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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Yes, I know. I gave prkin An idea to address your point.I'm talking about that too
ये एक अद्भुत मिलन है. जो सबकी ख़ुशी और प्यार ही संभव है। मुझे ख़ुशी है कि ये सब असल ज़िंदगी में तो नहीं कर सकती पर ये कहानी पढ़कर एक पारिवारिक प्यार की अनुभूति कर सकती हूँ। पर आज तक औरत को कोई समाज नहीं पाया। कि उसको क्या चाहिए. अच्छा लगा कि कोई ऐसी खनानिया लिखता है। सच में बहुत बढ़िया कहानी है. शुभकामनाएँ और आगे की कहानी जारी रखें।ससुराल की नयी दिशापल्लू :
अध्याय ४९: रहस्योद्घाटन ६
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सब अपनी चुदाई में इतने व्यस्त थे कि उन्हें इस बात का आभास ही नहीं हुआ कि कमरे का द्वार खुला और बंद भी हो गया. वहाँ पर एक आकृति खड़ी थी जो सारे घटनाक्रम का अवलोकन कर रही थी. उसे पता था कि उसके प्रवेश से इस परिवार के संबंधों पर एक जीवनोपरंत अंतर आ जायेगा. और उसके लिए कुछ पलों की प्रतीक्षा में कोई आपत्ति नहीं थी.
अब वो अपने प्रवेश को न केवल रोमांचक बनाना चाहती थी परन्तु अप्रत्याशित भी. उसके हेतु उसे सही स्थान पर बिना रोक टोक और दिखे हुए पहुंचना नितांत आवश्यक था. अंततः उसने अपना निर्णय ले लिया और प्रतीक्षा करने लगी.
“दीपक की बहू बहुत बड़ी चुड़क्कड़ निकली!” दादी ने फागुनी मामी के लिए टिप्पणी की.
“दीपक भी कम नहीं है, माँ. देखो न कैसे मेरी नीतू को चोद रहा है.” चाचा ने उत्तर दिया. “और अभी तो आपने फागुनी के अन्य स्वरूप को देखा भी नहीं है. जाने क्या सोचेंगी आप उसे देखने के बाद.”
“हैं? ऐसा क्या करती है. दो दो लौडों से ही तो चुद रही है. अधिकतम तीन से चुदती होगी. और क्या?” दादी ने विश्वास से कहा.
चाचा ने उनके कान में कुछ बोला और उनके कानों को चूम लिया.
“ओह!” दादी इससे अधिक कुछ न कह पायीं, पर उनके चेहरे पर भाव बदल गए.
निकुंज और शुभम को फागुनी मामी की चुदाई करते हुए अब अच्छा समय निकल गया था. दीप्ति की चुदाई भी अब चरम पर थी और उसकी आहों, और सिसकारियों से मिश्रित हल्की दबी हुई चीखें उसके झड़ने की ओर संकेत कर रही थीं. गिरीश बिना रुके अपनी पूरी शक्ति से उन्हें चोदे जा रहा था. उसके चेहरे से गिरता पसीना चाची के चेहरे पर गिर रहा था, जहाँ वो चाची के पसीने से मिलकर नीचे बह रहा था. भावना भी हरीश से पूर्णतः चुदाई का आनंद ले रही थी. परन्तु घोड़ी बने होने के कारण हरीश के पसीने की टपकती हुई बूँदें उसे अपनी पीठ पर अनुभव हो रही थीं. दीपक मामा भी अब थकने लगे थे और उनकी गति क्षीण पड़ने लगी थी पर उन्होंने अपने अंदर की शक्ति को पुकारा और नीतू को उसके पड़ाव पर पहुंचने में सहायता करने लगे.
“नीतू बिटिया, मैं झड़ने वाला हूँ.”
“मामा, मेरे मुंह में झड़ो न, प्लीज़।”
ये सुनकर मामा ने लंड बाहर निकलकर नीतू में मुंह में दे दिया और कुछ ही पलों में अपना रस नीतू के मुंह में भर दिया.
