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Romance सुपरस्टार - The life we dream to live

naqsh8521

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“चारों तरफ हज़ारों कैमरों की जगमगाती चमक , जहाँ तक नज़रें जाएँ बस पागल होती बेकाबू सी भीड़ और उस भीड़ को काबू करने में लगे हुए कितने ही पुलिस वाले l कानों में गूंजता हुआ बस आपका ही नाम l हर चौराहे पे आपकी बड़ी बड़ी तस्वीरें l हर खबर की सुर्ख़ियों में बस आपका ही ज़िक्र l”

यूँ तो हर मोड़ पे बहुत सी जिंदगियां साँसे लेती दिखाई देंगी , पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती l

जीते तो सब हैं इस दुनियां में , पर यहाँ हर किसी की खुद की पहचान नहीं होती l


Update - 1


आज दिल बड़े जोर से धड़क रहा था मेरा , घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था l आँखें रुआंसी हुयी जा रही थी l आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की l आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा इतने बड़े शहर में ? कैसी होगी मेरी माँ ? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को ऍफ़ आई आर भी करवा ही दिया होगा l





तीन महीने पहले



बिहार के गया शहर में चार कमरों के मकान में रहता था मैं, एक खुशहाल मध्यम वर्गीय परिवार था मेरा l मम्मी , पापा, मैं और मेरी एक बहन l कितने खुश थे हम सब l जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों को मज़े से जीना, वो पापा का मम्मी को चिढाते हुए “जुम्मा चुम्मा दे दे” वाले गाने पे डांस करना l बहन के बॉय फ्रेंड को धमकी देना और खुद पड़ोस में आई नयी नयी लड़की को देखने के लिए गर्मियों की धुप में उसका इंतज़ार करना l कितनी अच्छी बीत रही थी मेरी जिंदगी l पर कहते हैं न “जिंदगी में अगर खुबसूरत सुबह होती है तो वहीँ काली अँधेरी रात भी होती है” l जिसने इस रात में हौसला बनाए रखा उसकी नईया पार और जिसने हौसला खो दिया वो इन्ही अँधेरी राहों में खो सा जता है l

आज जन्म दिन था मेरा १७ फ़रवरी की सुबह l मम्मी की आवाज़ से मेरी आँखें खुली, सामने घर के सभी सदस्य थे l

“हैप्पी बर्थडे टू यू” की आवाज़ के साथ मेरे गाल खीचने शुरू कर दिये सबने l अपने बर्थडे जी यही बात मुझे पसंद नहीं आती थी l आखिर में मम्मी ने नहा के मंदिर जाने का निर्देश दिया और फिर सब बाहर हॉल में चले गएँ l

एक लम्बी सी जम्हाई ली और अपने सेल फ़ोन को चेक करने लगा l तृषा (मेरी पडोसी और मेरी गर्ल फ्रेंड) का मैसेज था व्हाट्स ऐप पे “हैप्पी बर्थडे माय लव, मंदिर जाना तो मैसेज कर देना... मिस यू सो मच” l ऐसा नहीं है की मुझे दूसरों ने शुभ कामनाएं नहीं भेजी थी l पर कसम से इस एक मैसेज ने मेरा दिन बना दिया l मैंने जवाब भेज दिया तृषा को “अभी एक घंटे में निकलूंगा मंदिर को”, और फ्रेश होने चला गया l

ये मेरा २३ वाँ जन्म दिन था, छे फीट की लम्बाई हल्का सांवला पर साफ़ रंग, हलकी भूरी आँखें और जिम में बनायी हुई बॉडी l जब अपनी फेवरेट गहरे काले रंग के कपडे पहन कर आईने के सामने खड़ा हुआ तभी तृषा मेरे कमरे में दाखिल हुयी “ ओह जनाब कहाँ आग लगाने का इरादा है ?”

मैंने तृषा के फ्रॉक सूट में ऊँगली फसा के अपनी ओर खीचा और बड़े प्यार से उसके कान में कहा “जान हम अपने अन्दर प्यार का समंदर समेटे हैं, हमने आग लगाना नहीं बुझाना सीखा हैl”

मम्मी की आवाज़ आयी – कौन है बेटा ?

मैंने जवाब दिया – तृषा आयी है माँ वो बर्तन लौटाने, और मुफ्त में मिठाई खाने l

मेरा इतना कहना ही था की तभी पास पड़े मेरे बिस्तर के तकियों की बरसात मुझपे शुरू हो गयी l खैर घर में था मैं सो बाहर भाग के बच गया l

मम्मी – क्या हुआ ? फ्रिज से मिठाई लाओ और खिलाओ तृषा को l

मैंने कहा – अरे माँ अभी पूजा तो कर लूँ फिर भूखों को खिलाऊंगा, नहीं तो पूण्य कैसे मिलेगा l तृषा की गुस्से वाली आँखों ने मुझे एहसास करा दिया की बेटा अब चुप हो जा वर्ना ये जनम दिन को मरन दिन बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा l

मैं घर से निकला और मंदिर में पूजा करके अपने सारे करीबियों को मिठाइयां बाटी और सबसे आखिर में तृषा के घर पहुंचा l

दोपहर के १२ बज रहे थें, हमेशा की तरह तृषा के पापा ऑफिस जा चुके थे और उसकी मम्मी सारे काम निबटा के सीरियल देख रही थी l घर का दरवाजा तृषा ने ही खोला l मैं एक शरीफ बच्चे की तरह तृषा पे ध्यान न देते हुए सीधा आंटी की ओर मिठाईयों का डब्बा ले के चला गया l

मैं – आंटी जी ये मिठाई, आज मेरा जन्मदिन है l

आंटी – ओह ! वैरी गुड बेटा जी , हैप्पी बर्थडे l

मैं – आंटी आज ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने वाला है मेरा सो मैं कंप्यूटर पे देख लेता हूँ l

आंटी – ठीक है बेटा l “तृषा , जाओ ज़रा कंप्यूटर ऑन कर देना” l

आंटी फिर से अपने सीरियल देखने लग गयी और मैं और तृषा उसके कमरे की ओर बढ़ चलेंl तृषा ने कंप्यूटर ऑन किया और मुझे कुर्सी पे बैठने को बोली l मैंने तृषा के हाथ को पकड़ा और एक झटके से उसे अपनी ओर खीच लिया l तृषा अब मेरी बांहों में थी l

तृषा – छोडो मुझे , मम्मी आ जायेगी l
 

Qaatil

Embrace The Magic Within
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First Of All Congratulations For Starting New Story ❤️

or kafi badhiya Shuruwat rahi he, mujhe aapke likhne ka tarika kafi pasand aya ❤️

baki agle Update ka intezar rahega
Keep Writing, Keep Posting
 
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naqsh8521

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update - 2

मैं – जान , आप कुछ भूल तो नहीं रही l (अपने होठों पे चूमने सा भाव लाते हुए मैंने तृषा को देखा ) “मेरा बर्थडे गिफ्ट”?

तृषा ने अपने होठ मेरे होठों से मिला दियें l मेरे हाथ अब तृषा की पीठ पे फिसल रहे थे l मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था l मैंने उसे चुमते हए उसकी सूट के पीछे बने चैन को खोलने लगा l तभी तृषा मुझे खुद से दूर करती हुयी अलग हुयी और उसने कहा “जान अभी मम्मी घर पे हैं , थोडा सब्र करो”l

मैं – वही तो नहीं होता जान l खैर अभी रिजल्ट पे धयान देता हूँ , कभी तो अकेली मिलोगी तभी सारी कसर निकाल लूँगा l

एक घबराहट सी भी थी इस रिजल्ट को ले के l मैंने विज्ञान का विषय चुना था , मैं इसके बाद एम् बी ए करने जाने वाला था l दिल्ली में मेरे एक दोस्त ने मेरे लिए सब कुछ सेट किया हुआ था l सो मैं इस बार किसी भी तरह बस पास होने की उम्मीद कर रहा था l नहीं तो मेरा पूरा साल बर्बाद हो जाता l

तृषा ने रिजल्ट वाली वेबसाइट खोली और रिजल्ट वाले लिंक पे क्लिक किया उसने l मेरी धड़कन तो जैसे अब जैसे आसमान छू रही थी l तृषा ने मेरे एक हाथ को अपने हाथ लिया और अपने सर को मेरे सीने से लगा दिया l तभी रिजल्ट दिखना शुरू हुआ , पुरे कॉलेज की लिस्ट एक ही पी डी एफ फाइल में थी l मैंने अपना रोल नंबर ढूँढना शुरू किया l

