Dhakad boy
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behan ke narm mulayam aur uttejit karne wale jism ke sparsh ne duguni uttejna bhar di hamare hero ke ander. vani jo ke maze lene ke liye hi apni masi ke ghar ayi thi ab roma ke prati ise poori tarah se taiyar kar chuki hai. loha garm hai bas ek chot ki darkar hai aur loha manchahi shape mein dhal jayega. bahut jabardast kahani hai bhai.Update 9:
अगले दिन, हमने ऐसा दिखावा किया जैसे कुछ हुआ ही नहीं, अपने जीवन की गतिविधियों से गुज़रते हुए ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे कि वासना के भूकंप ने हमें कभी हिलाया ही नहीं। लेकिन जब भी हमारी नज़रें मिलीं, हम दोनों ही घबराये हुए थे। हम दोनों जानते थे कि हम एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं, अपने मन के अंदर चल रहे पाप पुण्य के भूचाल से हम दोनों ही गुज़र रहे थे। खासकर मुझे किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले बहुत सोचना समझना था, हालाँकि रोमा को पाने की चाहतें मेरे मन में बगावत कर चुकी थीं।
माँ एक लंबे अंतराल के बाद अपने ऑफिस चलीं गई थीं, जिससे हम एक बार फिर घर में अकेले रह गए थे। सन्नाटा बहरा कर देने वाला था, पिछली शाम की अराजकता से एकदम विपरीत। घर का खालीपन हमारे बीच छुपे रहस्य की कहानी बांया कर रहा था, जो हमारी अनकही चाहत की गूंज से भरा हुआ था ।
मैं खाने की मेज पर बैठा था और चम्मच से अपनी प्लेट में खाना रख रहा था, मेरी भूख गायब थी। करी और चावल की सुगंध मेरी जीभ पर चढ़े अपराध बोध के कड़वे स्वाद को छिपाने में कुछ नहीं कर पाई। हर ग्रास झूठ जैसा महसूस हुआ, हमने एक-दूसरे से, भाई बहन के पवित्र सम्बन्ध को निभाने की जो कसमें खाई थी, उनमें धोखा था।
रोमा रसोई में चारों ओर घूमती रही, कुछ काम ना होते हुए भी वो बस काम करने का दिखावा कर रही थी। उसे इतने करीब से छू कर फिरसे इतना दूर हो जाना एक पीड़ा का अनुभव करा रहा था। Maroon रंग के टाइट फिटिंग सलवार कुर्ते में, हर कदम के साथ उसकी गांड धीरे-धीरे हिल रही थी, न चाहते हुए भी जिसने मेरे दिल में बैठे डर के बावजूद मेरी पैंट में कठोरता पैदा कर दी थी।
vietnamese writing
मेरे सोचने समझने की शक्तियां जवाब दे चुकीं थी, उस वक्त मुझे एक आशा की किरण सिर्फ वाणी में दिखाई दी। एक बस वही थी जो मुझे इस पशोपेश से बहार निकाल सकती थी। मैंने जल्दी से अपना खाना ख़त्म किया और बाइक उठा कर घर से बहार निकल आया। घर से निकलते वक्त मैंने दूर से ही रोमा को बोला था "कुछ काम है थोड़ी देर में आता हूँ", उसने बिना मेरी तरफ देखा बस इतना ही कहा "ठीक है"।
उस वक्त दोपहर के २ बजे के आस पास का समय था और अक्टूबर का महीना भी कुछ ज़ादा ही गर्म प्रतीत हो रहा था, अब ये पता नहीं के मौसम वाकई ज़ादा गर्म था या मेरे विचारों से मेरे शरीर की गर्माहट बड़ी हुई थी।
