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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Update Posted.Badhiya waise “kaise kaise pariwar” ko pehle khatm karte
Bahuttt badhiya ab is milan mein kya kuch hota hai ye dekhne layak hogaससुराल की नयी दिशा
अध्याय २८ : महामिलन की पूर्व संध्या
अब तक:
दोनों परिवारों के मिलन की बेला निकट आ रही थी. पंखुड़ी ने सत्या के आचरण का ऐसा रूप ढूंढा जिसने पंखुड़ी को सत्या की एक दुर्बलता से प्रत्यक्ष करा दिया. अब सत्या एक प्रकार से उसके हाथों की कठपुतली था. अपने समधियों से चुदवाने के बाद नलिनी को काव्या और पल्लू से भी प्यार मिला. आज रात्रि उसकी भेंट अनुज और अनिल के साथ थी, फिर वो परिवार के साथ पूर्ण रूप सी मिल जाने वाली थी. कल से फिर एक और परिवार जुड़ने को था. संभावनाएं अनेकानेक थीं. सरिता ने भी दो दो लंड चूत में लेने का अनुभव प्राप्त किया और अगले सप्ताह के लिए अपनी गांड मरवाने के लिए भी अपने नातियों को वचनबद्ध कर लिया. पंखुड़ी ने संध्या और माधवी से कहा कि सत्या उनसे कुछ कहना चाहता है और वो उसे लेकर चली गयीं.
अब आगे:
ललिता का घर:
नलिनी के बाहर आने पर उसका तालियों से स्वागत हुआ तो वो कुछ झेंप गई. अनुज और अनिल उसे देखकर आज रात की कल्पना कर रहे थे. वो दोनों इस कड़ी की अंत में थे. सरिता भी इसी बारे में सोच रही थी. सरिता के पास आकर नलिनी बैठी तो सरिता ने उसके कान में फुसफुसाया.
“अगर तू कहे तो अनुज और अनिल को भी वैसे ही चुदवाने के लिए कहूँ।” बिना कुछ कहे ही सरिता ने दो लौड़े चूत में लेने के बारे में संकेत दिया. “और रितेश और जयेश से कहूँ कि इन दोनों को भी समझा दें.”
नलिनी ने कुछ विचार किया फिर मना कर दिया, “नहीं माँ जी. आज नहीं. नहीं तो न जाने क्या सोच बैठेंगे मेरे विषय में.”
सरिता हँसते हुए बोली, “मेरी लाड़ो, जब चुदवाने ही जा रही है तो क्या सोचेंगे क्या सोच रही है. पर जैसी तेरी इच्छा हो, वैसे ही कर. पर एक बात बता दूँ, अनिल जो है न वो गांड का रसिया है. तेरी गांड इतनी देर चाटेगा कि तुझे विश्वास ही नहीं होगा.”
ये सुनकर नलिनी की गांड में खुजली सी हो गई और वो सोफे पर ही कसमसाने लगी. जब यूँ ही बैठे हुए बात करते हुए चार बजे तो लड़के उठकर गद्दे लगाने चले गए और बहुएं कमरे सजाने के लिए. सरिता, ललिता, अविका और नलिनी बैठकर महेश और भानु से बातें करते रहे. सब कुछ सामान्य परिवार के ही समान था. एक घंटे में जब सब लौटे तो ललिता और अविका चाय बनाने लगीं. फिर सरिता और नलिनी भी आ गयीं और ये निश्चित हुआ कि शाम के लिए लगे हाथ पकोड़े और अन्य अल्पाहार भी बना ही लिए जाएँ, जिससे उस समय समय व्यर्थ न हो.
पर जैसा महिलाओं के साथ होता है, जब वो रसोई से निकलीं, तो न केवल चाय लेकर आयीं बल्कि पकोड़े और रात्रि के भोजन को भी बनाकर निकलीं. अब उन्हें रसोई के चक्कर नहीं काटने होंगे. महेश ने घर में शराब और बियर की उपलब्धि के विषय में जानना चाहा. फिर देवेश और अनुज से कहा कि वे जाकर उपयुक्त मात्रा में दोनों ले आएं जिससे कल से दो तीन दिन के लिए जाना न पड़े. देवेश और अनुज निकले और एक घंटे बाद लौटे तो इतनी शराब ले आये की तीन दिन क्या दो सप्ताह तक न जाना पड़े.
“क्या दुकान लूट लाये हो?” महेश ने हंसकर कहा.
“कुछ ऐसा ही समझिये. पर देवेश भैया बोले कि दूसरी नानी भी आ रही हैं तो उनका भी स्वागत धूमधाम से होना चाहिए. जैसा नानी जी का किया था कुछ दिनों पहले. बस इस बार हम पाँचों भाई उनका स्वागत करेंगे.”
सरिता को वो रात याद आ गई और वो बोल पड़ी, “तुम्हें क्या पता कि वो पीयेंगीं भी कि नहीं?”
देवेश नानी के पास गया और बोला, “नानी, अगर वो हम सबका पानी पी सकती हैं तो ये क्यों नहीं. मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई समस्या होगी.”
“मुझे तो इन दोनों ने ही मार डाला था उस दिन. अब अगर तुम पाँचों उस पर चढ़ गए तो उसका क्या होगा?”
“कोई बात नहीं नानी, आप को भी साथ ले लेंगे.” देवेश हंसकर बोला।
“सच!” सरिता के मुंह से निकला ही था कि उसे लगा कि वो अधीरता दिखा बैठी है. पर अब कुछ नहीं हो सकता था. सभी मुस्कुराते हुए नानी नाती की बातें सुन रहे थे.
“चलो फिर ठीक है. वैसे पंखुड़ी पीती है. मैं जानती हूँ. पर उसपर चढ़ती कम है.”
“उसके लिए हम हैं न नानी, हम चढ़ जायेंगे.” ये कहकर देवेश ने सरिता के होंठों पर ऊँगली फिराई।
अब तक देवेश और अनुज के द्वारा लाया हुआ भंडार एक स्थान पर जमा कर दिया गया. बस कुछ बियर ठंडी करने के लिए लगा दी और एक बोतल शराब की निकाल ली गई, आज के लिए. वैसे भी अब शाम हो ही चुकी थी.
