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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Swagat hai bhai aur kuch sujhav ho to zaroor dena, ab to apani har update par apka feedback chahiye mujheअब मैं दूसरी कहानियाँ ही पढ़ रहा हूँ. कई कहानियों में पीछे रह गया हूँ. अब लिखना छोड़ दिया है, तो पढ़ने पर ही ध्यान दूँगा।
अब लिखना छोड़ दिया है - Aisa naa kaho dost....hope aap jab poori stories ko padh kar poora kar denge to hope you'll be refreshed and come back with a Bang!!अब मैं दूसरी कहानियाँ ही पढ़ रहा हूँ. कई कहानियों में पीछे रह गया हूँ. अब लिखना छोड़ दिया है, तो पढ़ने पर ही ध्यान दूँगा।
Swagat hai bhai aur kuch sujhav ho to zaroor dena, ab to apani har update par apka feedback chahiye mujhe
अब लिखना छोड़ दिया है - Aisa naa kaho dost....hope aap jab poori stories ko padh kar poora kar denge to hope you'll be refreshed and come back with a Bang!!
Intezaar rahega....I am sure, others are also waiting for you to make a comeback!!
intezaar rahega aapke waapsi kaa...kehte hain naa...Umeed pe duniya kaayam hainदेखेंगे। ऐसा हुआ तो वनवास समाप्त भी कर सकते हैं.
परन्तु ऐसी आशा नहीं है.
Adbhut writing,gr8ससुराल की नयी दिशा
अध्याय ३: ससुराल
रागिनी ये सुनकर रोने लगी तो नलिनी और लव ने उसे अपने बाँहों में समेट लिया. एक दूसरे को चूमते हुए वो कुछ देर के लिए सो भी गए. फिर उठे तो लव ने उन्हें खाने के लिए पूछा.
“ओह, मैं तो भूल ही गयी. मैं बनाती हूँ. तुम दोनों यहीं रुको.” ये कहकर नलिनी किचन में चली गयी और माँ बेटा एक दूसरे से लिपटे हुए चूमा चाटी करने लगे.
अब आगे:
जयेश और रितेश के जाने के सभी प्रबंध हो चुके थे. सोमवार की सुबह वे दोनों निकलने वाले थे, अगले तीन दिन परिवार एक साथ ही सब कुछ करने वाले थे. सब कुछ. और इसीलिए आज शाम से वो अपने माता पिता के कमरे में ही थे. ललिता अपने पूरे मेकअप में थी और इस समय वो इन बड़े बच्चों की माँ बिलकुल भी नहीं लग रही थी. दिशा उसे देखकर उसकी आयु में उतनी ही सुंदर और ऊर्जावान रहना चाहती थी. काम्या ने भी हल्का मेकअप किया हुआ था और उसकी सुंदरता भी निखर रही थी. दिशा ने स्वयं भी हल्का मेकअप लगाया हुआ था. कुल मिलकर तीनों महिलाएं अपनी सुंदरता की छटा बिखेर रही थीं.
अब पुरुष वर्ग भी कुछ कम नहीं था. अपने सुगठित शरीरों पर उन्होंने टी-शर्ट और जीन्स पहनी हुई थीं और उनकी मांस पेशियाँ उन कपड़ों में समा नहीं रही थीं. जींस में उनके लंड के उभार भी दिख रहे थे और इसमें कोई संदेह नहीं था कि वे आज के खेल के लिए पूर्ण रूप से उत्साहित थे. देवेश के अनुसार उनके परिवार में अधिकतर सभी लोग एक साथ ही चुदाई करते थे. हालाँकि अलग से चुदाई करने पर कोई रोक नहीं थी, पर ललिता की अनंत वासना के कारण उसे एक बार की चुदाई से संतुष्टि नहीं मिलती थी. दिशा के आने से उसके लिए एक प्रकार से कुछ व्यवधान आया था पर किसी ने इसके बारे में मुखर होकर कुछ नहीं कहा था.
