krish1152
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lovely update. mahavriksh se vega ne sammohan shakti sikhi aur yugaka ko vriksh shakti mili jisse wo pedo se baat kar sakta hai unka dard mehsus kar sakta hai .#160.
स्वप्नतरु: (18 वर्ष पहले........जनवरी 1977, सामरा राज्य की पर्वत श्रृंखला)
“युगाका और वेगा ! आज तुम दोनों को, सामरा राज्य की परंपरा के हिसाब से, पूरा दिन महावृक्ष के पास ही व्यतीत करना होगा।” कलाट ने वेगा और युगाका को देखते हुए कहा- “बच्चों, ये ध्यान रखना कि इस परंपरा की शुरुआत हमारे पूर्वजों ने की थी, इसीलिये हम आज भी इसे निभा रहे हैं, पर आज का यह दिन तुम्हारे पूरे भविष्य का निर्धारण करेगा। इसलिये आज के इस दिन का सदुपयोग करना और महावृक्ष से जो कुछ भी सीखने को मिले, उसे मन लगा कर सीखना।”
“क्या बाबा, आप भी हमें पूरे दिन के लिये एक वृक्ष के पास छोड़कर जा रहे हैं।” युगाका ने मुंह बनाते हुए कहा- “यहां पर तो कुछ भी खेलने को नहीं है...अब हम क्या इस वृक्ष की पत्तियों के साथ खेलेंगे?”
“ऐसा नहीं कहते भाई, वृक्ष को बुरा लगेगा।” वेगा ने विशाल महावृक्ष को देखते हुए कहा।
“हाऽऽ हाऽऽ हाऽऽ! अरे बुद्धू, कहीं वृक्ष को भी बुरा लगता है।” युगाका ने वेगा पर हंसते हुए कहा- “तुम्हें तो बिल्कुल भी समझ नहीं है।”
कलाट ने मुस्कुराकर वेगा की ओर देखा और फिर महावृक्ष को प्रणाम कर उस स्थान से चला गया।
“बाबा तो गये, अब तू बता मेरे साथ खेलेगा कि नहीं?” युगाका ने वेगा को पकड़ते हुए कहा।
“पर भाई, हम तो यहां पर महावृक्ष से कुछ सीखने आये हैं, खेलने थोड़ी ना।” वेगा ने मासूमियत से जवाब दिया।
“सोच ले, अगर तू मेरे सा थ नहीं खेलेगा, तो मैं तुझे पीटूंगा और देख ले आज तो यहां तुझे कोई बचाने वाला भी नहीं है?” युगाका ने वेगा को डराते हुए कहा।
युगाका की बात सुन नन्हा वेगा सच में बहुत डर गया- “हां...हां खेलूंगा, पर यहां पर खेलने की कोई वस्तु तो है ही नहीं? फिर हम यहां कौन सा खेल खेलेंगे?” वेगा ने कहा।
“हम यहां पर लुका-छिपी खेलेंगे। उसके लिये हमें किसी चीज की जरुरत नहीं है और छिपने के लिये तो यहां पर बहुत से स्थान हैं।” युगाका ने वेगा को चारो ओर का क्षेत्र दिखाते हुए कहा।
“ठीक है भाई, पर पहली बार मैं छिपूंगा।” वेगा ने अपनी भोली जुबान से कहा।
“ठीक है, तो मैं 100 तक गिनती गिन कर आता हूं, तब तक तुम छिप जाओ, पर ध्यान रखना, यहां से दूर मत जाना।” युगाका ने अपने छोटे भाई के प्रति चिंता जताते हुए कहा।
युगाका की बात सुन वेगा ने हां में अपना सिर हिला दिया। युगाका अब कुछ दूरी पर जाकर, अपना मुंह घुमा जोर-जोर से गिनती गिनने लगा, इधर वेगा की निगाह चारो ओर छिपने की जगह ढूंढने लगी।
तभी वेगा को महावृक्ष के तने में एक बड़ी सी कोटर दिखाई दी, वह जल्दी-जल्दी उस कोटर में घुस गया।
“यह कोटर अभी तो यहां पर नहीं थी, यह इतनी जल्दी कैसे उत्पन्न हो गई?” वेगा ने अपने मन में कहा- “पर जो भी हो भाई, मुझे यहां आसानी से ढूंढ नहीं पायेंगे।”
तभी वेगा के देखते ही देखते उस कोटर का मुंह अपने आप बंद हो गया।
यह देख नन्हा वेगा घबरा गया। अब कोटर में धुप्प अंधेरा छा गया था।
तभी वेगा को एक बड़ा सा जुगनू कोटर के अंदर उड़ता हुआ दिखाई दिया। उत्सुकतावश वेगा उस टिमटिमाते जुगनू के पीछे-पीछे चल दिया।
उधीरे-धीरे वृक्ष का आकार अंदर से बड़ा होता जा रहा था।
तभी वेगा को वृक्ष के अंदर कुछ और जुगनू उड़ते हुए दिखाई दिये। उन सभी जुगनुओं से निकल रही रोशनी से, वह पूरा वृक्ष रोशन हो गया था।
उसी समय वेगा को वहां एक छोटा सा घोड़ों का रथ दिखाई दिया, जिस पर एक सैंटाक्लॉस की तरह का बूढ़ा बैठा था।
“मेरा नाम टोबो है बच्चे। क्या तुम मेरे साथ घूमने चलोगे?” टोबो ने कहा।
वेगा, टोबो की बातें सुनकर एक पल के लिये यह भी भूल गया कि उस वृक्ष में यह विचित्र दुनिया आयी कहां से?
“आप मुझे कहां घुमाओगे?” वेगा ने टोबो से पूछा।
“अरे यह महा वृक्ष की दुनिया बहुत बड़ी है। मैं तुम्हें इसमें सितारों के पास ले जा सकता हूं, मैं तुम्हें इसमें बोलने वाली नदी दिखा सकता हूं, सतरगा घोड़ा, जलपरी...किताबों की दुनिया....बहुत कुछ है इसमें
दिखाने को। तुम बताओ बच्चे, तुम क्या देखना चाहते हो इसमें?” टोबो ने नन्हें बच्चे को सपने दिखाते हुए कहा।
“क्या बताया आपने किताबों की दुनिया?...हां मुझे किताबों की दुनिया देखना है।” वेगा ने कहा।
इतनी सारी चीजों में वेगा ने उस चीज का चयन किया, जिसका चयन किसी भी बच्चे के लिये असंभव था।
“तो फिर ठीक है बच्चे, आओ मेरी घोड़ा गाड़ी में बैठ जाओ, मैं तुम्हें दिखाता हूं, इस ब्रह्मांड की सबसे बड़ी किताबों की दुनिया।” टोबो यह कहकर घोड़ा गाड़ी से उतरा और सहारा देकर वेगा को घोड़ा गाड़ी में बैठा दिया।
घोड़ा गाड़ी में एक नर्म सी सीट लगी थी, वेगा उसी पर आराम से बैठ गया।
वेगा को बैठते देख टोबो ने घोड़ा गाड़ी को आगे बढ़ा दिया।
“तुम्हारा नाम क्या है बच्चे?” टोबो ने वेगा से पूछा।
“मेरा नाम वेगा है।” वेगा ने चारो ओर के दृश्यों को देखते हुए कहा।
“वेगा.....वेगा का मतलब तेज होता है। तो फिर हम इतना धीमा क्यों जा रहे हैं?” यह कहकर टोबो ने घोड़ा गाड़ी की गति और बढ़ा दी।
घोड़ा गाड़ी अब किसी जंगल से होकर गुजर रही थी। घोड़ा गाड़ी की तेज गति के कारण वेगा को ठण्डी हवा के झोंके अपने चेहरे पर महसूस हो रहे थे।
वेगा जंगल में घूम रहे अनेक जीवों को ध्यान से देख रहा था।
कुछ देर के बाद वेगा को सामने समुद्र दिखाई दिया, यह देख वेगा ने चिल्ला कर कहा- “टोबो, सामने समुद्र है, घोड़ा गाड़ी को रोक लो।”
“चिंता मत करो वेगा, यह समुद्र हमारी घोड़ा गाड़ी को नहीं रोक सकता।“ यह कहते हुए टोबो ने घोड़ा गाड़ी को समुद्र के अंदर घुसा दिया।
समुद्र के अंदर पहुंचते ही घोड़ा गाड़ी का वह भाग जिसमें वेगा बैठा था, उसके चारो ओर, एक काँच की एक पारदर्शी दीवार बन गई।
वेगा उस पारदर्शी दीवार से पानी में घूम रही मछलियों को तैरते हुए देख रहा था, यह सब उसके लिये एक सपने की तरह से था।
तभी 4 डॉल्फिन मछलियां घोड़ा गाड़ी के साथ-साथ तैरने लगीं। बहुत ही अभूतपूर्व दृश्य था।
कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आ गई। जिस जगह पर घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आयी थी, उस जगह पर जमीन पर एक बड़ा सा इंद्रधनुष बना था।
समुद्र के बाहर आते ही घोड़ा गाड़ी की काँच की दीवार स्वतः गायब हो गई।
घोड़ा गाड़ी अब उस इंद्रधनुष पर चढ़ गई।
वेगा ने देखा कि बहुत सी परियां इंद्रधनुध के रंगों को पेंट-ब्रश की कूची से रंग रहीं थीं।
परियों ने वेगा को देखकर इस प्रकार अपना हाथ हिलाया, जैसे कि वह उसे पहले से जानती हों।
कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी इंद्रधनुष से उतरकर, एक बहुत ही खूबसूरत शहर में प्रविष्ठ हो गई।
यह शहर पुराने जमाने के किसी बड़े शहर सा प्रतीत हो रहा था।
घोड़ा गाड़ी अब साधारण तरीके से सड़क पर चल रही थी। सड़क पर चारो ओर बहुत से आदमी घूम रहे थे।
चारो ओर फुटपाथ पर दुकानें सजी थीं और घूमते हुए लोग उन दुकानों से खरीदारी कर रहे थे।
कुछ देर ऐसे ही सड़कों पर घूमने के बाद टोबो ने घोड़ा गाड़ी को एक बड़ी से भवन के बाहर रोक लिया।
उस भवन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- “किताब घर”
टोबो ने को चवान की जगह से उतरकर, वेगा को पिछली सीट से उतारा- “वेगा, यह है किताबों की दुनिया ...तुम यहां अंदर जा सकते हो। याद रखना किताब को पढ़ने के बाद, तुम सीधे बाहर आ जाना, मैं बाहर ही तुम्हारा इंतजार करुंगा।”
“ठीक है टोबो।” यह कहकर वेगा किताब घर के द्वार की ओर चल दिया।
वेगा को देख दरबान ने किताब घर के विशाल द्वार को खोल दिया। वेगा उस खुले द्वार से अंदर प्रविष्ठ हो गया।
अंदर पहुंचते ही वेगा की आँखें फटी की फटी रह गई।
अंदर से किताब घर बहुत बड़ा था। वहां चारो ओर किताबें ही किताबें दिखाई दे रहीं थीं।
तभी एक लाइब्रेरियन वेगा के सामने आकर खड़ा हो गया- “मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं छोटे मास्टर?”
