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“चारों तरफ हज़ारों कैमरों की जगमगाती चमक , जहाँ तक नज़रें जाएँ बस पागल होती बेकाबू सी भीड़ और उस भीड़ को काबू करने में लगे हुए कितने ही पुलिस वाले l कानों में गूंजता हुआ बस आपका ही नाम l हर चौराहे पे आपकी बड़ी बड़ी तस्वीरें l हर खबर की सुर्ख़ियों में बस आपका ही ज़िक्र l”
यूँ तो हर मोड़ पे बहुत सी जिंदगियां साँसे लेती दिखाई देंगी , पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती l
जीते तो सब हैं इस दुनियां में , पर यहाँ हर किसी की खुद की पहचान नहीं होती l
Update - 1
आज दिल बड़े जोर से धड़क रहा था मेरा , घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था l आँखें रुआंसी हुयी जा रही थी l आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की l आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा इतने बड़े शहर में ? कैसी होगी मेरी माँ ? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को ऍफ़ आई आर भी करवा ही दिया होगा l
तीन महीने पहले
बिहार के गया शहर में चार कमरों के मकान में रहता था मैं, एक खुशहाल मध्यम वर्गीय परिवार था मेरा l मम्मी , पापा, मैं और मेरी एक बहन l कितने खुश थे हम सब l जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों को मज़े से जीना, वो पापा का मम्मी को चिढाते हुए “जुम्मा चुम्मा दे दे” वाले गाने पे डांस करना l बहन के बॉय फ्रेंड को धमकी देना और खुद पड़ोस में आई नयी नयी लड़की को देखने के लिए गर्मियों की धुप में उसका इंतज़ार करना l कितनी अच्छी बीत रही थी मेरी जिंदगी l पर कहते हैं न “जिंदगी में अगर खुबसूरत सुबह होती है तो वहीँ काली अँधेरी रात भी होती है” l जिसने इस रात में हौसला बनाए रखा उसकी नईया पार और जिसने हौसला खो दिया वो इन्ही अँधेरी राहों में खो सा जता है l
आज जन्म दिन था मेरा १७ फ़रवरी की सुबह l मम्मी की आवाज़ से मेरी आँखें खुली, सामने घर के सभी सदस्य थे l
“हैप्पी बर्थडे टू यू” की आवाज़ के साथ मेरे गाल खीचने शुरू कर दिये सबने l अपने बर्थडे जी यही बात मुझे पसंद नहीं आती थी l आखिर में मम्मी ने नहा के मंदिर जाने का निर्देश दिया और फिर सब बाहर हॉल में चले गएँ l
एक लम्बी सी जम्हाई ली और अपने सेल फ़ोन को चेक करने लगा l तृषा (मेरी पडोसी और मेरी गर्ल फ्रेंड) का मैसेज था व्हाट्स ऐप पे “हैप्पी बर्थडे माय लव, मंदिर जाना तो मैसेज कर देना... मिस यू सो मच” l ऐसा नहीं है की मुझे दूसरों ने शुभ कामनाएं नहीं भेजी थी l पर कसम से इस एक मैसेज ने मेरा दिन बना दिया l मैंने जवाब भेज दिया तृषा को “अभी एक घंटे में निकलूंगा मंदिर को”, और फ्रेश होने चला गया l
ये मेरा २३ वाँ जन्म दिन था, छे फीट की लम्बाई हल्का सांवला पर साफ़ रंग, हलकी भूरी आँखें और जिम में बनायी हुई बॉडी l जब अपनी फेवरेट गहरे काले रंग के कपडे पहन कर आईने के सामने खड़ा हुआ तभी तृषा मेरे कमरे में दाखिल हुयी “ ओह जनाब कहाँ आग लगाने का इरादा है ?”
मैंने तृषा के फ्रॉक सूट में ऊँगली फसा के अपनी ओर खीचा और बड़े प्यार से उसके कान में कहा “जान हम अपने अन्दर प्यार का समंदर समेटे हैं, हमने आग लगाना नहीं बुझाना सीखा हैl”
मम्मी की आवाज़ आयी – कौन है बेटा ?
