- 95
- 180
- 33
अगला अपडेट
सीने में आग लगी हुयी थी l मैं जोर जोर से चिल्लाना चाह रहा था, मैं थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था l पर कहते हैं न “बड़ी तरक्की हुयी है इस देश की मेरे दोस्त... तसल्ली से रोने की जगह भी नहीं है यहाँ तो l” सारे दर्द को यूँ ही सीने में दबाये मैं अपने कमरे में आ गया l अब कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमे मैं सोने चला गया l उस दिन को बीते लगभग एक हफ्ता हो गया था l यूँ तो हर रोज़ हम किसी न किसी बहाने से मिल ही लेते थें l पर आज शाम तृषा का कोई पता ही नहीं था l उसके घर में भी कोई नहीं था l मैंने अपना सेल फ़ोन निकाला और तृषा को मैसेज किया l
“कहाँ हो ? मैं छत पे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ l” तृषा का ज़वाब थोड़ी देर में आया “मैं पटना में हूँ कल मिलती हूँ l”
आखिर वो पटना में क्या कर रही है ? ये सवाल मुझे परेशान किये जा रहा था l मैं नीचे गया, मम्मी नूडल्स बना रही थी l
मैं – मम्मी, वो तृषा के घर पे कोई नहीं है l सब कही गए हैं क्या ?
मम्मी – तृषा ने तुम्हे नहीं बताया है क्या ?
मैं – कौन सी बात ?
मम्मी – आज तृषा की सगाई है l लड़के वाले पटना के हैं सो वही किसी होटल से हो रही हैl
बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला मैंने l जब से तृषा की शादी की बात हुयी थी मुझे लगा था की मैं तृषा और उसके परिवार वालों को मना लूँगा l तृषा की प्यार भरी बातें उसका मेरे करीब आना, यूँ मुझपे अपना हक़ जताना l अब तो जैसे सब बेमतलब सा लग रहा था l उसे जब यही करना था तो मुझे उसने ये एहसास क्यूँ दिलाया की सब ठीक हो जाएगा l क्यूँ उसने मुझे खुद से दूर जाने ही नहीं दिया l क्या प्यार बस खेल है उसके लिए l सुना था की दिलों से खेलना भी शौक होता है , पर जान लेने का ये तरीका कुछ नया था मेरे लिए l आज मैं एक बात तय कर चुका था , उसकी हर याद को मिटाने की l शुरुआत उसकी तस्वीरों से की मैंने l छत पर गया और उसकी तस्वीरों को उसी के घर की छत पे रख कर आग लगा दी मैंने l हर जलती तस्वीर और मेरे आंसुओं की हर बूँद के साथ उसकी हर याद को मैं खुद से अलग कर देना चाहता था l पर मैं इस प्यार का क्या करता जो मेरे दिल की हर धड़कन के साथ उसके मेरे पास होने का एहसास कराता जा रहा था l मैं गुमशुम सा हो गया उस दिन के बाद l किसी अजनबी के पास जाने से भी डर सा लगने लगा था मुझे l अब तो अपनी धड़कन भी पराई सी लगती थी मुझे l मैं अब ना तो कहीं जाता और ना ही किसी से बात करता l माँ ने बहुत बार मुझसे वजह जानने की कोशिश की पर क्या बताता मैं उन्हें की उनके बेटे को उसके अपने दिल का धडकना गंवारा नहीं l
तृषा की शादी की तारीख 15 मई को तय हुयी थी l मैं बस इस सैलाब के गुज़र जाने का इंतज़ार कर रहा था l जैसे जैसे दिन करीब आ रहे थे मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी l उसकी शादी में अब दो दिन बचे थे l शादी के गीतों का शोर अब मेरे बंद कमरे के अन्दर भी सुनायी देने लगा था l मैं पापा के कमरे में गया और वहां उनकी आधी खाली शराब की बोतल ले छत पे आ गया l रात के 8:30 बजे थे, मैंने अपने छत के दरवाज़े को बंद किया और किनारे की दीवार के सहारे जमीन पे बैठ गया l जब जब शराब की हर घूंट जब मेरे सीने को जलाती हुयी अन्दर जाती तब तब ऐसा लगता मेरे जलते हुए दिल पे किसी ने मरहम लगाया हो l मेरी आँखें अब बंद थी, अब तो मैं ये मान चूका था की मैंने किसी बेवफा से मोहब्बत की थी l तभी ऐसा लगा मानो कोई मेरी शराब की बोतल को मुझसे दूर कर रहा हो l मैंने अपनी आँखें खोली... सामने तृषा थी l मैं डर गया और लगभग रेंगता हुआ उससे दूर जाने लगा l “ज .. जाओ यहाँ से” लगभग चिल्लाते हुए मैं बोला l मेरी दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चुकी थी , मेरा पूरा शरीर कांप रहा था l
