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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

kas1709

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#136.

“तुम्हारी बात सही है जेनिथ।” सुयश ने फिर एक बार, सभी ओर देखते हुए कहा- “अभी कुछ और है, जो हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं?”

“कैप्टेन जूते और हेलमेट से तो समझ में आता है, पर मुझे नहीं लगता कि इस छड़ी के द्वारा हम उड़ पायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“अगर हम इस छड़ी से उड़ नहीं सकते, तो फिर इसके यहां होने का क्या मतलब है?” सुयश ने कहा।

“मतलब तो उस घोड़े का भी अभी तक समझ में नहीं आया?” शैफाली ने कहा- “एक मिनट रुकिये कैप्टेन अंकल...कहीं वह घोड़ा ‘पेगासस’ तो नहीं?”

“अब ये पेगासस कौन है?” सुयश ने पूछा।

“शायद आपको याद नहीं है कैप्टेन अंकल, अलबर्ट अंकल ने जब हमें मेडूसा की कहानी सुनाई थी, तो बताया था कि मेडूसा के मरने के बाद जब उसका खून समुद्र में मिला, तो एक उड़ने वाले घोड़े पेगासस का जन्म हुआ था।... इसलिये तो कह रहीं हूं कि कहीं ये पेगासस तो नहीं?” शैफाली ने सभी को पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।

“पर पेगासस के पंख थे शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “जबकि इस घोड़े के पंख नहीं हैं।”

“कहीं ये छड़ी के पंख उस घोड़े के तो नहीं लगेंगे।” सुयश ने कहा।

वैसे सुयश की बातों में कोई लॉजिक तो नहीं था, फिर भी क्रिस्टी ने उस जादुई छड़ी के पंख निकालने की कोशिश की।

जरा सी देर में छड़ी के पंख क्रिस्टी के हाथों में थे।

जैसे ही क्रिस्टी ने उन पंखों को उस घोड़े की पीठ से सटाया। आश्चर्यजनक ढंग से वह पंख घोड़े के शरीर पर फिट हो गये।

पंख लगते ही घोड़ा जोर से हिनहिनाकर सजीव हो गया और अपने पंख को जोर-जोर से हिलाने लगा।

“हुर्रेऽऽऽऽ यह पेगासस ही है।” शैफाली ने जोर से जयकारा लगाया। सभी शैफाली की यह बच्चों जैसी हरकत देख कर हंस पड़े।

तभी हरमीस की मूर्ति भी वहां से गायब हो गई।

“तौफीक एक बार फिर अब उन छेदों को चेक करो, शायद अब वह खुल गये हों?” सुयश ने तौफीक से कहा।

तौफीक ने सुयश की बात मान एक बार फिर से सभी छेदों को चेक किया, पर उन छेदों पर अदृश्य दीवार अभी भी बनी थी।

“ये क्या कैप्टेन अंकल....हमने इस मायाजाल का यह भाग तो पूरा कर लिया, फिर वह छेद खुले क्यों नहीं?” शैफाली ने पुनः मुंह बनाते हुए कहा।

तभी जेनिथ की नजर बचे हुए एडमैन्टाइन के टुकड़े पर पड़ी, जो अब भी वहां पड़ा हुआ था।

कुछ सोच जेनिथ ने वह एडमैन्टाइन का टुकड़ा उठा लिया। जेनिथ को उस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा हुआ दिखाई दिया।

“कैप्टेन इस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा है, इसका क्या मतलब हुआ?” जेनिथ ने सुयश को वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।

“अगर उस झील में घुसने के लिये एडमैन्टाइन के गोले की जरुरत थी, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इस छेद से निकलने के लिये भी हमें इस टुकड़े की जरुरत हो।”

क्रिस्टी के शब्द सुयश को सही प्रतीत हुए, इसलिये उसने 2 नम्बर वाले छेद के पास पहुंचकर उस टुकड़े को फेंका।

टुकड़ा उस छेद से बाहर निकल गया और इसी के साथ 2 नम्बर छेद का अदृश्य द्वार खुल गया।

यह देखकर सभी खुश होकर वहां से निकलने के लिये तैयार हो गये।

“तीनों लड़कियां पेगासस पर बैठेंगी और मैं सुनहरे जूते का प्रयोग करुंगा, तौफीक तुम पंखों वाले हेलमेट का प्रयोग करोगे...इसी की सहायता से हम यहां से निकलेंगे। अगर किसी को अपनी जादुई चीज को प्रयोग में लाकर देखना है, तो वह इसी पहाड़ में देख लो, बाहर हमारे पास दूसरा मौका नहीं मिलेगा।”

सुयश के शब्द सुन सभी ने एक बार अपनी जादुई वस्तु को प्रयोग करके देख लिया और पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वह सभी झरने के छेद नम्बर 2 से उड़कर पहाड़ के नीचे की ओर चल दिये।


चैपटर-12 , त्रिआयाम:

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 14:20, त्रिआयाम क्षेत्र, नागलोक)

ऐलेक्स की जब आँख खुली, तो वह समुद्र के अंदर था। हर तरफ नीले रंग का पानी चारो ओर फैला हुआ था।

आँखें खोलते ही ऐलेक्स घबरा गया। पर धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि वह पानी के अंदर भी आसानी से साँस ले रहा है।

ऐलेक्स ने अगल-बगल तैर कर देखा, वह आसानी से किसी मछली की भांति तैर भी ले रहा था।

ऐलेक्स को पास में ही एक बड़ी सी समुद्री चट्टान दिखाई दी। ऐलेक्स ने परीक्षण करने के लिये अपना घूंसा जोर से चट्टान पर मारा।

ऐलेक्स के एक ही वार से चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये। यह देख ऐलेक्स खुशी से भर उठा। इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह कोई सुपर हीरो हो।

ऐलेक्स ने अब अपने चारो ओर दृष्टि दौड़ाई, पर उसे कहीं भी त्रिआयाम दिखाई नहीं दिया।

“स्थेनो ने तो कहा था कि फल खाते ही मैं त्रिआयाम के पास पहुंच जाऊंगा, पर यहां तो दूर-दूर तक त्रिआयाम का कहीं निशान तक नहीं है।....लेकिन स्थेनो गलत नहीं कह सकती...त्रिआयाम यहीं कहीं होना
चाहिये? मुझे अपनी आँखों का प्रयोग करना चाहिये, पर कैसे? मुझे तो यह भी नहीं पता कि अपनी आँखों का उपयोग करना कैसे है? वाह रे सुपर हीरो ! खुद को ही नहीं पता कि शक्तियों का उपयोग करना कैसे है? और आ गये नागलोक राक्षसों और देवताओं से लड़ने।”

ऐलेक्स भी पागलों की तरह स्वयं ही बड़बड़ा रहा था।

ऐलेक्स ने अपनी आँखों को एक बार बंद किया और फिर जोर से खोला।

ऐलेक्स के तेज आँख खोलते ही ऐलेक्स की आँखों से एक किरण निकलकर समुद्र में फैल गयी।

अब ऐलेक्स को समुद्र में एक विशाल पारदर्शी गोला तैरता हुआ दिखाई दिया। वह गोला कम से 500 फिट बड़ा तो जरुर रहा होगा।

“यह कैसा पारदर्शी गोला है...कहीं यही तो त्रिआयाम नहीं?” यह सोचकर ऐलेक्स धीरे-धीरे पानी में तैरता हुआ उस गोले के पास पहुंच गया।

अब ऐलेक्स को उसे गोले में बना एक छोटा सा दरवाजा दिखाई देने लगा था। ऐलेक्स उस दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गया।

अंदर एक बड़ा सा कमरा बना था, जिसमें हर ओर पानी भरा हुआ था और उसमें एक 5 सिर वाला नाग सो रहा था।

“ये लो...यहां इतनी सारी शक्तियां रखीं हैं और ये भाई साहब ड्यूटी टाइम में सो रहे हैं।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा- “उठो भाई साहब, मुझे भी अपनी शक्तियों का परीक्षण करना है।

ऐलेक्स की तेज आवाज से वह नाग उठ बैठा। अपने पास एक छोटे से मनुष्य को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया।

“कौन हो तुम? और यहां तक कैसे आये?” नाग ने ऐलेक्स से पूछा।

“जब साधारण मनुष्य था, तो चोर था। अब जब शक्तियां भी मिल गयी हैं, तब भी चोर का ही काम मिला है। .....अब उठ भी जाओ और मुझसे लड़ाई करो।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।

ऐलेक्स के शब्द सुनकर उस नाग को बहुत आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया।

“मेरा नाम नागफनी है...मेरे रहते तुम यहां से कुछ भी नहीं ले जा सकते?” नागफनी ने फुंफकारते हुए कहा।

“बिल्कुल सहीं नाम है तुम्हारा...तुम लग भी फनी से रहे हो।” ऐलेक्स ने उस नाग का मजाक उड़ाते हुए कहा।

यह सुन नागफनी ने गुस्से से अपना मुंह खोलकर ऐलेक्स के ऊपर ढेर सारा जहर उगल दिया।

हरे रंग का जहर पानी में फैलकर सीधा ऐलेक्स के मुंह के पास आ गिरा।

“मजा नहीं आया फनी भाई....कुछ और हो तो उसका भी प्रयोग कर लो।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

ऐलेक्स को खड़ा मुस्कुराता देखकर, नागफनी आश्चर्य में पड़ गया।

“मेरे जहर से कैसे बच गये तुम? लगता है कि तुम कोई मायावी राक्षस हो?” नागफनी ने गुस्से से कहा- “पर मेरे पास भी तुम जैसे राक्षसों के लिये बहुत से अस्त्र-शस्त्र हैं।”

यह कहकर नागफनी ने अपना पूंछ को पानी में जोर से हिलाया। नागफनी के ऐसा करते ही पानी में कुछ तलवार और भाले प्रकट होकर ऐलेक्स की ओर लपके।