मैंने एक बड़े से आम के बाग़ के पास अपनी बाइक रोकी, वंहा दूर दूर तक कोई नहीं था। बाइक को एक पेड़ के नीचे खड़ा कर के मैंने अपनी जेब से मोबाइल निकला और वाणी को कॉल किया। उसने पहली रिंग में ही मेरा फ़ोन उठा लिया, थोड़ी सी औपचारिकता के बाद मैंने उसे मेरे और रोमा के बीच में घटी घटना विस्तार से बता दी, वो काफी खुश थी "वाओ, यार तुमने तो किला फ़तेह कर लिया लगता है" उसने उत्सुकता से कहा। "पता नहीं यार, पर मेरी अब फटी पड़ी है उसका सामना नहीं कर पा रहा हूँ" मैंने झुंझलाते हुए कहा।
"तुम टेंशन मत लो, मैं कल आ रही हूँ तुम्हारे घर, कुछ न कुछ सोचेंगे" उसने एक नया खुलासा करते हुए कहा
"पर तू तो दो दिन बाद अपने ससुराल जाने वाली थी" मैंने उत्सुकता से पूछा
"हम्म, जाने वाली तो थी पर पतिदेव को फिर से ऑफिस का कुछ काम आ गया इसीलिए कुछ दिन बाद जाउंगी" उसने वजह बताते हुए कहा
"ये तो अच्छा है यार, पर अकेली कैसे आएगी?" मैंने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा
""अरे! अकेली नहीं मम्मी भी आ रही हैं उन्हें मौसी से मिलना है, मम्मी तो कल ही वापस आ जाएँगी पर मैं कोशिश करुँगी रात को रुकने की" उसने अपना प्लान बताते हुए मुझे सहजता से बताया
"तुम्हे रोमा ने नहीं बताया था क्या? हमारे आने के बारे में?" उसने मुझसे पलट के सवाल किया
"नहीं यार, हो सकता है वो भूल गयी हो" मैंने अनुमान लगते हुए कहा
"या हो सकता है वो अभी भी प्यारे भइया के लंड की गर्मी में खोयी हो" उसने हँसते हुए मुझे छेड़ा
मुझे समझ नहीं आया के उसकी बात का क्या जवाब दूँ, मैं बस "हूँ" कर के रह गया।
"चलो अभी पापा घर पे हैं रात को बात करुँगी" उसने कहा और फिर हमने एक दूसरे को "बाई" बोल कर कॉल कट कर दी.
वाणी के आने की खबर से मुझे कुछ तसल्ली सी मिली, मुझे वाणी से उम्मीद थी के वो शायद मेरे और रोमा के बीच में जमी बर्फ को कुछ हद तक पिघलाने में मददगार साबित होगी। मैं कल को लेकर आशावान था और ये भी उम्मीद पाले बैठा था के अगर कुछ भी ना हुआ तो वाणी की चूत तो मिल ही जाएगी जिससे मेरे उफनते हुए जज़्बातों को थोड़ी रहत मिलेगी।
मैं घर आ गया। उस दिन मेरे और रोमा के बीच में ख़ामोशी किसी बर्फ की चादर के सामन थी जिसे कोई भी हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
मैंने रात को काफी देर तक वाणी की कॉल का इंतज़ार किया पर वो शायद और ही कामो में व्यस्त रही होगी, उसकी कॉल तो नहीं आयी बस एक मैसेज आया काफी लेट "सी यू टुमारो (See you Tomorrow )। मैं फिर अपनी भावनाओं को दबाये करवटें बदलते हुए सो गया।
अगले दिन सुबह ११ बजे के करीब मौसी और वाणी हमारे घर आ गए। माँ को उनके आने के बारे में रोमा ने पहले ही बता दिया था इसीलिए माँ भी उस दिन ऑफिस नहीं गयी थीं। शाम तक मैं और रोमा कुछ ज़रूरी बातचीत के साथ उनकी सेवा में लगे रहे पर हम दोनों ने ही एक दूसरे की नज़र से नज़र मिलाने से बचते रहे। शाम ६ बजे के करीब मौसी वाणी को हमारे पास छोड़कर चली गयी और अगले दिन मुझसे वाणी को घर छोड़ने का बोल गयीं जिसे मैंने स्वीकार किया।
रात को खाने की टेबल पर हम चारों (मैं, वाणी, रोमा और माँ) साथ में खाना खा रहे थे के तभी वाणी ने मुस्कुरा के माँ से कहा "मौसी अब आप भी भईया की शादी कर दो, घर में बहु आएगी तो आपको भी आराम हो जायेगा" वाणी के सवाल ने मुझे और रोमा दोनों को चौंका दिया जबकि माँ ने मुस्कुरा के वाणी की तरफ देखते हुए जवाब दिया "कह तो ठीक रही है बेटा पर ऐसी कोई लड़की भी तो मिले?"