तृषा – क्यूँ जाऊं मैं ! तुम ऐसे ही घुट घुट के मरते रहो और मैं तुम्हे ऐसे ही मरते हुए देखती रहूँ l
मैं – जान भी लेती हो और कहती हो, तुम्हारा तड़पना मुझे पसंद नहीं l जाओ शादी करो और अपनी जिंदगी में खुश रहो l अब तो तुम्हारी हमदर्दी भी फरेब लगती है मुझे l
तृषा – (मेरे पास आते हुए) मत करो मुझसे इतना प्यार, मैं लायक नहीं तुम्हारे प्यार के l
मैं – दूर रहो मुझसे l और किसने कहा की तुमसे प्यार करता हूँ मैं l (उँगलियों से उसे दिखाते हुए) इत्तू सा भी प्यार नहीं करता तुम्हे मैं l
तृषा – (मेरे गले लग गयी) पता है मुझे l
मैं – अब क्या बचा है जो लेने आयी हो l
तृषा – (मेरे बोतल से एक घूंट लगाते हुए) कुछ नहीं l बस अपनी जिंदगी के कुछ बचे हुए पलों को तुम्हारे साथ जीने आयी हूँ l
मैं – तुम्हे कुछ महसूस नहीं होता क्या ? जब चाहो दिल में बसा लिया जब जी चाहा दिल से दूर कर लिया l
तृषा – होता है न l पर दिल से दूर करुँगी तब न l तुम तो हमेशा से मेरे दिल में हो l तो मुझे क्यूँ दर्द होगा l
मैं – (उसकी सगाई की अंगूठी दिखाते हुए) किसी और के नाम की अंगूठी पहनते हुए भी कुछ महसूस नहीं हुआ क्या ?
तृषा – जब पापा मेरे लिए प्यार से कुछ कपडे लाते थे तो उसे पहन के बहुत खुश होती थी मैं l घर में सबको डांस कर कर के दिखाती थी कभी l आज मेरी इस अंगूठी के पहनने से उन्हें ख़ुशी मिल रही है तो मैं इतना भी नहीं कर सकती उनके लिए l जिन्होंने दिन रात मेहनत की और मेरी हर डिमांड को पूरा किया l आज मैं उन्हें थोड़ी सी भी ख़ुशी दे सकूँ तो ये मेरे लिए खुशनसीबी होगी l
मैं – अपने मम्मी पापा की ख़ुशी का ख्याल है तुम्हे और मैं ? जब से तुम्हे जाना है तुहारे लिए ही जिया है मैंने l जब से तुमसे प्यार हुआ है तब से तुम्हारे हर दर्द को बराबर महसूस किया है मैंने l तुम्हारे लबों पे एक मुस्कान के लिए तुम्हारी हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है मैंने l और मैं क्या चाहा था तुमसे ... तुम्हारा प्यार l तुमने तो उसे भी किसी और के नाम कर दिया l
तृषा – तुम्हारे इस सवाल का जवाब भी बहुत जल्द दे दूंगी l पर तुम्हारी ये हालत मैं नहीं देख सकती l अपना हुलिया ठीक करो l और याद है न तुमने मुझसे वादा किया था “मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले तुम ही देखोगे” l आओगे न ? मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ के आ जाना l
मैं – काश की मैं तुम्हे ना कह पाता l हाँ मैं आऊंगा l
तृषा अपने घर चली गयी l आज बहुत दिनों के बाद मुझे नींद आयी थी l शादी वाला दिन भी आ चुका था l आज एक वादे को निभाना था l अपने लिए ना सही पर आज अपने प्यार के लिए मुस्कुराना था मुझे l सुबह सुबह मैंने शेविंग कराई, बाल ठीक किये और तृषा की गिफ्टेड शर्ट और पैंट को ठीक किया l शाम तक मैंने अपने आप को घर में ही व्यस्त रखा l अपने चेहरे से मुस्कान को एक बार भी खोने ना दिया l कभी आँखों में आंसू आये तो कुछ पड़ने का बहाना बना देता l शाम को चाचा जी घर पे आये “नक्श पापा को भेजना जरा” l मैंने जवाब दिया “ जी घर पे अभी कोई भी नहीं है, सब बगल में शादी में गए हुए हैं l”
चाचा जी – और तुम ?