“बेटा, ताई अब झड़ने ही वाली है. अब तू भी मेरी प्यास बुझा दे और अपना पानी छोड़ दे मेरी प्यासी चूत में.”
भावना ने कहा तो पल्लू उनकी शब्दावली को सुनकर मुस्कुरा उठी.
“सुना तूने, अपनी ताई की बात, अब तू भी मेरी कोख सींच दे.” चाची की इस बात से आश्चर्य में और वृद्दि हो गई.
“मामी, मैं भी झड़ने वाला हूँ. गांड में ही छोड़ रहा हूँ. बाद में मत कहना कुछ.” शुभम ने बताया.
मामी इस समय एक अन्यत्र संसार में थीं, उन्हें क्या अंतर पड़ना था कि शुभम पानी कहाँ छोड़ेगा. उनकी चूत तो अब इस बार के लिए अंतिम बार पानी चोदे जा रही थी. निकुंज उन्हें नीचे से पेले जा रहा था.
“मैं भी मामी. मैं भी.....” इतना कहते हुए निकुंज ने अपना रस मामी की चूत में भर दिया.
“आह आह, मामी.” शुभम की इस पुकार के साथ उसके लंड ने भी अपना रस मामी की गांड में छोड़ दिया.
“सच में, तुम सबको अपनी पल्लू को भी इसमें मिलाना चाहिए.” दादी ने कहा.
शुभम ने अपने लंड को मामी की गांड से निकाला ही था कि किसी बिजली की गति से एक परछाईं आई और मामी की गांड में अपना मुंह लगा दिया. भावना, चाची और मामी तो अपने झड़ने में ही मस्त थीं. शुभम, दादी, पापा और चाचा ही देख सकते थे, परन्तु उन्हें भी समझ न आया वो कौन है क्योंकि उसके बालों ने चेहरा ढँका हुआ था. मामी की गांड से शुभम का रस पूरा चाटने और सोखने के बाद उसने शुभम के लंड पर मुंह लगाया जो अब तक सकते में था कि क्या हो रहा है. ये इतना त्वरित गति से हुआ था कि कोई भी प्रतिक्रिया भी नहीं कर पाया था.
शुभम के लंड को चाटने और चूसने के बाद उसने अपने बालों को चेहरे से हटाया और शुभम को देखते हुए आँख मारी.
“दादी सच कह रही है न भैया, आप सबको मुझे भी मिलाना चाहिए था. पर अब मैं इस अवसर को नहीं खोने वाली.” ये कोई और नहीं बल्कि अपनी पल्लू ही थी.
“पल्लू!” शुभम,पापा, चाचा और दादी की चीख ने अन्य जोड़ों को उस ओर आकर्षित कर लिया.
पल्लू बड़ी शांति के साथ शुभम के लंड पर अपनी जीभ घुमा रही थी. भावना ने हरीश को हटाया और पल्लू के पास जा खड़ी हुई.
“पल्लू! तू यहाँ क्या कर रही है?” भावना के चेहरे पर आक्रोश था.
भावना को इस बात का आभास नहीं था कि हरीश का वीर्यरस उसकी चूत से बह रहा था. पल्लू ने उसकी चूत के नीचे हथेली लगाई और उसमे रस भर लिया. अपने मुंह के पास लेकर उसे चाट लिया.
“आपको क्या लगता है माँ? मैं यहाँ क्या कर रही हूँ?” पल्लू ने शांति से उत्तर दिया. वो अपनी माँ के क्रोध को शांत करना चाहती थी. कमरे में अन्य सभी स्तब्ध थे और बेबस से देख रहे थे.
“पर क्यों? देख पल्लू तेरा विवाह हो चुका है. तू इस सब में मत पड़. मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ.” भावना ने हाथ जोड़ लिए, “अगर तेरे ससुराल वालों को पता चल गया तो तेरी जीवन ही उजड़ जायेगा.”
“माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा.” पल्लू ने खड़े होकर अपनी माँ को बाँहों में ले लिया, “अगर उन्हें कुछ पता चलेगा तो होगा न? और मैं कौन हर दिन आऊँगी। बस माह में दो तीन दिन ही तो आऊँगी, सब सम्भल जायेगा. पर अब आप सब मुझे दूर मत करो. मेरा ससुराल मेरा दायित्व है और मैं उसे भली भांति संभाल लूँगी।”
अब तक फागुनी मामी भी निकुंज के लंड से हट कर बैठी हुई ये वार्तालाप सुन रही थी. ये माँ बेटी के बीच का विषय था और निकटतम संबंधी होने के बाद भी इस समय कुछ भी कहना उचित न था. अशोक भी इसी कारण चुप था.
“माँ, प्लीज़, मुझे मत ठुकराओ!” पल्लू ने विनती की. भावना को उसके शब्द किसी बाण के समान चुभ गए.
“तुझे ठुकरा नहीं रही हूँ.” उसने अन्य उपस्थित परिवार की ओर देखा. सबकी ऑंखें उस पर ही केंद्रित थीं, चेहरे पर चिंतन और आँखों में आशा थी. भावना ने निर्णय ले लिया. उसने पल्लू को देखा और सहमति में सिर हिला दिया.
पल्लू को तो मानो स्वर्ग ही मिल गया हो. उसने भावना के होंठों को जोर से चूमा.
“अब मुझे कुछ करना है, मुझे रोकना मत!”
ये कहते हुए पल्लू ने मामी की ओर देखा, और उनके सामने बैठकर उनके पैरों को फैलाया. और चूत पर मुंह लगाते हुए चाटने लगी. निकुंज का रस बहुत सीमा तक बाहर बह चुका था, पर जो शेष था उसे पल्लू ने सोख लिया. फिर उसने अपनी माँ के सामने बैठकर खड़ी हुई भावना से पैर चौड़े करने का आग्रह किया और उसकी चूत से शेष रस पी लिया.
फिर वो चाची की ओर बड़ी, तो चतुर चाची ने लेटकर अपने पाँव फैला लिए. चाची की चूत को साफ करने के बाद उसने नीतू को देखा.
“वाओ जिज्जी! आप तो बहुत तेज निकलीं.” नीतू ने पल्लू के होंठ चूमे और फिर उसे नीचे झुकाकर अपनी चूत समर्पित कर दी.
“पापा और चाचा का तो माल पूरा मामी पचा गयीं. तो उसके लिए अगली बार की प्रतीक्षा करनी होगी.” पल्लू ने घोषणा की.
अब तक सब अपनी चेतना में आ चुके थे. दीपक ने ही सबसे पहले मौन तोडा.
“भाई, आज तो दो दो सदस्य जुड़े हैं तो एक एक पेग हो जाये.”
“एक नहीं दो!” ये सारे बच्चों के स्वर थे.
“ओके! लेट अस सेलिब्रेट!”
फटाफट ग्लास भरे जाने लगे तथा दादी और पल्लू को सभी स्त्रियों ने घेर लिया.
अशोक और अमर के साथ पुरुष वर्ग जुड़ गया. उनकी बातचीत का मुख्य विषय अब दादी से हटकर पल्लू पर आ चुका था. शुभम मन ही मन चाह रहा था कि पल्लू के साथ उसे अवसर मिले, पर इस पर उसका कोई मत नहीं था. महिला वर्ग ही इस विषय पर कुछ निर्णय लेने वाला था.
पल्लू, “माँ, मुझे पहले पापा और भैया से चुदना है.”
“एक साथ?”
“हम्म्म,” अब वो ये तो बता नहीं सकती थी कि ससुराल में उसके लिए ये सामान्य बात थी, “हाँ, एक बार दो दो से चुदवाने का मन है. तो आज ही शुभारम्भ करते हैं.”
भावना के चेहरे पर शंका देखी तो चाची बोल पड़ीं, “कर लेने दे उसे अपने मन की. अब जब आ ही गयी है तो देर सबेर तो चुदेगी ही, तो आज क्यों नहीं, ठीक है बिटिया जैसा तेरा मन है.”
भावना अब कुछ कह नहीं सकती थी. इतने में नीतू बीच में बोल पड़ी.
