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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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Ting ting

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Ting ting

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अब काफी देर हो रही थी. मैं ज्यादा समय नहीं लेना चाहती थी क्योंकि मेरी चूत को बाबूजी के लण्ड के लिए तरस रही थी. चुदाई को मरी जा रही थी मैं.
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तो मैंने बाबुजी को कहा

"बाबुजी! अब तो आप का लौड़ा गीला हो गया है. प्लीज देर न लगाएं और इसे जल्दी से मेरे अंदर डाल दें."

बाबुजी समझ गए की उनकी बहुरानी चुदाई के लिए तैयार है. तो उन्होंने कहा

"सुषमा! ऐसा करो की तुम बेड के किनारे पर हाथ रख कर घोड़ी बन जाओ और मैं पीछे से तुम्हारी चूत मैं लण्ड घुसाता हूँ. "
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मैं तो आज चुदवाने के लिए हर आसन में तैयार थी. बस लौड़ा मेरे अंदर घुसना चाहिए था.

बाबूजी ने मेरी नंगी छातियां हाथ में ले ली और उन्हें चूसने लगे. मैंने पूछा कि अभी तो आप मुझे घोड़ी बनने को कह रहे थे अब यह चूसना क्यों शुरू कर दिया तो बाबूजी बोले

"सुषमा! ऐसा है कि तुम्हारी चूत अभी मेरे लण्ड के लिए छोटी है .मेरा लण्ड बहुत मोटा है, इसे अंदर करने के लिए जोर लगाना पड़ेगा. यदि मैं तुम्हारी चूचिया चाटूँगा तो अपने आप मेरा लौड़ा सख्त हो जायेगा और आराम से घुस जायेगा. और तुम्हारी चूत भी गीली हो जाएगी इस तरह तुम्हे अच्छा भी बहुत लगेगा. "
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मैं समझ गयी कि बाबुजी पूरा नंगा करके मुम्मे चूसते हुए मुझे चोदना चाहते हैं. अब हम दोनों बाप बहुरानी पूरे नंगे थे।

बाबुजी मुस्कुरा पड़े. मुझे बहुत शर्म आयी और मैंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया.

बाबुजी ने प्यार से अपनी एक ऊँगली मेरी ठोड़ी के नीचे रख कर मेरा चेहरा ऊपर किया और मेरी आँखों में देखा.

मैं चाहे खुद बाबुजी से चुदवाने को मरी जा रही थी पर अब जब चुदाई का असली टाइम आया तो शर्म आ रही थी,

मैंने आँखें बंद कर ली. बाबुजी मुझे प्यार से बोले

"सुषमा! शर्मा क्यों रही है. मेरी तरफ देख तो सही. "

मैंने अपनी आँखें खोली. सामने बाबुजी मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे.

मुझे इतनी शर्म आयी की मैंने झट से आगे बढ़ कर बाबुजी को आलिंगन में ले लिया और अपना चेहरा उनकी नंगी छाती में छुपा लिया.

और बाबुजी के अकड़े हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ कर हिलाते हुए कहा
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"बाबुजी! मुझे अजीब सा लग रहा था. प्लीज मुझे तड़पाओ मत और जल्दी से इस को मेरे अंदर घुसा दो "

बाबुजी ने अपना एक हाथ मेरी नंगी चूची पर रख दिया और उसे मसलने लगे.

बाबुजी ने मुझे थोड़ा अलग किया और मेरी दोनों चूचिओं को देखने लगे मुझे शर्म तो आ रही थी पर क्या करती।

बाबुजी कुछ देर मेरी इन नंगी चुचियों को देखते रहे और फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी चुचियों पर रख दिए और मेरी चुचियों को अपनी मुट्ठी में भर कर पहले धीरे-धीरे और फिर से जोर-जोर से मसलने लगे। मुँह से तो "सी सी आह आह उई मां उई उई उफह्हह्हह्हह्ह मर गई, दर्द हो रहा है, मर गयी" की आवाजें निकलने लगी.
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मैं चीखी "सी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबूजी, आराम से करो मुझे बहुत दर्द हो रहा है" तो बाबुजी ने मेरी गुलाबी निप्पल को अपनी दोनों उंगली मैं दबा कर जोर-जोर से मसलने लगे।

मैं दर्द से और कुछ मजे से चिल्ला रही थी पर मुझे उस दर्द मैं भूलभुलैया का एहसास हो रहा था कुछ देर इसी तरह मेरे निप्पल और चुचियों को मसलने के बाद बाबुजी झुके और उन्हें ने अपना मुंह मेरी चुची पर लगा दिया.

और मेरे गुलाबी निप्पल को अपने दांतों के बीच दबा लिया बाबुजी अब मेरे निपल्स को अपने दांतों के बीच दबा कर खिंचने लगे और कभी मेरी पूरी चुची जितनी बाबुजी के मुँह में आ सकती थी उसे दबा कर ऐसे चूसने लगे मर्द जब चुची चुस्ता ही तो इतना मजा आता है कि क्या बताऊँ।"
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बाबुजी बारी बारी से बदल कर मेरी दोनों चुचियों को चूस रहे थे जबकी मेरा हाथ बाबुजी के सर पर था.

और मैं अपने बाबुजी अपनी चुचिया चुसवाते उनके सर के बालो में अपनी उंगली फिर रही थी। बाबुजी तो मेरी चूचियों को ऐसे चूस रहे थे वो मेरी चूची ना हो कर कोई मीठा रसीला आम हो अब तो बाबुजी मेरी दोनों चूचियों को अपने हाथो मैं दबा कर बारी से अपने होठों पर दबा कर चूसने लगे मेरे चूची को अपने दांतो से खींचने लगे.
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मैं तो बस मैं ठे दर्द से आअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह है कर रही थी और मस्ती मैं अपने हाथ बाबुजी के बालो मैं चला रही थी और कभी उनको अपनी चुचियों पर भींच रही थी। बाबुजी अपने होठों का जोश मेरी चुचियों पर कर रहे थे जिस से मेरी चूत भी बे हिसाब पानी छोड़ रही थी , अब बाबुजी ने इसी तरह चूसते चूसते मुझे चादर पर लिटा लिया. और खुद भी साथ में लेट कर मेरे मुम्मे चूसते रहे.
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उस समय मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी कि मुझे ऐसा लग रहा था कि अगर बाबुजी कुछ देर करते और इसी तरह मेरी चुचियों से खेलते रहे तो कहीं मुझ से अपने ऊपर कण्ट्रोल ख़त्म न हो जाये और मैं खुद ही उनका लण्ड पकड़ कर अपनी चूत में घुसेड़ लूँ और चोदने के लिए ना बोल दूं इसलिए मैंने अपनी दोनों बाहें फैला दीं, चादर को कस कर अपने दोनों हाथों से थाम लिया।
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पर अब मुझ से कंट्रोल करना मुश्किल लग रहा था, जिसका सबूत मेरी गांड अब मूव हो कर खुद ऊपर नीचे हो रही थी। बाबुजी की बार मेरी चूची चुस्ते ऊपर उठ कर मेरे होठों को चूसने लगते तो मेरी साँसें तेज चलने लगती और मैंने बाबुजी को अपनी बाहो में कस लिया और आलिंगन में कामुक आवाज बोली

"बाबुजी! क्या कर रहे है बस कीजिए ना."