मैं – हाँ बस थोड़ी देर में घर में ताले लगा के मैं भी जाऊँगा l
चाचा जी – ठीक है ये लो पैसे , पापा को दे देना l एक लाख हैं, गिन के अन्दर रख दो l
मैं – पापा को ही दे दीजियेगा l
चाचा जी – तुम्हारे पापा का ही है l और बार बार इतने पैसे लाना ले जाना सुरक्षित नहीं है l
मैंने पैसे गिने और कहा ठीक है अब आप जाईये मैं पापा को दे दूंगा l चाचा जी चले गए l अब मेरे लिए परेशानी थी की इस रखु तो कहाँ रखूं l लौकर की चाभी पापा कही रख के गए थे l सो मैंने उस हज़ार की गड्डी के दो हिस्से किये और आधा अपनी एक जेब में और बाकी आधा दूसरी जेब में रख लिया l आज वैसे ही कोई कम चिंता थी क्या जो एक और भी आ गयी l अब तक मैंने अपने दिल को मना लिया था l जानता था खुद को काबू में रखना मुश्किल होगा पर मैंने सोच लिया था की किसी और के सामने अपनी भावनाओं को आने से रोकूंगा l अगर किसी और के साथ घर बसाने में ही तृषा की ख़ुशी है तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा l वक़्त अब हो चला था l तृषा तो अब तैयार भी हो गयी होगी l मैंने घर को ताला लगाया और तृषा की घर की तरफ बढ़ चला l
तृषा की घर की ओर मेरे हर बढ़ते कदम मेरे दिल की धड़कन को तेज़ और तेज़ किये जा रहे थें l मैं मुख्य दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ l सभी अपने अपने काम में लगे थें l मैं सबको नमस्ते कहता हुआ तृषा के कमरे के पास पहुंचा l उसकी बहनें और भाभियाँ उसे घेर के उसका श्रींगार कर रहीं थी l
मैं – (खांसता हुआ कमरे में घुसा) अरे मेरे टीपू सुलतान “जंग की तैयारी हो गयी क्या?”
तृषा – (मुझे देखते ही उसकी आँखों से आंसू बहने लगे) भाभी आप सबको थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाईये l
सबके बाहर जाते ही उसने मुझे कस के पकड़ लिया और बहुत जोर जोर से रोने लगी l ऐसा लगा जैसे इतने दिनों से जो दर्द अपने अन्दर भरा हुआ था उसने आज वो सैलाब रुक ना सका l “बहुत दुःख दिया है न मैंने तुम्हे ? अब कोई तुम्हे परेशान नहीं करेगी l” मेरे गाल खींचते हुए तृषा बोली l
मैं – तुम्हारे नाम का दर्द भी ख़ास है मेरे लिए वरना औरों से मिली खुशियाँ भी ख़ुशी नहीं देती l वैसे जानू आज मैं देखने आया हूँ l देखूं तो कैसी लग रही हो !
तृषा मुझसे थोड़ी दूर हटते हुए अपना शादी का जोड़ा दिखाने लगी l इन तीन महीनों में बस एक ही बात थी जो मुझे अजीब लगी थी तृषा में “उसकी आँखें कुछ कहती थी और उसकी जुबान पे कुछ और ही बात होती थी” l आज जो उसकी आँखों में था वही उसके जुबां पे भी था l
तृषा – कैसी लग रहीं हूँ मैं ?