"अरे! मौसी लड़की का आप मुझपर छोड़ दो एक बहुत प्यारी लड़की है आप कहो तो मैं बात चलाऊं?" उसने बड़ी धूर्तता के साथ रोमा की तरफ देखते हुए माँ को जवाब दिया। रोमा के चेहरे पर एक पल के लिए हवाइयां सी उड़ने लगीं, मैं खाना खाते हुए बहुत गौर से वाणी और रोमा के चेहरों की तरफ देख रहा था।
"हाँ हाँ, क्यों नहीं अगर लड़की अच्छी है और हमारी बिरादरी की है तो क्या प्रॉब्लम है" माँ ने मासूमियत से जवाब दिया
पर वाणी का शरारती दिमाग वंही नहीं रुकने वाला था "बिलकुल मौसी बिरादरी की भी है और आपकी जानी पहचानी भी, है न रोमा?" उसने रोमा की तरफ आँख मारते हुए कहा
"अच्छा! ऐसा कौन है? तुम जानती हो रोमा?" माँ इस बार रोमा को देखते हुए पूछा
रोमा को अचानक से फंदा लगा और वो खांसते हुए बोली "प प पता नहीं माँ ये किस की बात कर रही है" बोलते हुए उसके माथे पर पसीना उभर आया
"अरे! भूल गयी वो जो तेरी सहेली थी कॉलेज में, नेहा" अब वाणी को भी लगा शायद वो कुछ ज़ादा ही आगे का बोल गयी और उसने अपनी कही बात को बदलते हुए कहा
"तू पागल है क्या? उसकी शादी हो गयी" रोमा ने वाणी को डांटते हुए पानी पी कर गिलास साइड में रखते हुए कहा, रोमा का चेहरा अब सामान्य प्रतीत हो रहा था
"पर वो हमारी बिरादरी की नहीं थी बेटा, हाँ पर लड़की अच्छी थी" माँ ने वाणी की तरफ देखते हुए कहा,
"कोई बात नहीं मौसी, भईया के लिए कोई और लड़की ढूंढ लेंगे" वाणी ने माँ की तरफ देखते हुए अपनी बात को विराम दिया।
वाणी की बातों से मेरे भीतर उथल पुथल मची थी और शादी के ज़िक्र पर रोमा के चेहरे के भावों ने मुझे दूर का सोचने पर मजबूर कर दिया था।
हमने खाना ख़त्म किया और माँ अपनी दवाइयां लेकर सोने चली गयी और हम तीनो हॉल में सोफे पर बैठे टीवी देखने लगे।
मैं और वाणी सोफे पर बैठे टीवी देख रहे थे और रोमा किचन के काम में व्यस्त थ। हम दोनों टीवी से नज़रें बचा कर एक दूसरे को देख रहे थे पर रोमा के नज़दीक होने की वजह से कुछ कर नहीं पा रहे थे, हम दोनों उचित दुरी पर रखे अलग अलग सोफे पर बैठे थे। वाणी एक सफ़ेद टॉप और प्रिंटेड लॉन्ग स्कर्ट पहने बैठी थी जिसकी लम्बाई उसके टखनों तक थी। उसकी बड़ी बड़ी चूचियां उस सफ़ेद टॉप में कसी हुई थी, उसने मेरी तरफ देखा फिर अपनी एक टांग उठा कर दूसरी टांग पर रख ली और फिर धीरे से किचन की तरफ देखते हुए उसने अपनी स्कर्ट को ऊपर उठाया, उसकी दूध जैसी चिकनी टांगो की पिंडलियाँ रौशनी में चमकने लगी। मेरा लंड तुरंत मेरे लोअर में हरकत करने लगा, उसने धीरे धीरे अपनी स्कर्ट और ऊपर उठायी और मुझे उसके घुटनो से नीचे की उसकी नंगी टांगो के दर्शन होने लगे, मैं उन्हें छूने को तड़पने लगा।