एक बार , दो बार पुरे बारह बार मैंने उस लिस्ट को मिलाया पर मेरा नाम कही भी नहीं थाl मैं पागल सा होता जा रहा था l मेरी ऐसी हालत देख तृषा ने मुझे बेड पे बिठा दिया और खुद रिजल्ट देखने लग गयी l थोड़ी देर में उसे मेरा रोल नंबर मिला , पर वो एक पेपर में फ़ैल हुए लड़कों की लिस्ट में था l रसायन शास्त्र ( केमिस्ट्री ) में मैं फेल हो गया था l

मैं तो अब तक सदमे में ही था , अब मैं घर में किसी को क्या जवाब दूंगा l क्या बताऊंगा सब को अपने रिजल्ट के बारे में l मैं तो दिल्ली जाने की लगभग सारी तैयारी कर चुका थाl

वैसे ये इतनी बड़ी भी नहीं थी l पास और फेल तो जीवन के ही दो पहलु हैं l आज जो मैं फेल हुआ हूँ तो कल फिर से मुझे मौका मिलेगा ही तब मैं इसे ठीक कर दूंगा l हाँ पर एक बात तो पक्की थी की मैं इस साल दिल्ली तो नहीं जा सकता था l क्यूंकि वैसे ही इन्होने तीन साल के कोर्स को चार साल में पूरा किया था l अब फिर से एग्जाम लेने में कितना वक़्त लगेगा मैं भी नहीं जानता था l

मेरे दिमाग में ये सब ख्याल आ ही रहे थें की तृषा ने मेरे हाथों को अपने हाथ में ले लिया l मैं अभी भी बिस्तर पे ही बैठा था l तृषा मेरे बगल में बैठ गयी, हालाकि मैं अब काफी सामान्य हो चूका था पर फिर भी मैं अब मज़े लेने मूड में था l मैं बस ये देखना चाहता था की आखिर वो मेरी परेशानी में कैसे संभालती है मुझे l

तृषा मेरे सर को अपनी गोद में रख मेरे बालों को सहलाने लगी l और साथ साथ समझाने भी...

तृषा – निशु (वो मुझे प्यार से यही बुलाती थी) तुम उदास मत हो कम से कम आज के दिन तो नहीं l मैं भी पागल ही थी की तुम्हे रिजल्ट दिखाने लग गयी , जब तुम्हे नाम नहीं मिला था तो मुझे भी छोड़ देना था l देखो आज का पूरा दिन खराब कर दिया मैंने l

मैं – (उदास सी शकल बनाते हुए... वैसे सच में मुझे उसकी सूरत देख हसी आ रही थी) जानू इसमें तुम्हारी क्या गलती l मैंने पेपर सही से नहीं लिखा तो मैं फेल हुआ l वैसे मैं तो हूँ ही इसी लायक l सबको परेशान करता हूँ तो भला मेरे साथ अच्छा कैसे हो सकता है l देखो तुम्हारा दिल भी तो दुखाता हूँ न !

तृषा – नहीं बाबू मैं क्यूँ परेशान होने लगी तुमसे l वो तो बस तुम्हे चिढाने को गुस्सा होने का नाटक करती हूँ l पर जब तुम उदास होते हो तो मेरी जान निकलने लगती है l कहते हुए उसने मेरे सर को चूम लिया l

अब उसकी हालत देख मुझे बुरा लगने लगने लगा l तभी मैंने तृषा के हाथ को ( जो मेरे बाल सहला रहे थें) पकड़ कर उससे कहा – “जानू एक बात कहूँ ?

तृषा – हाँ कहो l

मैं – वो अपने 42 को 32 के शेप में लाओ न ! तुम्हारी प्यारी सी सूरत देख नहीं पा रहा हूँl

वो मेरे कान मरोड़ते हुए कहने लगी “ कमीने मैं भैस दिखती हूँ तुम्हे जो मेरे 42 होंगे l खैर इन सब बातों में मैं तुम्हे तुम्हारा गिफ्ट देना ही भूल गयी l” और वो अपनी अलमारी से एक पैक किया हुआ गिफ्ट ले आयी l वो गिफ्ट मेरे हाथ में दे अपना गला साफ़ करने लग गयी l मैंने अपने कान पे हाथ रखा और उससे कहा – जान अब गाना भी सुनाओगी क्या ? आज के लिए वो रिजल्ट वाला सदमा ही काफी था l इससे तो कैसे भी उबर जाऊँगा पर तुम्हारे गाने को भूलने में सदियाँ बीत जायेंगी l

अब गुस्सा होती हुयी वो बोली – एक दम चुप हो जाओ वर्ना हाथ पैर सलामत नहीं बचेंगे, गाने का मन तो नहीं था पर अब तो छोडूंगी नहीं l तुम्हे अब सुनना ही पड़ेगा l

मैंने अपने होठों पे ऊँगली रखी और उससे शुरू होने का इशारा किया l कहते हैं आँखें कभी झूठ नहीं कहती हैं l उसकी आँखें ही काफी थी हाल – ए – दिल बयां करने के लिए l

“ दिल में हो तुम , आँखों में तुम l कैसे ये तुमको बताऊँ ... पूजा करूँ , सजदा करूँ जैसे कहो वैसे चाहूँ l जानू .. मेरे जानू... जाने जाना जानू l” उसने अपनी आँखों में आते हुए आंसुओं को रोकते हुए मेरे सीने से लग गयी l “ और कहो मेरे बदमाश कानों के परदे फटे या नहीं ?”
 

naqsh8521

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First Of All Congratulations For Starting New Story ❤

or kafi badhiya Shuruwat rahi he, mujhe aapke likhne ka tarika kafi pasand aya ❤

baki agle Update ka intezar rahega
Keep Writing, Keep Posting
Thanks bro...
 
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kartik

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Achhi suruaat ki kahani..
Apna Hero ghar se bhaag ke aaya hai new Delhi..ya kuch aur baat hai waiting next...
 

naqsh8521

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Achhi suruaat ki kahani..
Apna Hero ghar se bhaag ke aaya hai new Delhi..ya kuch aur baat hai waiting next...
अभी तो हमने आगाज़ किया है और आप अंजाम तक पहुँच गए l सब्र करें और इस कहानी के सफ़र का आनंद ले l
 

naqsh8521

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अपडेट - ३

मैंने उसके चेहरे को सामने किया और कहा “आई लव यू” और मेरे होठ उसके होठों से मिल गएँ l काश ये पल यहीं रुक गए होतें l बस इन्ही लम्हों में हम अपनी जिंदगी बिता देतें l

मैंने उसे चुमते हुए बिस्तर पे लिटा दिया l हम दोनों खो से गएँ थे एक दुसरे की आगोश मेंl कुछ भी होश नही था दुनिया का l ... की तभी दरवाज़े की दस्तक ने हमें चौका दिया l हे भगवान् तुझे सारे सैलाब आज ही लाने थे मेरी जिंदगी में ... बेहद गुस्से में तृषा की माँ दरवाज़े पे खड़ी थी l

आंटी (मेरी ओर देखते हुए) – तुम अपने घर जाओ l मैं – आंटी मैं तृषा से शादी करना चाहता हूँ l प्लीज् हमें गलत मत समझिये l आंटी (इस बार लगभग चिल्लाते हुए) – मैंने कहा न तुमसे अपने घर जाओ ... मतलब जाओ यहाँ से l

मैं बात ज्यादा बढ़ाना नहीं चाहता था l मैं बाहर दरवाज़े तक पहुंचा ही था की किसी सामान के गिरने की आवाज़ आयी , मैंने पलट के देखा तो तृषा के दरवाज़े के बाहर तृषा के सेल फ़ोन के टुकड़े छिटक कर आये थें l मतलब आंटी ने सबसे पहले उसका फ़ोन तोड़ दिया था l मैं अब दरवाज़े के बाहर आ चूका था l ये बर्थडे तो मैं जिंदगी में कभी भूलने वाला नहीं था l