सभी अपनी ड्रिंक लिए हुए बातें कर रहे थे. दिशा को उसके दोनों देवर घेरे हुए थे.
“भाभी, आपकी मम्मी को भी हमारे साथ आना चाहिए. अब कॉलेज भी बंद हैं और उन्हें अकेलापन काटता होगा.” रितेश बोला।
“पर भैया, फिर हम सबके खेल का क्या होगा?” दिशा ने अपनी चिंता बताई.
जयेश के चेहरे पर एक षड्यंत्रकारी मुस्कान आ गयी.
“भाभी, अगर मैं और भाई, उन्हें अपने साँचे में ढाल लें तो ये सम्भव है. वैसे भी आपके पापा की मृत्यु के बाद वे अकेली ही हैं.”
दिशा को नलिनी के व्यभिचार भरे जीवन के बारे में कोई ज्ञान नहीं था. उसे भी लगा कि उसकी माँ भी न जाने कितने ही दिनों से शारीरिक सुख से वंचित है. अपनी सास की ओर देखकर उसे लगा कि अगर उसकी माँ भी अपने जीवन का आनंद ले तो इसमें कोई बुराई नहीं होनी चाहिए.
“क्या सोच रही हो भाभी?” जयेश ने अपनी ड्रिंक का एक घूंट लेते हुए पूछा.
दिशा ने सोचते हुए गिलास मुंह में लगाया और एक ही बार में उसे खाली कर दिया और जयेश को दिया.
“अगर तुम इस ग्लास और मेरी माँ के सुने जीवन को भर दो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी.”
जयेश ने ग्लास लिया और एक नया पेग बनाकर दिशा को दे दिया. दिशा सोच रही थी कि यहाँ आने के बाद उसके पीने की मात्रा बढ़ गयी है. पर किसी को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी. सब घर के ही लोग थे, और बाहर के लोगों के सामने महिलाएं कभी नहीं पीती थीं.
जयेश, “भाभी, हम प्रयास करेंगे कि आंटीजी को अपने ढंग में ढाल सकें, और मुझे विश्वास है कि भाई और मैं इस कार्य में सफल होंगे. आपको ये सोचना है कि जब वे हमारे साथ यहाँ आएंगी, तब क्या करना है.”
“व्ही, जो तुम सबने मेरे साथ किया. माँ को उसी कमरे में रखना और धीरे धीरे उन्हें हमारे खेल से परिचित कराना। आप लोगों का योजना जिस प्रकार से मुझे आप सबसे मिला पायी, तो माँ को भी मिला ही देगी, अगर आप दोनों अपने काम में सफल हुए. पर ये ध्यान रखना कि माँ मेरी मौसी से बहुत निकट हैं और मेरे मौसा बहुत उच्च पद पर हैं. वे इस काम में बढ़ा उतपन्न कर सकते हैं.”
“ओके भाभी, वैसे आपके मौसा जी कौन हैं. पापा प्रदेश के लगभग सभी उच्च अधिकारियों को जानते हैं.”
“निमिष गिरी.”
जयेश अपने पिता के पास गया और उनसे पूछा कि क्या वो निमिष गिरी को जानते हैं? महेश ने हामी भरी तो जयेश महेश के साथ दिशा के पास आ गया.
महेश: “क्या हुआ बहू, ये निमिष गिरी को तुम कैसे जानती हो?”
दिशा: “वो मेरे मौसा हैं.”
महेश का मुंह खुला रह गया.
“क्या?”
“जी, वो मेरे मौसा हैं.”
“बहू हम कल इस विषय में बात करेंगे. मैं उनसे अच्छे से परिचित हूँ. पर उनकी बात आयी कहाँ से.”
रितेश ने अपने पिता को अपनी योजना से अवगत कराया. महेश सोच में पड़ गया.