संध्या का घर:
सत्या को लेकर माधवी और संध्या कमरे में गईं. माधवी ने ही पहले पूछा कि क्या बात करनी है. सत्या ने दोनों को बैठने के लिए कहा.
“मैंने नानी को अपनी शर्त मानने के लिए विवश किया था.”
ये सुनकर संध्या को कुछ ठेस लगी. अपनी माँ का इस प्रकार से अपमान उसे अच्छा नहीं लगा. माधवी ने कोई विशेष भाव नहीं दिखाए, पर उसे भी ये व्यवहार भला नहीं लगा. पंखुड़ी की आयु का ध्यान न रखते हुए उसके बेटे ने ऐसा किया ये उसके लिए शर्म की बात थी.
“मॉम, मम्मी. मैं समझ रहा हूँ कि मैंने एक बहुत बड़ी गलती की है और उसका प्रयाश्चित करना चाहता हूँ. नानी ने बाद में मुझे बहुत कोसा और आगे से मुझसे दूर रहने का निर्णय लिया. परन्तु उन्होंने एक प्रस्ताव रखा जिसे मानने के बाद हम पहले के ही समान हो सकते हैं. मैंने उनकी ये बात मान ली है और नानी ने भी मुझे क्षमा कर दिया है. मैं आगे से उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं करूँगा। इसीलिए मैं आप दोनों से बात करना चाहता हूँ, क्योंकि उन्होंने जो प्रस्ताव रखा है मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूँ.”
माधवी और संध्या मुंह खोले उसकी बात सुन रहे थे. संध्या को अपनी माँ पर गर्व था जिन्होंने सत्या को सुधर जाने का अवसर दिया था.
“क्या प्रस्ताव है?” संध्या ने ही पूछा.
सत्या ने उन्हें घटित हुई घटना के बारे में बताया. इस बार माधवी और संध्या और भी अधिक अचरज में आ गए.
“सच ये है, कि मुझे ये अच्छा लगा था. क्यों, मैं नहीं जानता पर मुझे अच्छा लगा और आगे भी मैं उनके मूत्र का सेवन करता रहूँगा। अब उन्हें पिलाने के स्थान पर मैं पियूँगा.” सत्या बिना रुके बोले जा रहा था.
“अब जो उन्होंने मुझे करने के लिए बाध्य किया है जिसके बिना इसके पहले की हुई बातें निरर्थक हैं. पहले मैं आप दोनों से भी क्षमा याचना करता हूँ. अगर आप दोनों इस प्रकार से आगे नहीं करना चाहती हैं तो कोई भी दबाव मेरी ओर से नहीं रहेगा. आप चाहेंगी तभी मैं ऐसा करूँगा।”
सत्या ने दोनों को देखा.
“कभी कभी के लिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर हर बार गांड मरवाने के लिए तुम्हारी ये शर्त अच्छी नहीं लगती है. इसीलिए विशेष स्थिति में हम ये आगे कर सकते हैं. क्यों माधवी?” संध्या ने कहा. माधवी ने भी सहमति जताई तो सत्या के मन से एक बोझ कम हुआ.
“अब इसके आगे, नानी ने ये भी कहा है कि आज मुझे आप दोनों का मूत्र पीना है, अन्यथा,,,”
सत्या बात समाप्त भी नहीं कर पाया था कि माधवी खड़ी हो गई. “चल.”
माधवी आगे चल दी और सत्या उसके पीछे. उनके पीछे संध्या भी चल पड़ी. बाथरूम के कमोड पर माधवी बैठी और सत्या के अपने आगे बैठाया. इसके बाद उसने सत्या के मुंह में धार छोड़ दी. सत्या को अचानक अपने मुंह और गले पर एक और धार का आभास हुआ. ये संध्या थी जो एक ओर से उसे नहला रही थी. जब ये कार्य सम्पन्न हुआ तो माधवी और संध्या ने जाकर अपने अंग धोये. सत्या स्नान के लिए बढ़ गया.
माधवी और संध्या ने ये निर्णय लिया कि चार महीने तक सत्या को इसी प्रकार से नहलाया जायेगा. उसके बाद जैसी परिस्थिति होगी, उसके अनुसार निर्णय लेंगे. दोनों ने बाहर जाकर पंखुड़ी को गले लगाया और उसे धन्यवाद दिया कि उसने सत्या को सही राह और स्थान दिखाया. पंखुड़ी स्वयं पर गर्वित हो उठी.
माधवी और संध्या ने बाहर आकर मंत्रणा की. फिर बाद में पूरे परिवार को सम्बोधित किया.
“कल से हम कपड़े पहनेंगे. क्योंकि वहाँ हम इस प्रकार से नहीं घूम सकते. तो कुछ अभ्यास आवश्यक है. दूसरा, आज संध्या अमोल के साथ और रिया अंकुर के ही साथ रहेगी. कल से न जाने इन्हें अपने पति के साथ सहवास का अवसर कब मिले. तीसरा, मैं चाहती हूँ कि कल हम कुछ पहले निकलें और अपनी दोनों बहुओं के लिए उनके ही नगर से कुछ उपहार ले लें. यहाँ से भी ले सकते हैं, परन्तु मैं यात्रा में इस प्रकार की वस्तुएं लेकर नहीं जाना चाहती.”
अमोल: “सही बात है. तो कल दोपहर ही निकल जाते हैं, दो बजे. क्योंकि तुम्हारी शॉपिंग को मैं जानता हूँ, दो तीन घंटे से कम नहीं लगेंगे.”
संध्या: “और उस समय में आप लोग भी जाकर अन्य सबके लिए उचित उपहार ले लीजियेगा. आपका भी समय कट जायेगा.”
पंखुड़ी: “देखो बच्चों. मुझे आज शांति से सोने दो. कल से न जाने जाने पूरी रात की नींद कब मिले.”
माधवी इस कथन से प्रसन्न हो गई. उसे अन्य तीनों पराग, यश और सत्या के साथ एक साथ चुदने का सुनहरा अवसर जो मिल रहा था. इसके बाद भोजन के उपरांत सभी सोने या अन्य कर्मों के लिए अपने कमरों में चले गए.