मैं यूँ तो तृषा के घर अक्सर जाया करता था l आज से लगभग दो साल पहले मैंने उसे प्रपोज किया था l तब से मैं अक्सर किसी न किसी बहाने से उसके घर आया जाया करता था l कभी भी किसी को हमारे बारे में शक़ तक नहीं होने दिया था l आज तो दिन ही खराब था , ऐसा लग रहा था की जैसे हिरोशिमा और नागाशाकी वाले विस्पोट आज मुझपे ही कर दिया गया हो l पता नहीं तृषा को क्या क्या झेलना पड़ रहा होगा , वो भी मेरी वजह से l एक बार तो मन कर रहा था की अभी उसके घर जाऊं और उसका हाथ पकड़ अपने साथ कही दूर ले जाऊं l पर मुझे पता था की अभी सही वक़्त नहीं है, मेरे किसी भी कदम से दोनों परिवारों में तूफ़ान सा आ सकता था l तृषा भी अपने माँ बाप की अकेली बेटी ही थी l मेरे ऐसे किसी भी कदम से उसके मम्मी पापा का खुद को संभालना मुश्किल हो जाता l मैं वापिस अपने घर आ गया l

मम्मी – आ गए l खाना खा लो, तम्हारी पसंद के समोसे भी बनाए हैं आज l

मैं मम्मी के पास गया और उनके गले से लग गया l कहते हैं न की माँ को अपने बच्चे के दर्द का एहसास उससे पहले हो जाता है l मम्मी – क्या हुआ ? परेशान से लग रहे हो ?

मैं – वो ग्रेजुएशन में एक पेपर में फेल हो गया हूँ l ( मैं तो तृषा वाली बात बताना चाह रहा था पर नहीं बोल पाया )

माँ – अगली बार ठीक से पढाई कर के एग्जाम देना l और ज्यादा परेशान मत हो , खाना खा लो और आराम करो l

मुझे वैसे भी कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा था l जैसे तैसे खाना खा के मैं अपने कमरे में आ गया l अभी भी मैं तृषा को ही कॉल करने की कोशिश कर रहा था पर उसके सारे नंबर ऑफ आ रहे थे l मन में एक साथ कितने ही सारे ख़याल आने लगे l ये सोचते हुए कब नींद आ गयी मुझे पता ही नहीं चला l

६ बज गएँ थे और पापा की आवाज़ से मेरी नींद खुली l

पापा – कितनी देर तक सोते रहोगे ? जल्दी आओ केक आ गया है l नहीं आये तो हम सब तुम्हारे बिना ही केक ख़त्म कर देंगे l

मैं ऊँघता हुआ उठा और चेहरे को धो कर हॉल में आ गया l मेरा सबसे पसंदीदा केक (चोकलेट केक) था l उसपे लिखा था “ हैप्पी बिर्थडे टू माय लविंग सन “

मेरे घर में हम किसी का जन्मदिन ऐसे ही मनाते थे l दिन में पूजा कर सभी रिश्तेदारों को मिठाई दे देता था और रात में बस हम घर के चारों लोग केक काटते , गाने गाते और खूब डांस करते l पापा का फेवरेट गाना बजा “जुम्मा चुम्मा दे दे... और फिर वो शुरू हो गएँ l और मम्मी पापा को डांटना शुरू कर “बच्चे बड़े हो गए हैं, कुछ तो शर्म करो”l मम्मी जितना गुस्सा होती पापा और एक्सप्रेशन देने लग जाते l कुछ पलों के लिए तो मैं अपने सारे दर्द भूल ही गया था l खैर सबसे आखिर में हमने डिनर किया (वो भी एक दुसरे की प्लेट से खाने लूट लूट के) और फिर हम सोने चले गएँ l

अगले तीन दिनों तक मैंने बहुत कोशिश की पर तृषा की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी l चौथे दिन शाम में मेरे चाचा जी मेरे घर आयें l आज सन्डे था सो पापा भी घर पे ही थे l मिठाईयों का डब्बा था उनके हाथ में l घर में आते ही उन्होंने मिठाई वाला डब्बा पापा को दिया और कहने लगे “अरे आज हमारे बेटे का रिजल्ट आया है बैंक क्लर्क में सिलेक्शन हो गया उसका l” मैं मन ही मन में “ लो हो गयी आज की शाम खराब l”

चाचा जी – अरे सुभाष ( मेरे पिता जी का नाम ) आज पार्टी मेरे तरफ से l मुझे उन्होंने बुलाया और पैसे दिए और कहा “व्हिस्की हाफ लेते आना”l

मम्मी किचेन में गयी और पापा टेबल ठीक करने लग गएँ l मैंने अपनी बाइक निकाली और बाज़ार में आ गया l वाइन ले कर तो मैं पहले भी आया था पर आज तक कभी टेस्ट नहीं किया था l वाइन लेके मैं घर पहुंचा, अब तक लगभग सारी तैयारियां हो चुकी थी l टेबल लग चुका था और पकौड़े भी प्लेट में आ चुके थे l मैंने टीवी ऑन किया और वही पास में ही एक सोफे पे बैठ गया l चाचा जी और पापा बातें करते हुए पेग लगाने लगें l

चाचा जी – आजकल सरकारी नौकरी मिलना मतलब भगवान् से मुलाक़ात होने के बराबर है l देखो कितनी मेहनत करता था रिंकू (भाई का नाम), आखिर नौकरी मिल ही गयी l फिर मेरी ओर देखते हुए “और बेटा तुम किस चीज़ की तैयारी रहे हो ?”

मैं – मैं तो आई ए एस की तैयारी करने की सोचा रहा हूँ (पता नहीं क्या मन में आया की मैंने ये बोल दिया)

चाचा जी – देखो बेटा ज्यादा हवा में उड़ना बंद करो l ग्रेजुएशन तो पास हुआ नहीं जाता और आई ए एस के ही सपने देख रहे हो (रिश्तेदारों को आप अपनी खबर दे या न दें उन्हें आपकी हर खबर मिल ही जाती है)

मैं – कोई एक रिजल्ट आपकी छमता आंकलन नहीं कर सकता है l और सपने नहीं देखेंगे तो हम जीवन में आगे कैसे बढ़ेंगे l फिर मैं उठा और अपने कमरे में आ गया l वैसे भी ये कोई पहली बार तो था नहीं की किसी ने ये सब बोला था l अब तो मैंने ऐसी बातों पे ध्यान देना भी छोड़ दिया था l



जब से तृषा से दूर हुआ था किसी काम में मन ही नहीं लगता था l बस उसी की यादों में खोया खोया सा रहता था l बस हर वक़्त उसी की यादें , वो कैसे हम छुपते छिपाते मिलते थें l हमने एक साथ ना जाने कितने ही लम्हे गुज़ारे थें l हमारे छत एक साथ लगे हुए थे, सो मैं अक्सर मेन गेट से जाने के बजाये छत कूद के चला जाता था l जब से तृषा की माँ ने हमें पकड़ लिया था तब से ज्यादातर छत पे दरवाज़े में ताला लगा रहता था l तृषा के पापा शहर के जाने माने वकील थे l और उस काण्ड के बाद जब भी मुझे देखते तो ऐसे घूरते मानो बिना ऍफ़ आई आर के ही उम्र कैद दे देंगे l

आज 15 बीत चुके थे उस बात को, मैं हर तरीका अपना चुका था तृषा की हालत जानने के लिए l उसके घर जिनका आना जाना लगा रहता था, हर किसी से पूछ के थक चुका था l सब यही कहते की अभी तृषा घर पे नहीं थी l मेरा मन किसी अनजान आशंका से घिर गया था l पता नहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी तृषा के साथ l मैं उसी शाम को छत पे गया तृषा के यहाँ काम करने वाली के आने का वक़्त था ये l ठीक समय पे वो छत पे आयी l छत का दरवाज़ा खोल कपडे समेटने लग गयी l मेरे लिए यही सही वक़्त था l मैं उनकी नज़रों से बचता हुआ धीरे धीरे दरवाज़े तक पहुंचा और सीढ़ियों से होता हुआ नीचे तृषा के कमरे के बाहर आ गया l दरवाज़ा अन्दर से बंद किया हुआ था l

