तो अमोल का मन रागिनी की गांड पर आ गया है. उसे ही पहला अवसर देना होगा.” महेश ने कहा.
“मुझे कोई आपत्ति नहीं है.” भानु ने कहा.
“मैं तो चाहूँगा कि आज गांड मारने से ही रागिनी की चुदाई का शुभारम्भ किया जाये.” अमोल ने कहा.
भानु: “आपको अगर आपत्ति न हो तो मैं पहले माधवी की चुदाई करना चाहूँगा। इसके लिए रागिनी को मनाना होगा.”
महेश: “ओह, उसमे कोई समस्या नहीं है. रागिनी हमें मना कर ही नहीं सकती. न ही माधवी. वैसे भी अब वायग्रा का भी प्रभाव होने लगा है. आशा है माधवी रागिनी की गांड को अच्छे से मारने के उपयुक्त बना देगी.”
रागिनी बिस्तर पर जाकर घुटनों के बल हो गई. अब उसकी चूत और गांड दोनों ही दूर तक दिख रही थीं. रागिनी ने माधवी से कर्कश स्वर में कहा.
“देख क्या रही हो, चलो चाटो अच्छे से. आज बहुत लौड़े खाने हैं मेरे दोनों छेदों को. ऐसा न हो कि मुझे कोई कष्ट हो. समझीं.”
माधवी ने कुछ न कहा, पर वो रागिनी के पीछे आकर बैठ गई और अपनी जीभ से पहले उसकी जांघें चाटीं और फिर धीरे धीरे वर्ग के पहले द्वार के पास आ गई. जब उसकी जीभ ने रागिनी की चूत की पंखुड़ियों को छेड़ा तो रागिनी की सिसकी निकल गई. माधवी बिना रुके उसकी चूत के बाहरी भाग को चाटती रही. फिर उसकी जीभ ने भग्न को छेड़ा. और मानो रागिनी के शरीर से ज्वालामुखी फूट पड़ा. उसकी चूत से रस से माधवी भीग गई, पर रुकी नहीं. वो भग्न को अब अपने होठों के बीच लेकर चूसने लगी. रागिनी कसमसाने लगी. माधवी इस कला की पारखी थी. उन इस कला का ज्ञान न केवल पाया था, बल्कि अपनी इकलौती पुत्री रिया को भी पूर्णरूप से दिया था.
चूत की पर्याप्त रूप से सेवा करने के पश्चात उसे रागिनी के रस के सेवन का भरपूर सेवन किया. एक तृप्त भाव से अब उसने भग्न को उँगलियों में लिया और अपनी उँगलियों को रागिनी के रस में भिगोया और उसकी गांड के छेद पर लगाने के बाद उसके साथ खेलने लगी. हल्के धीमे गोलाकार वृत में उँगलियों से रागिनी के भूरे छेद को सहलाती रही. भग्न से ध्यान न हटाते हुए ये करना सच्चे अर्थों में कला की पराकाष्ठा थी.
इस पूरी गतिविधि को देखकर जहाँ महेश और भानु चकित थे, तो अमोल मुस्कुरा रहा था. उसने माधवी के इस इंद्रजाल के चंगुल में तड़पती और तरसती हुई अपनी पत्नी और सास को भी देखा था. रिया भी इस कला में पारंगत थी, पर वो भी माधवी के सम्मुख एक शिशु के समान थी. माधवी ने अपने मुंह को रागिनी के भग्न के सामने लेकर उसकी चूत पर मुंह गोल करते हुए फूँक मारते हुए उसके भग्न को मसलना और गांड के छेद को सहलाना आरम्भ रखा.
रागिनी को समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है. उसने इस प्रकार का अनुभव जीवन में कभी नहीं किया था. उसका शरीर मानो अब माधवी के हाथों में खिलौना बन गया था. माधवी बीच बीच में अपनी उँगलियों को गीला करती और फिर से रागिनी की गांड पर घुमाने लगती. अचानक ही इस बार माधवी ने अपनी ऊँगली को गांड पर सहलाया और एक ऊँगली को गांड में डाल दिया. रागिनी इस हमले से उछल पड़ी. माधवी बिना रुके गांड में ऊँगली को अंदर बाहर करती रही.
कुछ देर तक एक ऊँगली से रागिनी की गांड खोलने के बाद माधवी ने दो उँगलियों का प्रयोग किया. जब उसे लगा कि गांड समुचित रूप से खुल चुकी है तो मुड़कर तीनों पुरुषों को देखा. संकेत समझकर अमोल खड़ा हो गया और तौलिया उतार दिया. वायग्रा से उकसित उसका लंड भयावह सा लग रहा था. माधवी ने ललचा कर उसे देखा पर कुछ कहा नहीं. फिर भानु भी खड़ा हुआ और उसने भी तौलिया निकाला तो माधवी ने उसके लंड के नए रूप को देखकर सिसकारी ली.
भानु आगे आया और उसने माधवी और रागिनी को सम्बोधित किया, “माधवी, जाकर नीचे लेटो और रागिनी की चूत चाटो। अमोल पहले रागिनी की गांड मारने के लिए उत्सुक है. और मुझे तुम्हारी चूत चोदने की इच्छा है.”
माधवी को तो मानो उसके मन की इच्छा पूर्ण होती दिखी. वो तुरंत ही रागिनी के नीचे चली गई पर अब तक रागिनी ने अपनी गांड उठाई हुई थी. तो चूत तक नहीं पहुंच पाई. भानु उसके पैरों की ओर गया और अपने सामने परोसी चूत को ताकने लगा. अमोल ने भी अपने लंड पर थूका और रागिनी की गांड की ओर अग्रसर हुआ.
तभी कमरा खुला और ललिता ने प्रवेश किया. और आते ही उसने कैमरा ऑन किया. महेश ये देखकर मुस्कुरा दिया.
क्रमशः
Thanks Bhai.Lagta hai Ragini ki chal ek din ke liye vigdane wali hai. Very erotic and hot story
Thanks Bhai.Behatareen update bhai, Ragini ka bada ache se aadar satkar ho raha hai... Aage dekhte hain kya kya chipa hai is raat mein.
Thanks Bhai.Ragini jaisi Koi mast kamuk aurat ho to sampark Karen Ham bhi thoda uske sath Baaja Baja len
Thanks Bhai.
Thanks Bhai.super sir!!!
Thanks Bhai...really appreciate it.Thanks Bhai.
Update will come tomorrow and Sunday.
You know very well that I'm your blind fan...... but if you don't mind, I have three requests.....ससुराल की नयी दिशा
अध्याय १: आरम्भ
इस कहानी का पहला अध्याय वही है जो कि USC में प्रकाशित किया जा चुका है. अब ये कहानी उसके आगे चलेगी। आशा है कि इसे आप सभी पसंद करेंगे.
आज और अभी:
दिशा की आँखें उसकी सास से मिली. ललिता की आँखों में एक मुस्कान थी और दिशा को अपनी मौन स्वीकृति दी. दिशा ने अपने पति देवेश की ओर देखा. उसका पति अपनी माँ ललिता के साथ बैठा था. वो भी उसे ही देख रहा था. उसने भी अपने सिर को हिलाकर अपनी स्वीकृति दे दी. दिशा ने अपने सामने ऊपर की ओर देखा. उसके ससुर महेश की आँखों में भी एक मुस्कान थी. और होती भी क्यों न, इस समय उनका लंड जो उनकी नयी और इकलौती बहू के मुंह के सामने झूल रहा था.