ललिता का घर:
सबने अपनी इच्छानुसार अपने पेय चुने और फिर कल की बात हुई. महेश और ललिता ने जाकर हॉल का निरीक्षण किया और कल के लिए कुछ और प्रबंध करने के बारे में विचार किया. उसके बाद आकर उन्होंने देवेश को अपने विचार बताये तो देवेश ने कल उचित प्रबंध करने का भरोसा दिलाया. इसके बाद सबने भोजन किया और अपने कमरों में चले गए. नलिनी भी सरिता के साथ अपने कमरे में गई और अनुज और अनिल की राह देखने लगी. कुछ ही देर में दोनों आ गए.
सरिता अब एक झीने गाउन में थी. सरिता ने भी वैसा ही गाउन पहना था. सरिता ने अपने मन की बात नलिनी से कही तो नलिनी ने सहर्ष उसे स्वीकार भी कर लिया. अनुज और अनिल अपने कपड़े उतार कर नलिनी की ओर बढ़े और अनुज ने आगे और अनिल ने उसे पीछे से थामा और अलग अलग अंगों को चूमने लगे. नलिनी भी कामातुर हो उठी और मचलने लगी. सरिता ने भी अपना गाउन उतार फेंका और नलिनी के पास आकर उसके गाउन को भी उतार दिया.
“बिस्तर पर आओ.” सरिता ने कहा. “नलिनी और मैंने ये तय किया है कि आज हम दोनों की चुदाई होगी. पहले नलिनी की फिर मेरी. अभी मैं अनुज का लंड चूसूँगी और नलिनी मेरी चूत. अनिल को जहाँ तक मैं समझती हूँ नलिनी की गांड का भोग करने की इच्छा होगी.”
“नानी, आप सब समझते हो.” अनिल ने हर्षित मन से कहा.
तो शीघ्र ही सभी अपने स्थान पर आ गए. अनुज के लंड को सरिता ने मुंह में भर लिया तो सरिता की बहती चूत में नलिनी की जीभ विचरण करने लगी. अनिल ने अपने सामने प्रस्तुत नई गांड को देखा और सहलाया। फिर नितम्बों को चाटा। इसमें भी उसने बहुत समय लगाया. उसके बाद गांड को बाहर से जब चाटा तो नलिनी की सिसकी निकल गई.
अद्भुत दृश्य था. सरिता लेटी हुई थी और अनुज के लंड को चूस रही थी. नीचे उसकी चूत में नलिनी की जीभ उत्पात मचा रही थी. और नलिनी के पिछवाड़े में अनिल अपनी जीभ का जादू दिखा रहा था। नलिनी को ये समझने में देर नहीं लगी कि अनिल के लिए सरिता ने गांड का रसिया का उपयोग क्यों किया था. वो हर उस शैली को अपना रहा था जो नलिनी ने कम ही अनुभव की थी. वो गांड को चाटता फिर उसे ऊँगली से कुरेदता और बीभ बीभ में अपने मुंह से उस पर फूँक भी देता.
नलिनी इस अद्भुत अनुभव से एक नए ही लोक में पहुंच चुकी थी. सरिता को जब लगा कि अधिक लंड चूसने से अनुज झड़ सकता है तो उसने अपना मुंह हटा लिया.
“नलिनी की चूत में ही झड़ना, मेरे मुंह में नहीं.” उसने अनुज से कहा. अनुज हट गया और अपने भाई की ओर देखा. अनिल समझ गया कि उसका समय समाप्त हो गया है. उसने बड़े प्रेम से गांड के अंदर एक बार और जीभ फिराई और उसे चूमते हुए हट गया.
“जाओ अब नलिनी बिटिया को अच्छे से चोदो। उसके बाद मेरे पास आ जाना.” सरिता ने प्रेम से कहा.
अनुज लेट गया और नलिनी ने अपने मुंह को सरिता की चूत से हटाया और अनुज के तने लंड को एक बार चूमकर उसे ऊपर जाकर अपनी चूत में ले लिया. अभी उसने लंड अंदर डाला ही था कि उसे अपनी गांड पर दूसरे लंड का आभास हुआ. अनिल रुकने वाला नहीं था. वो नलिनी को इतना भी समय नहीं देने वाला था कि वो अनुज के लंड को भी अनुभव कर सके.
“आज कल के बच्चे. इतने अधीर क्यों होते हैं, जैसे मैं कहीं भागी जा रही हूँ.” नलिनी ने मन में सोचा और अपनी गांड को ढीला छोड़ दिया.
अनिल अपने भाग्य से मिली हुई इस नई गांड को चोदने के लिए इतना अधीर था कि उसने लंड को अंदर पेलने में कोई समय नहीं गँवाया। दो तीन धक्कों के ही साथ उसका पूरा लंड नलिनी की गांड की गहराइयों में समा गया. अनुज और अनिल के लौड़ों से भरी हुई नलिनी को एक संतुष्टि हुई कि आज इस परिवार में उसका समावेश पूर्ण हुआ. अनुज और अनिल के लंड उसकी चूत और गांड को खंगालने लगे और नलिनी इस आनंद से स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर रही थी.
अनिल के गांड मारने का ढंग भी कुछ अलग था और वो पारम्परिक रूप से किसी प्रकार से अनुज की लय का साथ नहीं दे रहा था. इसी कारण न केवल उसकी चूत बल्कि गांड भी ये समझने में असमर्थ थी कि अगला हमला किस प्रकार का होगा. और यही चुदाई का रहस्य है. जब तक आपको ये न पता चले कि आगे क्या होना है मन और तन दोनों एक अनूठे आनंद के साथ विचलित रहते हैं.
इसी कारण कुछ वर्षों में पति पत्नी के सम्भोग से आनंद कम हो जाता है क्योंकि वे जान लेते हैं कि क्या आगे है. अपने वैवाहिक जीवन के आनंद को असीमित रखने के लिए कुछ परिवर्तन आवश्यक है. और यही नलिनी अभी अनुभव कर रही थी. कई लौंड़ों से चुदवाने के बाद भी वो हर चुदाई में कुछ नया ढूंढने का प्रयास करती थी. अलग अलग लौड़ों से चुदने के कारण अब उसे नए नए आनंद प्राप्त होते थे.
ऐसा ही कुछ अब घटित हो रहा था. अनुज और अनिल का हर धक्का एक नया अनुभव दे रहा था. ऐसा भी नहीं था कि वो दुहरी चुदाई पहली बार कर रही थी. अभी दिन में ही उसकी चूत और गांड की अच्छी मालिश हुई थी. पर अब का आनंद उससे भिन्न था.