ऐलेक्स उन तलवार और भालों को देखकर भी अपनी जगह पर खड़ा रहा।

सभी तलवार और भाले ऐलेक्स के शरीर की मोटी त्वचा से टकराकर बेअसर हो गये।

“कुछ और हो तो वह भी आजमा लो, नहीं तो मुझे अगले द्वार की ओर जाने दो।” ऐलेक्स ने उस नाग का उपहास उड़ाते हुए कहा।

इस बार गुस्सा कर नागफनी ने अपने पांचों फन फैला कर सभी मुंह को जोर से खोला।

उसके प्रत्येक मुंह से अलग रंग की नागमणि निकलीं और ऐलेक्स के चारो ओर, पानी का तेज भंवर बनाने लगीं।

“अरे-अरे...यह क्या कर रहे हो?” ऐलेक्स को नागफनी से ऐसे किसी प्रहार का अंदाजा नहीं था।

ऐलेक्स अब उन भंवर में फंसकर तेजी से नाचने लगा। ऐलेक्स को अपना सिर चकराता हुआ सा प्रतीत होने लगा।

वह समझ गया कि नागफनी को उसने कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया।

“अब मैं कैसे इस भंवर से बचूं?” ऐलेक्स तेजी से सोचने लगा-“आँख, नाक, कान और जीभ इस प्रहार से मुझे नहीं बचा सकतीं...अब बची त्वचा....पर त्वचा कैसे मुझे इससे बचा सकती है...हां अगर मैं समुद्र की तली पर उतर जाऊं, तो त्वचा की मदद से मैं जमीन से अपने पाँव चिपका सकता हूं।”

ऐलेक्स के इतना सोचते ऐलेक्स का शरीर पानी की तली की ओर स्वतः जाने लगा और कमरे की जमीन को छूते ही ऐलेक्स का पैर उस जमीन पर जम गया।

अब पानी में उत्पन्न लहरें ऐलेक्स का कुछ नहीं कर पा रहीं थी। यह देख नागफनी ने क्रोध में आकर अपनी मणियों को वापस बुला लिया।

ऐलेक्स समझ गया कि अब नागफनी को और मौका देने का मतलब अपने लिये नयी मुसीबतें बुलाना है।

इसलिये इस बार ऐलेक्स नागफनी की ओर तेजी से बढ़ा और इससे पहले की नागफनी अपना किसी भी प्रकार से बचाव कर पाता, ऐलेक्स ने अपने घूंसे से नागफनी के बीच वाले फन पर जोर से प्रहार किया।

वह प्रहार इतना तेज था कि नागफनी को चक्कर आ गया और ऐलेक्स इस मौके का फायदा उठाकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गया।

दूसरे द्वार में एक 50 फुट ऊंचा राक्षस बैठा कुछ खा रहा था। इस कमरे में बिल्कुल भी पानी नहीं था।

“क्या बात है?...इस त्रिआयाम के तो सभी द्वार आलसी लोगों से भरे पड़े हैं...कोई सो रहा है, तो कोई खा रहा है।“ ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

ऐलेक्स की आवाज सुनकर वह राक्षस खाना छोड़कर उठकर खड़ा हो गया।

“अरे...नहीं....नहीं, खाना खाते हुए नहीं उठते, मैं तो बस शरारत कर रहा था, तुम पहले खाना खालो, फिर हम लड़ाई-लड़ाई खेल लेंगे।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कौन हो तुम? तुम तो मनुष्य दिख रहे हो? तुम इस द्वार तक कैसे पहुंच? तुम्हें नागफनी ने रोका क्यों नहीं?” राक्षस ने एक साथ असंख्य सवाल पूछ डाले।

“अरे-अरे....जरा ठहरो राक्षस भाई ...धीरे-धीरे करके सभी सवाल पूछो, मैं एक साथ इतने सारे सवाल देखकर डर जाता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “वैसे आगे वाले कमरे में नागफनी सो रहा है, मैं उसके बगल से होता हुआ इस द्वार तक आ पहुंचा।”

“ये नागफनी भी ना....मैं इसकी शिकायत नागराज से करुंगा।” राक्षस ने कहा।

“बिल्कुल करना....मैं तो कहता हूं कि इसे नौकरी से निकलवा देना... ऐसे नाग त्रिआयाम के लिये कलंक हैं।” ऐलेक्स ने पूरा मजा लेने का मन बना लिया था- “वैसे राक्षस भाई तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम प्रमाली है...मैं नागफनी की तरह नहीं हूं...मैं तुम्हें इस द्वार से अंदर नहीं जाने दूंगा।” प्रमाली ने यह कहकर अपने पास रखी गदा को ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स की त्वचा के कारण उस पर गदा के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, मगर गदा का वार इतना शक्तिशाली था, कि ऐलेक्स उस प्रहार के कारण कई कदम पीछे चला गया।

ऐलेक्स समझ गया कि यहां ज्यादा कॉमेडी करना ठीक नहीं है, अगर उसने प्रमाली को ज्यादा मौका दिया तो वह उसे हरा भी सकता है।

उधर प्रमाली की गदा प्रहार करके वापस प्रमाली के हाथों में पहुंच गई, पर ऐलेक्स को हानि ना पहुंचते देख प्रमाली भी आश्चर्य से भर उठा।

“अच्छा तो तुम भी मायावी हो, तभी तुमने पहला द्वार पार कर लिया है।” यह कहकर प्रमाली ने अपना दाहिना हाथ ऐलेक्स की ओर बढ़ाया।

प्रमाली की हाथ के उंगलियों के नाखून उसके हाथ से निकलकर ऐलेक्स के चेहरे की ओर बढ़े और ऐलेक्स के चेहरे पर तेज खरोंच मारने लगे।

पर प्रमाली के नाखून ऐलेक्स की त्वचा को भेद नहीं पाये। त्वचा को ना भेद पाता देख वह नाखून ऐलेक्स की आँख पर प्रहार करने लगे।

पर ऐलेक्स की आँख का भी कुछ नहीं बिगड़ा। यह देख प्रमाली की आँखें कुछ सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं। प्रमाली के नाखून वापस प्रमाली के हाथ में जाकर लग गये।

“वाह...नाखून फेंककर मारते हो... कितना अच्छा आइडिया दिया तुमने मुझे मैं यह दाँव हमेशा याद रखूंगा।“ ऐलेक्स ने यह कहा और निहत्थे ही प्रमाली की ओर दौड़ लगा दी।

प्रमाली को समझ नहीं आया कि निहत्था ऐलेक्स क्या कर लेगा। इसलिये खड़ा होकर ध्यान से ऐलेक्स को देखने लगा।

ऐलेक्स जा कर प्रमाली के दाहिने पैर से लिपट गया।

यह देख प्रमाली हंसने लगा- “अच्छा ....तो तुम मेरे पैर पकड़कर क्षमा मांगने आये हो।”

तभी ऐलेक्स के पूरे शरीर से 4 फिट लंबे धारदार काँटे निकल आये और उन काँटों ने प्रमाली का पैर जगह-जगह से बुरी तरह से काट दिया।

प्रमाली कराह कर जमीन पर गिर गया। ऐलेक्स के पास यही मौका था, वह दौड़कर प्रमाली के शरीर पर चढ़ गया और अपने शरीर पर निकले काँटों से प्रमाली के पूरे शरीर को घायल करने लगा।

प्रमाली के पूरे शरीर से खून की धाराएं बहने लगीं।

इस समय प्रमाली का पूरा ध्यान अपने शरीर से बह रहे खून की ओर था, ऐलेक्स इसी का फायदा उठा कर तीसरे द्वार में प्रवेश कर गया।



जारी रहेगा_______✍️
Nice update....
 

Ajju Landwalia

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“तुम्हारी बात सही है जेनिथ।” सुयश ने फिर एक बार, सभी ओर देखते हुए कहा- “अभी कुछ और है, जो हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं?”

“कैप्टेन जूते और हेलमेट से तो समझ में आता है, पर मुझे नहीं लगता कि इस छड़ी के द्वारा हम उड़ पायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“अगर हम इस छड़ी से उड़ नहीं सकते, तो फिर इसके यहां होने का क्या मतलब है?” सुयश ने कहा।

“मतलब तो उस घोड़े का भी अभी तक समझ में नहीं आया?” शैफाली ने कहा- “एक मिनट रुकिये कैप्टेन अंकल...कहीं वह घोड़ा ‘पेगासस’ तो नहीं?”

“अब ये पेगासस कौन है?” सुयश ने पूछा।

“शायद आपको याद नहीं है कैप्टेन अंकल, अलबर्ट अंकल ने जब हमें मेडूसा की कहानी सुनाई थी, तो बताया था कि मेडूसा के मरने के बाद जब उसका खून समुद्र में मिला, तो एक उड़ने वाले घोड़े पेगासस का जन्म हुआ था।... इसलिये तो कह रहीं हूं कि कहीं ये पेगासस तो नहीं?” शैफाली ने सभी को पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।

“पर पेगासस के पंख थे शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “जबकि इस घोड़े के पंख नहीं हैं।”

“कहीं ये छड़ी के पंख उस घोड़े के तो नहीं लगेंगे।” सुयश ने कहा।

वैसे सुयश की बातों में कोई लॉजिक तो नहीं था, फिर भी क्रिस्टी ने उस जादुई छड़ी के पंख निकालने की कोशिश की।

जरा सी देर में छड़ी के पंख क्रिस्टी के हाथों में थे।

जैसे ही क्रिस्टी ने उन पंखों को उस घोड़े की पीठ से सटाया। आश्चर्यजनक ढंग से वह पंख घोड़े के शरीर पर फिट हो गये।

पंख लगते ही घोड़ा जोर से हिनहिनाकर सजीव हो गया और अपने पंख को जोर-जोर से हिलाने लगा।

“हुर्रेऽऽऽऽ यह पेगासस ही है।” शैफाली ने जोर से जयकारा लगाया। सभी शैफाली की यह बच्चों जैसी हरकत देख कर हंस पड़े।

तभी हरमीस की मूर्ति भी वहां से गायब हो गई।

“तौफीक एक बार फिर अब उन छेदों को चेक करो, शायद अब वह खुल गये हों?” सुयश ने तौफीक से कहा।