मैं किसी मछली की बहुत तड़प रही थी और बेड पर अपनी दोनों बाहें फैला अपनी मुट्ठी मैं चद्दर को भींच कर कस कर चिल्ला रही थी "आआआह्हह्हह्ह जीइइइइइइइ ये क्या कर रही है है गुदगुदी हो रही है आआआआह्हह्हह्ह धीरेईईईईईई रुक जइए ना बाबूजी जीईईईईईईईईईईईईई रुक जाइए ना बस भी कजिए आआआआआआह्हह्हह्ह."
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पर बाबुजी वो अब कहां रुकने वाले थे। मैं भी बाबुजी का जोश बढ़ाने के लिए उनका साथ दे रही थी और बाबुजी मेरे ऊपर चढ़े अपने मुँह को मेरे मुँह में डाले मेरी चुचियों को दबा रहे थे. कुछ देर इसी तरह मेरी चूचियां चूसते रहे।

मैं काम उत्तेजना में "सी आह आह उई मां उई" करने लगी और बोली

"बाबुजी मुझे कुछ हो रहा है प्लीज कुछ करो."

बाबुजी ने कहा

"क्या करूं , मैं तो तैयार ही हूँ. बताओ न क्या करें?"

मैं बोली

"मुझे शर्म आती है प्लीज करो ना."

बाबुजी बोले

"जब तक खुलकर नहीं बोलोगी तो मुझे कैसे पता चलेगा कि क्या करना हैं. ऐसे शर्म से तुम्हे भी मजा नहीं आएगा ।"

तो मैं बोली

"बाबुजी अब रहा नहीं जाता। जल्दी से अपना यह हथियार मेरी चूत में डाल दो। ठोक दो उसे मेरे अंदर ही, मुझे चोदो।"
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बाबुजी बोले

"सुषमा! क्या कहा? जरा और खुलकर बोल मुझे सुनाई नहीं दिया."

वो मुस्कुरा रहे थे।

मैं बोली

"मुझे चोदो बाबुजी, घुसेड़ दो. अपना लंड मेरी बुर में और अपनी सुषमा की चूत मार लो, अपनी बहुरानी को प्यार से चोदना, दर्द मत देना, मेरे बाबुजी आई लव यू।"
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मुझे पता नहीं लग रहा था की कामवासना की आग में जल रही मैं कह क्या रही हूँ. दिमाग काम ही नहीं कर रहा था.

मैं तो जैसे पागल ही हो रही थी. बाबुजी का गधे जैसा मोटा लंड मैंने अपने हाथ में पकड़ लिया।

हे राम क्या शाही लंड था बाबुजी का और मेरा एक हाथ अपनी चूत पर चला गया

मेरी चूत पानी छोड़ रही थी, और अपनी चूत को सहलाने लगी

सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी दीवानी हो चुकी थी मेरी नज़र बाबुजी के घोड़े जैसे लंड पर टिक गयी.
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आंखो के सामने मुझे मेरे बाबुजी ही बाबुजी दिखायी दे रहे थे। उनका वो मजबूत गठेला शरीर, मजबूत कंधे, उनका चौड़ा सीना और सीना के घने बाल और सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी चूत दीवानी हो चुकी थी.

सच मेरे बाबुजी का क्या शाही लंड था अब इस शाही लंड पर मेरा नाम लिखा था आज मेरी चूत की आग को बाबुजी अपने उसी शाही लंड से चूत के अंदर डालकर मेरी चूत के अकड़ को ठंडा कर रहे होंगे.
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मेरे अंदर भयानक आग लगी हुई

सोचने लगी कि बाबुजी मुझे कैसे और किस पोजीशन में चोदेंगे। और मैं बाबुजी का साथ कितना दूंगी

आज मैंने विशेष तौर पर चूत की सफाई की थी. मेरी चूत जहां पहले थोड़े सी रेशमैं जुल्फी थी वहां अब सफाचट मैदान बन चुका था। अब मेरी पिच बाबुजी के द्वारा बल्लेबाज़ी करने के लिए पूरी तरह से तैयार करा दी

अब कुछ ही मिनट की बात है बाबुजी किसी भंवरे की तरह मेरी जवानी का रस चूस कर मुझे कलीसे फूल बनाने वाले थे जिस तरह मेरे बाबुजी से मिलन को बेकरारी थी उसी तरह मेरी चूत भी अपने लिंग महाराज से मिलने को बेकरार थी.
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सुबह से मेरी चूत बाबुजी के लंड के स्वागत के लिए पलकें बिछाईं थी मेरी चूत मेरी हल्की हल्की सुरसुराहट हो रही थी सुबह से ..

बाबुजी ने अपनी नज़र मेरे चेहरे पर गड़ा दी। बाबुजी ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर रख और मेरा चेहरा उठा कर बोले, मेरी आँखों ने देखा तो मैंने शर्म और डरे से बाबुजी की आँखों से देखा तो बाबुजी बोले।
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"सुषमा! आज तो तुम बिना कपड़ों के बिलकुल एकदम स्वर्ग की अप्सरा लग रही हो। "

बाबुजी बोले

" हम दोनो में शर्म का क्या काम, मेरी बेटी। मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ. अगर तुम भी मुझसे प्यार करती हो तो मेरी आंखो में देख कर बोलो।"

तो मैंने बाबुजी की आंखो मैं देख कर कहा
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"बाबूजी मुझे शर्म आती है. पर बाबुजी आई लव यू."

और तेजी से ये बोल कर अपना मुंह बाबुजी की छाती में छुपा लिया और बाबुजी ने मुझे अपनी बाहों में समेट लिया और मुझे सहलाने लगे।

मेरे बाबुजी के सीने से चिपकी हुई थी अलग ही दुनिया मेरी थी। कुछ देर इसी तरह मुझे अपने सीने से चिपकाया रहने के बाद बाबुजी ने फिर से मेरा चेहरा हाथ में लिया, अब मेरे होंठ बाबुजी के होंठों के बिल्कुल पास थे बाबुजी की गरम सांसे मेरे चेहरे पर पड रही थी कि बाबुजी ने अपने होठों को मेरे होठों की और बढाया ही था कि मैंने शर्म से मुंह घुमालिया।

बाबुजी ने फिर से अपने होठों को मेरे होंठों की और बड़ा दिया। मैं अब बाबुजी को रोक नहीं सकती थी बाबुजी ने अपने होठों से मेरे होठों को लॉक कर दिया.
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और मेरे उपर वाला होंठअपने होंठों मैं दबा कर चूसने लगे तो मैं भी बाबुजी के होंठों को चूसने में उनका साथ देने लगी।

बाबुजी के इस तरह मेरे होठों को चूसने से मेरे होठों एक दम बिना लिपस्टिक के गुलाबी हो गए . लेकिन बाबुजी थे जो आज ही मेरे होठों का सारा रस निचोड़ लेना चाहते था बाबुजी ने फिर से मेरे होठों को अपने होठों से पकड़ लिया.

