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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Update Posted.कैसे कैसे परिवार और ससुराल की नयी दिशा कि कहानी मुझे पढ़ने में इतना मज़ा आया कि मैं क्या बताऊं बहुत मज़ा आया। हमें उम्मीद है कि अगला अपडेट जल्द ही देंगे। थैंक्यू
Update Posted.Bhai jaldi dedo update
Rozana dekhta hun khol kar
Update Posted.Ragini jaisi Koi mast kamuk aurat ho to sampark Karen Ham bhi thoda uske sath Baaja Baja len
Update Posted.Mast update bro
Aaj Ragini aur Madhavi ko bada maja aane wala hai
Nice post
Update Posted.You know very well that I'm your blind fan...... but if you don't mind, I have three requests.....
1. Please proceed the story by opening the sexual relationship among the family members one by one with a slow but steady way,
2. Include the servants and maids also..... as well as a Muslim family and lastly
3. All the families must be highly religious.
Please don't mind......it's only my suggestion because I've full faith on your exceptional quality writings and unimaginable ability...... have a nice day...... good luck...
Super update....ससुराल की नयी दिशा
अध्याय 35 : अविका का नया अनुभव
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अविका:
“मैं बुआ के पाँव संभालता हूँ, आप चूत सम्भालो.” पराग ने कहा तो अविका को समझ न पड़ा. पर तुरंत ही उसे इसका अर्थ समझ आ गया. पराग ने उसके दोनों पैरों को पकड़ा और फैला दिया. स्वाभाविक रूप से उन्हें इतनी दूर ले जाना सम्भव न था. पर पैरों को अपने शक्तिशाली हाथों से फैलाकर पराग ने लगभग १२० अंश का कोण बना दिया. अब अंकुर के लिए बुआ की चूत पूर्ण रूप से खुली हुई थी. वो बैठा और चूत पर जीभ फिराने लगा.
परन्तु इस आसन में ठहरना अधिक देर सम्भव न था.
पराग ने कहा, “भैया, ऐसे कठिनाई हो रही है और हाथ भी दुःख जायेंगे. मम्मी के ढंग से करते हैं.”
अंकुर ने अपनी जीभ को अविका की चूत से हटा लिया. वो तो अभी आरम्भ के दौर में ही था. दोनों भाई खड़े हो गए.
“बुआ, ऐसा करेंगे कि आप मेरा लंड चूस पाओ और भैया आपकी चूत. मम्मी को भी यही अच्छा लगता है.”
अब अविका क्या कहती?
पराग ने दो तकिये एक साथ लगाए और अविका बुआ से उन पर अपना सिर रखने के लिए कहा. अविका ने यही किया. फिर अंकुर ने सोफे की गद्दी को उठाकर अविका से गांड उठाने को कहा. गांड ऊपर होते ही उसके नीचे इस प्रकार से वो गद्दी लगा दी कि अविका की छूट उसके एक फुट बाहर थी. पराग ने अविका के सीने के पास अपने दोनों पैर किये जिससे उसका लंड अविका के चेहरे के सामने झूलने लगा. परन्तु पराग ने अपनी दोनों बाहें फैला लीं.
अंकुर ने बुआ के एक पैर को उठाया और उसे पराग की एक बांह के नीचे लगाया. पराग ने उसे अपनी बाँह बंद करते हुए जकड़ लिया. इससे पहले कि अविका कुछ और समझ पाती उसका दूसरा पैर अब पराग की दूसरी बाँह में बंद हो चुका था. अविका को अब समझ आया कि क्या हुआ है. अब उसकी चूत और गांड पूरी खुली हुई थीं और अंकुर अब उसके दोनों छेदों पर प्रहार करने की स्थिति में था.
पराग ने अपने लंड को बुआ के मुंह पर रगड़ा तो अविका ने मुंह खोलकर उसका स्वागत किया.