अनुज और अनिल भी उसकी चुदाई का पूरा आनंद ले रहे थे. वे पंक्ति में अंतिम भले ही रहे हों, पर वे अपनी छाप छोड़ने का प्रयास कर रहे थे.
अनिल कुछ अधिक ही उत्तेजित था और इसी कारण वो अधिक देर नहीं ठहर पाया और झड़ गया. नलिनी को कुछ निराशा अवश्य हुई पर वो भी अब अपने चरम पर पहुंच ही चुकी थी. अनुज अभी भी शक्तिशाली धक्कों से उसकी चूत में अपना चप्पू चला ही रहा था. जैसे ही अनिल उसकी गांड से हटा नलिनी को उसमे एक नए आगंतुक का आभास हुआ. वो समझ गई की सरिता ही है. उसकी खुली गांड में अपनी जीभ से सरिता जितना सम्भव हो वीर्य एकत्रित करने की चेष्टा कर रही थी. नलिनी ने अपनी गांड को खोला और सरिता के लिए राह सरल कर दी.
अनुज भी अपने रस को उसकी चूत में छोड़ने के बाद रुक गया. कुछ देर उसके लंड पर उछलने के बाद नलिनी हट गई और लेट गई. सरिता ने इस बार भी उसकी चूत से रस बटोरा और फिर ऊपर आकर उसके होंठों से होंठ मिलाकर कुछ उसे भी अर्पण किया. नलिनी ने ये अनुभव किया कि हालाँकि ये दुहरी चुदाई उस प्रकार से तीव्र और निर्मम नहीं थी जिसकी वो आदी थी, परन्तु वो पूर्णतया संतुष्ट थी. वो लेटी रही और उसे लगा कि सरिता ने दोनों लौड़ों को भी चाटा था.
कुछ देर के विश्राम के पश्चात सरिता ने अपनी चुदाई की इच्छा जताई. युवा लड़कों में शीघ्र चोदने की क्षमता होती है. तो कुछ ही देर में सरिता की चूत में अनिल और गांड में अनुज के लंड हंगामा कर रहे थे. दिन की थकान, शराब का नशा और दुहरी चुदाई का आनंद नलिनी को बिना अपने वातावरण की चिंता के शीघ्र ही नींद की झोंक में ले गया.
मिलन:
योजना के अनुसार संध्या अपने परिवार के साथ दो बजे के आसपास अपनी नंद से मिलने के लिए निकल पड़ी. तीन गाड़ियों में सभी अपने गंतव्य की ओर चल पड़े. अविका के नगर पहुंचकर उन्होंने सबके लिए उचित उपहार खरीदे और फिर अविका को फोन करके बताया कि वो सभी अगले बीस मिनट में घर पहुंच जायेंगे. अमोल का मन धड़क रहा था. न जाने कैसा होगा मिलन.
उधर अविका भी उत्सुक थी. उसे भानु ने संभाला हुआ था. वो बार बार द्वार पर जाकर देखती कि बंगले में कोई प्रवेश तो नहीं कर रहा है. कोई आधे घंटे के बाद गाड़ियों की ध्वनि सुनकर अविका बाहर ही खड़ी हो गई. परिवार के अन्य जन भी उसके पास आकर खड़े हो गए. तीन गाड़ियां अंदर आयीं और सबसे आगे वाली गाड़ी में से अमोल बाहर निकला और अविका स्वयं को रोक न पाई. वो दौड़कर अमोल के सीने से लिप्त गई और रोने लगी. उसके रुदन से सबके मन भर गए. अमोल के भी आंसू रुक नहीं रहे थे. वो अविका को पकड़े हुए बस ठगा सा खड़ा था.
संध्या और अन्य सभी अपनी गाड़ियों से निकलकर भाई बहन के इस मिलन को देख रहे थे. सबकी आँखें भरी हुई थीं. संध्या ने आगे बढ़कर अविका को अमोल से दूर किया और उसे अपने गले से लगाया. इस बार संध्या और अविका एक साथ रोने लगीं. अमोल आगे बढ़ा और भानु से गले मिला. फिर महेश से गले लगा. धीरे धीरे संध्या और अविका भी सम्भल गयीं.
दोनों ओर से जो नए थे वे दूसरे को देख रहे थे. इसमें से ललिता के घर की ओर से तीन लोग थे जो संध्या के परिवार के एक सदस्य को देखकर विस्मित थे.
तीनों के मुंह से एक साथ निकला, “शक्ति!”
ये शक्ति और कोई नहीं बल्कि सत्या ही है. और ये वही लड़का है जिससे ममता के घर पर रितेश, जयेश और नलिनी की भेंट हुई थी. अमोल ने उनकी बात सुनी तो उनकी ओर देखा.
“तुम जानते हो इसे? ये सत्या है. घर का नाम इसका सत्या है और आधिकारिक नाम शक्ति सिंह.”
रितेश ने ही उत्तर दिया, “जी, हम मिल चुके हैं एक मित्र के घर पर.”
“चलो अच्छा है.”
अब तक सब एक दूसरे से गले मिल रहे थे. इसके बाद अंदर गए. सामान अभी गाड़ी में ही रहने दिया. बाद में निकाला जाना था. संध्या ने सबको उनके उपहार दिए. पल्ल्वी और दिशा को सोने के हार और काव्या के लिए एक पूरा हीरे का सेट. अन्य सबको भी उचित उपहार दिए गए. इसके बाद अविका ने अपनी ओर से रिया को एक सेट भेंट किया और संध्या को हार. पंखुड़ी को उसने एक सुंदर साड़ी उपहार में दी. इसके बाद सब बैठे हुए पिछले छह वर्षों में घटित अपने जीवन के बारे में बताने लगे. अविका रह रह कर रोने लगती थी. पर उसे कोई रोक नहीं रहा था. ये हर्ष के आँसू जो थे.
इसके बाद पल्लू ने सबको उनके कमरे बताये और लड़कों ने गाड़ी से सबके सूटकेस सही कमरों में रख दिए. शाम होने को थी तो महेश ने ड्रिंक्स का प्रस्ताव रखा जो सहर्ष स्वीकार किया गया. कुछ ही देर में अल्पाहार और ड्रिंक्स का क्रम आरम्भ हो गया.
रात अभी शेष थी.
क्रमशः
कैसा रहा?