पर लाइब्रेरियन पर नजर पड़ते ही वेगा हैरान हो गया, उस लाइब्रेरियन की शक्ल हूबहू टोबो से मिल रही थी।
“आप तो टोबो हो।” वेगा ने मुस्कुराते हुए कहा।
“नहीं , मैं टोबो नहीं हूं, बस मेरी शक्ल टोबो से मिलती है।” लाइब्रेरियन ने कहा।
“क्या आप दोनों जुड़वा भाई हो?” वेगा ने भोलेपन से पूछा।
“नहीं, ना तो हम जुड़वां है और ना ही एक दूसरे को जानते हैं....छोटे मास्टर...लगता है कि आप पहली बार ‘स्वप्नतरु’ की दुनिया में आये हैं?” लाइब्रेरियन ने कहा।
“ये स्वप्नतरु क्या है?” वेगा की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी।
“स्वप्न का अर्थ होता है सपने और तरु का अर्थ होता है वृक्ष। अर्थात महावृक्ष हमें जो सपने दिखाता है, उस सपनों की दुनिया को स्वप्नतरु कहतें हैं।” लाइब्रेरियन ने वेगा को समझाते हुए कहा।
“तो क्या महावृक्ष मुझे सपना दिखा रहे हैं?” वेगा के दिमाग में सवालों का पिटारा था, जो कि खुलता ही जा रहा था।
“नहीं, यह सपना नहीं है, पर महावृक्ष ने इस दुनिया को अपनी शक्ति से स्वप्न का आकार दिया है, इस दुनिया पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। महावृक्ष का कहना है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, इसलिये सीखते वक्त, समय का रुक जाना ही बेहतर है।”
लाइब्रेरियन ने कहा- “पर यह सब तुम अभी नहीं समझोगे वेगा। अभी तुम बहुत छोटे हो। धीरे-धीरे तुम सारी चीजों को समझ जाओगे।”
लाइब्रेरियन के शब्द वेगा की समझ में नहीं आ रहे थे। इसलिये वेगा ने विषय को बदलते हुए पूछा- “यहां पर कौन-कौन सी किताबें हैं?”
“हां, यह हुई ना काम वाली बात। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि यहां पर क्या-क्या है?” यह कह लाइब्रेरियन एक दिशा की ओर चल दिया।
वेगा लाइब्रेरियन के पीछे-पीछे चल दिया।
लाइब्रेरियन वेगा को लेकर एक अजीब सी कुर्सी के पास पहुंचा, उस कुर्सी पर एक धातु का हेलमेट रखा था और उस हेलमेट से निकले कुछ तार कुर्सी के सामने मौजूद एक स्क्रीन के साथ जुड़े हुए थे।
लाइब्रेरियन ने वेगा को उस कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।
वेगा के उस कुर्सी पर बैठते ही लाइब्रेरियन ने वेगा को हेलमेट पहना दिया।
अब वेगा के सामने वाली स्क्रीन पर कुछ अजीब सी सुनहरी लाइनें दिखाई देने लगीं।
कुछ देर के बाद स्क्रीन से एक बीप की आवाज आई और स्क्रीन पर अंग्रजी भाषा का ‘K’ लिखकर आने लगा।
यह देख लाइब्रेरियन ने वेगा के सिर से हेलमेट निकाल लिया और फिर उसे ले एक दूसरी दिशा की ओर चल दिया।
अब वेगा से रहा ना गया, वह चलते-चलते बोल उठा- “पहले तो आप मुझे अपना नाम बताएं, क्यों कि मैं समझ नहीं पा रहा कि आपको किस नाम से संबोधित करुं?”
“वाह! जो प्रश्न सबसे पहले पूछना चाहिये था, वो इतनी देर बाद पूछ रहे हो....चलो कोई बात नहीं, फिर भी मैं बता देता हूं....मेरा नाम ऑस्कर है।” ऑस्कर ने कहा।
“मिस्टर ऑस्कर मेरा नाम वेगा है... और मैं आपसे बताना चाहता हूं कि आपने भी अभी तक मेरा नाम नहीं पूछा था, तो गलती सिर्फ अकेले मेरी नहीं हुई। और हां मिस्टर ऑस्कर, पहले मुझे ये बताइये कि आपने मेरे सिर पर हेलमेट क्यों लगाया? स्क्रीन पर आने वाले उस ‘K’ अक्षर का क्या मतलब था? और अब आप मुझे लेकर कहां जा रहे हैं?”
“तुम जितना छोटे दिखते हो, उतना छोटे हो नहीं, छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने मुस्कुराते हुए कहा- “अच्छा चलो, तुम्हें बताता हूं...इस किताब-घर को ‘A’ से ‘Z’ तक अलग-अलग भागों में विभक्त किया गया है, जो कि यहां आने वाले लोगों की समझने और सीखने की शक्ति पर निर्भर करता है। हम उस हेलमेट के द्वारा आने वाले लोगों के, सीखने की क्षमता की जांच करते हैं और फिर वह हेलमेट हमें उस व्यक्ति को जिस विभाग में ले जाने की इजाजत देता है, हम उसे वहां ले जाते हैं। उसके बाद वहां वो जो सीखना चाहे, वो सीख सकता है।”
“अच्छा तो मेरे दिमाग का ग्रेड उस मशीन ने ‘K’ बताया है और अब आप मुझे ‘K’ सेक्शन की किताब पढ़ाने के लिये ले जा रहे हैं।” वेगा ने कहा।
“आप बिल्कुल सही समझे छोटे मास्टर।” यह कहकर ऑस्कर ने एक कमरे का द्वार खोला, जो कि अंदर से बहुत विशालकाय था, पर वहां एक भी किताब मौजूद नहीं थीं, वह कमरा पूरी तरह से खाली था।
वेगा उस कमरे को हैरानी से देखने लगा।
तभी ऑस्कर ने कमरे में मौजूद एक बटन को प्रेस कर दिया, उस बटन को प्रेस करते ही हवा में किताबों का एक समूह नजर आने लगा, जो कि हवा में पूरे कमरे में नाच रहा था।
“अब आप इनमें से कोई भी किताब सेलेक्ट कर सकते हैं छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने वेगा से कहा।
वेगा अब उन किताबों के समूह को घूम-घूम कर देखने लगा, तभी वेगा की निगाह एक किताब पर पड़ी, जिस पर 2 आँखें बनीं हुईं थीं।
उस किताब का नाम था- ‘सम्मोहनास्त्र’। वेगा ने उस किताब को हवा से निकाल लिया।
वेगा के उस किताब को निकालते ही बाकी सारी किताबें गायब हो गईं।
“अच्छी पसंद है आपकी ।” ऑस्कर ने वेगा की तारीफ करते हुए कहा।
वेगा ने अब किताब को खोलने की चेष्टा की, पर वह किताब को खोल नहीं पाया- “मिस्टर ऑस्कर, यह किताब खुल क्यों नहीं रही है?”
“क्यों कि अभी तक आपने इस किताब का मूल्य नहीं चुकाया है। इसीलिये यह किताब खुल नहीं रही है।” ऑस्कर ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।
“मूल्य?....पर मेरे पास तो इस समय इसका मूल्य चुकाने के लिये धन है ही नहीं।” वेगा ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा- “पर आप कहोगे तो मैं बाबा से कह कर, आपको बहुत सारा धन दिला दूंगा।”
“इस पुस्तक की कीमत धन नहीं है छोटे मास्टर..स्वप्नतरु में धन का क्या काम? इस किताब की कीमत एक वचन है...कोई भी वचन जो तुम मुझे देना चाहो?” ऑस्कर के चेहरे पर यह कहते हुए मुस्कान बिखर गई।
“वचन!...बहुत अजीब सी कीमत है इस किताब की।” वेगा ने सोचते हुए कहा- “अच्छा ठीक है....मैं आपको वचन देता हूं कि मैं कभी भविष्य में, इस किताब से सीखने वाली कला का राज, किसी को नहीं बताऊंगा।”
“बहुत अच्छे....मैं यह वचन स्वीकार करता हूं।” ऑस्कर ने खुश होते हुए कहा- “अब तुम इस किताब को पढ़ सकते हो....पर ये ध्यान रहे वेगा कि जिस दिन तुम इस वचन को तोड़ोगे, तुम इस किताब सहित, इस स्वप्नतरु की सभी स्मृतियों को भूल जाओगे।” यह कहकर ऑस्कर उस कमरे से बाहर निकल गया।
अब वेगा ने उस किताब का पहला पन्ना खोल दिया, पहले पन्ने पर सफेद दाढ़ी वाले जादूगर सरीखे, एक बूढे़ का चित्र बना था, जिसके हाथ में एक जादू की छड़ी थी।
जैसे ही वेगा ने उस चित्र को छुआ, वह बूढ़ा उस चित्र से निकलकर बाहर आ गया।
“हां वेगा, क्या तुम सम्मोहन को सीखने के लिये तैयार हो ?” बूढ़े ने कहा।
“आप कौन हो और मेरा नाम कैसे जानते हो?” वेगा ने उस बूढ़े से पूछा।
“मैं ही तो हूं महावृक्ष।” बूढ़े ने कहा- “तुम मेरे ही स्वप्नतरु में तो मौजूद हो। चलो अब देर मत करो और किताब को छोड़कर मेरे सामने आ जाओ।”
वेगा महावृक्ष का यह रुप देखकर हैरान हो गया, पर वह उनका आदेश मान उनके सामने पहुंच गया।
“देखो वेगा, सम्मोहन के द्वारा हम किसी भी व्यक्ति के मन की बात को जान सकते हैं और उससे कोई भी कार्य करा सकते हैं। सम्मोहन को 3 तरह से किया जा सकता है....आँखों के द्वारा, आवाज के माध्यम से और किसी को छूकर।
"यह हमारी विद्या पर निर्भर करता है कि हम किसी व्यक्ति को कितनी देर तक सम्मोहित कर सकते हैं। सम्मोहन के दौरान उस व्यक्ति के मस्तिष्क का नियंत्रण, तुम्हारे हाथ में आ जायेगा, तुम उसके मस्तिष्क में झांककर, कोई भी बीती घटना को देख सकते हो, उसके विचारों को पढ़ सकते हो, यहां तक कि उसकी स्मृतियों में बदलाव भी कर सकते हो। जब सम्मोहन समाप्त होगा, तो उसे यह नहीं पता चलेगा कि कोई उसके मस्तिष्क में था, उसे वह नये विचार स्वयं के प्रतीत होंगे। तो क्या अब तुम तैयार हो सम्मोहन को सीखने के लिये?”