“बुआ, कोई कष्ट तो नहीं है न?” ये उसने पूछा अवश्य परन्तु अब अविका उत्तर देने की अवस्था में नहीं थी. उसका शरीर इस समय दूभर था, मुंह में लंड था और उसकी चूत पर अंकुर अपने हाथ और उँगलियों से छेड़खानी कर रहा था. ऐसी विवशता के चलते उसने इस कृत्य का आनंद लेने में ही भलाई समझी. वैसे भी संध्या का ये कथित रूप से सर्वप्रिय आसन जो था.
अंकुर ने बुआ की चूत पर अपनी उँगलियों से खेलते हुए उनके भग्न को भी छेड़ना आरम्भ कर दिया. अविका के रस से उसकी उँगलियाँ अब भीगने लगी थीं, और अभी तक तो उसने चूत में ऊँगली तक नहीं डाली थी. उसे विश्वास था कि बुआ आज की रात को सरलता से नहीं भुला पाएंगी.
अविका के मन में भी यही चल रहा था. इस प्रकार से उसे कभी किसी के साथ ऐसी भावना आई थी. अंकुर सच में एक विलक्षण कार्य कर रहा था. उसकी चूत में मानो चींटियां रेंग रही थीं, और वो विवश थी, न कुछ कह ही सकती थी, न कर ही सकती थी. उसने अंकुर को भग्नाशे को छेड़ते हुए एक उंगली से उसकी चूत का निरीक्षण करते हुए अनुभव किया. उसने अपनी गांड को सरकाते हुए इस कार्य में सहायता करनी चाही, पर वो हिल भी न पाई. एक ऊँगली से अंकुर उसकी चूत की गहराई नापने लगा. अविका का मुंह कुछ कहने को खुला पर पराग के लंड ने और अंदर जाकर उसकी चेष्टा को समाप्त कर दिया.
अब तक अंकुर ने दो उँगलियाँ उसकी चूत में डाल दी थीं. फिर उसे आभास हुआ कि अब उसकी चूत की फाँकों पर अंकुर की जीभ विचरण कर रही है. वो कसमसाई और अंकुर मुस्कुरा दिया. उनकी माँ भी ऐसे ही आचरण करती थी. आज बुआ को भी वही आनंद मिलेगा. पंखुड़ी तो आयु के कारण इस प्रकार के आसन के लिए उपयुक्त नहीं थी. पर माधवी और रिया को भी इसमें आनंद ही आता था. परन्तु दोनों भाइयों को जो सुख अपनी माँ संध्या के साथ आता था वो अवर्णनीय था.
अंकुर की जीभ ने अब धीरे धीरे उँगलियों का स्थान ले लिया था. बुआ की चूत इतना पानी छोड़ रही थी कि अंकुर को उसके स्वाद और सुगंध का पूरा सुख मिल रहा था. अपनी जीभ से वो अविका की चूत को चाटने में व्यस्त हो गया और पराग अपने लंड को चुसवाते हुए अपने सुख में लीन था.
अविका की चूत को बहुत देर तक चाटने के बाद अंकुर ने फिर से अपनी उँगलियों को उस रस भरी खाई में डुबोया. और उँगलियों को बाहर निकालकर उसकी गांड के छेद पर उस रस को फैलाया. अपनी जीभ को फिर से चूत में डालते हुए अब उसने एक ऊँगली को गांड में डालते हुए उसे चोदना आरम्भ कर दिया. उसके मुंह में फिर से एक तरल धार आ गिरी. अंकुर को ये संदेह था कि न तो अविका ही इस आसन में अधिक देर ठहर पायेगी, न ही पराग झड़ने से अब और रुक पायेगा. उस स्थिति के आने से पूर्व ही वो अविका की गांड को खोल देना चाहता था.
एक से दो उँगलियाँ करने के बाद जब उसने गति कुछ बढ़ाई तो अविका की गांड लहराने लगी. पराग की साँसे भी बता रही थीं कि वो अब झड़ने ही वाला है. उसने उँगलियाँ निकालकर अपनी जीभ से बुआ की गांड को टटोला और उसकी जीभ के अंदर जाते ही अविका की गांड हिलते हुए स्वतंत्र होने का प्रयास करने लगी.
“पराग बुआ की टाँगे छोड़ दो, धीरे से.” उसने कहा.