मेरी नाक बाबुजी की नाक से और बाबुजी की जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी कि तभी बाबुजी ने मेरी जीभ को अपने होठों पर दबा कर खींच लिया और जीभ को चूसने लगे मेरी सांसे और भी तेज चलने लगी थी.
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जिस तरह से बाबुजी मेरे होठों को मेरी जिह्वा को चूस रहे थे मैं जान गई थी कि आज की रात बाबुजी मेरे बदन के हर अंग को ऐसे ही चूसेंगे। मेरा चुदने का वक्त आ गया था। बाबुजी तो मेरे होठों का सारा रस ही चूस जाना चाहते हो।

बाबुजी इतनी मस्ती और अच्छी तरह से मेरे होठों का रस चूस रहे थे जैसा कोई भंवरा किसी कली का रस चूस रहा हो। बाबुजी के दवारा इस तरह अपने होठों का रस चूस लिए जाने से मुझे बहुत आनंद आ रहा था और मैंने अपनी दोनो बाहें बाबुजी के गले में डाल दी। मेरे और बाबुजी दोनों के होंठबुरी तरह से चिपके हुए थे।
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बाबुजी मेरे होंठको चूस रहे थे और उनके कठौर हाथ मेरी पीठ सहला रहे थे

आज मुझे एक नया ही एहसास हो रहा था कि पूरे बदन मेरी गुदगुदी सी हो रही थी। मेरे प्यारे बाबुजी ने अपनी जीभ मेरे मेरे मुँह में डाल दी अब उनकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी तो उनको ने मेरी जीभ को अपने होठों पर दबा लिया और मेरी जीभ को चूसने लगे।

यहाँ सिर्फ हमारे चुम्बनो की आवाज ही गूंज रही थी। मेरे और बाबुजी के होंठएक दूसरे के होठों से ऐसे चिपके थे कि जैसे उनको फेविकोल से चिपका दिया हो। बाबुजी मेरे होठों को बुरी तरह से चूस रहे थे और मैं उनकी बांहों मैं मचल रही थी मस्ती से पागल हो रही थी
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मेरे से अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. मैंने अपने हाथ में पकडे हुए बाबुजी के लण्ड को अपनी चूत पर टिका दिया. बाबुजी का लण्ड बहुत गर्म था.

मेरी चूत से भी बहुत पानी चू रहा था. चूत इतनी गीली हो गयी थी कि लौड़ा बिना तेल या किसी चिकनाई के भी घुस सकता था.

मैं बाबुजी के लण्ड के सुपाडे को अपनी चूत की दरार में रगड़ने और घिसने लगी.
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बाबुजी समझ रहे थे कि उनकी बहु बहुत प्यासी हो चुकी है. वो शायद इसी समय का इन्तजार कर रहे थे. क्योंकि वो जानते थे कि उनका लण्ड बहुत मोटा और बड़ा है. मैं अपने बाबुजी से पहली बार चुदने वाली हूँ तो मैं उनका लौड़ा सहन नहीं कर पाऊँगी. क्योंकि मुझे अभी तक इतने मोटे लौड़े की आदत नहीं है. मेरे पति का लौड़ा तो बाबूजी के लण्ड के मुकाबले बहुत छोटा था.

इसीलिए बाबुजी चाहते थे कि मेरी वासना हद से ज्यादा बढ़ जाए और चूत बिलकुल गीली हो जाये तो ही चुदाई करनी चाहिए उन्हें.
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उस समय तो बाबुजी का लंड किसी पागल सांड की तरह दिख रहा था जो किसी लहलहाते खेत के पास खड़ा हो कर उस खेत को उजाड़ने के लिए तैयार हो। बाबुजी मेरी दोनों टांगों के बीच थे और उनका घोड़े के जैसा लंड मेरे तालाब में उतर कर मेरे तालाब की गहराई को मापने के लिए मचल रहा था।

बाबुजी का घोड़े के लंड जैसा लंड मेरे तालाब की गहराई में उतर कर ये देखना चाहता था कि मेरे तालाब में कितना पानी है।

मैं उनके सुपाडे को चूत में रगड़ रही थी. और बाबुजी ने मेरी दोनों टांगों को अपने हाथ से पकड़ कर पूरी तरह से खोल दिया.
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बाबुजी के लंड का सुपाड़ा अपनी नई नवेली रानी के साथ चुम्मा चाटी कर रहा था उसे बेहला फुसला रहा था। बाबुजी के लौड़े का गरम गरम स्पर्श अपनी चूत पर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी चूत पर कोई गरम गरम लोहे की रॉड रख दी हो.

मैं बुरी तरह से डर भी रही थी क्योंकि अब मेरी चूत का बाजा बजने वाला था.

तभी बाबुजी ने हल्का सा धक्का मारा। भला बाबुजी का बांस जैसा हथियार इतनी आसान से कहां जाता, बाबुजी ने फिर से अपने लंड को मेरी चूत पर रख कर धक्का मारा पर इस बार भी वो मेरी चूत मैं ना जा कर एक साइड की ओर मुड़ गया.

तो बाबुजी मेरी तरफ देख शैतानी से मुस्कुराते हुए बोले

"सुषमा! यह एक मेहमान तुम्हारी चौखट पर आया खड़ा है. बेचारे की नजर कमजोर है और उसकी एक ही आँख है. इसलिए वो तुम्हारे घर में नहीं जा पा रहा. तुम उसे थोड़ा रास्ता बता दोगी ताकि वो अंदर आ सके?"
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मैं भी बाबुजी को शरारत से बोली

"बाबुजी! आप के मेहमान का मेरे घर के अंदर स्वागत है. उसे अंदर भेज दीजिये मैं तो उसका कब से इन्तजार कर रही हूँ.."

बाबुजी बोले

"बेटी! तुम एक काम करो कि उसको पकड़ कर घर के दरवाजे पर रखो मैं उसे धक्का दे कर अंदर भेज देता हूँ. तुम अपने हाथ से पकड़कर अच्छे से लगा कर रखो मैं धक्का मारता हूं। ठीक है?"

तो मैंने शर्माते हुए बाबुजी से कहा,

"जी बाबुजी! आपका यह मेहमान तो बहुत मोटा है और घर का दरवाजा बहुत तंग है, ये अंदर नहीं जाएगा।"

तो बाबुजी बोले

"सुषमा! तुम ऐसे पकड़ कर गेट पर रखो तो सही. यह अंदर चला जाएगा।( फिर बाबुजी मेरी आंखो में देख मुस्कुराहट से बोले), चला जाएगा सब औरतों के अंदर चला जाता है तो क्या तुम्हारे अंदर नहीं जाएगा रही बात मोटे की जितना मोटा है उतना ही तो मजा देता है। तुम अंदर तो आने दो इसे."

मैं बाबुजी के लौड़े की मोटाई से थोड़ा सा डरी थी कि ये 9 इंच का और इतना मोटा मेरे अंदर कैसे जायेगा."
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मैं बाबुजी के गले लग कर कान में बोली

"बाबुजी प्लीज़ आराम से चोदना, मेरी रसभरी चूत केवल आपले बेटे के छोटे से लण्ड से चुदी है, मैं आपके लण्ड के हिसाब से तो कली हूं, मेरे प्यारे बाबुजी आपका लंड बहुत मोटा और लम्बा है इस कली को मसल कर बर्बाद न करना,"

बाबुजी ने मेरे होंठों को अपने मुंह में भर लिया और कहा

"बहुरानी तुम बिलकुल भी चिंता न कर. एक बार इसे अंदर करने दे फिर इस मज़े को तू जीवन में कभी नहीं भूलेगी, थोड़ा सा दर्द होगा पर उसे झेल जा सुषमा."