तभी शायद रोमा ने पलट कर उसकी तरफ देखा होगा क्यूंकि जंहा मैं बैठा था वंहा से रोमा नज़र नहीं आ रही थी। वाणी ने तुरंत अपनी स्कर्ट नीचे कर ली। फिर जैसे ही रोमा की नज़रें दूसरी तरफ हुई वाणी ने एक झटके में अपनी स्कर्ट अपने पेट तक उठा मुझे अपनी चूत के दर्शन करवा दिए, उसने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी और उसकी चूत पर बालों का नामोनिशान नहीं था। मेरी कनपटी गरम हो गयी और मेरे शरीर में खून का प्रवाह तेज़ी से मेरे लंड की तरफ दौड़ने लगा, और एक सेकंड से भी काम समय में मेरा लंड अकड़ के खड़ा हो गया।
तभी किचन से कुछ आहट हुई और वाणी ने खुद को दुरुस्त किया, रोमा किचन से निकल कर अपने कमरे की तरफ जाती हुई वाणी की तरफ देख के बोली "सोना नहीं है क्या?" और पलट के अपने कमरे में चली गयी।
वाणी सोफे से उठी और मेरी और देख के बोली "सोना मत मेरे मैसेज का इंतज़ार करना"
मैंने सहमति में सर हिलाया "ठीक है", वाणी मुड़ कर अपनी गांड मटकती हुई रोमा के कमरे में चली गयी।
थोड़ी देर टीवी देखने के बाद मैं भी उठकर ऊपर अपने कमरे में आके लेट गया और वाणी के मैसेज का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। वाणी की चिकनी टांगों और चिकनी चूत ने मेरे अंतर्मन में हलचल मचा रखी थी।
मैंने अपने लंड को लोअर से बहार निकला और उसे सहलाने लगा, तभी मुझे एहसास हुआ के मेरे नीचे के बाल काफी बढ़ गए हैं। मैं तुरंत बिस्तर से उठा और बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
अपने नीचे के बाल साफ़ कर के जब में बाथरूम से निकला तब दीवार पर टंगी घडी रात के ११ बजा रही थी।
मैं बेचैन होने लगा और समय काटने के लिए अपने मोबाइल पर पोर्न वीडियोस देखने लगा पर उनमे भी मुझे कुछ ख़ास मज़ा नहीं आ रहा था, मैं एक के बाद एक वीडियोस प्ले करता गया पर मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी, १२:३० बज चुके थे और वाणी का मैसेज अभी तक नहीं आया था। पोर्न देखने के कारण लंड अलग से अकड़ के मुझे परेशान कर रहा था।
मैंने आँखें बंद की और रोमा की सुंदरता और उसके जिस्म की सुडौलता की मन में कल्पना करने लगा। मैंने यूँ तो बहुत सी कहानियां और वीडियो भाई बहन के अंतरंग सम्बन्धो पर देखे थे पर हकीकत में उन्हें चरितार्थ होते हुए पहली बार महसूस कर रहा था।
करीब २ बजे मेरे फ़ोन ने बीप किया, मैंने एक पल भी गवाए बिना मैसेज चेक किया। मैसेज वाणी ने ही भेजा था "रोमा के कमरे में आओ जल्दी", मुझे पहले तो कुछ समझ नहीं आया और मैंने असमंजस में रिप्लाई किया "क्यों ?"
उसने जवाब दिया "अरे! मजे करेंगे, जल्दी आओ"
मैंने भी तुरंत लिखा "तू यंहा ऊपर आजा न?'
"नहीं, तुम्हे ही आना होगा और जल्दी आओ दरवाज़ा खुला है" उसने मुझे आर्डर सा देते हुए जवाब दिया .