मेरे दिल की धड़कन अब आसमान पे पहुच चुकी थी l उसके घर में तीन बेडरूम थें, तीनो हॉल से जुड़े थे l मैं जहाँ खडा था वहां पे बाथरूम था l और मेरे ठीक सामने तृषा की माँ सोफे पे बैठ टी वि देख रही थी l हलकी सी आवाज़ मैं कर नहीं सकता था और कामवाली कभी भी सीढियों से नीचे आ सकती थी l पास में ही हाथ धोने के लिए बेसिन लगा था और वहां पे टिसू पेपर पड़े थें l मैंने एक पेपर लिया और उसपे पानी से लिखा “निशु” और उसे दरवाज़े से निचे सरका दिया l अब तो मैं बस दुआं ही कर सकता था की ये तृषा को मिले और वो दरवाज़ा खोल दे l अभी सोच ही रहा था की छत पे दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई l मेरी तो धड़कन रुकने वाली थी l तभी तृषा के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आई l इससे पहले की कोई मुझे देख पाता मैं तृषा के कमरे में था l
 

naqsh8521

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Update - 4


मैंने राहत की सांस ली l तृषा मेरे सीने से लगी थी , उसके आंसुओं ने और उस कमरे की हालत ने बहुत कुछ बयां कर दिया था l मैंने पहले कमरा बंद किया और तृषा के चेहरे को थोडा ऊपर किया l उसका चेहरा जो कभी कमल के फूलों सा खिला खिला रहा करता था आज वो चेहरा न जाने कहाँ खो गया था l गुस्से में मैं पागल हुआ जा रहा था l

मैं पलटा और दरवाज़े को खोलने ही वाला था की तृषा ने मुझे रोक लिया l उसने मेरे होठों पे ऊँगली रखी और इशारे से मुझे शांत होने को कहा l मैंने उसे कस के अपने सीने से लगा लिया l दरवाज़े की कुण्डी लगाई और बेड पे आ गया l तृषा ने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया और खुद मेरे कंधे पे सर रख के लेट गयी l बाहर टी वि का शोर इतना था की हमारी आवाज़ बाहर नहीं जा सकती थी l

मैं – क्या हुआ था मेरे जाने के बाद ?

तृषा – मम्मी ने फ़ोन तोड़ दिया और ... वैसे ये सब बातें इतनी जरूरी नहीं हैं l तुम मेरे पास हो इतना ही काफी है l मम्मी पापा ने जो भी किया वो उनका हक़ था, वो मेरी जान भी ले लेते तो भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता l

मैंने उसके होठों पे अपने हाथ रख दियें l पता नहीं क्यों मेरी आँखों में आंसू आ गए थे l कभी भी मैंने ये नहीं सोचा था की हमारे परिवार वाले नहीं मानेंगे l हमारी कास्ट अलग थी पर हमारा पारिवारिक रिश्ता काफी गहरा था l आंटी हमेशा मुझे बेटा जी कह के ही बुलाती थी l और आज हमारे बीच इतनी दूरियां पैदा हो गयी थी की एक दुसरे को देखना भी गवारा नहीं था l

तृषा – मेरी शादी होने वाली है, अगले महीने l

मुझपे तो जैसे बिजली गिर गयी हो l मैंने उससे कहा – और तुम ? शादी की शौपिंग करने कब जा रही हो ? (मेरा गला भर आया था)

तृषा – मैंने कहा न उनका मुझपे इतना हक़ है की वो चाहे तो मेरी जान भी ले ले l

मुझसे अब बर्दास्त नहीं हो पा रहा था l मुझे रोना आ गया l मैं उठ के बैठ गया l

तृषा (मुझे पकड़ते हुए )- जानू तुम्ही तो कहते थे न मैं तो फस गया तुम्हारे चक्कर में l कोई और आप्शन दिखती भी है तो छोड़ना पड़ता है l

मैं – जा रहा हूँ मैं l अब कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊंगा l तुम्हारा यही फैसला है तो यही सही l मर भी जाओगी तो तुम्हारी तरफ देखूंगा तक नहीं l

तृषा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर से मेरे गले लग गयी l तृषा – ऐसे मत जाओ l आज मुझे तुमसे एक वादा चाहिए l अगर तुमने मुझसे प्यार किया है तो मुझे ना नहीं कहोगे l

मैं – जब मैं कुछ हूँ ही नहीं तुम्हारे लिए फिर क्यूँ करूँ तुमसे कोई वादा l तृषा – मैं हमेशा से तुम्हारी थी, हूँ और हमेशा रहूंगी l मेरे लिए ये आखिरी बार मेरी बात मान लो l

मैं – कौन सी बात ?

तृषा – जब मैं अपनी शादी का जोड़ा पहनू तब मुझे सबसे पहले तुम देखो l जब भी मैंने शादी के सपने सजाये हैं हर बार मैंने यही इमेजिन किया है की तुमने मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले देखा है l मैं – किसी और के नाम के जोड़े में अपने प्यार को देखूं l इससे अच्छा तो मेरी जान मांग लेती l एक बार भी ना नहीं कहता l

तृषा – बस मेरे प्यार के लिए , मान जाओ l ( ये कहते हुए मेरे गले से लग गयी और रोने लगी )

मैंने कभी सोचा भी नहीं था की जिसे मैं प्यार करता हूँ उसे इतनी तकलीफ देने वाला मैं ही हूँगा l मुझे एहसास था उस की उस वक़्त मेरे दिल पे क्या बीतेगी जब वो शादी के जोड़े में होगी , वो भी किसी और के नाम की l पर इश्क में दर्द भी किस्मत वालों को ही मिलते हैं l मैं उससे कहा – ठीक है l

कमरे में सन्नाटा सा पसरा था l मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था की क्या बात करूँ उससे l तभी बाहर के दरवाज़े खुलने की आवाज़ आयी, शायद तृषा के पापा कोर्ट (उसके पापा शहर के जाने माने वकील थें) से आ चुके थे l

लगभग 15 मिनट बाद तृषा ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर चली गयी l मैं दरवाज़े के पास खडा हो गया ताकि बाहर क्या हो रहा है मैं सुन सकूँ l तृषा के पापा अब हॉल में बैठ चुके थें l तृषा भी मम्मी, पापा के साथ हॉल में बैठ गयी l

तृषा – पापा मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ l

उसके पापा – कहो l

तृषा – आप हमेशा कहते थे न की हम चाहे कोई भी मसला हो एक साथ बैठ के शांत दिमाग से बात करें तो उसे सुलझा सकते हैं l आज आप मेरे लिए थोड़ी देर शांत हो के मेरी बात सुनिए l

उसके पापा – ठीक है बेटा , कहो l

तृषा – मुझे पता है मैंने आपका दिल दुखाया है l मैं आपकी राजकुमारी नहीं बन सकी l आपने जो भी किया वो आपका हक़ था l आप मुझे जान से भी मार देते तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होता l मैंने आपको बहुत तकलीफ दिए हैं पर अब आप जैसा कहेंगे मैं करने को तैयार हूँ l पर क्या आप मेरी एक बात मानेंगे l

उसके पापा – मैं तुम्हारा भला ही चाहता हूँ l कोई दुश्मन नहीं हूँ मैं तुम्हारा l और गलती सभी से होती है आपसे हुयी तो मुझसे भी हुयी है l बताओ तुम्हे क्या चाहिए ?

तृषा – पापा मैं नक्श को समझा दूंगी और मुझे पता है वो मान जाएगा l मैं अपनी शादी से पहले फिर से वही मुस्कुराते चेहरे देखना चाहती हूँ जो कभी हम दोनों के घर में हुआ करता था l क्या हम पहले की तरह नहीं रह सकते ? और एक आखिरी बात “अब मैं जाने वाली हूँ तो आप दोनों ने मुझसे अब तक जितना प्यार किया है उसका दोगुना प्यार मुझे आने वाले दिनों में चाहिए” l

मैंने दरवाज़े को ज़रा सा सरकाते हुए हॉल में क्या हो रहा है उसे देखने की कोशिश की l हाल में तृषा बीच में बैठी थी और उसके मम्मी , पापा उसे माथे पे चूम रहे थें l “एक अजीब सा सुकून था तृषा के चेहरे पे” l
 

naqsh8521

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अपडेट - ५

थोड़ी देर में तृषा कमरे में आयी l उसने मुझे बिस्तर पे पटका और अपने होठ मेरे होठों से लगा दिए l मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था l आखिर ये लड़की चाहती क्या है ? उधर अपने मम्मी पापा को ये कह के आयी की आप जहाँ कहोगे मैं शादी करुँगी और इधर मेरी बांहों में... l क्या कोई ये बतायेगा मुझे की लड़कियों को समझा कैसे जाए l