फिर मैंने होंसला करते हुए बाबुजी के लण्ड को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसके सुपाडे को अपनी चूत के छेद पर रख दिया. बाबुजी का सुपाड़ा मोटे टमाटर जैसा था उसने चूत को पूरा ढक लिया था मैं मचलने लगी, बाबुजी ने थोड़ा सा लंड का दबाव चूत पर दिया.

बाबुजी का लण्ड चूत में नहीं जा रहा था, मैं कसमसाने लगी लंड बाहर छिटक जा रहा था।

बाबुजी ने कहा

"सुषमा! लण्ड का सर थोड़ा मोटा है. इसलिए अंदर नहीं घुस रहा. तुम एक करो कि मैं तुम्हारी टाँगे उठाकर अपने कन्धों पर रख लेता हूँ , तुम थोड़ा थूक अपनी चूत और मेरे लौड़े पर लगा दो. इस से थोड़ी चिकनाई हो जाएगी.

बाबुजी ने मेरी टांगें अपने कन्धों पर रख ली. अब मैं बिलकुल फस गयी थी. चाह कर भी हिल नहीं सकती थी. खैर जो होगा देखा जायेगा सोच कर मैंने थोड़ा थूक अपनी उँगलियों में लेकर अपनी चूत के छेद पर लग लिया और थोड़ा बाबुजी के सुपाडे पर लगा दिया। फिर मैंने लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत की कसी हुई दरार में घिसने लगी।
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जब चूत खूब चिकनी हो गई.तो बाबुजी ने मेरी चूत पर अपने सुपाड़े को दबाया. सुपाड़ा छोटे से मुलायम छेद को फ़ैलाने लगा , चूत की दीवारें साइड में खुलने लगी. और मैं दर्द से कसमसाने लगी. बाबुजी से भी अब रुकना मुश्किल हो रहा था तो उन्होंने मेरी चूत में कस कर एक धक्का मारा. पर चूत बाबुजी के लण्ड के हिसाब से इतनी छोटी थी की आधा सुपाड़ा ही अंदर घुस पाया.

मैं चिल्लाई " आ आ सी सी बाबुजी आराम से. सी सी आह आह उई मां उई उई उफबाबुजी आराम से करो बहुत दर्द हो रहा है आ आह। "

बाबुजी मेरे ऊपर लेट गये और मेरी बालों में उंगलियां डाल कर सहलाने और किस करने लगे .

मेरी तो आँखों में आंसू आ गए थे.

फिर बाबुजी मेरी चूची को मुंह में भर कर चूसने लगे , जिस से मेरा दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने बाबुजी की आंखों में देखा। बाबुजी ने शरारत से मुझे आँख मार दी. मैं तो शरमा गई.

बाबुजी ने पूछा "कैसा लग रहा है?"

मैं हल्के से मुस्कुरा दी बाबुजी ने पूछा "अब और डालूं अंदर?"

मैंने शरमाते हुए हाँ में इशारा किया और मैंने बाबुजी के लण्ड को पकड़ कर धीरे से अंदर की तरफ दबाया तो सुपाड़ा धीरे धीरे रास्ता पकड़ कर अंदर जाने लगा मेरी चूत का छेद धीरे-धीरे फैलने लगा।
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मुझे दर्द होने लगा. "सी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबुजी आराम से करो बहुत दर्द हो रहा है आ आह."

मेरी आँखों में से आंसू बहने लगे. मेरी आंखों फैलने लगी, मैं मुठ्ठी में चादर भींच कर दर्द को सहने लगी , बाबुजी ने लंड धीरे से बाहर निकाल लिया और फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ाया। मुझे फिर से दर्द हुआ। बाबुजी मेरे ऊपर ही लेट गए और आराम से बोले

"सुषमा! तुम्हारी चूत में पहली बार चोद रहा हूँ तो दर्द हो रहा है. पर तुम कोई चिंता न करो. तुम मेरी बहुत ही प्यारी बहुरानी हो. मैं तुम्हे दर्द देने का तो सोच भी नहीं सकता. बहुत ही आराम से चोदुँगा तुम्हे. ताकि तुम्हे अच्छा भी लगे और मजा भी आये."

मैं बोली "आई लव यू बाबुजी , आप मुझे कितने आराम से चोद रहे हो फिर भी दर्द हो रहा है."

बाबुजी ने कहा "सुषमा! तुम्हारी चूत में पहली बार है इसलिए दर्द हो रहा है. थोड़ी देर बाद बहुत मजा आयेगा आज के बाद सिर्फ मज़े ही मज़े हैं. बस आज थोड़ा सा दर्द सहन कर लो अपने बाबुजी के लिए.."
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मैंने बाबुजी को चूमते हुए कहा

"बाबुजी आप के लिए तो मैं जान भी दे सकती हूँ. दर्द तो क्या चीज है,"

बाबुजी खुश हो गए और बाबुजी ने लंड धीरे से बाहर निकाल लिया और फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ाया। अब उनका सुपाड़ा थोड़ा और अन्दर जा चुका था.

बाबुजी ने फिर लंड बाहर निकाल कर फिर हल्के से धक्का लगाया अब लंड 2 इंच घुस चूका था लंड की मोटाई से रसभरी चूत का छेद बहुत फैल कर, बाबुजी के लंड पर कस गया था.

मैं धीरे-धीरे चीख रही थी "सी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबुजी , आराम से करो मैं मर जाऊंगी उई मां आ बहुत दर्द हो रहा है आ आह."

मैं पीछे खिसकने लगी.और बोली- "आआ ह्ह्ह बाबुजी… आराम से डालो, मुझे दर्द हो रहा है मैं मर जाऊंगी बाबुजी सी सी आ आह आ उई मां आराम से करो'

बाबुजी मेरी चूचियों को सहलाने लगे और निप्पल को दांतों और जीभ से कुरेदने लगे जिससे मैं वो दर्द को सहन कर लूँ.

बाबुजी के मेरी चूची चूसने से मेरा दर्द कुछ कम हुआ तो बाबुजी ने मेरी आंखों में देख कर पूछा

"कैसा लग रहा है?"

मैं हल्के से मुस्कुरा दी बोली "हाय बाबुजी बहुत ही अच्छा लग रहा है. आई लव यू , बस आप आराम से करो मुझे बहुत दर्द हो रहा है."

बाबुजी ने मुस्कुराते हुए पूछा "सुषमा! अब और अंदर डालूं?"

मैंने शरमाते हुए हाँ में गर्दन हिलाई और मुस्कुरा कर बाबुजी को चूमने लगी.

फिर बाबुजी ने धीरे से अंदर की तरफ दबाया तो लण्ड लगभग दो इंच और अंदर घुस गया।
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मैं जोर से चीखी "सी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबुजी। आराम से करो मुझे बहुत दर्द हो रहा है."