“क्या यह सम्मोहन सिर्फ मनुष्यों पर किया जा सकता है?” वेगा ने पूछा।
“हां, शुरु में यह प्रयोग तुम सिर्फ मनुष्यों पर ही कर सकते हो...पर धीरे-धीरे तुम्हारी शक्तियां बढ़ती जायेंगी और फिर एक दिन तुम किसी भी जीवित प्राणी को सम्मोहित कर सकोगे।” महावृक्ष ने कहा।
“ठीक है, अब मैं तैयार हूं, सम्मोहन सीखने के लिये।”
वेगा के यह कहते ही महावृक्ष ने वेगा को सम्मोहन विद्या सिखाना शुरु कर दिया।
वेगा को पूर्ण सम्मोहन सीखने में, स्वप्नतरु के समय के हिसाब से 3 दिन का समय लगा।
आखिरकार वेगा पूरी तरह से सम्मोहन में पारंगत हो गया।
“अब तुम पूरी तरह से सम्मोहन की तीनो विधाओं में पारंगत हो चुके हो वेगा।” महावृक्ष ने कहा- “अब तुम इस दुनिया से, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ।”
“जो आज्ञा महावृक्ष।” यह कहकर वेगा, किताब घर से बाहर निकलकर टोबो के पास आ गया।
“मुझे ज्यादा देर तो नहीं हुई मिस्टर टोबो?” वेगा ने टोबो से कहा।
“नहीं-नहीं... यह तो काफी कम समय था।” टोबो ने कहा- “चलिये मैं आपको वापस ले चलता हूं।” यह कहकर टोबो ने वेगा को फिर से घोड़ा गाड़ी पर बैठाया और वापस उसी रास्ते पर चल दिया, जिधर से आया था।
कुछ ही देर में टोबो ने वेगा को उसी जुगनू वाले स्थान पर छोड़ दिया।
“अब यहां से तुम्हें स्वयं वापस जाना होगा वेगा।” यह कहकर टोबो ने विदाई के अंदाज में वेगा को हाथ हिलाया और घोड़ा गाड़ी लेकर एक दिशा की ओर चला गया।
वेगा जुगनुओं की रोशनी में वापस महावृक्ष की उसी कोटर के पास पहुंच गया, जहां से उसने यह यात्रा शुरु की थी।
कोटर का द्वार इस समय खुला हुआ था, वेगा ने डरते-डरते बाहर अपने कदम निकाले।
उसे लग रहा था कि बाहर बाबा और युगाका उसे 3 दिन से ढूंढ रहे होंगे।
पर जैसे ही वेगा बाहर निकला, उसे युगाका ने पकड़ लिया- “अरे बुद्धू, तू तो अभी तक छिप ही नहीं पाया, मैंने तो अपनी गिनती पूरी भी कर ली।....चल रहने दे...तेरे बस का यह खेल भी नहीं है। चल कुछ और खेलते हैं।” यह कह युगाका, वेगा का हाथ पकड़ उसे एक दिशा की ओर लेकर चल दिया।
पर वेगा इस समय स्वप्नतरु के समयजाल में उलझा था क्यों कि स्वप्नतरु का 3 दिन बाहर के 3 मिनट से भी कम था।
बहरहाल जो भी हो वेगा अपने इस नये ज्ञान से खुश था।
युगाका, वेगा को महावृक्ष की छांव में लाकर, दौड़-दौड़ कर पकड़ने वाला खेल खेलने लगा।
धीरे-धीरे वेगा को भी इस खेल में मजा आने लगा।
तभी दौड़ते समय एका एक युगाका का पैर एक छोटे से वृक्ष से उलझ गया, जिसकी वजह से युगाका लड़खड़ा कर गिर गया।
तेज से गिरने की वजह से युगाका के एक हाथ की कोहनी छिल गई और उससे खून बहने लगा।
यह देख युगाका गुस्से से उठा और उसने 2 पत्थरों की मदद से आग जलाकर, उस पेड़ को आग लगा दी।
“मुझे गिरायेगा...अब देख तू कैसे जलेगा।” युगाका गुस्से में चिल्ला रहा था।
थोड़ी देर सुलगने के बाद अब वह छोटा पेड़ धू-धू कर जलने लगा।
“यह आपने क्या किया भाई? आपको तो थोड़ी सी ही चोट लगी थी, पर आपने तो पूरा पेड़ ही जला दिया...उस पेड़ ने आपको जानबूझकर थोड़ी ना गिराया था, वह अपने स्थान पर लगा था, आपने ही उसे देखा नहीं.....ये आपने सही नहीं किया भाई।” वेगा अपने भाई के इस कृत्य से बहुत नाराज हो गया।
पर युगाका अभी भी हंसते हुए उस पेड़ को देख रहा था।
तभी महावृक्ष की शाखाएं अपने आप हिलनें लगीं और इसी के साथ युगाका के मुंह से चीख निकल गई।
“आह बचाओ वेगा, मेरा शरीर जल रहा है।” युगाका ने दर्द भरी आवाज में वेगा को पुकारा।
वेगा, युगाका को चीखते देख घबरा गया। उसने बहुत ध्यान से युगाका के शरीर को देखा।
युगाका के शरीर पर आग कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, पर जलने के निशान युगाका के शरीर पर स्पष्ट दिख रहे थे।
“यह कैसा चमत्कार है? युगाका का शरीर अपने आप कैसे जल रहा है?” वेगा मन ही मन बड़बड़ाया।
तभी वेगा की नजर उस जलते हुए पेड़ पर पड़ी, इसके बाद वेगा को महावृक्ष की शाखाएं हिलती हुईं दिखाई दीं।
एक पल में वेगा को समझ में आ गया कि युगाका को यह सजा महावृक्ष ने दी है।
“भाई...महावृक्ष से क्षमा मांग लो, वो तुम्हें ठीक कर देंगे। उन्होंने ही तुम्हें इस पेड़ को आग लगाने की सजा दी है।” वेगा ने चीखते हुए युगाका से कहा।
वेगा की बात सुन युगाका चीखते हुए महावृक्ष के पास आकर बैठ गया।
युगाका ने महावृक्ष के सामने अपने हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाकर कहा - “मुझे क्षमा कर दीजिये महावृक्ष, मुझसे अंजाने में ही गलती हो गई ....मेरे शरीर की जलन को खत्म करिये महावृक्ष, नहीं तो मैं इस जलन से मर जाऊंगा।”
तभी वातावरण में महावृक्ष की आवाज गूंजी- “युगाका, तुम्हें सबसे पहले ये समझना होगा कि वृक्षों में भी जान होती है, वह भी तुम्हारी तरह महसूस करते हैं...उन्हें भी दर्द होता है। क्या तुम्हें पता है? कि अगर वृक्ष पृथ्वी पर ना होते, तो पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।
"आज भी आकाशगंगा में जितने ग्रह उजाड़ पड़े हैं या जहां पर जीवन नहीं है, वह सभी वृक्षों के कारण है। ब्रह्मांड के हर जीव को जीने के लिये वृक्ष की जरुरत होती है। पृथ्वी का सारा ऑक्सीजन वृक्षों के कारण ही है, इसलिये जब तुमने उस छोटे से वृक्ष को जलाया तो मैंने सिर्फ उस वृक्ष की ऊर्जा को तुम्हारे शरीर के साथ जोड़ दिया, अब जितना दर्द उसे वृक्ष को होगा, उतना ही दर्द तुम स्वयं के शरीर पर भी महसूस करोगे।”
यह सुनकर युगाका ने तुरंत वहां रखी पानी से भरी एक मटकी का सारा पानी उस पेड़ पर डाल दिया।
ऐसा करते ही उस पेड़ पर लगी आग बुझ गई और इसी के साथ युगाका के शरीर की जलन भी खत्म हो गई।
युगाका अब महावृक्ष के कहे शब्दों का सार समझ गया था।
वह एक बार फिर महावृक्ष के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- “हे महावृक्ष मैं आपके कथनों को भली-भांति समझ गया। अब मैं कभी भी वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाऊंगा, बल्कि आज और अभी से ही मैं सभी वृक्षों को, अपने दोस्त के समान समझूंगा और उनकी सुरक्षा करुंगा। मैं ये आपको वचन देता हूं।”
“बहुत अच्छे युगाका, अच्छा हुआ कि तुमने स्वयं मेरे कथन का अभिप्राय समझ लिया। मैं आज से तुम्हें वृक्षशक्ति प्रदान करता हूं.... इस वृक्षशक्ति के माध्यम से तुम सभी वृक्षों के दर्द को समझ सकोगे, उनसे बातें कर सकोगे और उन्हें एक दोस्त की भांति महसूस कर सकोगे। पर अपने वचन का ध्यान रखना, अगर तुमने अपना वचन तोड़ा तो यह वृक्ष शक्ति भी तुम्हारे पास से चली जायेगी।”
इसी के साथ महावृक्ष के शरीर से हल्के हरे रंग की किरणें निकलीं और युगाका के शरीर में समा गईं।
युगाका अब महावृक्ष के सामने से उठा और उस नन्हें पेड़ के पास पहुंच गया।
युगाका ने उस नन्हें पेड़ को उठाया और अपने हाथ से जमीन में एक गड्ढा कर, उस पेड़ की जड़ों को गड्ढे में डालकर उसे फिर से रोपित कर दिया। इसके बाद युगाका ने मटकी में बचे हुए जरा से पानी को उस पेड़ की जड़ में डाल दिया।
अब वह पेड़ और युगाका दोनों ही बेहतर महसूस कर रहे थे।
इसी के साथ युगाका के शरीर पर जलने के निशान भी गायब हो गये।
युगाका ने पेड़ को धीरे से सहलाया और उठकर खड़ा हो गया।
तभी कलाट वहां पहुंच गया- “चलो बच्चों, तुम्हारा समय अब पूरा हो गया। उम्मीद करता हूं कि तुमने महावृक्ष से कुछ अच्छा अवश्य सीखा होगा।”
“मैंने तो बहुत कुछ सीखा, पर यह वेगा बस दिन भर खेलता रहा, इसने कुछ नहीं सीखा बाबा।” युगाका ने कलाट से वेगा की शिकायत करते हुए कहा।
“कोई बात नहीं युगाका, कभी-कभी किसी-किसी की सीखी चीजें दिखाई नहीं देतीं, वह बस जिंदगी में सही समय पर काम आतीं हैं।”
कलाट के शब्दों का गूढ़ अर्थ था, जिसे युगाका तो नहीं समझ पाया, पर उन शब्दों को वेगा ने महसूस कर लिया था।
अब कलाट ने महावृक्ष को प्रणाम किया और दोनों बच्चों को वहां से लेकर महल की ओर चल दिया।
“बाबा, क्या आप भी अपने बचपन में ऐसे ही महावृक्ष के पास सीखने आये थे?” वेगा ने चलते-चलते कलाट से पूछा।
“हां बेटा, ये महावृक्ष हमारी सभी शक्तियों के स्रोत हैं। हम सभी ने इनसे कुछ ना कुछ सीखा है।” कलाट ने कहा।
“बाबा, आपने बचपन में इनसे क्या सीखा था?” वेगा ने कलाट से पूछा।
“उम्मीद करता हूं कि तुम वचन की कीमत आज समझ गये होगे।” यह कहकर कलाट ने घोड़ों का रथ आगे बढ़ा दिया।
पर कलाट की यह बात वेगा को स्वप्नतरु की याद दिला दी, उसने जाते हुए एक बार पलटकर महावृक्ष को देखा और फिर सम्मोहनास्त्र की यादों में खो गया।
जारी रहेगा_______![]()
romanchak update. chabiya paane ke liye bahut mehnat karni padi sabko .christi to marte marte bachi ,shefali ki chitiyo ki jaankari ki wajah se sab sambhav ho paya .#161.
