ससुराल की नयी दिशा
अध्याय ३६: सास, बहू और साजिश
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संध्या, रिया:
“हाँ, अब हम क्या करें, मामी. आप हम सबको विवश जो कर रही हैं.” हँसते हुए देवेश ने कहा और फिर अपने कपड़े उतारने लगा. अनुज और अनिल ने उसकी देखा देखी अपने कपड़े भी उतार फेंके.
इसके बाद तीनों आगे बढ़े और उन्होंने संध्या और रिया को तीन दिशाओं से घेर लिया.
देवेश और अनुज ने संध्या और रिया को आगे से पकड़ा और उनके होंठ चूसने लगे. कुछ ही देर में संध्या में मुंह से एक किलकारी निकली और उसकी हंसी छूट गई. उसकी गांड में किसी ने अपनी जीभ जो डाल दी थी.
“क्या हुआ, मामी?” देवेश ने निर्बोध भाव से पूछा.
“ये, ये, ये अनिल मेरी गांड को चाट रहा है. गुदगुदी हो रही है.” संध्या ने उत्तर दिया.
“ओह, अनिल है. वो गांड का रसिया है. आपकी गांड वैसे भी बहुत मस्त है मामी. कोई भी उसे चाटे और चोदे बिना नहीं रह सकता.”
रिया ने इस बार उत्तर दिया, “मम्मीजी की गांड को चाटने और चोदने वालों की कमी नहीं है. न जाने आज उन्हें क्यों गुदगुदी हो रही है? उउउह उई माँ!” ये कहते हुए वो भी चेहरा संध्या जैसे ही हंस पड़ी.
“अब समझी!” संध्या ने पूछा, क्योंकि अब उसकी गांड से जीभ निकल चुकी थी और अब रिया की गांड का सेवन कर रही थी.
“जी, जी, जी! उउउह, सच में अनिल भैया ने तो कुछ नया ही ढंग चुना है गांड चाटने का.” रिया ने खिलखिलाते हुए कहा.
उनके पीछे स्थित अनिल अपने प्रशंसा सुनकर और भी उत्साहित हो गया और दोनों की गांड को बारी बारी से अपनी जीभ से छेड़ने लगा. देवेश और अनुज ने होंठ चूमते हुए संध्या और रिया के मम्मों को भी दबाना आरम्भ कर दिया था.
“क्या हमें बिस्तर पर अभी चलना चाहिए? या एक दो पेग हो जाएँ?” अनुज ने पूछा.
देवेश, “एक दो पेग हो जाएँ तो अच्छा रहेगा. रात पूरी है अपने पास मामी और रिया को चोदने के लिए. मामी, अपने बहू अच्छी चुनी है. सुंदर और चुदक्क्ड़. मेरी दिशा के समान.”
“और मेरी पल्लू जैसी भी.” अनुज ने अपनी पत्नी का पक्ष लिया.
“बिलकुल, पल्लू की भी कोई तुलना नहीं है. तीनों बहुएँ एक से बढ़कर एक हैं.”
संध्या ने रिया को प्रेम से देखा, “सच कहते हो. हम तो रिया को पाकर धन्य हो गए हैं. इसने ही हमारी आँखें खोलीं, नहीं तो हम यहाँ कभी न आ पाते। तुम्हारे मामा को अब इतने दिनों तुम सब से दूर रहने का बहुत दुःख है.”
“पुरानी बातें छोड़ो मामी, आओ, पहले एक एक ड्रिंक लेते हैं. फिर आगे की सोचेंगे. पीछे मुड़कर देखने से दुःख ही होगा.”
पाँचों सोफे की ओर चले और अनिल सास बहू की गांड को निहारते हुए उनके पीछे था. पेग बनाये गए और फिर सब विश्राम की मुद्रा में चुस्कियाँ लेने लगे.
संध्या: “अनिल, तुम्हें ये गांड का चस्का कैसे लगा. तुम सच में इस कला के महारथी लगते हो.”
अनिल ने देवेश की ओर देखा, “इसके लिए देवेश भैया उत्तरदाई हैं.”
देवेश चौंक गया, “मैंने क्या किया?”
अनिल: “प्रत्यक्ष रूप में नहीं. इसके लिए हमें कुछ वर्ष पहले जाना होगा. तब आप अमेरिका में थे.”