कमरे में इस समय उसके पति देवेश, उसके सास ससुर तो थे ही, पर उसके दोनों देवर रितेश और जयेश भी थे जो इस समय दिशा को ही देख रहे थे. उनके बीच में उसकी इकलौती ननद काव्या बैठी अपनी भाभी को देख रही थी. दिशा इस समय बिस्तर के कोने पर नंगी अपने सास ससुर के कमरे में थी. और उसके समान कमरे में सभी निर्वस्त्र थे.
उसकी सास ललिता उसके पति के लंड को सहला रही थी, जो अपने पूरे गर्व से खड़ा था. देवेश का एक हाथ उसकी माँ के पीछे से जाकर उसके एक स्तन को सहला रहा था. काव्या भी व्यस्त थी, उसके दोनों हाथ उसके भाइयों के लंड सहला रहे थे, जो देखकर ही लगता था कि वे देवेश से इस मामले में कम तो नहीं थे. दोनों भाई अपने एक हाथ से काव्या के एक एक स्तन को दबा रहे थे.
“क्या हुआ दिशा, क्या सोच रही हो?” ललिता ने बड़े प्रेम से पूछा.
दिशा ने उन्हें देखा और सिर हिलाकर कुछ नहीं का संकेत दिया. फिर अपने सामने खड़े लंड को हाथ में लिया. आज उसे समझ आया था कि देवेश के लंड का आकार इतना बड़ा कैसे था. उसने अपना मुंह खोला और जीभ निकालकर अपने ससुर के लंड पर चमकते हुए मदन रस को चाट लिया. महेश के लंड ने एक अंगड़ाई ली और कुछ फुदका. पर दिशा ने उसे अपने हाथ में लिया और सहलाते हुए अपने मुंह में ले लिया. जब उसकी ठोड़ी उसके ससुर के अंडकोषों से टकराई तब उसने जान लिया कि उसने लंड को पूरा मुंह में ले लिया है. उसके कानों में जैसे सीटी सी बजी और लगा कि तालियाँ बज रही हैं. लंड को मुंह से निकालकर उसने अपने ससुर से आँखें मिलायीं. फिर उसे आभास हुआ कि तालियाँ सच में बज रही थीं और उसके ससुराल के सभी प्राणी उसके इस प्रयास को अनुमोदित कर रहे थे. उसे अपनी इस उपलब्धि पर गर्व हुआ और उसने एक बार फिर महेश के लंड को मुंह में ले लिया.
दो दिन पहले:
देवेश और दिशा अमेरिका में अपनी MBA की पढ़ाई के समय मिले थे. साथ पढ़ते हुए दोनों में प्रेम हो गया और सामाजिक मान्यताओं की अनदेखी करते उन्होंने एक ही साथ रहने का निर्णय लिया था.उन्होंने पढ़ाई समाप्त होते ही विवाह करने का निश्चय किया था. पढ़ाई समाप्त होने के दो महीने बाद उनका विवाह भी अमेरिका में ही हो गया. पर वहां छह महीने रहने के बाद ही दोनों ने स्वदेश में एक बड़ी कम्पनी में नौकरी ढूंढ ली. उन्हें स्वदेश लौटे हुए अभी दो ही महीने हुए थे. दिशा को एक बात सदा खटकती थी, देवेश अपने परिवार के बारे में अधिक बात नहीं करना चाहता था. मधुचन्द्र से लौटने पर दिशा को लग रहा था कि उसे अपने ससुराल में संबंध बढ़ाने चाहिए. वैसे जब वो पहली बार गयी थी तो उसके स्वागत सत्कार में कोई कमी नहीं हुई थी. उसने अपनी इच्छा देवेश को बताई तो देवेश की अनिच्छा विदित थी. पर दिशा के हट के आगे वो झुक गया और वे दो दिन पहले देवेश के घर आ गए थे. इन दो दिनों में उसके जीवन ने एक नया ही मोड़ ले लिया था.
देवेश के अनुसार इस घर, जिसे एक महल कहना अधिक उचित होगा, कई रहस्य हैं. पहली रात खाने के बाद जब उसकी सास ने देवेश को कुछ बात करने के लिए रोका था तो देवेश ने उसे कमरे में जाकर उसकी प्रतीक्षा करने के लिए कहा.
“कुछ सम्पत्ति के विषय में बात करनी है, मुझे कुछ समय लग सकता है. तुम जाकर आराम करो, मैं एक घंटे में आता हूँ.” देवेश ने उसे समझाया.
बेमन से दिशा ने उसकी बात मानी और उनके कमरे के जाकर एक पुस्तक निकाल कर पढ़ने लगी. उसका मन नहीं लग रहा था तो उसके कमरे की बत्तियाँ बंद कर दीं और लेट गयी. कमरे में बनी अलमारी के नीचे से उसे अचानक एक प्रकाश दिखा, जो पहले नहीं था. जिज्ञासावश उसने अलमारी खोली तो उसे खाली पाया, पर उसके पिछले भाग से उसे प्रकाश की किरण दिखाई पड़ी. उसने अलमारी के पिछले हिस्से को छुआ और फिर हल्के से दबाया. अलमारी का वो भाग किसी द्वार के समान खुल गया. उसके पीछे से प्रकाश अब तेज हो गया. उसने झाँका तो उसे एक गलियारा दिखा.
दिशा ने गलियारे में कदम रखा. देवेश को न जाने अभी कितना समय लगेगा. तब तक वो इस गुप्त रास्ते की छान-बीन कर सकती थी. आगे बढ़ते हुए उसने देखा कि इस गलियारे में कांच लगे हुए थे. उनके पीछे अँधेरा था. सम्भवतः वे कमरे थे. फिर उसकी दृष्टि में एक कांच में से प्रकाश आता दिखा. उत्सुकता से वो उस ओर बढ़ी और अंदर देखा. अंदर का दृश्य देखते ही उसे एक आघात लगा. उसका अनुमान सही था, ये कांच कमरों के थे, और अंदर उसकी ननद बिस्तर पर नंगी लेटी हुई अपनी चूत में एक नकली लंड चला रही थी. एक हाथ से अपने मम्मे को दबाते हुए दूसरे हाथ से वो नकली लंड उसकी चूत में चल रहा था. दिशा की चूत में पानी आ गया. उसे लगा कि वो अपनी ननद की गोपनीयता को भंग कर रही है. पर वो हट नहीं पा रही थी.
काव्या के सुंदर चेहरे पर छाए तुष्टि के भाव ने उसे हटने नहीं दिया. पर उसके अगला आश्चर्य अभी होना बाकी था. कमरे का दरवाजा खुला और उसने देखा कि उसका बड़ा देवर रितेश कमरे में आया. उसने उन दोनों को कुछ बात करते हुए देखा और उसे उनकी बातें न सुन पाने का दुःख हुआ. काव्या उससे बात करते हुए भी नकली लंड अपनी चूत में चलाती रही. दिशा अचम्भित थी कि काव्या ने अपने शरीर को छुपाने या अपने इस खेल के उजागर होने पर कोई आश्चर्य नहीं दिखाया. रितेश ने उसके हाथों से नकली लंड लिया और एक ओर रख दिया. अब दिशा चाहती भी तो हट नहीं सकती थी. ये भाई बहन क्या करने वाले हैं इसे देखे बिना वो नहीं जा सकती थी.
