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Nice and superb update....
Nice update....
Bas me yahi nahi chahti thi. Par muje pata tha ki yahi hone vala hai. Par fir bhi mene hint di thi ki sayad skipt me badlav ho jae. Par honi ko kon tal sakta hai. Nahi to kahani ka vo kissa banta hi kese. Amezing.
Nice update....
Nice ending of a thriller story...
Exactly.
Kya baat bhai ji adhbhut lekhni ke sath kahani ka shandar Lajawab Jabardast superb mast ekdum dhasu samapti![]()
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Pehla hissa bus poora padni hogi
Koi Baat nahi Raj_sharma Bhai,
Aap apni sehat ka khyal rakho............jlad hi tandurust hokar likhna shuru karo Bhai
Bohot hi lejed or saandar khani ....ye khani kuch hat ke thi ...last story jo tumhari wo thibpyar ki or aachi bhi thibut usko full padhke pta laga tum romnce itna aacha na likh paye but ha tumne ye khani bakhubi aache tarike se likhi 5 6 update ka soche 33 updates likhna choti baat to nahi h
so again congratulations for the story ending
Is "Cold Night" mein Garam karne waala material hai ya nahi.![]()
पंडित जी , आप के इस अंतिम अपडेट ने हमे निराश किया । कानूनन भी और सामाजिक नजरिए से भी ।
मायादास सिर्फ और सिर्फ एक मोहरा था , रियल खिलाड़ी शंकर साहब थे । जिस व्यक्ति ने साजिश रची , जिस व्यक्ति का सबसे अधिक फायदा था , जिस व्यक्ति की वजह से कहानी के नायक की जिंदगी तबाह हो गई - वह व्यक्ति सरकारी गवाह के बेहूदा नियम के नाम पर पाक साफ बच निकला ।
यह मजाक नही था तो फिर क्या था !
रोमेश सर को इमानदार होने की सजा मिली । रोमेश सर को एक अच्छे हसबैंड होने का खामियाज़ा भुगतना पड़ा ।
रोमेश सर को एक निःस्वार्थ दोस्त होने का फल प्राप्त हुआ ।
और शंकर साहब को उनके पाप और हर गलत कर्म के लिए पारितोषिक प्राप्त हुआ ।
कम से कम फिल्म या कोई स्टोरी से ऐसी उम्मीद एक रीडर या दर्शक अपेक्षा नही करता । भले ही रियल लाइफ मे ऐसी घटनाएं आम होती आई हों ।
जिस कागज की नाव को डूब जाना चाहिए था , उसे आपने साहिल तक पहुंचा दिया ।
वैसे आपने बहुत ही खूबसूरत कहानी लिखी । इमोशंस और थ्रिलर बहुत अच्छे तरह से प्रदर्शित किया । लेकिन अंत मे कहीं न कहीं कुछ निराश कर दिया । यह निराश सिर्फ क्लाइमेक्स पर था ।
खुबसूरत कहानी राज भाई ।
ab hoga kuch....suspense vana rahe itna
बोहोत -बोहोत आभार मित्रबहुत अच्छी शुरुआत है भाई।
आशा है कि कहानी रोचक रहेगी। ऑल द बेस्ट
अभी कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। दो तीन और अपडेट के बाद ही कुछ लिख सकूंगा![]()
वाओ... एक के बाद एक धमाकेदार टाइटल. पहला दिल्ली वाला किस्सा जो आप की साफ सरल सोच दर्षा रहा था. उसके बाद रोमांटिक स्टोरी. एक फीलिंग थी. जो ईमानदारी से अपने शब्दो मे पेश की. तब कुछ पकड़ मुजे ढीली लगी.कैसै हो दोस्तों? मैं आपका अपना राज शर्मा,आपके सामने जल्द ही एक कहानी ले कर आने वाला हूं, जिसमे होगा रहस्य, रोमांच, मिस्ट्री, और एसे सवाल जो आज तक लोगों के सर का दर्द बने हुए है।।
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Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....#-1
22 दिसम्बर 2001, शनिवार, 22:00; न्यूयार्क शहर, अमेरिका !!