पराग ने एक एक करके दौनों टाँगों को नीचे कर दिया. बस अब अविका की गांड मचलते हुए उछालें लेने लगी. अंकुर को उन्हें संभालना कठिन हो गया. पराग ने उसे इस स्थिति से उबार लिया.
“बुआ, मैं झड़ रहा हूँ.” वो चिल्लाया.
और अविका कुछ भी न कर सकी. उसके मुंह में उबलता हुआ वीर्य अपनी पूरी शक्ति से गिरने लगा. उसने जितना सम्भव था पी लिया और कुछ मुंह में रुक गया, और जब उसने मुंह खोला जिससे कि पराग का लंड बाहर निकले तो वो उसके मुंह से निकलकर बहने लगा. अंकुर ने जीभ गांड से निकाली और अविका के पैर सीधे कर दिया. उसकी गांड की हलचल बंद नहीं हुई, पर अब अविका स्वतंत्र थी. कुछ देर तक यूँ ही छटपटाने के बाद वो संयत हो गई.
“वाओ, तो संध्या भाभी का ऐसे ध्यान रखते हो तुम दोनों? बहुत नटखट हो.” उसने साँसे संभालते हुए कहा. कुछ देर बाद वो फिर बोली, “पर मुझे भी अच्छा लगा. बिलकुल भिन्न और बहुत कामुक. तुम दोनों का धन्यवाद।”
“अरे बुआ, हमारा कर्तव्य है, मम्मी ने कहा था कि आज बुआ को जम कर चोदना और पूर्ण रूप से संतुष्ट करना. अब एक पड़ाव निकल गया. आगे और भी हैं.”
“आजा बेटा, तू अभी तक झड़ा नहीं है, मैं तेरा लंड भी चूसकर रस पी लूँ. फिर आगे सोचेंगे.”
इसके बाद अविका ने अंकुर के लंड को पुरे मन से चूसकर उसके रस को पी लिया. अब विश्राम का समय था. तो सबके पेग बन गए.
अविका: “सच में मैंने ऐसा आनंद पहले कभी अनुभव नहीं किया. विवशता कि मैं कुछ नहीं कर सकती थी, और तुम दोनों की कुशलता ने मेरे तन मन को ऐसा सुख दिया है कि जिसका वर्णन सम्भव ही नहीं है.”
अंकुर: “बुआ, मम्मी का भी यही विचार है. जब हमने ये एक पोर्न वीडियो में देखा था तो सोचा था कि एक बार प्रयत्न करना चाहिए. पहले दो बार तो इसमें उतने सफल नहीं रहे थे, पर मम्मी की प्रेरणा से तीसरी बार सफल हो ही गए थे. इसके बाद महीने में एक बार मम्मी एक बार अवश्य इसका अनुशरण करती हैं.”
अविका: “मैं जानती हूँ कि तुम दोनों चुदाई के लिए लालायित हो, पर क्या अपनी बुआ को एक बार यही आनंद फिर दे सकने के पक्ष में हो? फिर न जाने कब हमें इसका अवसर मिले.”
अंकुर और पराग की आँखें मिलीं और उनमें एक मूक संकेत हुआ.
अंकुर: “बुआ, जो आप चाहें. मम्मी ने आज हमें आपके आनंद का ध्यान रखने का आदेश दिया है. तो अवश्य ऐसा ही करेंगे. बल्कि इसके आगे भी कुछ और चरण भी हैं, उनसे भी आपको परिचित कराएँगे. आपको अवश्य ही उनसे भी सुख प्राप्त होगा.”
अविका का मन झूम उठा. उसने संध्या का मन ही मन धन्यवाद किया कि उसने अपने बेटों को ये निर्देश दिया था. वहीं उसे संध्या पर गर्व भी हुआ जिसने उन्हें इस प्रकार से आज्ञाकारी बनाया था. दूसरे पेग के लिए पराग ने ग्लास भरे. पराग और अंकुर के हाथ अविका की जाँघों को सहला रहे थे. अविका भी उनके लौडों को एक एक करके सहला रही थी. अब एक हाथ में ग्लास हो तो ऐसा ही होता है.