रितेश ने अपनी टी-शर्ट निकाली और फिर अपना लोअर भी निकाल दिया. उसके लंड का आकार देवेश से कोई कम नहीं था. रितेश ने काव्या को बिस्तर पर उसकी स्थिति बदलते हुए सीधा किया और फिर उसकी चूत पर अपना मुंह रख दिया. काव्या ने उसके सिर को जोर से पकड़ते हुए अपनी चूत पर दबा लिया. अचानक उसने लगा कि काव्या ने उसकी ओर देखा. पर उसकी आँखों में किसी भी प्रकार का कोई भाव नहीं बदला. दिशा को समझ आ गया कि ये एक-तरफा काँच हैं जिससे कि केवल एक ओर दिखता है. इस ज्ञान से अब वो निर्भय होकर सामने के कमरे में चल रही लीला को देखने लगी.
काव्या के बिस्तर पर लहराते शरीर को देखकर दिशा भी उत्तेजित हो रही थी. रितेश चूत चाटने में बहुत अनुभवी प्रतीत हो रहा था. दिशा चाहती थी कि वे जल्दी अपने अगले चरण में जाएँ ताकि वो भी अपने कमरे में जाकर देवेश से चुदवा पाए. उसे डर था कि देवेश कहीं जल्दी न आ जाये. उसके मन के विचार मानो काव्या और रितेश ने भी सुन लिए थे. रितेश अब खड़ा हो चुका था और अपने लंड को मसल रहा था. दिशा ने पहले सोचा कि काव्या उसे चूसेगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. रितेश ने सीधे लंड को काव्या की चूत पर लगाया और उसकी चुदाई करने लगा. काव्या का चेहरा आनंद से भर गया, रितेश अपनी बहन को जोर से चोद रहा था. दोनों कुछ बोल रहे थे, पर दिशा को सुनाई नहीं दे रहा था. सीधे आसन में दस मिनट की चुदाई के बाद रितेश ने कुछ कहा तो काव्या घोड़ी के आसन में आ गयी और रितेश उसे फिर से चोदने लगा.
अगर दिशा उन्हें देखकर अगर उत्तेजित थी तो अगर उनकी बातें सुन पाती तो सम्भवतः तभी झड़ जाती. अंदर चल रहे सम्भोग को वो केवल देख ही पा रही थी. रितेश इस आसन में काव्या को कुछ देर और चोदने के बाद उससे अलग हो गया. उसने अपना लंड काव्या के चेहरे के सामने कर दिया. इतनी दूर से भी दिशा उसके लंड पर चिकनाई को देख पा रही थी. काव्या ने ने निसंकोच अपने भाई का लंड मुंह में लिया और उसे चाटने लगी. कुछ ही देर उसने अपने मुंह में लेकर चूसा था कि रितेश का शरीर अकड़ गया और झटके लेने लगा. काव्या ने उसका लंड अपने मुंह से नहीं निकाला और जब रितेश ने झड़ना बंद किया तो उसके लंड को एक चुंबन देकर वो लेट गयी.
कुछ देर दोनों भाई बहन बातें करते रहे और किसी बात पर हँसते रहे. फिर रितेश ने उसके होंठ चूमे और कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया. दिशा ने समय देखा तो अभी देवेश के आने में २० मिनट और थे. वो कुछ आगे बढ़ी तो अगले कमरे में उसने देवेश और उसकी सास को देखा. देवेश खड़ा हुआ था और दरवाजा खोल रहा था. उसकी माँ ने कुछ कहा, जिसपर देवेश ने समझते हुए सिर हिलाया. दिशा को समझ आ गया कि देवेश शीघ्र ही कमरे में पहुंच जायेगा. वो तुरंत लौट गयी और अलमारी से कमरे में जाकर उसे पहले के समान बंद किया. फिर बाथरूम में जाकर मुंह धोया ही था कि कमरे का दरवाजा खुला. उसने अपने भाग्य को धन्य किया कि वो समय पर लौट आयी. मुंह पोंछकर वो कमरे में आयी तो देवेश उसकी ओर प्रेम से देख रहा था.
चुदाई देखने के कारण दिशा पहले ही से उत्तेजित थी. देवेश को देखकर उसका संयम टूट ही गया. वो दौड़कर देवेश से लिपट गयी और उसे चूमने लगी. कुछ ही देर में वे दोनों बिस्तर पर नंगे थे और देवेश का लंड उसकी चूत की प्यास मिटा रहा था. देवेश को भी ये आभास हुआ कि किसी कारण दिशा आज अधिक ही उत्तेजित है, पर उसने इसे नए स्थान के रोमांच को सोचकर अनदेखा कर दिया. पर आज दिशा का मन इतनी जल्दी भरने वाला नहीं था. देवेश के एक बार झड़ते ही उसने लंड को चूसकर फिर से खड़ा कर दिया. और उस बार उसके ऊपर सवारी गांठते हुए एक बार फिर से चुदाई करवाई. अंततः संतुष्ट होकर वो देवेश के बगल में लेट गयी और उसे चूमती रही. और इसी के साथ उसकी आँख लग गयी.
एक दिन पहले:
अगले दिन जब अभी पुरुष बाहर बैठे बातें कर रहे थे तो उसकी सास और ननद ने उसे अपने महलनुमा घर को दिखाया. दिशा को भी अपने कमरे से काव्या के कमरे का भूगोल समझ में आया. काव्या के कमरे के साथ ही वो कमरा था जहाँ से उसने देवेश को निकलते देखा था. ये एक लाइब्रेरी या ऑफिस था. पूरे घर को देखने के बाद उसे ये भी पता लग गया कि हालाँकि कमरे तो घर में बहुत थे, पर सभी एक ही तल पर रहते थे. अन्य तलों के कमरे केवल अतिथियों के लिए ही थे. दिशा सोच रही थी कि क्या उनके कमरों में भी झाँकने के लिए उसी प्रकार का आयोजन है. पर वो पूछ नहीं सकती थी. लौटने के बाद सभी बाहर बैठे हुए बातें करते रहे. रितेश और काव्या बिलकुल सामान्य व्यवहार कर रहे थे.
दोपहर के कहने के बाद उसे अपने कमरे में जाकर नींद ली और रात के खेल के कारण वो दो घंटे तक सोती रही. देवेश ने भी उसे सोने दिया था. जब वो उठी तो तैयार होकर नीचे आयी. चाय नाश्ते के साथ सभी अन्य बातचीत में व्यस्त रहे. अधिकतर बातें राजनीति से संबंधित थीं और दिशा को उसमे कोई रूचि नहीं थी. पर उसे लगा कि उसकी सास अब उसे अलग दृष्टि से देख रही थी. यही भावना उसे अपने ससुर से भी आ रही थी. शाम होने के बाद उसके ससुर ने कुछ पीने के लिए सबको आमंत्रित किया. दिशा, काव्या और ललिता ने भी बियर ली. पुरुषों ने व्हिस्की. फिर खाने का कार्यक्रम चला. दिशा को अब देवेश के परिवार के साथ मिलकर आत्मीयता का अनुभव हो रहा था और वो बहुत खुश थी. खाने के बाद उसने देवेश और उसकी सास को बात करते देखा और देवेश ने उसे एक बार देखा.