वाह एक दम मस्त अपडेट। शक्ति के आने से अब नलिनी का उत्साह और मजा कई गुना बढ़ जाएगा। अब सब लोगो को नए साथियों से मिलने का भी मौका मिलेगा।ससुराल की नयी दिशा
अध्याय २८ : महामिलन की पूर्व संध्या
अब तक:
दोनों परिवारों के मिलन की बेला निकट आ रही थी. पंखुड़ी ने सत्या के आचरण का ऐसा रूप ढूंढा जिसने पंखुड़ी को सत्या की एक दुर्बलता से प्रत्यक्ष करा दिया. अब सत्या एक प्रकार से उसके हाथों की कठपुतली था. अपने समधियों से चुदवाने के बाद नलिनी को काव्या और पल्लू से भी प्यार मिला. आज रात्रि उसकी भेंट अनुज और अनिल के साथ थी, फिर वो परिवार के साथ पूर्ण रूप सी मिल जाने वाली थी. कल से फिर एक और परिवार जुड़ने को था. संभावनाएं अनेकानेक थीं. सरिता ने भी दो दो लंड चूत में लेने का अनुभव प्राप्त किया और अगले सप्ताह के लिए अपनी गांड मरवाने के लिए भी अपने नातियों को वचनबद्ध कर लिया. पंखुड़ी ने संध्या और माधवी से कहा कि सत्या उनसे कुछ कहना चाहता है और वो उसे लेकर चली गयीं.
अब आगे:
ललिता का घर:
नलिनी के बाहर आने पर उसका तालियों से स्वागत हुआ तो वो कुछ झेंप गई. अनुज और अनिल उसे देखकर आज रात की कल्पना कर रहे थे. वो दोनों इस कड़ी की अंत में थे. सरिता भी इसी बारे में सोच रही थी. सरिता के पास आकर नलिनी बैठी तो सरिता ने उसके कान में फुसफुसाया.
“अगर तू कहे तो अनुज और अनिल को भी वैसे ही चुदवाने के लिए कहूँ।” बिना कुछ कहे ही सरिता ने दो लौड़े चूत में लेने के बारे में संकेत दिया. “और रितेश और जयेश से कहूँ कि इन दोनों को भी समझा दें.”
नलिनी ने कुछ विचार किया फिर मना कर दिया, “नहीं माँ जी. आज नहीं. नहीं तो न जाने क्या सोच बैठेंगे मेरे विषय में.”
सरिता हँसते हुए बोली, “मेरी लाड़ो, जब चुदवाने ही जा रही है तो क्या सोचेंगे क्या सोच रही है. पर जैसी तेरी इच्छा हो, वैसे ही कर. पर एक बात बता दूँ, अनिल जो है न वो गांड का रसिया है. तेरी गांड इतनी देर चाटेगा कि तुझे विश्वास ही नहीं होगा.”
ये सुनकर नलिनी की गांड में खुजली सी हो गई और वो सोफे पर ही कसमसाने लगी. जब यूँ ही बैठे हुए बात करते हुए चार बजे तो लड़के उठकर गद्दे लगाने चले गए और बहुएं कमरे सजाने के लिए. सरिता, ललिता, अविका और नलिनी बैठकर महेश और भानु से बातें करते रहे. सब कुछ सामान्य परिवार के ही समान था. एक घंटे में जब सब लौटे तो ललिता और अविका चाय बनाने लगीं. फिर सरिता और नलिनी भी आ गयीं और ये निश्चित हुआ कि शाम के लिए लगे हाथ पकोड़े और अन्य अल्पाहार भी बना ही लिए जाएँ, जिससे उस समय समय व्यर्थ न हो.
पर जैसा महिलाओं के साथ होता है, जब वो रसोई से निकलीं, तो न केवल चाय लेकर आयीं बल्कि पकोड़े और रात्रि के भोजन को भी बनाकर निकलीं. अब उन्हें रसोई के चक्कर नहीं काटने होंगे. महेश ने घर में शराब और बियर की उपलब्धि के विषय में जानना चाहा. फिर देवेश और अनुज से कहा कि वे जाकर उपयुक्त मात्रा में दोनों ले आएं जिससे कल से दो तीन दिन के लिए जाना न पड़े. देवेश और अनुज निकले और एक घंटे बाद लौटे तो इतनी शराब ले आये की तीन दिन क्या दो सप्ताह तक न जाना पड़े.
“क्या दुकान लूट लाये हो?” महेश ने हंसकर कहा.
“कुछ ऐसा ही समझिये. पर देवेश भैया बोले कि दूसरी नानी भी आ रही हैं तो उनका भी स्वागत धूमधाम से होना चाहिए. जैसा नानी जी का किया था कुछ दिनों पहले. बस इस बार हम पाँचों भाई उनका स्वागत करेंगे.”
सरिता को वो रात याद आ गई और वो बोल पड़ी, “तुम्हें क्या पता कि वो पीयेंगीं भी कि नहीं?”
देवेश नानी के पास गया और बोला, “नानी, अगर वो हम सबका पानी पी सकती हैं तो ये क्यों नहीं. मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई समस्या होगी.”
“मुझे तो इन दोनों ने ही मार डाला था उस दिन. अब अगर तुम पाँचों उस पर चढ़ गए तो उसका क्या होगा?”
“कोई बात नहीं नानी, आप को भी साथ ले लेंगे.” देवेश हंसकर बोला।
“सच!” सरिता के मुंह से निकला ही था कि उसे लगा कि वो अधीरता दिखा बैठी है. पर अब कुछ नहीं हो सकता था. सभी मुस्कुराते हुए नानी नाती की बातें सुन रहे थे.
“चलो फिर ठीक है. वैसे पंखुड़ी पीती है. मैं जानती हूँ. पर उसपर चढ़ती कम है.”
“उसके लिए हम हैं न नानी, हम चढ़ जायेंगे.” ये कहकर देवेश ने सरिता के होंठों पर ऊँगली फिराई।
अब तक देवेश और अनुज के द्वारा लाया हुआ भंडार एक स्थान पर जमा कर दिया गया. बस कुछ बियर ठंडी करने के लिए लगा दी और एक बोतल शराब की निकाल ली गई, आज के लिए. वैसे भी अब शाम हो ही चुकी थी.