चैपटर-7:
चींटीयों का संसार-2 (तिलिस्मा 3.12)
सुयश के जोश दिलाने के बाद शैफाली फिर से एक नये तरीके से समस्या को समझने की कोशिश करने लगी।
काफी देर सोचने के बाद अचानक शैफाली खड़ी हुई और दूसरे कंटेनर में जा घुसी।
शैफाली ने अब वहां पड़ी, लाल रंग की गेंद को हाथ में उठाकर देखा, वह काफी चिपचिपी थी।
शैफाली एक लाल रंग की गेंद लेकर बाहर आ गई।
“ऐलेक्स भैया लीफ कटर चींटीयों को पानी से वापस बुला लो।” शैफाली ने कहा।
ऐलेक्स ने शैफाली की बात सुन कोई सवाल नहीं किया और सभी लीफ कटर चींटीयों को वापस वहां बुला लिया।
शैफाली ने एक लीफ कटर चींटी के सामने उस लाल रंग की गेंद को रखा।
उस लीफ कटर चींटी ने लाल रंग की गेंद को तुरंत उठा लिया, पर उसने उस गेंद का कुछ किया नहीं। यह देख शैफाली की आँखों की चमक बढ़ गई।
“कैप्टेन अंकल, सभी लाल रंग की गेंदो को आप लोग लीफ कटर चींटीयों को दे दीजिये, फिर मैं आगे बताती हूं।” शैफाली ने कहा।
शैफाली के कहे अनुसार सभी लाल गेंदों को लीफ कटर चींटीयों को दे दिया गया।
यह देख शैफाली ने ऐलेक्स को पुनः सभी लीफ कटर चींटीयों को नदी में मौजूद चाबी के पास भेजने को कहा।
ऐलेक्स ने रिमोट के द्वारा सभी लीफ कटर चींटीयों को वापस नदी में भेज दिया।
सभी चींटीयां धीरे-धीरे आगे बढ़ रहीं थीं, परंतु जैसे ही वह सभी चींटीयां नदी वाली चाबी के पास पहुंची, आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी ने फिर से, उन सभी पर आक्रमण कर दिया।
यह देख शैफाली ने ऐलेक्स को रिमोट पर लगा नीला बटन दबाने को कहा।
ऐलेक्स ने जैसे ही नीला बटन दबाया, हर लीफ कटर चींटी ने, अपने मुंह में पकड़ी लाल रंग की गेंद को, आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी के शरीर पर चिपकाने लगी।
कुछ ही देर में आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी पूरी तरह से लाल रंग की गेंद से ढक गई। अब वह ऐसे छटपटा रही थी, जैसे कि उसे साँस ही ना मिल रही हो।
कुछ ही देर में आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी का शरीर शिथिल पड़ गया।
यह देखकर लीफ कटर चींटीयों ने नदी में मौजूद चाबी को उठाया और वापस नदी से बाहर आ गईं।
शैफाली ने नदी वाली चाबी को लीफ कटर चींटीयों से ले लिया।
“दूसरी चाबी तो मिल गई, पर यह बताओ शैफाली की तुमने कैसे जाना कि आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी इस लाल रंग की गेंद से मारी जायेगी?” सुयश ने मुस्कुराते हुए शैफाली से पूछा।
“कैप्टेन अंकल, आपको पता नहीं होगा, पर चींटीयों के अंदर साँस लेने के लिये फेफड़े नहीं पाये जाते, इनके शरीर पर बहुत से छोटे-छोटे छिद्र होतें हैं, सभी चींटीयां उसी छिद्र से ही साँस लेती हैं। इसी विशेषता के कारण चींटीयां पूरा दिन पानी के अंदर रह सकती हैं। अब मैंने बहुत सोचा कि पानी के अंदर आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी को कैसे मारा जाये, तभी मुझे उस लाल रंग की चिपचिपी गेंद का ख्याल आया।
"एक तो उस लाल गेंद का अभी तक कोई प्रयोग भी नहीं हुआ था, इसलिये मुझे लगा कि अगर सभी लीफ कटर चींटीयां, उस लाल रंग की गेंद को आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी के शरीर पर चिपका दें तो वह साँस नहीं ले पायेगी और मारी जायेगी।”
शैफाली की बात सुन सभी प्रभावित हो गये।
अब शैफाली ने इस चाबी को भी द्वार में लगाकर घुमा दिया। दरवाजे का एक खटका और घूम गया।
उधर सभी लीफ कटर चींटीयां अपना कार्य खत्म करके पिघलने लगीं।
कुछ ही देर में वहां पर, अब एक नीले रंग का द्रव दिखाई दे रहा था, यह देख शैफाली की आँखें थोड़ी सिकुड़ सी गईं, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं।
“कैप्टेन, अब इस रिमोट से नीला बटन भी गायब हो गया है और उसकी जगह पर काले रंग का एक बटन दिखाई दे रहा है।” ऐलेक्स ने सुयश से कहा।
“तौफीक जरा देखना तीसरे कंटेनर में फिर से नयी चींटीयां आ गईं हैं क्या?” सुयश ने तौफीक से कहा।
तौफीक ने तीसरे कंटेनर में झांक कर देखा और फिर बोल उठा- “हां कैप्टेन....इस बार काले रंग की चींटी हैं। पर यह एक ही है और इसके पंख भी हैं।”
तौफीक की बात सुन शैफाली ने भी कंटेनर में झांक कर देखा।
“यह नर चींटी हैं।” शैफाली ने फिर सबको बताते हुए कहा- “रानी चींटीयों के अलावा सिर्फ नर चींटी के ही पंख पाये जाते हैं।”
“इसका मतलब इस बार तीसरी चाबी कहीं हवा में है।” यह कहकर सुयश, सिर उठाकर आसमान की ओर देखने लगा।
आसमान तो नार्मल था, पर आसमान में मौजूद एक सफेद रंग का बादल अपनी जगह पर स्थिर था।
“मुझे लगता है कि तीसरी चाबी उस बादल में है?” सुयश ने बादल की ओर इशारा करते हुए कहा- “क्यों कि आसमान में और कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसमें चाबी मौजूद हो और वह बादल बिल्कुल भी हिल नहीं रहा है। ऐलेक्स तुम इस नर चींटी को उस बादल में भेजकर देखो।”
सुयश की बात सुन तौफीक ने नीली रंग की गेंद को खिला कर नर चींटी को सक्रिय कर दिया।
ऐलेक्स ने नर चींटी को आसमान में उड़ा दिया। अब सबकी निगाह उस रिमोट की स्क्रीन पर थी।
ऐलेक्स ने सावधानी वश नर चींटी को अभी बादल पर नहीं उतारा, वह पहले एक बार बादल को चेक करना चाहता था।
ऐलेक्स को बादलों के बीच में एक पत्थर के टुकड़े पर रखी चाबी दिखाई दी, पर उसके आस-पास कोई भी खतरा नजर नहीं आया।
यह देख ऐलेक्स ने रिमोट पर मौजूद काला बटन दबा दिया, बटन के दबाते ही नर चींटी ने उड़ते हुए चाबी को उठा लिया और नीचे आकर ऐलेक्स के हवाले कर दिया।
“अरे वाह, यह चाबी तो बहुत आसानी से मिल गई, मुझे तो लगा था कि बादलों के ऊपर कोई बड़ा खतरा होगा?” जेनिथ ने मुस्कुराते हुए कहा।
सभी चाबी लेकर एक बार फिर द्वार की ओर बढ़ गये, पर किसी की नजर उस बादल से कूदने वाली एक बड़ी सी चींटी की ओर नहीं गई।
वह चींटी आकार में 10 फुट की थी। वह चींटी धीरे-धीरे सभी के पीछे बढने लगी।
ऐलेक्स ने तीसरी चाबी को जैसे ही द्वार में फंसाने की कोशिश की, तभी पीछे से आ रही चींटी ने तेजी से सबसे पीछे मौजूद क्रिस्टी के पैर में काट लिया।
चींटी ने क्रिस्टी को इतना तेजी से काटा कि क्रिस्टी के मुंह से चीख निकल गई। क्रिस्टी की चीख सुन सभी पी छे पलट कर देखने लगे।
सभी की निगाह पीछे जमीन पर गिरकर तड़पती क्रिस्टी पर पड़ी।
सुयश की नजर तेजी से चारो ओर घूमी, अब उसे क्रिस्टी के पीछे खड़ी, वह विशाल चींटी दिखाई दे गई।
“माई गॉड, ये तो बुलेट चींटी है।” शैफाली ने उस चींटी को देखते हुए कहा- “इसका डंक विश्व में सबसे ज्यादा दर्दनाक होता है, यह तो अगर टैरेन्टूला मकड़ी को भी काट ले, तो उसे भी पैरालाइज हो जाता है।
इससे सभी को बचना होगा।”
ऐलेक्स ने तुरंत तीसरी चाबी को अपनी जेब के हवाले कर, चींटी की बिना परवाह किये भागकर, क्रिस्टी के पास पहुंच गया और क्रिस्टी का सिर अपनी गोद में रखकर, उसके पैर को अपनी टी-शर्ट से कसकर बांध दिया।
क्रिस्टी का तड़पना अभी भी जारी था।
तौफीक ने अब पास पड़ा भाला उठा लिया और उस चींटी के सामने इस प्रकार खड़ा हो गया कि चींटी ऐलेक्स तक ना पहुंच पाये।
जेनिथ और शैफाली भी क्रिस्टी के पास पहुंच गईं और उसकी हिम्मत बढ़ाने लगीं।
तभी ऐलेक्स ने धीरे से क्रिस्टी का सिर जेनिथ की गोद में रखा और गुस्से से खड़ा होकर बुलेट चींटी को घूरने लगा।
तभी ऐलेक्स की नजर उस नर चींटी पर पड़ी, जो कि अभी भी वहीं उड़ रही थी।
एक पल के लिये ऐलेक्स ने इधर-उधर देखा। अब ऐलेक्स की नजर उस पहले वाले बंद कंटेनर पर गई।
ऐलेक्स जानता था कि चींटी अपने भार से 50 गुना से भी ज्यादा वजन उठा सकती है।
अब उसने रिमोट से नर चींटी को नियंत्रित करते हुए, उससे वह भारी सा कंटेनर उठवा लिया।
उधर तौफीक लगातार भाले से बुलेट चींटी को सभी से दूर रखे था।
तभी बुलेट चींटी ने अपने क्रिटर्स से भाले को पकड़ दूर फेंक दिया, अब वह खूनी नजरों से घूरती हुई तौफीक की ओर बढ़ने लगी।
तौफीक ने अब अपने पास रखा चाकू निकाल लिया था, पर जब इतने नुकीले भाले से बुलेट चींटी का कुछ नहीं हुआ तो भला वह छोटा सा चाकू क्या करता ?
इस समय बुलेट चींटी का पूरा ध्यान तौफीक की ओर था, तभी ऐलेक्स ने मौके का फायदा उठा करके नर चींटी के द्वारा पकड़ा, भारी कंटेनर उस बुलेट चींटी के ऊपर गिरा दिया।
बुलेट चींटी उस भारी भरकम कंटेनर के नीचे बुरी तरह से दबकर मर गई। उसके शरीर से निकला हल्के पीले रंग का द्रव उस पूरी जगह पर फैल गया।
आखिरकार ऐलेक्स ने क्रिस्टी का बदला ले लिया। बुलेट चींटी के मरते ही नर चींटी के साथ वह रिमोट भी ऐलेक्स के हाथ से गायब हो गया।
शायद दोनों का ही काम अब पूरा हो गया था। ऐलेक्स अब भागकर वापस क्रिस्टी के पास आ गया।
ऐलेक्स की आँखों से अब आँसू निकल रहे थे।
यह देख क्रिस्टी ने कैसे भी करके अपने दर्द पर काबू पाते हुए कहा- “अरे पगले....दर्द तो मुझे हो रहा है, तू क्यों रो रहा है?”