अविका ने घड़ी देखी तो चौंक गई. अब तक वो डेढ़ घंटे से थे, और चुदाई का आरम्भ भी नहीं हुआ था. उसने ये सोचकर कि आज की रात बहुत लम्बी होने वाली है, एक गहरी सांस लेकर अपना दूसरा पेग समाप्त किया और उठ गई. अंकुर और पराग भी उसके साथ खड़े हो गए. अब बुआ की फिर से उसी प्रकार से आनंदित होने का समय जो आ गया था.
अविका को ये अपेक्षा थी कि इस बार दोनों भाई अपने स्थान बदलेंगे. पर ऐसा कुछ न हुआ. उसे स्मरण था कि पराग को भी उसकी चूत और गांड चाटने में आनंद आया था. तो फिर आज क्यों वो इसमें रूचि नहीं ले रहा था? फिर उसने अपने मन से इस अनावश्यक प्रश्न को निकाल दिया. कुछ ही पलों में उसी आसन में अविका के दोनों पैर पराग की बाँहों में दबे हुए थे और उसकी चूत और गांड में अंकुर की जीभ और उँगलियाँ थिरक रही थीं.
अविका फिर से उसी आनंद की अनुभूति कर रही थी. उसकी सिसकारियां और मुंह से निकलती आनंद के स्वर उसके लंड में समाये हुए लंड के कारण अधिक तीव्र नहीं सुनाई दे रहे थे. ललिता ने जब कमरे में परवश किया तो वो भी हतप्रभ रह गई. ये तो अनूठा ही आसन था. इतनी महान चुड़क्कड़ होने के बाद भी इस प्रकार से तो उसकी कभी चुदाई ही नहीं हुई थी. उसने कैमरे में इस नए आसन को इंगित करना आरम्भ कर दिया. तीनों प्रेमी उसकी उपस्थिति से अनिभिज्ञ अपनी कामक्रीड़ा में मग्न थे.
जब अविका को चूत और गांड को अपनी संतुष्टि तक अंकुर ने चाट और चूस लिया तो अब अगले चरण की ओर उसका बढ़ने का विचार आया. अविका को ये न दिखा कि अंकुर ने पराग की पीठ पर हल्की सी थपकी दी, पर ललिता ने देखा और वो पास चली आई. अवश्य कुछ नया होने की आशंका जो थी. अंकुर ने उसकी आहट सुनी और उसकी ओर देखा. उसके भीगे हुए चेहरे पर एक मुस्कुराहट छा गई, पर ललिता ने उसे मौन रहने का संकेत दिया.
अंकुर ने अपनी ऊँगली के संकेत से ललिता को लंड चूसने के लिए आमंत्रित किया और बताया कि उसके लंड का अगला लक्ष्य क्या था. उसने खड़े होते हुए कैमरा अपने हाथ में लिया और ललिता ने अब देर न लगाई और गप्प से उसके लंड को मुंह में लिया और चूसने लगी. अंकुर ने कैमरा उसकी ओर कर दिया. अविका को समझ नहीं आ रहा था कि चल क्या रहा है, और पराग के कारण वो देख भी नहीं सकती थी.
अंकुर ने अपने लंड को ललिता के मुंह से निकाला और उसे मूक भाषा में समझाया कि वो क्या चाहता है. ललिता ने मुस्कुराते हुए उसे स्वीकृति दी और कैमरा ले लिया.
“बुआ, अब अगला चरण आरम्भ हो रहा है, पराग बुआ के मुंह से दो मिनट के लिए लंड निकालो, उसके बाद फिर डाल देना.” अंकुर ने कहा तो पराग समझ गए कि उनकी माँ के समान अब बुआ की भी चुदाई होने वाली है. अब ये पता नहीं था कि अंकुर पहले चूत चोदेगा या गांड मारेगा. उसने लंड निकाला और अपने भाई के निर्देश की प्रतीक्षा करने लगा.