संध्या का घर:
सत्या को लेकर माधवी और संध्या कमरे में गईं. माधवी ने ही पहले पूछा कि क्या बात करनी है. सत्या ने दोनों को बैठने के लिए कहा.
“मैंने नानी को अपनी शर्त मानने के लिए विवश किया था.”
ये सुनकर संध्या को कुछ ठेस लगी. अपनी माँ का इस प्रकार से अपमान उसे अच्छा नहीं लगा. माधवी ने कोई विशेष भाव नहीं दिखाए, पर उसे भी ये व्यवहार भला नहीं लगा. पंखुड़ी की आयु का ध्यान न रखते हुए उसके बेटे ने ऐसा किया ये उसके लिए शर्म की बात थी.
“मॉम, मम्मी. मैं समझ रहा हूँ कि मैंने एक बहुत बड़ी गलती की है और उसका प्रयाश्चित करना चाहता हूँ. नानी ने बाद में मुझे बहुत कोसा और आगे से मुझसे दूर रहने का निर्णय लिया. परन्तु उन्होंने एक प्रस्ताव रखा जिसे मानने के बाद हम पहले के ही समान हो सकते हैं. मैंने उनकी ये बात मान ली है और नानी ने भी मुझे क्षमा कर दिया है. मैं आगे से उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं करूँगा। इसीलिए मैं आप दोनों से बात करना चाहता हूँ, क्योंकि उन्होंने जो प्रस्ताव रखा है मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूँ.”
माधवी और संध्या मुंह खोले उसकी बात सुन रहे थे. संध्या को अपनी माँ पर गर्व था जिन्होंने सत्या को सुधर जाने का अवसर दिया था.
“क्या प्रस्ताव है?” संध्या ने ही पूछा.
सत्या ने उन्हें घटित हुई घटना के बारे में बताया. इस बार माधवी और संध्या और भी अधिक अचरज में आ गए.
“सच ये है, कि मुझे ये अच्छा लगा था. क्यों, मैं नहीं जानता पर मुझे अच्छा लगा और आगे भी मैं उनके मूत्र का सेवन करता रहूँगा। अब उन्हें पिलाने के स्थान पर मैं पियूँगा.” सत्या बिना रुके बोले जा रहा था.
“अब जो उन्होंने मुझे करने के लिए बाध्य किया है जिसके बिना इसके पहले की हुई बातें निरर्थक हैं. पहले मैं आप दोनों से भी क्षमा याचना करता हूँ. अगर आप दोनों इस प्रकार से आगे नहीं करना चाहती हैं तो कोई भी दबाव मेरी ओर से नहीं रहेगा. आप चाहेंगी तभी मैं ऐसा करूँगा।”
सत्या ने दोनों को देखा.
“कभी कभी के लिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर हर बार गांड मरवाने के लिए तुम्हारी ये शर्त अच्छी नहीं लगती है. इसीलिए विशेष स्थिति में हम ये आगे कर सकते हैं. क्यों माधवी?” संध्या ने कहा. माधवी ने भी सहमति जताई तो सत्या के मन से एक बोझ कम हुआ.
“अब इसके आगे, नानी ने ये भी कहा है कि आज मुझे आप दोनों का मूत्र पीना है, अन्यथा,,,”
सत्या बात समाप्त भी नहीं कर पाया था कि माधवी खड़ी हो गई. “चल.”
माधवी आगे चल दी और सत्या उसके पीछे. उनके पीछे संध्या भी चल पड़ी. बाथरूम के कमोड पर माधवी बैठी और सत्या के अपने आगे बैठाया. इसके बाद उसने सत्या के मुंह में धार छोड़ दी. सत्या को अचानक अपने मुंह और गले पर एक और धार का आभास हुआ. ये संध्या थी जो एक ओर से उसे नहला रही थी. जब ये कार्य सम्पन्न हुआ तो माधवी और संध्या ने जाकर अपने अंग धोये. सत्या स्नान के लिए बढ़ गया.
माधवी और संध्या ने ये निर्णय लिया कि चार महीने तक सत्या को इसी प्रकार से नहलाया जायेगा. उसके बाद जैसी परिस्थिति होगी, उसके अनुसार निर्णय लेंगे. दोनों ने बाहर जाकर पंखुड़ी को गले लगाया और उसे धन्यवाद दिया कि उसने सत्या को सही राह और स्थान दिखाया. पंखुड़ी स्वयं पर गर्वित हो उठी.
माधवी और संध्या ने बाहर आकर मंत्रणा की. फिर बाद में पूरे परिवार को सम्बोधित किया.
“कल से हम कपड़े पहनेंगे. क्योंकि वहाँ हम इस प्रकार से नहीं घूम सकते. तो कुछ अभ्यास आवश्यक है. दूसरा, आज संध्या अमोल के साथ और रिया अंकुर के ही साथ रहेगी. कल से न जाने इन्हें अपने पति के साथ सहवास का अवसर कब मिले. तीसरा, मैं चाहती हूँ कि कल हम कुछ पहले निकलें और अपनी दोनों बहुओं के लिए उनके ही नगर से कुछ उपहार ले लें. यहाँ से भी ले सकते हैं, परन्तु मैं यात्रा में इस प्रकार की वस्तुएं लेकर नहीं जाना चाहती.”
अमोल: “सही बात है. तो कल दोपहर ही निकल जाते हैं, दो बजे. क्योंकि तुम्हारी शॉपिंग को मैं जानता हूँ, दो तीन घंटे से कम नहीं लगेंगे.”
संध्या: “और उस समय में आप लोग भी जाकर अन्य सबके लिए उचित उपहार ले लीजियेगा. आपका भी समय कट जायेगा.”
पंखुड़ी: “देखो बच्चों. मुझे आज शांति से सोने दो. कल से न जाने जाने पूरी रात की नींद कब मिले.”
माधवी इस कथन से प्रसन्न हो गई. उसे अन्य तीनों पराग, यश और सत्या के साथ एक साथ चुदने का सुनहरा अवसर जो मिल रहा था. इसके बाद भोजन के उपरांत सभी सोने या अन्य कर्मों के लिए अपने कमरों में चले गए.