“तुम मुझे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकती क्रिस्टी।” ऐलेक्स ने क्रिस्टी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से छूते हुए कहा।
अब क्रिस्टी की भी आँखों से आँसू निकलने लगे थे।
शैफाली इस मर्मस्पर्शी दृश्य को देख नहीं पा रही थी, इसलिये वह वहां से उठकर कुछ दूर आ गई।
अब शैफाली की भी आँखों से क्रिस्टी के लिये आँसू बह निकले। उसे पता था कि क्रिस्टी अब नहीं बचेगी, क्यों कि उनके पास मौजूद फर्स्ट एड बॉक्स की दवाइयां भी खत्म हो गईं थीं।
तभी शैफाली की नजर उस ओर गई, जहां लीफ कटर चींटी पिघल गईं थीं। उसे देख अचानक शैफाली को कुछ याद आया।
वह भागकर उस स्थान पर पहुंच गई। उस स्थान पर लीफ कटर चींटी के मरने के बाद नीले रंग का द्रव बिखरा हुआ था।
शैफाली ने अपनी दोनों अंजुली को एक कर उसमें वह नीला द्रव जितना भर सकता था, भर लिया और भागकर वह क्रिस्टी के पास पहुंच गई।
“अब तुम्हें कुछ नहीं होगा क्रिस्टी दीदी।” शैफाली ने यह कहकर क्रिस्टी के पैर में उस जगह वह पूरा द्रव लगा दिया, जिस जगह बुलेट चींटी ने क्रिस्टी को काटा था।
सभी आश्चर्य से शैफाली की ओर देखने लगे।
“यह लीफ कटर चींटी के शरीर में पाया जाने वाला ‘एंटी बायोटिक’ है, यह हर प्रकार के जहर को काटने में सक्षम है, शायद इसी वजह से लीफ कटर चींटीयों का काम खत्म हो जाने के बाद भी, वह गायब ना
होकर पिघल गईं थीं। अब क्रिस्टी दीदी कुछ ही देर में सही हो जायेंगी।” शैफाली ने सभी को समझाते हुए कहा।
यह सुनकर ऐलेक्स ने शैफाली को गले से लगा लिया। यह बहुत ही भावनात्मक अंदाज था ऐलेक्स का।
थोड़ी ही देर में क्रिस्टी के शरीर का पूरा दर्द खत्म हो गया और वह उठकर बैठ गई।
“अब सबकुछ सही हो गया हो, तो कोई जरा उस तीसरी चाबी को भी द्वार में फिट कर दो।” सुयश ने मुस्कुराते हुए कहा।
ऐलेक्स ने अपनी जेब में रखी तीसरी चाबी को द्वार में फंसा कर घुमा दिया। तीसरी चाबी भी द्वार में फिट हो गई।
चाबी के फिट होते ही पुनः एक जोर की गड़गड़ाहट हुई, पर यह गड़गड़ाहट थी रानी चींटी के जिंदा होने की।
रानी चींटी को जिंदा होते देख सभी की साँस फूल गई।
“बेड़ा गर्क....बुलेट चींटी ने ही इतना हंगामा कर दिया था और अब तो ये भी जाग गई, अब भगवान जाने क्या होगा?” ऐलेक्स ने रानी चींटी को घूरते हुए कहा।
“कुछ नहीं होगा...आप लोग परेशान मत होइये।” शैफाली ने सभी को जोश दिलाते हुए कहा- “चींटीयों को दिखाई नहीं देता, वह सिर्फ अपने से 2 फुट तक की दूरी को महसूस कर सकती हैं, इस रानी चींटी का
आकार साधारण चींटी से काफी बड़ा है, मतलब ये ज्यादा से ज्यादा 10 से 15 फुट तक ही महसूस कर सकती होगी। इसलिये सब लोग अलग-अलग होकर इससे दूर रहने की कोशिश करो, तब तक मैं इसका कोई उपाय सोचती हूं।”
तभी रानी चींटी ने अपने पंख फड़फड़ाये और एक जोर की उड़ान भरी।
“शैफाली लगता है कि तुम इसके उड़ने की क्षमता को भूल गई।” जेनिथ ने शैफाली से कहा- “उड़कर तो यह हमको कहीं से भी ढूंढ लेगी।”
“रुको पहले मैं इसके उड़ने की क्षमता का खत्म करता हूं।” यह कहकर तौफीक ने अपने हाथ में थमा भाला जोर से हवा में उछाला।
भाला रानी चींटी के पंखों को भेदता हुआ दूर जा गिरा और इसी के साथ रानी चींटी के दोनों पंख उसके शरीर से अलग हो गए।
“वाह! क्या बात है। मजा आ गया।” ऐलक्स ने तौफीक का निशाना देख, एक उत्साह भरी आवाज निकाली।
रानी चींटी अब जमीन पर आ गिरी थी और वह अब बहुत ज्यादा हिंसक नजर आ रही थी।
यह देख सभी रानी चींटी से दूरी बनाते हुए अलग-अलग दिशा में बिखर गये।
तौफीक धीरे-धीरे चलता हुआ वापस भाले तक जा पहुंचा और भाले से रानी चींटी के पंखों को अलग कर, दबे पाँव रानी चींटी की ओर बढ़ने लगा।
पर अभी तौफीक रानी चींटी से काफी दूर ही था कि तभी रानी चींटी को तौफीक की आहट लग गई और वह तेजी से उस दिशा में आगे बढ़कर तौफीक की ओर झपटी।
तौफीक ने किसी तरह से स्वयं को बचाया और रानी चींटी पर भाले का वार कर दिया, परंतु उस भाले का रानी चींटी पर कोई असर नहीं हुआ।
“तौफीक अंकल रानी चींटी से दूर रहिये।” शैफाली ने चीखकर तौफीक को चेतावनी दी- “एक तो उस की ऊपरी सतह पर भाले का कोई असर नहीं हो रहा और वह बहुत ज्यादा दूरी से आपको सूंघ ले रही है। ऐसे में आप उसे नहीं मार पायेंगे।”
शैफाली की बात सुनकर तौफीक रानी चींटी से दूर हट गया।
शैफाली की निगाह फिर से चारों ओर घूमी। अब उसकी निगाहें उस जगह जाकर रुकीं, जहां बुलेट चींटी मरी थी।
बुलेट चींटी के मरने के बाद, उससे निकला हल्के पीले रंग का द्रव अब भी वहां बिखरा हुआ था।
यह देख शैफाली ने चीखकर सुयश से कहा- “कैप्टेन अंकल इस रानी चींटी को मारने का तरीका तो मिल गया, पर वह तरीका बहुत ही खतरनाक है।”
“तुम तरीका बताओ शैफाली, हम देखते हैं कि उसे कैसे करना है?” सुयश ने भी रानी चींटी से बचते हुए चीखकर कहा।
“चींटीयों के मरने के बाद उनके शरीर से ‘ओलिक एसिड’ निकलता है। जिसे सूंघकर दूसरी चींटीयां जान जाती हैं कि वह चींटी मर गई। अब अगर यह ओलिक एसिड किसी जिन्दा चींटी पर भी गिर जाये तो सभी चींटीयां उसे भी मरा समझ लेती हैं। अब आते हैं इस रानी चींटी पर....इसके शरीर की ऊपरी त्वचा बहुत ज्यादा कठोर है, इसलिये भाले का उस पर कोई असर नहीं हो रहा।
"तो अगर कोई इसके शरीर के नीचे से इस पर भाले का प्रहार करे, तो यह अवश्य ही मर जायेगी, अब साधारण परिस्थितियों में इसके शरीर के निचले भाग के पास पहुंचना बहुत मुश्किल है, पर अगर हममें से कोई उस बुलेट चींटी के शरीर से निकले द्रव को अपने शरीर पर लगा ले, तो रानी चींटी उसे भी मरा समझेगी और उसे कुछ नहीं कहेगी, ऐसी स्थिति में वह इंसान रानी चींटी के शरीर के निचले हिस्से पर वार कर सकेगा।”
शैफाली का प्लान बहुत अच्छा था, पर सुयश अब किसी और को खतरे में नहीं डालना चाहता था, इसलिये इस काम को उसने स्वयं करने के लिये कहा।
अब पहले सभी ने रानी चींटी का ध्यान अपनी ओर किया, जिससे सुयश ने बुलेट चींटी के शरीर से निकले द्रव को अपने शरीर पर, पूरी तरह से लगा लिया और अपने हाथ में भाले को लेकर वहीं जमीन पर लेट गया।
अब तौफीक ने रानी चींटी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर सुयश की ओर तेजी से भागा।
रानी चींटी सुयश की ओर बढ़ी। सभी के दिल तेजी से धड़क रहे थे।
रानी चींटी ने पास पहुंचकर सुयश के शरीर को सूंघा, और फिर उसे छोड़कर जैसे ही आगे बढ़ने चली, सुयश ने अपनी पूरी ताकत से भाले को रानी चींटी के शरीर के निचले हिस्से में घुसाकर उसका पूरा पेट ही फाड़ दिया।
बहुत सारा गंदा द्रव सुयश के ऊपर आ गिरा।
रानी चींटी चिंघाड़ते हुए कुछ दूर जाकर गिर गई।
सुयश ने उठकर अपने कपड़ों को झटक कर साफ किया, तभी सुयश की निगाह सामने पड़ी, चौथी चाबी की ओर गई, जो कि रानी चींटी के पेट में थी और उसका पेट फट जाने की वजह से बाहर आकर गिर गई
थी।
सुयश ने मुस्कुराकर सभी को चौथी चाबी दिखाई और आगे बढ़कर उस चाबी को भी द्वार में लगाकर घुमा दिया।
इस बार एक तेज गड़गड़ाहट के साथ तिलिस्मा का वह द्वार खुल गया।
सभी उस द्वार के अंदर प्रवेश कर गये।
जारी रहेगा______![]()
Thanks brothernice update

nice update. aakruti ko badi aasani se sunahari dhal mil gayi par neeldand kaha gayab ho gaya .vikram ka milna bhi achcha hi raha aakruti ke liye aur uski yaddasht bhi jaa chuki hai jisse aakruti jaise chahe waise uski power ka istemal karne ki soch rahi hai .#162.