मैंने जवाब दिया – तृषा आयी है माँ वो बर्तन लौटाने, और मुफ्त में मिठाई खाने l
मेरा इतना कहना ही था की तभी पास पड़े मेरे बिस्तर के तकियों की बरसात मुझपे शुरू हो गयी l खैर घर में था मैं सो बाहर भाग के बच गया l
मम्मी – क्या हुआ ? फ्रिज से मिठाई लाओ और खिलाओ तृषा को l
मैंने कहा – अरे माँ अभी पूजा तो कर लूँ फिर भूखों को खिलाऊंगा, नहीं तो पूण्य कैसे मिलेगा l तृषा की गुस्से वाली आँखों ने मुझे एहसास करा दिया की बेटा अब चुप हो जा वर्ना ये जनम दिन को मरन दिन बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा l
मैं घर से निकला और मंदिर में पूजा करके अपने सारे करीबियों को मिठाइयां बाटी और सबसे आखिर में तृषा के घर पहुंचा l
दोपहर के १२ बज रहे थें, हमेशा की तरह तृषा के पापा ऑफिस जा चुके थे और उसकी मम्मी सारे काम निबटा के सीरियल देख रही थी l घर का दरवाजा तृषा ने ही खोला l मैं एक शरीफ बच्चे की तरह तृषा पे ध्यान न देते हुए सीधा आंटी की ओर मिठाईयों का डब्बा ले के चला गया l
मैं – आंटी जी ये मिठाई, आज मेरा जन्मदिन है l
आंटी – ओह ! वैरी गुड बेटा जी , हैप्पी बर्थडे l
मैं – आंटी आज ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने वाला है मेरा सो मैं कंप्यूटर पे देख लेता हूँ l
आंटी – ठीक है बेटा l “तृषा , जाओ ज़रा कंप्यूटर ऑन कर देना” l
आंटी फिर से अपने सीरियल देखने लग गयी और मैं और तृषा उसके कमरे की ओर बढ़ चलेंl तृषा ने कंप्यूटर ऑन किया और मुझे कुर्सी पे बैठने को बोली l मैंने तृषा के हाथ को पकड़ा और एक झटके से उसे अपनी ओर खीच लिया l तृषा अब मेरी बांहों में थी l
तृषा – छोडो मुझे , मम्मी आ जायेगी l
यूँ तो हर मोड़ पे बहुत सी जिंदगियां साँसे लेती दिखाई देंगी , पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती l
जीते तो सब हैं इस दुनियां में , पर यहाँ हर किसी की खुद की पहचान नहीं होती l
Update - 1
आज दिल बड़े जोर से धड़क रहा था मेरा , घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था l आँखें रुआंसी हुयी जा रही थी l आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की l आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा इतने बड़े शहर में ? कैसी होगी मेरी माँ ? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को ऍफ़ आई आर भी करवा ही दिया होगा l
तीन महीने पहले
बिहार के गया शहर में चार कमरों के मकान में रहता था मैं, एक खुशहाल मध्यम वर्गीय परिवार था मेरा l मम्मी , पापा, मैं और मेरी एक बहन l कितने खुश थे हम सब l जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों को मज़े से जीना, वो पापा का मम्मी को चिढाते हुए “जुम्मा चुम्मा दे दे” वाले गाने पे डांस करना l बहन के बॉय फ्रेंड को धमकी देना और खुद पड़ोस में आई नयी नयी लड़की को देखने के लिए गर्मियों की धुप में उसका इंतज़ार करना l कितनी अच्छी बीत रही थी मेरी जिंदगी l पर कहते हैं न “जिंदगी में अगर खुबसूरत सुबह होती है तो वहीँ काली अँधेरी रात भी होती है” l जिसने इस रात में हौसला बनाए रखा उसकी नईया पार और जिसने हौसला खो दिया वो इन्ही अँधेरी राहों में खो सा जता है l