बाबुजी तो अनुभवी जानते थे कि मैं पहली बार उनका मोटा लण्ड ले रही हूँ तो चाहे वो कितनी भी कोशिश करें दर्द तो होना ही है.

इसलिए बाबुजी ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे और मेरे मुंह को बंद करते हुए एक जोर का धक्का मारा। धक्का इतना जोरदार था कि बाबुजी का लौड़ा आधा अंदर घुस गया. मेरी तो चीख निकल गयी. मेरी चीख इतनी तेज थी कि यदि बाबुजी ने मेरे मुंह को बंद न किया होता तो शायद मेरे बेटे की भी नींद खुल जाती और वो अपनी माँ को बचाने दौड़ा चला आता."

मैं रोती रही और मेरे आंसू बहते रहे. बाबुजी मेरे आंसुओं को प्यार से चूमते और चाटते रहे.

थोड़ी देर बाद बाबुजी ने पुछा

"सुषमा! बहुरानी , कुछ दर्द कम हुआ क्या ? आई लव यू बहुरानी , थोड़ा सा बर्दास्त करो तभी तुमको मजा आएगा।"

मैं सिसकते हुए बोली "आहहह.. आ ह ह् आऊ.. आ …आऊच सी ….सी .. बाबुजी बहुत दर्द हो रहा है, मेरी चूत फट जायेगी, मैं मर जाऊंगी प्लीज़ रुक कर करो।
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बाबुजी रुक कर मेरी चूचियों को पीने लगे और एक हाथ से निप्पल मसलने लगे जिससे मुझे थोड़ा सा आराम आया. मेरी चूत में पानी निकलने लगा जिससे चिकनाहट बढ़ गई 1 मिनट बाद बाबुजी ने मेरी आंखों में देखा और धीरे से कहा

"बेटी! कैसा लग रहा है ?"

मैं मुस्कुराते हुए बोली

"बाबुजी आई लव यू ,आई लव यू बाबुजी पर आपने तो मेरी जान ही निकाल दी, पर अब दर्द कम है और हल्की सी गुदगुदी हो रही है."

बाबुजी ने पूछा "अब और करूं?"

मैं बोली "नहीं बाबुजी इतना ही रहने दो. आज इतना ही ठीक है. अगली बार चाहे पूरा अंदर कर लेना। वैसे बाबुजी अभी कितना अंदर है? "
बाबुजी कहा
"खुद ही हाथ लगा कर देख लो."
मैंने हाथ लगा कर देखा और बोला कि अभी तो केवल 5 इंच घुसा है अभी 4 इंच बाहर है.
तभी बाबुजी ने मेरी चूचियाँ मुंह में ले कर चूसने शुरू कर दी. अब दो ही मिनट में मेरा दर्द ख़तम हो मैं धीरे धीरे सिसकारियां मारने लगी.

अनुभवी बाबुजी समझ गए की अब मौका है. उन्होंने साइड में पड़ी मेरी पैंटी उठा कर मेरे मुंह पर रख दी और जब समझ पाती, उन्होंने अपने चूतड़ों को कस कर अपनी पूरी ताकत लगा कर शायद अपने जीवन का सबसे तगड़ा धक्का मारा।

मेरी चूत बेचारी तो उस धक्के को सहन नहीं कर पायी और उसने लौड़े को रास्ता दे दिया. बाबुजी का लण्ड अपने रस्ते की सारी रुकावटों को तोड़ता हुआ जड़ तक अंदर घुस गया. पूरा लौड़ा मेरी चूत में घुस गया और बाबुजी की जांघें मेरे चूतड़ों से आ कर मिल गयी जैसे दो प्रेमी आपस में गले मिल रहे हों.
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मेरे फिर से चीख निकल गयी और इतना दर्द हुआ कि मैं बता नहीं सकती.

मैंने अपने नाखून बाबुजी की नंगी पीठ में घड़ा दिए और दर्द के मारे इतनी जोर से उनकी पीठ में नाखून मारे कि बाबुजी की पीठ में खून निकल आया.

मैंने अपने मुंह में भरी अपनी पैंटी को निकाल फेंका और रोने लगी. मैं चिल्लाते हुए बोल रही थी.

"ओह बाबुजी! मैं मर गयी. बाबुजी चुद गयी आपकी सुषमा. फट गयी मेरी चूत, चीथड़े चीथड़े हो गयी है. अरे माँ कोई तो बचा लो मुझे , फाड् दी बाबुजी ने अपनी बहुरानी की नाजुक सी चूत। घुसा दिया बाबुजी ने घोड़े जैसा लण्ड मेरी कमसिन मुनिया में. हाय मैं क्या करूँ, बचा लो कोई मुझे, बाबुजी निकाल लो अपना लौड़ा, मुझे नहीं चुदवाना आपसे। "

रोते रोते मेरी आँखें आंसू बहा रही थी और मैं बाबुजी को लौड़ा निकालने की बिनती कर रही थी. पर आज पहली बार बाबुजी मेरी मुश्किल से बेखबर लग रहे थे. उनपे तो मेरे आंसुओ या मेरे रोने का जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा था.

बाबुजी काफी देर ऐसे ही मेरे ऊपर लेटे रहे और मैं रोती रही. बाबुजी का लण्ड उसी तरह पूरा मेरी चूत में घुसा रहा.

बाबुजी मुझे प्यार से बोले

"सुषमा बेटी! सॉरी कि तुम्हे इतना दर्द हुआ. पर जितना दर्द होना था हो चूका. मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत की लिए बड़ा है तो जब भी पहली बार अंदर जाता, तो दर्द तो होना ही था. इसलिए मैंने आज पूरा डाल ही दिया ,अपने बाबुजी को माफ़ कर दो. हाथ लगा कर देख लो सारा लौड़ा चला गया है. तुम्हारी चूत ने पूरा ले लिया है अंदर. बस अब मजे ही मजे हैं. "
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मैंने अपना हाथ नीचे ले जाकर चेक किया, बाबुजी का पूरा लौड़ा मेरी प्यारी चूत को पूरा फैला कर घुसा हुआ था. और बाबुजी के दोनों टट्टे (बॉल्स) मेरी गांड से ऐसे चिपके पड़े थे जैसे फेविकोल से चिपका दिए गए हों.

मैं भी कोई पहली बार तो चुदा नहीं रही थी, तो जानती थी की काम हो गया है. मेरी इतने दिनों की तपस्या सफल हो गयी है. भगवान् ने मुझे बाबुजी के लण्ड का प्रशाद दे दिया है. वो हो गया है जिस के लिए मैं (और बाबुजी भी) कब से तड़प रहे थे और कोशिश कर रहे थे. और आखिर मैं अपने बाबुजी से चुदवाने में कामयाब हो ही गयी थी.
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धीरे धीरे मेरा रोना कम हो गया. बाबुजी जान रहे थे कि मेरा दर्द थोड़ा काबू में आ रहा है.

अब बाबुजी ने थोड़ा लण्ड बाहर खींच कर दोबारा डालना चाहा पर मेरी चूत तो दर्द के कारण सूख गयी थी.

बाबुजी ने लौड़ा बाहर कोशिश करी तो मेरी चूत बाबुजी के लण्ड से इस तरह चिपक गयी थी किं लण्ड के साथ मेरी चूत का मांस भी बाहर को आने लगा.