तौफीक ने सुयश की बात मान एक बार फिर से सभी छेदों को चेक किया, पर उन छेदों पर अदृश्य दीवार अभी भी बनी थी।

“ये क्या कैप्टेन अंकल....हमने इस मायाजाल का यह भाग तो पूरा कर लिया, फिर वह छेद खुले क्यों नहीं?” शैफाली ने पुनः मुंह बनाते हुए कहा।

तभी जेनिथ की नजर बचे हुए एडमैन्टाइन के टुकड़े पर पड़ी, जो अब भी वहां पड़ा हुआ था।

कुछ सोच जेनिथ ने वह एडमैन्टाइन का टुकड़ा उठा लिया। जेनिथ को उस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा हुआ दिखाई दिया।

“कैप्टेन इस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा है, इसका क्या मतलब हुआ?” जेनिथ ने सुयश को वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।

“अगर उस झील में घुसने के लिये एडमैन्टाइन के गोले की जरुरत थी, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इस छेद से निकलने के लिये भी हमें इस टुकड़े की जरुरत हो।”

क्रिस्टी के शब्द सुयश को सही प्रतीत हुए, इसलिये उसने 2 नम्बर वाले छेद के पास पहुंचकर उस टुकड़े को फेंका।

टुकड़ा उस छेद से बाहर निकल गया और इसी के साथ 2 नम्बर छेद का अदृश्य द्वार खुल गया।

यह देखकर सभी खुश होकर वहां से निकलने के लिये तैयार हो गये।

“तीनों लड़कियां पेगासस पर बैठेंगी और मैं सुनहरे जूते का प्रयोग करुंगा, तौफीक तुम पंखों वाले हेलमेट का प्रयोग करोगे...इसी की सहायता से हम यहां से निकलेंगे। अगर किसी को अपनी जादुई चीज को प्रयोग में लाकर देखना है, तो वह इसी पहाड़ में देख लो, बाहर हमारे पास दूसरा मौका नहीं मिलेगा।”

सुयश के शब्द सुन सभी ने एक बार अपनी जादुई वस्तु को प्रयोग करके देख लिया और पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वह सभी झरने के छेद नम्बर 2 से उड़कर पहाड़ के नीचे की ओर चल दिये।


चैपटर-12 , त्रिआयाम:

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 14:20, त्रिआयाम क्षेत्र, नागलोक)

ऐलेक्स की जब आँख खुली, तो वह समुद्र के अंदर था। हर तरफ नीले रंग का पानी चारो ओर फैला हुआ था।

आँखें खोलते ही ऐलेक्स घबरा गया। पर धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि वह पानी के अंदर भी आसानी से साँस ले रहा है।

ऐलेक्स ने अगल-बगल तैर कर देखा, वह आसानी से किसी मछली की भांति तैर भी ले रहा था।

ऐलेक्स को पास में ही एक बड़ी सी समुद्री चट्टान दिखाई दी। ऐलेक्स ने परीक्षण करने के लिये अपना घूंसा जोर से चट्टान पर मारा।

ऐलेक्स के एक ही वार से चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये। यह देख ऐलेक्स खुशी से भर उठा। इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह कोई सुपर हीरो हो।

ऐलेक्स ने अब अपने चारो ओर दृष्टि दौड़ाई, पर उसे कहीं भी त्रिआयाम दिखाई नहीं दिया।

“स्थेनो ने तो कहा था कि फल खाते ही मैं त्रिआयाम के पास पहुंच जाऊंगा, पर यहां तो दूर-दूर तक त्रिआयाम का कहीं निशान तक नहीं है।....लेकिन स्थेनो गलत नहीं कह सकती...त्रिआयाम यहीं कहीं होना
चाहिये? मुझे अपनी आँखों का प्रयोग करना चाहिये, पर कैसे? मुझे तो यह भी नहीं पता कि अपनी आँखों का उपयोग करना कैसे है? वाह रे सुपर हीरो ! खुद को ही नहीं पता कि शक्तियों का उपयोग करना कैसे है? और आ गये नागलोक राक्षसों और देवताओं से लड़ने।”

ऐलेक्स भी पागलों की तरह स्वयं ही बड़बड़ा रहा था।

ऐलेक्स ने अपनी आँखों को एक बार बंद किया और फिर जोर से खोला।

ऐलेक्स के तेज आँख खोलते ही ऐलेक्स की आँखों से एक किरण निकलकर समुद्र में फैल गयी।

अब ऐलेक्स को समुद्र में एक विशाल पारदर्शी गोला तैरता हुआ दिखाई दिया। वह गोला कम से 500 फिट बड़ा तो जरुर रहा होगा।

“यह कैसा पारदर्शी गोला है...कहीं यही तो त्रिआयाम नहीं?” यह सोचकर ऐलेक्स धीरे-धीरे पानी में तैरता हुआ उस गोले के पास पहुंच गया।

अब ऐलेक्स को उसे गोले में बना एक छोटा सा दरवाजा दिखाई देने लगा था। ऐलेक्स उस दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गया।

अंदर एक बड़ा सा कमरा बना था, जिसमें हर ओर पानी भरा हुआ था और उसमें एक 5 सिर वाला नाग सो रहा था।

“ये लो...यहां इतनी सारी शक्तियां रखीं हैं और ये भाई साहब ड्यूटी टाइम में सो रहे हैं।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा- “उठो भाई साहब, मुझे भी अपनी शक्तियों का परीक्षण करना है।

ऐलेक्स की तेज आवाज से वह नाग उठ बैठा। अपने पास एक छोटे से मनुष्य को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया।

“कौन हो तुम? और यहां तक कैसे आये?” नाग ने ऐलेक्स से पूछा।

“जब साधारण मनुष्य था, तो चोर था। अब जब शक्तियां भी मिल गयी हैं, तब भी चोर का ही काम मिला है। .....अब उठ भी जाओ और मुझसे लड़ाई करो।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।

ऐलेक्स के शब्द सुनकर उस नाग को बहुत आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया।

“मेरा नाम नागफनी है...मेरे रहते तुम यहां से कुछ भी नहीं ले जा सकते?” नागफनी ने फुंफकारते हुए कहा।

“बिल्कुल सहीं नाम है तुम्हारा...तुम लग भी फनी से रहे हो।” ऐलेक्स ने उस नाग का मजाक उड़ाते हुए कहा।

यह सुन नागफनी ने गुस्से से अपना मुंह खोलकर ऐलेक्स के ऊपर ढेर सारा जहर उगल दिया।

हरे रंग का जहर पानी में फैलकर सीधा ऐलेक्स के मुंह के पास आ गिरा।

“मजा नहीं आया फनी भाई....कुछ और हो तो उसका भी प्रयोग कर लो।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

ऐलेक्स को खड़ा मुस्कुराता देखकर, नागफनी आश्चर्य में पड़ गया।

“मेरे जहर से कैसे बच गये तुम? लगता है कि तुम कोई मायावी राक्षस हो?” नागफनी ने गुस्से से कहा- “पर मेरे पास भी तुम जैसे राक्षसों के लिये बहुत से अस्त्र-शस्त्र हैं।”

यह कहकर नागफनी ने अपना पूंछ को पानी में जोर से हिलाया। नागफनी के ऐसा करते ही पानी में कुछ तलवार और भाले प्रकट होकर ऐलेक्स की ओर लपके।

ऐलेक्स उन तलवार और भालों को देखकर भी अपनी जगह पर खड़ा रहा।

सभी तलवार और भाले ऐलेक्स के शरीर की मोटी त्वचा से टकराकर बेअसर हो गये।

“कुछ और हो तो वह भी आजमा लो, नहीं तो मुझे अगले द्वार की ओर जाने दो।” ऐलेक्स ने उस नाग का उपहास उड़ाते हुए कहा।

इस बार गुस्सा कर नागफनी ने अपने पांचों फन फैला कर सभी मुंह को जोर से खोला।

उसके प्रत्येक मुंह से अलग रंग की नागमणि निकलीं और ऐलेक्स के चारो ओर, पानी का तेज भंवर बनाने लगीं।

“अरे-अरे...यह क्या कर रहे हो?” ऐलेक्स को नागफनी से ऐसे किसी प्रहार का अंदाजा नहीं था।

ऐलेक्स अब उन भंवर में फंसकर तेजी से नाचने लगा। ऐलेक्स को अपना सिर चकराता हुआ सा प्रतीत होने लगा।

वह समझ गया कि नागफनी को उसने कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया।

“अब मैं कैसे इस भंवर से बचूं?” ऐलेक्स तेजी से सोचने लगा-“आँख, नाक, कान और जीभ इस प्रहार से मुझे नहीं बचा सकतीं...अब बची त्वचा....पर त्वचा कैसे मुझे इससे बचा सकती है...हां अगर मैं समुद्र की तली पर उतर जाऊं, तो त्वचा की मदद से मैं जमीन से अपने पाँव चिपका सकता हूं।”

ऐलेक्स के इतना सोचते ऐलेक्स का शरीर पानी की तली की ओर स्वतः जाने लगा और कमरे की जमीन को छूते ही ऐलेक्स का पैर उस जमीन पर जम गया।

अब पानी में उत्पन्न लहरें ऐलेक्स का कुछ नहीं कर पा रहीं थी। यह देख नागफनी ने क्रोध में आकर अपनी मणियों को वापस बुला लिया।

ऐलेक्स समझ गया कि अब नागफनी को और मौका देने का मतलब अपने लिये नयी मुसीबतें बुलाना है।

इसलिये इस बार ऐलेक्स नागफनी की ओर तेजी से बढ़ा और इससे पहले की नागफनी अपना किसी भी प्रकार से बचाव कर पाता, ऐलेक्स ने अपने घूंसे से नागफनी के बीच वाले फन पर जोर से प्रहार किया।

वह प्रहार इतना तेज था कि नागफनी को चक्कर आ गया और ऐलेक्स इस मौके का फायदा उठाकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गया।