मैं तृषा की आँखों में अपने सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करने लगा l पर शायद मैं भूल गया था ये वहीँ आँखें हैं जिसने मुझे कभी ऐसे कैद किया था किसके जादू से में आज तक बाहर नहीं आ अपया हूँ l जितना मैं उसे देखता गया उतना ही उसका होता चला गया l हमारी साँसे तेज़ होती गयी, हम दोनों एक दुसरे में खोते चले गएँ l आज पहली बार मैं उसके इतने करीब होते हुए भी उससे खुद को कोसों दूर पा रहा था l पर अब भी शायद थोड़ी ये उम्मीद बाकी थी की वो मेरी अब भी हो सकती है l मैं उसके इंच इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था की चाह के भी वो किसी और की ना हो पाए l आज मैं उसे खुद से किसी भी हाल में दूर नहीं होना चाहता था l जब जब वो मुझे खुद थोडा अलग करती मैं उसे खीच के फिर से अपने सीने से लगा लेता l आखिर ये सैलाब थम ही गया l

जब एक तूफ़ान शांत तो मेरे अन्दर जो भावनाओं का तूफ़ान था वो सामने आ गया l अब मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे l अब तक मैंने उसे कस के पकड़ा हुआ था मानो कोई उसे मुझसे जबरदस्ती दूर ले जा रहा हो l मैं अब तक इसी उम्मीद में था की शायद वो मेरी हो जाए l तृषा ने मेरे माथे को चुमते हुए कहा “आज मेरे पास ही रह जाओ न, मैं अपना हर लम्हा तुम्हारी बांहों में जीना चाहती हूँ l” मैं उसे रोकते हुए कहा “अधूरी बातों से दिलासा देने की ज़रूरत नहीं है l कहो की शादी तक मैं तुम्हारी बांहों में रहना चाहती हूँ और शादी के बाद” .... कहते कहते मैं रुक गया (मेरा गला भर आया था, अब कुछ भी कहने की हिम्मत बची भी नहीं थी) l

मैं – अब मुझे जाना होगा l

तृषा – “अभी ना जाओ छोड़ के, की दिल अभी भरा नहीं” उसकी बातें मुझे गुस्सा दिला रहीं थी l मैंने उसके बाल पकड़ अपने पास खीचा “जान लेने का कोई नया अंदाज़ है क्या ये ?” तृषा - इस्स्स्स !! जनाब आपका ये गुस्सा... आपकी जान जाए या न जाए पर इतना तो पक्का है आपके ये गुस्सा होने का अंदाज़ हमारी जान जरुर ले लेगा l कहते हुए फिर से उसने मेरे होठों को चूम लिया l

मुझे गुस्सा आ रहा था और उसे ये सब मज़ाक लग रहा था l मैंने उससे कहा – मुझे अब घुटन सी हो रही है , प्लीज मुझे थोड़ी देर अकेला छोड़ दो l मैं अभी यहाँ नहीं रह सकता l

तृषा – ठीक है तो फिर कल मिलने का वादा करो l मैं – ठीक है l

तृषा मेरा हाथ अपने सर पे रखते हुए – ऐसे नहीं मेरी कसम खा के कहो, तुम्हे हर रोज़ मुझसे मिलोगे l

मैं – जिससे शादी हो रही है उससे मिल न , मुझे क्यों तकलीफ दे रही हो l जो करना है करो उसके साथ , मेरी जान छोड़ दो अब बस l

तृषा – मुझसे प्यार करने की सज़ा ही समझ लो l या फिर यही कह दो की तुमने कभी भी मुझसे प्यार किया ही नहीं l मैं कुछ नहीं कहूँगी l

मैं अब कुछ भी नहीं कह सका उसे l “ठीक है जैसा तुम कहो”

तृषा – ऐसे नहीं मेरी कसम खा के कहो की तुम मुझसे हर रोज़ मिलोगे l भले ही मुझे डांटो, मारो या मेरी जान ले लो l लेकिन मुझसे हर रोज मिलोगे l

“हाँ मैं कसम खाता हूँ” अब तो जाने दो l

तृषा – ( मुस्काते हुए ) ह्म्म्म ठीक है अभी बंदोबस्त करती हूँ आपको बॉर्डर पार करवाने काl

वो बाहर गयी l उसके घर का माहौल अब सामान्य हो चुका था l उसने छत की चाभी उठाई और छत पे चली गयी l थोड़ी देर में वो वापिस कमरे में आयी और मुझे पीछे पीछे चलने का इशारा किया l शायद उसके मम्मी - पापा अपने कमरे में थे l मैं अब छत पे आ चुका था l मैं दीवार पार करने जैसे ही आगे बढ़ा.. तृषा मुझसे लिपट गयी, थोड़ी देर रुक के वो मुस्कुरा के मुझसे अलग हो गयी l पता नहीं आज उसकी आँखें मुझसे बहुत सी बातें कहना चाह रही थी पर इस सैलाब को अपने अन्दर ही समेटे रह गयी l

मैं अब अपने कमरे में था l बस एक ही बात जो मुझे खाए जा रही थी की उसने ऐसा फैसला क्यूँ लिया l और जब किसी और के साथ जिन्दगी बिताने का फैसला ले ली है तो अब मुझे ऐसे क्यूँ जता रही है मानो मैं अब भी उसके लिए सब कुछ हूँ l मैं तो पागल सा हुआ जा रहा था ये सब सोच सोच के l एक बार तो मन किया की सब छोड़ छाड़ के भाग जाऊं कही l कैसे देख पाऊंगा उसे मैं किसी और की होते हुए , जिसे मैं हमेशा के लिए अपना मान चुका था l पर अपने दिल को दिलासा भी दिया , आखिर जब उसने ही इन सब रिश्तों का मज़ाक बनाया हुआ है जब उसे ही कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैं क्यूँ नींद खराब करूँ l

वादे के मुताबिक़ मुझे हर रोज़ उसे मिलना था, सो मैं छत पे ठीक शाम के 8 बजे आ जाता था l हमेशा यही कोशिश करता की उससे नज़रें ना मिलें मेरी , हमेशा एक दूरी सी बना के रखता था l पर तृषा को समझना अब भी मेरी समझ से परे था l जब जब मैं उससे दूर जाता वो मुझसे जबरदस्ती आ के लिपट जाती l ना जाने कितना कुछ ही कहा था मैंने उसे पर मेरी हर बात का जैसे उसे कोई असर ही ना होता हो l ऐसे ही कुछ 15 दिन बीत गएँ l

आज सन्डे था और शाम के 6 बजे थे l तभी दरवाज़े की घंटी बजी l

मम्मी – जाओ बेटा , देखो तो कौन आया है ?

मैं – ठीक है माँ l मैंने दरवाज़ा खोला सामने तृषा के मम्मी पापा थे l

आंटी – बेटा जी मम्मी पापा हैं घर पे ? ( आज उनकी आवाज़ में अपनापन कम और तंज़ कसने वाला अंदाज़ ज्यादा था )

मैं – हाँ आईये l “मम्मी तृषा के मम्मी पापा आये हैं !”

मम्मी – अरे आईये l आप तो आजकल इधर का रस्ता ही भूल गए हैं l उन्होंने सब को हॉल में बिठाया और बहन को चाय – नाश्ते का कह के मम्मी पापा उनके साथ बैठ गए l

मैं अब अपने कमरे में आ चूका था l पर मेरा ध्यान तो अब भी उन्ही की बातों में लगा हुआ था l

अंकल (मेरे पापा को ) – और बताएं क्या हाल हैं आपके ? कैसा चल रहा है काम l

पापा – सब ठीक है वहां l हमारी सुबह से शाम सरकार नौकरी में और शाम से फिर अगली सुबह बीवी की सेवा में गुज़र जाती है l आप कहें कैसे आना हुआ आज ?