ललिता का घर:
सबने अपनी इच्छानुसार अपने पेय चुने और फिर कल की बात हुई. महेश और ललिता ने जाकर हॉल का निरीक्षण किया और कल के लिए कुछ और प्रबंध करने के बारे में विचार किया. उसके बाद आकर उन्होंने देवेश को अपने विचार बताये तो देवेश ने कल उचित प्रबंध करने का भरोसा दिलाया. इसके बाद सबने भोजन किया और अपने कमरों में चले गए. नलिनी भी सरिता के साथ अपने कमरे में गई और अनुज और अनिल की राह देखने लगी. कुछ ही देर में दोनों आ गए.
सरिता अब एक झीने गाउन में थी. सरिता ने भी वैसा ही गाउन पहना था. सरिता ने अपने मन की बात नलिनी से कही तो नलिनी ने सहर्ष उसे स्वीकार भी कर लिया. अनुज और अनिल अपने कपड़े उतार कर नलिनी की ओर बढ़े और अनुज ने आगे और अनिल ने उसे पीछे से थामा और अलग अलग अंगों को चूमने लगे. नलिनी भी कामातुर हो उठी और मचलने लगी. सरिता ने भी अपना गाउन उतार फेंका और नलिनी के पास आकर उसके गाउन को भी उतार दिया.
“बिस्तर पर आओ.” सरिता ने कहा. “नलिनी और मैंने ये तय किया है कि आज हम दोनों की चुदाई होगी. पहले नलिनी की फिर मेरी. अभी मैं अनुज का लंड चूसूँगी और नलिनी मेरी चूत. अनिल को जहाँ तक मैं समझती हूँ नलिनी की गांड का भोग करने की इच्छा होगी.”
“नानी, आप सब समझते हो.” अनिल ने हर्षित मन से कहा.
तो शीघ्र ही सभी अपने स्थान पर आ गए. अनुज के लंड को सरिता ने मुंह में भर लिया तो सरिता की बहती चूत में नलिनी की जीभ विचरण करने लगी. अनिल ने अपने सामने प्रस्तुत नई गांड को देखा और सहलाया। फिर नितम्बों को चाटा। इसमें भी उसने बहुत समय लगाया. उसके बाद गांड को बाहर से जब चाटा तो नलिनी की सिसकी निकल गई.
अद्भुत दृश्य था. सरिता लेटी हुई थी और अनुज के लंड को चूस रही थी. नीचे उसकी चूत में नलिनी की जीभ उत्पात मचा रही थी. और नलिनी के पिछवाड़े में अनिल अपनी जीभ का जादू दिखा रहा था। नलिनी को ये समझने में देर नहीं लगी कि अनिल के लिए सरिता ने गांड का रसिया का उपयोग क्यों किया था. वो हर उस शैली को अपना रहा था जो नलिनी ने कम ही अनुभव की थी. वो गांड को चाटता फिर उसे ऊँगली से कुरेदता और बीभ बीभ में अपने मुंह से उस पर फूँक भी देता.
नलिनी इस अद्भुत अनुभव से एक नए ही लोक में पहुंच चुकी थी. सरिता को जब लगा कि अधिक लंड चूसने से अनुज झड़ सकता है तो उसने अपना मुंह हटा लिया.
“नलिनी की चूत में ही झड़ना, मेरे मुंह में नहीं.” उसने अनुज से कहा. अनुज हट गया और अपने भाई की ओर देखा. अनिल समझ गया कि उसका समय समाप्त हो गया है. उसने बड़े प्रेम से गांड के अंदर एक बार और जीभ फिराई और उसे चूमते हुए हट गया.
“जाओ अब नलिनी बिटिया को अच्छे से चोदो। उसके बाद मेरे पास आ जाना.” सरिता ने प्रेम से कहा.
अनुज लेट गया और नलिनी ने अपने मुंह को सरिता की चूत से हटाया और अनुज के तने लंड को एक बार चूमकर उसे ऊपर जाकर अपनी चूत में ले लिया. अभी उसने लंड अंदर डाला ही था कि उसे अपनी गांड पर दूसरे लंड का आभास हुआ. अनिल रुकने वाला नहीं था. वो नलिनी को इतना भी समय नहीं देने वाला था कि वो अनुज के लंड को भी अनुभव कर सके.
“आज कल के बच्चे. इतने अधीर क्यों होते हैं, जैसे मैं कहीं भागी जा रही हूँ.” नलिनी ने मन में सोचा और अपनी गांड को ढीला छोड़ दिया.
अनिल अपने भाग्य से मिली हुई इस नई गांड को चोदने के लिए इतना अधीर था कि उसने लंड को अंदर पेलने में कोई समय नहीं गँवाया। दो तीन धक्कों के ही साथ उसका पूरा लंड नलिनी की गांड की गहराइयों में समा गया. अनुज और अनिल के लौड़ों से भरी हुई नलिनी को एक संतुष्टि हुई कि आज इस परिवार में उसका समावेश पूर्ण हुआ. अनुज और अनिल के लंड उसकी चूत और गांड को खंगालने लगे और नलिनी इस आनंद से स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर रही थी.
अनिल के गांड मारने का ढंग भी कुछ अलग था और वो पारम्परिक रूप से किसी प्रकार से अनुज की लय का साथ नहीं दे रहा था. इसी कारण न केवल उसकी चूत बल्कि गांड भी ये समझने में असमर्थ थी कि अगला हमला किस प्रकार का होगा. और यही चुदाई का रहस्य है. जब तक आपको ये न पता चले कि आगे क्या होना है मन और तन दोनों एक अनूठे आनंद के साथ विचलित रहते हैं.
इसी कारण कुछ वर्षों में पति पत्नी के सम्भोग से आनंद कम हो जाता है क्योंकि वे जान लेते हैं कि क्या आगे है. अपने वैवाहिक जीवन के आनंद को असीमित रखने के लिए कुछ परिवर्तन आवश्यक है. और यही नलिनी अभी अनुभव कर रही थी. कई लौंड़ों से चुदवाने के बाद भी वो हर चुदाई में कुछ नया ढूंढने का प्रयास करती थी. अलग अलग लौड़ों से चुदने के कारण अब उसे नए नए आनंद प्राप्त होते थे.
ऐसा ही कुछ अब घटित हो रहा था. अनुज और अनिल का हर धक्का एक नया अनुभव दे रहा था. ऐसा भी नहीं था कि वो दुहरी चुदाई पहली बार कर रही थी. अभी दिन में ही उसकी चूत और गांड की अच्छी मालिश हुई थी. पर अब का आनंद उससे भिन्न था.