दूसरे द्वार में एक 50 फुट ऊंचा राक्षस बैठा कुछ खा रहा था। इस कमरे में बिल्कुल भी पानी नहीं था।

“क्या बात है?...इस त्रिआयाम के तो सभी द्वार आलसी लोगों से भरे पड़े हैं...कोई सो रहा है, तो कोई खा रहा है।“ ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

ऐलेक्स की आवाज सुनकर वह राक्षस खाना छोड़कर उठकर खड़ा हो गया।

“अरे...नहीं....नहीं, खाना खाते हुए नहीं उठते, मैं तो बस शरारत कर रहा था, तुम पहले खाना खालो, फिर हम लड़ाई-लड़ाई खेल लेंगे।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कौन हो तुम? तुम तो मनुष्य दिख रहे हो? तुम इस द्वार तक कैसे पहुंच? तुम्हें नागफनी ने रोका क्यों नहीं?” राक्षस ने एक साथ असंख्य सवाल पूछ डाले।

“अरे-अरे....जरा ठहरो राक्षस भाई ...धीरे-धीरे करके सभी सवाल पूछो, मैं एक साथ इतने सारे सवाल देखकर डर जाता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “वैसे आगे वाले कमरे में नागफनी सो रहा है, मैं उसके बगल से होता हुआ इस द्वार तक आ पहुंचा।”

“ये नागफनी भी ना....मैं इसकी शिकायत नागराज से करुंगा।” राक्षस ने कहा।

“बिल्कुल करना....मैं तो कहता हूं कि इसे नौकरी से निकलवा देना... ऐसे नाग त्रिआयाम के लिये कलंक हैं।” ऐलेक्स ने पूरा मजा लेने का मन बना लिया था- “वैसे राक्षस भाई तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम प्रमाली है...मैं नागफनी की तरह नहीं हूं...मैं तुम्हें इस द्वार से अंदर नहीं जाने दूंगा।” प्रमाली ने यह कहकर अपने पास रखी गदा को ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स की त्वचा के कारण उस पर गदा के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, मगर गदा का वार इतना शक्तिशाली था, कि ऐलेक्स उस प्रहार के कारण कई कदम पीछे चला गया।

ऐलेक्स समझ गया कि यहां ज्यादा कॉमेडी करना ठीक नहीं है, अगर उसने प्रमाली को ज्यादा मौका दिया तो वह उसे हरा भी सकता है।

उधर प्रमाली की गदा प्रहार करके वापस प्रमाली के हाथों में पहुंच गई, पर ऐलेक्स को हानि ना पहुंचते देख प्रमाली भी आश्चर्य से भर उठा।

“अच्छा तो तुम भी मायावी हो, तभी तुमने पहला द्वार पार कर लिया है।” यह कहकर प्रमाली ने अपना दाहिना हाथ ऐलेक्स की ओर बढ़ाया।

प्रमाली की हाथ के उंगलियों के नाखून उसके हाथ से निकलकर ऐलेक्स के चेहरे की ओर बढ़े और ऐलेक्स के चेहरे पर तेज खरोंच मारने लगे।

पर प्रमाली के नाखून ऐलेक्स की त्वचा को भेद नहीं पाये। त्वचा को ना भेद पाता देख वह नाखून ऐलेक्स की आँख पर प्रहार करने लगे।

पर ऐलेक्स की आँख का भी कुछ नहीं बिगड़ा। यह देख प्रमाली की आँखें कुछ सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं। प्रमाली के नाखून वापस प्रमाली के हाथ में जाकर लग गये।

“वाह...नाखून फेंककर मारते हो... कितना अच्छा आइडिया दिया तुमने मुझे मैं यह दाँव हमेशा याद रखूंगा।“ ऐलेक्स ने यह कहा और निहत्थे ही प्रमाली की ओर दौड़ लगा दी।

प्रमाली को समझ नहीं आया कि निहत्था ऐलेक्स क्या कर लेगा। इसलिये खड़ा होकर ध्यान से ऐलेक्स को देखने लगा।

ऐलेक्स जा कर प्रमाली के दाहिने पैर से लिपट गया।

यह देख प्रमाली हंसने लगा- “अच्छा ....तो तुम मेरे पैर पकड़कर क्षमा मांगने आये हो।”

तभी ऐलेक्स के पूरे शरीर से 4 फिट लंबे धारदार काँटे निकल आये और उन काँटों ने प्रमाली का पैर जगह-जगह से बुरी तरह से काट दिया।

प्रमाली कराह कर जमीन पर गिर गया। ऐलेक्स के पास यही मौका था, वह दौड़कर प्रमाली के शरीर पर चढ़ गया और अपने शरीर पर निकले काँटों से प्रमाली के पूरे शरीर को घायल करने लगा।

प्रमाली के पूरे शरीर से खून की धाराएं बहने लगीं।

इस समय प्रमाली का पूरा ध्यान अपने शरीर से बह रहे खून की ओर था, ऐलेक्स इसी का फायदा उठा कर तीसरे द्वार में प्रवेश कर गया।



जारी रहेगा_______✍️

Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai,

Jadui cheezo ka prayog kar, Suyash & party aakhirkar Volcano se bahar nikal gaye...........

Ab neeche aane par ek nai musibat unka intezar kar rahi hogi..........

Alex ki to mauj ho gayi...............

Nayi Nyai Superpowers mili he...........aur inka bharpur maja le raha he Alex.....

Keep rocking Bro
 

parkas

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#136.

“तुम्हारी बात सही है जेनिथ।” सुयश ने फिर एक बार, सभी ओर देखते हुए कहा- “अभी कुछ और है, जो हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं?”

“कैप्टेन जूते और हेलमेट से तो समझ में आता है, पर मुझे नहीं लगता कि इस छड़ी के द्वारा हम उड़ पायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“अगर हम इस छड़ी से उड़ नहीं सकते, तो फिर इसके यहां होने का क्या मतलब है?” सुयश ने कहा।

“मतलब तो उस घोड़े का भी अभी तक समझ में नहीं आया?” शैफाली ने कहा- “एक मिनट रुकिये कैप्टेन अंकल...कहीं वह घोड़ा ‘पेगासस’ तो नहीं?”

“अब ये पेगासस कौन है?” सुयश ने पूछा।

“शायद आपको याद नहीं है कैप्टेन अंकल, अलबर्ट अंकल ने जब हमें मेडूसा की कहानी सुनाई थी, तो बताया था कि मेडूसा के मरने के बाद जब उसका खून समुद्र में मिला, तो एक उड़ने वाले घोड़े पेगासस का जन्म हुआ था।... इसलिये तो कह रहीं हूं कि कहीं ये पेगासस तो नहीं?” शैफाली ने सभी को पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।

“पर पेगासस के पंख थे शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “जबकि इस घोड़े के पंख नहीं हैं।”

“कहीं ये छड़ी के पंख उस घोड़े के तो नहीं लगेंगे।” सुयश ने कहा।

वैसे सुयश की बातों में कोई लॉजिक तो नहीं था, फिर भी क्रिस्टी ने उस जादुई छड़ी के पंख निकालने की कोशिश की।

जरा सी देर में छड़ी के पंख क्रिस्टी के हाथों में थे।

जैसे ही क्रिस्टी ने उन पंखों को उस घोड़े की पीठ से सटाया। आश्चर्यजनक ढंग से वह पंख घोड़े के शरीर पर फिट हो गये।

पंख लगते ही घोड़ा जोर से हिनहिनाकर सजीव हो गया और अपने पंख को जोर-जोर से हिलाने लगा।

“हुर्रेऽऽऽऽ यह पेगासस ही है।” शैफाली ने जोर से जयकारा लगाया। सभी शैफाली की यह बच्चों जैसी हरकत देख कर हंस पड़े।

तभी हरमीस की मूर्ति भी वहां से गायब हो गई।

“तौफीक एक बार फिर अब उन छेदों को चेक करो, शायद अब वह खुल गये हों?” सुयश ने तौफीक से कहा।

तौफीक ने सुयश की बात मान एक बार फिर से सभी छेदों को चेक किया, पर उन छेदों पर अदृश्य दीवार अभी भी बनी थी।

“ये क्या कैप्टेन अंकल....हमने इस मायाजाल का यह भाग तो पूरा कर लिया, फिर वह छेद खुले क्यों नहीं?” शैफाली ने पुनः मुंह बनाते हुए कहा।

तभी जेनिथ की नजर बचे हुए एडमैन्टाइन के टुकड़े पर पड़ी, जो अब भी वहां पड़ा हुआ था।

कुछ सोच जेनिथ ने वह एडमैन्टाइन का टुकड़ा उठा लिया। जेनिथ को उस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा हुआ दिखाई दिया।

“कैप्टेन इस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा है, इसका क्या मतलब हुआ?” जेनिथ ने सुयश को वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।

“अगर उस झील में घुसने के लिये एडमैन्टाइन के गोले की जरुरत थी, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इस छेद से निकलने के लिये भी हमें इस टुकड़े की जरुरत हो।”

क्रिस्टी के शब्द सुयश को सही प्रतीत हुए, इसलिये उसने 2 नम्बर वाले छेद के पास पहुंचकर उस टुकड़े को फेंका।

टुकड़ा उस छेद से बाहर निकल गया और इसी के साथ 2 नम्बर छेद का अदृश्य द्वार खुल गया।

यह देखकर सभी खुश होकर वहां से निकलने के लिये तैयार हो गये।

“तीनों लड़कियां पेगासस पर बैठेंगी और मैं सुनहरे जूते का प्रयोग करुंगा, तौफीक तुम पंखों वाले हेलमेट का प्रयोग करोगे...इसी की सहायता से हम यहां से निकलेंगे। अगर किसी को अपनी जादुई चीज को प्रयोग में लाकर देखना है, तो वह इसी पहाड़ में देख लो, बाहर हमारे पास दूसरा मौका नहीं मिलेगा।”