आंटी (तृषा की मम्मी) – जी एक खुश खबरी देनी थी l हमने हमारी बेटी की शादी तय कर दी है l और लड़का भी तृषा को बहुत पसंद है l ( इस बार आंटी आवाज़ थोडा उंचा करती हुयी बोली )

मैं तो सुन्न हो था जैसे l मैंने लाख रोकना चाहा पर मेरी आँखों में आंसुओं का सैलाब सा उमड़ आया हो जैसे l

मम्मी – ये तो बहुत ही अच्छी बात है l पर अब तो बस मिठाई से काम नहीं चलने वाला है भाई साहब ( मम्मी तृषा के पापा को यही बुलाती थी )l अब तो हमें अच्छी सी पार्टी चाहिएl

आंटी – अरे इसके लिए भी कहना होगा क्या ! अगल सन्डे को हम सब चलते हैं कही बाहर l

पापा – अगले सन्डे तक हमसे इंतज़ार नहीं होने वाला है l आज हम सब हैं ही तो घर पर ही पार्टी मना लेते हैं l फिर उन्होंने मुझे आवाज़ दिया l मैं तो समझ ही गया था की पापा की पार्टी का मतलब क्या लाना है l

मैं – आता हूँ l फिर पापा ने पैसे दियें और मैं चला गया वाइन लाने l

मैं बाइक स्टार्ट कर के बाहर मुख्य सडक तक पहुंचा l सड़क पर ढेरों गाड़ियों का शोर था पर मुझे कुछ शोर सुनायी दे ही नहीं रहा था जैसे l बस कानों में एक ही बात गूंज रही तृषा की “मैं तुम्हारी थी , तुम्हारी हूँ और तुम्हारी ही रहूंगी l” मैं बेहद बेपरवाह सा सड़क पे आगे बढ़ा जा रहा था l गाड़ियों के चमकते लाइट में भी मुझे तृषा ही नज़र आ रही थी l एक बार तो मैं अपनी गाडी सामने वाली ट्रक के एकदम सामने ही ले आया पर वो बगल से गुज़र गयाl शायद ड्राईवर मुझे गालियाँ देते आगे बढ़ गया था l मैं तो जैसे अब तक सपने में ही था l ऐसा लग रहा था मानो उस दूर होती लाइट के साथ मेरा प्यार भी मुझसे दूर होता जा रहा था l फिर मैंने संभाला खुद को और वाइन ले के वापिस आया l इस बार मैं छोटी बोतल ज्यादा ले आया , कभी पिया तो नहीं था पर इतना सुना था दर्द कम हो जाता है इसे पीने के बाद l रास्ते में किसी गाडी में एक गाना बज रहा था “मेरी किस्मत में तू नहीं शायद, क्यों तेरा इंतज़ार करता हूँ l मैं तुझे कल भी प्यार करता था मैं तुम्हे अब भी प्यार करता हूँ” l सच कहते हैं लोग जब दिल दर्द से भरा हो तो ऐसा लगता है मानो सारे दर्द भरे गीत आपके लिए ही लिखे गए हो l

अब मैं अपने घर के दरवाज़े तक पहुँच चुका था l तभी घर के अन्दर से एक हंसी की आवाज़ सुनायी दी... मैं वही रुक गया, तृषा मेरे घर में आयी हुयी थी l आखिर वो इतनी खुश कैसे हो सकती है l मेरा दिल अब तक उसे बेवफा मानने को तैयार नहीं था l मुझसे अब बर्दास्त नहीं हुआ , मैंने वो छोटी वोडका की बोतल खोली और उसे ऐसे ही पी गया l जितनी तेज़ जलन मेरे गले में हुयी उससे कई ज्यादा ठंडक मेरे सीने को मिली l मेरी साँसें बहुत तेज़ हो चुकी थी l दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी थी मानो दिल का दौरा न पड़ जाए मुझे l थोड़ी देर के लिए मैं यहीं ज़मीन पे बैठ गया l मैंने अपने आप को संभाला और अपने घर में दाखिल हुआ l सबसे पहला चेहरा तृषा का ही मेरे सामने था l हॉल में मेरे मम्मी पापा के बीच बैठी बहुत खुश नज़र आ रही थी l

मम्मी – बेटा तृषा को बधाई दो, उसकी शादी तय हो गयी है l

मैं – माँ बधाई तो गैरों को दी जाती है l अपनों को तो गलें लगा के दुआएं दी जाती है l मैं आगे बढ़ा और तृषा को सबके सामने ही गले से लगा लिया l एक खामोशी सी छा गयी वहां पे l तब तृषा ने माहौल को संभालते हुए मुझे अलग किया और...

तृषा – तुम्हे क्या लगता है, तुम्हारी जान छूटी l आंटी के बनाये आलू के पराठे खाने मैं कहीं से भी आ जाउंगी l और मुझे जीभ निकाल चिढाती हुयी मेरी मम्मी की गोद में बैठ गयी l

फिर सब हसने लगें l मैं अपने आप को संभालता हुआ ऊपर छत पे चला गया l शराब का नशा धीरे धीरे अपना रंग दिखा रहा था l मेरे कदम अब लडखडाने लगे थे l मैं अब छत के किनारे तक आ गया था l मेरा एक पाँव छत की रेलिंग पर था l मन में एक ही ख़याल आ रहा था क्यूँ ना कूद ही जाऊं यहाँ से , शायद जिस्म के दुसरे हिस्सों का दर्द मेरे दिल के दर्द को कम कर दे l मैं ये सब सोंच ही रहा था की छत के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आयीl तृषा छत पे थी और उसने दरवाज़े को लॉक कर दिया l

मैं – सूना था की खुबसूरत लोगों के पास दिल नहीं होता, आज देख भी लिया l

तृषा – उफ्फ्फ़ क्या अंदाज़ हैं आपके l वैसे जान खुबसूरत कहने का शुक्रिया l कहते हुए उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दी l “वैसे मेरे पास दिल हो या ना हो, पर आपके दिल में मेरे लिए इतना प्यार देख जी करता है की कच्चा चबा जाऊं तुम्हे l”

मैं – जान अपनी भूख अपने होने वाले पति के लिए बचा के रखो l मुझसे अब कुछ भी कहना दुश्वार हो रहा था l ऐसा लग रहा था जैसे मेरे दिल को कोई अपनी हथेलियों में रख दबा रहा हो l

तृषा – आपको पीने शौक कब से हो गया ? ये बुरी आदत है इसे छोड़ दो l

मैं – छोड़ना तुम्हारी आदत होगी मेरी नहीं l वैसे तुमसे प्यार करना भी तो मेरी बुरी आदत की तरह ही है l अब तुम्हे चाहना भी छोड़ दू ?

तृषा – हाँ ! मैं तुम्हारे लायक नहीं निशु... थोड़ी देर तक खामोशी सी छाई रही वहां l आज मैं उसे वो हर बात कह देना चाहता था जो मेरे सीने में आग बन धधक रही थी l मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और अपने घुटने पे आ गया l

“आज मैं एक बात कहना चाहता हूँ l मैंने जब से प्यार का मतलब जाना है बस तुम्हे ही चाहा है l मैंने जब से जिन्दगी का सपना संजोया है हर सपने में तुम्हे ही अपने साथ देखा है l तुम्हारी आँखों में अपने लिए प्यार देखना बस यही मेरी सबसे बुरी आदत है l जब से मुझसे दूर हुयी हो, मैं साँसे तो ले रहा हूँ पर ज़िंदा होने का एहसास खो दिया है l मैं नहीं जानता हूँ की ये मेरा प्यार है या पागलपन l मैं इतना जानता हूँ की अगर कोई एहसास है जिसने मुझे अब तक ज़िंदा रखा है तो वो तुम्हारे प्यार का एहसास, तुम्हारे साथ बिताएं उन लम्हों की यादें हैं l तुम मेरी दुनिया में वापस आओ या ना आओ मैं अपनी यादों में ही हमेशा तुम्हे इतना ही प्यार करता रहूँगा l इतना प्यार की तुम्हारी ये जिंदगी उस प्यार को समेटने में ही ख़त्म हो जायेगी पर ये प्यार ख़त्म नहीं होगा l”

मेरी आँखों में आंसू आ गए थे l तृषा भी घुटनों पे बैठ मेरे पास आयी मेरे चेहरे को ऊपर कर मेरे होठों को चूम लिया
 

naqsh8521

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“मैं जानती हूँ तुम्हारे प्यार के लिए मेरा ये जनम काफी नहीं l ऊपरवाले से थोड़ा वक़्त उधार ले मैं फिर से आउंगी, और इस बार बस मैं और तुम होंगे l ना मम्मी पापा कर डर होगा न दुनियावालों की कोई परवाह l फिर से एक साथ अपना बचपन जियेंगे, एक साथ जवानी और अंत में बूढ़े हो एक दुसरे की बांहों में इस दुनिया को अलविदा कह जायेंगे l पर इस जनम में नहीं l” तृषा उठ के जाने को हुयी पर मैंने उसका हाथ पकड़ा और सीने से लगा लिया l उसकी आँखें भी भरी हुयी थी l

तृषा – निशु , शादी के बाद मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी l मैं तुम्हारे प्यार का हर लम्हा अपनी शादी वाले दिन तक समेट लेना चाहती हूँ l ताकि मैं मर भी जाऊं तो भी तुम्हारे प्यार से पूरी हो के मरुँ, कोई अधूरापन ना हो तब तक l मैंने उसके कान पकड़ें और उसे कहा “ये मरने जीने की बात कहाँ से आयी l” तृषा – इस्स्स्स ! अब शादी को लोग बर्बादी भी तो कहते हैं और बर्बादी में सब जीते कहाँ हैं l मैं – बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे l

तृषा – वैसे जान मेरे आज के प्यार का कोटा अब तक भरा नहीं है l (हमेशा की तरह वैसे ही चेह्कते हुए कहा उसने)

मैं – ह्म्म्म , वैसे जान यूँ खुले खुले आसमान के नीचे कोटा फुल करने में मज़ा आयेगा न l

तृषा – सबर करो मेरे शेर नीचे शिकारी हमारी राह देख रहे होंगे l मैं जाती हूँ अब ...