सब उसकी बात को ध्यान से सुनने लगे.
अनिल: “एक रात जब हम सब सोने जा चुके थे तो मेरी नींद नहीं लग रही थी. मैंने सोचा कि अगर मम्मी की एक बार चुदाई कर लूँ तो नींद आ जाएगी. तो मैं मम्मी पापा के कमरे में जाने लगा. वहाँ पहुँचकर अंदर से पहले ही चुदाई का संगीत सुनाई दे रहा था. हम वैसे भी कई बार मम्मी को एक साथ चोद चुके थे, पर आज न जाने क्यों मुझे उनको अकेला चोदने का मन था. पापा ने तो कोई आपत्ति करनी नहीं थी. तो मैंने अंदर जाने के स्थान पर वहीं रहकर देखने का निर्णय लिया.”
अंदर झाँका तो पापा मम्मी की कसकर गांड मार रहे थे और अंतिम धक्के लगा रहे थे. देखते ही देखते वो झड़ गए और मम्मी की गांड से लंड निकालकर उनकी बगल में लेट गए.
“कैसा लगा, अवि?”
मम्मी ने उन्हें चूमा, “बहुत अच्छा, आज अपने बहुत जोर से मारी मेरी गांड. कोई बात है क्या?”
“देवेश से गांड मरवाने से अधिक आनंद आया?” पापा ने पूछा तो मम्मी ने एक गहरी सांस ली.
मम्मी: “आप जानते हो कि मुझे आपसे गांड मरवाना और चुदना कितना सुखदाई लगता है. अब क्यों बीच बीच में देवेश को ले आते हो? वो तो अब कब का जा चुका है. अमेरिका से लौटेगा भी या नहीं किसे पता? आप उसके साथ अपनी तुलना करते ही क्यों हो?”
अब सबके कान खड़े हो गए. देवेश के तो चेहरे पर अकथनीय भाव थे. वो अनिल को देख रहा था.
“नहीं, ऐसा नहीं है. मुझे अपने भांजे से तुलना नहीं करनी. पर मैं ये भी जानता हूँ कि तुम्हें उससे विशेष प्रेम है. तुम पहले उसके गांड मारने के ढंग की बहुत प्रशंसा करती थीं.” भानु ने कहा.
अविका: “हाँ, विशेष प्रेम है. परिवार का पहला लड़का जो था जिसने मुझे चोदा था. उसे चोदना भी मैंने ही सिखाया था. और उससे गांड मरवाने में मुझे अनंत सुख मिलता है. वो मानो मेरी गांड के हर रोम से परिचित है. इसका अर्थ ये नहीं है कि मुझे आप, महेश जी, और अपने अन्य बच्चों से चुदने में आनंद कम आता है. बस क्योंकि उसे शिक्षित किया था तो उसके साथ सहवास का आनंद अलग ही है.”
“मैं समझ सकता हूँ. वैसे वो लौटेगा अवश्य. वो वहाँ नहीं रह पायेगा अधिक दिनों तक. मेरा अटूट विश्वास है.”
“हाँ, ललिता भी यही कहती है. आजकल तो उसने एक दिशा नाम की लड़की के साथ रहना आरम्भ कर दिया है. लड़की भारतीय है तो लौट सकते हैं दोनों.”
अनिल: “इसके बाद मैं वहां से अपने कमरे में आ गया. मैंने निर्णय लिया कि मैं भी भैया के समान गांड का विशेषज्ञ बनूँगा। उसके बाद मैंने इंटरनेट पर जाकर इस विषय में पी एच डी किया और तीन सप्ताह तक गांड की ओर देखा भी नहीं.”
सब इस बात पर हंस पड़े.
“फिर क्या हुआ?” देवेश ने पूछा.