सुयश के शब्द सुन सभी ने एक बार अपनी जादुई वस्तु को प्रयोग करके देख लिया और पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वह सभी झरने के छेद नम्बर 2 से उड़कर पहाड़ के नीचे की ओर चल दिये।


चैपटर-12 , त्रिआयाम:

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 14:20, त्रिआयाम क्षेत्र, नागलोक)

ऐलेक्स की जब आँख खुली, तो वह समुद्र के अंदर था। हर तरफ नीले रंग का पानी चारो ओर फैला हुआ था।

आँखें खोलते ही ऐलेक्स घबरा गया। पर धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि वह पानी के अंदर भी आसानी से साँस ले रहा है।

ऐलेक्स ने अगल-बगल तैर कर देखा, वह आसानी से किसी मछली की भांति तैर भी ले रहा था।

ऐलेक्स को पास में ही एक बड़ी सी समुद्री चट्टान दिखाई दी। ऐलेक्स ने परीक्षण करने के लिये अपना घूंसा जोर से चट्टान पर मारा।

ऐलेक्स के एक ही वार से चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये। यह देख ऐलेक्स खुशी से भर उठा। इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह कोई सुपर हीरो हो।

ऐलेक्स ने अब अपने चारो ओर दृष्टि दौड़ाई, पर उसे कहीं भी त्रिआयाम दिखाई नहीं दिया।

“स्थेनो ने तो कहा था कि फल खाते ही मैं त्रिआयाम के पास पहुंच जाऊंगा, पर यहां तो दूर-दूर तक त्रिआयाम का कहीं निशान तक नहीं है।....लेकिन स्थेनो गलत नहीं कह सकती...त्रिआयाम यहीं कहीं होना
चाहिये? मुझे अपनी आँखों का प्रयोग करना चाहिये, पर कैसे? मुझे तो यह भी नहीं पता कि अपनी आँखों का उपयोग करना कैसे है? वाह रे सुपर हीरो ! खुद को ही नहीं पता कि शक्तियों का उपयोग करना कैसे है? और आ गये नागलोक राक्षसों और देवताओं से लड़ने।”

ऐलेक्स भी पागलों की तरह स्वयं ही बड़बड़ा रहा था।

ऐलेक्स ने अपनी आँखों को एक बार बंद किया और फिर जोर से खोला।

ऐलेक्स के तेज आँख खोलते ही ऐलेक्स की आँखों से एक किरण निकलकर समुद्र में फैल गयी।

अब ऐलेक्स को समुद्र में एक विशाल पारदर्शी गोला तैरता हुआ दिखाई दिया। वह गोला कम से 500 फिट बड़ा तो जरुर रहा होगा।

“यह कैसा पारदर्शी गोला है...कहीं यही तो त्रिआयाम नहीं?” यह सोचकर ऐलेक्स धीरे-धीरे पानी में तैरता हुआ उस गोले के पास पहुंच गया।

अब ऐलेक्स को उसे गोले में बना एक छोटा सा दरवाजा दिखाई देने लगा था। ऐलेक्स उस दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गया।

अंदर एक बड़ा सा कमरा बना था, जिसमें हर ओर पानी भरा हुआ था और उसमें एक 5 सिर वाला नाग सो रहा था।

“ये लो...यहां इतनी सारी शक्तियां रखीं हैं और ये भाई साहब ड्यूटी टाइम में सो रहे हैं।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा- “उठो भाई साहब, मुझे भी अपनी शक्तियों का परीक्षण करना है।

ऐलेक्स की तेज आवाज से वह नाग उठ बैठा। अपने पास एक छोटे से मनुष्य को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया।

“कौन हो तुम? और यहां तक कैसे आये?” नाग ने ऐलेक्स से पूछा।

“जब साधारण मनुष्य था, तो चोर था। अब जब शक्तियां भी मिल गयी हैं, तब भी चोर का ही काम मिला है। .....अब उठ भी जाओ और मुझसे लड़ाई करो।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।

ऐलेक्स के शब्द सुनकर उस नाग को बहुत आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया।

“मेरा नाम नागफनी है...मेरे रहते तुम यहां से कुछ भी नहीं ले जा सकते?” नागफनी ने फुंफकारते हुए कहा।

“बिल्कुल सहीं नाम है तुम्हारा...तुम लग भी फनी से रहे हो।” ऐलेक्स ने उस नाग का मजाक उड़ाते हुए कहा।

यह सुन नागफनी ने गुस्से से अपना मुंह खोलकर ऐलेक्स के ऊपर ढेर सारा जहर उगल दिया।

हरे रंग का जहर पानी में फैलकर सीधा ऐलेक्स के मुंह के पास आ गिरा।

“मजा नहीं आया फनी भाई....कुछ और हो तो उसका भी प्रयोग कर लो।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

ऐलेक्स को खड़ा मुस्कुराता देखकर, नागफनी आश्चर्य में पड़ गया।

“मेरे जहर से कैसे बच गये तुम? लगता है कि तुम कोई मायावी राक्षस हो?” नागफनी ने गुस्से से कहा- “पर मेरे पास भी तुम जैसे राक्षसों के लिये बहुत से अस्त्र-शस्त्र हैं।”

यह कहकर नागफनी ने अपना पूंछ को पानी में जोर से हिलाया। नागफनी के ऐसा करते ही पानी में कुछ तलवार और भाले प्रकट होकर ऐलेक्स की ओर लपके।

ऐलेक्स उन तलवार और भालों को देखकर भी अपनी जगह पर खड़ा रहा।

सभी तलवार और भाले ऐलेक्स के शरीर की मोटी त्वचा से टकराकर बेअसर हो गये।

“कुछ और हो तो वह भी आजमा लो, नहीं तो मुझे अगले द्वार की ओर जाने दो।” ऐलेक्स ने उस नाग का उपहास उड़ाते हुए कहा।

इस बार गुस्सा कर नागफनी ने अपने पांचों फन फैला कर सभी मुंह को जोर से खोला।

उसके प्रत्येक मुंह से अलग रंग की नागमणि निकलीं और ऐलेक्स के चारो ओर, पानी का तेज भंवर बनाने लगीं।

“अरे-अरे...यह क्या कर रहे हो?” ऐलेक्स को नागफनी से ऐसे किसी प्रहार का अंदाजा नहीं था।

ऐलेक्स अब उन भंवर में फंसकर तेजी से नाचने लगा। ऐलेक्स को अपना सिर चकराता हुआ सा प्रतीत होने लगा।

वह समझ गया कि नागफनी को उसने कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया।

“अब मैं कैसे इस भंवर से बचूं?” ऐलेक्स तेजी से सोचने लगा-“आँख, नाक, कान और जीभ इस प्रहार से मुझे नहीं बचा सकतीं...अब बची त्वचा....पर त्वचा कैसे मुझे इससे बचा सकती है...हां अगर मैं समुद्र की तली पर उतर जाऊं, तो त्वचा की मदद से मैं जमीन से अपने पाँव चिपका सकता हूं।”

ऐलेक्स के इतना सोचते ऐलेक्स का शरीर पानी की तली की ओर स्वतः जाने लगा और कमरे की जमीन को छूते ही ऐलेक्स का पैर उस जमीन पर जम गया।

अब पानी में उत्पन्न लहरें ऐलेक्स का कुछ नहीं कर पा रहीं थी। यह देख नागफनी ने क्रोध में आकर अपनी मणियों को वापस बुला लिया।

ऐलेक्स समझ गया कि अब नागफनी को और मौका देने का मतलब अपने लिये नयी मुसीबतें बुलाना है।

इसलिये इस बार ऐलेक्स नागफनी की ओर तेजी से बढ़ा और इससे पहले की नागफनी अपना किसी भी प्रकार से बचाव कर पाता, ऐलेक्स ने अपने घूंसे से नागफनी के बीच वाले फन पर जोर से प्रहार किया।

वह प्रहार इतना तेज था कि नागफनी को चक्कर आ गया और ऐलेक्स इस मौके का फायदा उठाकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गया।

दूसरे द्वार में एक 50 फुट ऊंचा राक्षस बैठा कुछ खा रहा था। इस कमरे में बिल्कुल भी पानी नहीं था।

“क्या बात है?...इस त्रिआयाम के तो सभी द्वार आलसी लोगों से भरे पड़े हैं...कोई सो रहा है, तो कोई खा रहा है।“ ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

ऐलेक्स की आवाज सुनकर वह राक्षस खाना छोड़कर उठकर खड़ा हो गया।

“अरे...नहीं....नहीं, खाना खाते हुए नहीं उठते, मैं तो बस शरारत कर रहा था, तुम पहले खाना खालो, फिर हम लड़ाई-लड़ाई खेल लेंगे।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कौन हो तुम? तुम तो मनुष्य दिख रहे हो? तुम इस द्वार तक कैसे पहुंच? तुम्हें नागफनी ने रोका क्यों नहीं?” राक्षस ने एक साथ असंख्य सवाल पूछ डाले।

“अरे-अरे....जरा ठहरो राक्षस भाई ...धीरे-धीरे करके सभी सवाल पूछो, मैं एक साथ इतने सारे सवाल देखकर डर जाता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “वैसे आगे वाले कमरे में नागफनी सो रहा है, मैं उसके बगल से होता हुआ इस द्वार तक आ पहुंचा।”

“ये नागफनी भी ना....मैं इसकी शिकायत नागराज से करुंगा।” राक्षस ने कहा।

“बिल्कुल करना....मैं तो कहता हूं कि इसे नौकरी से निकलवा देना... ऐसे नाग त्रिआयाम के लिये कलंक हैं।” ऐलेक्स ने पूरा मजा लेने का मन बना लिया था- “वैसे राक्षस भाई तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम प्रमाली है...मैं नागफनी की तरह नहीं हूं...मैं तुम्हें इस द्वार से अंदर नहीं जाने दूंगा।” प्रमाली ने यह कहकर अपने पास रखी गदा को ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स की त्वचा के कारण उस पर गदा के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, मगर गदा का वार इतना शक्तिशाली था, कि ऐलेक्स उस प्रहार के कारण कई कदम पीछे चला गया।