आज जन्म दिन था मेरा १७ फ़रवरी की सुबह l मम्मी की आवाज़ से मेरी आँखें खुली, सामने घर के सभी सदस्य थे l
“हैप्पी बर्थडे टू यू” की आवाज़ के साथ मेरे गाल खीचने शुरू कर दिये सबने l अपने बर्थडे जी यही बात मुझे पसंद नहीं आती थी l आखिर में मम्मी ने नहा के मंदिर जाने का निर्देश दिया और फिर सब बाहर हॉल में चले गएँ l
एक लम्बी सी जम्हाई ली और अपने सेल फ़ोन को चेक करने लगा l तृषा (मेरी पडोसी और मेरी गर्ल फ्रेंड) का मैसेज था व्हाट्स ऐप पे “हैप्पी बर्थडे माय लव, मंदिर जाना तो मैसेज कर देना... मिस यू सो मच” l ऐसा नहीं है की मुझे दूसरों ने शुभ कामनाएं नहीं भेजी थी l पर कसम से इस एक मैसेज ने मेरा दिन बना दिया l मैंने जवाब भेज दिया तृषा को “अभी एक घंटे में निकलूंगा मंदिर को”, और फ्रेश होने चला गया l
ये मेरा २३ वाँ जन्म दिन था, छे फीट की लम्बाई हल्का सांवला पर साफ़ रंग, हलकी भूरी आँखें और जिम में बनायी हुई बॉडी l जब अपनी फेवरेट गहरे काले रंग के कपडे पहन कर आईने के सामने खड़ा हुआ तभी तृषा मेरे कमरे में दाखिल हुयी “ ओह जनाब कहाँ आग लगाने का इरादा है ?”
मैंने तृषा के फ्रॉक सूट में ऊँगली फसा के अपनी ओर खीचा और बड़े प्यार से उसके कान में कहा “जान हम अपने अन्दर प्यार का समंदर समेटे हैं, हमने आग लगाना नहीं बुझाना सीखा हैl”
मम्मी की आवाज़ आयी – कौन है बेटा ?
मैंने जवाब दिया – तृषा आयी है माँ वो बर्तन लौटाने, और मुफ्त में मिठाई खाने l
मेरा इतना कहना ही था की तभी पास पड़े मेरे बिस्तर के तकियों की बरसात मुझपे शुरू हो गयी l खैर घर में था मैं सो बाहर भाग के बच गया l
मम्मी – क्या हुआ ? फ्रिज से मिठाई लाओ और खिलाओ तृषा को l
मैंने कहा – अरे माँ अभी पूजा तो कर लूँ फिर भूखों को खिलाऊंगा, नहीं तो पूण्य कैसे मिलेगा l तृषा की गुस्से वाली आँखों ने मुझे एहसास करा दिया की बेटा अब चुप हो जा वर्ना ये जनम दिन को मरन दिन बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा l
मैं घर से निकला और मंदिर में पूजा करके अपने सारे करीबियों को मिठाइयां बाटी और सबसे आखिर में तृषा के घर पहुंचा l
दोपहर के १२ बज रहे थें, हमेशा की तरह तृषा के पापा ऑफिस जा चुके थे और उसकी मम्मी सारे काम निबटा के सीरियल देख रही थी l घर का दरवाजा तृषा ने ही खोला l मैं एक शरीफ बच्चे की तरह तृषा पे ध्यान न देते हुए सीधा आंटी की ओर मिठाईयों का डब्बा ले के चला गया l
मैं – आंटी जी ये मिठाई, आज मेरा जन्मदिन है l
आंटी – ओह ! वैरी गुड बेटा जी , हैप्पी बर्थडे l
मैं – आंटी आज ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने वाला है मेरा सो मैं कंप्यूटर पे देख लेता हूँ l
आंटी – ठीक है बेटा l “तृषा , जाओ ज़रा कंप्यूटर ऑन कर देना” l
आंटी फिर से अपने सीरियल देखने लग गयी और मैं और तृषा उसके कमरे की ओर बढ़ चलेंl तृषा ने कंप्यूटर ऑन किया और मुझे कुर्सी पे बैठने को बोली l मैंने तृषा के हाथ को पकड़ा और एक झटके से उसे अपनी ओर खीच लिया l तृषा अब मेरी बांहों में थी l
तृषा – छोडो मुझे , मम्मी आ जायेगी l