बर्फ का गोला: (16.01.02, बुधवार, 10:40, सनकिंग जहाज, अटलांटिक महासागर)
सनकिंग वही जहाज था, जिस पर सुनहरी ढाल लेकर विल्मर यात्रा कर रहा था।
आकृति को सुर्वया के माध्यम से विल्मर की पूरी जानकारी मिल गई थी, इसलिये वह मकोटा के दिये नीलदंड की मदद से छिपकर सनकिंग पर आ गई थी।
आकृति चाहती तो तुरंत ही विल्मर के कमरे में घुसकर सुनहरी ढाल प्राप्त कर सकती थी, पर वह इतनी गलतियां कर चुकी थी, कि अब अपना कदम फूंक-फूक कर उठा रही थी।
आकृति को नहीं मालूम था कि विल्मर के पास यह सुनहरी ढाल आयी कहां से? क्यों कि सुर्वया बर्फ के नीचे, पानी के अंदर और हवा में रह रहे किसी भी जीव को नहीं ढूंढ सकती थी, इसलिये सुर्वया ने शलाका को विल्मर को सुनहरी ढाल देते हुए नहीं देखा था।
आकृति ने जहाज पर प्रवेश करते ही, एक अकेली लड़की क्राउली को नीलदंड की मदद से पक्षी बनाकर समुद्र में उड़ा दिया और उसी के कपड़े धारण कर वह जहाज में घूमने लगी।
यह जहाज बहुत बड़ा नहीं था, इसलिये आकृति को विल्मर को ढूंढने में ज्यादा मुश्किल नहीं आयी।
इस समय आकृति जहाज के रेस्टोरेंट में बैठी कॉफी का घूंट भर रही थी। विल्मर उससे कुछ दूरी पर एक दूसरी टेबल पर बैठा था।
आखिरकार आकृति अपनी टेबल से उठी और टहलती हुई विल्मर के पास जा पहुंची।
“क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?” आकृति ने विल्मर की ओर देखते हुए पूछा।
विल्मर अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख खुश होते हुए बोला - “हां-हां क्यों नहीं....।”
आकृति विल्मर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।
“मैं बहुत देर से आपके सामने बैठी आपको देख रही थी, मुझे आपका चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, इसीलिये मैं आपसे पूछने चली आई। क्या हम पहले कहीं मिल चुके हैं?” आकृति ने विल्मर की आँखों में
झांकते हुए कहा।
विल्मर ने आकृति को ध्यान से देखा और ना में सिर हिला दिया।
अगर शलाका ने विल्मर की स्मृतियां ना छीनी होतीं, तो विल्मर ने शलाका जैसे चेहरे वाली आकृति को, तुरंत पहचान लेना था, पर अभी उसे
आकृति का चेहरा बिल्कुल ही अंजान लगा।
“ओह सॉरी, फिर तो मैं चलती हूं।”
यह कहकर आकृति कुर्सी से उठने लगी।
तभी विल्मर ने उसे रोकते हुए कहा- “इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं आपको नहीं जानता। अरे जान पहचान बनाने के लिये किसी को
पहले से जानना जरुरी थोड़ी ना है .....वैसे मेरा नाम विल्मर है।”
यह कहकर विल्मर ने अपना हाथ आकृति की ओर बढ़ा दिया, पर आकृति को विल्मर से हाथ मिलाने में कोई रुचि नहीं थी, इसलिये वह पहले के समान ही बैठी रही।
आकृति को हाथ ना मिलाते देख विल्मर ने अचकचाकर अपना हाथ पीछे कर लिया।
“मेरा नाम क्राउली है, मैं एक आर्कियोलॉजिस्ट हूं। मैं पुरानी से पुरानी चीज को देखकर, कार्बन डेटिंग के द्वारा किसी भी वस्तु का काल और उसकी कीमत का निर्धारण करती हूं।” आकृति ने अपना दाँव फेंकते हुए कहा।
आकृति की बात सुन विल्मर खुश हो गया, उसे ऐसे ही किसी इंसान की तो तलाश थी, जो कि उसकी सुनहरी ढाल का मूल्यांकन कर सके।
“ओह, आप तो बहुत अच्छा काम करती हैं मिस क्राउली।” विल्मर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “सॉरी मैं बात करने में आपसे पूछना भूल गया। आप कुछ लेंगी क्या?”
“नहीं-नहीं, मैंने अभी कॉफी पी है और मुझे अभी किसी चीज की जरुरत नहीं है...और वैसे भी मेरे मतलब की चीज इस जहाज पर कहां? मेरा मतलब है कि मेरी रुचि तो सिर्फ एंटीक चीजों में ही होती है।...एक्चुली मैं अपने काम को इस समय बहुत मिस कर रहीं हूं।” आकृति ने फिर से विल्मर को फंसाते हुए कहा।
“मेरे पास आपके काम की एक चीज है....क्या आप उसे देखना चाहेंगी?” विल्मर ने आकृति से पूछा।
“वाह! इससे अच्छा क्या हो सकता है। मैं जरुर देखना चाहूंगी।” आकृति खुश होते हुए अपनी सीट से खड़ी हो गई।
आकृति को तुरंत कुर्सी से खड़ा होता देख, विल्मर ने एक बार टेबल पर पड़े अपने आधे खाये हुए खाने को देखा और फिर वह उठकर वाश बेसिन की ओर बढ़ गया।
कुछ ही देर में विल्मर आकृति को लेकर अपने केबिन में पहुंच गया।
आकृति ने विल्मर के कमरे पर नजर मारी, पर उसे वह सुनहरी ढाल कहीं नजर नहीं आयी? आकृति कमरे में पड़ी एक सोफे पर बैठ गई।
तभी विल्मर ने दीवार पर लगी एक रंगीन पेंटिंग उतार ली, जो कि गोल आकार में थी और उभरी हुई थी।
आकृति ध्यान से उस पेटिंग को देखने लगी, तभी उसके आकार को देख आकृति को झटका लगा, यह वही सुनहरी ढाल थी, जिसे कि विल्मर ने चालाकी दिखाते हुए रंगों से पेंट कर दिया था।
विल्मर ने वह ढाल आकृति को पकड़ा दी।
“यह तो एक साधारण पेंटिंग है, जिसे शायद किसी ने अभी हाल में ही पेंट किया है, यह कोई एंटीक चीज नहीं है।” आकृति ने विल्मर को देखते हुए कहा।
तभी विल्मर ने आकृति के हाथ से वह ढाल ले, उस पर एक जगह कोई स्प्रे मार दिया, अब उस स्प्रे के नीचे से चमचमाती हुई सुनहरी ढाल नजर आने लगी थी।
“अब जरा देखिये।” विल्मर ने यह कहते हुए दोबारा से सुनहरी ढाल आकृति के हाथों में पकड़ा दी।
“यह तो काफी पौराणिक ढाल लग रही है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर है....पर इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला।” आकृति ने कहा।
“क्यों? क्या मैं इसे एंटीक मार्केट में बेच नहीं सकता?” विल्मर ने सोचने वाले अंदाज में पूछा।
“नहीं....क्यों कि यह तुम्हारे पास रहेगा नहीं।” यह कहते ही आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा और इससे पहले कि विल्मर कुछ समझ पाता, नीलदंड से निकली किरणों ने, विल्मर को एक सीगल
(समुद्री पक्षी) में बदल दिया। इसी के साथ आकृति ने दरवाजा खोलकर सीगल को बाहर उड़ा दिया।
अब आकृति ने ढाल को अपने हाथ में उठाया और नीलदंड को सामने की ओर जोर से नचाया, पर नीलदंड उसी समय हवा में गायब हो गया।
“यह क्या नीलदंड कहां गया?” आकृति ने घबरा कर दोबारा हाथ हिलाया, पर नीलदंड उसके हाथ में वापस नहीं आया।
अब आकृति पूरी तरह से घबरा गई- “ये क्या हुआ? क्या मकोटा ने अपना नीलदंड वापस ले लिया? क्या ...क्या वह मेरे बारे में सबकुछ जान गया?...पर अगर नीलदंड चला गया तो मैं यहां से वापस अराका पर
कैसे जाऊंगी?....मेरे पास तो अभी इतनी शक्तियां भी नहीं है...अब मैं क्या करुं?
"इस ढाल की तलवार भी सीनोर राज्य में ही है, उसके बिना मैं दे...राज इंद्र से वरदान भी नहीं मांग सकती। और रोजर, मेलाइट और
सुर्वया का क्या होगा? चलो सुर्वया तो जादुई दर्पण में बंद है, उसे कुछ नहीं होगा, पर रोजर और मेलाइट का क्या?....रोजर तो मर भी जाये, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...पर अगर मेलाइट को कुछ हो गया, तो मैं कभी भी शलाका के चेहरे से मुक्ति नहीं पा पाऊंगी।....और .... और ग्रीक देवता तो मुझे मार ही डालेंगे।
“मुझे कुछ भी करके और शक्तियां इकठ्ठा करके वापस अराका पर जाना ही होगा...क्यों कि अब देवराज का वरदान ही मुझे मेरे पुत्र के पास पहुंचा सकता है।...पर...पर पहले मुझे यहां से निकलना होगा। वैसे यह जहाज 7 से 8 घंटों के बाद न्यूयार्क पहुंच जायेगा। मुझे वहां पहुंचकर अपनी बची हुई शक्तियों के साथ, कुछ और ही प्लान करना होगा।” यह सोच आकृति सुनहरी ढाल लेकर चुपचाप उस कमरे से निकल, क्राउली के कमरे की ओर बढ़ गई।
क्राउली के कमरे में पहुंच जैसे ही आकृति ने सुनहरी ढाल को बिस्तर पर रखा , तभी उसे बाहर से आती किसी शोर की आवाज सुनाई दी।
धड़कते दिल से आकृति केबिन के बाहर आ गई और उस ओर चल दी, जिधर से शोर की आवाज आ रही थी।
शोर की आवाजें डेक की ओर से आ रहीं थीं। आकृति ने पास जाकर देखा, तो उसे जहाज के डेक पर 1 मीटर व्यास का एक बर्फ का गोला पड़ा दिखाई दिया।
उस गोले के पास एक छोटा सा जाल पड़ा था, जिसे देख कोई भी समझ सकता था कि इस बर्फ के गोले को, इसी जाल के द्वारा समुद्र से निकाला गया है।
बहुत से व्यक्ति उस गोले के चारो ओर खड़े उसे देख रहे थे।
तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला - “इस बर्फ के गोले में कोई इंसान है?” यह सुनकर सभी उस गोले के अंदर झांककर देखने लगे।
आकृति की नजर भी उस बर्फ के गोले के अंदर की ओर गई, सच में उस गोले में एक मानव शरीर था, पर उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही आकृति हैरान हो गई क्यों कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि विक्रम था।
विक्रम....वारुणि का सबसे करीबी।
“यह विक्रम इस बर्फ के गोले में कैसे आ गया?” आकृति यह देख समझ गई कि विक्रम अभी भी जिंदा हो सकता है।
अतः वह सभी को देखकर चिल्लाई- “बर्फ को तोड़ो, यह मेरा दोस्त है और यह अभी भी साँस ले रहा है।”
आकृति की बात सुन वहां खड़े व्यक्तियों का एक समूह उस बर्फ को तोड़ने लगा।
बर्फ को तोड़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्यों कि बर्फ की ऊपरी पर्त पहले से ही कमजोर थी, शायद यह बर्फ का गोला काफी समय से नमकीन समुद्री पानी में पड़ा हुआ था।
बर्फ टूटने के बाद विक्रम का शरीर बर्फ से बाहर आ गया। यह देख जहाज का एक डॉक्टर विक्रम का चेकअप करने लगा।
सभी उत्सुकता भरी निगाहों से उस डॉक्टर को देख रहे थे।
“यह व्यक्ति पूरी तरह से ठीक है, बस बर्फ में काफी देर तक दबे रहने से, इसके शरीर का तापमान गिर गया है, पर मुझे लगता है कि आधे से 1 घंटे के बीच यह होश में आ जायेगा।” डॉक्टर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “आप इन्हें अपने कमरे में रख सकती हैं...अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा। पर सच कहूं तो इनका इस प्रकार बर्फ में दबे रहने के बाद बचना किसी चमत्कार से कम नहीं।” यह कहकर डॉक्टर चला गया।
आकृति ने कुछ लोगों की मदद ले विक्रम को क्राउली के कमरे में रख लिया।
जब सभी कमरे से चले गये, तो आकृति फिर से अपनी सोच में गुम हो गई।
लगभग 45 मिनट के बाद विक्रम ने कराह कर अपनी आँखें खोलीं।
आँखें खोलने के बाद विक्रम ने तुरंत ही अपना सिर पकड़ लिया।
यह देख आकृति भागकर विक्रम के पास आ गई- “क्या हुआ विक्रम? तुम ठीक तो हो ना ?”