ऐलेक्स समझ गया कि यहां ज्यादा कॉमेडी करना ठीक नहीं है, अगर उसने प्रमाली को ज्यादा मौका दिया तो वह उसे हरा भी सकता है।

उधर प्रमाली की गदा प्रहार करके वापस प्रमाली के हाथों में पहुंच गई, पर ऐलेक्स को हानि ना पहुंचते देख प्रमाली भी आश्चर्य से भर उठा।

“अच्छा तो तुम भी मायावी हो, तभी तुमने पहला द्वार पार कर लिया है।” यह कहकर प्रमाली ने अपना दाहिना हाथ ऐलेक्स की ओर बढ़ाया।

प्रमाली की हाथ के उंगलियों के नाखून उसके हाथ से निकलकर ऐलेक्स के चेहरे की ओर बढ़े और ऐलेक्स के चेहरे पर तेज खरोंच मारने लगे।

पर प्रमाली के नाखून ऐलेक्स की त्वचा को भेद नहीं पाये। त्वचा को ना भेद पाता देख वह नाखून ऐलेक्स की आँख पर प्रहार करने लगे।

पर ऐलेक्स की आँख का भी कुछ नहीं बिगड़ा। यह देख प्रमाली की आँखें कुछ सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं। प्रमाली के नाखून वापस प्रमाली के हाथ में जाकर लग गये।

“वाह...नाखून फेंककर मारते हो... कितना अच्छा आइडिया दिया तुमने मुझे मैं यह दाँव हमेशा याद रखूंगा।“ ऐलेक्स ने यह कहा और निहत्थे ही प्रमाली की ओर दौड़ लगा दी।

प्रमाली को समझ नहीं आया कि निहत्था ऐलेक्स क्या कर लेगा। इसलिये खड़ा होकर ध्यान से ऐलेक्स को देखने लगा।

ऐलेक्स जा कर प्रमाली के दाहिने पैर से लिपट गया।

यह देख प्रमाली हंसने लगा- “अच्छा ....तो तुम मेरे पैर पकड़कर क्षमा मांगने आये हो।”

तभी ऐलेक्स के पूरे शरीर से 4 फिट लंबे धारदार काँटे निकल आये और उन काँटों ने प्रमाली का पैर जगह-जगह से बुरी तरह से काट दिया।

प्रमाली कराह कर जमीन पर गिर गया। ऐलेक्स के पास यही मौका था, वह दौड़कर प्रमाली के शरीर पर चढ़ गया और अपने शरीर पर निकले काँटों से प्रमाली के पूरे शरीर को घायल करने लगा।

प्रमाली के पूरे शरीर से खून की धाराएं बहने लगीं।

इस समय प्रमाली का पूरा ध्यान अपने शरीर से बह रहे खून की ओर था, ऐलेक्स इसी का फायदा उठा कर तीसरे द्वार में प्रवेश कर गया।



जारी रहेगा_______✍️
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
 
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#133.

तभी राक्षस ने अपना भेद खुलते देख, त्रिशाल पर हमला कर दिया।

वह मुंह फाड़कर तेजी से त्रिशाल की ओर आया।

“ऊँऽऽऽऽऽऽऽऽ!” त्रिशाल के मुंह से जैसे ही ऊँ का पवित्र शब्द निकला, पानी की लहरें गोल-गोल घूमती हुई उस राक्षस की ओर चल दी।

उस राक्षस ने अपनी पूरी जिंदगी में इस प्रकार की किसी शक्ति का अनुभव नहीं किया था, इसलिये वह समझ नहीं पाया कि इस शक्ति से बचना कैसे है? और इससे पहले कि वह कुछ समझता, पानी की लहरें उसके शरीर के चारो ओर लिपट गईं।

लहरों ने अब राक्षस का शरीर किसी मंथानी की तरह पानी में मंथना शुरु कर दिया।

राक्षस बार-बार उन लहरों से बचने की कोशिश कर रहा था, पर वह उन लहरों के अंदर से निकल नहीं पा रहा था।

कुछ ही देर में राक्षस बेहोश होकर वहीं झील की तली में गिर गया।
राक्षस के बेहोश होते ही वह ध्वनि ऊर्जा लहरों से गायब हो गई।

लहरें अब पहले की तरह सामान्य हो गयीं थीं।

“इसे मारना नहीं है क्या? जो सिर्फ बेहोश करके छोड़ दिया।” कलिका ने त्रिशाल से पूछा।

“अगर इसे बिना मारे ही हमारा काम चल सकता है, तो मारने की जरुरत क्या है? और वैसे भी तुम्हें पता है कि हमें सिर्फ कालबाहु चाहिये।” त्रिशाल ने कलिका को समझाते हुए कहा।

तभी वातावरण में एक स्त्री की तेज आवाज सुनाई दी- “कालबाहु तक तुम कभी नहीं पहुंच पाओगे।”

“लगता है हमें कोई कहीं से देख रहा है?” कलिका ने सतर्क होते हुए कहा।

“कौन हो तुम?” त्रिशाल ने तेज आवाज में पूछा।

पानी के अंदर होने के बाद भी कलिका और त्रिशाल आसानी से उस रहस्यमय शक्ति से बात कर ले रहे थे।

“मैं कालबाहु की माँ ‘विद्युम्ना’ हूं, मेरे होते हुए तुम कालबाहु तक कभी नहीं पहुंच सकते। भले ही तुमने अपनी विचित्र शक्तियों से ‘दीर्घमुख’ को बेहोश कर दिया हो, पर तुम कालबाहु को कभी परजित नहीं कर पाओगे। उसे देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त है। मैं कहती हूं कि चले जाओ यहां से। अभी भी तुम्हारे पास यहां से बच निकलने का एक मौका है।”

विद्युम्ना ने अपनी गरजदार आवाज से त्रिशाल और कलिका को डराने की कोशिश की।

“सबसे पहले तो मैं आपको प्रणाम करती हूं देवी विद्युम्ना।” कलिका ने राक्षसी को भी सम्मान देते हुए कहा-

“मुझे पता है कि अपनी संतान का वियोग क्या हो सकता है? आप भले ही राक्षसकुल की हों, पर आप भी एक माँ हैं, और माँ का स्थान किसी भी लोक में शीर्ष पर होता है। हमारी आपके पुत्र से कोई सीधी शत्रुता नहीं है, हम भी यहां पर किसी को दिया वचन निभाने ही आये हैं।

"जिस प्रकार से आप अपने पुत्र की रक्षा कर रहीं है, ठीक उसी प्रकार से हम भी अपनी पुत्री की प्राणरक्षा के लिये यहां पर आये हैं। इसलिये कृपा करके हमारा मार्ग मत अवरुद्ध करें और हमें कालबाहु को सौंप दें। हम आपसे वादा करते हैं कि ऐसी स्थिति में कालबाहु का हम कोई अनिष्ट नहीं होने देंगे?”

“तुम लोग अलग हो, तुम देवताओं से भिन्न बातें करते हो, तुमने दीर्घमुख को भी जान से नहीं मारा, तुम कालबाहु को भी क्षमा करने को तैयार हो। आखिर तुम लोग हो कौन? और बिना शत्रुता यहां पर क्या करने आये हो?” इस बार विद्युम्ना की आवाज थोड़ी धीमी थी, शायद वह इन दोनों के व्यवहार से आकृष्ट हो गयी थी।

“देवी विद्युम्ना हम देवता नहीं हैं, हम साधारण मनुष्य हैं, परंतु हम महर्षि विश्वाकु को दिये अपने वचन से बंधे हैं।"

त्रिशाल ने नम्र स्वर में कहा-“आपके पुत्र कालबाहु ने महर्षि विश्वाकु के दोनों पुत्र और पत्नि को अकारण ही मार दिया। जिससे क्रोधित होकर महर्षि विश्वाकु ने हमें आपके पुत्र को पकड़कर या मारकर लाने को कहा। हम इसीलिये यहां आये है।”

त्रिशाल के शब्द सुनकर विद्युम्ना कुछ क्षणों के लिये शांत होकर कुछ सोचने लगी और फिर बोली-

“तुम लोग शुद्ध हो, तुम्हारी भावनाएं और शक्तियां भी शुद्ध हैं, तुम देवताओं और राक्षसों दोनों के ही साथ समान व्यवहार करते हो। यह बहुत ही अच्छी बात है, ऐसा शायद कोई मनुष्य ही कर सकता है क्यों कि देवता तो हमेशा छल से ही काम लेते हैं। परंतु मैं तुम्हें अपने पुत्र को नहीं सौंप सकती। मैं अब तुम लोगों से ज्यादा बात भी नहीं कर सकती, क्यों कि तुम लोग मेरे व्यवहार को भी भ्रमित कर रहे हो।

"तुम जो करने आये हो, उसकी कोशिश करो और मैं अपना धर्म निभाती हूं, पर हां अगर मैंने तुम्हें पराजित किया तो मैं तुम्हें मारुंगी नहीं, ये मेरा तुमसे वादा है। मुझे लगता है कि तुम दोनों भविष्य में पृथ्वी पर एक ऐसे राज्य की स्थापना करोगे, जहां पर देवताओं और राक्षसों को समान अधिकार प्राप्त होंगे। वहां पर राक्षसों को हेय दृष्टि से नहीं देखा जायेगा।....सदैव शुद्ध रहो...और अपनी आत्मा में शुद्धता का वहन करते रहो, ऐसा मेरा आशीर्वाद है।” यह कहकर विद्युम्ना की आवाज आनी बंद हो गयी।

विद्युम्ना की बातें सुनकर त्रिशाल और कलिका एक दूसरे का मुंह देखने लगे।

“त्रिशाल, देवी विद्युम्ना तो समस्त राक्षसों से भिन्न दिख रहीं हैं...क्या हम लोग कालबाहु को पकड़ कर सही करने जा रहे हैं” कलिका के चेहरे पर विद्युम्ना की बातों को सुन आश्चर्य के भाव थे।