इससे मुझे फिर दर्द होने लगा और मैंने बाबुजी को कहा

"हाय बाबुजी बाहर नहीं निकालिये. अंदर ही रहने दीजिये। "

बाबुजी मेरी आँखों में देख कर मुस्कुराते बोले

"सुषमा! तुम भी अजीब हो. अभी रो रो कर चिल्ला रही थी कि बाबुजी बाहर निकाल लो अब निकाल रहा हूँ तो निकालने नहीं दे रही हो। "
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मैं भी शरारत से मुस्कुराते बोली

"बाबुजी! मेरी मर्जी है. मैं चाहे निकालने को बोलू या अंदर डालने को. आप को क्या? मेरे घर में पहली बार यह मेहमान आया है. तो इतनी जल्दी क्या है. थोड़ी देर तो इसे अंदर रहने दो. "

बाबुजी भी हंस पड़े.

थोड़ी देर बाबुजी ऐसे ही पड़े रहे और मेरी छातियां चूसते रहे. अब मेरा दर्द काम हो गया था. मुम्मे चूसे जाने और दर्द ख़त्म हो जाने से मेरी चूत में फिर से गीलापन आ गया था. और मेरा मन कर रहा था कि अब बाबुजी चुदाई शुरू कर दें. पर बाबुजी थे की जैसे चुदाई भूल ही गए थे और ऐसे अपना लण्ड डालें पड़े थे जैसे उनका अपना लौड़ा नहीं बल्कि किसी और का लौड़ा उनकी बहुरानी की चूत में हो.

मैं परेशान हो रही थी. जल्दी से चुदाई करवाना चाहती थी. मैंने बाबुजी को कहा

"बाबुजी! बस भी कीजिये, अब कुछ करो ना, मैं मरी जा रही हूँ. अब रहा नहीं जाता. अपना काम चालू करो."

बाबुजी समझ रहे थे की चुदाई का समय आ गया है पर मुझे छेड़ते हुए बोले

"क्या करूँ बहुरानी ? कुछ बताओगी तो ही कुछ करूंगा ना."

अब मैं एक बहु कैसे अपने ससुर को कहती कि बाबुजी अपनी बहुरानी की चुदाई शुरू कर दो. आखिर वो मेरे ससुर थे.
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मैंने अपनी गांड ऊपर को धक्का देते हुए बाबुजी को इशारा किया, पर बाबुजी छेड़खानी के मूड में थे तो उसी तरह पड़े रहे और बोले

"सुषमा! क्या चाहती हो. मुंह से बोलो ना , मैं समझा नहीं. "

अब आखिर मैं बेशरम हो कर, पर आँखें मूँद कर बोल ही पड़ी

"बाबुजी! बहुत हो गया , अब और मत सताओ , बस जल्दी लण्ड को अंदर बाहर करना शुरू कर दो. चोद दो अपनी बहुरानी को बाबुजी, अब रहा नहीं जा रहा. जल्दी और जोर से चोदो अपनी सुषमा को."

बाबुजी मुस्कुरा पड़े और फिर मुझे छेड़ा

"सुषमा! अभी तो तुम कह रही थी कि मेरा मेहमान तुम्हारे अंदर आया है. तो बाहर न निकालो, अब अंदर बाहर करने को कह रही हो. "

मैं भी आँखें खोल कर बाबुजी को प्यार से छेड़ते हुए बोली

"मेरा शरीर है और मेरा घर है. मैं मेहमान को अंदर ही रखूँ या अंदर बाहर करुँ , आप को क्या ? मेरी मर्जी है , मेहमान ने अंदर काफी देर आराम कर लिया है अब उसे कहो कि कुछ काम शुरू करे। "

बाबुजी भी मुस्कुरा पड़े.

बाबुजी ने भी अब देर करना उचित ना समझा और थोड़ा सा अपना लण्ड खींच कर फिर से अंदर धकेल दिया.

मुझे हल्का सा दर्द हुआ, मैंने अपनी आँखें बंद कर ली, बाबुजी मेरी हालत जानते थे, पर उन्होंने रुका नहीं और लगभग 2 इंच लौड़ा खींच कर जोर से दोबारा अंदर धकेल दिया. फिर लगभग 3 इंच लण्ड निकल कर डाला , मैं अपने दांत भींचे चुप चाप लेती रही. बाबुजी मेरी तरफ देखते हुए आँख के इशारे से हे पूछे क्या ठीक सो हो रहा है? और मैंने गर्दन ही हिला कर उन्हें चालू रहने का इशारा किया.

बाबुजी हर बार पिछली बार से थोड़ा सा अधिक लण्ड बाहर खींचते और जोर से अंदर ठोक देते, इस तरह करते करते थोड़ी ही देर में मेरी चूत में उनका पूरा लौड़ा आराम से अंदर बाहर हो रहा था. अब बाबुजी अपने लण्ड के टोपे तक लौड़े को बाहर निकाल लेते और फिर एक जोरदार धक्के से अंदर धकेल देते.
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अब मेरी चूत में बहुत कम दर्द हो रहा था. जितना भी दर्द था वो सहन करने योग्य था, तो अब में भी आराम से चुदाई के मजे ले रही थी.

बाबुजी ने मेरी टांगें पूरी खोल ली और पूरी तेजी से चोदने लगे।

उनका लंड रेल के पिस्टन की तरह 100 की स्पीड से अंदर बाहर हो रहा. था. मुझे बहुत ही मजा आ रहा था.

मैं आनंद में सिसकियाँ ले रही थी और चिल्ला रही थी,

"बाबुजी! और जोर से करो, चोद दो बाबुजी अपनी बहुरानी को, जोर जोर से चोदो अपनी सुषमा को बाबुजी. फाड़ दो मेरी चूत को। बहुत प्यासी है यह बाबुजी , इस निगोड़ी ने मुझे बहुत परेशान किया है, टुकड़े टुकड़े कर दो मेरी चूत के आज। आह आह आह बाबुजी, चोद लो अपनी बहुरानी की प्यारी सी मुनिया. "

मुझे पता नहीं चल रह था की आनंद में मैं क्या क्या बोल रही थी. मेरे दिमाग में तो बस बाबुजी से चुदाई ही चल रही थी.

