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Kya baat hai...superबसंती संग मस्ती
चल थोड़ी देर सुस्ताय लो , और हम दोनों पीठ के बल लेटे, बसंती मुझे भाभी के किस्से सुनाती,...
नहीं नहीं पहले वाले नहीं अभी वाले, ...
ठकुराने में जो उस दिन वो खुदे कह रही थीं जिस दिन वहां अपनी सहेली के यहां गयी थीं , एक दिन में पांच पांच, ... लेकिन एक बात बस थी अपने गाँव में अपनी पट्टी बिरादरी में वो एकदम नहीं, ...
जिस उमर की मैं थी, मेरी भाभी भी उसी उमर से बल्कि थोड़ी बारी ही , और जब एक बार इसी आंगन में दिन में गुलबिया, बसंती और चंपा भाभी के सामने ही, चम्पा भाभी के दोनों भाइयों से अगवाड़ा पिछवाड़ा खूब हचक के मरवा लिया, फिर तो और उनकी धड़क खुल गयी थी जब साड़ी पहन के बन ओढ़ के
कभी ठकुराने तो कभी, ....
बसंती गुलबिया सब समझ जातीं , आज उन की ननद शिकार पे जा रही हैं ,
लेकिन अगल बगल के गाँव में अभी भी,
फिर बसंती बोली, कैसे मैं वही पिछवाड़े ऊँगली पीठ के बल भी लेट के , और करवा के दिखवाया भी ,
फिर थोड़ी देर बाद बोली,
चल अबकी साथ साथ, और अबकी हम दोनों साथ साथ निहुरे ,
मेरी उसकी दोनों की ऊँगली साथ साथ अपने पिछवाड़े घुसी अंदर बाहर, गोल गोल , फिर टाइट ढीला , टाइट ढीला ,
और अबकी बसंती ने एक बात और दिखाई भी सिखाई भी, कैसे एक साथ मैं एक हाथ की ऊँगली पिछवाड़े और दूसरे हाथ की ऊँगली आगे चूत पर चूत और गांड दोनों का मज़ा ले सकती हूँ,
बहुत मजा आ रहा था, आठ दस मिनट के बाद पहले बसंती ने अपनी गाँड़ से ऊँगली निकाली उसकी ऊँगली पर खूब, बिन बोले उसकी आँखों ने हड़काया,
" मुंह खोल ननद रानी "
और मैंने मुंह ख़ोल दिया ,..
" जीभ निकाल " अबकी वो जोर से गरजी,
और मैंने अपनी लम्बी गुलाबी जीभ निकाल दी, जीभ की टिप सीधे उस लिथड़ी ऊँगली के पास,
जीभ की टिप टच होते ही जैसे मेरी पूरी देह में एक करेंट सा दौड़ गया, पूरी देह गिनगीना रही थी, कैसे कैसे लग रहा था,... लेकिन बस टिप से बसंती अपनी ऊँगली की टिप छुलाये और उसकी आँखे मेरी आँखों में झांकती,मेरी जीभ अपने आप हिलने लगी, पहले धीरे धीरे फिर सपड़ सपड़, और एक बार मेरी देह काँप रही थी, और साथ साथ मेरी बुर की पुत्तियाँ भी भिंच रही थीं, सिकुड़ रही थीं , ऑर्गज़्ज़म के पहले जैसे होता है एकदम उसी तरह से , धीरे धीरे बसंती की ऊँगली मेरे मुंह में और थोड़ा जोर लगा के बसंती ने मेरे हलक तक ठेल दी, जैसे सुनील का लंड चूस रही थी उसी तरह मैं खूब मजे से जोश से चूसने लगी,...
और उसकी ऊँगली निकलने के बाद मेरी अपनी ऊँगली, मेरे पिछवाड़े से निकल कर मेरे मुंह के अंदर,
कुछ देर बाद हम दोनों खड़े थे , बसंती ने मुझे कस के भींच रखा था , क्या कोई मरद चुम्मा लेगा जैसे वो चुम्मा ले रही थी,...
और कुछ देर पहले जैसे मेरे मुंह में पहले उसकी ऊँगली, फिर मेरी ऊँगली थी अब बसंती की जीभ थी, और क्या कस कस के अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से मेरी नयी नयी उभरती कच्ची कलियों को वो मसल रही थी, नीचे हम दोनों की चूत भी खूब रगड़ घिस्स रगड़ घिस्स,...
खूब मजा आ रहा था, लेकिन बसंती ने मुझे अलग कर दिया।
फिर बसंती ने बहुत धीरे से मेरे कान में फुसफुसा के पूछा,
" हे आ रही है क्या , बोल,... "
" हाँ भौजी, बहुत जोर से ,... "
मैंने भी उसी तरह फुसफुसा के कहा, ... असल में माँ, सब लोग बाहर गए थे तो अंदर वाला जिसको हम लोग पक्की खंद बोलते थे , बंद था, बाथरूम था लेकिन उसी में , और कई बार पहली बार तो चंपा भाभी के साथ साथ यहीं नाली पे बैठ के, और उसके बाद , तो गाँव की औरतें कई बार तो माँ भी यहीं , बस साडी साया उठाया और मैं भी अब सीख गयी थी , स्कर्ट समेटा और वहीँ नाली पे , इस ओर वैसे भी खाली लड़कियां औरतें ही रहती थीं तो उनसे क्या शर्म,...
बस मैंने स्कर्ट उठाया और वहीँ नाली पे,... मैं शुरू हुयी ही थी की बसंती की जोर से आवाज गूंजी,....
रुक ,...
और मैंने कस के भींचा, लेकिन तब भी, थोड़ी देर तक भींचे रही, जबतक बसंती ने बोला नहीं , और थोड़ी देर बाद वही आवाज, रुक और अबकी मैं तुरंत रुक गयी और कस के भींच लिया ,
जब मैं उठी तो बसंती ने मुझे गले लगाकर चूम लिया और बोली,
"असल ननद हो हमार, एकदम सही सीख गयी, बस ऐसे ही जब मूतो, ऐसे ही दो तीन बार, ... और उसके अलावा पांच छह बार और दिन में,...
बदमाशी पर क्या बसंती का ही कॉपी राइट था, मैंने उसके गले लगे लगे कान में वैसे ही फुसफुसा के पूछ लिया,
" भौजी, आ रही है। "
उसकी आँखों में चमक आ गयी और धक्का देकर मुझे कच्चे मिटटी वाले आंगन में गिरा दिया उसके नीचे वाले होंठ मेरे होंठों पर , और मेरे होंठ अपने आप खुल गए ,
छुल छूल ,... छुल छुल और अचानक रुक गयी, ... मान गयी मैं बसंती का कंट्रोल फिर वही सुनहली,...
जबतक वो उठी, तबतक कहीं दूर से हलकी मोटरसाइकिल की आवाज,...
आ गए तोहार भतार, मुझे कस के चूमते वो बोली।
बिन बोले मेरी आँखों ने सवाल पूछ लिया और मुझे अँकवार में भींचे बसंती ने सब बात साफ़ साफ़ बता दी,