“तुम एक बात भूल रही हो विद्युम्ना कि देवता, राक्षस, दैत्य, दानव,गंधर्व सहित सभी जीव-जंतु महर्षि कश्यप की ही संताने हैं।

"महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की 13 कन्याओं से विवाह किया था। जिसमें अदिति से देवता, दिति से दैत्य, दनु से दानव, सुरसा से राक्षस, काष्ठा से अश्व, अरिष्ठा से गंधर्व, इला से वृक्ष, मुनि से अप्सरा गण, क्रोधवशा से सर्प, ताम्रा से श्येन गृध्र, सुरभि से गौव महिष, सरमा से पशु और तिमि से जलीय जंतुओं की उत्पत्ति हुई थी।“

“अगर इस प्रकार से देखा जाये तो सभी के पास समान अधिकार होने चाहिये थे, परंतु देवताओं ने सदैव राक्षसों को पाताल देकर स्वयं देवलोक में विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत किया है। इसलिये कालांतर में राक्षस हमेशा शक्ति प्राप्त करके देवताओं को हराने की कोशिश करते रहें हैं।

"यहां ये जरुर ध्यान रखना कि देवताओं का मतलब ‘त्रि..देव’ से नहीं है। त्रि..देव देवताओं से ऊपर हैं। देवता और राक्षस दोनों ही उनकी की पूजा करते हैं। त्रिदेव ने मनुष्य को इन्हीं सबमें संतुलन बनाये रखने के लिये उत्पन्न किया था।

“अब रही बात देवी विद्युम्ना की, तो उनमें अलग भावों का दिखना कोई विशेष बात नहीं है, बहुत से ऐसे राक्षस रहे, जो अपने बुद्धि और ज्ञान के लिये हमारे समाज में पूजे भी जाते रहें हैं। महाभारत काल की देवी हिडिम्बा के बारे में सभी जानते हैं। इसलिये हमें अपने लक्ष्य पर अडिग रहना चाहिये। हां कालबाहु को पकड़ने के बाद, मैं इस विषय पर ध्यान अवश्य दूंगा, और एक शांति लोक की स्थापना करुंगा, जहां सभी के पास समान अधिकार होंगे।”

कलिका ध्यान से त्रिशाल की बातें सुन रही थी, उसने धीरे से सिर हिलाकर अपनी सहमति दी।

दोनों फिर राक्षसलोक का द्वार ढूंढने के लिये आगे की ओर बढ़ गये। कुछ आगे चलने पर कलिका को पानी का रंग कुछ अलग सा प्रतीत हुआ।

“ये आगे पानी का रंग नीले से काला क्यों नजर आ रहा है।” त्रिशाल ने कहा।

“रुक जाओ त्रिशाल, मुझे लग रहा है कि शायद वहां पानी में जहर मिला हुआ है।” कलिका ने त्रिशाल का रोकते हुए कहा।

तभी वह काला पानी एक आकृति का रुप धारण करने लगा।

कुछ ही देर में वह काली आकृति एक विशाल अजगर के रुप में परिवर्तित हो गयी।

अजगर ने त्रिशाल और कलिका को अपनी लंबी सी पूंछ में जकड़ लिया।

पर इससे पहले कि अजगर त्रिशाल और कलिका को हानि पहुंचा पाता, कलिका के हाथों से एक सफेद रंग की रोशनी निकली और अजगर के चेहरे के आसपास फैल गयी।

अचानक से अजगर का दम घुटने लगा और उसकी पकड़ त्रिशाल और कलिका के शरीर पर ढीली पड़ गयी।

अजगर की पकड़ ढीली पड़ते ही दोनों अजगर की पकड़ से बाहर आ गये। अजगर का छटपटाना अभी भी जारी था।

अब कलिका ने अपनी सफेद रोशनी को वापस बुला लिया।

सफेद रोशनी के जाते ही अजगर वहां से भाग खड़ा हुआ।

वह समझ गया था कि इन दोनों से पार पाना उसके बस की बात नहीं है।

त्रिशाल और कलिका फिर से आगे बढ़ने लगे।

तभी कुछ दूरी पर त्रिशाल को पानी के अंदर एक विशाल व्हेल के आकार की मछली, झील की तली पर मुंह खोले हुए पड़ी दिखाई दी।

पास जाने पर उन्हें पता चल गया कि वह असली मछली नहीं थी, बल्कि वही था, राक्षसलोक जाने का द्वार।

त्रिशाल और कलिका उस मछली के मुंह में प्रवेश कर गये। कुछ देर तक अंधेरे में चलते रहने के बाद दोनों को दूर रोशनी दिखाई दी।

कुछ ही देर में दोनों रोशनी के स्रोत तक पहुंच गये।

वहां पर एक बड़ा सा मैदान के समान खाली स्थान था, जिसमें बिल्कुल भी पानी नहीं था। और उस बड़े से स्थान में एक विशाल महल बना हुआ था।

उस महल के द्वार पर राक्षसराज रावण की 10 फुट ऊंची सोने की प्रतिमा लगी हुई थी।

तभी कलिका की नजरें सामने कुछ दूरी पर खड़े एक विशाल राक्षस की ओर गयी, जो कि अभी कुछ देर पहले ही वहां पर प्रकट हुआ था।

उसे देखकर कलिका के मुंह से निकला- “कालबाहु!”

कलिका के शब्द सुन त्रिशाल की भी नजरें कालबाहु की ओर घूम गयीं।

कालबाहु एक 20 फुट ऊंचा मजबूत कद काठी वाला योद्धा सरीखा राक्षस था, उसके शरीर पर 6 हाथ थे, 2 हाथ बिल्कुल इंसानों की तरह थे, परंतु बाकी के 4 हाथ केकड़े के जैसे थे। वह कुछ दूर खड़ा उन्हें ही घूर रहा था।

यह देख कलिका ने बिना कालबाहु को कोई मौका दिये, उस पर प्रकाश शक्ति से हमला बोल दिया।

नीले रंग की घातक प्रकाश तरंगे तेजी से जाकर कालबाहु के शरीर से टकराईं, पर कालबाहु का कुछ नहीं हुआ, बल्कि वह तरंगें ही दिशा परिवर्तित कर राक्षसराज रावण की मूर्ति से जा टकराईं।

रावण की मूर्ति खंड-खंड होकर जमीन पर बिखर गयी।

कालबाहु अभी भी खड़ा उन्हें घूर रहा था। यह देख कलिका फिर अपने हाथों को आगे कर प्रकाश शक्ति का प्रयोग करने चली।

“रुक जाओ कलिका, तुम जो समझ रही हो, यह वो नहीं है।” त्रिशाल ने कलिका का रोकते हुए कहा-

“प्रकाश शक्ति इस प्रकार से तभी परिवर्तित हो सकती है, जबकि वह किसी दर्पण से टकराये। इसका मतलब यह कालबाहु नहीं है, बल्कि कालबाहु की एक छवि है, जो किसी दर्पण के द्वारा हमें दिखाई दे रही है। अगर तुमने दोबारा इस पर प्रकाश शक्ति का प्रयोग किया तो वह फिर से परावर्तित हो कर हमें भी लग सकती है। इसलिये जरा देर के लिये ठहर जाओ।”

त्रिशाल के इतना कहते ही उस स्थान पर एक नहीं बल्कि सैकड़ों कालबाहु नजर आने लगे।

तभी फिर से विद्युम्ना की आवाज वातावरण में गूंजी- “बिल्कुल सही पहचाना त्रिशाल, अगर तुम्हें पहचानने में जरा भी देर हो जाती तो...? वैसे मैं तुम्हें बता दूं कि तुम इस समय मेरे बनाये भ्रमजाल में फंस चुके हो। और यहां पर तुम प्रकाश शक्ति का उपयोग कर नहीं बच सकते। अब तुम लोग यहां से निकलने का विचार त्याग दो।”

“आप भूल गयी हैं देवी विद्युम्ना की हमारे पास और भी शक्तियां हैं, जो आसानी से इस भ्रमजाल को तोड़ सकती हैं” इतना कहकर त्रिशाल ने अपने मुंह से ऊँ की तेज ध्वनि निकाली।

वह ध्वनि इतनी तेज थी कि उस स्थान पर मौजूद सभी शीशे तेज आवाज के साथ टूटकर जमीन पर बिखर गये।

अब महल फिर से नजर आने लगा और विद्युम्ना की आवाज शांत हो गई।

“अब हमें महल के अंदर की ओर चलना पड़ेगा।”

यह कहकर त्रिशाल कलिका को ले, जैसे ही महल के द्वार से अंदर प्रवेश करना चाहा, उसकी नजर उस स्थान पर पड़ी, जहां रावण की प्रतिमा टूटकर बिखरी थी। उस प्रतिमा के बीच एक कंकाल पड़ा हुआ था।

“यह तो कोई मानव कंकाल लग रहा है।”कलिका ने कहा- “परंतु यह यहां कैसे आया, अभी कुछ देर पहले तो यहां पर कुछ नहीं था । और.... और यह शायद किसी स्त्री का कंकाल है?”