“मेरे विचार से तुम अपनी योजना में सफल हो पाओगे. मुझे तो ये भी लगता है कि तुम दोनों दिशा की मौसी पर भी हाथ साफ करने में सफल होंगे.”
“बाबूजी!” दिशा इस बात से सकते में आ गयी.
“दिशा, हम कल बात करेंगे. पर मैंने जो कहा वो सच है.”
ललिता अब कुछ बेचैन होने लगी थी. उसकी चूत और गांड में खुजली हो रही थी और अन्य सभी ऐसे बातों में लगे थे जैसी उन्हें ललिता की कोई सुध ही नहीं थी. सब दिशा को घेरे खड़े थे. वो उस ओर जाने लगी तो काव्या ने उसे रोक लिया.
“मम्मी, वे लोग कुछ आवश्यक बातों में लगे हैं. भैया पापा को भी ले गए हैं. आप कुछ देर शांति रखो. आओ मैं आपका नया पेग बनती हूँ.”
“ठीक है. देवेश कहाँ गया.”
“भैया बाथरूम गए थे, बड़ी देर हो गयी. क्या करने लगे?”
तभी देवेश बाथरूम से बाहर आया.
“कहाँ चला गया था तू?”
“अरे गया तो बाथरूम ही था, पर कम्पनी वाले का फोन आ गया. छोड़ने के बाद भी वे लोग कभी कभी मुझे याद करते हैं कुछ विशेष कामों के लिए.”
“चल ठीक है, काव्या मेरा पेग बना रही है. तुझे कुछ लेना है?”
“हाँ, मैं भी ले लूँगा।”
काव्या ने जाकर सबके लिए नए पेग बनाये और सबको देने लगी.
**********
बिस्तर पर एक अद्भुत ही दृश्य था. देवेश लेटा हुआ था और ललिता उसके लंड के ऊपर चढ़ी हुई थी. ललिता की पीठ देवेश की ओर थी और देवेश का लंड उसकी गांड में धंसा हुआ था. धक्के देवेश ही लगा रहा था क्योंकि काव्या ललिता के सामने घुटनों के बल झुके हुए उसकी चूत चाट रही थी. काव्या की उठी हुई गांड के पीछे उसके पिता घुटनों के बल अपना लंड काव्या की गांड में डाले हुए पूरी उग्रता से उसकी गांड मार रहे थे. देवेश के हाथ अपनी माँ के मम्मे दबोचे हुए थे और ललिता की आँखों में एक नशा सा था. शराब के नशे को उसकी गांड में डले लंड ने और भी गहरा दिया था. वो चीख तो नहीं रही थी, परन्तु उसकी सिसकारियां अवश्य कमरे में गूंज रही थीं.
बिस्तर के एक दूसरे भाग में लगभग यही दृश्य प्रतिबिम्बित था. जयेश और रितेश के लौड़े चूसने के बाद दिशा जयेश के लंड पर चढ़ी हुई थी, उसकी भी पीठ जयेश की ही ओर थी और जयेश उसके सुडोल मम्मों को भींच रहा था. जयेश के लंड को अपनी गांड में लिए हुए कुछ देर उछलने हुए रितेश के लंड को चूसते हुए दिशा को अपनी चूत के खालीपन का आभास हो रहा था. रितेश ने अपने लंड को दिशा के मुंह से निकाला और दिशा की चूत में डाल कर उसकी चुदाई करने लगा. दिशा इस परिवार में आने के बाद इस प्रकार की दुहरी चुदाई की अभ्यस्त हो चुकी थी. अब उसे अपनी सासू माँ की दुहरी चुदाई की आकांक्षा का मूल कारण पता चल गया था. किस भी स्त्री के लिए इस प्रकार की चुदाई आनंद के हर उस मापदंड को तोड़ देती है जिसे पाना वो असम्भव समझती है.