अंकुर ने इस बार फिर से इस स्थिति का चयन इसीलिए किया था कि वो अपनी बुआ की गांड इस आसन में मारना चाहता था. इस आसन में गांड अत्यधिक तंग होती है. जिस राह पर कई लंड विचरण कर चुके हों उसके खुल जाने के कारण इतना आनंद कई बार नहीं मिलता जितनी अपेक्षा रहती है. ललिता ने कैमरे को केंद्रित किया हुआ था. अंकुर ने अपने लंड को अविका की चूत पर रखकर रगड़ा तो अविका को लगा कि उसकी चूत की प्यास मिटेगी. परन्तु अंकुर का ध्येय मात्र अपने लंड को गीला करने तक ही सीमित था.
इस बार अंकुर ने लंड से अविका की गांड को टटोला. और फिर धीरे से लंड को गांड में डालना आरम्भ किया. जैसा अपेक्षित थे रास्ता सरल नहीं था, गली तंग थी और राह कठिन. पर अंकुर ने अपने लंड पर दबाव बनाये रखा और कुछ ही पलों में पक्क की ध्वनि के साथ ही उसके लंड का सुपाड़ा गांड में प्रवेश कर गया. अविका की सीत्कार निकली और पराग समझ गया कि भाई ने लंड पेल दिया है.
“ओह, माँ. मेरी गांड! उउउह मेरी गांड!” अविका ने चेताया कि लंड उसकी गांड में जा रहा था.
पराग को कुछ मायूसी हुई कि उसके भाई ने गांड मारने का निर्णय लिया, जिसका वो भी अभिलाषी था. पर परिवार में किसी प्रकार की भी परस्पर ईर्ष्या नहीं थी. अंकुर ने अपने लंड के दबाव को समान रूप से बनाये रखा और लंड बुआ की गांड में अंदर जाता रहा. ललिता इस पूरे परिक्रम को सदा के लिए रिकॉर्ड कर रही थी और सोच रही थी कि क्या उसे भी इस प्रकार से चुदने का अवसर शीघ्र मिल पायेगा.
जब लंड पूर्ण रूप से गांड में स्थापित हो गया, तब अंकुर ने फिर से पराग की पीठ थपथपाई. पराग ने बुआ के मुंह पर लंड लगाया तो अविका ने बिना झिझक उसके लंड को मुंह में ले लिया. उसे इस समय अपनी गांड में हो रहे अकल्पनीय संवेदन से मन भटकाने के लिए कुछ तो चाहिए ही था. अंकुर अब अपने लंड को धीमी गति से बुआ की गांड में चलाने लगा. परन्तु उसे इस ललिता की उपस्थिति का भी ज्ञान था. वो ये भी समझ रहा था कि वे अधिक देर तक यहाँ रुकेंगी भी नहीं.
इसीलिए उसने दो तीन मिनट के ही बाद अपने लंड को निकाला और ललिता की ओर देखा. ललिता ने उसे कैमरा थमाया और उसके लंड को मुंह में लेकर चाटा। पर इस बार उसने लंड को गांड पर न लगाते हुए अपनी प्रिय भाभी की गांड के छेद को भी चाटा और अपनी जीभ से उसे छेड़ा. इस कारण अविका की तंद्रा भंग हो गई. वो जान गई कि ये अंकुर तो कदापि नहीं है.
अंकुर के हाथ से कैमरा लेकर उसने फिर से उस मिलन स्थल पर केंद्रित किया और अंकुर ने अपने लंड को अपनी बुआ की गांड में फिर से उतार दिया.
ललिता अब अविका के सामने आई. कैमरा हाथ में देखकर अविका ललिता का प्रयोजन समझ गई. उसने लंड को मुंह से निकाला और कैमरे को देखकर मुस्कुराई.
“तुम्हें भी इसका आनंद लेना चाहिए, ललिता. सच में ये दोनों अद्भुत हैं.” अविका ने कहा.
ललिता ने उसके होंठ चूमे, “विश्वास रखो, ये भी शीघ्र ही होगा. अब आप आनंद लो, मैं चली अगले कमरे में. फिर उसने पराग को आँख मारी और अगले कमरे के लिए चल पड़ी.
क्रमशः