“जिज्जी, बहुत आनंद आता है. सच में. आगे पीछे दोनों में एक साथ लेना, बिलकुल स्वर्ग का अनुभव होगा.”
पल्लू ने सिर हिलाया और सोचा, “जानती हूँ, और तुझे भी अपने ससुराल में स्वर्ग न दिखाया तो मैं भी पल्लू नहीं.”
मामा बोले, “भाई मेरा तो सुझाव है कि पल्लू और उसकी माँ दोनों के एक साथ अगल बगल में चोदा जाये. और भावना के लिए मैं अपने दोनों राजकुमारों को अर्पित करता हूँ.”
इस बात पर पुरुष एकमत थे. उन्होंने महिलाओं की ओर देखा. मायादेवी, फागुनी, दीप्ति और नीतू के लिए अब केवल अमर, दीपक और निकुंज ही बचे थे. समीकरण ठीक न था. उन्होंने महिलाओं से सलाह करने के लिए उनके पास जाकर अपना मत रखा. भावना का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पर मामी ने सहर्ष इस बार के लिए त्याग करने का निर्णय लिया.
“परन्तु सबको पता है न कि इसका क्या अर्थ है?” मामी ने पूछा.
सबने हाँ में उत्तर दिया तो दादी और पल्लू इस कारण से अनिभिज्ञ थे.
“क्या अर्थ है?”
भावना से तो उत्तर देते नहीं बना पर दीप्ति चाची ने कमान संभाली.
“सबके रस पर केवल फागुनी का ही अधिकार होगा. और उसके बाद भी उसकी इच्छा पूरी की जाएगी.”
“कैसी इच्छा?” पल्लू ने पूछा.
“बाद में बता देंगे,” भावना ने बीच में ही रोकते हुए कहा, “समय आने पर सब पता चल ही जायेगा.”
“फिर?”
“तेरी चाची के लिए मामा, दादी के लिए निकुंज और नीतू को अपने पापा अमर के साथ ठीक रहेगा.”
नीतू किलकारी लेते हुए अपने पापा के गले लग गई. निकुंज ने दादी को देखा और सोचा कि उसको भी अवसर मिल ही गया. मामा ने चाची को देखा और आँख मारी तो चाची शर्मा गई. भावना अभी भी शर्मा रही थी और पल्लू को ये दिख रहा था. उसने ही आगे बात करने के बारे में सोचा.
“माँ, इधर आओ,” ये कहकर वो भावना को लेकर एक कोने में चली गई. एक पेग और बनाया जाने लगा. और पल्लू अपनी माँ को समझाने लगी.
“माँ, मैं सच बोल रही हूँ. मुझे अपने ससुराल में कोई समस्या नहीं आएगी. वैसे भी मैं यहाँ कौन सा हर दिन आने वाली हूँ? महीने में दो या चार दिन ही तो आऊँगी। पर अब उन दिनों ही आऊँगी जब सब होंगे. सुबह हम सब बात करेंगे और रात में.....” पल्लू ने बात अधूरी छोड़ी, पर अर्थ दोनों माँ बेटी को समझ आ गया था.
“पर तेरे साथ ऐसे कैसे?”
पल्लू समझ गई कि माँ को एक साथ चुदवाने में असहज लग रहा है. इसका उपाय तो निकालना ही होगा. सम्भवतः, कुछ समय बाद वो सहज हो सकें.
“माँ, ऐसा करते हैं कि मैं केवल पापा के साथ रहती हूँ. शुभम भैया को मामी के पास भेज देते हैं.”
“फागुनी नहीं मानेगी अब. उसे जो अत्यंत प्रिय है उसके लिए सब सहमत जो हैं. उसे दीप्ति के पास भेज देते हैं, तेरे मामा के साथ. वो भी बहुत आस लेकर आती है यहाँ।”
“दादी और मेरे आने से समीकरण गड़बड़ा गया, है न?”