ललिता अधिक देर तक अपने आपको नहीं रोक सकी. वो अपने चुदाई के समय के व्यक्तित्व में आ गयी.
“मादरचोद, तेज चला अपना लंड. मेरी गांड इतने प्यार से लौड़ा डालेगा तो क्या मजा आएगा, कमीने.” उसने देवेश को डाँटा।
देवेश ने भी उसकी इस बात का उत्तर अपने लंड की गति को बढ़ाकर किया.
“ले ले मेरी चुदक्क्ड़ माँ, तेरे बेटे के लंड को अपनी गांड में ले, फाड़ दूंगा तेरी ये गांड मैं.” देवेश ने उसे उलाहना दी.
“तुम चारों माँ के लौड़े मिलकर भी आज तक इसे नहीं फाड़ पाए, आज क्या करेगा कि फट जाएगी, मादरचोद!”
इस पूरे संवाद के समय काव्या पूर्ण समर्पण के साथ अपनी माँ की चूत चाट रही थी.
“मेरी बिटिया, सबसे अनोखी है. कितना प्यार करती है अपनी माँ को. देखो कितने प्यार से मेरी चूत चाट रही है.” ललिता अपनी बेटी की प्रशंसा करने में कभी नहीं झिझकती थी. फिर अपने पति को देखते हुए बोली, “अच्छे से मारो न मेरी बेटी की गांड, तुम्हारे धक्कों में अब वो बात नहीं रही. नहीं तो काव्या मेरी चूत में घुस गयी होती अब तक.”
महेश समझ रहा था कि ललिता क्या करना चाहती है, पर उसने उसकी बात को अनदेखा किया और अपने ही ढंग से काव्या की गांड मारता रहा. ललिता समझ गयी कि उसका पति उसकी एक न सुनने वाला. आखिर, वो उसे इतने वर्षों से जानता और समझता था. ललिता की चूत से बहते हुए रस को काव्या अपनी जीभ से चाट चाट कर पी रही थी. उसे अपनी माँ की चूत के रस से बहुत लगाव था. उसका बस चलता तो वो दिन रात वहीँ रहती. पर अब तो परिवार में दिशा के आने के उपरांत, उसे दिशा का भी ध्यान रखना पड़ता था.
दिशा की गांड में इस समय जयेश नीचे से अपने लंड को पेल रहा था और उसके ऊपर चढ़ा हुआ उसका दूसरा देवर रितेश उसकी चूत की सिकाई कर रहा था. आनंद के सागर में गोते लगती दिशा अपने शरीर में उठ रही आनंद की लहरों पर तैर रही थी. उसने जीवन में इस प्रकार से चुदाई का स्वप्न भी नहीं देखा था, और आज वो इसके लिए सदैव आतुर रहती थी. ऐसा नहीं कि उसे एक लौड़े से चुदाई में आनंद नहीं आता था, पर दो दो लौडों से चुदने में जो सुख था उसका कोई पर्याय नहीं था.
चूत और गांड में चलते लंड उसे हर कुछ समय में शिखर पर ले जाते और फिर झड़ते ही वो लौट कर धरातल पर आ जाती. उसे जयेश और रितेश की क्षमता पर भी गर्व था. वे दोनों भी देवेश के ही समान बड़े तगड़े घोड़े थे जो सवारी गाँठने में सक्षम थे. दिशा को वैसे भी हर दिन चुदने की आदत थी, पर यहाँ आने के बाद तो उसका चुदाई के प्रति दृष्टिकोण ही बदल चुका था. अब उसकी चूत में जब लंड होता था तो उसे गांड में खुजली सी होती थी. और जब गांड मारी जाती तो चूत कुलबुलाने लगती थी.