त्रिशाल ने मूर्ति के मलबे को साफ किया, अब वह कंकाल बिल्कुल साफ नजर आ रहा था।

“मुझे लग रहा है कि यह कंकाल उस रावण की मूर्ति के अंदर ही था, जो तुम्हारे प्रकाश शक्ति के प्रहार से टूटा था।...पर मूर्ति में कोई कंकाल क्यों छिपाएगा? कुछ तो रहस्य है इस कंकाल का?” त्रिशाल ने कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर उस मूर्ति को धीरे से हाथ लगाया।

मूर्ति को हाथ लगाते ही कलिका को एक अतीन्द्रिय अनुभूति हुई, जो कि बहुत ज्यादा पॉजिटिव ऊर्जा से भरी थी।

“इस कंकाल के अंदर की ऊर्जा बताती है कि यह किसी महाशक्ति का कंकाल है...इसे इस प्रकार यहां छोड़ना सही नहीं होगा। हमें इसका अंतिम संस्कार करना होगा।” कलिका ने कहा।

“पर कलिका....हमें नहीं पता कि यह किस धर्म की महाशक्ति है, फिर हम इसका अंतिम संस्कार कैसे कर सकते हैं?” त्रिशाल के शब्दों में उलझन के भाव थे।

“तुम भूल रहे हो त्रिशाल, हम दोनों के पास इस ब्रह्मांड की सबसे शुद्ध शक्ति है, ब्रह्मांड की हर ऊर्जा का निर्माण प्रकाश और ध्वनि से ही हुआ है। यहां तक की कैलाश पर्वत और मानसरोवर का निर्माण भी इन्हीं दोनों शक्तियों से हुआ है।

"अकेले ‘ऊँ’ शब्द में ही सम्पूर्ण सृष्टि का सार छिपा हुआ है, तो इन शक्तियों से बेहतर अंतिम संस्कार के लिये और कोई शक्ति नहीं हो सकती। इसलिये हम ना तो इस कंकाल को जलायें और ना ही दफनाएं। हमें अपनी शक्तियों से ही इस कंकाल को उस ब्रह्मांड के कणों में मिलाना होगा, जिसने इसकी उत्पत्ति की।”

कलिका का विचार बहुत अच्छा था। इसलिये त्रिशाल सहर्ष ही इसके लिये तैयार हो गया।

अब कलिका और त्रिशाल ने कंकाल के चारो ओर एक लकड़ी से जमीन पर गोला बनाया और दोनों ने एक साथ अपनी शक्तियों का प्रयोग कर उस कंकाल के एक-एक कण को वातावरण में मिला दिया।

दोनों के हाथों से बहुत तेज शक्तियां निकलीं थीं, परंतु ऊर्जा का एक भाग भी उस गोले से बाहर नहीं निकला।

यह कार्य पूर्ण करने के बाद वह दोनों महल के अंदर की ओर चल दिये।

त्रिशाल और कलिका ने चारो ओर देखा। महल में कोई भी नजर नहीं आ रहा था, चारो ओर एक निस्तब्ध सन्नाटा छाया था।

जैसे ही दोनों ने महल के अंदर अपना पहला कदम रखा, अचानक उनके पैरों के नीचे से जमीन गायब हो गई और वह दोनों एक गहरे गड्ढे में गिरने लगे।

वह लगातार गिरते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पाताल में जाकर ही रुकेंगे।

कुछ देर गिरने के बाद उनका शरीर हवा में लहराने लगा।

त्रिशाल ने देखा कि वह एक पारदर्शी बड़ा सा काँच का कमरा था, जिसमें चारो ओर अंधेरा था।

शायद उस कमरे में वातावरण भी नहीं था, क्यों कि त्रिशाल और कलिका के पैर जमीन को नहीं छू पा रहे थे।

उस काँच के कमरे के बाहर तो प्रकाश था, परंतु वह ना जाने किस प्रकार की तकनीक थी, कि बाहर का प्रकाश काँच के कमरे में नहीं प्रविष्ठ हो पा रहा था।

त्रिशाल ने कलिका को आवाज लगाने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज नहीं निकली।

त्रिशाल ने टटोलकर कलिका का हाथ थामा और उसे हवा में अपने पास खींच लिया।

कलिका भी उस स्थान पर नहीं बोल पा रही थी।

तभी दोनों को अपने मस्तिष्क में विद्युम्ना की आवाज सुनाई दी- “यह कमरा तुम दोनों की ही शक्तियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। कलिका को प्रकाश शक्ति का प्रयोग करने के लिये उसका स्वयं का प्रकाश में रहना आवश्यक है, लेकिन इस कमरे में कभी प्रकाश आ ही नहीं सकता। इसलिये कलिका अपनी शक्तियों का प्रयोग यहां कभी नहीं कर सकती। अब रही तुम्हारी बात त्रिशाल, तो तुम्हारी ध्वनि शक्ति निर्वात में नहीं चल सकती, यह एक छोटी सी वैज्ञानिक थ्योरी है।

“इसलिये मैंने इस कमरे से वातावरण को ही गायब कर दिया। उसी की वजह से तुम दोनों यहां बात नहीं कर पा रहे हो। अब रही बात इस काँच के कमरे को अपने हाथों से तोड़ने की, तो तुम्हें यह जानकारी दे दूं, कि इस काँच पर किसी भी अस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसलिये इसे तोड़ने का विचार अपने दिमाग से निकाल देना।...इस माया जाल का नाम मैंने भ्रमन्तिका रखा है। यहां तुम साँस तो ले सकते हो, पर ना तो एक दूसरे से बात कर सकते हो और ना ही एक दूसरे का चेहरा देख सकते हो। अब तुम दोनों यहां तब तक बंद रहोगे, जब तक मेरा पुत्र कालबाहु अपनी साधारण आयु पूरी नहीं कर लेता।

“इसके बाद मैं तुम दोनों को यहां से छोड़ दूंगी……मैंने अपने वादे के अनुसार तुम्हें मारा नहीं है। चूंकि इस कमरे में कोई वातावरण नहीं है, इसलिये यहां पर ना तो तुम्हें भूख लगेगी और ना ही प्यास, यहां तक की तुम्हारी आयु भी यहां पर स्थिर हो जायेगी। अब अगर हजारों वर्षों के बाद भी तुम यहां से निकले, तब भी तुम्हारी आयु आज के जितनी ही होगी।…अच्छा तो अब विद्युम्ना को जाने की आज्ञा दीजिये, यह सहस्त्राब्दि आपके लिये शुभ हो।”

इतना कहकर विद्युम्ना की आवाज शांत हो गई।

त्रिषाल ने कलिका के गालों को चूम लिया और उसका हाथ दबा कर उसे सांत्वना दी।

दोनों ही विद्युम्ना के भ्रमन्तिका में पूरी तरह से फंस गये थे। अब उनके पास सदियों के इंतजार के अलावा और कोई उपाय नहीं था।

उधर गुरुदेव नीमा हिमालय के पर्वतों में बैठे ध्यान लगा कर त्रिशाल और कलिका को देख रहे थे, परंतु वह भी मजबूर थे।

वह त्रिशाल और कलिका को भ्रमन्तिका से बाहर नहीं निकाल सकते थे क्यों कि अगर वह किसी भी दैवीय शक्ति से मदद मांगते तो देवताओं और राक्षसों के बीच फिर से युद्ध शुरु हो जाना था क्यों कि देवताओं और राक्षसों के बीच यही तो तय हुआ था, कि कलयुग के समय अंतराल में वह दोनों एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेंगे।

इसलिये नीमा को भी इंतजार था अब उस पल का, जब कोई मनुष्य ही अपनी शक्तियों का प्रयोग कर त्रिशाल व कलिका को भ्रमन्तिका से बाहर निकाले।

अब सब कुछ समय के हाथों में था, पर समय किसी के भी हाथों में नहीं था।


जारी रहेगा_______✍️
Manav kankaal?😱 kahi wo megna ka to nahi? Ye log pakadne to gaye the kaslbzhu ko, aur khud pakde gaye😁
Khair dekhte hain aage inka kya hoga?
Awesome update bhai👌🏻👌🏻👌🏻
 

Avaran

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Let's review start
Hamare sochne mein mistake hui ham soch kuch Aur Rahe thee par huwa kuch Aur , ye upkarn Toh pegas ko Jeevit kar uspar safari ke liye thee .
Yaha Jisne madusa ke history ko Nahi samjha Usee Pegusus ke Bare main Itna Jaldi samjh na aaya Hoga ..

Suyash and Company pahuch gaye apne manjil ki aur .

Alex bhaiya abhi Apni shaktiyo ko shayad Majee ke liye usee kar rahe , security guard se aise pange lerahe mano woh kuvh hai hi Nahi sirf alex hi sab kuch hai .

Wise kya alex sare gate ko par kara liya ya fir Alex ke liye ab asli Challenge aane wala ho .

 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai,

Jadui cheezo ka prayog kar, Suyash & party aakhirkar Volcano se bahar nikal gaye...........

Ab neeche aane par ek nai musibat unka intezar kar rahi hogi..........

Alex ki to mauj ho gayi...............

Nayi Nyai Superpowers mili he...........aur inka bharpur maja le raha he Alex.....

Keep rocking Bro
Thank you very much for your valuable review and support bhai :hug:
Suyash and co. Ko ek aur musibat jhelni hai bas, aur fir vo tilisma ke dwaar per pahuch jayenge:declare:
Alex me abhi taqat ka josh hai, sahi hatthe chadha nahi hai abhi:D
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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Ho bhi sakti hai, apun kyu bataye:D
Vidyumna ne inko hi lapet diya hai dost, dekhne wali baat hogi ki kon inhe mukti dilata hai us qaid se.
Thanks brother for your valuable review and support :thanx:
 

Raj_sharma

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Hamare sochne mein mistake hui ham soch kuch Aur Rahe thee par huwa kuch Aur , ye upkarn Toh pegas ko Jeevit kar uspar safari ke liye thee .
Yaha Jisne madusa ke history ko Nahi samjha Usee Pegusus ke Bare main Itna Jaldi samjh na aaya Hoga ..
Medusa ke baare me apun pahle bhi bata chuka hai, shefali ka wo sapna yaad karo...??:huh: And baad me jab alex ko wo vasindriya ghol pilaya gaya tab bhi kuch bataya tha. Ab tum padha nahi to hum kya kare?:buttkick:
Suyash and Company pahuch gaye apne manjil ki aur .
Abhi picture baaki hai mere dost:D
Alex bhaiya abhi Apni shaktiyo ko shayad Majee ke liye usee kar rahe , security guard se aise pange lerahe mano woh kuvh hai hi Nahi sirf alex hi sab kuch hai .

Wise kya alex sare gate ko par kara liya ya fir Alex ke liye ab asli Challenge aane wala ho .
Alex maje le raha hai, usko ye yaad rakhna chahiye ki har sakti ki ek seema hoti hai.:approve:
Abhi ek gate aur baaki hai, jisme daiviya sakti se uska mukanla hona baaki hai😉
Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 
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