वो मेरे मम्मो पर झुक गए और उनको चूसने लगे। दूसरे हाथ से मम्मो को मसलने लगे। उन के ऐसा करने से मेरे जिस्म में मस्ती सी फैलने लगी। इधर मेरी चूत अंदर ही अंदर उनके लंड को ऐसा दबा रही थी जैसे उसका रस निकाल लेना चाहती हो। सच में अगर कोई लड़का , अनुभवहीन आदमी चुदाई कर रहा होता तो मेरी चूत की गर्मी से वो अब तक झड चुका होता।

लेकिन ये बाबुजी थे जो मेरी चूत की गर्मी को बर्दाश्त करते हुए अब तक टिके हुए थे। मेरी चूत से गरम गरम पानी निकल केर नीचे चादर को गीकर रहा था।

मैं अपनी कमर हिलाने लगी। मेरे मूह से कराह निकल रही थी । मुझे दर्द तो हो रहा था लेकिन इतना नहीं कि मैं बर्दाश्त न कर सकूं।

एक बार फिर बाबुजी मेरे मम्मो का रस निचोड़ने लगे। मुझे काफी राहत मिल रही थी। कुछ देर इंतजार के बाद उन्हें ने हल्के हल्के धक्के मारने शुरू कर दिए।
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वो किसी भी लड़की को खुश करने में माहिर थे। एक मंझा हुआ खिलारी, जो चुदाई का लुत्फ ना सिर्फ खुद उठा रहा था बल्कि मुझे भी दे रहा था। आहिस्ता-आहिस्ता चुदाई करते हुए वो मेरे जिस्म को चूस रहे थे , मैं भी उन के सर के बालों में हाथ फेरते हुए आनंद ले रही थी, आहें भर रही थी।

मैंने अपने बाबुजी के पूरे चेहरे पर चुम्मो की बरसात कर दी। इस सारे वक्त में मेरी आंखें बंद थीं।

बाबुजी :- मजा आया बेटी?

मैं:- (सर हां मुझे हिला केर) ह्ह्ह्म्म्म्म….

बाबुजी :- तो आंखें खोल के बोलो ना...

मैं:- (ना मुझे सर हिला केर) उउन्नन्नहहुउउउ….

बाबुजी :- अब मैं इतना बुरा हूँ? कि तुम मुझे देखती भी नहीं.

मैं:- (फोरन आंखें खोल केर) खबरदार! ख़ुद को आइन्दा बुराँ नहीं कहना आप ने..आप तो मेरे सब से प्यारे बाबुजी हो .!

बाबुजी :- मुझे तो ऐसा ही लगा, क्यू कि के तुम ने अब तक अपनी आंखें बंद रखी थीं।

मैं:- अगर आप मुझे अच्छा ना लगे होते तो आप को अपना जिस्म जो मेरा सब से ज्यादा कीमती चीज है नहीं देती। आज के बाद ये बात अपने ज़ेहन में ना लाइयेगा.

बाबुजी :- तो आँखों से आँखें मिला के बोलो ना अपने बाबुजी को कि " चोदो ना मेरे बाबुजी ताकि बाबुजी को भी मजा आये। .
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मैं:- मुझे शर्म आती है.

बाबुजी :- किस से? मुझसे?

मैं:- हां!

बाबुजी :- मुझसे कैसी शर्म। अब तो मैं तुम्हारी चूत में अपना पूरा लंड डाल कर चुदाई कर रहा हूँ। और तुमने तो खुद अपना हाथ से चेक करके देख लिया है कि सारा लौड़ा अंदर जा चूका है. तो अभी भी शर्म बाकि है क्या?.

मैं कुछ नहीं बोली.

बाबुजी :- अच्छा! अब मुझे समझ. जब तक मैं तुम्हारी चूत में अपना लंड पूरा डाल के धक्के नहीं मारता रहता , तब तक तुम्हारी शर्म पूरी तरह खत्म नहीं हो सकती।

मैं:- अब ऐसी बात नहीं है.

बाबुजी :- तो क्या पूरा लंड ना डालूँ?

मैं:- मैने ये भी तो नहीं कहा.

बाबुजी :- तो क्या करूँ न? बोलो….!
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मैं:- (उन के कान में) मेरी चूत में अपना सारा तो डाल दिया है और अब और भी जो बाकि रह गया है वो भी कर लो कहीं कल आप यह ना कह सको कहो कि कुछ कसर रह गई। कि मेरी सुषमा ने मुझे इस ढंग से चोदने से मना कर दिया. जो करना है दिल खोल के कर लो।

मुझे खुद को पता नहीं कि ये लफ्ज कैसे मेरे मुंह से निकल गए शायद चुदाई का ही नतीजा था. । लेकिन इन का नतीज़ा ये हुआ के बाबुजी ज़ोर ओ शोर से मेरी चुदाई करने लगे। उन्होंने मेरी दोनों टांगें हवा में उठा के पूरी तरह से खोल दीया और अपना लंड मेरी चूत में अंदर बाहर होता देखने लगे ।

उन की इस तरह चुदाई से मैं दो बार झर चुकी थी। लेकिन इधर वो मजा से मेरी चूत मार रहे थे । उन के तेज़ धक्को से मेरे मम्मे हिल रहे थे। कभी वो उनसे खेलते तो कभी मेरी कमर पकड़ कर तेज़ झटके मारते।

इतनी देर और इतनी तेज चुदाई से तो मेरी चूत में जलन होने लगी। कुछ देर मैंने बर्दाश्त किया। लेकिन फिर मैं उनको रोकने की कोशिश करने लगी। तब उन्हें ने अपने धक्के रोके या मुझसे वजह पूछी। तो मैने उनको बता दिया.

बाबुजी :- बस इतनी सी बात? मुझे पहले बता देना था. इसका तो आसान सा इलाज है मेरे पास।

मैं:- वो क्या?

बाबुजी :- बस देखती जाओ।

ये कह कर बाबुजी ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. और अपने लंड के सुपाडे को चूत के छेड़ पर रगड़ने लगे .

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मेरी चूत को थोड़ा आराम मिलने लगा। कुछ देर पहले तक मेरी चूत टाइट थी, उसका छेद भी छोटा सा था लेकिन अब उसका छेद कुछ बड़ा दिखायी दे रहा था। उसकी वजह थी बाबुजी का मूसल। जिस ने पता नहीं कितने अंदर तक मेरी चूत को खोल दिया था। मैं इन्ही ख्यालो में खोई हुई थी के बाबुजी के लंड से पेशाब की धार निकल कर मेरी चूत पर गिरने लगी। मुझे इस से दर्द होने लगा। जाहिर है जब एक जख्मी चुत पर नमकीन पानी डालेंगे तो क्या होगा ।

मेरी कराह सुनने के बावज़ूद बाबुजी नहीं रुके। बल्कि अब तो उन्होंने अपने लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में फिट कर दिया और पेशाब करने लगे । मुझे बहुत अजीब लग रहा था. गरम गरम पेशाब मुझे अपने अंदर तक महसूस हो रहा था। कुछ ही देर में मेरी चूत पूरी तरह उन के पेशाब से भर गई। मेरे अंदर तक कुछ देर दर्द हो रहा था, लेकिन फिर हमें दर्द के ख़तम होने के बाद मुझे मजा आया।
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मेने अपनी टांगें बाबुजी की कमर के गिर्द लपेट दी और उनको अपनी तरफ खींचने लगी। उनके लिए ये सिग्नल था कि वो दोबारा से मेरी चुदाई करें। और उन्होंने भी ऐसा ही किया. वो ताबड़ तोड़ धक्के लगा कर मेरी चूत को खोलने लगे. जब बाबुजी अपना लौड़ा बाहर को निकालते तो मेरी चूत से पेशाब भी बाहर निकलने लगता और जब बाबुजी फिर धक्का मार कर लौड़ा अंदर डालते तो पेशाब रुक जाता है। ये एक अजीब सी सनसनी थी, जिस को लफ़्ज़ों में नहीं बताया जा सकता। सिर्फ महसस ही कर सकते हैं. . मस्ती में एक बार फिर मेरी आंखें बंद हो गयी ।