कल की तरह उसकी सास ने देवेश को कल चल रही बातों को आगे ले जाने के लिए आग्रह किया. देवेश ने दिशा से पास आकर पूछा तो दिशा बोली, "अगर कल रात जैसी चुदाई करोगे, तो बिलकुल जाओ”. देवेश ने कहा कि आज कुछ अधिक समय लगेगा. और मैं तुम्हे आने के पहले मैसेज या फोन कर दूंगा. दिशा अब और खुश हुई, अब वो बिना देवेश के लौटने की चिंता के अपने गुप्तचर कार्य को कर सकती थी. आज वो किसी अन्य कमरे को देखना चाहती थी.
दिशा कमरे में अलमारी को हल्का सा खोलकर प्रतीक्षा करने लगी. आधे घंटे के बाद उसे वहां प्रकाश दिखा. कल के समान वो गलियारे में चल पड़ी. काव्या के कमरे में कोई नहीं था. वैसे भी दिशा को आज उस कमरे में कोई खास रूचि नहीं थी. उसे सामने गलियारे के अंत में बने कमरे में जल रही बत्ती आकर्षित कर रही थी. उसे आज क्या देखने मिलेगा इसकी उत्सुकता खाये जा रही थी. उसकी धड़कन बढ़ी हुई थी. क्यों न हो, वो एक प्रकार से चोरी कर रही थी. कमरे के पास पहुंचकर उसने अपनी गति कम की और एक और होते हुए कमरे में झाँका. पहले उसे अधिक कुछ दिखाई नहीं दिया. और फिर उसके हाथों के तोते उड़ गए.
सामने उसके सास ससुर का कमरा था. और इस समय उसके सास और ससुर के साथ उसका छोटा देवर जयेश भी था. और इस समय तीनों नंगे थे. उसके ससुर और जयेश बिस्तर पर लेटे थे और ललिता, उसकी सास उनके लंड चूसने में व्यस्त थी. दिशा ने कभी तीन लोगों को सम्भोग में लिप्त नहीं देखा था. और इसीलिए उसकी उत्सुकता और बढ़ गयी. उसकी सास रह रह कर दोनों लौंड़ों को हाथ से हिलती फिर एक एक करके चूसती। वो इस काम में अनुभवी थी. जब दोनों लंड अच्छे से खड़े हो गए, तो उसने उसकी सास को अपने पति से कुछ पूछते हुए देखा. फिर उसके चेहरे की मुस्कान देखकर दिशा उसके ऊपर रीझ गयी. उसकी सास सच में एक अत्यंत ही सुंदर महिला थी. न जाने क्यों दिशा का मन हुआ कि वो भी उसकी सास के साथ सम्भोग कर पाए. ये उसका पहला समलैंगी अनुभव होगा. फिर उसने इसकी असम्भवता पर विचार किया और सामने चल रहे दृश्य पर ध्यान दिया.
उसके ससुर अभी तक लेटे ही हुए थे और उसकी सास उनके ऊपर चढ़कर उनके लंड को अपनी चूत पर लगा रही थीं. लंड अंदर जाते ही उन्होंने उछलना आरम्भ कर दिया. फिर उन्होंने जयेश की ओर देखते हुए कुछ कहा. जिसके बाद जयेश उनके सामने खड़ा हो गया और वो उसके लंड को मुंह में लेकर चूसने लगीं. दिशा को अपनी सास की स्फूर्ति पर बहुत आश्चर्य हुआ. वो लंड पर उछलते हुए जिस सरलता से लंड चूस रही थीं वो सच में गर्व के योग्य था. उसके ससुर भी अब नीचे से धक्के लगा रहे थे और चुदाई का पूरा आनंद ले और दे रहे थे. यूँ ही कुछ देर की चुदाई के बाद उसकी सास ने जयेश के लंड को मुंह से निकालते हुए उसे चाटा और जयेश की ओर देखते हुए कुछ कहा. जयेश वहां से हटते हुए कुछ दूर गया और हाथ में कुछ लेकर आया.
जयेश ने अपनी माँ की उछलते हुए शरीर को पीछे से ठहराया और आगे की ओर झुका दिया. दिशा की साँस रुक गयी. "क्या ये…?” उसने देखा कि जयेश जो भी लाया था वो किसी प्रकार की ट्यूब या शीशी थी, जिससे उसने अपनी उँगलियों पर कुछ उढ़ेला और फिर अपनी माँ की गांड पर मलने लगा. ललिता इस समय आगे झुकी अपने पति के होंठ चूमे जा रही थी. और उनके पति उसके नितम्ब पकड़ कर फैलाये हुए थे जिसके कारण जयेश को अपनी माँ की गांड में वो पदार्थ लगाने में कोई कठिनाई नहीं हो रही थी. जब उसकी सास की गांड की तैयारी हो गयी तो जयेश ने अपने लंड पर भी वही पदार्थ लगाया. उसका लंड अब एकदम से चमक रहा था. दिशा की साँस अभी तक रुकी थी. उसकी गांड तो देवेश ने कई बार मारी थी, और उसे गांड मरवाने में मजा भी बहुत आया था, पर जो वो अब देख रही थी, उसकी कल्पना भी नहीं की थी.
दिशा के हाथ अपनी चूत को मसलने लगे. उसे तब ये आभास हुआ कि उसकी चूत अविरल रूप से बह रही है. आज भी चुदाई में मजा आने वाला है. दिशा अपनी चूत को दबाती हुई सामने आँखें गढ़ाए खड़ी थी. जयेश ने अपनी माँ की गांड के पीछे अपने शरीर को सही आसन में स्थापित किया. दिशा ने बिना पलक झपके जयेश के लंड को उसकी सास की गांड में घुसते हुए देखा. बिस्तर पर उपस्थित तीनों में से इस समय केवल जयेश ही किसी प्रकार की गति में था. दिशा के सास और ससुर दोनों जैसे जड़ थे. जयेश के लंड ने अपनी माँ की गांड की पूरी गहराई को तय करने में कुछ समय लगाया. दिशा अपनी सास और देवर के चेहरे को भी देख रही थी. जयेश का लंड जैसे जैसे उसकी सास की गांड में जा रहा था दोनों के चेहरे आनंद की अधिकता से चमक रहे थे.
जब जयेश का लंड गांड में पूरी गहराई तक जम गया तो ललिता की आँखों में एक नशा सा था. और तभी दिशा का रक्त जैसे जम गया. उसने अपनी सास को उसकी ओर देखते हुए देखा. उनकी आँखों में एक षड्यंत्रकारी मुस्कान थी. दिशा को ऐसा लगी जैसे उसकी सास उसे ही देख रही हो. उनकी आंखें मानो उसकी आँखों से मिलकर कुछ कहना चाह रही हों. उनकी मुस्कराहट में एक व्यंग्य था. दिशा दो कदम पीछे हो गयी. "क्या उसे देख लिया गया?” पर उसे कल रात का ध्यान आया. सम्भवतः उसकी सास उस शीशे को यूँ ही देख रही थी. वैसे भी अब उनकी आँखें शीशे पर केंद्रित नहीं थी. बल्कि जैसे ऊपर अपनी पुतलियों में चढ़ी हुई थीं. इस समय उसके ससुर और देवर अपने लंड उसकी सास की चूत और गांड में मिलकर चला रहे थे.