सीने में आग लगी हुयी थी l मैं जोर जोर से चिल्लाना चाह रहा था, मैं थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था l पर कहते हैं न “बड़ी तरक्की हुयी है इस देश की मेरे दोस्त... तसल्ली से रोने की जगह भी नहीं है यहाँ तो l” सारे दर्द को यूँ ही सीने में दबाये मैं अपने कमरे में आ गया l अब कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमे मैं सोने चला गया l उस दिन को बीते लगभग एक हफ्ता हो गया था l यूँ तो हर रोज़ हम किसी न किसी बहाने से मिल ही लेते थें l पर आज शाम तृषा का कोई पता ही नहीं था l उसके घर में भी कोई नहीं था l मैंने अपना सेल फ़ोन निकाला और तृषा को मैसेज किया l
“कहाँ हो ? मैं छत पे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ l” तृषा का ज़वाब थोड़ी देर में आया “मैं पटना में हूँ कल मिलती हूँ l”
आखिर वो पटना में क्या कर रही है ? ये सवाल मुझे परेशान किये जा रहा था l मैं नीचे गया, मम्मी नूडल्स बना रही थी l
मैं – मम्मी, वो तृषा के घर पे कोई नहीं है l सब कही गए हैं क्या ?
मम्मी – तृषा ने तुम्हे नहीं बताया है क्या ?
मैं – कौन सी बात ?
मम्मी – आज तृषा की सगाई है l लड़के वाले पटना के हैं सो वही किसी होटल से हो रही हैl
बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला मैंने l जब से तृषा की शादी की बात हुयी थी मुझे लगा था की मैं तृषा और उसके परिवार वालों को मना लूँगा l तृषा की प्यार भरी बातें उसका मेरे करीब आना, यूँ मुझपे अपना हक़ जताना l अब तो जैसे सब बेमतलब सा लग रहा था l उसे जब यही करना था तो मुझे उसने ये एहसास क्यूँ दिलाया की सब ठीक हो जाएगा l क्यूँ उसने मुझे खुद से दूर जाने ही नहीं दिया l क्या प्यार बस खेल है उसके लिए l सुना था की दिलों से खेलना भी शौक होता है , पर जान लेने का ये तरीका कुछ नया था मेरे लिए l आज मैं एक बात तय कर चुका था , उसकी हर याद को मिटाने की l शुरुआत उसकी तस्वीरों से की मैंने l छत पर गया और उसकी तस्वीरों को उसी के घर की छत पे रख कर आग लगा दी मैंने l हर जलती तस्वीर और मेरे आंसुओं की हर बूँद के साथ उसकी हर याद को मैं खुद से अलग कर देना चाहता था l पर मैं इस प्यार का क्या करता जो मेरे दिल की हर धड़कन के साथ उसके मेरे पास होने का एहसास कराता जा रहा था l मैं गुमशुम सा हो गया उस दिन के बाद l किसी अजनबी के पास जाने से भी डर सा लगने लगा था मुझे l अब तो अपनी धड़कन भी पराई सी लगती थी मुझे l मैं अब ना तो कहीं जाता और ना ही किसी से बात करता l माँ ने बहुत बार मुझसे वजह जानने की कोशिश की पर क्या बताता मैं उन्हें की उनके बेटे को उसके अपने दिल का धडकना गंवारा नहीं l
तृषा की शादी की तारीख 15 मई को तय हुयी थी l मैं बस इस सैलाब के गुज़र जाने का इंतज़ार कर रहा था l जैसे जैसे दिन करीब आ रहे थे मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी l उसकी शादी में अब दो दिन बचे थे l शादी के गीतों का शोर अब मेरे बंद कमरे के अन्दर भी सुनायी देने लगा था l मैं पापा के कमरे में गया और वहां उनकी आधी खाली शराब की बोतल ले छत पे आ गया l रात के 8:30 बजे थे, मैंने अपने छत के दरवाज़े को बंद किया और किनारे की दीवार के सहारे जमीन पे बैठ गया l जब जब शराब की हर घूंट जब मेरे सीने को जलाती हुयी अन्दर जाती तब तब ऐसा लगता मेरे जलते हुए दिल पे किसी ने मरहम लगाया हो l मेरी आँखें अब बंद थी, अब तो मैं ये मान चूका था की मैंने किसी बेवफा से मोहब्बत की थी l तभी ऐसा लगा मानो कोई मेरी शराब की बोतल को मुझसे दूर कर रहा हो l मैंने अपनी आँखें खोली... सामने तृषा थी l मैं डर गया और लगभग रेंगता हुआ उससे दूर जाने लगा l “ज .. जाओ यहाँ से” लगभग चिल्लाते हुए मैं बोला l मेरी दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चुकी थी , मेरा पूरा शरीर कांप रहा था l