अनुज और अनिल भी उसकी चुदाई का पूरा आनंद ले रहे थे. वे पंक्ति में अंतिम भले ही रहे हों, पर वे अपनी छाप छोड़ने का प्रयास कर रहे थे.
अनिल कुछ अधिक ही उत्तेजित था और इसी कारण वो अधिक देर नहीं ठहर पाया और झड़ गया. नलिनी को कुछ निराशा अवश्य हुई पर वो भी अब अपने चरम पर पहुंच ही चुकी थी. अनुज अभी भी शक्तिशाली धक्कों से उसकी चूत में अपना चप्पू चला ही रहा था. जैसे ही अनिल उसकी गांड से हटा नलिनी को उसमे एक नए आगंतुक का आभास हुआ. वो समझ गई की सरिता ही है. उसकी खुली गांड में अपनी जीभ से सरिता जितना सम्भव हो वीर्य एकत्रित करने की चेष्टा कर रही थी. नलिनी ने अपनी गांड को खोला और सरिता के लिए राह सरल कर दी.
अनुज भी अपने रस को उसकी चूत में छोड़ने के बाद रुक गया. कुछ देर उसके लंड पर उछलने के बाद नलिनी हट गई और लेट गई. सरिता ने इस बार भी उसकी चूत से रस बटोरा और फिर ऊपर आकर उसके होंठों से होंठ मिलाकर कुछ उसे भी अर्पण किया. नलिनी ने ये अनुभव किया कि हालाँकि ये दुहरी चुदाई उस प्रकार से तीव्र और निर्मम नहीं थी जिसकी वो आदी थी, परन्तु वो पूर्णतया संतुष्ट थी. वो लेटी रही और उसे लगा कि सरिता ने दोनों लौड़ों को भी चाटा था.
कुछ देर के विश्राम के पश्चात सरिता ने अपनी चुदाई की इच्छा जताई. युवा लड़कों में शीघ्र चोदने की क्षमता होती है. तो कुछ ही देर में सरिता की चूत में अनिल और गांड में अनुज के लंड हंगामा कर रहे थे. दिन की थकान, शराब का नशा और दुहरी चुदाई का आनंद नलिनी को बिना अपने वातावरण की चिंता के शीघ्र ही नींद की झोंक में ले गया.
मिलन:
योजना के अनुसार संध्या अपने परिवार के साथ दो बजे के आसपास अपनी नंद से मिलने के लिए निकल पड़ी. तीन गाड़ियों में सभी अपने गंतव्य की ओर चल पड़े. अविका के नगर पहुंचकर उन्होंने सबके लिए उचित उपहार खरीदे और फिर अविका को फोन करके बताया कि वो सभी अगले बीस मिनट में घर पहुंच जायेंगे. अमोल का मन धड़क रहा था. न जाने कैसा होगा मिलन.
उधर अविका भी उत्सुक थी. उसे भानु ने संभाला हुआ था. वो बार बार द्वार पर जाकर देखती कि बंगले में कोई प्रवेश तो नहीं कर रहा है. कोई आधे घंटे के बाद गाड़ियों की ध्वनि सुनकर अविका बाहर ही खड़ी हो गई. परिवार के अन्य जन भी उसके पास आकर खड़े हो गए. तीन गाड़ियां अंदर आयीं और सबसे आगे वाली गाड़ी में से अमोल बाहर निकला और अविका स्वयं को रोक न पाई. वो दौड़कर अमोल के सीने से लिप्त गई और रोने लगी. उसके रुदन से सबके मन भर गए. अमोल के भी आंसू रुक नहीं रहे थे. वो अविका को पकड़े हुए बस ठगा सा खड़ा था.
संध्या और अन्य सभी अपनी गाड़ियों से निकलकर भाई बहन के इस मिलन को देख रहे थे. सबकी आँखें भरी हुई थीं. संध्या ने आगे बढ़कर अविका को अमोल से दूर किया और उसे अपने गले से लगाया. इस बार संध्या और अविका एक साथ रोने लगीं. अमोल आगे बढ़ा और भानु से गले मिला. फिर महेश से गले लगा. धीरे धीरे संध्या और अविका भी सम्भल गयीं.
दोनों ओर से जो नए थे वे दूसरे को देख रहे थे. इसमें से ललिता के घर की ओर से तीन लोग थे जो संध्या के परिवार के एक सदस्य को देखकर विस्मित थे.
तीनों के मुंह से एक साथ निकला, “शक्ति!”
ये शक्ति और कोई नहीं बल्कि सत्या ही है. और ये वही लड़का है जिससे ममता के घर पर रितेश, जयेश और नलिनी की भेंट हुई थी. अमोल ने उनकी बात सुनी तो उनकी ओर देखा.
“तुम जानते हो इसे? ये सत्या है. घर का नाम इसका सत्या है और आधिकारिक नाम शक्ति सिंह.”
रितेश ने ही उत्तर दिया, “जी, हम मिल चुके हैं एक मित्र के घर पर.”
“चलो अच्छा है.”
अब तक सब एक दूसरे से गले मिल रहे थे. इसके बाद अंदर गए. सामान अभी गाड़ी में ही रहने दिया. बाद में निकाला जाना था. संध्या ने सबको उनके उपहार दिए. पल्ल्वी और दिशा को सोने के हार और काव्या के लिए एक पूरा हीरे का सेट. अन्य सबको भी उचित उपहार दिए गए. इसके बाद अविका ने अपनी ओर से रिया को एक सेट भेंट किया और संध्या को हार. पंखुड़ी को उसने एक सुंदर साड़ी उपहार में दी. इसके बाद सब बैठे हुए पिछले छह वर्षों में घटित अपने जीवन के बारे में बताने लगे. अविका रह रह कर रोने लगती थी. पर उसे कोई रोक नहीं रहा था. ये हर्ष के आँसू जो थे.
इसके बाद पल्लू ने सबको उनके कमरे बताये और लड़कों ने गाड़ी से सबके सूटकेस सही कमरों में रख दिए. शाम होने को थी तो महेश ने ड्रिंक्स का प्रस्ताव रखा जो सहर्ष स्वीकार किया गया. कुछ ही देर में अल्पाहार और ड्रिंक्स का क्रम आरम्भ हो गया.
रात अभी शेष थी.
क्रमशः
कैसा रहा?