दिशा और देवेश सप्ताह में तीन-चार दिन तो अकेले ही सोते थे जहाँ वो एक दूसरे को अपना प्रेम समर्पित करते थे. परन्तु अन्य दिनों में वे इसी प्रकार से परिवार के साथ सामूहिक चुदाई का सुख लेते थे. ललिता की बात अलग थी. वैसे तो वो भी अपने पति के ही साथ तीन चार सोती थी, पर दिशा को पता था कि वो बीच रात में उठकर जयेश या रितेश के पास भी चली जाती थी. परन्तु उसकी सास उनके कमरे में कभी भी चुदाई के लिए नहीं आयी, जिसके कारण दिशा भी उन्हें बहुत आदर देती थी.
ललिता की गालियाँ अब चरम पर थीं, पर जैसे किसी को कोई अंतर नहीं पड़ रहा था. देवेश उसकी गांड में तेजी से लंड चलाते हुए ललिता को न जाने क्या क्या उपाधि दे रहा था. महेश ने भी अब काव्या की गांड में अपने लंड की गति बढ़ा दी थी, जिसके कारण काव्या ललिता की चूत पर नाक से लेकर ठोड़ी तक घिसी जा रही थी. ललिता की कामोन्माद से निकलती चीख पुकार से ये स्पष्ट था कि वो भी अब अधिक देर तक टिकने वाली नहीं है. और हुआ भी यही, जैसे एक बाँध टूटा हो, इस प्रकार से ललिता की चूत ने पिचकारियां छोड़ दीं. काव्या का चेहरा उस रस से भीग कर तर हो गया. काव्या की चूत भी अब बह निकली और दोनों कुछ ढीली पड़ गयीं. देवेश और महेश दोनों गांड में तब तक लौड़े पेलते रहे जब तक वे झड़ नहीं गए.
जयेश दिशा की गांड में अपना रस छोड़ने लगा तो दिशा भी एक और बार झड़ गयी. जलमग्न चूत में रितेश के लंड को पर्याप्त घर्षण नहीं मिल रहा था, इसीलिए जब जयेश का लंड दिशा की गांड से निकला तो रितेश ने सही अवसर जानकर दिशा की गांड में ही अपना लंड पेल दिया. पर वहां जयेश के वीर्य की उपस्थिति के कारण उसे आनंद नहीं आ रहा था.
“भैया, आओ मैं आपको अपने मुंह चोदकर झड़ा देती हूँ.” दिशा ने प्रस्ताव दिया. रितेश ने बेमन से दिशा की गांड में से लंड निकाला और उसके सामने जा बैठा. दिशा ने अपने मुंह में लंड लिया तो उसे आभास हुआ कि उसके मुंह में लंड तो रितेश का है, पर लंड पर जयेश का भी वीर्य लगा है. और उसे गांड की गंध स्पष्ट रूप से आ रही थी. दिशा इन सब विकृतियों के बाद भी रितेश को अपना मुंह चोदने के लिए उत्साहित करती रही. अंततः रितेश ने उसके मुंह में रस छोड़ा और सब शांत हो गए.
*******
अगले दिन जब दिशा नहाकर बैठक में पहुंची तो देवेश के सिवाय सब वहीं थे. देवेश अभी नहा रहा था और आने वाला था. नाश्ता करते हुए दिशा ने अपने ससुर से पूछा, “आप मेरे मौसा के बारे में कुछ कह रहे थे कल.”
महेश ने नाश्ता समाप्त करने को कहा. उसके बाद महेश दिशा को लेकर उसके ऑफिस में चला गया. अपनी कुर्सी पर बैठते हुए उसने दिशा को भी बैठने के लिए कहा.
महेश: “बहू, तुम अपने मौसा के बारे में क्या जानती हो?”
दिशा: “अधिक तो कुछ नहीं, पर वे एक उच्च पद पर नियुक्त हैं. बहुत सरल व्यक्ति हैं.”
महेश: “और तुम्हारी मौसी रागिनी के बारे में?”
दिशा चौंकी, क्योंकि उसने मौसी का तो नाम बताया ही नहीं था. पर उसने सोचा कि हो सकता है कि महेश को ये जानकारी अन्य स्त्रोतों से पता हो.”