वाणी की चुदाई को लेकर एक तरह से मेरे मन में लड्डू फुट रहे थे पर रोमा के कमरे में क्यों बुला रही है, इस बात पर दिल आशंकित भी था।
मैंने अपने सर को झटका दिया और वासना के उमड़ते ज्वर के वशीभूत होकर मैंने मन में सोचा "जो होगा देखा जायेगा" और फिर मैं नीचे रोमा के कमरे की तरफ बढ़ गया।
मैं आहिस्ता आहिस्ता बिना शोर किये नीचे सीढ़ियां उतरने लगा, मेरी चप्पल कुछ ज़ादा ही आवाज़ कर रही थी इसलिए मैंने उन्हें बीच सीढ़ियों पर ही उतार दिया और नंगे पैर आगे बढ़ चला। चारों तरफ सन्नाटा था और घर के बहार से झींगुरों के टर्राने की धीमी आवाज़ें आ रही थी।
जैसे ही मैंने रोमा के कमरे का दरवाज़ा अंदर धकेला वह खुल गया अंदर एकदम घुप अँधेरा था, दरवाज़े के खुलते ही बहार हाल में जल रही एक led लाइट की रौशनी से कमरे में कुछ देखने लायक स्थिति बनी।
कमरे के अंदर दो आकृतियां बिस्तर पर सोई हुई थी। उनमे से दरवाज़े की तरफ सो रही आकृति में कुछ हलचल हुई, और वह उठ कर बिस्तर पर बैठ गयी। मुझे समझते देर न लगी की वह वाणी है, मैंने अंदर दाखिल होते ही कमरे का दरवाज़ा वापस बंद किया और कमरा एक बार फिर से अँधेरे की गोद में समां गया।
मैं धीरे से वाणी की तरफ बड़ा, नज़दीक पहुँचते ही वाणी ने मेरा हाथ पकड़ के मुझे Bed के पास खींच लिया। मैं उसके पास जाके बैठ गया, वो मेरी तरफ झुकी, हमारे चेहरे इतने करीब थे की एक दूसरे की साँसों की गर्मी को महसूस कर सकते थे।
"कुछ बोलना मत," वाणी मेरे खान में फुसफुसाई, फिर उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और हम आहिस्ता आहिस्ता से एक दूसरे के होंठो का रसपान करने लगे। मैं काफी देर से वासना की आग में जल रहा था, मुझसे खुद पर काबू नहीं हुआ और मैंने वाणी के होंठ चूसते हुए उसकी चूची को अपनी मुट्ठी में भर कर भींच लिया। वाणी के मुंह से आह निकलते निकलते रह गयी। जवाब में उसने भी मेरे लोअर के ऊपर से मेरे सख्त लंड को सख्ती से दबोचा, मुझे एक रोमांचकारी पल की अनुभूति हुई।
मेरे मुँह से अपने होठों को आज़ाद करते हुए वह मेरे कान में फुसफुसाई "मेरे पीछे लेट जाना," कहकर वह रोमा की तरफ करवट लेकर लेट गयी।
कमरे में उस वक्त बस फुल स्पीड पर घूम रहे पंखे का ही शोर सुनाई दे रहा था, मैं भी वाणी के पीछे करवट लेकर लेट गया और खुद को ढकने के लिए उसकी चादर का सहारा लिया। जैसे ही मेरे हाथ चादर उठाते हुए वाणी के जिस्म से टकराये मुझे समझते देर न लगी के वह नीचे से पूरी नंगी है। वो पहले से ही सब तैयारी कर के बैठी थी।
मैंने चादर अपनी कमर तक ढकी और अपना लोअर अंडरवियर सहित सरका के नीचे घुटनो तक कर दिया, मेरा फनफनाता हुआ लंड वाणी की गांड से सट गया।
वाणी ने अपना एक हाथ पीछे कर के मेरे लंड को अपने पंजे में जकड़ लिया और उसकी खाल को ऊपर नीचे सरकाने लगी। मैं वाणी की मोटी गांड को अपने पंजे में भर कर ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा, मेरे आँखें वासना और उत्तेजना के कारण बंद होने लगी थीं। मैंने अपने सीधे हाथ को उसकी गांड की दरार में डाल के उसकी चूत की पंखड़ियों को छेड़ा, वाणी की चूत के गीलेपन ने मेरी उँगलियों को भिगो दिया।