तृषा – क्यूँ जाऊं मैं ! तुम ऐसे ही घुट घुट के मरते रहो और मैं तुम्हे ऐसे ही मरते हुए देखती रहूँ l
मैं – जान भी लेती हो और कहती हो, तुम्हारा तड़पना मुझे पसंद नहीं l जाओ शादी करो और अपनी जिंदगी में खुश रहो l अब तो तुम्हारी हमदर्दी भी फरेब लगती है मुझे l
तृषा – (मेरे पास आते हुए) मत करो मुझसे इतना प्यार, मैं लायक नहीं तुम्हारे प्यार के l
मैं – दूर रहो मुझसे l और किसने कहा की तुमसे प्यार करता हूँ मैं l (उँगलियों से उसे दिखाते हुए) इत्तू सा भी प्यार नहीं करता तुम्हे मैं l
तृषा – (मेरे गले लग गयी) पता है मुझे l
मैं – अब क्या बचा है जो लेने आयी हो l
तृषा – (मेरे बोतल से एक घूंट लगाते हुए) कुछ नहीं l बस अपनी जिंदगी के कुछ बचे हुए पलों को तुम्हारे साथ जीने आयी हूँ l
मैं – तुम्हे कुछ महसूस नहीं होता क्या ? जब चाहो दिल में बसा लिया जब जी चाहा दिल से दूर कर लिया l
तृषा – होता है न l पर दिल से दूर करुँगी तब न l तुम तो हमेशा से मेरे दिल में हो l तो मुझे क्यूँ दर्द होगा l
मैं – (उसकी सगाई की अंगूठी दिखाते हुए) किसी और के नाम की अंगूठी पहनते हुए भी कुछ महसूस नहीं हुआ क्या ?
तृषा – जब पापा मेरे लिए प्यार से कुछ कपडे लाते थे तो उसे पहन के बहुत खुश होती थी मैं l घर में सबको डांस कर कर के दिखाती थी कभी l आज मेरी इस अंगूठी के पहनने से उन्हें ख़ुशी मिल रही है तो मैं इतना भी नहीं कर सकती उनके लिए l जिन्होंने दिन रात मेहनत की और मेरी हर डिमांड को पूरा किया l आज मैं उन्हें थोड़ी सी भी ख़ुशी दे सकूँ तो ये मेरे लिए खुशनसीबी होगी l
मैं – अपने मम्मी पापा की ख़ुशी का ख्याल है तुम्हे और मैं ? जब से तुम्हे जाना है तुहारे लिए ही जिया है मैंने l जब से तुमसे प्यार हुआ है तब से तुम्हारे हर दर्द को बराबर महसूस किया है मैंने l तुम्हारे लबों पे एक मुस्कान के लिए तुम्हारी हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है मैंने l और मैं क्या चाहा था तुमसे ... तुम्हारा प्यार l तुमने तो उसे भी किसी और के नाम कर दिया l
तृषा – तुम्हारे इस सवाल का जवाब भी बहुत जल्द दे दूंगी l पर तुम्हारी ये हालत मैं नहीं देख सकती l अपना हुलिया ठीक करो l और याद है न तुमने मुझसे वादा किया था “मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले तुम ही देखोगे” l आओगे न ? मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ के आ जाना l
मैं – काश की मैं तुम्हे ना कह पाता l हाँ मैं आऊंगा l
तृषा अपने घर चली गयी l आज बहुत दिनों के बाद मुझे नींद आयी थी l शादी वाला दिन भी आ चुका था l आज एक वादे को निभाना था l अपने लिए ना सही पर आज अपने प्यार के लिए मुस्कुराना था मुझे l सुबह सुबह मैंने शेविंग कराई, बाल ठीक किये और तृषा की गिफ्टेड शर्ट और पैंट को ठीक किया l शाम तक मैंने अपने आप को घर में ही व्यस्त रखा l अपने चेहरे से मुस्कान को एक बार भी खोने ना दिया l कभी आँखों में आंसू आये तो कुछ पड़ने का बहाना बना देता l शाम को चाचा जी घर पे आये “नक्श पापा को भेजना जरा” l मैंने जवाब दिया “ जी घर पे अभी कोई भी नहीं है, सब बगल में शादी में गए हुए हैं l”
चाचा जी – और तुम ?