उनकी जुगलबंदी से ये तो समझा ही जा सकता था कि ये खेल वो पहली बार नहीं खेल रहे थे. जिस सरलता और सामयिकता से उनके लंड उन दोनों छेदों में आघात कर रहे थे, ये एक लम्बे अनुभव को दर्शाते थे. दिशा की सास अब भी कुछ समय में उसकी ओर देखती थी. पर दिशा को पता था कि वो सुरक्षित है. उसकी उँगलियाँ उसकी चूत में जाकर उसे चोदने का प्रयास कर रही थीं. बिस्तर पर चुदाई भीषण रूप ले रही थी. उसकी सास इस आयु में इतनी तीव्र और दोहरी चुदाई को जिस आसानी से झेल रही थी, वो अपने आप में एक चमत्कार ही था.
इस दृश्य को देखते हुए दिशा को अच्छा समय हो गया था. अब लग रहा था कि खेल में लिप्त खिलाड़ी अपने गंतव्य पर पहुंच चुके थे. उनके शरीर के हावभाव उनके पड़ाव के निकट होने का संकेत कर रहे थे. और हो भी यही रहा था. ससुर जी ने एक झटका लिया और हिलना बंद किया पर सासूमाँ उनके ऊपर सवारी गांठे रहीं. पर जब जयेश के शरीर में ऐंठन हुई तब खेल की समाप्ति हो ही गयी. जयेश अपनी माँ के ऊपर ढेर होता इसके पहले ही उसकी सास ने उसे हटा दिया, और वो बिस्तर पर लोट गया. दिशा अपनी सास की शक्ति और स्फूर्ति पर चकित तो थी ही, पर जब उसने पलटकर उन्हें उन दोनों लौंड़ों को फिर से अपने मुंह में लेते देखा तो वो उनकी प्रशंसक बन गयी.
दिशा उन तीनों की प्रणयलीला को देख रही थी कि उसके फोन में कम्पन हुआ. ओह, देवेश आने वाला है. इससे पहले कि वो अपने कमरे में लौटती, उसकी सास के कमरे का दरवाजा खुला और उसमें काव्या और रितेश ने प्रवेश किया. दिशा और रुक तो नहीं सकती थी, पर उसने ये अवश्य ही देख लिया कि रितेश और काव्या भी निर्वस्त्र ही थे. दिशा ने तीव्र गति से अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाये. अलमारी से अंदर जाकर उसने अलमारी बंद की और कल जैसे बाथरूम में जाकर मुंह धोया. बाहर निकली तो देवेश उसकी और प्रेम भरी दृष्टि से देखते हुए अपने कपड़े उतार रहा था. वो दौड़कर देवेश की बाँहों में समा गयी. देवेश ने उसे बाँहों में लिया और चूमने लगा. उसका एक हाथ नीचे की ओर गया और उसने दिशा की चूत को टटोला.
“हम्म, लगता है आज भी चुदाई का बहुत मन हो रहा है. अगर ऐसा ही रहा तो हमें लौट कर शहर जाने का मन नहीं होगा।”
“हम्म, अगर तुम यहाँ खुश रहोगे तो मुझे यहाँ भी अच्छा ही लगेगा.” दिशा ने उसकी बाँहों में कसमसाते हुए कहा.
“चलो, देखेंगे.” ये कहते हुए देवेश ने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी चूत चाटने लगा.
जब दो घंटे बाद दोनों की चुदाई समाप्त हुई तो दिशा की चूत और गांड दोनों से देवेश का रस बह रहा था. और जो उसने पिया था सो अलग था. देवेश और दिशा पूर्ण रूप से संतुष्ट होकर एक दूसरे की बाँहों में थे.
“क्या हुआ, जब से आयी हो, चुदाई की प्यासी हो गयी हो.” देवेश ने उससे पूछा.
“यहां के वातावरण का प्रभाव है. और फिर हमें अभी यहाँ किसी प्रकार की कोई बाधा या काम का बोझ भी नहीं है.”
“हमारी सम्पत्ति के बारे में जो बातें चल रही हैं, उनके अनुसार मैं अगर यहाँ रहूं तो हम दोनों जितना मिलकर कमाते हैं, उससे अधिक मिल सकता है.”
“देवेश, मुझे ये स्थान और तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा और मिलनसार लगा है. अगर तुम चाहोगे तो हम यहाँ आ सकते हैं. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.”
दिशा ये कहते हुए ये भी सोच रही थी कि अगर यहाँ रहे तो उसे भी देवेश के परिवार की रंगलीला में अवश्य सम्मिलित कर लिया जायेगा. अपितु देवेश का पहले का कथन कि इस घर में कई रहस्य हैं इस पारिवारिक सम्भोग के बारे में ही रहा हो. फिर अचानक दिशा के मन में एक बात कौंधी. उसने कल देवेश को तो देखा ही नहीं था! और काव्या और रितेश भी बाद में नंगे ही आये थे. देवेश तो सम्पत्ति के विषय में बात करने के लिए रुका था. "पर कहाँ? तो क्या?” उसने देवेश को देखा तो वो सो चुका था, पर उसके चेहरे की मुस्कराहट में एक शांति थी. दिशा ने ये निर्णय लिया कि कल रात अगर अवसर मिला तो देवेश क्या करता है ये जानने की चेष्टा करेगी. दिशा को जब नींद आयी तो वो स्वप्न में उसकी ससुराल के सभी सदस्यों के साथ चुदाई के खेल में मग्न थी. देवेश ने आंख खोलकर उसे देखा और दिशा को अपनी चूत सहलाते हुए देखकर, एक रहस्यमई मुस्कान के साथ आँख बंद करके सो गया.
आज:
आज दिन का आरम्भ भी कल जैसे ही रहा. नाश्ता करने के बाद पुरुष एक ओर बैठे व्यवसायिक बातों में उलझ गए और दिशा को उसकी सास और ननद ने घेर लिया. कुछ समय बाद काव्या ने अपनी माँ को किसी और काम में लगा दिया और दिशा को लेकर बाग में घुमाने ले गयी. भिन्न भिन्न प्रकार के पौधों और फूलों से बाग बहुत ही सुंदर लग रहा था. दिशा को अपने ससुराल वालों के धन से बहुत प्रभावित किया था.
चलते चलते अचानक ही काव्या ने पूछा, “भाभी, आप यहां आने के बाद बहुत खिल गयी हैं, लगता है भैया आपकी अच्छी सेवा कर रहे हैं.”
दिशा सकपका गयी. उसे कुछ बोलते न बना. तो काव्या हंस पड़ी.
“अरे भाभी. अब शर्माओ मत, आप जानती हो आपका बिस्तर सुबह कौन ठीक करता है?”
दिशा को आश्चर्य हुआ. क्योंकि दोनों दिन सुबह जब वो नहाकर निकली थी तो उसका बिस्तर ठीक किया मिला था, नयी चादर के साथ. वो समझ रही थी कि ये देवेश ने किया होगा. पर काव्या के प्रश्न ने उसे चकित कर दिया था.
“तुम्हारे भैया. और कौन?”
“अरे नहीं मेरी प्यारी भाभी. भैया ने कभी अपने घर में किया क्या? नहीं न? वो मैं ठीक कर रही हूँ दो दिन से. और उसे देखकर ही पता लगता है कि रात को उस पर घमासान हुआ होगा.”