अनिल: “जब मुझे लगा कि मैं अब इस कला में उपयुक्त ज्ञान ले चुका हूँ, तो मैंने उसे एक रात मम्मी पर प्रयोग किया. हालाँकि मैंने अब तक उस ज्ञान को व्यवहार में नहीं लाया था. परन्तु मैंने उस रात पूरी श्रद्धा के साथ जो सीखा था उसका उपयोग किया. अब ये कहना कि मम्मी मेरी इस नयी कला से अचम्भित नहीं हुई गलत होगा. उन्होंने जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दी, उसने ये सिद्ध कर दिया कि मैं सही राह पर था. इसके बाद मैंने हर बार उनकी गांड पर ही ध्यान लगाया और अंत में मम्मी ने मान लिया कि मैं सम्भवतः देवेश भैया से श्रेष्ठ हूँ, हालाँकि उन्होंने ऐसा कहा नहीं, पर मुझे इस बात का अनुमान है.”
“हम्म्म, तो ये है तुम्हारा रहस्य!” अनुज ने हँसते हुए कहा.
अनिल: “हाँ, और इसका प्रमाण मुझे कुछ दिनों बाद मिला. जब मम्मी ने मुझे दादी के लिए चुना. तब तक दादी ने किसी को अपनी गांड छूने तक नहीं दी थी. पर मम्मी ने उन्हें मना ही लिया था. और मुझे इसका दायित्व दिया. उनके इस विश्वास को पूरा करने में मैंने कोई कमी नहीं की. पहले कुछ दिन तक तो दादी की गांड मारने का मेरे सिवाय किसी को भी अवसर नहीं मिला. फिर दादी भी रंग में रंग ही गयीं. तो पापा ने पहले और अनुज भैया ने उसके बाद उनकी गांड मारने का आनंद लिया. अब तो आप जानते ही हो कि गांड मरवाये बिना दादी सोती ही नहीं हैं!”
इस बात से भी सबको हंसी आ गई. फिर एक पेग और बनाया गया.
देवेश: “ये सारी बात सुनकर मैं सोच रहा था कि क्यों न आज पहले गांड मारने का अवसर अनिल को ही दिया जाये. मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर अनुज को भी स्वीकार करना होगा.”
अनुज: “अब अपने पी एच डी भाई के परिश्रम और लग्न को देखकर मैं कैसे मना कर सकता हूँ, भला?”
अनिल के चेहरे की मुस्कुराहट ने सबके मन को जीत लिया. दूसरा पेग समाप्त होते ही सब खड़े हो गए. अनुज की आँखें रिया पर थीं. अब देवेश को फिर बड़े भाई का कर्तव्य निभाना पड़ा. उसने अनुज को धीरे से रिया की ओर धकेला. अनुज ने उसकी ओर देखा और मूक धन्यवाद दिया.
“ऐसा करते हैं कि मैं और रिया दोनों के लंड चूसते हैं और अनिल हमारी गांड पर अपनी पी एच डी का ज्ञान उपयोग में लाये.” संध्या ने बोला।
देवेश: “तो अनिल, अपनी पी एच डी में एक साथ दो गांड मारने पर भी कोई शोध किया था या नहीं?”
अनिल हंसकर, “नहीं भैया, इसीलिए तो डॉक्टर की उपाधि नहीं मिली. पर लगता है आज इसका भी समाधान हो जायेगा.”
रिया ने ऐसा मुंह बनाया जैसे वो आश्चर्य में पड़ गई हो.
रिया: “सुना आपने मम्मीजी? ये आज दोनों की गांड एक साथ मारने वाला है. आपका रस मेरी गांड में डालेगा और मेरा आपकी में.”
“हाँ, सुन लिया. पर देखेंगे टिकेगा कितनी देर. हम दोनों को एक अकेला ही नहीं चोद पाता है और ये दोनों की गांड मारने का पराक्रम करने वाला है.” संध्या बोली.
देवेश: “आपको लग रहा है कि ये हार जायेगा? तो मैं बता दूँ कि इसकी क्षमता बहुत है. और गांड मारने मिल जाये तो वो कई गुना बढ़ जाती है.”
देवेश ने बिस्तर पर बैठकर पीछे सहारा लेते हुए अपने पैरों को फैला लिया. उसका लंड अब तन रहा था. अनुज भी उसके साथ उसी मुद्रा में बैठ गया. संध्या ने पहले अनुज को फिर देवेश को देखा. देवेश ने उसे आँखों से पुकारा और वो उसके पास चली गई. रिया ने अनुज के पास जाकर उसके होंठ चूमे.