मैं – हाँ बस थोड़ी देर में घर में ताले लगा के मैं भी जाऊँगा l
चाचा जी – ठीक है ये लो पैसे , पापा को दे देना l एक लाख हैं, गिन के अन्दर रख दो l
मैं – पापा को ही दे दीजियेगा l
चाचा जी – तुम्हारे पापा का ही है l और बार बार इतने पैसे लाना ले जाना सुरक्षित नहीं है l
मैंने पैसे गिने और कहा ठीक है अब आप जाईये मैं पापा को दे दूंगा l चाचा जी चले गए l अब मेरे लिए परेशानी थी की इस रखु तो कहाँ रखूं l लौकर की चाभी पापा कही रख के गए थे l सो मैंने उस हज़ार की गड्डी के दो हिस्से किये और आधा अपनी एक जेब में और बाकी आधा दूसरी जेब में रख लिया l आज वैसे ही कोई कम चिंता थी क्या जो एक और भी आ गयी l अब तक मैंने अपने दिल को मना लिया था l जानता था खुद को काबू में रखना मुश्किल होगा पर मैंने सोच लिया था की किसी और के सामने अपनी भावनाओं को आने से रोकूंगा l अगर किसी और के साथ घर बसाने में ही तृषा की ख़ुशी है तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा l वक़्त अब हो चला था l तृषा तो अब तैयार भी हो गयी होगी l मैंने घर को ताला लगाया और तृषा की घर की तरफ बढ़ चला l
तृषा की घर की ओर मेरे हर बढ़ते कदम मेरे दिल की धड़कन को तेज़ और तेज़ किये जा रहे थें l मैं मुख्य दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ l सभी अपने अपने काम में लगे थें l मैं सबको नमस्ते कहता हुआ तृषा के कमरे के पास पहुंचा l उसकी बहनें और भाभियाँ उसे घेर के उसका श्रींगार कर रहीं थी l
मैं – (खांसता हुआ कमरे में घुसा) अरे मेरे टीपू सुलतान “जंग की तैयारी हो गयी क्या?”
तृषा – (मुझे देखते ही उसकी आँखों से आंसू बहने लगे) भाभी आप सबको थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाईये l
सबके बाहर जाते ही उसने मुझे कस के पकड़ लिया और बहुत जोर जोर से रोने लगी l ऐसा लगा जैसे इतने दिनों से जो दर्द अपने अन्दर भरा हुआ था उसने आज वो सैलाब रुक ना सका l “बहुत दुःख दिया है न मैंने तुम्हे ? अब कोई तुम्हे परेशान नहीं करेगी l” मेरे गाल खींचते हुए तृषा बोली l
मैं – तुम्हारे नाम का दर्द भी ख़ास है मेरे लिए वरना औरों से मिली खुशियाँ भी ख़ुशी नहीं देती l वैसे जानू आज मैं देखने आया हूँ l देखूं तो कैसी लग रही हो !
तृषा मुझसे थोड़ी दूर हटते हुए अपना शादी का जोड़ा दिखाने लगी l इन तीन महीनों में बस एक ही बात थी जो मुझे अजीब लगी थी तृषा में “उसकी आँखें कुछ कहती थी और उसकी जुबान पे कुछ और ही बात होती थी” l आज जो उसकी आँखों में था वही उसके जुबां पे भी था l
तृषा – कैसी लग रहीं हूँ मैं ?