“हैलो मारथा !“ माइकल ने दरवाजे से प्रवेश करते हुए, अपनी पत्नी मारथा कोसंबोधित किया -
“पैकिंग पूरी हुई कि नहीं ? याद है ना कल ही हमें शिप से सिडनी जाना है।“
मारथा ने पहले एक नजर अपनी सो रही बेटी शैफाली पर डाली और फिर मुंह पर उंगली रखकर, माइकल से धीरे बोलने का इशारा किया -
“श् ऽऽऽऽऽ शैफाली, अभी - अभी सोई है, जरा धीरे बोलिए।“
माइकल, मारथा का इशारा समझ गया। इस बार उसकी आवाज धीमी थी –
“मैं तुमसे पैकिंग के बारे में पूछ रहा था।“
“अधिकतर पैकिंग हो चुकी है, बस शैफाली और ब्रूनो का ही कुछ सामान बचा हुआ है।“ मारथा ने धीमी आवाज में माइकल को जवाब दिया।
उधर ब्रूनो, माइकल की आवाज सुन, पूंछ हिलाता हुआ माइकल के पास
आकर बैठ गया । माइकल ने ब्रूनो के सिर पर हाथ फेरा और फिर मारथा से मुखातिब हुआ-
“ये तो अलबर्ट सर ने ब्रूनो के लिए 'सुप्रीम' पर व्यवस्था करवा दी, नहीं तो उस शिप पर जानवर को ले जाना मना है और ब्रूनो को छोड़कर शैफाली कभी नहीं जाती।“
“जाना भी नहीं चाहिए।“ मारथा ने मुस्कुरा कर ब्रूनो की तरफ देखते हुए कहा -
“शैफाली खुद भी छोटी थी, जब आप ब्रूनो को लाए। देखते ही देखते ये शैफाली से कितना घुल-मिल गया । इसके साथ रहते हुए तो शैफाली को अपने अंधेपन का भी एहसास नहीं होता ।“
ब्रूनो फिर खुशी से पूंछ हिलाने लगा । मानो उसे सब समझ आ गया हो।
“अलबर्ट __________सर, कॉलेज में मेरे प्रो फेसर थे। मैं उनका सबसे फेवरेट स्टूडेंट था ।“
माइकल ने पुनः बोलना शुरू किया - “जैसे ही मुझे पता चला कि वो भी न्यूयार्क से सिडनी जा रहे हैं, तो मैं अपने को रोक न पाया । इसीलिए मैं भी उनके साथ इसी शिप से जाना चाहता हूं।“
“मगर ये सफर 65 दिनों का है।“ मारथा ने थोड़ा चिंतित स्वर में कहा–
“क्या 2 महीने तक हम लोग इस सफर में बोर नहीं हो जाएंगे।“
“अरे, यही तो खास बात होती है शिप की । 2 महीने तक सभी झंझटों से
दूऱ........। कितना मजा आएगा ।“ माइकल ने उत्साहित होकर कहा –
“और ये भी तो सोचो, कि अलबर्ट सर को भी टाइम मिल जाएगा, शैफाली के साथ रहने का । वो जरूर इसकी परेशानियों को दूर करेंगे।“
इससे पहले कि मारथा कुछ और कह पाती । ब्रूनो की “कूं-कूं“ की आवाज ने उनका ध्यान भंग कि या।
ब्रूनो, सो रही शैफाली के पास खड़ा था और शैफाली को बहुत ध्यान से देख रहा था ।
दोनों की ही नजर अब शैफाली पर थी । जो बिस्तर पर सोते हुए कुछ अजीब से करवट बदल रही थी । साथ ही साथ वह कुछ बुदबुदा रही थी । माइकल और मारथा तेजी से शैफाली की ओर भागे। मारथा ने शैफाली को हिलाना शुरू कर दिया । पर वह बिल्कुल बेसुध थी ।
शैफाली अभी भी नींद में बड़बड़ा रही थी । पर अब वो आवाजें, माइकल व मारथा को साफ सुनाई दे रहीं थीं –
“अंधेरा ........ लहरें ......... रोशनी ........ फायर
............ लाम ....... कीड़े ........ द्वीप ..... ।“
मारथा , शैफाली की बड़बड़ाहट सुनकर अब बहुत घबरा गई थी । उसने तेजी से शैफाली को हिलाना शुरू कर दिया। अचानक शैफाली झटके से उठ गई।
“क्या हुआ मॉम? आप मुझे हिला क्यों रहीं हैं?“ शैफाली ने अपनी नीली - नीली आंखें चमकाते हुए कहा ।
“तुम शायद फिर से सपना देख रही थी ।“ माइकल ने व्यग्र स्वर में कहा।
“आप ठीक कह रहे हैं डैड। मैं कुछ देख तो रही थी, पर मुझे कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा ।“ शैफाली ने कहा ।
“कोई बात नहीं बेटी, आप सो जाओ“ मारथा ने गहरी सांस लेते हुए कहा -
“परेशान होने की जरूरत नहीं है।“
शैफाली दोबारा से लेट गई। माइकल व मारथा अब शैफाली से दूर हट गए थे।
“ये कैसे संभव है मारथा ?“ माइकल ने दबी आवाज में कहा-
“शैफाली तो जन्म से अंधी है, फिर इसे सपने कैसे आ सकते हैं। हर महीने ये ऐसे ही सपने देखकर बड़बड़ाती है।“
“आप परेशान मत हो माइकल।“ मारथा ने गहरी साँस लेते हुए कहा -
“माना कि जन्म से अंधे व्यक्ति सपने नहीं देख सकते, पर अपनी शैफाली भी कहां नॉर्मल है। देखते नहीं हो वह मात्र 12 साल की उम्र में अंधी होकर भी, अपने सारे काम स्वयं करती है और अजीब-अजीब सी पहेलियां बनाकर हल करती रहती है। शैफाली दूसरों से अलग है, बस।“