“आज भरपूर चुदाई करना देवरजी, कई छेद न बच पाए. रात भर रगड़ रगड़ कर चोदना। अब तक सब मुझे छुई मुई के समान चोद रहे थे. आज पूरी रात जम कर चोदो, सुबह चलने की स्थिति भी न रहे.” रिया ने उसके कान में फुसफुसाया.
“हम सब यही करने वाले हैं, भाभी. आप बस चुदने वाली बनो.” अनुज ने उसे चूमते हुए बोला। देवेश और संध्या ने भी उनकी बातें सुनी।
देवेश: “आपकी क्या इच्छा है, मामीजी?”
संध्या: “जो मेरी बहू की है. मसल दो आज की रात हम दोनों को.”
“जैसी आपकी इच्छा. अब लंड चूसिये. डॉक्टर साहब बेचैन हो रहे हैं.”
“भैया! आप मेरी खिल्ली उड़ा रहे हो!” अनिल ने हंसकर बोला।
संध्या और रिया ने उपयुक्त आसन बनाया और अपने सामने परोसे गए लौडों को चाटना आरम्भ किया. अनिल के लिए उन दोनों ने गांड उठाकर लहराई और फिर ऊंचाई पर ही रहने दी. अनिल के मुंह में पानी आ गया. एक नहीं, दो दो सुंदर गांड उसके सामने थीं और दोनों उसके लिए ही समर्पित थीं. उसने अपने लंड को सहलाकर शांत करने का प्रयास किया पर वो उल्टा और कड़क हो गया. उसने पहले संध्या की गांड पर हाथ फेरा. कितनी चिकनी गांड है, मामी की. फिर उसकी दृष्टि रिया की सुडौल गांड पर पड़ी. आह, ये तो और अधिक चिकनी और गोल गोल है. उसके मुंह से लार टपकने लगी.
संध्या और रिया ने कुछ देर तक तो लौडों को चाटा और फिर मुख्य कार्यकम पर आ गयीं. अपने मुंह में लेकर दोनों एक दूसरे को देखते हुए लंड चूसने लगी. ऐसा लगता था कि वे किसी स्पर्धा में हों. संध्या और रिया की गांड को अपने हाथों से सहलाने के बाद अनिल ने संध्या के पीछे स्थान ग्रहण किया. गांड को उँगलियों से छेड़ते हुए उसने अपना आशय बता दिया. संध्या की गांड इसके फलस्वरूप लुप लुप करने लगी.
गांड के छेद के ऊपर उँगलियाँ चलाते चलाते अनिल अपनी जीभ से उसे चाटने लगा. गांड और अधिक लप्लपाने लगी. कुछ देर तक इसी प्रकार से गांड को केवल ऊपर से चाटकर वो हट गया. संध्या कसमसाई. पर अनिल हट चुका था और अब वो इसी प्रक्रिया को रिया की गांड पर निभा रहा था. रिया की भी गांड से उसी प्रकार की प्रतिक्रिया दी. दोनों गांड को ऊपर से चाटने के बाद अनिल हटा और इस बार फिर से संध्या के पीछे आ गया.
अपनी छोटी ऊँगली को मुंह से गीला करने के बाद अनिल ने उसे संध्या की गांड में धीरे से डाला और अंदर बाहर करने लगा. कुछ देर बाद उसने ऊँगली निकाली, फिर मुंह में डाली और इस बार उसका लक्ष्य रिया की गांड थी. रिया उसके दायीं ओर थी और संध्या बायीं. तो उसने इस बार अपने बाएं हाथ की एक ऊँगली को मुंह में डालकर संध्या की गांड को कुरेदना पुनः आरम्भ किया. उसे इस खेल में आनंद आ रहा था. अब वो दोनों की गांड में ऊँगली करता, फिर मुंह में डालकर भिगोता और फिर गांड में डाल देता.
कुछ देर तक इस प्रकार से खेलने के बाद दोनों की गांड खुल गयी थी. अब अनिल ने एक एक करके दोनों की गांड में अपनी जीभ से आक्रमण किया. संध्या और रिया अपने मुंह में घुसे लौडों को और भी तीव्रता से चूसने लगीं थीं. अचानक संध्या की मानो साँस ही रुक गई. अनिल ने उसकी गांड को अपने दोनों हाथों से खोल दिया था और अब वो उसमें अपने होंठों को गोल करते हुए फूँक रहा था. ठंडी हवा के प्रवाह से गांड सिकुड़ने लगी थी. पर अनिल की उँगलियों ने इस चेष्टा पर रोक लगा दी थी.