दिशा शर्मा गयी. काव्या ने उसके चेहरे को हाथ में लिया और आँखों में झांक कर बोली.
“भाभी, हम सब किसी से कुछ भी नहीं छुपाते. भैया ने जब आपसे विवाह का निर्णय लिया था तो उन्होंने आपके बारे में सब बता दिया था. इसीलिए, आपको घबराने की आवश्यकता नहीं.”
दिशा के मन में आया कि वो बोल दे कि तुम सब भी तो मुझसे कुछ छुपा रहे हो. पर इसके पहले ही काव्या फिर बोल उठी.
“भाभी, कल भैया ने आपकी गांड भी मारी थी न? चादर पर कुछ अवशेष थे. वैसे भाभी, भैया चुदाई कैसी करते हैं? ”
अब दिशा को लगा कि अगर उसे इस परिवार में हर रूप में सम्मिलित होना है तो कुछ खुलना ही होगा.
“बहुत अच्छी, शरीर तोड़ देते हैं. और गांड में तो ऐसा लगता है कि न जाने क्या हो जाता है उनके लंड से.”
“भाभी, हमारी बहुत अच्छी पटेगी. आई लव यू, भाभी.”
दोनों लौटकर आये और सबके साथ बैठ गए.
उसके ससुर बोले, “देवेश कह रहा है कि तुम्हें यहां भी रहने में कोई आपत्ति नहीं है, बहू.”
“जी, पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया है.”
“कोई बात नहीं अगर इसपर विचार भी कर रहे हो तुम दोनों तो भी हमें प्रसन्नता हुई. वैसे आज देवेश को हमारे व्यवसाय के बारे में विस्तार से समझना होगा. तो आज एक दिन के लिए तुम उसे हमारे पास रहने देना, हो सकता है वो तुम्हारे कमरे में बहुत देरी से आये. इसके लिए हम पहले ही तुमसे क्षमा मांगते हैं. ”
दिशा अब दुविधा में थी. जहाँ वो रात में चलते व्यभिचार को देख सकती थी, वहीं वो देवेश के प्यार से वंचित भी रह सकती थी. पर उसके पास कोई चारा नहीं था.
“नहीं, पिताजी, इसमें क्षमा वाली कोई बात ही नहीं है. बस आज ही की तो बात है.”
“थैंक यू, बहू।”
खाने के बाद सभी उठ गए और दिशा अपने कमरे में अलमारी से प्रकाश की राह देखने लगी.
दिशा को आज बहुत देर तक रुकना पड़ा. अलमारी के पीछे के गलियारे में अंधकार ही था. दिशा ने मन ही मन हँसते हुए सोचा कि लगता है आज सच में ये सब कुछ व्यवसाय सम्बन्धित बातें कर रहे हैं. तभी गलियारा जगमगा उठा और दिशा ने स्वतः अपने बढ़ चली. परन्तु आज उसका उद्देश्य ये भी देखना था कि देवेश क्या कर रहा था. अन्य कमरों में अँधेरा ही था पर अंतिम कमरे में प्रकाश था. दिशा ने धड़कते मन से उस कमरे की खिड़की पर जाकर अंदर झाँका. और जो उसने देखा उससे उसका मन व्यथित हो गया. आज बिस्तर पर कल ही के समान उसकी सास नंगी कोने पर बैठी थी और दो लंड चूस रही थी.
उसके मन के दुःख का कारण ये था कि उन दो लौंड़ों में से एक उसके पति देवेश का था. देवेश अपनी माँ के सामने नंगा खड़ा था और उसकी माँ उसका लंड चूस रही थी. दूसरा लंड उसके बड़े देवर रितेश का था. कमरे में उसके ससुर और छोटा देवर भी थे, नंगे, पर वे एक ओर बैठे शराब पीते हुए इस दृश्य को देख रहे थे. काव्या न जाने कहाँ थी. दिशा के मन में आया कि वो अंदर जाकर देवेश को छीन ले, पर उसके शरीर में उठती भावनाएं उसे रोक रही थीं. उसने अपने आप को याद दिलाया कि वो भी इस परिवार की घरेलू चुदाई में सम्मिलित होना चाहती थी. और अगर ऐसा था तो उसे देवेश को भी सबके साथ बाँटना ही होगा.
दोनों लौंड़ों को चूसने के बाद रितेश को बिस्तर पर लिटाकर उसकी सास उसके ऊपर चढ़ी और रितेश के लंड को अपनी चूत में ले लिया. ललिता ने अपने पति की ओर देखा तो उसने थम्ब्स अप संकेत किया. ललिता ने रितेश को चूमा और फिर पीछे मुड़कर देवेश से कुछ कहा. देवेश ने आगे बढ़कर अपनी माँ की गांड पर लंड लगाया और एक धक्के में अंदर पेल दिया. ललिता के चेहरे पर छाए आनंद के भाव देखकर दिशा को जलन हुई और उसके हाथ स्वतः अपनी चूत को सहलाने लगे. एक हाथ से वो अपने मम्मे दबोचने लगी और दूसरे से चूत रगड़ रही थी. उसकी चूत की सुगंध गलियारे में फ़ैल गयी थी.
अंदर उसका देवर और पति उसकी सास की चूत और गांड में लंड पेले जा रहे थे. ललिता बहुत उत्तेजित थी और कुछ बोल रही थी. देवेश और रितेश उसकी चुदाई करते हुए हंस रहे थे. उसका ससुर और दूसरा देवर भी उसकी बातों पर हंस रहे थे.
“बहुत सुंदर लग रहे हैं न सब?” दिशा ने ये सुना तो वो जड़वत रह गयी. ये काव्या ने कहा था और वो उसके साथ खड़ी थी. दिशा सामने चल रही रंगलीला में इतनी खोई थी कि उसे पता भी नहीं चला कि काव्या कब उसके पास आ खड़ी हुई थी. वो कुछ न कह पायी और अपने हाथ को चूत से हटा लिया. पर वो जानती थी कि अब देर हो चुकी है, और वो पकड़ी गयी थी.
“भाभी, घबराओ मत. हम जानते हैं आप तीन दिनों से हम सबको देख रही हो. देवेश भैया इसीलिए आपको नहीं लाना चाहते थे पहले. पर जब आपने कल की चुदाई देखने के बाद भी कुछ नहीं कहा, तो वो समझ गए कि आपको आपत्ति नहीं है. मम्मी का कहना है कि आप भी अब हमारे परिवार में पूर्ण रूप से जुड़ने के लिए तत्पर हो. क्या आप हमारे साथ जुड़ना चाहोगी, भाभी?”
काव्या ये कहते हुए दिशा के पीछे जाकर उसके मम्मों को मसलने लगी. फिर उसने एक हाथ नीचे किया और दिशा की रस से भीगी हुई चूत में एक ऊँगली अंदर डाल दी.
“बोलो न भाभी, आप भी आ जाओ. बहुत मजा रहेगा. चलोगी?” काव्य ने मानो विनती की.
दिशा ने मुड़कर काव्या को देखा. काव्या के चेहरे पर मुस्कराहट थी, जैसे वो जानती थी कि दिशा का उत्तर क्या होगा. इसके पहले कि दिशा कुछ और बोल पाती, काव्या ने उसके होंठों को चूम लिया.