माइकल ने भी गहरी सांस छोड़ी और उठते हुए बोला - “चलो अच्छा ! तुम बाकी की पैकिंग करो , मैं भी मार्केट से कुछ जरूरी सामान लेकर आता हूं।“
23 दि सम्बर 2001, रविवार, 14:00; (“सुप्रीम “) न्यूयार्क का बंदरगाह छोड़कर मंथर गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था। बंदरगाह को छोड़े हुए उसे लगभग 5 घंटे बीत चुके थे। दिसंबर का ठंडा महीना था और सूर्य भी अपनी चमकती किरणें बिखेरता हुआ, आसमान से सागर की लहरों पर, अठखेलियां करती हुई, अपनी परछाई को देखकर खुश हो रहा था ।
मौसम ठंडा होने के कारण सूर्य की गुनगुनी धूप सभी को बड़ी अच्छी लग रही थी ।
'सुप्रीम' के डेक पर बहुत से यात्रियों का जमावड़ा लगा हुआ था । कोई डेक पर टहलकर, इस गुनगुनी धूप का मजा ले रहा था, तो कोई अपने इस खूबसूरत सफर और इस शानदार शिप के बारे में बातें कर रहा था।
सभी अपने-अपने काम में मशगूल थे। परंतु ऐलेक्स जो कि एक पोल से टेक लगाए हुए खड़ा था, बहुत देर से, दूर स्लीपिंग चेयर पर लेटी हुई एक इटैलियन लड़की को देख रहा था। वह लड़की दुनिया की नजरों से बेखबर, बड़ी बेफिक्री से लेटी हुई, सुनहरी धूप का मजा लेते हुए, एक किताब पढ़ रही थी ।
ऐलेक्स की निगाहें बार-बार कभी उस लड़की पर, तो कभी उसकी किताब पर पड़ रही थी । दोनों की बीच की दूरी बहुत अधिक ना होने के कारण उसे किताब का नाम बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था।
किताब का नाम ’वर्ल्ड फेमस बैंक रॉबरी ’ होने के कारण ना जाने, उसे क्यों बड़ा अटपटा सा महसूस हुआ।
उसे उस लड़की की तरफ देखते हुए ना जाने कितना समय बीत चुका था, परंतु उसकी नजर उधर से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थी। तभी एक आवाज ने उसका ध्यान भंग किया।
“हाय क्रिस्टी !“ एक दूसरी लड़की अपना हाथ हिलाते हुए उस इटैलियन लड़की की तरफ बढ़ी, जिसका नाम यकीनन क्रिस्टी था –
“व्हाट ए सरप्राइज, तुम इस तरह से यहां शिप पर मिलोगी, ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था ।“
“ओऽऽऽ हाय लॉरेन!“ क्रिस्टी ने चैंक कर किताब को नजरों के सामने से हटाते हुए, लॉरेन पर नजर डालते हुए, खुशी से जवाब दिया –
“तुम यहां शिप पर कैसे? अच्छा ये बताओ, कॉलेज से निकलकर तुमने क्या-क्या किया ? इतने साल तक तुम कहां थी ? और .......।“
“बस-बस.....!“ लॉरेन ने क्रिस्टी के मुंह को अपनी हथेली से बंद करते हुए कहा- “अब सारी बातें एक साथ पूछ डालोगी क्या? चलो चलते हैं, कॉफी पीते हैं, फिर आऽऽराऽऽम से एक दूसरे से सारी बातें पूछेंगे।“
“तुम ठीक कहती हो । हमें कहीं बैठकर आराम से बात करनी चाहिए और वैसे भी तुम मुझ से लगभग 3 साल बाद मिल रही हो । मुझे भी तो पता चले इन बीते हुए सालों में तुमने क्या-क्या तीर मारे?“
यह कहकर क्रिस्टी लगभग खींचती हुई सी, लॉरेन को लेकर रेस्टोरेंट की ओर बढ़ गई।
ऐलेक्स, जो कि अब तक दोनों सहेलियों की सारी बातें ध्यान से सुन रहा था,
उसकी निगाहें अब सिर्फ और सिर्फ उस किताब पर थी, जो कि अनजाने में ही शायद वहां पर छूट गई थी । वह धीरे धीरे चलता हुआ, उस स्थान पर पहुंचा, जहां पर वह किताब रखी हुई थी । अब उसने अपनी नजरें हवा में इधर-उधर घुमाई। जब उसे इस बात का विश्वास हो गया, कि इस समय किसी की नजरें उस पर नहीं है, तो उसने धीरे से झुक कर उस किताब को उठा लिया । वहीं पर खड़े-खड़े ऐलेक्स ने उस किताब का पहला पृष्ठ खोला । जिस पर अंग्रेजी में बहुत ही खूबसूरत राइटिंग में
’क्रिस्टीना जोंस’ लिखा था।
ऐलेक्स ने चुपचाप किताब को बंद किया और धीरे-धीरे उस स्थान से दूर चला गया। लेकिन जाते-जाते वह अपने होंठों ही होंठों में बुदबुदाया-
“क्रिस्टी !“
जारी रहेगा...…![]()
Thank you so much Siraj Patel bhauFor starting new story thread
Hope this story will touch our hearts
All the best
Thanks you parkas bhai for your valuable review and supportBahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....