अगला अपडेट
अब तीनों मेरे जवाब को मेरी ओर देखने लगी l मैं हाँ में सर हिलाया l फिर सबने अपने ग्लास टकरायें और ने मेरे हाथ को पकड़ मेरे ग्लास को भी टकराते हुए कहा “ये जाम हमारी आने वाली कामयाबी और पहचान के नाम”l
रात हो चुकी थी और अभी भी 24 घंटों का सफ़र बाकी था l जब जब मैं आँखें बंद करता तृषा की जलती हुयी चिता मेरे सामने होती l ऐसा लगता मानो वो अपना हाथ बढ़ा रही हो और मैं उसे बचा नहीं पा रहा हूँ l मेरे बगलवाली बर्थ पे तृष्णा सोयी थी l वो मुझे इस तरह बार बार करवट लेता देख मेरे पास आई और मेरे हाथ को कस के पकड़ लिया उसने l
मेरे कानों में तृष्णा धीरे से बोली “शांत हो जाओ और सोने की कोशिश करोl मैं तुम्हारे दर्द को समझती हूँ l पर ऐसे तड़पोगे तो तृषा भी बेचैन ही रहेगी l” और मेरे बाल सहलाने लगीl
मैं धीरे धीरे सो गया l सुबह मेरी नींद खुली निशा की आवाज़ से “सोते ही रहोगे क्या ? सुबह के दस बजने जा रहें हैं l” मैं अंगड़ाई लेता हुआ उठा और फ्रेश होने चला गया l मैं फ्रेश हो के जब वापिस आया तो देखा , मोबाइल में गाना बज रहा था, ज्योति तृष्णा को पकड़ डांस कर रही थी और निशा अपने मोबाइल के कैमरे में वो सब रिकॉर्ड कर रही थी l मैं जैसे ही अन्दर दाखिल हुआ ज्योति ने तृष्णा को छोड़ मुझे पकड़ लिया l
मैं – अब मैंने क्या गलती की है l मुझे तो छोड़ दो l तो फिर से मुझे छोड़ तृष्णा को पकड़ के डांस करने लग गयी l वो सब डांस के दौरान जिस तरह की शक्लें बना रही थी, उसे देख मुझे भी हसी आ गयी l आज बहुत वक़्त के बाद ये मुस्कान आयी थी l तभी गाना बदला और नया गाना था “झुम्मा चुम्मा दे दे ...”l एक ही पल में हसी और अगले ही पल मेरी आँखें भर आयीं l ज्योति की नज़र मुझपे पड़ी, फिर उसने गाना बंद किया और मेरे पास सब आ गयीं l
ज्योति – क्या हुआ तुम्हे ?
मैं – नहीं कुछ भी तो नहीं l
निशा – जब झूट कहना ना आता हो तो सच ही कहने की आदत डाल लो l बताओ ना क्या हुआ ?
मैं - घर की याद आ गयी l मैं मम्मी, पापा और मेरी बहन इसी गाने पे डांस किया करते थें l
निशा – ये भी तो सोच सकते हो की तुम्हे तुम्हारा परिवार वापस मिल गया l और सब मेरे गाल खीचने लग गयीं l
तृष्णा – अब रोना धोना बहुत हुआ l तुम्हारी आँखों से निकले आंसू की हर बूँद से तृषा कितनी बेचैन होती होगी l उसकी खातिर अब मुस्कुराना सीख लो l
मैं – (अपनी शक्ल ठीक करते हुए) ठीक है, अब कभी नहीं रोऊंगा बस !
ज्योति – बस नहीं , अब तो तुम्हे डांस करना ही होगा l और मेरा हाथ पकड बॉल डांस वाले स्टेप्स करने लग गयी l
लगभग रात हो चुकी थी और हम सब की मंजील अब आने ही वाली थी l फिर ज्योति ने हम सबको एक दुसरे का हाथ थामने को कहा l
ज्योति – अब सब अपनी आँखें बंद करो और एक विश मांगो l जो कुछ भी तुम्हे इस शहर में हासिल करना है l
बाकियों का तो पता नहीं पर मैंने एक विश माँगा
“हे परमेश्वर अगर मैंने आज तक कुछ भी अच्छा किया हो तो मेरी दुआ कुबूल करना और तृषा की आत्मा को शांति देना l मैं अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता हूँ , क्यूंकि मुझे पता है आप हमेशा मेरे साथ रहोगे l मैं जब भी जिन्दगी से इस जंग में हारने लगूंगा तब आप हमेशा मेरा थाम मुझे बचा लोगे l और हाँ मेरे और तृषा के परिवार को इस सैलाब को झेलने की शक्ति देना l”
मैंने अपनी आँखें खोली, सब मेरे तरफ ही देखे जा रही थी l तृष्णा – हो गया या और भी कुछ माँगना है ? मैंने ना में सर हिलाया और फिर सब अपना अपना सामान बाँधने लग गयीं l
थोड़ी देर बाद हमारी मंजिल आ गयी थी l मुंबई, लोग इसे सपनों का शहर कहते हैं l कहते हैं यहाँ हर रोज़ किसी ना किसी के सपने पुरे होते ही हैं l शायद कभी यहाँ हमारा नंबर भी आ जाए l
अब पी ए था मैं उन सब का तो सामान उठाना पड़ा l मेरा खुद का तो सामान था नहीं सो उनके सामान को बोगी से बाहर निकाला l दो कुली आ गएँ और वो हमारा सामान टैक्सी तक ले जाने लगें l बाकी सब कुली के साथ साथ चलने लगी और मैं आस पास की भीड़ में जैसे खो सा गया l