“भाभी, मैंने आपसे कहा था न. आई लव यू . चलें?” काव्या बोली.
दिशा ने अपना सिर स्वीकृति में हिलाया और इस बार उसने काव्या को बाँहों में लेकर उसके होंठों पर एक प्रगाढ़ चुंबन लिया.
“वाओ, मेरी प्यारी भाभी. चलो. सब आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं.”
ये कहते हुए काव्या ने दिशा का हाथ पकड़ा और उस कमरे के साथ वाले कमरे के द्वार को खोला और अंदर चली गयी. दिशा ने जाते जाते एक बार फिर कमरे में देखा तो देवेश और रितेश अभी तक अपनी माँ की गांड और चूत में लंड घुसाए हुए उसे चोद रहे थे. और उसकी सास दिशा की और देखते हुए मुस्कुरा रही थी. उस अँधेरे कमरे को पार करने में अधिक देर नहीं लगी और फिर वो उस कमरे में अंदर गए जहाँ पर चुदाई का कार्यक्रम चल रहा था.
“चोदो मुझे, मादरचोदो! फाड दो मेरी चूत और गांड. और मारो, और तेज!” ये दिशा की सास थी. दिशा उनकी बात सुनकर सुन्न हो गयी. दिन में इतनी संभ्रांत लगने वाली महिला अपने बेटों से चुदवाती है और इस प्रकार की भाषा का उपयोग करती है, ये उसने सोचा भी न था.
“मम्मी को चुदवाते समय गालियाँ देने की आदत है. वैसे इनकी प्यास का कोई अंत नहीं है. ये चारों मिलकर भी कई बार उन्हें प्यासा छोड़ देते हैं.” काव्या ने दिशा को बताया.
दिशा सामने चल रही चुदाई को देख रही थी, उसे इस बात का आभास भी नहीं हुआ कि काव्या ने उसके गाउन की ज़िप खोल दी थी और उसके शरीर से उसके गाउन को उतार दिया था. वो तो जब दिशा को अपने शरीर पर कुछ बहने का अनुभव हुआ तो उसने देखा कि अब वो भी परिवार के अन्य सदस्यों के समान नंगी ही है.
“आओ, बहू. हम सब तुम्हारी ही प्रतीक्षा में थे.” उसके ससुर महेश ने उठकर उसकी ओर बढ़ते हुए देखा. अपने पिता की बात सुनकर देवेश ने उसकी ओर देखा और एक क्षण के लिए उसकी आँखों में अपराध का बोध दिखा. पर उसकी माँ की चीख ने उसका ध्यान बाँट दिया.
“माँ के लौड़े, अपनी बीवी को देखकर माँ की गांड भूल गया. चल तेज चला अपना लौड़ा. मैं झड़ने के निकट हूँ. फिर अपनी बीवी की गोद में जाकर बैठना.”
देवेश और रितेश अपनी पूरी क्षमता से अपनी माँ की चुदाई कर रहे थे और ललिता उनकी चुदाई का पूरा आनंद ले रही थी. दिशा के ससुर उसके सामने खड़े होकर उसके सुंदर शरीर का निरीक्षण कर रहे थे. उनके हाथ बढे और दिशा के मम्मों को दबाकर हट गए.
“देवेश ने सच में एक अपूर्व सुंदरी को चुना है. क्या मैं समझूँ कि अब तुम हमारे परिवार में पूर्ण रूप से मिलने के लिए सहमत हो.”
दिशा अब लौट नहीं सकती थी. उसे भी इस परिवार के साथ चुदाई करने का मन था.
“जी, पिताजी.”
“बहुत अच्छे. तो सबसे पहले तो तुम्हें तुम्हारे पति और देवर के लंड चाटने होंगे, जो इस समय तुम्हारी सास की गांड और चूत में हैं. उसके बाद तुम्हें मेरा और जयेश का लंड चूसना होगा. चाहो तो ललिता की चूत और गांड की भी तुम सफाई कर सकती हो, हालाँकि अब तक ये काव्या करती आयी है. ठीक है?” महेश ने उसके शरीर पर हाथ फिराते हुए कहा.
“जी, पिताजी. और मेरी…” दिशा कहने लगी तो काव्या ने उसे टोका.
“भाभी, आपकी चुदाई भी होगी. पर ये पहले. फिर मम्मी जैसा कहेंगी वैसे आपकी चुदाई होगी.”
“आआआआह, मैं गयी हरामखोरों. चोद दिया रे तुमने अपनी माँ को. फाड़ दी मेरी चूत और गांड. मजा आ गया, तुम मादरचोद, क्या चुदाई करते हो.” ललिता की इस चीख ने सबका ध्यान उसकी और खींच लिया.
देवेश ने अपने लंड को अपनी माँ की गांड से निकाला और ललिता की गांड में से उसका रस बहने लगा.
“बहू, अब जाओ और अपनी रस्म पूरी करो.” महेश ने उसे कहा.
दिशा देवेश के पास गयी और उसके लंड को देखा जो अभी उसकी सास की गांड से निकला था. अपनी गांड मरवाने के बाद कई बार देवेश के लंड को चाट चुकी थी. इसीलिए उसे कोई विरक्ति नहीं हुई. उसने देवेश के सामने बैठकर उसके लंड को अपने मुंह में लिया और चाटकर अच्छे से साफ कर दिया. उसके बाद उसने अपनी सास की उछलती गांड की ओर देखा. उसमे से रिसता हुआ देवेश का वीर्य उसे अपनी ओर खींच रहा था. उसने उठकर ललिता की गांड पर जीभ लगाई और उसे चाटने लगी.
“जुग जुग जियो, बहूरानी।” ललिता ने उसे आशीर्वाद दिया. अपने मुंह से दिशा ने ललिता की गांड के अंदर का रस भी खींचकर पी लिया और खड़ी हो गयी.
रितेश ने भी एक लम्बी सी आह के साथ अपना पानी ललिता की चूत में छोड़ दिया. ललिता झड़ते ही रितेश के लंड से हट गयी. महेश और देवेश ने दिशा को हल्के से आगे धकेला. दिशा रितेश के लंड पर चिपके हुए रस को देखकर लालसा से भर गयी. उसने आगे झुकते हुए रितेश के लंड को अपने मुंह से साफ कर दिया.
“थैंक यू , भाभी.” रितेश ने उसे कहा.
अब बारी थी उसकी सास की. तो बेशर्म होकर ललिता बिस्तर पर पाँव फैलाकर लेट गयी और दिशा ने अपना कर्तव्य निभाते हुए उसकी चूत से उसका और रितेश के मिश्रित रस का मधुपान किया. उसने ललिता के हाथ को प्रेम पूर्वक अपने सिर के ऊपर चलते हुए अनुभव किया.
“बहुत प्यारी बहू लाया है तू देवेश. हमारे साथ खूब घुलमिल कर रहेगी.” ललिता ने अपना विचार रखा.
“बिलकुल माँ. और अब तो शायद हम लोग यहीं रहेंगे, अगर ये मान गयी तो.”
“मानेगी क्यों नहीं. हम हैं न मनाने के लिए.”