“हाँ, पर तेरा कहना सही है, और अभी तो मैं तेरे साथ एक बिस्तर पर नहीं आने वाली, तू बिस्तर ले ले अपने पापा के साथ. मैं नीचे के गद्दे पर ही…”
“जैसा आप कहो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. बस आप सबने मुझे स्वीकार किया है मेरे लिए यही पर्याप्त है.”
“वैसे माँ, क्या मैं सच में नीतू की बात करूँ अपने ससुराल में? बहुत अच्छे लोग हैं. बहुत प्यार और दुलार से रखेंगे.” पल्लू ने कहा और मन में सोचा, “और चोद कर भी.”
“मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर उसे भी ये सब बंद करना होगा. नहीं तो बहुत समस्या हो जाएगी.”
“ठीक है, जितने दिन चलेगा चलने दो फिर तो मेरे साथ रहेगी, मैं संभाल लूँगी उसे. अब चलें?”
माँ बेटी फिर से समूह में लौटीं और नीतू ने उन्हें पेग थमा दिए. भावना ने टेढ़ी आँख से नीतू को देखा कि वो पल्लू को भी शराब दे रही है.
“माँ, कोई बात नहीं. हमारे घर में सब मिल बैठकर पीते हैं. कोई बुरा नहीं समझता. बस सीमा नहीं लाँघनी चाहिए.”
“ठीक है. पल्लू. पर अब तू बदल गई है.”
“हाँ, माँ. पर अब मैं बहुत सुखी हूँ और ऐसे ही जीना चाहती हूँ.”
फिर भावना ने दोनों की बात का निष्कर्ष बताया और शुभम को कुछ दुःख हुआ कि उसका नंबर फिर कट गया पर चाची को मामा के साथ चोदने के विचार से वो प्रसन्न था. फागुनी अपनी भूमिका निभाने के लिए अब उत्सुक थी. उसने अपने लिए दो ग्लास निकाले. एक में व्हिस्की डाली और एक यूँ ही रिक्त रहने दिया.
कमरे में अब वातावरण फिर से उत्तेजना से भरने लगा था. चाची की तो मानो इच्छा पूरी हो गई थी. अशोक और अमर भी प्रसन्न थे कि दोनों की पत्नियों को लौडों की दोहरी डोज़ मिलने वाली है.
मामी ने अलमारी का एक पल्ला खोला और उसमे से काँच का एक बड़ा बर्तन निकाला. उसके बाद उन्होंने स्नानघर में प्रवेश किया तो पल्लू ने देखा कि उसका भी नवीनीकरण किया गया था. अब ठीक सामने ही नहाने का काँच से घिरा नया फौहारा लगाया गया था, और उसे विस्तृत स्थान उपलब्ध कराया गया था. उसके अनुमान से उसमे पाँच छह व्यक्ति एक साथ स्नान कर सकते थे. पल्लू अपने परिवार के इस नए रूप को देखकर अचंभित तो थी पर प्रसन्न भी. उन्होंने अपने जीवन के आनंद को भोगने का पूरा दायित्व निभाया था. निश्चित ही चाचा और मामा ने भी इस व्यय में अपना श्रेय दिया होगा, अन्यथा यूँ बनाने को थी?
मामी अंदर खुले में ही स्न्नान करने लगीं। फिर उन्होंने एक बाल्टी को वहाँ एक चौकी पर रख दिया और पोंछते हुए बाहर आईं और तौलिया एक ओर डाल दिया. फिर वो जाकर अपने स्थान पर बैठ गयीं. पल्लू ये अचम्भे से देख रही थी परन्तु अन्य सभी के लिए ये सामान्य बात थी. दादी भी देखना तो चाहती थीं पर निकुंज उनके सामने था और उन्हें चूमे जा रहा था.
तभी भावना ने जाकर मामी से कुछ बोला और पल्लू और दादी की ओर संकेत किया। मामी ने सिर हिलाया फिर कुछ बोला। ये विदित था कि भावना को उसकी बात रास नहीं आई थी. वो सहमे हुए पल्लू के पास आयीं.