हमारे जिस्म वासना के वशीभूत चाहत के मूक नृत्य में एक साथ आगे बढ़ रहे थे, हम बहुत सावधानी बरत रहे थे, कंही किसी तरह की कोई आवाज़ न हो जिससे रोमा की नींद में खलल पड़े, जो हमसे 1 फीट की दूरी पर लेटी हुई थी।
वाणी ने अपना टॉप ऊपर सरका कर, मेरे हाथ को पकड़ के अपनी नंगी छाती पर रख दिया, मैंने उसकी भारी चूचियों को बारी बारी से मसला जिससे उसके शरीर में खुशी की लहरें दौड़ने लगीं। मैंने उसके कान की लौ को अपने होंठों में भर लिया और चूसने लगा, न चाहते हुए भी वाणी धीरे से सीत्कार उठी।
रोमा पर एक सरसरी नज़र डालकर, वाणी ने सुनिश्चित किया कि वो अभी भी गहरी नींद में सो रही है, फिर उसने अपना हाथ पीछे लाकर मेरे खड़े लंड को पकड़ा और उसे अपनी गीली चिकनी चूत की तरफ खींचने लगी। जैसे ही मेरे लुंड के सुपाड़े ने उसकी चूत के छेद को छुआ, मुझे उसकी चूत का गीलापन महसूस हुआ, जो हमारे जिस्मों में उमड़ती वासना की तीव्रता का प्रमाण था। वाणी ने एक गहरी सांस ली, और अपना ऊपरी पैर हवा में उठा लिया, जिससे मेरे लंड को उसकी चूत में घुसने के लिए एक सही कोण मिल गया।
मैंने हमारे शरीरों के जुड़कर एक हो जाने के एहसास का स्वाद लेते हुए, इंच दर इंच अपने लंड को उसकी चूत के अंदर धकेलने लगा। वाणी ने अपनी कराह को दबाने के लिए अपने होंठों को भींच लिया, उसकी आँखें रोमा से नहीं हट रही थीं। हमारे वजन और हिलने से नीचे दबा गद्दा चरमराने लगा, गद्दे की चरमराहट और हमारे जिस्मों के घर्षण को नियंत्रण में रखना हमारे बस के बहार था। मैं धीरे-धीरे, लयबद्ध तरीके से अपनी कमर हिलाने लगा, मेरा लंड वाणी की चूत की गहराइयाँ नापने लगा।
वाणी की सांसें भारी हो गईं क्योंकि उसने मेरे धक्के का सामना करने के लिए अपने कूल्हों को पीछे की ओर हिलाया, उसका एक हाथ मेरे कूल्हों को पकड़ने के लिए पीछे आया। मैं एक हाथ से उसकी ऊपरी चूची को ज़ोर से दबाता हुआ उसकी चूत में लंड को पेल रहा था। वाणी मेरे कूल्हे को और अपनी गांड की तरफ खींच रही थी। थोड़ी देर के समागम से ही उसकी त्वचा पसीने की हल्की चमक से चमकने लगी। अपनी सगी बहन के बगल में लेटा मैं अपनी मौसेरी बहन की चुदाई कर रहा था और इस विचार ने मेरे अंदर एक नयी उत्तेजना का संचार किया। मेरी नज़र रोमा की हर सांस के साथ उठती गिरती छातियों पर टिकी थी। हमारे शरीर ख़ामोशी से लयबद्ध तरीके में एक साथ हिल रहे थे।
अचानक वाणी ने मेरा हाथ अपनी चूची से उठाकर रोमा की छाती पर रख दिया। मेरी हथेली पर कड़क, कठोर और भारी मांस के एहसास ने मेरी कमर हिलाने की गति को एकदम से रोक दिया। मैंने अपना हाथ रोमा की चूचियों से हटाने की कोशिश की लेकिन वाणी की पकड़ मजबूत थी उसका हाथ मेरे हाथ के ऊपर था, वाणी मेरी मनो स्थिति समझ कर मेरे कान में फुसफुसाई "डरो मत, कुछ नहीं होगा" । उसकी आवाज़ में एक विश्वास साफ़ झलक रहा था। मैंने अपने अंदर की वासनाओं और दबी हुई इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया। मैंने धीरे से रोमा की चूचियों को दबाया, उसने अंदर कोई ब्रा नहीं पहनी थी।
उसके निप्पल मुझे उसकी टी-शर्ट के कपडे पर साफ़ साफ़ महसूस हो रहे थे। अपनी सगी बहन की चूचियों का एहसास, उनकी गर्माहट ने मुझे एक नयी ऊर्जा से भर दिया। मैंने महसूस किया कि अचानक, रोमा के जिस्म के वर्जित संपर्क से मेरे लंड में और भी ज़ादा सख्ती आ गयी थी और वो वाणी की चूत के अंदर हिल रहा था, और मेरे लिए अब स्थिर रहना मुमकिन नहीं था।