आज दिल बड़े जोर से धड़क रहा था मेरा , घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था l आँखें रुआंसी हुयी जा रही थी l आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की l आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा इतने बड़े शहर में ? कैसी होगी मेरी माँ ? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को ऍफ़ आई आर भी करवा ही दिया होगा l
ऐसे ही कितने ही सवाल मुझे घेरने लग गए थें l तभी मैंने निशा की आवाज़ सुनी, “ओये जल्दी आ l यही रुकने का इरादा है क्या ? मैं फिर भागता हुआ टैक्सी तक पहुंचा और फिर हम चल दिए अपने फ्लैट की तरफ l
मुंबई शहर ... जैसा सुना था और जैसा फिल्मों में देखा था लगभग वैसा ही था ये शहर l हर तरफ बस भागते हुए लोग l इस भागती भीड़ को देख ऐसा लगता था की मानो अगर कोई एक इंसान रुक गया तो बाकी या तो उसके साथ ही गिर जायेंगे या फिर उसे रौंदते हुए आगे निकल जायेंगे l जिंदगी में भी तो ऐसा ही होता है l हर इंसान किसी न किसी रेस का हिस्सा होता है l और इस रेस में जीतने का बस एक ही मंत्र है , अपनी आँखें मंजिल में टिकाओ और भागते चले जाओ उसकी ओर l फिर चाहे रास्ते में कोई भी आये रुको मत l हाँ एक बात मुझे अच्छी लगी , यहाँ की रातें भी जीवन के रंगों से भरी होती हैं l मैं मुंबई के नजारों में ही खो सा गया था, हल्की झपकी आ गयी मुझे l आँख खुली तो हम अपने अपार्टमेंट के बाहर थें l सोसाइटी थी चार धाम सोसाइटी, इलाका था बांद्रा पश्चिम , 7 फ्लोर का अपार्टमेंट था और हमारा फ्लैट 6 फ्लोर पे था l आस पास के घरों में पार्क की गयी मंहगी गाड़ियों को देख मैं अंदाजा लगा सकता था की यहाँ की मिटटी की कीमत सोने से ज्यादा कैसे है l मैंने कुछ सामान उठाया और बाकी ट्राली बैग को सब अपने हाथों में ले फ्लैट पे आ गए l लगभग सारी सुख सुविधाएं पहले से ही थी वहां l सब अपना अपना सामान रखने लग गयीl दो बेडरूम का फ्लैट था, एक कमरे में निशा और दुसरे में ज्योति और तृष्णा ने अपना सामान रख दिया l जब घर का काम पूरा हुआ तो सब हॉल में लगे सोफे पे बैठ गएँ l
ज्योति – (मेरी ओर देखते हुए) तुम यही सोफे पे सोओगे ?
मैं – हाँ आज मैं यही सो जाऊँगा l कल मैं हॉल में जगह बना लूँगा गद्दे के लिए l
निशा – ह्म्म्म ये ठीक रहेगा l मैं पहले कुछ खाने का आर्डर दे देती हूँ फिर हम ऑनलाइन शौपिंग कर लेंगे नक्श के लिए l और हाँ घर के कुछ नियम काएदे भी बनाने होंगे l
सब ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई और फिर खाने का आर्डर और मेरे लिए शौपिंग कर ली गई l खाना खाते हुए हमने कुछ नियम बनाए जिसमे सुबह के ब्रेकफास्ट बनाने की ज़िम्मेदारी मुझे दे दी गयी l रात में तृष्णा और ज्योति सोने चली गयीं और निशा अपने लैपटॉप पे अपना काम निबटाने लगी l मुझे भी अब नींद आ रही थी l पर एक तो सोफे पे सोना और जगह भी नयी सो किसी तरह रात काटी मैंने l सुबह नास्ते के बाद निशा ने मुझे एक लिस्ट दी, इस लिस्ट में कुछ नाम और पते लिखे थें l
निशा – इस लिस्ट में जो नाम दिए गए हैं उनसे मिलना है और ये हैं फाइलों की कॉपी l जिस नाम के सामने हम तीनों में से जिसका भी नाम लिखा है उसे ही देना वो फाइल l और फिर कुछ पैसे दे दिए उसने l
मैं अब सोसाइटी से बाहर आ चुका था l आज तक शायद ही कभी घर पे कोई काम किया था मैंने l सो थोड़ा अजीब सा लग रहा था l पर इतना पता था की इंसान अपने अनुभवों से ही सीखता है सो मैं भी सीख ही जाऊँगा l लिस्ट में कुल मिलाके बाईस लोगों के नाम थें और लगभग पता यही आस पास का ही था l तृष्णा ने अपना एक फ़ोन मुझे दिया था जिसमे मैं गूगल मैप पे रास्ते ढूंढ सकता था l
पहला पता था यशराज फिल्म्स का l अँधेरी पश्चिम का पता था और वहां मुझे तीनों की फाइल देनी थी l मैंने टैक्सी लिया और वहाँ चला गया l पहली बार मैं फ़िल्मी दुनिया के लोगों से मिलने वाला था l मेरे अन्दर अजीब सा उत्साह था l ऐसा लग रहा था की जैसे मेरी फेवरेट हीरोइन ने मुझे डेट पे बुलाया हो l मैं अब पहुँच चुका था यशराज स्टूडियो के ऑफिस में l बड़ा सा नारंगी दरवाजा और एक बड़ी सी बिल्डिंग (ठीक वैसा ही जैसा की मैंने सोचा था) l मैं दरवाज़े के पास पहुंचा l गेट कीपर से कहा “भैया जी मुझे सुभाष सर से मिलना है और ये फाइलें देनी है l” गेट कीपर ने कहा “आज एक फिल्म की ऑडिशन हो रही है सो बाद में आना l आज बस ऑडिशन देने आये लोगों को ही अन्दर आने की इज़ाज़त हैl