“पल्लू, तेरी मामी की कुछ विशेष रुचियाँ हैं, जिन्हें हम सबने स्वीकार कर लिया है. अगर तुझे उन सबसे कोई घृणा हो तो मुझे क्षमा कर देना, तेरी मामी कह रही हैं कि जो भी है उसे आज ही तुम दोनों को पता चल जाये तो अच्छा है.”
“माँ, तुम चिंता मत करो. आपके दामाद और मैं भी कुछ ऐसे खेल खेलते हैं जो आप सबको देखकर मुझसे घृणा हो सकती है. आप निश्चिन्त रहो और मामी को अपने मन की इच्छा पूरी करने दो. अन्यथा उनका यहाँ आना श्रेयस्कर नहीं होगा और वो संतुष्ट नहीं होगीं.”
“देख ले बेटी, बाद में कुछ मत कहना न ही अपनी माँ को दोष देना.”
पल्लू ने अपनी माँ को गले लगाया और उनके होंठ चूमे. “पक्का माँ. जाओ अब आनंद लो, देखो कैसे मेरे भाई लौड़े तानकर आपके लिए खड़े हुए हैं.”
भावना ने शर्माते हुए जुड़वां भाइयों की ओर अपने कदम बढ़ा दिए. हरीश और गिरीश ने उनका स्वागत किया और एक ने आगे से और एक ने पीछे से उन्हें दबोच लिया. भावना की हल्की सिसकियों ने दर्शा दिया कि अब वो अगले चरण के लिए तत्पर है. अशोक ने पल्लू को पीछे से पकड़ा और उसके मम्मों को हाथ में ले लिया.
उसकी गर्दन पर चुंबन जड़ते हुए उसने कहा, “मैंने कभी स्वप्न में भी ये नहीं सोचा था.”
“जी पापा, मैंने भी नहीं. और आज तो आपके दो दो सपने पूर्ण हो रहे हैं. अपनी माँ और अपनी बेटी की चुदाई आप एक ही रात में करने वाले हैं. तो ये दिन आपको सदा स्मरण रहेगा. है न?”
“बिलकुल, मेरी गुड़िया.”
पल्लू पलटी और उसने अपने होंठ अशोक के होंठों से मिला दिए. बाप बेटी अंतरंग चुबंन में खो गए.
निकुंज दादी को चूमे जा रहा था.
“दादी, अब देखना आपको घर में मैं कितना चोदुँगा। नीतू और मॉम के साथ आपको चोदने में बहुत आनंद आएगा.”
“हाँ बेटा, मैं भी अब बहुत दिनों बाद चुदवाने लगी हूँ तो मेरी प्यास भी बहुत बढ़ गयी है. तुम जैसे जवान लड़कों से चुदवा कर मुझे अपनी जवानी लौटती लग रही है.”
“तो दादी, हो जाये? पर पहले मैं गांड मारूँगा फिर चूत. आपको कोई आपत्ति तो नहीं?”
“मुझे पता है तू मुझे जी भर के चोदने वाला है. तो गांड क्या और चूत क्या?”
निकुंज ने ये सुनते ही उनके होंठ अपने होंठों से जोड़ लिया और अपने हाथ से उनकी गांड को दबाने लगा.
दीपक मामा चाची को चूमने में मस्त थे. उनके मम्मों को दबोचते हुए उन्हें चूमे ही जा रहे थे.
“क्या मामा पूरी मिठाई अकेले ही खा जाओगे क्या?” शुभम ने चाची के पीछे आकर पूछा तो मामा हंस पड़े.
“अरे आजा, दीप्ति के पास तो इतनी चाशनी कि हम दोनों को खिलाकर भी शेष रहेगी.” ये कहते हुए मामा ने चाची के स्तन छोड़ दिए और शुभम ने उन पर अपना अधिपत्य जमा लिया.
“ऊह, थोड़ा धीरे से दबा बेटा दर्द होता है. तेरी मामी नहीं हूँ मैं!” चाची ने सिसकारी भरते हुए बोला।
शुभम कहाँ ही रुकने वाला था, उसने कुछ ढील की पर मम्मों को मसलता ही रहा. मामा होंठों को चूमे जा रहे थे और दीप्ति चाची की चूत से बहता रस रुकने का नाम भी नहीं ले रहा था.