“कौन हो आप?” विक्रम ने आश्चर्य से आकृति को देखते हुए पूछा।
“तुम्हें क्या हो गया विक्रम? तुम मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” आकृति के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये।
“मैं...मैं कौन हूं? तुम मुझे विक्रम क्यों बुला रही हो ? मेरा नाम तो.... मेरा नाम?....मेरा नाम मुझे याद क्यों नहीं आ रहा?” विक्रम के चेहरे पर उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे।
“लगता है चोट लगने के कारण विक्रम की स्मृति चली गई है।” आकृति ने मन में सोचा- “इस समय मेरे पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं.... अगर मैं विक्रम को कोई झूठी कहानी सुना दूं, तो मैं विक्रम की शक्तियों का इस्तेमाल स्वयं के लिये कर सकती हूं...और अगर कभी विक्रम की स्मृति वापस भी आ गई, तो वह शलाका का दुश्मन बन जायेगा....वाह क्या उपाय आया है मस्तिष्क में।
“पर...पर अगर बीच में कभी वारुणी ने विक्रम से, मानसिक तरंगों के द्वारा सम्पर्क करने की कोशिश की तो वह सबकुछ जान जायेगा
....सबसे पहले इसे अपनी नीली अंगूठी पहना देती हूं, इससे वारुणि कभी मानसिक तरंगों के द्वारा विक्रम से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पायेगी, वैसे भी इस अंगूठी का इस्तेमाल, मैं पहले भी कई बार आर्यन को शलाका से बचाने के लिये कर चुकी हूं और इस अंगूठी का रहस्य भी किसी को नहीं पता।”
“आप मुझे विक्रम पुकार रहीं हैं।” विक्रम ने कहा- “मेरा नाम विक्रम है क्या?...पर मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है?”
“मेरा नाम वारुणि है, तुम मेरे पति विक्रम हो, हम दोनों भारत में रहते हैं। तुम्हारे पास वायु की शक्तियां हैं, इन शक्तियों से तुम पृथ्वी की रक्षा करते हो। पर कुछ दिन पहले एक शक्तिशाली दुश्मन से लड़ते समय
तुम्हारे सिर पर चोट आ गई, जिससे तुम्हारी स्मृतियां चलीं गईं हैं। डॉक्टर ने तुम्हें कुछ दिन आराम करने को बोला है, इसलिये हम इस जहाज से न्यूयार्क घूमने जा रहे हैं। मेरे पिता ने मुझे एक अभिमंत्रित अंगूठी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर तुम अगले 10 दिनों तक इस अंगूठी को बिना उतारे अपनी उंगली में पहने रहोगे, तो तुम्हारी स्मृतियां वापस आ जायेंगी।” आकृति ने कम समय में अच्छी खासी कहानी गढ़ दी।
यह कहकर आकृति ने अपने हाथ में पहनी नीली अंगूठी को विक्रम की ओर बढ़ा दिया।
आकृति की बात सुनकर विक्रम सोच में पड़ गया।
उसे सोच में पड़ा देख आकृति पुनः बोल उठी- “तुम्हें डॉक्टर ने ज्यादा सोचने को मना किया है।” अभी आकृति ने यह कहा ही था कि तभी उसके केबिन की घंटी बज उठी।
आकृति ने अंदर से ही तेज आवाज में पूछा- “कौन?”
“मैं जहाज का केबिन क्रू हूं, मुझे जहाज के डॉक्टर ने उस नौजवान की तबियत जानने के लिये भेजा है।” बाहर से एक आवाज उभरी।
“विक्रम की तबियत अब बिल्कुल ठीक है, उन्हें अब डॉक्टर की जरुरत नहीं है। मेरी तरफ से डॉक्टर को धन्यवाद कह देना।” आकृति ने बिना दरवाजा खोले ही तेज आवाज में कहा।
आकृति की बात सुन आगन्तुक चला गया, पर उसका इस प्रकार आना आकृति के लिये लाभकारी रहा।
अब विक्रम के चेहरे से चिंता के भाव हटते दिखाई दे रहे थे।
“अब तुम आराम से सो जाओ विक्रम, जब न्यूयार्क आयेगा, तो मैं तुम्हें उठा दूंगी।” आकृति ने कहा और विक्रम को सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया।
विक्रम ने आकृति की दी हुई अंगूठी अपने दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पहन ली थी।
जारी रहेगा______![]()
Bilkul, aur isi liye Shefali ko jab wo nuksaan pahuchana chaha to mahavriksh ne uski power le li thilovely update. mahavriksh se vega ne sammohan shakti sikhi aur yugaka ko vriksh shakti mili jisse wo pedo se baat kar sakta hai unka dard mehsus kar sakta hai .
thank you so much for your wonderful review and support bhai 
Agar Shefali na ho to kuch bhi sambhav hi na hota bhairomanchak update. chabiya paane ke liye bahut mehnat karni padi sabko .christi to marte marte bachi ,shefali ki chitiyo ki jaankari ki wajah se sab sambhav ho paya .

nice update. aakruti ko badi aasani se sunahari dhal mil gayi par neeldand kaha gayab ho gaya .vikram ka milna bhi achcha hi raha aakruti ke liye aur uski yaddasht bhi jaa chuki hai jisse aakruti jaise chahe waise uski power ka istemal karne ki soch rahi hai .


Avaran#162.
बर्फ का गोला: (16.01.02, बुधवार, 10:40, सनकिंग जहाज, अटलांटिक महासागर)
सनकिंग वही जहाज था, जिस पर सुनहरी ढाल लेकर विल्मर यात्रा कर रहा था।
आकृति को सुर्वया के माध्यम से विल्मर की पूरी जानकारी मिल गई थी, इसलिये वह मकोटा के दिये नीलदंड की मदद से छिपकर सनकिंग पर आ गई थी।
आकृति चाहती तो तुरंत ही विल्मर के कमरे में घुसकर सुनहरी ढाल प्राप्त कर सकती थी, पर वह इतनी गलतियां कर चुकी थी, कि अब अपना कदम फूंक-फूक कर उठा रही थी।
आकृति को नहीं मालूम था कि विल्मर के पास यह सुनहरी ढाल आयी कहां से? क्यों कि सुर्वया बर्फ के नीचे, पानी के अंदर और हवा में रह रहे किसी भी जीव को नहीं ढूंढ सकती थी, इसलिये सुर्वया ने शलाका को विल्मर को सुनहरी ढाल देते हुए नहीं देखा था।
आकृति ने जहाज पर प्रवेश करते ही, एक अकेली लड़की क्राउली को नीलदंड की मदद से पक्षी बनाकर समुद्र में उड़ा दिया और उसी के कपड़े धारण कर वह जहाज में घूमने लगी।
यह जहाज बहुत बड़ा नहीं था, इसलिये आकृति को विल्मर को ढूंढने में ज्यादा मुश्किल नहीं आयी।
इस समय आकृति जहाज के रेस्टोरेंट में बैठी कॉफी का घूंट भर रही थी। विल्मर उससे कुछ दूरी पर एक दूसरी टेबल पर बैठा था।
आखिरकार आकृति अपनी टेबल से उठी और टहलती हुई विल्मर के पास जा पहुंची।
“क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?” आकृति ने विल्मर की ओर देखते हुए पूछा।
विल्मर अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख खुश होते हुए बोला - “हां-हां क्यों नहीं....।”
आकृति विल्मर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।
“मैं बहुत देर से आपके सामने बैठी आपको देख रही थी, मुझे आपका चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, इसीलिये मैं आपसे पूछने चली आई। क्या हम पहले कहीं मिल चुके हैं?” आकृति ने विल्मर की आँखों में
झांकते हुए कहा।
विल्मर ने आकृति को ध्यान से देखा और ना में सिर हिला दिया।
अगर शलाका ने विल्मर की स्मृतियां ना छीनी होतीं, तो विल्मर ने शलाका जैसे चेहरे वाली आकृति को, तुरंत पहचान लेना था, पर अभी उसे
आकृति का चेहरा बिल्कुल ही अंजान लगा।
“ओह सॉरी, फिर तो मैं चलती हूं।”
यह कहकर आकृति कुर्सी से उठने लगी।
तभी विल्मर ने उसे रोकते हुए कहा- “इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं आपको नहीं जानता। अरे जान पहचान बनाने के लिये किसी को
पहले से जानना जरुरी थोड़ी ना है .....वैसे मेरा नाम विल्मर है।”
यह कहकर विल्मर ने अपना हाथ आकृति की ओर बढ़ा दिया, पर आकृति को विल्मर से हाथ मिलाने में कोई रुचि नहीं थी, इसलिये वह पहले के समान ही बैठी रही।
आकृति को हाथ ना मिलाते देख विल्मर ने अचकचाकर अपना हाथ पीछे कर लिया।
“मेरा नाम क्राउली है, मैं एक आर्कियोलॉजिस्ट हूं। मैं पुरानी से पुरानी चीज को देखकर, कार्बन डेटिंग के द्वारा किसी भी वस्तु का काल और उसकी कीमत का निर्धारण करती हूं।” आकृति ने अपना दाँव फेंकते हुए कहा।
आकृति की बात सुन विल्मर खुश हो गया, उसे ऐसे ही किसी इंसान की तो तलाश थी, जो कि उसकी सुनहरी ढाल का मूल्यांकन कर सके।
“ओह, आप तो बहुत अच्छा काम करती हैं मिस क्राउली।” विल्मर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “सॉरी मैं बात करने में आपसे पूछना भूल गया। आप कुछ लेंगी क्या?”