कुछ देर बाद बाबुजी ने अपना लंड बाहर निकाला और मेरी चूत पर झुक गये। अभी भी उनका कुछ पेशाब मेरी चूत के अंदर था।

वो मेरी चूत के अंदर तक ज़बान डाल कर चाटने लगे । उनको इस बात से ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता था कि उन्होंने ही थोड़ी देर पहले मेरी चूत में पेशाब किया था।
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मेरी आंखें तो मजे से बंद थी और मैं नीम बेहोसी की हालत में थी,

फिर बाबुजी ने लण्ड बाहर निकाल लिया और मुझे खड़ा कर दिया और मेरी दोनों टांगों के नीचे से हाथ डाल कर मुझे अपनी गोद में उठा लिया।

और बाबुजी नीचे से ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगे। इस पोजीशन में उन के धक्के का सब से ज्यादा असर मेरी चूत के दाने पर हो रहा था।

उन के धक्के की वजह से मेरी चूत बार बार पानी छोड़ रही थी। आप यकीन करें या ना करें, अगले 3 मिनट में झरने की कगार पर पहुँच गई।

उन की चुदाई से मेरी टांगें कांप रही थी , मेरा पूरा जिस्म ख़राब था। मैं बेहाल हो के उन की छाती पर गिर गई.

मेरे मुंह से आआह्ह्ह… निकल रही थी । इस पोजीशन में उनका लंड अपनी पूरी जड़ तक मेरी चूत में जा रहा था। वो इसी तरह मुझे उछालते हुए चोद रहे थे और मैं उनके गले में अपने बाज़ू डाले अपनी चूत में अंदर बाहर होते लंड को मजा ले रही थी। मेरी चूत का पानी नीचे बहता हुआ बाबुजी के लंड और उनकी गेंदों को गीला करता हुआ नीचे चादर पर गिर रहा था।
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मेरे शरीर में अब अजीब ही हलचल होने लगी थी. मैं समझ गयी की मेरा काम होने वाला है.

मैंने बाबुजी के गले में डाली हुई अपनी बाहें कस ली और बाबुजी के कान में हौले से कहा

"बाबुजी! मुझे कुछ हो रहा है. मैं मर जाउंगी कुछ कीजिये ना. मुझे कुछ अलग सा लग रहा है. और साथ ही अपनी स्पीड भी तेज करें। "

बाबुजी अनुभवी थे तो समझ गए कि मेरा होने वाला ही है. खुद बाबुजी का भी स्खलन नजदीक ही था. तो बाबुजी ने फिर से मुझे बेड पर लिटा दिया पर लिटाते समय भी उन्होंने ध्यान रखा कि उनका लौड़ा मेरी चूत से निकल न जाये.

फिर बाबुजी ने जो स्पीड पकड़ी कि मैं आप सब को क्या बताऊं. इतनी जोर जोर से बाबुजी ने चोदना शुरू किया कि मेरी तो अंदर तक सारी नसें ही हिलने लगी.

मेरे मुंह से आह आह की आवाजें अपने आप निकल रही थी और मैं चिल्ला रही थी

"बाबुजी! तेज और तेज. बस मैं गयी अरे मेरे बाबुजी में मर गयी. बाबुजी चुद गयी आपकी बहुरानी अपने ससुर से. बाबुजी अपना माल डाल दो अपनी सुषमा के अंदर."

मैं बेख्याली में ना जाने क्या क्या बोल रही थी.

अचानक मैंने अपनी टाँगें अपने बाबुजी की पीठ पर जोर से कस ली और चिल्लाई

"बाबुजी! मैं गयी। मेरा हो गया बाबुजी। हे भगवान् हो गया मेरा."

और इसके साथ ही मेरी चूत ने अपना पवित्र पानी बाबुजी के लण्ड पर छोड़ना शुरू कर दिया.

बाबुजी के साथ यह मेरी पहली चुदाई थी तो मेरा इतना माल निकला कि मैं जैसे बेहोश ही हो गयी. मुझे कुछ भी होश न रहा बस अपने बाबुजी की बाँहों में झड़ती रही.
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उधर बाबुजी के लण्ड पर जब मेरा पानी लगा तो बाबुजी के भी मुंह से एक चीख जैसी निकली और उन्होंने फटाफट 5 - 6 धक्के मार कर अपना लौड़ा मेरी चूत में अंदर तक घुसेड़ दिया. और बाबुजी का लौड़ा खुद ब खुद फूलने लगा और फिर उसके छेद से बाबुजी के वीर्य की पिचकारियां छूटने लगी.
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बाबुजी ने पहली बार अपनी बहुरानी चोदी थी तो उनका इतना वीर्य निकला कि मेरी चूत भर गयी और इतना मोटा लौड़ा घुसा होने पर भी उनका गाढ़ा गाढ़ा माल मेरी चूत से बाहर आने लगा.

बाबुजी भी निढाल हो कर मेरे ऊपर ही गिर गए. हम दोनों अपनी पहली चुदाई से इतना थक गए थे कि काफी देर तक हम दोनों ससुर बहु एक दुसरे की बाँहों में लेटे रहे.
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कुछ देर के बाद बाबुजी उठे और मुझे भी उठाया. हम दोनों बहुत खुश थे जैसे जीवन में कुबेर का खजाना मिल गया हो।

बाबुजी ने मुझे पूछा "सुषमा! मजा आया?"

मैं:- "बाबुजी बहुत मजा आया लेकिन अभी बहुत दर्द हो रहा है."

बाबुजी ने बोला "कोई बात नहीं. अभी तुम्हे दर्द की गोली ले दूंगा. सब ठीक हो जायेगा. पहली बार इतने हलब्बी लण्ड से चुदी हो ना तो दर्द तो होगा ही. अगली बार बहुत कम दर्द होगा और उसके बाद तो मजे ही मजे हैं. तुम्हे मेरे लौड़े की आदत जो हो जाएगी. "

फिर बाबुजी ने एक बार फिर से मुझे चूमा और एक आखिरी बार फिर से मेरी चूत को चाटा। फिर बाबुजी ने मुझे घुमा दिया और मेरी चूत को पीछे से भी चाटा।
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अब चुदाई तो हो चुकी थी. अब सब हो जाने के बाद मुझे बाबुजी से शर्म जैसी आ रही थी.

चाहे हमने कुछ भी कर लिया था पर आखिर थे तो वो मेरे बाबुजी ही,, शायद बाबुजी का भी यही हालत थी,

बाबूजी मेरी चुदाई एक बार और करना चाहते थे पर मेरी चूत इतनी दर्द कर रही थी कि मेरी इच्छा होते हुए भी हिम्मत नहीं हो रही थी.

मेरे ससुर अनुभवी आदमी थे. उन्होंने भी दुबारा चोदने का नहीं कहा. और मुझे चूम कर अपने कमरे में चले गए.
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हम दोनों को मालूम जो था कि अब हम ससुर बहु में यह जो प्यार का रिश्ता बन गया है यह चलता रहेगा.

मैं भी बाबूजी की चुदाई और प्यार के बारे में सोचती हुई सो गयी.

इस तरह मेरा अपने ससुर से सम्बन्ध बन गया है जो आज तक चल रहा है,
The End
 
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