“मैं जाती हूँ अब...” ये शब्द बार बार गूंजने लगे थे मेरे जेहन में l जैसे जैसे वो अपनी कदमें वापिस नीचे की ओर बढ़ा रही थी, वैसे वैसे मेरे दिल का वो भारीपन वापस आ रहा था l मैं हाथ बढ़ा के उसे रोकना चाह रहा था पर मैं वहीँ जड़ हो गया था मानो l अब वो चली गयी थी l मैंने अपना मोबाइल निकाला और रेडियो ऑन किया, गाना आ रहा था दर्द दिलों के कम हो जातें.... मैं और तुम गर हम हो जातें l थोड़ी देर बाद दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आयी और तृषा और उसके मम्मी पापा अपने घर की ओर चल दिए l तृषा के बढ़ते कदम और इस गाने के बोल .. “इश्क अधुरा , दुनिया अधूरी l मेरी चाहत कर दो न पूरी l दिल तो ये ही चाहे, तेरा और मेरा हो जाए मुकम्मल ये अफसाना l दूर ये सारे भरम हो जाते मैं और तुम गर हम हो जाते l” पता नहीं रब को क्या मंज़ूर था l अब मैं अपने कमरे में आ चुका था l मेरे व्हाट्स ऐप पे तृषा का मैसेज आया था “अपने प्यार को यूँ दर्द में देखना इस दुनियां में किसी को भी गंवारा नहीं होगा l तुम्हे ऐसे देख कही मैं ना टूट जाऊं l मुझसे लड़ो झगड़ो मुझे कुछ भी करो पर यूँ खुद को जलाओ मत l क्यूंकि जब जब आग तुम्हारे सीने में लगती है जलती मैं हूँ l... तुम्हारी टीपू सुलतान (मैं अक्सर इसी नाम से उसे चिढ़ाता था)”

मैं अपने बिस्तर पे था पर नींद तो मानो कोसों दूर थी मुझसे l बस तृषा के साथ बिताये लम्हें फ़्लैश बैक फिल्म की तरह चल रहे थें में दिमाग में l तृषा के साथ बिताये वो पल मेरी सबसे हसीन यादों में से एक थी l आज उसकी शादी तय हो चुकी थी, बहुत जल्द किसी और की होने वाली थी वो l पता नहीं मैं उसे कभी देख भी पाऊं या नहीं उसके बाद l पर एक काम तो मैं कर ही सकता था, इन बाकी बचे हुए दिनों में ही अपनी पूरी जिंदगी जी लेना l उसके साथ का हर लम्हा अपनी यादों में कैद कर लेना l जानता हूँ जिंदगी यादों के सहारे नहीं जी जा सकती हैं l पर जब ज़िंदगी में साथ की कोई उम्मीद ही ना हो तो ये यादें ही हमेशा साथ निभाती हैं l मुझे तृषा के दर्द का एहसास था , अब मैं उसे और नहीं रुलाना चाहता था l मैं कल की प्लानिंग करने लग गया, तृषा के साथ बिताने वाले वक़्त की l

सुबह के दस बजे थें l मैं नास्ते के लिए बैठा ही था की तृषा का फ़ोन आया l मम्मी ने कॉल रिसीव किया और फिर मुझे कहने लगी l “बेटा वो तृषा को शादी की तैयारी करनी है, तुम्हारी मदत चाहिए उसे l और हाँ आज के नास्ते से रात के खाने तक का इंतज़ाम वहीँ है तुम्हारा l” मैं मन ही मन में “अरे मेरी भोली माँ, वो तेरे बेटे को खिलाने को नहीं बल्कि खाने की तैयारी में है l दिल का तंदूर उसने बना ही दिया है अब पता नहीं क्या क्या पकाने वाली है l” खैर अब नास्ता करता तो मम्मी भी नाराज़ हो जाती सो मैं उठा , अपने हाथ धोये और तृषा के घर चला गया l दरवाज़ा पे तृषा थी l

मैं – क्यों जी , मैदान खाली है क्या?

तृषा – (हँसते हुए) ह्म्म्म l सबको पटना भेज दिया है मेरी शादी का जोड़ा लाने l कल ही आ पायेंगे अब तो l

मैं – और आपने अपना हनीमून प्लान कर लिया l तृषा मुझे रोकते हुए बोली “तुम्हारा हर इलज़ाम कुबूल है मुझे पर ये नहीं l तुमसे प्यार किया है मैंने और पहले भी तुमसे कह चुकी हूँ ... तुम्हारी थी, तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी l”

मैं शायद कुछ ज्यादा ही कह गया था l फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा “तो आपको शादी की तयारी में हेल्प चाहिए थी l अब बताओ फूट मसाज दू या फुल बडी मसाज l”

तृषा – ह्म्म्म ... मौके का फायदा l जान पहले आराम तो कर लो l मैं कुछ खाने के लिए ले के आती हूँ l कहते हुए जैसे ही किचेन में जाने को हुयी मैंने उसका हाथ पकड़ा और गोद में उठा लिया और उसके बेडरूम में ला के पटक दिया l

तृषा – बड़े बदमाश हो तुम, बड़े नादान हो तुम l हाँ मगर ये सच है ... हमारी जान हो तुम l कहते हुए उसने अपने होठ मेरे होठों से मिला दिए l

वो उसका मुझे देखना, मुझे पागल किये जा रहा था l कितनी सच्चाई थी इन आँखों मे l मैं डूबता चला गया इन आँखों की गहराईयों में l अब ना तो मुझे कुछ होश रहा था ना मैं होश में आना चाहता था बस उसके प्यार में अपने आप को खो देना चाहता था मैं l भूल बैठा था अपने हर दर्द को मैं या यूँ कहूँ की मैं भूल जाना चाहता था हर उस बात को जो कांटे की तरह चुभ रही थी इतने दिनों से l उसकी हर छुअन मेरे जिस्म में जान डाल रही हो जैसे l अब हमारा प्यार अपनी एक्सट्रीम (पराकाष्ठा) पर पहुँच चुका था l एक बार फिर हमारे होंठ मिल गएँ l हमारी आँखें अब बोझिल हो रही थी थकान की वजह से l पर तृषा की आँखों में नींद कहाँ l उसने कपडे बदलें और मेरे लिए नास्ता लाने चली गयी l

मैंने भी कपडे पहन लिए पर गर्मी थोड़ी थी सो शर्ट नहीं पहना था l तृषा कमरे में दाखिल हुयी l “अब उठ भी जाओ जान” l तृषा की आवाज़ सुनते ही मैंने दूसरी तरफ अपना चेहरा किया और तकिये को अपने कानों पे रख लिया l तृषा नास्ते को प्लेट में सजा मेरे पास आ गयी l