दिशा ने हटते हुए अपने मुँह को पोंछा और देवेश की ओर देखा. देवेश ने अपने पिता की ओर संकेत किया. दिशा वहीँ बिस्तर पर बैठ गयी. देवेश अपनी माँ के साथ जाकर बैठा तो काव्या अपने भाइयों के बीच जाकर बैठ गयी. सब अब दिशा को देख रहे थे.
आज और अभी:
तालियों की ध्वनि के साथ दिशा अपने ससुर के लंड को बड़े प्रेम और आदर से चूस रही थी. उसके ससुर उसके बालों में प्यार से हाथ फेर रहे थे. उनके फूलते हुए लंड का आभास होते ही दिशा ने एक और रस की औषधि को अपने मुंह में ग्रहण करने के लिए स्वयं को तैयार किया. कुछ ही देर में उसके ससुर का बीज उसके मुंह से होता हुआ उसके गले को तर करते हुए पेट में समा गया. अब बस जयेश ही बचा है. उसने अपने ससुर को देखा उनकी आँखों की चमक और उसके प्रति प्रेम ने मन को जीत लिया.
“बहुत अच्छा बहू, तुमने मेरा मन प्रसन्न कर दिया.” महेश ने कहा और हट गए.
उनके हटने से दिशा को कमरे में चल रही गतिविधि देखने मिली. ललिता उसके पति के लंड पर उछल रही थी और उधर रितेश अपने लंड पर थूक लगते हुए काव्या के पीछे अपना स्थान बना रहा था. अचानक दिशा को समझ आया कि उसे केवल जयेश नहीं बल्कि काव्या को भी अपने मुंह से संतुष्ट करना होगा. वो कमसिन और कोमल सी दिखनी वाली काव्या की ओर एकटक देख रही थी कि क्या वो भी अपनी माँ जैसे दो दो लंड लेने में सक्षम है. वैसे दिशा को कोई भ्रम नहीं होना चाहिए थे. अपनी माँ की इकलौती लाड़ली इस कर्मकांड में अपनी माँ के समकक्ष ही थी. रितेश ने अपने लंड को काव्या की तंग गांड में बड़े आराम से डाला और फिर दोनों भाई अपनी बहन की चूत और गांड की दुहरी चुदाई करने लगे.
अब महेश यूँ खड़े तो रह नहीं सकता था, उसने अपनी पत्नी की गांड को टटोला और अपने लौड़े को एक ही झटके में पेल दिया. ललिता की गांड अभी पूरी बंद नहीं हुई थी इसीलिए उसके लंड को किसी भी व्यवधान का सामना नहीं करना पड़ा. दिशा बिस्तर पर बैठी अपने ससुराल के व्यभिचार को देख रही थी. यही इनके प्रेम का बंधन है जिसमे मैं एक नयी कड़ी हूँ. अच्छा है, जो मैं इनके प्यार के बीच में दीवार न बनकर इसमें जुड़ गयी हूँ. दिशा ने अपनी चूत में ऊँगली डालकर अपनी वासना को शांत करने का प्रयास किया और दोनों तिकडियों को देखते हुए अपने ही हाथों में झड़ गयी.
दोनों जोड़ियों की चुदाई अब एक आक्रामक रूप ले चुकी थी. रितेश और महेश काव्या और ललिता की गांड को मानो मथ रहे थे. उनके कूल्हों की तीव्र गति दर्शा रही थी कि वे कितनी गहरी और तेज गांड मार रहे थे. उनके नीचे पड़े जयेश और देवेश के कूल्हे भी कुछ कम चलायमान नहीं थे. काव्या और ललिता के मुंह से निकलती चीखें कमरे को हिला दे रही थीं. और दिशा ये सब एक मूक दर्शक बनकर देख रही थी. पर कुछ देर बाद सबके शरीर अकड़ने से लगे, ताल बिगड़ने लगी और फिर रुक गयी. दिशा जान गयी कि उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है. धड़कते मन से वो अब अपनी भूमिका वहन करने के लिए उद्यत हो गयी.
रितेश ने काव्या की गांड से अपना सिकुड़ता हुआ लंड निकाला और वहीं काव्या के साथ ढेर हो गया. काव्या ने अपना स्थान छोड़ा और रितेश के साथ जा बैठी. उसके चेहरे की काँटी अविस्मरणीय थी. जयेश वहीं लेटा रहा. दिशा को अपना उद्देश्य पता था, वो उठी और जयेश के सामने बैठकर उसके लंड को चाटकर साफ करने लगी. इस मनोरम कार्य के पश्चात् उसने काव्या की ओर देखा जो उसे जयेश के लंड को चाटते हुए देख रही थी. उसकी आँखों में अभी भी कामना थी. दिशा ने अपने होठों पर जीभ फिराई और घुटनों के बल चलकर काव्या के सामने जा बैठी. काव्या की संकरी गांड को अपने दोनों हाथों से उठाकर काव्या की चूत पर अपना मुंह लगाया और उससे बहता हुआ सफेद द्रव्य पीने लगी.
चूत को पूर्ण रूप से रसविहीन करने के बाद उसने अपने हाथों से काव्या की गांड कुछ और ऊपर की. काव्या ने अपने दोनों टखने ऊपर सीने की ओर कर दिए जिसके कारण अब उसकी खुली लप्लपाती गांड दिशा के सामने आ गयी. भूरा छेद, अब लाल रंग ले चुका था और उससे रितेश का कामरस बाहर निकलने का प्रयास कर रहा था. दिशा ने समय व्यर्थ न करते हुए अपने मुंह और जीभ से काव्या की गांड को भी उस रस से मुक्ति दे दी. इसके बाद उसने काव्या की गांड और चूत पर एक प्रेम भरा चुम्बन लिया और फिर खड़ी हो गयी.
तब उसे आभास हुआ कि कमरे में नितांत शांति है, और सब उसे ही देख रहे हैं. उसकी सास उठी तो उसकी जाँघों पर उसकी चूत और गांड से निकलता रस बहने लगा. उसकी चिंता करे बिना उसने दिशा को अपनी बाँहों में ले लिया. उसके माथे, आँखों, नाक को चूमते हुए उसके होंठों पर एक प्रगाढ़ चुंबन दिया.
“मुझे बहुत प्रसन्नता है कि देवेश ने तुम्हें चुना और तुमने हम सबको. तुमने हमारे परिवार में सम्मिलित होने की रस्म पूरी कर ली है. और अब हम सबका कर्तव्य है कि आज पूरी रात तुम्हें हर प्रकार से परिवार में समाहित कर लें. आज की रात तुम्हारी ऐसी सुहागरात होगी, जो तुम्हें जीवन पर्यन्त स्मरण रहेगी.
जब उसकी सास की बात समाप्त हुई तो देवेश ने उसे पीछे से बाँहों में लिया और उसके शरीर पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. उसकी ननद काव्या, देवर जयेश और रितेश और ससुर महेश ने उसे चारों ओर से घेर लिया. महेश ने एक शैम्पेन की बोतल से सबके लिए पेय बनाया. अपने ग्लास खनखना कर सबने दिशा का परिवार में अंतरंग रूप से स्वागत किया.
आज की रात दिशा की ससुराल में सुहागरात थी. और अब वो इस परिवार का अंतरंग हिस्सा बनने वाली थी. उसका कल का अपनी नयी ससुराल में सबके साथ उन्मुक्त चुदाई का जीवन व्यतीत करने का स्वप्न साकार हो गया.
..........क्रमशः