“नहीं-नहीं, मैंने अभी कॉफी पी है और मुझे अभी किसी चीज की जरुरत नहीं है...और वैसे भी मेरे मतलब की चीज इस जहाज पर कहां? मेरा मतलब है कि मेरी रुचि तो सिर्फ एंटीक चीजों में ही होती है।...एक्चुली मैं अपने काम को इस समय बहुत मिस कर रहीं हूं।” आकृति ने फिर से विल्मर को फंसाते हुए कहा।
“मेरे पास आपके काम की एक चीज है....क्या आप उसे देखना चाहेंगी?” विल्मर ने आकृति से पूछा।
“वाह! इससे अच्छा क्या हो सकता है। मैं जरुर देखना चाहूंगी।” आकृति खुश होते हुए अपनी सीट से खड़ी हो गई।
आकृति को तुरंत कुर्सी से खड़ा होता देख, विल्मर ने एक बार टेबल पर पड़े अपने आधे खाये हुए खाने को देखा और फिर वह उठकर वाश बेसिन की ओर बढ़ गया।
कुछ ही देर में विल्मर आकृति को लेकर अपने केबिन में पहुंच गया।
आकृति ने विल्मर के कमरे पर नजर मारी, पर उसे वह सुनहरी ढाल कहीं नजर नहीं आयी? आकृति कमरे में पड़ी एक सोफे पर बैठ गई।
तभी विल्मर ने दीवार पर लगी एक रंगीन पेंटिंग उतार ली, जो कि गोल आकार में थी और उभरी हुई थी।
आकृति ध्यान से उस पेटिंग को देखने लगी, तभी उसके आकार को देख आकृति को झटका लगा, यह वही सुनहरी ढाल थी, जिसे कि विल्मर ने चालाकी दिखाते हुए रंगों से पेंट कर दिया था।
विल्मर ने वह ढाल आकृति को पकड़ा दी।
“यह तो एक साधारण पेंटिंग है, जिसे शायद किसी ने अभी हाल में ही पेंट किया है, यह कोई एंटीक चीज नहीं है।” आकृति ने विल्मर को देखते हुए कहा।
तभी विल्मर ने आकृति के हाथ से वह ढाल ले, उस पर एक जगह कोई स्प्रे मार दिया, अब उस स्प्रे के नीचे से चमचमाती हुई सुनहरी ढाल नजर आने लगी थी।
“अब जरा देखिये।” विल्मर ने यह कहते हुए दोबारा से सुनहरी ढाल आकृति के हाथों में पकड़ा दी।
“यह तो काफी पौराणिक ढाल लग रही है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर है....पर इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला।” आकृति ने कहा।
“क्यों? क्या मैं इसे एंटीक मार्केट में बेच नहीं सकता?” विल्मर ने सोचने वाले अंदाज में पूछा।
“नहीं....क्यों कि यह तुम्हारे पास रहेगा नहीं।” यह कहते ही आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा और इससे पहले कि विल्मर कुछ समझ पाता, नीलदंड से निकली किरणों ने, विल्मर को एक सीगल
(समुद्री पक्षी) में बदल दिया। इसी के साथ आकृति ने दरवाजा खोलकर सीगल को बाहर उड़ा दिया।
अब आकृति ने ढाल को अपने हाथ में उठाया और नीलदंड को सामने की ओर जोर से नचाया, पर नीलदंड उसी समय हवा में गायब हो गया।
“यह क्या नीलदंड कहां गया?” आकृति ने घबरा कर दोबारा हाथ हिलाया, पर नीलदंड उसके हाथ में वापस नहीं आया।
अब आकृति पूरी तरह से घबरा गई- “ये क्या हुआ? क्या मकोटा ने अपना नीलदंड वापस ले लिया? क्या ...क्या वह मेरे बारे में सबकुछ जान गया?...पर अगर नीलदंड चला गया तो मैं यहां से वापस अराका पर
कैसे जाऊंगी?....मेरे पास तो अभी इतनी शक्तियां भी नहीं है...अब मैं क्या करुं?
"इस ढाल की तलवार भी सीनोर राज्य में ही है, उसके बिना मैं दे...राज इंद्र से वरदान भी नहीं मांग सकती। और रोजर, मेलाइट और
सुर्वया का क्या होगा? चलो सुर्वया तो जादुई दर्पण में बंद है, उसे कुछ नहीं होगा, पर रोजर और मेलाइट का क्या?....रोजर तो मर भी जाये, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...पर अगर मेलाइट को कुछ हो गया, तो मैं कभी भी शलाका के चेहरे से मुक्ति नहीं पा पाऊंगी।....और .... और ग्रीक देवता तो मुझे मार ही डालेंगे।
“मुझे कुछ भी करके और शक्तियां इकठ्ठा करके वापस अराका पर जाना ही होगा...क्यों कि अब देवराज का वरदान ही मुझे मेरे पुत्र के पास पहुंचा सकता है।...पर...पर पहले मुझे यहां से निकलना होगा। वैसे यह जहाज 7 से 8 घंटों के बाद न्यूयार्क पहुंच जायेगा। मुझे वहां पहुंचकर अपनी बची हुई शक्तियों के साथ, कुछ और ही प्लान करना होगा।” यह सोच आकृति सुनहरी ढाल लेकर चुपचाप उस कमरे से निकल, क्राउली के कमरे की ओर बढ़ गई।
क्राउली के कमरे में पहुंच जैसे ही आकृति ने सुनहरी ढाल को बिस्तर पर रखा , तभी उसे बाहर से आती किसी शोर की आवाज सुनाई दी।
धड़कते दिल से आकृति केबिन के बाहर आ गई और उस ओर चल दी, जिधर से शोर की आवाज आ रही थी।
शोर की आवाजें डेक की ओर से आ रहीं थीं। आकृति ने पास जाकर देखा, तो उसे जहाज के डेक पर 1 मीटर व्यास का एक बर्फ का गोला पड़ा दिखाई दिया।
उस गोले के पास एक छोटा सा जाल पड़ा था, जिसे देख कोई भी समझ सकता था कि इस बर्फ के गोले को, इसी जाल के द्वारा समुद्र से निकाला गया है।
बहुत से व्यक्ति उस गोले के चारो ओर खड़े उसे देख रहे थे।
तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला - “इस बर्फ के गोले में कोई इंसान है?” यह सुनकर सभी उस गोले के अंदर झांककर देखने लगे।
आकृति की नजर भी उस बर्फ के गोले के अंदर की ओर गई, सच में उस गोले में एक मानव शरीर था, पर उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही आकृति हैरान हो गई क्यों कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि विक्रम था।
विक्रम....वारुणि का सबसे करीबी।
“यह विक्रम इस बर्फ के गोले में कैसे आ गया?” आकृति यह देख समझ गई कि विक्रम अभी भी जिंदा हो सकता है।
अतः वह सभी को देखकर चिल्लाई- “बर्फ को तोड़ो, यह मेरा दोस्त है और यह अभी भी साँस ले रहा है।”
आकृति की बात सुन वहां खड़े व्यक्तियों का एक समूह उस बर्फ को तोड़ने लगा।
बर्फ को तोड़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्यों कि बर्फ की ऊपरी पर्त पहले से ही कमजोर थी, शायद यह बर्फ का गोला काफी समय से नमकीन समुद्री पानी में पड़ा हुआ था।
बर्फ टूटने के बाद विक्रम का शरीर बर्फ से बाहर आ गया। यह देख जहाज का एक डॉक्टर विक्रम का चेकअप करने लगा।
सभी उत्सुकता भरी निगाहों से उस डॉक्टर को देख रहे थे।
“यह व्यक्ति पूरी तरह से ठीक है, बस बर्फ में काफी देर तक दबे रहने से, इसके शरीर का तापमान गिर गया है, पर मुझे लगता है कि आधे से 1 घंटे के बीच यह होश में आ जायेगा।” डॉक्टर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “आप इन्हें अपने कमरे में रख सकती हैं...अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा। पर सच कहूं तो इनका इस प्रकार बर्फ में दबे रहने के बाद बचना किसी चमत्कार से कम नहीं।” यह कहकर डॉक्टर चला गया।
आकृति ने कुछ लोगों की मदद ले विक्रम को क्राउली के कमरे में रख लिया।
जब सभी कमरे से चले गये, तो आकृति फिर से अपनी सोच में गुम हो गई।
लगभग 45 मिनट के बाद विक्रम ने कराह कर अपनी आँखें खोलीं।
आँखें खोलने के बाद विक्रम ने तुरंत ही अपना सिर पकड़ लिया।
यह देख आकृति भागकर विक्रम के पास आ गई- “क्या हुआ विक्रम? तुम ठीक तो हो ना ?”
“कौन हो आप?” विक्रम ने आश्चर्य से आकृति को देखते हुए पूछा।
“तुम्हें क्या हो गया विक्रम? तुम मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” आकृति के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये।
“मैं...मैं कौन हूं? तुम मुझे विक्रम क्यों बुला रही हो ? मेरा नाम तो.... मेरा नाम?....मेरा नाम मुझे याद क्यों नहीं आ रहा?” विक्रम के चेहरे पर उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे।
“लगता है चोट लगने के कारण विक्रम की स्मृति चली गई है।” आकृति ने मन में सोचा- “इस समय मेरे पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं.... अगर मैं विक्रम को कोई झूठी कहानी सुना दूं, तो मैं विक्रम की शक्तियों का इस्तेमाल स्वयं के लिये कर सकती हूं...और अगर कभी विक्रम की स्मृति वापस भी आ गई, तो वह शलाका का दुश्मन बन जायेगा....वाह क्या उपाय आया है मस्तिष्क में।
“पर...पर अगर बीच में कभी वारुणी ने विक्रम से, मानसिक तरंगों के द्वारा सम्पर्क करने की कोशिश की तो वह सबकुछ जान जायेगा
....सबसे पहले इसे अपनी नीली अंगूठी पहना देती हूं, इससे वारुणि कभी मानसिक तरंगों के द्वारा विक्रम से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पायेगी, वैसे भी इस अंगूठी का इस्तेमाल, मैं पहले भी कई बार आर्यन को शलाका से बचाने के लिये कर चुकी हूं और इस अंगूठी का रहस्य भी किसी को नहीं पता।”
“आप मुझे विक्रम पुकार रहीं हैं।” विक्रम ने कहा- “मेरा नाम विक्रम है क्या?...पर मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है?”
“मेरा नाम वारुणि है, तुम मेरे पति विक्रम हो, हम दोनों भारत में रहते हैं। तुम्हारे पास वायु की शक्तियां हैं, इन शक्तियों से तुम पृथ्वी की रक्षा करते हो। पर कुछ दिन पहले एक शक्तिशाली दुश्मन से लड़ते समय
तुम्हारे सिर पर चोट आ गई, जिससे तुम्हारी स्मृतियां चलीं गईं हैं। डॉक्टर ने तुम्हें कुछ दिन आराम करने को बोला है, इसलिये हम इस जहाज से न्यूयार्क घूमने जा रहे हैं। मेरे पिता ने मुझे एक अभिमंत्रित अंगूठी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर तुम अगले 10 दिनों तक इस अंगूठी को बिना उतारे अपनी उंगली में पहने रहोगे, तो तुम्हारी स्मृतियां वापस आ जायेंगी।” आकृति ने कम समय में अच्छी खासी कहानी गढ़ दी।
यह कहकर आकृति ने अपने हाथ में पहनी नीली अंगूठी को विक्रम की ओर बढ़ा दिया।
आकृति की बात सुनकर विक्रम सोच में पड़ गया।
उसे सोच में पड़ा देख आकृति पुनः बोल उठी- “तुम्हें डॉक्टर ने ज्यादा सोचने को मना किया है।” अभी आकृति ने यह कहा ही था कि तभी उसके केबिन की घंटी बज उठी।
आकृति ने अंदर से ही तेज आवाज में पूछा- “कौन?”
“मैं जहाज का केबिन क्रू हूं, मुझे जहाज के डॉक्टर ने उस नौजवान की तबियत जानने के लिये भेजा है।” बाहर से एक आवाज उभरी।
“विक्रम की तबियत अब बिल्कुल ठीक है, उन्हें अब डॉक्टर की जरुरत नहीं है। मेरी तरफ से डॉक्टर को धन्यवाद कह देना।” आकृति ने बिना दरवाजा खोले ही तेज आवाज में कहा।
आकृति की बात सुन आगन्तुक चला गया, पर उसका इस प्रकार आना आकृति के लिये लाभकारी रहा।
अब विक्रम के चेहरे से चिंता के भाव हटते दिखाई दे रहे थे।
“अब तुम आराम से सो जाओ विक्रम, जब न्यूयार्क आयेगा, तो मैं तुम्हें उठा दूंगी।” आकृति ने कहा और विक्रम को सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया।
विक्रम ने आकृति की दी हुई अंगूठी अपने दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पहन ली थी।
जारी रहेगा______![]()