तृषा – अब उठ भी जाईये, बाद में आप सो लेना l

मैं – मुझे नहीं उठाना है बस l आपके होते हुए मैं अपने हाथ गंदे क्यूँ करूँ l

तृषा – (मेरे गले पे चुमते हुए) ठीक है मेरा बाबू l मैं – अरे गुदगुदी होती है l ऐसे मत करो ना l और मैं झटके से उठ के बैठ गया l तृषा को तो जैसे मैंने जैकपोट दिखा दिया हो l अब तो बस उसकी गुदगुदी और हाथ जोडके उससे भागता हुआ मैं l “भगवान् के लिए मुझे छोड़ दो” मैं चिल्ला रहा था l और तृषा रेपिस्ट वाली शकल बनाते हुए “जानेमन भगवान् से तू तब मिलेगा न जब मुझसे बचेगा” और फिर से वही गुदगुदी l आखिर में उसके हाथ पकड़ मरोड़ दिए , तब जा के रुकी l अब बेचारी हिल भी नहीं सकती थी l अब बदला लेने की बारी मेरी थी l मैं अपने होठों को उसके कानों के पास ले गया और अपनी जीभ से उसके कानो को कुरेदने लगा (मैं जानता था की उसे तो बस यही गुदगुदी लगेगी) l वो लगभग चिल्ला रही थी l “जो कहोगे वो करुँगी मैं प्लीज मुझे छोड़ दो l” मेरा बदला अब पूरा हो चुका था सो मैंने उसे छोड़ दिया l

मैं – खाना तो खिलाओ , भूख लगी है l वैसे भी बिना खिलाये पिलाए इतनी मेहनत करवा चुकी हो l

तृषा – किसने कहा था मेहनत करने को l खुद ही जोश में आ गए थे तुम तो l

मैं – मैं तो तुमसे हमेशा कहता हूँ की अगर मुझे काबू में रखना हो तो लाल कपड़ों में मत आया करो मेरे सामने l जब खुद गलती की हो तो भुगतो l

तृषा – बातें ही बनाओ अब आप l चलो खाना तो खाओ l लाओ मैं खिला देती हूँ l

मैं तो बस उसके चेहरे को ही देखे जा रहा था l जिसे देख मुझे एक ग़ज़ल की कुछ लाइन याद आ रही थी l “चौदवी की रात थी, शब् भर रहा चर्चा तेरा... सब ने कहा चाँद है, मैंने कहा चेहरा तेरा l” मैं तो खोया ही हुआ था की उसके पहले निवाले ने मेरी तन्द्रा भंग की l मैंने नास्ते की प्लेट पे नज़र डाली l चावल , चिकन अफगानी, और टमाटर की बनी ग्रेवी थीl मेरा सबसे पसंदीदा खाना जो मैं अक्सर तृषा के साथ रेस्टुरेंट में खाया करता था l तृषा शायद ही कभी अपने घर में कुछ बनाया करती थी l मैं अक्सर उसे ताने देता की “तुम अगर मेरी बीवी बनी तब तो बस जली हुयी चपातियों से ही काम चलाना होगा”l और वो हर बार जवाब में यही कहती “अभी शादी को बहुत वक़्त है तब तक सीख लुंगी न l”

मैं – कब सीखा ये बनाना तुमने ?

तृषा – तुम्हे अपने हाथों से बनायी हुयी डिश खिलानी थी, वर्ना जाने के बाद भी मुझे ताने मरते l अब वैसे भी वक़्त बचा नहीं है सो मैंने.... मैंने अपने हाथ उसके मुह पर रख उसकी बात यही रोक दी “वक़्त की याद दिलाओगी तो शायद इस वक़्त को भी मैं जी ना पाऊं l” अब हम दोनों चुप थे l ये खामोशियाँ भी चुभन देती हैं , इस बात एहसास मुझे उसी वक़्त हुआ l मैंने खाना ख़त्म किया और अपनी शर्ट पहनने लगा l तृषा को शायद ये लगा की मैं अब जाने वाला हूँ l वो सब छोड़ छाड़ के मुझसे लिपट गयी l मैंने कहा “जान हाथ तो धो लो l मैं कही नहीं जा रहा हूँ”

तृषा – ठीक है l पर ये शर्ट मेरे पास रहेगा मैं तुम्हे ये देने वाली हूँ ही नहीं l

मैं – अरे यार तो मैं घर कैसे जाऊँगा l

तृषा – वो सब मैं नहीं जानती l मैं ये शर्ट नहीं देने वाली हूँ तुम्हे बस l .. वैसे भी बिना हाथ धोये ही उसने इसे पकड़ लिया था सो शर्ट (वो भी सफ़ेद शर्ट) में दाग भी लग गए थे l मैं इसे ऐसे में घर पहन जा भी नहीं सकता था l सो मैंने कहा “ठीक है जी , आपका हुकुम सर आँखों पे l”

तृषा किचेन ठीक करने लग गयी और मैंने अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ा और तेज़ तेज़ गाने बजाने लगा l उसपे भी अजीब से मेरे डांस स्टेप्स l तृषा के दादा दादी की बोलचाल की भाषा भोजपुरी थी l और जब भी मुझे तृषा को चिढाना होता मैं या तो उससे भोजपुरी में बातें करने लगता या फिर ऐसे ही भोजपुरी गाने तेज़ आवाज़ में बजाने लगता l आज भी मैं वही कर रहा था l

मैं ऐसे ही डांस करते हुते किचेन में गया और तृषा के दुपट्टे को अपनी दांतों में फंसा बरात वाले स्टेप्स करने लग गया l तृषा चिढती हुयी बाहर आयी और गाना बंद कर दिया उसने l

मैं उसे अपनी ओर खींचते हुए “का हो करेजा (क्या हुआ मेरी जान)”

तृषा – (अपना मुंह अजीब सा बनाते हुए) कहो !

मैं – रउरा के हई डिजाइन देख के मन क र ता की चापाकल में डूब के जान दे दईं ! (तुम्हारे इस फिगर को देख के ऐसा लग रहा है जैसे हैण्ड पंप में कूद के जान दूँ मैं)

तृषा – अपना सर पकड़ते हुए “आज तो तुम कूद ही जाओ, मैं भी देखूं आखिर कैसे एडजस्ट होते हो तुम उसमे l” मैं हंसने लग गया l मैंने बॉल डांस की धुन बजायी और तृषा को बांहों में ले स्टेप्स मिलाने लगा l ये डांस तृषा ने ही मुझे सिखाया था l एक दुसरे की बांहों में बाँहें डाले, आँखें बस एक दुसरे को ही देखती हुयी l मैं धीरे से उसके कानों के पास गया और उससे कहा “सच में चली जाओगी मुझे छोड़ के ?”

तृषा – (मुझे कस के पकड़ते हुए) नहीं, बस झूटमूट का ! मैं तो हमेशा तुम्हारे पास रहूंगी l जब कभी अकेला लगे, अपनी आँखें बंद करना और मुझे याद करना l अगर तुम्हे गुदगुदी हुयी तो समझ लेना मैं तुम्हारे साथ हूँ l (फिर से मुझे गुदगुदी करने लग गयी और मैं उससे बचता हुआ कमरे में एक जगह से दूसरी जगह भागने लग गया)

आखिर में हम दोनों थक के बैठ गए l मेरे जनमदिन वाले दिन को जो हुआ था, उसके बाद शायद ही कभी हसे थे हम दोनों l उस दिन को हमने जी भर के जिया l एक बार तो भूल गया था मैं की उसकी शादी किसी और से हो रही है l शायद मैं आज याद भी नहीं करना चाहता था इस बात को ...

रात हो चुकी थी l उस रात का खाना हम दोनों ने मिल के बनाया था l वो सोफे पे बैठ गयी, मैंने उसकी गोद में सर रखा और फर्श पर बैठ गया l तृषा मुझे खिलाने लग गयी l मैं तो बस उसे देखता ही जा रहा था, पता नहीं फिर कब उसे जी भर के देखने का मौका मिलेl

खाना पीना हो चूका था और मम्मी का कॉल भी आ चूका था l सो अब जाने का वक़्त हो चुका था l तृषा की आँखें भी नम हुयी जा रही थी, वो कुछ कहना चाह रही थी पर बात उसके गले से बाहर नहीं आ पा रही थी l ना मुझमे अब कुछ बोलने की हिम्मत बची थी l मैं दरवाज़े की ओर मुड़ा और दरवाज़ा खोल ही रहा था की तृषा का मोबाइल बज उठा l कॉलर ट्यून थी “लग जा गले की फिर हंसी रात हो ना हो ... शायद इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो ...” मैं पलटा और तृषा को जोर से बांहों में भर लिया l हम दोनों रोये जा रहे थे l थोड़ी देर ऐसे ही रुक मैंने खुद को उससे अलग किया और दरवाज़े से बाहर आ गया l
 
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