दिशा: “बहुत ही सरल और सौम्य हैं. सीधी इतनी हैं कि उन्हें कोई भी बहका सकता है. मुझे और मम्मी को बहुत प्रेम करती हैं. जब मैं वहाँ थी तो मम्मी की सबसे अधिक सहायता वही करती थीं. पापा की मृत्यु के बाद उन्होंने ही हमारे घर को संभाला था. मम्मी को तो समय लगा था पर मौसी ने पूरा साथ दिया था.”
महेश, कुर्सी पर पीछे की ओर झुककर कुछ सोचने लगा.
दिशा: “बाबूजी, जो भी है आप मुझे बता सकते हैं.”
महेश: “बहू, तुम्हारे मौसा की तरक्की में तुम्हारे मौसा से भी अधिक तुम्हारी मौसी का योगदान है. सच तो ये है कि तुम्हारे मौसा ने तुम्हारी मौसी को हर उस पुरुष और स्त्री को परोसा है जिससे उन्हें कोई भी लाभ हो सकता था.”
दिशा का सिर घूम गया.
“मैं ये जानता हूँ क्योंकि मैं भी रागिनी के साथ कुछ रातें बिता चुका हूँ.”
“मौसी, ऐसी..”
“हाँ, ये सच है. मुझे सदा उसके इस व्यवहार में कुछ कमी दिखी थी, जैसे वो इस सबके लिए मन से तैयार नहीं हो, पर उसने कभी भी अपने साथी को प्यासा और अतृप्त नहीं छोड़ा.”
महेश दिशा के चेहरे के बदलते रंग देख रहा था.
महेश: “पर आज का सच ये है, कि निमिष को उसकी आवश्यकता नहीं रह गयी है. उसने जो पाना था वो पा चुका है. और आज वो भी उन्ही व्यसनों में लिप्त है जिनके लिए उसने अपनी पत्नी का सौदा किया था.”
दिशा: “मतलब?”
महेश: “आज निमिष भी अन्य अधिकारयों की पत्नियों को भोगता है, जैसे उसकी पत्नी का भोग लगा था. मुझे नहीं लगता कि रागिनी के साथ उसके अब कोई संबंध भी होंगे. मुझे ये पता है क्योंकि मैं चाहे दूर ही रहता हूँ, पर सत्ता के निकट क्या चल रहा है उससे सदा परिचित रहता हूँ. हमारे व्यवसाय में अधिकारियों से संबंध रखना नितांत आवश्यक है. मुझे आश्चर्य है कि उसने अब तक मुझसे सम्पर्क क्यों नहीं किया, ये जानते हुए भी कि तुम मेरे घर में ब्याही गयी हो.”
दिशा: “तो बाबूजी, मुझे क्या करना चाहिए? मेरा तो इस पूरे प्रकरण से कोई विशेष लेना देना नहीं है.”
“नहीं, पर तुम्हें अपनी मौसी की सहायता करनी होगी. उन्हें किसी प्रकार से तुम्हारे मौसा को समझना होगा कि जो वो कर रहे हैं वो अक्षम्य है. अगर तुम मानो तो जयेश और रितेश इस विषय में भी कुछ कार्य कर सकते हैं. पर तुम क्या चाहती हो ये तुम मुझे उनके जाने के पूर्व बता देना.”
ये कहकर महेश उठ गए और दिशा भी उनके साथ खड़ी हुई और दोनों बैठक में सामान्य दिनों की भांति चले गए.
क्रमशः
Adbhut writing,gr8
prkin apki lekhni se kabhi kabhi kuchh chura leti hai Raji, please don't mind.Naye writer ko to thoda thoda choga har bade writer ki lekhni se chugna padta hai,apni lekhni ko sudharne ke liye
Iski purani story kahaan pe milegi??³