मैंने धीरे-धीरे रोमा की चूचियों की मालिश करना शुरू कर दिया, मेरा अंगूठा रोमा के उभरे हुए निपल पर घूम रहा था, और उसके स्पर्श से उसकी सांसों की स्थिर लय महसूस हो रही थी। मैं वाणी की गांड पर तेज़ तेज़ प्रहार करते हुए उसे चोदने लगा, वाणी ने अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर से हटा लिया था पर मैं अब खुद को रोमा की चूचियों के आकर्षण से नहीं रोक सका। मेरे शरीर में उत्तेजना इतनी प्रबल थी कि उसका विरोध नहीं किया जा सकता था। मैंने महसूस किया की वाणी का शरीर अकड़ने लगा है, उसकी साँसें और भी तेज़ हो गई थीं, उसका शरीर एक सगे भाई के द्वारा दबाई जा रही एक बहन की चूचियों पर प्रतिक्रिया कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वह किसी भी पल झड़ जाएगी।
रोमा की छाती हर सांस के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी, उसका शरीर उसके इतने करीब से हो रही अंतरंग चुदाई से अनजान था। रोमा के निप्पल को छेड़ते हुए मुझे अपने शरीर में रोमांच की लहरें महसूस हो रहीं थीं, मेरा दिमाग इस बात की संभावनाओं से दौड़ रहा था कि अगर वह जाग गई तो क्या हो सकता है। फिर भी, उस पल के डर ने मुझे और अधिक उत्तेजित कर दिया, और मैंने खुद को वाणी की चूत में गहराई तक धकेल दिया, ठीक तभी वाणी ने एक झटका सा खाया और उसने अपने हाथ से अपने मुंह को दबा लिया, उसका जिस्म कुछ पल के लिए बिलकुल स्थिर हो गया।
वाणी की आँखें बंद हो गईं, मैंने ने उसके झड़ने की लहरें महसूस कीं, उसकी चूत की दीवारें मेरे लंड के चारों ओर सिकुड़ गईं, जिससे उसके शरीर में खुशी की लहरें दौड़ने लगीं।
मुझसे भी अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था मैंने एक बार फिरसे रोमा की चूचियों को धीरे से पकड़ लिया, उसके मांस की कोमलता मेरे हाथों में समां गई और मैंने लगभग हिंसक गति से वाणी की चूत में धक्के लगाना शुरू कर दिया। मेरी हथेलियों के नीचे मेरी सगी बहन के शरीर का अहसास जबरदस्त था, और मैं खुद को अपने चरम के कगार पर लड़खड़ाता हुआ महसूस कर रहा था।
अपनी बहन के मजबूत छातियों को पकड़ने की अनुभूति, वाणी के झड़ते ही उसकी चूत की गर्मी को अपने लंड के चारों ओर कसते हुए महसूस करना मेरे लिए बहुत ज्यादा था। मेरा वीर्य मेरे अंडकोषों से एक तीव्र गति से निकलता हुआ वाणी की चूत की गहराईयों को भर गया। मेरा लंड वाणी की चूत में हर एक सेकंड के अंतराल पर पिचकारियां मारता रहा, मेरे लंड ने इतना पानी पहले कभी नहीं छोड़ा था। मैंने एक बार रोमा की तरफ देखा सोती हुई वो बहुत मासूम प्रतीत हो रही थी, एक बार के लिए मुझे खुद पर बहुत ग्लानि हुई। मैंने अपना हाथ उसकी चूचियों से खींचा, वाणी ने पलट कर मुझे हग किया और मेरे कान में फुसफुसाई "कैसा लगा?"
"बहुत ज़बरदस्त यार" मैंने फुसफुसाहट से ही उसके सवाल का जवाब दिया।
कमरे की हवा में गहरा तनाव पसरा हुआ था, हमारे जिस्मों का पसीना पंखे की ठंडी हवा से मिल कर हमारे शरीर में कम्पन पैदा कर रहा था। हम काफी देर वंही एक दूसरे को बाँहों में लिए पड़े रहे और रोमा को सोते हुए देखते रहे।
------to be continued--------