दीपक मामा ने अब तक चाची के होंठों के रस को पूरा निचोड़ लिया था और अब उन्हें लिटाकर उनकी चूत चाट रहे थे. उन्होंने उसमें अधिक समय व्यर्थ नहीं किया और अपने लंड को चाची को सौंप दिया, जिन्होंने उसे प्यार से चाटा और फिर अपनी चूत पर लगा लिया.
“पहले इसकी प्यास बुझा दो, फिर चाहो तो गांड भी मार लेना.”
शुभम ने चाची के कुछ और कहने के पूर्व ही अपने लंड को उनके मुंह में डाल दिया. चाची की बोलती बंद हो गई.
नीतू अपने पिता अमर को लेकर पल्लू के पास आई.
“आओ जिज्जी, दोनों अपने अपने पापा से चुदवाती हैं. बहुत अनूठा अनुभव रहेगा. और मन करे तो एक दो बार बदली भी कर लेंगे.”
“नहीं. मैं चाचा का लंड तो चूस लूँगी पर पापा की चुदाई के बीच किसी और को न आने दूँगी।” पल्लू ने कहा तो चाचा का मुंह उतर गया. “और फिर जब चाचा से चुदूँगी तब भी किसी को बीच में न आने दूँगी। “ ये सुनकर अमर की आँखें खिल उठीं.
“दीदी, पर पहले हम सबको मामी के लिए कुछ योगदान देना होगा.” नीति ने बोला तो अशोक कुछ असहज हो गया.
“नीतू…”
“ताऊजी, मत सोचो.”
पल्लू ये समझने कि चेष्टा कर ही रही थी कि इसका क्या अर्थ है कि उसने हरीश और गिरीश को स्नानघर में भावना के साथ जाते देखा. हरीश ने लंड से उस बाल्टी को लक्ष्य बनाया और उसमे मूत्र त्याग करने लगा. उसके बाद गिरीश और फिर भावना ने भी यही किया. पल्लू समझ गई कि मामी का स्वांग क्या था. उसे इसमें कोई आपत्ति नहीं थी.
“चल नीतू, मामी के लिए पानी निकाल आते हैं.”
उसकी इस प्रकार के निश्चिन्त कथन को सुनकर भावना ने उसे देखा और फिर मुस्कुरा दी. अशोक और अमर नीतू और पल्लू के पीछे गए और चारों ने अपना योगदान किया. उसके बाद मामा जो चाची चुदाई करने ही वाले थे मानो जागे और दीप्ति चाची के साथ अपने अंश का जल दान कर आये. निकुंज अब दादी को ले गया. न जाने क्यों मायादेवी को ये कुछ अधिक ही रास आ गया और उन्होंने भरपूर दान दिया. दोनों लौटे तो मामी अंदर गयीं और कुल दान का आकलन किया। फिर संतुष्ट होकर अपने स्थान पर लौट आयीं.
उन्होंने अपने लिए ग्लास में व्हिस्की डाली और ग्लास को अपनी चूत के आगे लगाकर उसे पूरा भर लिया. दो घूँट पीने के बाद उन्होंने अपने ग्लास को उस काँच के बर्तन से तीन बार खनकाया और घोषणा की,
“अब चुदाई की जाये.”
रात्रि के ११ बजे थे और खेल एक नए आयाम में आरम्भ हो रहा था.
क्रमश
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just waiting for new update.
धन्यवाद मंजू जी.ये एक अद्भुत मिलन है. जो सबकी ख़ुशी और प्यार ही संभव है। मुझे ख़ुशी है कि ये सब असल ज़िंदगी में तो नहीं कर सकती पर ये कहानी पढ़कर एक पारिवारिक प्यार की अनुभूति कर सकती हूँ। पर आज तक औरत को कोई समाज नहीं पाया। कि उसको क्या चाहिए. अच्छा लगा कि कोई ऐसी खनानिया लिखता है। सच में बहुत बढ़िया कहानी है. शुभकामनाएँ और आगे की कहानी जारी रखें।