“उई उई उई उई माँ!” संध्या के मुंह से निकला. ऐसी अनुभूति उसे पहले कभी नहीं हुई थी. “ये क्या कर रहा है?”
“शोध.” देवेश ने हँसते हुए कहा.
“उफ्फ्फ! मेरी गांड को क्या हो रहा है?” संध्या अपनी गांड मटकाते हुए अनिल की फूँक से हटने का प्रयास करने लगी. परन्तु अनिल ने ऐसा कहाँ होने देना था. उसने संध्या की गांड में थूका और ऊँगली से उसे अंदर डाला और फिर से फूँक मारने लगा. संध्या की गांड सिकुड़ गई. और अनिल ने उसे छोड़ दिया.
तभी ललिता ने अपने कैमरे के साथ अंदर प्रवेश किया. और तुरंत ही रिकॉर्डिंग करने लगी. उसका बेटा संध्या से लंड चुसवा रहा था, और एक भतीजा रिया से. दूसरा भतीजा रिया की पीछे था.
अब रिया की बारी थी अनिल से गांड में फूँक डालने की और रिया की प्रतिक्रिया भी बहुत भिन्न नहीं थी. उसने केवल अपनी सासू माँ और अपनी माँ को पुकारा. दोनों के मुंह में अभी लंड नहीं थे. जब उन्होंने एक दूसरे को देखा तो अपने होंठ जोड़ लिए.
“क्यों रिया? संध्या? कैसा लगा अनिल का ये खेल?” ललिता ने पूछा.
संध्या: “सच में आनंद आ गया, अभूतपूर्व आनंद.”
रिया: “सच में, ऐसी अनुभूति कभी नहीं हुई थी.”
अनिल ने जब रिया की गांड को छोड़ा तो उसने अपने लंड को देखा, जो अब पूरा तना हुआ था.
“भैया, मामी की गांड मारने जा रहा हूँ. आप उन्हें संभालना.” अनिल ने संध्या की चूत में ऊँगली डालते हुए उसके रस को अपने लंड पर लगाया. संध्या की गांड अभी भी सिकुड़ी हुई थी पर इसका भान उसे न था. और अनिल को संकरी गांड को मारने में अत्यधिक आनंद आने वाला था.
ललिता ने कैमरे को अनिल के लंड और संध्या की गांड पर केंद्रित किया.
अनिल ने संध्या मामी की गांड पर लंड लगाया तो ललिता बोली, “पेल दे एक ही बार में पूरा.”
“जी, बुआ जी.” अनिल ने कहा. संध्या ने अपने मुंह से देवेश का लंड निकालकर आपत्ति जताने का प्रयास किया पर देवेश ने उसके सिर पर हाथ रखा हुआ था. एक हाथ माथे पर था. वो अनिल की ओर देख रहा था.
अनिल ने लंड को गांड में डाला और जैसे ही सुपाड़ा अंदर गया तो एक शक्तिशाली धक्का मारा. देवेश ने सिर पर से हाथ हटाया और माथे पर रखे हाथ से संध्या के सिर को ऊपर करते हुए उसके मुंह से अपने लंड को निकाल लिया. अन्यथा संध्या उसके लंड को चोटिल कर सकती थी.
“उई माँ, मर गई!” संध्या की आर्तनाद ने कमरे को हिला दिया.
अनिल ने अपने लंड को बुआ के निर्देशानुसार पूरा जड़ तक संध्या की गांड में स्थापित कर दिया था.
ललिता ने कुछ और समय इस कमरे में रिकॉर्डिंग की फिर वो अपनी बेटी और पल्लू के कमरे की ओर चली गई. उसके मन में जो कुछ यहाँ एक चलचित्र की भाँति चल रहा था.
ललिता ने क्या क्या देखा था वो आपको जानने की उत्सुक्तता होगी. मुझे भी है. तो लौटेंगे यहाँ फिर से.
क्रमशः